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समर स्पेशल : सिर्फ 10 मिनट में बनाएं ये 7 हैल्दी समर ड्रिंक्स, जो आपको रखेंगी कूल

आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के सौफ्ट ड्रिंक्स, कोल्ड डिं्रक्स मौजूद हैं, जिन्हें पी कर गले को तर किया जा सकता है. ये बाजारू ड्रिंक्स थोड़ी देर के लिए ही राहत देते हैं और सेहत के लिए भी अच्छे नहीं होते. घर में बने ड्रिंक्स का कोई जवाब नहीं. थोड़ी सी मेहनत और पहले से भी थोड़ी तैयारी से झटपट गरमी से राहत देने वाले ड्रिंक्स बन सकते हैं. यदि इन में हर्बल चीजें डाल दें तो कहने ही क्या.

यहां 7 ड्रिंक्स की बात कर रहे हैं जिन के मुश्किल से 10 मिनट में 5-6 गिलास तैयार हो जाएंगे.

1.तरबूज का शरबत:

तरबूज में विटामिन सी, विटामिन ए, मैग्नीशियम, पोटैशियम जैसे लाभकारी तत्त्व पाए जाते हैं. यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है.

तरबूज का जूस निकालने के लिए आसान तरीका है कि तरबूज के टुकड़ों को एक जार में डालें और हलके से हैंड ब्लैंडर चला दें. फिर छान लें ताकि बीज अलग हो जाएं. इस जूस में स्वादानुसार शुगर सिरप, कालानमक, कालीमिर्च, पुदीनापत्ती और नीबू का रस डालें. क्रश्ड लैमन आइस के साथ सर्व करें.

तरबूज के जूस का दालचीनी के साथ शरबत बनाएं. बीजरहित 500 ग्राम तरबूज के टुकड़ों में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर, स्वादानुसार शुगर सिरप, नीबू का रस डाल कर चर्न करें. क्रश्ड आइस और पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

2.कुकुंबर मिंट जूस:

कुकुंबर मिंट जूस बनाने के लिए 2 मीडियम आकार के खीरे छील कर छोटे क्यूब्स में काट लें. एक मिक्सी जार में खीरे के टुकड़े, 1 नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती, काला नमक, सादा नमक और 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप डाल कर मिक्सी में चर्न करें.

1 कप ठंडा पानी डाल कर पुन: चलाएं. फिर छान लें. क्रश्ड आइस पुदीने वाली डालें. नीबू का स्लाइस लगा कर सर्व करें.

नोट: खीरे की जगह 4 ककड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं.

3.सत्तू वाली छाछ:

दही में थोड़ा पानी डाल कर चर्न करने से लस्सी बनती है. इस में आप कोई भी फल डाल कर जैसे अंगूरी लस्सी, आम की लस्सी, संतरे वाली लस्सी, कलाकंद वाली लस्सी बना सकते हैं. यदि जीरा व नमक आदि डाल कर बनाएं तो नमकीन लस्सी बन जाती है.

पुदीने वाली छाछ, सत्तू वाली नमकीन छाछ. मसाला छाछ आदि बना सकते हैं. छाछ और लस्सी दोनों ही पेट की जलन, ऐसिडिटी को भी दूर करती हैं और इन के सेवन से वजन भी नहीं बढ़ता है.

सत्तू वाली छाछ बनाना बहुत आसान है. बस 4 गिलास ठंडी छाछ ले कर उस में 4 चम्मच सत्तू, 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती और काला व सफेद नमक डाल कर चर्न करे लें. क्रश्ड आइस डाल कर सर्व करें.

4.कोकोनट कूलर:

फ्रैश नारियल न हो तो नारियल पानी के कैन भी बाजार में उपलब्ध होते हैं. इस के पानी में पुदीनापत्ती, हरीमिर्च, लैमन, थोड़ा सा शुगर सिरप, चाटमसाला डाल कर चर्न कर सर्व करें.

चिया सीड्स के साथ भी बना सकते हैं. चिया सीड्स सेहत के लिए वैसे ही बहुत अच्छे होते हैं.

