Download App

बच्चों को आगे बढ़ने का मौका दें

बच्चों के भविष्य को दिशा देने के लिए जरूरी है कि पेरैंट्स उन्हें किसी एक चीज में दक्ष करें और उस के लिए बचपन से ही प्रयास किए जाएं. बच्चे की जिस चीज में रुचि है, अगर उस विषय में उसे आगे बढ़ने का मौका मिले तो वह सफल हो सकता है. एपल के फाउंडर स्टीव जौब्स जब 5 साल के थे तो उन का परिवार सैनफ्रांसिस्को से कैलिफोर्निया शिफ्ट हो गया. उन की मां क्लारा उन्हें पढ़ना सिखाती थी, जबकि उन के पिता पौल एक मैकेनिक और एक बढ़ई के रूप में काम करते थे.

वे अपने बेटे स्टीव को भी छोटेमोटे इलैक्ट्रौनिक्स से जुड़े काम सिखाते थे. वहीं से स्टीव की रुचि इलैक्ट्रौनिक्स के क्षेत्र में बढ़ने की हुई थी. स्टीव गैरेज में रखे इलैक्ट्रौनिक सामान के साथ छेड़छाड़ करते रहते और हमेशा कुछ नया सीखने की कोशिश करते. उन्होंने बचपन में ही अपने पिता से इलैक्ट्रौनिक्स का काफी काम सीख लिया था. शुरू से टैक्नोलौजी में रुचि होने की वजह से वे खुद के लिए वीडियो गेम बना लेते थे. उन्होंने अपनी पहली नौकरी भी वीडियो गेम कंपनी ‘अटारी’ में की थी. धीरेधीरे अपनी पसंद की टैक्नोलौजी फील्ड में मेहनत कर उन्होंने दक्षता हासिल की और आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्होंने दुनिया के सामने ऐसी डिवाइस प्रस्तुत की जो आज सब से महंगे स्मार्टफोन की लिस्ट में शामिल है. स्टीव जौब्स का कहना था, ‘यदि आप रातोंरात सफल हुए लोगों को गंभीरता से देखेंगे तो आप को सम?ा आएगा कि उस सफलता में लंबा समय लगा है.’

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था, ‘प्रत्येक व्यक्ति जीनियस है. यदि आप मछली में पेड़ पर चढ़ने की योग्यता देखेंगे तो वह जिंदगीभर स्वयं को मूर्ख सम?ोगी.’ यानी कि हर इंसान के अंदर अलगअलग तरह की प्रतिभा होती है. अगर आप सही दिशा में मेहनत करेंगे और उस क्षेत्र में लगातार प्रयास करते हुए दक्षता हासिल करेंगे जहां आप की योग्यता है तो आप को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. मगर यदि आप किसी और फील्ड में सफल होने का प्रयास करेंगे तो नाकामी ही हाथ आएगी और आप का आत्मविश्वास टूटेगा. रतन टाटा का नाम आज पूरी दुनिया में मशहूर है. उन्होंने टाटा ग्रुप को बुलंदियों तक पहुंचाया. लेकिन ऐसा नहीं है कि रतन टाटा को सीधे कंपनी का मालिक बनाया गया. रतन टाटा ने अपने कैरियर की शुरुआत टाटा ग्रुप में सुपरवाइजर के रूप में की थी. आज वे दुनिया के सब से अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हैं.

उन की नैटवर्थ एक बिलियन अमेरिकी डौलर से भी ज्यादा है. इस मुकाम तक वे पहुंचे क्योंकि वे अपनी फील्ड के मास्टर थे, नई सोच रखते थे और खुद को व्यावसायिक क्षेत्र में दक्ष बनाया. अपनी पूरी जिंदगी के दौरान विंसेंट अपनी बनाई सिर्फ एक ही पेंटिंग बेच पाए थे. वह भी उन के एक दोस्त ने बहुत कम पैसों में खरीदी थी. मगर उन्होंने कला के प्रति अपनी साधना नहीं रोकी. आज विंसेंट कला के सब से बड़े दिग्गजों में गिने जाते हैं और उन की पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती हैं. दरअसल कला, विज्ञान या व्यवसाय किसी भी क्षेत्र में रचनात्मक दृष्टिकोण और दक्षता का अत्यधिक महत्त्व है. सही समय पर मार्गदर्शन के माध्यम से मातापिता धीरेधीरे अपने बच्चों में उन की काबिलीयत के क्षेत्र में दक्षता विकसित कर सकते हैं. कैसे बनाएं बच्चों को उन की पसंद के क्षेत्र में दक्ष द्य कला, संगीत, विज्ञान और यहां तक कि खेल जैसे क्षेत्रों में भी जितनी छोटी उम्र से आरंभ किया जाए उतना ही ज्यादा बच्चों को भविष्य में फायदा मिलेगा.

बच्चों की रुचियों का आकलन कर उन्हें उसी दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करें. उदाहरण के लिए, यदि आप का बच्चा कार्टून देखते हुए बहुत खुश होता है तो उसे स्कैचिंग करने के लिए प्रोत्साहित करें. यदि आप देखते हैं कि उसे यह अच्छा लग रहा है तो एक कदम आगे बढ़ कर उसे कौमिक्स बनाने की कला सीखने में मदद करें. इस तरह आप उसे मीडिया और एनिमेशन जैसे विभिन्न रचनात्मक क्षेत्रों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं. द्य जब कोई कलाकार किसी मूर्ति का निर्माण शुरू करता है तो इस बात की काफी कम संभावना होती है कि मूर्ति का अंतिम स्वरूप हूबहू वैसा ही हो जैसा कि मूर्तिकार ने बनाने के पहले सोचा था. इस के बावजूद मूर्तिकार लगातार मूर्तियां बनाता है और समय के साथ अपने कौशल में सुधार करता है. करीब ऐसा ही हर सीखने की प्रक्रिया में होता है.

जब भी कोई बच्चा अपने दम पर कुछ बनाना शुरू करता है तो उस बनाने की प्रक्रिया से ही वह बच्चा अपनी क्षमता के प्रति आत्मविश्वास अनुभव करता है. ऐसे कार्यों से बच्चे यह सम?ा पाते हैं कि कुछ भी हासिल करने में समय और मेहनत दोनों का बराबर योगदान है. इस प्रकार वे अंतिम परिणामों की अत्यधिक चिंता किए बिना मेहनत करना सीखेंगे. बड़े होने पर यह सोच उन्हें कालेज की प्रवेश परीक्षा या नौकरी के लिए आवेदन करने की तैयारी जैसी प्रतिस्पर्धी और तनावपूर्ण स्थितियों से निबटने में मदद करती है. द्य यदि आप का बच्चा स्कूल की छुट्टियों में बोर हो रहा है तो आप उसे टीवी के सामने बैठाने के बजाय उस की पसंद की एक रचनात्मक गतिविधि में इन्वौल्व कर सकते हैं.

इसी तरह अगर उसे बौलीवुड फिल्में देखने में मजा आता है तो आप उसे बौलीवुड डांस स्टाइल सीखने को प्रोत्साहित कर सकते हैं. आप को उसे अलग से डांस स्कूल में भेजने की आवश्यकता नहीं है. आज यूट्यूब पर बहुत सारे निशुल्क वीडियो उपलब्ध हैं जो आप के बच्चे को कुछ आसान से डांस स्टैप्स सीखने में मदद कर सकते हैं. आप अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उस के प्रदर्शन की रिकौर्डिंग कर भी उस की मदद कर सकते हैं. द्य वे दिन गए जब लोग एक सुरक्षित जौब की तलाश में रहते थे.

आज अधिक से अधिक युवा ऐसे कैरियर का अनुसरण कर रहे हैं जो उन को जौब सैटिस्फैक्शन दे. इसलिए उन्हें वैकल्पिक कैरियर औप्शंस का मार्ग दिखाएं. अपने बच्चे की रचनात्मकता को एक दिशा दे कर आप उन्हें उस के जीवन में विभिन्न प्रकार के वैकल्पिक कैरियर चुनने में अधिक सक्षम बना सकते हैं. अधिकांश बच्चों को ललित कला, संगीत, नृत्य, पेंटिंग और अन्य रचनात्मक विषयों में बहुत कम शिक्षा मिलती है. अपने बच्चे को सर्वश्रेष्ठ देने के अपने प्रयास में उस की शिक्षा को आप गाइड न करें. उसे अपनी पसंद के क्षेत्र में दक्षता हासिल करने दें. उसे अपनी सभी प्रतिभाओं को तलाशने का मौका दें. यह उस के लिए एक अनमोल तोहफा बन सकता है.

-शोधों से साबित हुआ है कि हर बच्चे के सीखने और अपनी बात कहने की क्षमता अलगअलग होती है. हर बच्चे को उस की जरूरत के हिसाब से सिखाया जाना चाहिए. बच्चे को अपनी रचनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास और उस का उपयोग करने का अवसर मिलना चाहिए. हर बच्चे का उस की खास जरूरतों के हिसाब से पथप्रदर्शन किया जाना चाहिए जिस से वह ऐसे कौशल का विकास कर सके जो उसे अपनी ताकत और अपनी दिलचस्पी की बातें सीखने का मौका दे. इस से वह आगे चल कर अपने कैरियर को ले कर सही फैसले ले सकेगा. मातापिता को बच्चे से बातचीत करनी चाहिए ताकि बच्चा खुल कर अपने मन की बातें बता सके. वह अपनी पसंद और नापसंद की चीजों, इच्छाओं के बारे में भी बात कर सके. 7 साल के अंकित को डांस करना बहुत पसंद था. वह गाना सुनते ही ठुमकने लगता. बहुत कम उम्र में ही वह बहुत अच्छा डांस करने लगा था. उसे महसूस होता जैसे डांस द्वारा वह स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है.

डांस करने की खुशी वह कभी भी छोड़ना नहीं चाहता था. मगर उस के पेरैंट्स को उस का यह शौक नागवार गुजरता. वे उसे ऐसा करने से रोकते. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, पढ़ाई प्राथमिकता में आनी शुरू हो गई. उस को अपने डांस के जूतों को एक कोने में फेंक देने के लिए मजबूर होना पड़ा. स्कूल में खेल, ड्राइंग, ग्रुप डिस्कशन जैसी ऐक्टिविटीज होती थीं मगर डांस नहीं कराया जाता था. धीरेधीरे उस का भी डांस के प्रति मोह छूटता गया और वह नौकरी पाने की जद्दोजेहद में जुट गया. यहां पेरैंट्स के लिए यह सम?ाने की बात है कि बच्चे को अगर किसी खास ऐक्टिविटी, मसलन डांस, गाना या पेंटिंग में रुचि है तो उसे उसी में आगे बढ़ने का एक मौका जरूर देना चाहिए क्योंकि वह अपनी पसंद के क्षेत्र में मेहनत करेगा तो बुलंदियों को छू सकता है. मगर यदि उसे रुचि के विरुद्ध पढ़ाई में या किसी और गतिविधि में आगे बढ़ने व अव्वल रहने का प्रैशर डाला जाएगा तो वह जिंदगी में औसत बन कर रह जाएगा. बच्चे की दिलचस्पी सम?ों. बच्चे के साथ बैठ कर उन चीजों की लिस्ट बनाएं जिन में उस की दिलचस्पी हो.

याद रखें, कला हमारे भीतर संतोष और आश्चर्य की भावना तथा कल्पना और रचनात्मकता की एक दुनिया पैदा करती है. यह आत्मविश्वास प्राप्त करने का मौका देती है. यह हमें मानसिक रूप से अधिक स्ट्रौंग बनाती है. इसलिए पेरैंट्स को बच्चे के कैरियर के रूप में कला के क्षेत्र को बेरुखी नहीं दिखानी चाहिए. कला से बच्चों का मानसिक विकास होता है. बच्चे अपने मन में निहित भावना को कला व पेंटिंग के माध्यम से प्रकट करते हैं. इस से बच्चों के मनोभावों को जाना जा सकता है कि वे किस दिशा की ओर जा रहे हैं अथवा उन का किस ओर रु?ान है. प्रत्येक बच्चे में प्रतिभा निहित है. सभी अपने में विशिष्ट हैं, अपने में विजेता हैं. उन में असीम क्षमताएं हैं जिन्हें प्रखर करना है ताकि बच्चों की उन्नति हो. यदि कोई बच्चा डांस या किसी अन्य कला में रुचि दिखा रहा है तो मातापिता को उसे प्रोत्साहित करना चाहिए. बच्चे के जनून का समर्थन करना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है.

आप के बच्चे के भीतर आकांक्षाओं का पलना और उन के रास्ते में आने वाले अवसरों का उपयोग करना बहुत महत्त्वपूर्ण है. बच्चों को खुद से कैरियर तलाश करने और निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए कि कौन सा कैरियर उन के हित में है. यदि आप का बच्चा किसी कैरियर में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है तो आप उसे ऐसा करने के लिए जरूर प्रोत्साहित करें. हौबीज से बढ़ाएं बच्चों में क्रिएटिविटी एक वक्त था जब बच्चे बाहरी परिवेश में विभिन्न शारीरिक गतिविधियों के साथ बड़े होते थे, इसलिए वे प्रकृति के भी करीब थे. वहीं आजकल के बच्चे गैजेट्स के साथ बड़े हो रहे हैं. यह क्रिया बच्चों की क्रिएटिविटी कम कर रही है. बच्चों में खेल, कला, प्रदर्शन, विज्ञान आदि में रुचि कम हो रही है जबकि इन में रुचि रखने से बच्चों के व्यक्तित्व का विकास बेहतर होता है और उन के आने वाले कल में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं. ऐसे में शुरुआत में हौबीज के रूप में बच्चों को किसी भी क्षेत्र में रुचि लेना सिखाएं. हौबीज बच्चे की बोरियत दूर करने में मदद करेंगी जिस से बच्चों का मूड बेहतर होगा और उन का तनाव घटेगा. साथ ही, उन्हें अन्य बच्चों और नएनए लोगों से इंटरैक्शन करने का मौका मिलेगा. उन के अंदर कुछ नया सीखने की इच्छा भी जागृत होगी. इस से बच्चे आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर और सम?ादार बनेंगे.

मातापिता बच्चों के सामने क्रिएटिव गतिविधियां करें. इस से बच्चे भी जुड़ने की कोशिश करेंगे. इस की शुरुआत मजेदार और हलकीफुलकी गतिविधियों से करें. बच्चों को कुछ रुचिकर जगहों, जैसे म्यूजियम, आर्ट गैलरी और कौन्सर्ट में ले कर जाएं. इस से न केवल बच्चा नईनई चीजों को सीखेगा बल्कि वह अपने हिसाब से किसी चीज में खास रुचि भी लेने लगेगा. कुछ मातापिता ऐसा सोच सकते हैं कि उन के बच्चे भी उन्हीं की पसंद को अपनी पसंद बनाएं, लेकिन ऐसा करना गलत हो सकता है. मातापिता इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे से अपनी कोई बात, इच्छा या शौक मनवाने का प्रयास न करें. बच्चे को उन की इच्छानुसार हौबीज चुनने के लिए प्रोत्साहित करें. उन्हें हौबीज और कैरियर चुनने के लिए आजादी दें. कुछ बच्चे हौबीज को कैरियर के तौर पर चुनना पसंद कर सकते हैं. हर बच्चे की रुचि अलगअलग चीजों में होती है. ध्यान दें कि आप का बच्चा किस काम में रुचि ले रहा है. फिर उसी काम को आप बच्चे की हौबी और बड़े होने पर कैरियर के रूप में भी डैवलप कर सकते हैं.

कुछ बच्चे प्रकृति से जुड़ना पसंद करते हैं. उन की गार्डनिंग, सूखे फूलों और पत्तियों से आर्ट तैयार करना, जैविक खेती करना, फुटबौल और क्रिकेट खेलना, मार्शल आर्ट्स आदि में अभिरुचि हो सकती है. कुछ बच्चों के लिए फन आउटडोर हौबीज, मसलन स्केटबोर्डिंग, तैराकी, साइकिल चलाना, फोटोग्राफी, तीरंदाजी, गाना गाना, डांस करना, ऐक्ंिटग करना या थिएटर आदि पसंद आ सकता है. कुछ संगीत वाद्ययंत्र बजाना, कुकिंग, हस्त शिल्प क्राफ्ट, वुडवर्क, पेंट करना, पैंसिल स्केचिंग, कौमिक बुक आर्ट, स्क्रैप बुक में रुचि रख सकते हैं. द्य बच्चों को अकादमिक चारदीवारी के बाहर सोचना सिखाएं. आप बच्चों को कोई विदेशी भाषा भी सीखने को प्रेरित कर सकते हैं.

किसी भी देश की भाषा उस के समाज का एक प्रतिबिंब होता है. जिस भी देश की भाषा हम सीखते हैं, हम उस की संस्कृति को बेहतर सम?ा पाते हैं. उदाहरण के तौर पर अधिकांश लोग पूर्वी एशियाई देशों के विषय में बहुत कम जानते हैं और इन देशों के प्रति एक रूढि़वादी विचारधारा के शिकार होते हैं. इस के उत्तरदायी काफी हद तक हमारी इतिहास की पाठ्य पुस्तकें हैं जिन में हम सिर्फ इन देशों के युद्धों की तिथियों को याद कर रह जाते हैं. इन देशों की भाषा सीखने से बच्चे वहां की संस्कृति के कई आयाम सम?ोंगे. वे बड़े हो कर उस देश में अनुवादक या दूसरे कई तरह के जौब पा सकेंगे.

जब तंबाकू लत बन जाए

25 साला रिंकू निचले तबके के एक मजदूर का बेटा था. जब वह 12 साल का था, तभी उस ने अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाना शुरू कर दिया था. काम के दौरान जब उस ने साथी मजदूरों को थकान उतारने के लिए तंबाकू, गुटका, बीड़ीसिगरेट का सेवन करते देखा, तो उस की भी ऐसा करने की इच्छा होती थी. एक दिन रिंकू ने एक मजदूर से बीड़ी मांग कर पी, जो बाद में आदत बन गई. जब रिंकू 22 साल का हुआ, तो उस के मुंह में छाले की समस्या बनी रहने लगी. जब आम दवाओं से उसे कोई फायदा नहीं हुआ, तो उस ने पास के एक सरकारी अस्पताल में एक डाक्टर को अपनी समस्या बताई.

डाक्टर ने रिंकू के मुंह के छालों की जांचपड़ताल के बाद कैंसर की जांच कराने की सलाह दी. रिंकू ने जरूरी टैस्ट कराए, तो पता चला कि उसे मुंह का कैंसर हो चुका है. चूंकि रिंकू एक गरीब मजदूर का बेटा था, इसलिए वह अपनी बीमारी का इलाज सही तरीके से नहीं करा पाया और 25 साल की उम्र में कैंसर की वजह से उस की मौत हो गई. अनिल को बचपन में ही स्कूल में गलत दोस्तों की संगत पड़ गई और वह तंबाकू व गुटका का सेवन करने लगा और इसे अपनी लत बना लिया. जब अनिल की 22 साल की उम्र में शादी हुई, तो उसे लगा कि वह एक नई जिंदगी की शुरुआत कर रहा है. इस बीच वह एक बच्चे का बाप भी बन गया.

कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, लेकिन एक दिन उसे लगा कि वह अपना मुंह पूरी तरह नहीं खोल पा रहा है. जब उस ने डाक्टर से जांच कराई, तो पता चला कि उसे मुंह का कैंसर हो चुका है, जो आखिरी स्टेज पर है. अनिल के पिता सरकारी नौकरी करते थे. वे उस के इलाज के लिए देश के बड़ेबड़े अस्पतालों में दौड़े, लेकिन पिछले साल अनिल की कैंसर की वजह से मौत हो गई. मुंह व फेफड़े का कैंसर होने की अहम वजह तंबाकू का ज्यादा सेवन करना है, क्योंकि तंबाकू में कैंसर बनाने वाले निकोटिन और नाइट्रोसोप्रोलिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं. तंबाकू से बनी बीड़ी व सिगरेट में कार्बन मोनोऔक्साइड, थायोसाइनेट, हाइड्रोजन साइनाइड व निकोटिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं, जो न केवल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देते हैं, बल्कि शरीर को भी कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेलते हैं. जो लोग तंबाकू या तंबाकू से बनी चीजों का सेवन नहीं करते हैं, वे भी तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों खासकर बीड़ीसिगरेट पीने वालों की संगत में बैठ कर यह बीमारी मोल ले लेते हैं. इसे अंगरेजी भाषा में ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहते हैं.

नुकसान ही नुकसान

तंबाकू के सेवन में न केवल लोगों की कमाई का ज्यादातर हिस्सा बरबाद होता है, बल्कि इस से उन की सेहत पर भी कई तरह के गलत असर देखने को मिलते हैं, जो बाद में कैंसर के साथसाथ फेफड़े, लिवर व सांस की नली से जुड़ी कई बीमारियों को जन्म देने की वजह बनते हैं. तंबाकू या सिगरेट का इस्तेमाल करने से सांस में बदबू रहती है व दांत गंदे हो जाते हैं. इस में पाए जाने वाला निकोटिन शरीर की काम करने की ताकत को कम कर देता है और दिल से जुड़ी तमाम बीमारियों के साथसाथ ब्लड प्रैशर की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है.

पहचानें कैंसर को

डाक्टर वीके वर्मा का कहना है कि पूरी दुनिया में जितनी तादाद में मौतें होती हैं, उन में से 20 फीसदी मौतों की वजह सिर्फ कैंसर है. गाल, तालू, जीभ, होंठ व फेफड़े में कैंसर की एकमात्र वजह तंबाकू, पान, बीड़ीसिगरेट का सेवन है. अगर कोई शख्स तंबाकू या उस से बनी चीजों का इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे नियमित तौर पर अपने शरीर के कुछ अंगों पर खास ध्यान देना चाहिए. अगर आप पान या तंबाकू का सेवन करते हैं, तो यह देखते रहें कि जिस जगह पर आप पान या तंबाकू ज्यादातर रखते हैं, वहां पर कोई बदलाव तो नहीं दिखाई पड़ रहा है. इन बदलावों में मुंह में छाले, घाव या जीभ पर किसी तरह का जमाव, तालू पर दाने, मुंह का कम खुलना, लार का ज्यादा बनना, बेस्वाद होना, मुंह का ज्यादा सूखना जैसे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर अपनी जांच कराएं. बताए गए सभी लक्षण कैंसर की शुरुआती दशा में दिखाई पड़ते हैं.

बढ़ती तंबाकू की लत

अकसर स्कूलकालेज जाने वाले किशोरों व नौजवानों को शौक में सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते देखा जा सकता है. यह आदत वे अपने से बड़ों से सीखते हैं. सरकार व कोर्ट द्वारा सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है और अगर ऐसा करते हुए किसी को पाया जाता है, तो उस पर जुर्माना भी लगाए जाने का कानून है, लेकिन यह आदेश सिर्फ आदेश बन कर ही रह गया है. हम गुटका खा कर जहांतहां थूक कर साफसुथरी जगहों को भी गंदा कर बैठते हैं, जो कई तरह की संक्रामक बीमारियों की वजह बनता है.

पा सकते हैं छुटकारा

एक सर्वे का आंकड़ा बताता है कि 73 फीसदी लोग तंबाकू खाना छोड़ना चाहते हैं, लेकिन इस का आदी होने की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते हैं. अगर आप में खुद पर पक्का यकीन है, तो आप तंबाकू की बुरी लत से न केवल छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि तंबाकू को छोड़ कर दूसरों के लिए भी रोल मौडल बन सकते हैं. तंबाकू या उस से बनी चीजों का सेवन करने वाला शख्स अगर कुछ देर इन चीजों को न पाए, तो वह अजीब तरह की उलझन यानी तलब का शिकार हो जाता है, क्योंकि उस का शरीर निकोटिन का आदी बन चुका होता है. ऐसे में लोग तंबाकू के द्वारा निकोटिन की मात्रा को ले कर राहत महसूस करते हैं, लेकिन यही राहत आगे चल कर जानलेवा लत भी बन सकती है.

इन सुझावों को अपना कर भी तंबाकू की लत से छुटकारा पाया जा सकता है:

* तंबाकू की लत को छोड़ने के लिए अपने किसी खास के जन्मदिन, शादी की सालगिरह या किसी दूसरे खास दिन को चुनें और आदत छोड़ने के लिए इस दिन को अपने सभी जानने वालों को जरूर बताएं.

* कुछ समय के लिए ऐसी जगह पर जाने से बचें, जहां तंबाकू उपयोग करने वालों की तादाद ज्यादा हो, क्योंकि ये लोग आप को फिर से तंबाकू के सेवन के लिए उकसा सकते हैं.

* तंबाकू, सिगरेट, माचिस, लाइटर, गुटका, पीकदान जैसी चीजों को घर से बाहर फेंक दें.

* तंबाकू या उस से बनी चीजों के उपयोग के लिए जो पैसा आप द्वारा खर्च किया जा रहा था, उस पैसे को बचा कर अपने किसी खास के लिए उपहार खरीदें. इस से आप को अलग तरह की खुशी मिलेगी.

* तंबाकू की तलब होने के बाद मुंह का जायका सुधारने के लिए दिन में 2 से 3 बार ब्रश करें. माउथवाश से कुल्ला कर के भी तलब को कम कर सकते हैं.

* हमेशा ऐसे लोगों के साथ बैठें, जो तंबाकू या सिगरेट का सेवन नहीं करते हैं और उन से इस बात की चर्चा करते रहें कि वे किस तरह से इन बुरी आदतों से बचे रहे हैं.

* बीड़ीसिगरेट पीने की तलब महसूस होने पर आप अपनेआप को किसी काम में बिजी करना न भूलें. पेंटिंग, फोटोग्राफी, लेखन जैसे शौक पाल कर तंबाकू की लत से छुटकारा पा सकते हैं.

इस मुद्दे पर डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि अकसर उन के पास ऐसे मरीज आते रहते हैं, जो किसी न किसी वजह से नशे का शिकार होते हैं और वे अपने नशे को छोड़ना चाहते हैं. लेकिन नशे के छोड़ने की वजह से उन को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है, जिस में तंबाकू या सिगरेट छोड़ने के बाद लोगों में दिन में नींद आने की शिकायत बढ़ जाती है और रात को नींद कम आती है. सिगरेट छोड़ने वाले को मीठा व तेल वाला भोजन करने की ज्यादा इच्छा होती है. इस के अलावा मुंह सूखने का एहसास होना, गले, मसूढ़ों व जीभ में दर्द होना, कब्ज, डायरिया या जी मिचलाने जैसी समस्या भी देखने को मिलती है. इस की वजह से वह मनोवैज्ञानिक रूप से मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है. ऐसी हालत में तंबाकू की लत के शिकार लोगों को एकदम से इसे छोड़ने की सलाह दी जाती है, क्योंकि धीरेधीरे छोड़ने वाले अकसर फिर से तंबाकू की लत का शिकार होते पाए गए हैं. तंबाकू छोड़ने के बाद अकसर कोई शख्स हताशा का शिकार हो जाता है. इस हालत में उसे चाहिए कि वह समयसमय पर किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेना न भूले.

सुप्रीम कोर्ट ने इस एजेंसियों को गलत ठहराने से किया इंकार

यह खेद की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सीबीआई, ईडी, एनआईस जैसी जांच एजेंसियों  को विपक्षी दलों को डराने की कोशिशों के गलत ठहराने से इंकार कर दिया. एक याचिका में विपक्षी दलों ने आंकड़ों से स्पष्ट किया कि 2014 से इन जांच एजेंसियों का विपक्षी दलों के खिलाफ जम कर इस्तेमाल हो रहा है और अनसुलझे मामले भरे पड़े हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे सरकार और जांच एजेंसियों की स्वायमता का मामला कह कर टाल दिया.

विपक्षी दलों की याचिका में स्पष्ट किया गया था कि ईडी एनफोर्समैंट डायरेक्टोरेट के 121 मामलों और सीबीआई केंद्रीय जांच ब्यूरो के 124 मामलों में से 95′ विपक्षी दलों के खिलाफ ही हैं और कुछ में ही अंतिम फैसला हो पाया है पर कोर्ट ने इसे सामान्य बात कह कर ठुकरा दिया.

नेता दूध के धुले हैं, यह कोर्ट बात नहीं मानता पर भाजपा के नेता गाय के दूध, गौमूत्र और गंगा जल तीनों से धुले और पवित्र है यह भी कोई नहीं मान सकता. यह अनायास ही नहीं है कि ऐन चुनावों से पहले ये एजेंसियां उन राज्यों में विपक्षी दलों के खिलाफ सक्रिय हो जाती हैं जो भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरा बन सकती हैं. दिल्ली में नगर निगम के चुनावों से पहले और तुरंत बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी क्या साबित करती है. ममता बैनर्जी को परेशान करने के लिए ठीक चुनावों से पहले वहां कई नेताओं को चपेटे में लिया गया.

राजनीति में जम कर बेइमानी हो रही है, इस से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि हर राजनेता बहुत थोड़े से वेतन के बावजूद शानदार तरीके से रहना शुरू कर देता है. चुनावों पर भारी खर्च होता है जो कहीं से तो आता है. पर यह काम सिर्फ विपक्षी दल कर रहे होते तो वे ही जीतते और भारतीय जनता पार्टी पैसे की कमी के कारण हारती नजर आती. सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर आंख क्यों मूंदी यह अस्पष्ट है.

राजनीति में बेइमानी हटाना असंभव है और अब जब एक शासकीय फैसले से लोग 5-7 लाख नहीं 500-700 करोड़ क्या सकते हैं, यह सोचना भी नामुमकिन है कि जिस के हाथ में शक्ति है वह अपना हिस्सा नहीं रखेगा. पर यह काम सिर्फ एक विपक्षी पाॢटयां कर रही हो और भारतीय जनता पार्टी जनता के वोटों और मन से दिए गए चंदे से चल रही हो, यह मानना भी कठिन है.

जांच एजेंसियों को अपनी साख बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र उन्हीं पर निर्भर है. उन्हीं की रिपोर्टें संसद व बाहर राजनीतिक आरोपों का आधार बनती है. जिनके पास सत्ता होती है आमतौर पर वे पैसा नहीं चाहते क्योंकि जो पैसे वाले होते हैं वे तो खुद अपना पैसा लगा कर सत्ता में आने के लिए घटपटाते हैं क्योंकि उस की आनबान पैसे से कहीं बड़ी होती है. सत्ता में बैठा हर राजनीतिबाज पैसे का लालची है. यह समझना भी गलत है पर हाल की घटनाएं कुछ ऐसी सी छवि ही प्रकट करती हैं.

हाल तो यह हो गया है कि अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति डोनैल्ड ट्रंप की गिरफ्तारी के बाद बीसियों कार्टून भारत में बने जिन में ट्रंप को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की बात कही गई ताकि वह आरोपों से छुटकारा पा सके. इस असंभव बात के जरिए कार्टूनिस्टों और चुटकुले बनाने वालों ने इस्तेमाल किया, यही जांच एजेंसियों और सरकारी पार्टी के संबंधों को जनता में छवि स्पष्ट करता है.

YRKKH: अबीर का सच जानते ही अभि होगा इमोशनल, अभिनव की वजह से सच्चाई आईं सामने

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में जबरदस्त ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं, इस सीरियल में दिखाया जा रहा है कि आरोही को अबीर का सच पता चल गया है लेकिन यह सच्चाई अभिमन्यु को कब पता चलेगी इस बात का इंतजार फैंस कर रहे हैं.

अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभिमन्यु को अबीर का सच पता चल जाएगा जिसे जाते ही अभिमन्यु कुछ वक्त के लिए सदमें में चला जाएगा, बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि अबीर अभिमन्यु को एक लेटर लिखता है जिसमें वह लिखता है कि मैं अपने डॉक मैन को देखकर काफी ज्यादा खुश हो जाता हूं. मुझे उनके साथ रहना काफी ज्यादा अच्छा लगता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ♡ Kanhaiya ♡ (@abhiraforevar____)

वहीं दूसरी तरफ ये देखने को मिलेगा कि मंजरी अभिमन्यु को समझाती है कि वह जितना अबीर के लिए कर सकता था उतना उसने किया है, अब आगे उसकी जिम्मेदारी लेकर परेशान न हो.

बीते एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभिनव कहता अभिमन्यु से कि उसे अफसोस है कि वह एक पिता को उसके बेटे से दूर कर रहा है. अभिमन्यु को जैसे यह बात याद आएगी वह तुरंत अस्पताल की तरफ जाएगा जहां जाने के बाद से उसे समझ में आ जाएगा कि अबीर उसका ही बेटा है. उसे यकिन हो जाता है कि अबीर उसका ही बेटा है.

फिर मिलेंगे अनुज और अनुपमा बरखा की चाल होगी नाकाम

सीरियल अनुपमा में इन दिनों काफी ज्यादा उथल-पुथल मची हुई है, जहां एक तरफ अंकुश अनुपमा और अनुज को मिलाने की कोशिश में लगा हुआ है तो वहीं बरखा और माया नहीं चाहती है कि अनुज और अनुपमा दूबारा मिले.

जैसे ही वनराज को इस खबर का पता चलता है वह परेशान हो जाता है और वह तुरंत माया से बात करता है इस बारे में. वहीं दूसरी तरफ अनुपमा समर और डिंपल को अवकात दिखाने में बिल्कुल पीछे नहीं रहती है. हालांकि इस सीरियल के ट्विस्ट और टर्न यहीं खत्म नहीं होते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anupama.love.anuj.maan1)

आगे कहानी में दिखाया जाएगा कि बरखा और माया अनुज और अनुपमा को अलग करने में लगे हुए हैं.बरखा अंकुश से कहती है कि अनुज और अनुपमा को अलग -अलग वक्त बुलाने को कहती है.  बरखा ऑफिस से फोन लगवाकर अनुपमा को शाम 4 बजे और अनुज को सुबह 11 बजे बुलवाती है, जिससे दोनों एक-दूसरे को देख न पाएं और दोनों में नजदीकिया ना आएं.

वहीं बरखा और वनराज काफी ज्यादा परेशान रहते हैं, एक-दूसरे से अनुज अनुपा की मिलन ना हो जाए तो वहीं काव्या वनराज को परेशान करने के लिए कहती है कि अनुज वापस आ रहा है तो यह सुनकर वनराज परेशान हो जाता है.

बुजुर्गों से झुंझलाए नहीं

भारत में बुजर्गों में अवसाद की अवस्था बढ़ती जा रही है और 2030 तक अनुमान लगाया जा रहा है कि देश के 25 प्रतिशत बुजुर्ग अवसाद से पीडि़त होंगे. ऐसे में वे कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. अकसर आप देखते हैं कि परिवार के बड़ेबुजुर्ग उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचते ही कुछ ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं. वे एक ही बात को बारबार पूछते हैं. आप को लगता है कि अभी तो इन्हें इस बाबत बताया था और अब फिर टोकना शुरू कर दिया. उन के बारबार पूछनेटोकने पर आप को लगता है कि वे ? बोल रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. यह उन की आदत नहीं बल्कि उन की कमजोरी होती है. इसे अल्जाइमर कहते हैं. अल्जाइमर की तरह ही वैस्कुलर डिमैंशिया में भी बुर्जुग की यही स्थिति होती है. 60 साल के बाद इन दोनों दोषों का असर दिखने लगता है.

80 साल के बाद बुजुर्गों पर इन का असर कुछ ज्यादा ही हो जाता है. सो, उन के बारबार पूछने की स्थिति में आप को ?ां?ालाने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें आहिस्ताआहिस्ता सम?ाने व उन पर देखरेख बढ़ाने की जरूरत है. वास्तविकता यह है कि 55 साल की उम्र में शारीरिक तौर पर कमजोर होने से अधिकतर उम्रदराज लोग खुद को असहाय व दूसरों पर आश्रित होने के बो?ा से परेशान होने लगते हैं. इस स्थिति में उन के बच्चों को चाहिए कि उन पर अतिरिक्त ध्यान रखें. साथ ही, घर में होने वाले निर्णयों में उन्हें शामिल कर उन की अहमियत महसूस होने दें.

