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Dalit Youth Issues: क्यों मोहरा बनाए जा रहे हैं दलित युवा?

Dalit Youth Issues: फसाद की जड़ यह नहीं है कि ब्राह्मण खुद को जाति की बिना पर श्रेष्ठ बताते रहे हैं फसाद की जड़ यह है कि जड़ हो चले गैर ब्राह्मणों ने भी उन्हें श्रेष्ठ मान रखा है. खासतौर से उन दलितों ने जिन्हें लतियाए जाने के स्पष्ट निर्देश धर्म ग्रंथों में हैं.

 

जातिगत बराबरी की लड़ाई और इसे दूर करने की कोशिशें हर दौर में होती रही हैं आज भी हो रही हैं. लेकिन तरीका हर बार की तरह गलत है जिस में शिक्षा, हुनर और काबिलियत नहीं बल्कि रोटीबेटी के संबंधों की दुहाई कुंठा की शक्ल में दी जा रही है. इस में से भी रोटी के कोई माने अब नहीं रहे क्योंकि हर कभी ऊंची जाति वाले दलितों के साथ भोज करते नजर आ जाते हैं. लेकिन बेटी का हाथ दलित युवा के हाथ में दे कर सात फेरे लगवाते कभी कोई नहीं दिखता.

यह दुहाई इस बार मध्यप्रदेश के एक प्रमोटी आईएस अधिकारी संतोष वर्मा ने भोपाल में 25 नवंबर को दी है. दलित कर्मचारी अधिकारी वर्ग के संगठन अजाक्स के प्रांतीय अधिवेशन में बोलते उन्होंने कहा, जबतक कोई ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को दान नहीं कर देता या उस के साथ संबंध नहीं बनाता तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए.

कितना और कैसा बवाल इस बयान पर ब्राह्मणों उन के संगठनों ने मचाया इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन इस बात का अंदाजा हर कोई नहीं लगा पाया कि क्यों कोई ब्राह्मण अपनी बेटी का रिश्ता किसी दलित के दर पर जाएगा. दलित युवाओं में ऐसा कौन सा हरा रंग लगा है जो ब्राह्मण उन्हें अपना दामाद बनाएंगे. यह तो युवाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वे किस से प्यार और किस से शादी करना पसंद करेंगे.

दलित युवा खुद को इस काबिल बनाएं कि कोई ब्राह्मण युवती उन से प्यार और शादी करे तो किसी संतोष वर्मा और किसी ब्राह्मण संगठन का कोई रोल नहीं रह जाएगा. लेकिन यहां जो बात की गई उस से कोई समानता या समरसता जन्म नहीं लेने वाली न ही शादी का आरक्षण से दूरदूर तक कोई लेनादेना है. हां फौरी तौर पर यह हर किसी को समझ आ गया कि फर्जीवाड़े के मामले में फंसे संतोष वर्मा दलित युवाओं को मोहरा बना कर राजनीति में एंट्री की तैयारी कर रहे हैं.

इस फसाद में किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि दलित युवा आखिर कर क्या रहा है. इस सवाल को दो टूक जवाब यह मिलता है कि वह किसी संतोष वर्मा की तरह आईएस अफसर नहीं बन गया है. बल्कि डिलिवरी बौय बन कर घरघर में ग्रौसरी वगैरह सप्लाई कर रहा है या फिर ओला या उबर बाइक और टैक्सी का ड्राइवर बन सवर्ण सवारियां ढो रहा है.

ठीक वैसे ही जैसे इन के पूर्वज ऊंची जाति वालों की पालकी कंधों पर उठा कर या नाव खे कर उन्हें पार लगाते थे. और जो दलित युवा इस काम के काबिल भी पढ़ लिख नहीं पाए वे किसी निर्माणाधीन बिल्डिंग या अपार्टमेंट में इटगारा ढोते दिहाड़ी पर जिंदगी बसर कर रहे हैं. जो शहर भी नहीं आ पाए वे गांवदेहात में दबंगों की खेतीकिसानी के काम खेतखलिहान में कर रहे हैं.

लेकिन ये सभी एक मूर्खता जरूर कर रहे हैं वह है ब्रांडेड बाजारू बाबाओं के दरबार में हाजिरी लगाने के अलावा कांवड़ यात्रा में शामिल होने की और अपनी अलग झांकियां लगाने की. भंडारे भी दलित बस्तियों में आम हैं फिर व्रत उपवास का तो कहना ही क्या.

यह भक्ति कम सामाजिक पहचान की कवायद ज्यादा है. धर्म के चक्कर ने दलित युवाओं को भी भाग्यवादी बना दिया है दूसरे बड़ी तादाद में दलित युवा भी रीलवादी हो गए हैं जो दिन रात अपने मोबाइल फोन पर वीडियों देखने में मशरूफ रहते हैं. इसलिए दलित युवा अब खुद से कुछ नहीं करते. उन्होंने खुद को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. ऐसे दलित युवाओं से यह उम्मीद करना बेकार है कि वे ऐसा कोई हुनर खुद में पैदा कर पैसा बना पाएंगे.

दलित युवाओं को बड़ा तबका विरोधाभासी जिंदगी जी रहा है वह अपने पूजा घर में अंबेडकर की फोटो के साथसाथ शंकर और हनुमान की तस्वीर भी रखता है. जाहिर है इस का उसे एहसास ही नहीं कि आंबेडकर ने दलितों की बदहाली की सब से अहम वजह हिंदू धर्म और उस के धर्म ग्रन्थों को बताते खुद बौद्ध धर्म अपना लिया था. यह ब्राह्मणवादी सत्ता के लिए बड़ा खतरा था इसलिए उन्होंने एक और साजिश रचते आंबेडकर का ही पूजापाठ शुरू करवा दिया जिस का नजारा देश भर में आंबेडकर जयंती और पुण्यतिथि पर देखा जा सकता है.

इन ब्राह्मणों को सोचना बेहद सपाट है कि जिस कौम या तबके को बर्बाद करना हो उसे पूजापाठ का आदी बना दो इस के बाद वर्णव्यवस्था थोपे रखने के लिए ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करना पड़ेगी. और ये मासूम आईएस साहब अपने बेटे के लिए ब्राह्मणों से टेंडर आमंत्रित करने की मूर्खता कर रहे हैं. इस से साफ समझ आता है कि दलितों की दौड़ जब तक ब्राह्मणों से शुरू हो कर ब्राह्मणों पर खत्म होती रहेगी तब तब उन का कुछ नहीं होना जाना. उन्हें अगर ब्राह्मण लड़कियों में कुछ अलग हट कर बात दिखती है तो वे जाने क्यों अपनी बहूबेटियों को उन की तरह बनाने की कोशिश करते.

ज्यादातर ब्राह्मण युवतियां बीटेक एमटेक और मैनेजमैंट के कोर्स कर लाखों के पैकेज पर कम्प्यूटर और आईटी सेक्टर में नौकरियां कर रही हैं उलट इस के दलित युवतियां बमुश्किल मिडिल के बाद हाई स्कूल जा पा रही हैं. यह वह दौर है जब दलित बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं से ही स्कौलरशिप कौपीकिताबें और दूसरी सहूलियतें मुफ्त मिल रहे हैं इसलिए आर्थिक परेशानियों को रोना रोने का हक उन्हें नहीं. हां, सामाजिक स्तर पर जरूर उन से भेदभाव और प्रताड़ना वगैरह होते हैं लेकिन इन ज्यादतियों से अब खुद उन्हें लड़ना होगा. बारबार कोई आंबेडकर पैदा नहीं होगा क्योंकि वह कोई विष्णु की तरह देवता या भगवान नहीं जो हर कभी अवतार लेगा.

जिस आरक्षण का संतोष वर्मा जिक्र बड़े फक्र से कर रहे हैं उस के हाल उन से या किसी से छिपे नहीं हैं कि सरकार कितनी धूर्तता से इसे कम कर रही है. बहुत कम बची सरकारी नौकरी हासिल करने दलित युवा पढ़लिख जरूर रहे हैं लेकिन एक चौथोई भी पक्की सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पा रहे और जो कर भी लेते हैं वे सरकारी दामाद के ख़िताब से नवाजे जा कर बेइज्ज्त किए जाते हैं.

लेकिन भोपाल में दलित युवाओं को सपना दिखाया गया ब्राह्मण पत्नी का मानो वह मोक्ष की गारंटी हो इस में कोई शक नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार के रहते वर्ण व्यवस्था की पुनर्स्थापना की कोशिशें शबाब पर हैं और जातिवाद भी फलफूल रहा है जिसे ढके रखने जम कर हिंदूमुसलिम किया जा रहा है.

थोड़ी देर को मान भी लिया जाए कि दलित युवा को ब्राह्मण बीवी मिल गई तो कहां का चमत्कार हो जाएगा. क्या विरासत में मिला उस का दलितपना खत्म हो जाएगा. तय है नहीं बल्कि और बढ़ जाएगा क्योंकि श्रेष्ठि वर्ग उस का रहना दुश्वार कर देगा. गिनाने को ढेरों हैं लेकिन सब से ताजा उदाहरण ग्वालियर के नजदीक हरसी गांव का है.

यहां के एक दलित युवक ओम प्रकाश बाथम को एक ब्राह्मण युवती शिवानी झा से प्यार हो गया. जनवरी 2025 में दोनों ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली. उम्मीद के मुताबिक विरोध हुआ पंचायत बैठी जिस ने ओम प्रकाश पर न केवल 51 हजार रुपए का जुर्माना लगाया बल्कि उस के परिवार को समाज से बहिष्कृत भी कर डाला. गांववालों को समझाइश दे दी गई कि वे इस जोड़े को गांव में दाखिल न होने दें. आठ महीने यहां वहां भटकने के बाद ओमप्रकाश अगस्त के महीने में शिवानी सहित गांव वापस आया तो दबंगों ने उसे लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला.

