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खुशियों का समंदर : भाग 3

शहर से बाहर जाने का सारा काम गिरीश ने बड़ी खूबी से संभाल लिया था. लालचंद हर तरह से संतुष्ट थे. समय पंख लगा कर उड़ान भरता रहा. गिरीश भी सेठ लालचंद परिवार के निकट आता गया. उस का भी तो कोई नहीं था. प्यार मिला तो उधर ही बह गया. अहल्या ने गिरीश के बारे में सभीकुछ बता दिया था सिवा उस की जाति के. गिरीश को भी मना कर दिया था कि भूल कर भी वह अपनी जाति को किसी के समक्ष प्रकट न करे. पहले तो उस ने आनाकानी की पर अहल्या के समझाने पर उस ने इसे भविष्य पर छोड़ दिया था.

अहल्या जानती थी कि जिस दिन उस के साससुर गिरीश की जाति से अवगत होंगे, उस के प्रवेश पर रोक लग जाएगी. बड़ी मुश्किल से तो घर का वातावरण थोड़ा संभाला था. आरंभ में गिरीश संकुचित रहा पर अपनी कुशलता, ईमानदारी और निष्ठा से उस ने दोनों फैक्टरियां ही नहीं संभालीं, बल्कि अपने मृदुल व्यवहार से लालचंद और सरला का हृदय भी जीत लिया था. गिरीश अब उन के कंपाउंड में बने गैस्टहाउस में ही रहने लगा था. सारी समस्याओं का हल गिरीश ही बन गया था.

लालचंद और सरला की आंखों में अहल्या और गिरीश को ले कर कुछ दूसरे ही सपने सजने लगे थे, लेकिन अहल्या की उदासीनता को देख कर वे आगे नहीं बढ़ पाते थे. उस ने एक सहकर्मी से ज्यादा गिरीश को कभी कुछ समझा ही नहीं था. उस के साथ एक दूरी तक ही नजदीकियां रखे थी वह. कई बार वह उन दोनों को समझा चुकी थी पर लालचंद और सरला दिनोंदिन गिरीश के साथ सारी दूरियां को मिटाते जा रहे थे. कभी लाड़दुलार से खाने के लिए रोक भी लिया तो अहल्या उस का खाना बाहर ही भिजवा देती थी.

गिरीश का मेलजोल भी यह क्रूर समाज स्वीकार नहीं कर सका. कोई न कोई आक्षेप उन की ओर उड़ाता ही रहा. आजिज आ कर एक दिन सरला बड़े मानमनुहार के साथ अहल्या से पूछ ही बैठी, ‘‘गिरीश तुम्हें कैसा लगता है? हम दोनों को तो उस ने मोह ही लिया है. हम चाहते हैं कि तुम उसे अपने जीवन में स्थान दे कर हर तरह से व्यवस्थित हो जाओ. है तो तुम्हारा बचपन का साथी ही. क्या पता इसी संयोग से हम सब उस से इतने जुड़ गए हों. हम भी कितने दिनों तक तुम्हारा साथ देंगे. यह समाज बड़ा ही जालिम है, तुम्हें यों अकेले जीने नहीं देगा. नील की यादों के सहारे जीवन बिताना बड़ा कठिन है. फिर वह तुम्हें कोई बंधन में भी तो नहीं बांध गया है जिस के सहारे तुम जी लोगी. सब समय की बात है वरना एक साल कम नहीं था.’’ प्रत्युत्तर में अहल्या कुछ देर उन्हें देखती रही, फिर बड़े ही सधे स्वर में बोली, ‘‘आप गिरीश को जानती हैं पर उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि को नहीं. मुझे भी कुछ याद नहीं है. क्या पता अगर हमारी आशाओं की कसौटी पर उस का परिवेश ठीक नहीं उतरा तो कुछ और पाने की चाह में उस के इस सहारे को भी खो बैठेंगे. मुझ पर अब किसी अफवाह का असर नहीं होता, अहल्या नाम की शिला जो हूं जिसे दूसरों ने छला और लूटा. वे जिन्होंने लूटा, देवता बने रहे, पर मैं अहल्या जैसी पत्थर पड़ी किसी की ठोकर का इंतजार क्यों करूं. किसी राम के मैले पैरों की अपेक्षा भी नहीं है मुझे. जैसे जीवन गुजर रहा है, गुजरने दीजिए.’’

पर आज तो सरला अपने मन की बात किसी न किसी तरह से अहल्या से मनवा ही लेना चाहती थी. उन की जिद को टालने के ध्येय से अहल्या ने गिरीश से ही पूछ लेने को कहा. और एक दिन लालचंद व सरला ने गिरीश से उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे जानना चाहा तो उस ने भी छिपाना ठीक नहीं समझा और बेझिझक हो, सभीकुछ उन के समक्ष उड़ेल कर उन की जिज्ञासा को हर तरह शांत कर दिया. लालचंद तो तत्काल वहां से उठ कर अंदर चले गए. अपनी सारी आशाओं पर तुषारापात हुए देख, सरला ने घबरा कर आंखें मूंद लीं. गिरीश अपनी इस अवमानना को समझते हुए झटके से उठ कर चला गया. पहाड़ के सब से ऊंचे ब्राह्मण की मानसिकता निम्नजाति से आने वाले गिरीश को किसी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही थी. दोनों फिर अवसाद में डूब गए, कहीं दूर तक कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था.

हफ्ता गुजर गया पर न गिरीश उन दोनों से मिलने आया और ही इन्होंने पहले की तरह मनुहार कर के उसे बुलाया. इस संदर्भ में अहल्या ने जब सरला से पूछा तो उन की पलकें भीग गईं. आहत ुहो कर उन्होंने अहल्या से कहा, ‘‘गिरीश की जाति के बारे में क्या तुम्हें सच मालूम नहीं था? अगर था तो बताया क्यों नहीं? इतने दिनों तक क्यों अंधेरे में रखा. हमारे सारे मनसूबे पर पानी फिर गया. पलभर में एक बार फिर प्रकृति ने हमारी आंखों से सारे सपने नोच लिए.’’ कुछ देर अहल्या सोचती रही, फिर उन की आंखों में निर्भयता से देखते हुए बोली, ‘‘मैं उस की जाति से अनजान नहीं थी, लेकिन वह तो हमारी फैक्टरी के अफसर होने के सिवा कुछ नहीं था, और इस से जाति का क्या लेनादेना. भरोसे का आदमी था, इसलिए सारे कामों को उसे सौंप दिया.’’ लालचंद भी वहां पर आ गए थे.

अहल्या ने निसंकोच लालचंद से कहा, ‘‘पापा, अगर अफवाहों के चक्रव्यूह में फंस कर आप ने उसे फैक्टरी के कामों से निकाल दिया तो उस जैसे भरोसे का आदमी फिर शायद ही मिले. आप दोनों के दुखों का कारण मैं ही हूं. मैं ने सोच लिया है यहां से हमेशा के लिए चले जाने का. गिरीश आप दोनों की देखरेख कर लेगा. अगर उसे निकाला तो मैं भी उस के साथ निकल जाऊंगी. आप के साथ अपने नाम को फिर से जुड़ते देख मैं मर जाना चाहूंगी. यह जालिम दुनिया हमें जीवित ही निगल जाएगी,’’ यह कह कर अहल्या रो पड़ी.

अपने सिर पर किसी स्पर्श का अनुभव कर के अहल्या ने सिर उठाया तो लालचंद को अपने इतने निकट पा कर चौंक गई. लालचंद बोल पड़े, ‘‘गिरीश के परिवेश को भूल कर अगर हम हमेशा के लिए उसे अपना बेटा बना लें तो इस की अनुमति तुम दोगी?’’ अहल्या ने सिर झुका लिया. आज वर्षों बाद लालचंद की विशाल हवेली फिर एक बार दुलहन की तरह सजी हुई थी. मंच पर वरवधू बने गिरीश और अहल्या के साथ सेठ दंपती अपार खुशियों से छलकते सागर को समेट रहे थे. सारी कटुताओं को विस्मृत करते हुए इस खुशी के अवसर पर लालचंद ने दोस्तदुश्मन सभी को आमंत्रित किया था. कहीं भीड़ के समूह में उन की उदारता की प्रशंसा हो रही थी तो कहीं आलोचना. पर जो भी हो, अपने हृदय की विशालता से उन के जैसे कट्टर ब्राह्मण ने गिरीश की जाति को भूल उसे अपने बेटे नील का स्थान दे कर बड़ा ही क्रांतिकारी व अनोखा काम किया था.

Mother’s Day 2023: थोड़ा सा समय

हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’

जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में जौब करते थे.

अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.

पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के औफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.

शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. वह हमेशा वीकैंड के लिए उत्साहित रहती.

जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकैंड आ ही गया.’’

अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.

जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासूमां ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. मैं बेटीबहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’

तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरूशुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ीबड़ी बातें करते हैं.’’

बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.

शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सासससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग फै्रश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’

जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’

‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’

जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी.

थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’

‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’

‘‘मैं बना लूंगी.’’

‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’

हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूं और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गईं तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.

अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन औफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ औफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.

रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’

‘‘हां, क्यों नहीं?’’

‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’

‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’

शिवमोहन ने प्यार भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’

‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’

शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो बहुत कड़क सास मिली थीं.’’

शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’

शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए.

सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.

जूही शर्मिंदा सी बोली.

‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’

‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’

‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’

‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’

अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, ‘‘मां, लंच में क्या है?’’

‘‘पनीर.’’

जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’

अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’

जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’

नेहा ने घर से निकलतेनिकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के सामने मुझे भूल

मत जाना.’’

शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में सासबहू हैं.’’

सब जोर से हंस पड़े.

शैलजा ने कहा, ‘‘सौरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सासबहू हैं.’’

सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.

थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी.

अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’

शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, उन्हें हंसी आ गई.

श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’

शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.

शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर जगह सफाई कर लो जल्दी.’’

श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांतिपसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने काम में लग गई.

जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज

औफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’

शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासूमां को फोन मिलाया.

शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सौरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’

‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’

‘‘सौरी मां, कल से…’’

‘‘सब आ जाता है धीरेधीरे. परेशान मत हो.’’

शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे औफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन वह मायका था अब ससुराल है.

10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’

शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’

‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’

‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘अरे, एक और टिफिन…’’

‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम आने वाली बात है ही नहीं.’’

‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’

‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूं, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’

शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नईनई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’

उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद औफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया.

लाजवाब है बेसन कप, तो आज शाम यही ट्राई करें

सामग्री

– 50 ग्राम बेसन

– 20 ग्राम आटा

– 2 छोटे चम्मच चीनी पाउडर

– 50 ग्राम मक्खन

– 2 छोटे चम्मच तेल

– 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– चुटकी भर कालीमिर्च पाउडर

– चुटकी भर लालमिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

सामग्री फिलिंग की

– 1 शिमलामिर्च

– 1 प्याज

– 150 ग्राम मोजरेला चीज कसा हुआ

– 10 ग्राम मटर

– 50 ग्राम मेयोनीज

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच ओरिगैनो

– 50 ग्राम अमेरिकन कौर्न

– थोड़ा सा तेल

नमक स्वादानुसार

विधि कप की

– बेसन, आटा व बेकिंग पाउडर को एकसाथ मिलाएं और फिर इस में मक्खन, नमक, कालीमिर्च, अजवाइन, लालमिर्च पाउडर और गरममसाला डाल कर अच्छी तरह मिलाएं.

– अब थोड़ा तेल डाल कर गूंध लें.

– थोड़ा पानी छिड़कें और कड़ा गूंधें.

– अब इसे 10 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– ओवन को 190 डिग्री पर गरम करें.

– मफिन ट्रे पर हलका तेल लगाएं.

– अब छोटीछोटी रोटियां बनाएं और मफिन मोल्ड्स में रख कर 10 मिनट तक सुनहरा होने तक बेक करें.

विधि फिलिंग की

– प्याज और शिमलामिर्च को काट लें. पैन में तेल गरम करें.

– अब इस में प्याज, शिमलामिर्च, मटर और कौर्न को तेज आंच में फ्राई करें.

– फिर आंच धीमी करें और मिश्रण में नमक, कालीमिर्च, ओरिगैनो डालें.

– अब ढक कर मटरों को पकने तक पकाएं.

– अब आंच से उतार कर मिश्रण में चीज और मेयोनीज डालें.

– अब मिश्रण को कपों में भरें और सर्व करें.

व्यंजन सहयोग:

रुचिता कपूर जुनेजा

मैं मां हूं इस की -भाग 3 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजेहद

हमारे समाज में वही लड़की सुशील और संस्कारी मानी जाती है, जिस का कोई लड़का दोस्त ना हो. शायद यही वजह है कि श्लोका ने अपने बौयफ्रैंड की बात अपने मांपापा से छिपा कर रखी थी.

कौफी शौप में मिलने पर जब निखिल ने उस से पूछा कि क्या बात है और वह इतनी घबराई सी क्यों लग रही है? तो श्लोका ने उसे सबकुछ बता दिया.

“क्या…? प… प्रेग्नेंट? मगर, यह कैसे हुआ?”

“मुझे नहीं पता. लेकिन, अब तुम ही कोई रास्ता निकालो, वरना अगर मेरे मांपापा को…” बोलतेबोलते श्लोका रोआंसी सी हो गई.

“अरे, तो इस में इतना टैंशन लेने की क्या बात है बेबी?” उस का हाथ अपनी हथेलियों के बीच दबाते हुए निखिल बोला, “एक काम करो, किसी अच्छे डाक्टर के पास जा कर यह बच्चा गिरा दो और सारी परेशानी खत्म. तुम कहो तो मैं तुम्हें एक डाक्टर का नंबर देता हूं, बात कर लो उस से.“

“अबोर्शन,” झटके से अपना हाथ छुड़ाते हुए श्लोका बोली, “लेकिन, अबोर्शन क्यों निखिल?”

“क्योंकि, यही एक रास्ता है बेबी.“

“दूसरा रास्ता भी है निखिल. क्यों न हम शादी कर लें,” श्लोका ने निखिल के चेहरे पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहा.

“शादी…” शादी का नाम सुनते ही निखिल एकदम से उठ खड़ा हुआ और बोला, “यह क्या बकवास कर रही हो तुम, शादी… बच्चा… दिमाग तो नहीं खराब हो गया तुम्हारा. तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम से शादी करूंगा?”

“लेकिन निखिल, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं न. और हम ने एकसाथ कई रातें एकदूसरे की बांहों में गुजारी है. खुले आसमान में शादी के सपने देखे हैं, तो अब तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? नहीं निखिल, ऐसा मत कहो, प्लीज, मेरा दिल टूट जाएगा,” निखिल के सीने से लगते हुए श्लोका बोली.

लेकिन निखिल उसे परे धकेलते हुए बोला, “दिल टूट जाएगा तो टूटा करे. इस में मैं क्या कर सकता हूं. और वैसे भी, तुम बीवी मटेरियल नहीं हो, इसलिए ये शादीवादी जैसी बातें करना ही फिजूल है. रही फिजिकल रिलेशनशिप की बात, तो उस में हम दोनों की मरजी शामिल थी. मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की कभी.“

 

Mother’s Day 2023: मां का तकियाकलाम शादी के बाद

‘‘मम्मी, सब गोवा जा रहे हैं, मैं भी जाऊं?’’

‘‘शादी के बाद जाना.’’

‘‘नीलम के घर नाइटआउट के लिए जाऊं?’’

‘‘बेटी, शादी के बाद जहां नाइटआउट करना हो, करना.’’

‘‘कालेज में फैस्ट है, रात में देर हो जाएगी, तो वहीं रुक सकती हूं?’’

‘‘शादी के बाद जहां मन करे रुकना.’’

‘‘मम्मी कल….’’

‘‘शादी के बाद.’’

‘‘बस, एक दिन….’’

‘‘शादी के बाद.’’

अगर आप भी उन लड़कियों की गिनती में आती हैं जिन्हें अपनी मम्मी से हर सवाल पर यही जवाब मिलता है कि शादी के बाद, तो आप इस कन्वर्सेशन को बहुत अच्छी तरह समझ सकती हैं. चाहे प्लान दिल्ली से जम्मू या पंजाब से राजस्थान का ही क्यों न हो, मम्मी प्लान कैंसिल करने के लिए यह डायलौग न बोल दें तो समझिए उन का तो दिन ही पूरा नहीं होता.

चलो, घूमनाफिरना तो फिर भी अलग बात है. मम्मी तो हर छोटीबड़ी बात पर शादी के बाद, शादी के बाद कहती रहती हैं. ‘खाना बनाना नहीं आता तो शादी के बाद क्या होगा,’ ‘सुबह जल्दी नहीं उठ सकती तो शादी के बाद क्या होगा,’ ‘जबान कैंची जैसी चलती है तो शादी के बाद क्या होगा.’

कभीकभी तो लगता है कि पैदा होने के बाद, जब बेटी पहली बार रोई होगी तो मम्मी के मुंह से यह नहीं निकला होगा कि ‘बेटा, चुप हो जा,’ बल्कि यह निकला होगा, ‘हाय, तेरा शादी के बाद क्या होगा.’

दिल्ली की रहने वाली बोधि के लिए उस की मम्मी का हर बात पर उसे यह कहते रहना कि शादी के बाद जाना या यह काम शादी के बाद करना, सिर का दर्द बना हुआ है. बोधि के कालेज से फर्स्ट ईयर में ट्रिप हिमाचल प्रदेश जा रही थी. बोधि के सभी दोस्त जा रहे थे. बोधि केवल 17 साल की थी तो मम्मी ने साफसाफ कह दिया कि किसी ट्रिपव्रिप पर नहीं जाना, जहां जाना है, शादी हो जाए तो चली जाना. बोधि ने उस समय ज्यादा नानुकुर नहीं की और मन मार कर बैठ गई.

