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कर्नाटक चुनाव परिणाम : जीत की ओर बढ़ती दिख रही है कांग्रेस

कर्नाटक के लिए आज ऐतिहासिक दिन है। 10 मई को सूबे की 224 विधानसभा सीटों पर 72.82 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे। सत्ता हथियाने के लिए कर्नाटक में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस बार लगभग 120-130 सीटों के साथ ‘उल्लेखनीय जीत’ हासिल कर सकती है। वहीं कुछ लोग कांग्रेस पार्टी को 137 सीटें मिलने की संभावना जता रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में 38 साल के चुनावी इतिहास में किसी पार्टी की दोबारा सत्ता में वापसी नहीं हुई है। कर्नाटक में करीब चार दशक से हर 5 साल पर सत्ता बदलने का ट्रेंड रहा है। ऐसे में भाजपा ये ट्रेंड बदलने के प्रयास में है, जबकि कांग्रेस ने अपनी जीत के लिए काफी जोर लगाया है। एग्जिट पोल में भी कांग्रेस के प्रदर्शन को काफी अच्छा बताया गया है। अगर कर्नाटक में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल होता है तो कर्नाटक के बाद 2024 में कांग्रेस के लिए दिल्ली का दरवाजा खुल जाएगा।

अगर कांग्रेस पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पायी तो ऐसे में जेडीएस के सरकार के गठन में किंगमेकर के रूप में उभरना तय है। इसको देखते हुए सभी पार्टियों में खरीद-फरोख्त को लेकर खौफ का आलम है। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा खुद अपने विधायकों को सुरक्षित रखने की कवायद में जुट गए हैं। वहीं उनके बेटे और पूर्व सीएम एच.डी. कुमारस्वामी सिंगापुर से राज्य में स्थिति का संचालन और बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।

विश्लेषक मानते हैं कि जेडीएस के नेताओं को चुनाव नतीजों में सीटों का एक अच्छा हिस्सा मिलना लगभग तय है, जो राष्ट्रीय दलों विशेषकर कांग्रेस को साधारण बहुमत प्राप्त करने से रोकता है। अगर कांग्रेस बहुमत से कम हो जाती है, तो जेडीएस केवल मुख्यमंत्री पद के लिए तैयार होगी और उसे भाजपा के साथ भी हाथ मिलाने में कोई आपत्ति नहीं होगी।

उधर राष्ट्रीय दल अपनी सरकार बनाने के लिए जेडीएस के उम्मीदवारों को हाईजैक करने के लिए तैयार बैठी है। गौरतलब है कि भाजपा ने राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए 2019 में कांग्रेस और जेडीएस के 17 विधायकों को खरीद लिया था। भाजपा ने जेडीएस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष एच. विश्वनाथ को अपने पाले में कर लिया था। वोक्कालिगा समुदाय के एक वरिष्ठ नेता के. गोपालैया भी भाजपा में शामिल होकर उत्पाद शुल्क मंत्री बनाए गए थे। कृष्णराजपेटे सीट से जेडीएस विधायक रहे नारायण गौड़ा भी खरीद-फरोख्त के बाद भाजपा सरकार में खेल और युवा सेवा मंत्री बने थे। इस बार भी भाजपा सत्ता हथियाने के लिए अपनी कुटिल चाल चलने से बाज नहीं आएगी।

भाजपा के पिछले वार को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस भी कुछ सीटें कम पड़ने की स्थिति में आक्रामक योजना के साथ तैयार है। देवेगौड़ा और कुमारस्वामी व्यक्तिगत रूप से पार्टी के उम्मीदवारों के संपर्क में हैं, खासकर उन लोगों के साथ जिन्होंने भाजपा और कांग्रेस से दलबदल कर जेडीएस से चुनाव लड़ा था।

मेरे अपने- भाग 4, किस हादसे से नीलू को मिली सीख?

“देखो जो होना था हो चुका. और होनी पर हम इनसान का वश कहां ही चलता है,” उस का हाथ अपने हाथों में ले कर समझाने लगा, तो नीलू एकटक उसे देखने लगी और फिर रोने लगी.

“चुप हो जाओ. देखो, तुम इस तरह से टूट जाओगी, तो फिर मैं क्या करूंगा.“

“मेरी एक बात मानोगे तुम,” अपने आंसू पोंछते हुए नीलू बोली.

“हां, कहो न. क्या बात है?“

“म… मैं भैया के दोनों बच्चों को गोद लेना चाहती हूं, अगर तुम्हारी इजाजत हो तो…?”

“क्यों, कुछ हुआ क्या? मेरा मतलब है, अंश और मीठी तो अपने नानानानी के पास हैं न?” अमित ने पूछा, तो वह कहने लगी, “वो कल अदिति भाभी की मां का फोन आया था. कहने लगीं कि वे खुद पैंशन पर अपनी जिंदगी गुजरबसर कर रहे हैं. और सब से बड़ी बात कि उन की भी उम्र हो चुकी है तो… मतलब यही कि वे चाहते हैं कि हम अंश और मीठी को अपना लें. अदिति भाभी की 2 बड़ी बहनें और भाई भी हैं. लेकिन वे लोग बच्चों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं.“

“अच्छा, तो ये बात है.”

“अदिति भाभी की मां रोते हुए कहने लगीं कि अगर नहीं होगा तो वे अपने जीतेजी बच्चों को किसी अच्छे अनाथ आश्रम में डाल देंगे, ताकि उन का सही से पालनपोषण तो हो सकेगा.

“अमित, मैं नहीं चाहती कि मेरे भैया के बच्चे किसी अनाथ आश्रम में पलें. इन बच्चों के सिवा मेरे मायके में अब मेरे अपने बचे ही कौन हैं?” हिचकहिचक कर रोते हुए नीलू कहने लगी कि उस के भैया ने उस के लिए क्याकुछ नहीं किया है. जब उस के मांपापा कोरोना में चल बसे थे और वो डिप्रैशन में चली गई थी, तब उस के भैया रातरात भर जाग कर उस की सेवा करते थे. अपने हाथों से उसे खाना खिलाते थे. जब तक वो सो नहीं जाती, वो जागते रहते थे. और आज उन्हीं के बच्चों को अनाथ आश्रम में भेजने की बात सुन कर उस का दिल रो पड़ा है.

वैसे, उस ने अभी कुछ नहीं कहा उन से, क्योंकि जब तक तुम्हारी मरजी नहीं होगी, वो इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकती है.

“ओह, तो यही बात तुम्हें खाए जा रही है? लेकिन, तुम ने ये कैसे सोच लिया कि हमारे रहते दोनों बच्चे अनाथ आश्रम भेज दिए जाएंगे?

“जानती हो नीलू, जिस दिन वो हादसा हुआ था न, उसी दिन से मैं ने दोनों बच्चों को अपना बच्चा मान लिया था,” अमित के मुंह से ऐसी बातें सुन कर नीलू का रोमरोम सिहर उठा. पता तो था उसे कि अमित एक अच्छा इनसान है. उस की अच्छाई को देख कर ही तो उस ने उस से शादी की थी.  लेकिन वो इतना महान इनसान होगा, नहीं पता था उसे. किसी और के बच्चे को अपना मान लेना एक महान इनसान ही कर सकता है. जबकि, याद है उसे नीलेश ने अमित के औफिस जा कर उसे धमकाया था कि वो उस की बहन के रास्ते से हट जाए, वरना ठीक नहीं होगा. यहां तक कि 2 गुंडे हायर कर उन्होंने अमित को पिटवाया भी था, पर फिर भी अमित पीछे नहीं हटा और न ही डरा उन से.

“यह बात नीलू को शादी के बाद पता चली थी वह भी किसी और के जरीए. अमित ने तो बताया ही नहीं उसे कुछ. नीलू तो अपने भैया से लड़ने जा रही थी, मगर अमित ने अपनी कसम दे कर उसे रोक लिया था. और आज वही इनसान उन के बच्चों को अपनाने की बात कर रहा है, तो ये महानता नहीं है तो और क्या है.

अमित मन और आत्मा से इतना अच्छा इनसान है, यह बात काश नीलेश भी समझ पाता.

अमित के मुंह से बच्चे को अपनाने की बात सुन कर नीलू उस से लिपट कर रो पड़ी, लेकिन ये खुशी के आंसू थे.

“लेकिन, बच्चों को गोद लेना इतना आसान नहीं होगा नीलू. इस के लिए कुछ कानूनी प्रक्रियाएं होंगी, उन्हें पूरी करनी पड़ेगी, तभी हम इन बच्चों के लीगल पेरेंट्स बन सकेंगे. वक्त लग सकता है, इसलिए तुम्हें धीरज रखना होगा,” अमित ने समझाया, तो नीलू मान गई कि जो भी करना पड़े, जितना भी समय लगे, वो तैयार है.

सब से पहला काम तो उन्होंने यह किया कि एक वकील हायर कर बच्चों को गोद लेने के लिए कोर्ट में पिटीशन दायर कर दी. फिर अपना जन्म प्रमाणपत्र, शादी का प्रमाणपत्र, पहचानपत्र, जिस में मतदाता कार्ड, पैनकार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसैंस, निवास प्रमाणपत्र, इस साल की इनकम टैक्स की औथैंटिक कौपी, फिटनैस प्रमाणपत्र, जो किसी सरकारी अस्पताल के डाक्टर के साइन किए हुए थे, उन की इनकम क्या है, ताकि यह पता चल सके कि वे आर्थिक रूप से मजबूत हैं और दोनों बच्चों को पालने में सक्षम हैं. साथ ही, गोद लेने के पक्ष में इच्छुक व्यक्ति से जुड़े 2 लोगों के बयान भी कोर्ट में दर्ज कराए गए.

कोर्ट की तरफ से 2 आदमी को यह देखने के लिए भी भेजा गया कि उन का घर बच्चों के रहने लायक है या नहीं, यानी बच्चे यहां पर कंफर्टेबल हो कर रह सकेंगे या नहीं.

कोर्ट के अनुसार, दोनों बच्चों को गोद लेने से पहले उन्हें नीलू और अमित के साथ रहना था, ताकि पता चल सके कि बच्चे उन से घूममिल गए हैं और उस घर में एडजस्ट कर सकेंगे.

लंबी कानूनी प्रक्रिया में करीब डेढ़ से 2 साल लग गए, तब कहीं जा कर नीलू और अमित उन बच्चों के लीगल पेरेंट्स बन पाए. अब उन के एक नहीं, 3 बच्चे थे, अपने बेटे वंश की तरह ही नीलू अपने भाई के बच्चों को सीने से लगा कर रखने लगे, क्योंकि अब वही तो उस के अपने थे.

Father’s Day 2023: मेरे पापा सिर्फ आप हैं- भाग 3

रागिनी के पांव भारी होते ही वह जैसे पूरे घर की महारानी बन गयी. संजीव की मां जो हर वक्त उसको कोसती रहती थी, अब हर वक्त उसकी सेवा-टहल में लगी रहती थीं. उसको घर का एक काम नहीं करने देती. सुबह से शाम तक उसके खाने-पीने का ध्यान रखती. अपने हाथ से काजू-बादाम की खीर बना-बना कर खिलाती. तमाम तरह के जूस और सूप पिलाती. उसके लिए अपने हाथों से सूखे मेवे और सूजी के लड्डू बना-बना कर जार में रखतीं. रागिनी को बड़ा अटपटा लगता था कि इस बुढ़ापे में वह इतनी मेहनत कर रही हैं, मगर पोते का सुख पाने के लालच में मां की ममता उछाले मार रही थी, उसे रोक पाना न संजीव के बस में था और न रागिनी के. नौ महीने तो पंख लगाकर उड़ गये और वह घड़ी आ पहुंची जब मां की बरसों की साध पूरी हो गयी. संजीव का घर-आंगन नन्हें आशीष की किलकारियों से गूंज उठा. दादी को खेलने के लिए खिलौना मिल गया. रागिनी की जिम्मेदारियां बढ़ गयीं और संजीव को जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो गया. आशीष ने सबका जीवन खुशियों से भर दिया था. पूरा घर बस उसके इर्द-गिर्द ही घूमता रहता था.

