घर आ कर श्लोका निढाल हो बिछावन पर पड़ गई और सुबकते हुए सोचने लगी कि निखिल उसे ऐसे धोखा देगा, सपने में भी नहीं सोचा था उस ने. उसे तो लगा था, वह भी उस से उतना ही प्रेम करता है जितना वो. लेकिन उस ने तो सिर्फ उस के शरीर से प्रेम किया. छलता रहा उसे भ्रम में रख कर कि वह उस पर मरता है. लेकिन, अब मरने लायक तो उस की जिंदगी बन चुकी है. उठ कर उस ने निखिल को फिर से फोन लगाया, लेकिन शायद उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया. उस का सिर इतनी जोर से घूमा कि वह लड़खड़ाती हुई पलंग पर गिर पड़ी. उस की आंखों से अश्रु धारा बहने लगे.
अपने पेट पर हाथ रख उस ने महसूस किया कि एक जीव उस के अंदर सांस ले रहा है. ‘न… नहीं, एक मां हो कर मैं अपने ही बच्चे को नहीं मार सकती,’ वह खुद में ही बुदबुदाई. ‘लेकिन, समाज और परिवार से कैसे लड़ोगी तुम? अकेले पाल सकोगी इस बच्चे को?’ श्लोका के दिल से आवाज आई, तो वह चीख पड़ी और अपने दोनों कान बंद कर लिए.
श्लोका खुद से ही रोज लड़ रही थी. उस का एक मन कहता कि इस बच्चे को गिरा दो और दूसरा कहता, एक मां हो कर वह अपने बच्चे को कैसे मार सकती है?
बेटी का कमजोर और पीला पड़ता चेहरा देख कर अंजू पूछती कि तबीयत ठीक तो है न उस की? नहीं तो चल कर किसी डाक्टर से दिखा देते हैं. लेकिन श्लोका अपनी पढ़ाई और कैरियर की टैंशन बता कर मां को चुप करा देती. लेकिन वह कब तक झूठ बोलेगी अपनी मां से? उस का बढ़ता पेट एक न एक दिन तो सचाई उगलेगा ही न.
उस दिन मिलने पर जब विनी ने पूछा कि क्या हुआ है उसे? इतनी ढीलीढाली क्यों दिख रही है वह? तब श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने विनी को सारी बात बता दी.
“तू सही कहती थी विनी. निखिल सही में धोखेबाज निकला. वह मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्रेम करता था. लेकिन अब मैं क्या करूं, नहीं समझ आ रहा मुझे,” बोलते हुए श्लोका सिसक पड़ी.
“देख, जो हो गया उसे भूल जा. लेकिन, अब तेरे पास एक ही रास्ता है कि तू इस बच्चे को गिरा दे,” एक अच्छी दोस्त की तरह सलाह देते हुए विनी बोली.
“गलती इनसान से ही होती है, लेकिन उस गलती को हम पूरी जिंदगी ढो तो नहीं सकते न,” लेकिन श्लोका कहने लगी कि वह इस बच्चे को नहीं गिराना चाहती. और उन की गलती की सजा ये बच्चा क्यों भुगते, इसलिए वह इस बच्चे को जन्म देगी.
“पागल है क्या… कुछ भी बोल रही है,” विनी ने हैरानी से कहा, “इस एक बच्चे की खातिर तू अपनी पूरी लाइफ हेल करेगी? नहींनहीं, मैं तुम्हें ऐसा पागलपन नहीं करने दूंगी श्लोका,” एक सच्चे दोस्त की तरह विनी ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की कि यह समाज और खुद उस के मांपापा भी इस बच्चे को कभी नहीं स्वीकारेंगे. इसलिए वह इस बेकार की जिद को छोड़ दे. लेकिन श्लोका कहने लगी कि अगर उस ने इस बच्चे को मार दिया तो उस का जमीर कभी उसे माफ नहीं करेगा. चैन से वह जी नहीं सकेगी कभी. श्लोका ने जैसे दृढ़निश्चय कर लिया था इस बच्चे को जन्म देने का.