कोकोनट चिया सीड्स कूलर बनाने के लिए 1 कप नारियल पानी में 1 बड़ा चम्मच चिया सीड्स डाल कर चम्मच से चलाते रहें ताकि चिया सीड्स फूलने पर इकट्ठे न हों. इस में नीबू का रस, 2 कप नारियल पानी व जलजीरा पाउडर डालें. लैमन क्यूब्स को क्रश कर के मिलाएं. ठंडाठंडा सर्व करें.

5.आम पना:

पके आम तो सब को अच्छे लगते हैं पर कच्चे आम भी कम नहीं. इन का सिर्फ अचार ही नहीं डाला जाता, ये गरमी से भी बचाव करते हैं. आम को उबाल कर छील लें फिर पीस कर चाशनी में मिलाएं, ठंडा पानी मिला कर सर्व करें.

इस का जलजीरा भी बहुत अच्छा लगता है. जलजीरा बनाने के लिए कच्चे या उबले आम में पुदीनापत्ती, अदरक, कालानमक, सफेद नमक, शुगर सिरप और जलजीरा पाउडर डाल कर मिक्सी में चर्न करें. छान कर क्रश्ड आइस क्यूब्स व बूंदी डाल कर सर्व करें.

6.खरबूजा शरबत:

खरबूजे में 95 प्रतिशत पानी होता है. इस में भरपूर मात्रा में फाइबर होता है. शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए खरबूजे का सेवन बेहतर विकल्प है. खरबूजे को ठंडे दूध के साथ मिला कर शेक बनाएं. यह बहुत ही तरावट देता है.

खरबूजे में खस का शरबत और थोड़ा दूध डाल कर चर्न करें. बढि़या शेक तैयार हो जाता मिनटों में.

7.बेल का शरबत:

बेल ऐनर्जी बूस्टर है. इस का शरबत घर पर बनाना आसान है. इस के गूदे से बीजों को अलग कर गूदे में थोड़ी चीनी और नीबू का रस डाल कर चर्न कर के फ्रिज में रखें. 3-4 दिन आराम से चलेगा. बस ठंडा पानी और थोड़ा शुगर सिरप डाल कर पीएं.

लगभग 250 ग्राम पके बेल के पल्प में 500 ग्राम चीनी, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस डाल कर चर्न कर छान लें. जब भी पीना हो सिर्फ 2 हिस्सा बेल लें व 2 हिस्सा ठंडा पानी मिला कर चर्न कर पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

पहले से करें तैयारी

पहले से ड्रिंक्स बनाने की तैयारी के लिए शुगर सिरप बनाएं. एक बार बनाएं और 15-20 दिन की छुट्टी. शुगर सिरप 2 तरह के बना कर रखें. एक नौर्मल शुगर का व दूसरा ब्राउन शुगर का.

2 कप चीनी में 3/4 कप पानी डाल कर मीडियम आंच पर पकाएं. जब चीनी घुल जाए व उबलने लगे तब 2 मिनट और पकाएं. इस में 1 चम्मच नीबू का रस डाल कर आंच बंद कर दें. इस से चाशनी की गंदगी अलग हो जाएगी व चाशनी में क्रिस्टल नहीं बनेंगे. ठंडा कर के और छान कर कांच की बोतल में भर कर रख लें. इसी तरह ब्राउन शुगर का सिरप तैयार करें.

औरेंज जूस, मैंगो प्यूरी, लैमन जूस आदि में थोड़ी सी चाशनी, नीबू का रस व पुदीनापत्ती डाल कर आइसक्यूब ट्रे में जमा दें. फिर जिप वाले पाउच में भर कर रख लें. किसी भी जूस में ये आइसक्यूब्स क्रश कर के डालें. इस के अलावा जीरा पाउडर, कालीमिर्च पाउडर, चाटमसाला, काला नमक, खस सिरप आदि जरूर रखें. दही, खीरा, तरबूज, बेल, नीबू आदि तो गरमियों में घर पर होने ही चाहिए.

