एक परीक्षा में विशेष जानकारी के प्रश्नपत्र में एक प्रश्न था, ‘किन लोगों के मित्र कम होते हैं?’ एक चतुर परीक्षार्थी ने उत्तर लिखा, ‘डाक्टर और पुलिस, क्योंकि डाक्टर से मिलने पर फीस देनी पड़ती है और पुलिस की न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी अच्छी.’ इस सचाई का कटु अनुभव मुझे तब हुआ जब मेरे एक साधारण आपरेशन के बाद डाक्टर ने कहा कि हर माह में 6 बार हालत की रिपोर्ट देते रहें. सो आज पहली बार मैं रिपोर्ट दिखाने गया तो नर्स की पोशाक पहने चेंबर के द्वार पर बैठी परिचारिका ने 300 रुपए मांगे. मैं ने उसे समझाया, ‘‘डाक्टर बाबू ने खाली हालत की रिपोर्ट देने के लिए बुलाया है. तब फीस क्यों?

मुझे अपनी जांच तो करानी नहीं.’’ परिचारिका ने कहा, ‘‘उन से मिलने की फीस 300 रुपए है.’’ ‘‘उन के दर्शन की भी?’’ ‘‘यस.’’ ‘‘गले में आला लटका कर ऐसी ठगी?’’ परिचारिका की भौंहें तन गईं. बोली, ‘‘क्या कहा?’’ मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं. चमड़े की जबान फिसल गई. सो न जाने कम्बख्त क्या बक गई मैडम. यह लीजिए 300 रुपए.’’ कई दिन से मेरे सिर में दर्द हो रहा था. एक मित्र ने कहा, ‘‘डा. दास को दिखाओ. नामी डाक्टर हैं. ठीक कर देंगे.’’ मैं उन से मिला, तो वे गुस्साए दिखे. शायद पत्नी से लड़झगड़ कर आए थे.

मुझे देखते ही भौंहें तान कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ उन के चीख कर पूछने से दर्द और बढ़ गया. कहा, ‘‘कई दिन से सिर में दर्द है, सर.’’ ‘‘अभी तक कहां थे?’’ ‘‘दिन में दफ्तर, रात में घर सर.’’ वह क्रोधित हो उठे. बोले, ‘‘अब तक क्यों नहीं आए?’’ ‘‘तब दर्द नहीं था, सर.’’ उन्होंने बिना मेरी शारीरिक जांच किए पैड पर कुछ लिख कर देते हुए कहा, ‘‘यह जांच करा कर रिपोर्ट ले कर आओ. तब इलाज होगा.’’ पैड पर सब से नीचे लिखा था, ‘सत्यम डायग्नोसिस सेंटर.’ मैं ने अर्ज किया, ‘‘सर, हम ‘स्वास्तिक’ में जांच कराते हैं. वहीं से करवा लाएं?’’ ‘‘नो नो, स्वास्तिक के इंस्ट्रूमेंट 40 साल पुराने हैं. ठीक रिजल्ट नहीं देते.’’ मैं ने स्वास्तिक के मालिक रायजी से दास बाबू की बातें बताईं. उन्होंने कहा, ‘‘यह कमीशन का चक्कर है शर्माजी, हम जांच कराने के एवज में डाक्टरों को 40 प्रतिशत कमीशन देते हैं.

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