संजीव के दिल में यह शंका धुंधली पड़ गयी थी कि आशीष उनका नहीं, बल्कि किसी औेर का बेटा था. उन्होंने कभी यह शक रागिनी के सामने जाहिर नहीं किया. आशीष को उन्होंने बेइन्तहा प्यार दिया. उसकी छोटी से छोटी ख्वाहिश को पूरा किया. उसको कभी हल्का सा बुखार भी आ जाता तो संजीव पूरी रात जाग कर उसकी देखभाल करते थे. जान से ज्यादा प्यार करते थे संजीव अपने बेटे से. उन्होंने आशीष को बहुत अच्छे संस्कार दिये. उसके लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा का इंतजाम किया. शहर के सबसे अच्छे और मंहगे स्कूल में उसका एडमिशन करवाया. आशीष पढ़ाई में हमेशा अच्छा रहा. हर कक्षा में कभी फर्स्ट, कभी सेकेन्ड आता रहा. यही नहीं मेडिकल की पढ़ाई के लिए वह पहले ही अटेम्प में सिलेक्ट हो गया. डॉक्टरी की पढ़ाई का यह उसका तीसरा साल चल रहा था. संजीव और रागिनी को अपने होनहार बेटे पर नाज था.

आशीष जब पन्द्रह बरस का था, तो उसकी प्यारी दादी उसे छोड़ कर हमेशा के लिए चली गयी. बुढ़ापा था. उम्र हो चुकी थी. मगर जाते वक्त तक खुश थी दादी. हर वक्त पोते के प्यार में डूबती-उतराती रहती थी. अन्तिम वक्त में भी उसकी ही गोद में सिर रख कर चिरनिद्रा में सो गयी थी. तब आशीष बहुत रोया था. दादी का लाडला था. कई दिन तक उदास रहा. उदास तो रागिनी और संजीव भी बहुत थे, मगर यह तो प्रकृति का नियम है, जो आया है एक दिन जाएगा. आज प्रकृति का वही नियम एक बार फिर संजीव के सामने आ खड़ा हुआ था. उसकी प्यारी रागिनी चली गयी. फर्क इतना था कि यह उसकी जाने की उम्र नहीं थी. अभी तो बहुत सारे सपने साथ देखने थे, साथ पूरे करने थे. आशीष को दूल्हा बनाना था, ब्याह रचाना था, उसका घर बसाना था, उसके बच्चे खिलाने थे… कितने सारे काम बचे हुए थे और रागिनी वह सारे काम संजीव के कंधे पर डालकर चल दी. रात भर संजीव की आंखों के आगे बीते साल चलचित्र की भांति गुजरते रहे. सुबह आशीष ने आकर जब चाय का प्याला उन्हें थमाया, तो उनकी लाल-सुर्ख आंखें देखकर उसकी भी आंखें भर आयीं. बाप-बेटा बड़ी देर तक एक दूसरे के गले लग कर सिसकते रहे.

दोपहर बाद घर की घंटी बजी तो अनजान आशंका से संजीव का दिल धड़क उठा. आशीष अपने कमरे में सो रहा था. वह उठे, दरवाजा खोला तो सामने वही आगन्तुक खड़ा था, जिसने अपना नाम कल अभय बताया था. संजीव ने उससे हाथ मिलाया और अन्दर आने का रास्ता दे दिया. अभय शालीनता से भीतर आया और सोफे पर बैठते हुए पूछा, ‘आशीष नहीं है?’

‘सो रहा है….’ संजीव ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और पास वाले सोफे पर बैठ गया. मन आशंकाग्रस्त था… पता नहीं यह क्यों आया है? कहां से आया है? क्या बात करनी है?

‘जी, कल आपने पूरा परिचय नहीं दिया था. आप रागिनी को कैसे जानते हैं? आपके बारे में रागिनी ने कभी नहीं बताया?’ संजीव ने एकसाथ ही कई सवाल दाग दिये.

‘संजीव जी, रागिनी मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी. बस तीन साल का साथ था हमारा. हम सिर्फ दोस्त थे और कुछ नहीं. फिर मैं मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपनी बड़ी बहन के पास अमेरिका चला गया. वहां से लौटकर मैंने पुराने शहर में अपना हॉस्पिटल बनाया. आरोग्य नर्सिंग होम.’

‘ये तो बहुत विख्यात नर्सिंग होम है. मेरी मां रागिनी को लेकर वहां जाती थी इलाज के लिए.’ संजीव अचानक याद करके बोल उठे.

‘जी… तभी रागिनी से दोबारा मुलाकात हुई थी. उन दिनों वह बहुत परेशान थी. उसकी हालत देख कर तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाया था. आपकी मां के सामने हमने जाहिर नहीं किया था कि हम एकदूसरे को जानते हैं. रागिनी मां बनना चाहती थी, किसी भी कीमत पर. तब मैंने उसके सारे टेस्ट करवाये थे. वह मां बनने के लिए पूर्णत: काबिल थी. एक दिन जब वह मेरे पास अकेले आयी तो मैंने उससे कहा कि वह आपका टेस्ट करवाये. क्योंकि मुझे शक था कि कमी आप में है. मगर उसने मना कर दिया. उसने साफ कह दिया कि वह अपने पति को खुशी देना चाहती है, कमी होने का अहसास कराके दुखी नहीं करना चाहती. वह कई दिन तक मेरे पास आती रही, मैं उसे समझाता रहा कि तुम्हें दवाइयां खाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम पूरी तरह मां बनने के काबिल हो. अचानक एक दिन उसने मेरे सामने एक मांग रख दी. उसने कहा कि उसे मुझसे एक बच्चा चाहिए. मैं उसको अपने शुक्राणु देने को तैयार था, मगर वह आर्टिफिशल तरीके से गर्भ धारण नहीं करना चाहती थी. फिर हमारे बीच सहमति से रिश्ता कायम हुआ. कई बार. वह दवा के बहाने से मेरे नर्सिंग होम में आती थी. प्रेग्नेंट होने के बाद वह बहुत खुश थी. उसने मेरा बहुत आभार जताया था, मगर मुझसे यह भी साफ कह दिया था कि बच्चा सिर्फ उसका है, उस पर मेरा कोई हक नहीं है और न मैं कभी भविष्य में उस पर अपना हक जताने की कोशिश करूं. इसके बदले में उसने मुझे पैसे देने की भी पेशकश की थी, मगर मैंने मना कर दिया था. मेरे लिए उसकी खुशी ही सबकुछ थी. उसके बाद मैं रागिनी से कभी नहीं मिला. हां, एकाध बार फोन पर जरूर बात हुई थी.’ अभय क्षण भर को रुके तो संजीव अधीरता से बोल पड़े, ‘फिर इतने सालों बाद आप क्यों आये हैं?’ संजीव का मन अनजान आशंका से कांप रहा था.

‘अखबार में रागिनी की तेरहवीं का विज्ञापन देखा था. खुद को रोक नहीं पाया. कई सालों से मन छटपटा रहा था अपने बेटे को देखने के लिए. रागिनी ने फोन पर बताया था कि बेटा हुआ है, कहा था – मेरा बेटा हुआ है, तुम्हारा धन्यवाद मुझे और मेरे परिवार को यह खुशी देने के लिए. जब मैंने उसे देखने का इसरार किया तो उसने मना कर दिया. बोली, मुझे शर्मिंदगी महसूस होगी. जब मर जाऊं तब देख लेना कभी उसे. रागिनी के मन में इस बात की गिल्टी थी कि उसने तुमको धोखा दिया, मगर संजीव, यह उसने तुम्हारी खुशी के लिए किया था. वह तुमको इस बात का अहसास भी नहीं होने देना चाहती थी कि तुममें कोई कमी है. वह तुमसे बहुत प्यार करती थी.’

Father’s Day 2023: मेरे पापा सिर्फ आप हैं-भाग 2

‘क्यों?’

‘उन्हें कुछ बात करनी है.’

‘कैसी बात? मम्मी ने तो कभी अपने इस दोस्त के बारे में नहीं बताया… क्या आप भी इन्हें नहीं जानते थे?’

‘नहीं… कल आएंगे तब पता चलेगा कि क्या बात करनी है उन्हें.’ कह कर संजीव उठे और अपने कमरे की ओर चल दिये. आशीष वहीं बैठा रहा. आगन्तुक, जिनका नाम पापा ने अभय बताया था, के बारे में सोचता रहा. कौन हैं, कहां से आये, कहां रहते हैं, क्या बात करनी है उन्हें, पहले कभी क्यों नहीं आये, मां ने उनके बारे में कभी कुछ क्यों नहीं बताया, मुझसे इतने क्यों मिलते हैं… बहुतेरे सवाल उसके दिमाग में चक्कर काट रहे थे.

उधर संजीव के जेहन में भी बाइस बरस पहले की बातें चल रही थीं. इस आगन्तुक से मिलने के बाद जैसे उनकी पूरी जिन्दगी फ्लैशबैक में चलने लगी. रागिनी से उनकी शादी के पांच बरस बीत चुके थे और रागिनी की गोद सूनी की सूनी थी. पहले दो साल तो बेख्याली में गुजर गये, मगर तीसरा साल लगते-लगते संजीव की मां ने और रिश्तेदारों ने बहू को टोकना शुरू कर दिया था. मां को पोते का मुंह देखने की जल्दी मची थी. आये-दिन रागिनी को लेकर कभी इस पंडित के पास तो कभी उस ओझा के पास पहुंच जाती थी. तमाम टोने-टोटके करा लिये, अनेक डॉक्टरों से दवा-इलाज करवा लिया, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला. कभी-कभी खिसिया कर रागिनी को कोसने भी लग जाती थी, ‘बांझ है बांझ… मेरे बेटे की तो तकदीर ही फूट गयी… हाय, अब मेरा वंश कैसे बढ़ेगा… इसकी तो कोख ही नहीं फल रही….’ मां की बातों से रागिनी बहुत आहत होती थी, कमरे में खुद को कैद करके फूट-फूट कर रोया करती थी. तब संजीव उसे बहुत दिलासा देते थे. कहते थे, ‘रागिनी हमारी किस्मत में बच्चा होगा तो जरूर मिलेगा. अभी कौन सी हमारी उम्र निकल गयी है? तुम मां की बातों को दिल पर मत लिया करो. वो बूढ़ी हो गयी हैं. कुछ काम-धाम नहीं है तो तुम्हारे पीछे पड़ी रहती हैं….’ मगर रागिनी को संजीव की बातों से राहत नहीं मिलती थी. वह खुद बच्चे के लिए बड़ी परेशान रहती थी. उसकी सभी सहेलियों की गोद में बच्चे खेल रहे थे, बस वही थी जो बांझ होने का कलंक लिये घूम रही थी. यह कलंक वह किसी भी कीमत पर हटाना चाहती थी.

उन्हीं दिनों की बात है जब संजीव ने रागिनी को बताये बिना एक जान-पहचान के डॉक्टर से अपना भी चेकअप करवाया था. रिपोर्ट आयी तो पता चला कि बच्चा न होने का कारण वह खुद ही है. कमी संजीव में ही थी. उसके सीमन में शुक्राणु न के बराबर थे. रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने साफ कह दिया था कि वह कभी पिता नहीं बन सकता. हालांकि उन्होंने संजीव को कुछ दवाएं दी थीं, मगर दो महीने के सेवन के बाद भी शुक्राणुओं की संख्या में कोई वृद्धि नहीं दिखी.

संजीव अपना इलाज करवा रहे हैं, यह बात उन्होंने रागिनी को कभी नहीं बतायी और न ही कभी रागिनी के समक्ष यह स्वीकार कर पाने की उनकी हिम्मत हुई कि वह उसे बच्चा देने लायक नहीं हैं. वह डरते थे कि बात खुली तो उनके माथे पर नपुंसक, नामर्द जैसे कलंक चमकने लगेंगे. वह कैसे अपनी कमजोरी रागिनी के सामने स्वीकार करें? कैसे बतायें कि कमी रागिनी में नहीं, बल्कि खुद उनके अन्दर है? यह सच बताने के बाद वह कैसे रागिनी का सामना कर पाएंगे, जो उनकी मां के ताने सुन-सुन कर आधी हो चुकी है. मोहल्ले की औरतों के बीच ‘बांझ’ के नाम से पुकारी जाने लगी है. वह अपने इलाज के बारे में चुप्पी साध गये. उनमें सच को कह पाने की हिम्मत ही नहीं थी.

फिर एक दिन अचानक रागिनी ने घर में खुशियों का बम फोड़ दिया. शाम को संजीव आॅफिस से लौटे तो घर में औरतों का जमावड़ा लगा था. ढोल बज रहा था, गाने गाये जा रहे थे. चारों ओर चहचहाटें, रौनकें, हंसी-ठिठोली, किलकारियों के पटाखे छूट रहे थे. संजीव के लिए बधाइयों का तांता लग गया. अपनी मां के चेहरे की खुशी देखकर तो वह दंग रह गये. इससे पहले उन्होंने अपनी मां को कभी इतना खुश नहीं देखा था. खुशी से उसका चेहरा दमक रहा था. मां ने उनके मुंह में लड्डू ठूंसते हुए कहा – ‘पांव भारी हैं बहू के… देखना पहला तो पोता ही होगा’. शर्मायी-लजायी रागिनी ने मुस्कुरा कर कमरे में संजीव का स्वागत किया.

उसने संजीव को अपनी बाहों में जकड़ कर पूछा, ‘तुम खुश हो न?’

संजीव ने हौले से जवाब दिया, ‘बहुत….’ उस दिन संजीव की बाहों में लिपटी रागिनी के चेहरे पर दर्द और टीस की जगह खुशी, शान्ति और सुख का नूर था, मगर संजीव के दिमाग में हलचल मची थी. वह जानते थे कि यह बच्चा उनकी देन नहीं है. फिर कौन है जिसने रागिनी को यह खुशी दी है? कब और कैसे वह रागिनी के सम्पर्क में आया? रागिनी उनसे छिप कर किसी और से मिलती थी? रागिनी ने उन्हें धोखा दिया? दम्भी पुरुष प्रवृत्ति उन पर हावी होने लगी. मगर साथ-साथ वह इस आशंका से भी भर गये कि कहीं डॉक्टर की दवाएं तो असर नहीं कर गयीं उन पर.. हो सकता है उनके सीमन में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ गयी हो… शायद वही इस बच्चे के बाप हों.. शायद विज्ञान का चमत्कार हो ही गया हो… शायद… शायद…  रात भर सैकड़ों सवाल उन्हें परेशान किये रहे, मगर सुबह तक वह एक फैसले पर पहुंच चुके थे. यह फैसला था आने वाले के स्वागत का.

Mother’s Day 2023- मां, मैं फिर आऊंगी: अजन्मी बच्ची का दर्द

गरमी के दिन थे. मेरे छोटे से घर के चारों ओर की पहाडि़यां मुलायम व गहरे हरे रंग की हरी घास, जिस में जगहजगह बैगनी और सफेद जंगली फूल खिले हुए थे, से ढकी थीं. मैं इस छोटे से घर में इस पहाड़ी स्थान पर कुछ शांति पाने की आशा में सदा के लिए रहने आ गई थी. कुछ समय पहले तक मेरे पास सबकुछ था. मेरे सुंदर इंजीनियर पति मु झे बहुत प्यार करते थे. हम हर प्रकार से सुखी थे. लेकिन मेरी और सरस की दुनिया तब तहसनहस हो गई जब मैं ने एक मृत बच्ची को जन्म दिया. उस समय मैं ने खूब आंसू बहाए थे.

सरस तब मेरे पास ही खड़े थे जब नर्स ने उस मृत बच्ची को मुझे पकड़ाया था. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा. बस, उठ कर बाहर चले गए. उन का सर्द, खामोशीभरा व्यवहार मु झे भीतर तक आहत कर गया था. हम ने पहले ही सोच रखा था कि यदि बेटी हुई तो हम उसे सुरभि कह कर पुकारेंगे. अब यदि वह मृत पैदा हुई तो इस में मेरा क्या दोष था. तब मैं और मेरी मृत बेटी ही अस्पताल के उस कमरे में रह गए थे. मैं जीभर कर रोई और फिर एकाएक चुप हो कर मृत बच्ची को सीने से लगा लिया. फिर उस के लिए पहले से खरीदी हुई सुंदर सफेद  झालर वाली फ्रौक, छोटे मोजे व सुंदर टोपी पहना कर उसे निहारा. तब ऐसा लगा कि अभी आंखें खोल कर मुझे देखने लगेगी.

कुछ देर बाद ही सरस वापस आए और खिड़की के बाहर देखने लगे. उन की पीठ मेरी ओर थी. बाहर का जीवन यथावत चल रहा था. आतेजाते वाहनों की आवाज, धूप, पेड़ सभी दृश्य वैसे ही दिख रहे थे जैसे हमेशा दिखते थे. मेरे साथ इतनी भयानक घटना घट चुकी थी पर किसी पर भी उस का प्रभाव दिखाई नहीं दिया था. सरस ने तो मुझ से एक शब्द भी नहीं बोला था. घर आने पर मैं अपनेआप में खोई सी रहने लगी. सुरभि का चेहरा मेरी आंखों से हटाए नहीं हटता था. शायद मु झे किसी सांत्वना देने वाले की, किसी सहारे की आवश्यकता थी, पर मेरे आसपास ऐसा कोई भी तो नहीं था.

मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी. मेरे अंदर की कसक मु झे हर समय पीडि़त किए रहती. एक दिन जब मुझे थोड़ा होश आया तो लगा कि मेरे आसपास का सबकुछ बदल चुका है. सरस भी कार्यालय से बहुत देर से आते थे. घर के कार्य मैं मशीनी ढंग से किए जा रही थी कि अचानक एक दिन मैं ने पाया कि सरस मु झ से बहुत दूर जा चुके हैं. मेरी एक सहेली ने सरस को एक अन्य लड़की के साथ घूमतेफिरते, मुसकराते, जीवन की खुशियां मनाते देखा था. जब मैं ने सरस से पूछा तो बोले कि वे वाकई मुझ से ऊब चुके हैं. वे मुझ से तलाक लेना चाहते हैं. मैं ने भी सोचा, जबरदस्ती तो किसी को अपनी संवेदनाओं व भावनाओं को समझने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. सो, तलाक के लिए मैं ने हामी भर दी. मेरी आंखें पहले की तरह ही सूखी व एक अजीब सूनेपन से भरी हुई थीं. तब मैं ने उस शहर से बहुत दूर इस किराए के घर में शरण ली थी.

नया घर मुझे अत्यधिक पसंद था. इस के चारों ओर का सूनापन मेरे मन के सूनेपन से मेल जो खाता था. मैं ने बागबानी के पुराने शौक को फिर से अपना लिया था. मेरे इर्दगिर्द के फूल, पौधे व वृक्ष ही मेरे असली मित्र व बंधु बन गए थे. इस बागबानी के शौक को और आगे बढ़ाते हुए मैं ने अपनी वाटिका में फूल, पौधों पर नएनए प्रयोग करने शुरू किए, नतीजतन, मैं एक सुंदर पुष्पवाटिका की मालकिन बन बैठी.  जब एक पड़ोसिन ने मु झ से अपने इस शौक को व्यवसाय का रूप देने के लिए कहा तो मैं खुशी से फूली न समाई. मैं ढेर सारी पुस्तकें खरीद कर ले आई और धीरेधीरे मेरा फूल, पौधे और गुलाब की कलमें सप्लाई करने का काम चल निकला.

फूलों की एक बड़ी दुकान के मालिक संजीव का व्यवहार मेरे साथ बड़ा ही मित्रवत था. वे अविवाहित ही थे. एक दिन उन्होंने मु झ से कौफी पीने का आग्रह किया तो मैं इनकार न कर सकी. अपने नौकर से दुकान की देखभाल करने के लिए कह कर संजीव मेरे साथ पास के एक कौफी हाउस में चले आए. वहां पर कौफी की चुसकियों के साथ अपने चुटकुलों से उन्होंने मुझे बहुत हंसाया. अपनी बेटी की मौत का अब तक मातम मनाने वाली मैं जब खुल कर हंसी तो न जाने क्यों तनमन बहुत हलका सा लगने लगा. घर आ कर मैं पास की पहाडि़यों पर घूमने निकल गई. बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा खाना बनाने व खाने का दिल करने लगा. फिर तो मैं जब भी बाजार जाती, संजीव के साथ कौफी का एक प्याला और उन के ठहाकों का आनंद उठाए बिना न रह पाती. एक दिन बातों ही बातों में मैं ने उन्हें अपनी जिंदगी की पूरी कहानी सुना दी. उस दिन संजीव के सदा प्रफुल्लित रहने वाले चेहरे पर भी उदासी छा गई व आंखें नम हो गईं.

एक दिन सुबहसुबह मैं चाय का प्याला ले कर बैठक में बैठी थी तो एक कार के रुकने व दरवाजा खुलने की आवाज ने मेरा ध्यान खिड़की की ओर मोड़ा. आंखों को विश्वास नहीं हुआ कि यह कैसे हो सकता है. मैं सोचने लगी कि भला सरस के आने का औचित्य क्या हो सकता है? उसे मेरा पता कैसे मिला? वह तो कब से मेरी जिंदगी से बहुत दूर जा चुके हैं. तभी देखा कि वे मुख्य दरवाजे की ओर लंबेलंबे डग भरते हुए आ पहुंचे हैं. घंटी बजी पर मैं बैठी ही रही. फिर घंटी दोबारा बजी. सरस मुझे खिड़की के शीशे के पार बैठी हुई देख चुके थे. मैं ने हिम्मत बटोरी और दरवाजा खोला, ‘‘कैसी हो, श्रुति?’’ सरस ने हौले से पूछा.

मैं ने कहा, ‘‘ठीक हूं, पर आप का मन लंदन से भर गया है क्या? इधर कैसे चले आए? मेरा पता किस ने दिया?’’

‘‘इतने सारे प्रश्नों का जवाब यहां खड़ाखड़ा दूं?’’

‘‘हांहां, अंदर आ जाओ,’’ कहते हुए मैं ने उस व्यक्ति को, जो कभी मेरा पति था, अंदर आने का रास्ता दिया.

मेरे छोटे से घर को एक निगाह से देख कर सरस बोले, ‘‘वाकई, छोटी से छोटी जगह को भी संवारने में तुम्हारा कोई जवाब नहीं है. खैर, मैं अब इसी शहर में रहूंगा…मुझे यहां नौकरी मिल गई है. अभी भी पहले की भांति ही पैसे कमा रहा हूं. तुम्हारी बहन से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारा पता मिला था.’’

‘‘अच्छा, तो आप मेरे ऊपर निगाह रखने के लिए शहर में आए हैं. देखो, आप से मेरा अब कोई रिश्ता नहीं है. मेरी जिंदगी अब बिलकुल अलग है, मुझे अकेला छोड़ दीजिए.’’

अपने खूबसूरत चेहरे पर मणियों की तरह जड़ी हुई सुंदर आंखों को बिलकुल मेरी तरफ सीधा रखते हुए सरस ने पूछा, ‘‘चाय नहीं पिलाओगी?’’

मैं ने बिना बोले चाय का प्याला सरस की ओर बढ़ा दिया. फिर अनुभव किया कि उन के हाथ की उंगलियां थरथरा रही हैं. फिर सोचा, ‘अच्छा है, चाय पी कर सरस चले जाएंगे.’

तभी उन्होंने कहा, ‘‘चाय अभी भी अच्छी बनाती हो, श्रुति. अरे हां, लंदन छोड़ने के पूर्व मैं सुरभि की समाधि पर गया था. वहां ढेर सारे नन्हेनन्हे फूल खिले हुए थे. वहां के रखवाले ने बताया कि सब से ज्यादा फूल सुरभि के आसपास ही खिलते हैं. वैसे मैं वहां हर हफ्ते फूल भेजता हूं. शायद तुम भी भेजती होगी?’’ मैं ने सरस की ओर देखे बगैर ही हृदय में उठती पीड़ा, जो थोड़ीथोड़ी सो सी गई थी, को जागते हुए अनुभव किया. फिर सोचने लगी कि वही पुरानी कसक एक बाढ़ बन कर मेरे संपूर्ण अस्तित्व को डुबो देगी. मेरे मन ने कहा, ‘आप ने तो उसे छुआ भी नहीं था, उसे देखा भी नहीं था. मैं ने उसे सहलाया था, उस का सिर सहलाया था, उसे कपड़े पहनाए थे. पर आप ने तो कभी उस के बारे में मु झ से चंद शब्द भी नहीं बोले थे, चंद आंसू भी नहीं बहाए थे. उसे अपनी हथेलियों में थामा भी नहीं था, यद्यपि उस में आप का भी अंश था.’ तभी मैं ने अनुभव किया कि मेरा हृदय फिर दुख व क्षोभ से भर उठा है.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, लेकिन आप को मेरी चिंता क्यों थी? क्यों आप ने मेरा पता जानना चाहा? क्यों मुझ से मिलने आए?’

‘‘श्रुति, मैं जानना चाहता था कि तुम ठीक हो या नहीं. इसीलिए तुम से मिलने आ गया हूं.’’

‘‘अच्छा, आज मेरी चिंता हो रही है. उस समय आप कहां थे, जब मु झे आप की आवश्यकता थी? जब मैं रातरात भर बिस्तर के एक किनारे पड़ी रोती रहती थी और आप चैन से सोया करते थे. अब मुझे आप की कोई आवश्यकता नहीं है, आप यहां से चले जाइए.’’

सरस ने कहा, ‘‘सच्ची बात तो यह है कि जब मु झे पता चला कि तुम यहां हो तो मैं ने यहां आने व नौकरी करने का फैसला कर लिया.’’

‘‘ठीक है, लेकिन अब मुझे आप से कोई लेनादेना नहीं है. मेरा अपना छोटा सा व्यवसाय है और शीघ्र ही यह घर भी खरीद रही हूं.’’ सरस ने चाय खत्म की और चुपचाप घर से बाहर निकल गए. मैं सोचने लगी शायद उन्होंने शादी भी कर ली होगी. उसी रात मैं ने अपनी बहन को फोन कर के सरस के आने के बारे में बताया. उस ने कहा कि तलाक के बाद सरस घूमाफिरा तो कई लड़कियों के साथ, पर उस ने विवाह किसी से भी नहीं किया. दूसरे दिन जब मैं बाजार पहुंची तो संजीव के साथ कौफी पीने के प्रस्ताव को मैं ने ठुकरा दिया और शीघ्र ही घर चली आई. मन रहरह कर अपने विगत जीवन व बेटी के इर्दगिर्द भटक रहा था.

तभी फोन की घंटी बजी और संजीव की आवाज ने मु झे चौंका दिया, ‘‘हाय श्रुति, क्या हाल है? सुना है तुम्हारा तलाकशुदा पति इस शहर में आ गया है. क्या इसी कारण आज मेरे साथ कौफी नहीं पी? क्या फिर उस इंसान के पास वापस जाने का इरादा है? अगर ऐसा है तो बता दो. वैसे मैं तुम से विवाह करना चाहता हूं. बोलो, क्या खयाल है?’’ मैं ने क्रोध को दबाते हुए कहा, ‘‘आज से पहले तो कभी भी विवाह का खयाल आप के मन में नहीं आया. आज जब सरस इस शहर में आ गए हैं तो आप मुझ से विवाह करना चाहते हैं. आखिर आप मुझे समझते क्या हैं,’’ कहते हुए मैं ने रिसीवर पटक दिया.रात का खाना खाए बगैर ही मैं अपने कमरे में चली गई. रात सपने में सरस दिखाई दिए.

सुबह सो कर उठी तो बहुत परेशान सी थी. मन विचारों की आंधी से भरा हुआ था, ‘क्या हम पतिपत्नी अपनी बिछुड़ी हुई बेटी के बारे में कभी खुल कर बातें नहीं कर सकते थे? क्या मैं ने इस के लिए अपनी ओर से कोई चेष्टा की थी? क्या मैं स्वयं ही अंतर्मुखी नहीं हो गई थी? क्या मैं ने ही कुछ खोया था, सरस ने नहीं? क्या मैं ने कभी जानने की चेष्टा की थी कि सरस पर उस का क्या प्रभाव पड़ा है?’ पता नहीं मन में क्या आया कि मैं जल्दी से तैयार हो कर सरस के कार्यालय पहुंचने को व्याकुल हो उठी. उन्होंने अपना कार्ड मु झे दिया था. सरस की पसंद की नीली साड़ी पहन कर मैं घर से बाहर जाना ही चाहती थी कि याद आया, आज रविवार है. फिर मैं ने स्वयं ही तो उन को यहां आने के लिए मना किया हुआ है. तभी घंटी बजी, दौड़ कर मैं दरवाजा खोलना ही चाहती थी कि संजीव की कार दिखाई पड़ गई. मैं चुपचाप रसोई के कोने में खड़ी रही. तभी घंटी फिर बजी और थोड़ी देर बाद कार के स्टार्ट होने व जाने की आवाज सुनाई दी. मैं ने राहत की सांस ली और फिर अपने खाने के लिए कुछ बनाने लगी.

तभी फिर घंटी बजी. मैं ने सोचा, शायद संजीव फिर आ गया है. पता नहीं क्यों, जिस अंदाज से उस ने कल रात फोन पर बात की थी, मु झे उस से घृणा सी होने लगी थी. मैं ने धीरे से, बड़ी सावधानी से बाहर दृष्टि डाली तो सरस की लाल रंग की कार नजर आई. मैं ने तेज गति से अपने कदम दरवाजे की ओर बढ़ाए. मैं ने दरवाजा खोला तो देखा, सरस फूलों का एक बहुत सुंदर गुलदस्ता लिए हुए सहमेसहमे से खड़े हैं. उन्होंने मु झे नीली साड़ी में देखा तो देखते ही रह गए व हड़बड़ा कर बोले, ‘‘श्रुति, क्षमा कर देना, मु झ से आज रहा नहीं गया. रात सपनों में भी तुम्हीं दिखाई दीं और ऐसा लगा कि जैसे तुम मु झे आवाज दे रही हो.’’

मैं ने सरस का हाथ पकड़ा और उन्हें अंदर ले आई. जब बैठ गए तो मैं ने कहा, ‘‘सरस, मु झे क्षमा कर दो. बेटी के गम में बहुत ही दुखी व स्वार्थी हो गई थी मैं. शायद उस दौरान मैं ने तुम्हारी काफी उपेक्षा भी की हो, पर एक बात पूछना चाहती हूं कि तुम उस समय इतने पराए से क्यों हो गए थे?’’

‘‘श्रुति, सुरभि मेरी भी बेटी थी, पर उस का मृत चेहरा देखने का साहस मेरे भीतर नहीं था. इसीलिए उन दिनों मैं स्वयं भी अंतर्द्वंद्व से घिरा हुआ था. घर पर आता था तो तुम भी नहीं मिलती थीं…मेरा मतलब है, बेटी तो खो ही गई थी, मेरी तो पत्नी भी मु झ से दूर चली गई थी. इस अवस्था में मु झ से अजीबोगरीब हरकतें भी हो गई होंगी, पर जब तुम मु झ से दूर चली आईं तो सच मानो, मैं सुरभि से मिलने हर रविवार को जाता था. उस ने जैसे मु झे संदेशा दिया, ‘पिताजी, मेरी मां से मिलो और जा कर कहो कि मैं फिर उन के पास उसी रूप में आऊंगी. इस बार मैं उन से दूर नहीं जाऊंगी.’’’ यह सुन कर मैं फूटफूट कर रोने लगी. पर इस बार मैं अकेली नहीं रो रही थी, मेरे पति भी रो रहे थे. पहली बार हम ने साथसाथ आंसू बहाए थे. थोड़ी देर बाद सरस ने पूछा, ‘‘अब बताओ श्रुति, क्या चाहती हो? मैं तुम से मिलने फिर आ सकता हूं?’’ मैं ने धीमे से सिर उठा कर सरस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से दूर गए ही कब थे जो दोबारा आने की बात पूछ रहे हो. सच बताना, तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

सरस ने हंस कर कहा, ‘‘भई, मैं तो अपनी वर्षों से खोई हुई पत्नी की ही तलाश में था. वह आज मु झे मिल गई है.’’ यह कह कर सरस ने मु झे अपने सीने से लगा लिया. पहली बार ऐसा लगा जैसे सुरभि सरस के लाए हुए उन फूलों में से मुसकरा रही हो और कह रही हो, ‘मां, पिताजी, आप दोनों रोइए मत, मैं फिर आऊंगी, मैं फिर आऊंगी…’

Mother’s Day 2023.: नई मांओं के लिए टिप्स

बच्चा अगर छोटा है और रो रहा है तो मां के लिए यह समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उसे क्या चाहिए. ऐसे में परेशान होने के बजाय मां को खुद ही यह समझना होता है कि उसे किस समय किस चीज की जरूरत होती है. आप को ही इन सब बातों के लिए पहले से ही कौन्फिडैंट होना चाहिए ताकि बच्चे की परवरिश अच्छी तरह से हो सके. बच्चे को ले कर कैसे कौन्फिडैंट बनें, आइए जानते हैं:

नहलाना

कई मांए बच्चे को पहली बार नहलाने से डरती हैं लेकिन सावधानी बरती जाए और नहलाने का सही तरीका पता हो तो यह इतना भी मुश्किल नहीं है. आइए जानें कि कैसे नहलाएं बच्चे को:

– बच्चे को टब में नहलाना सही रहता है, बस इस के लिए ध्यान दें कि टब बहुत गहरा न हो.

– बच्चे को हमेशा कुनकुने पानी से ही नहलाएं. पानी को चैक करने के लिए अपनी कुहनी को पानी में डालें. अगर आप को पानी गरम नहीं लगता तो बच्चे को उस से नहला सकती हैं.

– सब से पहले पानी के छींटे डालें. एकदम उस पर पानी न डाल धीरेधीरे डालें.

– बच्चे को खासतौर पर बनाए गए बच्चों के प्रोडक्ट्स से ही नहलाएं. ध्यान रखें कि उन में पैराबेंस, एसएलएस व एसएलईएस जैसे तत्व न हों.

– इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के कानों या नाक में पानी न जाए.

– बच्चे के सिर पर पानी की सीधी धार कभी न डालें वरना इस से उसे चोट लग सकती है.

– नहलाने के बाद बच्चे को टौवेल में लपेट कर लोशन लगाएं.

बच्चे का अत्यधिक रोना

कई बार छोटे बच्चे जब रोना शुरू करते हैं तो चुप होने का नाम ही नहीं लेते. ऐसे में कई मांएं परेशान हो जाती हैं. इधरउधर अपने रिश्तेदारों से पूछती हैं कि क्या करें बच्चा रो रहा है. बच्चा अगर 3 महीने से छोटा है, तो कई बार वह बेवजह भी रो सकता है. ऐसे में उसे गोद में ले कर घूमने से वह अच्छा महसूस करता है और चुप हो जाता है. लेकिन अगर वह चुप नहीं हो रहा तो उसे भूख लगना, डाइपर गंदा होना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं, इसलिए उस की इन परेशानियों को दूर करें.

कई बार बच्चा भूखा होने पर रोता है. बच्चा खाना खाने के कुछ देर बाद फिर से रोने लगता है, क्योंकि उस का पेट बहुत छोटा होता है. उसे थोड़ीथोड़ी देर में भूख लग जाती है, इसलिए उस के खानेपीने का खास ध्यान रखें.

इस के अलावा इन बातों पर भी गौर करें:

– बच्चे का डाइपर भर जाता है तो वह गीला हो जाता है. इस से बच्चे की नींद खुल जाती है और वह रोना शुरू कर देता है. गीले डाइपर में बच्चे को बहुत बेचैनी होती है, इसलिए बीचबीच में उस का डाइपर चैक कर बदलती रहें. इसे बदलने के बाद बच्चा शांत हो जाएगा.

– कई बार गंदे डाइपर की वजह से बच्चे की त्वचा में रैशेज हो जाते हैं, जिन में दर्द होता है और इचिंग भी हो सकती है. इसलिए इसे भी चैक कर लें कि कहीं बच्चा इस वजह से तो नहीं रो रहा. बच्चे का डाइपर चैंज करने के बाद उसे जिंकआक्साइड युक्त नैपी क्रीम अवश्य लगाएं.

– बच्चे की उम्र 6 से 8 महीने है तो वह दांत आने की समस्या से भी परेशान हो सकता है, इसलिए यह भी देख लें.

– कई बार बच्चा थक जाता है और उसे मां की गोद की तलब लगती है. वह इसलिए भी रोने लगता है, ऐसे में बच्चे को प्यार से गोद में ले कर उस का सिर सहलाएं. वह आराम महसूस करेगा और चुप हो जाएगा.

बच्चे का रातभर जगना

नवजात अकसर दिन में सोते हैं और रात को जागते हैं. कई बार वे दिन में जागने के बावजूद रात में सोते नहीं हैं. ऐसे में मातापिता को उन के साथ जागना पड़ता है, जो बहुत परेशानी की बात होती है. बच्चे को कोई परेशानी होती है तो भी वह सो नहीं पाता है जैसे कि अगर बच्चा भूखा है या फिर उसे किसी चीज की जरूरत है तो भी उसे नींद नहीं आती.

ऐसे में इन बातों पर ध्यान दें

बच्चे को रात में उठ कर कई बार दूध पिलाना होता है, क्योंकि वह थोड़ाथोड़ा दूध ही पीता है इसलिए बच्चे को दूध पिलाती रहें. ब्रैस्टपंप की सहायता से अपना दूध निकाल कर रख लें व समयसमय पर बच्चे को पिलाती रहें ताकि आप को भी आराम मिले और बच्चा भी भूखा न रहे.

– अगर बच्चे को किसी खास टौय या फिर चादर को ले कर सोने की आदत है, तो जब तक उसे वह चीज नहीं मिल जाती है वह जागता रहेगा. इसलिए इस बात का भी खयाल रखें.

– बच्चे को रोजाना एक ही समय पर सुलाएं, अपने हिसाब से उस के सोने के टाइम को इधरउधर न करें वरना उसे नींद नहीं आएगी.

– फीवर, सर्दी, पेट दर्द जैसी कोई समस्या होने पर भी वह सो नहीं पाता है, इसलिए ये सब भी चैक कर लें.

खिलौने भी हों खास

बच्चे के जन्म के बाद न सिर्फ मातापिता के द्वारा बच्चे के लिए बहुत से खिलौने खरीदे जाते हैं, बल्कि रिश्तेदारों के द्वारा भी बच्चे को उपहारस्वरूप बहुत से खिलौने दिए जाते हैं. बच्चे का पूरा कमरा खिलौनों से भर जाता है, जिस में से कुछ अच्छी क्वालिटी के होते हैं तो कुछ बेकार. लेकिन मां को पता होता है या फिर पता होना चाहिए कि उस के बच्चे के लिए कौन सा खिलौना सही है.

– बच्चे के पालने में लटकाने वाले रैटल जिस में रंगबिरंगे भालू, हाथी, छोटेछोटे घोड़े लटके होते हैं वह अच्छा रहता है. इसे देख कर बच्चा खुश होता है. इस से बच्चा अपनी आंखों के जरीए ध्यान केंद्रित करना भी सीखता है. समझदार मांएं अपने बच्चे को वही देती हैं.

– कई खिलौनों में घंटी लगी होती है और वह प्लास्टिक की रिंग के बीच होती है जोकि काफी नर्म भी होती है. जब यह घंटी हवा से हिलती है, तो इस में से मधुर संगीत आता है, जिसे सुन कर रोता बच्चा चुप हो जाता है.

इन के अलावा भी बहुत से खिलौने बच्चों की उम्र के हिसाब से मिलते हैं, लेकिन इस बात का खयाल रखना चाहिए कि जो भी खिलौना लें वह सौफ्ट हो, उस के कोने न निकले हों, वह मुलायम कपड़े का बना हो जिसे बच्चा ऐंजौय करे.

– जो भी खिलौना बच्चे को दें उस से पहले एक बार उसे खुद इस्तेमाल कर के देखें. अगर सही लगे तभी बच्चे को दें.

बच्चों का खाना उगलना: जन्म के 3 महीने बाद तक बच्चों की लार निकलती रहती है. खास कर जब उन्हें कुछ खिलाया जाता है, तो वे तुरंत उलटी कर देते हैं. लेकिन इस के बाद मांओं का काम बढ़ जाता है और वे परेशान होने लगती हैं कि शिशु की इस आदत को कैसे बदलें.

इस के लिए शिशु की नहीं, बल्कि खुद की कुछ आदतों को बदलें जैसे कि दूध पिलाने के बाद एकदम से जो माएं बच्चे के साथ खेलना शुरू कर देती हैं, उन्हें गोद में ले कर उछालती है उन के बच्चे दूध ज्यादा उगलते हैं इसलिए दूध पिलाने के बाद बच्चे को पहले कंधे से लगा कर डकार दिलवाएं ताकि उस का दूध हजम हो जाए और वह उसे उगले नहीं.

– कई बार ठंडा दूध पिलाने से भी बच्चा ऐसा करता है, क्योंकि उसे वह अच्छा नहीं लगता है.

जब बच्चे को हो जाएं घमौरियां: गरमी के मौसम में अकसर बच्चों को घमौरियां हो जाती हैं, लेकिन अगर थोड़ी सावधानी बरती जाए तो इन से बचा जा सकता है जैसे कि:

– इस मौसम में बच्चे को हलके लूज और सौफ्ट कौटन के कपड़े पहनाएं. चुभने वाला कोई कपड़ा बच्चे को न पहनाएं.

– बच्चे को हर तरह का टैलकम पाउडर न लगाएं. सिर्फ राइस स्टार्च युक्त बेबी पाउडर ही लगाएं ताकि उसे रैशेज और दानों से बचाया जा सके.

– घमौरियों वाली जगह को दिन में 2-3 बार साफ पानी से धोएं या स्पंज करें.

– बच्चे को ज्यादा खुशबू वाले साबुन से न नहलाएं या फिर तेल

न लगाएं, क्योंकि इन में कैमिकल होता है, जो बच्चे की नाजुक त्वचा के लिए सही नहीं है.

मसाज करने में हों कौन्फिडैंट: कौन्फिडैंट मांएं बिना डरे अपने नाजुक से बच्चे की मालिश बिलकुल सही तरीके से स्टैपबाईस्टैप करती हैं जैसे कि:

– मालिश की शुरुआत पैरों से करें. इस के लिए अपने हाथों पर तेल मल बच्चे की जांघों को मलते हुए नीचे पैरों तक आएं.

– बच्चे की एडि़यों की भी मालिश करें. पैरों के अंगूठे को चक्राकार घुमाएं.

– बच्चे के हाथों, छाती और पीठ की मालिश करें.

– अगर मालिश के दौरान बच्चा रोने लगे तो उसे गले से लगा कर चुप कराएं.

– बच्चे की मालिश दूध पीने के बाद या सोते वक्त न करें.

– चाइल्ड स्पैशलिस्ट शालू जैन से शिखा जैन द्वारा की गई बातचीत पर आधारित.

Mother’s Day 2023: मुझे बच्चा नहीं चाहिए

अर्शी की आए-दिन मियां से लड़ाई हो जाती है. झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि अर्शी सोचने लगती कि इस आदमी के साथ पूरी जिन्दगी कैसे काटेगी. डर लगता है कि कहीं किसी दिन आदिल उसे तलाक ही न दे दे. बड़ी असुरक्षित सी जिन्दगी जी रही थी. हर वक्त सीने में धुकधुकी सी लगी रहती. लड़ाई भी ऐसे मुद्दे पर कि कोई सुने तो हंसी निकल जाए.

आदिल को सफाई की सनक थी. सनक भी ऐसी-वैसी नहीं, बहुत बड़ी. उसे भी और उसकी मां को भी. वो घर को किसी होटल की तरह चमचमाता हुआ देखना चाहते थे. धूल का कण न मिले कहीं, हर चीज चमकती हुई हो, फर्श पर हर वक्त फिनाइल का पोछा. बाहर से आओ तो लगता कि घर में नहीं, किसी अस्पताल में घुसे हो. अर्शी यहां हर काम ऐसे संभाल-संभाल कर करती थी कि कहीं उससे कोई चूक न हो जाए. कहीं कुछ गिर न जाए, कुछ टूट न जाए. वह किचेन को कई-कई बार पोंछती कि कहीं पानी की कोई बूंद पड़ी न दिख जाए आदिल को.

बेडरूम में कोई कपड़ा, सामान, कागज, अखबार इधर-उधर न पड़ा हो. सबकुछ भलीभांति व्यवस्थित हो. आदिल के आफिस से आते ही वह उसकी हर चीज जल्दी-जल्दी करीने से लगा देती, ताकि उसके गुस्से से बची रहे. सात साल हो गए शादी को और अर्शी को इंसान से रोबोट बने हुए. वह आज तक इस घर को अपना नहीं समझ पायी. समझे भी कैसे, वह कभी अपने तरीके से कुछ कर ही नहीं पायी यहां. घर को सुविधानुसार और अपने अनुरूप तो वह रख ही नहीं पाती है.

आदिल की मां ने घर में जो चीज जहां सजा दी हैं, वह बस उसे वहीं देखना चाहता है. अर्शी अपने मन से कोई चीज इधर से उधर नहीं कर सकती. यहां तक कि अपने बेडरूम तक में वह अपने अनुसार तस्वीरें,  फूल या अन्य चीजें नहीं लगा पाती है. जरा सा चेंज करो तो सौ सवाल खड़े हो जाते हैं. यह क्यों किया? इस घर में अर्शी खुद को एक नौकरानी समझने लगी है. एक नौकरानी की तरह घर की तमाम चीजों को रोजाना झांड-पोंछ कर साफ तो करती है मगर इन्हें बदल कर इनकी जगह कुछ और सजाने का हक उसको नहीं है.

शादी के बाद दो साल तक तो उसे लगता रहा कि शायद एडजेस्मेंट प्रॉब्लम हो रही है. शायद उसके घर में साफ-सफाई का इतना ध्यान नहीं रखा जाता, जैसे यहां रखते हैं. नया घर, नये लोग हैं तो धीरे-धीरे वह इनके तौर-तरीके सीख लेगी. मगर बीते पांच साल से वह इस बात को शिद्दत से महसूस करने लगी थी कि आदिल और उसकी मां सफाई के मामले में बहुत ज्यादा सनकी हैं. उसे लगने लगा था कि आदिल से शादी करके उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है. मां का घर तो छूटा ही, जो मिला वह अपना नहीं है.

इन सात सालों में उसके अंदर ही अंदर बहुत कुछ टूट चुका है, एक सन्नाटा सा बिखर गया है अर्शी के शरीर और आत्मा में. सात सालों में वह बिल्कुल अकेली हो गयी है. हाथ भी खाली, मन भी खाली और कोख भी खाली. कोख इसलिए खाली क्योंकि अर्शी गर्भनिरोधक दवाएं लेती है, आदिल को बताए बिना.

सोचती थी कि इस घर में एडजेस्ट हो जाऊं तब फैमिली बढ़ाऊंगी. फिर आदिल के गुस्से और लड़ाई-झगड़े की वजह से सोचती दो-चार साल में जब दोनों को एकदूसरे की आदत हो जाएगी, एक दूसरे को समझने लगेंगे और झगड़े कम हो जाएंगे तब वह अपनी बगिया में नये फूल का स्वागत करेगी. मगर अब तो लगता ही नहीं कि कभी ऐसा हो पाएगा.

उस दिन आदिल का मूड कुछ रोमांटिक सा था. बिस्तर पर लेटते ही उसने अर्शी को बांहों में जकड़ा और बोला, ‘अब हमें फैमिली बढ़ाने की सोचनी चाहिए. तुम किसी लेडी डॉक्टर से मशवरा क्यों नहीं करती, आखिर कब तक इंतजार करोगी?’

अर्शी उसकी बात सुन कर खामोश ही रही. आदिल अपनी रौ में बोलता रहा, ‘देखो, मैं बहुत आजाद ख्याल का आदमी हूं. तुम इलाज के चक्कर में अगर नहीं पड़ना चाहती तो हम बच्चा गोद भी ले सकते हैं.’

अर्शी को खामोश देखकर उसे खीज सी हुई. ‘कुछ तो कहो…’ उसने उसकी चुप्पी पर खिसियाते हुए कहा.

‘मुझे बच्चा नहीं चाहिए.’ अर्शी ने धीरे से जवाब दिया. आदिल इस जवाब पर चौंक कर उठ बैठा. अर्शी के चेहरे की ओर उसने गौर से देखा और पूछा, ‘बच्चा नहीं चाहिए? क्यों? फिर शादी क्यों की तुमने?’ उसकी आवाज कठोर हो गयी.

‘अपना घर बनाने के लिए शादी की थी. क्या पता था कि घर नहीं, होटल मिलेगा. जहां हर चीज चमचमाती हुई होगी. करीने से रखी हुई कि मैं उसे हिला भी न सकूं.’ अर्शी ने धीरे से जवाब दिया.

‘क्या… मतलब क्या है तुम्हारा? ये घर नहीं होटल है?’ आदिल चिल्लाया.

‘हां, होटल ही है… चमचमाता हुआ होटल… कभी देखा है उन घरों को जहां बच्चे होते हैं… कैसे होते हैं वह घर… वहां हर तरफ खिलौने बिखरे होते हैं, चॉकलेट-टॉफियां बिखरी पड़ी रहती हैं. घर वह होता है जहां बच्चों की किताबें पड़ी होती हैं…  उनके कपड़े यहां वहां सूख रहे होते हैं… कहीं वह खेल रहे होते हैं… कहीं खाना खा कर फैला रहे होते हैं तो कहीं पॉटी करके बैठे होते हैं… वो होता है घर, जहां जिन्दगी होती है, जहां हलचल होती है, शोर-शराबा, हंसी-मजाक होता है… ऐसा नहीं जैसा यहां है… फिनाइल की महक से भरा सन्नाटा… सिर्फ सन्नाटा… अंदर भी और बाहर भी… मुझे होटल में बच्चा पैदा नहीं करना है… तुम चाहो तो मुझे तलाक दे दो…’

आदिल बिस्तर पर सन्न बैठा था और अर्शी को आज इतने सालों बाद यह सच्चाई कहने के बाद बहुत हल्का महसूस हो रहा था. यह बात आदिल से कह पाने की हिम्मत उसमें आयी थी तलाक का कठोर फैसला लेने के बाद. आदिल को उसी हाल में छोड़कर वह छत पर चली गयी. आखिरी बार इस होटल के ऊपर का आकाश देखने के लिए क्योंकि कल सुबह उसे वहां से उड़ जाना था.

Mother’s Day 2023- एक और बेटे की मां: क्यों आया काम छोड़कर भाग गई?

मुन्ने के मासूम सवाल पर जैसे वह जड़ हो गई. क्या जवाब दे वह…? सामने वाले फ्लैट में ही राजेशजी  अपनी पत्नी रूपा और मुन्ना के साथ रहते हैं. इस समय दोनों ही पतिपत्नी कोरोना पौजिटिव हो अस्पताल में भरती हैं. उन का एकलौता बेटा किशोर अपनी आया के साथ था.

आज वह आया भी वहां से काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं. और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या समझा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर का छोटा ही है.

“मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, “अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.”“जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,” वह बोल रहा था, “आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?”

“अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.”“उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्न फ्लैक्स बहुत पसंद है.”

“ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मुझे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.” “वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.”

“ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मुझे किचन में बहुत काम है. कामवाली भी नहीं आ रही है.” “मगर, मुझे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.”

“ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वह कंप्यूटर पर बैठे अपने औफिस का काम कर रहे होंगे,” उस ने उसे टालने की गरज से कहा, “ तब मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.”

किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा… कैसे अकेले रहता होगा…? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.

पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिन पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दिया जा रहा है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. भगवान करे कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. ये राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.

वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वह एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी  है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद ये भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता. रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से भी किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमेंट में आमनेसामने रहने की वजह से वह मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती. और न ही उसे बुला पाती है.

शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला, “आंटी, अस्पताल से फोन आया था,” घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, “उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ समझा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?”

वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाए कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले काल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, “बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं  है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.”

वह थोड़ी आश्वस्त हुई. उधर मुन्ना बातें करते हुए किशोर के साथ दूसरी ओर चला गया था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी.  फोन अस्पताल से ही था. उस ने फोन उठा कर ‘हलो’ किया, तो उधर से आवाज आई, “आप राकेशजी के घर से बोल रही हैं?”

“नहीं, मैं उन के पड़ोस से बोल रही हूं,” वह बोली, “सब ठीक है न?” “सौरी मैम, हम मिसेज रूपा को बचा नहीं सके. एक घंटा पहले ही उन की डेथ हो गई. आप उन की डैड बौडी लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने यहां आ जाएं,” यह सुन कर उस का पैर थरथरा सा गया. यह वह क्या सुन रही है…

नीरज ने आ कर उसे संभाला और उस के हाथ से फोन ले कर बातें करने लगा था, “कहिए, क्या बात है?” “अब कहना क्या है?” उधर से पुनः वही आवाज आई, “अब डेड बौडी लेने की औपचारिकता रह गई है. आप आ कर उसे पूरा कर दीजिए.”

“सौरी, हम इस संबंध में कुछ नहीं जानते,” नीरज बोल रहे थे, “मिसेज रूपा के पति राकेशजी आप ही के अस्पताल में कोरोना वार्ड में एडमिट हैं. उन से संपर्क कीजिए.”

इतना कह कर उन्होंने फोन काट कर प्रश्नवाचक दृष्टि से शोभा को देखा. शोभा को जैसे काठ मार गया था. बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला, तो नीरज बोले, “एक नंबर का अहंकारी है राकेश. ऐसे आदमी की मदद क्या करना. कल को कहीं यह न कह दे कि आप को क्या जरूरत थी कुछ करने की. वैसे भी इस कोरोना महामारी के बीच बाहर कौन निकलता है. वह भी उस अस्पताल में जाना, जहां वैसे पेशेंट भरे पड़े हों.”

तब तक किशोर उन के पास चला आया और पूछने लगा, “मम्मीपापा लौट के आ रहे हैं न अंकल?” इस नन्हे, अबोध बच्चे को कोई जवाब दे? यह विकट संकट की घड़ी थी. उसे टालने के लिए वह बोली, “अभी मैं तुम लोगों को कुछ खाने के लिए निकालती हूं. पहले कुछ खा लो.”

“मुझे भूख नहीं है आंटी. मुझे कुछ नहीं खाना.” “कैसे नहीं खाना,” नीरज द्रवित से होते हुए बोले, “मुन्ना और श्वेता के साथ तुम भी कुछ खा लो.” फिर वह शोभा से बोले, “तुम किचन में जाओ. तब तक मैं कुछ सोचता हूं.”

वह जल्दी में दूध में कौर्न फ्लैक्स डाल कर ले आई और तीनों बच्चों को खाने को दिया. फिर वह किशोर से मुखातिब होते हुए बोली, “तुम्हारे नानानानी या मामामौसी होंगे न. उन का फोन नंबर दो. मैं उन से बात करती हूं.”

“मेरी मम्मी का कोई नहीं है. वे एकलौती थीं. मैं ने तो नानानानी को देखा भी नहीं.” “कोई बात नहीं… तो फिर दादादादी, चाचाचाची तो होंगे,” नीरज उसे पुचकारते हुए बोले, “उन का ही फोन नंबर बताओ.”

“दादादादी का भी देहांत हो गया है. एक चाचा  हैं. लेकिन, वे अमेरिका में रहते हैं. कभीकभी पापा उन से बात करते थे.” “तो उन का नंबर निकालो,” वह शीघ्रता से बोली, “हम उन से बात करते हैं.” किशोर ने मोबाइल फोन में वह नंबर ढूंढ़ कर निकाला. नीरज ने पहले उसी फोन से उन्हें डायल किया, तो फोन रिंग ही नहीं हुआ.

“यह आईएसडी नंबर है. फोन कहां से  होगा,” कह कर वह झुंझलाए, फिर उस नंबर को अपने मोबाइल में नोट कर फोन लगाया. कई प्रयासों के बाद वह फोन लगा, तो उस ने अपना परिचय दिया, “आप राजेशजी हैं न, राकेशजी के भाई. मैं उन का पड़ोसी नीरज बोल रहा हूं. आप के भाई और भाभी दोनों ही कोरोना पौजिटिव हैं और अस्पताल में भरती हैं.”

“तो मैं क्या करूं?” उधर से आवाज आई. “अरे, आप को जानकारी दे रहा हूं. आप उन के रिश्तेदार हैं. उन का बच्चा एक सप्ताह से फ्लैट में अकेला ही रह रहा है.”

“कहा न कि फिर मैं क्या करूं,” उधर से झल्लाहट भरी आवाज आई, “उन लोगों ने अपने मन की करी, तो खुद भुगतें. अस्पताल में ही भरती  हैं ना. ठीक हो कर वापस लौट आएंगे.”

नीरज ने शोभा को इशारा किया, तो वह उन का इशारा समझ बच्चों को अपने कमरे में ले गई. तो वह फोन पर उन से धीरे से बोले, “आप की भाभी की डेथ हो गई है.” “तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं अमेरिका में हूं. यहां भी हजार परेशानी हैं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता.”

“अरे, कुछ कर नहीं सकते, ना सही. मगर बच्चे को फोन पर तसल्ली तो दे लो,” मगर तब तक उधर से कनेक्शन कट चुका था.“यह तो अपने भाई से भी बढ़ कर खड़ूस निकला,” नीरज बड़बड़ाए और उस की ओर देखते हुए फोन रख दिया. तब तक किशोर आ गया था, “आंटी, मैं अपने घर नहीं जाऊंगा. मुझे मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो. वहीं मुझे जाना है.”

“तुम्हारी मम्मी अस्पताल में भरती हैं और वहां कोई नहीं जा सकता.” “तो मैं आप ही के पास रहूंगा.” “ठीक है, रह लेना,” वह उसे पुचकारती हुई बोली, “मैं तुम्हें कहां भेज रही हूं. तुम खाना खा कर मुन्ने के कमरे में सो जाना.”

बच्चों के कमरे में उस ने एक फोल्डिंग बिछा उस पर बिस्तर लगा कर उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, “मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वह घर पर हैं?”

“वह मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?” “मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन से मिल लें और रुपए ले आएं.”“मैं कहीं नहीं जाने वाला,” नीरज भड़क कर बोले, “जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल ये है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.”

वह एकदम उलझन में पड़ गई. ऐसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. “अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,” कहते हुए उस ने बत्ती बुझा दी.

सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, “तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?”“हां, वो विनोद अंकल हैं ना… उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?”

“ऐसा है किशोर बेटे कि तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.”

“हां… हां, वो डायरैक्टर हैं ना, वो जरूर पैसा दे देंगे,” इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, “ये रहा उन का मोबाइल नंबर.” उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.

“ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी के द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.”

“मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?” वह बोली, “अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे तो भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डेड बौडी को श्मसान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.”

“बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था ये काम संपन्न कर दे.”

लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, “विनोद साहब ने भिजवाया है. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डेड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.”

“लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.”

“रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,” वह बोला, “कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.”

“ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. ये प्रकृति का कैसा खेल  है.”

“अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर, जो हैं, वे तो बचे रहें.”

किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था. उसे कभीकभी किशोर पर तरस भी आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.

रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्चिंत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से पुनः फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, “हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?”

“घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,” उधर से आवाज आई, “उन से जरूरी बात करनी है.”

किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, “अंकल, आप का फोन है.”

“कहिए, क्या बात है?” वह बोले, “राकेशजी कैसे हैं?”

“ही इज नो मोर. उन की आधेक घंटे पहले डेथ हो चुकी है. मुझे आप को इन्फोर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.”

आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वह किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरजजी को देखा, तो घबरा गई.

“क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?” हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, “फिर कोई बात…”

“बेडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,” कहते हुए वह बेडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बेडरूम में आई, तो वह बोले, “बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डेथ हो गई.”

“क्या…?” वह अवाक हो कर बोली, “उस नन्हे बच्चे पर ये कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें…?”

“करना क्या है…? ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,” इतना कह कर वह विनोदजी को फोन लगाने लगे.

“हां, कहिए, क्या हाल है,” विनोदजी बोले, “बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?”

“बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,” वह उदास स्वर में बोले, “अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.”

“ओ माय गौड… यह क्या हो रहा है?”

“अब जो हो रहा है, वो हम भुगत ही रहे हैं. उन की डेड बौडी को आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?”

“ये बहुत बड़ा सवाल है सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.”

“सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? सवाल ये है कि बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी.

“अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा? मेरी पत्नी को  भी उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को समझते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.

“मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मुझे इस लायक समझा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मुझ को स्वीकार है.”

“धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बोझ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.

“मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बोझ न पड़े और वह बच्चा एक  जिम्मेदार नागरिक बने.”

नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है. और वह एक और बेटे की मां बन गई है.

Mother’s Day 2023: बच्चा जब लेना हो गोद

वे जमाने लद गए जब बच्चों को सिर्फ बांझपन की वजह से ही गोद लिया जाता था. जो बच्चे गोद लिए जाते थे वे भी परिवार के ही किसी सदस्य के होते थे. धीरेधीरे इन नियमों में बदलाव हुआ है. अब दंपती बच्चों को अनाथाश्रम से भी गोद लेने लगे हैं. हां, इस दिशा में एक नया चलन शुरू हुआ है, वह है ‘सिंगल पेरैंटिंग’ का. अब कोई भी अविवाहित पुरुष या स्त्री भी बच्चा गोद ले सकता है.

आजकल दंपती समय की कमी और काम के भार के चलते भी बच्चा गोद ले रहे हैं. इस से एक ओर जहां बच्चा घर आने से असीम सुख मिलता है वहीं समय और खर्चा भी कम आता है. बिजनैस ओरिएंटेड दंपती आजकल यही राह अपना रहे हैं. लेकिन कई बार वे आधीअधूरी जानकारी के चलते गलत एजेंसियों के झांसे में फंस जाते हैं. बच्चा मिलना तो दूर ये एजेंसियां उन से अच्छाखासा पैसा वसूल कर फरार हो जाती हैं. कई बार तो चोरी या अगवा किए बच्चों को आप के हाथों सौंप दिया जाता है.

जब बच्चा गोद लेना हो, तो समय का तकाजा कहता है कि उतावलेपन को छोड़ कर समझदारी से काम लिया जाए. इस के कानूनी और भावनात्मक सभी पक्षों को ध्यान से परखना जरूरी है. एक छोटी सी गलती जिंदगी भर के लिए मुसीबत बन सकती है.

तैयार करें खुद को

सब से ज्यादा जरूरी बात यह है कि आप मानसिक तौर पर बच्चा गोद लेने के लिए पूरी तरह तैयार हों. आप के साथसाथ आप का परिवार भी इस बात के लिए सहमत हो. अगर पहले से ही आप के बच्चा है तो उसे भी इस के लिए तैयार करें. उसे इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार करें कि घर पर आने वाला नया सदस्य उस के प्यार को बांटने नहीं, बल्कि उसे और प्यार करने आ रहा है.

वर्ष 1985 में खुद के बच्चों वाले 44 परिवार, गोद लिए बच्चों वाले 45 परिवार और 44 ऐसे परिवार जिन में खुद के साथसाथ गोद लिए बच्चे भी रहते थे, पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि वह परिवार जहां सिर्फ गोद लिए बच्चे रहते हैं, उन परिवारों से ज्यादा खुश थे जहां अपने बच्चे के साथ गोद लिए बच्चे रहते हैं. इसलिए खुद को तैयार करना जरूरी हो जाता है ताकि भविष्य में किसी तरह के तनाव का सामना न करना पड़े. इस के बाद ही बच्चे को गोद लेने जैसा महत्त्वपूर्ण कदम उठाएं.

एजेंसी न हो फर्जी

अकसर कई लोग फर्जी एजेंसी बना कर चोरी या अगवा किए गए बच्चों को गोद दे देते हैं. ऐसे में आप को बाद में नुकसान उठाने के साथ ही साथ बच्चे को भी खोना पड़ सकता है. इस बात की जांच कर लें कि जिस एजेंसी से आप बच्चा गोद लेने की सोच रहे हैं वह लाइसैंसधारक है. सुप्रीम कोर्ट के वकील शिवेंद्र का कहना है कि 200 से ज्यादा एजेंसियां ऐसी हैं, जो बच्चे गोद देने का अधिकार रखती हैं.

कागजात रखें तैयार

जब भी एजेंसी से संपर्क करें, तो कागजात के बारे में पूरी जानकारी जरूर ले लें. इन्हें पहले से ही तैयार रखें, ताकि गोद लेने की प्रक्रिया के दौरान ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े :

द्य  बच्चा गोद लेने के लिए एजेंसी को पूरे परिवार के साथसाथ, अगर पहले से कोई बच्चा है, तो उस की भी फोटो देनी पड़ती है.

द्य फोटो के साथ आप के आयु प्रमाणपत्र की भी मांग की जाती है. इस से लाभ यह होता है कि आप के लिए सही आयु वर्ग का बच्चा चुना जा सकता है. अकसर अधिक आयु वाले अभिभावकों को बड़े बच्चे दिए जाते हैं. इस से अभिभावक और बच्चे दोनों को सुविधा होती है.

द्य  बच्चा गोद लेने के लिए आप के पास अपने स्थायी पते के साथ ही हाल में आप जहां निवास कर रहे हैं उस पते का प्रमाणपत्र भी मांगा जाता है.

द्य  बच्चा गोद लेने के पीछे बताए गए कारणों में मुख्य कारण अगर बांझपन है, तो इस के लिए भी प्रमाणपत्र देना पड़ता है. इस प्रमाणपत्र के तौर पर स्त्री या पुरुष जो भी इस के लिए जिम्मेदार हो, उसे अपनी मैडिकल रिपोर्ट जमा करानी होती है.

द्य  इस के अलावा बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी देना पड़ता है. इसी के साथ एचआईवी और हेपेटाइटिस बी के निरीक्षण वाली ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी देनी होती है. एक बात और जो ध्यान में रखना जरूरी है कि एचआईवी और हेपेटाइटिस बी की रिपोर्ट किसी विशेषज्ञ से लेनी जरूरी है.

विवाहित अगर बच्चा गोद ले रहे हों, तो उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होगा.

अगर आप तलाकशुदा हैं और

बच्चा गोद लेना चाहते हैं, तो भी आप को अपने तलाक के कागजात देने जरूरी होंगे.

बच्चे को गोद लेने के इच्छुक व्यक्ति से उस की चलअचल संपत्ति का स्टेटमैंट भी मांगा जाता है.

आप बच्चे की जिम्मेदारी उठाने लायक हैं, यह साबित करने के लिए आप को आय प्रमाणपत्र भी देना होता है.

एंप्लायमैंट लैटर के साथ वर्तमान में मिल रही तनख्वाह की पे स्लिप देनी पड़ सकती है.

अगर आप अपना बिजनैस करते हैं, तो आप से आईटी सर्टिफिकेट मांगा जाएगा.

साक्षात्कार लिया जाएगा

ये सारे कागजात जमा कराने के बाद भी आप को बच्चा गोद मिल जाएगा यह जरूरी नहीं है. कागज पूरे होने के बाद आप का साक्षात्कार लिया जाएगा. दरअसल, जो भी एजेंसी बच्चा गोद देती है, वह अपनी ओर से हर संभव प्रयास करती है कि बच्चा किन्हीं सुरक्षित हाथों में ही जाए. इसलिए वह संभावित अभिभावकों के साक्षात्कार लेती है.

इस के बाद ही वह यह फैसला लेती है कि इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद देना चाहिए या नहीं. यह साक्षात्कार कई बार सिर्फ संभावित अभिभावक का या

फिर उस के पूरे परिवार का भी हो सकता है. यह निर्णय पूरी तरह से एजेंसी पर निर्भर करता है कि वह पूरे परिवार का साक्षात्कार एकसाथ लेती है या फिर एकएक सदस्य को बुला कर लेती है. इसी के साथ ही अगर एजेंसी चाहे तो वह परिवार के सदस्यों के अलावा उन के दोस्तों का भी साक्षात्कार ले सकती है.

इन सब पड़ावों के बाद जब एजेंसी पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती है तो वह सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर इच्छुक अभिभावकों के लिए बच्चे का चयन करती है. अभिभावक एजेंसी पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाल सकते कि उन्हें बच्चे को खुद चुनने दिया जाए. बच्चे का चुनाव पूरी तरह से एजेंसी के हाथों में ही होता है.

पहली मुलाकात

इस के बाद वह पल आता है जिस के लिए आप ने इतनी मेहनत की यानी अभिभावक को बच्चे से मिलाया जाता है. यह वह पल है, जब बच्चा अपने भावी अभिभावकों से पहली बार मिलता है. इसी दौरान अभिभावक को बच्चे के सभी स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी दे दिए जाते हैं. अगर अभिभावक अपनी संतुष्टि के लिए बच्चे का अपने डाक्टर से चैकअप करवाना चाहते हैं तो वे इस के लिए उसे अपने साथ ले जाने का हक रखते हैं.

और बच्चा हो गया आप का

इन प्रक्रियाओं के बाद इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद लेने के लिए कोर्ट में एक अर्जी देनी पड़ती है. भारतीय कानून के हिंदू अडौप्शन ऐंड मेंटेनैंस एक्ट, 1956 के तहत सिर्फ हिंदू ही बच्चा गोद ले सकते थे, लेकिन अब दूसरे धर्म के लोग भी गार्जियन ऐंड वार्ड एक्ट, 1890 के तहत अर्जी दे कर बच्चा गोद ले सकते हैं. साल 2000 से ईसाइयों को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल गया है.

एजेंसी का फौलोअप

इन सब परेशानियों का सामना करने के बाद अंत में आप के परिवार को एक नया और प्यारा सदस्य तो मिल गया, लेकिन एजेंसी की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती. जब बच्चा अपने घर पहुंच जाता है, तो एजेंसी के लोग निरंतर उस से मिलने आते रहते हैं. इस से एक तो एजेंसी को बच्चे की पूरी जानकारी रहती है, दूसरा बच्चा भी सहज महसूस करता है.

एजेंसी तो अपनी पूरी तसल्ली कर लेती है, लेकिन बच्चा गोद लेते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है. इन्फैंट बेबी सिर्फ 25 से 39 वर्ष तक की उम्र के दंपती को दिए जाते हैं. इस से अधिक आयु के बच्चे 40 से 46 उम्र के व्यक्ति को गोद दिए जाते हैं. जिन अभिभावकों के पास पहले से ही 2 बच्चे होते हैं उन्हें किसी एक अभिभावक की जिम्मेदारी पर बच्चा दिया जाता है. अगर आप शादीशुदा हैं तो शादी के कम से कम 2 साल पूरे होने के बाद ही बच्चा गोद ले सकते हैं.

गोद लेने के बाद बच्चे का मूल जन्म प्रमाणपत्र लेना न भूलें. अगर बच्चा मांबाप से गोद ले रहे हैं, तो इस बात का भी खयाल रखें कि पहले वाले मांबाप के पेरैंटल राइट खत्म करवाने के बाद ही बच्चे को गोद लें. अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप कानून के जानकार से मदद लेना न भूलें.

Father’s Day 2023: मेरे पापा सिर्फ आप हैं- भाग 4

‘फिर अब आप क्यों आये हैं? आप क्यों यह बातें मुझे बता रहे हैं? क्या आप आशीष को वापस पाना चाहते हैं? या उसे यह सब बता देना चाहते हैं? प्लीज ऐसा मत करिएगा…’ संजीव की आवाज थरथराने लगी.

डॉ. अभय तुरन्त उठ कर उनके पास आये और उसके कन्धे पर हाथ रख कर वहीं सोफे पर बैठ गये, बोले, ‘अरे,  नहीं, नहीं… आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं सिर्फ अपने दिल के हाथों विवश होकर कल रागिनी की तेरहवीं में आया था. मन में यह इच्छा भी थी कि इस बहाने से एक नजर अपने बेटे को देख सकूं. सो देख लिया.  मेरा उस पर कोई अधिकार नहीं है, आपने उसको पाला है, उसे प्यार दिया है, उसका भविष्य बनाया है, वह आपका ही है और हमेशा रहेगा. मैं तो बस एक चाह लेकर आया था आपके पास…’

‘कैसी चाह?’ संजीव ने जल्दी से पूछा.

‘संजीव, मैंने शादी नहीं की है और न ही मेरी सम्पत्ति का भारत में कोई वारिस है. पुराने शहर में मेरा जो अस्पताल और घर है, वह मैं आशीष के नाम करना चाहता हूं. आशीष डॉक्टर बनने वाला है, यह मैं जानता हूं. मुझे उम्मीद है तुम इसके लिए न नहीं कहोगे. मैं अपनी विल बनाकर तुमको दे जाऊंगा. तीन साल बाद मैं अमेरिका अपनी बड़ी बहन के पास शिफ्ट हो जाऊंगा. मैं वहां एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने की इच्छा रखता हूं. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम कब और कैसे आशीष को इस विल के बारे में बताओ.’

संजीव यह सब सुन कर सन्न बैठे थे. उनको समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस औफर को वह सौगात समझें या मुसीबत. वह क्या कहेंगे आशीष से कि अभय उसका कौन है? क्यों वह अपनी करोड़ों की प्रॉपर्टी आशीष को दे रहा है? क्या आशीष यह सब जान कर सहज रह पाएगा? कहीं वह मुझसे दूर तो नहीं हो जाएगा? कहीं वह अपने असली पिता के साथ रहने की जिद तो नहीं कर बैठेगा? अगर ऐसा हुआ तो मेरा क्या होगा? बुढ़ापे में मैं बिल्कुल अकेला हो जाऊंगा… यह सब सोच कर संजीव कांप उठे.

बोले, ‘मैं… मैं आपको सोच कर जवाब दूंगा…’

डॉ. अभय ने ठंडी सांस ली और उठ खड़े हुए. जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर उन्होंने संजीव के हाथ पर रखा और बोले, ‘उम्मीद है आप मुझे गलत नहीं समझेंगे. आप सोच लें तो मुझे फोन कर लीजिएगा. मुझे आपके जवाब का इन्तजार रहेगा. मेरे यहां आने का आशय आपको या आशीष को दुख पहुंचाने का हरगिज नहीं था. आशीष भले मेरा खून है, मगर उसके पिता आप हैं. वह सिर्फ आपका ही है. मैं तो बस उसे एक नजर देखना भर चाहता था.’ कहकर डॉ. अभय ने हाथ जोड़ दिये. संजीव ने उनके जुड़े हुए हाथ थाम लिये. आंखें आंसुओं से भीग गयीं. डॉ. अभय चले गये.

संजीव के दिमाग में विचारों की आंधी चल रही थी. आशीष को क्या बताएं? कैसे बताएं? बताएं कि न बताएं? वह किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहे थे. शाम हो गयी थी. आशीष भी उठ गया था. संजीव उसके कमरे में पहुंचे तो वह पुराने एल्बम में खोया हुआ था. संजीव ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और पलंग पर उसकी बगल में बैठ गये. एल्बम में आशीष के बचपन से लेकर ग्रेजुएशन तक की फोटोज थीं. दो चार पन्ने पलटने के बाद संजीव अचानक एक फोटो को गौर से देखने लगे. उस फोटो में सब लोग ड्राइंग रूम में टीवी के सामने बैठे थे. नन्हा आशीष रागिनी की गोद में था, बगल में मां और संजीव बैठे हंस रहे थे. उस फोटो पर हाथ फेरते हुए संजीव बोले, ‘बेटा, जब तुम्हारी मां से मेरी शादी हुई थी तब पहली बार हमारे घर पर रंगीन टीवी आया था. यह वही टीवी है. तुम्हारे नानाजी ने दिया था. उन दिनों महाभारत सीरियल आया करता था. हम सब बड़े शौक से देखते थे. इसी टीवी से मुझे महाभारत की कथाओं का ज्ञान मिला था. तुम्हें पता है धृतराष्ट्र और पांडु अपने पिता विचित्रवीर्य के पुत्र नहीं थे, बल्कि उनके बड़े भाई वेद व्यास के पुत्र थे, जो संन्यासी हो चुके थे. विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद उनकी माता सत्यवती ने उनके बड़े भाई वेद व्यास से आग्रह किया था कि वह उनकी दोनों बहुओं को गर्भवती करें. अपनी मां के कहने पर वेद व्यास ने उनकी दोनों बहुओं को गर्भवती किया था. वास्तव में धृतराष्ट्र और पांडु वेद व्यास के पुत्र थे, मगर माने गये विचित्रवीर्य के. इसी तरह पांडु के पांचों बेटे भी उनके अपने पुत्र नहीं थे, बल्कि पांच अलग-अलग शक्तियों के संसर्ग से उत्पन्न हुए थे. मगर माने गये पांडु के ही बेटे…’

‘हां, मुझे यह कहानी पता है पापा. हमारे देश का इतिहास, हमारे धर्मग्रन्थ बताते हैं कि पहले के जमाने में इन बातों को पाप नहीं माना जाता था, इस तरह के सम्बन्ध समाज में पूरी तरह स्वीकार्य थे. जरूरी नहीं था कि किसी बच्चे का पिता वही हो, जिससे उसकी मां ने शादी की हो. आज भी ऐसी प्रथाएं कई समाजों में हैं. बच्चा पाने के लिए शादीशुदा स्त्री दूसरे पुरुष से सम्बन्ध बनाने के लिए आजाद है. कई समाजों में तो शादी से पहले शारीरिक सम्बन्ध बनाना और बच्चे पैदा करना आवश्यक है. उसके बिना वे शादी ही नहीं करते. धरती पर जीवन को चलते रहने के लिए बच्चों का पैदा होना जरूरी है. अब आप देखिये आईवीएफ पद्धति के अन्तर्गत हम कभी-कभी दूसरे पुरुष का वीर्य लेकर औरत को गर्भवती बनाते हैं. इसमें कोई अपराध नहीं है. हर इन्सान चाहता है कि उसके घर में बच्चे हों, खुशियां आयेंं.’

‘हां, पर…! ’ संजीव कुछ कहते-कहते रुक गये.

‘पर क्या पापा?’ आशीष ने पूछा.

‘जब बच्चे को पता चलता होगा कि उसका असली पिता कौन है, तब उसका दिल बंट जाता होगा.’ संजीव मायूसी से बोले. ‘अरे पापा, ऐसा कुछ नहीं होता है. पैदा करना कोई बड़ा काम नहीं है. बच्चे को पालने वाला, उसे प्यार देने वाला,उसका भविष्य बनाने वाला ही उसका पिता होता है. यह जानते हुए भी कि बच्चे में उसका डीएनए नहीं है, फिर भी उसे दिल से लगा कर रखना बड़ी बात है. उस प्यार के आगे दुनिया की हर नियामत छोटी है.’

‘तुम ऐसा मानते हो बेटा?’ संजीव ने उत्सुकता से पूछा.

‘हां पापा बिल्कुल. आखिर भगवान कृष्ण भी तो बाबा नन्द और मां यशोदा को ही अपना माता-पिता मानते थे, भले उनके असली पिता वासुदेव और मां देवकी थे. पैदा करने वाले से पालने वाला बड़ा होता है.’ कहते हुए आशीष बिस्तर से उठ खड़ा हुआ. बाथरूम के दरवाजे की ओर बढ़ते हुए अचानक पलट कर बोला, ‘पापा, वो जो कल अंकल आये थे, वह आज आने के लिए कह रहे थे न?’

‘हां, वो आये थे, जब तुम सो रहे थे.’ संजीव ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

‘अच्छा! वो कुछ बताना चाहते थे न पापा?’ आशीष ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘हां’

‘क्या बताना चाहते थे?’

‘यही कि वह तुम्हारे पिता हैं…’

कमरे में सन्नाटा पसर गया. संजीव सिर झुकाये बिस्तर पर बैठे थे और आशीष के कदम जैसे बाथरूम के दरवाजे पर ही चिपक गये थे. अचानक आशीष ने आगे बढ़कर पापा का सिर अपने सीने में भींच लिया और थरथराती आवाज में बोला, ‘मेरे पापा सिर्फ आप हैं… सिर्फ आप…’

आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और संजीव की सारी शंकाएं इस सैलाब में बह गयीं.

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