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गंभीर बीमारियों का मानसिक प्रभाव

लंबी, गंभीर या पीड़ादायक बीमारी व्यक्ति को कभीकभी निराशा की ऐसी चरम स्थिति में ले जाती है जहां से वह खुद का अंत कर लेना चाहता है. व्यक्ति की इस स्थिति को आमतौर पर सम झा नहीं जाता. दिखाई देने वाली बीमारी को ही बीमारी माना जाता है पर लंबी गंभीर बीमारियों के चलते एक अन्य बीमारी व्यक्ति को भीतर से लगातार कुतर रही होती है पर गौर इस पर कम ही किया जाता है. इस स्थिति को मानसिक तनाव कहते हैं.

कहा जाता है कि खुदकुशी की कोशिश करने वाले सभी लोग मरना नहीं चाहते और सभी मरने की आकांक्षा रखने वाले व्यक्ति खुदकुशी नहीं करते हैं. किन्हीं खास परिस्थितियों में शायद यह भावना ज्यादातर लोगों के मन में आती होगी कि जीवन खत्म कर लिया जाए तो समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा.

स शायद इसी छुटकारे के लिए कप्तानगंज के सिरसिया गांव में 26 जून को 55 वर्षीय उमेश पांडे ने फांसी लगा कर जान दे दी. मृतक ने एक सुसाइड नोट छोड़ा तो उस में खुदकुशी का कारण बीमारी को बताया. लंबी और थका देने वाली बीमारी किस तरह प्रभाव डालती है, यह उमेश के उदाहरण से सम झा जा सकता है. उमेश का लिवर खराब था और पेट में पथरी की भी शिकायत थी. साथ ही वह हृदयरोग से ग्रसित था. उस का इलाज लंबे समय से चल रहा था, जिस में काफी पैसे खर्च हो रहे थे. महीनेमहीने परिवार पर लंबाचौड़ा बिल उमेश के इलाज के चलते बनने लगता. परिवार आर्थिक परेशानी को  झेल रहा था, जिस के चलते उमेश मानसिक तनाव में आने लगा और अंत में खुदकुशी कर अपनी लीला समाप्त कर ली.

स ऐसे ही मई में 21 वर्षीय युवक शिवम ने बीमारी के चलते तनाव में आ कर फांसी का फंदा लगा लिया. शिवम उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ क्षेत्र से था. करीब

2 साल पहले वह मजदूरी करते गिर गया. उस के सिर पर गहरी चोट आ गई. लंबे समय से उस का इलाज चल रहा था. इलाज ऐसा कि पैसा दवा में ही बह जाता. मजदूर तबके का शिवम जो परिवार का सहारा था, वही परिवार पर बो झा बनने लगा, जिस के चलते शिवम मानसिक तनाव की गिरफ्त में फंस गया और अंत में उस ने भी आत्महत्या कर ली.

स लंबी व गंभीर बीमारी किस कदर व्यक्ति को मानसिक तनाव में ला देती है, इस के उदाहरणों की कमी नहीं. 5 जुलाई को मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम नगरनिगम के सब इंजीनियर ने मुंह में कार्बनडाई औक्साइड गैस भर कर खुदकुशी कर ली. मृतक का नाम चेतन बुमरकर था. उस ने पहले गैस की पाइप मुंह में डाली, फिर पूरे चेहरे को पन्नी से लपेट कर कस के बांध लिया और फिर गैस चालू कर दी. मृतक ने साथ में सुसाइड नोट छोड़ा जिस में स्पष्ट रूप से कहा कि उस की मौत की वजह उस की बीमारी है और वह इस के चलते गहरे अवसाद में था.

स  ऐसा ही एक मामला इंदिरापुरम थाना क्षेत्र से आया जहां एक बहुमंजिली सोसाइटी की 13वीं मंजिल से कूद कर 82 वर्षीया वृद्धा ने आत्महत्या कर ली. मृतका उमा गुप्ता के पास से भी एक सुसाइड लैटर मिला जिस में उस ने बीमारी को अपनी आत्महत्या की वजह बताई. मृतका के परिवार को पैसों की दिक्कत नहीं थी. उस का इलाज भी चल रहा था पर मानसिक तनाव ऐसा कि दिमाग पर सवार हुआ और आत्महत्या कर के ही दम लिया.

बीमारी जो गिनतियां खा रही

हकीकत यह है कि व्यक्ति को हमेशा बीमारी मृत्यु तक ले कर नहीं जाती, कई बार बीमारी से पहले व्यक्ति खुद को ही मृत्यु तक ले जाता है और आत्महत्या कर लेता है. इस स्थिति को मैंटल डिप्रैशन कहा जाता है, जो किसी भी बीमारी से ज्यादा घातक है. भारत में हर वर्ष औसतन एक लाख से अधिक लोग खुदकुशी कर लेते हैं. इन में 2 सब से बड़ी वजहें पारिवारिक क्लेश और लंबी व गंभीर बीमारी का होना है.

अमेरिका के नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इनफौरमेशन में कुछ वर्षों पहले एक स्टडी छपी, जिस का शीर्षक था, ‘इमोशनल डाइमैंशन औफ क्रौनिक डिजीजेस’ (गंभीर बीमारियों का भावनात्मक पहलू). हार्वर्ड मैडिकल स्कूल ने बीमारियों के इमोशनल पहलू पर काम करते हुए यह नतीजा निकाला कि 500 साल तक जो मैडिकल साइंस मानव शरीर को उस के मन से काट कर एक स्वतंत्र इंटिटी की तरह शरीर का इलाज करती रही, वह पारंपरिक मैडिकल साइंस अब धीरेधीरे इस दिशा में बढ़ रही है कि मानव शरीर में होने वाली सारी बीमारियां सिर्फ 30 फीसदी शारीरिक हैं और बाकी 70 फीसदी मानसिक.

आज भी मुख्य धारा के बड़े पैमाने के डाक्टर इस रिसर्च में लगे हैं कि तनाव, दुख, अवसाद कैसे बीमारियों की न सिर्फ जमीन बनाते हैं, बल्कि उस के लिए खाद का भी काम करते हैं. लेकिन मुख्य धारा मैडिसिन कई अगरमगर के साथ मन से काट कर शरीर को दवाइयों के जरिए ठीक करने की कोशिश में लगी हुई है.

बीमारी से कैसे लोग मानसिक तनाव की गिरफ्त में फंस रहे हैं, इसे पिछले

2 सालों के कोरोना महामारी काल से सम झा जा सकता है. जब लोग बीमारी के अंदेशे भर से खुदकुशी करने लगे थे. अमेरिकी मैडिकल जर्नल ‘जामा पीडियाट्रिक्स’ ने इसे ले कर 29 रिसर्च का एनालिसिस प्रकाशित किया. 80,879 युवाओं के सर्वे में पाया गया कि महामारी के दौरान बच्चों और किशोरों में डिप्रैशन और चिंता के मामले दोगुने हो गए हैं. यूरोप में यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट भी बताती है कि आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा प्रमुख कारण बन गया है.

ऐसे ही भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्षवार प्रतिवेदनों का अध्ययन करने से पता चलता है कि वर्ष 2001 से 2015 के बीच भारत में कुल 18.41 लाख लोगों ने आत्महत्या की. इन में से 3.85 लाख लोगों (लगभग 21 प्रतिशत) ने विभिन्न बीमारियों के कारण आत्महत्या की. वहीं 2020 में 153,052 लोगों ने आत्महत्या की. इन आंकड़ों से सम झा जाए तो भारत में हर एक घंटे में 4 लोग बीमारी से तंग आ कर आत्महत्या करते हैं व हर 5 में से एक आत्महत्या बीमारी के कारण होती है. अकेले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस साल एक जनवरी से 28 फरवरी तक 178 लोगों ने खुदकुशी कर ली. इन में 50 महिलाएं, 85 युवा व 43 अन्य लोग शामिल हैं.

लंबी व गंभीर बीमारियों का मानसिक प्रभाव

किसी लंबी बीमारी के साथ रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों और डिप्रैशन का एकसाथ होना आश्चर्यजनक नहीं है.

मिर्गी आना,

आर्थ्राइटिस

डायबिटीज

हृदय संबंधी रोग

औबेसिटी

थायराइड

अल्जाइमर रोग

विटिलिगो व अन्य स्किन समस्या

सैक्स संबंधी समस्या इत्यादि

ये सब पुरानी व लंबी बीमारियां हैं जो समय के साथ सही इलाज न लिए जाने से घातक साबित हो सकती हैं. ऐसे में ये दिमाग में कई तरह के नकारात्मक खयालों को पैदा करती हैं.

नैशनल इंस्टिट्यूट औफ मैंटल हैल्थ के अनुसार जो लोग लंबी बीमारियों से पीडि़त होते हैं उन में मानसिक स्वास्थ्य का खतरा बढ़ जाता है. लंबी बीमारियां पीडि़त को कई सीमाओं में बांधती हैं. लंबे समय तक उस के काम पर असर डालती हैं. ऐसे में पीडि़त इलाज, इलाज में खर्चा और भविष्य के बारे में सोच कर घबराहट महसूस करता है. अध्ययन में पता चलता है कि जो लोग क्रौनिक बीमारी व मानसिक बीमारी दोनों से पीडि़त होते हैं उन में बीमारी से संबंधित अधिक गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं.

ऐसे ही दीर्घकालिक व गंभीर बीमारी से पीडि़त को रोज की दिक्कतों और संघर्षों से लड़ना पड़ता है. कई बार इन बीमारियों से लोग अपनी स्वतंत्रता खोई हुई महसूस करते हैं. इन बीमारियों में कैंसर, एचआईवी/एड्स, कोरोनरी हार्ट डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, स्ट्रोक, टीबी, पार्किंसन डिजीज, ट्यूमर, लकवा इत्यादि शामिल हैं. ऐसे में इन का प्रभाव सीधे दिमाग पर पड़ता है. बदले में ये डिप्रैशन पीडि़त के शारीरिक कष्ट को बढ़ाने का ही काम करती हैं.

उपचार के दौरान मानवीय व्यवहार नहीं

मानसिक तनाव और कुछ नहीं दिमाग की उपज है. व्यक्ति जो  झेल रहा है, उसे ले कर संभावनाओं का भय है. भारत में एक बड़ा तबका सरकारी चिकित्सा पर निर्भर करता है. ऐसे में यह जरूरी है कि गंभीर बीमारी के समय स्वास्थ्य सेवाओं में काम करने वाले अस्पतालों का मानवीय होना जरूरी हो, जो कि बहुत कम देखा जाता है.

अब सवाल आता है कि बीमारी के चलते पैदा हुए मानसिक तनाव को भारत की सरकारी चिकित्सा किस तरह हैंडल करती है? इस का सीधा जवाब यह है कि भारत में हैल्थ एजुकेशन की व्यवस्था अच्छे डाक्टर तैयार करती होगी पर शिक्षित डाक्टरों और अस्पतालों की भारी कमी के चलते सरकारी अस्पतालों में लगने वाली भीड़ से इन चीजों की देखरेख मुमकिन ही नहीं हो पाती. डाक्टर उन से संवाद कर के उन्हें यह भी नहीं बता पाते कि बीमारी क्या है? क्यों होती है? मरीज की वर्तमान स्थिति क्या है? उस का इलाज किस तरह होगा? जाहिर है इस का असर मरीज के मनोभाव पर पड़ता होगा.

बीमारी का सामना करें

ऐसे में जरूरी हो जाता है कि एक लंबी व गंभीर बीमारी से पीडि़त व्यक्ति अपने डाक्टरों और अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से मिले, साथ ही साथ अपना नियमित चैकअप कराए. इस से मन में आ रहे किसी भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने में मदद मिलती है. अगर सरकारी चिकित्सालय में उपचार करवा रहे हैं तो पूरा समय लें और अपने सारे सवालों को क्लीयर करें.

इस के अलावा नकारात्मक विचारों से घिरने पर कौग्निटिव बिहेवियोरल थेरैपी (सीबीटी) मदद कर सकती है. सीबीटी बीमारी के बारे में नकारात्मक विचार पैटर्न को बदल देती है और वह उपकरण प्रदान करती है जो बीमारी में चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है.

पुरानी बीमारी के साथ रहना कई बार अकेलापन महसूस करा सकता है. ऐसे में अपने परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों को यह बताना कि वे आप की कैसे सहायता कर सकते हैं, आप को कम अकेला महसूस करने में मदद कर सकता है.

एक लंबी चलने वाली या गंभीर बीमारी का सामना करने के लिए जरूरी है कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया जाए. इस के लिए नियमित जीवनशैली बनाएं, समय पर सोएं व उठें, हैल्दी खाना खाएं, शरीर पर उचित ध्यान दें.

Top 20 Moral Stories in hindi : टॉप 20 मोरल स्टोरी हिंदी में

Moral Stories in hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं हैं सरिता कि टॉप 20 मोरल स्टोरी इन हिंदी. इन कहानियों में परिवार, समाज और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और रिश्तों को लेकर एक नया नजरिया और सीख भी देगी. इन hindi moral Story से आप कई अहम बाते भी सीख सकते हैं जो जिंदगी और रिश्तों के लिए आपका नजरिया भी बदल देगी. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए सरिता की Moral Stories in Hindi.

1. आस पूरी हुई : क्या पूरी हो पाई कजरी की आस

कजरी ने धोती और चप्पल संभाल कर रख दी और बेटे को समझा दिया कि कभी शहर जाएंगे तो पहनेंगे. गांव में बड़े लोगों के सामने सदियों से हम छोटी जाति की औरतें चप्पल पहन कर नहीं निकलीं तो अब क्या निकलेंगी.

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2. लेडी डौक्टर कहां है :समर की मां ने डॉक्टर से क्या कहा?

2.

सुबह से ही मीरा बहुत घबराहट महसूस कर रही थी. शरीर में भी भारीपन था और मन तो खैर… न जाने कब से उस के ऊपर अपराधबोध के बोझ लदे हुए हैं. काम छोड़ कर आराम करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. बवाल मच जाएगा घर में. सब की दिनचर्या में अस्तव्यस्तता फैल जाएगी.

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3. माफी या सजा: कौन था विशाखा पर हुए एसिड अटैक के पीछे

विशाखा और सौरभ एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. कालेज के अंतिम वर्ष तक आतेआते उन दोनों की मित्रता बहुत गहरी हो गई थी. विशाखा एक संपन्न परिवार की इकलौती बेटी थी. वह नाजों से पलीबढ़ी. उस के उच्चशिक्षण के लिए उस का दाखिला दूसरे शहर के एक अच्छे कालेज में करा दिया गया.

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4. रैड लाइट: सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

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5. कविता: अपनी ही पत्नी कि हत्या करने पर क्यों मजबूर हुआ विभाष

विभाष ने पक्का निश्चय कर लिया कि भले ही उसे नौकरी छोड़नी पड़े, लेकिन अब वह दिल्ली में बिलकुल नहीं रहेगा. संयोग अच्छा था कि उसे नौकरी नहीं छोड़नी पड़ी. मैनेजमेंट ने खुद ही उस का लखनऊ स्थित ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया.

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6. मिनी, एडजस्ट करो प्लीज : क्या एडजस्ट करना आसान था मिनी के लिए

6 महीनों से जो गुबार मन में रुका हुआ था वह अचानक फूट पड़ा. मैं तुम्हारे कंधे पर झुक गई. तुम मेरे आसुंओं से भीगते रहे. फिर मैं ने तुम्हें बताया कि नरेश के साथ मैं ने कितने खुशहाल दिन बिताए थे. लेकिन सुख के दिन ज्यादा देर न रहे और एक दिन औफिस से लौटते समय नरेश का ऐक्सिडैंट हो गया.

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7. जाएं तो जाएं कहां: क्या कैदी जेल से बाहर आ पाएं?

चांद मोहम्मद को वह जमाना याद आ गया, जब वह शेरोशायरी किया करता था. प्यारमुहब्बत भरी गजलें लिखा करता था. फिर उस की शादी उसी लड़की से हो गई, जिसे वह बेहद प्यार करता था.

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8. चाय : गायत्री की कौन सी इच्छा अधूरी रह गई थी

रविकांत ने कभी सोचने की कोशिश ही नहीं की कि गायत्री की दिनचर्चा क्या है.? दिनचर्या तो बहुत दूर की बात, उन्हें तो उस का पुराना चेहरा ही याद था, जो उन्होंने विवाह के समय और उस के बाद के कुछ अरसे तक देखा था. सामने अस्पताल के पलंग पर बेहोश पड़ी गायत्री उन्हें एक अनजान औरत लग रही थी.

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9. दर्द आसना : आजर और जोया बचपन में क्यों लड़ा करते थे

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

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10. याददाश्त-इंसान को कमजोरी का एहसास कब होता है

घर से जब बाहर निकलता तो कुछ न कुछ लाना भूल जाता था. यह भी समझ में आता था कि कुछ भूल रहा हूं लेकिन क्या? यह पकड़ में नहीं आता था. अब मैं कागज पर लिख कर ले जाने लगा था कि क्याक्या खरीदना है बाजार से. इस बार मैं तैयार हो कर घर से बाहर निकला और बाहर निकलते ही ध्यान आया कि चश्मा तो पहना ही नहीं है.

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11. अनाम रिश्ता : नेहा और अनिरुद्ध के रिश्ते का क्या था हाल

कौफी का मग हाथ में ले कर जैसे ही मैं सोफे पर बैठी, हमेशा की तरह मुझे कुछ पढ़ने की तलब हुई. मेज पर कई पत्रिकाएं रखी हुई थीं. लेकिन मेरा मन तो आज कुछ और ही पढ़ना चाह रहा था. मैं ने यंत्रवत उठ कर अपनी किताबों की अलमारी खोली और वह किताब निकाली जिसे मैं अनगिनत बार पढ़ चुकी हूं.

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12. नया सवेरा : गरिमा और शिशिर के प्यार के बीच में कौन आ रहा था

शिशिर और गरिमा दोनों एकदूसरे को चाहते थे. अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा था जब दोनों के मन में प्रेम की कोंपले फूटी थीं. दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे. शिशिर कंपनी का पुराना एंप्लौय था जबकि गरिमा ने कुछ महीने पहले ही जौइन किया था.

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13. भेलपुरी और सैंडविच : प्यार का सुखद अहसास रोमांस

मैं ने 2 ब्रेड स्लाइस के बीच में आलू की भरावन रखी, पतले गोल प्याज के टुकड़े रखे, एक टमाटर का गोल कटा टुकड़ा रख कर उस पर चाट मसाला छिड़का, ब्रेड के दोनों तरफ खूब मक्खन लगा कर जलते स्टोव पर सैंडविचर में रख कर उलटपुलट कर सेंकने लगा.

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14. एक ही नाव पर सवार : महिमा ने करुणा से क्या छीना था?

वह दिन आज भी उस के मानस पटल पर अंकित है, जब मंथन और 2 बच्चों, अंकित और संचित सहित सुखद संसार था उस का. तब उसे क्या पता था कि सुख के जिन सतरंगी रंगों में वह सराबोर है, वे इतने कच्चे हैं कि काली घटा की एक झड़ी ही उन्हें धो देगी. पर, सच सामने आ ही गया.

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15. चुनौतियां: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

अवंतिका से मिल कर मुझे अच्छा लगता था. उस की बातचीत का ढंग बहुत प्रभावशाली था. उस के पहनावे और साजशृंगार से उस के काफी संपन्न होने का भी एहसास होता था. मैं खुश थी कि एक नई जगह अवंतिका के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है.

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17. हादसा : मौली के साथ ऐसा कौन-सा हादसा हुआ था

मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.

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18. जोड़ने की टूटन : आखिर अपने किस रिश्ते को जोड़ना चाहता था प्रदीप

दोपहर को पीछे के बरामदे में बैठी प्रमिला और उस की सास में बातें हो रही थीं. प्रमिला का पति प्रदीप सेना में अफसर था और 2 साल बाद उसे जम्मू में ऐसी नियुक्ति मिली थी जहां वह परिवार को अपने साथ रख सकता था.

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19. कालगर्ल : आखिर उस लड़की में क्या था कि मैं उसका दीवाना हो गया?

प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.

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20. लक्ष्मण रेखा : मिसेज राजीव कैसे बन गईं धैर्य का प्रतिबिंब

कुछ रिश्ते दूर के होते हुए भी या कुछ लोग बिना रिश्ते के भी बहुत पास के, अपने से लगने लगते हैं और कुछ नजदीकी रिश्ते के लोग भी पराए, बेगाने से लगते हैं, सच ही तो है. रिश्तों में क्या धरा है? महत्त्व तो इस बात का है कि अपने व्यक्तित्व द्वारा कौन किस को कितना आकृष्ट करता है.

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बच्चों के लिए बनाएं ये 3 यम्मी रेसिपी

शायद ही ऐसी कोई मां हो जिसे अपने बच्चे का टिफिन तैयार करने में परेशानी महसूस न होती हो. जब बच्चों का टिफिन पैक कर रहे हों तो यह ध्यान रखना चाहिए कि खाना बच्चे की पसंद का हो, पोषक हो और आसानी से बच्चा ले जा सके व खा सके. कई बार बच्चे एक ही तरह का खाना खातेखाते उकता जाते हैं जो उन के द्वारा लंच बौक्स का खाना न खाने का एक अहम कारण होता है. खाना बनाने का थोड़ा सा अलग तरीका अपनाएं, फिर देखें कि बच्चा टिफिन का खाना कितनी चाव से खाता है.

  1. चटपटा रोटी रोल

सामग्री :

1 कप आटा, 1 उबला आलू, 1/2 कप उबले छोले, 1 प्याज, 1 टमाटर, कुछ लैट्स पत्ते, 1 बड़ा चम्मच नीबू रस, 1 हरीमिर्च, 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि :

  • आटे में स्वादानुसार नमक डाल कर गूंध लें. प्याज, टमाटर और हरीमिर्च बारीक काट लें.
  • उबले आलू और छोलों को मैश करें.
  • इस में बारीक कटे प्याज, टमाटर हरीमिर्च, नीबू रस और नमक मिलाएं व गरम तवे पर पैटी या रोल बना कर कम तेल में तल लें.
  • आटे की पतली रोटी बना कर सेंक लें.
  • एक तरफ मक्खन लगाएं. उस पर लैट्स पत्ते, पैटी/रोल, कटे प्याज और टमाटर, धनियापत्ती रखें.
  • रोटी को नीचे से मोड़ कर रोल करे. चटपटा रोटी रोल तैयार है.

2, रावियोली

सामग्री :

1 कप मैदा, 1/2 कप पनीरपालक की सब्जी, 1/4 कप मटर के दाने, 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 1/2-1/2 लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च, 1 प्याज, 1 गाजर, 1 टमाटर, 2 बड़े चम्मच मक्खन, 1/2 जुकीनी, नमक स्वादानुसार.

विधि :

  • मैदा में नमक डाल कर पानी से गूंध लें.
  • इस के छोटे पेड़े बना कर पूरियां बेल लें व बीच में पनीरपालक की सब्जी भर पानी से सील करें.
  • एक स्टीमर में 10-15 मिनट तक सभी रावियोली को स्टीम करें.
  • सभी सब्जियों को लंबाई में पतली काट लें.
  • पैन गरम कर मक्खन डालें, सभी कटी सब्जियों को हलका भूनें.
  • नमक व कालीमिर्च पाउडर डालें.
  • रावियोली को इस सब्जी के साथ परोसें.

सूजी रोल

सामग्री : 1 कप सूजी, 1/2 कप पनीर, 1/2 कप कसा हुआ नारियल, 1 गाजर, 1 प्याज, 1 टमाटर, 2 उबले आलू, 1 हरीमिर्च, 1/2 कप उबली चना दाल, नमक स्वादानुसार.

छौंक : 1/2 छोटा चम्मच राई, नारियल कसा हुआ, 1 बड़ा चम्मच तेल.

विधि :

  • सूजी भून लें. आलू उबाल कर छील लें.
  • उबली चने की दाल को हरी मिर्च के साथ पीस लें.
  • इसे उबले आलू, सूजी, प्याज, टमाटर, नमक व नारियल पाउडर के साथ मैश कर एक रोल बनाएं.
  • 15-20 मिनट तक स्टीम करें.
  • तेल में राई भूनें. भुनने पर नारियल डाल कर आंच बंद करें. छौंक तैयार है.
  • रोल के टुकडे़ काटें व ऊपर से छौंक डालें.
  • चटनी के साथ टिफिन में दें.

टेरिस गार्डन को खूबसूरत बनाएं, अपनी टेंशन ना बढ़ाएं

आज जब बढ़ता प्रदूषण और तरह तरह के वायरस हमारे लिए जानलेवा सिद्ध हो रहें हैं तब हमें थोड़ा बहुत पेड़ पौधे होने का महत्व समझ आने लगा है क्योंकि मनुष्य ने पेड़ काट कर बड़ी बड़ी इमारते तो बना ली लेकिन यह नहीं सोचा जिन पेड़ो के होने से हम स्वास ले रहे हैं उन्हीं पेड़ो को काटने से हमारी ये स्वास थम भी सकती हैं। तब हम इन इमारतों का क्या करेंगे हाल ही में कोरोना काल हमें पेड़ पौधों के महत्व को बरखूबी समझा गया है। आज अपनी इसी गलती को सुधारने के लिए लोग अपने घरों में पेड़ पौधे लगा भी रहें है। घर को हरा भरा बनाए रखने के लिए अपनी बालकनी या छत को गार्डन का रूप देना पसंद कर रहें हैं। घरों पर टेरिस गार्डन बनाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है. लोग टेरिस गार्डन में तरह-तरह के पौधे ,फूल , सब्जियां और घास लगाते हैं, जिससे गार्डन हरा-भरा दिखाई दे । और सुबह व शाम का वक़्त इन पौधों के साथ सुकून भरा गुजर सकें। अगर आप भी यह सुकून चाहते हैं तो टेरिस गार्डन बनाने से पहले , आपको कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना होगा। जिससे यह सुकून टेंशन में न बदले।

मिट्टी और खाद का मिश्रण हो सही

मिट्टी पौधे की जरूरत के हिसाब से तैयार की जाती है इसलिए पौधा लगाते समय जलनिकासी वाली एवं जैविक पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी का प्रयोग करें जिस से पौधे की ग्रोथ अच्छी हो. यदि पौधों को खाद रहित, या चिकनी मिट्टी में लगाते हैं तो पौधे ग्रोथ नहीं करेंगे और बहुत जल्द खराब हो सकते हैं

पौधों की जरूरत के अनुसार मिले धुप

पौधों के लिए सबसे जरूरी हैं धुप लेकिन हमें इस बात का ज्ञान हो कि किस पौधे को अधिक धुप की जरूरत है और किसे कम की। ऐसे में टेरिस पर जिस दिशा में धुप कम आती हो उस तरफ हरी जाली या टीन शेड अवश्य लगाएं जिससे आपके पौधे खराब नहीं होंगे क्योंकि जरूरत के विपरीत धुप मिलने से पौधे कि ग्रोथ धीमी हो सकती है या पत्तिया ,फूल झड़ने लगते हैं और पौधे सुख जाते हैं।

पानी देते समय रखे ख्याल –

कई लोग पौधों में पानी पाइप से देतें है जिससे पौधे की जड़े मिटटी से बाहर आने लगती हैं साथ ही मिटटी में मौजूद उर्वरक भी पानी के प्रेशर से बह जाते हैं जिससे पौधा सूखने लगता है।
पौधों को अधिक पानी देने से जड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और जड़ें सड़ने लगती हैं।वहीं कम पानी देने से कई बार पौधे सूख जाते हैं । इसलिए पौधे की जरूरत के हिसाब से पानी दे।

सीलन ना आने दें

टेरिस गार्डन को सीलन से बचाने के लिए समय समय पर गमलो की जगह में बदलाव करें उनकी निचली सतह पर काही ना जमने दें साथ ही आप गार्डन के ऊपर थर्मोप्लास्टिक का प्रयोग करें।

पौधों के बीच रखे पर्याप्त दूरी

पौधों की ग्रोथ के लिए उनके बीच पर्याप्त दूरी बना कर रखें क्योंकि ज्यादा पास पास गमले रखने से पौधों को हवा सही ढंग से नहीं मिल पाती जिस कारण , हाई ह्यूमिडिटी बनने लगती है, और पौधों में रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

रामनवमी बनाम दंगानवमी

कुछ हिंदूत्योहार अब हिंदूमुसलिम झगड़ों व दंगों के नाम से पहचाने जाने चाहिए. रामनवमी को दंगानवमी कहना ज्यादा सही होगा क्योंकि चंदा उगाहने वाले इस दिन जम कर उगाही करते हैं और फिर जुलूस हर गलीमहल्ले में निकालते हैं. किसी न किसी मुसलिम महल्ले में या मसजिद के निकट से जुलूस को गुजारना शायद शास्त्रों का आदेश है.

हर बार की तरह इस बार देश में कितने ही राज्यों में रामनवमी जुलूसों को लेकर झगड़े, दंगे, आगजनी व पथराव की घटनाएं घटीं. कुछ का सोचना है कि यह बड़े पुण्य का काम है कि जिन लोगों ने देश पर लगभग 1,000 साल आराम से राज किया उन के धर्म के वंशजों से अब 1,000 साल का बदला लिया जा रहा है. वे यह सच न जानना चाहते हैं, न सुनना चाहते हैं कि भारत के बड़े भूभाग पर राज करने वाले मुसलिम शासक अगर थे तो उन के वशंज तो अब पाकिस्तान या बंगलादेश में बसे हुए हैं, वे 1947 के बाद भारत में क्यों रहते.

भारत में बचे मुसलमान वे हैं जिन्हें पाकिस्तान में कोई भविष्य नहीं दिख रहा था क्योंकि जो आम मुसलमान पाकिस्तान गए भी, उन्हें वहां मुहाजिर कहा जाता है जो एक तरह से अपमानजनक शब्द है. इन के ही धर्म वालों के खिलाफ भारत में मोरचा खोल कर हिंदू वोट तो बटोरे जा रहे है पर इस चक्कर में भारतीय हिंदुओं के साथ एक घिनौना खेल भी खेला जा रहा है.

यह खेल है हिंदू युवाओं को भगवा दुपट्टा या गमछा या फिर सिर पर पट्टा दे कर, हाथ में तलवार, कट्टा, माला, त्रिशूल दे कर उन्हें अपराध करने की ट्रेनिंग देना. हिंदू धर्म की रक्षा करने या हिंदू झंडा हर जगह, चाहे वह मुसलमान का मकान हो या हो मसजिद, फहराने को उक्सा कर हिंदू नौजवानों को कानून हाथ में लेने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. उन्हें बताया जा रहा है कि मुसलमानों को मारना, सिर मूंडना, दाढ़ी नोचना, घर जलाना, तलवार से घायल करना सब पुण्य व जायज है. अगर उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा करना है तो अनुशासनहीन बन कर बिना किसी कमांडर के आदेश के किसी भी निहत्थे पर हमला करना शौर्य की बात है, सीमा पर तैनात सेना के जवानों से भी ज्यादा काबिलेतारीफ.

इन लोगों का बाद में जिस तरह स्वागत किया जाता है वह उन के मन में यह बैठा देता है कि यह काम गलत नहीं है. यह पट्टी/घुट्टी वोट की राजनीति करने वालों को तो लाभ देती है पर हर घर, जहां से ये युवा आते हैं,में एक परमानैंट उद्दंड, हत्यारा, क्रूर, मनमरजी करने वाला युवा बैठा दिया जाता है. फिर यह युवा अपनेबाप से भी झगड़ता है, चाचा से भीऔर पड़ोसी से भी. इसे चंदा मांगने की आदत होती है तो यह अपनी बाइक के पैट्रोल के लिए किसी को कभी भी धमकी देकर उस से पैसे वसूलना जानता है.यही लोग रंगदार बनते चले जाते हैं. इसीलिए तो आज घरघर में उपद्रवी मिल रहे हैं.

ये युवा न अच्छे कर्मचारी बन सकते हैं, न अच्छे पति, न अच्छे पिता क्योंकि इन्हें जबरदस्ती करने की c दी जा चुकी है. ये सब पानसिंह तोमर डकैत सा बन जाते हैं. डकैती चाहे छोटी ही हो, आफत तो घरवालों की भी होती है. भाजपा को न इन घरों की चिंता है, न पुलिस को.

बीज का महत्त्व

अ नाज के दाने का आधा या आधे से अधिक वह भाग जिस में भ्रूण उपस्थित हो, जिस की अंकुरण क्षमता अधिक हो तथा जो भौतिक एवं आनुवांशिक रूप से शुद्ध हो, साधारणताय उसे बीज कहा जाता है. कृषि के उत्पादन के कारकों में से एक बीज का अत्याधिक महत्त्व होता है. जब कृषक अपने पुराने बीज के स्थान पर उच्च गुणवत्तायुक्त प्रमाणित बीज की बोआई अपने खेत में करता है तो उसे बीज प्रतिस्थापन कहते हैं.

किसान के द्वारा उच्च गुणवत्तायुक्त बीज की बोआई करने पर प्रति इकाई क्षेत्रफल में उत्पादन में सामान्य बीज की बोआई करने से प्राप्त होने वाले उत्पादन की अपेक्षा लगभग 20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है.

बीज के प्रकार प्रजनक बीज : इस बीज का उत्पादन सीधे संबंधित अभिजनक की देखरेख में कराया जाता हैं इस बीज की सहायता से आधारीय बीज का उत्पादन किया जाता है. प्रजनक बीज के थैलों पर लगने वाले टैगों का रंग पीला होता हैं और इस की आनुवांशिक शुद्धता भी शतप्रतिशत होती है. आधारीय बीज : इस बीज का उत्पादन प्रजनक बीज के माध्यम से किया जाता है, जिसे आधारीय बीज कहते हैं और आधारीय प्रथम से तैयार किए गए बीज को आधारीय द्वितीय बीज कहते हैं.

इस प्रकार के बीज का प्राणीकरण राज्य बहज प्रमाणीकरण संस्था के द्वारा किया जाता है तथा इस बीज के थैलों पर लगाए जाने वाले टैगों का रंग सफेद होता है.

प्रमाणित बीज : आधारीय बीज के माध्यम से उत्पादित बीज को प्रमाणित बीज कहा जाता हैं तथा सामान्य रूप से इसी बीज को किसनों को बुआई करने हेतु बेचा जाता है. इस बीज का उत्पादन भी बीज प्रमाणीकरण संस्था की गिरानी में ही किया जाता है और प्रमाणित बीज के थैलों पर लगने वाले टैग का रंग नीला होता है.

सत्यापित बीज : इस बीज को आधारीय बीज अथवा प्रमाणित बीज के द्वारा तैयार किया जाता है. इस बीज की भौतिक शुद्धता एवं अंकुरण के प्रति इस बीज का उत्पादक स्वयं जिम्मेदार होता है. इस बीज के थैलों पर बीज प्रमाणीकरण संस्था के द्वारा टैग नही लगाया जाता है और केवल उत्पादन संस्था का ही टैग लगा हुआ होता है. इस बीज की अंकुरण क्षमता भी प्रमाणित बीज के समान ही होती है.