मेरा बॉयफ्रेंड बचकानी हरकत करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 29 साल की कुंआरी लड़की हूं. एक 25 साल का लड़का मुझ से शादी करना चाहता है. पर उस के साथ एक दिक्कत यह है कि वह कभीकभार बचकानी हरकतें कर देता है, जिस से मुझे लोगों के बीच शर्मिंदा होना पड़ता है.

हालांकि वह नौकरी करता है, पर दूसरों के सामने अपनी बात कहने में उस का पसीना छूट जाता है. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के कम उम्र आशिक में आत्मविश्वास की कमी है, जो ज्यादा चिंता की बात नहीं. आप प्यार से उसे दुनियादारी और व्यवहार के बारे में समझाती रहें कि उस में क्याक्या बदलाव आप चाहती हैं.

बचकानी हरकतें हर कोई करता है, पर इनसान उम्र, हालात और वक्त के साथ मैच्योर होता जाता है. हो सकता है कि शादी के बाद उस की ये हरकतें छूट जाएं. लेकिन आप खुद की ज्यादा समझदारी के दम पर उस पर हावी होने की कोशिश करेंगी तो दिक्कतें भी पेश आएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मैं मां हूं इस की -भाग 5 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजेहद

घर आ कर श्लोका निढाल हो बिछावन पर पड़ गई और सुबकते हुए सोचने लगी कि निखिल उसे ऐसे धोखा देगा, सपने में भी नहीं सोचा था उस ने. उसे तो लगा था, वह भी उस से उतना ही प्रेम करता है जितना वो. लेकिन उस ने तो सिर्फ उस के शरीर से प्रेम किया. छलता रहा उसे भ्रम में रख कर कि वह उस पर मरता है. लेकिन, अब मरने लायक तो उस की जिंदगी बन चुकी है. उठ कर उस ने निखिल को फिर से फोन लगाया, लेकिन शायद उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया. उस का सिर इतनी जोर से घूमा कि वह लड़खड़ाती हुई पलंग पर गिर पड़ी. उस की आंखों से अश्रु धारा बहने लगे.

अपने पेट पर हाथ रख उस ने महसूस किया कि एक जीव उस के अंदर सांस ले रहा है. ‘न… नहीं, एक मां हो कर मैं अपने ही बच्चे को नहीं मार सकती,’ वह खुद में ही बुदबुदाई. ‘लेकिन, समाज और परिवार से कैसे लड़ोगी तुम? अकेले पाल सकोगी इस बच्चे को?’ श्लोका के दिल से आवाज आई, तो वह चीख पड़ी और अपने दोनों कान बंद कर लिए.

श्लोका खुद से ही रोज लड़ रही थी. उस का एक मन कहता कि इस बच्चे को गिरा दो और दूसरा कहता, एक मां हो कर वह अपने बच्चे को कैसे मार सकती है?

बेटी का कमजोर और पीला पड़ता चेहरा देख कर अंजू पूछती कि तबीयत ठीक तो है न उस की? नहीं तो चल कर किसी डाक्टर से दिखा देते हैं. लेकिन श्लोका अपनी पढ़ाई और कैरियर की टैंशन बता कर मां को चुप करा देती. लेकिन वह कब तक झूठ बोलेगी अपनी मां से? उस का बढ़ता पेट एक न एक दिन तो सचाई उगलेगा ही न.

उस दिन मिलने पर जब विनी ने पूछा कि क्या हुआ है उसे? इतनी ढीलीढाली क्यों दिख रही है वह? तब श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने विनी को सारी बात बता दी.

“तू सही कहती थी विनी. निखिल सही में धोखेबाज निकला. वह मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्रेम करता था. लेकिन अब मैं क्या करूं, नहीं समझ आ रहा मुझे,” बोलते हुए श्लोका सिसक पड़ी.

“देख, जो हो गया उसे भूल जा. लेकिन, अब तेरे पास एक ही रास्ता है कि तू इस बच्चे को गिरा दे,” एक अच्छी दोस्त की तरह सलाह देते हुए विनी बोली.

“गलती इनसान से ही होती है, लेकिन उस गलती को हम पूरी जिंदगी ढो तो नहीं सकते न,” लेकिन श्लोका कहने लगी कि वह इस बच्चे को नहीं गिराना चाहती. और उन की गलती की सजा ये बच्चा क्यों भुगते, इसलिए वह इस बच्चे को जन्म देगी.

“पागल है क्या… कुछ भी बोल रही है,” विनी ने हैरानी से कहा, “इस एक बच्चे की खातिर तू अपनी पूरी लाइफ हेल करेगी? नहींनहीं, मैं तुम्हें ऐसा पागलपन नहीं करने दूंगी श्लोका,” एक सच्चे दोस्त की तरह विनी ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की कि यह समाज और खुद उस के मांपापा भी इस बच्चे को कभी नहीं स्वीकारेंगे. इसलिए वह इस बेकार की जिद को छोड़ दे. लेकिन श्लोका कहने लगी कि अगर उस ने इस बच्चे को मार दिया तो उस का जमीर कभी उसे माफ नहीं करेगा. चैन से वह जी नहीं सकेगी कभी. श्लोका ने जैसे दृढ़निश्चय कर लिया था इस बच्चे को जन्म देने का.

“ठीक है, तो फिर बता आगे क्या सोचा है तू ने?”

“नहीं पता मुझे, लेकिन मैं यहां से कहीं दूर चली जाना चाहती हूं,” अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए जब श्लोका बोली, तो वीनी को उस पर दया हो आई और उस ने सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वह उस की मदद करेगी.

विनी की मनीषा बुआ मुंबई में एक एनजीओ चलाती है. यह संस्था सैक्स वर्कर्स और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए काम करती है. उन्हें फाइनैंशियली इंडिपेंडेंट बनाती है.

वैसे तो वह विनी की अपनी बुआ नहीं है, लेकिन अपनों से भी बढ़ कर है उस के लिए. विनी जब 12 साल की थी, तभी उस की मां गुजर गई थी. तब मनीषा बुआ ने ही मां बन कर उसे संभाला था.

मनीषा बुआ से फोन पर बात कर विनी ने श्लोका के बारे में उन्हें सारा कुछ बता दिया. श्लोका के मुंबई जाने का सारा इंतजाम भी हो चुका था.

अपने मांपापा से उस ने यही बहाना बनाया कि वह एक साल के इंटर्नशिप के लिए मुंबई जा रही है. लेकिन ऐन वक्त पर सब गड़बड़ हो गया.

अंजू जब श्लोका के बेड पर धुली चादर बिछा रही थी, तभी गद्दे के नीचे से यूज्ड प्रेग्नेंसी किट नीचे गिर गई.

पहले तो अंजू कुछ समझ नहीं पाई. लेकिन जब समझ में आया तो घर में बवाल मच गया. अब कुछ पूछनाताछना क्या था. वह तो श्लोका को देखते ही उस पर ऐसे टूट पड़ी जैसे हड्डी को देख कर कुत्ते. जो भी मिला उसी से उसे मारने लगी. तड़ातड़ उस के गालों पर थप्पड़ बरसाते हुए पूछने लगी कि किस का पाप वह अपने पेट में लिए घूम रही है. क्यों, क्यों उस ने उन के विश्वास को तोड़ा?

श्लोका के पापा आलोक भी बेटी पर उंगली उठाते हुए कहने लगे कि उस ने उन की नाक कटवा दी. अगर लोगों को यह बात पता चल गई, तो वे लोग कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. फिर कौन उन की बेटियों से शादी करेगा? लेकिन, अब मारमार कर किसी की जान तो नहीं ली जा सकती न, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि जितनी जल्दी हो, इस पाप को नष्ट कर दिया जाए. और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर श्लोका की शादी करा दी जाए. कहां तो श्लोका मुंबई जा कर इस बच्चे को जन्म देने की सोच रही थी. और कहां वह इस घर में नजरबंद हो कर रह गई.

