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Social Story : जीवन चक्र – आशा ने जिंदगी के कौन से बड़े उतारचढ़ाव देखे थे ?

Social Story : उस का नाम कई बार बदला गया. उस ने जिंदगी के कई बडे़ उतारचढ़ाव देखे. झुग्गीझोंपड़ी की जिंदगी वही जान सकता है, जिस ने वहां जिंदगी बिताई हो. तंग गलियां, बारिश में टपकती छत. बाप मजदूरी करता, मां का साया था नहीं, मगर लगन थी पढ़ने की. सो, वह पास के ही एक स्कूल से मिडिल पास कर गई.

मिसेज क्लैरा से बातचीत कर के उस की अंगरेजी भी ठीक हो चली थी. पासपड़ोस के आवारा, निठल्ले लड़के जब फिकरे कसते, तो दिल करता कि वह यहां से निकल भागे. मगर वह जाती कहां? बाप ही तो एकमात्र सहारा था उस का. आम लड़कियों की तरह उस के भी सपने थे. अच्छा सा घर, पढ़ालिखा, अच्छे से कमाता पति. मगर सपने कब पूरे होते हैं?

उस का नाम आशा था. उस के लिए मिसेज क्लैरा ही सबकुछ थीं. वही उसे पढ़ालिखा भी रही थीं. वे कहतीं कि आगे पढ़ाई कर. नर्सिंग की ट्रेनिंग कराने का जिम्मा भी उन्हीं के सिर जाता है. उसे अच्छे से अस्पताल में नौकरी दिलाने में मिसेज क्लैरा का ही योगदान था. वह फूली नहीं समाती थी.

सफेद यूनिफौर्म में वह घर से जब निकली, तो वही आवारा लड़के आंखें फाड़ कर कहते, ‘‘मेम साहब, हम भी तो बीमार हैं. एक नजर इधर भी,’’ पर वह अनसुना कर के आगे बढ़ जाती. पड़ोस का कलुआ भी उम्मीदवारों की लिस्ट में था. अस्पताल में शकील भी था. वह वहां फार्मासिस्ट था. वह था बेहद गोराचिट्टा और उस की बातों से फूल झड़ते थे. लोगों ने महसूस किया कि फुरसत में वे दोनों गपें हांकते थे. आशा की हंसी को लोग शक की नजरों से देखने लगे थे. सोचते कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है. इस बात से मिसेज क्लैरा दुखी थीं. वे तो अपने भाई के साथ आशा को ब्याहना चाहती थीं. इश्क और मुश्क की गंध छिपती नहीं है. आखिरकार आशा से वह आयशा शकील बन गई. उन दोनों ने शानदार पार्टी दी थी.

यह देख मिसेज क्लैरा दिमागी आघात का शिकार हो गई थीं. वे कई दिन छुट्टी पर रहीं… आशा यानी आयशा उन से नजरें मिलाने से कतरा रही थी.

मिसेज क्लैरा का गुस्सा वाजिब था. वे तो अपने निखट्टू भाई के लिए एक कमाऊ पत्नी चाहती थीं. मगर अब क्या हो सकता था, तीर कमान से निकल चुका था.

आयशा वैसे तो हंसबोल रही थी, मगर उस के दिल पर एक बोझ था.

शकील ने भांपते हुए कहा, ‘‘क्या बात है? क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, थकान है,’’ कह कर उस ने बात टाल दी.

मिसेज क्लैरा सबकुछ भुला कर अपने काम में बिजी हो गईं. आयशा ने उन की नजरों से बचने के लिए दूसरे अस्पताल में नौकरी तलाश ली थी. आयशा की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया था. उस का स्वभाव अब भी वैसा ही था. मरीजों को दवा देना, उन का हालचाल पूछना. उस का बचपन का देखा सपना पूरा हो चला था. वह कच्चे मकान और बदबूदार गलियों से निकल कर स्टाफ क्वार्टर में रहने को आ गई थी. धीरेधीरे कुशल घरेलू औरत की तरह उस ने सारे सुख के साधन जुटा लिए थे. 3 साल में वह दोनों 2 से 4 बन चुके थे. एक बेटा और एक बेटी.

कल्पनाओं की उड़ान इनसान को कहां से कहां ले जाती है. इच्छाएं दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं. बच्चों की देखभाल की चिंता किए बिना ही शकील परदेश चला गया… आयशा ने लाख मना किया, मगर वह नहीं माना. आयशा रोज परदेश में शकील से बातें करती व बच्चों का और अपने प्यार का वास्ता देती. बस, उस के सपने 4 साल ही चल सके. मिडिल ईस्ट में शायद शकील ने अलग घर बसा लिया था. आयशा के सपने बिखर गए. शुरूशुरू में तो शकील के फोन भी आ जाते थे कि अपना और बच्चों का ध्यान रखना. कभीकभार वैसे भी आते रहे. दिनों के साथ प्यार पर नफरत की छाया पड़ने लगी.

‘‘बुजदिल… बच्चों पर ऐसा ही प्यार उमड़ रहा था, तो देश छोड़ कर गया ही क्यों?’’

आयशा समझ गई थी कि शकील अब लौट कर नहीं आएगा… वह नफरत से कहती, ‘‘सभी मर्द होते ही बेवफा हैं.’’ आयशा अब पछता रही थी. उसे अपने सपने पूरे करने के बजाय मिसेज क्लैरा के सपने पूरे करने चाहिए थे. ‘पलभर की भूल, जीवन का रोग’ सच साबित हो गया. शकील भी शायद आयशा से छुटकारा पाना चाहता था और वह भी… आसानी से तलाक भी हो गया. उस दिन वह फूटफूट कर रोई थी.

बच्चों ने पूछा, ‘मम्मी, क्या पापा अब नहीं आएंगे?’

‘‘नहीं…’’ आयशा रोते हुए बोली थी.

‘क्यों नहीं?’ बच्चों ने पूछा था.

‘‘क्योंकि, तुम्हारे पापा ने नई मम्मी ढूंढ़ ली है.’’

आशा ने मिसेज क्लैरा के भाई से शादी कर ली… उन्हें शांति मिल गई थी. पर वे खुद कैंसर से पीडि़त थीं. अब वह आशा ग्रेस मैसी बन चुकी थी. मिसेज क्लैरा की जिंदगी ने आखिरी पड़ाव ले लिया था. वे भी दुनिया सिधार चुकी थीं. अब वह और ग्रेस मैस्सी… यही जीवन चक्र रह गया था. मगर उस का बेटा शारिक ग्रेस को स्वीकार न कर सका. शारिक अकसर घर से बाहर रहने लगा. वह समझदार हो चला था. वह लाख मनाती कि अब तुम्हारे पापा यही हैं.

‘‘नहीं… मेरे पापा तो विदेश में हैं. मैं अभी तुम्हारी शिकायत पापा से करूंगा. मुझे पापा का फोन नंबर दो.’’

यह सुन कर आशा हैरान रह जाती. आशा की बेटी समीरा गुमसुम सी रहने लगी थी. ग्रेस भी आशा के पैसों पर ऐश कर रहा था. आज मिसेज क्लैरा न थीं, जो हालात संभाल लेतीं. आशा आज कितनी अकेली पड़ गई थी. अस्पताल और घर के अलावा उस ने कहीं आनाजाना छोड़ दिया था. हंसी उस से कोसों दूर हो चली थी, मगर जिम्मेदारियों से वह खुद को अलग नहीं कर सकी थी.

शारिक को आशा ने अच्छी तालीम दिलाई. वह घर छोड़ कर जाना चाहता था. सो, वह भी चला गया. शराब ने ग्रेस को खोखला कर दिया था. वह दमे का मरीज बन चुका था.

शारिक 2-4 दिन को घर आता, तो नाराज हो जाता. वह कहता, ‘‘मम्मी, कहे देता हूं कि इसे घर से निकालो. यह हरदम खांसता रहता है. सारा पैसा इस की दवाओं पर खर्च हो जाता है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटा.’’

‘‘मम्मी, आप ने दूसरी शादी क्यों की?’’

और यह सुन कर आशा चुप्पी लगा जाती. वह तो खुद को ही गुनाहगार मानती थी, मगर वह जानती थी कि उस ने मिसेज क्लैरा के चलते ऐसा किया. वह उस की गौडमदर थीं न? आशा अब खुद ईसाई थी, मगर उस ने अपने बच्चों को वही धर्म दिया, जिस का अनुयायी उन का बाप था.