“ठीक है, तो फिर बता आगे क्या सोचा है तू ने?”
“नहीं पता मुझे, लेकिन मैं यहां से कहीं दूर चली जाना चाहती हूं,” अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए जब श्लोका बोली, तो वीनी को उस पर दया हो आई और उस ने सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वह उस की मदद करेगी.
विनी की मनीषा बुआ मुंबई में एक एनजीओ चलाती है. यह संस्था सैक्स वर्कर्स और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए काम करती है. उन्हें फाइनैंशियली इंडिपेंडेंट बनाती है.
वैसे तो वह विनी की अपनी बुआ नहीं है, लेकिन अपनों से भी बढ़ कर है उस के लिए. विनी जब 12 साल की थी, तभी उस की मां गुजर गई थी. तब मनीषा बुआ ने ही मां बन कर उसे संभाला था.
मनीषा बुआ से फोन पर बात कर विनी ने श्लोका के बारे में उन्हें सारा कुछ बता दिया. श्लोका के मुंबई जाने का सारा इंतजाम भी हो चुका था.
अपने मांपापा से उस ने यही बहाना बनाया कि वह एक साल के इंटर्नशिप के लिए मुंबई जा रही है. लेकिन ऐन वक्त पर सब गड़बड़ हो गया.
अंजू जब श्लोका के बेड पर धुली चादर बिछा रही थी, तभी गद्दे के नीचे से यूज्ड प्रेग्नेंसी किट नीचे गिर गई.
पहले तो अंजू कुछ समझ नहीं पाई. लेकिन जब समझ में आया तो घर में बवाल मच गया. अब कुछ पूछनाताछना क्या था. वह तो श्लोका को देखते ही उस पर ऐसे टूट पड़ी जैसे हड्डी को देख कर कुत्ते. जो भी मिला उसी से उसे मारने लगी. तड़ातड़ उस के गालों पर थप्पड़ बरसाते हुए पूछने लगी कि किस का पाप वह अपने पेट में लिए घूम रही है. क्यों, क्यों उस ने उन के विश्वास को तोड़ा?
श्लोका के पापा आलोक भी बेटी पर उंगली उठाते हुए कहने लगे कि उस ने उन की नाक कटवा दी. अगर लोगों को यह बात पता चल गई, तो वे लोग कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. फिर कौन उन की बेटियों से शादी करेगा? लेकिन, अब मारमार कर किसी की जान तो नहीं ली जा सकती न, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि जितनी जल्दी हो, इस पाप को नष्ट कर दिया जाए. और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर श्लोका की शादी करा दी जाए. कहां तो श्लोका मुंबई जा कर इस बच्चे को जन्म देने की सोच रही थी. और कहां वह इस घर में नजरबंद हो कर रह गई.
लेकिन अंजू को कहां चैन था. वह तो पागलों की तरह कभी श्लोका को पका पपीता खिलाती, तो कभी काढ़ा पिलाती, ताकि उस का पेट घर में ही गिर जाए और वे डाक्टर के पास जाने से बच जाए. अपनी इज्जत बचाने के लिए वह घरेलू उपायों से ही श्लोका का पेट गिरा देना चाह रही थी. मगर बेवकूफ अंजू यह समझ नहीं आ रहा था कि इस से श्लोका की जान भी जा सकती है.
हमारे समाज में आज भी एक लड़की का बिनब्याही मां बनना, उस के मांबाप के लिए कलंक की बात होती है. आज अगर श्लोका शादीशुदा होती तो क्या अंजू और आलोक चाहते कि उस का अबोर्शन करा दिया जाए?
भारत में हर रोज अनसेफ अबोर्शन की वजह से करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. दुनियाभर में हर साल 12 करोड़ से ज्यादा औरतें बिना प्लान के प्रेग्नेंट होती हैं, इस में से 30 फीसदी का अंत अनसेफ अबोर्शन है और जिस का नतीजा 5 से 13 महिलाओं की मौत हो जाती है. लेकिन, इस बात से आलोक और अंजू को क्या मतलब…? उन्हें तो बस अपनी इज्जत प्यारी है. बेटी जिए या मरे, इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.
जब भी श्लोका पर अंजू की नजर पड़ती, वह उसे पीटने लगती, गालियां बकने लगती और कहती कि, पैदा होते ही वो मर क्यों नहीं गई. मांबाप के तिरस्कार और मार से श्लोका जड़ बनी कमरे में गुमसुम सी पड़ी बस छत निहारती रहती. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उस के साथ हो क्या रहा है. जैसे उस की मतिगति भुला गई थी. उस के दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. ऐसा होता है न, जब आदमी के दिमाग पर चोट पड़ती है तो उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो जाती है. अंजू ने उसे इतना मारा था कि बेचारी कुछ बोलने लायक ही नहीं बची थी, तो सोचती क्या और समझती क्या.
उस दिन जब विनी का फोन आया और उस ने पूछा कि वह तैयार है न मुंबई जाने के लिए? तो जैसे उसे होश आया… और वो बदहवास सी एकदम झटके से उठ बैठी. सुनाई दे रहा था उसे, हाल में आलोक किसी डाक्टर से बात कर रहा था उस के अबोर्शन के लिए.
श्लोका बिना डरे आलोक और अंजू के सामने तन कर खड़ी हो गई जा कर और बोली कि वो इस बच्चे को जन्म देगी, चाहे जो हो जाए. और अगर उन लोगों ने उस के साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पुलिस में जाएगी.
पुलिस का नाम सुनते ही अंजू और आलोक सिटपिटा गए. उन्हें लगा, बदनामी तो होगी ही, जेल जाना पड़ेगा, सो अलग. फिर उन के बाकी बच्चों का क्या होगा.
अंजू अपनी छाती पीटपीट कर कहने लगी कि अगर उसे पता होता कि बेटी ऐसा कुछ करेगी, तो वह उसे इतनी आजादी देती ही नहीं. गलती हो गई उसे इतना पढ़ालिखा कर.
“तो फिर तुम भी सुन लो. तुम्हें इस बच्चे और हम में से किसी एक को चुनना होगा,” आलोक के मुंह से यह बात सुन कर पहले तो श्लोका को समझ नहीं आया कि वह क्या करे. लेकिन अपने मन को कड़ा कर उस ने अपने बच्चे को चुना. लेकिन, यह फैसला लेते वक्त उस का दिल कितना रोया था, वही जानती है.
अपनी आंखों में आंसू लिए श्लोका ट्रेन पकड़ कर मुंबई पहुंच गई. मनीषा बुआ स्टेशन पर उसे लेने आई थी. लेकिन यहां आ कर भी श्लोका के दिमाग में बारबार यही खयाल आ रहा था कि उस ने अपने मांपापा को दुख दे कर अच्छा नहीं किया. लेकिन इस बच्चे को भी तो नहीं मार सकती थी न वो.
“तुम क्या चाहती हो तुम्हारा बच्चा यों… ऐसा पैदा हो?” वानर सा मुंह फुला कर मनीषा बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.
“हां, ऐसी ही हंसती रहा करो, ताकि तुम्हारा बच्चा भी हंसताखिलखिलाता पैदा हो,” श्लोका के हाथों में जूस का गिलास पकड़ाते हुए मनीषा बुआ कहने लगी, “जानती हो श्लोका, लोगों को हमेशा यही लगता है कि उस का दुख सब से बड़ा है. लेकिन जब तुम मेरे संस्था में रह रही महिलाओं से मिलोगी, उन्हें नजदीक से जानोगी न, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा दुख उस से कितना छोटा है. ‘अमृत’ फिल्म का गाना नहीं सुना तुम ने…? ‘दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है, लोगों का गम देखा, तो मैं अपना गम भूल गया…’
“मैं भी इन का दुख देख कर अपना दुख…” बोलतेबोलते बुआ एकदम से चुप हो गई.