अब भला कौन दलित युवक मरने की शर्त पर ब्राह्मण युवती से प्यार और शादी करने की रिस्क लेगा. ब्राह्मण दलित शादी बहुत दुर्लभ हैं उन में भी कपल चैन से रह रहा हो इस का तो ढूंढे से उदाहरण नहीं मिलेगा. चूंकि ऐसा होना नामुमकिन है इसलिए संतोष वर्मा जैसों को आरक्षण के बाबत बेफिक्र रहना चाहिए. जो एक गलत काम के लिए अपने ही समुदाय के युवकों को उकसाते मोहरा बना रहे हैं जिस से कि दलित राजनीति के तवे पर अपनी रोटियां सेक सकें. Dalit Youth Issues.

China Condom Tax: चीन ने टैक्स क्यों लगा दिया, मुफ्त में मिलता है कंडोम

China Condom Tax: चीन ने 30 साल बाद कंडोम और गर्भनिरोधक दवाओं पर वैल्यू एडेड टैक्स यानी वीएटी लगाने का फैसला किया है. दुनिया के दूसरे देश कंडोम को टैक्सफ्री रखते हैं जिस से एड्स जैसी गंभीर बीमारियों को रोका जा सके वहीं चीन ने कंडोम पर टैक्स लगा दिया है. इस के पीछे कारण यह है कि चीन अपने देश के घटते बर्थ रेट से परेशान है. चीन लगातार बूढ़ों का देश बनता जा रहा है. पहले चीन ने लोगों को कम बच्चा पैदा करने पर जोर दिया, अब युवा खुद ही बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे. चीन को लगता है कि इस समस्या की तह में कंडोम का सस्ता होना भी एक बड़ी भूमिका है, इसलिए उस ने कंडोम पर टैक्स लगा दिया.

 

चीन में सोशल मीडिया के प्लेटफौर्म्स पर बहस छिड़ी है कि इस से असुरक्षित सैक्स बढ़ेगा जिस से एचआईवी जैसी बीमारियां फैलेंगी. वहीं कुछ यूजर्स कहते हैं, ‘अगर कंडोम नहीं खरीद सकते, तो बच्चा कैसे पालेंगे?’

 

जन्मदर बढ़ाने के लिए चीन कई नीतियां लागू कर चुका है. पेरैंट्स को कैश देने से ले कर चाइल्ड केयर और लंबी छुट्टियों की भी घोषणा की गई है. सरकार ने तो उन अबौर्शन को कम करने की गाइडलाइन भी जारी की जो डाक्टर की नजर में जरूरी नहीं है.

 

चीन की आबादी 3 वर्षों से लगातार सिकुड़ रही है. 2024 में केवल 9.54 मिलियन बच्चे पैदा हुए जो 2016 से आधे से भी कम हैं. इस से कामगारों की कमी हो रही है और बुजुर्ग आबादी का बोझ बढ़ रहा है. 1993 में, जब एक-बच्चा नीति सख्ती से लागू की गई थी तो कंडोम को टैक्स से छूट दी गई थी ताकि जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा मिले. अब, सरकार जन्मदर बढ़ाने के लिए हर कदम उठाने को तैयार है. टैक्स लगा कर कंडोम की कीमत बढ़ाना भी जन्मदर को सुधारने का एक तरीका है. लेकिन महंगे कंडोम से जन्मदर नहीं बढ़ेगी क्योंकि चीन में 18 साल तक बच्चा पालने की लागत 76 हजार डौलर से ज्यादा है. चीन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. China Condom Tax.

Gold Jewellery: सोने के जेवर के बदले सोने के बिस्कुट; महिलाओं के हक का मौन विस्थापन

Gold Jewellery: भारतीय महिलाओं को अब सोने के प्रति अपनी सोच को भावनात्मकता के स्तर से उठा कर निवेश के स्तर पर लाने की आवश्यकता है. निवेश, जिसे अभी तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र समझा जाता रहा है, को अब औरतों का भी कार्यक्षेत्र माना जाना चाहिए. वहीं, बात जब गहनों को बिस्कुट या छड़ में बदलने की हो तो इस क्षेत्र के बारे में उन को अपनी जानकारी बढ़ाए जाने की जरूरत भी है.

‘’बूढ़ी काकी कभी गहनों से लदी-फंदी रहती थीं. हाथों में सोने की मोटी कंगनियां, कानों में झूमर, गले में हार और कमर में करधनी. घर में उन के गहनों की धूम थी. परंतु आज वो गहने कहीं दिखाई न देते थे. सबकुछ बहू ने धीरे-धीरे बेच डाला था. काकी के पास अब न ओढ़ने को अच्छी साड़ी थी, न खाने को भरपेट रोटी. गहनों की चमक तो चली गई, अब उन के चेहरे पर केवल वृद्धावस्था और उपेक्षा की रेखाएं चमकती थीं.”

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का यह अंश इतना बताने के लिए काफी है कि औरत की जिंदगी में उस के गहनों का कितना महत्व है. औरत चाहे नौकरीपेशा हो या गृहिणी, उस की अलमारी या उस के लॉकर में रखे उस के गहने उस की असली संपदा है. इस संपदा पर गोल्ड लोन देने वाले बैंकों की नजर तो लगी ही हुई है, अब घर के मर्द भी उसकी इस संपत्ति को हथियाने का रास्ता तलाशने लगे हैं.

दो दशकों पहले तक औरत के गहनों पर पुरुष नजर भी नहीं डालता था, बल्कि तीजत्योहार के मौके पर या अपनी वैडिंग एनिवर्सरी पर खुद उस के लिए कोई न कोई सोने का जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करता था, मगर अब वह पत्नी के जेवर उस की अलमारी से निकलवा कर उस के बदले में सोने के बिस्कुट या छड़ें खरीद कर अपने लौकर में जमा कर रहा है.

इस साल दीवाली और धनतेरस के मौके पर सोने के गहनों से पांचगुना ज्यादा सोने के बिस्कुट और छड़ों की बिक्री हुई है और ज्यादातर गोल्ड बुलियन औरतों के गहनों को बदल कर लिया गया है. औरतों से कहा जा रहा है कि आज के जमाने में इतनी हैवी ज्वैलरी पहनता कौन है, फिर आए दिन चोर-उचक्के महिलाओं के पीछे लग जाते हैं. इस से तो अच्छा है कि इन को बेच कर बिस्कुट खरीद लिए जाएं. औरतें भी इन बातों में आसानी से आ जाती हैं और गहने निकाल कर पति को सौंप देती हैं.

ज्यादातर औरतों की अपने गहनों के प्रति तो एक आसक्ति होती है मगर सोने के बिस्कुट या छड़ों का वे क्या करें? उन से उन का कोई मोह नहीं होता. लिहाजा, भोली-भाली औरतें अपने गहनों के बदले घर में आए गोल्ड बुलियन पति के हाथों में ही दे देती हैं कि तुम ही संभालो. इस तरह औरत की एकमात्र संपत्ति उस के हाथों से निकलती दिखाई दे रही है.

यह बात सच है कि आजकल हैवी ज्वेलरी पहनने का समय नहीं है. शादी-ब्याह के मौके पर भी अब औरतें मोटे-मोटे सोने के कंगन, मांग टीका, कान और गले में सोने का हैवी सेट, करधनी, पायल जैसे जेवर नहीं पहनतीं. अब तो एलिगेंट टाइप के स्टाइलिश डायमंड बेस्ड ज्वैलरी को ज्यादा पसंद किया जा रहा है. आजकल दुलहनें भी हैवी गोल्ड के बजाय डायमंड सेट्स को चुन रही हैं. हलके डायमंड सेट्स को दैनिक उपयोग में पहनना भी आसान है और ये सभी प्रकार के आउटफिट्स के साथ मैच कर जाते हैं.

मगर इस का मतलब यह नहीं है कि औरतें अपना स्त्रीधन यानी अपने सोने के भारी जेवर, जो उन को अपने मायके और ससुराल से मिले हैं और खानदानी हैं, उन को यों ही उठा कर पति के हाथ में दे दें इसलिए कि वे उस को सोने के बिस्कुट या छड़ों में कन्वर्ट कर अपनी अलमारी में रख लें. अब छोटेछोटे घर होने के कारण अगर भारी ज्वैलरी को संभालना और सुरक्षित रखना मुश्किल लग रहा है तो बेशक वे उन्हें बिस्कुट या छड़ों में कन्वर्ट कर लें मगर उन्हें अपने पास ही रखें क्योंकि यह उन का स्त्रीधन है, जिस पर किसी अन्य का कोई हक नहीं.

बहुत जरूरी है कि गहनों के प्रति इमोशनल रवैया रखने वाली महिलाओं का सोने के बिस्कुट और छड़ों के प्रति भी लगाव पैदा हो. इस के लिए छड़ों और बिस्कुट की पूरी जानकारी उन्हें होनी जरूरी है.

भारत में सदियों से सोना न केवल गहनों के रूप में पहना जाता रहा है, बल्कि इसे सुरक्षा, समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक भी माना जाता है. शादी-ब्याह से लेकर त्योहारों तक, सोने के जेवरात भारतीय जीवन का हिस्सा रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक दिलचस्प परिवर्तन देखने को मिला है. लोग गहनों की जगह सोने के बिस्कुट (गोल्ड बार) और छड़ें (गोल्ड बुलियन) खरीदने लगे हैं. यह बदलाव सिर्फ फैशन या परंपरा का मुद्दा नहीं है, बल्कि बदलती अर्थव्यवस्था और निवेश मानसिकता का संकेत देता है.

इस के चलते सोने के जेवरों की खरीद घटती जा रही है. इस का मुख्य कारण है गहनों का बढ़ता मेकिंग चार्ज और जीएसटी. गौरतलब है कि सोने के गहनों पर 3 फीसदी जीएसटी के अलावा मेकिंग चार्ज 7–25 फीसदी तक होते हैं. यानी, खरीदार को उस की शुद्ध कीमत से कहीं अधिक भुगतान करना पड़ता है. इस के विपरीत, सोने की छड़ें और बिस्कुट लगभग शुद्ध सोना होते हैं और इन में मेकिंग चार्ज नहीं के बराबर होता है.