समीरा की शादी भी उस ने उसी धर्म में की, जिस का अनुयायी उस का बाप था. आशा का घर दीमक का शिकार हो चला था. वह फिर से झुगनी बस्ती में रहने को पहुंच गई थी. ग्रेस ने उसी झुगनी बस्ती में दम तोड़ा. बेटे शारिक को उस ने ग्रेस के मरने की सूचना दी, मगर वह नहीं आया.

आशा अब तनहा जिंदगी गुजार रही थी. उस की ढलती उम्र ने उसे भी जर्जर कर दिया था. रात में न जाने कितनी यादें, न जाने कितने आघात उसे घेर लेते. वह खुद से ही पूछती, ‘‘मां बनना क्या जुर्म है? क्या वही जिंदगी का बोझ ढोने को पैदा होती है?’’ उसे फिल्म ‘काजल’ का वह डायलौग याद आ रहा था, जिस में मां अपने बेटे का इंतजार करती है. धूपबत्ती जल रही है. गंगाजल मुंह में टपकाया जा रहा है. डूबती सांसों से कहती है, ‘स्त्री और पृथ्वी का जन्म तो बोझ उठाने के लिए ही हुआ है.’

आशा के सीने पर लगी चोट अब धीरेधीरे नासूर बन कर रिस रही थी.

बेटा शारिक आखिरी समय में आया और बेटी समीरा भी आई. मां को देख बेटा भावविभोर था, ‘‘मम्मी, आखिरी समय है आप का. अब भी लौट आओ. ‘‘अच्छा, जैसी तुम्हारी इच्छा. मरने के बाद इस शरीर को चाहे आग में जला देना, चाहे मिट्टी के हवाले करना…’’ और वह दुनिया से चली गई. किसी की आंख से एक आंसू भी नहीं टपका. अंतिम यात्रा में कुछ लोग ही शामिल थे.

‘‘क्या यह वही नर्स थी. क्या नाम था… मैसी?’’

‘‘तो क्या हुआ अंतिम समय में तो वह कलमा गो यानी मुसलिम थी. कहां ले जाएं इसे. यहीं पास में एक कब्रिस्तान है. वहीं ले चलें. और आशा मिट्टी में समा गई.’’ मैं अकसर उधर से गुजर रहा होता. आवारा लड़के क्रिकेट खेलते नजर आते. वहां कुछ ही कबे्रं रही होंगी. शायद लावारिस लोगों की होंगी. लेकिन आशा के वारिस भी थे. एक बेटा और एक बेटी. इस नाम के कब्रिस्तान में कोई दीया जलाने वाला न था. अब चारों तरफ ऊंचीऊंची इमारतें बन गई थीं. लोगों ने अपनी नालियों के पाइप इस कब्रिस्तान में डाल दिए थे. 3 महीने बाद आशा की बेटी समीरा बैंक की पासबुक लिए मेरे पास आई और बोली, ‘‘मम्मी के 50 हजार रुपए बैंक में जमा हैं. जरा चल कर आप सत्यापन कर दें. हम वारिस हैं न?’’ और मैं सोच रहा था कि आशा न जाने कितनी उम्मीदें लिए दुनिया से चली गई. वह जिस गंदी बस्ती में पलीबढ़ी, वहीं उस ने दम तोड़ा.

मेरे दिमाग में कई सवाल उभरे, ‘क्या फर्क पड़ता है, अगर आशा किसी ईसाई कब्रिस्तान में दफनाई जाती? क्या फर्क पड़ता है, अगर वह ताबूत में सोई होती? शायद, उस के नाम का एक पत्थर तो लगा होगा.’

‘‘हाय आशा…’’ मेरे मुंह से निकला और मेरी पलकें भीग गईं. Social Story 

Family Story : बदला – मंजूषा को क्यों हो रही थी कॉलेज जाने की जल्दी ?

Family Story : चमन, दौड़ता हुआ मंजूषा के पास पहुंचा. चमन को हांफते देख मंजूषा एकदम सकते में आ गई.

‘‘अरे…अरे, क्या हुआ चमन? किसी से झगड़ा हो गया क्या? भंवर भैया कहां हैं? जल्दी बताओ. तुम दौड़ते हुए क्यों आए हो?’’ मंजूषा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘ब…बतलाता… हूं दीदी. पहले सांस तो ले लेने दो,’’ चमन एक पल को रुका. फिर गहरी सांस लेता हुआ बोला, ‘‘मंजूषा दी, मेरी बात ध्यान से सुनो…’’ चमन फुसफुसा कर मंजूषा के कान में कुछ कहने लगा.

 पूरी बात सुन कर मंजूषा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई, ‘‘उस की यह मजाल…?’’

‘‘आप कुछ करें दीदी वरना बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा.’’

मंजूषा ने कुछ सोचते हुए चमन से कहा, ‘‘तुम जाओ, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘हां दीदी, कुछ करो, वरना गोपाल और भंवर आपस में जरूर टकरा जाएंगे,’’ इतना कह कर चमन चला गया.

मंजूषा ने अपनी किताबें लीं और झटपट कालेज जाने के लिए घर से निकल पड़ी. मंजूषा जल्दीजल्दी कदम बढ़ाती हुई सुरसी के घर की ओर चली जा रही थी. ‘कहीं सुरसी कालेज के लिए घर से निकल न पड़ी हो,’ सोच कर मंजूषा ऊपर से नीचे तक कांप जाती थी. उस के कदम पहले से और तेज हो गए. सुरसी के घर पर पहुंचते ही उस ने घंटी बजाई.

‘‘आती हूं, आती हूं,’’ और उसी समय दरवाजा खुल गया. सामने सुरसी की मां को खड़ी देख कर मंजूषा का दिल एकदम ‘धक्क’ रह गया. फिर संयत हो कर बोली, ‘‘नमस्ते आंटी, सुरसी कालेज चली गई क्या?’’

‘‘अभी नहीं गई. जाने ही वाली है बस, नाश्ता कर रही है. आओ, अंदर आओ,’’ सुरसी की मां ने कहा. यह सुन कर मंजूषा को बड़ी राहत महसूस हुई.

‘‘कौन है मां?’’ पूछती हुई सुरसी की निगाह मंजूषा पर पड़ी तो वह खुशी से चहक पड़ी, ‘‘अरे, तुम?’’

‘‘हां सुरसी… मैं ने सोचा आज तुम्हारे साथ चलूं. रजनी  आज मुझ से पहले ही कालेज निकल गई.’’

‘‘अच्छा, बस थोड़ी देर रुको, अभी चलती हूं. मुझे भी आज जल्दी पहुंचना है. आज भौतिकी का प्रैक्टिकल है,’’ सुरसी ने कहा और अपनी जरूरी चीजें उठाने में लग गई.

उधर, बाजार के चौैराहे के पास ही भंवर अपने दोस्तों के साथ बड़ी बेसब्री से सुरसी का इंतजार कर रहा था. उस ने चंदन से कहा, ‘‘मैं गोपाल की बहन को आज रंग व गुलाल से रंग कर ही रहूंगा, चाहे जो भी हो जाए. मैं उसे बताना चाहता हूं कि भंवर से दुश्मनी लेना कितना महंगा पड़ता है. बदला लेना है मुझे उस से.’’

‘‘हां भंवर,’’ चंदन बोला, ‘‘वह अपनेआप को बहुत होशियार समझता है. उसे सबक सिखाना ही चाहिए.’’

‘‘उस ने मेरी बहन को स्कूल में रंगा था तो मैं उस की बहन को बीच चौराहे पर रंग दूंगा,’’ भंवर ने उत्तेजित होते हुए कहा.

‘‘भंवर,’’ दीपक बोला, ‘‘अभी तक चमन का पता नहीं है. उसे गुलाबी रंग लेने को भेजा था. अभी तक नहीं आया.’’

‘‘अरे, वह तो एकदम मूर्ख है. तू खुद ही क्यों नहीं चला गया रंग लेने?’’ चंदन ने कहा.

‘‘मैं कैसे जाता? वह खुद जाने के लिए जिद कर रहा था.’’

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ भंवर झल्ला कर बोला, ‘‘मैं उसे बाद में देख लूंगा. अब तुम सब तैयार हो जाओ. हमारे पास जितना गुलाल है, उसी से होली खेल लेंगे.’’

‘‘अरे, कैसे खेल लोगे दोस्तो?’’ चमन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘लो… ले आया मैं गुलाबी रंग और गुलाल,’’ कहते हुए चमन ने पु़िड़या भंवर की ओर बढ़ा दी.

‘‘अब मजा आएगा, जब सुरसी के मुंह पर, दांतों पर, बालों में, गुलाबी रंग चमकेगा… हा…हा…’’ खुशी से झूमता हुआ भंवर बोला.

उसी समय दीपक उछलता हुआ बोला, ‘‘भंवर, वह देख सुरसी आ रही है. उस के साथ मंजूषा दीदी भी हैं…’’

भंवर एकदम सकपका गया. फिर संभलता हुआ बुदबुदाया, ‘‘मंजूषा दीदी, सुरसी के साथ?’’

‘‘अब क्या होगा?’’ चंदन फुसफुसा कर बोला.

भंवर कुछ कहता, तब तक सुरसी और मंजूषा बिलकुल उस के पास पहुंच गई थीं. भंवर तिलमिला उठा. उस ने रंग से सने अपने हाथ चुपचाप पीछे कर लिए. दीपक, चंदन और लखन पहले ही मंजूषा को सुरसी के साथ देख कर भंवर से कुछ दूर हट गए थे. चमन मन ही मन बेहद खुश हो रहा था. उस ने भंवर के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘यार, मंजूषा दीदी ने बचा लिया सुरसी को, लेकिन जो भी होता है, अच्छा ही होता है.’’ भंवर ने चमन को खा जाने वाली नजरों से देखा.

दोनों सहेलियां आगे निकल गईं. उन के काफी दूर निकल जाने के बाद भंवर ने तमतमा कर गुस्से में दोनों मुट्ठियों में लिया हुआ रंग जमीन पर बिखेर दिया और खीज कर रह गया. शाम को भंवर भन्नाया हुआ घर पहुंचा. मंजूषा पहले ही घर पहुंच चुकी थी. भंवर ने दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजा मंजूषा ने ही खोला. सामने मंजूषा को देख वह चीख कर बोला, ‘‘आज बचा लिया अपनी सहेली को? आखिर इस तरह वह कब तक बच पाएगी?’’

‘‘क्या मतलब?’’ मंजूषा बोली.

 ‘‘मतलब साफ है. आज मैं सुरसी को बीच चौराहे पर रंगना चाहता था.’’

‘‘क्यों, आखिर क्यों रंगना चाहते थे?’’ मंजूषा ने पूछा.

‘‘इसलिए कि उस के भाई गोपाल ने पिछले साल तुम्हें रंगा था,’’ भंवर चिल्ला कर बोला.

‘‘वाह भंवर, खूब बदला लेने की ठानी थी.’’

‘‘ठानी थी नहीं, ठानी है. आज नहीं तो कल, मैं सुरसी को रंग कर ही रहूंगा.’’

‘‘लेकिन यह मत भूलो कि जब गोपाल ने मुझे रंगा था तब वह होली स्कूल में बच्चों की स्नेह भरी होली थी. हम सभी ने खुशी से एकदूसरे को रंगा था न कि जबदरस्ती, लेकिन तुम और तुम्हारी सड़कछाप टोली…’’

‘‘मंजूषा…’’ भंवर जोर से चीखा.

उसी समय बगल वाले कमरे से परदे की आड़ में खड़ी सुरसी सामने आ गई. उसे देख भंवर हक्काबक्का रह गया. दोनों एकदूसरे को देखते ही रह गए. सुरसी बोली, ‘‘तो यह बात थी. मंजूषा इसीलिए मेरे साथ कालेज गई थी?’’ फिर सुरसी भंवर की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘लो… मैं खड़ी हूं. जितना चाहो, उतना रंग लो. ले लो अपना बदला.’’ भंवर से कुछ बोलते नहीं बना. उस की जबान में मानो ताला पड़ गया. उस ने मंजूषा की ओर देखा. मंजूषा ने कहा, ‘‘हां, रंग डालोे. होली चौराहे की नहीं, चौखट के अंदर वाली अच्छी होती है.’’

भंवर ने एक नजर सुरसी पर डाली. फिर जेब में रखी गुलाल की थैली से एक चुटकी गुलाल निकाल कर सुरसी के माथे पर तिलक लगा दिया और झटके से मुड़ कर बाहर जाने लगा. सुरसी ने आवाज दी, ‘‘रुको भैया,’’ और वह भंवर के सामने जा पहुंची, बोली, ‘‘इस तरह नहीं, आप ने तो तिलक लगा दिया अब मैं भी तो लगाऊंगी,’’ कहते हुए सुरसी ने भंवर के हाथ से गुलाल की थैली ले कर भरपूर गुलाल से भंवर के गालों व बालों को रंग दिया. Family Story

Muslim Women : मुसलिम औरतों का हलाला – धर्म की आड़ में ‘बलात्कार’

Muslim Women : मुसलिम तबके के लिए यह कितने बड़े मजाक का विषय है कि उस की औरतों के लिए एकतरफ बुर्का है और दूसरी तरफ हलाला. यह बात ध्यान देने वाली है कि मुसलिम समाज का जहां एक बड़ा वर्ग ये दलीलें देते नहीं थकता कि औरतों का परदे में रहना फर्ज है, वे किसी के सामने न जाएं, यहां तक कि ऐसे फतवे भी आते रहते हैं कि जिस दफ्तर में मर्द काम करते हों वहां औरतें काम तक न करें, वहीं यह विरोधाभास कि यदि तलाक के बाद अपनी ही बीवी को वापस रिश्ते में लेना है तो उसे वही मर्द (पति) दूसरे मर्द के साथ निकाह कर ने व यौन संबंध बनाने के लिए भेजता है. वही आदमी दूसरे आदमी के सामने अपनी पूर्व पत्नी को बेपरदा करता है जो उसे बिना बुर्के के घर से बाहर कदम नहीं रखने देता था. धर्म के नाम पर यह घिनौना बलात्कार है जिस के खिलाफ दुनियाभर की मुसलमान औरतों को अब एकजुट हो जाना चाहिए.

Laser Technology : बिना तारों की बिजली

Laser Technology : आज भी देश में दूरदराज के कई इलाकों तक बिजली नहीं पहुंची है. कई इलाकों तक बिजली पहुंची भी है तो आंधी और बारिश के मौसम में बिजली के खंबों के गिर जाने के कारण महीनों तक बिजली गुल रहती है. क्या हो अगर बिजली के लिए खंबों और लंबी तारों की जरूरत ही न हो?

जून 2025 में अमेरिकी रक्षा अनुसंधान एजेंसी डीएआरपीए ने न्यू मैक्सिको में एक हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाया है. डीएआरपीए ने लेजर तकनीक की मदद से 800 वौट ऊर्जा को 8.6 किलोमीटर दूर तक सफलतापूर्वक भेजने में सफलता हासिल की है. इस 30 सैकंड के प्रयोग में एक मेगाजूल से अधिक ऊर्जा भेजी गई है जो पहली बार हुआ है.

यह सफलता साबित करती है कि लंबी दूरी तक वायरलैस बिजली भेजना अब कोई सपना नहीं, बल्कि एक उज्ज्वल वास्तविकता है. एक शक्तिशाली लेजर और दूर स्थित विशेष प्रकार के रिसीवर का उपयोग कर के दुर्गम इलाकों तक भी बिजली पहुंचाई जा सकती है.

वायरलैस बिजली भेजने का यह सपना लगभग एक सदी से भी पहले महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला ने देखा था. उन्होंने ‘वर्ल्ड सिस्टम’ नामक एक विशाल टावर के निर्माण के माध्यम से दुनियाभर में वायरलैस बिजली वितरण की कल्पना की थी लेकिन पिछली सदी में हुए तमाम प्रयासों के बावजूद निकोला का यह सपना पूरा न हो सका. लेकिन अब डीएआरपीए ने इस अधूरे ख्वाब को पूरा करने में सफलता हासिल कर ली है. यह बिजली के आविष्कार जितना ही महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला आविष्कार है.

आने वाले वक्त में हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं जहां बिजली के खंबों और बिजली की मीलों लंबी तारों से छुटकारा मिल जाएगा और आप के हाथ का मोबाइल बिना चार्जर के चार्ज हो जाएगा.

Medicines : दवाएं हो जाएंगी बेअसर

Medicines : मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि पशुओं के गोबर में एंटीबायोटिक रैसिस्टेंस जीन्स भरे पड़े हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं. इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं. यह मवेशियों के गोबर में मौजूद एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीनों पर किया अब तक का सब से व्यापक अध्ययन है.

