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जानिए कौन है वह मशहूर डिजाइनर जिस का लहंगा शादी में पहनेंगी परिणीति चोपड़ा

एक्ट्रेस परिणीती चोपड़ा इन दिनों अपने पर्सनल लाइफ को लेकर काफी ज्यादा चर्चा में हैं. आम आदमी पार्टी नेता राघव चड्ढा के साथ शादी को लेकर काफी ज्यादा चर्चा हो रही है.

इसी बीच परिणीती चोपड़ा मनीष मल्होत्रा के घर नजर आईं, जहां उन्हें देखने के बाद से लगातार इस बात की चर्चा हो रही है कि परिणीती अपने शादी के लहंगे को फाइनल करने के लिए गई हैं. परिणीती की यह फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.

 

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बता दें कि वायरल हो रही तस्वीर में परिणीती चोपड़ा एकदम अलग अंदाज में नजर आ रही हैं. बता दें कि परिणीती चोपड़ा के सादगी भरे अंदाज से सभी फैंस फिदा हो गए हैं. बता दें कि वायरल हो रही तस्वीर में परिणीती की एक क्यूट सी तस्वीर लोगों को अपनी तरफ खींच रही है.

बता दें कि परिणीती चोपड़ा वायरल हो रही तस्वीर में एक किलर पोज देती नजर आ रही हैं, परिणीती काफी ज्यादा हसीन लग रही हैं, उनकी यह तस्वीर लोगों को खूब पसंद आ रही है.

परिणीती को देखने के बाद साफ हो रहा है कि परिणीती के चेहरे पर शादी का ग्लो नजर आ रहा है. इसके साथ ही परिणीती ने अपने हाथ में एक खूबसूरत सा बैग लिया हुआ है.

दोषी कौन था?-भाग 2 : बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं

दूसरे दिन डाक्टर से मिला. गीता की पीड़ा और उस के निदान के बारे में सबकुछ जाना. बचपन से यौवन तक पीड़ा और उपेक्षा सहने के कारण वह सामान्य रूप से पनप ही न पाई थी. पति ने छूना चाहा तो चीख उठी, क्योंकि पिता के स्पर्श की भूख ज्यादा बलवान थी. बालसुलभ इच्छाएं परिपक्वता पर हावी हो रही थीं. हृदय की भूख और आयु की मांग में वह सीमारेखा नहीं खींच पाई थी. फिर मैं उस के स्कूल गया. मुझे देख वह धीमे से मुसकरा पड़ी. आधे दिन की छुट्टी दिला कर मैं उसे समुद्र किनारे ले गया. तेज धूप में एक छायादार कोना खोज लिया. अचानक मेरे हाथ में अपना हाथ देख वह सहम गई थी. ‘‘एक बात बताना गीता, क्या तुम शादी के बाद पति के साथ निभा नहीं पाईं या उस का व्यवहार अच्छा नहीं था?’’

‘‘जी…’’ उस ने गरदन झुका ली.

‘‘उस का छूना तुम्हें बुरा क्यों लगता था? वह तो तुम्हारा पति था.’’

‘‘पता नहीं,’’ वह धीरे से बोली.

‘‘मुझे अपना मित्र समझो, अपने मन की बातें सचसच बता दो. मैं चाहता हूं कि तुम्हारा घरसंसार तुम्हें वापस मिल जाए.’’ ‘‘जी,’’ एकाएक उस ने मेरे हाथ से अपना हाथ खींच लिया और अविश्वास से मुझे निहारने लगी. ‘‘तुम पागल नहीं हो, यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूं. तुम मुझे अच्छी लगती हो, इसलिए चाहता हूं कि सदा सुखी रहो. जरा सा तुम बदलो, जरा सा तुम्हारा पति. इस तरह घर टूटने से बच जाएगा.’’ ‘‘वह इंसान, जिस ने मेरा अपमान कर मुझे पागल ही बना दिया, वह क्या मुझे मेरा घर देगा?’’

‘‘उस ने तुम्हारा अपमान क्यों किया?’’

‘‘आप ये सब जानने वाले कौन होते हैं. जो कभी मेरा था, जब वही मेरा नहीं हुआ तो आप की इतनी दया मैं क्यों स्वीकार करूं?’’ ‘‘कौन था तुम्हारा, गीता? क्या किसी और से प्यार करती थीं?’’ ‘‘नहीं,’’ वह चौंक गई, शायद उस की चोरी पकड़ी गई थी या जो वह कहना चाह रही थी, उस का अर्थ मैं नहीं समझा था. उस ने गरदन झुका ली. ‘‘मैं तुम्हारी सहायता करूंगा, गीता, मैं ने कहा न, मुझे अपना मित्र समझो.’’ ‘‘मैं जैसी हूं वैसी ही अच्छी हूं. डाक्टर ने क्या कहा, बताइए?’’ ‘‘तुम पागल नहीं हो, डाक्टर ने यही कहा है. अब आगे क्या करना है, मैं तुम से यही पूछना चाहता हूं?’’

‘‘मेरा जो होना था, हो चुका. अब कुछ नहीं होगा. चलिए, वापस चलें.’’ उसी शाम मैं गीता के पति से मिला. उसे समझाना चाहा तो वह ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘जानते हो, एक बार उस ने क्या कहा? कहने लगी, मेरी सूरत में उसे अपने पिता की सूरत

नजर आती है. बेवकूफ लड़की, मुझे उस में कोई दिलचस्पी नहीं है और अब तो मेरी दूसरी शादी भी पक्की हो गई है.’’ मेरा अंतिम प्रयास भी विफल रहा. उस रात मैं सो नहीं सका. सुबह मां ने बूआ की बताई लड़की देखने की बात की, तब लगा कि मन में कुछ चुभ सा गया है. गीता का शिला समान अस्तित्व मस्तिष्क में उभर आया . मैं सोचने लगा, अगर मेरी शादी गीता से हो जाए तो क्या बुरा है? उस में हर गुण तो हैं. जीवन का एक कोना सूना रह जाने से वह पनप नहीं पाई तो इस में उस का क्या दोष? पति की सूरत में पिता को तलाशती रही, यह इस सत्य का एक और प्रमाण था कि उस का बचपन उस के मन में कहीं सोया पड़ा है. सौतेली मां ने पिता छीन लिया और अब वह जवानी में उस छाया को पकड़ने का प्रयास कर रही है जिस का स्वरूप ही बदल चुका है. दूसरी शाम बूआ ने मुझे बुला भेजा. मैं वहां चला तो गया परंतु गीता के लिए कुछ ले जाना नहीं भूला. फूफाजी भी सामने थे और बूआ के दोनों बेटे भी. गीता सब के लिए चाय ले आई. उस दिन वह मुझे संसार की सब से सुंदर स्त्री लगी. शायद उस के प्रति जाग उठा स्नेह मेरी आंखों में उतर आया था. ‘‘कल लड़की देखने जाएगा न, मैं खबर भिजवा दूं?’’ बूआ ने पूछा.

कुछ देर मैं हिम्मत जुटाता रहा, फिर धीरे से बोला, ‘‘मैं लड़की देख चुका हूं, बूआ.’’

‘‘अच्छा, कहां देखी? मुझे तो उन्होंने नहीं बताया.’’

‘‘तुम्हारी यह सौतेली बेटी मुझे बहुत पसंद है.’’ सामने बैठे फूफाजी अखबार झटक कर खड़े हुए, जैसे उन्हें मुझ पर या अपने कानों पर विश्वास ही न हुआ हो. बोले, ‘‘ये पागल…’’ ‘‘यह पागल नहीं है, फूफाजी. मैं इसे मनोवैज्ञानिक को दिखा चुका हूं. पागल तो आप हैं कि अपनी दूधपीती बच्ची से बाप का साया ही छीन लिया. कभी नहीं सोचा कि यह आप के लिए तड़पती होगी, कितना रोई होगी अपने पिता के लिए. नए जीवन का आरंभ कर आप ने अपने अतीत से ऐसे हाथ झटक लिया कि वह चौराहे का मजाक बन गया. किसी ने इस मासूम लड़की को पागल कह कर छोड़ दिया और किसी ने…’’ ‘‘गौतम,’’ बूआ ने चीख कर विरोध करना चाहा, मगर उस पल जैसे मैं सारा आक्रोश निकाल कर ही दम लेना चाहता था. हक्कीबक्की सी खड़ी गीता सब को यों देख रही थी, मानो मन ही मन मेरी वजह से स्वयं को अपराधी महसूस कर रही थी. ‘‘पागल तो तुम भी हो बूआ, जिस ने संतान से उस का पिता छीन लिया.’’

बूआ के दोनों बेटे मुझे यों घूर रहे थे मानो उन्हें भी मेरे शब्दों पर विश्वास न हो रहा हो. फूफाजी गरदन झुका कर बैठ गए. हाथ में पकड़ा पैकेट गीता को थमा मैं ने फिर से हिम्मत बटोरी, ‘‘फूफाजी, मैं गीता को पसंद करता हूं. आप इजाजत दे दीजिए.’  मेरी मां ने गीता का विरोध किया, मगर मेरी जिद के सामने धीरेधीरे शांत हो गईं और एक दिन गीता मेरी हो गई. लेकिन मां ने मुझे घर छोड़ देने का आदेश दे दिया. उन्होंने कहा, ‘‘क्या कुंआरी लड़कियां मर गई थीं जो तुम ने एक तलाकशुदा, पागल लड़की से शादी करने की जिद पकड़ ली.’’ शादी के 3-4 दिन बाद ही मैं नए स्थान के लिए चल पड़ा. शादी से पहले ही पूना का तबादला करा लिया था. गृहस्थी के नाम पर बस मेरे पास एक अटैची थी. इतना शुक्र था कि क्वार्टर और थोड़ाबहुत फर्नीचर औफिस की तरफ से मिल गया था. कठपुतली सी गीता मेरे साथ चली आई थी. मां नाराज थीं, इसलिए चंद बरतन तक नहीं दिए थे कि जिन में मैं एक वक्त का खाना ही बना पाता. आतेआते अग्रिम तनख्वाह लेता आया था. गीता को घर छोड़ होटल से खाना और बाजार से जरूरत का सामान ले आया. जैसेतैसे पेट भर कर सोने की तैयारी की तो बिस्तर की समस्या आड़े आ गई. ‘‘आप यहां सो जाइए,’’ गीता ने कहा. सामने अपनी सूती साड़ी बिछा कर उस ने मेरा बिस्तर लगा दिया था. तकिया भी अपनी साड़ी को ही 5-6 मोड़ दे कर बना दिया था. मैं चुपचाप लेट गया. पर दूसरे ही क्षण खाली पलंग की ओर बढ़ती गीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘जो है, उसी को आधाआधा बांटना है गीतू, सुखदुख भी, रोटी भी, तो फिर बिस्तर क्यों नहीं? देखो, यह क्या है, तुम्हारा खिलौना तो वहीं छूट गया था न, यह नया लाया हूं, रबड़ का गुड्डा.’’ जैसे किसी ने उस के रिसते घाव पर हाथ रख दिया हो. वह कभी मुझे और कभी खिलौने को निहारने लगी, जैसे सपना देख रही हो.

‘‘मेरे पास आओ, गीता. सच मानो, तुम्हारी इच्छा के बिना मैं कभी कुछ नहीं मांगूंगा. आओ, यहां आओ, मेरे पास.’’ उसे अपने समीप बिठाया. उस की डबडबाई बड़ीबड़ी आंखों में देखा, ‘‘क्या सोच रही हो, गीता? मैं तुम्हें अच्छा तो लगता हूं न?’’ उस ने नजरें झुका लीं. मैं ने बढ़ कर उस का माथा चूम लिया तो वह तड़प कर मेरे गले से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी. ‘‘यह घर तुम्हारा है गीता, मैं भी तुम्हारा हूं. जैसा तुम चाहोगी, वैसा ही होगा. मैं तुम्हारा अपमान कभी नहीं होने दूंगा. बहुत सह लिया है तुम ने. अब कोई भी इंसान तुम्हें किसी तरह की पीड़ा नहीं पहुंचाएगा.’’ सुबकतेसुबकते वह मेरी बांहों में ही सो गई. सुबह वह उठी तो मेरी तरफ एक लजीली सी मुसकान लिए देखा. नए औफिस में मेरा पहला दिन अच्छा बीता. शाम को घर आया तो मेरी तरफ 5 हजार रुपए बढ़ा कर गीता धीरे से बोली, ‘‘यही मेरी जमापूंजी है. यह अब आप की ही है. चलिए, जरूरी सामान ले आएं. मैं ने सूची बना ली है.’’ मुझे उस के हाथ से रुपए लेने में संकोच हुआ. मेरे चेहरे के भाव पढ़ कर वह आगे बढ़ी और रुपए मेरी कमीज की जेब में डाल दिए. फिर अपनी हथेली मेरे हाथ पर रख दी.

Satyakatha: प्रेमी के डंडे का दम

मध्य प्रदेश में राजगढ़ जिले के बैरियाखेड़ा गांव से हो कर समलपुर के लिए एक सड़क गुजरती है. इसी सड़क के किनारे मदन सिंह मीणा के बेटे के दोमंजिला मकान में नीचे किराने की दुकान है. इस मकान के भीतरी हिस्से में बेटा राम दिनेश मीणा अपनी पत्नी ज्योतिबाई के साथ रहता था. जबकि खुद मदन मीणा गांव के भीतर बने अपने पुश्तैनी मकान में ही रहते थे.

बेहद सर्द रात होने के बावजूद वह हर रोज की तरह 21 जनवरी, 2022 को भी सुबह 4 बजे के करीब सो कर उठ गए थे. नित्य कर्म के बाद घर के बाहर ही खेती का काम निपटाने में लगे हुए थे. तभी उन की बहू ज्योति भागती हुई आई. हांफती हुई कहने लगी, ‘‘पिताजी, अनर्थ हो गया.’’

‘‘क्या हुआ? इतनी सुबहसुबह दौड़ लगाती क्यों आई हो? सब कुछ ठीक है न?’’ मदन सिंह बोले.

घबराई हुई ज्योति बोली, ‘‘पिताजी, उन की हत्या हो गई है.’’

‘‘हत्या? कैसे? किस ने की?’’ मदन सिंह ने चौंकते हुए एक साथ कई सवाल पूछ डाले.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती, पिताजी. वह दुकान के पीछे वाले कमरे में सो रहे थे. वहीं उन्हें किसी ने रात को ही मार डाला,’’ ज्योति बोली.

‘‘तुम कहां थी?’’ ससुर मदन मीणा ने पूछा.

‘‘मैं ऊपर के कमरे में सो रही थी. सुबह 4 बजे टौयलेट के लिए नीचे आई, तभी मैं ने उन्हें उस हालत में देखा. उस के बाद ही यहां भागतीभागती आई हूं,’’ ज्योति एक सांस में बोल गई.

‘‘चल मेरे साथ, अभी देखता हूं क्या माजरा है?’’ मदन मीणा बोले और झट से खूंटी पर टंगी अपनी कमीज पहन ली.

तुरंत बहू के साथ बेटे के मकान में आ गए. उन्होंने देखा कि उन का बेटा बिछावन पर रजाई ओढ़े सो रहा था. ऐसा लग रहा था मानो वह गहरी नींद में हो. जबकि बिछावन पर काफी खून फैला हुआ था. वह उसे पैर की तरफ से झकझोरने लगे, ‘‘बेटा दिनेश, बेटा दिनेश.’’

उस में जब कोई हरकत नहीं हुई तब बहू की तरफ सवालिया नजरों से देखा. ज्योति तुरंत बोली, ‘‘पिताजी, मैं ने भी इसी तरह इन्हें जगाया था. वह नहीं जागे थे, तब चेहरे से रजाई भी हटा कर देखा. सिर और चेहरा खून से लाल हो चुका है. लगता है किसी ने सिर पर ही हमला किया है.’’

बेटे की लाश देख कर मदन सिंह भी रोने लगे. कुछ देर बाद हथेलियों से आंसू पोछते हुए बोले, ‘‘मोबाइल लाओ, पुलिस को फोन करना है.’’

‘‘मोबाइल नहीं है. तोड़ दिया…’’ ज्योति धीमे से बोली.

‘‘तोड़ दिया! क्यों? 2 दिन पहले ही तो तुम्हें मोबाइल से बात करते देखा था मैं ने,’’ मदन मीणा आश्चर्य से बोले.

‘‘मोबाइल से बात करना इन्हें पसंद नहीं था, इसलिए इन्होंने ही तोड़ दिया था.’’ ज्योति पति के लाश की तरफ अंगुली उठा कर बोली.

‘‘अच्छा, तुम यहीं रहो, मैं पुलिस को खबर करने जाता हूं.’’ उस के बाद मदन मीणा थाने जाने के लिए सड़क पर आ कर किसी गाड़ी का इंतजार करने लगे.

उन का गांव राजगढ़ जिले में सुठालिया थाना क्षेत्र में आता है, जो वहां से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर था. वह थाने की ओर पैदल ही बढ़ने लगे और बीचबीच में उधर जाने वाली गाडि़यों को रुकने के लिए हाथ भी देते रहे.

एक पुलिस चौकी पास में ही थी. उन्होंने वहां तैनात एक सिपाही को अपने बेटे की हत्या के बारे में बताया. सिपाही ने तत्काल थाना सुठालिया के टीआई रामकुमार रघुवंशी को इस की सूचना दे दी. वह इलाके की गश्त पर निकलने वाले ही थे.

हत्या की सूचना पा कर टीआई अपने साथ एसआई अरुंधति राजावत और 2 कांस्टेबलों को ले कर निकल पड़े. इसी बीच उन्होंने इस मामले की सूचना एसडीपीओ किरण अहिरवार और एसपी प्रदीप शर्मा को भी दे दी.

कुछ देर में ही रघुवंशी घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक सुबह का उजाला फैल चुका था. गांव वालों को भी घटना के बारे में जानकारी मिल गई थी. इसलिए घर के बाहर लोगों की भीड़ भी जमा हो चुकी थी. टीआई ने मौके का बारीकी से निरीक्षण किया. आसपास के लोगों से पूछताछ की. उन्होंने मृतक के पिता मदन सिंह से भी पूछताछ की.

मृतक राम दिनेश मीणा का सिर फटा हुआ था. खाट पर लगा बिस्तर उस के खून से गीला हो चुका था. उस के नीचे और आसपास भी काफी खून फैला हुआ था. उसे देख कर यह अंदाजा लगाया गया कि हत्या गहरी नींद में सोए रहने या फिर बेहोशी की हालत में की गई होगी.

उस की पूरी जानकारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही मालूम हो सकती थी. इस के लिए टीआई ने एफएसएल टीम को सूचना दे कर बुलवा लिया. इस बीच वे परिवार वालों से बातें करते रहे.

उस वक्त परिवार के 2 बड़े सदस्य ही उपस्थित थे. उन में एक मृतक की पत्नी ज्योति बाई और दूसरे पिता मदन सिंह मीणा थे. उन से बारीबारी से पूछताछ की गई. जिस में पता चला कि राम दिनेश गांव में रहने वाले अपने पिता से अलग पत्नी ज्योति और 2 बच्चों के साथ सड़क किनारे के मकान में रहता था.

उस ने अपने मकान में छोटी सी किराने की दुकान खोल रखी थी. पतिपत्नी दोनों दुकान चलाते थे. दुकान पर रोजाना बैठने का काम ज्योति के जिम्मे था, जबकि राम दिनेश दुकान के लिए शहर से सामान लाने का काम संभालता था.

दिनेश की मौत के बारे में मदन ने बताया कि उन्हें इस की कोई अधिक जानकारी नहीं है. बेटे के मौत की सूचना सुबह करीब साढ़े 4 बजे बहू से मिली थी. उस के बाद उन्होंने बेटे की यह हालत देखी.

इस संबंध में पुलिस ने ज्योति से पूछताछ की. उस से कई तरह के सवाल पूछे गए. कुछ सीधे तो कुछ घुमाफिरा कर. उन में कुछ पति के साथ चल रहे आपसी संबंध को ले कर थे, जबकि ससुराल से अलग रहने के बारे में भी ज्योति से कई सवाल पूछे गए थे.

पति की किसी से दुश्मनी या लेनदेन को ले कर झगड़े के बारे में पूछने पर ज्योति ने सिरे से नकार दिया. ज्योति ने बताया कि इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इतना जरूर बताया कि लेनदेन के मामले में पति का हाथ साफ था.

