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मेरी गर्लफ्रेंड ने मुझसे ब्रेकअप कर लिया है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी और मेरी गर्लफ्रैंड की आपस में काफी अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी. मेरी सारी बातें मानती थी वह लेकिन कालेज के बाद आगे की स्टडीज के लिए 2 वर्षों के लिए वह मुंबई चली गई. वहां से आने के बाद हमारे बीच पहले जैसी बात नहीं रही और आखिरकार एक दिन उस ने खुद अपने मुंह से बोल दिया कि वह ब्रेकअप कर रही है.

मैं बहुत इगोइस्टिक लड़का हूं. उस ने बोला और मैं ने बिना कोई सवाल किए ओके बोल दिया. बेशक घर आ कर मैं अपने कमरे में देर तक रोता रहा. इस बात को हुए 2 महीने हो चुके हैं. मैं उसे अकसर याद कर बहुत अकेला महसूस करता हूं. लेकिन वह इन 2 महीनों में बहुत आगे निकल गई है. मु?ो नहीं लगता कि वह मु?ो याद भी करती है. ऐसा क्यों होता है कि लड़कियां जल्दी ही मूवऔन हो जाती हैं जबकि हम लड़के उन्हें याद कर के अपना जीना मुहाल कर लेते हैं. कोई तो वजह होगी?

जवाब

वैसे आप के साथ अच्छा तो नहीं हुआ है कि आप की गर्लफ्रैंड ने आप से ब्रेकअप कर लिया है. आप ने उस से वजह नहीं पूछी. खैर, अब पूछने का कोई फायदा भी नहीं क्योंकि आप की गर्लफ्रैंड ने जब अपने मुंह से खुद बोला है कि वह ब्रेकअप चाहती है तो आप वजह जान कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. जब लड़की किसी के साथ रहना चाहती है तो वह पूरी कोशिश करती है कि रिश्ता बना रहे. वह अपनेआप को उस रिश्ते को बनाए रखने के तमाम मौके देती है. लेकिन जब वह ऐसी सिचुएशन पर होती है कि उसे उस रिश्ते से अब आगे बढ़ना है, मूवऔन करना है तो वह फिर पलट कर नहीं देखती है.

आप की गर्लफ्रैंड को आप दोनों के रिश्ते में कुछ बचा हुआ नहीं दिख रहा था. उसे आगे बढ़ना ही था. यही एक आखिरी औप्शन उस के पास था और यही वजह है कि अब जब उस ने आप से मूवऔन किया है तो वह पीछे मुड़ कर नहीं देख रही.

इसलिए आप भी खुद को इस भ्रम से बाहर निकाल लीजिए कि वह वापस आप के पास आएगी. दुखी होना छोडि़ए. आप भी आगे की ओर देखिए और बढि़ए. आप की अभी उम्र ही क्या है. जिंदगी में बहुत औप्शन मिलेंगे. बस, उन्हें कब और कैसे हासिल करना है, उस पर फोकस कीजिए. हार कर बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

Mother’s Day 2023: बेटी को बेटी ही रहने दें

‘तुम ने नीना और नेहा दोनों को  ही बहुत बिगाड़ दिया है. इतनी देर हो गई है लेकिन अभी तक घर नहीं लौटी हैं. जमाना खराब है और ये दोनों इतनी रात तक बाहर रहती हैं. तुम्हारा तो डर ही नहीं है उन्हें,’’ चिंतित स्वर में उर्मिला ने अपने पति से कहा तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम नाहक ही फिक्र करती हो, वे हमारी बेटियां नहीं, बेटे हैं.’’

‘‘बेटे नहीं हैं, इसीलिए तो यही सब कह कर तुम ने उन को इतनी छूट दे रखी है. उन्हें बेटे की तरह पाला अवश्य है हम ने पर यह मत भूलो कि वे हैं तो बेटियां ही.’’

‘‘मेरी बेटियां एकदम बोल्ड हैं. मु?ो उन की चिंता नहीं है.’’ ‘‘बोल्ड ही नहीं, वे गुस्सैल भी तो हैं,’’ उर्मिला बोलीं.

तभी नीना और नेहा आ गईं और अपने दिनभर के किस्से अपने पापा को सुनाने लगीं. उन की बातें सुन कर लग रहा था कि उन के पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है. उर्मिला ने उन्हें कुछ कहना चाहा तो वे एकदम भड़क गईं, ‘‘क्या है मां आप को. हर समय टोकती रहती हो. फ्रैंड्स के साथ पिकनिक पर गए थे, देर तो लगनी ही थी. अब मेरा मूड औफ मत करो,’’ नीना जोर से चिल्लाई.

‘‘और क्या, पापा कुछ कहते हैं कभी. आप को उन से कुछ सीखना चाहिए,’’ नेहा भी कहां चुप रहने वाली थी.

उर्मिला परेशान सी अंदर चली गईं, लेकिन वे अपनी बेटियों के व्यवहार से बहुत कुपित थीं. उन्हें इसी बात का डर था कि वे दोनों आगे चल कर अपने वैवाहिक जीवन या नौकरी में कैसे एडजस्ट कर पाएंगी. उन का गुस्सा और बातबात पर भड़क उठना उन के जीवन में परेशानियां खड़ी कर सकता था. उन की जिद कहीं गलत फैसले लेने को मजबूर न कर दे, यह डर उन्हें हमेशा सताता रहता था.

बिंदास हो जाती हैं

जिन के बेटे नहीं होते, अकसर ऐसे मातापिता अपनी बेटियों में ही बेटे  तलाशने लगते हैं और उन की सोच फिर धीरेधीरे वैसी ही बन जाती है. अत्यधिक लाड़प्यार और छूट मिलने के कारण बेटियां मनमानी पर उतर आती हैं. बेटों जैसे बिहेव करने के चक्कर में बिंदासपन उन के अंदर आ जाता है. स्कूलकालेज, नौकरी यहां तक कि शादी के बाद भी उन के अंदर का बिंदासपन, छोटीछोटी बातों पर लड़ने लग जाना और अपनी बात मनवा कर छोड़ना, उन की आदत और स्वभाव बन जाता है. स्कूलकालेज में बेशक उन की इस बोल्डनैस को मांबाप बहुत खुशी से स्वीकार लेते हैं और उन्हें अच्छा लगता है कि उन की बेटियां किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम हैं लेकिन यही बोल्डनैस उस समय उन्हें भारी पड़ने लगती है जब वे औफिस में दूसरे सहयोगियों के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पातीं. विवाह होने के बाद भी उन्हें लगता है कि ससुराल में या पति के साथ एडजस्ट करना उन के लिए मुमकिन नहीं है और अकसर, बात अलगाव तक पहुंच जाती है.

पियर प्रैशर भी है कारण

ऐसी लड़कियां जिन के भाई नहीं होते, वे जब अपनी फ्रैंड्स के भाइयों को देखती हैं तो उस कमी को भरने के लिए स्वयं लड़कों जैसा व्यवहार करने लगती हैं. ‘तेरा तो कोई भाई ही नहीं है’, यह बात अकसर उन्हें चुभ जाती है और वे लड़कों की नकल करने लगती हैं. कई बार तो ये लड़कियां अपनी फ्रैंड्स को इस तरह प्रोटैक्ट करने लगती हैं जैसे कि कोई भाई करता है. हर चीज में ये आगे रहती हैं, फिर चाहे टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े होना हो या कालेज टीम की कप्तानी करनी हो. लड़कों की ही तरह कपड़े भी पहनने लगती हैं और कई बार तो उन का अंदाज और चाल भी वैसी ही हो जाती है.

पियर प्रैशर यानी साथियों के दबाव की वजह से वे यह जताने में लगी रहती हैं कि वे भी किसी से कम नहीं हैं और अपनी सुरक्षा खुद कर सकती हैं. पियर प्रैशर उन पर कई बार इतना अधिक हो जाता है कि वे कुंठित हो जाती हैं. ‘हमारा कोई भाई नहीं है’, जब वे यह बात अपने मातापिता से कहती हैं तो वे गर्व से सीना फुला कर कहते हैं कि अरे, तो क्या हुआ, तुम को तो हम ने लड़कों की तरह पाला है. तुम क्या किसी लड़के से कम हो. हमारा तो

बेटा हो तुम. यह सुन कर जब लड़की बड़ी होगी तो जाहिर है कि उस के अंदर लड़कों जैसे हावभाव ही नहीं बल्कि उन के जैसी सोच भी आ जाएगी और वह विरोध करने की भावना या चुनौती देने के लिए हमेशा तत्पर रहने लगेगी.

गलत फैसले ले लेती हैं

मातापिता अकसर बेटी पर बेटे होने का मुलम्मा चढ़ा कर उसे काफी हद तक गुस्सैल बनाने के जिम्मेदार होते हैं. पिता खासकर बेटे की कमी को भरने के लिए अपनी बेटियों को बेटा मान उन की गलतियों को नजरअंदाज करते रहते हैं. इस से वे बिगड़ती जाती हैं और हमेशा उन्हें लगता है कि वे जो कर रही हैं, सही कर रही हैं. दरअसल, भीतर ही भीतर वे एक तरह की कुंठा में भी जीने लगती हैं क्योंकि उन्हें हर समय खुद को प्रूव करने की होड़ सी लगी रहती है. पिता तो हर बात मान लेता है लेकिन क्या गारंटी कि पति भी हर बात माने या कुलीग भी उसे सह लें.

अकसर ये गुस्सैल बेटियां या बिगड़ी बेटियां अपनी जिंदगी के अहम फैसले बिना सोचेसम?ो या जल्दबाजी में ले बैठती हैं. किसी दूसरे से सलाह लेने में उन का ईगो आड़े आता है. नतीजा यह होता है कि बाद में न केवल उन्हें पछताना पड़ता है बल्कि अपनों का सहारा भी प्राप्त नहीं होता.

समझौता नहीं कर पातीं

मनमरजी चलाने वाली बेटियों को बेटा न होने की भरपाई करने के लिए जिस तरह बिगाड़ा जाता है, उस का परिणाम उन बेटियों के साथसाथ उन के मातापिता को भी भगुतना पड़ता है. ये इतनी बिगड़ैल और गुस्सैल हो जाती हैं कि किसी भी जगह सम?ौता करने को तैयार नहीं होतीं. वे चाहे गलत हों या सही, अपनी बात मनवाने का जनून उन पर सवार रहता है.

ऐसी लड़कियों के वैवाहिक जीवन को ले कर कोई गारंटी नहीं दी जा सकती. आखिर, पति या ससुराल वाले क्यों उन के बिगड़ैल स्वभाव को भगुतें. उन की बोल्डनैस शादी के बाद सब से ज्यादा दिक्कत करती है. हर बात में बहस करना चूंकि उन की आदत बन चुकी होती है इसलिए पति से भी उन की खटपट होती रहती है. पिता की दुलारी ये बेटियां कदमकदम पर अपने बिगड़ैल स्वभाव के कारण मात खाती हैं. एक समय ऐसा आता है जब ये अपने ही मातापिता की सलाह मानने से इनकार कर देती हैं.

बेटियों का जीवन आगे चल कर बर्बाद हो, बेहतर होगा कि मांबाप उन्हें बेटी ही बनी रहने दें. अगर आप के बेटा नहीं है तो भी लड़की को लड़की की ही तरह पालें और जो सीमाएं तय करनी हैं, वे वक्त रहते तय कर दें. बेटों की तरह उन से अपेक्षाएं रखने के बजाय बेटियों जैसी अपेक्षा रखें. ध्यान रहे कि आज बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं. वे बेटी हो कर भी मांबाप का खयाल रख सकती हैं. अपनी बेटियों को गुस्सैल या मनमानी करने वाली और गलत फैसले लेने वाली बनाने से अच्छा है कि उन्हें लड़कियों जैसे संस्कार दें ताकि वे अपनी जिंदगी को खूबसूरती से जी सकें.

बिन मां की बेटियां: भाग 1

राइटर- डा. कुसुम रानी नैथानी

सुबहसवेरे इशिता का फोन देख कर अनमने भाव से रजत ने काल रिसीव की.

“हैलो पापा, मैं इशिता बोल रही हूं. आज से ठीक 10 दिन बाद मैं कोर्ट मैरिज कर रही हूं. हो सके तो आप आशीर्वाद देने आ जाएं.”

उस की बात सुन कर रजत ने पूछा, “यह अच्छी बात है कि तुम अपना घर बसाने जा रही हो. परंतु लड़का क्या करता है?”

“अशरफ और मैं एक ही विभाग में समीक्षा अधिकारी हैं.“

”क्या तुम गैरधर्म में शादी कर रही हो?”

“जी. अशरफ बहुत अच्छा लड़का है. आप को उस से मिल कर अच्छा लगेगा.”

“उन लोगों से इस से ज्यादा उम्मीद भी क्या की जा सकती थी?” रजत गुस्से से बोले.

“इस रिश्ते से घर पर सब खुश हैं. आप की खुशी का मुझ पर ज्यादा असर नहीं पड़ता. सिर्फ बताने के लिए

मैं ने आप को फोन किया है.”

“उन के सिर से तो बहुत बड़ा बोझ उतर गया होगा.”

“मैं और दी उन के लिए नहीं आप के लिए बोझ थीं. उन्होंने हमेशा हम दोनों बहनों को पलकों पर बिठा कर रखा,” इतना कह कर इशिता ने फोन रख दिया.

रजत की बात सुन कर प्रज्ञा बौखला गई और बोली, “इन के नानानानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. हमारी पगड़ी उछालने का मौका मिल गया उन्हें. बिरादरी में कितनी बदनामी होगी हमारी? तुम उसे रोकते क्यों नहीं हो?”

“मेरे रोकने से वह नहीं रुकेगी. यह बात तुम भी समझती हो और मैं भी,” इतना कह कर वे बाहर चले गए.

रजत का मूड बहुत खराब था, लेकिन बात उन के हाथ से निकल चुकी थी.

इशिता के बगल में अमरनाथजी बैठे उन की बात सुन रहे थे. वे कुछ नहीं बोले. उन्हें रजत से इस से ज्यादा उम्मीद न थी. तभी रजत का फोन उन के मोबाइल पर आ गया. वह बोला, ”आखिर आप ने हम से इतने सालों का बदला ले ही लिया.”

“किस बात का बदला?”

“सिर से बोझ उतारने का बदला. आप को लगता है कि मैं ने अपनी बेटियों की जिम्मेदारी नहीं उठाई. इस घर से आप उन्हें ले गए थे, मैं ने उन्हें नहीं सौंपा था. आप ने उन्हें ऐसी शिक्षा दी कि उन्होंने बिरादरी में मेरी पर नाक कटा दी.”

“यह तुम्हारी सोच है, हमारी नहीं. हम ने इन्हें पढ़ालिखा कर इस काबिल बनाया है कि वह अपने निर्णय खुद ले सकें. अशरफ पढ़ालिखा  और समझदार है. सब से बड़ी बात यह कि वह इशिता को खुश रखेगा. इस से ज्यादा हमें कुछ नहीं चाहिए,” इतना कह कर अमरनाथजी ने फोन रख दिया.

रजत की बात सुन कर वे विचलित हो गए.

इतने बरसों में आज तक उन्होंने त्रिशाला के जाने के बाद अपनी पोतियों के लिए किया ही क्या था?

अपनी बेटी त्रिशाला को याद कर उन की आंखें भर आईं और वे अतीत में लौटने लगे.

अमरनाथ जमाने को देखते हुए बेटी की शादी जल्दी से जल्दी कर देना चाहते थे. त्रिशाला के  इंटर पास

करते ही अपनी बिरादरी में एक अच्छा लड़का देख कर अमरनाथजी ने तुरंत उस की शादी कर दी.

त्रिशाला पढ़ने में बहुत होशियार थी. उस का आगे पढ़ने का मन था, लेकिन बाबूजी की इच्छा के आगे उस की अपनी इच्छा गौण हो गई.

त्रिशाला के पति रजत एक कालेज में प्रवक्ता थे. वह शादी कर के ससुराल पहुंच गई. अमरनाथजी ने अपने सामर्थ्य से अधिक इस शादी में खर्चा किया था.

त्रिशाला की ससुराल में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. शादी के चार बरस के अंदर उस ने दो प्यारी

बेटियों को जन्म दिया था. रजत के घर वाले इतने संकुचित नहीं थे कि लड़की के होने पर शोक मनाते. उन्होंने खुश हो कर  बच्चों का स्वागत किया था. त्रिशाला अपनी बेटियों का बहुत खयाल रखती. देखते ही देखते वे दोनों पांच और तीन साल की हो गई थीं.

एक दिन अचानक सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ी की टक्कर से त्रिशाला बुरी तरह से जख्मी हो गई और अस्पताल पहुंचतेपहुंचते उस ने दम तोड़ दिया.

इस अप्रत्याशित घटना से सभी बौखलाए हुए थे. कुछ ही पल में रजत और त्रिशाला की खुशियां उजड़ गईं. रजत का तो रोरो कर बुरा हाल था.

रजत की मां अपनी पोतियों का मुंह देख कर पछाड़ें खा रही थीं.

अब इन बच्चों को कौन संभालेगा. अमरनाथ को तो जैसे सांप सूंघ गया था. इस दिन की तो उन्होंने जीतेजी कभी कल्पना भी नहीं की थी.

यह सब सुन कर वे जड़वत हो गए थे. किसी तरह हिम्मत जुटा कर वे रमा के साथ  बेटी की ससुराल पहुंचे थे. कहने को बहुतकुछ था, लेकिन वहां  के हालात देख कर उन के मुंह से बोल तक न फूट सके. मन में जो कुछ भी था, वह आंखों के रास्ते बह रहा था. बच्चों को देख कर  रमा का कलेजा फटा रहा था. तीन साल की इशिता और पांच साल की शलाका को समझ नहीं आ रहा था कि उन की मम्मी कहां चली गई? बड़ा साहस बटोर कर वे बोले, “आप इजाजत दें, तो कुछ दिन के लिए हम इशिता और शलाका को यहां से अपने साथ ले जाते हैं.

“समधीजी उन के लिए यही ठीक रहेगा, नहीं तो यहां के माहौल को देख कर बेचारी सदमे में आ जाएगी.”

शाम को वे दोनों नानानानी के साथ अपने ननिहाल चली आई. नन्ही बच्चियों को अपने साथ ला कर

अमरनाथजी को थोड़ा  संतोष हुआ. उन्हें उन में अपनी त्रिशाला की झलक दिखाई देती. उन्हें कुछ

समझ नहीं आ रहा था.  शलाका स्कूल जाने लगी थी. अमरनाथजी ने उसे यहीं पास की एक स्कूल में

दाखिला दिला दिया.

त्रिशाला इतना बड़ा घाव दे कर चली गई थी जो भरा तो नहीं जा सकता था, लेकिन

समय ने उस घाव पर मरहम जरूर लगा दिया था. वे दोनों नानानानी के घर में खुश थी. वे कभी अपनी मम्मी को याद करती प्रांजलि उन्हें बातों से बहला देती. वह इशिता और शलाका को बहुत प्यार करती थी. उस के साथ रह कर उन्हें मम्मी की याद कम ही सताती.

महीने गुजर रहे थे. रजत की मां नई बहू खोजने लगी थी. उन से भी अपने बेटे का दुख देखा नहीं जा रहा था.

जल्दी ही उन्होंने साधारण घर की प्रज्ञा से सादे ढंग से रजत की दूसरी शादी करा दी और वह उन के घर की बहू बन कर आ गई.

अमरनाथजी ने जब यह खबर सुनी तो उन्हें बुरा तो लगा, पर फिर दिल पर पत्थर रख कर उन्होंने परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया. रजत की अभी उम्र क्या थी. वह भी जानते थे अकेले मर्द के लिए जिंदगी काटना इतना आसान नहीं है और फिर उस पर दो बच्चियों की जिम्मेदारी भी तो थी.

शादी के एक महीने बाद रजत अपनी बेटियों से मिलने आए थे. बाबूजी ने ही पूछा, “प्रज्ञा कैसी है? उसे साथ नहीं लाए. ऐसे माहौल में मुझे उसे यहां लाना उचित नहीं लगा. बाबूजी फिर कभी ले आऊंगा.”

“तुम ठीक कहते हो बेटा. जब मैं बच्चों को छोड़ने आऊंगा, तब उस से मुलाकात भी कर लूंगा.

“बाबूजी एक बात कहनी थी…”

“कहो बेटा.”

“मैं चाहता हूं कि इशिता और शलाका अभी कुछ समय तक आप ही के पास रहे. प्रज्ञा अभी परिपक्व नहीं है. पहले मां के साथ घुलमिल ले. उस के बाद मैं बच्चों को आ कर यहां से ले जाऊंगा.”

“जैसी तुम्हारी मरजी. इशिता और शलाका तो हमारे पास तुम्हारी अमानत हैं. जितनी जल्दी अपनी नई मम्मी के साथ घुलमिल जाए उतना अच्छा है.

“आप ठीक कहते हैं,” रजत बोला. थोड़ी देर बातचीत कर रजत उसी दिन घर वापस लौट गया था. उस के बाद वहां कई महीनों तक वह नहीं आया. बस फोन से ही खबर लेता रहता और निश्चित समय पर उन के लिए रुपए भेज देता.

अमरनाथजी के लाख मना करने पर रजत नहीं माना, तो उन्होंने इशिता और

शलाका के नाम खाता खुलवा कर रजत के भेजे रुपए उसमें डाल दिए.

एक दिन अमरनाथजी ने ही फोन से पूछ लिया था, ‘रजत बेटा, तुम बच्चों को लेने कब आ रहे हो?”

“बाबूजी, प्रज्ञा के पांव भारी हैं. मुझे नहीं लगता कि ऐसी हालत में वह इशिता और शलाका के साथ अपना

खयाल रख पाएगी. सबकुछ ठीकठाक निबट जाए तो मैं आ कर उन्हें ले जाऊंगा.

शादी के सालभर के अंदर ही रजत के घर बेटा पैदा हुआ था. इशिता और शलाका ने सुना तो वह भी बहुत खुश हुई. रमा ने बताया था, “तुम्हारा भाई हुआ है.”

“सच नानी, हम उसे देखने कब जाएंगे?” शलाका बोली.

“अभी शिवांश बहुत छोटा है. कुछ दिन बाद उसे देखने चलेंगे,” रमा बोली, “उसे खुद भी छोटे बच्चे की

जिम्मेदारी के साथ इशिता और शलाका की जिम्मेदारी उस पर डालना अच्छा नहीं लग रहा था.”

अमरनाथजी बोले, “चलो, अच्छा हुआ. रजत का परिवार पूरा हो गया. जब छोटा सालभर का हो जाएगा, तो इन दोनों को भी

उन्हें सौंप कर हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे.”

छ: महीने और बीत गए.;अमरनाथजी रजत की राह देखते रहे, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता. ऐसे ही दो साल और गुजर जाए.

एक दिन रमा बोली, “मुझे नहीं लगता कि रजत इशिता और शलाका को अपने साथ रखना चाहता है. तुम्हें ही उसे सख्ती से बोलना पड़ेगा, वरना वह तो इस बात को टालता चला जा रहा है. दूसरी शादी उस ने बेटियों के लिए की थी, तो फिर उन्हें अपने साथ ले जाने में देरी क्यों कर रहा है?” अमरनाथजी को भी पत्नी की बात सही लगी थी.

उन्होंने रजत को फोन किया और बोला, “बेटा, अपनी अमानत जितनी जल्दी हो सके यहां से ले जाओ. अब तो प्रज्ञा भी उस घर में ठीक से एडजस्ट हो गई है और तुम्हारा बेटा भी दो साल का हो गया है .अब तो इन  इशिता और शलाका से प्रज्ञा को मदद ही मिलेगी.”

रजत अब बच्चों को ले जाने में आनाकानी न कर सका . मजबूरी में ही सही, उसे इशिता और शलाका को

लेने आना पड़ा. भरे दिल  से अमरनाथजी और रमा ने उन्हें विदा दी. प्रांजलि को भी उन के जाने का बहुत

बुरा लग रहा था, पर मजबूरी थी उन्हें विदा करते हुए अमरनाथजी बोले,

“त्रिशाला के जाने के बाद हम ने इशिता और शलाका की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी. तुम तो उस के

पिता हो. मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम उन्हें बहुत अच्छे ढंग से रखोगे.”

“बाबूजी आप निश्चिंत रहें. आप को शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा.”

प्रांजलि को उन के जाने का बहुत बुरा लग रहा था. इशिता और शलाका भी मौसी से अलग नहीं होना

चाहते थे, पर मजबूरी थी. रजत उन्हें अपने साथ ले कर  चले गए. बच्चों के जाते ही घर सूना हो गया था.

इशिता और शलाका के  आने से दादी तो खुश थीं, लेकिन प्रज्ञा को ऐसा लगा जैसे उन के आ जाने से रजत के प्यार में बेटे शिवांश के लिए कमी आ जाएगी.

घर आ कर दादी ने ही उन का परिचय नई मम्मी से कराया था. उन से मिल कर प्रज्ञा को ज्यादा खुशी नहीं

हुई थी और बच्चों को भी.

रात को वे दोनों दादी के पास आ कर सो गए थे.  प्रज्ञा ज्यादा समय अपने बेटे के साथ लगी रहती. दादीजी उन दोनों का खयाल रख रही थीं. चार दिन में ही उन की रंगत उतर गई थी. उन्हें यहां कोई पूछने वाला न था. रजत कुछ कहता तो प्रज्ञा तमक कर जवाब देती, “3-3 बच्चों को मैं एकसाथ नहीं संभाल सकती. अब ये बड़ी हो गई है. इन्हें अपना खयाल खुद रखना चाहिए.

रजत घर में किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं चाहता था. उस ने प्रज्ञा को कुछ बोलना छोड़ दिया.

इशिता और शलाका जब से गए थे, अमरनाथजी को उन की कोई खबर नहीं मिली थी. एक दिन अमरनाथजी रमा के साथ बच्चों से मिलने उन के घर पहुंच गए.

नानानानी को देखते ही वे दोनों उन से लिपट गए. शलाका बोली, “हमें अपने साथ ले चलो नाना.”

दावे और सच के बीच झूलती द केरला स्टोरी

द केरला स्टोरी (जीरो स्टार)

लव जिहाद पर बनी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ के रिलीज होने से पहले ही दावा किया गया था कि केरल में रहने वाली 32 हजार हिंदू और क्रिश्चियन लड़कियों का ब्रेनवाश कर उन्हें लव जिहाद में फंसाया गया और सीरिया भेजा गया, जहां उन के साथ ऐसीऐसी घटनाएं हुईं जो झकझोर कर रख देती हैं. व्हाट्सऐप पर इन संदेशों को खूब उछाला गया.

फिल्म पर रोक लगाने के लिए पहले हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट तक मामला जा पहुंचा. केरल हाईकोर्ट ने फिल्म पर रोक तो नहीं लगाई पर फिल्म के निर्माताओं को फिल्म में बताए तथ्यों को दुरुस्त करने के निर्देश दे दिए. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे सैंसर बोर्ड से जुड़ा मामला बता कर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

मसलन, फिल्म के निर्माताओं ने पहले 32 हजार लड़कियों के कन्वर्जन की बात को खूब प्रचारित किया जो कि गलत तथ्य निकला तो बाद में फिल्म के टीजर व अन्य जगहों से यह आंकड़ा हटा दिया गया और इसे केरल की 3 लड़कियों की कहानी बता कर डैमेज कंट्रोल किया गया. लेकिन इस पर कहीं कोई अफ़सोस जाहिर नहीं किया गया.

कोई फिल्म किसी केस स्टडी पर बन सकती है. केस स्टडी पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं. यह कोई अपवाद नहीं. इसलिए अगर इसे केस स्टडी भी मान कर चलें तो भी कोई बुराई नहीं.

पर सवाल इस के प्रेजेंटेशन पर है. धर्म परिवर्तन से ले कर महिलाओं संग ज्यादती और उन्हें आतंकी बनाए जाने की अगर कोई कहानी सामने रखनी है तो विशेष सावधानी बरते जानी की जरूरत होती है. खासकर तब जब परदे पर आप महिलाओं के साथ हुए हिंसक और बर्बर दृश्य दिखा रहे हों, जो किसी को भी विचलित कर सकते हैं.

यह फिल्म होस्टल में रहने वाली 4 युवतियों शालिनी (अदा शर्मा) जो कि फिल्म के केंद्र में है, निमाह (योगिता निहानी) जो ईसाई लड़की है, गीतांजलि (सिद्धि इदनानी) जो हिंदू है लेकिन धर्म से जुड़ाव नहीं है क्योंकि उस के पिता वामपंथी और नास्तिक हैं और वह भी अपने पिता के विचारों को मानती है. एक जगह कहती भी है कि, “मेरे पापा एथीस्ट हैं. वे कहते हैं, भगवानों ने नहीं, इंसानों ने रिलीजन बनाया है.”

इस के अलावा आसिफा है, जो इन तीनों लड़कियों को साजिश के तहत कन्वर्ट कराने की कोशिश करती है और उस का लिंक आईएसआईएस से है. इस में आसिफा शालिनी को फंसा कर सफल भी हो जाती है.

फिल्म की शुरुआत शालिनी उर्फ़ फातिमा से सरकारी अधिकारियों की पूछताछ से होती है जहां वह उन्हें बताती है कि उस का ब्रेनवाश किया गया है और वह सीरिया ले कर जाई जा रही थी. ऐसी हजारों लड़कियां हैं जिन्हें ऐसे काम में धकेला जा रहा है. वह अधिकारियों को बताती है कि वह घर से निकली तो अपनी मरजी से थी मगर यह किसी बड़े आतंकी प्रोग्राम के तहत हुआ है. फिल्म की पूरी कहानी अधिकारियों से हो रही बातचीत और अतीत में चलती है.

फिल्म में शालिनी लव जिहाद के षड्यंत्र के तहत एक मुसलिम युवक के प्रेमजाल में फंस जाती है जिस से वह प्रैगनैंट हो जाती है. उस पर दबाव बनाया जाता है कि उसे इसलाम धर्म अपनाना होगा. शालिनी का धर्मांतरण होता है तो फिर प्रेमी उसे छोड़ भाग जाता है. अब शालिनी की शादी किसी दूसरे मुसलमान से करवा दी जाती है जो उसे पहले कोलंबो, फिर वहां से फ्लाइट से बलूचिस्तान और फिर वहां से हिंदूकुश होते अफगानिस्तान के खानदार के किसी इलाके में बने आईएसआईएस के बेस कैंप में ले जाता है.

कैंप से उसे और उस जैसी कई लड़कियों को सीरिया ले जाने का प्लान होता है लेकिन वहीँ से वह बच निकलती है. इस में उस का बच्चा आतंकियों द्वारा छीन लिया जाता है. भागते वक्त कई औरतें मारी जाती हैं लेकिन शालिनी बच कर सरकारी अधिकारियों के हत्थे चढ़ जाती है. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया जाता है. सजा पूरी कर वह रिहा होती है और अपने घर लौटती है.

फिल्म में निर्देशक ने भारत से अफगानिस्तान के आतंकी बेस कैंप तक ले जाने का कोई लौजिकल तरीका नहीं बताया है. जबकि लड़की कोलंबो में समझ जाती है कि उस के व उस की सहेलियों के साथ बहुत गलत हो रहा है फिर भी इतनी मूर्ख कैसे हो सकती है कि आतंकी के साथ सीरिया जाने को तैयार हो जाती है.

इस कहानी की आड़ में कई दृश्य बेतुके फिल्मा दिए गई हैं. जैसे केरल के एक मौल में जब ये लड़कियां घूमने गई होती हैं, तो वहां कुछ बदमाश आ कर शालिनी, निमाह और गीतांजलि के साथ छेड़खानी करते हैं. उन के कपड़े फाड़ देते हैं. होस्टल पर आ कर आसिफा उन से कहती है कि- ‘तुम ने देखा न, सब ने मौल में हिजाब पहन रखा था, तुम ही थीं जिन्होंने हिजाब नहीं पहना था इसलिए तुम्हारे साथ छेड़खानी हुई.’ और ये लड़कियां इसे मान भी जाती हैं. केरल में वैसे हिजाब पहने कम ही लड़कियां दिखती हैं, लेकिन फिल्म यह बताने का प्रयास करती है कि हिजाब वहां कितना जरूरी है.

अब यह बात समझ से परे है. फिल्म देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि केरल जैसा राज्य तालिबान बन गया हो, वहां की लड़कियां आधुनिक मौल में बिना हिजाब बाहर ही नहीं निकलतीं और जो लड़कियां हिजाब या बुर्का नहीं पहनतीं उन के साथ ऐसा सुलूक किया जाता है.

वहीं एक सीन में गीतांजलि जब इस आतंकी जालसाजी को समझ लेती है और उन के चंगुल से बच जाती है तो भावुक हो कर अपने पापा से कहती है, ‘“पापा, मैं गलत थी. लेकिन गलती आप की भी है, आप ने मुझे जिंदगीभर विदेशी विचारों, कम्यूनिजम के बारे में सिखाया, हमारे रिलीजन, हमारे ट्रेडिशन के बारे में बताया ही नहीं.” यानी फिल्ममेकर्स यहां सीधे यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इन से बचने का एक ही हल है कि अपने धर्म से जुड़े रहो, नास्तिक बनना विकल्प नहीं, अपने धर्म को मानो और उस पर उंगली/सवाल न उठाओ. बात हिंदू संस्कृति की ही है तो हम किस संस्कृति की बात कर रहे हैं. हिंदू लड़कियों के दहेज, सती, माता की पूजा, महिलाओं को न पढ़ने देने या जातियों के भेद को मानने की कर रहे हैं क्या?

फिल्म में गीतांजलि की कई न्यूड पिक्चर आतंकी गिरोह द्वारा इंटरनैट पर वायरल कर दी जाती हैं जिस के बाद वह आत्महत्या कर लेती है.

फिल्म में ईसाई लड़की निमाह की थाने में फिल्माए दृश्य में पुलिस की लाचारी कई सवाल और संशय खड़े करते हैं. जिस में गैरधर्मियों के आपस में प्रेम और शादी को कठघरे में खड़ा किया गया है जिस पर संविधान ने पुलिस के हाथ बांध रखे हैं कि वे इन मामलों में कुछ नहीं कर सकते. फिल्म में राजनीति ही दिखाई देती है, जहां मौजूदा लेफ्ट सरकार की पौलिटिक्स को इस सब का जिम्मेदार माना जा रहा है.

यह फिल्म समस्याग्रस्त तभी हो जाती है जब यह आईएसआईएस की गिरफ्त में फंसी लड़कियों की समस्या उठाने, सुलझाने, पीड़िता के प्रति संवेदनशील होने के बजाय इसे हिंदूमुसलिम बनाने, मुसलिमों के प्रति नफरत, राजनीति से प्रेरित और खास विचारधारा के एजेंडे को ठेलने तक सिमट जाती है.

ब्रेनवाश का जिक्र करती यह फिल्म आधे सच और कई झूठे दावों के साथ कब दर्शकों का ब्रेनवाश करने लग जाती है, पता ही नहीं चलता. पूरी फिल्म में एक धर्म को सीधेसीधे कठघरे में खड़ा किया गया है. जब कभी कुछ जालसाजी हो रही होती है तो अजान की आवाज बैकग्राउंड में सुनाई देती है. धर्म को ले कर हो रहे कई संवाद ऐसे हैं जिन से ऐसा लगता है कि फिल्म सभी को समझाने की कोशिश कर रहा हो कि धर्म के मामले में सवाल नहीं करना चाहिए. इस में कोई हैरानी नहीं होगी कि एक गंभीर विषय पर बनी फिल्म सोच कर गया दर्शक थिएटर से निकल कर सांप्रदायिक भावना ले कर बाहर निकले और निकलते ही ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने लग जाए.

रही बात तथ्यों की, तो तथ्य यह है कि भाजपाशासित राज्यों में लव जिहाद को ले कर कानून तो बन गए हैं लेकिन इसे ले कर सरकार के पास कहीं कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर भी सरकार आंकड़े पेश नहीं कर पाई है. जो तथ्य हैं वे यहांवहां हवाई दावों की शक्ल में हैं. दक्षिणपंथियों द्वारा सब से ज्यादा ‘हादिया’ मामले को लव जिहाद से जोड़ा गया था, उस की मुसलिम से शादी को कोर्ट ने जायज ठहराया.

इस फिल्म के नाटय रूपांतरण में सिरे से सारे गुनाहगार किरदार मुसलमान हैं. ऐसा लगता है जैसे देश के सारे मुसलमान किसी न किसी षड्यंत्र का हिस्सा हैं. फिल्म कोई एक भी मुसलमान किरदार पेश नहीं करती जो अच्छा हो, जिस की नीयत साफ हो. एक जगह थाने के भीतर जहां एक मुसलिम किरदार को सकारात्मक छवि में दिखाया भी गया है, उसे चुपचाप बिना डायलौग, ब्लर के साथ कोने में सरका दिया गया है ताकि किसी की नजर न पड़े.

सवाल उठता है कि फिल्म के मेकर इसे ऐसा ही होने देना चाहते थे या भारत भूभाग में मुसलमान ऐसे ही हैं जो हर समय किसी साजिश के तहत हिंदुओं को फंसाने के जाल बुनने में लगे रहते हैं? यह सवाल फिल्ममेकर्स के उस मजबूत तर्क को हलका कर देते हैं जिस में वे कहते हैं कि अगर एक भी लड़की ऐसे मामले में फंसी है तो उस की कहानी दिखाना गलत नहीं. बेशक, यह बिलकुल गलत नहीं, केस स्टडी ऐसे ही की जाती है, लेकिन क्रिएटिविटी की आड़ में उपद्रवियों का झुंड बनाने और दहशत फैलाने के लिए अगर इस तरह की फिल्म बनाई जा रही है और कहानी दिखाने के तरीके अगर संशय से भरे हों, आधे सच हों जो भ्रम छोड़ दें तो सवाल तो बनते हैं.

यही कारण भी रहा होगा कि धर्म की राजनीति के पालकपोषक इस फिल्म के समर्थन करते दिखाई दिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली में इस फिल्म का जिक्र किया. इस से फिल्म का प्रमोशन भी हुआ और चुनावी सभा में जो संदेश वे लोगों तक पहुंचाना चाहते थे वह भी पहुंचा दिया.

‘द केरला स्टोरी’ उस राज्य को टारगेट करती है जहां की प्रतिव्यक्ति आय पूरे भारत की प्रतिव्यक्ति आय से 60 प्रतिशत अधिक है. केरल में शिशु मृत्युदर प्रति 1,000 में 6 है जो कि असम में 40, मध्यप्रदेश में 41 और उत्तर प्रदेश में 46 है. ऐसे ही केरल में मैटर्नल मोर्टेलिटी रेट 2 है जो कि उत्तर प्रदेश में 17 है. केरल से हजारों लड़कियां मिडिल ईस्ट देशों में तरहतरह के काम करने दशकों से जा रही हैं और वहां से वे जिहादी बनी हों, ऐसे समाचार आज तक नहीं आया.