गहनों का डिजाइन समय के साथ पुराना पड़ जाता है. वापस बेचने पर डिजाइन चार्ज, वेस्टेज और रिपेयर कटौती के कारण मूल्य कम मिलता है. इसलिए निवेशक सुरक्षित और बिना डिजाइन वाले विकल्प की ओर झुक रहे हैं. बीते वर्षों में बाजार में उतार-चढ़ाव, महंगाई और वैश्विक तनावों के चलते लोग सुरक्षित निवेश की तलाश में हैं. गोल्ड बुलियन (बार/बिस्कुट) अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार होते हैं और उन की रीसेल वैल्यू भी ज्वैलरी से बेहतर रहती है.

बिस्कुट और छड़ों की खरीद इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि उन की शुद्धता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं होता. सोने के बिस्कुट 24 कैरेट (999 purity) में आते हैं. वहीं ज्यादातर गहने 18–22 कैरेट तक होते हैं. ऐसे में निवेशक गहनों की शुद्धता पर भले संदेह करे मगर गोल्ड बुलियन की शुद्धता पर कोई संदेह नहीं करता.

गोल्ड बार या बिस्कुट को बेचना भी बहुत आसान है. ये बैंक, गोल्ड कंपनियां, बुलियन मार्केट और ज्वैलर्स सभी आसानी से खरीद लेते हैं. और इन को बेचने पर कोई वेस्टेज कट भी नहीं लगता. बेचने-खरीदने पर कोई डिजाइन चार्ज नहीं लगता. शुद्धता की जांच का कोई झंझट नहीं होता और यह खरीदते ही निवेश के रूप में मान्य होता है. ये सभी बातें बिस्कुट को निवेश के लिए आदर्श बनाती हैं. लोग कैश फ्लो प्रबंधन के लिए सोने की छड़ें रखना ज्यादा पसंद करते हैं. कभी एक जगह से दूसरी जगह बहुत ज्यादा पैसा ले कर जाना हो तो बड़ेबड़े सूटकेस में करोड़ों रुपयों की गड्डियां भर कर ले जाने से बेहतर है, चार गोल्ड स्टिक्स किसी छोटी सी थैली में डाल कर आसानी से ले जाएं. कम मेकिंग चार्ज, बेहतर शुद्धता, उच्च रिटर्न और आसान लिक्विडिटी, इन सब कारणों से आने वाले वर्षों में सोने के बुलियन की मांग और बढ़ती दिख रही है.

भारतीय महिलाओं को अब सोने के प्रति अपनी सोच को भावनात्मकता के स्तर से उठा कर निवेश के स्तर पर लाने की आवश्यकता है. निवेश, जिसे अभी तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र समझा जाता रहा है, को अब औरतों का भी कार्यक्षेत्र माना जाना चाहिए. वहीं, बात जब गहनों को बिस्कुट या छड़ में बदलने की हो तो इस क्षेत्र के बारे में उन को अपनी जानकारी बढ़ाए जाने की जरूरत भी है.

हालांकि शिक्षित और कार्यरत महिलाओं में निवेश की समझ बढ़ रही है. वे डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड के बारे में भी जानकारियां जुटा रही हैं. मगर गृहस्थ महिलाएं फाइनेंस, हॉलमार्क, कैरट, बारकोड जैसे शब्द सुन कर ही डर जाती हैं. उन के गहने निवेश के काम भी आ सकते हैं, इस की वे कल्पना भी नहीं करतीं. जरूरत है उन्हें शिक्षित करने की. खासतौर से इस बात के लिए कि सोना उन का है और वे उसे गहनों के रूप में रखें या छड़ों व बिस्कुट के रूप में, मगर रखें अपने ही पास.

औरत के गहने मर्द के लॉकर में रखने का मतलब है स्वामित्व की परिभाषा का बदलना. बढ़ती महंगाई और दिखावे की वजह से आज औरतें अपने जेवर बेचने का बड़ा दबाव महसूस कर रही हैं. यह गोल्ड लोन के रूप में भी है और गोल्ड बुलियन के रूप में भी. सबसे ज्यादा डर सुरक्षा का दिखाया जा रहा है. तो ठीक है सुरक्षा के लिहाज से अगर आप अपने गहनों को छड़ों या बिस्कुट का रूप देना चाहती हैं तो दीजिए मगर उन को रखिए अपनी ही अलमारी में. ऐसा न हो कि आप की संपत्ति का मालिक कोई और हो जाए.

सोना आप की सुरक्षा, सम्मान और व्यक्तिगत अधिकार का प्रतीक होता है. कठिन समय में औरत का सोना ही उस के काम आता है. यह उस की अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की पहली सीढ़ी भी है. लेकिन जब पति अपनी पत्नी के गहनों को निकाल कर सोने के बिस्कुट या बुलियन बना कर अपने लॉकर में जमा करता है तब स्वामित्व का अर्थ बदल जाता है.

प्रॉपर्टी और सेफ डिपॉजिट में बदलने के साथ निर्णय लेने का अधिकार भी पुरुष के हाथ में चला जाता है. सोने पर निर्णय कौन ले रहा है और यह किस की संपत्ति है, यह बात मुख्य है. इस से औरत को नहीं हटना है. जहां वह इन दो बातों से हटी वहीं पितृसत्ता के आगे भिखारी बनने से उसे कोई नहीं बचा पाएगा. Gold Jewellery.

FACT CHECK : ममता नहीं ये कर रहे राष्ट्रगान का अपमान

FACT CHECK : देश की ऐसी कोई छोटीबड़ी, जरूरीगैरजरूरी घटना नहीं है जिस की रील न बनती हो. अब तो एआई की मेहरबानी से उन घटनाओं की भी रील बन जाती हैं जो दरअसल वजूद में ही नहीं होतीं. बीते दिनों एक वीडियो वायरल किया गया जिस में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्टेज पर से राष्ट्रगान अधूरा छोड़ कर जाती दिखाई दे रही हैं. जो लोग अक्ल से काम लेते हैं वे 10 फीसदी तो तुरंत समझ गए कि वीडियो एडिटेड यानी संपादित है लेकिन अंधक्लों, जिन की तादाद 90 फीसदी के लगभग है, ने दातून और शौच तक करना पोस्टपोंड कर दिया. पहले इस वीडियो को फौरवर्ड करने का (राष्ट्रधर्म) निभाया जिस में बड़े खौफनाक शब्दों में यह भी लिखा गया था कि ममता राष्ट्रद्रोही हैं. उन्होंने राष्ट्रगान का सरेआम अपमान किया.
यह कोई नई बात नहीं है ममता बनर्जी का राष्ट्रगान अपमान संबंधी वीडियो 5 वर्षों से हर कभी प्रवाहित किया जा कर यह जताने की कोशिश की जाती रही है कि यह राष्ट्रद्रोही, वामपंथी, मुसलिमपरस्त महिला देश को देश नहीं समझती, इसलिए इसे वोट मत दो. यह हिंदू राष्ट्र की स्थापना में बड़ा रोड़ा है.
यह सच है कि दिसंबर 2021 में मुंबई के एक कार्यक्रम में ममता द्वारा राष्ट्रगान के दौरान अमर्यादित व्यवहार का वीडियो वायरल हुआ था. यह मामला अदालत तक भी गया था. बौम्बे हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2023 में फैसला दिया था कि कोई अपराध नहीं बनता, राष्ट्रगान का अपमान साबित नहीं होता.
दक्षिणपंथियों, जो ऐसे संपादित वीडियो जानबूझ कर अपने विरोधियों को बदनाम करने के लिए वायरल करते हैं, को राष्ट्रगान के अपमान/सम्मान के बारे में सुप्रीम कोर्ट का 2018 (शाम नारायण चौकसी केस) का एक फैसला पढ़ लेना चाहिए जिस में उस ने व्यवस्था दी है कि राष्ट्रगान का सम्मान करना नागरिक कर्तव्य है लेकिन हर परिस्थति में खड़े होना बाध्यता नहीं है. कानून अपमान को दंडित करता है न कि सम्मान के किसी विशेष तरीके को न अपनाने पर. यानी, सम्मान बलात थोपा नहीं जा सकता क्योंकि यह मानस की चौपाई या वेदों की ऋचाएं नहीं हैं. FACT CHECK.

Kohinoor : मुगलों की शान निराली; तख्त ए ताऊस में 1,150 किलोग्राम सोना

Kohinoor : मुगलों को गाली देना आज के समय ट्रैंड में है. कुछ लोग कहते हैं कि मुग़ल लुटेरे थे लेकिन वो लूट कर कहां ले गए, यह कोई नहीं बताता. अगर मुगलों ने भारत को लूटा भी, तो वे अपनी दौलत ले कर कहीं नहीं गए. मुग़लों ने बांध बनवाए, नहरें बनवाईं, सड़कें, सराय, बावड़ी, लालकिला, ताजमहल आदि. ये सब उसी दौलत से ही बनवाईं. सवाल यह है कि मुग़लों को किस ने लूटा? 1739 में ईरान के राजा नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया और उस ने मुगलों के खजाने को लूटा और सब से अहम बात यह है कि उस ने मुगल सत्ता की शान तख्त ए ताऊस को भी लूट लिया और अपने साथ ले कर ईरान चला गया.