उन के ऊपर किसी का कुछ भी बकाया नहीं था. किसी के साथ उन की दुश्मनी भी नहीं थी. ज्योति से बात करते हुए पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली.

घटना के बारे में ज्योति ने बताया कि वह ऊपर छत वाले कमरे में सो रही थी और पति नीचे के कमरे में थे. वह अकसर वहीं सोते थे, जबकि वह बच्चों को ले कर छत के एक कमरे मे सोती थी. उस रोज भी वह छत पर एक कमरे में और दूसरे में बच्चे सो रहे थे.

सुबह 4 बजे जब वह नीचे बाथरूम के लिए आई थी, तभी उस ने पहले कमरे में फैला हुआ खून देखा था. फिर पति को मृत हालत में देख कर घबरा गई थी. इस की जानकारी देने के लिए तुरंत गांव में अपने ससुर के यहां चली गई.

पूछताछ के दरम्यान बुलाई गई विशेष जांच टीम के अधिकारी निलेश निजाम द्वारा तमाम तरह के नमूने जुटा लिए गए थे.

उसी में उन्हें एक मोबाइल फोन के कुछ टुकड़े घर के पीछे कूड़े के ढेर से मिले जबकि एक टुकड़ा कमरे में भी मिला. एक सिम भी मिल गया था. संयोग से वह सहीसलामत था. खून के नमूने ले लिए गए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की पूरी तैयारी कर ली गई थी.

घटनास्थल पर जांच के समय ही एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर एसडीपीओ (ब्यावर) किरण अहिरवार भी मौके पर पहुंच गई थीं. उन्होंने भी अपने तरीके से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मोबाइल फोन के टुकड़ों के बारे में ज्योति ने बताया कि वह उस के मोबाइल  के ही टुकड़े हैं. मोबाइल टूट जाने पर उस ने कूड़े में फेंक दिया था.

मोबाइल बड़ी ही बेतरतीबी से टूटा था. वह जानबूझ कर तोड़ने जैसा दिख रहा था. बैटरी और छोटे से स्क्रीन पर किसी भारी वस्तु से तोड़े जाने के निशान थे.

‘‘इसे तुम ने तोड़ा?’’ एसडीपीओ किरण अहिरवार ने ज्योति से पूछा.

‘‘नहीं,’’ ज्योति धीमे से बोली.

‘‘तो फिर किस ने तोड़ा?’’

‘‘मेरे पति ने,’’ ज्योति ने बताया.

‘‘क्यों तोड़ा पति ने मोबाइल?’’ एसडीपीओ ने कड़क आवाज में पूछा.

‘‘मैं हमेशा फोन पर बातें करती रहती थी, इसलिए गुस्से में.’’

‘‘किस से बातें करती थी?’’ एसडीपीओ किरण के इस सवाल पर ज्योति कुछ नहीं बोली. तब उन्होंने दोबारा पूछा, ‘‘बताओ, किस से बातें करती थी?’’

‘‘ग्राहकों से,’’ ज्योति बोली.

‘‘कहां के ग्राहक थे, जिन से तुम मोबाइल पर बात करती थी. सभी तो इसी गांव के होंगे.’’

‘‘जी…जी.’’

‘‘जीजी मत करो, सचसच बताओ तुम किस से बातें करती थी मोबाइल पर?’’ उन्होंने अब उसे डपटते हुए पूछा.

‘‘जिस का मोबाइल था उसी से… ’’ ज्योति बोली.

‘‘जिस का मोबाइल था. क्या मतलब? वह तुम्हारा नहीं था?’’

‘‘जी, वह हमारे एक ग्राहक चैन सिंह का मोबाइल था,’’ ज्योति ने सफाई दी.

‘‘उस का मोबाइल तुम्हारे पास क्यों था? उस ने तुम्हें क्यों दिया था?’’ उन्होंने फिर शंका भरे सवाल पूछे.

‘‘उस ने मेरे पास रखने के लिए दिया था.’’ ज्योति बोली.

‘‘यूं कोई मोबाइल रखने को क्यों देगा? कौन है चैन सिंह, उस से तुम्हारा कोई रिश्ता है?’’ किरण ने जब एक साथ कई सवाल पूछे तब ज्योति के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

एसडीपीओ किरण अहिरवार अब समझ गईं कि ज्योति से ही हत्या का राज मालूम हो सकता है. उन्होंने उस से फिर सवाल किया, ‘‘तुम मोबाइल पर सिर्फ उसी से बातें करती थी या किसी और से भी बातें होती थीं. मैं तुम्हारी एकएक बातचीत की डिटेल्स निकलवा लूंगी. इसलिए सारी बात सचसच बताओ, जो तुम छिपा रही हो.’’

इधर ज्योति से पूछताछ चल रही थी, उधर राम दिनेश के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. आगे की पूछताछ के लिए ज्योति और मदन मीणा को थाने आने के लिए कहा गया. पुलिस ने ज्योति को एक दिन का मौका देते हुए हिदायत दी कि वह थाने आ कर पति की हत्या के बारे में जो कुछ जानती है, बताए.

हालांकि इस हत्याकांड की जांच के लिए टीआई रामकुमार रघुवंशी ने मुखबिर लगा दिए थे. मुखबिर ने उस घटना के रोज ही चैन सिंह और ज्योति के संबंधों के बारे में कुछ अहम जानकारी दी.

टूटे मोबाइल से बरामद सिम की काल डिटेल्स निकलवाने पर एक ही नंबर पर लंबी बातचीत करने की जानकारी मिल गई. संयोग से दोनों नंबर चैन सिंह के नाम से थे.

पुलिस के लिए ये जानकारियां जांच के लिए अहम थीं. ज्योति को थाने बुला कर उस से सख्ती बरतते हुए पूछताछ की जाने लगी. पूछताछ की शुरुआत गांव के ही रहने वाले चैन सिंह से की गई.

उस के बारे में मुखबिर से मालूम हो चुका था कि चैन सिंह से ज्योति के नजदीकी संबंध थे. उस के चलते ही पतिपत्नी में कई बार विवाद भी हो चुका था.

पुलिस ने जब ज्योति से पूछताछ की तब वह टूट गई. उस से मिली जानकारी के आधार पर चैन सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों के पास से हत्या में इस्तेमाल किया डंडा भी बरामद कर लिया. ज्योति और चैन सिंह द्वारा बताई गई कहानी इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के छोटे से गांव बेरियाखेड़ी की रहने वाली 30

साल की ज्योति जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल स्वभाव की भी. वह जब मदन सिंह मीणा के बेटे राम दिनेश की बीवी बन कर आई थी, तब सभी ने उस की सुंदरता की खूब तारीफ की थी. वह बातें करने में भी माहिर थी.

पूरे गांव में उस के बातूनी स्वभाव, मटकमटक कर चलने की अदाएं और सुंदरता की चर्चा होती रहती थी. सुंदर पत्नी पा कर राम दिनेश भी काफी खुश था. समय बीतने के साथसाथ ज्योति 2 बच्चों की मां भी बन गई.

परिवार बढ़ने के साथसाथ घर की जिम्मेदारी भी बड़ी. ज्योति पति पर अलग से कोई रोजगार या अपना कामकाज करने का दबाव बनाने लगी.

उस के कहने पर दिनेश गांव में अलग मकान में रहने लगा. उसी घर में छोटी सी किराने की दुकान खोल ली. दुकान छोटी थी, मगर जल्द ही उस से अच्छी आमदनी भी होने लगी. सुबह से ही दुकान पर ग्राहकों का आना शुरू हो जाता था.

दुकान का सामान राम दिनेश ही सुठालिया कस्बे से लाता था. इस दौरान दुकान पर ज्योति बैठती थी. गांव में ज्योति के दीवानों की कमी नहीं थी. उस की उम्र के युवक एक झलक पाने और 2-4 बातें करने को लालायित रहते थे.

दिनेश की गैरमौजूदगी में ज्योति के चाहने वाले सामान खरीदने के बहाने उस की दुकान पर ही जमे रहते थे.

उन्हीं में एक युवक चैन सिंह भी था, जो ज्योति का कुछ ज्यादा ही दीवाना बन चुका था. वह उसे देखे बगैर चैन से नहीं रह पाता था. दिन भर इसी ताक में रहता था कि कब दिनेश बाहर जाए और ज्योति दुकान पर अकेली रहे.

जैसे ही ज्योति को दुकान पर अकेला पाता, चैन सिंह कोई सामान खरीदने के बहाने से आ जाता था. इस बात को ज्योति भी समझने लगी थी कि चैन सिंह जब दुकान पर आता है तो वह उस से कुछ बात करना चाहता है, लेकिन बोल नहीं पाता.

हालांकि रोजरोज दुकान पर आनेजाने से धीरेधीरे ज्योति और चैन सिंह के बीच इधरउधर की बातें भी होने लगीं.

फिर क्या था चैन सिंह सामान लेने के बहाने दुकान पर आ कर घंटों बातें करने लगा. जब तक चैन सिंह दुकान पर आ नहीं जाता था, तब तक ज्योति के दिल में हलचल होती रहती थी.

एक दिन चैन सिंह ने सामान लेने के बहाने से ज्योति की अंगुली दबा दी. यह देख कर ज्योति मुसकराते हुए बोली, ‘‘बड़े दिनों बाद हिम्मत की.’’

‘‘किस बात की,’’ ज्योति की बात सुन कर चैन सिंह झेंपते हुए बोला.

‘‘भोले न बनो आज अंगुली पकड़ी है तो बताते जाओ कलाई कब पकड़ने का इरादा है?’’

‘‘यह बात है तो तुम जब कहो, बंदा हाजिर है.’’

‘‘अरे वाह बड़ी जल्दी हिम्मत आ गई, लेकिन आज नहीं अब वो सुठालिया से लौटने वाले होंगे.’’

चैन सिंह को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ज्योति का उस की तरफ झुकाव इतना अधिक होगा और वह इतनी आसानी से उस की दिली तमन्ना को महसूस कर लेगी. उस दिन के बाद वह मौके की तलाश में रहने लगा.