14 वर्षों तक चले इस वैश्विक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 26 देशों से 4,000 से ज्यादा गोबर के नमूनों की जांच की है. इस दौरान गाय, सूअर और मुरगियों के गोबर का विश्लेषण किया गया. इस विश्लेषण के जो नतीजे सामने आए हैं, वो हैरान करने वाले हैं.

किसान जिस गोबर को खाद मानते हैं, वो अब धीरेधीरे मानव स्वास्थ्य के लिए एक अदृश्य खतरा बनता जा रहा है. जानवरों के इलाज में की जाने वाली गलतियां, एंटीबायोटिक दवाएं और पेड़पौधों पर डाले जाने वाले कीटनाशक भोजन के माध्यम से जानवरों के शरीर में जा रहे हैं और गोबर की खाद में पनपने वाले एंटीबायोटिक रैसिस्टेंस जीन्स इंसानों की सेहत पर भारी पड़ रहे हैं. पशुपालन से जुड़ा एक खामोश खतरा धीरेधीरे दबेपांव दुनिया में पैर पसार रहा है.

नतीजे दर्शाते हैं कि जानवरों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के असर से ऐसे जीन बन रहे हैं जो इंसानी शरीर में जा कर एंटीबायोटिक्स को बेअसर कर देते हैं. ऐसे में सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या हम उस दौर की ओर बढ़ रहे हैं जब मामूली बुखार भी जानलेवा हो सकता है.

Health Update : औरतों को मर्दों के मुकाबले ज्यादा नींद चाहिए

Health Update : नींद हमारे शरीर और दिमाग के लिए उतनी ही जरूरी है जितना कि खाना और पानी. मैंटल, फिजिकल और इमोशनल तौर से हैल्दी रहने के लिए भरपूर नींद लेना बेहद जरूरी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक नींद लेने की जरूरत होती है.

दरअसल मनुष्य का शरीर बिना किसी बाहरी मदद के भी अपने अंदर आई अनेक खराबियों को दुरुस्त करता रहता है और विकास के लिए लगातार काम करता है. ये सारे काम ज्यादातर नींद के दौरान ही होते हैं जब हमारी ग्रोथ हार्मोन सब से ज्यादा सक्रिय होते हैं. हाल ही में नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन में ‘अ सोसाइटी फौर वुमन हैल्थ रिसर्च’ की एक रिपोर्ट पब्लिश की गई. इस रिपोर्ट की मानें तो महिलाओं और पुरुषों में नींद के घंटे अलगअलग होते हैं. मतलब दोनों को सोने के लिए अलगअलग घंटे चाहिए, क्योंकि महिलाएं दिनभर में पुरुषों की तुलना में ज्यादा मानसिक ऊर्जा खर्च करती हैं, जिस से उन के ब्रेन को ज्यादा रिकवरी टाइम यानी नींद की जरूरत होती है.

ब्रिटिश जर्नल औफ स्पोर्ट्स मैडिसिन की रिपोर्ट भी कहती है कि महिलाओं का दिमाग अधिक जटिल होता है और वे एक समय में कई काम करने की क्षमता रखती हैं. इस का मतलब यह हुआ कि उन का दिमाग ज्यादा मेहनत करता है और उसे ठीक से रिपेयर होने के लिए ज्यादा आराम यानी ज्यादा नींद चाहिए. महिलाओं को औसतन 7.5 से 9 घंटे की नींद की जरूरत होती है, जबकि पुरुषों के लिए 7-8 घंटे पर्याप्त हैं. इस के अलावा महिलाएं ज्यादा रैपिड आई मूवमैंट स्लीप लेती हैं, जो ड्रीमिंग और मैमोरी बूस्टिंग के लिए जरूरी होती है.

Zohran Mamdani : न्यूयौर्क में छाए भारतीय मूल के ममदानी “मध्यवर्ग की नब्ज पकड़ बने मेयर”

Zohran Mamdani : पिछले दिनों अमेरिका के सब से बड़े शहर न्यूयौर्क में जोहरान ममदानी की सफलता केवल चुनावी जीत नहीं थी, बल्कि यह बड़े राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की शुरुआत व असली लोकतंत्र का उदाहरण है. ममदानी ने मेयर पद के लिए डैमोक्रेटिक प्राइमरी में पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को पराजित किया.

भारतीय जड़ों वाले 33 साल के इस युवा नेता ने उन लोगों की आवाज उठाई, जो चकाचौंध से भरे न्यूयौर्क में हाशिए पर जीवन बिता रहे हैं. जोहरान ममदानी ने इन की परेशानियों पर ध्यान दिया. उन्होंने टीवी स्टूडियो, औनलाइन इंटरव्यू और महंगे विज्ञापनों से ज्यादा तवज्जुह जनता से सीधे संवाद को दी. वे सड़कों पर उतरे, गलियों में गए और आम लोगों से बातचीत कर उन की नब्ज जानी.

न्यूयौर्क का वर्किंग क्लास इस शहर में बढ़ते खर्च से परेशान है, ममदानी ने इस के समाधान का वादा किया. उन्होंने इन आम लोगों के लिए फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट, किराए पर लगाम, न्यूनतम वेतन का वादा किया जो एक नजर में न्यूयौर्क जैसे शहर के एजेंडे से बाहर की चीज लगते हैं. लेकिन ममदानी की जीत से जाहिर होता है कि मध्यवर्ग की समस्या हर जगह एकजैसी है. वह चाहे भारत हो या न्यूयौर्क, इस वर्ग को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो उस की परेशानियों को समझ कर उन का हल पेश कर सके.

ममदानी को प्रोग्रैसिव माना जाता है. वे उदार हैं, युवा हैं और अपनी बात स्पष्ट तरीके से रखते हैं, खासकर इजराइल व हमास जंग के मसले पर उन्होंने जहां नेतन्याहू को आड़े हाथों लिया वहीं जंग से त्रस्त आ चुकी अमेरिकी जनता का दर्द भी वे सामने लाए. यूक्रेन हो या गाजा, लड़ाई के खर्च का एक बड़ा हिस्सा इसी जनता की जेब से जा रहा है. फिर गाजा में पैदा हुई मानवीय त्रासदी ने भी इजराइली पीएम नेतन्याहू के खिलाफ गुस्सा पैदा किया है. ऐसे में ममदानी का साफ स्टैंड लेना लोगों को भा रहा. दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों को जोहरान ममदानी जैसे स्पष्ट बोलने वाले युवा नेतृत्व की जरूरत है.

Black Magic : तंत्रमंत्र – पूरे परिवार को जिंदा जला डाला “अंधविश्वासी लोगों की करतूत”

Black Magic : बिहार के पूर्णिया में तंत्रमंत्र के शक में एक परिवार के 5 लोगों को जिंदा जला डाला गया. यह घटना राज्य की कानून व्यवस्था के लिए जितनी चिंताजनक है, उतनी की शर्मनाक है शिक्षा व्यवस्था के लिए. एक तरफ भारत अंतरिक्ष में कदम रख संभावनाओं के नए दरवाजे खोल रहा है जबकि दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि समाज का एक तबका कितने गहरे अंधविश्वास में डूबा हुआ है.

जिन लोगों को गांव वालों ने जिंदा आग में भून दिया, उस परिवार की एक महिला झाड़फूंक करती थी. जब कुछ दिनों पहले गांव के एक बच्चे की मौत किसी बीमारी की वजह से हुई, तो अनपढ़ और अंधविश्वासी लोगों का शक उस महिला और उस के परिवार पर गया. इस से पहले भी इस गांव में कुछ लोगों की जान बीमारी की वजह से गई थी. लोगों को लगा कि इन सब के पीछे वही झाड़फूंक, टोनाटोटका करने वाली महिला और उस का परिवार है. उस परिवार के खिलाफ पहले पंचायत बैठाई गई.

पंचायत ने बाकायदा उस महिला को डायन घोषित किया और फिर भीड़ ने नृशंसता दिखाते हुए उस के परिवार के 5 लोगों को पूरे गांव के सामने ज़िंदा जला डाला. यह स्थिति तब है जब राज्य में ला एंड और्डर बड़ा मुद्दा बना हुआ है. पटना में बिजनैसमैन गोपाल खेमका की हत्या के बाद से सरकार अपनी छवि बचाने की कोशिश में है.