संकर बीज क्या होता है?

* दो भिन्नभिन्न आनुवांशिक गुणों वाली प्रजातियों के संकरण से प्राप्त होने वाली संतति को संकर बीज कहते हैं. यह बीज सर्वोत्तम प्रजातियों की अपेक्षा अधिक उपज देने की क्षमता से युक्त होता है.

* फसल के उत्पादन के लिए संकर किस्म के बीज को प्रथम पीढ़ी के बीज के रूप में उपयोग में लाया जाता है क्योंकि प्रथम पीढ़ी में ही विलक्षण ओज पाई जाती है एवं अगली पीढ़ी में संकलित गुणों का विघटित हो जाते है तथा उस की ओज क्षमता में हृस हो जाता है.

* इस प्रकार से संकर किस्म के बीजों का लाभ एक पीढ़ी तक ही सीमित रहता है जिस के कारण किसानों को प्रतिवर्ष नया बीज खरीद कर ही बोआई करनी पड़ती है.

संकर बीज का महत्त्व

* संकर बीज की उत्पादन देने की क्षमता अधिक उपज देने वाली प्रजातियों की तुलना में 20 से 30 प्रतिशत तक अधिक उपज देने की क्षमता होती है.

* अधिकांशत: संकर बीज की प्रजातियां षीघ्र ही पकने वाली होती हैं जिस के कारण खाद्यान्न शीघ्र ही उपलब्ध हो जाता है.

* फसलों के शीघ्र पक जाने के कारण फसलचक्र को अपनाने में सुविधा रहती है.

* संकर प्रजातियों को सुखा ग्रस्त क्षेत्रों के लिए भी विकसित किया जा सकता है तथा इन्हें सूखा गस्त क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है.

* संकर प्रजातियों की रोग एवं कीट प्रतिरोधकता भी अधिक ही होती है.

* संकर बीज से उत्पादित फसल एक साथ ही पकती हैं. इस कारण से फसल की कटाई भी एक साथ ही की जा सकती है, जिस से श्रमशक्ति की बचत होती है और सस्य क्रियाओं का मषीनीकरण सुविधापूर्वक किया जा सकता है.

हम अपने बच्चे का नर्सरी स्कूल में एडमिशन करवाना है, मातापिता होते हुए हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

सवाल

हमें अपने बच्चे का नर्सरी स्कूल में एडमिशन करवाना है. मातापिता होते हुए हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जवाब

जाहिर सी बात है मातापिता होने के कारण आप अपने बच्चे के लिए फिक्रमंद तो होंगे ही लेकिन बच्चे को स्कूल तो भेजना भी जरूरी है. आप घबराइए मतआप अपना मन मजबूत करेंगे तभी तो बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करेंगे.

सब से पहले तो आप को बच्चे के मन में स्कूल के प्रति रुचि पैदा करनी होगी. उसे स्कूल में जाने की वजह बताएं और स्कूल के नियमों के बारे में बताएं.

बच्चे सभी भोले होते हैंकुछ कमकुछ ज्यादा. इसलिए इस बात को ले कर घबराइए मत कि उसे स्कूल में तेज बच्चे मिलेंगे तो वह क्या कहेगा. बच्चे सब अपनेआप हैंडल करना सीख जाते हैं. टीचर्स उन्हें सिखाते हैंतभी तो हम उन्हें स्कूल भेजते हैं कि वे अपनेआप से कुछ सीखें. इसलिए बच्चे की स्कूल में भेजने की फिक्र न करें.

दूसरी बात आप जानना चाहते हैं कि किन बातों का आप ध्यान रखें तो स्कूल के चयन में सब से महत्त्वपूर्ण बात शिक्षा की गुणवत्ता होती है. आप को सम झना होगा कि स्कूल में बच्चों की देखभाल और उन की शिक्षा कैसे दी जाती है. आप बीचबीच में जा कर टीचर्स से मिलते रहें और इस से अपने बच्चे की शिक्षाउस की ऐक्टिविटीबिहेवियर के बारे में जानकारी लेते रहें.

स्कूल की दूरी आप के घर से कितनी हैइस बात का ध्यान रखें. आप को दूरी के अनुसार एक सही स्कूल चुनना होगा जो आप के बच्चे के लिए उचित हो.

बच्चे को नींद पूरी करने का पर्याप्त समय दें. उस की नींद पूरी होगी तो वह समय पर स्कूल जाने को तैयार होगा.

नर्सरी स्कूल में बच्चे के लिए सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण होना चाहिए. बच्चों के लिए खेलने की पर्याप्त जगहेंसाफ टौयलेटपानी की उपलब्धता आदि सुविधाएं होनी चाहिए.

नर्सरी स्कूल में बच्चों के लिए विभिन्न शैक्षणिकसामाजिक और मनोरंजक क्रियाएं होनी चाहिए. बच्चों को संभालने के लिए अच्छे अध्यापक होने चाहिएजो अनुभवी और योग्य हों. नर्सरी स्कूल में बच्चों के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों की व्यवस्था होनी चाहिएजो उन के स्वास्थ विकास के लिए जरूरी होते हैं.   

भारत भूमि युगे युगे: दिल में राहुल

दिल में राहुल जैसे ही संसद की हाउसिंग कमेटी ने राहुल गांधी को घर खाली करने का तुगलकी हुक्म दिया, कांग्रेसियों के ‘मेरा घर आप का घर’ अभियान के तहत कई कांग्रेसियों ने उन्हें घर देने की पेशकश कर डाली. इन में से एक दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में रहने वाली रानी गुप्ता भी हैं जिन्होंने अपना 4-मंजिला मकान ही अपने नेता के नाम कर दिया. बकौल रानी, राहुल गांधी हमारे दिल में रहते हैं. वहीं, अयोध्या के हनुमान गढ़ी के एक साधु संजय दास ने भी उन्हें अयोध्या में रहने का निमंत्रण दे डाला है.

यह लोकप्रियता भगवा गैंग के लिए न केवल चिंता का बल्कि खतरे का भी विषय होना चाहिए क्योंकि सांसदी जाने के बाद राहुल के चाहने वालों की तादाद बढ़ी है और लोग पूरे एपिसोड को मोदी-शाह की ज्यादती और व्यक्तिगत खुन्नस मानते हैं. लोकतंत्र में अकसर उलटे बांस बरेली को लद जाते हैं, इसलिए यह मामला भगवा गैंग पर भारी भी पड़ सकता है. सिद्धू से सबक चार दिन जेल में क्या गुजारे, कांग्रेसी नेता और कौमेडियन व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को बाहर आते ही सब से पहले लोकतंत्र खतरे में दिखा.

फिर से पंजाब में अपनी जमीन और संभावनाएं तलाश रहे सिद्धू को जेल में रहते यह एहसास तो हो ही गया होगा कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता क्योंकि उन की सुध लेने कोई नहीं पहुंचा था, हालांकि खुद सिद्धू भी कभी किसी के सगे नहीं हुए. बहैसियत नेता, खिलाड़ी और कौमेडियन, सिद्धू से सीखने को बहुतकुछ है. लेकिन न सीखना भी एक सबक है कि गुस्सा और आवेश नियंत्रण के बाहर हो जाए तो नुकसान खुद का ही करते हैं.

27 दिसंबर, 1988 को उन्होंने पटियाला में पार्किंग विवाद को ले कर एक बुजुर्ग को मुक्का मार दिया था जिस से उस की मौत हो गई थी. अच्छा तो यह होगा कि वे लोकतंत्र को उस के हाल पर छोड़ते, गुस्से के खतरों से लोगों को आगाह करें. माया के हो गए श्रीराम कल की धाकड़ और सख्त तेवरों वाली दलित नेत्री मायावती इतनी बेचारी हो गई हैं कि उन के धुरविरोधी भी उन पर तरस सा खाते दिखते हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव उन में से एक हैं.

रामायणविरोधी हो चले सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जैसे ही 90 के दशक के एक चर्चित नारे ‘जब मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम…’ को गुंजाया तो मायावती भड़क उठीं. उन्होंने सपा पर ही आरोप मढ़ दिया कि उस दौर में अपरकास्ट अयोध्या और राममंदिर विरोधी नारे सपा ने बनाए थे और बदनाम बसपा को किया. ऊंची जाति वालों की पिछलग्गू बनती जा रहीं बसपा प्रमुख अपनी ही पार्टी के उसूल भूलने की सजा भुगत भी रही हैं जो दलितों के दम पर सत्ता में आईं और अब दलितों की बदहाली को शंबूक वध की तरह देखती रहती हैं. देखना दिलचस्प होगा कि वे पूजापाठ के लिए अयोध्या प्रभु श्रीराम से क्षमा मांगने कब जाती हैं. राजनाथ का रामराज्य अनुपयोगी तो नहीं होते लेकिन फालतू हो चले बुजुर्गों को घरों में स्वच्छंदतापूर्वक भजनपूजन आदि में लीन कर दिया जाता है जिस से वे और खुराफात न करें.

मसलन, कौन सी सब्जी पक रही है, बहू दोपहर में कहां गई थी, बेटा देररात शराब पी कर तो नहीं आया, पोतापोती मोबाइल पर पोर्न फिल्में तो नहीं देख रहे और पड़ोस वाले शर्माजी की बेटी का अफेयर अब किस से चल रहा है वगैरहवगैरह. भाजपा में 70 पार कर चुके रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को ऐसा ही एक नेक काम ‘राम राज्य बस आ ही रहा है’ का ढोल पीटने का सौंप दिया गया है जो हर जगह मोदी को राम साबित करने की कोशिश करते रहते हैं. इस से फायदा यह है कि वे अब प्रधानमंत्री बनने की नहीं सोचते, पार्टी के भीतर और बाहर की गतिविधियों में दखल नहीं देते. उन की कोशिश यह है कि 24 के लोकसभा चुनाव में उम्र की कुल्हाड़ी से बस उन का टिकट न कटे.

पर्यटन: एडवैंचर टूरिज्म रिस्क और रोमांच का अनूठा रोमांस

युवा एडवैंचर टूरिज्म खूब पसंद करते हैं जहां थ्रिल और थोड़ाबहुत रिस्क हो. दूरदूर तक फैले ग्लेशियर के पहाड़ों की ट्रेकिंग, जंगल सफारी, बंजिंग जम्पिंग, स्कूबा डाइविंग यह सब युवाओं की पसंद रहती है. लेकिन इस तरह के टूरिज्म में कुछ तरह की सावधानियां बरतनी जरूरी हैं. पिछले साल की बात है.

27 सितंबर को ‘वर्ल्ड टूरिज्म डे’ के अवसर पर भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिस में उत्तराखंड को ‘बैस्ट एडवैंचर टूरिज्म डैस्टिनेशन’ का फर्स्ट प्राइज दिया गया था. इस मौके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि इस उपलब्धि से उत्तराखंड के नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य एवं पर्यटन क्षेत्रों को देश व दुनिया में पहचान मिलेगी. विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर राज्य के पर्यटन को यह एक सौगात है.

साहसिक पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश में माउंटेनियरिंग, ट्रेकिंग, कैंपिंग आदि गतिविधियों का काफी विस्तार हुआ है. जब हम साहसिक पर्यटन या एडवैंचर टूरिज्म शब्द पर गौर करते हैं तो इस का मतलब यही निकलता है कि आप के सैरसपाटे में मौजमस्ती के साथसाथ रोमांच और रिस्क का तड़का. दरअसल पिछले कुछ वर्षों से भारत में ऐसी रोमांच यात्राओं या साहसिक पर्यटन का चलन ज्यादा बढ़ा है जिन में कोई यात्री रोमांच के लिए खोज यात्राओं पर निकल जाता है या फिर जोखिम अनुभव करने की उमंग में रिस्क से भरी ऐक्टिविटी में भाग लेता है.

इस श्रेणी में पर्वतारोहण, कुछ प्रकार के वनभ्रमण, गहरीअंधेरी गुफाओं में प्रवेश, युद्धग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण इत्यादि शामिल हैं. अमूमन रोजमर्रा की बोरिंग जिंदगी में खुशी के कुछ पल ढूंढ़ने के लिए लोग अपनों के साथ या फिर अकेले ही ऐसी जगहों पर सुकून से बिताना चाहते हैं जहां वे खुद को फ्रैश महसूस कर सकें तो फिर एडवैंचर ट्रैवलिंग के नाम पर जिंदगी को जोखिम में डालने से मिलता क्या है? क्यों हम ऐसे काम करने की सोचते हैं, जो हमारे दिल की धड़कन बढ़ा देते हैं?

नदी की उफनती लहरों में रिवर राफ्ंिटग, किसी ऊंची जगह से कमर पर रस्सी बांध कर हवा में लहरा कर बंजी जंपिंग, पथरीलीनुकीली चट्टानों पर रौक क्लाइंबिंग, खुले जंगल में हिंसक जानवरों से रूबरू होने के लिए जंगल सफारी, दुर्गम रास्तों पर पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल आदि से दूरियां नापना एडवैंचर टूरिज्म के कुछ खास नमूने हैं, जो बहुत कम समय में दुनियाभर में इतने ज्यादा प्रचलित हो गए हैं कि अब इन्हें ध्यान में रख कर ही कुछ पर्यटन स्थल विकसित कर दिए गए हैं. आप को हिंदी फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ तो याद ही होगी? इस फिल्म के 3 हीरो मिल कर स्पेन की एक ऐसी साहसिक यात्रा का प्लान करते हैं, जिस में उन्हें अपने हर दोस्त की कही बात मान कर उस साहसिक काम को करना होता है, जिस का डर उन के भीतर तक होता है. इस में स्कूबा डाइविंग, स्काई डाइविंग और गुस्साए सांडों के साथ दौड़ना शामिल होता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप को विदेश जा कर ही ऐसी साहसिक यात्राओं या खेलों का मजा लेना होगा. अब तो भारत में भी ऐसी जगहें विकसित हो गई हैं, जहां जा कर लोग अपनी ट्रैवलिंग में रिस्क और रोमांच का भरपूर मजा ले सकते हैं.

एडवैंचर के भारतीय अड्डे वैसे तो पूरे भारत में ऐसी अनेक जगहें हैं जहां की साहसिक यात्रा पर आप निकल सकते हैं, ऊंचे पहाड़ हों या गरजता समुद्र, सुलगती रेत हो या हरेभरे जंगल, आप को हर कहीं एडवैंचर टूरिज्म का जलवा दिखाई देगा पर कुछ जगहें ऐसी हैं जिन का नाम सुन कर ही बदन में रोमांच की लहर दौड़ जाती है. बात लद्दाख की करते हैं जहां की खूबसूरत झीलें, मठ और पहाड़ की चोटियां खासीयत हैं. सब से ज्यादा रोमांचक बात तो यहां की बाइक राइडिंग है. लोग बाइक पर निकल पड़ते हैं मैदानी इलाकों से और घुमावदार, ऊंचेनीचे, कच्चेपक्के रास्तों से पहुंच जाते हैं खूबसूरत लद्दाख में. लद्दाख से कुछ ही दूर स्टौक कांगड़ी एडवैंचर के शौकीनों के लिए शानदार जगह है.

आप यहां आ कर कुदरती नजारों के साथसाथ पैराग्लाइडिंग का मजा भी ले सकते हैं. इसी तरह हिमाचल प्रदेश का बीर इलाका पर्यटन के लिए जबरदस्त है. ‘भारत की पैराग्लाइडिंग राजधानी’ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में पैराग्लाइडिंग के अनेक स्थान हैं. अगर आप को समुद्र खंगालना है तो अंडमाननिकोबार द्वीप चल दीजिए. यहां सैलानियों को स्कूबा डाइविंग का मौका मिलता है, जिस में वे पानी के नीचे बसे कई जीव और अन्य प्रकार के पौधे देखते हैं. एडवैंचर के शौकीनों के लिए महाराष्ट्र का कामशेत भी किसी ट्रीट से कम नहीं है. आप यहां आ कर पैराग्लाइडिंग, ट्रेकिंग, बाइकिंग जैसे खेलों का मजा ले सकते हैं. उत्तराखंड का ऋषिकेश साहसिक गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को बीच कैंप करने की जगह के रूप में प्रसिद्ध है. यहां गंगा नदी में रिवर राफ्ंिटग के तो कहने ही क्या.

कर्नाटक स्थित नेत्रानी में आप स्कूबा डाइविंग करना बिलकुल न भूलें. दिल्ली के 28 साल के आर्यन गुप्ता, जिन का ‘आर्यननाइट्जराइडर’ नाम का यूट्यूब चैनल है, ने एडवैंचर ट्रैवलिंग के अपने अनुभवों के बारे में बताया, ‘‘मैं ने 18 साल की उम्र से अकेले ही बाइक से ट्रैवलिंग और एडवैंचर करना शुरू कर दिया था. सब से पहले मैं उत्तराखंड के मसूरी शहर में गया था. इस के बाद मैं ने लद्दाख, पूर्वोत्तर के राज्यों, राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, मतलब कश्मीर से कन्याकुमारी तक अकेले ही बाइक से ट्रैवल किया. ‘‘मैं ने भारत के आखिरी गांव चितकुल और सब से ऊंचे गांव हिक्किम तक बाइक राइड का मजा लिया है. यह एक शानदार फीलिंग होती है और इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

‘‘जब मैं ऐसे सोलो एडवैंचर ट्रिप पर होता हूं तो साथ में टैंट और दूसरे जरूरी सामान अपने साथ रखने के अलावा कुकिंग भी खुद ही करता हूं. यह सब कर के आप अलग ही जोन में चले जाते हैं. पर एडवैंचर का यह मजा कभीकभी सजा भी बन जाता है. एक बार मैं नौर्थईस्ट के तवांग में स्नो एरिया में बाइक चला रहा था कि ठंड के मारे मेरे हाथ 20 मिनट के लिए सुन्न हो गए थे, क्योंकि मेरे पास ग्लव्स नहीं थे. तब बाइक इंजन के सामने हाथ रख कर उन्हें गरम किया था. लद्दाख में मेरा औक्सीजन लैवल काफी कम हो गया था. ‘‘लिहाजा, जब आप किसी एडवैंचर ट्रिप पर जाने की सोचते हैं तो पूरी तैयारी के साथ निकलें और कुदरत का मजा लें.’’

अंतस के दीप : पूजा और रागिनी की जिंदगी की दास्तान

‘‘अरे रागिनी, 2 बज गए, घर नहीं चलना क्या? 5 बजे वापस भी तो आना है स्पैशल ड्यूटी के लिए.’’ सहकर्मी नेहा की आवाज से रागिनी की तंद्रा टूटी. दीवाली पर स्पैशल ड्यूटी लगने का औफिस और्डर हाथ में दबाए रागिनी पिछली दीवाली की काली रात के अंधेरों में भटक रही थी जो उस के मन के भीतर के अंधेरे को और भी गहरा कर रहे थे. नफरत का एक काला साया उस के भीतर पसर गया जो देखते ही देखते त्योहार की सारी खुशी, सारा उत्साह लील गया. रागिनी बुझे मन से नेहा के साथ चैंबर से बाहर निकल आई.

ऐसा नहीं है कि उसे रोशनी से नफरत है. एक वक्त था जब उसे भी दीपों का यह त्योहार बेहद पसंद था. घर में सब से छोटी और लाड़ली रागिनी नवरात्र शुरू होने के साथ ही मां के साथ दीवाली की तैयारियों में जुट जाती थी. सारे घर में साफसफाई करना, पुराना कबाड़, सालभर से इस्तेमाल नहीं हुआ सामान, छोटे पड़ चुके कपड़े और रद्दी आदि की छंटाई करना व उस के बाद घर की सजावट का नया सामान खरीदना उस का शौक था. इन सारे कामों में तुलसीबाई और पूजा भी उस का हाथ बंटाती थीं और सारा काम मजेमजे में हो जाता था.

दीवाली के सफाई प्रोजैक्ट में कई बार स्टोर में से पुराने खिलौने और कपड़े ?निकलते थे जिन्हें रागिनी और पूजा पहनपहन कर देखतीं व मां को दिखातीं, कभी टूटे हुए खिलौनों से खेल कर बीते हुए दिनों को फिर से जीतीं…मां कभी खीझतीं, कभी मुसकरातीं. कुल मिला कर हंसीखुशी के साथ घर में दीवाली के स्वागत की तैयारियां की जाती थीं.

पूजा उन की घरेलू सहायिका तुलसीबाई की एकलौती बेटी थी और दोनों मांबेटी उन के घर में ही छत पर बने छोटे से कमरे में रहती थीं. पूजा के पिता की जहरीली शराब पीने से मौत हो गई थी. पति की मृत्यु के बाद जवान विधवा तुलसीबाई पर उन की झुग्गी बस्ती का हर पुरुष बुरी नजर रखने लगा तो उस ने रागिनी की मां शीला से उन के घर में रहने की इजाजत मांगी. शीला को वैसे भी एक फुलटाइम सहायक की जरूरत थी, सो, उन्होंने खुशीखुशी हामी भर दी. तब से इस पूरी दुनिया में रागिनी का परिवार ही उन का अपना था. पूजा रागिनी से लगभग 10 वर्ष छोटी थी. खूबसूरत गोलमटोल पूजा उसे गुडि़या सी लगती थी और गुडि़या की तरह ही सजाती, उस के बाल बनाती और उस के साथ खेला करती थी.

समय के साथ दोनों लड़कियां बड़ी हो रही थीं. रागिनी ने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की डिगरी ली और एक कंपीटिशन एग्जाम पास कर बिजली विभाग की राजकीय सेवा में आ गई. रागिनी को पहली पोस्ंिटग जैसलमेर के पास एक छोटे से कसबे फलौदी में मिली. रागिनी के मम्मीपापा उसे अपने शहर जोधपुर से इतनी दूर अकेली भेजने में संकोच कर रहे थे. तभी तुलसीबाई ने उन की मुश्किल यह कह कर आसान कर दी कि दीदी, बुरा न मानें तो छोटे मुंह बड़ी बात कहूं? आप पूजा को रागिनी बेबी के साथ भेज दीजिए. यह उन का छोटामोटा काम कर देगी, दोनों का मन भी लगा रहेगा और आप बेफिक्र भी हो जाएंगी.

हालांकि यह खयाल शीला के दिल में भी आया था मगर वह यह सोच कर चुप रह गई कि पराई बेटी की सौ जिम्मेदारियां होती हैं, कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो क्या जवाब दूंगी तुलसी को?

और फिर रागिनी जब अपने पूरे परिवार यानी मम्मीपापा, तुलसीबाई और पूजा के साथ अपनी नौकरी जौइन करने आई तो सब को एकसाथ देख कर रागिनी के अधिकारी मुसकरा उठे. 4 दिन रैस्टहाउस में रह कर स्टाफ की मदद से औफिस के पास ही 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले कर रागिनी और पूजा को वहां शिफ्ट कर दिया गया. अब मम्मीपापा रागिनी की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र थे.

रागिनी की फील्ड की जौब थी. अकसर उसे साइट्स पर दूरदूर जाना पड़ता था. कई बार तो वापसी में रात भी हो जाती थी. मगर उस के अधिकारी और स्टाफ सभी अच्छे स्वभाव के थे, इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. घर आते ही पूजा गरमागरम खाना बना कर उस के इंतजार में बैठी मिलती. दोनों साथसाथ खाना खातीं, रागिनी दिनभर का हाल पूजा को सुनाती, उसे दिनभर में मिलने वाले तरहतरह के लोगों के बारे में बताती और दोनों खूब हंसतीं. कुल मिला कर सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

4 महीने बाद रागिनी का खास त्योहार दीवाली आया. वह त्योहार पर अपने घर नहीं जा सकती थी. जिस तरह पुलिस वालों की होली पर और पोस्टमैन की रक्षाबंधन पर स्पैशल ड्यूटी लगती है उसी तरह बिजली विभाग के इंजीनियर्स की दीवाली पर स्पैशल ड्यूटी लगाई जाती है, ताकि बिजली की व्यवस्था सुचारु बनी रहे और लोग बिना व्यवधान के यह त्योहार मना सकें.

रागिनी की धनतेरस से दीवाली तक 3 दिन शाम 5 बजे से रात 12 बजे तक स्पैशल ड्यूटी लगाई गई. पहले 2 दिनों की ड्यूटी आराम से निबट गई. रागिनी की असली परीक्षा तो आज यानी दीवाली के मुख्य त्योहार के दिन ही होनी थी. वह तय समय पर अपने सबस्टेशन पहुंच गई. शाम लगभग 7 बजे फीडरों पर बिजली का लोड बढ़ने लगा. 8 बजे तक लोड स्थिर हो गया और इस बीच किसी तरह की कोई ट्रिपिंग भी नहीं आई यानी सबकुछ सामान्य था.

‘अब लोड और नहीं बढ़ेगा, मुझे एरिया का एक राउंड ले लेना चाहिए,’ यह सोचते हुए रागिनी गाड़ी ले कर राउंड पर निकली. अपनी गली के पास से गुजरते हुए अचानक पूजा का खयाल आ गया तो सोचा, ‘आ ही गई हूं तो घर में दीयाबाती करती चलूं वरना पूजा रात 12 बजे तक घर में अंधेरा किए बैठी रहेगी.’

उसे देखते ही पूजा खुश हो गई. पहली बार दोनों ने घर में दीये जलाए और थोड़ा सा कुछ खा कर रागिनी फिर से निकल पड़ी अपनी ड्यूटी पर.

अब बस, इसी तरह का शेड्यूल बन गया था हर दीवाली पर रागिनी 5 बजे ड्यूटी पर जाती और 8 बजे फिर से ड्यूटी पर चली जाती, फिर दीवाली के दूसरे दिन सप्ताहभर की छुट्टी ले कर दोनों बहनें मम्मीपापा के पास जोधपुर चली जातीं त्योहार मनाने और सालभर की थकान उतारने…

पिछले 3 सालों में काफीकुछ बदल गया था रागिनी और पूजा की लाइफ में. 2 साल पहले अचानक हार्टअटैक से तुलसीबाई की मृत्यु हो गई. पूजा अनाथ हो गई. रागिनी के मम्मीपापा ने उसे विधिवत गोद ले कर अपनी बेटी बना लिया. रागिनी तो उसे हमेशा से ही अपनी छोटी बहन सा प्यार करती थी, अब इस रिश्ते पर सामाजिक मुहर भी लग गई.

सालभर पहले रागिनी की शादी विवेक से हो गई. विवेक भी उसी की तरह विद्युत विभाग में अधिकारी था. उस की पोस्टिंग जैसलमेर में थी. शादी के बाद यह उन की पहली दीवाली थी. मगर हमेशा की तरह दोनों की ही ड्यूटी अपनेअपने सबस्टेशन पर लगी थी. इसलिए दोनों को ही अपनी पहली दीवाली साथ नहीं मना पाने का दुख था. दीवाली के अगले दिन रागिनी विवेक के पास जैसलमेर और पूजा मांपापा के पास जोधपुर चली गई. पहली बार दोनों बहनें अलगअलग बसों में सवार हो कर गई थीं.

रागिनी और उस के घर वाले सभी अब चाह रहे थे कि विवेक और उस का ट्रांसफर एक ही जगह हो जाए तो वे रागिनी की चिंता से मुक्त हो कर पूजा की शादी के बारे में सोचें. दोनों परिवारों ने बहुत कोशिश की, कई नेताओं की सिफारिश लगवाई, सरकारी नियमों का हवाला दिया और लगभग सालभर की मेहनत के बाद आखिरकार रागिनी का ट्रांसफर फलौदी से जैसलमेर हो गया. रागिनी बहुत खुश थी. अब उसे विवेक की जुदाई नहीं सहनी पड़ेगी. अब उस का परिवार पूरा हो सकेगा और पूजा की भी शादी हो जाएगी. कई तरह के सपने देखने लगी थी रागिनी.

ट्रांसफर के बाद पूजा भी रागिनी के साथ जैसलमेर आ गई. यहां विवेक को बड़ा सा सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था. एक सहायक भी था घर के काम में मदद करने के लिए, मगर वह सिर्फ बाहर के काम ही देखता था. घर के अंदर की सारी व्यवस्था पूजा ने संभाल ली थी.

अब रागिनी यही कोशिश करती थी कि उसे देर तक घर से बाहर न रहना पड़े. वह औफिस से जल्दी घर आ कर ज्यादा से ज्यादा टाइम विवेक के साथ बिताना चाहती थी. अकसर दोनों शाम को घूमने निकल जाते थे और देररात को लौटते थे. मगर चाहे कितनी भी देर हो जाए, रात का खाना वे पूजा के साथ ही खाते थे. छुट्टी के दिन रागिनी पूजा को भी अपने साथ ले कर जाती थी. कभी पटवों की हवेली, कभी सोनार किला, कभी गढ़ीसर लेक और कभी सम के धोरों पर. तीनों खूब मस्ती करते थे. पूजा भी अधिकार से विवेक को जीजूजीजू कह कर उस से मजाक करती रहती थी. पूरा घर तीनों की हंसी से गुलजार रहता था.

देखते ही देखते फिर से दीवाली आ गई. इस बार रागिनी पूरे उल्लास से यह त्योहार मनाने वाली थी. हमेशा की तरह दोनों बहनों ने मिल कर घर की साफसफाई की, कई तरह के नए सजावटी सामान खरीद कर घर को सजाया. 2 दिन पहले दोनों ने मिल कर कई तरह की मिठाइयां व नमकीन बनाईं. नए कपड़े खरीदे गए. पूरे घर पर रंगीन रोशनी की झालरें लगाई गईं. घर के मुख्यद्वार पर इस बार पूजा ने सुंदर सी रंगोली भी बनाई थी.

हमेशा की तरह शाम 5 बजे रागिनी अपनी ड्यूटी पर निकल गई और विवेक अपनी पर. धनतेरस और छोटी दीवाली बिना किसी अड़ंगे के निकल गई. आज दीवाली का मुख्य त्योहार था. रागिनी विवेक को सरप्राइज देना चाहती थी. वह लगभग 8 बजे औफिस से निकली और सीधे मार्केट गई. ज्वैलरी के शोरूम से विवेक के लिए सोने की चेन ली जो उस ने धनतेरस पर बुक करवाई थी और घर की तरफ गाड़ी घुमा ली.

घर पहुंचने से पहले ही न जाने क्यों किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल बैठने लगा. घर के बाहर शगुन का एक भी दीया नहीं जलाया था आज पूजा ने. घर का दरवाजा भी अंदर से बंद है. दीवाली के दिन तो पूजा घर का दरवाजा एक मिनट के लिए भी बंद नहीं करने देती थी. कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया…घबराई हुई रागिनी जोरजोर से दरवाजा पीटने लगी. दरवाजा कुछ देर में खुला. खुलते ही पूजा रोती हुई रागिनी से लिपट गई.

पूजा के आंसू और विवेक का हड़बड़ाहट में अपनी पैंट पहनते हुए घर से बाहर निकलना, वहां हुए हादसे को बयान करने के लिए काफी था. पत्थर हो गई रागिनी. उस ने तुरंत पूजा का हाथ थामा और निकल गई घर से. रात दोनों ने रोतेरोते विभाग के गैस्टहाउस में बिताई और सुबह होते ही दोनों जोधपुर के लिए निकल गईं.

पीछेपीछे विवेक भी आया था माफी मांगने, मगर रागिनी को अब ऐसे व्यक्ति का साथ कतई स्वीकार नहीं था जिस ने अपनी बहन जैसी साली पर बुरी नियत रखी. मम्मीपापा ने भी उस का ही साथ दिया और दोनों का रिश्ता बनने से पहले ही टूट गया.

आज उसे विशाल बहुत याद आ रहा था जो कालेज के समय से ही उसे बेहद पसंद करता था, उस से शादी करना चाहता था. धर्म के ठेकेदारों के हिसाब से वह छोटी जाति का था, इसलिए रागिनी की हिम्मत नहीं हुई थी उस का जिक्र अपने मम्मीपापा के सामने करने की. हां, पूजा जरूर सबकुछ जानती थी, विवेक से रिश्ता जुड़ने के बाद रागिनी अपने अनकहे प्यार को दिल के एक कोने में दफन कर के सिर्फ विवेक की हो कर रह गई थी.

एक ही विभाग और एक ही शहर होने के कारण रागिनी का विवेक से सामना होना लाजिमी था. उस ने फिर से कोशिश कर के अपना ट्रांसफर फलौदी करवा लिया. पूजा ने सारा कुसूर अपना मानते हुए कभी शादी न करने का रागिनी के साथ रहने की जिद पकड़ ली. मगर रागिनी नहीं चाहती थी कि उस की बहन की जिंदगी बरबाद हो. पिछले दिनों ही एक अच्छा सा लड़का देख मांपापा ने पूजा की शादी करवा दी.

इस दीवाली रागिनी बिलकुल अकेली थी. तन से भी और मन से भी…आज दीवाली का मुख्य त्योहार है. वह बुझे मन से अपनी ड्यूटी कर रही थी. हर बार की तरह आज भी रात 8 बजे वह एरिया के राउंड पर निकली तो अभ्यस्त सी गाड़ी खुदबखुद घर की तरफ मुड़ गई. यह क्या? घर के बाहर दीये किस ने जला दिए. घर का दरवाजा भी खुला हुआ था. दरवाजे पर खड़ी रागिनी पसोपेश में थी, तभी किसी ने पीछे से आ कर उसे बाहों में भर लिया, ‘‘दीवाली मुबारक हो, दीदी.’’

‘‘अरे, पूजा, तुम यहां? आने की खबर तो दी होती. मैं स्टेशन पर गाड़ी भेज देती.’’

‘‘तब यह खुशी कहां देखने को मिलती हमें, दीदी जो अभी आप के चेहरे पर दिखी है,’’ पूजा ने उस का चेहरा अपनी हथेलियों में थामते हुए कहा. पूजा के पति ने झुक कर रागिनी के पांव छू लिए.

‘‘और हां, हम सब ने तय किया है कि अब से आने वाली हर दीवाली हम सब साथसाथ मनाएंगे हमेशा की तरह, पूजा फिर से अपनी बहन से लिपट गई.’’

‘‘अरे भई, और भी बहुत से लोग आए हैं.’’ पीछे से मांपापा की आवाज आई तो रागिनी ने मुड़ कर देखा. मां के पीछे खड़ा विशाल शरारत से मुसकरा रहा था. मां ने रागिनी का हाथ विशाल के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘हमें पूजा ने सबकुछ बता दिया है. तुम दोनों को दीवाली बहुतबहुत मुबारक हो.’’ यह सुन कर रागिनी की पलकें शर्म से झुक गईं.

घरों की मुंडेरों और छज्जों पर जगमगाते दीपकों के साथ रागिनी के भीतर भी खुशी की लौ झिलमिलाने लगी.

‘‘चलो, चलो, जल्दी से खाना लगा लें, फिर आतिशबाजी करेंगे. दीदी को वापस ड्यूटी पर भी तो जाना है,’’ पूजा ने कहा तो सब मुसकरा उठे. रागिनी मां के कंधे पर सिर टिकाए घर के भीतर चल दी. सब से पीछे चल रहे पापा ने सब की नजर बचा कर अपने आंसू पोंछ लिए.

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