4 दिन बाद ही चैन सिंह की इच्छा पूरी होने का समय आ गया था. दिनेश सुठालिया गया हुआ था. चैन सिंह ज्योति के पास पहुंच गया. दोपहर का वक्त था. ज्योति ने उसे भीतर कमरे में बुला लिया. उस रोज दोनों ने एकांत का फायदा उठाया.

गले लगते ही प्रेम की भावना में दोनों बहने लगे. चैन सिंह ने ज्योति की कमर में हाथ डाल चिकोटी काट ली. हलकी सी चीख के साथ ज्योति उस से अलग होती हुई बोली, ‘‘नहीं, अभी नहीं. वह सब फिर कभी.’’

चैन सिंह ज्योति की बात से समझ गया था कि वह उस के प्यार में डूब चुकी है. उस के दिल में वासना की चिंगारी सुलगी हुई है, उस चिंगारी को केवल भड़काने की जरूरत है.

संयोग से राम दिनेश उस दिन सुठालिया में ही ठहर गया था. चैन सिंह को उसी रात मौका भी मिल गया. ज्योति ने चैन सिंह को दुकान के पीछे कमरे में चुपके से बुला लिया. वो उन के तनमन के मिलन की पहली रात थी.

उन्होंने छक कर कामेच्छाएं पूरी कीं. ढेर सारी बातें की. दिल खोल कर एकदूसरे के सामने रख दिया. अपनीअपनी इच्छाएं बताईं. कुछ वादे भी किए. एक बार वे वासना के सागर में गोता लगाने के बाद सब कुछ भूल गए.

आए दिन दिनेश की गैरमौजूदगी में ज्योति चैन सिंह के संग यौन संबंध बनाती रही. ज्योति ने कहा कि उन के बीच बातचीत भी होती रहनी चाहिए.

चैन सिंह भी चाहता था कि उसे दिनेश के घर में रहने और उस के बाहर जाने की सूचना मिलती रहे. लेकिन समस्या थी कैसे? इस का समाधान अगले दिन चैन सिंह ने ही निकाला.

उसे एक नया मोबाइल फोन ला कर दे दिया.

अब ज्योति के लिए चैन सिंह से बात करना आसाना हो गया. जब दिनेश नहीं होता था, तब वह चैन सिंह को बुला

लेती थी.

वह मोबाइल कुछ दिनों तक पति से छिपाए रखी. एक दिन ज्योति को मोबाइल से बात करते पति ने देख लिया. उस के बारे में जब उस ने पूछा तब ज्योति ने बताया कि एक परदेसी ग्राहक दुकान पर छोड़ गया था.

राम दिनेश ने पत्नी की बातों पर भरोसा कर लिया. मोबाइल आ जाने से ज्योति घंटों फोन पर चैन सिंह से इश्क लड़ाने लगी. जब दिनेश दुकान पर होता, तब ज्योति छत के कमरे में जा कर बिस्तर पर लेटी पे्रमी संग बातें करती रहती.

इसी बीच गांव के कुछ लोगों ने चैन सिंह को दिनेश की गैरमौजूदगी में उस के घर के अंदर आतेजाते देख लिया. यह खबर दिनेश को भी हो गई.

दिनेश ने ज्योति से इस बारे में पूछताछ की, लेकिन उस ने साफ मना कर दिया. उल्टे कहने वाले पर ही आरोप लगा दिया कि वे सभी दुकान की तरक्की से जलते हैं.

हालांकि दिनेश को ज्योति की बात पर भरोसा नहीं हुआ. उस ने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी. पूरे दिन फोन पर चिपके रहने पर नाराजगी जताई. ज्योति भी दिनेश की नाराजगी का मतलब समझ गई थी और सतर्क रहने लगी.

जबकि गांव वाले उस के और चैन सिंह के रिश्ते पर नजर रखने लगे. उस के बाद से उस ने चैन सिंह को रात में अपने कमरे में बुलाना शुरू कर दिया. दिनेश जब नीचे कमरे मे सो जाता था, तब ज्योति आधी रात को अपने कमरे में प्रेमी को छत पर बुला लेती थी.

18 जनवरी, 2022 को राम दिनेश ने ज्योति को काफी समय से मोबाइल पर बात करते देखा. वह उस की बातों को ध्यान से सुनने लगा. ज्योति अपने प्रेमी चैन सिंह के साथ बातें करने में मशगूल थी. हंसहंस कर बातें कर रही थी.

राम दिनेश गुस्से में बोला, ‘‘हरामजादी, अपने यार से हंसहंस कर बातें करती है और मेरे सामने सतीसावित्री बनती है. जिस्म में इतनी ही आग लगी है तो कोठे पर क्यों नहीं बैठ जाती. 2 बच्चों की मां होने के बाद भी तुझे शर्म नहीं आ रही.’’

ज्योति बारबार कह रही थी कि अब वह उस से बात नहीं करेगी. लेकिन राम दिनेश तो गुस्से में उबल रहा था. उस ने आव देखा न ताव, उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. उस के सामने ही मोबाइल को एक पत्थर से तोड़ डाला.

उस के बाद ज्योति दिनेश से बात नहीं कर पाई. वह उस से मिलने को तड़प उठी.

चैन सिंह भी रायगढ़ गया हुआ था. वह 21 जनवरी को लौटा. सीधा ज्योति से मिलने दुकान पर गया. ज्योति ने संक्षेप में मोबाइल तोड़े जाने की बात बताई. इस पर चैन सिंह ने भी नाराजगी दिखाते हुए कहा कि लगता है राम दिनेश को सबक सिखाना पड़ेगा.

चैन सिंह को गुस्से में देख कर ज्योति ने उसे रात में आने को कहा. उस वक्त चैन सिंह चला गया, लेकिन रात के 11 बजे के करीब वह ज्योति के पास पहुंच गया.

उस समय राम दिनेश नीचे के कमरे में सो रहा था. ज्योति ने प्रेमी चैन सिंह से पति द्वारा ताने मारने की सारी बातें बताईं. उस ने यह भी कहा कि पति को उस के संबंध पर शक हो चुका है. इसलिए उस ने फोन तोड़ दिया है. गांव वाले भी उसे शक की निगाह से देखते हैं.

ज्योति की बातें सुन कर चैन सिंह ने राम दिनेश की हत्या की योजना बना ली. इस में ज्योति को भी शामिल कर लिया. योजना बनाने की खुशी में पहले उन्होंने अपने शरीर की आग शांत की.

यौन संबंध से तृप्त होने के बाद चैन सिंह सीधा राम दिनेश के कमरे में गया. वहीं एक डंडा पड़ा था. दिनेश खाट पर बेसुध सो रहा था.

चैन सिंह ने डंडा उठाया और उस के सिर पर डंडे से ताबड़तोड़ 4-5 वार कर दिए. थोड़ी देर छटपटाने के बाद उस की मौत हो गई. फटे सिर से काफी खून बह निकला. यह सब ज्योति के सामने हुआ.

जब चैन सिंह और ज्योति राम दिनेश की मौत से आश्वस्त हो गए, तब उन्होंने जमीन पर फैले खून को साफ किया और डंडे को भी छत पर ले जा कर धो दिया.

छत पर दोनों ने अपने खून सने कपड़े भी बदले. उस के बाद दिनेश के मरने की खुशी में एक बार फिर शारीरिक संबंध बनाए.

जब चैन सिंह गया तब डंडा भी साथ लेता गया. जाते समय उस ने राम दिनेश की लाश रजाई से ढंक दी. तब तक सुबह के साढ़े 3 बजने वाले थे. ज्योति सुबह होने का इंतजार करती रही. फिर उस ने एक घंटे बाद ससुर के पास जा कर झूठी कहानी सुनाई.

ज्योति बाई और चैन सिंह के द्वारा अपराध कुबूले जाने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया.

तब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर पर चोट लगने की पुष्टि हो चुकी थी.

अदालत ने दोनों को जेल भेजने के आदेश दिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डगमगाती कूटनीति

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भारत एक अजब किनारे में फंस सा गया है. भारत-रूस संबंध बहुत पुराने हैं और जवाहरलाल नेहरू के समय से भारत का झुकाव अमेरिका के खिलाफ सा रहा है. अपने सोवियत समाजवाद के कारण भारत चीन और रूस का समर्थन हर मौके पर करता रहा है. बाद में मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ आणविक संधि की तो पासा कुछ पलटा था. हालांकि,1962 में लाल चीन के हमले के दौरान अमेरिका ने ही हथियार भारत को भेजे थे.

अब फिर विदेश भवन असमंजस में है कि किस खेमे में रहे. लोकतंत्र होने के कारण भारत को अमेरिका के साथ होना चाहिए था पर रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने लगभग रूस का साथ दिया था और उस से हथियारों के खरीदने के समझौते पश्चिमी देशों की आपत्ति के बावजूद जारी रखे थे. पिछले साल भारत ने रूस से सस्ता तेल भी भारी तादाद में खरीदा है.

अब जब रूस यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह फंसा है, व्लादिमीर पुतिन ने चीन के हाथपैर जोडऩे शुरू किए हैं और शी जिनपिंग का मास्को में भव्य स्वागत किया गया है. हालांकि चीन ने रूस को यूक्रेन पर हमला करने के लिए खुल्लमखुल्ला सही नहीं ठहराया है पर चीन उसे कच्चा माल भी दे रहा है और हथियार भी.

भारत के लिए अब विकट स्थिति है. चीन भारत की उत्तरी सीमा पर लगातार अपने पैर पसार रहा है. उस ने वहां सडक़ोंहवाई अड्डे ही नहीं, गांव भी बसाने शुरू कर दिए हैं और, कुछ सूत्रों के अनुसार, गांव उस जमीन पर भी बसा दिए हैं जिसे भारत अपनी कहता है.

शत्रु का दोस्त शत्रु वाले सिद्धांत में भारत के रूस से संबंध बिगड़ जाने चाहिए पर दिक्कत यह है कि मोदी को पश्चिमी देश भाव ही नहीं दे रहे. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतीय मूल की कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति होने के बावजूद भारत-अमेरिका संबंध औपचारिता ही हैं. बड़े देशों में इंगलैंड के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सूनक ने भी नरेंद्र मोदी का वह गुणगान नहीं किया जो कभी डोनाल्ड ट्रंप ने किया था.

चीन भारत की उत्तरी सीमा पर भारत से किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं और तिब्बती राजाओं के जमाने में तिब्बत के हिमालय के बड़े इलाके में राज का हवाला दे कर वह उसे चीन का ही हिस्सा मानता है. चीनी लोग भारत से व्यापार कर रहे हैं पर उन्हें वे दिन भी याद हैं जब भारतीय सैनिकों की मदद से अंगरेजों ने चीन पर हमला कर के उस के कुछ शहरों पर कब्जा किया था. मोदी ने शी जिनपिंग को अहमदाबाद में झूला झुलाया और महाबलीपुरम में गाइड की तरह उन्हें प्राचीन कलाकृतियां दिखाईं पर कोई खास लाभ नहीं हुआ.

चीन के पैंतरे आज भी भारत के खिलाफ हैं और नई बन रही विश्व व्यवस्था में रूस चीनी खेमे में पूरी तरह चला गया हैदूसरा खेमा अमेरिका व नाटो देशों का चीन की आर्थिकनाकेबंदी करने में लगा हुआ है. भारत इस में कहां हैपता नहीं.

बड़ा देश होने के बावजूद भारत को अभी सप्लायर की तरह चीन की जरूरत है जबकि तकनीक के लिए अमेरिका व यूरोप की. जहां चीन शक्ति का एक मजबूत केंद्र बन गया हैवहीं भारत बड़ी अर्थव्यवस्था के बावजूद न इधर का है न उधर का. जरूरत पडऩे पर कौन उस के साथ होगापता नहीं.

जी-20की अध्यक्षता का कोई खास भाव नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह तो बारीबारी 20 बड़े देशों में हर साल चलती है. इस का कूटनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. विदेश नीतियां मीटिंग करने की जगह पर तय नहीं होतींअपने स्वार्थों पर तय होती हैं. जी-20की अध्यक्षता का मतलब यह नहीं कि शिखर सम्मेलन के भारत में होने से चीन के शी जिनपिंगभारत के मुरीद हो गए. वह संबंध पूरी तरह औपचारिक होगा.

मेरे बहनोई बेरोजगार हैं, कहते हैं कि वे वहीं नौकरी करेंगे जहां उन्हें सब अच्छा लगेगा, उन्हें कैसे समझाएं?

सवाल

मैं अपनी एक पारिवारिक समस्या से परेशान हूं. मेरी बहन की शादी को अभी सिर्फ 6 महीने हुए हैं और तभी से मेरे बहनोई बेरोजगार हैं. कुछ समय पहले उन्हें एक नौकरी मिली भी थी, जिसे उन्होंने सिर्फ 2 महीने बाद ही छोड़ दिया, यह कह कर कि उन्हें अपने बौस का रवैया ठीक नहीं लगा. कहते हैं कि वे वहीं नौकरी करेंगे जहां उन्हें सब अच्छा लगेगा. जहां अच्छा नहीं लगेगा वहां नौकरी नहीं कर सकते. बहुत ही जिद्दी स्वभाव के हैं. इस के अलावा हम लड़की वाले हैं. लड़की वालों का यों भी दामाद को कोई नसीहत देना नहीं बनता. कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं कि वे समझ जाएं कि उन्हें घरपरिवार के लिए नौकरी करनी ही होगी.

जवाब

आप के घर वालों ने अपनी बेटी का विवाह तय करते समय लड़के की नौकरी वगैरह के बारे में मालूमात नहीं की होगी वरना एक बेरोजगार लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं करते. उस समय स्थिति जो भी हो अब भले ही आप लड़की वाले हैं, तो भी दामाद को थोड़ी शालीनता से समझा सकते हैं कि अब वे अकेला नहीं हैं. उन पर अपने घरपरिवार (जो निश्चय ही बढ़ेगा भी) की जिम्मेदारी भी है. इसलिए वे टिक कर नौकरी करें. उन के घर वालों से भी कह सकते हैं कि वे अपने बेटे को दुनियादारी समझाएं. उसे समझाएं कि नौकरी में सब कुछ उस के मनमाफिक नहीं मिलेगा. इसलिए जब तक कोई बेहतर नौकरी न मिले नौकरी छोड़ने की भूल न करें, क्योंकि नौकरी छोड़ना जितना आसान है नौकरी मिलना उतना ही कठिन है. अत: मेहनत और लगन से अपनेआप को साबित करना हर नौकरी में जरूरी होता है.

महिलाओं के दिल की सेहत में हॉर्मोन्‍स और मेनोपॉज़ की भूमिका

आम धारणा के विपरीत, कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज भी दुनियाभर में महिलाओं की मृत्‍यु का सबसे बड़ा कारण है। पुरुषों की तरह, कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज से महिलाओं के बीमार होने और मरने की दरें उम्र बढ़ने के साथ बढ़ जाती हैं। इसके बावजूद, बड़े पैमाने पर कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज को रोका जा सकता है।
विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) और दुनिया में दिल की सेहत पर काम करने वालीं दूसरी एजेंसियों के अनुसार, इस गंभीरता के बावजूद कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज को जोखिम के कारकों पर कंट्रोल करके रोका जा सकता है, जैसे कि कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स, ब्‍लड प्रेशर और तंबाकू का सेवन.

डॉ प्रीति शर्मा, डायरेक्‍टर, कार्डियक इलेक्‍ट्रोफिजियोलॉजी-पेसमेकर, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, मैक्‍स सुपर स्‍पेश्‍यलिटी हॉस्पिटल, देहरादून का कहना है कि- 40 और 50 वर्षों की आयु में ज्‍यादातर महिलाओं को मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) होती है। इसमें उनका मासिक धर्म बंद हो जाता है और यह जीवन की एक प्राकृतिक अवस्‍था है.

मेनोपॉज़ से कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज नहीं होती है। लेकिन मेनोपॉज आने तक महिलाओं में कार्डियोवैस्‍कुलर जोखिम के कारक काफी गंभीर हो सकते हैं और ऐसे में उनके संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य पर ध्‍यान देना जरूरी हो जाता है. एस्‍ट्रोजन को कार्डियोवैस्‍कुलर सिस्‍टम पर सुरक्षात्‍मक प्रभाव के लिये जाना जाता है। यह ब्‍लड वेसल्‍स को फ्‍लेसिक्‍बल और स्‍वस्‍थ रखने में मदद करता है, इनफ्‍लेमेशन कम करता है और एलडीएल (LDL) कोलेस्‍ट्रॉल, यानि “बुरे’’ कोलेस्‍ट्रॉल को कम करता है, जिसकी वजह से आर्टरीज में प्‍लाक जमा हो सकता है। हालांकि महिलाओं के मेनोपॉज़ तक पहुँचने के साथ, उनमें अपनी आयु के पुरूषों की तुलना में हृदय गति रूकने की ज्‍यादा संभावना होती है. इसका आंशिक कारण है मेनोपॉज़ के बाद होने वाली एस्‍ट्रोजन की कमी, जिससे हृदय रोग का जोखिम बढ़ सकता है.

हाल में की गई स्‍टडीज ने महिलाओं के दिल की सेहत पर हॉर्मोन्‍स और मेनोपॉज़ की भूमिका पर नई रोशनी डाली है। उदाहरण के लिये, 2020 में जामा कार्डियोलॉजी में प्रकाशित एक स्‍टडी में पाया गया था कि कम उम्र में मेनोपॉज़ का अनुभव लेने वाली महिलाओं को कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज का ज्‍यादा जोखिम था। इस स्‍टडी में यह भी पता चला कि सर्जिकल मेनोपॉज़ (ओवरीज को निकालना) करवाने वाली महिलाओं को प्राकृतिक मेनोपॉज़ वाली महिलाओं की तुलना में कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज का जोखिम ज्‍यादा था। मेनोपॉज़ के दौरान एस्‍ट्रोजन में गिरावट आने के अलावा हॉर्मोन के दूसरे बदलाव भी हृदय रोग के बढ़े हुए जोखिम में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिये, आमतौर पर पुरूषों से जोड़कर देखा जाने वाला हॉर्मोन टेस्‍टोस्‍टेरोन भी मेनोपॉज के दौरान कम हो जाता है और इससे मसल मास का नुकसान हो सकता है, बॉडी फैट बढ़ सकता है और यह दोनों ही हृदय रोग के जोखिम के कारक हैं.

कार्डियोवैस्‍कुलर जोखिम के कारक, जो हर महिला को जानने चाहिये, इस प्रकार हैं:
1.कोरोनरी हार्ट डिजीज का जोखिम उन महिलाओं में ज्‍यादा होता है, जिनका मेनोपॉज़ 45 साल की उम्र से पहले हो जाता है, क्‍योंकि इससे धमनियों में प्‍लाक जमा हो जाता है।
2. कम उम्र में दोनों ओवरीज को सर्जरी से निकालने से भी कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज का जोखिम बढ़ सकता है, लेकिन मेनोपॉज़ की प्राकृतिक उम्र के आस-पास यही सर्जरी जोखिम को नहीं बढ़ाती है।
3. मेनोपॉज़ आने के साथ ही एस्‍ट्रोजन का स्‍तर कम होने लगता है, जिससे आर्टरी की दीवारों पर कोलेस्‍ट्रॉल जमा हो सकता है और हृदय रोग या स्‍ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है।
4. हॉट फ्लैशेस (शरीर के ऊपरी हिस्‍से में अचानक गर्माहट महसूस होना) और रात में पसीना आना मेनोपॉज़ से जुड़े आम लक्षण हैं और इन्‍हें कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज के जोखिम का बुरा कारक माना जाता है।
5. कुछ अध्‍ययनों में डिप्रेशन और नींद में अवरोधों को भी हृदय रोग के ज्‍यादा जोखिम से जोड़ा गया है।
6. विसरल फैट, जो महत्‍वपूर्ण अंगों के पास एब्‍डॉमिनल कैविटी में होती है, कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज और कैंसर के ज्‍यादा जोखिम से जोड़कर देखा जाता है।
7. कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स और मेटाबॉलिक सिन्‍ड्रोम जैसे जोखिम के कारक आयु के सामान्‍य रूप से बढ़ने के अतिरिक्‍त मेनोपॉज़ के साथ बढ़ जाते हैं और मेटाबॉलिक सिन्‍ड्रोम में व्‍यक्ति को जोखिम के तीन या ज्‍यादा कारक होते हैं, जैसे कि मोटापा, ट्राइग्लिसराइड्स ज्‍यादा होना, एचडीएल कोलेस्‍ट्रॉल कम होना, ब्‍लड प्रेशर ज्‍यादा होना और ब्‍लड शुगर ज्‍यादा होना।

मेनोपॉज़ पूरे शरीर को प्रभावित करता है और उसमें गायनेकोलॉजिस्‍ट से बढ़कर देखभाल की जरूरत हो सकती है। अगर आपके परिवार में कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज का बड़ा प्रभाव है, तो कार्डियोलॉजिस्‍ट से सलाह लेना चाहिये, ताकि आपके जोखिम के बारे में बेहतर जानकारी मिल सके और सही समय पर डायग्‍नोसिस, उपचार तथा दखल सुनिश्चित किया जा सके। कुल मिलाकर, दिल के लिये सेहतमंद जीवनशैली को अपनाने, सक्रिय रहने और जोखिम के कारकों पर नियंत्रण रखने से महिलाओं को दिल की अच्‍छी सेहत बनाये रखने और हृदय रोग का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है।

अदरक: कारगर उत्पादन तकनीक

लेखक-अंकिता गौतम, एमएससी (उद्यान), डा. रवि प्रकाश मौर्य, प्रो. रवि सुमन

अदरक की खेती भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक प्रमुख जरीया है. विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग भारत पूरा करता है.

भारत में अदरक की खेती मुख्यत: केरल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में मुख्य व्यावसायिक फसल के रूप में की जाती है. देश में अदरक उत्पादन में केरल पहले नंबर पर है.

भूमि : अदरक की खेती बलुई दोमट, जिस में अधिक मात्रा में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ हों, सब से ज्यादा उपयुक्त रहती है. मिट्टी का पीएच मान 5.6 से 6.5 तक होना चाहिए. अदरक की अधिक उपज के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि सब से अच्छी रहती है. एक ही भूमि पर बारबार फसल लेने से भूमिजनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती है, इसलिए फसलचक्र अपनाना चाहिए. उचित जल निकास न होने से कंदों का विकास अच्छे से नहीं होता है.

खेत की तैयारी : मार्चअप्रैल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करने के बाद खेत को धूप लगने के लिए छोड़ देते हैं. मई महीने में डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं. अनुशंसित मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट और नीम की खली को समान रूप से खेत में डाल कर दोबारा कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 बार आड़ीतिरछी जुताई कर के पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए. सिंचाई की सुविधा एवं बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटीछोटी क्यारियों में बांट लेना चाहिए. अंतिम जुताई के समय उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए. शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिए बचा लेना चाहिए.

बीज कंद की मात्रा : अदरक के कंदों का चयन बीज के लिए 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिह्नित कर के काट लेना चाहिए. अच्छे प्रकंद के 2.5-5 सैंटीमीटर लंबे कंद, जिन का वजन 20-25 ×5द्मद्ग तथा जिन में कम से कम 3 गांठें हों, प्रवर्धन के लिए कर लेना चाहिए. बीज उपचार मैंकोजेब फफूंदी से करने के बाद ही प्रवर्धन के लिए उपयोग करना चाहिए.

बोआई का उचित समय : अदरक की बोआई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैलमई माह में की जाती है, जो दिसंबर में पक जाती है, जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है. इस का अप्रैल से जून माह तक बोआई योग्य समय है. सब से उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई है. 15 जून के बाद बोआई करने पर कंद सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है. केरल में अप्रैल के प्रथम सप्ताह पर बोआई करने पर उपज 20 फीसदी तक अधिक पाई जाती है. वहीं सिंचाई क्षेत्रों में बोआई की सब से अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने से प्राप्त हुई पाई गई और कंदों के जमाने में 80 फीसदी की वृद्धि आंकी गई.

पहाड़ी क्षेत्रों में 15 मार्च के आसपास बोआई की जाने वाली अदरक में सब से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है. बीज (कंद की मात्रा) अदरक के कंदों का चयन बीज के लिए 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिह्नित कर के काट लेना चाहिए, अच्छे प्रकंद के 2.5-5 सैंटीमीटर लंबे कंद, जिन का वजन 20-25 ग्राम और जिन में कम से कम 3 गांठें हों, प्रवर्धन के लिए कर लेना चाहिए. बीजों का उपचार प्रकंद बीजों को खेत में बोआई, रोपण एवं भंडारण के समय उपचारित करना आवश्यक है.

बीजों को उपचारित करने के लिए मैंकोजेब मैटालैक्जिल या कार्बंडाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर के पानी के हिसाब से घोल बना कर कंदों को 30 मिनट तक डुबो कर रखें. साथ ही, स्टै्रप्टोसाइक्लिन+प्लांटोमाइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लिटर पानी के हिसाब से मिला लेते हैं, जिस से जीवाणुजनित रोगों की रोकथाम की जा सके. पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाएं और फिर से दवा की मात्रा भी. 4 बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल बनाएं. उपचारित करने के बाद बीज की थोड़ी देर बाद बोआई करें.

अदरक 20-25 क्विंटल प्रकंद प्रति हेक्टेयर के लिए बीज दर उपयुक्त रहता है और पौधों की संख्या 1,40,000 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मानी जाती है. मैदानी भागों में 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीजों की मात्रा का चुनाव किया जा सकता है, क्योंकि अदरक की लागत का 40-46 फीसदी भाग बीज में लग जाता है, इसलिए बीज की मात्रा का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकंदों के आकार के अनुसार ही करना चाहिए. बोने की विधि एवं बीज व क्यारी अंतराल प्रकंदों को 40 सैंटीमीटर के अंतराल पर बोना चाहिए.

मेंड़ या कूंड़ विधि से बोआई करनी चाहिए. प्रकंदों को 5 सैंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिए. यदि रोपण करना है तो कतार से कतार 30 सैंटीमीटर और पौध से पौध 20 सैंटीमीटर पर करें. अदरक की रोपाई 15×15, 20×40 या 25×30 सैंटीमीटर पर भी कर सकते हैं. भूमि की दशा या जलवायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेंड़, नाली आदि विधि से अदरक की बोआई या रोपण किया जाता है.

ऊंची क्यारी विधि : इस विधि में 1×3 मीटर आकार की क्यारियों को जमीन से 20 सैंटीमीटर ऊंची बना कर प्रत्येक क्यारी में 50 सैंटीमीटर चौड़ी नाली जल निकास के लिए बनाई जाती है. बरसात के बाद यही नाली सिंचाई के काम में आती है. इन उथली क्यारियों में 30×20 सैंटीमीटर की दूरी पर 5-6 सैंटीमीटर गहराई पर कंदों की बोआई करते हैं. भारी भूमि के लिए यह विधि अच्छी है.

मेंड़ नाली विधि : इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की भूमियों में किया जा सकता है. तैयार खेत में 60 या 40 सैंटीमीटर की दूरी पर मेंड़ नाली का निर्माण हल या फावड़े से काट कर किया जा सकता है. बीज की गहराई 5-6 सैंटीमीटर रखी जाती है. रोपण के लिए नर्सरी तैयार करना यदि पानी की उपलब्धता नहीं या कम है, तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं. पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिए रखा जाता है. अदरक की नर्सरी तैयार करने के लिए उपस्थित बीजों या कंदों को गोबर की सड़ी खाद और रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैला कर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए और सुबहशाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए. कंदों के अंकुरित होने एवं जड़ों से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिए.

छाया का प्रभाव अदरक को हलकी छाया देने से खुले में बोई गई अदरक से 25 फीसदी तक अधिक उपज प्राप्त होती है और कंदों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पाई गई है. पलवार अदरक की फसल में पलवार बिछाना बहुत ही लाभदायक होता है. रोपण के समय इस से भूमि का तापमान एवं नमी का तालमेल बना रहता है, जिस से अंकुरण अच्छा होता है. खरपतवार भी नहीं निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नहीं होने पाता है. रोपण के तुरंत बाद हरी पत्तियां या लंबी घास पलवार के लिए ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता है. 10-12 टन या सूखी पत्तियां 5-6 टन प्रति हेक्टेयर बिछानी चाहिए. दोबारा इस की आधी मात्रा को रोपण के 40 दिन और 90 दिन के बाद बिछाते हैं. पलवार बिछाने के लिए उपलब्धतानुसार गोवर की सड़ी खाद एवं पत्तियां, धान का पुआल प्रयोग किया जा सकता है.

काली पौलिथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार का काम लिया जा सकता है. निराईगुड़ाई और मिट्टी चढ़ाने से भी उपज पर अच्छा असर पड़ता है. ये सारे काम एकसाथ करने चाहिए. गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाना पलवार के कारण खेत में खरपतवार नहीं उगते. अगर उगे हों तो उन्हें निकाल देना चाहिए. दो बार निदाई 4-5 माह बाद करनी चाहिए. साथ ही, मिट्टी भी चढ़ानी चाहिए. जब पौध 20-25 सैंटीमीटर ऊंची हो जाए, तो उन की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है. इस से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और प्रकंद का आकार बड़ा होता है. भूमि में हवा का आनाजाना अच्छा होता है. अदरक के कंद बनने लगते हैं, तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं.

इन्हें खुरपी से काट देना चाहिए, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं. पोषक तत्त्व प्रबंधन अदरक एक लंबी अवधि की फसल है, जिसे अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है. उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए. खेत तैयार करते समय 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कंपोस्ट की खाद खेत में समान रूप से फैला कर मिला देना चाहिए. प्रकंद रोपण के समय 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली डालने से प्रकंदलन एवं सूत्रकृमि या भूमिजनित रोगों की समस्या कम हो जाती है.

रासायनिक उर्वरकों की मात्रा को कम कर देना चाहिए. यदि गोबर की खाद या कंपोस्ट डाला गया है, तो संतुलित उर्वरकों की मात्रा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर रखें. इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिए. हर बार उर्वरक डालने के बाद उस के ऊपर मिट्टी में 6 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर (30 किलोग्राम जिंक सल्फेट) डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती है. खुदाई अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिए. जब पत्तियां धीरेधीरे पीली हो कर सूखने लगें.