पूर्णिया बिहार के सब से पिछड़े जिलों में आता है. घटना जिस टेटगामा गांव में हुई, वह आदिवासियों का है. यहां के लोग अगर आज भी झाड़फूंक के चक्करों में फंसे हुए हैं और जादूटोने पर भरोसा करते हैं, तो इस के पीछे पिछड़ापन और अशिक्षा दोनों हैं. केंद्र की स्कूल एजुकेशन रिपोर्ट से पता चलता है कि आधुनिक शिक्षा को छोड़ दीजिए, बेसिक सुविधाओं के मामले में भी बिहार के स्कूल बाकी देश से बहुत पीछे हैं.

Social Story : रामलाल की घर वापसी

Social Story : सात आठ घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था . कमला को भी रामलाल ने अपने साथ बस से उतार लिया था.

“देखो कमला तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है तो तुम उसके साथ क्यों रहना चाहती हो ”

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनीं रही . उसने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा

“पर …….”

“पर कुछ नहीं तुम मेरे साथ चलो”

“तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे तो क्या कहोगे”

“कह दूंगा  कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्द बाजी में ब्याह करना पड़ा”.

कमला कुछ नहीं बोली .दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गये .

रामलाल के सामने विगत एक माह में घटा एक एक घटनाक्रम चलचित्र की भांति सामने आ रहा था .

रामलाल शहर में मजदूरी करता था . ब्याह नहीं हुआ था इसलिए जो मजदूरी मिलती उसमें उसका खर्च आराम से चल जाता . थोड़े बहुत पैसे जोड़कर वह गांव में अपनी मां को भी भैज देता .गांव में एक बहिन और मां ही रहते हैं . एक बीघा जमीन है पर उससे सभी की गुज़र बसर होना संभव नहीं था .गांव में मजदूरी मिलना कठिन था इसलिए उसे शहर आना पड़ा .शहर गांव से तो बहुत दूर था “पर उसे कौन रोज-रोज गांव आना है” सोचकर यही काम करने भी लगा था . एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था . एक स्टोव और कुछ बर्तन . शाम को जब काम से लौटता तो दो रोटी बना लेता और का कर सो जाता . दिन भर का थका होता इसलिए नींद भी अच्छी आती . वह ईमानदारी से काम करता था इस कारण से सेठ भी उस पर खुश रहता . वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता

” मालिक जब गांव जाऊंगा तो आप से ले लूंगा ‘ .उसे सेठ पर भरोसा था .

साल भर हो गया था उसे शहर में रहते हुए . इस एक साल में वह अपने गांव जा भी नहीं पाया था .उस दिन उसने देर तक काम किया था . वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था .जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वो सेठ से कुछ पैसे ले ले . उसने अपनी जेब टटोली दस का सिक्का उसके हाथ में आ गया “चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा कल सेठ से पैसे मिल ही जायेंगे” .रामलाल ने गहरी सांस ली . दो रोटी बनाई और खाकर सो गया .

सुबह जब वह नहाकर काम पर जाने के लिए निकला तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं . सरकार ने लांकडाउन लगा दिया है . बहुत देर तक ऐ वह इसका मतलब ही नही समझ पाया .केवल यही समझ में आया कि वो आज काम पर नहीं जा पाएगा .वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया . मकान मालिक उसके कमरे के सामने ही मिल गया था.

“देखो रामलाल लाकडाउन लग गया है महिने भर का .कोई वायरस फैल रहा है . तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो”

रामलाल वैसे ही लाकडाउन का मतलब नहीं समझ पाया था उस पर वायरस की बात तो उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई ।

“कमरा खाली कर दो …. मुझसे कोई गल्ती हो गई क्या ?’

“नहीं पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे तो कमरे का किराया कैसे दोगे”

“क्या महिने भर काम बंद रहेगा “?

“हां घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे”.

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा .उसके पास तो केवल दस का सिक्का ही है . वह कुछ नहीं बोला उदास क़दमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया .

उसकी नींद जब खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था . उसने बाहर निकल कर देखा . बाहर सुनसान था . उसे पैसों की चिंता सता रही थी यदि वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से खाने की जुगाड़ तो हो जाती . यदि वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे अवश्य दे सकते हैं . उसने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उसकी हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई .वह फिर से दरी पर लेट गया . उसकी नींद जब खुली उस समय रात के दो बज रहे थे . भूख के कारण उसके पेट में दर्द सा हो रहा था .वह उठा “दो रोटी बना ही लेता हूं दिन भर से कुछ खाया कहां है” .स्टोव जला लिया पर आटा रखने वाले डिब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी .वह जानता था कि उसमें थोड़ा सा ही आटा शेष है .यदि अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा .उसने निराशा के साथ डिब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया . दो छोटी छोटी रोटी ही बन पाई . एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डिब्बे में रख दिया .

सुबह हो गई थी .उसने बाहर झांक कर देखा .पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी  . वह कमरे से बाहर निकल आया . उसके कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए . सेठ का घर बहुत दूर था छिपते छिपाते वह उनके घर के सामने पहुंच गया था .दिन पूरा निकल आया था .यह सोचकर कि सेठ जाग गये होंगे ,उसके हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे .उनके नौकर ने दरवाजा खोला था

“जी मैं रामलाल हूं सेठ के ठेके पर काम करता हूं”

“हां तो…..

“मुझे कुछ पैसे चाहिए हैं”

“हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे, सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते”

“पर वो लाकडाउन लग गया है न तो काम तो महिने भर बंद रहेगा”

“तभी आना…”

“तुम एक बार उनसे बोलो तो वो मुझे बहुत चाहते हैं ”

“अच्छा रूको मैं पूछता हूं” . नौकर को  शायद दया आ गई थी उस पर .

नौकर के साथ सेठ ही बाहर आ गए थे .उनके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव साफ़ झलक रहे थे जिसे रामलाल नहीं पढ़ पाया . सेठ जी को देखते ही उसने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया .

“अब तुम्हारी हिम्मत इतनी हो गई कि घर पर चले आए”

“वो सेठ जी कल आपसे पैसे ले नहीं पाया था , मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लाकडाउन हो गया है इसलिए आना पड़ा” . रामलाल ने सकपकाते हुए कहा .

“चल यहां से बड़ा पैसे लेने आया है, मैं घर पर लेन-देन नहीं करता”

सेठ ने उसे खूंखार निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया .उसने सेठ जी के पैर पकड़ लिए “मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर” .

सेठ ने उसे ठोकर मारते हुए अंदर चला गया .हक्का-बक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा .उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.तभी पुलिस की गाड़ियों के आने की आवाज गूंजने लगी . वह भयभीत हो गया और भागने लगा .छिपते छिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया .वह कुछ बोल पाता इसके पहले ही उसके ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे . रामलाल दर्द से कराह उठा . अबकी बार पुलिस वालों ने गंदी गंदी  गालियां देनी शुरू कर दी थी . तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नवयुवक आकर रुक गये . उन्होंने ने पुलिस वालों से कुछ बात की . पुलिस ने उन्हें जाने दिया . रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया . वह हांफते हुए अपने कमरे की दरी पर लेट गया । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिन्हें पौंछने वाला कोई नहीं था . उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

“क्या हुआ बेटा रो क्यों रहा है”

“कुछ नहीं मां पीठ पर दर्द हो रहा है”

“अच्छा बता मैं मालिश कर देती हूं”

मां की याद आते ही उसके आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी . रोते-रोते वह सो गया था . दोपहर का समय ही रहता होगा जब उसकी आंख खुली .उसका सारा बदन दुख रहा था . पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था  वह कराहता हुआ उठा .बहुत जोर की भूख लगी थी . वह जानता था कि डिब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है .

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा .वह अब क्या करे ? उसके सामने अनेक प्रश्न थे .

मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था सीधे अंदर घुस आया था ” तुम कमरा कब खाली कर रहे हो”

वह सकपका गया

“मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रूक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ सकूं”

रामलाल हाथ जोड़कर खड़ा हो गया था .

“नहीं माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो…. नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेंगी” . कहता हुआ वह चला गया . रामलाल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे .वह चुपचाप बैठा रहा ।.अभी तो उसे शाम के खाने की भी फ़िक्र थी .