भावनात्मक तौर पर उन्हें कभी निराश न होने दें. भारत में बुजुर्गों में अवसाद की अवस्था बढ़ती जा रही है और 2030 तक अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने देश के 25 प्रतिशत बुजुर्ग अवसाद से पीडि़त होंगे. ऐसे में बुजुर्गों को देखभाल की अधिक जरूरत है. वहीं डा. सीमा कहती हैं कि 60 वर्ष के बाद जिस तरह से व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, उस की केयर के लिए तत्परता भी बढ़ा देनी चाहिए. 60 साल की अपेक्षा 80 साल के बुजुर्ग की देखभाल में अधिक समय देना पड़ता है. अल्जाइमर बुजुर्गों को गाड़ी चलाने में दिक्कत आने लगती है. अकसर रास्तों के नाम भूल जाते हैं. यह भी संभव है कि समय बीतने पर धीरेधीरे स्मृति पूरी तरह से चली जाती है.

बुजुर्गों के साथ ऐसी स्थिति आने पर उसे नकारना नहीं चाहिए. इस स्थिति के अधिक होने पर व्यक्ति अल्जाइमर से ग्रसित हो सकता है.

लक्षण : बारबार भूलना, चिड़चिड़ाना, पैसों के लेनदेन को भूल जाना, निराशा आना, बच्चों के भविष्य को ले कर नकारात्मक पहलुओं का मन में बैठना आदि.

कारण : ब्रेन के सैल्स में कैमिकल्स के जमा होने से अल्जाइमर मनोदोष की स्थिति उत्पन्न होती है. उपचार : अल्जाइमर के मरीज के इलाज व देखभाल के लिए कुछ उपाय किए जाने चाहिए :  बुजुर्गों की भावनात्मक तौर पर अतिरिक्त देखभाल की जाए.?  परिवार के सदस्य उन की बातों का खयाल रखें, उन्हें इस बात का कतई एहसास न होने दें कि उन की उपेक्षा की जा रही है.

किसी भी बात के बारे में बारबार पूछने पर सकारात्मक जवाब दें, उन्हें यह महसूस न होने दें कि उन से कुछ छिपाया जा रहा है.  चिकित्सकीय सलाह लें. वैस्कुलर डिमैंशिया 60 साल की उम्र के बाद अधिक तनाव की वजह से कई बार व्यक्ति अवसाद में रहने लगता है और स्थिति के अधिक गंभीर होने पर व्यक्ति वैस्कुलर डिमैंशिया से ग्रसित हो जाता है.

लक्षण : अत्यधिक उदासीन या उत्तेजित होना, सबकुछ खत्म होने की भावना पैदा होना आदि.

कारण : ब्रेन के सैल्स में रक्त के अवरोध होने से यह मानसिक दोष उत्पन्न होता है.

बचाव : चिकित्सकीय परामर्श, काउंसलिंग, बच्चों का सहयोग जरूरी है. अकेला न छोड़ें.

लेखिका- संगीता यादव

बढ़ते वजन से बेजान होते घुटने

ज्यादा वजन वाले व्यक्तियों में औस्टियोआर्थ्राइटिस होने का खतरा अधिक रहता है, उन के घुटनों के जोड़ लगातार घिसते रहते हैं. शरीर का वजन बढ़ने के साथ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. इन में ब्लडप्रैशर, डायबिटीज और कार्डियोवैस्क्युलर संबंधी बीमारियां प्रमुख होती हैं.

लेकिन मोटापे के कारण आप के घुटनों को जो नुकसान पहुंचता है उस बारे में बहुत कम ही चर्चा की जाती है, जबकि यह आप के शरीर का एक महत्त्वपूर्ण जोड़ है जो ताउम्र शरीर का वजन ढोता है तथा शारीरिक गतिविधियों को संभव व आसान बनाता है.

अधिक वजन होने से व्यक्ति में औस्टियोआर्थ्राइटिस के पनपने का खतरा बढ़ जाता है. यह जोड़ों को लगातार कमजोर कर देने वाला ऐसा रोग है जिस के चलते चलनाफिरना भी मुहाल हो जाता है और भयंकर दर्द उभर आता है. जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है, घुटनों सहित रोगी के सभी जोड़ों के कमजोर पड़ते जाने के लक्षण नजर आने लगते हैं.

यदि व्यक्ति का वजन बहुत ही ज्यादा हो जाता है तो जोड़ों की यह दुर्बलता कई गुना बढ़ सकती है. अव्यवस्थित लाइफस्टाइल के कारण बहुत सारे लोगों का वजन बढ़ता जाता है, इस वजह से युवाओं में भी जोड़ों की समस्या और घुटनों का दर्द विकसित होने लगता है.

औस्टियोपोरोसिस जोड़ों को कमजोर कर देने वाला रोग है जिस में मुख्यरूप से कार्टिलेज के क्षतिग्रस्त होने के कारण जोड़ों की स्थिति कमजोर होती जाती है और उस में अकड़न, जाम या दर्द भी उभर सकता है. हड्डी के पास का कार्टिलेज जब घिस जा ता है तो जोड़ की हड्डी अत्यंत भंगुर हो जाती है, इसलिए घुटना प्रत्यारोपित करने की सख्त जरूरत भी उत्पन्न हो सकती है.

वहीं, अत्यधिक वजन वाले व्यक्ति में औस्टियोआर्थ्राइटिस होने की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि इस संबंध का सही कारण स्पष्ट नहीं है लेकिन समझा जाता है कि अधिक वजन से उन के घुटनों के जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है और इसलिए उन के जोड़ों के कमजोर होने की दर भी अधिक रहती है.

गतिहीन जीवनशैली

घुटने के जोड़ को मोबाइल जौइंट भी कहा जाता है जो पैर को जांघ से जोड़ता है और व्यक्ति को चलनेफिरने, दौड़ने, पैर मोड़ने तथा बैठने में मदद करता है. घुटने के जोड़ की हड्डी को कार्टिलेज और लिगामैंट (अस्थिबंध) से मजबूती मिलती है. इस से हड्डी सुरक्षित रहती है तथा हड्डियां आपस में घिसने के कारण उस से होने वाली फ्रिक्शन इंजरी से बची रहती हैं. घुटने की सेहत को बनाए रखने के लिए कार्टिलेज और लिगामैंट को क्षतिग्रस्त होने से बचाना महत्त्वपूर्ण है.

घुटने को जब अत्यधिक वजन सहना पड़ जाता है तो कार्टिलेज में घर्षण और नुकसान अधिक होने लगता है. शरीर का वजन अगर एक किलो भी बढ़ता है तो घुटने पर इस का बोझ कई गुना बढ़ जाता है. शरीर का एक किलो वजन घटने पर किए गए एक शोध में पाया गया कि घुटने के जोड़ पर बोझ या दबाव 4 किलो तक घट गया.

घुटनों का दर्द यानी औस्टियोपोरोसिस के कई कारण हो सकते हैं जिन में हड्डियों के अत्यंत पतले होने और कमजोर पड़ने, चोट लगने, बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों में घिसाव और औस्टियोआर्थ्राइटिस मुख्य हैं.

वैसे तो जोड़ों के दर्द के ज्यादातर मामले ढलती उम्र के डिसऔर्डर से जुड़े होते हैं लेकिन आजकल युवाओं में औस्टियोआर्थ्राइटिस के बढ़ते मामले इस बात का संकेत हैं कि हमारी युवा पीढ़ी ने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को दरकिनार कर दिया है, जैसे व्यायाम, खेलकूद तथा सही खानपान आदि.

दरअसल, कामकाजी युवा गतिहीन लाइफस्टाइल अपनाने लगे हैं. वे अपने कार्यस्थल पर एक ही मुद्रा में, ज्यादातर गलत मुद्रा में, ही घंटों बैठे रहते हैं और शरीर के जोड़ों को गतिशील बनाए रखने का महत्त्व नहीं समझते. अब टहलना या साइकिल चलाना उन के चलन में नहीं रह गया है तथा कार्यस्थल से घर लौटने के बाद काफी वक्त वे टैलीविजन देखने में गुजारते हैं.

परिणामस्वरूप, देश के शहरी हिस्से में मोटापे की समस्या महामारी की तरह फैल रही है. कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियां तथा डायबिटीज जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी कई बीमारियों का कारण बनने वाली मोटापे की समस्या से बहुत सारे लोगों को जोड़ों संबंधी तकलीफ या कम उम्र में ही औस्टियोआर्थ्राइटिस की बीमारी भी उभर आती है.

दरअसल, शरीर का अत्यधिक वजन घुटनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है जो घुटनों के लिए न्यायसंगत नहीं होता. यह ठीक वैसा ही है कि 10 किलो वजन उठाने की क्षमता रखने वाले किसी व्यक्ति पर 20 किलो का वजन लाद दिया जाए. कुछ समय तक तो व्यक्ति इस अतिरिक्त वजन को ढोते रख सकता है और अपनी गतिविधियां जारी रख सकता है लेकिन कुछ समय बाद वह किसी इंजरी या मोच का शिकार हो सकता है या फिर गिर भी सकता है.

जब हम अपने शरीर पर क्षमता से अधिक वजन लाद देते हैं तो यह अत्याचार अन्य रूपों में स्पष्ट दिखने लगता है. सब से पहले घुटनों में दर्द से यह स्पष्ट होता है कि आप अपने घुटनों के साथ उचित बरताव नहीं कर रहे हैं. यदि किसी खास बिंदु से घुटने कमजोर पड़ने लगते हैं तो जौइंट रिप्लेसमैंट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है.

(लेखक अपोलो अस्पताल में और्थोपैडिक स्पैशलिस्ट एवं जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन हैं.)

हल्दी: 100 परेशानियों का 1 इलाज, क्या आपको पता है इसके ये फायदे

हल्दी महज एक मसाला ही नहीं है, बल्कि कई लिहाज से यह खासीयतों का खजाना है. चटक पीले रंग की हल्दी का वजूद किसी आयुर्वेदिक दवा से कम नहीं है. यह हर उम्र के लोगों के लिए कारगर साबित होती है. अब तो हल्दी से कैंसर जैसी बीमारी की दवाएं भी बनने लगी हैं.

  1. हल्दी खासतौर पर शरीर में कफ बनने से होने वाले रोगों को दूर करती है.
  2. यह कुदरती एंटीबायोटिक और एंटीएलर्जिक होती है, इसी वजह से बदन में चोट लगने, फोड़ेफुंसी होने या कीड़ेमकोड़े के काटने पर इस का लेप किया जाता है. हल्दी के लेप से काफी फायदा होता है और दर्द भी दूर होता है. अब तो हल्दी से कैंसर जैसी बीमारी की दवाएं भी बनने लगी हैं.
  3. यदि किसी वजह से खून जम गया हो, तो वह हल्दी के असर से फैल जाता है.
  4. हल्दी का इस्तेमाल सिर के दर्द, मांसपेशियों के दर्द व जोड़ों के दर्द में भी किया जाता है.
  5. शरीर में मोच आने पर भी हल्दी के लेप से राहत मिलती है.
  6. दर्द, खांसीजुकाम व सूजन वगैरह होने पर कुनकुने दूध में हल्दी मिला कर पीने से काफी फायदा होता है.
  7. चोट लगने पर भी हल्दी वाला दूध राहत देता है. हल्दी शरीर की ऊर्जा बढ़ाती है, जिस से शरीर को रोगों का डट कर मुकाबला करने की ताकत मिलती है.
  8. हल्दी पाचन क्रिया को बेहतर बनाती है और कोलेस्ट्राल की मात्रा घटाती है.
  9. यह शरीर में खून का संचार भी बढ़ाती है.
  10. इस के इस्तेमाल से दिमाग व तंत्रिकातंत्र से जुड़े तमाम रोगों को ठीक किया जा सकता है.
  11. हल्दी में पाया जाने वाला सरक्यूमिन बदहजमी (डिस्पेप्सिया) के मरीजों को राहत पहुंचाता है.
  12. यह पित्तनाशक होती है.
  13. इस से खून और त्वचा की तमाम तकलीफों में काफी फायदा पहुंचता है.
  14. इस से खून की कमी भी दूर होती है.
  15. इस के अलावा यह शरीर की हड्डियों को भी मजबूत करती है. इस के इस्तेमाल से आस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की बीमारी) होने का खतरा कम हो जाता है.
  16. वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि हल्दी दिल की तकलीफों को भी ठीक करती है, इसीलिए इसे बेहद कारगर माना जाता है.
  17. अगर शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो, तो आधा चम्मच हल्दी के पाउडर को कुनकुने दूध के साथ दिन में 2 दफे फांकें. लगातार इस खुराक को लेने से हीमोग्लोबिन में काफी इजाफा होता है.
  18. आधे गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी का पाउडर डाल कर उबालने के बाद ठंडा कर के पीने से शरीर की तमाम तकलीफों से राहत मिलती है.