कालेज के सैकंड ईयर में ट्रिप उत्तराखंड जा रही थी तो इस बार बोधि ने ठान लिया कि वह ट्रिप पर जा कर ही रहेगी. वह परमिशन मांगने पापा के पास गई तो पापा ने उसे मम्मी के पास भेज दिया. जब उस ने मम्मी से ट्रिप के लिए पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘पापा से पूछो, वे हां कर दें तो चली जाना.’’ यह सुन कर बोधि चहक उठी.

उस ने फटाफट जा कर पापा से पूछा तो पापा ने उसे जाने के लिए जैसे ही हां कहा, दूसरे कमरे से मम्मी की चीखने की आवाजें आने लगीं. ‘‘हांहां, लड़की को अभी से बिगाड़ दो और सिर पर बैठा दो. कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो जिम्मेदार कौन होगा? सब तो मां को ही दोष देंगे कि बेटी को बिगाड़ कर रख दिया.’’

मम्मी के मुंह से यह सब सुन कर बोधि सकते में आ गई. उसे इतना तो यकीन हो गया था कि मम्मी सचमुच शादी से पहले उसे कहीं घूमने जाने नहीं देंगी. वजह साफ थी, वह एक लड़की है और दुनिया में उस का जितना ध्यान व सुरक्षा उस का पति कर सकता है उतना वह खुद कभी नहीं कर पाएगी, क्योंकि, क्योंकि वह एक लड़की है.

बोधि इन बातों पर रत्तीभर का विश्वास नहीं करती थी लेकिन उसे खुद से ज्यादा उस पति पर विश्वास करने की हिदायतें दी जा रही थीं जिस के न तो अस्तित्व का उसे ज्ञान है, न ही शक्ति का.

हिदायतें परेशानी का सबब

यदि मम्मी से पूछा जाए कि उन का अपनी बेटी पर इतने प्रतिबंध लगाने का क्या कारण है तो उन का जवाब स्पष्ट होगा कि उन्हें उस की चिंता है. लेकिन इस के पीछे केवल यही एक कारण नहीं है. कारण है वह मानसिक अवस्था जो उन्हें अपनी मां और घरपरिवार से मिली है.

कंट्रोलिंग रिलेशनशिप

इस तरह के रिश्तों में मां अकसर ही बेटी को जरूरत से ज्यादा कंट्रोल करती हैं और बेटी आवाज उठाए तो उस की आवाज को ‘यह तुम्हारी खुद की भलाई के लिए है’ कह कर दबा देती हैं. इस में अकसर ही उन का यह मतलब होता है कि बेटी को जरूरत से ज्यादा छूट दी तो शादी के बाद मुश्किल हो जाएगी. इस कंट्रोल से बेटी के जेहन में यह बात बैठ जाती है कि वह खुद से कुछ नहीं कर सकती. इस से उस के स्कूलकालेज और पढ़ाई पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही, उस की मानसिकता प्रभावित भी होती है और आगे चल कर अपनी बेटी के साथ भी उस का यही व्यवहार होता है.

कुछ चीजों में टोकाटोकी की जरूरत होती है, पर हर चीज में नहीं. जब मां हर बात पर बेटी को टोकती रहती हैं, खासकर यह कह कर कि ‘दहीबेसन लगाया कर, नहीं तो शादी कैसे होगी,’ ‘इतनी तेज दांत फाड़फाड़ कर मत हंसा कर’ या ‘कितनी मोटी होती जा रही है, कोई लड़का कैसे मिलेगा?’ तो ये बातें या टोकाटोकी बेटी के आत्मविश्वास को छलनी कर देती हैं. वह कभी खुद से प्यार नहीं कर पाती और खुद को हमेशा बाकी लोगों से कमतर ही समझती है.

लड़ाईझगड़े

मेरे पड़ोस में एक दीदी थीं. उन्हें स्कूल जाने से पहले घर के काम में अपनी मम्मी का हाथ बंटाना होता था और स्कूल से आ कर भी. रात के खाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी. इन सब के बावजूद उन की मम्मी हर दिन किसी न किसी बात पर उन्हें मारापीटा करती थीं.

आटा ज्यादा गीला गुंध गया तो थप्पड़. सब्जी में नमक ऊपरनीचे है तो थप्पड़. कारण एक ही था, शादी के बाद तो यह लड़की मेरी नाक कटा कर छोड़ेगी. उन दीदी के मन में न अपनी मम्मी के लिए कोई इज्जत ही बची थी न कोई प्यार. इस तरह के रिश्तों में अकसर मांबेटी सामान्य नहीं रहतीं. बेटी को तो अपनी मां से नफरत हो जाती है, उस के लिए मां किसी दुश्मन से कम नहीं. यह बेटी के लिए मैंटल डैमेज का कारण भी बनता है.

हंसी का पात्र बनाना

मम्मी और पापा द्वारा उस के हावभाव और शक्लसूरत पर मजाक के तौर पर हंसी उड़ाई जाती है यह कह कर कि ‘तेरी जैसी सूखी सी लड़की के लिए सूखा सा लड़का कहां से मिलेगा’ या ‘तेरी मोटी नाक देख कर तो कोई भी लड़का शादी से पहले ही भाग जाएगा.’ ये बातें उसे प्रभावित करती हैं. मजाक एकदो बार किया जाए या सिर्फ थोड़ाबहुत किया जाए तो मजाक लगता है, हद से ज्यादा बढ़ जाए तो बेटी को ये बातें फैक्ट और सच लगने लगती हैं. उस के आत्मविश्वास पर असर पड़ता है. यह असर मनोवैज्ञानिक भी होता है.

पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रैस डिस्और्डर

मां यदि किसी बात पर पूरा घर सिर पर उठा कर ड्रामा करना शुरू कर दे तो इस से बात बिगड़ जाती है. बेटी के साथसाथ महल्ले के चार और घरों को स्थिति का पता लग जाता है. इस से बेटी को पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रैस डिस्और्डर हो सकता है, जो स्ट्रैस की एक स्थिति है. इस से बेटी हमेशा ही स्ट्रैस में रहने लगेगी और अगली बार कुछ भी पूछने से पहले हजार बार सोचेगी या फिर पूछेगी ही नहीं.

बारबार अपने अरमानों को शादी की हिदायतों से कुचलता देख बेटी अपने अस्तित्व पर सवाल उठाने लगती है. उसे लगता है उस का अपना कोई अस्तित्व या मकसद है ही नहीं. वह लगातार इस बोझ से निकलने के लिए प्रयासरत हो जाती है. खुद को सब से तटस्थ महसूस करने की यह स्थिति उसे अपने बाकी रिश्तों से भी तटस्थ कर देती है, दूर धकेल देती है.

मुश्किल हल हो

ऊपरलिखित स्थितियों से बहुत सी लड़कियां परेशान हैं, और हों भी क्यों न.   शादी की हिदायतें देते रहना या चिंता करते रहना हर मां की अपनी बेटी के भविष्य की फिक्र को दिखाता है. लेकिन यह फिक्र बेटियों की आजादी में बहुत बड़ी बाधक है. आजादी का अर्थ सामान्य है अपनी खुशियों के लिए, अपने बल पर, अपने सामर्थ्य पर लिए गए फैसले. लेकिन भारत में यदि पढ़ेलिखे समझदार मातापिता को हटा दिया जाए तो अन्य सभी पेरैंट्स द्वारा बेटियों की आजादी पर सुरक्षा के नाम पर हमेशा से अंकुश लगता आया है.

मम्मी को यह समझने की जरूरत है कि बेटी जीवनभर एक के बाद एक पुरुष पर निर्भर रहेगी तो खुद को गुलाम से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझ पाएगी. जब बेटी की फिक्र और खुशी के लिए उस के पर उड़ने से पहले ही काट दिए जाएंगे तो उस का जीवन मन मारमार कर कब तक बीतेगा. जितना हक बेटे को मिलता है अपनी इच्छाएं पूरी करने का, उतना बेटी को क्यों न मिले? बेटों को शादी के बाद ये करना, वो करना जैसी हिदायतें क्यों नहीं दी जातीं?

चिडि़या को अगर हमेशा पिंजरे में बंद रखोगे तो वह उड़ना कैसे सीखेगी? और जब उड़ना आएगा नहीं तो उसे यह कह कर पिंजरे में बंद रखने का क्या मतलब है कि तुम्हें तो उड़ना ही नहीं आता, बाहर निकलीं तो कुत्ता खा जाएगा?

जब भी शादी की बात चलती है लड़का बहुत घबरा जाता है, हमें क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं अपने साथ काम करने वाले एक ब्राह्मण युवक से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है. पर हमारी शादी नहीं हो सकती, क्योंकि मैं छोटी जाति से हूं. लड़के के घर वाले मुझे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. जब भी शादी की बात चलती है लड़का बहुत घबरा जाता है. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा है. उस पर पूरे घर की जिम्मेदारी है. वह अपने मातापिता को कभी कोई दुख नहीं दे सकता. कृपया बताएं कि इस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए?

जवाब

अगर आप दोनों साथ काम कर रहे हैं तो जातियां चाहे जो भी हों आप दोनों का स्तर एक ही है. यदि वह लड़का आप से वास्तव में प्रेम करता है, तो उसे विवाह करने पर बाध्य करें. न करे तो उसे गलत चयन समझ कर भूल जाएं. आज के युग में जाति पर नानुकर करने वाले को महत्त्व न दें.

प्राकृतिक खेती : कम लागत सुरक्षित उपज

प्राकृतिक खेती का मतलब बिना कैमिकल के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए खेती करना है. मतलब, किसान जो भी फसल उगाए, उस में फर्टिलाइजर कीटनाशकों का इस्तेमाल न करे. इस में रासायनिक खाद के स्थान पर वह खुद जानवरों के सड़े गोबर से तैयार की हुई खाद का इस्तेमाल अपने खेतों में करे.

यह खाद गाय और भैंस के गोबर या गोमूत्र, चने का बेसन, गुड़, मिट्टी व पानी से बनाए. इस से फसल में रोग नहीं लगता और पैदावार भी आसानी से बढ़ती है. प्राकृतिक खेती में मिट्टी की सतह पर ही रोगाणुओं और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को प्रोत्साहित किया जाता है. इस से धीरेधीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती है. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से उत्पादन बढ़ता जरूर है, लेकिन एक समय के बाद जमीन धीरेधीरे बंजर होने लगती है और उत्पादकता घट जाती है, जिस को रोकने की जरूरत है.

सिक्किम पहला और्गैनिक राज्य आज भारत के केवल कुछ राज्यों में ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस में भारत का सिक्किम सब से पहला और्गैनिक राज्य होने का दर्जा प्राप्त किया है. कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और केरल ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, लेकिन बाकी राज्य इस मामले में अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं. प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ता रु झान हिमाचल प्रदेश में 3 साल पहले शुरू की गई प्राकृतिक खेती के सफल परिणाम नजर आने लगे हैं.

रसायनों के प्रयोग को हतोत्साहित कर किसान की खेती की लागत और आय बढ़ाने के लिए शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ को किसान समुदाय बड़ी तेजी से अपने खेतबगीचों में अपना रहा है. इस योजना के शुरुआती साल में ही किसानों को यह विधि रास आ गई और तकरीबन 500 किसानों को जोड़ने के तय लक्ष्य से कहीं अधिक 2,669 किसानों ने इस विधि को अपनाया. ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ को लागू करने वाली राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019-20 में भी 50,000 किसानों को योजना के अधीन लाने के लक्ष्य को पार करते हुए 54,914 किसान इस योजना से जुड़े. सेब की बागबानी में बीमारियों के प्रकोप पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि प्राकृतिक खेती से सेब पर बीमारियों का प्रकोप अन्य तकनीकों की तुलना में कम रहा.

एक रिपोर्ट के अनुसार, आज देश की आबादी साल 1971 में 66 करोड़ से बढ़ कर 139 करोड़ के पार हो गई है, लेकिन अनाज का उत्पादन 1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति से बढ़ कर 1.74 किलोग्राम तक ही हो पाया है. ऐसी खेती को बढ़ावा देने के पीछे सरकार का मकसद है कि किसानों को फसल को उगाने के लिए किसी तरह का कर्ज न लेना पड़े. नैचुरल फार्मिंग से किसान कर्जमुक्त होगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी सच होगा. साथ ही, देश की लोकल से ग्लोबल की अवधारणा साकार होने में मदद मिलेगी.

किसानों के जीवनस्तर में सुधार होगा और सरकार की किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य आसानी से पूरा हो सकेगा. प्राकृतिक व जैविक के बीच अंतर जैविक खेती में जैविक उर्वरक और खाद जैसे कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है. जैविक खेती के लिए अभी भी बुनियादी कृषि पद्धतियों, जैसे जुताई, गुड़ाई, खाद का मिश्रण, निराई आदि की जरूरत होती है. बड़े पैमाने पर खाद की जरूरत के चलते जैविक खेती अभी भी महंगी है और इस पर आसपास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है, जबकि प्राकृतिक खेती एक अत्यंत कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो स्थानीय जैव विविधता के साथ पूरी तरह से अनुकूलित हो जाती है.

लेखक- डा. राकेश सिंह सेंगर, वर्षा रानी एवं कृशानु सिंह

बहनोई की मोहब्बत में अंधी हुई शादीशुदा औरत

चचेरे बहनोई से दिल लगाने वाली प्रियंका इश्क में अंधी हो चुकी थी. उस की मोहब्बत में आड़े आने वाला हर व्यक्ति उस का जानी दुश्मन था. उस ने पहले नापसंद पति को रास्ते से हटाने की कोशिश की. वह बच गया. फिर उस ने जो किया, उसे मोहब्बत की जंग में जायज कतई नहीं ठहराया जा सकता…

पूरे शहर में दुर्गापूजा की धूम थी. सड़कों पर देवी दर्शन और मेला घूमने की चहलपहल हो रही थी. विजयदशमी यानी 5 अक्तूबर की शाम थी. पंडालों में प्रतिमाओं के विसर्जन की तैयारियां जोरों पर थीं. लोग सजीधजी प्रतिमाओं को ट्रैक्टर ट्रौली, ठेले और दूसरे वाहनों पर बैंड बाजे के साथ जयकारे के साथ विसर्जन के लिए ले कर जा रहे थे. उन्हें देखने के लिए सड़कों पर भारी भीड़ उमड़ी हुई थी. माहौल खुशी और उत्साह का था.

मेला घूमने और उमंग से आनंद लेने वालों में लालबाबू भी था. उस का घर बिहार के समस्तीपुर जिले में बांकीपुर गांव में था. वह किसान सुरेंद्र राय का 32 वर्षीय छोटा बेटा था. उसे लोग लालू राय के नाम से भी जानते थे. उस दिन शाम के करीब पौने 6 बजे उसे अपराधियों ने दरवाजे पर ही गोलियों से भून दिया.

उस फायरिंग में गोलियों की तड़तड़ाहट सुन कर परिवार और आसपास के लोग दौड़ते हुए वहां आए. उन के पहुंचने से पहले ही हमलावर हथियार लहराते हुए बाइक से भाग गए. लालबाबू राय की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. वह किशनपुर से दुर्गापूजा का मेला घूम कर लौटने के बाद अपने घर में टीवी देखरहा था.

उसे एक युवक घर से बुला कर दरवाजे तक ले गया था. वहां पहले से घात लगाए एक बाइक पर हथियारबंद हमलावर मौजूद थे. उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग कर गोलियां बरसा दीं. बुरी तरह जख्मी लालबाबू को घर वाले अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने बताया कि उस के सिर व गरदन पर 3 गोलियां लगी थीं.

गांव वालों की सूचना पर कल्याणपुर थाने की पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और मौके की जांच की. पुलिस को वहां से कारतूस के 3 खोखे और 3 जिंदा कारतूस मिले. उस के बाद इस वारदात की छानबीन में पुलिस जुट गई.

इस संबंध में लालबाबू के पिता सुरेंद्र राय की तहरीर पर 7 अक्तूबर, 2022 को थाने में अज्ञात हमलावरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302/34 आईपीसी एवं 27 आर्म्स एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई.

लालबाबू हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल गई. मामले की तहकीकात और हमलावरों की गिरफ्तारी के लिए समस्तीपुर के एसपी हृदयकांत के निर्देश पर सीओ मोहम्मद सेहबान हबीब फाखरी के नेतृत्व में एक एसआईटी टीम का गठन किया गया.

टीम में कल्याणपुर के एसएचओ गौतम कुमार, इंसपेक्टर अखिलेश कुमार राय, रिजर्व पुलिस बल के इंसपेक्टर राहुल कुमार, तकनीकी सेल के इंचार्ज इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, संजय कुमार सिंह आदि शामिल किए गए. इन के अलावा कल्याणपुर थाना और रिजर्व पुलिस बल के जवानों में अखिलेश कुमार, प्रभात कुमार, निरंजन कुमार भी थे.

जांच का सिलसिला घटनास्थल से शुरू हुआ. मृतक के घर वालों से पूछताछ करने के बाद हमलावरों तक पहुंचने के लिए तमाम तकनीकों का इस्तेमाल किया गया. पुलिस टीम को जल्द ही सफलता मिल गई. वारदात में 3 लोगों के नाम सामने आए, जिन में एक युवती प्रियंका कुमारी का नाम भी था.

प्रियंका का नाम ही नहीं आया, बल्कि पुलिस ने उसे ही पूरे घटनाक्रम का मास्टरमाइंड बताया. मृतक लालबाबू उस का चचेरा भाई था. अन्य आरोपियों में एक प्रियंका का चचेरा बहनोई अमित कुमार और अमित का दोस्त अभिनंदन कुमार था.

उन के बयानों के बाद गोलियां दागने वाले हमलावरों की भी गिरफ्तारी संभव हो पाई. लोगों को हैरानी तब हुई, जब उन्हें मालूम हुआ कि इस वारदात को अंजाम देने में प्रियंका चचेरे बहनोई अमित कुमार से प्रेम करती थी, जबकि प्रियंका की शादी हो चुकी थी और अमित भी 2 बच्चों का बाप था.

प्रियंका की शादी सवा साल पहले 25 जुलाई, 2021 को दरभंगा जिले के रमौली गांव निवासी शिक्षक रामपुकार राय के एकलौते बेटे विजय कुमार राय के साथ ही हो चुकी थी. उस का दुरागमन (गौना) नहीं हुआ था. उस के लिए परिवार वाले तारीख तय करने की योजना बना रहे थे, जबकि वह अपनी शादी से खुश नहीं थी. उस ने अपने मातापिता के अलावा परिवार में सभी को खुले तौर पर बता दिया था कि उसे पति पंसद नहीं है.

इस का उस ने जो कारण बताया, वह परिवार के लिए और भी चौंकाने वाला, मगर अमान्य था. दरअसल, वह अपने ही चचेरे बहनोई के प्रेम में पागल थी.

जबकि जीजा और साली के बीच के इस प्रेम को परिवार किसी भी सूरत में स्वीकारने वाला नहीं था. यह उस की एक सनक थी, जिस से 2 जिंदगियों की खुशी और शांति में खलल पड़ सकती थी.

दरअसल, कल्याणपुर थाना क्षेत्र के बांकीपुर गांव निवासी वीरेंद्र राय की एकलौती बेटी प्रियंका मनियारपुर गांव निवासी बीरबल राय के बेटे अमित कुमार राय से प्रेम करती थी. जबकि उस की शादी वीरेंद्र राय के बड़े भाई सुरेंद्र राय की बेटी पिंकी के साथ सन 2013 में ही हुई थी. इस तरह से प्रियंका रिश्ते में अमित की चचेरी साली थी. दोनों किसान परिवार खुशहाल जीवन गुजार रहे थे.

प्रियंका को अमित शादी के समय से ही पसंद आ गया था. अमित भी चुलबुली और बिंदास साली पा कर खुद को खुशकिस्मत समझता था.

शुरू में तो उस ने प्रियंका को हलके में लिया, लेकिन धीरधीरे वह भी उसे पसंद आने लगी थी. उस ने महसूस किया कि प्रियंका ने उस के दिल में जगह बना

ली है.

अमित 2 बच्चों का बाप था. पत्नी से उसे कोई शिकायत नहीं थी. फिर भी वह प्रियंका को चाहने लगा था. शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा, जब दोनों फोन पर बातें नहीं कर लेते थे. कुछ नहीं तो दोनों वाट्सऐप मैसेज से एकदूसरे के दिल को तसल्ली दे लेते थे.

परिवार में प्रियंका 2 भाइयों में बड़ी थी. जबकि पिंकी 2 भाई और 4 बहनें थीं. लालबाबू पिंकी का छोटा भाई था. प्रियंका के बारे में लालबाबू को भी मालूम था कि वह उस के बहनोई से प्रेम के चलते अपने पति को नापसंद करती है. यह बात उस ने अपने चाचा को बताई और कहा कि जितना जल्द हो सके वह पंडित से कह कर प्रियंका के दुरागमन की तारीख निकलवा लें.

प्रियंका के पिता लालबाबू की बात को गंभीरता से लेते हुए दुरागमन की तारीख 5 अक्तूबर, 2022 तय कर दी. दूसरी तरफ प्रियंका इस तारीख को टालने की कोशिश करने लगी. इस के लिए उस ने एक खुराफाती योजना बनाई. उस ने तय किया कि क्यों न पति को ही मौत की नींद सुलाने का उपाय किया जाए.

इस के लिए उस ने अपने प्रेमी और जीजा अमित कुमार राय से संपर्क कर उसे अपनी योजना बताई. अमित इस के लिए तैयार हो गया और अपने दोस्त अभिनंदन कुमार के साथ मिल कर प्रियंका के पति विजय कुमार राय की हत्या की योजना बना ली.

उन्होंने एक शूटर को बुलवाया. अभिनंदन मुंगेर जा कर घटना को अंजाम देने के लिए हथियार व कारतूस खरीद लाया.

विजय की किस्मत अच्छी थी कि भाड़े का शूटर विजय कुमार की हत्या में सफल नहीं हो पाया. क्योंकि उसी रोज दुरागमन संबंधी बातचीत के सिलसिले में विजय कुमार अपने एक रिश्तेदार के यहां चला गया था. उस के बाद वह अपनी ससुराल भी आ गया था. प्रियंका उसे अपने घर आया देख अचंभित हो गई थी.

उस वक्त प्रियंका मन मसोस कर रह गई. क्योंकि उस की योजना फेल हो गई थी. इसी के साथ वह भीतर ही भीतर लालबाबू से भी खफा भी हो गई थी. योजना की विफलता का कारण चचेरे भाई को ही मान रही थी. वही उसे ससुराल भेजने के लिए मातापिता पर दबाव बनाए हुए था.

पति के बच जाने के बाद उस ने उसी रात बहनोई अमित कुमार से मिल कर लालबाबू को ही खत्म करने की योजना बना डाली थी. अमित भी प्रियंका के प्यार में इस कदर अंधा हो गया था कि वह अपने ही साले को मौत के घाट उतारने की योजना में शामिल हो गया.

अब प्रियंका और अमित का दुश्मन लालबाबू था. उसे रास्ते से हटाने के लिए दोनों ने नए सिरे से योजना बनाई. प्रियंका के कहने पर अमित, अभिनंदन और भाड़े के शूटर पूरी तैयारी के साथ 5 अक्तूबर की शाम को लालबाबू के घर के पास जा पहुंचे. वे बाइक से गए थे. अमित और शूटर बाइक पर बैठे रहे, जबकि अभिनंदन ने लालबाबू के घर जा कर दरवाजा खटखटाया था.

जैसे ही लालबाबू घर से बाहर निकला, वैसे ही शूटर ने उस पर दनादन 3 गोलियां दाग दीं. उस का निशाना अचूक था.

प्रियंका, अमित और अभिनंदन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्याकांड में इस्तेमाल की गई बाइक भी बरामद कर ली. पुलिस ने उस से 2 देसी कट्टा, 11 जिंदा कारतूस और मोबाइल फोन बरामद कर लिया.

जीजासाली के अवैध प्रेम के चलते मारा गया लालबाबू अपने दादा राजेंद्र राय की जेसीबी चलाता था, जिस की देखरेख चाचा वीरेंद्र राय करते थे. कुछ दिन पहले उस के दादा राजेंद्र राय ने अपनी जेसीबी बेच दी तो उस के बाद लालबाबू राय ट्रैक्टर चलाने लगा था.

लालबाबू की जेसीबी की मजदूरी का कुल 3 लाख 60 हजार रुपया लोगों के पास बाकी था. इसे ले कर पंचायत भी हुई थी, लेकिन बकाया पैसा नहीं मिला था. उस के बाद से लालबाबू उजियारपुर थाना क्षेत्र के महिसारी गांव में चचेरे साढ़ू बिशुनदेव राय के घर पर रह कर जेसीबी चलाने लगा था.

घटना के दिन दुर्गापूजा के मौके पर वह घर आया हुआ था. उसी दिन 5 अक्तूबर को प्रियंका का दुरागमन था. जिस के चलते घर में और बाहर बरामदे में काफी चहलपहल थी.

परिवार के कई लोग बैठे थे. शाम के वक्त धुंधलका होने से ठीक पहले लालबाबू देवी दुर्गा का विसर्जन देख कर घर आ गया था और कमरे में बैठा टीवी देख रहा था.

इस हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता लालबाबू की चचेरी बहन प्रियंका सहित घटना में शामिल उस के बहनोई अमित कुमार राय और उस के दोस्त अभिनंदन कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक शूटर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाए थे.

लेखक- मोहम्मद अफजल इमाम ‘मुन्ना

 

क्या मिला?- घर परिवार के बोझ को उठाते- उठाते वह खुद को भूल गई

अब मैं 70 साल की हो गई. एकदम अकेली हूं. अकेलापन ही मेरी सब से बड़ी त्रासदी मुझे लगती है. अपनी जिंदगी को मुड़ कर देखती हूं तो हर एक पन्ना ही बड़ा विचित्र है. मेरे मम्मीपापा के हम 2 ही बच्चे थे. एक मैं और मेरा एक छोटा भाई. हमारा बड़ा सुखी परिवार. पापा साधारण सी पोस्ट पर थे, पर उन की सरकारी नौकरी थी.

मैं पढ़ने में होशियार थी. मुझे पापा डाक्टर बनाना चाहते थे और मैं भी यही चाहती थी. मैं ने मेहनत भी की और उस जमाने में इतना कंपीटिशन भी नहीं था. अतः मेरा सलेक्शन इसी शहर में मेडिकल में हो गया. पापा भी बड़े प्रसन्न. मैं भी खुश.

मेडिकल पास करते ही पापा को मेरी शादी की चिंता हो गई. किसी ने एक डाक्टर लड़का बताया. पापा को पसंद आ गया. दहेज वगैरह भी तय हो गया.

लड़का भी डाक्टर था तो क्या मैं भी तो डाक्टर थी. परंतु पारंपरिक परिवार होने के कारण मैं भी कुछ कह नहीं पाई. शादी हो गई. ससुराल में पहले ही उन लोगों को पता था कि यह लड़का दुबई जाएगा. यह बात उन्होंने हम से छुपाई थी. पर लड़की वाले की मजबूरी… क्या कर सकते थे.

मैं पीहर आई और नौकरी करने लगी. लड़का 6 महीने बाद आएगा और मुझे ले जाएगा, यह तय हो चुका था. उन दिनों मोबाइल वगैरह तो होता नहीं था. घरों में लैंडलाइन भी नहीं होता था. चिट्ठीपत्री ही आती थी.

पति महोदय ने पत्र में लिखा, मैं सालभर बाद आऊंगा. पीहर वालों ने सब्र किया. हिंदू गरीब परिवार का बाप और क्या कर सकता था? मैं तीजत्योहार पर ससुराल जाती. मुझे बहुत अजीब सा लगने लगा. मेरे पतिदेव का एक महीने में एक पत्र  आता. वो भी धीरेधीरे बंद होने लगा. ससुराल वालों ने कहा कि वह बहुत बिजी है. उस को आने में 2 साल लग सकते हैं.

मेरे पिताजी का माथा ठनका. एक कमजोर अशक्त लड़की का पिता क्या कर सकता है. हमारे कोई दूर के रिश्तेदार के एक जानकार दुबई में थे. उन से पता लगाया तो पता चला कि उस महाशय ने तो वहां की एक नर्स से शादी कर ली है और अपना घर बसा लिया है. यह सुन कर तो हमारे परिवार पर बिजली ही गिर गई. हम सब ने किसी तरह इस बात को सहन कर लिया.

पापा को बहुत जबरदस्त सदमा लगा. इस सदमे की सहन न कर पाने के कारण उन्हें हार्ट अटैक हो गया. गरीबी में और आटा गीला. घर में मैं ही बड़ी थी और मैं ने ही परिवार को संभाला. किसी तरह पति से डाइवोर्स लिया. भाई को पढ़ाया और उस की नौकरी भी लग गई. हमें लगा कि हमारे अच्छे दिन आ गए. हम ने एक अच्छी लड़की देख कर भैया की शादी कर दी.

मुझे लगा कि अब भैया मम्मी को संभाल लेगा. भैया और भाभी जोधपुर में सैटल हो गए थे. मैं ने सोचा कि जो हुआ उस को टाल नहीं सकते. पर, अब मैं आगे की पढ़ाई करूं, ऐसा सोच ही रही थी. मेरी पोस्टिंग जयपुर में थी. इसलिए मैं यहां आई, तो अम्मां को साथ ले कर आई. भैया की नईनई शादी हुई है, उन्हें आराम से रहने दो.

मैं भी अपने एमडी प्रवेश परीक्षा की तैयारी में लगी. राजीखुशी का पत्र भैयाभाभी भेजते थे. अम्मां भी खुश थीं. उन का मन जरूर नहीं लगता था. मैं ने कहा, ‘‘अभी थोड़े दिन यहीं रहो, फिर आप चली जाना.‘‘ ‘‘ठीक है. मुझे लगता है कि थोड़े दिन मैं बहू के पास भी रहूं.‘‘

‘‘अम्मां थोड़े दिन उन को अकेले भी एंजौय करने दो. नईनई शादी हुई है. फिर तो तुम्हें जाना ही है.‘‘
इस तरह 6 महीने बीत गए. एक खुशखबरी आई. भैया ने लिखा कि तुम्हारी भाभी पेट से है. तुम जल्दी बूआ बनने वाली हो. अम्मां दादी.

इस खबर से अम्मां और मैं बहुत प्रसन्न हुए. चलो, घर में एक बच्चा आ जाएगा और अम्मां का मन पंख लगा कर उड़ने लगा. ‘‘मैं तो बहू के पास जाऊंगी,‘‘ अम्मां जिद करने लगी. मैं ने अम्मां को समझाया, ‘‘अम्मां, अभी मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी? जैसे ही छुट्टी मिलेगी, मैं आप को छोड़ आऊंगी. भैया को हम बुलाएंगे तो भाभी अकेली रहेंगी. इस समय यह ठीक नहीं है.‘‘

वे भी मान गईं. हमें क्या पता था कि हमारी जिंदगी में एक बहुत बड़ा भूचाल आने वाला है. मैं ने तो अपने स्टाफ के सदस्यों और अड़ोसीपड़ोसी को मिठाई मंगा कर खिलाई. अम्मां ने पास के मंदिर में जा कर प्रसाद भी चढ़ाया. परंतु एक बड़ा वज्रपात एक महीने के अंदर ही हुआ.

हमारे पड़ोस में एक इंजीनियर रहते थे. उन के घर रात 10 बजे एक ट्रंक काल आया. मुझे बुलाया. जाते ही खबर को सुन कर रोतेरोते मेरा बुरा हाल था. मेरे भाई का एक्सीडेंट हो गया. वह बहुत सीरियस था और अस्पताल में भरती था.

अम्मां बारबार पूछ रही थीं कि क्या बात है, पर मैं उन्हें बता नहीं पाई. यदि बता देती तो जोधपुर तक उन्हें ले जाना ही मुश्किल था. पड़ोसियों ने मना भी किया कि आप अम्मां को मत बताइए.

अम्मां को मैं ने कहा कि भाभी को देखने चलते हैं. अम्मां ने पूछा, ‘‘अचानक ही क्यों सोचा तुम ने? क्या बात हुई है? हम तो बाद में जाने वाले थे?‘‘

किसी तरह जोधपुर पहुंचे. वहां हमारे लिए और बड़ा वज्रपात इंतजार कर रहा था. भैया का देहांत हो गया. शादी हुए सिर्फ 9 महीने हुए थे.

भाभी की तो दुनिया ही उजड़ गई. अम्मां का तो सबकुछ लुट गया. मैं क्या करूं, क्या ना करूं, कुछ समझ नहीं आया. अम्मां को संभालूं या भाभी को या अपनेआप को?

मुझे तो अपने कर्तव्य को संभालना है. क्रियाकर्म पूरा करने के बाद मैं भाभी और अम्मां को साथ ले कर जयपुर आ गई. मुझे तो नौकरी करनी थी. इन सब को संभालना था. भाभी की डिलीवरी करानी थी.

भाभी और अम्मां को मैं बारबार समझाती.

मैं तो अपना दुख भूल चुकी. अब यही दुख बहुत बड़ा लग रहा था. मुझ पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उन दिनों वेतन भी ज्यादा नहीं होता था.

मकान का किराया चुकाते हुए 3 प्राणी तो हम थे और चौथा आने वाला था. नौकरी करते हुए पूरे घर को संभालना था.

अम्मां भी एक के बाद एक सदमा लगने से बीमार रहने लगीं. उन की दवाई का खर्चा भी मुझे ही उठाना था.

मैं एमडी की पढ़ाईलिखाई वगैरह सब भूल कर इन समस्याओं में फंस गई. भाभी के पीहर वालों ने भी ध्यान नहीं दिया. उन की मम्मी पहले ही मर चुकी थी. उन की भाभी थीं और पापा बीमार थे. ऐसे में किसी ने उन्हें नहीं बुलाया. मैं ही उन्हें आश्वासन देती रही. उन्हें अपने पीहर की याद आती और उन्हें बुरा लगता कि पापा ने भी मुझे याद नहीं किया. अब उस के पापा ना आर्थिक रूप से संपन्न थे और ना ही शारीरिक रूप से. वे भला क्या करते? यह बात तो मेरी समझ में आ गई थी.

अम्मां को भी लगता कि सारा भार मेरी बेटी पर ही आ गया. बेटी पहले से दुखी है. मैं अम्मां को भी समझाती. इस छोटी उम्र में ही मैं बहुत बड़ी हो गई थी. मैं बुजुर्ग बन गई थी.

भाभी की ड्यू डेट पास में आने पर अम्मां और भाभी मुझ से कहते, ‘‘आप छुट्टी ले लो. हमें डर लगता है?‘‘

‘‘अभी से छुट्टी ले लूं. डिलीवरी के बाद भी तो लेनी है?‘‘

बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया. रात को परेशानी हुई तो मैं भाभी को ले कर अस्पताल गई और उन्हें भरती कराया. अस्पताल वालों को पता ही था कि मैं डाक्टर हूं. उन्होंने कहा कि आप ही बच्चे को लो. सब से पहले मैं ने ही उठाया. प्यारी सी लड़की हुई थी.

सुन कर भाभी को अच्छा नहीं लगा. वह कहने लगी, ‘‘लड़का होता तो मेरा सहारा ही बनता.‘‘

‘‘भाभी, आप तो पढ़ीलिखी हो कर कैसी बातें कर रही हैं? आप बेटी की चिंता मत करो. उसे मैं पालूंगी.‘‘

उस का ज्यादा ध्यान मैं ने ही रखा. भाभी को अस्पताल से घर लाते ही मैं ने कहा, ‘‘भाभी, आप भी बीएड कर लो, ताकि नौकरी लग जाए.‘‘

विधवा कोटे से उन्हें तुरंत बीएड में जगह मिल गई. बच्चे को छोड़ वह कालेज जाने लगी. दिन में बच्ची को अम्मां देखतीं. अस्पताल से आने के बाद उस की जिम्मेदारी मेरी थी. पर, मैं ने खुशीखुशी इस जिम्मेदारी को निभाया ही नहीं, बल्कि मुझे उस बच्ची से विशेष स्नेह हो गया. बच्ची भी मुझे मम्मी कहने लगी.

नौकरानी रखने लायक हमारी स्थिति नहीं थी. सारा बोझ मुझ पर ही था. किसी तरह भाभी का बीएड पूरा हुआ और उन्हें नौकरी मिल गई. मुझे थोड़ी संतुष्टि हुई. पर पहली पोस्टिंग अपने गांव में मिली. भाभी बच्ची को छोड़ कर चली गई. हफ्ते में या छुट्टी के दिन ही भाभी आती. बच्ची का रुझान अपनी मम्मी की ओर से हट कर पूरी तरह से मेरी ओर और अम्मां की तरफ ही था. हम भी खुश ही थे.

पर, मुझे लगा कि भाभी अभी छोटी है. वह पूरी जिंदगी कैसे अकेली रहेगी?

मैं ने भाभी से बात की. भाभी रितु बोली, ‘‘मुझे बच्चे के साथ कौन स्वीकार करेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘तुम गुड़िया की चिंता मत करो. उसे हम पाल लेंगे.‘‘

उस के बाद मैं ने भाभी रितु के लिए वर ढूंढ़ना शुरू किया. माधव नाम के एक आदमी ने भाभी से शादी करने की इच्छा प्रकट की. हम लोग खुश हुए. पर उस ने भी शर्त रख दी कि रितु भाभी अपनी बेटी को ले कर नहीं आएगी, क्योंकि उन के पहले ही एक लड़की थी.

मैं ने तो साफ कह दिया, ‘‘आप इस बात की चिंता ना करें. मैं बिटिया को संभाल लूंगी. मैं उसे पालपोस कर बड़ा करूंगी.‘‘

उस पर माधव राजी हो गया और यह भी कहा कि आप को भी आप के भाई की कमी महसूस नहीं होने दूंगा.

सुन कर मुझे भी बहुत अच्छा लगा. शुरू में माधव और रितु अकसर आतेजाते रहे. अम्मां को भी अच्छा लगता था, मुझे भी अच्छा लगता था. मैं भी माधव को भैया मान राखी बांधने लगी. सब ठीकठाक ही चल रहा था.

उन्होंने कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई, परंतु अपने शहर से हमारे घर पिकनिक मनाने जैसे आ जाते थे. इस पर भी अम्मां और मैं खुश थे.

जब भी वे आते भाभी रितु को अपनी बेटी मान अम्मां उन्हें तिलक कर के दोनों को साड़ी, मिठाई, कपड़े आदि देतीं.

अब गुड़िया बड़ी हो गई. वह पढ़ने लगी. पढ़ने में वह होशियार निकली. उस ने पीएचडी की. उस के लिए मैं ने लड़का ढूंढा. अच्छा लड़का राज भी मिल गया. लड़कालड़की दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. अब लड़के वाले चाहते थे कि उन के शहर में ही आ कर शादी करें.

मैं उस बात के लिए राजी हो गई. मैं ने सब का टिकट कराया. कम से कम 50 लोग थे. सब का टिकट एसी सेकंड क्लास में कराया. भाभी रितु और माधव मेहमान जैसे हाथ हिलाते हुए आए.

यहां तक भी कोई बात नहीं. उस के बाद उन्होंने ससुराल वालों से मेरी बुराई शुरू कर दी. यह क्यों किया, मेरी समझ के बाहर की बात है. अम्मां को यह बात बिलकुल सहन नहीं हुई. मैं ने तो जिंदगी में सिवाय दुख के कुछ देखा ही नहीं. किसी ने मुझ से प्रेम के दो शब्द नहीं बोले और ना ही किसी ने मुझे कोई आर्थिक सहायता दी.

मुझे लगा, मुझे सब को देने के लिए ही ऊपर वाले ने पैदा किया है, लेने के लिए नहीं. पेड़ सब को फल देता है, वह स्वयं नहीं खाता. मुझे भी पेड़ बनाने के बदले ऊपर वाले ने मनुष्यरूपी पेड़ का रूप दे दिया लगता है.

मुझे भी लगने लगा कि देने में ही सुख है, खुशी है, संतुष्टि है, लेने में क्या रखा है?

मैं ने भी अपना ध्यान भक्ति की ओर मोड़ लिया. अस्पताल जाना, मंदिर जाना, बाजार से सौदा लाना वगैरह.

गुड़िया की ससुराल तो उत्तर प्रदेश में थी, परंतु दामाद राज की पोस्टिंग चेन्नई में थी. शादी के बाद 3 महीने तक गुड़िया नहीं आई. चिट्ठीपत्री बराबर आती रही. अब तो घर में फोन भी लग गया था. फोन पर भी बात हो जाती. मैं ने कहा कि गुड़िया खुश है. उस को जब अपनी मम्मी के बारे में पता चला, तो उसे भी बहुत बुरा लगा. फिर हमारा संबंध उन से बिलकुल कट गया.

3 महीने बाद गुड़िया चेन्नई से आई. मैं भी खुश थी कि बच्ची देश के अंदर ही है, कभी भी कोई बात हो, तुरंत आ जाएगी. इस बात को सोच कर मैं बड़ी आश्वस्त थी. पर गुड़िया ने आते ही कहा, ‘‘राज का सलेक्शन विदेश में हो गया है.‘‘

इस सदमे को कैसे बरदाश्त करूं? पुरानी बातें याद आने लगीं. क्या इस बच्ची के साथ भी मेरे जैसे ही होगा? मेरे मन में एक अनोखा सा डर बैठ गया. मैं गुड़िया से कह न पाई, पर अंदर ही अंदर घुटती ही रही.

शुरू में राज अकेले ही गए और मेरा डर मैं किस से कहूं? पर गुड़िया और राज में अंडरस्टैंडिंग बहुत अच्छी थी. बराबर फोन आते. मेल आता था. गुड़िया प्रसन्न थी. मैं अपने डर को अंदर ही अंदर महसूस कर रही थी.

फिर 6 महीने बाद राज आए और गुड़िया को ले गए. मुझे बहुत तसल्ली हुई. पर अम्मां गुड़िया के वियोग को सहन न कर पाईं. उस के बाद अम्मां निरंतर बीमार रहने लगीं.

अम्मां का जो थोड़ाबहुत सहारा था, वह भी खत्म हो गया. उन की देखभाल का भार और बढ़ गया.

एक साल बाद फिर गुड़िया आई. तब वह 2 महीने की प्रेग्नेंट थी. राज ने फिर अपनी नौकरी बदल ली. अब कनाडा से अरब कंट्री में चला गया. वहां राज सिर्फ सालभर के लिए कौंट्रैक्ट में गया था. अब तो गुड़िया को ले जाने का ही प्रश्न नहीं था. गुड़िया प्रेग्नेंट थी.

क्या आप मेरी स्थिति को समझ सकेंगे? मैं कितने मानसिक तनावों से गुजर रही थी, इस की कल्पना भी कोई नहीं कर सकता. मैं किस से कहती? अम्मां समझने लायक स्थिति में नहीं थीं. गुड़िया को कह कर उसे परेशान नहीं करना चाहती थी. इस समय वैसे ही वह प्रेग्नेंट थी. उसे परेशान करना तो पाप है. गुड़िया इन सब बातों से अनजान थी.

डाक्टर ने गुड़िया को बेड रेस्ट के लिए कह दिया था. अतः वह ससुराल भी जा नहीं सकती थी. उस की सासननद आ कर कभी उस को देख कर जाते. उन के आने से मेरी परेशानी ही बढ़ती, पर मैं क्या करूं? अपनी समस्या को कैसे बताऊं? गुड़िया की मम्मी ने तो पहले ही अपना पल्ला झाड़ लिया था.

मैं जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहती थी, परंतु विभिन्न प्रकार की आशंकाओं से मैं घिरी हुई थी. मैं ने कभी कोई खुशी की बात तो देखी नहीं, हमेशा ही मेरे साथ धोखा ही होता रहा. मुझे लगने लगा कि मेरी काली छाया मेरी गुड़िया पर ना पड़े. पर, मैं इसे किसी को कह भी नहीं सकती. अंदर ही अंदर मैं परेशान हो रही थी. उसी समय मेरे मेनोपोज का भी था.

इस बीच अम्मां का देहांत हो गया.

गुड़िया का ड्यू डेट भी आ गया और उस ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया. मैं खुश तो थी, पर जब तक उस के पति ने आ कर बच्चे को नहीं देखा, मेरे अंदर अजीब सी परेशानी होती रही थी.

जब गुड़िया का पति आ कर बच्चे को देख कर खुश हुआ, तब मुझे तसल्ली आई.

अब तो गुड़िया अपने पति के साथ विदेश में बस गई और मैं अकेली रह गई. यदि गुड़िया अपने देश में होती तो मुझ से मिलने आती रहती, पर विदेश में रहने के कारण साल में एक बार ही आ पाती. फिर भी मुझे तसल्ली थी. अब कोरोना की वजह से सालभर से ज्यादा हो गया, वह नहीं आई. और अभी आने की संभावना भी इस कोरोना के कारण दिखाई नहीं दे रही, पर मैं ने एक लड़की को पढ़ालिखा कर उस की शादी कर दी. भाभी की भी शादी कर दी. यह तसल्ली मुझे है. पर बुढ़ापे में रिटायर होने के बाद अकेलापन मुझे खाने को दौड़ता है. इस को एक भुक्तभोगी ही जान सकता है.

अब आप ही बताइए कि मेरी क्या गलती थी, जो पूरी जिंदगी मैं ने इतनी तकलीफ पाई? क्या लड़की होना मेरा गुनाह था? लड़का होना और मेरी जिंदगी से खेलना मेरे पति के लड़का होने का घमंड? उस को सभी छूट…? यह बात मेरी समझ में नहीं आई? आप की समझ में आई तो मुझे बता दें.

प्यारा सा सोलो ट्रिप : भाग 2

‘इतना मुश्किल भी नहीं होता होगा. इसे करने वाले भी तो मेरे जैसे इंसान ही होंगे. फिर मैं क्यों नहीं?’ सोचते हुए अनुभा ने अपने भीतर की शक्ति को संजोया और इंटरनैट पर ऐसे लोगों को तलाश करने लगी, जो अकेले घूमते हैं.पता नहीं, सोशल मीडिया में कोई जासूस बैठा है क्या जो हमारे विचारों में सेंध लगाता है, क्योंकि जब से अनुभा ने सोलो ट्रैवलिंग के बारे में पढ़ना शुरू किया है, तब से हर तीसरी पोस्ट के बाद उसी से संबंधित विज्ञापन उस के मोबाइल की स्क्रीन पर आने लगे हैं.

खैर, यह एक तरह से सुविधाजनक भी है, क्योंकि उन्हीं विज्ञापनों के माध्यम से अनुभा को कुछ ऐसे ट्रैवल एजेंट्स के बारे में पता चला, जो महिलाओं की सोलो ट्रैवलिंग प्लान करवाते हैं. अनुभा ने कुछ एजेंसियों से संपर्क कर के जानकारी ली, लेकिन उस के मनमाफिक कुछ अधिक नहीं हुआ.‘जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो फिर मूसल से क्या डरना,’ इस कहावत को याद करते हुए अनुभा ने तय किया कि वह अपनी ट्रिप खुद ही प्लान करेगी. लेकिन अब प्रश्न यह भी था कि वह अकेली जाएगी कहां?आने वाला मौसम सर्दी का था. अनुभा ने जैसलमेर जाने का मन बनाया. सुन रखा था कि वहां दिसंबर के आखिरी सप्ताह में देशी और विदेशी पर्यटकों की बहुत भीड़ होती है, इसलिए अनुभा ने जैसलमेर घूमने के लिए मध्य दिसंबर को चुना.

अनुभा ने नैट पर सर्च किया. दिल्ली से जैसलमेर के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध थी. पर्यटन स्थल होने के कारण वहां होटलों की खासी तादाद थी. अनुभा ने इस के लिए भी गूगल की मदद ली और एक चारसितारा रिसौर्ट में 4 दिन और 3 रात का पैकेज बुक करवा लिया, जिस में एक रात रेतीले टीलों पर आलीशान टैंट में बिताना भी शामिल था. लोकल साइट सीन और आसपास भ्रमण आदि के लिए गाड़ी और एक अनुभवी गाइड भी इसी पैकेज में शामिल था.

अनुभा जैसलमेर ट्रिप को ले कर बहुत उत्साहित थी. उस के उत्साह का सब से बड़ा कारण तो इस ट्रिप का सोलो होना ही था. वह पहली बार ऐसी किसी ट्रिप पर जाने वाली थी जिस की सारी व्यवस्था उस ने स्वयं की थी और यह जो आजादी वाला फील था, वह भी उत्साह का दूसरा बड़ा कारण था.सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने वाली कहावत अनुभा ने आज तक केवल सुनी ही थी पर आज देख भी लिया. कुहरे के कारण अनुभा की फ्लाइट 4 घंटे लेट हो गई, जिस के कारण उस का मूड थोड़ा सा अपसैट हो गया, क्योंकि फ्लाइट लेट होने का सीधासीधा असर आगे के कार्यक्रम पर पड़ने वाला था.

खैर, जो हमारे हाथ में नहीं, उसे कोस कर अपना मन भी क्यों खराब करना. अनुभा जैसलमेर पहुंची तो एयरपोर्ट पर उस की गाड़ी उस का इंतजार कर रही थी. बताए गए गाड़ी नंबर को तलाश करती वह पार्किंग की तरफ जा रही थी.‘एक्सक्यूज मी,’ एक पुरुष स्वर सुन कर अनुभा ने पीछे मुड़ कर देखा. यह लगभग 25 साल का एक युवा था, जो उसे ही पुकार रहा था. घुटनों से फटी जींस और बेपरवाह सी पहनी हुई गरम हुडी, कानों में छोटीछोटी बालियां और आधुनिक स्टाइल से बने हुए बाल. कपड़े और जूते ब्रैंडेड नहीं थे. पीठ पर लदा काले रंग का लैपटौप बैग, कानों में ठूंसे हुए इयरफोन और आंखों पर चढ़ा रंगीन चश्मा उसे पर्यटक साबित कर रहे थे.

‘‘क्या आप मु झे सिटी तक लिफ्ट दे सकती हैं? यहां साधन मिलना बहुत मुश्किल है. मिलेगा भी तो बहुत महंगा,’’ पुरुष ने अनुरोध किया. अनुभा ने एक पल सोचा, फिर पूछा ‘‘लोकल हो?’’
‘‘नहीं, ट्रैवलर हूं, घूमने आया हूं,’’ युवक ने स्पष्ट कहा. पता नहीं क्या था इस युवक की बातों में कि अनुभा ने सहमति में गरदन हिला कर उसे अपने साथ आने का इशारा कर दिया. युवक उस के पीछेपीछे चलने लगा.

टैक्सी अपनी रफ्तार से शहर की तरफ भाग रही थी. युवक ने अपने गले में लपेटा
हुआ मफलर ढीला किया और कार का शीशा नीचे कर दिया. ठंडी हवा का झोंका अनुभा के शरीर को सिहरा गया. उस ने अपने सिर पर पहनी हुडी को कानों पर कस लिया. टैक्सी में गाना बज रहा था, ‘केसरिया बालम, आवो नी पधारो म्हारे देस…’ यह मांड गायन है, जिसे अल्लाह जिलाई बाई ने अपनी लरजती हुई आवाज में बड़े मन से गाया है. इस लोकगीत ने गायिका को विश्वभर में एक पहचान दी है या शायद गायिका ने इस गीत को. जो भी हो, अनुभा आंख मूंदे इस की गहराई में उतरती चली गई.
‘‘आप कहां ठहरी हैं?’’ युवक ने पूछा. अचानक आए इस व्यवधान ने अनुभा को वर्तमान में ला दिया.
‘‘होटल रौयल इन में. क्यों…?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘यों ही. काफी महंगा रिसौर्ट है. नैट पर देखा था मैं ने,’’ युवक ने खिड़की से बाहर दूर तक फैले रेगिस्तान को अपनी आंखों में समेटने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं पहली बार सोलो ट्रिप पर निकली हूं, इसलिए सेफ जर्नी चाहती थी, ताकि मेरा पहला अनुभव खराब न हो,’’ कहते हुए अनुभा मुसकराई थी.
युवक ने उस की तरफ पलट कर देखा. वह भी मुसकरा दिया.‘‘इसे सोलो ट्रिप नहीं, बल्कि प्लैन्ड ट्रिप कहते हैं, मैडम. सोलो ट्रिप तो बिलकुल आवारगी वाली होती है, जिस में अगले पल क्या होने वाला है, उस का कोई अंदाजा नहीं होता. जहां मरजी रुके, जो मिला वह खाया और जो साधन मिला, उसी में चल दिए. जैसे मैं कर रहा हूं,’’ युवक ने ठहाका लगाया. अनुभा को लगा मानो वह उस का मजाक उड़ा रहा है. वह चिढ़ गई.

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