यह देश निसंदेह बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ साथ संविधानिक संरक्षण में ईसाई, मुस्लिम, सिख बौद्ध, जैन सभी धर्म के बाशिंदों का है. यही भारत की खूबसूरती है और अनेकता में एकता का मौलिक आधार स्तंभ भी. मगर सन 2014 के बाद जैसे ही भारतीय जनता पार्टी की सत्ता केंद्र आई और प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने शपथ ली हिंदू और हिंदुत्व को लेकर माहौल को एक नया तमाशाई रंग दिया जाने लगा. सौ बातों की एक बात देश में हिंदू और हिंदुत्व खतरे में होता और अपने अधिकारों से वंचित होता तो फिर इस विचारधारा की प्रतिनिधि संस्था के रूप में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में भला कैसे आ पाती.
इस महत्वपूर्ण प्रश्न का जवाब दिए बैगर आज हिंदुत्व को लेकर के बड़ी चिल्ल पौं मचाई जा रही है, बात बात में हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान की बात निकल जाती है और देश के माहौल को विषाक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है. अब जिस तरह रामनवमी पर हनुमान जयंती पर रैलियां निकल रही है भंडारे हो रहें हैं उसके अनेक अर्थ निकाले जाने लगे हैं. मगर सवाल यह भी अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या यह सब पहले नहीं होता था और क्या आगे भी नहीं होगा? दरअसल, यह सब समाज की एक सतत प्रक्रिया है जो कम ज्यादा चलता रहता है मगर उसे दूसरे रंग देना नुकसान प्रद ही होता है .
हाल ही में छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में पिछड़े वर्ग के एक युवक की हत्या हो गई उसे राजनीति से रंग करके हिंदुत्व से रंग दिया गया और एक तरह से संपूर्ण छत्तीसगढ़ का माहौल कुछ इस तरह का बनाया जाने लगा मानो हिंदू खतरे में है और विश्व हिंदू परिषद ने छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान कर दिया. इस तरह एक सामान्य घटना को हिंदुत्व में लपेट कर आगामी चुनाव में उसके लाभ लेने के प्रयास शुरू हो गए हैं. दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस सब से बेखबर हैं .