दांत दर्द में असरदार

  1. अगर मसूढ़ों में दर्द या कोई और तकलीफ हो तो आधा चम्मच हल्दी के पाउडर में चुटकीभर नमक व थोड़ा सा सरसों का तेल मिला कर सोने से पहले मसूढ़ों पर मलें और निकलने वाली लार को थूकते रहें. आधा घंटे बाद कुनकुने पानी से कुल्ला करें. ऐसा नियमित रूप से करने से मसूढ़ों और दांतों को काफी फायदा होता है.
  2. अगर दांत हिल रहे हों, तो थोड़े से हल्दी के पाउडर में बराबर मात्रा में खाने वाला सोडा मिला कर उस से रोजाना 2 बार मंजन करने से बहुत आराम मिलता है. कुछ ही दिनों में दांत काफी मजबूत हो जाते हैं.

सर्दी में आती है ऐसे काम

  1. अगर शरीर को सर्दी बरदाश्त न होती हो या एलर्जी हो, तो 250 ग्राम हल्दी के पाउडर को 4 चम्मच देशी घी के साथ तवे पर भून लें. इस मिश्रण की थोड़ी सी मात्रा को 1 चम्मच शहद के साथ 5 महीने तक लगातार रोजाना 2 बार खाएं. ऐसा करने से एलर्जी, जुकामखांसी व सांस के रोगों में बहुत आराम मिलता है.
  2. अगर दमे की तकलीफ हो, तो 2 चम्मच हल्दी के पाउडर को आधा चम्मच देशी घी के साथ तवे पर डाल कर धुआं निकलने तक भूनें और इस धुएं को नाक से खींचें. ऐसा करने से दमे के दौरे में आराम पहुंचेगा और बलगम भी बाहर निकलेगा.
  3. अगर बुखार की वजह से बदन में दर्द हो, तो 1 चम्मच हल्दी के पाउडर को 1 गिलास कुनकुने दूध के साथ फांक लें. इस से काफी जल्दी राहत मिलती है.

बदन दर्द और मोच में फायदेमंद

  1. बदन में अंदरूनी चोट लगने पर 2 गिलास पानी में 1 चम्मच हल्दी का पाउडर व 1 चम्मच नमक डाल कर उबालें. जब पानी सेंकने लायक ठंडा हो जाए तो उस में साफ कपड़ा भिगो कर चोट वाली जगह की सिंकाई करें. ऐसा करने से काफी आराम मिलेगा.
  2. अगर बदन में कहीं मोच आ गई हो, तो 1 चम्मच हल्दी के पाउडर में 1 चम्मच शहद व आधा चम्मच चूना मिलाएं और इस मिश्रण का मोटा लेप मोच वाली जगह पर करें और ऊपर से हलकी सी रुई की परत बिछा दें.
  3. लेप करने के साथसाथ 1 गिलास दूध में 1 चम्मच हल्दी का पाउडर मिला कर 3 दिनों तक रोजाना 2 बार पिएं. इस इलाज से मोच के दर्द व सूजन में बहुत आराम मिलेगा. शहद न होने पर सिर्फ हल्दीचूना का लेप भी काफी असरदार साबित होता है.
  4. इस के अलावा सरसों के तेल में हल्दी का पाउडर मिला कर मोच वाली जगह पर हलके हाथों से मलने पर भी काफी आराम मिलता है.
  5. शरीर में कहीं भी दर्द हो, तो 1 चम्मच हल्दी के पाउडर में 1 चम्मच अदरक का रस मिला कर गरम करें और दर्द वाली जगह पर दिन में 2 दफे लेप करें. लेप करने के 1 घंटे बाद दर्द वाली जगह की सिंकाई करें. इस इलाज से दर्द में बहुत राहत मिलती है.

खांसी-जुकाम को करती है ठीक

  1. -अगर खांसी की वजह से गले व सीने में तकलीफ हो रही हो, तो पानी में थोड़ा सा हल्दी का पाउडर व नमक मिला कर उबाल लें और घूंटघूंट कर के पीएं. इस से बहुत आराम मिलेगा.
  2. -यदि जुकाम की वजह से गले में दर्द हो या टांसिल की तकलीफ हो, तो हल्दी का पाउडर व नमक डाल कर उबाले हुए पानी से गरारा करें. ऐसा करने से काफी राहत मिलेगी और टांसिल भी जल्दी ठीक हो जाएंगे.
  3. -गले के बाहर जहां टांसिल की सूजन हो, वहां पर हल्दी के पाउडर को पानी में मिला कर लेप करें.
  4. -इस के अलावा आधा चम्मच शहद में 1 चौथाई भाग हल्दी का पाउडर मिला कर दिन में 3 बार चाटें, इस से कफ, सर्दी व गले की तकलीफ में आराम मिलेगा.
  5. -जुकाम के साथ खांसी होने पर 1 कप गरम दूध या पानी में 1 चम्मच हल्दी का पाउडर उबाल कर पीएं. इस से जुकाम, खांसी व गले की खराश में बहुत फायदा होगा. जुकाम के इलाज में हल्दी कई तरह से कारगर साबित होती है.
  6. -आधा चम्मच हल्दी के पाउडर में 5 कालीमिर्च पीस कर मिलाएं और उसे गरम दूध या गरम पानी में घोल कर पिएं, इस से जुकाम जल्दी ठीक हो जाता है. इस इलाज में यह ध्यान रखना जरूरी है कि काली मिर्च व हल्दी का घोल पीने के बाद 1 घंटे तक पानी नहीं पीना है.
  7. -सर्दी की वजह से जुकाम होने पर 1 चम्मच हल्दी का पाउडर 1 कप गरम दूध में उबाल कर पिएं. इस में स्वाद के लिए थोड़ा गुड़ या चीनी मिला सकते हैं. इसे लगातार 4 दिनों तक पीने से जुकाम से जल्दी छुटकारा मिल जाएगा.
  8. -हल्दी का पाउडर व सोंठ का पाउडर बराबर मात्रा में मिला कर एक डब्बे में रख लें. इस मिश्रण की 1 चम्मच मात्रा को कुनकुने दूध या पानी के साथ फांकने से भी जुकाम ठीक हो जाता है.

गरमी में भी काम आती है हल्दी

गरमी के मौसम में धूप में चलने के बाद अंदर आते ही ठंडा पानी पीने से बदन की सर्दी और गरमी का संतुलन बिगड़ जाता है, नतीजतन जुकाम हो जाता है और गला खराब हो जाता है. इसी तरह  पसीनापसीना हो कर अंदर आने के तुरंत बाद ठंडा पानी पीने या नहाने से भी जुकाम व बुखार हो जाता है.

ऐसी हालत में 2 चम्मच हल्दी के पाउडर व 2 चम्मच अजवायन को 2 कप पानी में डाल कर उबालें. यह मिश्रण खौल कर आधा हो जाने के बाद उस में स्वाद के मुताबिक थोड़ा सा गुड़ मिलाएं और आंच से उतार कर ठंडा करें. जब यह पीने लायक गरम रहे तब इसे छान कर पीएं. यह पेय रोजाना सुबहशाम पीने से जुकामबुखार ठीक हो जाएगा.

त्वचा रोगों में भी फायदेमंद

  1. -शरीर में कहीं पर भी दाग, खुजली या कोई चर्म रोग हो तो 1 चम्मच हल्दी के पाउडर में आधा चम्मच पीसी हुई मिश्री मिला कर सुबहशाम पानी के साथ फांकें.
  2. -इस के अलावा 1 चम्मच नारियल के तेल में चौथाई चम्मच हल्दी का पाउडर मिला कर रोगी की त्वचा पर लगाएं. इस से चर्म रोग में बहुत आराम मिलेगा.
  3. -इसी तरह कीलमुहांसे या फोड़ेफुंसी होने पर शुरुआत में ही हल्दी का पाउडर व लौंग पीस कर बनाया गया मिश्रण लगाने से काफी फायदा होता है.

3 तरह की हल्दी का इस्तेमाल…

-आमतौर पर साबुत सूखी हल्दी को सिलबट्टे से पीस कर बतौर मसाला इस्तेमाल किया जाता है या बाजार से तैयार हल्दी पाउडर खरीद कर इस्तेमाल किया जाता है.

-इसी तरह कच्ची हल्दी को भी अलग तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के लिए कच्ची हल्दी को धो कर कद्दूकस कर लें व थाली या ट्रे में रख कर धूप में सुखाएं. अच्छी तरह सूखने के बाद इसे एयरटाइट डब्बे में रखें. इसे सब्जी या दूध में इसी रूप में या मिक्सी से पीस कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

-आजकल आरगैनिक हल्दी की मांग बढ़ गई है. ऐसी हल्दी को बगैर किसी फर्टीलाइजर, रसायन, इंसेक्टीसाइड व पेस्टीसाइड के इस्तेमाल के उगाया जाता है. ऐसी हल्दी और भी ज्यादा कारगर व फायदेमंद साबित होती है.

अतीक अहमद हत्याकांड: हिरासत में हत्या,कानून पर हमला

उत्तर प्रदेश की जनता इस बात से खुश थी कि योगी राज में अपराधियों के खिलाफ कड़ाई से काम हो रहा है. आज के दौर में जनता को सरकार से केवल इतनी उम्मीद रह गई है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे. उसका घर, परिवार और बिजनैस भी सुरक्षित रहे. कोई दंबग, बाहुबली उसको परेशान न करे. उसे यह पता है कि एनकाउंटर और बुलडोजर न्यायसंगत नहीं है, इसके बाद भी वह इनका समर्थन कर रही थी क्योंकि इससे अपराध को रोकने और अपराधियों को डराने में मदद मिल रही थी. उसका यह भ्रम 24 फरवरी,2023 को टूट गया जब प्रयागराज में उमेश पाल और उसके साथ 2 सिपाहियों की हत्या शाम को 5 बजे भीड़भाड़ वाले इलाके में हो जाती है. वैसे तो प्रदेशभर में अपराध की ऐसी घटनाएं अनेक हैं पर यह मसला हाई प्रोफाइल था, तो ज्यादा तूल पकड़ गया.

योगी सरकार की कानून व्यवस्था का प्रचारप्रसार बहुत था. प्रयागराज की घटना ने इसकी पोल खोल कर रख दी. सड़क से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदन तक योगी राज पर सवाल उठाने शुरू हो गए. तर्क को दबाने के लिए क्रोध का सहारा लेना पौराणिक कहानियों में बहुत दिखाया गया है. विधानसभा सदन में जब विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने प्रयागराज की घटना पर योगी सरकार को आईना दिखाया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऋषि दुर्वासा की तरह क्रोधित होकर बोले, ‘उस माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’.

बहस तार्किक न हो कर एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप पर चली गई. असल में योगी सरकार में जिस बात को कानून व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा था वह संविधान को दरकिनार करके काम कर रही थी. विधानसभा में ऋषि दुर्वासा जैसे क्रोधित होकर योगी आदित्यनाथ ने जो ऐलान किया, उसे पूरा करने में पुलिस जुट गई. इसमें लक्ष्मण की तरह से अतीक अहमद और उसका परिवार तबाह हो गया.

ऋषि दुर्वासा लक्ष्मण पर जिस तरह से क्रोधित हुए, उसने लक्ष्मण को मरने पर मजबूर किया था. बात रामायणकाल की है. राम लंका विजय करके अयोध्या लौटे थे. वे अयोध्या के राजा बन गए थे. एक दिन यम कोई महत्त्वपूर्ण चर्चा करने राम के पास आते हैं. अपनी बात कहने से पहले वे चाहते हैं कि उनकी बातचीत के बीच कोई न आए और बात गोपनीय रहे, उसे कोई सुने नहीं.