“अच्छा, अब तुम आराम करो. और किसी भी चीज की जरूरत हो तो बोलने से हिचकिचाना मत, समझी.” एक मां की तरह उस के सिर को प्यार से सहलाते हुए बुआ बोली, तो श्लोका अपलक उन्हें देखने लगी कि काश, उस की मां भी ऐसे ही उसे प्यार करती, उसे समझती.
“ले, अब क्या सोचने लग गई फिर?” उस के हाथ से जूस का खाली गिलास लेते हुए बुआ ने श्लोका की आंखों में झांका, तो वह मुसकरा पड़ी.
“ओहो, देख तो मुसकराते हुए कितनी प्यारी लगती है. वैसे, अगर तुम चाहो तो मेरी संस्था से जुड़ सकती हो, तुम्हारा टाइम भी अच्छे से पास हो जाएगा और तुम उन्हें नजदीक से जान भी पाओगी,”
बुआ की बात पर श्लोका ने हां में सिर हिला तो दिया, पर वह सोचने लगी कि बुआ कुछ बोलतेबोलते रुक क्यों गई? क्या उन के जीवन में भी कोई दुख है?
विनी ने तो उस से बुआ के बारे में इतना ही बताया था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इस संस्था के नाम कर दिया. श्लोका ने कई बार बुआ से उन की जिंदगी के बारे में जानना चाहा, पर उस की हिम्मत नहीं पड़ती थी कुछ पूछने की.
इसी तरह दिन बीतने लगे. बुआ श्लोका के खानेपीने से ले कर दवाई, डाक्टर का भी पूरा ध्यान रखती थी. उसे किसी भी बात की टैंशन नहीं लेने देती थी. लेकिन टैंशन तो होती ही थी न कि वहां उस के मांपापा कैसे होंगे? उन्हें कई बार फोन भी लगाया, पर उन्होंने एक बार भी श्लोका का फोन नहीं उठाया.
बात साफ थी कि अब श्लोका से उन लोगों को कोई मतलब नहीं था. वह जिए या मरे, इस बात से उन्हें कोई लेनादेना नहीं था. हां, लेकिन विनी से कभीकभार वहां की खबर मिल जाया करती थी.
विनी ने ही बताया था उसे कि उस की छोटी बहन निशि की शादी हो गई. ‘लेकिन, निशि का सपना तो आईएएस बनने का था. फिर क्यों मांपापा ने उस की शादी करवा दी? अच्छा, तो इस का मतलब मेरा गुस्सा निशि पर कहर बन कर बरपा. आखिर हम लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? क्यों समाज में हमें अपनी मरजी से जीने नहीं दिया जाता? खुद में ही बोल कर श्लोका रो पड़ी और बोली कि वह अपनी छोटी बहन की गुनाहगार है. न वो निखिल से प्रेम करने की गलती करती और न ही उस के साथ ऐसा होता?
खैर, धीरेधीरे समय तो सरक ही रहा था. मनीषा बुआ के प्यार और स्नेह का ही नतीजा था कि 9 महीने पूरे होने पर श्लोका ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया ‘अंश’.
अपने बेटे अंश के प्यारे से मुखड़े को देख कर श्लोका अपने सारे दुखदर्द भूल जाती थी. जब पहली बार उस ने अपनी तोतली जबान से मां बोला, तो श्लोका को लगा कि आज उस का संघर्ष खत्म हुआ.
मनीषा बुआ और श्लोका के आंचल तले अंश धीरेधीरे बड़ा होने लगा. लेकिन यहां भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी, जिस ने श्लोका के चरित्र पर सवाल न उठाए हों. बारबार अंश के पिता का नाम पूछ कर लोग उस पर तंज कसते. अश्लील और भद्दी बातें कह कर उसे कमजोर बनाते.