खुदाई से देरी करने पर प्रकंदों की गुणवत्ता और भंडारण क्षमता में गिरावट आ जाती है और भंडारण के समय प्रकंदों का अंकुरण होने लगता है. खुदाई कुदाल या फावडे़ की सहायता से की जा सकती है. बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुंचती है, जिस से ऐसे समय में खुदाई नहीं करनी चाहिए. खुदाई करने के बाद प्रकंदों से पत्तियों और अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिए. यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है, तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अंदर किया जाना चाहिए. प्रकंदों को पानी से धो कर एक दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिए. सूखी अदरक के प्रयोग के लिए बोआई के 8 महीने बाद खुदाई की जानी चाहिए.

6-7 घंटे तक पानी में डुबो कर रखें, इस के बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगड़ कर साफ कर लेना चाहिए. धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाईड्रोक्लोरोइड के 100 पीपीएम के घोल में 10 मिनट के लिए डुबोना चाहिए, जिस से सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथसाथ भंडारण क्षमता भी बढ़ती है. भंडारण ताजा उत्पाद बनाने और उस का भंडारण करने के लिए जब अदरक कड़ी, कम कड़वाहट और कम रेशे वाली हो, यह अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है. सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूर्ण परिपक्व होने पर खुदाई करनी चाहिए. अगर परिपक्व अवस्था के बाद कंदों को भूमि में पड़ा रहने दें तो उस में तेल की मात्रा और तीखापन कम हो जाएगा और रेशों की अधिकता हो जाएगी. तेल एवं सौंठ बनाने के लिए 150-170 दिन के बाद भूमि से खोद लेना चाहिए.

अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रजातियों पर निर्भर करता है. गरमियों में ताजा प्रयोग के लिए 5 महीने में, भंडारण के लिए 5-7 महीने में सूखे, तेल प्रयोग के लिए 8-9 महीने में बोआई के बाद खोद लेना चाहिए. बीजों के उपयोग के लिए जब तक ऊपरी भाग पत्तियों सहित पूरा न सूख जाए, तब तक भूमि से नहीं खोदना चाहिए, क्योंकि सूखी हुई पत्तियां एक तरह से पलवार का काम करती हैं अथवा भूमि से निकाल कर कवकनाशी एवं कीटनाशियों से उपचारित कर के छाया में सुखा कर एक गड्डे में दबा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिए. उपज ताजा हरी अदरक के रूप में 100-150 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है, जो सुखाने के बाद 20-25 क्विंटल तक आ जाती है.

उन्नत किस्मों के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है. इस के लिए अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है, जिस से कंदों की ऊपरी परत पक जाती है और मोटी भी हो जाती है. ठ्ठ कुलपति द्वारा हुए सम्मानित कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय,बैंगलुरु, कर्नाटक में 13 से 17 मार्च, 2023 के बीच 21वें एग्री यूनिफैस्ट का आयोजन किया गया, जिस में देशभर के विभिन्न राज्यों के 57 कृषि विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों के 1,500 से भी अधिक प्रतिभाशाली छात्रछात्राओं ने भाग लिया. उत्तर प्रदेश के भी 4 कृषि विश्वविद्यालयों ने इस एग्री यूनिफैस्ट में भाग लिया. आचार्य नरेंद्र देव कृषि व प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के 22 छात्रछात्राओं और सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के 19 छात्रछात्राओं ने इस में हिस्सा लिया.

आचार्य नरेंद्र देव कृषि व प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की वैटनरी तृतीय वर्ष की छात्रा वृंदा वर्मा ने फाइन आर्ट्स इवैंट में कोलाज प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया. साथ ही, वैटनरी द्वितीय वर्ष के पुष्पित जोशी ने लिटरेरी इवैंट में एलोक्यूशन प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पाया. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के चतुर्थ वर्ष के छात्र कार्तिकेय वर्मा एवं पंचम वर्ष के छात्र सूरज धनकर ने लिटरेरी इवैंट में क्विज प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त कर के विश्वविद्यालय का मान बढ़ाया.

सभी प्रतिभागियों के विश्वविद्यालय वापस आने पर कुलपति द्वारा विजेताओं का सम्मान किया गया. ताजा अदरक, ओरेजिन, तेल, रेशा, सूखा अदरक और पकने की अवधि के अनुसार प्रमुख प्रजातियां प्रजाति के नाम प्रजातियों पकने की ओले तेल रेशा सूखी के नाम अवधि ओरेजिन (फीसदी) (फीसदी) अदरक (दिन) (फीसदी) (फीसदी) आईआई एसआर (रजाता) 23.2 300 300 1.7 3.3 23 महिमा 22.4 200 200 2.4 4.0 19 वर्धा (आईआईएसआर) 22.6 200 6.7 1.8 4.5 20.7 सुप्रभा 16.6 229 8.9 1.9 4.4 20.5 सुरभि 17.5 225 10.2 2.1 4.0 23.5 सुरुचि 11.6 218 10.0 2.0 3.8 23.5 हिमगिरी 13.5 230 4.5 1.6 6.4 20.6 रियो-डे-जिनेरियो 17.6 190 10.5 2.3 5.6 20.0 महिमा (आईएसआर) 22.4 200 19.0 6.0 2.36 9.0

बरबाद होते पुराने पर्यटन स्थल

बड़े शहरों में भीड़भाड़ और शोरशराबा युवाओं की मैंटल हैल्थ पर असर डाल रहा है. इस के लिए ब्रेक ले कर कहीं टूर पर निकल पड़ना अच्छा विकल्प है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली समीना सिंगल है और उसे घूमना बहुत पसंद है. उस के परिवार वाले उसे शहर से बाहर कहीं अकेले जाने से मना करते हैं. इसलिए वह हमेशा ग्रुप टूरिज्म को पसंद करती है.

वह अधिकतर महिलाओं के ग्रुप को फौलो करती है, क्योंकि उन के साथ जाने में परिवार वाले मना नहीं करते और वह हर क्षेत्र का आनंद उठा चुकी है. हर दूसरे साल वह इंटरनैशनल या डोमैस्टिक पर्यटन के लिए समय निकालती है, क्योंकि मुंबई जैसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले शहर से निकल कर खुद को रिफ्रैश करने का यह एक अच्छा विकल्प है. अकेले यात्रा की तुलना में समूह पर्यटन का एक निर्विवाद लाभ यह है कि आप के साथ चलने वाले समान विचारधारा वाले दोस्तों का समूह होता है, जो अकेले घूमने वालों को नहीं मिल पाता. यही वजह है कि आजकल ग्रुप टूरिज्म अधिक हो रहा है.

इस के अलावा, आप की नए लोगों से जानपहचान बनती है. जानेआने के खर्चे में कमी आती है. टूर बजट फ्रैंडली हो जाता है. रास्ता अधिक मजेदार और खूबसूरत लगने लगता है. ग्रुप टूर में 4 से ले कर तकरीबन 50 लोगों का समूह होता है, जो डोमैस्टिक और इंटरनैशनल दोनों जगहों पर जाता है. इस बारे में मुंबई के केसरी टूर्स प्राइवेट लिमिटेड की डायरैक्टर झेलम अमित चौबल कहती हैं कि आजकल अधिकतर ग्रुप टूर लोग पसंद करते हैं क्योंकि साथ जाने से उन्हें एक अच्छा माहौल मिल जाता है और खर्चे भी कम होते हैं. इस में किसी प्रकार की समस्या जानेआने में नहीं होती.

घर से निकले और घर पहुंचे वाली स्थिति होती है. इंटरनैशनल ग्रुप में 40 से 80 तक पर्यटकों को ले जाया जाता है. 40 की संख्या में पर्यटकों का ग्रुप सब से अच्छा होता है, क्योंकि बस में भी 40 सीटें ही होती हैं. उस के मल्टीप्लिकेशन में अच्छा होता है. इस में परिवार से ले कर पतिपत्नी या सिंगल सभी होते हैं. छुट्टियों में परिवार और बाकी समय में सिंगल और पतिपत्नी के टूर होते हैं. महिला ग्रुप झेलम ने पहली बार भारत में महिलाओं के ग्रुप को टूर करवाया था जिस में 320 महिलाएं शामिल थीं. उन में अधिकतर सिंगल और वे महिलाएं शामिल थीं जिन के पति के पास पत्नी के साथ घूमने का समय नहीं होता. वे कहती हैं, ‘‘आज पूरी दुनिया मुट्ठी में है.

अंटार्टिका से आर्कटिक और कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक पूरा टूर होता है. मेरे सैंटर अमेरिका, आस्ट्रेलिया, पूरे यूरोप (जिस में 8 दिन से 22 दिन के छोटेछोटे टूर भी शामिल होते हैं), आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड आदि कई हैं.’’ तैयारी कब करें तैयारी कितनी पहले से करनी चाहिए, यह पूछने पर झेलम बताती हैं, ‘‘पहले से बुक करने पर कौस्ट में थोड़ी कमी आती है. डोमैस्टिक के लिए 2 से 1 महीने की एडवांस बुकिंग सही होती है, जबकि इंटरनैशनल के लिए वीजा प्रमुख होता है, इसलिए यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के लिए करीबन 4 से 5 महीने पहले बुकिंग करनी पड़ती है. साउथईस्ट एशिया के लिए 2 महीने पहले करने पर सही होती है.’’ कोविड का कितना असर झेलम कहती हैं, ‘‘कोविड की वजह से टूरिज्म पर काफी असर पड़ा है, हालांकि डोमैस्टिक टूर फिर से पटरी पर आ गया है. इंटरनैशनल में अभी भी बहुत कमी है, क्योंकि अभी फ्लाइट की संख्या कम है, वीजा प्रोसेस भी पूरी तरह से खुला नहीं है.

बड़े लोगों को ले जाने में समस्या अधिक नहीं, उन्हें अलग तरीके से ले जाना पड़ता है. वे अधिकतर नियमों के अनुसार चलते हैं, जबकि यूथ बाउंड में नहीं चल पाता. उन्हें सम झाना पड़ता है. असल में टूर को कंडक्ट करने का अपना तरीका होता है. हमें मालूम होता है कि उन्हें सूचित कैसे किया जाए.’’ डिमांड अलगअलग एडल्ट की डिमांड अधिकतर खानपान को ले कर होती है. उन्हें इंडियन फूड खाने की इच्छा रहती है, जबकि कई जगहों पर उन के लिए जुगाड़ मुश्किल भी होता है. एक दिन भले ही वे बर्गर या सैंडविच खा लें, अगले दिन उन के लिए दाल-चावल, चपाती का बंदोबस्त करना पड़ता है. होती हैं चुनौतियां झेलम कहती हैं कि समस्या तो हर रोज आती ही है. कुछ का हल जल्दी मिलता है तो कुछ का हल वातावरण पर निर्भर करता है जिस का हल मिलने में समय लगता है. चारधाम में एक बार टूर गया था. वहां क्लाउड बस्ट हुआ था. वहां हमारा एक टूर ग्रुप फंसा रहा.

उन को लाना बड़ी जिम्मेदारी थी. एक सप्ताह के बाद मैं ने एयरलिफ्ट कर सभी यात्रियों को सुरक्षित वापस लाने का काम किया. सुनामी के समय जापान में एक ग्रुप था. इस के अलावा 9/11 के समय एक ग्रुप अमेरिका में था. समस्याएं आती हैं लेकिन उन का हल कैसे निकाला गया, यह ट्रैवल एजेंसी की ब्रैंडिंग पर निर्भर करता है. हमारे पास 25 हजार से 10 लाख तक के टूर प्लान हैं और ये ह्यूज रेंज है. कोई भी अपने बजट के हिसाब से कहीं भी टूर पर जा सकता है. एक्स्प्लोर करना है पसंद महाराष्ट्र के ओमकार एग्रो टूरिज्म के गनेश नामदेव उतेनकर कहते हैं, ‘‘मुंबई जैसे शहरों में रहने वालों को जहां जगह की कमी और भीड़भाड़ भरे शहर होने की वजह से कहीं घूमने का बहुत अधिक शौक होता है, वे किसी भी स्थान को एक्स्प्लोर करना पसंद करते हैं.

अधिकतर डोमैस्टिक पर्यटन में गांव के माहौल का आभास करवाता हूं. मुंबई बहुत ही भीड़भाड़ वाली जगह है, यहां दोतीन दिन की छुट्टी पर ही लोग शहर से दूर कहीं भी जा कर सुकून के कुछ पल बिताना चाहते हैं. ऐसे में महाराष्ट्र में मुंबई और आसपास के इलाकों में घूमने के लिए बड़ी मात्रा में शहरों में रहने वाले ही होते हैं. ‘‘यहां पंचगनी, महाबलेश्वर, प्रतापगढ़ फोर्ट, वासोटा फोर्ट और जंगल ट्रैक आदि कई स्थल हैं. यहां घर या कंपनी से ग्रुप में वे अधिकतर आते हैं.

ये उन के बजट में भी होते हैं. 4 लोगों के ग्रुप में बजट अधिक होता है, क्योंकि महाराष्ट्र के इस एरिया में ट्रेन की सुविधा नहीं है, इसलिए बजट में जाने के लिए ग्रुप टूर का अरेंजमैंट करते हैं. ‘‘बस 20 सीटर्स से ले कर 38 सीटर्स तक होती हैं. यह टूर पूरे दो या तीन दिन का भी होता है. इस में अधिकतर औरगेनिक और होम मेड फूड का ही इंतजाम होता है. इस से वे यहां की संस्कृति और खानपान का आनंद लेते हैं. महाराष्ट्र से बाहर जाने वाले महाराष्ट्रियन फूड की मांग करते हैं. वहां हम भाखरी, नाचनी जैसे डोमैस्टिक फूड की व्यवस्था करवाते हैं.’’ अलगअलग उम्र ग्रुप गनेश आगे कहते हैं, ‘‘मध्यम आयु और सीनियर सिटिजन के ग्रुप ज्यादा होते हैं. वयस्कों के लिए हैल्दी फूड के अलावा मैडिकल की पूरी व्यवस्था करनी पड़ती है, क्योंकि उन्हें इस उम्र में कुछ न कुछ बीमारी होती है. टूर भी उसी के अनुसार अरेंज किया जाता है. कुछ मौर्निंग वाक वाले ग्रुप होते हैं. ‘‘इन में अधिकतर पुणे से आने वाले ग्रुप होते हैं. सुबह बाग में एकसाथ आ जाते हैं और ऐक्टिविटी करते हैं. वे सारे लोग एकसाथ पर्यटन में जाते हैं और ये डोमैस्टिक को ही अधिक पसंद करते हैं. ये सारे एक उम्र के बैचलर भी होते हैं. ये कम से कम 15 की संख्या में ग्रुप होते हैं.’’ समुद्री टूर में आई कमी डोमैस्टिक टूर के फायदे के बारे में उतेनकर कहते हैं,

‘‘शहरों में रहने वाले बच्चों को गांव की बात पता नहीं होती. ऐसे में उन्हें लोकल सारी चीजें खाने को मिलती हैं. लोकल चीजों को ग्रो करने का तरीका पता चलता है. महाराष्ट्र में स्ट्राबेरी की खेती देखने का पर्यटकों में काफी क्रेज होता है. एडल्ट अधिकतर नेचर पसंद करते हैं, पानी के सामने बैठना, पेड़पौधे के पास बैठना, इस से उन्हें अच्छी औक्सीजन मिलती है. हर्बल प्लांट, हराभरा घना जंगल उन्हें पसंद होता है. केवल महिलाओं की किटी पार्टी के अलावा जिम करने वाली महिलाओं की पार्टी भी होती है. अभी महाराष्ट्र में कोविड के बाद ‘सी बीच’ के टूर में कमी आई है. उन्हें नेचर में जाने की अधिक इच्छा होती है जहां औक्सीजन की मात्रा अधिक और प्रदूषण जीरो प्रतिशत हो.

ग्रुप टूरिज्म के लाभ

-समूह में यात्रा करना एक अलग अनुभव होता है. इस में लोगों से मिलना, घूमना और दोस्ती सब हो जाती है.

– साथ में सब को ब्लैंड होने का मौका मिलता है.

– ऐसे टूर में नए दोस्त बन जाते हैं और साथ में रहने पर किसी नई जगह पर सुरक्षा के बारे में अधिक सोचना नहीं पड़ता.

– इस में ‘मी टाइम’ का प्रयोग अच्छी तरह से होता है, एकदूसरे के विचार और रहनसहन की जानकारी प्राप्त हो जाती है.

-एक दूसरे के साथ रहने और सामंजस्य बिठाने का ज्ञान हो जाता है.

-अकेले घूमने के अलावा ग्रुप में घूमने से कम जिम्मेदारी लेनी पड़ती है, क्योंकि इस में ट्रैवल एजेंसी कहीं जानेआने से ले कर खाना, घूमना, ठहरना सबकुछ निश्चित कर देती है.

-आप के प्रियजनों की चिंता आप के लिए कम हो जाती है, क्योंकि आप समूह में जा रहे हैं.

– सब से अधिक लाभ पौकेट फ्रैंडली टूर का होना है, क्योंकि समूह में जाने पर हर चीज की लागत कम होती है.

YRKKH: घर में होगा हंगामा, अभिमन्यु को देखकर नाराज होगी अक्षरा

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है पिछले 14 सालों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है, इस सीरियल में अभिमन्यु और अक्षरा की जोड़ी को खूब पसंद कि जाती है.

हालांकि इन दिनों सीरियल की कहानी अबीर के आस-पास घूम रही है, जिसमें दिखाया जा रहा है कि अक्षरा ने एकदम मन बना लिया है कि वह अबीर को लेकर अमेरिका जाएगी लेकिन वहीं अक्षरा के परिवार वाले इसके खिलाफ है.

 

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अभिनव भी इस बात के लिए तैयार नहीं है क्योंकि उसे कही  कही पता है कि वह अबीर का असली पिता नहीं है, इसलिए वह इन सभी जिम्मेदारियों से दूर भाग रहा है. वहीं आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु अबीर के पिता होने का फर्ज निभाएगा.

दरअसल, एक पूजा हो रही होती है जिसमें से अभिनव गायब होता है वहां पर अभिमन्यु उसके पिता का फर्ज निभाता नजर आएगा. इस दौरान अक्षरा अंदाजा लगा लेती है कि अभिनव अभिमन्यु के पास गया होगा, जहां पर वह उसे मनाने कि कोशिश करता है कि प्लीज इस पूजा के लिए तैयार हो जा.

वहीं पूजा वाले मौके पर अक्षु आराम-आराम से सभी चीजों को करती नजर आती है, लेकिन अभिनव भावुक होकर चीजे ठीक नहीं करता है.

बरखा और पाखी की होगी लड़ाई, अनुपमा देगी बा का साथ

सीरियल अनुपमा में इन दिनों लगातार नए-नए ट्विस्ट और टर्न देखने को मिल रहे हैं, अनुपमा अनुज से अलग होने के बाद से अपनी मां के पास रहने पहुंच गई है, उसने अपनी डांस एकेडमी शुरू कर दी है.

वहीं अनुज मुंबई में छोटी के पास रह रहा है, और वहां से आने का नाम ही नहीं ले रहा है, वहीं बरखा अनुज के मन में लगातार अनुपमा के खिलाफ भड़काने की कोशिश कर रहे हैं.

 

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वहीं दूसरी तरफ वनराज अनुपमा का दिल जीतने का कोशिश कर रहा है, वह चाहता है कि अनुपमा उसकी लाइफ में वापस आ जाए. सीरियल में आने वाले ट्विस्ट और टर्न खत्म नहीं हो रहे हैं. सीरियल में आगे देखने को मिलेगा कि अनुपमा डांस क्लास कराती है लेकिन उसके पिता के पास डांस क्लास की फिस देने के पैसे नहीं होते हैं,जिसके बदले वह ट्यूशन भी पढ़ाएगी औऱ धनिया भी बेचेगी.

जिसे देखकर अनुपमा का दिल पसीज जाता है, वह उस गरीब बच्ची को मुफ्त में डांस क्लास देगी, वहीं दूसरी तरफ पाखी कपाड़िया मेंशन पहुंच जाती है, बरखा को सबक सिखाने के लिए, वह अपनी मां की तरह गुजराती खाना बनाती है साथ की ऑफिस ज्वाइन भी करेगी.

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