केरल की महिला शैक्षिक दर पूरे भारत में सब से अधिक 95 फीसदी है जो देश की औसतन 77 फीसदी से कहीं आगे है. महिलाओं के अधिकारों और उन के डैवलपमैंट के लिहाज से केरल पूरे भारत में सब से अग्रणी है. यहीं से देशभर में सब से अधिक नर्स जाती हैं.

फिल्म इशारा करती है कि महिलाओं को बाहर नहीं निकलना चाहिए. उन्हें इतना पढ़लिखने, सफल होने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि पढ़ीलिखी लड़कियां अपनी संस्कृतियों की जड़ से उखड़ती हैं. फिल्म यौन सुचिता की बात भी करती है.

फिल्म में आईएसआईएस की क्रूरता दिखाई गई है, हिंसक दृश्य हैं, साथ में, रेप के दृश्य भी हैं जो काफी विचलित करते हैं. फिल्म में दिखाई गई लड़कियों की ब्रेनवाश की प्रक्रिया बचकानी लगती है.

फिल्म के तथ्यों पर पहले ही सवाल खड़े किए गए. आजकल वैसे भी बिना तथ्यों के व्हाट्सऐप पर वीडियो की शक्ल में चीजें खूब धकेली जा रही हैं. इस फिल्म के कुछ संवाद और दृश्य उन्हीं वीडियो क्लिप की श्रखंला में शामिल होते दिखाई देंगे.

हालांकि, फिल्म में अदा शर्मा ने ऐक्टिंग बढ़िया की है.

परिणीति चोपड़ा की जल्द होगी सगाई ,एक्ट्रेस के घर में शुरू हुई तैयारी

परिणीति चोपड़ा इन दिनों राघव चड्ढ़ा संग अपनी शादी को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. हाल ही में परिणीति और राघव चड्ढा को एक साथ एयरपोर्ट पर देखा गया था. खबर है कि राघव और परिणीति 13 मई को सगाई करने वाले हैं.

राघव और परिणीति को एक साथ देखकर फैंस कयास लगानी शुरू कर दिए थें कि यह कपल जल्द शादी के बंधन में बंधने वाला है. परिणीति का मुंबई वाला घर दुल्हन की तरह सज गया है. फैंस भी परिणीति की सगाई की तस्वीर देखने के लिए काफी ज्यादा उतावले नजर आ रहे हैं.

 

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आज सुबह राघव और परिणिति दिल्ली के लिए रवाना हुए हैं, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. दोनों मुंबई एयरपोर्ट पर एक साथ पहुंचे हैं. जहां कपल को साथ में देखकर फैंस भी लगातार बधाई दे रहे हैं.

परिणीति चोपड़ा लाल रंग के ड्रेस में नजर आईं, जिसमें वह काफी खूबसूरत लग रही थीं, इसके साथ ही वह काले रंग के चश्में में दिखी. फैंस परिणिती के इस लुक की खूब चर्चा कर रहे हैं. उनका कहना है कि परिणीति पहले से ज्यादा ग्लो करने लगी है. वहीं राघव ब्लैक कलर के शर्ट में काफी जच रहे थें.

बिग बॉस विनर गौहर खान के घर गूंजी किलकारी, दिया बेटे को जन्म

टीवी सीरियल अदाकारा गौहर खान के घर किकारी गुंजी हैं, गौहर खान और जैद दरबार एक पेरेंट्स बन चुके हैं, गौहर खान के घर बेटे का आगमन हुआ है. हाल ही में गौहर खान के इंस्टाग्राम पोस्ट शेयर करके अपने फैंस को जानकारी दी है.

जैद दरबार ने अपने प्यारे से पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर किया और बताया कि उन्हें एक बेटा हुआ है, जैसे ही इस बात की खबर आईं फैंस उन्हें बधाई देनी शुरू कर दिए.

 

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वहीं अनुष्का शर्मा ने भी पोस्ट शेयर करते हुए गौहर खान को बधाई दी है, साथ ही अनीता हंसनंदानी,सुनी ग्रोवर के साथ और भी कई सारे सितारों ने गौहर खान को मां बनने पर बधाई दी है.

बता दें कि गौहर खान ने साल 2020 में जैद दरबार के साथ शादी रचाई थी, शादी के कुछ वक्त बाद ही गौहर खान ने अपनी प्रेग्नेंसी का प्लान कर लिया था. जिसके बाद से लोग गौहर को बधाई देनी शुरू कर दिए थें. अब एक पेरेंट्स बनने के बाद से गौहर खान का परिवार काफी ज्यादा खुश नजर आ रहा है. बता दें कि जैद दरबार के पोस्ट को देखने के बाद आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जैद दरबार काफी ज्यादा खुश हैं इस खबर के आने के बाद से.

मेरे अपने- भाग 3, किस हादसे से नीलू को मिली सीख?

रातभर नीलू बिछावन पर उलटपुलट करती रही. समझ ही नहीं आ रहा था उसे कि अपने भैया को कैसे समझाए कि अमित कितना सुलझा हुआ इनसान है. कितनी बार वो इस बात का प्रमाण दे चुका है कि वही नीलू के लिए बेहतर लाइफ पार्टनर है.

मालूम है, अतुल्य बहुत पैसे वाला है. तो क्या करना है उसे उस के पैसों का? उसे तो अपने जीवन में एक प्यार करने वाला साथी चाहिए, जो अमित में उसे नजर आता है. और जातपांत क्या होता है? ये तो इनसान ने बनाए हैं न अपनी सुविधानुसार? वरना, सब का खून तो एकजैसा लाल ही होता है. एक गलत फैसले के कारण, कल को तीनतीन जिंदगियां बरबाद हो जाएं, इसलिए आज, अभी ही वो अपने भैया से अमित और अपने रिश्ते के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थी.

नीलेश और अदिति के कमरे का दरवाजा बंद देख पहले तो उसे थोड़ा संकोच हुआ. लेकिन फिर उस ने दरवाजा खटखटा दिया. नहीं तो, कल शायद वो कमजोर पड़ जाती. इसलिए जो होना है आज ही होगा.

दरवाजा नीलेश ने ही खोला. वह कुछ पूछता, उस से पहले ही वह एक सांस में अपने प्यार की गाथा नीलेश के सामने रखती हुई बोली कि वह अमित से ही शादी करेगी, अतुल्य से नहीं.

सुनते ही नीलेश बम की तरह फट पड़ा, “ये क्या बके जा रही है? दिमाग तो ठिकाने पर है न तुम्हारा? तुम ने सोच भी कैसे लिया कि हम तुम्हारी शादी उस छोटी जाति के लड़के से करेंगे?” नीलेश गरजा, तो हड़बड़ा कर अदिति भी उठ कर बाहर आ गई.

“लेकिन भैया, अमित अच्छा लड़का है और सब से बड़ी बात कि हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं. आप एक बार उस से मिल तो लीजिए. खुद ही समझ जाएंगे कि वह कितना अच्छा लड़का है. जातपांत कुछ नहीं होता भैया, इनसान अच्छा और सच्चा होना चाहिए और अमित ऐसा ही है.

“प्लीज भैया मान जाइए,” नीलू ने हाथ जोड़े. लेकिन नीलेश तो अपनी बात पर ही अड़ा रहा कि उस की शादी होगी तो अतुल्य के साथ ही.

“नहीं भैया, ये आप की जिद और अहंकार बोल रहा है. मैं आप की जिद के चलते अपनी जिंदगी कुरबान नहीं कर सकती,” नीलू ने भी दोटूक शब्दों में बोल दिया, जिसे नीलेश सहन नहीं कर पाया.

“तो फिर ठीक है. जो मन आए करो, लेकिन आज से हमारातुम्हारा रिश्ता यहीं पर खत्म समझो, बल्कि अभी से हम एकदूसरे के लिए मर चुके हैं,” कह कर नीलेश ने जोर से दरवाजा लगा लिया और नीलू भी गुस्से में पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई. सोच लिया उस ने कि चाहे जो हो जाए, पर शादी तो वो अमित से ही करेगी.

नीलू वह घर छोड़ कर अपनी एक सहेली के घर रहने आ गई यह सोच कर कि उस के भैया उसे मना कर घर ले जाएंगे और कहेंगे, ‘ठीक है जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा’, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. बल्कि बात और बिगड़ती चली गई.

अदिति ने एकदो बार फोन लगा कर रिक्वैस्ट भी की कि वो घर आ जाए, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन क्या ठीक होगा, जब नीलेश कुछ सुननेसमझने को तैयार ही नहीं था तो… आनआन में दोनों भाईबहन के बीच दूरियां बढ़ती ही चली गईं. यहां तक कि नीलेश अपनी बहन की शादी में उसे आशीर्वाद देने तक नहीं आया, तो नीलू का मन भी अपने भाईभाभी के प्रति खट्टा हो गया.

फोन की घंटी से नीलू अपने अतीत से बाहर आई. देखा तो अमित का फोन था. पूछने लगा कि उस ने खाना खाया या नहीं.

“नहीं, मैं खा लूंगी, तुम चिंता मत करो,” कह कर नीलू ने फोन रख दिया.

उस के भैयाभाभी को गुजरे एक महीना से ऊपर हो चुका था, पर अभी भी उस के आंसू रुक नहीं रहे थे.

अपने 2 छोटेछोटे भतीजाभतीजी, 7 साल के अंश और 5 साल की मीठी का जब उसे खयाल आता, तो वह बिलख कर रो पड़ती थी कि अब उन का क्या होगा. दोनों बच्चे अभी भी अपने नानानानी के पास ही थे. मन करता उस का कि दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लें और कहें कि अभी उस की बूआ जिंदा है.

शाम को जब अमित औफिस से घर आया तो देखा, अंधेरे कमरे में वह वैसे ही सिकुड़ी सी लेटी पड़ी है, जैसे सुबह उसे छोड़ कर गया था. खाना भी शायद उस ने नहीं खाया था, क्योंकि सारा खाना वैसे का वैसे पड़ा था. कपड़े बदल कर अमित 2 कप चाय बना लाया.

“नीलू उठो और चाय पी लो,” हाथ से पकड़ कर उसे उठा कर बैठाते हुए अमित ने उसे चाय का प्याला पकड़ाया और खुद भी अपनी चाय उठा कर पीने लगा.

वह देख रहा था वो, रोरो कर नीलू ने अपना चेहरा सुजा लिया था.

“खाना क्यों नहीं खाया? ऐसा कब तक चलेगा?” अमित बोला, “मां कह रही थीं कि वहां वंश तुम्हारे बिना रह नहीं पा रहा है.”

नीलू की स्थिति को देखते हुए उस की सास वंश को अपने साथ ले कर चली गई थी, लेकिन वह उन से संभल नहीं पा रहा है.

चालाकियां- भाग 3, वंशा ने क्यों बनाया विक्ट्री का साइन?

कमाल आजकल चुपचाप टैक्सी से औफिस जा रहा था. कमाल के घर से कोई आता है तो कैसे घर में एक ख़ुशी का माहौल रहता है, सब ने कितना प्यार दिया है उसे. और यह सगी बड़ी बहन जब से आई है, सिर्फ चालाकियां. हर सालदोसाल में चक्कर काट जाएंगी, घूम जाएंगी, दुनियाभर  के नाटक दिखा जाएंगी. मन ही मन कलपते रहने के सिवा कोई चारा भी तो नहीं. जाने से एक दिन पहले वरदा सामान संभालने लगी, कहने लगी, “वंशा, हम लोग अगली बार आएंगे तो शायद गोवा भी घूम आएंगे. तुम लोग चलोगे साथ?”

“मुश्किल है, दीदी.”

“अगर चलना चाहो तो अपने साथसाथ हमारे भी टिकेट्स बुक कर लेना, रहने का भी शेयर कर लेंगे तो ठीक रहेगा.”

वंशा बहन का मुंह देखती रह गई, आज बोल ही पड़ी, “दीदी, कमाल के साथ आप प्रोग्राम न ही बनाओ तो अच्छा रहेगा. वे एक मुसलिम, आप इतने धार्मिक, इतने कट्टर हिंदू. पहले ही यहां रह कर आप का इतना धर्म भ्रष्ट हो चुका होगा, उसी के घर में रह रही हैं, उसी की कार में घूम रही हैं, उसी के बिस्तर, उसी के बइतन… मैं तो दीदी हैरान हूं, आप कैसे कमाल के घर आ जाने की हिम्मत कर लेती हैं. सच कहूं तो आप को होटल में रहना चाहिए, कम से कम धर्म तो बचा रहेगा न. पैसे तो जीजू और कपडे बेच कर कमा लेंगे. आप जहां रुका करेंगी, मैं वहीं आप से मिलने आ जाया करूंगी. आप यहां कितने भी बरतन अलग कर लें, आप के जाने के बाद कुछ पता नहीं चलता किस के कौन से बरतन हैं. आप आ कर फिर पता नहीं कौन से बरतन अलग करवा लेती हैं, मुझे ही नहीं पता. सब बरतनों में तो पूरे साल नौनवेज बनता है. आप लोगों के भले के लिए ही कह रही हूं कि आप का यहां रुकना धर्म की दृष्टि से ज़रा भी ठीक नहीं  है. खाना आप को बाहर का ही खाना है, फिर यहां आप को कौन सा ऐसा आराम है जो आप अपना धर्म बिगाड़ें. मैं तो कहती हूं दीदी, आप को कमाल के घर आना ही नहीं चाहिए. चार पैसे बचाने के लिए क्यों अपना धर्म बिगाड़ती हैं.”

वरदा की बोलती बंद थी. इस समय सब अपनेअपने कमरे में आराम कर रहे थे. वरदा के मुंह से बोल न फूटा. चुपचाप पैकिंग करती रही. आज वंशा का दिल हलका हो गया. इन चालाकियों का कभी तो अंत होना ही चाहिए था. कब तक इंसान ऐसों के हाथों मूर्ख बनता रहे. रात को वंशा फिर बाहर का खाना और्डर करने लगी तो वरदा को लगा कि अब आगे का रास्ता बंद हो सकता है, घूमने फिरने का यह ठिकाना हाथ से निकला तो नुकसान  हो सकता है, फौरन बोली, “न, वंशा. रहने दे. यह घर भी तो अपना है. बहुत खा लिया बाहर का. अब तो घर का ही खाएंगे.”

“न, दीदी. आज की ही तो बात है. अब अगली बार देख लेना,” वरदा को स्पष्ट संदेश दे वंशा फोन पर खाना और्डर करने लगी. अब कमाल और कल्कि ने उसे हैरतभरी नज़र से देखते हुए आंखों में ही सवाल किया कि क्या कह रही हो. वंशा ने इतराते हुए इशारा किया कि बाद में बताएगी और धीरे से सब से छिपा कर विक्ट्री का साइन बना दिया.

वरदा का परिवार अगले दिन जब एयरपोर्ट के लिए निकलने लगा, कमाल को छोड़ने जाते देख वंशा ने कहा, “कमाल, दीदी के लिए टैक्सी बुक कर दो. और दीदी, अगली बार जब भी आओ,, बताना जरूर कहां रुके हो. मैं मिलने आ जाऊंगी. बहन से मिले बिना मत चली जाना,” कह कर वंशा वरदा के गले लगी. किसी को कुछ समझ न आया कि हुआ क्या है. वे तीनों चले गए. वंशा ने पूरी बात कमाल और कल्कि को बताई तो कमाल ने कहा, “नहीं, ऐसे नहीं  कहना चाहिए था, वंशा. बहन हैं तुम्हारी.”

वंशा का स्वर उदास हो गया, “पर मुझे कभी लगता ही नहीं कमाल, कि वे बहन हैं मेरी.” वंशा की इस बात में उस का सारा दर्द छिपा था.

कल्कि ने फौरन माहौल हलका किया, “मम्मी, शाबाश. अगर ये चालाकियां चलती रहती हैं तो ऐसे लोगों को शह मिलती रहती है. ये और लोगों को और ज़्यादा बेवकूफ बनाते रहते हैं. कहीं तो रुकें ये लोग. और ये नेहा, मेरी सारी क्रीम्स पोत कर ख़त्म कर गई है.” उस के यह कहने के ढंग पर कमाल और वंशा हंस पड़े.

गिद्ध-भाग 2 : समाज के गिद्धों से बचने के लिए माही ने क्या किया ?

माही के पापा ने भी भी बिना सोचेसमझे कर्ण के पापा को गुस्से में कह दिया कि मेरी बेटी तंग आ कर ही यहां आई है। आप के परिवार को नहीं बल्कि आप के बेटे की इनकम को देख कर मैं ने विवाह किया था। आप ने क्या हमारे घर का लाइफस्टाइल नहीं देखा था? आप को क्या लगता है कि आप बहू ले कर गए हैं या
नौकरानी…

माही के पापा की चुभती हुए बातें कर्ण के पिता को भी चुभ गई थीं. फोन रखने से पहले कर्ण के पिता
बोले,”हम ने शादी आप का पैसा देख कर नहीं, आप के परिवार के संस्कार देख कर करी थी। मगर शायद आप के लिए पैसा ही सबकुछ है.”

माही ने पूरी बात सुन ली थी इसलिए किलसते हुए अपने पापा से बोली,”पापा, मैं खुद हैंडल कर लेती।
आप ने तो बात और खराब कर दी है।”

माही की मम्मी पूजा बोली,”माही, मुझे या अपने पापा को दोष देना बंद करो। न तुम खुद कर्ण से बात करती हो और न ही हमे कुछ करने देती हो। तुम अपनी शादी से तंग हो कर यहां आई थी, हम ने नहीं बुलाया था।”

माही बोली,”ठीक है, तो जैसे कर्ण कह रहा है मैं वापस चली जाती हूं,”माही अपने कमरे में बंद हो गई थी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे और क्या नहीं.

कर्ण न जाने क्यों शुरू से ही उस के पापा सिद्धार्थ से खिंचाखिंचा रहता था. कर्ण को यह गलतफहमी रहती थी कि माही के परिवार को अपने पैसे और रुतबे पर बहुत अहंकार है. इसलिए कभीकभी माही को लगता कि कर्ण जानबूझ कर उसे तंग करता है.

माही ने बस एक दिन कह दिया था,”कर्ण, मैं अकेले घर का सारा काम नहीं कर पाती हूं. तुम मेरी मदद कर दो या फिर एक हैल्पर लगा दो.”

कर्ण न जाने इस छोटी सी बात पर इतना क्यों उखड़ गया था. कर्ण रूखे स्वर में बोला,”हमारे परिवार में
आदमी घर का काम नही करते हैं. मैं तुम्हारे बाप जितना बड़ा आदमी नहीं हूं कि विदेश में भी नौकर रख
सकूं. तुम वैसे पूरा दिन करती ही क्या हो? वर्कफ्रौम होम में तुम अच्छे से सब संभाल सकती हो अगर थोड़ी कोशिश करो। तुम्हें नहीं पता कि औरतें अपने घर के लिए क्याक्या त्याग करती हैं? नहीं तो नौकरी छोड़ दो क्योंकि तुम्हारी पहली प्राथमिकता घर होना चाहिए न कि नौकरी।” बात बढ़तेबढ़ते बड़ी होती चली गई थी.

माही को कर्ण की सोच पर अफसोस हो रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विदेश में रहने वाले युवक की ऐसी सोच हो सकती है.
जब कर्ण टस से मस नहीं हुआ, तो माही ने सोचा अगर वह अपने घर चली जाएगी तो शायद कर्ण को कुछ सोचने का समय मिल जाए. मगर बात इतनी अधिक बढ़ जाएगी यह माही ने सपने में भी नहीं सोचा था.
उधर कर्ण को जब पता चला कि माही के मम्मीपापा ने आ कर बात करने से इनकार कर दिया है तो उसे लगा कि माही को उस की और अपने रिश्ते की कोई कद्र नही है. गुस्से में कर्ण ने पत्नियों को ले कर कुछ उलटीसीधी बात सोशल मीडिया पर डाल दी थीं. माही ने जब यह सब देखा तो उसे बहुत दुख हुआ. माही को लगा कर्ण ने उन के रिश्ते को सब के सामने बेआबरू कर दिया था. उसी रात माही की दोस्त सेजल का फोन आया था. उस ने बताया कि कर्ण माही के ऐक्स बौयफ्रैंड युगल को मैसेज कर रहा है कि क्या माही उस के कारण ही कर्ण को छोड़ कर मुंबई आ गई है?”

माही को बहुत गुस्सा आया और उस ने गुस्से में कर्ण को फोन लगा दिया,”तुम इतनी छोटी सोच कैसे रख सकते हो? अपनी गलती मानने के बजाय तुम अपनी पत्नी पर ही कीचड़
उछाल रहे हो?”

कर्ण व्यंग्य करते हुए बोला,”अच्छा तो युगल से तुम्हारा दर्द नहीं देखा गया. मुझे यहां अकेले छोड़ते हुए तो दर्द
नहीं हुआ तुम्हें,” माही का मन कसैला हो उठा. उस ने निश्चय कर लिया था कि ऐसे छोटी सोच के इंसान के साथ वह रह नहीं पाएगी.

 

प्यारा सा सोलो ट्रिप : भाग 3

‘तो फिर फ्लाइट से क्यों आए? बैलगाड़ी से आते,’’ अनुभा ने कहा. उस के स्वर की तल्खी से युवक भी सम झ गया कि उसे बुरा लगा है. ‘‘ट्रिप तो अब यहां से शुरू हुई है. यहां तक तो पहुंचना ही था न. टाइम बचाने के लिए मैं ने फ्लाइट ली है, वरना मैं तो ट्रेन से आता, वह भी जनरल डब्बे में बैठ कर,’’ युवक के अंदाज से अनुभा को लगा कि या तो यह बहुत अनुभवी पर्यटक है या फिर उस पर प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहा है. अनुभा ने उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. तभी खिड़की से बाहर उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया.

कुछ महिलाओं का झुंड एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे खड़ा बतिया रहा था. टखने तक ऊंचे गहरे नीले रंग का घाघरा और केसरिया मिश्रित लाल रंग, जिसे राजस्थान में ‘कसुम्मल रंग’ कहा जाता है कि ‘ओढ़नी ओढ़े एक नवोढ़ा’ इन महिलाओं के बीच लंबा सा घूंघट काढ़े लजाई सी खड़ी थी. लगभग सभी महिलाओं ने चांदी की मोटीमोटी छड़ अपने पांवों में पहन रखी थी और उन के हाथ कलाई से ले कर कंधे तक सफेद सीप की चूडि़यों से लदे थे. नाक में बड़ी सी नथनी झूल रही थी. अनुभा ने फोटो लेने के लिए ड्राइवर
से गाड़ी रोकने का
आग्रह किया.

अनुभा ने पास जा कर उन महिलाओं का हेयरस्टाइल देखा. उन्होंने बालों को कस कर बांध कर उन्हें एक जाली से इस तरह कवर किया हुआ था कि कोई न चाहे तो बाल महीनों तक बिखरें नहीं. अनुभा इस नए स्टाइल को देख कर मुसकरा दी और मोबाइल निकाल कर इस दृश्य को कैद करने लगी. कुछ तसवीरें लेने के बाद उस ने अपना मोबाइल उस युवक की तरफ बढ़ा कर अपनी फोटो लेने का आग्रह किया.
‘‘यह राजस्थान है, मैडम. यहां न जाने ऐसे कितने दृश्य आप को देखने को मिलेंगे,’’ युवक ने फोटो लेतेलेते उसे टोका. अनुभा को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह चुप ही रही. गाड़ी अब शहर में प्रवेश कर रही थी.

‘‘मु झे यहां अफसर कालोनी में छोड़ देना,’’ कहते हुए युवक ने ड्राइवर को रास्ता बताया. फिर अनुभा की तरफ देखने लगा. ‘‘यह यहां की प्राइम लोकेशन है. सभी दर्शनीय स्थल इस के आसपास ही हैं. चलिए, मुलाकात होती है फिर कहीं किसी जगह,’’ कहते हुए युवक ने अपना हाथ अनुभा की तरफ बढ़ाया. अनुभा ने भी शिष्टाचार के नाते उस से हाथ मिलाया और हलके से मुसकरा दी. ‘‘मु झे विहान कहते हैं,’’ युवक अपना नाम बताते हुए आगे बढ़ गया. अनुभा की गाड़ी रिसौर्ट की तरफ मुड़ गई.

रिसौर्ट ने अनुभा का स्वागत राजस्थानी परंपरा के अनुसार तिलक लगा कर और साफा पहना कर किया. वैलकम ड्रिंक में उसे छाछ परोसी गई, जिस में भुना हुआ जीरा और सेंधा नमक मिला हुआ था. रिसौर्ट बहुत शानदार बना हुआ था. कमरे भी सुविधाजनक थे. अनुभा ने चैकइन किया और चूंकि दोपहर हो चली थी, इसलिए वह पहले डाइनिंग हौल में चली गई. वहां सभी मेहमानों के लिए बुफे लगा था, जिस में पारंपरिक और आधुनिक सभी तरह का भोजन शामिल था. अनुभा ने जम कर दालबाटी, चूरमा खाया. देशी घी में तर बाटियां और केसरपिस्ता डला हुआ चूरमा, उस पर लहसुन के तड़के वाली दाल. पेट भर गया. लेकिन उस का मन नहीं भरा.

इतना खाने के बाद भला सुस्ती आने से कौन रोक सकता है. वैसे भी दोपहर ढलने ही वाली थी, ऐसे में जैसलमेर घूमने जाने का कोई मतलब नहीं रह जाता, क्योंकि सर्दी में दिन भी तो जल्दी छिप जाता है.अनुभा सो कर उठी तो शाम के 5 बज रहे थे. उस ने कमरे में ही कौफी मंगवाई और खिड़की में से ढलते हुए सूरज को देखने लगी. कौफी पीने के बाद अनुभा ने एक शौल अपने इर्दगिर्द लपेटी और अकेली ही बाहर निकल गई.

‘‘शौपिंग करने के लिए कहां जाना चाहिए?’’ अनुभा ने रिसौर्ट के चौकीदार से जानकारी ली.
‘‘हुकुम, आप माणक चौक चले जाओ. आप के मतलब का सब मिल जावेगा वहां,’’ चौकीदार ने उसे सलाह दी. उस का ‘हुकुम’ कहना अनुभा को भीतर तक सम्मान का अनुभव करा गया.माणक चौक सचमुच बहुत खूबसूरत बाजार था. कठपुतली और पत्थर से बने कलात्मक गहनों के साथसाथ हस्तकला से निर्मित बहुत सा सामान वहां बिक्री के लिए सजा हुआ था. अनुभा देखती, परखती और कीमत पूछती हुई चली जा रही थी कि अचानक विहान को वहां देख कर चौंक गई. वह भी उसे देख कर मुसकरा रहा था.
‘‘छोटी सी यह दुनिया, पहचाने रास्ते हैं. मैं ने कहा था न फिर मिलेंगे,’’ कहता हुआ विहान उस के करीब आ गया.

‘‘आज तो लेट हो गई थी, इसलिए कल यहां घूमेंगे. अभी थोड़ा समय था तो सोचा कि कुछ शौपिंग हो जाए,’’ अनुभा ने कहा.‘‘शौपिंग करनी है तो आओ मेरे साथ. पंसारी बाजार में आप को सबकुछ मिलेगा. सस्ता भी और बहुत अच्छा भी. यहां इसे ग्रामीण हाट भी कहते हैं,’’ विहान ने कहा और अनुभा का हाथ पकड़ कर चल दिया. अनुभा उस का साहस देख कर हैरान थी. कैसे अधिकार से उस ने एक अजनबी लड़की का हाथ थाम लिया. लेकिन वह विरोध भी कहां कर पाई थी.

पंसारी बाजार जैसा विहान ने बताया वैसा ही था. यह एक स्ट्रीट मार्केट थी, जहां गांव के लोग अपना सामान बेचने आते हैं. अनुभा ने अपने लिए बंधेज का दुपट्टा और मोजड़ी खरीदी. 2 जोड़ी औक्सीडाइज्ड झुमके और दरवाजे पर बांधने वाली एक बंदनवार भी.
‘‘संभाल कर पहनना, मोजड़ी पहनने से छाले हो जाते हैं,’’ कहते हुए विहान हंसा. इस पर अनुभा भी हंस दी. रात होने लगी थी, अनुभा वापस रिसौर्ट लौट गई.

सुबह 10 बजे उस की गाड़ी तैयार थी लोकल साइट सीन के लिए. सब से पहले उन्होंने जैसलमेर का मशहूर सोनार किला देखा. यह शायद एकमात्र ऐसा किला है जिस के भीतर आज भी लोग रहते हैं. उस के बाद पटवों की हवेली और जैन मंदिर देखा. अंत में गढ़ीसर झील में बोटिंग कर के शाम तक वापस होटल आ गई. नजरें विहान को तलाश कर रही थीं, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया.

यह उस की यात्रा का तीसरा दिन था. सुबह नाश्ते के बाद आज उन्हें तनोट माता के मंदिर में जाना था. अनुभा वहां जाने के लिए विशेष उत्साहित थी, क्योंकि उस ने सुना था कि किसी समय भारतपाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा फेंका गया कोई भी गोला, जो इस मंदिर परिसर में गिरा था, फटा नहीं था. बताया जाता है कि आज भी वे गोले यहां सुरक्षित रखे हुए हैं. इस पैकेज में सीमा सुरक्षा बल के कैंप से उसे पाकिस्तान की सीमा भी दिखाया जाना शामिल था. आज की रात सम के धोरों पर रंगारंग कार्यक्रम, कैमल सफारी और कई अन्य तरह की रोमांचक गतिविधियां होने वाली थीं.

दिन बहुत अच्छा निकला. सबकुछ तय कार्यक्रम के अनुसार ही हो रहा था. शाम को जब वह टैंट वाली जगह पहुंची तो 4 बज रहे थे. यहांवहां लंबी कतारों में दिखने में लगभग एकजैसे, सैकड़ों टैंट देख कर अनुभा चकित रह गई. उस ने एक रौयल टैंट में चैकइन किया. टैंट की व्यवस्था सचमुच बहुत अच्छी थी. जंगल में मंगल जैसी. उस ने अपने टैंट में ही कौफी और स्नैक्स मंगवा लिए. बेसन के पकौड़े खा कर वह अपनी दिनभर की थकान भूल गई. गरम पानी से नहा कर अब अनुभा सुबह सी फ्रैश हो गई. कपड़े बदल कर बाहर आई.

‘‘हुकुम, आप कैमल सफारी करोगे न?’’ टैंट के मैनेजर ने पूछा. अनुभा ने हां भर दी. कुछ ही देर में एक सजाधजा ऊंट वहां हाजिर था. सीढ़ी लगा कर अनुभा को ऊंट की पीठ पर बनी एक चौकी पर बिठाया गया. डर तो बहुत लगा, लेकिन ऊंट की पीठ के साथ ऊपरनीचे होने का भी एक जुदा सा अनुभव रहा.
जैसेजैसे रात हो रही थी, वैसेवैसे प्रांगण में चहलपहल बढ़ने लगी थी. अनुभा अकेली ही रेत के टीलों में टहलने निकल गई.

यह पूनम की रात थी. आसमान से झांकता चांद रेत को और भी अधिक ठंडी और सुनहरी बना रहा था. आसपास के टीलों पर लोग मजे कर रहे थे. कोई टायर पर बैठ कर ऊपर से नीचे फिसल रहा था तो कोई खुली जीप में डैजर्ट सफारी कर रहा था. अनुभा हाथ में कोल्ड ड्रिंक की बोतल लिए कोलाहल से दूर एक शांत से टीले की चोटी की तरफ बढ़ने लगी. टखनों तक पांव मिट्टी में गड़े जा रहे थे. बैलेंस बनाने के प्रयास में कभी उस की हथेलियां रेत में धंस रही थीं तो कभी वह गिर भी पड़ती.

टीले की चोटी पर पहुंच कर अनुभा ने अपना दुपट्टा रेत पर बिछाया और उस पर लेट गई. आसपास अब कोई शोर नहीं था. उस की आंखें मुंदने लगीं. अचानक उस ने करवट बदली तो पाया कि पास में कोई और भी लेटा है. आंखें खोलीं तो आश्चर्य से फैल गईं. ‘‘विहान, इट्स यू?’’ अनुभा ने कहा.
‘‘यस, इट्स मी. कहा था न मैं ने? छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं.’’ विहान ने शरारत से कहा.
‘‘अच्छा, एक बार अपनी आंखें बंद करो,’’ विहान ने कहा. ‘‘क्यों?’’ अनुभा ने पूछा.
‘‘तुम करो तो सही,’’ कहते हुए विहान ने जबरदस्ती उस की आंखों पर अपनी हथेली रख दी. विहान ने अपना हाथ अनुभा की कमर में डाला और झटका दिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए टीले से नीचे आने लगे.

अनुभा कुछ कहना चाहती थी, लेकिन मुंह खोलते ही रेत मुंह में जाने का डर उसे सबकुछ यथावत चलते रहने के लिए मजबूर कर रहा था. कुछ ही पलों में यह फिसलन थम गई और वे दोनों टीले की तलहटी में आ कर ठहर गए. जिस स्थिति में वे नीचे आए, अनुभा के होंठ विहान के गालों को छू रहे थे. विहान ने अपना चेहरा जरा सा घुमाया और उस के होंठ अनुभा के होंठों को छूने लगे.

अनुभा अचकचा कर उठ खड़ी हुई. चलने लगी तो रेत में धंस कर फिर से विहान की बगल में ही गिर पड़ी. विहान ने उस का हाथ थाम लिया और टीले पर चढ़ने लगे. दोनों ही चुप थे. अचानक अनुभा को शरारत सू झी और उस ने विहान को धक्का दे दिया. एकदूसरे पर गिरतेपड़ते दोनों फिर से टीले की तलहटी में जा कर रुके. स्थिति अब भी लगभग पिछली बार जैसी ही थी. फर्र्क सिर्फ इतना सा था कि इस बार विहान नीचे था और अनुभा उस के ऊपर.

अनुभा ने अपनी आंखें बंद कीं और विहान के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. विहान को लगा मानो उस ने गरम कौफी का घूंट भर लिया हो. होंठों के साथ बहुतकुछ सुलग उठा. दूध में उबाल आया और कौफी का मग ढेर सारे झाग से भर गया. धीरेधीरे उफान कम हुआ और कौफी ठंडी हो गई. शेष झाग को पेंदे में छोड़ कर दोनों उठ खड़े हुए. दो विपरीत लहरें आपस में टकराईं, अपने आयाम के चरम पर पहुंचीं और फिर मद्धम हो कर अपनेअपने साहिल को लौट गईं.

रात के रंगारंग कार्यक्रम के लिए अनुभा रिसौर्ट के मुख्य प्रांगण में चली गई, जहां राजस्थानी लोकनृत्यों और गीतों का कार्यक्रम शुरू हो चुका था. पहले तो अनुभा को कुछ विशेष आनंद नहीं आया, लेकिन यह माहौल भी भांग के नशे की तरह था, जो धीरेधीरे चढ़ता है. सारंगी जैसे वाद्य पर लोक कलाकार ‘लंगा और पार्टी’ देशी गीतों की धुन बजाने लगे. उन की कानों तक लंबी मूंछें अनुभा को विशेष आकर्षित कर रही थीं. 2 अपेक्षाकृत कम उम्र के कलाकारों ने खड़ताल बजाते हुए ‘जद देखूं बना री लालपीली अंखियां, मैं नहीं डरूं सा…’ झूम झूम कर गाना शुरू किया.

कुछ ही देर में वह समां बांधा कि सब को अपने साथ झूमने के लिए मजबूर कर दिया. उस के बाद कालबेलिया नृत्य शुरू हुआ तो बस पूछो ही मत. अनुभा सबकुछ भूल कर उन कलाकारों के घाघरे के घेर के साथ घूमने लगी. उन के हाथों पर लटकती लूम अनुभा की आंखों को स्थिर नहीं रहने दे रही थी और अंत में जब सभी पर्यटक उन के साथ थिरकने लगे तो अनुभा भी नाच उठी. देररात कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब वह टैंट में आई तो विहान का खयाल भी उस के साथ था. वह विहान से बात करना चाहती थी, लेकिन नहीं जानती थी कि वह कहां और किस टैंट में रुका है. सैकड़ों की तादाद में टैंट लगे हैं यहां. कैसे उसे तलाश करे. फोन नंबर भी तो नहीं लिया था उस ने विहान का.

अनुभा सोने की तैयारी करने लगी, लेकिन जिन आंखों में कोई बस जाए, उन में फिर नींद कहां? किसी तरह सुबह हुई और अनुभा फिर वहीं उसी टीले की तरफ निकल गई, जहां कल रात एक दास्तान लिखी गई थी. ठंड से सिकुड़ा सूरज धीरेधीरे बाहर निकलने का मानस बना रहा था. टीलों की ऊपरी सतह हलकी गरम होने लगी थी. अनुभा को लगा मानो सूरज का रक्तिम तेज ठंडी बालू को जादू की झप्पी दे कर ठंड सहने की हिम्मत देने की कोशिश कर रहा है. विहान की झप्पी को याद कर के उस के गाल भी रक्तिम होने लगे.

अनुभा ने चारों तरफ देखा. हर तरफ टीले ही टीले, धोरे ही धोरे. सब के सब एकजैसे मानो एकदूसरे का क्लोन हों. वह कल रात वाले अपने टीले को पहचान ही नहीं पाई. यहां तक कि किसी भी टीले पर कोई पदचिह्न अब शेष नहीं था. रात को चली हवा ने सब टीलों को फिर से एकसार कर दिया नए पदचिह्न बनाने के लिए. जैसे किसी ने ब्लैक बोर्ड को साफ कर के नया पाठ लिखने के लिए तैयार कर दिया हो. शायद प्रकृति उसे जिंदगी की कोई बड़ी सीख देना चाह रही थी.

अनुभा ने अपने मन की पगडंडी से इस मुलाकात के तमाम पदचिह्न मिटा दिए और इसे एक मील के पत्थर के रूप में दिल में संजो लिया. आज दोपहर उस की फ्लाइट थी. गाड़ी उसे यहां से सीधे ही एयरपोर्ट ड्रौप करने वाली थी. वह अपना सामान पैक करने लगी. साथ ही साथ मुसकराती हुई गुनगुना भी रही थी, ‘छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं, तुम कभी तो मिलोगे, कहीं
तो मिलोगे.’

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