गूगल, फेसबुक, माइक्रोसौफ्ट, उबर, एमेजौन, टिकटौक जैसी कंपनियों द्वारा लोगों के बारे में जमा किए डेटा का गलत इस्तेमाल न हो और उस से उन्हें ब्रेनवाश करने का काम न किया जाए, इस के लिए बहुत से देशों की सरकारें, हालांकि, कानून बनाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन सच यह है कि लोगों की उलझती जिंदगी का पलपल का हिसाब रखने का टूल उन के हाथ में होने पर वे खुश भी हैं.

आम जनता अभी यह सोच रही है कि इंटरनैटजनित टैक्नोलौजी ने उस का जीवन आसान कर दिया है पर आमजनों को यह नहीं मालूम कि उन का दिमाग अब टैक सेवी कंट्रोलर्स के हाथ में जा चुका है. बिग बिजनैस हाउसेस और सरकार मिल कर अब आम आदमी को मानसिक गुलाम बना चुके हैं. आज हर नागरिक पर पैनी निगाह रखना आसान हो गया है और किसी भी देश के मालिकों, शासकों, व्यापारियों के लिए लोगों को वही करने के लिए लुभाना आसान हो गया है जो वे चाहते हैं.

नई टैक्नोलौजी के कारण दुनिया की जनता वह स्वतंत्रता लगभग खो चुकी है जो उसे पिछले 500 सालों में ज्ञान के मनमरजी के हिसाब से इस्तेमाल करने की आजादी से मिली थी. अब लोग वही पढ़ेंगे, वही देखेंगे, वही सुनेंगे, वही करेंगे जो मुट्ठीभर लोग चाहते हैं. सरकार में बैठे लोग भी अब टैक कंपनियों के गुलाम से बनने लगे हैं. ट्विटर और फेसबुक कभी भी किसी का भी अकाउंट बंद कर के उसे अपाहिज बना सकते हैं क्योंकि ये 2 बड़े प्लेटफौर्म रह गए हैं जिन से सूचनाएं मिलती हैं या दी जाती हैं. एक तरह से मार्केट स्क्वैर या गांव, कसबे, शहर के चौक जहां हर कोई आ कर सरकार की नीतियों का समर्थन या विरोध कर सकता था या अपने ऊपर लगे सामाजिक-धार्मिक बंधनों की जंजीरों को तोडऩे के लिए आवाज उठा सकता था, अब वह टैक कपंनियों के जरिए थोड़े से लोगों के हाथों में रह गया है.

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