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पत्थर- भाग 2 : अंतरिक्षीय अध्ययन केंद्र में क्या देखा था भाग्यजननी ने

भाग्यजननी ने टेबल पर रखा अपना चश्मा पहना और कंप्यूटर स्क्रीन पर मानो चिपक गई. बहुत गौर से देखने पर भी उसे लाल बढ़ते रंग में कोई परिवर्तन होता नहीं नजर आया. जैसेजैसे यह सौमंप आगे बढ़ रहा था, लाल रंग की लकीर की लंबाई बढ़ती जा रही थी.

भाग्यजननी ने फौरन अपनी कौपी निकाली और पैन से इस सौमंप के वक्र की गणना करने लगी. उस ने दोबारा अपनी गणना को जांचा, कहीं कोई गलती नहीं लगी. गणन की प्रक्रिया में एक घंटा बीत गया. रात के 12 बजने को आ रहे थे. असामान्य सी स्थिति बन गई थी. क्या केंद्र के डायरैक्टर को रात के 12 बजे फोन कर के जगाना उचित होगा?

कुछ सोच कर भाग्यजननी ने पहले अपना वह सौफ्टवेयर खोला, जिस में सौमंपों का विस्तृत विश्लेषण करने की क्षमता थी. ‘अखअ’ के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा यह प्रोग्राम बनाया गया था. उस ने लाल रंग की लकीर बनाते हुए सौमंप के वक्र के मापदंड इस सौफ्टवेयर में एंटर किए और सौफ्टवेयर को रन किया. सौफ्टवेयर कुछ देर तक घूमता रहा, और तकरीबन 15 मिनट बाद उस ने वह ग्राफ सामने ला दिया, जिसे देख कर भाग्यजननी के होश उड़ गए.

सतेंद्र गिल ‘अखअ’ केंद्र के डायरैक्टर थे और उन की उम्र 55 पार कर चुकी थी. केंद्र की हजारों चीजों को ध्यान में रखते हुए भी उन्हें अपनी नींद बहुत प्यारी थी. न तो रात को 11 बजे के बाद वे जगे रहना पसंद करते थे, न ही सुबह को 6 बजे से पहले उठना, इसीलिए जब अपने मोबाइल की बजती घंटी से और उस के वाइब्रेशन से उन की नींद खुली तो उन्हें बेहद झल्लाहट महसूस हुई. अपनी अधखुली आंखों से सब से पहले उन्होंने समय देखा. रात के 1 बजे का समय देख कर उन्हें और भी परेशानी हुई.

अपने मोबाइल पर अपने केंद्र के वैज्ञानिक भाग्यजननी का नाम देख कर उन्होंने फोन उठाया और खीज कर प्रश्न किया, “गलती से लगा है क्या?”

भाग्यजननी ने सहमते हुए कहा, “नहीं सर. मैं विक्रम लैब के टर्मिनल सी पर हूं.”

केंद्र में हर लैब का अलगअलग नाम था. विक्रम लैब में 4 टर्मिनल ऐसे थे, जो केंद्र के सुपर कंप्यूटर ‘इंद्रांचल’ से जुड़े हुए थे और उस की संगणन शक्ति के बल पर चलते थे. इन टर्मिनलों की सारी प्रोसैसिंग ‘इंद्रांचल’ के प्रोसैसर पर होती थी.

सतेंद्र गिल ने तंग आवाज में पूछा, “क्या बात है? लैब या ‘इंद्रांचल’ से जुड़ी समस्या है, तो सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर को बुलाओ, वरना सवेरे देख लेंगे.”

सतेंद्र को फोन रख कर वापस सोने की जल्दी थी. उस ने ऐसी कई समस्याओं को देखा था, जो सिस्टम से जुड़ी हुई होती थी, लेकिन फिर भी लोग भाग कर पहले उस के पास आते थे. वे ऐसा इसीलिए करते थे, क्योंकि सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर के पास हजारों काम थे, और डायरैक्टर को बोल कर अपने परेशानी को सुलझाने में इन लोगों को प्रायोरिटी मिल सकती थी. आज भी सतेंद्र को यही लगा.

भाग्यजननी ने कहा, “नहीं सर, लैब और टर्मिनल सब सही हैं. ‘इंद्रांचल’ से भी कुछ इशू नहीं लग रहा है.”

सतेंद्र ने और भी परेशान हो कर पूछा, “तो फिर क्या बात है?”

काव्या के जाने के बाद वनराज को आएगा हार्ट अटैक,जानें अनुपमा क्या उठाएगी कदम

सीरियल अनुपमा में आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिल रहा है, इन दिनों वनराज के जीवन में अंधेरा छाया हुआ है काव्या के छोड़कर जाने के बाद से. अब एक नया ड्रामा दर्शकों को देखने को मिल रहा है.

वहीं सीरियल में इन दिनों अनुज और अनुपमा की जोड़ी को बिल्कुल अलग कर दिया है, अनुपमा में दिखाया जा रहा है कि अनुज और अनुपमा अब शायद कभी एक नहीं होंगे. अनुपमा अपने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला लेती है तो मां उसे समझाती नजर आती है.

 

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वहीं शाह हाउस में वनराज और काव्या में जमकर बहस होता है तो वनराज काव्या को घर से बाहर जानें को कह देता है. जिसके बाद से वनराज को हर्ट अटैक आ जाता है.वहीं दूसरी तरफ अनिरुद्ध काव्या को समझाते हुए नजर आता है कि तुम कैसे अकेले रहोगी तो काव्या कहती है कि मेरे बुरे दिन गए मैं अकेेले रह सकती हूं.

यहीं नहीं काव्या वनराज को भी धमकी देकर जाती है कि अब तुम अकेेले रह जाओगे तुम्हें कोई नहीं पूछेगा, वहीं वनराज भी कहीं न कहीं चाहता है कि अनुपमा फिर से उसकी जिंदगी में वापस आ जाए. वनराज काव्या के साथ  जमकर लड़ाई करती दिखती है.

प्रियंका चोपड़ा ने शेयर किया बेटी मालती का इयरिंग्स वाला लुक, फैंस ने किया ये कमेंट

प्रियंका चोपड़ा अक्सर अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं, हाल ही में प्रियंका ने अपनी बेटी मालती मैरी के साथ क्यूट सी तस्वीर शेयर कि है. जिसमें मालती मैरी इयररिंग्स पहनी नजर आ रही हैं.

मालती कि यह तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है, बता दें कि मालती ब्लू रंग की फ्लोरल ड्रेस में नजर आ रही हैं वह बेड पर बैठी हैं, जिसमें उन्होंने अपने कानों में खूबसूरत इयररिंग्स पहना है. जो कि उनके क्यूटनेस में चार चांद लगा दिया है.

प्रियंका ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है परफेक्ट मॉर्निंग मालती की तस्वीर में एक खूबसूरत नाजारा देखने को मिल रहा है. फैंस जमकर इस तस्वीर पर अपनी राय दे रहे हैं. बता दें कि मालती की इस क्यूट तस्वीर पर फैंस अपना दिल हार बैठें हैं.

बता दें कि प्रियंका चोपड़ा की बेटी सेरोगेसी से हुई है, प्रियंका ने बताया था कि हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमने सेरोगेसी से बेटी को जन्म दिया है. हम इस खूबसूरत समय के लिए इस समय के लिए आपसे कुछ वक्त की प्राइवेसी मांगते हैं.

प्रियंका औऱ निक ने साल 2018 में शादी रचाई थी, इनकी शादी जयपुर में हुई थी, जहां कुछ परिवार के सदस्य और रिश्तेदार मौजूद थें.

मेरे अपने- भाग 1, किस हादसे से नीलू को मिली सीख?

“क्या मैं नीलू से बात कर सकता हूं?” उधर से किसी ने फोन पर कहा.

“जी कहिए, मैं नीलू ही बोल रही हूं. पर आप कौन?”

“मैं इंस्पैक्टर राघव दुबे, सिटी अस्पताल से बोल रहा हूं. एक एक्सीडैंट केस है. मुझे इन की डायरी से आप का नंबर मिला है, इसलिए आप को फोन लगाया.“

“एक्सीडैंट…” इतना नाम सुनते ही नीलू के हाथपांव फूलने लगे. उसे लगा, पता नहीं किस का एक्सीडैंट हो गया, “किस का एक्सीडैंट हुआ है?”

“पता नहीं चल पा रहा है कि ये लोग कौन हैं, पर इन की गाड़ी का नंबर तो इसी शहर का है. इस एक्सीडैंट में इन का फोन भी चकनाचूर हो गया, वरना कुछ पता चल पाता.

“अच्छा, मैं आप को इन की गाड़ी का नंबर बताता हूं. शायद इस से आप इन्हें पहचान पाएं,”  गाड़ी का नंबर सुनते ही नीलू का दिमाग हिल गया. लगा कि चक्कर खा कर वहीं जमीन पर गिर पड़ेगी.

“प्लीज, जितनी जल्दी हो सके आप यहां आ जाइए. वैसे, इन की डायरी में जितने लोगों के नंबर हैं, मैं उन सब को फोन लगा रहा हूं,”  कह कर इंस्पैक्टर ने फोन रख दिया और नीलू स्तब्ध और शून्य सी सामने दीवार ताकने लगी. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हो गया अचानक से.

तुरंत उस ने अपने पति अमित को फोन लगाया, “अमित… वो नीलेश भैया और अदिति भाभी का एक्सीडैंट…” आधी बात बोल कर नीलू फूटफूट कर रोने लगी. आगे उस से कुछ बोला ही नहीं जा रहा था.

एक्सीडैंट की खबर सुन कर अमित के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अमित ने उसे हिम्मत दी कि वह घबराए नहीं, वह बस वहां पहुंच ही रहा है.

अपने 3 साल के बेटे वंश को पड़ोस की एक भाभी के पास छोड़ नीलू बदहवास सी अस्पताल की तरफ भागी. कब वह आटो में बैठी, कब अस्पताल पहुंची, कुछ होश नहीं उसे.

अमित उसे अस्पताल के बाहर ही मिल गया, तो वह उस के गले लग कर सिसक पड़ी. जब नीलू ने फोन कर के बताया था कि नीलेश भैया और अदिति भाभी का एक्सीडैंट हो गया है, तभी औफिस का सारा कामधाम छोड़ कर अमित भागता हुआ अस्पताल पहुंच गया.

कुछ देर बाद अदिति के मायके वाले भी वहां पहुंच गए. अदिति की मां का तो रोरो कर बुरा हाल था. नीलेश के पापा भी एक कोने में खड़े सुबक रहे थे.

पुलिस का कहना था कि यह हादसा एक लापरवाही की वजह से हुआ है. रौंग साइड से आते बालू से लदे एक ट्रक ने उन की गाड़ी को इतनी जोर से धक्का मारा कि दोनों गाड़ी सहित खाड़ी में जा गिरे. ट्रक ड्राइवर तो वहां से भाग गया, लेकिन वहीं हाईवे के पास से ही किसी ने पुलिस को फोन कर इस एक्सीडैंट की जानकारी दी, तब जल्दी से इन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. एक्सीडैंट इतनी बुरी तरह से हुआ था कि गाड़ी के परखच्चे उड़ गए थे, लेकिन उन की सांसें चल रही थीं इसलिए जल्दी से उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया.

“वैसे, तहकीकात चल रही है. जल्द ही ट्रक ड्राइवर पकड़ा जाएगा.”

“लेकिन, ट्रक ड्राइवर पकड़ा भी गया तो क्या हो जाएगा? इस से जो नुकसान हुआ, उस की भरपाई हो पाएगी? भारत में गलत दिशा में (रौंग साइड) गाड़ी चलाना एक बहुत बड़ी समस्या है.

“सिर्फ हाईवे पर ही नहीं, बल्कि शहरों में भी रौंग साइड ड्राइविंग आम बात है. लोग इतनी जल्दीबाजी में होते हैं कि कुछ समझते ही नहीं और अपने साथसाथ लोगों की जान भी जोखिम में डाल देते हैं. नहीं समझते लोग कि उन की ऐसी गलती से कितनों की दुनिया उजड़ जाती है, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं,” अदिति की मां रोते हुए कहने लगीं कि नीलेश और अदिति अपने किसी दोस्त की शादी से लौट रहे थे, तभी यह हादसा हो गया. वो तो शुक्र था कि दोनों बच्चे उन के पास, यानी अपने नानानानी के पास थे, तो बच गए.

“डाक्टर साहब, मेरे भैयाभाभी बच तो जाएंगे न?” नीलू डाक्टर को देख उस के पीछे भागी. लेकिन डाक्टर ‘आई एम सौरी” बोल कर आगे निकल गया.

“सौरी अमित, देखो न, डाक्टर साहब सौरी क्यों बोल रहे हैं?” वह अमित का हाथ पकड़ कर झकझोरते हुए चीख पड़ी, लेकिन अमित कैसे बताता उसे कि अब उस के भैयाभाभी इस दुनिया में नहीं रहे. लेकिन बताना तो था ही.

अपने भैयाभाभी की मौत की खबर सुन कर नीलू दहाड़ मार कर रो पड़ी. बेटीदामाद की मौत की खबर सुन अदिति की मां भी हिचकहिचक कर रोने लगीं. उस के पापा भी एक कोने में खड़े सुबकने लगे.

खैर, अब जो होना था हो ही चुका था, कुछ किया नहीं जा सकता था. परंतु, दुख इस बात का था कि दोनों बच्चे अनाथ हो गए.

नीलू के भैयाभाभी को गुजरे आज हफ्ता हो चुका था, पर नीलू अब तक उस बात को भुला नहीं पाई थी. बातबात पर वह रो पड़ती. खानेपीने से भी उस का मन उचाट हो चुका था. बारबार एक ही बात उस के दिल को मथती कि काश, एक बार वह अपने भैया से मिल ली होती, उन से बात कर ली होती.

“नीलू, संभालो खुद को. कब तक यों रोती रहोगी. होनी पर किसी का बस चला है कभी, इसलिए खुद को कोसना बंद करो अब,” अमित उसे समझाता. लेकिन, नीलू भी क्या करे, कैसे समझाए खुद को. मायके में एक भैयाभाभी ही तो बचे थे, जिसे वो अपना कह सकती थी. अब वे दोनों भी नहीं रहे, यह बात उसे जीने नहीं दे रही थी कि एक बार वह अपने भैया से माफी भी नहीं मांग पाई. अगर मांग ली होती तो आज उसे इतना दुख न होता.

“हां, मानती है, नीलेश के दिल में अपनी बहन के लिए बहुत नफरत भरी हुई थी और वो उस से अपना सारा रिश्ता खत्म कर चुके थे. लेकिन अगर नीलू ही आगे बढ़ कर उन से एक बार बात कर लेती, तो क्या चला जाता उस का? कोई छोटी तो नहीं हो जाती न? लेकिन वो भी इसी अकड़ में जीती रही कि अगर उस के भैया को उस की जरूरत नहीं है, तो वह क्यों परवाह करे.

‘काश, वक्त पीछे जा पाता, काश, एक बार वह अपने भैया से बात कर पाती,’ अपने मन में सोच कर नीलू बिलखबिलख कर रो पड़ी. अपने आंसू पोंछते हुए वह 5 साल पीछे चली गई.

नीलू के पापा महादेव प्रसाद पोस्ट औफिस में एक छोटे से पद पर कार्यरत थे. शौक तो उन का अपने बच्चों को डाक्टरइंजीनियर बनाने का था, पर पारिवारिक जिम्मेदारियां इतनी बड़ी थीं कि उन का सपना, सपना ही रह गया.

बूढ़े मांबाप दो जवान बहनों की जिम्मेदारी निभाते हुए ही रिटायर्ड हो गए. लेकिन उन के दोनों बच्चे नीलू और नीलेश बचपन से ही पढ़ने में होशियार रहे थे, इसलिए ग्रेजुएशन के बाद पहले ही प्रयास में नीलेश यूपीएससी क्रैक कर एक बड़ा अधिकारी बन गया और नीलू भी एक सरकारी बैंक में बड़ी अधिकारी बन गई.

महादेव प्रसाद के तो दिन ही फिर गए. उन्हें तो यही लग रहा था कि ये उन के अच्छे कर्मों का फल है, जो आज उन्हें दोनों बच्चों के द्वारा मिल रहा है.

महादेव प्रसाद की आंखों में अब अपने बेटे की शादी के सपने पलने लगे, तो एक अच्छी लड़की देख कर उन्होंने नीलेश की शादी कर दी.

अदिति काफी सुलझी हुई, संस्कारी और सरल स्वभाव की थी. आते ही उस ने अपने प्यार से इस घर में सब का मन मोह लिया. इतनी अच्छी बहू पा कर महादेव प्रसाद और उन की पत्नी तो धन्य हो गए.

शादी के एक साल बाद ही अदिति ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियां ही खुशियां छा गईं. अब महादेव प्रसाद को एक ही बात की चिंता थी कि नीलू की किसी अच्छे घर में ब्याह हो जाए. लेकिन फिर सोचते कि बेटी इतनी बड़ी पोस्ट पर है तो लड़का भी अच्छा मिल ही जाएगा, चिंता की क्या बात है, बल्कि लड़के वाले खुद उन की बेटी का हाथ मांगने आएंगे.

महादेव प्रसाद और उन की पत्नी की अपने भरेपूरे परिवार के साथ जिंदगी मजे से गुजर रही थी. लेकिन अचानक से कोरोना ने आ कर ऐसा कहर ढाया कि दोनों पतिपत्नी कोरोना के काल में समा गए.

घर में खुशियों की जगह  मातम सा छा गया. समय ही ऐसा था कि इनसान इनसान से भाग रहा था. इसलिए कोई रिश्तेदार, पड़ोसी भी मिलने या दुख बांटने नहीं आए उन के पास. अब भाईबहन ही एकदूसरे का सहारा रह गए थे.

चालाकियां- भाग 1, वंशा ने क्यों बनाया विक्ट्री का साइन?

“कहां हो, वंशा. तुम्हारी प्यारी दीदी का फोन आ रहा है.”

वंशा ने किचन से  निकल कर हंसते हुए कहा, “क्यों, तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है कि अपनी साली से बात कर लो.”

कमाल ने कानों पर हाथ लगाया और यह देख कर वहां बैठी उन की 20 साल की बेटी कल्कि भी हंस पड़ी, “मम्मी, आप की बहन से पापा को एक खौफ सा आता है. इतना तो पापा किसी हौरर फिल्म से नहीं डरते.”

वंशा ने अपने से 10 साल बड़ी अपनी बहन वरदा को कौलबैक किया. आम ‘हाय हेलो’ के बाद वंशा का मुंह उतर गया. कमाल और कल्कि लगातार उस का उतरा मुंह देख रहे थे.

“अच्छी बात है, ठीक है, बहुत अच्छा,” कह कर फोन रखते हुए वंशा पति और बेटी के पास बैठ गई. उन दोनों ने एकसाथ पूछा, “अब क्या हुआ?”

एक ठंडी सांस ले कर वंशा ने कहा, “जीजू और नेहा के साथ दीदी मुंबई घूमने आ रही हैं 10  दिनों के लिए.”

कमाल और कल्कि को हंसी आ गई. कमाल ने कहा, “परेशान क्यों होती हो? सब मिल कर झेल लेंगे.”

“जो चालाकियां पिछले साल आ कर दिखा कर गई थीं, वही सब फिर नहीं देखी जाएंगी. मुझे बिलकुल सहन नहीं होता है. हमारी अंतर्जातीय शादी पर सब से ज़्यादा बवाल इन्होंने ही मचाया था, अब मुंबई, शिरडी, नासिक के मंदिरों के दौरे के समय हमारा घर इन का ठिकाना बन जाता है. आ कर नचा कर रख देती हैं. एक तरफ इतनी कट्टर हिंदू बनती हैं, दूसरी तरफ अपने मतलब के लिए एक मुसलिम के घर में ऐश भी करनी है.”

“मम्मी, आप मौसी को मना कर दो. पिछली बार भी उन के जाने के बाद आप का बीपी कितने दिन हाई रहा था.”

“मेरे लिए तो मायके का मतलब ही बीपी हाई है.”

उस के कहने के ढंग पर कमाल हंस पड़ा, “परेशान मत हो, 10 दिनों की ही बात है.”

कमाल औफिस चला गया, कल्कि कालेज. वंशा मन ही मन कलपती घर के काम निबटाती रही. मन थका हो तो तन भी जल्दी थकता है. वह थोड़ी देर लेट गई.

बहन के नाम से उस का बीपी सचमुच बढ़ता था. कमाल के साथ उस ने प्रेमविवाह किया था. मां, बाबा शुरू में नाराज़ रहे. लेकिन वंशा को कमाल के साथ हमेशा खुश देख कर उन्होंने कमाल को अपना लिया था. पर अब वे इस दुनिया में नहीं थे. यह एक बहन थी, वरदा. हद से ज़्यादा चालाक. अपना काम निकालने वाली. ढोंगी, खूब पूजापाठ करती पर बेहद स्वार्थी. अमीर पर कंजूस. लालची, तुनकमिज़ाज.

वंशा 20 साल से मुंबई में है. छोटे से कसबे शामली से आई वंशा अब कमाल के साथ मुंबई के जीवन में अच्छी तरह से रचबस गई है.

वरदा का विवाह वहीं शामली में एक कपडे के व्यवसायी से हुआ है. उन की बेटी नेहा की अब शादी हो चुकी है. नेहा बिलकुल अपनी मां जैसी है. दोनों मांबेटी अपना घरबार छोड़ मंदिरों, तीर्थों की यात्रा ख़ुशीख़ुशी करती हैं और अपने रिश्तेदारों का जम कर फ़ायदा उठाती घूमती हैं और बाद में सभी के घर की बुराइयां निकालती हैं.

यह सब जानने के बाद वंशा कैसे ख़ुशीख़ुशी बहन का स्वागत करे. वह तो कमाल और कल्कि हैं जो ऐसे लोगों से शांति से निबट लेते हैं. दोनों हंस कर कहते हैं, “ऐसे लोगों के लिए ‘इग्नोराय नमः’ मंत्र ठीक रहता है, इन्हें इग्नोर करो, बस.”

वरदा के पति पुष्कर पक्के धर्मकर्म वाले. अपनी दुकान पर मीठामीठा बोल कर कपड़े तो खूब बेच लेते हैं पर उन के साथ कुछ दिन बिताने पर मन की असली कड़वाहट बाहर आ ही जाती है. सारी मिठास, बस, ग्राहकों के लिए ही है, यह सोचते हुए वंशा को हंसी आ गई.

शाम को कमाल और कल्कि आए, ध्यान से वंशा को देखा, दोनों बोले, “दिनभर अपनेआप को बहन के स्वागत के लिए मैंटली तैयार कर चुकी हो न? स्वैग से करोगी सब का स्वागत?”

“हां,” कहते हुए वंशा सचमुच ज़ोर से हंस ही दी, बोली, “क्या कर सकती हूं. छोटी बहन होने की सजा तो भुगतनी ही है, दुखीदुखी ही सही.”

वंशा का थ्री बैडरूम फ्लैट मलाड में था. कभीकभी कमाल के पेरैंट्स और भाई उन के पास आते रहते थे, इसलिए कमाल ने  काफी जगह वाला यह फ्लैट ले लिया था. वरदा ने एयरपोर्ट से ही फ़ोन किया, “वंशा, हम ने लैंड कर लिया है. सामान लेने के लिए बेल्ट के पास खड़े हैं. कमाल लेने आया है न?”

Mother’s Day 2023: मां का दिल महान

‘‘तुम चिंता मत करो, शायक. कोई न कोई राह निकल ही आएगी. पर इस के लिए हम मां को दुख तो नहीं पहुंचा सकते.’’

शायक कसमसा कर रह गया. उस का बस चलता तो वह कुछ अप्रत्याशित कर बैठता पर उस ने चुप रहना ही ठीक समझा.

इस बहस से कामिनी भी आहत हुई थीं पर रम्या से वादा कर दिया था इसलिए उस की सहायता को चली गई. आज उस की गतिविधियों पर उन की पैनी नजर थी. शीघ्र ही उन्हें आभास हो गया कि शायक उन से अधिक समझदार है. रम्या को केवल उन की सहायता नहीं चाहिए थी वह तो सारा काम उन्हीं से करवा रही थी. वह बड़ी होशियारी से उन की प्रशंसा के पुल बांधे जा रही थी. मानो इसी तरह उन्हें बरगला लेगी.

‘‘बालूशाही तो लाजवाब बनी हैं, दहीबड़े और बना दीजिए. आप के हाथों में तो जादू है,’’ बालूशाही बनते ही रम्या ने आगे का कार्यक्रम तैयार कर दिया.

‘‘रम्या बेटी, थक गई हूं. सुबह से काम कर रही हूं. एक कप चाय तो पिला,’’ कामिनी हंसीं.

‘‘पिलाऊंगी, चाय भी पिलाऊंगी. पहले काम तो समाप्त हो जाने दीजिए.’’

रम्या का उत्तर सुन कर दंग रह गईं कामिनी. वे उठ खड़ी हुईं.

‘‘अरे, जा कहां रही हैं आप? काम हो जाने के बाद चाय पी कर चली जाइएगा.’’

‘‘थोड़ी देर आराम कर के आऊंगी, बेटे. बैठेबैठे कमर में दर्द होने लगा है.’’

‘‘इतने नखरे क्यों दिखा रही हैं आप? पैसे दूंगी. मैं किसी से मुफ्त में काम नहीं करवाती,’’ रम्या बदतमीजी से बोली.

कामिनी अविश्वास से घूरती रह गईं. न आंखों पर विश्वास हुआ न कानों पर. रम्या ने उस के बाद क्या कहा, वे सुन नहीं सकीं. चुपचाप उस के अपार्टमैंट से बाहर निकल आईं. पर वे अपने फ्लैट तक पहुंच पातीं, इस से पहले ही सुजाताजी मिल गईं.

‘‘मैं तो आप के यहां ही गई थी पर आप के यहां ताला पड़ा था,’’ वे उन्हें देखते ही बोलीं.

‘‘मेरे पास घर की एक चाभी हुआ करती है, इसलिए चिंता की बात नहीं है. चलिए न, मैं तो घर ही जा रही थी,’’ कामिनी बोलीं.

सुजाता कामिनी के साथ चली आईं.

‘‘आइए न, बैठिए. मैं अभी आई,’’ कामिनी ने सोफे की ओर इशारा किया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई. आप का हिसाब करने आई हूं.’’

‘‘हिसाब? कैसा हिसाब?’’

‘‘आप ने 4-5 दिनों तक मेरी सेवा की, उसी का हिसाब,’’ उन्होंने 500 का नोट दिखाते हुए कहा.

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने पैसों के लिए आप की सेवा की थी क्या?’’

‘‘अरे तो इस में शरमाने की कौन सी बात है. आजकल के बच्चे ऐसे ही हैं. कितना भी कमाते हों पर मातापिता पर कुछ भी खर्च करने से कतराते हैं,’’ सुजाता नाटकीय स्वर में बोलीं, ‘‘मैं क्या समझती नहीं. कोई बिना मतलब किसी की सहायता क्यों करने लगा? अपने मुंह से कहना आवश्यक थोड़े ही है. 500 रुपए कम हैं क्या? 100 रुपए और ले लीजिए.’’

‘‘बस कीजिए, मैं कुछ कह नहीं रही तो आप जो मन में आए कहे जा रही हैं. आप बीमार थीं, कोई देखभाल करने वाला नहीं था. मानवता के कारण आप की देखभाल कर दी तो आप मुझे अपमानित करने चली आईं,’’ कामिनी क्रोधित हो उठीं.

‘‘लो, भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा. मैं तो आप की सहायता करना चाह रही थी. रम्या से आप की सिफारिश मैं ने ही की थी. कल आप वहां भी लड्डू बना कर आई थीं. अब भी तो वहीं से आ रही थीं आप?’’

‘‘मैं क्या आप को घरघर जा कर काम करने वाली लगती हूं? शरम नहीं आती आप को? आप जैसों को खरीदने की हैसियत है मेरी. निकल जाइए यहां से. मुझे नहीं पता था कि यहां के लोग मानवता की भाषा भी नहीं समझते,’’ वे अपने स्वभाव के विपरीत चीख उठीं.

‘‘लो, मैं ने ऐसा क्या कह दिया, इस तरह आपा क्यों खो रही हैं आप?’’ सुजाता ने कामिनी के घर से निकलते हुए कहा.

उन के जाते ही कामिनी कटे वृक्ष की भांति कुरसी पर गिर गईं. उठ कर चाय बनाने की भी हिम्मत नहीं हुई. वहीं बैठेबैठे सो गई थीं. जब द्वार की घंटी बजी, द्वार खोला तो सामने शुचि खड़ी थी. ‘‘अंदर आओ न,’’ उसे वहीं खड़े देख कर वे बोलीं. तभी समवेत खिलखिलाहट का स्वर गूंजा.

‘‘अरे कौन है? शुचि, आज क्या आर्यन और अदिति को घर ले आई है?’’

‘‘हां दादी. हम दोनों आ गए हैं ऊधम मचा कर आप को सताने. मां कह रही थीं आप का अकेले मन नहीं लग रहा है.’’

मां के पीछे खड़े दोनों बच्चे उन के सामने आ खड़े हुए.

‘‘हां रे, मैं तो वापस जाने की सोच रही थी.’’

‘‘दादी, आप यहां आ जाओ तो हम छात्रावास छोड़ कर घर में रहने लगें.’’

‘‘पहले क्यों नहीं कहा? अपने घर को किराए पर दे कर यहीं आ जाती.’’

‘‘तो अब आ जाओ न, दादीमां,’’ दोनों उन के गले लग कर झूल गए.

Mother’s Day 2023: बड़ा चोर- प्रवेश ने अपने व्यवहार से कैसे जीता मां का दिल?

mother’s day मौल की सीढि़यां उतरते वक्त मैं बेहद थक गई थी. अंतिम सीढ़ी उतर कर खड़ेखड़े ही थोड़ा सुस्ताने लगी. तभी पीछे से एक मोटरसाइकिल तेजी से आई. उस पर पीछे बैठे नवयुवक ने झपट्टा मार कर एक झटके से मेरे गले से सोने की चेन तोड़ ली और पलक झपकते ही मोटरसाइकिल गायब हो गई.

मेरे मुंह से कोई बोल फूट पाते, इस से पहले ही एकदो प्रत्यक्षदर्शी ‘चोरचोर’ कहते मोटरसाइकिल के पीछे भागे पर 5 मिनट बाद ही मुंह लटकाए वापस लौट आए. चिडि़या उड़ चुकी थी. मेरे चारों ओर भीड़ जमा होने लगी. कोलाहल बढ़ता ही जा रहा था. थकान और घुटन के मारे मुझे चक्कर से आने लगे थे. इस से पहले कि मैं होश खो कर जमीन पर गिरती, 2 मजबूत बांहों ने मुझे थाम लिया.

‘‘हवा आने दीजिए आप लोग…पानी लाओ,’’ बेहोश होने से पहले मुझे ये ही शब्द सुनाई दिए. मैं ने पलकें झपकाते हुए जब फिर से आंखें खोलीं तो भीड़ छंट चुकी थी. एकदो लोग कानाफूसी करते खड़े थे. मैं मौल की अंतिम सीढ़ी पर लेटी थी और मेरा सिर एक युवक की गोद में था. हौलेहौले एक फाइल से वह मुझ पर हवा कर रहा था.

‘‘कैसी तबीयत है, मांजी?’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं,’’ कहते हुए मैं ने उठने का प्रयास किया तो उस ने सहारा दे कर मुझे बिठा दिया.

‘‘माताजी, चेन पहन कर मत निकला कीजिए. अब तो पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से भी कुछ नहीं होना…वह तो शुक्र मनाइए कि चेन ही गई, गरदन बच गई…’’ आसपास खड़े लोग राय दे रहे थे. मेरे पास चुप रहने के सिवा कोई चारा न था, जबकि मन में आक्रोश फूटा पड़ रहा था. ‘यही है आज की जेनरेशन…देश का भविष्य. हट्टेकट्टे नौजवान बुजुर्गों का सहारा बनने के बजाय उन्हें लूट रहे हैं? भारतीय संस्कृति का मखौल उड़ा रहे हैं.’

‘‘कहां रहती हैं आप? मैं छोड़ देता हूं,’’ युवक अब तक खड़ा हो गया था.

‘‘यहीं मौल के पीछे वाली गली में.’’

‘‘बाइक पर बैठ जाइए आप? मुझे पीछे से मजबूती से पकड़ लीजिएगा.’’

मैं ने कहना तो चाहा कि मैं पैदल चली जाऊंगी पर चंद कदमों का फासला मीलों का सफर लगने लगा था. इसलिए मैं ने उस युवक की बात मान लेने में ही भलाई समझी. बाइक चली तो ठंडी हवा के झोंके से तबीयत और भी संभल गई. पुराने दिनों की यादें ताजा हो उठीं जब रीना और लीना को ले कर उन के पापा के संग स्कूटर पर पिक्चर देखने और खरीदारी करने जाती थी. रीना आगे खड़ी हो जाती थी और लीना मेरी गोद में. स्कूटर के स्पीड पकड़ते ही संयुक्त परिवार की सारी जिम्मेदारियां, चिंताएं पीछे छूट जाती थीं और खुली हवा में मन एकदम हल्का हो जाता था. कभीकभी तो बिना किसी विशेष काम के ही मैं दोनों बच्चियों को लाद कर इन के संग निकल पड़ती थी. जिंदगी की उन छोटीछोटी खुशियों का मोल अब समझ में आता है.

‘‘बस, यहीं नीले गेट के बाहर,’’ मिनटों का फासला सैकंडों में ही तय हो गया था.

‘‘अरे, यहां तो ताला लगा है?’’ युवक ने चौंक कर पूछा.

मैं ने हंसते हुए चाबी निकाल ली. चेन जाने का गम काफी हद तक अब कम हो गया था.

‘‘वह इसलिए कि मैं अकेली ही रहती हूं. आओ, अंदर आओ,’’ ताला खोल कर मैं उसे अंदर ले गई. फ्रिज से पानी की बोतल निकाली. खुद भी पिया और उसे भी पिलाया. युवक बैठक में सजी तसवीरें देख रहा था, ‘‘ये मेरे पति हैं, जो अब नहीं रहे. और ये दोनों बेटियां और उन का परिवार. दोनों यूरोप में सैटल हैं. 2 बार मुझे भी वहां ले जा चुकी हैं पर मैं महीने भर से ज्यादा वहां नहीं रह पाती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, ऐसे ही…मन ही नहीं लगता. दामाद मां जैसा ही स्नेह और सम्मान देते हैं, पर मेरा मन तो यहां इंडिया में ही अटका रहता है. पता नहीं ये मेरे अंदर छिपे दकियानूसी भारतीय संस्कार हैं या कुछ और…वैसे यहां मेरा वक्त बहुत अच्छे से गुजर जाता है. पूजापाठ, आसपास की औरतों, बहूबेटियों से गपशप…कभी वे आ जाती हैं, कभी मुझे बुला लेती हैं… लो, मैं भी क्या अपनी ही गाथा ले कर बैठ गई. चाय पिओगे या शरबत?’’

‘‘बस, कुछ नहीं. अस्पताल जा रहा…’’

‘‘अस्पताल क्यों? कोई बीमार है?’’ मैं बीच में ही बोल पड़ी.

‘‘अरे, नहीं. मैं डाक्टर हूं. ड्यूटी पर जा रहा था. यहां से तीसरी गली में नालंदा स्कूल के पास रहता हूं. कभी फुरसत में आऊंगा आप की चाय पीने.’’

‘‘अच्छा बेटा, मदद के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘क्या मांजी, आप भी बेटा कहती हैं और धन्यवाद देती हैं,’’ वह मुसकराया और किक लगा कर चलता बना.

अंदर आ कर चाय के कप समेटते मुझे खयाल आया कि मैं ने उस का नाम तो पूछा ही नहीं. अजीब भुलक्कड़ हूं. अपनी सारी रामायण बांच दी और भले आदमी का नाम तक नहीं पूछा. इसीलिए तो रीना व लीना को हमेशा मेरी चिंता लगी रहती है. मैं अपने ही खयालों की दुनिया में खोई सोचने लगी, ‘मां, आप बहुत सीधी और सरल हैं. ठीक है, आसपड़ोस अच्छा है, रिश्तेदार भी संभालते रहते हैं. पर आप हमारे पास आ कर रह जाएं तो हम निश्ंिचत हो जाएं.’

‘मैं यहां बहुत खुश और मजे से हूं मेरी बच्चियों. मुझे अपनी जड़ों से मत उखाड़ो वरना मैं मुरझा जाऊंगी. जब तुम मेरी उम्र की होओगी तभी मेरी भावनाओं को समझ पाओगी,’’ दोनों बेचारी मायूसी में विदा हो जातीं.

दोनों दामादों के साथ दोनों बेटियां भी अच्छी नौकरी में हैं. किसी चीज की कमी नहीं है. मैं जब भी कुछ देना चाहती हूं, वे नम्रता से अस्वीकार कर देते हैं. बस, नातीनातिनों को ही दे कर मन को संतुष्ट कर लेती हूं. पिछली बार जब दोनों आईं तो मैं बैंक से अपने सारे गहने निकाल लाई.

‘तुम दोनों ये बराबरबराबर बांट लो. मुझ पके आम का क्या भरोसा? कब टपक जाऊं?’ दोनों ने पिटारी समेटी और फिर से मेरी झोली में रख दी.

‘हमारे तो शादी वाले गहने भी यहां इंडिया में ही पड़े हैं, मां. वहां इन सब का कोई काम नहीं है आप ही इन्हें बदलबदल कर पहना करें. थोड़ी हवा तो लगेगी इन्हें.’ मेरी पिटारी ज्यों की त्यों वापस लौकर में पहुंचा दी गई थी. दोनों दामाद भी मेरी बराबर परवा करते थे. अभी कल ही छोटे दामाद ने याद दिलाया था, ‘मम्मी, आप के रुटीन चैकअप का वक्त हो गया है. कल करवा आइएगा. मलिक को बोल दिया है न?’ मलिक हमारा विश्वासपात्र आटो वाला है. कभी भी, कहीं भी फोन कर के बुला लो, मिनटों में हाजिर हो जाएगा. यही नहीं, पूरे वक्त बराबर साथ भी बना रहेगा. घर का ताला खोल कर, सामान सहित अंदर पहुंचा कर ही वह लौटेगा.

अगले दिन वह वक्त पर आ गया था लेकिन ड्यूटी पर डाक्टर नदारद था. मुझे बैंच पर बैठा कर वह डाक्टर का पता करने गया. तभी सफेद कोट पहने, गले में स्टेथेस्कोप लटकाए वही युवक मुझे नजर आ गया.

‘‘अरे, मांजी? आप यहां? सब ठीक तो है?’’

‘‘हां, रुटीन चैकअप के लिए आई थी. लेकिन डाक्टर सीट पर नहीं है.’’

‘‘कौन? खुरानाजी? वे तो आज छुट्टी पर हैं. दिखाइए, कौनकौन से टैस्ट, चैकअप आदि हैं?’’

वह कुछ देर परची पढ़ता रहा था, ‘‘हूं, इन में से 2 तो मैं ही कर दूंगा और बाकी भी करवा दूंगा. चलिए, आप मेरे साथ…’’

तभी मलिक भी डाक्टर के छुट्टी पर होने की खबर ले कर लौट आया था. मैं ने मलिक को पूरी बात बताई और बोली, ‘‘बेटे, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘प्रवेश शर्मा.’’

‘‘तो प्रवेश, इसे कितनी देर बाद बुलाऊं?’’

‘‘आप इसे रवाना कर दीजिए. टैस्ट होने तक लंच टाइम हो जाएगा. मैं घर जाऊंगा तो आप को भी छोड़ दूंगा.’’

घर लौट कर खाना खा कर मैं लेटी तो देर तक प्रवेश के ही बारे में सोचती रही. ‘कितना अच्छा लड़का है. दिल का जितना अच्छा है, उतना ही प्रोफेशनली साउंड भी है. पूरे वक्त मांजीमांजी ही पुकारता रहा. अस्पताल में तो सब मुझे उस की सगी मां ही समझ कर ट्रीट कर रहे थे…पर अब तक भी मैं ने उस के घरपरिवार के बारे में नहीं पूछा. शादीशुदा तो क्या होगा, कुंआरा ही लगता है. चलो, कल उस के घर हो कर आती हूं. पता बताया तो था उस ने.’

अगले दिन ही मैं ढूंढ़तेढूंढ़ते उस के घर पहुंच गई. वह अस्पताल से लौटा ही था.

‘‘अरे, मांजी आप? मैं तो अभी आप के पास ही आ रहा था. ये आप की 2 रिपोर्टें तो आ गई हैं. ठीक हैं. एक कल आएगी, मैं पहुंचा दूंगा. आप बैठिए न,’’ उस ने कुरसी पर फैले कपड़े समेटते हुए जगह बनाई.

‘‘अकेला हूं तो घर ऐसे ही फैला रहता है.’’

‘‘क्यों? घर वाले कहां गए?’’

‘‘मम्मीपापा और बड़े भैया, बस ये 3 ही लोग हैं परिवार के नाम पर. बड़े भैया एक दुस्साध्य बीमारी से पीडि़त हैं. मेडिकल टर्म में आप समझ नहीं पाएंगी. साधारण भाषा में अपने दैनिक कार्यों के लिए भी वे मम्मीपापा पर आश्रित हैं. पापा रिटायर हो चुके हैं. बड़ी उम्मीदों से वे मकान बेच कर, पैसा जुटा कर भैया को इलाज के लिए विदेश ले गए हैं. वे तो चाहते हैं कि मैं भी वहीं सैटल हो जाऊं. जितना पैसा मैं वहां कमा सकता हूं उतना यहां जिंदगी भर नहीं कमा पाऊंगा, लेकिन मैं अपनी प्रतिभा का लाभ अपने ही देश के लिए करना चाहता हूं. जहां पैदा हुआ, पलाबढ़ा, शिक्षा पाई, उसे जब कुछ देने का वक्त आया तो छोड़ कर चला जाऊं?…पर मांबाप और बड़े भैया के प्रति भी मेरा कर्तव्य बनता है. मैं यहां एक किराए के कमरे में गुजारा कर रहा हूं. अस्पताल के अलावा प्राइवेट क्लीनिक में भी काम कर के पैसा जुटाता हूं और उन्हें भेजता हूं. मैं किसी पर कोई एहसान नहीं कर रहा. बस, देश और बड़ों के प्रति अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं.’’

प्रवेश ने मेरा विश्वास जीत लिया था. यदि मेरे कोई बेटा होता तो निश्चित रूप से प्रवेश जैसा ही होता. वही सोचने का अंदाज, वही संस्कार मानो मुझ से घुट्टी पी कर बड़ा हुआ हो. मैं अकसर कुछ न कुछ खास बना कर उसे फोन कर देती. उस के उधड़े कपड़े मरम्मत कर देती. कभी जा कर उस का कमरा ठीक कर आती. वह भी बेटे की तरह मेरा खयाल रखता था. मेरे बुखार में वह पूरी रात मेरे सिरहाने बैठा पानी की पट्टियां बदलता रहा. 2-3 दिन प्रवेश नहीं आया तो मैं व्याकुल हो गई. खीर बना कर मैं ने उसे फोन किया. फोन उस के दोस्त सकल ने उठाया. उस ने बताया कि प्रवेश आपरेशन थियेटर में है.

‘‘वह काफी दिनों से आया नहीं, उस की तबीयत तो ठीक है?’’ मैं अपनी व्यग्रता छिपा नहीं पा रही थी.

‘‘हां, ठीक ही है. वह तो मोना वाले कांड को ले कर अपसेट चल रहा है.’’

‘‘मोना? कौन मोना?’’

‘‘उस ने आप को बताया नहीं? मुझ से तो कह रहा था हम एकदूसरे से सब बातें शेयर करते हैं. तो फिर रहने दीजिए. वह मुझ पर गुस्सा होगा.’’

‘‘नहीं, तुम्हें मेरी कसम. मुझे पूरी बात बताओ.’’

‘‘मोना हमारे बौस की बेटी है. बौस उस की शादी प्रवेश से कर के प्रवेश को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहते हैं. पर वह अपने आदर्शों पर अड़ा है. न तो वह मोना जैसी आधुनिका से शादी के लिए तैयार है और न विदेश में बसने के लिए.’’

‘‘फिर…’’ मेरी सांस अटकने लगी थी.

‘‘बौस ने उसे किसी बिगड़े हुए केस में फंसा दिया. एकाध दिन में उस के सस्पैंशन के आर्डर आने वाले हैं. हम लोग तो समझा रहे हैं कि बदनाम होने से अच्छा है पहले ही रिजाइन कर दो और अपना एक छोटा सा नर्सिंगहोम खोल लो.’’

‘‘सही है,’’ मैं सकल की बातों से सहमत थी.

‘‘पर आंटी, पैसे की समस्या है. प्रवेश जैसा खुद्दार लड़का किसी के आगे हाथ भी तो नहीं फैलाएगा.’’

‘‘अच्छा, उसे शाम को घर भेज देना. मैं ने उस के लिए खीर बनाई है.’’

शाम को उदास चेहरे और पपड़ाए होंठों के साथ प्रवेश कमरे में प्रविष्ट हुआ तो मैं समझ गई, वह रिजाइन कर के आ रहा है. मैं ने उस के हाथमुंह धुलाए और खीर की कटोरी पेश कर दी. वह चुपचाप खाने लगा. मुझे उस पर बेहद लाड़ आ रहा था. उस के बालों में उंगलियां फिराते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम रिजाइन कर आए?’’

‘‘हूं…आप को किस ने बताया?’’ वह बेतरह चौंक उठा.

‘‘परेशान होने की जरूरत नहीं है. अपनी इतनी बड़ी परेशानी तुम ने मुझ से, अपनी मां से छिपाई? तुम अपना नर्सिंगहोम खोलो. पैसा मैं दूंगी. कैश कम होगा तो गहने दूंगी.’’

‘‘नहीं, मांजी, नहीं मैं आप से पैसे…’’

‘‘क्यों? क्या मुझे अपनी मां नहीं मानते? यह मांजीमांजी की पुकार ढोंग है? वह रातरात भर पलक झपकाए बिना मेरे सिरहाने बैठना, दवाइयां लाना, देना, बुखार नापना दलिया खिलाना…’’

‘‘पर मैं यह सब…कैसे चुका पाऊंगा?’’

‘‘चुकाने की जरूरत भी नहीं…’’

‘‘नहींनहीं, फिर मैं यह सब नहीं लूंगा.’’

‘‘अच्छा, उधार समझ कर ले लो. धीरेधीरे चुकता कर देना. तुम जैसा खुद्दार आदमी कभी नहीं झुकेगा, मुझे मालूम था. मैं कल ही बैंक से सारा रुपया निकलवाती हूं. अब मुसकराओ और एक कटोरी खीर और लो.’’

अगले दिन प्रसन्नचित्त मन से बैंक से गहनों की पिटारी और ढेर सारा कैश ले कर मैं बाहर निकली. प्रवेश आएगा तो कितना खुश होगा. अगले ही पल मुझे खयाल आया, प्रवेश तो रिजाइन कर चुका है. फिर तो वह घर पर ही होगा. मैं ने मलिक से आटो उधर मोड़ने को कहा. दरवाजा खुला था. बैग लिए दरवाजे के समीप पहुंचते ही मेरे कदम ठिठक गए. प्रवेश और सकल का वार्तालाप साफ सुनाई दे रहा था :

‘क्या फांसा है तू ने बुढि़या को, कल सारा पैसा, गहने ले कर तू विदेश रफूचक्कर हो जाएगा और वहां माइकल के साथ नर्सिंगहोम की पार्टनरशिप में करोड़ों कमाएगा. क्याक्या कहानियां गढ़ी और कैसेकैसे नाटक किए तुम ने बुढि़या को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए. मेरे लिए भी कोई ऐसी बुढि़या फांस दे तो मैं भी वहां आ कर तुझे ज्वाइन कर लूं. आखिर तुम्हारे कहे अनुसार मोना वाली कहानी सुना कर मैं ने भी तुम्हारी हैल्प की है.’

‘श्योर, श्योर व्हाइ नौट,’ प्रवेश की खुशी में डूबी लड़खड़ाती आवाज उभरी. शायद उस ने पी रखी थी, ‘वैसे यही मुरगी क्या बुरी है? मेरे भाग जाने के बाद तुम इस के आंसू पोंछना. मुझे खूब गालियां देना कि वह तो भेड़ की खाल में भेडि़या निकला…बुढि़या के पास खजाना है. बेटियों के भी गहने रखे हैं. बहुत जल्दी भावनाओं में बह जाती है. तुझे थोड़ा वक्त लग सकता है, क्योंकि दूध का जला छाछ को भी फूंकफूंक कर पीता है…’ दोनों का सम्मिलित ठहाका मेरे कानों को बरछी की तरह बींध गया. मेरे कदम जो मुड़े तो फिर आटो तक आ कर ही रुके.

‘‘मलिक, वापस बैंक चलो,’’ बैग को मजबूती से थामे हुए मैं ने दृढ़ता से कहा. मेरा सबकुछ लुटतेलुटते बालबाल बच गया था. मुझे खूब खुश होना चाहिए था लेकिन मेरी आंखों से निशब्द अनवरत आंसू टपक रहे थे. इतना दुख तो मुझे सोने की चेन छिन जाने पर भी नहीं हुआ था.

रिश्तों का सच -भाग 2 : क्या दोनों के मन की गांठें कभी खुल सकीं

दोनों के बीच बढ़ते तनाव को देख अभी तक खामोशी से सबकुछ देख रहे पिताजी ने आखिरकार एक दिन रात को खाने के बाद टहलने के लिए निकलते समय उसे भी साथ ले लिया था. वे उसे समझाते हुए बोले थे, ‘पतिपत्नी के संबंध का अजीब ही कायदा होता है, इस रिश्ते के बीच किसी तीसरे की उपस्थिति बरदाश्त नहीं होती है…’ ‘लेकिन दीदी कोई गैर नहीं हैं,’ बीच में ही बात काटते हुए, रवि का स्वर रोष से भर उठा था.

‘बेटा, विवाह के बाद सब से नजदीकी रिश्ता पतिपत्नी का ही होता है. बाकी संबंध गौण हो जाते हैं. माना कि सभी संबंधों की अपनीअपनी अहमियत है, लेकिन किसी भी रिश्ते पर कोई रिश्ता हावी नहीं होना चाहिए, वरना कोई भी सुखी नहीं रहता. तुम्हीं बताओ, इतनी कोशिशों के बाद भी क्या तुम्हारी दीदी खुश है?’ समझातेसमझाते पिताजी सवाल सा कर उठे थे. ‘तो मैं क्या करूं? चंद्रिका की खुशी के लिए उन से सारे संबंध तोड़ लूं या फिर दीदी के लिए चंद्रिका से,’ रवि असमंजस में था, ‘आप तो जानते ही हैं कि दोनों ही मुझे कितनी प्रिय हैं.’

‘संबंध तोड़ने के लिए कौन कहता है,’ पिताजी धीरे से हंस पड़े थे, फिर गंभीर हो, बोले, ‘यह तो तुम भी मानते ही होगे कि चंद्रिका मन से बुरी या झगड़ालू नहीं है. मेरा कितना खयाल रखती है, तुम्हारे लिए भी आदर्श पत्नी सिद्ध हुई है.’ ‘फिर दीदी से ही उस की क्या दुश्मनी है?’ रवि के इस सवाल पर थोड़ी देर तक उसे गहरी नजरों से देखने के बाद वे बोले ‘कोई दुश्मनी नहीं है. याद करो, पहली बार वह भी कितनी उत्साहित थी. इस सब के लिए. अगर कोई दोषी है तो वह स्वयं तुम हो.’

‘मैं?’ सीधेसीधे अपने को अपराधी पा रवि अचकचा उठा था. ‘हां, तुम उन दोनों के बीच एक दीवार बन कर खड़े हो. कुछ करने का मौका ही कहां देते हो. आखिर वह तुम्हारी पत्नी है, वह तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है, लेकिन तुम हो कि अपनी बहन के आते ही उस के पूरे के पूरे व्यक्तित्व को ही नकार देते हो,’ पिताजी सांस लेने के लिए तनिक रुके थे.

रवि सिर झुकाए चुप बैठा किसी सोच में डूबा सा था. ‘बेटा, मुझे बहुत खुशी है कि तुम्हारी दीदी और तुम में इतना स्नेह है. भाईबहन से कहीं अधिक तुम दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त हो, पर अपनी दोस्ती की सीमाओं को बढ़ाओ. अब चंद्रिका को भी इस में शामिल कर लो. यह उस का भी घर है. उसे तय करने दो कि वह अपने मेहमान का कैसे स्वागत करती है. विश्वास मानो, इस से तुम सब के बीच से तनाव और गलतफहमियों के बादल छंट जाएंगे. और तुम सब एकदूसरे के अधिक पास आ जाओगे.’

‘‘अंदर कितनी देर लगाओगे?’’ चंद्रिका की आवाज सुन वह चौंक उठा, ‘अरे, इतनी देर से मैं बाथरूम में ही बैठा हूं.’ झटपट नहा कर वह बाहर निकल आया. चाय और गरमागरम नाश्ते की प्लेट उस का इंतजार कर रही थी. इस दौरान वे खामोश ही रहे. जूठे कप व प्लेटें समेटती चंद्रिका की हैरत यह देख और बढ़ गई कि रवि पत्र को हाथ लगाए बगैर ही एक पत्रिका पढ़ने लगा है.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ चंद्रिका का चिंतित चेहरा देख कर अपनी हंसी को रवि ने मुश्किल से रोका, ‘‘हां, ठीक है, क्यों?’’ ‘‘फिर अभी तक दीदी का पत्र क्यों नहीं पढ़ा?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में वह लापरवाही से बोला, ‘‘तुम ने तो पढ़ा ही होगा, खुद ही बता दो, क्या लिखा है?’’

‘‘वे कल दोपहर की गाड़ी से आ रही हैं.’’ ‘‘अच्छा,’’ कह वह फिर पत्रिका पढ़ने में मशगूल हो गया. कुछ देर तक चंद्रिका वहीं खड़ी गौर से उसे देखती रही, फिर कमरे से बाहर निकल गई.

दूसरे दिन रविवार था. सुबहसुबह रवि को अखबार में खोया पा कर चंद्रिका बहुत देर तक खामोश न रह सकी, ‘‘दीदी आने वाली हैं. तुम्हें कुछ खयाल भी है?’’ ‘‘पता है,’’ अखबार में नजरें जमाए हुए ही वह बोला.

‘‘खाक पता है,’’ चंद्रिका झुंझला उठी थी, ‘‘कुछ सामान वगैरह लाना है या नहीं?’’ ‘‘घर तुम्हारा है, तुम जानो,’’ उस की झुंझलाहट पर वह खुद मुसकरा उठा.

कुछ देर तक उसे घूरने के बाद पैर पटकती हुई चंद्रिका थैला और पर्स ले बाहर निकल गई. ?जब वह लौटी तो भारी थैले के साथ पसीने से तरबतर थी. रवि आश्चर्यचकित था. वह दीदी की पसंद की एकएक चीज छांट कर लाई थी.

‘‘दोपहर के खाने में क्या बनाऊं?’’ सवालिया नजरों से उसे देखते हुए चंद्रिका ने पूछा. ‘‘तुम जो भी बनाओगी, लाजवाब ही होगा. कुछ भी बना लो,’’ रवि की बात सुन चंद्रिका ने उसे यों घूर कर देखा, जैसे उस के सिर पर सींग उग आए हों.

दोपहर से काफी पहले ही वह खाना तैयार कर चुकी थी. रवि की तेज नजरों ने देख लिया था कि सभी चीजें दीदी की पसंद की ही बनी हैं. वास्तव में वह मन ही मन पछता भी रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि उस के बचकाने व्यवहार की वजह से ही दीदी और चंद्रिका इतने समय तक अजनबी बन परेशान होती रहीं.

‘‘ट्रेन का टाइम हो रहा है. स्टेशन जाने के लिए कपड़े निकाल दूं?’’ चंद्रिका अपने अगले सवाल के साथ सामने खड़ी थी. अपने को व्यस्त सा दिखाता रवि बोला, ‘‘उन्हें रास्ता तो पता है, औटो ले कर आ जाएंगी.’’ ‘‘तुम्हारा दिमाग तो सही है?’’ बहुत देर से जमा हो रहा लावा अचानक ही फूट कर बह निकला था, ‘‘पता है न कि वे अकेली आ रही हैं. लेने नहीं जाओगे तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. आखिर, तुम्हें हुआ क्या है?’’

‘‘अच्छा बाबा, जाता हूं, पर एक शर्त पर, तुम भी साथ चलो.’’ ‘‘मैं?’’ हैरत में पड़ी चंद्रिका बोली, ‘‘मैं तुम दोनों के बीच क्या करूंगी.’’

‘‘फिर मैं भी नहीं जाता.’’ उसे अपनी जगह से टस से मस न होते देख आखिर, चंद्रिका ने ही हथियार डाल दिए, ‘‘अच्छा उठो, मैं भी चलती हूं.’’

नीलकंठ – भाग 2 : अकेलेपन का दंश

हादसे की वह दोपहर भुलाए नहीं भूलती. काकाकाकी को पास के ही गांव में एक रिश्तेदार के यहां किसी उत्सव में रस्म अदायगी के लिए जाना था. यह सोच कर कि जल्दी ही लौट आएंगे, सो मां को बतला कर और मुझे 6 साल के नीलकंठ और 10 बरस की रानू की सरपरस्ती में घर छोड़ गए. मैं रानू से एक बरस ही बड़ी थी. यह कोई पहला अवसर भी नहीं था इस तरह बच्चों को छोड़ कर उन के जाने का… अपना गांव है, भरोसा तो अपनी मिट्टी पर रहता ही है.

काकाकाकी चले गए. दोनों भाईबहन संग मैं दरवाजे में कुंडी चढ़ा भीतर खेलपढ़ रहे थे कि खेत में काम करने वाले हाली ने दरवाजे पर दस्तक दी.

“अहो बिटिया, का करत हो… तनिक पानी प्या दियो, प्यास के मारे कंठ बैठा जा रहा है.”

“प्या दे रए हाली कक्का तनिक रुको…,” कहते हुए रानू ने दरवाजा खोल दिया. नहीं जानती इस कक्का को किस तरह की प्यास लगी है. भरोसे के रिश्ते को सींचना ही तो सिखाया जाता है हमें, क्या पता था कि यहां तो जड़ों में सड़ांध भरी है.

अकेली बच्ची को देख कर हाली के भीतर का कामुक पुरुष करवट ले बैठा. रानू के हाथ से पानी का गिलास लेते हुए उस ने उस का दूसरा हाथ भी पकड़ लिया.

“तनिक आ बैठ पास बिटिया. घर में एक्ल्ली का करत रही… माईबाबू तो दिनकर के घर न गए,” कहते हुए हाली ने दरवाजे की ऊपर वाली सिटकनी चढ़ा दी थी.

“अहो कक्का… जल्दी आ जैंहे वे.”

“तो आओ बिटिया हम तोहर घुमा लाएं.”

“हमें कहीं नहीं जाना कक्का बाबू… माई कह गई है घर में रहने को.”

“तो आजा बिटिया हमऊ तोहार संग खेल खेलें,” कहते हुए उस ने रानू को जबरदस्ती अपनी गोद में खींच लिया.

“का करत हो कक्का बाबू, हम गिर जैहें… छोड़ो हमाय हाथ… हम बाबू से कह दैहें.”

“अए बाबू आए तलक कौन जाने का हुई हें बिटिया,” कहते हुए उस के हाथ रानू की देह पर रेंगने लगे.

किसी पुरुष की देह वासना के बारे में तब मैं भी नहीं जानती थी, मगर इतना अवश्य समझ चुकी थी कि कुछ तो गलत हो रहा है. मैं और नीलकंठ दोनों वहां आ गए. हम भी रानू को हाली की गिरफ्त से छुड़ाने का प्रयास करने लगे. नीलकंठ अपने नन्हे हाथों से उसे पीटने लगा. मैं भी ‘छोड़ दो रानू को कक्का…’ चिल्ला रही थी, मगर हाली की आंख ही अंधी नहीं हुई, कान भी मानो बहरे हो चुके थे. हवस का मारा भूखा भेड़िया हाली ने दूसरे हाथ से मुझे भी पकड़ने का प्रयास किया.

ऐसे में नीलकंठ को कोई और रास्ता न सूझा. बाबू के पास एक रिवाल्वर है, उसे पता था. कुछ दिन पहले ही उस ने मां को अलमारी जमाते समय उसे कपड़ों के बीच छिपाते देखा था.

नीलकंठ दौड़ कर कमरे में गया और उस ने वह रिवाल्वर निकाल ली, जो भरी हुई थी. उस नन्हे हाथों ने आव देखा न ताव बस हाली की ओर निशाना कर रिवाल्वर चला दी. 3 गोलियां चलीं, जिन में एक सीधे हाली के सिर में जा घुसी. खून की धार के साथ वह वहीं ढेर हो गया. निशाना जरा भी चूकता तो मैं और रानू भी उस का शिकार हो सकती थीं. काश, ऐसा होता.

हम दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाल रोने लगे दरवाजे पर. गोली की आवाज गांव भर में गूंज गई, लोग दौड़े चले आए.

नीलकंठ ने दरवाजे तक टेबल खींच कर दरवाजे की सिटकनी खोली. देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई. मां और कुछ औरतों ने तीनों बच्चों को संभाला… प्यार से सहलाया, हम से पूछताछ होने लगी, किसी ने पुलिस को सूचना दे दी.

इधर सूरज काका और निर्मला काकी का आना हुआ, उधर पुलिस की जीप भी सायरन बजाती हुई आ धमकी. हैरान से काका और काकी समझ नहीं पा रहे थे. कुछ समय पहले बच्चों को घर में हंसताखेलता छोड़ गए थे. अचानक घर खून के रंग में कैसे रंग गया?

पंचनामा बना. हाली की देह वहां से हटा ली गई. अब पूछताछ की बारी हम बच्चों की थी. गुनाह भी हम बच्चों से हुआ और चश्मदीद भी हमारे सिवा कोई नहीं…

जब तक काकाकाकी लौटे, नीलकंठ गांव वालों के सामने अपना जुर्म कबूल कर चुका था, इसलिए उसे पुलिस की गिरफ्त से कोई नहीं रोक सकता था. पुलिस उसे अपने साथ ले गई… हालांकि काका भी कुछ गांव वालों के साथ थाने पहुंचे.

कानून की अपनी प्रक्रिया होती है, केस चला और लंबा चला. लगभग एक बरस तक, तब तक नीलकंठ को सरकारी आदेश के रहते बाल सुधारगृह में भेज दिया गया. कभी मातापिता से एक दिन अलग न रहने वाला छोटा सा मासूम बच्चा रोताबिलखता अपनों से दूर अनजानों के बीच छोड़ दिया गया. सदा पढ़ने में अव्वल रहने वाला नीलकंठ इस तरह न चाहते हुए भी अपराधी भाव से ग्रस्त बना दिया गया. भारतीय कानून की लंगड़ी धीमी चाल से भला कौन परिचित नहीं, पूरे एक साल उसे ऐसे बच्चों के बीच भी रहना पड़ा, जो शातिर किस्म के अपराधी हैं. बेचारे का अधिकांश समय रोने में बीतता. फिर न चाहते हुए भी वह उन बच्चों के षड्यंत्र का शिकार हो जाता.

जब भी काकाकाकी और रानू उस से मिलने जाते, वह बहुत रोता… मिन्नतें करता, “माई मुझे ले चलो… यहां नहीं रहना. सब बहुत बुरे हैं यहां… बच्चे मुझ से लड़ते हैं, डराते हैं, कहते हैं कि तू ने खून किया है, तू खूनी है. माई, मैं खूनी नहीं हूं न

“दीदी, तू बता क्यों नहीं देती इन को कि वह हाली तुझे मार रहा था… माईबाबू नहीं थे घर पर, इसलिए मुझे तेरी रक्षा करनी पड़ी. भाई हूं न तेरा.”

क्या कहती रानू, बस उसे गले लगा कर रोती रहती और समय खत्म होने पर आंसू बहाते हुए लौट आते.

नीलकंठ बेचारा चिल्लाता रहता, “बाबू मुझे ले चलो, छोड़ कर मत जाओ बाबू. मुझे नहीं रहना यहां… वह मोटी औरत यहां ठीक से खाने को भी नहीं देती… दूध मांगता हूं, तो डांटती है… बहुत दिनों से दूध भी नहीं पीया… बाबू, मुझे छोड़ कर मत जाओ,” यह सुन कर कलेजा मुंह को आता था.

धीरेधीरे नीलकंठ के स्वास्थ्य पर इस का प्रभाव पड़ने लगा, एक साल लग गया कोर्ट का फैसला आतेआते. फिर भी शुक्र है कि फैसले में कानून ने तो उसे बहन और अपनी आत्मसुरक्षा में गोली चलाने के लिए निर्दोष साबित कर दिया, किंतु उस का स्वास्थ्य हर लिया. बहुत कमजोर, बुझाबुझा सा रहता. कोर्ट से मुक्ति हुई, तो बाल सुधारघर से भी मुक्ति मिली.

नीलकंठ गांव आया. लगा कि अब सब ठीक होगा, बुरा वक्त टल गया, किंतु सोचा कहां पूरा होता है.

 

मुझे एक लड़की मुझे पसंद आ गई है, मुझे उससे दोस्ती करनी है, लेकिन मुझे डर लग रहा है कि मेरी रैपटेशन खराब न हो?

सवाल 

मेरी नई नई जौब लगी है. मेरा काम ऐसा है कि अपने डिपार्टमैंट के अलावा दूसरे डिपार्टमैंट वालों से ज्यादा बात नहीं होती हैक्योंकि उन से हमारा कोई मतलब नहीं. दूसरे डिपार्टमैंट की एक लड़की बहुत अच्छी लगने लगी है. नया हूंइसलिए उस लड़की के बारे में किसी से पूछ भी नहीं सकता क्योंकि मेरे डिपार्टमैंट में सभी मुझे से सीनियर और बड़ी उम्र के हैं. मेरा हमउम्र कोई भी नहीं. सोशल मीडिया पर बहुत चैक किया तो वह मुझे सिर्फ इंस्टाग्राम पर दिखाई दी. अब सोच रहा हूं कि इंस्टाग्राम पर ही उसे फौलो करूंशायद बात बन जाए. कुछ तो उस के बारे में पता चलेगा. क्या ऐसा करना ठीक रहेगा क्योंकि मैं अपनी रैपुटेशन खराब नहीं करना चाहता?

जवाब

सब से पहली बात तो यह कि इंस्टाग्राम पर उस का प्रोफाइल प्राइवेट है और आप फौलो रिक्वैस्ट भेजते हैं और अगली एक्सैप्ट कर ले तो बात आगे बढ़े.

चलिएआप कोई गड़बड़ नहीं चाहते तो यदि वह आप की रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर ले तो अच्छे ढंग से मैसेज करें. सिर्फ हैलो का मैसेज भेजेंगे तो वह आप को इग्नोर कर सकती है. उस का प्रोफाइल देखेंउस के बायो को देखें. वहां जो लिखा हुआ हैउस के अनुसार ही आप पहला मैसेज करें. इस से उसे लगेगा कि आप उस पर कुछ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और लड़की को वैसे भी अटैंशन देने वाले लड़के पसंद आते हैं. सोरिप्लाई देने के चांस बढ़ जाएंगे.

अब धीरेधीरे शुरुआत करें. आप बस पहले यह जान लें कि वह सिंगल है या नहीं. अगर है तो ठीक है वरना उस के रास्ते से हट जाइए. आजकल लड़कियां सब सम?ाती हैंइसलिए उन्हें बेवजह फ्लर्टिंग करने वाले लड़के पसंद नहीं होते. हो सके तो लिमिट में ही बोलें. लिमिट में बोलने से उस की जिज्ञासा बढ़ जाएगी आप को जानने की.

कई लड़कों की आदत होती है कि वे इनबौक्स में आते ही नंबर मांगने लगते हैं जो कि सब से गलत है. ऐसे न तो लड़कियां पटती हैं और न ही लड़कियों में ऐसे लड़कों में कोई इंटरैस्ट होता है. बल्कि वे उसे बुरा सम?ा लेती हैं. इसलिए अपनी भावनाओं पर काबू पाएं और हो सके तो तब तक नंबर न मांगें जब तक वह आप पर थोड़ा भरोसा न करने लगे.

आप के केस में यह बात फायदे की है कि वह लड़की आप के औफिस की है. इंस्टा पर बात शुरू हो जाए तो औफिस में बात करने में आसानी हो जाएगी और फिर जब बात शुरू हो गई तो बात आगे बढ़ने में क्या टाइम लगता है. बसलड़की पर अपना इंप्रैशन कैसे जमाना हैयह सब आप पर निर्भर करता है.

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