सूरज ढलने को था .रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था खामोश और वह करता भी क्या? . उसने कमरे का दरवाजा जरा सा खोलकर देखा . बाहर पुलिस नहीं थी , वह बाहर निकल आया . थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी .वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया .कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे . वह भी लाईन में लग गया .हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे इसलिए समय लग रहा था . उसका नंबर आया एक व्यक्ति ने उसके हाथ में खाने का पैकेट रखा साथ के और लोग उसके चारों ओर खड़े हो गए .कैमरे का फ्लेश चमकने लगा .फोटो खिंचवा कर वो लोग जा चुके थे . रामलाल भी अपने कमरे कीओर लौट पड़ा “चलो ऊपर वाले ने सुन ली आज के खाने का इंतजाम तो हो गया, इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह का लेंगे” .

 

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी इसलिए कमरे में आते ही उसने पैकेट खोल लिया था . पैकेट में केवल दो मोटी सी पुड़ी थीं और जरा सी सब्जी .सब्जी बदबू मार रहीथी ,शायद वह खराब हो गई थी .हक्का-बक्का रामलाल रोटियों को कुछ देर तक यूं ही देखता रहा फिर उसने मोटी पुड़ी को चबाना शुरू कर दिया . दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा . वह अब क्या करें । कमरा भी खाली करना है .अपने गांव भी नहीं लौट सकता क्योंकि ट्रेने और बस बंद हो चुकी है, पैसे भी नहीं है . वह समझ ही नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करें . उसने फिर से ऊपर की ओर देखा कमरे से आसमान दिखाई नहीं दिया पर उसने मन ही मन भगवान को अवश्य याद किया .

‌उसे सुबह ही पता लगा था कि सरकार की ओर से खाने की व्यवस्था की गई है इसलिए वह ढ़ूढ़ते हुए यहां आ गया था . उसके जैसे यहां बहुत सारे लोग लाईन में लगे थे . वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे . यहीं उसकी मुलाकात मदन से हुई थी जो उसके पास वाले जिले में था .  उसे से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपने गांव लौट रहे हैं मदन भी उनके साथ जा रहा है .रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है उसे भी इनके साथ गांव चले जाना चाहिए . पर क्या इतनी दूर पैदल चल पायेगा . पर अब उसके पास कोई विकल्प है भी नहीं यदि मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा .गहरी सांस लेकर उसने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया .

शाम को वह अपना सामान बोरे में भरकर निर्धारित स्थान पर पहुंच गया जहां मदन उसका इंतज़ार कर रहा था . सैंकड़ों की संख्या में उसके जैसे लोग थे जो अपना अपना सामान सिर पर रखकर पैदल चल रहे थे .इनमें बच्चे भी थे और औरतें भी .रात का अंधकार फैलता जा रहा था पर चलने वालों के कदम नहीं रूक रहे थे .कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ की फोटो खींच रहे थे . इसी कारण से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था  .वो गालियां बक रहे थे और लौट जाने का कह रहे थे .भीड़ उनकी बात सुन नहीं रही थी . पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था “आप सभी की जांच की जाएगी और रूकने की व्यवस्था की जाएगी कोई आगे नहीं बढ़ेगा” लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था .सारे लोग रूक गये थे. एक एक कर सभी की जांच की गई .फिर सभी को इकट्ठा कर आग बुझाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई . दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी . मदन भी आंख बंद किए कराह रहा था और भी लोगों को परेशानी हो रही थी पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था .दवा झिड़कने वाले कर्मचारी उल्टा सीधा बोल रहे थे . सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था . सैकड़ों लोग और कमरे कम . बिछाने के लिए केवल दरी थी . पानी के लिए हैंडपंप था . महिलाओं के लिए ज्यादा परेशानी थी . दो रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था .

“साले हरामखोरों ने परेशान कर दिया” बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला एक महिला ने उसे रोक लिया “क्या बोला ….हरामखोर … अरे हम तो अच्छे भले जा रहे थे हमको जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं” .

महिला की आवाज सुनकर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे .

“सालों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए …”

वह फिर बड़बड़या .

“रोकने की व्यवस्था नहीं थी तो काहे को रोका…दो सूखी रोटी देकर अहसान बता रहे हैं” . किसी ने जोर से बोला था ताकि सभी सुन लें . पर साहब को यह पसंद नहीं आया . उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था “कौन बोला…जरा सामने तो आओ.. यहां मेरी बेटी की बारात लग रही है क्या ….जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवाकर खिलवायें”.

सारे सकपका गये .वे समझ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटना पड़ेंगे .छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसे तैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते .बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं थी औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं .कोई नेताजी आए थे उनसे मिलने .वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से कोई शिकायत नहीं करेगा इसलिए बाकी  सारे लोग तो खामोश रहे पर एक बुजुर्ग महिला खामोश नहीं रह पाई . जैसे ही नेताजी ने मुस्कुराते हुए पूछा “कैसे हो आप लोग…. हमने आपके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं की है उम्मीद है आप अच्छे से होंगे”

बुजुर्ग महिला भड़क गई

“दो सूखी रोटी और सड़ी दाल देकर अहसान बता रहे हो .”

किसी को उम्मीद नहीं थी .सभी लोग सकपका गये . एक कर्मचारी उस महिला की ओर दोड़ा ,पर महिला खामोश नहीं हुई “हुजूर यहां कोई व्यवस्था नहीं है हम लोग एक कमरे में भेड़ बकरियों की तरह रह रहे हैं ”

नेताजी कुछ नहीं बोले .वे लौट चुके थे . उनके जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था .

सरकार ने बस भिजवाई थी ताकि सभी लोग अपने अपने गांव लौट सकें . मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे ,तभी किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी थी .उत्सुकता वश वो वहां पहुंच गया था .एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ पीठ पर मुक्के मार रहा था . वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी .

“इसे क्यों मार रहे हो भाई” रामलाल से सहन नहीं हो रहा था .

“ये तू बीच में मत पड़, ये मेरी घरवाली है समझ गया तू”

उसने अकड़ कर कहा

“अच्छा घरवाली है तो ऐसे मारोगे”

“तुझे क्या जा अपना काम कर”

रामलाल का खून खौलने लगा था “पर बता तो सही इसने किया क्या है”

“ये औरत मनहूस है इसके कारण ही मैं परेशान हो रहा हूं” ,कहते हुए उसने जोर से औरत के बाल खीचे .वह दर्द से रो पड़ी . रामलाल सहन नहीं कर सका . उसने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया .

“तुम  मेरे साथ बैठो देखता हूं कौन माई का लाल है जो तुम्हें हाथ लगायेगा”.

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी . कमला नाम बताया था उसने . उसने तो केवल यह सोचा था कि उसके आदमी का गुस्सा जब शांत हो जायेगा तो वो ही उसे ले जायेगा .पर वो उसे लेने नहीं आया “अच्छा ही हुआ उसने उसका जीवन खराब कर रखा था, पर वह यह जायेगी कहां” . प्रश्न तो रामलाल के थे पर उतर उसके पास नहीं था .बस से उतर कर उसने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था .

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी . उसे नहीं मालूम था कि उसका भविष्य क्या है पर रामलाल उसे अच्छा लगा था . वह जिन यातनाओं से होकर गुजरी है शायद उसे उनसे छुटकारा मिल जाए .

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थी .

वह उनसे लिपट पड़ा ” मां….” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे . रो तो मां भी रही थी , जब से लाकडाउन लगा था तब से ही मां उसके लिए बैचेन थीं . उन्होंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था .दोनों रो रहे थे , कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी .अपने आंसू पौंछ कर उसने कमला की ओर इशारा किया “मां आपकी बहु…..”

चौंक गईं मां ” बहु ….. तूने बगैर मुझसे पूछे ब्याह रचा लिया ….?”

“वो मां मजबूरी थी लाकडाउन के कारण…. गांव आना था इसे कहां छोड़ता…. बेसहारा है न मां”

मां ने नजर भर कर कमला को देखा

“चल अच्छा किया”

मां ने कमला का माथा चूम लिया. Social Story

Hindi Love Stories : कायर – क्यों श्रेया ने श्रवण को छोड़ राजीव से विवाह कर लिया?

Hindi Love Stories : श्रेया के आगे खड़ी महिला जैसे ही अपना बोर्डिंग पास ले कर मुड़ी श्रेया चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे तन्वी तू…तो तू भी दिल्ली जा रही है… मैं अभी बोर्डिंग पास ले कर आती हूं.’’

उन की बातें सुन कर काउंटर पर खड़ी लड़की मुसकराई, ‘‘आप दोनों को साथ की सीटें दे दी हैं. हैव ए नाइस टाइम.’’ धन्यवाद कह श्रेया इंतजार करती तन्वी के पास आई.

‘‘चल आराम से बैठ कर बातें करते हैं,’’ तन्वी ने कहा. हौल में बहुत भीड़ थी. कहींकहीं एक कुरसी खाली थी. उन दोनों को असहाय से एकसाथ 2 खाली कुरसियां ढूंढ़ते देख कर खाली कुरसी के बराबर बैठा एक भद्र पुरुष उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘बैठिए.’’ ‘‘हाऊ शिवैलरस,’’ तन्वी बैठते हुए बोली, ‘‘लगता है शिवैलरी अभी लुप्त नहीं हुई है.’’

‘‘यह तो तुझे ही मालूम होगा श्रेया…तू ही हमेशा शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी,’’ तन्वी हंसी, ‘‘खैर, छोड़ ये सब, यह बता तू यहां कैसे?’’‘‘क्योंकि मेरा घर यानी आशियाना यहीं है, दिल्ली तो एक शादी में जा रही हूं.’’ ‘‘अजब इत्तफाक है. मैं एक शादी में यहां आई थी और अब अपने आशियाने में वापस दिल्ली जा रही हूं.’’

‘‘मगर जीजू तो सिंगापुर में सैटल्ड थे?’’ ‘‘हां, सर्विस कौंट्रैक्ट खत्म होने पर वापस दिल्ली आ गए. नौकरी के लिए भले ही कहीं भी चले जाएं, दिल्ली वाले सैटल कहीं और नहीं हो सकते.’’ ‘‘वैसे हूं तो मैं भी दिल्ली की, मगर अब भोपाल छेड़ कर कहीं और नहीं रह सकती.’’

‘‘लेकिन मेरी शादी के समय तो तेरा भी दिल्ली में सैटल होना पक्का ही था,’’ श्रेया ने उसांस भरी. ‘‘हां, था तो पक्का ही, मगर मैं ने ही पूरा नहीं होने दिया और उस का मुझे कोई अफसोस भी नहीं है. अफसोस है तो बस इतना कि मैं ने दिल्ली में सैटल होने का मूर्खतापूर्ण फैसला कैसे कर लिया था.’’

‘‘माना कि कई खामियां हैं दिल्ली में, लेकिन भई इतनी बुरी भी नहीं है हमारी दिल्ली कि वहां रहने की सोचने तक को बेवकूफी माना जाए,’’ तन्वी आहत स्वर में बोली.

‘‘मुझे दिल्ली से कोई शिकायत नहीं है तन्वी,’’ श्रेया खिसिया कर बोली, ‘‘दिल्ली तो मेरी भी उतनी ही है जितनी तेरी. मेरा मायका है. अत: अकसर जाती रहती हूं वहां. अफसोस है तो अपनी उस पसंद पर जिस के साथ दिल्ली में बसने जा रही थी.’’

तन्वी ने चौंक कर उस की ओर देखा. फिर कुछ हिचकते हुए बोली, ‘‘तू कहीं श्रवण की बात तो नहीं कर रही?’’ श्रेया ने उस की ओर उदास नजरों से देखा. फिर पूछा, ‘‘तुझे याद है उस का नाम?’’

‘‘नाम ही नहीं उस से जुड़े सब अफसाने भी जो तू सुनाया करती थी. उन से तो यह पक्का था कि श्रवण वाज ए जैंटलमैन, ए थौरो जैंटलमैन टु बी ऐग्जैक्ट. फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया कि तुझे उस से प्यार करने का अफसोस हो रहा है? वैसे जितना मैं श्रवण को जानती हूं उस से मुझे यकीन है कि श्रवण ने कोई गलत काम नहीं किया होगा जैसे किसी और से प्यार या तेरे से जोरजबरदस्ती?’’

श्रेया ने मुंह बिचकाया, ‘‘अरे नहीं, ऐसा सोचने की तो उस में हिम्मत ही नहीं थी.’’‘‘तो फिर क्या दहेज की मांग करी थी उस ने?’’ ‘‘वहां तक तो बात ही नहीं पहुंची. उस से पहले ही उस का असली चेहरा दिख गया और मैं ने उस से किनारा कर लिया,’’ श्रेया ने फिर गहरी सांस खींची, ‘‘कुछ और उलटीसीधी अटकल लगाने से पहले पूरी बात सुनना चाहेगी?’’

‘‘जरूर, बशर्ते कोई ऐसी व्यक्तिगत बात न हो जिसे बताने में तुझे कोई संकोच हो.’’ ‘‘संकोच वाली तो खैर कोई बात ही नहीं है, समझने की बात है जो तू ही समझ सकती है, क्योंकि तूने अभीअभी कहा कि मैं शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी…’’

इसी बीच फ्लाइट के आधा घंटा लेट होने की घोषणा हुई. ‘‘अब टुकड़ों में बात करने के बजाय श्रेया पूरी कहानी ही सुना दे.’’‘‘मेरा श्रवण की तरफ झुकाव उस के शालीन व्यवहार से प्रभावित हो कर हुआ था. अकसर लाइबेरी में वह ऊंची शैल्फ से मेरी किताबें निकालने और रखने में बगैर कहे मदद करता था. प्यार कब और कैसे हो गया पता ही नहीं चला. चूंकि हम एक ही बिरादरी और स्तर के थे, इसलिए श्रवण का कहना था कि सही समय पर सही तरीके से घर वालों को बताएंगे तो शादी में कोई रुकावट नहीं आएगी. मगर किसी और ने चुगली कर दी तो मुश्किल होगी. हम संभल कर रहेंगे.

प्यार के जज्बे को दिल में समेटे रखना तो आसान नहीं होता. अत: मैं तुझे सब बताया करती थी. फाइनल परीक्षा के बाद श्रवण के कहने पर मैं ने उस के साथ फर्नीचर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन किया था. साउथ इंस्टिट्यूट मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था.

श्रवण पहले मुझे पैदल मेरे घर छोड़ने आता था. फिर वापस जा कर अपनी बाइक ले कर अपने घर जाता था. मुझे छोड़ने घर से गाड़ी आती थी. लेने भी आ सकती थी लेकिन वन वे की वजह से उसे लंबा चक्कर लगाना पड़ता. अत: मैं ने कह दिया  था कि नजदीक रहने वाले सहपाठी के साथ पैदल आ जाती हूं. यह तो बस मुझे ही पता था कि बेचारा सहपाठी मेरी वजह से डबल पैदल चलता था. मगर बाइक पर वह मुझे मेरी बदनामी के डर से नहीं बैठाता था. मैं उस की इन्हीं बातों पर मुग्ध थी.

वैसे और सब भी अनुकूल ही था. हम दोनों ने ही इंटीरियर डैकोरेशन का कोर्स किया. श्रवण के पिता फरनिशिंग का बड़ा शोरूम खोलने वाले थे, जिसे हम दोनों को संभालना था. श्रवण का कहना था कि रिजल्ट निकलने के तुरंत बाद वह अपनी भाभी से मुझे मिलवाएगा और फिर भाभी मेरे घर वालों से मिल कर कैसे क्या करना है तय कर लेंगी.

लेकिन उस से पहले ही मेरी मामी मेरे लिए अपने भानजे राजीव का रिश्ता ले कर आ गईं. राजीव आर्किटैक्ट था और ऐसी लड़की चाहता था, जो उस के व्यवसाय में हाथ बंटा सके. मामी द्वारा दिया गया मेरा विवरण राजीव को बहुत पसंद आया और उस ने मामी से तुरंत रिश्ता करवाने को कहा.

‘‘मामी का कहना था कि नवाबों के शहर भोपाल में श्रेया को अपनी कला के पारखी मिलेंगे और वह खूब तरक्की करेगी. मामी के जाने के बाद मैं ने मां से कहा कि दिल्ली जितने कलापारखी और दिलवाले कहीं और नहीं मिलेंगे. अत: मेरे लिए तो दिल्ली में रहना ही ठीक होगा. मां बोलीं कि वह स्वयं भी मुझे दिल्ली में ही ब्याहना चाहेंगी, लेकिन दिल्ली में राजीव जैसा उपयुक्त वर भी तो मिलना चाहिए. तब मैं ने उन्हें श्रवण के बारे में सब बताया. मां ने कहा कि मैं श्रवण को उन से मिलवा दूं. अगर उन्हें लड़का जंचा तो वे पापा से बात करेंगी.

‘‘दोपहर में पड़ोस में एक फंक्शन था. वहां जाने से पहले मां ने मेरे गले में सोने की चेन पहना दी थी. मुझे भी पहननी अच्छी लगी और इंस्टिट्यूट जाते हुए मैं ने चेन उतारी नहीं. शाम को जब श्रवण रोज की तरह मुझे छोड़ने आ रहा था तो मैं ने उसे सारी बात बताई और अगले दिन अपने घर आने को कहा.

‘‘कल क्यों, अभी क्यों नहीं? अगर तुम्हारी मम्मी कहेंगी तो तुम्हारे पापा से मिलने के लिए भी रुक जाऊंगा,’’ श्रवण ने उतावली से कहा.‘‘तुम्हारी बाइक तो डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट में खड़ी है.’’‘‘खड़ी रहने दो, तुम्हारे घर वालों से मिलने के बाद जा कर उठा लूंगा.’’‘‘तब तक अगर कोई और ले गया तो? अभी जा कर ले आओ न.’’‘‘ले जाने दो, अभी तो मेरे लिए तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना ज्यादा जरूरी है.’’

सुन कर मैं भावविभोर हो गई और मैं ने देखा नहीं कि बिलकुल करीब 2 गुंडे चल रहे थे, जिन्होंने मौका लगते ही मेरे गले से चेन खींच ली. इस छीनाझपटी में मैं चिल्लाई और नीचे गिर गई. लेकिन मेरे साथ चलते श्रवण ने मुझे बचाने की कोई कोशिश नहीं करी. मेरा चिल्लाना सुन कर जब लोग इकट्ठे हुए और किसी ने मुझे सहारा दे कर उठाया तब भी वह मूकदर्शक बना देखता रहा और जब लोगों ने पूछा कि क्या मैं अकेली हूं तो मैं ने बड़ी आस से श्रवण की ओर देखा, लेकिन उस के चेहरे पर पहचान का कोई भाव नहीं था.

एक प्रौढ दंपती के कहने पर कि चलो हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दें, श्रवण तुरंत वहां से चलता बना. अब तू ही बता, एक कायर को शिवैलरस हीरो समझ कर उस की शिवैलरी के कसीदे पढ़ने के लिए मैं भला खुद को कैसे माफ कर सकती हूं? राजीव के साथ मैं बहुत खुश हूं. पूर्णतया संतुष्ट पर जबतब खासकर जब राजीव मेरी दूरदर्शिता और बुद्धिमता की तारीफ करते हैं, तो मुझे बहुत ग्लानि होती है और यह मूर्खता मुझे बुरी तरह कचोटती है.’’

‘‘इस हादसे के बाद श्रवण ने तुझ से संपर्क नहीं किया?’’‘‘कैसे करता क्योंकि अगले दिन से मैं ने डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट जाना ही छोड़ दिया. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं और घर का नंबर उस ने कभी लिया ही नहीं था. मां के पूछने पर कि मैं अपनी पसंद के लड़के से उन्हें कब मिलवाऊंगी, मैं ने कहा कि मैं तो मजाक कर रही थी. मां ने आश्वस्त हो कर पापा को राजीव से रिश्ता पक्का करने को कह दिया. राजीव के घर वालों को शादी की बहुत जल्दी थी. अत: रिजल्ट आने से पहले ही हमारी शादी भी हो गई. आज तुझ से बात कर के दिल से एक बोझ सा हट गया तन्वी. लगता है अब आगे की जिंदगी इतमीनान से जी सकूंगी वरना सब कुछ होते हुए भी, अपनी मूर्खता की फांस हमेशा कचोटती रहती थी.’’

तभी यात्रियों को सुरक्षा जांच के लिए बुला लिया गया. प्लेन में बैठ कर श्रेया ने कहा, ‘‘मेरा तो पूरा कच्चा चिट्ठा सुन लिया पर अपने बारे में तो तूने कुछ बताया ही नहीं.’’‘‘दिल्ली से एक अखबार निकलता है दैनिक सुप्रभात…’’‘‘दैनिक सुप्रभात तो दशकों से हमारे घर में आता है,’’ श्रेया बीच में ही बोली, ‘‘अभी भी दिल्ली जाने पर बड़े शौक से पढ़ती हूं खासकर ‘हस्तियां’ वाला पन्ना.’’

‘‘अच्छा. सुप्रभात मेरे दादा ससुर ने आरंभ किया था. अब मैं अपने पति के साथ उसे चलाती हूं. ‘हस्तियां’ स्तंभ मेरा ही विभाग है.’’‘‘हस्तियों की तसवीर क्यों नहीं छापते आप लोग?’’‘‘यह तो पापा को ही मालूम होगा जिन्होंने यह स्तंभ शुरू किया था. यह बता मेरे घर कब आएगी, तुझे हस्तियों के पुराने संकलन भी दे दूंगी.’’‘‘शादी के बाद अगर फुरसत मिली तो जरूर आऊंगी वरना अगली बार तो पक्का… मेरा भोपाल का पता ले ले. संकलन वहां भेज देना.’’‘‘मुझे तेरा यहां का घर मालूम है, तेरे जाने से पहले वहीं भिजवा दूंगी.’’

दिल्ली आ कर श्रेया बड़ी बहन के बेटे की शादी में व्यस्त हो गई. जिस शाम को उसे वापस जाना था, उस रोज सुबह उसे तन्वी का भेजा पैकेट मिला. तभी उस का छोटा भाई भी आ गया और बोला, ‘‘हम सभी दिल्ली में हैं, आप ही भोपाल जा बसी हैं. कितना अच्छा होता दीदी अगर पापा आप के लिए भी कोई दिल्ली वाला लड़का ही देखते या आप ने ही कोई पसंद कर लिया होता. आप तो सहशिक्षा में पढ़ी थीं.’’

सुनते ही श्रेया का मुंह कसैला सा हो गया. तन्वी से बात करने के बाद दूर हुआ अवसाद जैसे फिर लौट आया. उस ने ध्यान बंटाने के लिए तन्वी का भेजा लिफाफा खोला ‘हस्तियां’ वाले पहले पृष्ठ पर ही उस की नजर अटक गई, ‘श्रवण कुमार अपने शहर के जानेमाने सफल व्यवसायी और समाजसेवी हैं. जरूरतमंदों की सहायता करना इन का कर्तव्य है. अपनी आयु और जान की परवाह किए बगैर इन्होंने जवान मनचलों से एक युवती की रक्षा की जिस में गंभीर रूप से घायल होने पर अस्पताल में भी रहना पड़ा. लेकिन अहं और अभिमान से यह सर्वथा अछूते हैं.’

हमारे प्रतिनिधि के पूछने पर कि उन्होंने अपनी जान जोखिम में क्यों डाली, उन की एक आवाज पर मंदिर के पुजारी व अन्य लोग लड़नेमरने को तैयार हो जाते तो उन्होंने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘इतना सोचने का समय ही कहां था और सच बताऊं तो यह करने के बाद मुझे बहुत शांति मिली है. कई दशक पहले एक ऐसा हादसा मेरी मित्र और सहपाठिन के साथ हुआ था. चाहते हुए भी मैं उस की मदद नहीं कर सका था. एक अनजान मूकदर्शक की तरह सब देखता रहा था. मैं नहीं चाहता था कि किसी को पता चले कि वह मेरे साथ थी और उस का नाम मेरे से जुडे़ और बेकार में उस की बदनामी हो.

‘‘मुझे चुपचाप वहां से खिसकते देख कर उस ने जिस तरह से होंठ सिकोड़े थे मैं समझ गया था कि वह कह रही थी कायर. तब मैं खुद की नजरों में ही गिर गया और सोचने लगा कि क्या मैं उसे बदनामी से बचाने के लिए चुप रहा या सच में ही मैं कायर हूं? जाहिर है उस के बाद उस ने मुझ से कभी संपर्क नहीं किया. मैं यह जानता हूं कि वह जीवन में बहुत सुखी और सफल है. सफल और संपन्न तो मैं भी हूं बस अपनी कायरता के बारे में सोच कर ही दुखी रहता था पर आज इस अनजान युवती को बचाने के बाद लग रहा है कि मैं कायर नहीं हूं…’’

श्रेया और नहीं पढ़ सकी. एक अजीब सी संतुष्टि की अनुभूति में वह यह भी भूल गई कि उसे सुकून देने को ही तन्वी ने ‘हस्तियां’ कालम के संकलन भेजे थे और एक मनगढ़ंत कहानी छापना तन्वी के लिए मुश्किल नहीं था. Hindi Love Stories

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