यम ने अपनी बातचीत शुरू करने से पहले से राजा रामसे कहा, ‘आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हो. मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्त्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा.’ राजा राम यम को वचन दे देते हैं.

राम ने यह बात लक्ष्मण को समझाई और लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त करते कहा कि जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वे किसी को भी अंदर न आने दें, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा. लक्ष्मण राजा राम की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो गए. लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय ही बीता था कि वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है. दुर्वासा ने लक्ष्मण से राम के मिलने की बात करते कहा कि उनके आगमन की सूचना राम को दे दो.

तब लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना करते कहा कि आप प्रतीक्षा कीजिए, राजा राम किसी से महत्त्वपूर्ण बात कर रहे हैं. अगर हमारे लायक कोई सेवा हो तो बताएं, हम आपकी सेवा में हाजिर हैं. लक्षमण की बात सही थी,वे अपने धर्म और कर्तव्य का पालन कर रहे थे. यह बात दुर्वासा को समझ नहीं आई.वे क्रोधित हो गए और कहा, ‘लक्ष्मण, अगर तुमने अभी मेरी बात नहीं मानी तो मैं अभी पूरी अयोध्या को श्राप देकर भस्म कर दूंगा.’

लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा के क्रोध और उनकी ताकत को जानते थे. वे समझ गए कि उनके सामने दो ही रास्ते हैं. एक वह जिसमें राजा राम की आज्ञा को न मान कर उनको ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दें. दूसरा रास्ता यह कि अयोध्या को ऋषि दुर्वासा के कोप का शिकार बनने दें.

लक्ष्मण ने यह फैसला लिया कि वह स्वयं का बलिदान देकर राजा राम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना देने जाएंगे. इससे अयोध्या के लोग ऋषि के श्राप से बच सकेंगे. वे राम के पास गए और ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी. राम ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्त्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आवभगत की. अब राजा राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था.

वे समझ नहीं पा रहे थे किवे अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दें, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था. राजसभा में जब यह बात आई तो गुरुदेव और मंत्रियों ने कहा कि ‘किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है.’ तब अपने वचन का पालन करने के लिए राम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया. लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा,‘आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है कि मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं.’

जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना कि राम ने उनका त्याग कर दिया है,उन्होंने मृत्यु को गले लगाने के लिए जलसमाधि ले ली. लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा के क्रोध का शिकार हो गए. पौराणिक व्यवस्थाओं में न्याय इसी तरह से ही किया जाता रहा है, जिसमें ऋषि जराजरा सी बात पर श्राप देते थे. रामायण ही नहीं, महाभारत में भी ऐसे तमाम प्रसंग हैं. अश्वथामा ने महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के परिवारों को रात में मार डाला. गौतम ऋषि ने पत्नी अहल्या को पत्थर का बना दिया. लक्ष्मण ने सूर्पणखां की नाक काट ली. क्रोध में लिए गए फैसलों में तर्क और विवेक के लिए जगह नहीं रह जाती है.

ऋषि दुर्वासा की तरह क्रोध में फैसले लेने का काम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी किया. योगी आदित्यनाथ की ताकत उनकी पुलिस है. जो आदेश पाते ही बुलडोजर और बंदूक लेकर अपराधी को मिटटी में मिलाने के लिए चल पड़ती है.

मार्च 2017 से अप्रैल 2023 तक 183 अपराधियों का एनकाउंटर उत्तर प्रदेश की पुलिस कर चुकी है. योगी राज में एनकांउटर और बुलडोजर त्वरित न्याय का साधन बनकर उभरे. यह उस कहावत की तरह हो गए कि ‘खाता न बही जो पुलिस कहे वही सही’. केवल अपराधी ही नहीं, धरनाप्रदर्शन और सरकार की आलोचना करने वालों को जेल में डालने, उनके घर गिराने जैसे काम करके मिटटी में मिलाने का काम बिना किसी रोकटोक के चलता रहा. बुलडोजर राज ने प्रदेश में कानून और न्याय व्यवस्था को गोमती में बहा दिया.

योगी राज के एनकांउटर की थ्योरी काफीकुछ पौराणिक काल में भी मिलती है. मरने वाले गलत थे, यह कह कर उनके एनकाउंटर को सही नहीं माना जा सकता. पौराणिक काल में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनमें गलत लोगों को गलत तरह से मारा गया. उसको धर्मसम्मत भी कह दिया गया. इनमें अर्जुन द्वारा कर्ण को मारना युद्ध के नियमों के खिलाफथा क्योंकि कर्ण के रथका पहिया जमीन में धंस गया था. श्रीकृष्ण ने कहा कि,‘यहां धर्म महत्त्वपूर्ण है, नियम नहीं.’

इसी तरह से रामायण में राजा बालि को मारने के लिए उसके भाई सुग्रीव को आगे करके धोखा देकर राम द्वारापीछे से मारा गया. इसी तरह से महाभारत में भीष्म, द्रोण, दुर्योधन को भी मारने का तरीका गलत था. मरने वालों को गलत साबित करके गलत तरह से मारने को सही कहा गया.

कानून यह कहता है कि सिद्ध हुए बिना अपराध करने वाला अपराधी नहीं माना जाएगा तो एनकाउटंर जैसा जंगलराज न चलाया जाए. अपराधी को सजा देने के लिए कठघरे तक पहुंचने का काम कानून और संविधान के हिसाब से किया जाए. अगर आरोपियों का एनकांउटर न किया जाए बल्कि उनको पकड़ कर उनसे राज पूछे जाते तो अपराध कम किए जा सकते हैं. एनकांउटर से दहशत फैला कर डराने का काम हो सकता है, अपराध को खत्म नहीं किया जा सकता.

कानून और संविधान का शासन नहीं

प्रयागराज की घटना इसका जीताजागता प्रमाण है. 24 फरवरी,2023 को प्रयागराज में उमेश पाल और 2 सिपाहियों संदीप और राघवेंद्र की हत्या बम और गोली मार कर कर दी गई. उमेश पाल 2005में हुए विधायक राजूपाल हत्याकांड में सरकारी गवाह था. इस हत्याकांड में बाहुबली अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद के खिलाफ आरोप लगा था. वे जेल में थे. अतीक अहमद यह चाहता था कि उमेश पाल इस मुकदमे की गवाही से हट जाए. इसके लिए एक बार उसने उमेश का अपरहण करके धमकी भी दी थी. उमेश को सरकार ने 2 सिपाहियों की सुरक्षा भी दी थी.

सुरक्षा के बाद भी शाम करीब 5 बजे विजय चौधरी, अरबाज, असद, गुलाम और गुडडू मुसलिम ने उमेश पाल पर हमला कर दिया. उमेश पाल और उसके 2 साथी सिपाही संदीप और राघवेंद्र को मार दिया गया. इस घटना पर जब मुख्यमंत्री योगी से सवाल हुआ तो वे क्रोधित हो गए. उनके क्रोध को देख उनकी पुलिस बुलडोजर और बंदूक लेकर चल पड़ी. जनता में एक बड़ा वर्ग इस तरह के तुरंत न्याय की बात से खुश हो जाता है. ऐेसे वर्ग को खुश करने के लिए पुलिस उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी अरबाज का एनकाउंटर कर देती है. पहले एनकाउंटर से ही पुलिस की वाहवाही होने लगती है. दो दिनों बाद पुलिस इस मामले के एक और आरोपी विजय चैधरी को मार देती है.

तुरंत न्याय मांगने वालों की रगरग में बुलडोजरी और एनकांउटरी न्याय घुस गया है. दो एनकाउंटर होने के बाद लोग यह मानने लगे कि जिस तरह से कानपुर के विकास दुबे को लेकर आ रही कार पलट गई और वह मारा गया उसी तरह से अतीक अहमद के साथ भी वही होगा. अतीक अहमद गुजरात की साबरमती जेल से 1,400 किलोमीटर दूर प्रयागराज मुकदमे की सुनवाई के लिए पुलिस द्वारा लाया जाने लगा. जनता मान रही थी कि अब नहीं तो तब पुलिस एनकाउंटर जरूर करेगी.

अतीक जब भी कचहरी जाता तो कानून के रक्षक वकील उसको फांसी देने के नारे लगाते और उस पर बोतल, जूता चप्पल फेंकते. कानून के जानने वाले ही जब गैरकानूनी काम करने लगे तो आम आदमी की सोच को कैसे बदला जा सकता है. इस तरह की घटनाओं से न्याय के प्रति आदर लोगों में खत्म होने लगता है. न्याय के प्रति आदर अपनेआप में पानी पर बहती कागज की नाव जैसा होता है जिसकी रक्षा शासन को करनी होती है. यहां शासन खुद बता रहा है कि उसे न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है.वह तो न्याय जैसी मजबूत नाव को डुबो चुका है. जब कचहरी में अतीक पर हमला हुआ तो भी गंभीरता से नहीं लिया गया.

इसका परिणाम यह हुआ कि 17 पुलिसकर्मियों की हिरासत के बीच 3 बदमाशों ने केवल 12सैकंड के अंदर अतीक और अशरफ की हत्या कर दी. इस समय पुलिस दोनों की डाक्टरी कराने प्रयागराज के सरकारी अस्पताल लाई थी. अस्पताल के अंदर पुलिस की मौजूदगी में जिस तरह से यह कांड हुआ उसे देखकर लगने लगा कि देश अब अफ्रीका, सूडान या अफगानिस्तान बनता जा रहा है. जहां गन होल्डिंग रफियन राज करते हैं, उनकी यूनिफौर्म चाहे खाकी हो, गहरी हरी या भगवा कुछ भी हो. हमारे देश में भी संविधान के अनुसार न्याय की व्यवस्था अब खत्म हो गई है. राजा-पंडित-कोतवाल राज चालू है जिसमें जेल, गोली और बुलडोजर की चलती है, संवैधानिक व्यवस्था की नहीं.

सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि हत्या करने वाले 3 बदमाशों में से एक लवलेश तिवारी ने गोली मारने के बाद धार्मिक नारा लगाकर आत्मसर्मपण किया. इसके संबंध कट्टरवादी धार्मिक संगठन से बताए जाते हैं (देखिएबौक्स नबर-2).सभी धर्म इस एकतरफा हिंसा का समर्थन करते हैं. ईराक में अमेरिकी सैनिकों ने क्रूर तरीके से बंदी सैनिकों को मारा था. फर्क यह है कि उन सभी सैनिकों को सजा हुई. उनका समर्थन किसी वर्ग ने नहीं किया. भारत में ऐसे मामलों में राजनीति शुरू हो जाती है. उनका महिमामंडन होने लगता है. एक बड़ा वर्ग उनके पक्ष में खुलकर खड़ा हो जाता है.

आरोपों में घिरी योगी सरकार

समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा, ‘“अतीक 89, 91, 93 में निर्दलीय विधायक बने, फूलपुर से सपा से सांसद रहे. तो क्या कोई गुंडाबदमाश इतने चुनाव जीत सकता है? मैं अतीक का बचाव नहीं कर रहा लेकिन भारत का संविधान किसी को पकड़ कर मारने की इजाजत नहीं देता.’

“अतीक और उस के भाई की हत्या पूरी तरह से सुनियोजित तरीके से की गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से कहा था कि मिट्टी में मिला देंगे, यह एक तरह से मुख्यमंत्री का आदेश-फरमान था. जो कुछ हुआ है,वह उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है.”

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा,“ ‘यूपी में कानून व्यवस्था कैसी है? पहले प्रयागराज में जो कुछ हुआ, सभी ने देखा. अतीक ने बारबार कहा कि वह यूपी जाएगा तो उसका कत्ल हो जाएगा. लेकिन उसकी नहीं सुनी गई.’”

ओवैसी ने आरोप लगाते हुए कहा, “मैंने शुरू से कहा था, उत्तर प्रदेश में रूल औफ लौ के तहत नहीं, रूल औफ गन के तहत सरकार चल रही है. भारत के संविधान पर लोगों का यकीन इससे कम होगा. इसकी निंदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. अतीक और अशरफ के मर्डर से भारत का हर नागरिक, जो संविधान पर कानून पर विश्वास करता है, डरा हुआ है. गोली मारकर धार्मिक नारे लगाने वाले को आतंकवादी नहीं कहेंगे? यह एक ‘कोल्ड ब्लडेड’ हत्या है. यह घटना कानूनव्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है. आप गोली मारकर धार्मिक नारा क्यों लगा रहे हैं?”

अतीक के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर का जिक्र करते हुए एआईएमआईएम चीफ ने कहा, ‘“जो लोग एनकाउंटर का जश्न मना रहे थे, वे शर्म से डूब मरें. किसी को मारकर रूल औफ लौ को कमजोर किया जा रहा है. ये लोग संविधान को कमजोर कर रहे हैं. यह सारी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर आती है, क्योंकिउन्होंने सदन में खड़े होकर बोला था कि मिट्टी में मिला देंगे. मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा दें.’”

कांग्रेस नेता प्रियंका गाधी ने कहा, ‘“हमारे देश का कानून संविधान में लिखा गया है, कि कानून सर्वोपरि है. अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. मगर देश के कानून के तहत होनी चाहिए. किसी भी सियासी मकसद से कानून के राज और न्यायिक प्रक्रिया से खिलवाड़ करना या उसका उल्लंघन करना हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. जो भी ऐसा करता हैया ऐसे करने वालों को सरंक्षण देता है,उसे भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उस पर भी सख्ती से कानून लागू होना चाहिए. देश में न्याय व्यवस्था और कानून के राज का इकबाल बुलंद हो, यही हम सबकी कोशिश होनी चाहिए.’

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते कहा,“ ‘बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए योगी सरकार जिम्मेदार है.उत्तर प्रदेश जंगल राज की गिरफ्त में फंस चुका है. यहां कानून और संविधान का शासन नहीं है.’

‘“अपराध की पराकाष्ठा हो गई है, सड़कों पर खुलेआम हत्याएं हो रही हैं. अपराधी बेखौफ हैं. अपराधियों को सत्ताधारी पार्टी का संरक्षण मिला हुआ है. मीडिया के सामने सुनियोजित तरीके से पुलिस के सुरक्षा घेरे के बीच हत्या सरकार की नाकामी है.’

अखिलेश ने सवाल उठाया कि “जब पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच सरेआम गोलीबारी करके किसी की हत्या की जा सकती है तो आम जनता कितनी सुरक्षित है, समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने अराजकता का जो माहौल बनाया है, इससे जनता के बीच भय व्याप्त हो गया है. ऐसा लगता है कि कुछ लोग जानबूझकर ऐसा वातावरण बना रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं बची है. लगता है सरकार की साख ही मिट्टी में मिल गई है.”

अखिलेश यादव कहते हैं, ‘“उत्तर प्रदेश में अब अपराध, अपराधियों, गन और पिस्टल की चर्चा होती है. भाजपा ने नफरत फैलाकर समाज को डरा दिया है. आने वाले समय में भाजपा सरकार को यह भारी पड़ेगा. इन सबके लिए मुख्यमंत्रीजी, ठोको मानसिकता की जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद योजनाबद्ध तरीके से सत्ता संरक्षण में हत्याएं हो रही हैं. पुलिस हिरासत में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं. किसी भी लोकतांत्रिक देश में पुलिस अभिरक्षा में इस तरह हत्या नहीं हुई.’”

अतीक अहमद के नाम पर सियासत में घमासन मचा है. इसकी वजह यह भी है कि अतीक ने कम समय में ही अपराध से सियासत का सफर बड़ी तेजी से पूरा किया. वह 5 बार विधायक और एक बार सांसद रहा है. इस कांड की गूंज विदेशों में भी है. वहां की मीडिया ने लिखा कि भारत में कानून बनाने वाले को बीच सड़क मार दिया गया.

गोली से शुरू, गोली से खत्म

अतीक अहमद का जन्म 12 अगस्त,1962 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था.अतीक का विवाह शाइस्ता परवीन से हुआ था. इनके 5 बेटे अली, उमर अहमद, असद, अहजान और अबान है. इनमें से असद की मौत पुलिस मुठभेड़ में हो चुकी है. अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम सीट से लगातार 5 बार विधानसभा का सदस्य चुना गया. 1999-2003 के बीच अतीक अहमद सोनेलाल पटेल की पार्टी ‘अपना दल’ का अध्यक्ष था. 2004-2009 उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद बना. अतीक अहमद ने अलगअलग मुकदमों के चलते कई चुनाव जेल में रहकर लड़ा.

अतीक पर संगीन धाराओं में 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं. वह जेल के अंदर से ही अपनी आपराधिक गतिविधियों को संभाला करता था. उस पर आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैय्यबा, आईएसआई. और अंडरवर्ल्ड से संबंध होने के भी आरोप लगते रहे हैं. 15 अप्रैल, 2023 कोप्रयागराज में अतीक अहमद को अदालत द्वारा मैडिकल के लिए ले जाते समय अस्पताल के बाहर अतीक और उसके भाई अशरफ अहमद को मीडिया का रूप लेकर आए अपराधी ने सिर में गोली मार की हत्या कर दी. अतीक और उसकेभाई को मारने वाले शूटरों के नाम लवलेश तिवारी, अरुण मौर्य और सनी है.

अतीक अहमद करीब 60 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गया. अतीक अहमद का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था. साल 1979 में इलाहाबाद के चकिया महल्ले में फिरोज अहमद नाम के एक शख्स हुआ करते थे. वे तांगा चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते थे. उसी फिरोज का बेटा अतीक अहमद था. अतीक अहमद 10वीं की परीक्षा में फेल हो गया. उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. वह बदमाशी की तरफ बढ़ने लगा. उस से झगड़े होने लगे. धीरेधीरे उसका नाम अतीक अहमद नाम से कुख्यात होने लगा. 17 साल की उम्र में उसने पहली बार अपराध किया था. उस समय इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के बदमाश का आतंक फैला हुआ था.

साल 1987 के आसपास की बात है. इलाहाबाद शहर में चांद बाबा का दौर था. उसके नाम से लोगों के मन में खौफ पैदा हो जाता था. क्या नेता और क्या कारोबारी, सभी चांद बाबा के नाम से खौफ खाते थे. आलम यह था कि पुलिस और नेता इस चांद बाबा को मारना तो चाहते थे लेकिन हिम्मत किसी में नहीं थी. अब 2 साल का वक्त गुजरा और अतीक अहमद का दबदबा बढ़ने लगा. लेकिन कोई बड़ी पहचान नहीं थी.

राजनीति ने दिया सहारा

अब पहचान बड़ी करनी थी तो धमाका भी बड़ा होना चाहिए था. सो, अतीक ने वही किया. इलाहाबाद के सबसे बड़े डौन यानी बाहुबली का पता लगाया. तब पता चला 1989 में चांद बाबा का बड़ा नाम है. फिर उसी चांद बाबा की अतीक अहमद ने सनसनीखेज तरीके से हत्या कर डाली. अब जिस चांद बाबा से पुलिस और बड़ेबड़े नेता खौफ खाते थे उसी का बेखौफ अंदाज में मर्डर कर दिया गया. कत्ल करने वाला अतीक अहमद अब खुद सबसे बड़ा बाहुबली बन गया.

इसके बाद अतीक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल बदलते गए और बड़ेबड़े नाम उसकी क्राइम लिस्ट में जुड़ते गए. साल 2004 में देश के जानेमाने बीजेपी नेता और मंत्री रह चुके मुरली मनोहर जोशी के सबसे करीबी नेता अशरफ की हत्या. फिर 2005 में नएनए विधायक बने राजूपाल की हत्या कराकर अतीक अहमद यूपी की सियासत से लेकर जुर्म की दुनिया में छा गया.

अतीक अहमद का खौफ लोगों के जेहन में उतर आया. पुलिस भी अतीक के पीछे पड़ गई. लेकिन अतीक तो अतीक था. वह कहां पीछे रहने वाला था. अब एक कदम और आगे बढ़कर वह सियासत की दहलीज पर पहुंचने में जुट गया.

साल 1989 में ही वह राजनीति में उतर कर इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से विधायकी का निर्दलीय चुनाव जीत कर पहली बार विधायक बन गया. अतीक अहमद ने यह चुनाव भारी अंतर से जीता था. कल तक का गैंगस्टर चुनाव जीत कर विधायक बन गया था. इस जीत के बाद अपराध का राजनीतिकरण तेजी से हुआ. बाद में अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी का दामन पकड़ लिया. इसके बाद अपना दल और बसपा से भी संबंध बनाए. अतीक ने लगातार 5 बार विधायकी का चुनाव जीता. 2004 में फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बना.

राजूपाल की हत्या से ने बिगाडा खेल

अतीक अहमद के जीवन में सबसे खतरनाक मोड़ साल 2004 में आया. सांसद बनने के बाद अतीक अहमद ने अपनी विधायकी वाली सीट खाली कर दी. अब इस सीट पर उपचुनाव होने वाला था. अतीक अहमद अपने भाई अशरफ अहमद को यह चुनाव लड़ा कर विधायक बनवाना चाहता था. उसका मन था कि परिवार की सीट परिवार में ही रहे. अतीक को यह यकीन था कि उसकी छोड़ी हुई सीट पर उसका भाई ही चुनाव जीतेगा. अशरफ के मुकाबले बहुजन समाज पार्टी से राजू पाल चुनाव लड़ रहा था. अशरफ चुनाव हार गया. राजू पाल विधायक बन गया. राजू पाल जैसे नए नेता की जीत ने अतीक अहमद को अंदर से हिला दिया. उसने उस राजू पाल को जड़ से ही खत्म करने की ठान ली.

25 जनवरी,2005 को राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव की भी मौत हो गई. इस हत्याकांड में सीधेतौर पर उस समय के सांसद अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ का नाम सामने आया. अब अतीक अहमद का जुर्म की दुनिया में नाम और बढ़ गया. उसका मुकाबला करने की हिम्मत अब कोई नहीं कर सकता था. राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में उसकी पत्नी पूजा पाल ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस हत्याकांड के बाद अतीक अहमद की कानूनी परेशानियां बढ़नेलगीं.

साल 2012 में अतीक अहमद जेल में बंद था. चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी लेकिन उसका खौफ ऐसा था कि हाईकोर्ट के एक या दो नहीं, बल्कि कुल 10 जज फैसला लेने से ही डर गए. इन 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. अब आगे भी कुछ कम खौफ नहीं था. 11वें जज ने सुनवाई तो की लेकिन फैसला अतीक अहमद के पक्ष में ही दिया. यानी, अतीक अहमद को जमानत मिल गई. अब जेल से बाहर आकर अतीक अहमद ने चुनाव तो लड़ा लेकिन उसका दबदबा अब पहले जैसा नहीं रहा था. वह चुनाव हार गया.

अतीक अहमद को हराने वाला कोई और नहीं, वही राजू पाल की पत्नी पूजा पाल थी जिसकी 2005 में हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्रावस्ती से चुनाव लड़ा लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा. उसके मुकाबले भाजपा के नेता ददन मिश्रा चुनाव जीत गए.बाहुबली अतीक अहमद का कद लगातार गिरता गया. इसके बाद भी अपराध की दुनिया से उसका नाता बना रहा. जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, अपहरण, फिरौती के कई मामले सामने आए. अतीक अहमद का सबसे खराब दौर तबशुरू हुआ जब उत्तर प्रदेशमें2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई. भाजपा ने सरकार बनाई. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.

ताबूत में अंतिम कील बना उमेश पाल हत्याकांड

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में मुकदमा चल रहा था. यह पहला मामला था जिसमें अतीक अहमद का बाहुबल काम नहीं आ रहा था. राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह उमेश पाल था. अतीक अहमद उमेश से कह रहा था कि वह अतीक के खिलाफ गवाही न दे. उमेश पाल इसके लिए तैयार नहीं हो रहा था. तब अतीक के लोगों ने उमेश का अपहरण कर लिया. जब उमेश अतीक के चुगंल से बाहर आया तो उसने गवाही देने की ठान ली. मामला सुप्रीम कोर्ट की जानकारी में आया तो उमेश पाल को सरकारी सुरक्षा दी गई. अब उमेश पाल को लग गया था कि अतीक अहमद उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.

जिस समय अतीक अहमद जेल में था, उसके बेटों ने अपराध करने शुरू कर दिए. 2 बेटे अली, उमर अहमद जेल में थे. तीसरा बेटा असद बाहर था. 24 फरवरी,2023 को जब उमेश पाल कोर्ट से अपने घर वापस आ रहा था तो अतीक के बेटे असद अहमद ने अपने साथियों के साथ उमेश पर हमला कर दिया. हमला इतना जोरदार था कि उमेश पाल सहित उसकी सुरक्षा में तैनात दोनों सिपाही भी मारे गए.

इस मसले में विधानसभा के सदन में नेता विपक्ष अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पर खराब कानून व्यवस्था का हवाला देकर आरोप लगाया. जिसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘इस माफिया को मिट्टी में मिला देगें.’ यहां से माफिया अतीक अहमद को मिट्टी में मिलाने का काम शुरू हो गया.

उत्तर प्रदेश की पुलिस ने उमेश पाल हत्याकांड के आरोपियों विजय चौधरी, अरबाज, असद, गुलाम को पुलिस एनकाउटर में मार गिराया. जबकि अतीक और अशरफ की हत्या पुलिस हिरासत में3 बदमाशों लवलेश तिवारी,मोहित और अरुण मौर्य ने कर दी.

अतीक और अशरफ इस बात की शिकायत कर रहे थे कि उनको जान से मारने की धमकी दी जा रही है. इसको लेकर एक पत्र भी बंद लिफाफे में अपने वकील को दिया है. यह पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई को देने के लिए कहा था. अब जब यह पत्र खुलेगा तो घटना से परदा उठेगा. हिरासत में हत्या ने प्रदेश की नहीं, पूरे देश की छवि को खराब करने का काम किया है. विदेशों में भी इसकी आलोचना हो रही है.

मेयर बनतेबनते लेडी डौन बन गई शाइस्ता

बेटे असद के एनकांउटर के बाद अतीक अहमद पूरी तरह से टूट चुका था. लोग यह मान रहे थे कि असद के एनकांउटर के बाद अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन पुलिस के सामने आकर आत्मसमर्पण कर देगी. इसके बाद भी शाइस्ता परवीन सामने नहीं आई. असद के बाद जब अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या 3 बदमाशोंने पुलिस हिरासत में कर दी तब यह पक्का यकीन हो गया था कि शाइस्ता परवीन लोगों के सामने आ जाएगी. शाइस्ता परवीन के हिम्मत की दाद देनी होगी, पति और बेटे की मौत भी उसके इरादों को डिगा नहीं पाई. इतना मजबूत कलेजा किसी औरत का भी हो सकता है,शाइस्ता परवीन ने यह साबित कर दिया.

अतीक अहमद की बीवी शाइस्ता परवीन उमेश पाल हत्याकांड में पुलिस द्वारा नामजद किए जाने के बाद से फरार चल रही है. पुलिस ने शाइस्ता पर 50 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है. वह पुलिस को चकमा दे रही है. पूरी यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार शाइस्ता के पीछे लगी है. इन लाइनों के लिखे जाने तक वह गिरफ्तार नहीं हुई है. शाइस्ता परवीन की शादी 1996 में अतीक के साथ हुई थी. शाइस्ता के पिता पुलिस विभाग में थे. उसके कुछ करीबी रिश्तेदार अब भी पुलिस में है.

अतीक के जेल जाने के बाद से उसकी जगह बीवी शाइस्ता परवीन अपने पति के कारोबार को संभालने लगी. जिस वजह से शाइस्ता परवीन भी लेडी डौन कही जाने लगी. किस शख्स से क्या रंगदारी मांगनी है, उसे कैसे धमकी दिलानी है…ये सबकुछ वही शाइस्ता तय करती है. शाइस्ता पुलिस को चकमा देने में इतनी माहिर इसलिए है क्योंकि वह खुद पुलिस परिवार से ताल्लुक रखती है. उसका बचपन पुलिस थाने और चैकियों में ही रहा है. शाइस्ता परवीन के पिता का नाम फारूख है. वे पुलिस विभाग में सिपाही थे. थाना परिसर में ही उसका परिवार रहा. बचपन में ही उसने देखा था कि कैसे पुलिस किसी का पीछा करती है. कैसे कोई पुलिस को चकमा देता है. उसे ये सबकुछ बचपन में ही देखने को मिल चुका था.

शादी के बाद उसकी जिंदगी में अपराध की नींव पति अतीक अहमद ने रखी. 2 भाई और 4 बहनों में शाइस्ता सबसे बड़ी है. शाइस्ता परवीन का परिवार इलाहाबाद यानी प्रयागराज के दामुपुर गांव में रहा करता था. बचपन में पिता के साथ वह कई थानों में बने सरकारी पुलिस क्वार्टर में रही थी. शाइस्ता का बचपन और उसके बाद के कई साल प्रतापगढ़ में बीतेथे.

शाइस्ता परवीन की पढ़ाईलिखाई प्रयागराज में हुई है. उसने ग्रेजुएशन किया है.12वीं तक की पढ़ाई किदवई गर्ल्स इंटरकालेज से की है. यह कालेज प्रयागराज के हिम्मतगंज में है. पढ़ाई के बाद वह घर का कामकाज ही देखती थी. अतीक के परिवार से उसके परिवार की पहले से जानपहचान थी. शाइस्ता अतीक अहमद से ज्यादा पढ़ीलिखी है. अतीक और शाइस्ता के कुल 5 बच्चे हैं. इनमें से अब असद की मौत हो चुकी है. उसके बेटों के नाम अली, उमर अहमद, असद, अहजान और अबान हैं.

शाइस्ता का नाम पहली बार उमेश पाल हत्याकांड में सामने आया. पुलिस के मुताबिक उमेशपाल की हत्या शाइस्ता ने ही कराई थी. वह साबरमती जेल में अतीक से मिलने गई थी. वहीं पर अतीक और शाइस्ता के बीच उमेशपाल को मारने की चर्चा हुई थी. इसके लिए अतीक ने शाइस्ता से जेल में ही फोन पहुंचाने की बात कही थी. जेल में फोन पहुंचाने के लिए उसने एक पुलिसकर्मी का नाम भी बताया था. जिसके जरिए कुछ दिनों बाद ही शाइस्ता ने अतीक को फोन पहुंचाया था. अब उसी फोन के जरिए अतीक ने सभी शूटर्स से बात की. फिर शूटर्स ने अशरफ से मुलाकात की. इसके बाद फाइनल साजिश तैयार हुई.

शाइस्ता नहीं चाहती थी कि बेटा असद इस घटना में हिस्सा ले. पर अतीक नहीं माना, वह बोला कि ‘असद शेर का बेटा है’. इस पर शाइस्ता तैयार हो गई. उसने असद से कहा था कि वह गाड़ी से बाहर न निकले जिससे उसकी कोई पहचान न कर सके. असद ने यह बात नहीं मानी जिसके कारण असद की फोटो सामने आ गई. वरना असद की पहचान न हो पाती.

शाइस्ता ने जनवरी 2023 में राजनीति में उतरने का फैसला किया. बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर उसको प्रयागराज से मेयर का चुनाव लड़ना था. इसी बीच ओबीसी मसले पर निकाय चुनाव टल गए. समय पर मेयर का चुनाव हो जाता तो शाइस्ता मेयर का चुनाव लड़ती. निकाय चुनाव टल गए और इसी बीच उमेशपाल की हत्या हो गई. वहां से समय का चक्र घूम गया और शाइस्ता मेयर बनतेबनते रह गई. अब बसपा ने शाइस्ता का नाम मेयर प्रत्याशी से हटा दिया है.

अतीक के हत्यारों का बजरंग दल कनैक्शन

अतीक और अशरफ की हत्या करने वाले तीनों युवक 20 से 23 साल उम्र के हैं. युवाउम्र में जब इनको पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देना चाहिए तो ये हत्या करके शोहरत हासिल करना चाहते हैं. धर्म का नशा जिस तरह से युवा को तबाह कर रहा, यह इस बात का भी उदाहरण है.

अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या करने वाले तीनों बदमाश युवा हैं. मोहित उर्फ सनी नामक युवक की उम्र 23 साल है. इसने ही अतीक पर पहली गोली चलाई थी. हमीरपुर जिले का रहने वाला मोहित शातिर अपराधी है. इसके खिलाफ इसी उम्र में 14 मुकदमे कायम हैं. इनमें हत्या के प्रयास और लूट जैसे मुकदमें भी हैं.

लवलेश तिवारी नामक युवक बांदा जिले का रहने वाला है. इसकी उम्र 22 साल है. इसके संबंध बजरंग दल से बताए जाते हैं. हालांकि बजरंग दल ने इस बात से इनकार किया है. सोशल मीडिया पर इसकी एक फोटो भारतीय जनता पार्टी युवा मोरचा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर द्विवेदी के साथ देखी गई. पुष्कर द्विवेदी की फोटो प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी देखी गई.

लवलेश तिवारी ने अपने फेसबुक पेज पर अपने परिचय में खुद को जिला सह सुरक्षा प्रमुख बजरंगदल के रूप में लिख रखा है.उसने लिखा है कि ‘हम शास्त्र वाले ब्राहमण नहीं,शस्त्र वाले ब्राह्मणहैं.’ लवलेश एक लड़की को थप्पड़ मारने के आरोप में एक साल जेल में रहा है. अतीक की हत्या के बाद लवलेश के पिता ने उसको नशेड़ी बताते कहा था कि वह परिवार से संबंध नहीं रखता. जबकि लवलेश के फेसबुक पर परिवार के साथ कई फोटो मौजूद हैं. लवलेश का परिवार किराए के जिस मकान में रहता था, पुलिस की पूछताछ के बाद वे उसे छोड़ कर कहीं और चले गए.

अतीक की हत्या में शामिल तीसरा अपराधी अरुण कुमार मौर्य की उम्र 18 साल है. इसके मातापिता की मौत हो चुकी है. इस पर कासगंज में जीआरपी के एक सिपाही की हत्या का आरोप है. पुलिस के सामने तीनों अपराधियों ने घटना का कारण बड़ा अपराधी बनकर शोहरत हासिल करना बताया. जिसने भी यह थ्योरी सुनी, उसके गले के नीचे नहीं उतर रही. पुलिस तमाम तरह से मामले की जांच कर रही है. हत्या में विदेशी पिस्टल गिरसान का प्रयोग हुआ. जो बेहद खतरनाक और आटोमेटिक थी. जिस के वार से 12 सैकंड के कम समय में 2बाहुबली अतीक और अशरफ ढेर हो गए. इतना कम समय था कि पुलिस जब तक सतर्क हुई, तब तक देर हो चुकी थी. अतीक और अशरफ की कहानी मिटटी में मिल चुकी थी.

अनुज और अनुपमा की हुई मुलाकात, इस खबर से माया का टूटा दिल

सीरियल अनुपमा इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में बना हुआ है, सीरियल में आए दिन ट्विस्ट पर ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं, अनुज और अनुपमा को बरखा और माया ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है. दोनों ने अनुज और अनुपमा को अलग करने के लिए एडी चोटी एक कर दिया है.

वहीं बीते दिनों देखने को मिला है कि बरखा की बैंड बजाने के लिए पाखी कपाड़िया मेंशन पहुंच गई है, वहीं दूसरी तरफ बा कांताबेन के घर जाती हैं और कांताबेन बा की क्लास लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ती है, हालांकि इस सीरियल में आने वाले ट्विस्ट खत्म नहीं होते हैं.

वहीं सीरियल में देखने को मिलेगा कि अनुज अंकुश को अहमदाबाद बुलाता है, वह अनुपमा को भी अपनी कंपनी में बुलाता है, वहीं जैसे ही इस बात की खबर माया और बरखा को लगती है वह परेशान हो जाती है.

माया को डर लगता है कि अगर अनुज वहां गया तो वहीं का रहकर  हो जाएगा, वह अनुपमा के साथ मिलकर छोटी अनु को छीनने की कोशिश करेगा, वहीं पाखी की बात सुन लेती है माया इस बात से परेशान रहती है.

माया जैसे ही बात को सुनती है उसे सर दर्द हो जाता है उसे गोली की जरुरत होती है, पाखी उसे गोली देकर ताने सुनाकर आती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें