Download App

अथ से इति तक -भाग 3 : सिनेमाघर के सामने प्रांजली को देखकर मां रुक क्यों गई?

‘‘इतनी सी बात में घर सिर पर उठाने की क्या जरूरत है, शांता? लाओ, एक प्याला चाय तो पिलाओ. फिर सोचेंगे कि समस्या क्या है,’’ राजेश्वर घर के वातावरण को सामान्य करने का प्रयत्न करते हुए बोले. फिर वे चाय पीतेपीते ही बेटी के कमरे में पहुंचे, ‘‘क्या बात है, प्रांजलि? तुम दोनों तो ऐसे मुंह फुलाए बैठी हो कि मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा.’’ ‘‘मैं सुबोध के साथ फिल्म देखने गई थी. वहां मां ने मुझे देख लिया. तभी से वे परेशान हैं और मुझे बुराभला कहे जा रही हैं,’’ प्रांजलि सहमे स्वर में बोली. ‘‘यह सुबोध कौन है?’’ राजेश्वर ने जोर दे कर पूछा. ‘‘मेरे कालेज में बी.एससी. अंतिम वर्ष का छात्र है.

हम दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और विवाह करना चाहते हैं,’’ प्रांजलि ने पुन: पूरी बात दोहरा दी. ‘‘देखो बेटी, अपने मित्र के साथ फिल्म देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन जब भी कोई काम चोरीछिपे किया जाए तो वह अवश्य ही बुरा कहलाता है. यदि तुम मित्र के साथ फिल्म देखने जाना चाहती थीं तो हम लोगों को सूचित कर के भी तो जा सकती थीं.’’ ‘‘जी,’’ प्रांजलि ने अपना सिर नीचे झुका लिया. ‘‘रही विवाह की बात…तो यह क्या कोई हंसीखेल है कि आज साथ फिल्म देखी और कल विवाह कर लिया?’’ उन्होंने बेटी से प्रश्न किया. ‘‘हम दोनों एकदूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं,’’

प्रांजलि का उत्तर था. ‘‘अच्छा?’’ राजेश्वर व्यंग्य से मुसकराए, ‘‘अच्छा बताओ, सुबोध के कितने भाईबहन हैं?’’ ‘‘शायद 3.’’ ‘‘शायद…अच्छा, वह किस धर्म व जाति का है?’’ ‘‘धर्म तो शायद हिंदू है, जाति मुझे नहीं मालूम,’’ प्रांजलि बोली. ‘‘उस के मातापिता आधुनिक हैं या पुरातनपंथी?’’ ‘‘पता नहीं.’’ ‘‘वे लोग क्या तुम्हें पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करेंगे?’’ ‘‘कह नहीं सकती.’’ ‘‘अभी वह बी.एससी. कर रहा है, व्यवस्थित होने में उसे 3-4 वर्ष लग जाएंगे. ऐसे में विवाह के चक्कर में पड़ कर क्या तुम अपना और उस का भविष्य दांव पर नहीं लगाओगी?’’ ‘‘आप कहना क्या चाहते हैं, पिताजी?’’

प्रांजलि रुंधे स्वर में बोली. ‘‘यही कि तुम तो स्वयं वैज्ञानिक बनना चाहती हो, उस का क्या होगा?’’ ‘‘आप की कोई भी बात मुझे अपने निश्चय से नहीं डिगा सकती,’’ प्रांजलि दृढ़ स्वर में बोली. ‘‘मुझे प्रसन्नता है कि तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि अपने लिए स्वयं निर्णय ले सकती हो और वैसे भी हमें क्या चाहिए? केवल तुम्हारी खुशी, पर जल्दबाजी में कोई भी ऐसा निर्णय तुम ले लो कि जीवन भर पछताना पड़े, यह भी मैं नहीं चाहूंगा,’’ कह कर राजेश्वर कमरे से बाहर निकल गए. वे अचानक ही बेहद गंभीर हो उठे थे. पति को इतनी गंभीर मुद्रा में देख कर शांता का भी कुछ कहनेसुनने या पूछने का साहस नहीं हो पा रहा था. उधर, अपने कमरे में प्रांजलि स्तब्ध बैठी थी. पिता ने इतना रूखा व्यवहार उस से पहले कभी नहीं किया था. किंतु उस से भी अधिक चिंता उसे सुबोध को ले कर थी.

वह तो सोचती थी कि सुबोध के संबंध में वह बहुत कुछ जानती है, पर कहां? वह तो अपने पिता के आधे प्रश्नों का भी उत्तर नहीं दे सकी थी. सुबोध से संबंधित कितनी ही बातें न कभी उस ने सोची थीं न ही सुबोध ने बताई थीं. पढ़ाई में सदा सब से आगे रहने वाली प्रांजलि अब पढ़ाई की ओर से बिलकुल उदासीन हो कर सुबोधमयी हो उठी थी. उस का मन बेहद ग्लानि से भर उठा. दूसरे दिन राजेश्वर जल्दी ही कार्यालय से लौट आए. शांता मन ही मन मुसकराई कि चलो, बेटी की चिंता में इतना परिवर्तन तो हुआ पर वे तो चाय का प्याला ले कर प्रांजलि के कमरे में ऐसे घुसे कि वहीं रम गए. नाराजगी दिखाने के लिए शांता बेटी से बात नहीं कर रही थी, इसलिए उस के कमरे में भी जाना नहीं चाहती थी.

किंतु पितापुत्री बातों में ऐसे खोए कि उस की सुध ही भूल गए. पढ़ाई, कालेज, पत्रपत्रिकाओं और न जाने कितनी तरह की बातें दोनों करते रहे, पर सुबोध का उस चर्चा में कहीं नामोनिशान न था. अब तक घर का हर सदस्य अपने ही दायरे में घूम रहा था. शांता की अपनी सहेलियां थीं, रुचियां थीं, वीडियो फिल्में थीं. प्रांजलि के मित्रों का अपना अलग संसार था. जीवन के रंगीन सपने, भविष्य की रूपरेखा, पौप संगीत, फिल्मी सितारे तथा खेलजगत के प्रसिद्ध खिलाडि़यों के झूठेसच्चे किस्से उन की गपशप का आवश्यक अंग होते थे. राजेश्वर का कार्यालय था, मित्र थे तथा मन में उन्नति की महत्त्वाकांक्षा थी.

प्रांजलि के स्कूल छोड़ कर कालेज में जाते ही दोनों ने उस के प्रति कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी. पर सुबोध वाली घटना ने उन्हें सोते से जगा दिया था. अब कार्यालय से छूटते ही राजेश्वर घर भागने की ताक में रहते. न मित्रमंडली उन्हें खींच पाती न कोई अन्य आकर्षण. तब उन्होंने अनुभव किया कि कितने लंबे समय से उन्होंने या शांता ने प्रांजलि से ढंग से बात भी नहीं की थी. उस के पास कितना कुछ कहनेसुनने को था, पर अभी भी संशय की दीवार बीच में थी. सुबोध का प्रसंग बीच में आते ही वह बात का रुख मोड़ देती या फिर चुप हो जाती. एक दिन शांता, राजेश्वर तथा प्रांजलि पिकनिक पर गए थे. वहां से लौट कर राजेश्वर अपनेआप में खोए बैठे थे कि शांता के स्वर ने उन्हें चौंका दिया,

‘‘क्या सोच रहे हैं?’’ ‘‘कुछ नहीं…यों ही…मैं सोच रहा था कि क्या हम ने प्रांजलि को बहुत उपेक्षित नहीं कर दिया था? क्या इसी कारण वह सुबोध के प्रति आकर्षित नहीं हो गई थी?’’ ‘‘मैं नहीं मानती यह बात. क्या नहीं दिया हम ने उसे, कौन सी सुविधा नहीं दी? आप यह सोचते हैं कि आप की मीठी बातों में आ कर उस का मन सुबोध की ओर से हट जाएगा? क्यों सुबोध की बात आते ही वह चुप हो जाती है? क्या आज तक उस ने सुबोध से संबंधित एक भी बात आप को बताई है? मुझे तो ऐसा लगता है कि वह कालेज में छिप कर अवश्य उस से मिलती है. मैं ने कहा था कि उस की पढ़ाई छुड़ा कर घर बिठा लो, पर मेरी बात सुनता ही कौन है.’’ ‘‘उसे विद्रोही बनाने का यत्न मत करो, शांता.

पशु को बांधा जा सकता है, मनुष्य को नहीं. मैं तो केवल यह प्रयत्न कर रहा हूं कि किसी प्रकार वह यह समझ सके कि क्या सही है और क्या गलत. फिर भी यदि वह कुछ ऐसावैसा कर लेती है तो मैं यही समझूंगा कि मेरे प्रयत्न में ही कोई कमी रह गई थी.’’ ‘‘जैसी आप की मरजी, पर कहे देती हूं, एक दिन सिर पर हाथ रख कर रोना पड़ेगा,’’ शांता नाराज हो उठी. ‘‘देखता हूं, मांबेटी के बीच अब भी तलवारें खिंची हुई हैं. शांता, प्रांजलि की मित्र बनने का प्रयत्न करो, जिस से कि वह अपनी अंतरंग बातें भी तुम से कर सके,’’ राजेश्वर ने पत्नी को समझाया. ‘‘अंतरंग बातें? मुझ से तो वह सीधे मुंह बात ही नहीं करती,’’ शांता व्यंग्यात्मक स्वर में बोली. दूसरे दिन प्रांजलि घर लौटी तो बहुत उद्विग्न थी. ‘‘क्या बात है प्रांजलि, बहुत उदास हो? क्या हुआ?’’ शांता ने प्रश्न किया. ‘‘कुछ नहीं मां, मुझे अकेला छोड़ दो,’’ कहती हुई पैर पटकती प्रांजलि अपने कक्ष में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी. ‘‘प्रांजलि कहां है?’’ कुछ ही देर में राजेश्वर ने घर में प्रवेश किया. ‘‘अंदर है, अपने कमरे में. न जाने क्या बात है, कुछ बताती ही नहीं. मुझे तो बहुत डर लग रहा है,’’ शांता ने धीरे से कहा. ‘‘क्या बात है प्रांजलि?’’ वे तुरंत प्रांजलि के पास जा पहुंचे.

‘‘यह सुबोध अपनेआप को समझता क्या है?’’ उस ने आंसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया, ‘‘आज मेरी सहेलियों के सामने कहने लगा कि मैं ने उस के मातापिता से कहा है कि वह मुझ से विवाह करेगा और यह कि वह मेरी तरह विवाह को ही अंतिम लक्ष्य नहीं मानता…उस के सामने पूरा भविष्य है. कुछ बन जाने के बाद ही वह विवाह जैसी फालतू बातों के संबंध में सोच सकता है. फिर कहने लगा कि आजकल लड़कियों के साथ जरा घूमेफिरे, 1-2 फिल्में देखीं तो वे विवाह के सपने देखने लगती हैं,’’ प्रांजलि गुस्से से बोली. ‘‘उस का इतना साहस? फिर तुम ने कुछ कहा नहीं?’’ ‘‘मैं ने कहा कि वह स्वयं को समझता क्या है? केवल उस के सामने ही भविष्य का प्रश्न है, मेरे सामने नहीं? मैं उस से कहीं अधिक परिश्रम कर के उसे ऐसा मुंहतोड़ जवाब दूंगी कि वह सदा याद रखेगा.’’

‘‘लेकिन तुम तो कह रही थीं कि तुम उस के बिना नहीं रह सकतीं,’’ राजेश्वर मुसकराए. ‘‘पिताजी, उस की बात मत कीजिए, वह सब तो केवल बचपना था. उस ने मेरे मित्रों के सामने मुझे बुराभला कहा…न जाने वे सब क्या सोचते होंगे.’’ ‘‘दूसरे क्या सोचते हैं, यह सब भूल कर यदि तुम पढ़ाई में जुट जाओगी तो अवश्य ही अपने प्रति उन के विचारों में परिवर्तन ला सकोगी.’’ राजेश्वर पत्नी की ओर मुड़े, ‘‘शांता, चलो, चाय के साथ कुछ गरमागरम बना लो, तब तक प्रांजलि भी हाथमुंह धो कर आती है.’’

शांता ने आंखों ही आंखों में प्रश्न किया कि यह सब कैसे हुआ तो वे केवल मुसकरा दिए. वे कैसे बताते कि सुबोध के मातापिता को संपूर्ण प्रकरण की जानकारी वही दे कर आए थे. राजेश्वर ने अब निश्चय कर लिया था कि वे भविष्य में कभी प्रांजलि के साथ संवादहीन की स्थिति नहीं आने देंगे. जब 3 वर्ष बाद बी.एससी. में प्रांजलि विश्वविद्यालय में प्रथम आई तो शांता ने भी स्वीकार किया कि उस के पति के प्रयत्न सफल हुए हैं. प्रांजलि तो पिता की पूर्ण रूप से ऋणी हो गई थी.

बंजर जमीन- भाग 3 : बंजर होते रिश्तों की जमीनी हकीकत

तुम ठीक कहती हो,’’ मैं ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अलमारी के लौकर से बैंक की पासबुक निकाल लाया, ‘‘सविता, बैंक खाते में 1 लाख रुपए हैं, चाहें तो पुरानी गाड़ी खरीद सकते हैं.’’ ‘‘नहीं प्रेम, पुरानी गाड़ी नहीं लेंगे. गाड़ी तो नई ही होनी चाहिए.’’ ‘‘ठीक है. फिर तो और रुपयों की व्यवस्था करनी होगी.’’

मैं सोच में डूब गया. पत्नी भी कुछ देर तक सोचती रही. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, मेरे करीब आते हुए बोली, ‘‘आप के नाम से तो गांव में कुछ जमीन भी है न?’’ ‘‘हां, 5-6 एकड़ के करीब है तो सही, मगर बाबूजी के नाम से है. अगर कहूं तो वे उसे कल ही मेरे नाम कर देंगे.’’ ‘‘जमीन कितने की होगी?’’ ‘‘पता नहीं, वहां जा कर ही मालूम होगा.’’ सविता खुश हो गई, ‘‘फिर क्या सोचना, बेच दीजिए इस जमीन को.’’ ‘‘सो तो ठीक है, मगर इतने सालों बाद गांव जा कर यह सब करना क्या उचित होगा? जगदीश भैया क्या सोचेंगे?’’ ‘‘सोचेंगे क्या, हम उन की जमीन थोड़े ही ले रहे हैं. अपने हिस्से की जमीन बेचेंगे. वैसे भी बेकार ही तो पड़ी है.’’ समस्या का हल निकल चुका था. बस, थोड़े दिनों के लिए गांव जा कर यह सब निबटा देना था.

 

छिताई का कन्यादान- भाग 2

आप ने देखा होगा बड़ी बी.’’

मैनरूह बोली, ‘‘मैं तो बस यही जानती हूं कि आप का न्याय अब हमारे महाराज करेंगे.’’

अलाउद्दीन ऐसे उछला, जैसे वह कमंद सहित लहराते तालाब में कूद जाएगा. कहने लगा, ‘‘बस, मैं ने जान लिया. मेरी जिंदगी आज तक की थी. मेरी मौत का पाप आप के सिर. अलविदा.’’

मैनरूह फिर घबराई. बोली, ‘‘सुलतान, आप उतावले क्यों हैं? मैं महाराज के पास ले चलती हूं.’’

अलाउद्दीन रुआंसा हो कर बोला, ‘‘अगर महाराज के सामने जा सकता तो आप से दया की भीख क्यों मांगता? आप को अपनी बहन बनाया. आप अपने बड़े भाई की इज्जत को खाक मत कीजिए. आप यही चाहती हैं कि मैं घेरा उठा लूं. मैं अपनी फौज ले कर यहां से चला जाऊंगा.’’

मैनरूह चाहती तो यही थी. खुद महाराज रामदेव भी यही चाहते थे. मगर मैनरूह महाराज की प्रजा ही नहीं थी, बल्कि

राजकुमारी छिताई की दासी भी थी. सब से बढ़ कर वह एक औरत होने से उस की पीड़ा को जानती थी. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘बहन बनाया है तो यही मेरी इच्छा नहीं है. इस से भी बड़ी इच्छा है. वह पूरी होनी हो तो बताऊं.’’

अलाउद्दीन के बहुत आग्रह करने पर उस ने कहा, ‘‘राजकुमारी छिताई मेरी बेटी की तरह है. आप भी उसे अपनी बेटी मानिए और दोस्ती कर के तब आदर से जाइए.’’

अलाउद्दीन एकदम आसमान से गिरा. छिताई ही नहीं मिली तो इस जद्दोजहद से क्या हासिल? तो भी वह आजाद तो होना ही चाहता था. उस का खून खौल रहा था. मगर किसी तरह इस खूसट औरत को टालना भी था. उस ने कहा, ‘‘जब तुम कहती हो तो इस में कौन सी मुश्किल है. मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं.’’

मैनरूह अलाउद्दीन से भी चालाक निकली. दृढ़ता से बोली, ‘‘बादशाह, इस में एतबार की तो नहीं, इत्मीनान की बात है. आप

उस मसजिद की ओर रूबरू हो कर कुरान पाक की कौल ले कर कहिए कि छिताई को मैं अपनी बेटी मानता हूं. तभी मैं हुजूर को छोड़ पाऊंगी.’’

अलाउद्दीन दांत पीस कर रह गया. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. अंधेरा होता जा रहा था. चारों तरफ वे पङ्क्षरदे हौसले से बोल रहे थे, जिन का शिकार करने वह आया था. लगा, जैसे वे उस की बेबसी पर कलरव कर रहे हों. क्यों वह इस शहर की चहारदीवारी में आया? उसे क्या मालूम था कि यादव राजा रामदेव तो सीधा है, मगर उस के कारकुन बाज की माङ्क्षनद चालाक हैं.

वह इस एकांत बाग में चिडिय़ों का शिकार खेलने लगा. शिकार के बजाय शैतान की खाला गले पड़ी, जिसे इसलाम के सबका यदेकानून मालूम हैं. अगर इस ने इस वक्त राजा रामदेव के सामने उसे खड़ा कर दिया तो बेशक वह उस के सर को कलम करा देगा.

अपनी लडक़ी के बारे में राघव चेतन की बात सुन तो वह बिफर रहा होगा. सुलतान ने हड़बड़ा कर मसजिद की तरफ मुंह किया और बोला, ‘‘मैं अपने रसूल व कुरान पाक की कसम उठाता हूं, मैं हमेशा छिताई को अपनी बेटी की मानिंद मानूंगा.’’

यह सुन कर मैनरूह बहुत खुश हुई. उस ने झुक कर सलाम किया और सविनय अपनी गुस्ताखी के लिए क्षमा मांगते हुए. सुलतान के बंधन खोल दिए. आजाद होते ही एक बार फिर अलाउद्दीन का खून खौल उठा. उस के जी में आया, कमर के नेजे को निकाल कर अभी इस औरत को मार डाले. मगर उस ने अपने को रोका. अगर यह एक बार भी चीखी तो दर्जनों लोग आकर अलाउद्दीन को पकड़ लेंगे. अगर न भी चीख पाए तो उस के खून के कुछ धब्बे उस के कपड़ों पर पड़ेंगे, जिस से बादशाह फिर खतरे में पड़ सकता है. किले की घेरेबंदी में होने से तमाम चौकसी चारों तरफ होगी. खून का घूंट पी कर सुलतान बोला,

‘‘बड़ी बी, आप ने वही किया, जो आप का फर्ज था. अब आप मुझे महफूज बाहर निकलने में मदद कीजिए.’’

मैनरूह ने फिर क्षमा मांगी. बोली, ‘‘आप ने मुझे बहन कहा तो मेरा कर्तव्य है कि मैं आप की सहायता करूं. बस आप कुछ बोलिएगा नहीं. मुझे सब पहचानते हैं. मुझे कोई कुछ नहीं बोलेगा.’’

मैनरूह चलने लगी. पीछे चलते सुलतान को फिर नेजे का खयाल कौंधा. मगर उस ने मन मार लिया. उल्टे उस ने एक मोती की माला निकाली और मैनरूह को नजर करनी चाही. मगर उस सजग दासी ने कान पकड़ कर कहा, ‘‘हुजूर, आप ने मुझे बहन का रिश्ता बख्शा, मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’’

बारबार कहने पर भी दासी ने स्वीकार नहीं किया. बोली, ‘‘जब आप दिल्ली बुलाएंगे तो ले लूंगी.’’

सचमुच मैनरूह का सब अदब कर रहे थे. उस ने गेट खुलवाया. शहर के फाटक से बाहर होते ही अलाउद्दीन जो भागा तो उस ने अपनी छावनी में जा कर ही दम लिया. वहां उस की खोज हो रही थी. उस शाम जो गुजरी, उस ने ताउम्र किसी के सामने उस का खुलासा नहीं किया. उस ने इस बात का बारबार शुक्र अदा किया कि पकड़ लिए जाने पर भी मैनरूह ने उस की बिना किसी को कानोंकान खबर हुए रिहाई करा दी थी.

जब अलाउद्दीन ने खापी लिया तो राघव चेतन लौट आया. बादशाह को बाखैरियत देख कर उस की जान में जान आई. उसकी आपबीती बहुत खराब थी. राजा रामदेव आपे से बाहर हो गया था. किसी म्लेच्छ को कन्यादान करना उस की कल्पना के बाहर था. तो भी उस ने दूत के नाते राघव चेतन को जाने दिया था. दूतियां उस के बाद लौटीं.

उन्होंने बताया कि औरों की तरह रामदेव के रनिवास में भी सब मरने को तैयार हैं, परंतु मुसलमानों के हाथ में पडऩे को नहीं. चित्तौड़ में पद्मिनी के जौहर और रणथंभौर में राजपूतों के बलिदान को वह भूला नहीं था. जब छिताई नहीं मिलनी है तो घेरा डालने से क्या फायदा? देवगिरि को लूटने का काम तो वह बरसों पहले ही कर चुका था. सोते समय वह सारी बातों पर विचार करने लगा.

कई साल हो गए. उस ने पहलेपहल नुसरत खां को सेनापति बना कर देवगिरि को खूब लूटा था. फिर वह राजा रामदेव को भी दोस्ती का लालच दे कर दिल्ली ले गया था. बीती बातें उस के मन में कौंध रही थीं…

पराजय की चिंता में राजा रामदेव ने दौलत देने में कसर नहीं की थी. अलाउद्दीन रामदेव को मोहरा बना कर दक्खिन की अकूत दौलत, जो दक्खिनी राजाओं के पास थी, हासिल करना चाहता था. रामदेव बूढ़ा हो रहा था, सोचता था कि

अलाउद्दीन से आश्रय पा कर वह पड़ोसी राजाओं को दबा सकेगा. अलाउद्दीन ने दिल्ली में अपने सिपहसालार उलूम खां को राजा के स्वागत में भेजा था और दरबार में खूब आवभगत की थी.

GHKKPM : शो छोड़ते ही ऐश्वर्या ने किया पाखी के रोल को लेकर बड़ा खुलास

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा आए दिन अपनी लुक्स और एक्टिंग को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं. हाल ही में ऐश्वर्या ने एक इंटरव्यू दिया था, जो कि खूब वायरल हो रही है. उसमें ऐश्वर्या अपने किरदार को लेकर बात करती नजर आ रही हैं.

ऐश्वर्या ने बताया है कि वह अपने किरदार को निभाते हुए बिल्कुल कंफ्यूज हो गई थी, उन्होंने अपने इंटरव्यू में शो के मेकर्स के पोल खोल दिए हैं. उन्होंने कहा कि वह कई बार मेकर्स से पत्रलेखा के किरदार को लेकर बात करती नजर आईं लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं थें.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma (@aisharma812)

आगे उन्होंने कहा कि मुझे अपने किरदार को लेकर कंफ्यूजन था क्योंकि शुरुआत   में मेरा किरदार पॉजिटीव था, लेकिन बाद में शो की कहानी बदलते गए और मेरे किरदार को निगेटिव बनाते गए. फिर धीरे-धीरे स्क्रिप्ट भी ऐसी हो गई कि मुझे लोग निगेटिव कहने लगे थें.

आगे ऐश्वर्या ने कहा कि मुझे लेखक के हिसाब से अपने किरदार को निभाना पड़ रहा था, हांलांकि मैं परेशान भी रहने लगी थीं. लेकिन अब मैं अपने किरदार से छुट्टी ले ली हूं तो मुझे अब जाकर अच्छा लग रहा है. बता दें कि ऐश्वर्या शर्मा जल्द ही खतरों के खिलाड़ी 13 में नजर आने वाली हैं.

अनुष्का को पैपराजी ने गलती से कहा सर तो विराट ने किया ये कमेंट

विराट कोहली और अनुष्का शर्मा अपनी फिल्मों के साथ -साथ अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी चर्चा में बनी रहती हैं. बता दें कि विराट और अनु्ष्का आए दिन अपनी लाइफ में कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिसे लेकर वह चर्चा में आ जाते हैं.

बता दें कि विराट कोहली पिछले दिनों डिनर डेट पर नजर आएं थें, जिस दौरान काफी मजेदार चीज हुई अनुष्का को पैपराजी ने सर कहकर बुला दिया जिस पर तुरंत विराट ने पैप्स की खींचाई करते हुए कहा कि अब मुझे मैम कहकर बुला दो.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

डिनर डेट के दौरान अनुष्का शर्मा एकदम अलग अंदाज में नजर आईं. जिसमें वह काफी सादगी वाले अंदाज में नजर आई, अनुष्का का यह अंदाज फैंस को खूब पसंद आ रहा है. फैंस इनके लुक्स को लेकर काफी ज्यादा चर्चा कर रहे हैं.

बॉलीवुड के इस शानदार कपल को खूब पसंद किया जाता है, बता दें कि लोग अनुष्का के एक्टिंग के साथ- साथ उनके फिटनेस की भी तारीफ करते हैं.  वहीं फैंस अनुष्का के इस तस्वीर को जमकर शेयर कर रहे हैं. वहीं विराट भी कूल लुक में नजर आ रहे थें.

विराट का लुक सामने आते ही सोशल मीडिया पर छा गया है, विराट और अनुष्का को परफेक्ट कपल के तौर पर देखा जाता है.

मेरे अपने- भाग 2, किस हादसे से नीलू को मिली सीख?

इसी बीच अदिति ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, तो जिंदगी फिर अपनी रफ्तार से चल पड़ी. अब नीलेश को एक ही बात की चिंता थी कि अच्छा लड़का देख कर नीलू की शादी करा देना है. यह एक बड़ी जिम्मेदारी थी उस के सिर पर, जिसे महादेव उस पर छोड़ गए थे. लेकिन उसे कोई ऐसा लड़का नजर नहीं आ रहा था, जो उस की बहन नीलू के लायक हो. सब के सब दहेज लोभी थे. केवल उन्हें पैसा चाहिए था और ऐसे लालची घर में वो अपनी बहन की शादी नहीं करना चाहता था. नहीं, पैसे की कोई कमी नहीं थी उस के पास. लेकिन दहेज क्यों दे वो, जब उस की बहन खुद सक्षम है तो…? और इस दहेज के दानव का क्या भरोसा कि कल को पैसे के लिए उस की बहन को मार भी दे? इसलिए नीलेश ने तय किया कि वह अपनी बहन की शादी किसी ऐसे लड़के से करेगा, जो उस के पैसों से नहीं, बल्कि उस से प्यार करता हो.

नीलेश के औफिस में अभी 2 महीने पहले ही अतुल्य ने रिपोर्ट किया था. वह 2019 बैच का आईएएस अफसर था. 52वां रैंक आया था उस का. इन 4 सालों में उस के कई जगहों पर ट्रांसफर हुए. लेकिन इस से पहले वह दिल्ली में पोस्टेड था. फिर उस का तबादला यहां मुंबई कर दिया गया.

अतुल्य से नीलेश की अच्छी पटने लगी थी. बातोंबातों में ही एक रोज उस ने बताया कि उस का अपना घर पटना, बिहार में है और उस के मातापिता वहीं रहते हैं. वो भी छुट्टियों पर वहां जाता रहता है.

शादी के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि अभी उस की शादी नहीं हुई है, लेकिन बात चल रही है. लड़का स्मार्ट था. परिवार भी उस का बहुत बड़ा नहीं था. सिर्फ उस के मातापिता और एक बहन थी, जिस की पिछले साल शादी हो चुकी थी. घर से भी वो काफी संपन्न था.

नीलेश का मन ललचा उठा. वह अतुल्य के साथ अपनी बहन की शादी के सपने देखने लगा. क्योंकि, एक तो लड़का इतनी बड़ी पोस्ट पर है और अपनी जाति से भी, तो और क्या चाहिए उसे. दहेज की भी कोई डिमांड नहीं है उस की, क्योंकि उस के पास खुद इतना पैसा है.

इसलिए बिना देर किए नीलेश ने अपनी बहन की शादी की बात अतुल्य से चला दी.

जब उस ने नीलू की फोटो उसे दिखाई और कहा कि वह एक सरकारी बैंक में ऊंचे पोस्ट पर है, तो अतुल्य भी नीलू से शादी करने को लालायित हो उठा.

अतुल्य के घर वालों को भी नीलू खूब पसंद आई, लेकिन अभी तक नीलू को इस बात की भनक तक नहीं थी कि उस के भैया ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया है.

वैसे, नीलू को पूरा विश्वास था कि वह इस शादी के लिए कभी ‘ना’ नहीं कहेगी. इसलिए ही तो उस ने उसे कुछ बताना जरूरी भी नहीं समझा और खुद ही उस का रिश्ता पक्का कर दिया.

उस रात खाने की टेबल पर जब उस ने अतुल्य का फोटो दिखाते हुए नीलू से कहा कि उस ने उस के लिए यह लड़का पसंद किया है और अगर वो चाहे तो उस से मिल सकती है, तो नीलू का हाथ का निवाला मुंह में जातेजाते रह गया. वह तो अवाक अपने भाई का मुंह ही ताकती रह गई.

“अरे, ऐसे क्या देख रही है? बता न, अतुल्य कैसा लगा तुम्हें? ओह, मैं भी क्या पूछ रहा हूं,” नीलेश हंसा, “न पसंद करने वाली कोई बात ही नहीं है तो…“

“लेकिन भैया, अभी मैं ने  शादी के बारे में कुछ सोचा नहीं है,” वह कैसे बताती उसे कि वो किसी और से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है.

उस की बात पर पहले तो नीलेश हंसा, फिर अपनी बहन को गले लगा कर कर प्यार से पुचकारते हुए बोला, “तुम्हें कुछ सोचने की जरूरत ही क्या है मेरी प्यारी बहना, जब अभी तुम्हारा भाई जिंदा है तो…? तू तो बस अपनी शादी की तैयारी कर.“

“जी, भैया, आप की बात सही है, लेकिन अभी शादी… और मैं तो किसी…”

“देख, अब इस बारे में कोई और बात नहीं होगी,” उस की बात को बीच में काटते हुए नीलेश बोला, “अरे, लड़के का खानदान अच्छा है, पता किया है मैं ने. और सब से बड़ी बात है कि वह भी हमारी जातबिरादरी का है, तो और क्या चाहिए हमें,” बहन के सिर पर हाथ फेरते हुए नीलेश बोला, तो नीलू के होंठ सिल गए. लेकिन बताना चाहती थी कि अपने ही औफिस के एक लड़के से प्यार करती है वो और उसी से शादी करना चाहती है. दोनों एकदूसरे को 2 सालों से जानते हैं और प्यार में काफी आगे बढ़ चुके हैं. लेकिन दोनों अलगअलग जाति से हैं. जहां नीलू एक उच्च ब्राह्मण परिवार को बिलोंग करती है, वहीं अमित एक छोटी जाति से है. जानती है कि उस के भैया कभी भी इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे.

लेकिन वो उन्हें बताना चाहती है कि इनसान को जातिधर्म से नहीं, बल्कि उस के अच्छे स्वभाव और आचारविचार से तौलना चाहिए. यह भी बताना चाहती थी कि अमित के साथ वो बहुत खुश रहेगी. लेकिन वो सुने तब न. अपनी ही हांके जा रहा था तब से. बड़े भाई होने का मतलब यह थोड़े ही है कि बहन की जिंदगी का फैसला ले सकता है? और अब नीलू कोई बच्ची नहीं है, जो अपना भलाबुरा न समझ पाए. अपनी भाभी अदिति से भी बोलने का कुछ फायदा नहीं था, क्योंकि, उस का तो खुद नीलेश के सामने मुंह नहीं खुल पाता है.

चालाकियां- भाग 2, वंशा ने क्यों बनाया विक्ट्री का साइन?

“हां, दीदी. फ्री हो कर उन्हें फोन कर लेना, वहीं हैं.”

“तुम नहीं आईं?”

“नहीं, दीदी. सोचा, आप लोगों के लिए तब तक खाना, नाश्ता बना लूं.”

“अरे नहीं. हम बाहर से ही और्डर कर लेंगे. तुम तो जानती हो, हम लोग ज़रा धर्मकर्म का ध्यान रखते हैं. समझ रही हो न.”

वंशा के मन में एक तल्खी सी उतर गई, पूछ लिया, “हां, दीदी, अब सब समझने लगी हूं. कमाल की कार में बैठने में तो कोई परहेज नहीं है न, दीदी?”

“नहीं, नहीं, आ जाएंगे.”

“तो जो भी बना रही हूं, आप वो सब इस बार नहीं खाएंगी?”

“नहीं, तुम हमारे लिए किसी हिंदू  होटल से खाना मंगा लो.”

“ठीक है, दीदी.”

वंशा को इस हरकत पर बहुत तेज़ गुस्सा आया था, कल्कि ने कहा, “मम्मी, जो भी कहो, करो. बस, ऐसे लोगों का स्ट्रैस नहीं लेना है. रहें, जाएं, बस. छोड़ो, 10 दिनों की बात है.”

कमाल और कल्कि की इन बातों पर वंशा को बहुत प्यार आता है.  सालों से यही सब तो देख रहे हैं, कर रहे हैं. मन दुखता है. पर एकदूसरे को संभाल लेते हैं.  अब तो आदत सी हो गई है. वंशा ने गूगल पर सर्च किया. कुछ दूर पर ही स्थित एक हिंदू होटल को फोन कर के पूरा खाना और्डर कर दिया.

कमाल वरदा, पुष्कर और नेहा को घर ले आए. तीनों ने आ कर खूब बनावटी बातें कीं. शामली में वरदा का घर काफी बड़ा था, आते ही पुष्कर के घमंड ने सिर उठाया, “भाई, कैसे इतने तंग फ्लैट में रह लेते हो, दम नहीं घुटता?”

“जीजू, अभी तक तो दम नहीं घुटा. जी रहे हैं,” उस के कहने के ढंग पर कल्कि ज़ोर से हंसी, बोल पड़ी, “मम्मी, मौसी को हमारे छोटे से घर में कहीं परेशानी न हो?”

वरदा ने फौरन बात बनाई, “नहीं नहीं, बेटा. बहन का घर है. परेशानी कैसी. अरे  वंशा, हम फ्रैश हो कर आते हैं, खाना और्डर कर दिया?”

इतनी देर में वंशा अब तक कमाल को एयरपोर्ट पर ही बता चुकी थी कि ये लोग खाना बाहर का ही खाएंगे.

“हां, दीदी. आता ही होगा.”

गेस्टरूम में तीनों ने अपना डेरा जमा लिया. वंशा ने पूछा, “दीदी, चाय भी बाहर से पीओगे?”

“नहीं, नहीं, चाय पी लेंगे. बस, हमारे बरतन ज़रा अलग कर देना.”

‘ढोंगी कहीं के,’ मन ही मन कह कर वंशा सब के लिए चाय बनाने लगी. दोपहर के 12 बज रहे थे, संडे था, इसलिए कमाल और कल्कि भी फ्री ही थे. कमाल हमेशा की तरह मेहमाननवाजी में व्यस्त हो चुका था.

पहला दिन था, खाना लगा था. उन 3 मेहमानों के लिए बाहर से आया दाल, सब्जी, चावल और रोटी और एक तरफ रखा था वह खाना जो वंशा ने अपने हाथों से बनाया था, बहन की पसंद की कढ़ी, पुष्कर के लिए भरवां भिंडी और नेहा की पसंद का पनीर. एक तरफ रखी थी मेवों से सजी खीर.

अपनी पसंद का खाना देख कर सब की नीयत डोल गई. सारा धर्मकर्म किनारे रखा रह गया. पहले तीनों ने थोड़ा बाहर का खाया, फिर किसी से रहा नहीं गया. वरदा ने बड़ी मीठी सी नकली चाशनी घुली आवाज़ में कहा, “ला वंशा, तूने इतने प्यार से मेरे लिए कढ़ी बनाई, अभी खा लेती हूं. यह खाना हम शाम को खा लेंगे.”

कमाल और कल्कि ने फौरन वंशा को देखा, बड़ी मुश्किल से सब ने अपनी हंसी रोकी. वे तीनों गपागप सब चट कर गए. वंशा को इतने नाटक के बाद उन के खाने पर कोई ख़ुशी नहीं हुई. थोड़ी देर सब बातें करते रहे, खाना खाया. फिर वे आराम करने के लिए सोने जाने लगे. वरदा ने कहा, “शाम को चाय के साथ कुछ नाश्ता ज़्यादा ही मत बना लेना, वंशा. परेशान होने की ज़रूरत नहीं. अभी तो यह सब बचा हुआ खाना हम लोग रात में खा लेंगे. बस, हम लोगों के बरतन अलग रखना. चाय के साथ, बस, थोड़े से पकौड़े ही बनाना, ज़्यादा कुछ नहीं. फिर हम थोड़ी देर बीच पर जाएंगे. हमारे लिए एक ड्राइवर कर देना. कार तो है ही. और सुन, यह कार हमारे लिए ही अब रख देना. कमाल टैक्सी से औफिस जा सकता है न?”

“टैक्सी से आप लोग ही घूम लीजिए, अच्छा रहेगा.” पता नहीं क्या सोच कर वंशा आज कह पाई.

“अरे, नहीं. टैक्सी में तो हज़ारों उड़ जाएंगे और घर की कार व ड्राइवर के साथ घूमने का अपना अलग ही मजा है.”

कंजूस. मन ही मन सोचती वंशा ने, बस, सिर हिला दिया. अगले 9 दिन कमाल, वंशा और कल्कि को नचा डाला गया. कमाल ने ड्राइवर कर दिया था जो वरदा के परिवार को शिरडी, नासिक और लोनावला घुमा लाया. जितनी देर यह परिवार घर पर रहता, इन के लिए बाहर का खाना और्डर किया जाता क्योंकि कमाल एक मुसलिम था, और एक मुसलिम के घर खाने से सब का धर्म नष्ट होने का डर था.

नेहा भी किस मां की बेटी थी, कल्कि का कोई ब्यूटी प्रोडक्ट उस ने यूज़ करने से नहीं छोड़ा. उस के कमरे में बेधड़क घुसती, जो मन होता, लगाती, जो मन होता, अपने बैग में रख लेती. अपने बरतन अलग करवा रखे थे यह कह कर कि ‘कहीं तुम लोग इन बरतनों में नौनवेज न खा लो.’ जबकि, सब जानते थे कि वंशा वैजीटेरियन है, घर में नौनवेज बनता ही नहीं है. ये सारे ड्रामे सिर्फ कमाल को नीचा दिखाने के लिए थे जो सब की आवभगत में लगा था.

बाहर के खाने का और्डर, कार का पैट्रोल, ड्राइवर सब का खर्चा कमाल पर डाल एक बेशर्म परिवार जम कर मुंबई की सैर कर रहा था. जब से वरदा आई थी, वंशा ने दस मिनट भी उस के साथ बैठ कर बहन की तरह बात नहीं की थी. वंशा का मन अब खिन्न हो चुका था, वही कितनी बार बहन होने का धर्म निभाए. कौन सा रिश्ता बचा है यहां. बड़ी बहन हर तरह से यूज़ कर रही  है और वह जानतेबूझते अपने को यूज़ होने दे रही है. कमाल की क्या गलती है जो वह इतना अपमान, इतना नुकसान सहे.

कमाल और कल्कि भले ही उसे खुश देखने के लिए कुछ भी न कहें पर ऐसा तो नहीं है कि वरदा, पुष्कर और नेहा की  हरकतों पर किसी को गुस्सा न आता हो, दुख न होता हो. कहां आ गए हैं ये रिश्ते. अपने काम निकालने हैं तो उसी इंसान का फ़ायदा उठा लो, काम निकल गया तो हिन्दूमुसलिम कर दो. छी, ऐसे रिश्तों पर लानत है.

लाइफस्टाइल- भाग 2 : एक दिशाहीन लड़की की कहानी

दिशा ने तरहतरह से समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद उन्हें जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यारमोहब्बत की बातें करते. सारा खर्च दिशा ही करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से. उसे सिर्फ ₹50 प्रतिदिन पौकेट मनी मिलता था. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए.
अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी एक दोस्त के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का संपूर्ण प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन फिर गया और दिशा के साथ सहेली के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मीपापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. सहेली तो राजदार ही थी.
इस तरह दोनों का साथ 1 वर्ष तक रहा. उस के बाद अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ अधिक दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा ही खतरा है, क्योंकि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

उस ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया और कालेज के ही वरण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वह बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था. सचाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था.
दिशा ने उसे बात करने का मौका नहीं दिया तो उस ने कालेज में उसे बुरी तरह बदनाम कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना ही पड़ा.
पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में उफन उठी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

‘‘अपना वादा भूल गईं. कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ अपना कदम बढ़ाया था,’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी शादी की नहीं. मेरी नजर में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था. फिर शादी के लिए पीछे क्यों पड़े हो?

‘‘देखो परिमल, मेरा मानना है कि तन का संबंध किसी से भी बनाया जा सकता है पर शादी अपने से बराबर वालों से ही करनी चाहिए. तुम निहायत गरीब हो इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम अच्छे लगे थे इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते पर ही चलना चाहिए. ऐसी बात नहीं थी कि मेरी जिंदगी में आने वाले पहले पुरुष हो. तुम से पहले 5-6 लङकों से संबंध बना चुकी हूं. किसी ने भी शादी के लिए दबाव नहीं डाला था. तुम भी दबाव मत डालो.

‘‘यदि आज के बाद कभी परेशान करोगे तो तुम्हारे हक में अच्छा नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को इतना गुस्सा आया कि उस का गला दबा कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. बड़ी मुश्किल से गुस्से को काबू में किया और उसे तरहतरह से समझाया पर उस पर कोई असर नहीं हुआ.

तब वह दिशा को यह धमकी दे कर चला गया कि उस से विवाह करने के लिए कुछ भी करना पड़ेगा तो करेगा.
दिशा घबरा गई. बदनाम नहीं होना चाहती थी. अत: भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था ही. उसे चाहता भी था. नमकमिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश किया कि किसी भी मामले में फंसा कर उसे जेल भेज दे नहीं तो उस की जिंदगी वह बरबाद कर देगा.

परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर यह इलजाम लगाया गया कि उस ने कालेज की लङकी की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए। कहीं से लङकी का भी जुगाड़ हो गया. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.
परिमल तो हकीकत जानता ही था पर कर ही क्या सकता था. लंबी लड़ाई के लिए रुपए कहां से लाता. चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा.

 

Mother’s Day 2023: क्या आप की मां सही भोजन ले रही हैं?

“लाइफ डजंट कम विद मैनुअल, इट कम्स विथ मदर”, हम सभी ने यह कहावत कई बार सुनी होगी. एक मां अपने बच्चों पर अपना सारा प्यार और दुलार न्योछावर करती है और यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करती है कि उन की सभी ज़रूरतें पूरी हों. हालांकि, जब हम बड़े और स्वतंत्र हो जाते हैं, तब कई बार हम यह ध्यान भी नहीं दे पाते हैं कि हमारी मां उम्रदराज हो रही हैं.

क्या हम ने कभी सोचा है कि वे पूरे दिन क्या खाती हैं? हमें पौष्टिक भोजन देने की कोशिश करते हुए क्या वे अपनी जरूरतों को पूरा कर पा रही हैं?

हालांकि, उम्र सिर्फ एक संख्या है, लेकिन फिर भी यह हमारे शरीर में कई शारीरिक, पाचन संबंधी और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाती है, जैसे-

शारीरिक गतिविधि में कमी, पाचन और हाजमा खराब होना और प्रतिरक्षा में कमी.

बुजुर्गों में मोटापा उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोगों और कैंसर जैसे स्थाई गंभीर रोगों की ओर ले जाता है.

गर्भावस्था, प्रसव और बाद के दिनों में रजोनिवृत्ति के कारण महिलाओं की हड्डियों का घनत्व घट जाता है, जिस के परिणामस्वरूप हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. एस्ट्रोजन हार्मोन (अस्थि घनत्व को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार) का तेजी से घटना काफी हद तक औस्टियोपोरोसिस के जोखिम का कारण बनता है.

मांसपेशियों का आकार कम हो जाता है और इस से थकान, कमजोरी महसूस होती है और व्यायाम करने की क्षमता कम हो जाती है.

क्या यह आप को अतीत में आप की मां द्वारा की गई किसी शिकायत की याद दिलाता है? अवलोकन संबंधी अध्ययन इस बात का प्रमाण देते हैं कि स्वस्थ जीवनशैली  जैसे कि शारीरिक व्यायाम के साथ पौष्टिक आहार को अपनाने से जटिल बीमारियों के चलते समय से पहले मौत का जोखिम कम हो जाता है.

सही भोजन और संतुलित आहार के साथ अपनी मां को स्वस्थ रहने में मदद करें. यह निवेश निश्चित रूप से लंबी अवधि में फर्क पैदा करेगा. हमारी मां हमें पढ़ने, खेलने, खाने और सोने के समय की याद दिलाते हुए समय सारिणी का पालन करने के लिए कहती थीं. अब हमारी बारी है कि उन्हें कब और क्या खाना है, यह याद दिलाने के लिए हम समय सारिणी निर्धारित करें.

यह एक डेली फूड कैलेंडर है. अपनी मां के लिए एक व्यक्तिगत  संदेश लिखें. उस का एक प्रिंट लें और उसे मदर्स डे पर उन्हें उपहार में दें.

भोजन के सुझाव  भोजन  समय

अपने भोजन को संतुलित बनाते हुए सही खाएं

सभी 5 खाद्य समूहों को शामिल करें: अनाज/ अन्न/ बाजरा, चना / दालें / फलियां, अंडा / मांस / मछली, दूध / दुग्ध उत्पाद, फल और सब्जियां आप के भोजन में कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, विटामिन, खनिज और फाइबर प्रदान करते हैं.

सुबह का नाश्ता: नाश्ता न छोड़ें    इडली / डोसा, पोहा, वेज पराठे, अंडे, सलाद, दूध, अनाज, फल आदि लें. ये आवश्यक कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और फाइबर प्रदान करेंगे.   8-9 बजे के बीच, देर सुबह मुट्ठी भर मेवे और एक फल  सुबह 11 बजे

दोपहर का भोजन- सलाद, दही, सब्जी, दाल और चपाती / चावल को शामिल कर के अपनी थाली बनाएं. वे हरी सब्जियां शामिल करें जो मौसम और स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं. दोपहर 1 बजे

शाम का नाश्ता– चाय के साथ कुकीज, चिप्स या समोसे के अलावा एक कटोरी फल, भुना हुआ चना और मूंगफली लें.  शाम 5 बजे

रात का भोजन: हल्का खाएं  बिसिबेली राइस के साथ दही, दाल चावल या खिचड़ी और पुलाव के साथ सब्जी या सूप लें. रात 8 बजे

सोने के समय – सोने जाते वक्त हल्दी के साथ एक गिलास गर्म दूध लें. यह न केवल आप को अच्छी नींद लेने में मदद करता है बल्कि आप की प्रतिरक्षण क्षमता को भी बढ़ाता है. रात 10 बजे

तरल पदार्थ  -हर दिन 2-3 लीटर पानी पीना न भूलें. नारियल पानी, लस्सी, छाछ, ग्रीन टी, नीबू का रस डिहाइड्रेशन को मात देने के लिए अच्छे विकल्प हैं. दिन भर

इन्हें खाने से परहेज करें-  रेड मीट, रिफाइंड प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड, तैलीय एवं मीठे पकवान, अचार, पापड़, नमकीन   प्रतिदिन

भोजन में शामिल करें -प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ: दालें और फलियां, दूध और इस के उत्पाद, सोयाबीन, अंडे, लीन मीट और मेवे.

कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ: बादाम, दूध और दूध से बने पदार्थ, हरी सब्जी, फलियां, मछली और तिलहन

विटामिन डी: अंडे की जर्दी, हरी सब्जी, वसायुक्त मछली और सीफूड, दूध, विटामिन डी सप्लिमेंट्स

ये पोषक तत्व हड्डी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, मांसपेशियां बेहतर बनाने और प्रतिरक्षण क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं.1 ग्राम प्रोटीन / कि.ग्रा.

शरीर का वजन

600 मिलीग्राम कैल्शियम / प्रतिदिन

600-800 आईयू विटामिन डी / प्रतिदिन

व्यायाम- टहलने के लिए जाएं. पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करने के लिए  धूप लें.

अपने नातीपोतों के साथ खेलें, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लें.  30 मिनट प्रतिदिन

उन सभी माताओं को हैप्पी मदर्स डे जिन्होंने एक बेहतर पीढ़ी के निर्माण के लिए अथक और निस्वार्थ भाव से काम किया.

(लेखिका माय थाली कार्यक्रम से जुड़ी हैं व पोषण सलाहकार हैं.)

लेखिका- डा.मेघना पासी

कुहरा छंट गया -भाग 2 : पल्लवी क्यों तलवार की धार पर क्यों चलना

अगर आयुष के साथ लिवइन में रहने का फैसला किया है तो बहुत सोच कर. उस ने भी तो अपने मम्मीपापा को मनाया है इस के लिए और जहां तक शारीरिक संबंध की बात है, तो भविष्य में अगर कोई पुरुष मुझे सिर्फ कुंआरेपन की खोखली पहचान के आधार पर अपनाने या छोड़ने का फैसला करता है तो ऐसे इंसान से शादी करने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है.”

“पलक, लड़कियों के लिए जमाना कभी नहीं बदलता, तुम समझती क्यों नहीं?”

“सौरी मम्मी,” पलक पल्लवी की बात को बीच में काटती हुई बोली, “अगर आप ने मुझे पढ़ायालिखाया है, सहीगलत को परखने की समझ बख्शी है तो मुझे अपनी जिंदगी को संवारने की जिम्मेदारी उठाने का मौका भी दीजिए. आप जानती हैं न कि यहां से वापस घर पहुंचते ही पापा मेरी शादी करवाने का विचार रखे हुए हैं और वह भी एक ऐसे शख्स से जिसे मैं न जानती होऊंगी और न ही मुझे उस से जानने का मौका दिया जाएगा. मम्मी, मैं आप की तरह घुटघुट कर नहीं जीना चाहती हूं. मैं जीना चाहती हूं हंसी, खुशी और आजादी के साथ.”

आंखें भर गईं पल्लवी की, शब्द जैसे गले में अटक कर रह गए.

“ठीक है पलक, अब जब यही तुम्हारा आखिरी फैसला है तो मेरी यहां कोई जरूरत नहीं, चलती हूं.” पल्लवी इतना कह कर उठ खड़ी हुई.

इक झटके में पलक पल्लवी के गले लग गई. आंसू उस की आंखों से भी बह चले थे.

“मम्मी, प्लीज ऐसे मत जाओ.” पलक ने पल्लवी को जकड़ लिया. वक्त भी इस मर्मस्पर्शी लमहे का गवाह बन गया.

“मम्मी, बस एक बार आयुष से मिल लो, आप को मेरी पसंद पर पछतावा नहीं होगा.”

“तो बेटा अगर ऐसी बात है तो दोनों सीधे शादी का निर्णय क्यों नहीं ले रहे हो,” पल्लवी पलक के आंसू पोंछती हुई बोली.

“इसलिए मम्मी, क्योंकि कुछ वक्त और हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकें, पहचान सकें और बेहतर समझ सकें. एकदूसरे को कैसे वक्त देना है, पसंदनापसंद जाननी है, विचारों का तालमेल बिठाना है, आपसी संयोजन के साथ जिंदगी को जीना है मुझे. क्या अपनी ही जिंदगी के इस महत्त्वपूर्ण फैसले को करने का कोई अधिकार नहीं है मुझे?” रुक गई थी पल्लवी. आखिर पलक बेटी थी उस की. सदा पलक ने उस का मान रखा था, तो कैसे आज वह उस के मन की एक बात नहीं मान सकती थी. यों भी तो हमेशा पिता और दादी के प्यार को तरसती आई थी वह.

आयुष से पल्लवी की मुलाकात उस के जीवन में एक अनोखा मोड़ साबित हुई. आयुष एक सुलझा हुआ और सभ्रांत परिवार का लड़का लगा उसे. उस के मातापिता के विषय में पूछा उस ने तो आयुष ने उन के बारे में बताया ओर साथ ही, अपने मोबाइल पर उन की तसवीर भी दिखाई.

पल्लवी कुछ पल तो हैरानी से तसवीर देखती रही परंतु हैरानी और कुछ पूछने की मंशा उस ने वहां व्यक्त न की. पलक के साथ आयुष भी उसे स्टेशन तक छोड़ने आया था.

पल्लवी ने आयुष से उस की मम्मी का मोबाइल नंबर ले लिया था. अब जब ट्रेन चली तो पल्लवी का दिल और दिमाग भी पीछे छूटते हुए दृश्यों की भांति अतीत में विचरने लगे.

आयुष समीर का बेटा था. समीर, पल्लवी का पड़ोसी, उस का अच्छा दोस्त. पल्लवी के घर से सटा हुआ दूजा घर था उस का. पल्लवी के भाई का दोस्त तो था ही वह, पर पल्लवी की पढ़ाई का मददगार बना तो उन दोनों की दोस्ती भी बढ़ गई. बाद में तो समीर पल्लवी को ‘पल्लो’ कह कर चिढ़ाने भी लगा था. पल्लवी की शादी में काफी बढ़चढ़ कर कार्य करवाए थे उस ने.

शायद पल्लवी की शादी उन परिस्थितियों के हिसाब से सही वक्त पर हो गई थी क्योंकि समीर ने जो फैसला अलका के साथ मिल कर लिया था उस के बाद तो यों भी पल्लवी के घर वाले समीर और उस की पत्नी अलका से उस की दोस्ती रहने न देते.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें