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ईद स्पेशल : घर पर बनाएं चिकन टिक्का

यह एक स्वादिष्ट चिकन टिक्का रेसिपी है. यह पोपुलर नार्थ इंडियन स्नैक है, जिसे खाने में काफी पसंद किया जाता है. इसमें लेमन ग्रास, थाई अदरक और रेड करी पेस्ट का स्वाद मिलेगा. तो आइए जानते हैं, चिकन टिक्का की रेसिपी.

सामग्री

अदरक (7 ग्राम)

लेमन (3 लीव्ज)

लेमनग्रास (5 ग्राम)

कोकोनट मिल्क पाउडर (130 ग्राम)

रिफाइंड तेल (100 मिली.)

रेड करी पेस्ट (12 ग्राम)

पीनट बटर (20 ग्राम)

बैज़ल के पत्ते (तला हुआ)

लोट्स स्टेम (25 ग्राम)

येलो बटर

चाट मसाला (1 ग्राम)

बनाने की वि​धि

– चिकन को मैरीनेट करें, इसके लिए एक बाउल में थाई अदरक, लेमनग्रास के पत्ते, मक्खन और रेड करी पेस्ट को एक बाउल में निकाल लें, अब इस में मिश्रण में चिकन के पीस डालकर और इन्हें मिक्स करके फ्रिज में 2 से 3 घंटे के लिए रख दें.

– अब चिकन को मैरीनेट एक बार फिर से चिकन को मैरीनेट करने के लिए, सबसे पहले थाई करी पेस्ट, मक्खन, थाई अदरक, लेमनग्रास और लेमन लीव्ज़ डालें, चिकन को फ्रिज में से निकाले और इस मिश्रण में डालकर दोबारा से 2 से 3 घंटे के लिए मैरीनेट होने के लिए फ्रिज में रख दें.

– चिकन को निकालकर इसे पूरी तरह से पकने तक ग्रिल करें.

– अब पीनट बटर सौस के लिए एक बाउल में पीनट बटर,  कोकोनट मिल्क पाउडर और 1/4 कप गर्म पानी डालें, इसे स्मूद होने तक मिक्स करें.

– चिकन को पीनट बटर सौस के साथ प्लेट में रखें और इसे लोटस स्टेम से गार्निश करें, इसी के साथ इसमें फ्राइड बैज़ल के पत्ते और चाट मसाला भी डालें.

डाक्टर कैसे कैसे : जब मेरी एक सच्चे डाक्टर से हुई मलाकात

एक परीक्षा में विशेष जानकारी के प्रश्नपत्र में एक प्रश्न था, ‘किन लोगों के मित्र कम होते हैं?’ एक चतुर परीक्षार्थी ने उत्तर लिखा, ‘डाक्टर और पुलिस, क्योंकि डाक्टर से मिलने पर फीस देनी पड़ती है और पुलिस की न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी अच्छी.’ इस सचाई का कटु अनुभव मुझे तब हुआ जब मेरे एक साधारण आपरेशन के बाद डाक्टर ने कहा कि हर माह में 6 बार हालत की रिपोर्ट देते रहें. सो आज पहली बार मैं रिपोर्ट दिखाने गया तो नर्स की पोशाक पहने चेंबर के द्वार पर बैठी परिचारिका ने 300 रुपए मांगे. मैं ने उसे समझाया, ‘‘डाक्टर बाबू ने खाली हालत की रिपोर्ट देने के लिए बुलाया है. तब फीस क्यों?

मुझे अपनी जांच तो करानी नहीं.’’ परिचारिका ने कहा, ‘‘उन से मिलने की फीस 300 रुपए है.’’ ‘‘उन के दर्शन की भी?’’ ‘‘यस.’’ ‘‘गले में आला लटका कर ऐसी ठगी?’’ परिचारिका की भौंहें तन गईं. बोली, ‘‘क्या कहा?’’ मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं. चमड़े की जबान फिसल गई. सो न जाने कम्बख्त क्या बक गई मैडम. यह लीजिए 300 रुपए.’’ कई दिन से मेरे सिर में दर्द हो रहा था. एक मित्र ने कहा, ‘‘डा. दास को दिखाओ. नामी डाक्टर हैं. ठीक कर देंगे.’’ मैं उन से मिला, तो वे गुस्साए दिखे. शायद पत्नी से लड़झगड़ कर आए थे.

मुझे देखते ही भौंहें तान कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ उन के चीख कर पूछने से दर्द और बढ़ गया. कहा, ‘‘कई दिन से सिर में दर्द है, सर.’’ ‘‘अभी तक कहां थे?’’ ‘‘दिन में दफ्तर, रात में घर सर.’’ वह क्रोधित हो उठे. बोले, ‘‘अब तक क्यों नहीं आए?’’ ‘‘तब दर्द नहीं था, सर.’’ उन्होंने बिना मेरी शारीरिक जांच किए पैड पर कुछ लिख कर देते हुए कहा, ‘‘यह जांच करा कर रिपोर्ट ले कर आओ. तब इलाज होगा.’’ पैड पर सब से नीचे लिखा था, ‘सत्यम डायग्नोसिस सेंटर.’ मैं ने अर्ज किया, ‘‘सर, हम ‘स्वास्तिक’ में जांच कराते हैं. वहीं से करवा लाएं?’’ ‘‘नो नो, स्वास्तिक के इंस्ट्रूमेंट 40 साल पुराने हैं. ठीक रिजल्ट नहीं देते.’’ मैं ने स्वास्तिक के मालिक रायजी से दास बाबू की बातें बताईं. उन्होंने कहा, ‘‘यह कमीशन का चक्कर है शर्माजी, हम जांच कराने के एवज में डाक्टरों को 40 प्रतिशत कमीशन देते हैं.

‘सत्यम’ नया है. वह 60 प्रतिशत दे रहा है.’’ फिर उन्होंने डाक्टर का लिखा परचा देखा. ई सी जी, चेस्ट का एक्स रे, सोनोग्राफी, रक्त परीक्षण. उन्होंने पूछा, ‘‘आखिर आप को हुआ क्या है?’’ ‘‘सिर दर्द. कई दिन से भोग रहा हूं.’’ ‘‘और उस डाक्टर से इलाज कराने गए थे, जो खुद सिर दर्द का इलाज मेरे मित्र होम्योपैथिक डाक्टर सुरेका से करा रहा है.’’ मैं चौंका, ‘‘एलोपैथिक डाक्टर खुद का इलाज होम्योपैथिक डाक्टर से. आश्चर्य है.’’ 2 माह बाद- सर्दी का मौसम था. ठंड लग गई थी. खांसी और कफ बढ़ गया था. डा. मनोहर का बहुत नाम सुना था. उन्होंने आले से छाती और पीठ की जांच की. फिर चिंतित मुद्रा में पूछा, ‘‘आप के आगेपीछे कौन है?’’ मैं ने पीछे मुड़ कर देखते हुए कहा, ‘‘आगे तो आप हैं सर, पीछे रोगी बैठे हैं.’’ डा. मनोहर को गुस्सा आ गया. मुझे मुक्का दिखा कर मेज पर मारते हुए कहा, ‘‘मजाक करते हैं.’’

‘‘कतई नहीं सर, आप से मजाक? सोचा भी नहीं जा सकता. मजाक साले से किया जाता है? जो मेरे सौभाग्य से 3 हैं. जवाब देने में मुझ से क्या गलती हुई? बताइए?’’ अब उन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. बोले, ‘‘इलाज कराना है तो सहीसही उत्तर दें.’’ ‘‘ठीक है. पूछिए, सर.’’ ‘‘क्या कफ के साथ खून जाता है?’’ ‘‘कतई नहीं.’’ ‘‘क्या हमेशा ज्वर बना रहता है?’’ ‘‘जी नहीं.’’ ‘‘क्या खांसी आते 3 सप्ताह हो गए?’’ ‘‘जी, हां. 2 माह.’’ ‘‘समझ में आ गया.’’ ‘‘क्या, सर?’’ ‘‘3 सप्ताह से अधिक खांसी, टी.बी. का लक्षण.’’ ‘‘मगर हमारे एक मित्र को पैदायशी खांसी है जो भलाचंगा है. उस ने कफ की जांच कराई. कुछ खराबी नहीं निकली.’’ ‘‘जांच गलत हुई होगी. उस की छोड़ें, अपनी सोचें. इलाज कराना है?’’ मैं डर गया, लगा यह डाक्टर मुझे टी.बी. का मरीज मान रहा है. भागो, मैं ने उन्हें छोटी उंगली दिखा कर कहा, ‘‘सर, हिस्सू.’’ वह समझ गए. बोले, ‘‘बाहर, बाईं ओर.’’ बाहर निकल कर मैं सांप की तरह ऐसा सरपट भागा, जैसे कोई खदेड़ रहा हो. रास्ते में मेरे एक परिचित मिल गए. पूछा, ‘‘बेतहाशा क्यों भाग रहे हो?’’ मैं ने कारण बताया. उस ने पूछा, ‘‘अब कहां जा रहे हो?’’ ‘‘डा. दयाल के यहां.

बहुत नाम सुना है उन का.’’ ‘‘भूल कर न जाना. उस ने एक परिचित का दाहिना गुर्दा बेच खाया है.’’ मैं घबराया, ‘‘तब कहां जाऊं?’’ ‘‘वह जो सामने बिना कलई की मैलीकुचैली बिल्ंिडग दिखाई दे रही है वहां डा. ब्रह्म बैठते हैं. छलकपट से दूर. सेवाभावना से इलाज करने वाले.’’ मुझे हंसी आ गई, ‘‘घरभरू डाक्टर और सेवाभावना.’’ मित्र ने समझाया, ‘‘मित्र, सब डाक्टर एक से नहीं होते. कुछ सेवाभावी और उपकारी भी होते हैं, जिन का फर्ज कम खर्च में रोगी को चंगा करना होता है. डा. ब्रह्म उन्हीं में से हैं. हमारे परिवार का इलाज वही करते हैं.’’ डाक्टर ब्रह्म का मकान बनने के बाद शायद उस में आज तक कलई नहीं हुई थी. रोगियों के बैठने की बेंच की टूटी एक टांग की जगह ईंटें लगी हुईं. बुजुर्ग डाक्टर साहब बिना गद्दी वाली काठ की पुरानी कुरसी पर बैठे थे. यह सब देख कर लगा, गलत जगह पर आ गया.

यहां तो मेरे सिवा एक भी रोगी नहीं है. मित्र कहीं डाक्टर से कमीशन तो नहीं लेता? खैर, आ गया हूं तो इन्हें भी आजमा लूं. आले से छाती और पीठ की जांच करने के बाद डाक्टर बाबू ने मुसकरा कर कहा, ‘‘चिंता न करें. मौसम बदलने पर खांसी और कफ का बढ़ना आम बात है. एक सिरप लिखे देता हूं. 5-6 दिन लेने पर ठीक हो जाएंगे.’’ मैं ने पूछा, ‘‘सर, कोई जांच करानी होगी?’’ उन्होंने पूछा, ‘‘पैसे ज्यादा हैं क्या?’’ ‘‘नहीं सर, दूसरे डाक्टर 4-5 टेस्ट जरूर करवाते हैं. चाहे पैर के तलवों में दर्द हो या सिर में.’’ ‘‘हर किसी के इलाज का अपनाअपना तरीका है. मैं जरूरत पड़ने पर ही जांच कराता हूं.’’ मैं फीस के रूप में 100 का नोट देने लगा, तो उन्होंने कहा, ‘‘इतना नहीं, सिर्फ 10 रुपए.’’ मैं चौंका और बोला, ‘‘आजकल नए डाक्टर 100 से कम नहीं लेते. ऊपर से जांच करने वाले सेंटरों और दवा बेचने वालों से कमीशन.

आप जैसे सीनियर डाक्टर तो 300 से ज्यादा ही लेते हैं. जो डाक्टर जितनी ज्यादा फीस लेता है वह उतना ही बड़ा कहलाता है. भले ही उस के इलाज से रोग और बढ़ जाता हो.’’ ‘‘दूसरे क्या करते हैं, मुझे नहीं मालूम. मैं तो अपनी दिवंगत माता के आदेश का पालन कर रहा हूं.’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘कैसा आदेश, सर?’’ ‘‘तब मैं 12 साल का था. पिताजी गुजर गए थे. उन के शोक में माताजी सख्त बीमार पड़ गईं. कई डाक्टरों ने इलाज किया. कोई फायदा नहीं हुआ. लोगों ने मशहूर डा. वर्मा को दिखाने को कहा. उन की फीस बहुत ज्यादा थी, जो हम नहीं दे सकते थे. ‘‘मैं उन के पांव पकड़ कर बहुत गिड़गिड़ाया, मगर वह नहीं पसीजे. उस समय वह मुझे डाक्टर नहीं, कसाई लगे.

जब वह फीस लिए बगैर नहीं गए तो मां ने आदेश दिया, ‘बेटा, नानानानी के पास रह कर डाक्टरी पढ़ना और डाक्टर बन जाने के बाद रोगियों से 10 रुपए से ज्यादा फीस कभी न लेना.’ ‘‘बस, मां के उसी आदेश का पालन कर रहा हूं. अकेला हूं. शादी नहीं की. करता तो पत्नी को कष्ट होता. गुजरबसर के साथ रोगियों की सेवा भी हो जाती है. मेरे लिए यही बड़ा संतोष है.’’ उन की बातें सुन कर मेरी आंखें छलछला आईं. सोचने लगा, दुनिया में आज भी श्रवण कुमारों की कमी नहीं है. उन के चरण छू कर मैं ने कहा, ‘‘आप महान हैं सर, मुझे आज पता चला कि आप जैसे सेवाभावी डाक्टर भी हैं.’’

शहनाज गिल से भरी महफिल में बोले सलमान खान- मूव ऑन कर जाओ, देखें VIDEO

हाल ही में सलमान खान कि फिल्म  ‘किस का भाई जान किस का जान’ का ट्रेलर लॉच हुआ है, जिसके बाद सलमान खान औऱ शहनाज गिल एक साथ एक प्रेस कॉफ्रेस में पहुंचे हैं, जहां पर ऑडिटोरियम पूरे लोगों और एक्टर्स की भीड़ से भरा हुआ था.

 

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इस दौरान सलमान खान ने अपनी बातों से सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच रखा था, बता दें कि यह शहनाज गिल की पहली फिल्म होगी सलमान खान के साथ , इस फिल्म से वह अपनी फिल्मी कैरियर की शुरुआत कर रही हैं.

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प्रेस कॉफ्रेस में सलमान खान ने कहा कि शहनाज मूव ऑन करो, ऐसे में शहनाज ने जवाब देते हुए कहा कि मैं तो पहले ही मूव ऑऩ हो चुकी हूं. मैं बहुत आगे बढ़ चुकी हूं.

हालांकि बहुत से लोग वहां मौजूद थें जो सलमान खान की बातों से सहमत हैं, बता दें कि सलमान खान की यह फिल्म ईद के शुभ अवसर पर आ रही है, इस फिल्म को देखने को लिए फैंस काफी ज्यादा उत्साहित हैं.

वहीं अगर बात करें तो शहनाज गिल भी कई गानों में नजर आ चुकी हैं जिसमें उन्हें खूब पसंद किया जा चुका है. शहनाज गिल अपने आप को पहले से ज्यादा व्यस्त रखने लगी है.

गौरव खन्ना को देखते ही रूपाली गांगुली ने कहा था ‘बेटा’? ऐसी थी इनकी पहली मुलाकात

टीवी सीरियल अनुपमा में अनुज और अनुपमा की जोड़ी को खूब पसंद किया जाता है, दोनों  टीवी इंडस्ट्री के आइडियल कपल माने जाते हैं, लेकिन बता दें कि दोनों की जोड़ी ऑनस्क्रिन से ज्यादा ऑफस्क्रिन भी पसंद किया जाता है.

इन लोगों की पहली मुलाकात काफी ज्यादा दिलचस्प रही है, ये दोनों काफी अच्छे दोस्त भी है, एक इंटरव्यू में गौरव खन्ना ने बताया कि अनुपमा और उनकी मुलाकात काफी मजेदार रही है, जब गौरव खन्ना इंटरव्यू के लिए अनुपमा के सेट पर गए थें, उस दौरान रूपाली गांगुली यानि अनुपमा काफी ज्यादा व्यस्त थी शूटिंग में,लेकिन जब वह फ्रि होकर आईं तो गौरव को देखते ही कहा था कि अरे ये तो मेरा बेटा लग रहा है.

 

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जिसे सुनते ही गौरव खन्ना यानि अनुज कपाड़िया हंसने लगे थें, एक्टर ने एक इंटरव्यू में बताया कि पहली मुलाकात में अपना बेटा बना बैठा था. आगे एक्टर ने बताया है कि उन्होंने मेरा वेलकम बहुत अच्छे किया था. जो मुझे बहुत अच्छा लगा था. अब हम दोनों काफी ज्यादा अच्छे दोस्त हैं.

इन दिनों गौरव खन्ना यानि अनुज कपाड़िया शो से हटा दिया गया है हालांकि कुछ दिन में वापस शो में आने वाले हैं.

शिफ्ट में काम करना पड़ ना जाए सेहत पर भारी , ध्यान रखें ये बातें

अमन ने एक महिने पहले नई नौकरी जॉइन की जिसमें उसे शिफ्ट में काम करना पड़ता। नौकरी से तो वह खुश था लेकिन जाने क्यों कुछ दिनों से बड़ी ही बेचैनी महसूस कर रहा था कभी एक दम से पसीने मे तर हो जाता तो कभी नींद नहीं आती और अजीब अजीब से ख्याल आने लगते जिस की वजह से वह बहुत परेशान रहने लगा तब वह डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने बताया कि इसका कारण शिफ्ट मे काम करना है जिसको ठीक करने के लिए उसे अपनी दिनचर्या मे कुछ बदलाव करने होंगे क्योंकि हमारे शरीर के काम करने की एक प्रक्रिया होती है जो बॉडी साइकिल की तरह काम करती है जैसे हमारे खान पान, शरीरिक गतिविधियों ,नींद का समय सब हमारे शरीर की गतविधियों पर आधारित होता है। यदि यह साइकिल बिगड़ जाए तो हम कई रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं इसीलिए जो लोग शिफ्ट में काम करते हैं उन्हे अक्सर स्वास्थ्य संबंधित चिंताएं होने लगती हैं। ऐसे में अगर आपको एक हेल्दी लाइफ जीनी है, तो इससे बचाव के लिए अपनी दिनचर्या में थोड़ा बदलाव अवश्य करें । जिससे आप समय रहते ही अपनी सेहत का ख्याल रख सकें।

बिगड़ती सेहत
नींद का रूटीन : अगर आप नाईट शिफ्ट में काम करते हैं तो अपनी नींद का रूटीन बनाए जैसे सुबह में 7से 11 के बीच में अपनी नींद ले व दोपहर मे 2 से 4 के बीच अवश्य सोएं ऐसा करने से आप रात में काम सही ढंग से कर सकेंगे। एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग शिफ्ट में काम करते है उनमें अवसाद और चिंता की समस्या 9 से 5 बजे वाली शिफ्ट करने वालों की तुलना में अधिक होती है।क्योंकि डीएनए की मरम्मत करने वाला नींद का हार्मोन मेलाटोनिन के रात में उत्पादन की अपेक्षा दिन में कम उत्पादन होना है। जिससे इन्सोमेनिया, शारीरिक व मानसिक बीमारी की समस्या हो सकती है।
पाचन तंत्र में गड़बड़ी :शिफ्ट में काम करने से बॉडी क्लॉक और ब्रेन क्लॉक के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है। जिससे मेटाबोलिज्म बिगड़ता है और दिनभर सिरदर्द,कब्ज,बदहजमी, मोटापा आदि परेशानियों का सामना करना पड़ता है।साथ ही प्रतिरोधक क्षमता कम होने से डायबिटीज, कैंसर, दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

स्किन प्रॉब्लम :नाईट शिफ्ट करने वालो को त्वचा की समस्या आम बात है ऐसे लोगो को ।रात में काम करने वाले लोग दिन में गहरी नींद ने लेने के कारण शरीर मे इस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन की कमी हो जाती है जिस की वजह से मुहासे, काले घेरे व झुर्रियां की समस्या होती है।

तनाव में बढ़ोतरी – शिफ्ट में काम करने वालों में स्ट्रेस हार्मोन्स बढ़ जाते हैं और अक्सर चिड़चिड़ापन, गुस्सा और तनाव जैसी समस्या देखी जाती है।जिससे ब्लड प्रेशर की समस्या, मूड स्विंग, सामाजिक अलगाव होना स्वाभाविक है ।

अपनाएं ये हेल्थी आदतें
शिफ्ट का रोटेशन हर हफ्ते बदलने के बजाए कुछ महीनों के बाद ही बदले।
एनर्जी ड्रिंक से परहेज करें।
बीच में ब्रेक अवश्य लें।
पानी ज्यादा पीएं।
हल्का, व पौष्टिक खाना खाएं । उच्च प्रोटीनयुक्त फूड को भी डाइट में शामिल करें व बीच में फल व नट्स का सेवन करें ।

रोजाना व्यायाम अवश्य करें इससे आप मोटापे ,चिड़चिड़ेपन से दूर रहेंगे और एकाग्रता बढ़ेगी

सही फैसले से बदलेगी जिंदगी

जीवन में तरक्की के लिए जरूरी है कि आप सही फैसले लें. आप के हर फैसले का आप के कैरियर पर असर पड़ता है. कोईर् भी फैसला लेने से पहले विषय की पूरी जानकारी होनी जरूरी है. यदि कोई गड़बड़ी हो जाए तो बचाव करना भी जरूरी है. कभीकभी बिना सोचसमझे जल्दबाजी में लिए गए कुछ फैसले आप की प्रोफैशनल लाइफ को बरबाद कर सकते हैं. इसलिए सोचसमझ कर सही फैसले लें ताकि बाद में पछताना न पड़े.

सिर्फ पैशन फौलो करना

यदि आप का पैशन गिटार बजाना या फिजिकल एडवैंचर है, तो आप किसी बैंड को जौइन कर कैरियर बना सकते हैं, इस से पैसा कमाने की क्षमता को फौलो करने पर आप को अच्छा लगेगा, पर हो सकता है बाद में परेशानी हो इसलिए पता लगाएं कि आप का पैशन स्थायी है या नहीं और उस से कितना पैसा कमा सकते हैं. लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के एवज में आप को पैसा दे सकते हैं पर जरूरी नहीं कि वे हमेशा ही आप को अच्छा पैसा दें. इसलिए सोचसमझ कर सही फैसला लें.

सेल्स में कैरियर से बचना

क्या आप सेल्सपर्सन बनने से कतराते हैं? यह एक खतरनाक फैसला हो सकता है. इस बात का खयाल रखें कि प्रोफैशनल लाइफ में आप को हमेशा कुछ न कुछ सेल करना पड़ता है. अगर आप की सेल्स में थोड़ी भी दिलचस्पी है तो यह लाइन आप की जिंदगी बदल सकती है.

सैलरी के लिए जौब

कैरियर के किसी भी मोड़ पर यदि आप को सब से ज्यादा सैलरी का औफर मिले तो उस औफर को स्वीकार करने से पहले एक बार जरूर सोचें. अपने स्किल सैट के लिए डिमांड सप्लाई डायनैमिक्स पर विचार करना चाहिए.

अगर कोई कंपनी लौंगटर्म के लिए शानदार रिवार्ड औफर कर रही है, तो वह आप को शौर्टटर्म के लिए कम सुविधाएं देगी. जहां पर लौंगटर्म कैरियर ग्रोथ और रिटर्न्स गायब होते हैं, वहां ऐंप्लौयर आप को लुभाने के लिए बड़े औफर देता है.

फ्रैंड्स को न भूलें

हर बार जब आप जौब बदलते हैं तो पुराने वर्कप्लेस पर कई दोस्त छोड़ जाते हैं. नए रोल में आप इन दोस्तों के साथ रिश्ते नहीं निभा पाते. इस से आप ऐक्सटर्नल प्रोफैशनल सपोर्ट सिस्टम को खो देते हैं और भविष्य में बेहतर नौकरी के अवसरों से भी वंचित रह जाते हैं. अच्छी नौकरी के लिए कभी विज्ञापन नहीं निकलते. ऐसी नौकरियां हमेशा किसी न किसी के रैफरैंस से भरी जाती हैं. इसलिए आप को पुराने संबंधों को हमेशा जीवित रखना चाहिए.

लाइफ पार्टनर की सुनें

प्रोफैशनल सपनों को पूरा करने के चक्कर में कई बार इंसान लाइफ पार्टनर की बातों को नजरअंदाज करता है. इस से परिवार में तनाव पैदा होता है और व्यक्ति काम पर पूरी तरह से फोकस नहीं कर पाता. भले ही आप काम में कितने भी व्यस्त रहते हों, लेकिन लाइफ पार्टनर को भी समय दें.

कैरियर बदलना ठीक नहीं

क्या आप पायलट हैं और फ्लाइंग से बोर हो चुके हैं? जब आप कैरियर बदलते हैं, तो अस्थायी रूप से ऐक्साइटिंग जौब मिलती है. आप नए कैरियर में सब से निचले पायदान पर होते हैं, क्योंकि पुराना अनुभव काम नहीं आता. वहां आप की उम्र के लोग आप से ऊपर काम करते हैं. कैरियर बदलने से अच्छा तो यह होगा कि आप वर्तमान कैरियर में ही कुछ नया करते रहें ताकि बोरियत न आए और जोश बना रहे.

जल्द सैटल हो जाना

जिंदगी के शुरुआती दिनों में किसी शहर में सैटल हो जाने के कारण आप अन्य शहरों में जौब करने से कतराते हैं. यदि आप किसी शहर में बहुत जल्दी घर खरीद लेते हैं, तो इस बात की संभावना रहती है कि उस शहर को छोड़ कर कहीं और जाएंगे और कैरियर की नई राह तलाशेंगे.

जो भी मिला, उसे स्वीकार करना

अपनी काबिलीयत के अनुरूप अच्छे अवसर का इंतजार करें. आप को जो भी पहला अवसर मिलता है, उसे आप बेहतर समझते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आप ने अन्य अवसर देखे ही नहीं होते हैं. इसलिए पहले अवसर को तुरंत स्वीकार कर लेना हर बार सही नहीं होता. पहले औफर को स्वीकार करने से पहले विचार कर लें.

चापलूसी को महत्त्व देना

यदि आप आगे बढ़ने के लिए मेहनत के बजाय चापलूसी को चुनते हैं तो इस से आप कभी भी स्थायी कामयाबी हासिल नहीं कर सकते. आप को फैसला लेना होगा कि जीवन में मेहनत को अहमियत देंगे और चापलूसी छोड़ देंगे. आप को मालूम होना चाहिए कि वही व्यक्ति सफल होता, जो ईमानदारी से मेहनत करता है.

नया सीखते रहें

शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है. आप को हमेशा कुछ न कुछ सीखना चाहिए. हो सकता है कि आप ने ग्रैजुएशन या पोस्टग्रैजुएशन किया हो. इस पढ़ाई से शुरुआती स्तर पर तो जौब मिल जाती है, पर आप को अपनी शिक्षा कभी बंद नहीं करनी चाहिए. आप जितना ज्यादा सीखते हैं, उतनी ही तेजी से तरक्की पाते हैं. जौब के दौरान भी आप को नित नई चीजें सीखने की कोशिश करते रहना चाहिए.

अपना पैशन न भूलें

अपने पैशन को फौलो न करना एक खतरनाक फैसला हो सकता है. समर्पित व्यक्ति आलसी व टैलेंटेड व्यक्ति की तुलना में तेजी से सफल होता है. अगर आप काम को पसंद करते हैं, तो कड़ी मेहनत कर सकते हैं.

मैं हूं बौस

लीडर के तौर पर लंबे समय तक अपनी भूमिका निभाने पर आप को लगता है कि कोई भी आप की आलोचना नहीं कर सकता और आप नियमों से परे हैं, लेकिन हकीकत अलग होती है. आप पर ज्यादा जिम्मेदारी होती है और गलती होने पर सब से पहले आप को ही सजा दी जाती है.

मैं लोगों को दिखता ही नहीं

आप जितना बेहतर परफौर्म करेंगे, लोगों की निगाह आप पर उतनी ही ज्यादा रहेगी. लोग आप के शब्दों, कार्यों और रवैए पर नजर रखेंगे. लोग आप के बारे में बातचीत भी शुरू कर देंगे. ऐसे में आप का एक गलत कदम या झूठ लोगों को बरदाश्त नहीं होगा और वे आप पर हावी हो जाएंगे.

मिल कर चलें

यह बहुत आसान है कि आप अपनी सारी कामयाबी के लिए खुद को जिम्मेदार मानें. कई बार इस से आप घमंड भी करने लगते हैं. आप को बेहतर नतीजों के लिए लोगों, माहौल और समय को भी अहमियत देनी चाहिए. सब के साथ मिल कर चलने पर ही स्थायी सफलता मिल सकती है.

मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं

कई लोग यह भी मानते हैं कि हालात उन के कंट्रोल में नहीं हैं. इस से वे खुद को कमजोर साबित करते हैं. आगे आ कर जिम्मेदारी लेना सीखें और हालात को वश में करने की कोशिश करें. यदि आप अपने जीवन में कैरियर के प्रति गैर जिम्मेदार रहेंगे तो कैरियर में बड़ी असफलता ही मिलेगी.

उमाशंकर पांडेय : पानी के पहरेदार को पद्मश्री- ‘खेत पर मेड़ और मेंड़ पर पेड़’ ने दिखायी राह

गणतंत्र दिवस के मौके पर पुरखों के पारंपरिक तरीकों को अपना कर बुंदलेखंड को पानीदार बनाने वाले ‘जलयोद्धा’ के नाम से चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय को साल 2023 के ‘पद्मश्री अवार्ड’ से नवाजे जाने की घोषणा हुई, तो देश के हर कोने में उन के बारे में लोग जानने को उत्सुक हो उठे. मूल रूप से बुंदेलखंड इलाके के बांदा जिले के जखनी गांव के बाशिंदे उमाशंकर पांडेय ने बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी सहायता लिए ही समुदाय को साथ ले कर पानी बचाने के लिए पारंपरिक विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ अभियान चला कर बुंदेलखंड क्षेत्र को इतना पानीदार बनाया कि जहां कभी पीने के पानी के लिए लाठियां चटकती थीं, वहीं आज सरकार धान क्रय केंद्र खोल कर करोड़ों रुपए की धान खरीदारी किसानों से कर रही है.

उमाशंकर पांडेय की इस मुहिम का ही कमाल है कि जो किसान पहले बरबाद हो चुकी खेती के चलते दूसरे शहरों को पलायन कर चुके थे, वे आज गांव वापस आ कर खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं. साथ ही, जो गांव कभी पानी की समस्या से जूझ रहे थे, वहां अब मईजून की भीषण गरमी में भी पानी की कोई समस्या नहीं होती है. सूखे में खोजा पानी बचाने का उपाय बुंदेलखंड इलाके में कभी पानी की किल्लत के चलते ट्रेनों से भरभर कर पीने का पानी भेजा जाता था.

एक समय ऐसा आया कि जब मालगाड़ी से बुंदेलखंड में पानी लाया जाने लगा था, पानी की किल्लत का यह आलम था कि बुंदेलखंड इलाके के चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, जालौन, सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ सहित कई जिलों के हालात पानी की किल्लत के चलते इतने बिगड़ गए थे कि खेतीबारी पूरी तरह से बरबाद हो चुकी थी. इस इलाके में पानी की समस्या के कारण शादी का इंतजार करतेकरते कई लोग बूढ़े हो जाते थे, पानी के संकट ने उमाशंकर पांडेय के मन पर इतना गहरा असर डाला कि वे बिना किसी की सहायता के अकेले ही पानी बचाने की मुहिम में निकल पड़े.

पानी बचाने की इस मुहिम की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस साल उन्होंने यह कमाल कर दिखाया, उस के अगले साल जो लोग उन की इस मुहिम पर हंसते थे, वे खुद ही इस मुहिम का हिस्सा बन कर पानी बचाने में लग गए. इसी जल संकट के बीच सरकार के नाकाफी पड़ते उपायों के बीच ‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय नें मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को समुदाय में बढ़ावा दे कर न केवल बुंदेलखंड, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी पानी के संकट को काफी हद तक कम कर दिया है. जखनी गांव के मौडल की सफलता को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में मेंड़बंदी के जरीए जल रोकने की बात कही है.

इसी का परिणाम है कि जखनी जल संरक्षण की परंपरागत विधि बगैर प्रचारप्रसार के देश के डेढ़ लाख से अधिक गांवों में पहुंच चुकी है. देश को 1,050 जलग्राम देने का काम भी इसी जलग्राम जखनी मौडल से हुआ है. उमाशंकर पांडेय ने बताया कि उन्होंने कुछ नया नहीं किया है, बल्कि मेंड़बंदी की पारंपरिक विधि को समुदाय के हाथों दोबारा जीवित कर दिया है. इस के लिए इस 30 साल के भूजल संरक्षण अभियान मेंड़बंदी के लिए किसी प्रकार का कोई अनुदान सरकार या किसी अन्य संगठनों से नहीं लिया है और न ही किसी नवीन ज्ञान का उपयोग किया है, बल्कि बिना किसी सरकारी इमदाद के ही ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ विधि से वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को आगे बढ़ाया.

जखनी मौडल जैसा कोई नहीं ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ के जरीए उमाशंकर पांडेय ने जखनी गांव के खेतों में बनने वाली मेंड़ों पर पौधारोपण का काम भी शुरू किया. इस मुहिम की शुरुआत का ही परिणाम था कि एक साल के भीतर ही 2,552 बीघा वाले इस गांव के 33 कुओं, 25 हैंडपंपों व 6 तालाब पानी से लबालब भर गए. जखनी गांव में आई इस जलक्रांति ने यहां की तसवीर ही बदल दी. इस गांव की पहचान ‘जखनी जलग्राम’ के नाम से होने लगी. इस का परिणाम यह रहा कि इंटरनैट पर भी जलग्राम मौडल की धूम मच गई. मुहिम को बढ़ाया आगे पानी बचाने से हुए जखनी सहित दूसरे गांवों के कायाकल्प की कहानी धीरेधीरे जब स्थानीय मीडिया से राष्ट्रीय लैवल के मीडिया घरानों ने पानी रिपोर्टों के जरीए छापनी और दिखानी शुरू की, तो इस की भनक स्थानीय जिला प्रशासन तक भी पहुंची.

इस के बाद उस समय के जिलाधिकारी हीरालाल ने भ्रमण किया, तो वे अचंभित हुए बिना नहीं रह सके. उमाशंकर द्वारा शुरू किए गए इस अभियान की सफलता का परिणाम यह रहा कि इस की हनक राज्य और केंद्र सरकार तक भी पहुंच गई और इस गांव में पानी बचाने के मौडल को समझने के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह व नीति आयोग के जल भूमि विकास के सलाहकार अविनाश मिश्रा, उपनिदेशक, नियोजन विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार एसएन त्रिपाठी सहित मंडलायुक्त बांदा एल. वेंकटेश्वरलू, कृषि विश्वविद्यालय, बांदा के कुलपति डा. यूएस गौतम सहित कई अधिकारियों ने यहां का दौरा कर के इस मौडल को देश के दूसरे सूखाग्रस्त हिस्सों में लागू किए जाने की पहल शुरू की.

सभी ने सराहा जखनी जलग्राम के दौरे से वापस लौटे भारत सरकार के अधिकारियों और जिला लैवल से मिली रिपोर्ट के आधार पर उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के आधार पर भारत नीति आयोग ने साल 2019 के वाटर मैनेजमैंट इंडैक्स में ऐक्सीलैंट परंपरागत मौडल विलेज मानते हुए इसे ‘जखनी जलग्राम’ की संज्ञा दी है. इस रिपोर्ट को आधार मान कर भारत सरकार द्वारा देश के सूखे से जूझ रहे विभिन्न प्रदेशों में भी 1,050 जलग्राम स्थापित किए जाने का लक्ष्य रखा है.

देशव्यापी बन गई मुहिम जहां एक ओर मेंड़बंदी के परंपरागत जल संरक्षण के मौडल को बांदा के तब के जिलाधिकारी हीरालाल ने जखनी जल संरक्षण मौडल के नाम से जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया, वहीं दूसरी ओर नीति आयोग, भारत सरकार ने जखनी जलग्राम के मौडल को परंपरागत जल संरक्षण मौडल, जिस में न तो किसी मशीन का इस्तेमाल किया गया और न ही किसी नवीन विधि का, देश के लिए ऐक्सीलैंट मौडल माना. जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने ग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ को संपूर्ण देश के लिए उपयोगी माना है. ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत देश के सूखा प्रभावित राज्यों में सब से अधिक प्राथमिकता के आधार पर मेंड़बंदी के माध्यम से रोजगार देने की बात कही है. वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में सर्वप्रथम मेंड़बंदी के माध्यम से जल रोकने की बात कही है.

बासमती की खेती बयां करती है कहानी बांदा जनपद में जखनी गांव से निकली पानी बचाने की मुहिम का ही कमाल है कि बांदा जनपद के इतिहास में पहली बार हजारों हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती लहलहा रही है. वहां धान की सब से सुगंधित व महंगे रेट पर बिकने वाली प्रजाति बासमती की खेती हो रही है. पिछले साल 10 लाख क्विंटल से अधिक बासमती धान केवल बांदा में पैदा किया गया था, जबकि दूसरे जिलों में भी धान की बंपर पैदावार हुई है. बुंदेलखंड में बासमती लाने का श्रेय भी जखनी गांव के किसानों को जाता है. वहां के किसान अकेले 20,000 क्विंटल से अधिक बासमती धान पैदा करते हैं. जखनी मौडल पर शोध उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के साथ ही ‘जखनी जलग्राम’ मौडल पर कई शोध भी हो रहे हैं. अभी तक इस मौडल को देखने और शोध के इरादे से इजराइल, नेपाल सहित देश के तेलंगाना, महाराष्ट्र और बाकी कई हिस्सों के लोग आ चुके हैं.

बांदा में स्थित कृषि विश्वविद्यालय के छात्र इस सफल मौडल पर शोध कर रहे हैं, जिस से दूसरे लोगों को भी इस का लाभ मिल सकेगा. जखनी से निकली जल संरक्षण की परंपरागत विधि ‘खेत के ऊपर मेंड़ और मेंड़ के ऊपर पेड़’ संपूर्ण भारत में स्वीकार की जा चुकी है. राज, समाज और सरकार तीनों ने इस विधि का स्वागत किया है. प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन परिणाम राष्ट्रव्यापी है. यह सफलता किसानों के जरीए मिली है, जिस ने बांदा, बुंदेलखंड और दूसरे हिस्सों के खेत और गांव को पानीदार बनाने का रास्ता खोल दिया है. उमाशंकर पांडेय के चलते देश की बड़ी समस्या के समाधान के लिए उन्हें जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय जलयोद्धा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है.

पहले ‘जलयोद्धा’ और अब ‘पद्मश्री’ के खिताब से नवाजे जा चुके उमाशंकर पांडेय का कहना है कि सरकार ने उन को यह सम्मान दे कर गौरव का पल दिया है. उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने से मैं काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं और पुरस्कार मिलने के बाद मुझे अपने काम में और भी खरा उतरना पड़ेगा. उमाशंकर पांडेय के इस सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के साथ ही देशभर से उन को बधाइयां तो मिल ही रही हैं, साथ ही उन्हें पानी बचाने की मुहिम, सैमिनार और खेतीबारी से जुड़े नैशनल लैवल के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाने लगा है.

ईद स्पेशल : लखनवी अंदाज का ‘गलौटी कबाब’

लखनऊ का नाम आते ही कुछ लोगों के मन में वहां के मशहूर खाने की याद आ जाती है तो चलिए आज हम आपको लखनवी अंदाज का गलौटी कबाब बनाने की विधि बताते हैं.

सामग्री :

– एक कटोरी मीट कीमा
– आधी छोटी कटोरी चना दाल
– अदरक 50 ग्राम
– लहसुन 50 ग्राम
– कच्चा पपीते का गूदा 100 ग्राम
– बटर 100 ग्राम
– चार सूखी लाल मिर्च
– एक छोटा चम्मच काली मिर्च पाउडर
– आधा छोटा चम्मच जावित्री
– आधा छोटा चम्मच इलायची का पाउडर
– तेल जरूरत के अनुसार
– नमक स्वादानुसार
– पानी जरूरत के अनुसार

 विधि : 

– मीडियम आंच में सबसे पहले एक पैन में दाल डालकर रोस्ट कर लें और एक प्लेट में निकालकर रख लें.

– जब दाल ठंडी हो जाए तो इसे, काली मिर्च, लाल मिर्च , जावित्री और इलायची के साथ बारीक पीस लें और पाउडर को एक कटोरी में निकालकर रख लें.

– इसके बाद लहसुन, अदरक और पपीते के गूदे को मिक्सर जार में डालकर पीस लें.

– अब इस पेस्ट को कीमे के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिक्स करें.

– इसके बाद कीमे के मिश्रण में बटर , दाल वाला मिश्रण और नमक मिलाएं.

– मीडियम आंच में एक पैन में थोड़ा-सा तेल डालकर गरम होने के लिए रखें.

– अब हथेलियों पर थोड़ा-सा तेल लगाकर चिकना कर लें. मीट का थोड़ा-सा हिस्सा लेकर पहले इसे गोलाकार दें फिर इसे चिपटा करके तवे पर रख दें.

– कबाब को तवे पर तब तक रहने दें जब तक यह अच्छी तरह पक न जाएं. जब यह एक साइड से पक जाए तो पलटे से पलटकर दूसरी साइड से भी पका लें.

– इसी तरीके से कीमे के बचे पेस्ट से भी कबाब बना लें.

– तैयार है गलौटी कबाब. प्याज , हरी चटनी के साथ सर्व करें.

रोबोट बनता आदमी

गूगल, फेसबुक, माइक्रोसौफ्ट, उबर, एमेजौन, टिकटौक जैसी कंपनियों द्वारा लोगों के बारे में जमा किए डेटा का गलत इस्तेमाल न हो और उस से उन्हें ब्रेनवाश करने का काम न किया जाए, इस के लिए बहुत से देशों की सरकारें, हालांकि, कानून बनाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन सच यह है कि लोगों की उलझती जिंदगी का पलपल का हिसाब रखने का टूल उन के हाथ में होने पर वे खुश भी हैं.

आम जनता अभी यह सोच रही है कि इंटरनैटजनित टैक्नोलौजी ने उस का जीवन आसान कर दिया है पर आमजनों को यह नहीं मालूम कि उन का दिमाग अब टैक सेवी कंट्रोलर्स के हाथ में जा चुका है. बिग बिजनैस हाउसेस और सरकार मिल कर अब आम आदमी को मानसिक गुलाम बना चुके हैं. आज हर नागरिक पर पैनी निगाह रखना आसान हो गया है और किसी भी देश के मालिकों, शासकों, व्यापारियों के लिए लोगों को वही करने के लिए लुभाना आसान हो गया है जो वे चाहते हैं.

नई टैक्नोलौजी के कारण दुनिया की जनता वह स्वतंत्रता लगभग खो चुकी है जो उसे पिछले 500 सालों में ज्ञान के मनमरजी के हिसाब से इस्तेमाल करने की आजादी से मिली थी. अब लोग वही पढ़ेंगे, वही देखेंगे, वही सुनेंगे, वही करेंगे जो मुट्ठीभर लोग चाहते हैं. सरकार में बैठे लोग भी अब टैक कंपनियों के गुलाम से बनने लगे हैं. ट्विटर और फेसबुक कभी भी किसी का भी अकाउंट बंद कर के उसे अपाहिज बना सकते हैं क्योंकि ये 2 बड़े प्लेटफौर्म रह गए हैं जिन से सूचनाएं मिलती हैं या दी जाती हैं. एक तरह से मार्केट स्क्वैर या गांव, कसबे, शहर के चौक जहां हर कोई आ कर सरकार की नीतियों का समर्थन या विरोध कर सकता था या अपने ऊपर लगे सामाजिक-धार्मिक बंधनों की जंजीरों को तोडऩे के लिए आवाज उठा सकता था, अब वह टैक कपंनियों के जरिए थोड़े से लोगों के हाथों में रह गया है.

इतने कम लोगों ने इतने ज्यादा लोगों को पहले कभी नियंत्रित नहीं किया था और इसीलिए आज दुनियाभर में कट्टरपंथियों की सरकारें उभरने लगी हैं. अब व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक विलासिता हो गई है. लोग दुनिया के टूल्स के बिना अपने विचार 4 लोगों तक भी नहीं पहुंचा सकते. अब धर्म, राज्य या अमीरों के खिलाफ सामूहिक आंदोलन कमजोर पड़ रहे हैं क्योंकि इन्होंने टैक कंपनियों को अपने मोटे पर्सों से जेब में रख लिया है.

टैक कंपनियों में काम कर रहे सौफ्टवेयर व हार्डवेयर इंजीनियर अब उन पुराने सैनिकों की तरह हैं जो अपने सुख के लिए विशाल जनता को कंट्रोल में करने के लिए रखे जाते थे. अब मंदिरों और चर्चों को हर घर के पास धर्म का दुकानदार नियुक्त करने की जरूरत नहीं है क्योंकि आम आदमी खुदबखुद उन जंजीरों से बंधा हुआ है जिस के दूसरे छोर पर ये लोग हैं.

दुनियाभर में बढ़ती अमीरगरीब की खाई का एक कारण यह टैक क्रांति है. आम आदमी के सुखों को गारंटी देने वाली तकनीक को सुधारने का काम अब धीमा पड़ गया है. दुनिया के सारे शहरों में बहुत अमीरों के इलाके बन गए हैं जहां भरपूर सुखसुविधाएं हैं जबकि आम जनता के जो इलाके हैं वहां गंदगी, बदबू आपसी लड़ाई, बीमारियों, प्रदूषण का बोलबाला है. सरकारें अब जनता की नहीं रह गई हैं, टैक कंपनियों की होने लगी हैं क्योंकि उन के पैर हर देश व हर महल्ले में पसरे हुए हैं.

सैटेलाइट और वायर से आज आम आदमी इस कद्र घिरा है कि उस का कोई भी पल अपना नहीं है. वह रोबोट बन कर रह गया है, गायों और भेड़ों का झुंड है, जिसे हांका जा सकता है जैसा चाहो. लोकतंत्र अब टैक तंत्र के विशाल तारों के ढेर व नीचे दब कर रह गया है क्योंकि हर जना, जो विद्रोह की बात करेगा, मिनटों में पकड़ा जा सकता है. उसे पडक़ने की मशीनें हैं. उस का मुंह बंद करने के लिए, बस, उस के कुछ तार कसने हैं, जेल में भेजना जरूरी नहीं रह गया. वह काम करे, अमीरों और राजाओं को भरपूर सुख दे और खुद तिलतिल कर मरे.

हिंदुत्व की इडंस्ट्री: दोषी कौन

यह देश निसंदेह बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ साथ संविधानिक संरक्षण में ईसाई, मुस्लिम, सिख बौद्ध, जैन सभी धर्म के बाशिंदों का है. यही भारत की खूबसूरती है और अनेकता में एकता का मौलिक आधार स्तंभ भी. मगर सन 2014 के बाद जैसे ही भारतीय जनता पार्टी की सत्ता केंद्र आई और प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने शपथ ली हिंदू और हिंदुत्व को लेकर माहौल को एक नया तमाशाई रंग दिया जाने लगा. सौ बातों की एक बात देश में हिंदू और हिंदुत्व खतरे में होता और अपने अधिकारों से वंचित होता तो फिर इस विचारधारा की प्रतिनिधि संस्था के रूप में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में भला कैसे आ पाती.

इस महत्वपूर्ण प्रश्न का जवाब दिए बैगर आज हिंदुत्व को लेकर के बड़ी चिल्ल पौं मचाई जा रही है, बात बात में हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान की बात निकल जाती है और देश के माहौल को विषाक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है. अब जिस तरह रामनवमी पर हनुमान जयंती पर रैलियां निकल रही है भंडारे हो रहें हैं उसके अनेक अर्थ निकाले जाने लगे हैं. मगर सवाल यह भी अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या यह सब पहले नहीं होता था और क्या आगे भी नहीं होगा? दरअसल, यह सब समाज की एक सतत प्रक्रिया है जो कम ज्यादा चलता रहता है मगर उसे दूसरे रंग देना नुकसान प्रद ही होता है .

हाल ही में छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में पिछड़े वर्ग के एक युवक की हत्या हो गई उसे राजनीति से रंग करके हिंदुत्व से रंग दिया गया और एक तरह से संपूर्ण छत्तीसगढ़ का माहौल कुछ इस तरह का बनाया जाने लगा मानो हिंदू खतरे में है और विश्व हिंदू परिषद ने छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान कर दिया. इस तरह एक‌ सामान्य घटना को हिंदुत्व में लपेट कर आगामी चुनाव में उसके लाभ लेने के प्रयास शुरू हो गए हैं. दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस सब से बेखबर हैं .

हिंदुत्व के नाम पर
राष्ट्रीय स्वयं संघ के संरक्षण में जाने कितनी संस्थाएं आज देश में काम कर रही है और मौका देखते ही यह संस्थाएं सामने आकर के हिंदुत्व बचाने का राग छेड़ देती है, वस्तुतः इससे हिंदू बचे ना बचे लेकिन देश का माहौल जरूर खराब होने लगता है और भारतीय जनता पार्टी को इससे चुनाव में लाभ मिलने की संभावना दिखने लगती है. शायद यही कारण है कि जैसा कि छत्तीसगढ़ में हुआ हत्या को संप्रदायिक घटना बता कर विश्व हिंदू परिषद ने छत्तीसगढ़ संपूर्ण बंद का आह्वान कर दिया और पीछे से भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ इकाई ने इसका समर्थन कर दिया ,अब बंद तो असफल होना ही था मगर छत्तीसगढ़ का माहौल जैसा कि यह शक्तियां चाहती हैं माहौल बनने लगा और कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार एक तरफ से बैकफुट पर आ गई. क्योंकि कॉन्ग्रेस की फितरत ही नहीं है कि ऐसे संदर्भ में कोई रणनीति बनाकर के काम कर सके.

परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ का शांत माहौल एक छोटी घटना से बिगड़ने लगा . ऐसे में भूपेश बघेल सरकार और प्रशासन का यह दायित्व था कि हत्या के इस मामले को सामने आकर संदेश देते और जनता को बताते कि संप्रदायिक घटना जैसा कोई मामला नहीं है. पाठकों को बता दें कि छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला के बीरनपुर गांव में हुई छिटपुट हिंसा को हिंदू संगठनों के अपना रंग मिला कर राज्यव्यापी और देशव्यापी बनाने की कोशिश की. बंद के आह्वान पर सोमवार 10 अप्रेल को प्रमुख शहरों में ज्यादातर दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद कराने का काम भीड़ तंत्र करता रहा. मगर कुल मिलाकर के छत्तीसगढ़ की शांति प्रिय जनता ने बंद को नकार दिया .

पुलिस अधिकारियों के अनुसार –बंद शांतिपूर्ण रहा और राज्य के किसी भी हिस्से से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है. हालांकि रायपुर (के भाठागांव क्षेत्र के नए बस स्टैंड में कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक बस पर पथराव किया, जिससे वाहन का शीशा क्षतिग्रस्त हो गया.विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल समेत हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भगवा ध्वज लेकर रायपुर, बेमेतरा, जगदलपुर, कोरिया समेत कई जगहों पर पैदल और मोटरसाइकिल से मार्च निकाला और व्यवसायियों से अपने प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील की. और जैसा कि अंदर खाने क्या सच है इन हिंदू संगठनों के साथ विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता भी सड़कों पर उतरे और लोगों से अपने प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील करते देखे गए. हालांकि कोरबा समेत अनेक शहरों में दुकानें खुली रहीं .

कुल जमा कांग्रेस की भूपेश सरकार को बताना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह माहौल को बिगाड़ने का प्रयास कुछ संगठन कर रहे हैं उसकी काट कांग्रेस के पास क्या है और क्यों नहीं है .दरअसल, एक हिंसक घटना क्रम में आठ अप्रैल 2023 को एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए थे. बेमेतरा कस्बे से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में कथित तौर पर स्कूली बच्चों के बीच झगड़े के बाद हिंसा भड़क उठी थी . स्थानीय प्रशासन ने इलाके में धारा 144 लगा दी . कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए करीब सात सौ पुलिसकर्मियों को गांव और उसके आसपास तैनात किया गया .

गांव की ओर जाने वाले सभी रास्तों को पुलिस ने अवरोधक लगा दिया . हिंसा में मारे गए भुवनेश्वर साहू (23) का रविवार को कड़ी सुरक्षा के बीच अंतिम संस्कार किया गया और इस समय भी कुछ लोगों द्वारा माहौल को खराब करने का प्रयास किया गया मगर प्रशासनिक सूझबूझ से इसे विफल कर दिया गया.

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