तख्त ए ताऊस मुगलों का राज सिंघासन था जिसे मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था. तख्त ए ताऊस पूरी तरह सोने से बना सिंघासन था. इस सिंघासन को बनाने में लगभग 1,150 किलोग्राम सोने का इस्तेमाल हुआ था. उस पर हीरे-जवाहरात जड़े थे. उस सिंघासन के ऊपर 2 मोर बने थे. अरबी में ताऊस का अर्थ मोर होता है, इसलिए उस सिंघासन का नाम तख्त ए ताऊस पड़ा. इसे हिंदी में मयूर सिंघासन कहा जाता है. विदेशी यात्री टैवर्नियर, जो एक फ्रांसीसी व्यापारी था, ने इस बात का जिक्र किया है कि तख्त ए ताऊस में लगभग 80 से 90 कैरेट का एक कोहिनूर हीरा भी था.

तख्त ए ताऊस के बारे में जानकारी देते हुए शाहजहां के दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी लिखते हैं कि सिंघासन लगभग 6 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा है. यह लगभग 26 इंच ऊंचे व 4 फुट के खंभों पर टिका है. ये खंभे सोने के बने हैं जिन पर रूबी, पन्ना और हीरे जड़े हैं. सिंघासन के किनारे पर मोतियों से सजावट की गई है. छत पर भी बेहतरीन कारीगरी की गई है. उस में मीनाकारी की गई है जो इस की खूबसूरती को चारचांद लगाती है. सिंघासन के ऊपरी हिस्से में 2 नाचते मोर की मूर्तियां हैं जिन पर हीरे और दूसरे गहने जड़े थे. हर मोर की पूंछ फैली हुई है जो नीलम, पन्ना और दूसरे कीमती पत्थरों से बनी है.

 

मोरों के बीच लगभग 80 से 90 कैरेट का हीरा लटका हुआ था, जिस की चमक बहुत ज्यादा थी. तख्त ए ताऊस पर कोहिनूर हीरा और दरिया ए नूर हीरा भी लगा था. दरिया ए नूर तराशे गए हीरों में विश्व का सब से बड़ा हीरा है. तख्त ए ताऊस की इन खासीयतों से यह साफ जाहिर है कि यह तख्त कितना महंगा होगा. इस तख्त को बनाने में कुल 7 साल लग गए थे.

 

ईरान के शाह नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली पर हमला किया. उस वक्त मुगल शासन कमजोर हो चुका था और करनाल के युद्ध में मुगलों ने नादिर शाह के सामने हथियार डाल दिए थे. इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘नादिर शाह इन इंडिया’ में लिखा है कि ‘मुगल शासक मुहम्मद शाह रंगीला बहुत ही कमजोर बादशाह था. उस ने नादिर शाह का मुकाबला नहीं किया, बल्कि उस के सामने हथियार डाल कर उस का स्वागत किया. नादिर शाह ने उस के ताज को बनाए रखने की बात की और समझौते की बात हुई, जिस की वजह से मुहम्मद शाह रंगीला ने उस के सामने दिल्ली का खजाना खोल दिया था. उसी वक्त दिल्ली में नादिर शाह की धोखे से हत्या की अफवाह फैली. नादिर शाह ने दिल्ली में कत्लेआम मचवा दिया और मुगल खजाने को लूट लिया.’

 

उस वक्त दिल्ली का खजाना विश्व के सब से कीमती खजानों में से एक था. उस ने दिल्ली का बेशकीमती खजाना तो लूटा ही, तख्त ए ताऊस को भी अपने साथ ले गया. नादिर शाह ने दिल्ली में लगभग 30 -50 हजार लोगों का कत्लेआम एक दिन में कराया था, जिस में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे. नादिर शाह ने भारत से करोड़ों की संपत्ति लूटी और उसे अपने साथ ईरान ले गया. तख्त ए ताऊस अलग से ही करोड़ों की संपत्ति था. इस के अलावा नादिर शाह अपने साथ कई भारतीय कारीगरों और मिस्त्रियों को भी ले कर गया ताकि वह ईरान में दिल्ली जैसी कलाकृतियां बनवा सके.

 

इतिहासकार लिखते हैं कि वह भारत से इतनी अधिक संपत्ति लूट कर गया था कि उस ने दोतीन वर्षों तक अपनी प्रजा पर कोई टैक्स नहीं लगाया. ईरान में उस ने तख्त एक ताऊस से कोहिनूर और दरिया ए नूर को निकाल लिया. बाद में तख्त ए ताऊस को तोड़ दिया गया. वर्तमान दौर की बात करें, तो तख्त ए ताऊस का कोई प्रमाण नहीं मिलता जिस से यह बात साफ होती है कि इसे तोड़ कर बरबाद कर दिया गया. हां, इस के दोनों बड़े हीरे अभी भी मौजूद हैं, कोहिनूर हीरा इंगलैंड की महारानी के मुकुट पर जड़ा है और दरिया ए नूर ईरान के एक म्यूजियम में मौजूद है. Kohinoor.

Winter Season : आधुनिक घरों की जरूरत हल्की और कौम्पैक्ट रजाइयां

Winter Season : एकल घरों में कम स्पेस होने के चलते आजकल ऐसी गरम रजाइयां जो पतली हों लोगों की पहली पसंद बन रही हैं, जिन्हें आसानी से धोया व फोल्ड कर आलमारी व बेड के अंदर डाला जा सकता है. जानिए इन्हें कैसे चुनें.

”अम्मा जाड़े शुरू हो गए, मगर अभी तक किसी धुनिये की आवाज सुनाई नहीं दी. पुरानी रजाइयां खुलवा कर रुई धुनवा लेते तो कुछ गर्माहट बढ़ती.”

सरला आंगन की गुनगुनी धूप में बैठी अपनी बूढ़ी सास से बोली.

”हां बहू, पहले तो सितम्बर-अक्तूबर में ही आवाज देने लगते थे, अब तो नवम्बर चढ़ जाता है और धुनिया नहीं आते. मेरी वाली रजाई तो बिलकुल पिचक गई है, पिछले साल भी नहीं धुन पाई. पता नहीं अब की जाड़े में गरमी देगी या नहीं. तुम तो मेरे लिए कम्बल भी निकाल देना.”

इतने में सुरभि अंदर वाले कमरे से बाहर आई और बोली, ”क्या दादी, मार्केट में कितनी सुंदरसुंदर रजाइयां हैं, कितनी हल्की और गरम, इस बार मैं आप के लिए सुंदर सी जयपुरी रजाई ला दूंगा. अब छोड़ो ये धुनिये का चक्कर. अब नहीं आते धुनिये. सब लोग बनी बनाई रजाइयां खरीदते हैं. हल्की और गरम भी होती हैं और उन को वाशिंग मशीन में डाल कर धोया भी जा सकता है.”

सुरभि की बात तो सही थी. आज रजाइयों में भी इतनी वैरायटी मार्केट में है, कि चुनना मुश्किल होता है कि यह वाली खरीद लें कि वह वाली. सभी आकर्षक रंगों की, हलकीफुलकी और सस्ती भी. कांथा रजाई, सुझनी रजाई, जयपुरी रजाई, कश्मीरी रजाई, गुजराती रजाई, हिमाचली या कांगड़ा रजाई, फर की बनी रजाइयां, थरमल रजाइयां कितनी तरह की रजाइयां उपलब्ध हैं. हजार-डेढ़ हजार से शुरू हो कर पांच-छह हजार रुपए तक में इतनी अच्छी रजाइयां आ जाती हैं जो 10 साल तक खराब नहीं होती हैं.

“रजाई” या क्विल्ट जैसी चीज़ का इतिहास मानव सभ्यता की सबसे पुरानी आवश्यकताओं यानी शरीर को गर्माहट और सुरक्षा देने से जुड़ा हुआ है. लगभग 30,000–40,000 वर्ष पहले जब मनुष्य ने जानवरों की खालें पहननी शुरू कीं, तो वही रजाई जैसी पहली “गरमी देने वाली चादरें” मानी गईं. सैकड़ों वर्षों बाद में जब सूई और धागे का आविष्कार हुआ, तब लोगों ने कपड़ों की परतें सिल कर और उस में कपास की भराई कर के रजाइयां बनाईं, जो सर्दी में उन के शरीर को गरम रखती थीं.

प्राचीन मिस्र (लगभग 3400 ई.पू.) की कब्रों में ऐसी चित्रकारी मिली है जिस में सैनिकों के पास कपास से भरे वस्त्र हैं, यानी कपड़ों की परतों में भराई की तकनीक तब भी थी. चीन में रेशम का आविष्कार लगभग 3000 ई.पू. होने के बाद लोग रेशमी कपड़ों में रुई या ऊन भरने लगे. भारत में कपास की खेती बहुत प्राचीन है. सिंधु सभ्यता (2500 ई.पू.) में भी कपास के तंतु मिलते हैं. इस से रुई भरी चादरें या “गद्देदार कपड़े” बनाना संभव हुआ.

भारत में “रजाई” का उल्लेख सब से पहले मध्यकालीन काल में मिलता है. मुगल दरबारों में चटख रंगों में सुंदर कशीदाकारी वाली “रजाई” एक विलासी वस्तु थी. राजस्थान, लखनऊ, बनारस और जयपुर में हाथ से रुई भर कर बनाई गई रजाइयां प्रसिद्ध थीं. रजाई की रुई को “धुनाई” कर के बहुत महीन और हल्का बनाया जाता था. यही परंपरा आज भी लखनऊ और जयपुर की “हैंडमेड रजाइयों” में मिलती है. राजघरानों और नवाबों के लिए रेशम के कवर वाली और सुनहरे धागों की कढ़ाई वाली रजाइयां बनती थीं.

ब्रिटिश लोगों के भारत में आगमन के बाद यूरोपीय शैली के कंबल और रजाई भारत में फैले. वहीं भारत की पारंपरिक “कांथा” (बंगाल), “सुझनी” (बिहार), “रजाई” (उत्तर भारत) कला को भी अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली. “कांथा” में पुराने कपड़ों की परतों को हाथ से सिल कर रजाई जैसा बनाया जाता है. वहीँ आधुनिक रजाइयां मशीन से बनती हैं, जिन में पोलिएस्टर, माइक्रो फाइबर या डक डाउन (बतख के पंख) जैसी भराई होती है. लेकिन भारत में हैंडमेड कौटन रजाई अभी भी सर्दियों की पहचान है.

खासकर उत्तर भारत में. जयपुर की “संगानेरी रजाइयां” और लखनऊ की “मुर्गा रुई रजाई” अपने हल्केपन और गर्माहट के लिए प्रसिद्ध हैं. यानी रजाई आदिम काल की खालों से शुरू हो कर मुगल काल की विलासिता, ब्रिटिश काल की कला और आज की मशीन-निर्मित दुनिया तक एक लंबा सफर तय कर चुकी है.

भारत की वस्त्र-संस्कृति यूं भी अपने शिल्प, रंगों और क्षेत्रीय विविधता के लिए विश्व विख्यात है. बंगाल की कांथा, बिहार की सुझनी और राजस्थान की जयपुरी रजाई तीनों भारत के अलगअलग सांस्कृतिक परिदृश्यों की प्रतिनिधि हैं. इन में न केवल सिलाई की तकनीकी निपुणता है, बल्कि लोककथाओं, परंपराओं और जीवन-दर्शन की झलक भी मिलती है.

कांथा रजाइयां बंगाल की ग्रामीण महिलाओं के आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं. एनजीओ और एसएचजी समूहों के माध्यम से आज कांथा रजाइयों का अंतर्राष्ट्रीय निर्यात होता है. कांथा बंगाली गृहिणियों के लिए आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम भी है और घरेलू सृजन की आत्मीयता को भी दर्शाती है. पश्चिम बंगाल, ढाका और मुर्शीदाबाद में यह रजाइयां खूब बनाई जाती हैं जिस में पुरानी साड़ियों या कपड़ों के टुकड़ों का प्रयोग होता है. इन रजाइयों पर आमतौर पर लोककथाएं, पशु-पक्षी, देवी-देवता या जीवन दृश्य उकेरे जाते हैं.

सुझनी रजाइयां बिहार की हस्तकला उद्योग में अभी सीमित स्तर पर बनती हैं. परंतु मधुबनी आर्ट की तरह इसे भी ”जीआई टैग” मिला हुआ है. मिथिला समाज में महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक बोध का दस्तावेज; यह “कपड़े पर कथा” कहलाती है. यह स्त्री-जीवन पर आधारित रजाइयां हैं जिन में स्त्रियों को विभिन्न प्रकार के घरेलू कार्यों को करते हुए दिखाया जाता है. दरभंगा, मधुबनी, मुज़फ्फरपुर में सुझनी रजाइयां खूब बनाई जाती हैं. इस की खासियत यह है कि इन पर बारीक कढ़ाई और सांस्कृतिक सौहार्द को दर्शाया जाता है. दो सूती कपड़ों के बीच हल्की रुई भरी जाती और ऊपर की सतह पर सुई-धागे से सुजनी कढ़ाई होती है. डिजाइन में मिथिला चित्रकला जैसी आकृतियां – सूर्य, मछली, पेड़, पशु आदि बनाये जाते हैं. यह काम पूरी तरह महिलाओं द्वारा हस्तकला के रूप में किया जाता है. खास बात यह है कि सुझनी रजाई केवल गरमी ही नहीं देती बल्कि यह बिहार की स्त्री-कला और सामाजिक संदेशों की अभिव्यक्ति भी है.

जयपुरी रजाई राजस्थान की अर्थव्यवस्था में प्रमुख “हैंडलूम-टेक्सटाइल” उत्पाद है. “सांगानेर” और “बगरू” प्रिंट्स से सजी यह रजाइयां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं. राजस्थानी आतिथ्य और वैभव का प्रतीक; शादी-ब्याह और पर्यटन उद्योग में यह बहुत ही लोकप्रिय हैं. जयपुरी रजाई अपने हल्केपन और रंगीन सौंदर्य के कारण विश्व प्रसिद्ध है. जयपुर, सवाई माधोपुर, टोंक, सीकर में यह खूब बनाई जाती हैं. इस में अंदर भराव के लिए शुद्ध रुई का उपयोग होता है और बाहरी कपड़ा आमतौर पर सुतरी या मलमल का होता है जो बहुत ही मुलायम और शरीर को विलासिता का अहसास कराने वाला होता है. बाहरी कपड़े पर अकसर ब्लौक प्रिंटिंग की जाती है. “जयपुरी रजाई” इतनी हल्की होती है कि कहा जाता है कि “पूरा बदन ढक ले और वजन रुमाल जैसा लगे.”

काश्मीरी रजाई को श्रीनगर और बारामूला की महिलाएं बड़े पैमाने पर तैयार करती हैं. यह अत्यंत गरम, ऊनी या रेशमी परत वाली रजाइयां हैं इन के भीतर शुद्ध ऊन या ऊनी रुई भरी होती है. बाहर का कपड़ा रेशम या मखमल का होता है जिस पर अकसर कश्मीरी कढ़ाई जिसे सोज़नी या आरी वर्क कहते हैं, की जाती है. कुछ रजाइयां “नमदा” तकनीक (फेल्टिंग वूल) से भी बनती हैं. खास बात यह है कि कश्मीर की रजाइयां ठंड के मौसम में लकड़ी के अंगीठी (कांगड़ी) के साथ पारंपरिक जीवन का हिस्सा हैं.

गुजराती रजाई कच्छ, भुज और सौराष्ट्र में बड़े पैमाने पर तैयार की जाती हैं. इन की विशेषता इन पर हुई रंगीन कढ़ाई, मिरर वर्क और पैचवर्क है. वहां की घरेलू महिलाएं पुराने कपड़ों के टुकड़े जोड़जोड़ कर सुंदर पैचवर्क की रजाई बनाती हैं. इस में काफी मेहनत लगती है. इस खोल के बीच में रुई या ऊन भरा जाता है और इस के ऊपर से गुजराती कढ़ाई और मिरर वर्क किया जाता है. गुजराती रजाइयों की खासियत यह है कि यह रजाइयां सिर्फ ओढ़ने के उपयोग में ही नहीं आतीं बल्कि यह लोकनृत्य और विवाह सजावट का भी हिस्सा होती हैं.

हिमाचली या कांगड़ा रजाई कांगड़ा, मंडी और कुल्लू में बनती हैं. यह स्थानीय ऊन से बनी, भारी और बेहद गरम रजाइयां होती हैं. इन को पहाड़ी भेड़ों के ऊन से हाथ से कताई और धुनाई के बाद बनाया जाता है. इस के अंदर ऊन और बाहर सूती कपड़ा या रेशम का खोल होता है और यह सर्दियों के लिए बेहद उपयुक्त होती हैं.

आजकल फर की रजाइयों का खूब चलन है. इन रजाइयों की खरीद रेंज काफी बड़ी है. एक हजार रुपए से ले कर 10 हजार रूपए तक में ये आ सकती हैं. उठाने में बेहद हल्की और गरम इन रजाइयों के भीतर फर का प्रयोग किया जाता है. यह फर दो तरह के होते हैं – कृत्रिम फर जो नायलोन, पोलिएस्टर या ऐक्रेलिक से बने होते हैं और दूसरा प्राकृतिक फर जो खरगोश, ऊंट, बकरी (पश्मीना) या मिंक जैसे जानवरों के बालों से तैयार किया जाता है. यह बहुत गरम होती हैं. प्राकृतिक फर की रजाइयां सर्द इलाकों जैसे हिमालय, कश्मीर, लद्दाख, शिमला आदि के लिए सब से उपयुक्त मानी जाती हैं.

कृत्रिम फर की रजाइयां भी गरम होती हैं लेकिन लंबे समय तक इन को इस्तेमाल करने से इन में बदबू या घुटन सी महसूस होने लगती है. कृत्रिम फर की रजाइयां 1500 से 4000 रुपए तक में आसानी से मिल जाती हैं जबकि ऊन-मिश्रित फर की रजाई 4000 से 8000 रुपये तक आती है. पश्मीना या असली फर की रजाई की कीमत 10,000 से 50,000 रुपए तक हो सकती है. यह लग्जरी आइटम है. फर की रजाइयों को घर पर धोना ठीक नहीं है, इन्हें ड्राई क्लीनिंग कराना ही ठीक होता है. यदि बजट कम है तो पोलिएस्टर-फर या माइक्रोफाइबर रजाइयां बेहतर विकल्प हैं. यह सस्ती और मशीन-वाशेबल होती हैं. इन्हें छोटे से स्थान पर रखना भी आसान होता है.

आजकल जिस तरह एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है, लोगों के रहने के स्थान छोटे होते जा रहे हैं. फ़्लैट कल्चर बढ़ रहा है जिस में एक, दो या तीन बैडरूम होते हैं. दीवार में अलमारियां बनी होती हैं. जिस में आप को अपने कपड़े, जेवर और अन्य सामान रखने हैं. ऐसे में चादर, दरी, परदे, कम्बल, रजाइयां आदि चीजें अधिकतर बौक्स-कम-पलंग या बौक्स-कम-दीवान में ही रखने पड़ते हैं.

अब घरों में इतनी जगह नहीं होती कि रजाई-गद्दे बड़ेबड़े संदूकों में रख सकें. ऐसे में हल्की, पतली और गरम रजाइयां लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है जो जाड़ा ख़त्म होने के बाद फोल्ड कर के आप की अलमारी के ही निचले खाने में आसानी से समा जाती है. Winter Season.

Hindi Family Story: हत्या-आत्महत्या- ससुराल पहुंचने से पहले क्या हुआ था अनु के साथ?

Hindi Family Story: अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने. Hindi Family Story.

Hindi Family Story: बोरियत- अनजान शहर में अकेली रह रही एक लड़की की कहानी

Hindi Family Story: सीमा ने कामवाली के जाने के बाद जैसे ही घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की, दरवाजा ठीक से बंद नहीं हुआ. शायद कहीं अटक रहा था. सीमा के चेहरे पर मुसकान आ गई. उस ने ड्राइंगरूम में रखी एक डायरी उठाई, अपने मोबाइल से फोन मिलाया, उधर से “हैलो…” सुनते ही सीमा ने कहा,”रमेश…”

”हां, मैडम…”

”फौरन आओ.”

”क्या हुआ मैडम?”

”घर का दरवाजा ठीक से बंद नहीं हो रहा है. बिलकुल सेफ नहीं है. फौरन आ कर देखो क्या हुआ है.”

”10 मिनट में पहुंच जाऊंगा, मैडम.”

”ठीक है, आओ.”

11 बज रहे थे. सीमा ड्राइंगरूम में ही बैठ कर गृहशोभा पढ़ रही थी. इतने में रमेश आ गया. सीमा उसे देखते ही बोली,”देखो भाई, क्या हुआ है. सालभर भी नहीं हुआ. अभी से अटकने लगा.”

”देखता हूं, मैडम.‘’

फिर थोड़ी देर बाद बोला,”कुछ खास नहीं हुआ. बस, एक हाथ घिसूंगा नीचे से बराबर हो जाएगा.”

”पर हुआ क्यों?”

”मैडम, बरसात का मौसम है, लकड़ी हो जाती है कभीकभी…”

”फिर भी, लकङी इतनी जल्दी तो खराब नहीं होनी चाहिए थी.”

”हां, मैडम सही बोलीं आप.”

”अच्छा, चाय पीओगे?”

”नहीं, मैडम कहीं पास में ही काम कर रहा हूं, आप का फोन आते ही छोड़ कर भागा आया हूं, जल्दी जाना है. मेरे हटते ही कारीगर सुस्ताने लगते हैं. आप को तो पता ही है, सालभर काम किया है आप के यहां.”

”अरे, चाय पी कर जाना.”

”ठीक है, मैडम.”

दरवाजा तो सचमुच जल्दी ही ठीक हो गया पर अब सीमा रमेश के साथ बैठ कर चाय पी रही थी, बोली,”और परिवार में सब ठीक हैं?”

”हां, मैडम.‘’

”कोरोनाकाल में तो काम का बड़ा नुकसान हुआ होगा?‘’

”हां, मैडम सब जमापूंजी खत्म हो गई.‘’

”ओह, कुछ हैल्प चाहिए तो बताना.‘’

”जी, मैडम.”

”गांव में तुम्हारे पिताजी ठीक हैं?”

”जी…’’

”बेटाबहू?”

”बस, वे तो वैसे ही हैं जैसे आप के बेटाबहू हैं, मैडम. बेटाबहू तो सारी दुनिया के एकजैसे ही हैं आजकल.”

सीमा ने ठंडी सांस ली तो रमेश ने उसे ध्यान से देखा, पूछा,”क्या हुआ मैडम?”

”तुम ने तो देखा ही है घर में काम करते हुए, किसी को कोई मतलब नहीं. सब अपने में व्यस्त. खैर, अब तो दूसरी जगह शिफ्ट हो गए हैं तो ठीक हैं, वे वहां खुश मैं यहां.”

थोड़ी देर में रमेश चला गया. सीमा ने बैडरूम में जा कर लेटते हुए गृहशोभा पत्रिका उठा ली और उस में व्यस्त हो गई. आधा घंटा पढ़ती रही, फिर आंखें बंद कर के लेट गई.

बोरीवली के इस फ्लैट में रहते हुए उसे 25 साल हो गए हैं. यह 4 कमरों का फ्लैट भी बेटेबहू को छोटा लग रहा था. वे कुछ साल पहले अंधेरी में शिफ्ट हो गए हैं. पति सुधीर बिजनैसमैन हैं, खूब व्यस्त रहते हैं. टूर पर आनाजाना लगा रहता है, जैसेकि महानगरों की एक आदत होती है, अपने में सिमटे हुए लोग.

सीमा बिहार के एक छोटे शहर की पलीबङी हुई लड़की, जब मुंबई आई तो काफी सालों तक तो उस का मन ही नहीं लगा. वह हैरान होती कि कैसे एक ही फ्लोर पर ही रहने वाले लोग कभी एकदूसरे से मिलते नहीं, बातें नहीं करते, एकदूसरे के सुखदुख से मतलब नहीं. उसे बड़ी कोफ्त होती. फिर बेटा मयंक हुआ तो कुछ साल भागते चले गए. अब कुछ सालों से जीवन में वही बोरियत है जो मुंबई आते ही महसूस हुई थी. मन नहीं लगता. कामवाली आती है तो लगता है कि कुछ देर घर में उस से कोई बात करने वाला है.

सुधीर भी कम बोलने वाला, उस का कितना मन होता कि सुधीर उस से गप्पें मारें, कुछ कहें. वह अपनी बोरियत के बारे में बताती तो बस इतना ही कहते कि टीवी देखो, बुक्स पढ़ लो,‘’ इतनी सलाह दे कर उस की बोरियत से पल्ला झाड़ लेते.

मयंक से कहती कि बोर हो रही हूं तो कहता,”आजकल तो ओटीटी है, इतनी मूवीज हैं, इतने शोज हैं, आप उन की आदत डालो, मां. हम भी थक कर औफिस से आते हैं. बात करने की हिम्मत नहीं बचती. आजकल तो कोई बोर नहीं होता मां, जिस के पास ये सब है, वह बोर हो ही नहीं सकता.”

”पर मेरा मन तो बातें करने का करता है.”

”सौरी मां, जितना आप का मन करता है, उतना तो बहुत मुश्किल है.”

”पर अपने दोस्तों से तो इतनी बातें करते हो…”

”ओह, मां वे दोस्त हैं, सैकड़ों टौपिक्स रहते हैं. आप से क्या बात करूं, आप ही बोलो?”

सीमा चुप रह जाती. उस का यह भी मन न होता कि फोन पर बारबार रिश्तेदारों से बातें करे. सीमा का परिवार अपने बाकी रिश्तेदारों से समृद्ध था. उन की बातों में जलन की बू आती तो उस का मन व्यथित हो जाता वह उन से खास मौकों पर ही बात करती है. कामवाली रमा से वह खुश रहती है. जितनी देर रमा काम करती है, लगातार बोलती रहती है.उसे अच्छा लगता है कि वह यही तो चाहती है कि कोई उस से खूब बातें करे. आज रमेश से भी बात कर के उसे अच्छा लगा.

अब तो बोरियत इस हद तक हो गई है कि कोई भी मिल जाए, कोई भी बात करे, इतना बहुत है. कोई भी हो. काफी समय वह पत्रिकाएं भी पढ़ती है पर कितना पढ़ेगी, बात भी तो करने का दिल करता है. देर रात सुधीर लौटे तो उस ने बताया कि आज दरवाजा अटक गया था. रमेश को बुला कर ठीक करवाया.

”अच्छा किया, नहीं तो परेशानी हो जाती,” इतना कह कर सुधीर फ्रैश हो कर जल्दी ही आराम करने लेट गए.

कुछ दिन बहुत बोरियत भरे बीते. सीमा का वही रूटीन चलता रहा. उस की बिल्डिंग में या तो कई फ्लैट्स खाली पड़े थे या काफी फ्लैट्स में कुछ यंग जोड़े थे जो सुबहसुबह काम पर निकल जाते. कभी छुट्टी के दिन लिफ्ट में आतेजाते मिल जाते. मशीनी स्माइल देते. पड़ोस के नाम पर भी कुछ नहीं था सीमा के पास. अब तो कुछ सालों से उसे जो भी मिलता, वह बातें करने का कोई मौका न छोड़ती. कोई भी कहीं मिल जाए, बस.

एक रात अचानक सोतेसोते सुधीर और सीमा चौंक कर उठे. लाइट कभी आ रही थी, कभी जा रही थी. सुधीर ने कहा ,”ओह, अब यह क्या मुसीबत है. मैं सुबह टूर पर जा रहा हूं और चैन से सो नहीं पा रहा. तुम किसी इलैक्ट्रीशियन को बुला कर दिखा लेना कि क्या हुआ है. मुझे फोन पर बताती रहना.‘’

”हां…‘’

सुधीर अगले 3 दिनों के लिए दिल्ली चले गए. मयंक दिन में एक बार फोन पर हाजिरी दे देता. सीमा ने सोहन को बुलाया. सोसाइटी में सालों से काम कर रहा था. वह आया, देख कर बोला,”मैडम, पुरानी वायरिंग है, बदलनी पड़ेगी. नहीं तो किसी भी दिन आग पकड़ लेगी.‘’

”अच्छा, कितना टाइम लगेगा?”

”2-3 दिन. पूरे घर की बदलनी पड़ेगी.”

”हां, ठीक है, कोई दिक्कत नहीं. सामान ले आओ.”

सोहन ने काम शुरू कर दिया. सीमा को लगा जैसे घर में एक रौनक सी हो गई. कभी सोहन काम करता, कभी फोन पर बात करता, घर में कुछ आवाजें सुनाई दीं. सीमा को अच्छा लगा. वह सोहन के आसपास मंडराती रहती. उस के पास ही कुरसी रख लेती. घरपरिवार, सोसाइटी के लोगों की बातें करतेकरते सीमा का खूब अच्छा टाइमपास होता. वह खुश थी.

एक दिन सीमा पूछने लगी,”सोहन, तुम्हे यहां अच्छा लगता है या अपना गांव?”

”मैडम, गांव याद तो आता है पर अब यहीं काम है तो ठीक है. मन न भी लगे तो क्या कर सकते हैं, पेट का सवाल है.”

”हां, सही कहते हो, भाई. अच्छा, यह बताओ कि सब से ज्यादा क्या याद करते हो?”

सोहन हंसा,” मां हमेशा गरमगरम खाना बना कर खिलाती हैं. चाहे कितनी भी देर से लौटूं. एक दिन अपनी पत्नी से यह बात बताई तो उस ने ऐसे घूरा कि सोच कर ही हंसी आ जाती है.”

सीमा भी हंस पड़ी. बोली,”भाई, पत्नी और मां एकजैसी थोड़ी हो सकती हैं. मैं ने जितने नखरे मयंक के उठाए उस की पत्नी ने तो उसे सीधा कर दिया. सारे नखरे भूल गया है.”

सीमा को लगा कि ऐसी बातें तो वह किसी और से कर ही नहीं पाती जैसे इन लोगों से कर लेती है. अगर पति से यह सवाल पूछ ले तो वे फौरन कहेंगे कि क्या बेकार की सोचती रहती हो तुम, सीमा.

जितने दिन सोहन काम करता रहा, सीमा का मन खूब लगा रहा. वह नरम दिल स्त्री थी. कोई भी काम करने आता तो उसे खिलातीपिलाती रहती. वे ₹20 मांगते, तो सीमा दुलार से ₹30 देती. इसीलिए उस के एक बार बुलाने पर सब काम करने फौरन आते.

लाइट का काम हो गया. सोहन चला गया. सुधीर आ गए. उन का औफिस का रूटीन शुरू हो गया. अब सीमा फिर बोर होने लगी. कामवाली के जाने के बाद से बिना किसी से बातें किए उस का मुंह सूखने लगता. 1-2 फोन मिला लेती, लेकिन फिर वही बोरियत.

एक दिन एक सैल्समैन आया, वैक्यूम क्लीनर के बारे में समझाने लगा. सीमा के पास तो कब से वैक्यूम क्लीनर था, फिर भी वह चुपचाप ऐसे समझती रही कि जैसे इस के बारे में पहली बार सुन रही हो. वह जब समझा चुका, तो थोड़ीबहुत बातें की उस से, फिर कभी आने के लिए कहा. उस के जाने के बाद खुद की शरारत पर ही हंसने लगी कि बोरियत की क्या हद है. सैल्समैन की बातें भी अच्छी लगती हैं. सुधीर को यह पसंद नहीं था कि वह बाहर काम करे. पत्नी का घर संभालना ही उन्हें पसंद था.

वैसे, सीमा को भी घर से बाहर निकलने का बहुत ज्यादा शौक नहीं था. उस की 1-2 दोस्त बनी थीं पर अब वे सब विदेश में अपने बच्चों के पास थीं. वह खुद को व्यस्त रखने की पूरी कोशिश करती. ऐक्सरसाइज करती, शारीरिक रूप से फिट रहती. शाम को अच्छी तरह तैयार हो कर घर का कुछ न कुछ सामान या सब्जी लेने जरूर जाती. आतेजाते लोगों से थोड़ी हायहैलो करने की कोशिश करती. सब्जी वाले से थोड़ी देर बातें करती. कई बार तो अपनी बोरियत दूर करने के लिए अनजान लोगों से ही सब्जी लेती बतिया लेती.

काम तो वह सब कर ही लेती है पर उस के पास बात करने के लिए जब कोई नहीं होता, तो वह दुखी हो जाती. कोई समझ क्यों नहीं पा रहा है कि बातें करना जरूरी है. क्यों सब अपनेआप में ही डूबते जा रहे हैं?
बहू कभीकभी फोन करती पर बहुत जल्दी फोन रख देती. उस का मन होता कि बहू से खूब बातें करे, पर वह अपनी नौकरी में इतनी व्यस्त रहती कि हमेशा ही जल्दी में दिखती.

1 महीना और बोरियतभरा बीता. उस ने सारी मूवीज देख लीं. मयंक ने जो शोज बताए वे भी देख लिए. लेकिन अब…

बात करने को तरसते हुए कुछ दिन और बीते ही थे कि एक दिन सुधीर के लिए मैंगो शेक बनाते हुए मिक्सी खराब हो गई. सुधीर झुंझलाए पर सीमा खुश थी कि कोई तो आएगा मिक्सी बनाने. Hindi Family Story.

Hindi Social Story: तीन सखियां- नई सोच के साथ नई शुरुआत करती सहेलियों की दिलचस्प कहानी

Hindi Social Story: अपनी नई नई गृहस्थी सजासंवार कर गंगा, दामिनी और कृष्णा सोफे पर ही पसर गईं. गंगा ने कहा, ‘‘चलो, भई, अब शुरू करते हैं नया जीवन, बैस्ट औफ लक.’’

‘‘हां, सेम टू यू,’’ दामिनी ने कहा तो कृष्णा कहने लगी, ‘‘शुरुआत कुछ शानदार होनी चाहिए, डिनर करने बाहर चलें? 2 दिन से अब फुरसत मिली है.’’

गंगा ने कहा, ‘‘हां, ठीक है, 7 बज रहे हैं. दामिनी, कल तुम्हें औफिस भी जाना है. चलो फिर, जल्दी डिनर कर के आते हैं. टाइम से आ कर आराम कर लेना. श्यामा भी कल से ही काम पर आएगी. बोलो, कहां चलना है?’’

दामिनी ने कहा, ‘‘शिवसागर चलते हैं.’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘नहीं, फ्यूजन ढाबा चलते हैं.’’

गंगा ने कहा, ‘‘नजदीक ही बार्बेक्यू नेशन चलते हैं.’’

दामिनी ने फटकारा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है, गंगा? रात में इतना हैवी डिनर करोगी वहां?’’

गंगा ने भी तेज आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारा दिमाग होगा खराब, एक रात हैवी खाने से क्या हो जाएगा? अरे, नए जीवन की पार्टी तो बनती है न.’’

कृष्णा ने टोका, ‘‘बस, फ्यूजन ढाबा चलेंगे, तुम दोनों तो किसी भी बात पर शुरू हो जाती हो.’’

तीनों की आवाजें धीरेधीरे तेज होने लगीं, अभी 2 दिन पहले ही इस ‘तुलसीधाम सोसायटी’ में तीनों ने फोर बैडरूम का फ्लैट किराए पर लिया था और अभी घर का सामान संभाल कर फ्री हुई थीं.

तीनों की आवाजें तेज होते ही फ्लैट की डोरबैल बजी. तीनों चुप हो गईं. एकदूसरे को देखा. कृष्णा ने कहा, ‘‘यह कोई सीरियल नहीं है, डोरबैल बजते ही एकदूसरे की तरफ देखने के बजाय दरवाजा खोलो. अच्छा, मैं ही देखती हूं.’’

कृष्णा ने दरवाजा खोला. एक महिला खड़ी थी. गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं आप के बराबर वाले फ्लैट में रहती हूं. कुछ शोर सा हो रहा था. आप लोग नई आई हैं, कुछ प्रौब्लम है क्या? मैं कुछ हैल्प करूं?’’

इतने में दामिनी और गंगा भी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गईं. गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. हमारे यहां तो अकसर यह शोर होता रहेगा. आप चिंता न करें. हम लोग मजे में हैं.’’

महिला चुपचाप चली गई. दरवाजा बंद कर तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, दामिनी ने कहा, ‘‘यह बेचारी पड़ोसिन तो हमारे चक्कर में पड़ कर पागल हो जाएगी.’’ इस बात पर तीनों खूब हंसीं.

दामिनी ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट तैयार हो जाओ. अब निकलना चाहिए.’’ तीनों अपनेअपने बैडरूम में तैयार होने लगीं. दामिनी ने तैयार हो कर फिर पूछा, ‘‘कहां कर रहे हैं डिनर?’’

कृष्णा ने अपनी शरारती मुसकराहट बिखेरते हुए कहा, ‘‘किसी नई जगह.’’

तीनों तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पड़ोसिन महिला से फिर सामना हो गया. वह तीनों को स्टाइलिश कपड़ों में, बढि़या परफ्यूम की खुशबू बिखेरते, हंसीमजाक करते हुए जाते देख हैरान होती रही. क्या औरतें हैं, अभी तो लड़ रही थीं. तीनों ने एक शानदार होटल में डिनर किया. हमेशा की तरह आइसक्रीम खाई और कुछ जरूरी सामान खरीद कर अपने नए संसार में लौट आईं. घर आ कर कपड़े बदले, अपनेअपने बैडरूम में लगा टीवी औन किया. थोड़ी देर अपनी पसंद के प्रोग्राम देखते हुए सुस्ताईं, फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर घरगृहस्थी के कामों व सामान पर चर्चा कर के सोने चली गईं. तीनों बहुत थकी हुई थीं. नए घर में आज तीनों की पहली रात थी. कल तक तो दिनभर सामान लगा कर सोने के लिए रात को अपनेअपने पुराने घर में चली जाती थीं, अब तो यही घर उन का सबकुछ था.

पिछले हफ्ते ही तीनों ने इस मिडिलक्लास सोसायटी में तीसरे फ्लोर पर यह 4 बैडरूम  फ्लैट किराए पर लिया था. उन का हर परिचित, रिश्तेदार उन के इस फैसले पर हैरान रह गया था. तीनों अपनेअपने बैड पर सोने लगीं तो तीनों की आंखों के आगे अपना पिछला समय चलचित्र की भांति चलने लगा.

पिछले हफ्ते तक जीवन एक पौश सोसायटी में बिताया था, पर बिल्डिंग अलगअलग थीं. तीनों सोसायटी की ही एक किटी पार्टी की सदस्य भी थीं जिस में 25 साल से ले कर उन की उम्र तक की 15 सदस्य थीं. किटी में ही तीनों का ध्यान एकदूसरे की तरफ गया था. तीनों के विचार, तौरतरीके, स्वभाव, व्यवहार एकदूसरे से खूब मेल खाते थे. तीनों हाउजी खूब उत्साह से खेलती थीं. हर गेम जीतने की कोशिश करती थीं. तीनों बहुत हंसमुख थीं. किटी की अन्य सदस्य जीवन के प्रति उन के सकारात्मक दृष्टिकोण की खुले दिल से तारीफ करती थीं. सब के दिल में उन के लिए प्यार और सम्मान था.

तीनों ही जीवन के 5वें दशक में थीं. फिर भी तीनों सैर पर भी एकसाथ जाने लगी थीं. तीनों का आपसी संबंध दिनपरदिन मजबूत होता गया था. अब तीनों अपनी व्यक्तिगत बातें, अपने सुखदुख एकदूसरे के साथ बांटना चाहती थीं. एक रविवार कृष्णा ने दोनों को फोन कर अपने घर लंच पर बुलाया था. गंगा और दामिनी 12 बजे कृष्णा के घर पहुंच गई थीं. कृष्णा ने बहुत दिल से दोनों की आवभगत की. गंगा और दामिनी ने कृष्णा के बनाए खाने की भरपूर प्रशंसा की. तीनों ने भरपेट खाया. उस के बाद कृष्णा कौफी बना कर ले आई. तीनों आराम से सोफे पर ही पसर गई थीं. कृष्णा ने कहना शुरू किया, ‘जब से हम तीनों मिले हैं, जी उठी हूं मैं, वरना यही सूना घर, वही बोरिंग रुटीन था. पर बाहर तुम लोगों से मिल कर जब घर वापस आती हूं तो घर काटने को दौड़ता है. अकेलापन सहा नहीं जाता.  घर में घड़ी की सूइयां भी ठहरी हुई सी लगती हैं.’

दामिनी ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘कितने साल हो गए आप के पति का स्वर्गवास हुए?’ 15 साल हो गए, 1 ही बेटी है जो आस्ट्रेलिया में पति और बच्चों के साथ रहती है. साल दो साल में कभी वह आ जाती है. कभी मैं चक्कर लगा आती हूं, बस.’

गंगा ने भी अपने बारे में बताया, ‘मेरा भी जीवन ऐसा ही है. आलोक से तलाक के बाद अकेली ही हूं.’

दामिनी ने पूछा, ‘तलाक क्यों हो गया था? कितने साल हो गए?’

‘आलोक से विवाह के 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. उस का अपनी किसी सहकर्मी से अफेयर था. मैं ने आपत्ति की तो वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गया जिस के बदले में उस ने मुझे इतनी भारी रकम दी कि आज तक मुझे किसी चीज की कमी नहीं है. वह बड़ा बिजनैसमैन था. मेरे नाम मोटा बैंकबैलेंस, गहने, यह फ्लैट, सबकुछ है. एक बेवफा पति से चिपके रहने के बजाय मुझे यह जीवन ही ठीक लगा. मैं भी अब पूरी आजादी से जी रही हूं पर मेरा धीरेधीरे सभी रिश्तेदारों से भी मन खराब होता गया. न मैं उन के ताने सुनना चाहती थी न हमदर्दीभरी बातें इसलिए मैं ने सब को अपने से दूर कर दिया. अकेलापन अब बहुत खलता है पर क्या कर सकते हैं. तुम बताओ दामिनी, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’

दामिनी ने एक ठंडी सांस ले कर बताना शुरू किया, ‘पिता नहीं रहे तो चाहेअनचाहे घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती गई. मैं बड़ी थी. मैं ने खुद पढ़नेलिखने में बहुत मेहनत की, दोनों छोटे भाइयों को पढ़ायालिखाया, मां की देखभाल की. मां और भाइयों को संभालने में काफी उम्र निकल गई. वे भी मेरे विवाह के टौपिक से बचते रहे. एक बार उम्र निकल गई तो विवाह का खयाल मैं ने भी छोड़ दिया. अब मां तो रहीं नहीं, दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ विदेश में बस गए हैं. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर हूं. रुपएपैसे की कमी तो नहीं है पर अकेलापन खलने लगा है. इसी साल मैं 50 की हो रही हूं पर जीवन को मैं रोतेरोते नहीं जीना चाहती. जीवनभर मेहनत की है. जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहती हूं.’

कृष्णा ने कहा, ‘और क्या, हम तीनों ही खुशमिजाज, आर्थिक रूप से मजबूत और नए विचारों वाली महिलाएं हैं. हम क्यों अपना जीवन रोपीट कर बिताएं. जो मिलना था, मिल गया, जो नहीं मिला, बस नहीं मिला. पढ़ा है या सुना है तुम लोगों ने, एक लेखक ने भी कहा है, ‘मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा’.’

दामिनी ने खुश हो कर पूछा, ‘अरे, तुम भी यह सब पढ़ती हो क्या?’

‘और क्या, किताबें तो मेरी अब तक सब से अच्छी साथी रही हैं. आओ, तुम्हें अपनी छोटी सी लाइब्रेरी दिखाऊं,’ कह कर कृष्णा उन्हें अपने बैडरूम में ले गई थी.

गंगा भी चहक उठी, ‘अरे वाह, मुझे भी शौक है. मैं भी पढ़ूंगी ये सब.’

उस के बाद तीनों थोड़ी देर बातें करती रही थीं, फिर अपनेअपने घर लौट आईं. तीनों का मन साथ समय बिता कर काफी हलका था. दामिनी की शनिवार, रविवार छुट्टी होती थी. वह अब ये तीनों दिन कृष्णा और गंगा के साथ ही बिताती थी. तीनों के घर काम करने वाली मेड भी एक ही थी अब, श्यामा. कालेज जाने वाली छात्राओं की तरह तीनों सखियां अब किसी एक के घर इकट्ठी होतीं, हंसीमजाक करतीं, कभी मूवी देखने जातीं, कभी शौपिंग जातीं. तीनों को अब किसी अन्य की जरूरत महसूस नहीं होती. ऐसे ही एकदूसरे के सुखदुख को बांटते तीनों की दोस्ती को 2 साल बीत रहे थे.

एक दिन दामिनी ने कृष्णा और गंगा को अपने घर बुलाया हुआ था. तीनों खापी कर उस के बैडरूम में ही लेट गईं. दामिनी को कुछ सोचते हुए देख कर कृष्णा ने पूछा, ‘क्या सोच रही हो, दामिनी?’

‘बहुत कुछ, कुछ नई सी बात.’

‘क्या, बताओ?’

‘समझ नहीं पा रही हूं कि क्या ठीक सोच रही हूं मैं.’

गंगा ने कहा, ‘जल्दी बताओ अब.’

‘अभी दिमाग में आया, हम तीनों ही अकेली हैं, तीनों एकदूसरे के साथ खुश हैं, हम तीनों हमेशा भी तो साथ रह सकती हैं और वैसे भी हमें अपना जीवन जीने के लिए किसी पुरुष के साथ की जरूरत तो है नहीं. हम चाहें तो हमेशा साथ रह कर जीवन की सांध्यवेला में एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं. हम तीनों का वन बैडरूम फ्लैट है. ऐसा कर सकते हैं कि आसपास किसी सोसायटी में बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर साथ रह कर भी अपनी मरजी से जिएं. सब की प्राइवेसी भी रहे और साथ भी मिलता रहे. अपने फ्लैट किराए पर दे देंगे. सब खर्चे शेयर कर लेंगे. कम से कम घर लौटने पर किसी अपने का चेहरा तो दिखेगा. घर की खाली दीवारें अकेले होने का एहसास तो नहीं कराएंगी.’

गंगा और कृष्णा के मुंह से उत्साहपूर्वक निकला, ‘वाह, दामिनी, क्या बढि़या बात सोची है. यह बहुत अच्छा रहेगा.’

गंगा ने कहा, ‘बहुत मजा आएगा. भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन पल तो हमें इस जीवन में दोबारा नहीं मिलेंगे. फिर इन को खो कर क्यों जिएं. जीवन की राह में बस यों चलते जाना कि सांस जब तक चले, जीना ही पड़ेगा, यह सोच कर क्यों जिएं.’

दामिनी ने कहा, ‘और आजकल तो मैं कई बार सोचती हूं कि मेरे लिए अंदर से दरवाजा खोलने वाला कोई है ही नहीं. हो सकता है कभी मेरे फ्लैट का ताला तोड़ मेरा गला हुआ शव बाहर निकाला जाए. और तब मेरे परिचित मेरी संपत्ति पर हक जताने चले आएंगे.’

कृष्णा कहने लगी, ‘तुम लोग सीरियस मत हो. हमारा अब दोस्ती का सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, द्वेष और ईर्ष्या से रहित है, स्वार्थ से परे है.’

तीनों की आंखें भर आई थीं. तीनों एकदूसरे के गले लग गई थीं. तीनों का दिल फूल सा हलका हो गया तो तीनों फिर मस्ती के मूड में आ गईं. अपने अंदर एक नया उत्साह, नई ऊर्जा महसूस की उस दिन तीनों ने. उस के बाद तो भविष्य की योजनाएं बनने लगी थीं. और फिर कई दिन कई घरों को देखने के बाद यह घर फाइनल किया था तीनों ने.  जिस ने भी सुना, हैरान रह गया था. मुंबई की इस सोसायटी में रहने वालों के लिए यह एकदम नया, अद्भुत विचार था. प्रबुद्धजन कह रहे थे, ‘किसी वृद्धाश्रम में जा कर रहने से अच्छा ही है यह आइडिया. समाज के लिए नया उदाहरण पेश कर रही हैं तीनों सखियां.’ उन की किटी पार्टी की सदस्याएं इस नए, उत्साहपूर्ण कदम में उन के साथ थीं. सब ने उन की पूरी सहायता की थी. समाज के लिए एक नई मिसाल कायम कर के तीनों ही अतीतवर्तमान में गोते लगाती हुई बेफिक्री की नींद में डूब चुकी थीं. Hindi Social Story.

Hindi Social Story: विरासत- क्यों कठघरे में खड़ा था विनय?

Hindi Social Story: कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था. पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी. Hindi Social Story.

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