श्लोका लोगों की बातों से परेशान हो कर जब रोने लगती, तब बुआ उसे समझाती कि लोगों का तो काम ही है बोलना. बोलने दो न. और तुम कमजोर कैसे हो गई? एक बिनब्याही लड़की जो समाज और परिवार से लड़ कर, अपने बच्चे को जन्म देने का कठोर फैसला लेती है, वो कमजोर तो हो ही नहीं सकती कभी?
मनीषा बुआ ने श्लोका को सिर्फ सहारा ही नहीं दिया, बल्कि जीवन के पाठ भी पढ़ाए, जो उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा था. श्लोका, अब पहले वाली श्लोका नहीं रही. वह एक निडर औरत बन चुकी थी.
श्लोका अपनी जौब के साथसाथ मनीषा बुआ की इस संस्था से भी जुड़ी हुई थी. छुट्टी के दिन या समय निकाल कर वो उन औरतों से जा कर मिलती, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं. घरेलू हिंसा की शिकार और सैक्स वर्कर्स की महिलाओं की कहानी सुन कर श्लोका के रोंगटे खड़े हो जाते थे.
25 साल की मालती की कहानी सुन कर तो श्लोका का दिल ही दहल उठा. मालती जब 17 साल की थी, तब उस के अपने ही एक रिश्तेदार ने उस का रेप किया, जिस से वह पेट से हो गई थी. बिनब्याही मां बनी मालती को जब बच्चा हुआ, तब उस के मातापिता उस बच्चे को किसी अनाथालय में जा कर छोड़ आए और फिर उस अनाथालय वालों ने उस बच्चे को किसी और को बेच दिया. अब वह बच्चा कहां है, मालती को कुछ नहीं पता. लेकिन वह तरस रही है अपने बच्चे को देखने के लिए. कहती है, वह जीना चाहती थी अपने बच्चे के साथ, पर मातापिता के दबाव में आ कर उसे अपने से दूर करना पड़ा. इस संस्था से जुड़ी ऐसी कितनी ही महिलाएं थीं, जिन का जीवन नरक बन चुका था.
अंश के 5 साल पूरे होने पर श्लोका चाहती थी कि उसे किसी अच्छे स्कूल में डाल दिया जाए, ताकि उस की बदमाशी थोड़ी कम हो और वह भी अपने काम पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे सके. एडमिशन फार्म भरते समय प्रिंसपल अंश के पिता के बारे में कुछ पूछती, उस से पहले ही श्लोका ने उन्हें साफसाफ बता दिया कि वह अपने बच्चे की सिंगल पेरेंट है. और समाज या कोई भी एक महिला को यह बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकता कि उस के बच्चे का पिता कौन है? इसलिए फिर प्रिंसिपल ने कोई सवाल नहीं उठाया और अंश का उस स्कूल में एडमिशन हो गया.
श्लोका अंश को स्कूल छोड़ कर उधर से ही औफिस चली जाती थी, और फिर एनजीओ. और बुआ फिर अंश को स्कूल से जा कर ले आती थी और यही रोज का नियम था.
श्लोका औफिस से जब घर आई तो देखा बुआ और अंश खूब धमाचौकड़ी मचा रहे हैं और घर का सारा सामान यहांवहां बिखरा हुआ है.
“श्लोका, आ गई तू… देख, तेरे इस बेटे ने दौड़ादौड़ा कर मेरी जान ले रखी है,” हांफती हुई बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.
“हंस क्या रही है. पकड़ इस शैतान को न.”
“अंश, बस अब हो गया बेटा. देखो, नानी मां थक गई हैं, इसलिए अब आप टीवी पर कार्टून देखो,” टीवी औन करते हुए श्लोका बोली, लेकिन वह कहां मानने वाला था. उसे तो अपनी नानी मां के साथ अभी और खेलना था.
“अच्छा चलो, पहले हम कुछ खाते हैं, फिर खेलेंगे. ओके ?” लेकिन, अंश तो अपनी जिद पर ही था कि उसे अभी और खेलना है नानी के साथ.
“ओहो, कितना जिद्दी हो गया है यह बुआ. रुको, अभी बताती हूं,” कह कर वह उस के पीछे भागी थी कि तभी वह जा कर बुआ की गोद में छुप गया और कुछ ही देर में उसे नींद आ गई.
“अच्छा हुआ जो सो गया,” श्लोका ने राहत की सांस ली और हंस पड़ी.
बुआ को बड़े प्यार से अंश के बालों में उंगली फिराते देख आज श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने उन के अतीत के बारे में पूछ लिया.
लेकिन अपने अतीत के बारे में क्या बताती कि वे भी उसी दर्द से गुजर चुकी हैं, जिस से श्लोका. यहां फर्क सिर्फ इतना था कि श्लोका को बिनब्याही मां बनने की सजा मिली और उन्हें बांझ होने की.
शादी के 5 साल बाद भी जब मनीषा बुआ मां नहीं बन पाईं, तो घर में सब की नजरें टेढ़ी हो गईं. उस पति की भी, जिस ने सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. सिर्फ एक बच्चा न होने से उन का नाम मनीषा से बांझ औरत पड़ गया.
मां न बन पाने के कारण अब उन के साथ उस घर में अलग ही तरह का व्यवहार होने लगा. पति सास, ननद और जेठानी की आंखों में अपने लिए व्यंग्यात्मक घृणा के भावों को देख कर बुआ सोचती कि क्या ये वही लोग हैं, जो कभी उन्हें सिरआंखों पर बिठा कर रखते थे? क्या एक मां न बन पाना औरत के लिए इतना बड़ा पाप होता है कि लोग उस का मुंह भी देखना पसंद नहीं करते?
एक दिन जब बुआ को पता चला कि उन के पति की दूसरी शादी की बात चल रही है घर में, तो वह टूट गई. पति से सवाल किया, तो जवाब में तलाक के पेपर उस के सामने यह कह कर पटक दिए गए कि साइन करो इस पर, क्योंकि उन्हें वंश चाहिए और वह एक बांझ औरत है.
तलाक के बाद बुआ का अब इस घर में बचा ही क्या था. लेकिन मायके में भी कहां कुछ रह गया था. मातापिता रहे नहीं, भाईभाभी ने अपनाने से इनकार कर दिया तो अब उन के पास एक ही रास्ता बचा था कि वह कहीं जा कर डूब मरे या जहर खा कर सो जाए. वह नदी में कूदने ही वाली थी कि किसी ने पीछे से उन्हें खींचा. एक औरत श्वेत वस्त्र पहने खड़ी थी. उन का चेहरा सूरज सा चमक रहा था. अभी भी उन का हाथ बुआ के हाथ को पकड़े हुए था और वह पूछ रही थीं कि वह मरना क्यों चाहती है? तब बुआ फफक कर रो पड़ी. बुआ की कहानी सुन कर उन्हें दुख हुआ. वह औरत बुआ जैसी महिलाओं की मदद करती थीं. उस औरत की वजह से बुआ को एक आसरा मिल गया.
धीरेधीरे दोनों का रिश्ता मांबेटी जैसा बन गया था. उस औरत के गुजरने के बाद इस संस्था को बुआ ही संभालने लगीं और अपना पूरा जीवन इसी में लगा दिया.
अपनी सोच से बाहर निकल कर बुआ ने एक लंबी सांस ली और कहा, “पता नहीं क्यों, हम औरतों के साथ ही ऐसा क्यों होता है. अगर हम बिनब्याही मां बने तब भी और अगर मां न बन पाएं, तब भी समाज हम से ही सवाल क्यों करता है. सारा दोष हम पर ही क्यों मढ़ता है, हम पर ही उंगलियां क्यों उठाई जाती हैं?
लेकिन सचाई तो यही है कि समाज हमें अपने हिसाब से चलाना चाहता है और हम उन के हिसाब से चलना नहीं चाहते, बस इतनी सी बात है,” बोल कर बुआ जोर से हंस पड़ीं, तो श्लोका भी खिलखिला पड़ी.
अंश अब 8 साल का हो चुका था और बस से स्कूल जाने लगा था. आज बस की हड़ताल थी, इसलिए श्लोका औफिस के बीच से ही निकल कर अंश को लेने उस के स्कूल पहुंच गई. लेकिन जब वाचमैन ने बताया कि उसे ले कर कोई चला गया, तो श्लोका को लगा, शायद बुआ आ कर उसे ले गई होंगी. लेकिन जब बुआ ने बताया कि अंश उन के पास नहीं है, तो श्लोका को चिंता हो आई कि फिर कौन उसे ले कर चला गया. वहां खड़े वाचमैन को उस ने झाड़ लगाई और कहा कि कैसे कोई भी आ कर उस के बच्चे को ले कर चला गया और उसे पता नहीं चला?
तभी पीछे से अंश ‘मम्मामम्मा’ करते उस के आंचल से लिपट गया, तो जैसे उस की जान में जान आई.
‘”कहां गए थे आप?” वह उस से अभी पूछ ही रही थी कि पीछे से निखिल को आते देख उस का पूरा शरीर गनगना उठा. “तुम यहां…? ओह, तो तुम ले गए थे मेरे बेटे को?”
“हां, मम्मा, मैं इन के साथ ही था. ये बता रहे थे कि ये आप के दोस्त हैं, तो मैं इन के साथ चला गया,” अंश कहने लगा, “पता है मम्मा, ये अंकल न बहुत अच्छे हैं. इन्होंने मुझे चौकलेट खरीद कर दी और आइसक्रीम भी.“
“अंश, मैं ने आप को समझाया था न कि किसी भी अनजान आदमी से बात नहीं करनी चाहिए और न ही उस के साथ कहीं जाना चाहिए? फिर आप ने मेरी बात क्यों नहीं मानी?”
मां को गुस्से में देख अंश की आंखें भर आईं और वह अपना होंठ बिलखाते हुए रोने ही वाला था कि श्लोका ने प्यार से उस से कहा, “सौरी, मुझे आप को नहीं डांटना चाहिए था. लेकिन, अब से आप ऐसा नहीं करेंगे न ?” मां की बात पर अंश ने सिर हिला कर कहा कि अब से वह ऐसा कभी नहीं करेगा.
“मेरा प्यारा बच्चा, अब आप जा कर गाड़ी में बैठो, ओके. मुझे अंकल से कुछ बात करनी है, ओके,“ श्लोका ने गौर से देखा, निखिल में पहले वाली फुटानी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. जैसे किसी चीज का भाव नहीं गिरा जाता है. वैसे ही उस का भी भाव गिरा हुआ जान पड़ रहा था, पर उसे उस से क्या. उसे तो अब उस के नाम से भी चिढ़ होती है, तो बात करना तो दूर की बात है, लेकिन आज उस के बेटे की बात थी, इसलिए उस से मुंह लगाना जरूरी था.
“तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मेरे बेटे को यहां से ले जाने की? अगर मैं पुलिस में कंप्लेन कर दूं तो…? बच्चा किडनैपिंग में जेल जाओगे सीधे?” श्लोका गुस्से से फट पड़ी.
“सौरी श्लोका, मुझे इस तरह से अंश को यहां से नहीं ले जाना चाहिए था. लेकिन मैं यहां तुम से माफी मांगने आया हूं. प्लीज, मुझे माफ कर सको तो…” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल बोला, लेकिन श्लोका को समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने सालों बाद वह यहां उस से मिलने क्यों आया है? सिर्फ माफी मांगने तो नहीं आया होगा?
“हां, पता है मुझे कि मैं तुम से माफी मांगने के काबिल भी नहीं रहा. लेकिन…”
“ए… एक मिनट,” श्लोका ने उसे बीच में ही टोका, “यह सब क्या…? यह सब नाटक किसलिए? जब मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल चुकी हूं, फिर ये माफीवाफी का दिखावा किसलिए?”
“अपने बेटे के लिए. मुझे पता चल गया कि अंश मेरा ही खून है और मैं उसे यहां से ले जाने आया हूं,” एकदम से निखिल ने कहा, तो श्लोका चौंक उठी.
“क्या… क्या, क्या? फिर से कहना जरा,” श्लोका ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा, “अंश तुम्हारा बेटा है. और तुम उसे यहां से ले जाने आए हो? लेकिन, यह तुम से किस ने कह दिया कि अंश तुम्हारा बेटा है?”
“मुझे पता है और इस के लिए तुम जो चाहो, मतलब, मैं कुछ भी देने को तैयार हूं. अपनी सारी संपत्ति भी, पर मुझे मेरा बेटा चाहिए,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल कहने लगा कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई, लेकिन उस भूल की इतनी बड़ी सजा मिलेगी नहीं पता था उसे.
दरअसल, एक एक्सीडेंट में निखिल पिता बनने की शक्ति खो चुका है. और जब उसे पता चला कि अंश उस का ही बेटा है तो वह उसे ढूंढ़ते हुए यहां लेने पहुंच गया.
“अच्छा, तो तुम्हें पता था कि मेरे पेट में तुम्हारा ही बच्चा है, फिर भी तुम ने मुझे चरित्रहीन कहा. यह कह कर कि पता नहीं मैं किस का पाप तुम्हारे माथे मढ़ना चाहती हूं. और अब जब तुम्हें पता चला कि तुम बाप नहीं बन सकते तो तुम्हें अंश अपना बेटा लगने लगा?
“याद नहीं, तुम ने ही तो कहा था न कि मैं इस बच्चे को गिरा दूं? फिर किस मुंह से तुम इसे यहां लेने पहुंच गए हो…“ श्लोका चिल्ला पड़ी एकदम से, “तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं अपना बेटा तुम्हें दे दूंगी? वह मेरा अंश है, मैं मां हूं इस की. तुम कोई नहीं लगते इस के, समझे…?
“अरे, देना तो दूर की बात है, मैं तुम्हारी परछाईं तक अपने बेटे पर नहीं पड़ने दूंगी,” बोल कर श्लोका जाने ही लगी कि पीछे से निखिल बोला, “तो क्या तुम एक पिता के नाम के बिना बच्चे को पाल सकोगी? क्या जवाब दोगी समाज और लोगों को, जब वे सवाल करेंगे कि अंश का पिता कौन है?” बड़े ही तन कर निखिल बोला.
“रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया,” श्लोका हंसी, “तुम्हें शायद पता नहीं, पर कोर्ट का यही फैसला है कि बिनब्याही मां ही अपने बच्चे की सबकुछ होगी. वही उस की पालक होगी और उसे पिता के नाम की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि पिता की अनुमति की भी जरूरत नहीं है.
“अगर कोई बच्चे के पिता के बारे में पूछता भी है तो यह गुनाह है,” आज श्लोका बेहद गंभीर और निर्णायक मूड में थी.
श्लोका के कड़े बरताव से निखिल के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं, पर वह दिखा नहीं रहा था.
“और एक बात, एक मां का अपने बच्चे से 9 महीने ज्यादा का रिश्ता होता है, इसलिए वह उस के दर्द को पिता से बेहतर समझती है. तुम्हारे जैसे नहीं, जिस ने उसे पेट में ही मारने का फरमान सुना दिया.”
श्लोका की बात पर निखिल का चेहरा शर्म से नीचे हो गया.
“फिर तुम किस मुंह से यहां बाप का अधिकार जताने चले आए? शर्म नहीं आई तुम्हें यहां आते हुए? तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं, मैं अपने बेटे को तुम्हें दे दूंगी तुम्हारी दौलत के बदले? थूकती हूं मैं तुम्हारी दौलत पर.
“आज तो छोड़ दिया, लेकिन अगर आइंदा से तुम ने मेरे बेटे से मिलने की भी कोशिश की न, तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी, समझे,” बोल कर श्लोका चलती बनी और वह ठगा सा वहां तब तक खड़ा रहा, जब तक कि श्लोका की गाड़ी उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.