लेकिन अंजू को कहां चैन था. वह तो पागलों की तरह कभी श्लोका को पका पपीता खिलाती, तो कभी काढ़ा पिलाती, ताकि उस का पेट घर में ही गिर जाए और वे डाक्टर के पास जाने से बच जाए. अपनी इज्जत बचाने के लिए वह घरेलू उपायों से ही श्लोका का पेट गिरा देना चाह रही थी. मगर बेवकूफ अंजू यह समझ नहीं आ रहा था कि इस से श्लोका की जान भी जा सकती है.

हमारे समाज में आज भी एक लड़की का बिनब्याही मां बनना, उस के मांबाप के लिए कलंक की बात होती है. आज अगर श्लोका शादीशुदा होती तो क्या अंजू और आलोक चाहते कि उस का अबोर्शन करा दिया जाए?

भारत में हर रोज अनसेफ अबोर्शन की वजह से करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. दुनियाभर में हर साल 12 करोड़ से ज्यादा औरतें बिना प्लान के प्रेग्नेंट होती हैं, इस में से 30 फीसदी का अंत अनसेफ अबोर्शन है और जिस का नतीजा 5 से 13 महिलाओं की मौत हो जाती है. लेकिन, इस बात से आलोक और अंजू को क्या मतलब…? उन्हें तो बस अपनी इज्जत प्यारी है. बेटी जिए या मरे, इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

जब भी श्लोका पर अंजू की नजर पड़ती, वह उसे पीटने लगती, गालियां बकने लगती और कहती कि, पैदा होते ही वो मर क्यों नहीं गई. मांबाप के तिरस्कार और मार से श्लोका जड़ बनी कमरे में गुमसुम सी पड़ी बस छत निहारती रहती. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उस के साथ हो क्या रहा है. जैसे उस की मतिगति भुला गई थी. उस के दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. ऐसा होता है न, जब आदमी के दिमाग पर चोट पड़ती है तो उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो जाती है. अंजू ने उसे इतना मारा था कि बेचारी कुछ बोलने लायक ही नहीं बची थी, तो सोचती क्या और समझती क्या.

उस दिन जब विनी का फोन आया और उस ने पूछा कि वह तैयार है न मुंबई जाने के लिए? तो जैसे उसे होश आया… और वो बदहवास सी एकदम झटके से उठ बैठी. सुनाई दे रहा था उसे, हाल में आलोक किसी डाक्टर से बात कर रहा था उस के अबोर्शन के लिए.

श्लोका बिना डरे आलोक और अंजू के सामने तन कर खड़ी हो गई जा कर और बोली कि वो इस बच्चे को जन्म देगी, चाहे जो हो जाए. और अगर उन लोगों ने उस के साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पुलिस में जाएगी.

पुलिस का नाम सुनते ही अंजू और आलोक सिटपिटा गए. उन्हें लगा, बदनामी तो होगी ही, जेल जाना पड़ेगा, सो अलग. फिर उन के बाकी बच्चों का क्या होगा.

अंजू अपनी छाती पीटपीट कर कहने लगी कि अगर उसे पता होता कि बेटी ऐसा कुछ करेगी, तो वह उसे इतनी आजादी देती ही नहीं. गलती हो गई उसे इतना पढ़ालिखा कर.

“तो फिर तुम भी सुन लो. तुम्हें इस बच्चे और हम में से किसी एक को चुनना होगा,” आलोक के मुंह से यह बात सुन कर पहले तो श्लोका को समझ नहीं आया कि वह क्या करे. लेकिन अपने मन को कड़ा कर उस ने अपने बच्चे को चुना. लेकिन, यह फैसला लेते वक्त उस का दिल कितना रोया था, वही जानती है.

अपनी आंखों में आंसू लिए श्लोका ट्रेन पकड़ कर मुंबई पहुंच गई. मनीषा बुआ स्टेशन पर उसे लेने आई थी. लेकिन यहां आ कर भी श्लोका के दिमाग में बारबार यही खयाल आ रहा था कि उस ने अपने मांपापा को दुख दे कर अच्छा नहीं किया. लेकिन इस बच्चे को भी तो नहीं मार सकती थी न वो.

“तुम क्या चाहती हो तुम्हारा बच्चा यों… ऐसा पैदा हो?” वानर सा मुंह फुला कर मनीषा बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.

“हां, ऐसी ही हंसती रहा करो, ताकि तुम्हारा बच्चा भी हंसताखिलखिलाता पैदा हो,” श्लोका के हाथों में जूस का गिलास पकड़ाते हुए मनीषा बुआ कहने लगी, “जानती हो श्लोका, लोगों को हमेशा यही लगता है कि उस का दुख सब से बड़ा है. लेकिन जब तुम मेरे संस्था में रह रही महिलाओं से मिलोगी, उन्हें नजदीक से जानोगी न, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा दुख उस से कितना छोटा है. ‘अमृत’ फिल्म का गाना नहीं सुना तुम ने…? ‘दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है, लोगों का गम देखा, तो मैं अपना गम भूल गया…’

“मैं भी इन का दुख देख कर अपना दुख…” बोलतेबोलते बुआ एकदम से चुप हो गई.

“अच्छा, अब तुम आराम करो. और किसी भी चीज की जरूरत हो तो बोलने से हिचकिचाना मत, समझी.” एक मां की तरह उस के सिर को प्यार से सहलाते हुए बुआ बोली, तो श्लोका अपलक उन्हें देखने लगी कि काश, उस की मां भी ऐसे ही उसे प्यार करती, उसे समझती.

“ले, अब क्या सोचने लग गई फिर?” उस के हाथ से जूस का खाली गिलास लेते हुए बुआ ने श्लोका की आंखों में झांका, तो वह मुसकरा पड़ी.

“ओहो, देख तो मुसकराते हुए कितनी प्यारी लगती है. वैसे, अगर तुम चाहो तो मेरी संस्था से जुड़ सकती हो, तुम्हारा टाइम भी अच्छे से पास हो जाएगा और तुम उन्हें नजदीक से जान भी पाओगी,”

बुआ की बात पर श्लोका ने हां में सिर हिला तो दिया, पर वह सोचने लगी कि बुआ कुछ बोलतेबोलते रुक क्यों गई? क्या उन के जीवन में भी कोई दुख है?

विनी ने तो उस से बुआ के बारे में इतना ही बताया था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इस संस्था के नाम कर दिया. श्लोका ने कई बार बुआ से उन की जिंदगी के बारे में जानना चाहा, पर उस की हिम्मत नहीं पड़ती थी कुछ पूछने की.

इसी तरह दिन बीतने लगे. बुआ श्लोका के खानेपीने से ले कर दवाई, डाक्टर का भी पूरा ध्यान रखती थी. उसे किसी भी बात की टैंशन नहीं लेने देती थी. लेकिन टैंशन तो होती ही थी न कि वहां उस के मांपापा कैसे होंगे? उन्हें कई बार फोन भी लगाया, पर उन्होंने एक बार भी श्लोका का फोन नहीं उठाया.

बात साफ थी कि अब श्लोका से उन लोगों को कोई मतलब नहीं था. वह जिए या मरे, इस बात से उन्हें कोई लेनादेना नहीं था. हां, लेकिन विनी से कभीकभार वहां की खबर मिल जाया करती थी.

विनी ने ही बताया था उसे कि उस की छोटी बहन निशि की शादी हो गई. ‘लेकिन, निशि का सपना तो आईएएस बनने का था. फिर क्यों मांपापा ने उस की शादी करवा दी? अच्छा, तो इस का मतलब मेरा गुस्सा निशि पर कहर बन कर बरपा. आखिर हम लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? क्यों समाज में हमें अपनी मरजी से जीने नहीं दिया जाता? खुद में ही बोल कर श्लोका रो पड़ी और बोली कि वह अपनी छोटी बहन की गुनाहगार है. न वो निखिल से प्रेम करने की गलती करती और न ही उस के साथ ऐसा होता?

खैर, धीरेधीरे समय तो सरक ही रहा था. मनीषा बुआ के प्यार और स्नेह का ही नतीजा था कि 9 महीने पूरे होने पर श्लोका ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया ‘अंश’.

अपने बेटे अंश के प्यारे से मुखड़े को देख कर श्लोका अपने सारे दुखदर्द भूल जाती थी. जब पहली बार उस ने अपनी तोतली जबान से मां बोला, तो श्लोका को लगा कि आज उस का संघर्ष खत्म हुआ.

मनीषा बुआ और श्लोका के आंचल तले अंश धीरेधीरे बड़ा होने लगा. लेकिन यहां भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी, जिस ने श्लोका के चरित्र पर सवाल न उठाए हों. बारबार अंश के पिता का नाम पूछ कर लोग उस पर तंज कसते. अश्लील और भद्दी बातें कह कर उसे कमजोर बनाते.

श्लोका लोगों की बातों से परेशान हो कर जब रोने लगती, तब बुआ उसे समझाती कि लोगों का तो काम ही है बोलना. बोलने दो न. और तुम कमजोर कैसे हो गई? एक बिनब्याही लड़की जो समाज और परिवार से लड़ कर, अपने बच्चे को जन्म देने का कठोर फैसला लेती है, वो कमजोर तो हो ही नहीं सकती कभी?

मनीषा बुआ ने श्लोका को सिर्फ सहारा ही नहीं दिया, बल्कि जीवन के पाठ भी पढ़ाए, जो उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा था. श्लोका, अब पहले वाली श्लोका नहीं रही. वह एक निडर औरत बन चुकी थी.

श्लोका अपनी जौब के साथसाथ मनीषा बुआ की इस संस्था से भी जुड़ी हुई थी. छुट्टी के दिन या समय निकाल कर वो उन औरतों से जा कर मिलती, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं. घरेलू हिंसा की शिकार और सैक्स वर्कर्स की महिलाओं की कहानी सुन कर श्लोका के रोंगटे खड़े हो जाते थे.

25 साल की मालती की कहानी सुन कर तो श्लोका का दिल ही दहल उठा. मालती जब 17 साल की थी, तब उस के अपने ही एक रिश्तेदार ने उस का रेप किया, जिस से वह पेट से हो गई थी. बिनब्याही मां बनी मालती को जब बच्चा हुआ, तब उस के मातापिता उस बच्चे को किसी अनाथालय में जा कर छोड़ आए और फिर उस अनाथालय वालों ने उस बच्चे को किसी और को बेच दिया. अब वह बच्चा कहां है, मालती को कुछ नहीं पता. लेकिन वह तरस रही है अपने बच्चे को देखने के लिए. कहती है, वह जीना चाहती थी अपने बच्चे के साथ, पर मातापिता के दबाव में आ कर उसे अपने से दूर करना पड़ा. इस संस्था से जुड़ी ऐसी कितनी ही महिलाएं थीं, जिन का जीवन नरक बन चुका था.

अंश के 5 साल पूरे होने पर श्लोका चाहती थी कि उसे किसी अच्छे स्कूल में डाल दिया जाए, ताकि उस की बदमाशी थोड़ी कम हो और वह भी अपने काम पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे सके. एडमिशन फार्म भरते समय प्रिंसपल अंश के पिता के बारे में कुछ पूछती, उस से पहले ही श्लोका ने उन्हें साफसाफ बता दिया कि वह अपने बच्चे की सिंगल पेरेंट है. और समाज या कोई भी एक महिला को यह बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकता कि उस के बच्चे का पिता कौन है? इसलिए फिर प्रिंसिपल ने कोई सवाल नहीं उठाया और अंश का उस स्कूल में एडमिशन हो गया.

श्लोका अंश को स्कूल छोड़ कर उधर से ही औफिस चली जाती थी, और फिर एनजीओ. और बुआ फिर अंश को स्कूल से जा कर ले आती थी और यही रोज का नियम था.

श्लोका औफिस से जब घर आई तो देखा बुआ और अंश खूब धमाचौकड़ी मचा रहे हैं और घर का सारा सामान यहांवहां बिखरा हुआ है.

“श्लोका, आ गई तू… देख, तेरे इस बेटे ने दौड़ादौड़ा कर मेरी जान ले रखी है,” हांफती हुई बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.

“हंस क्या रही है. पकड़ इस शैतान को न.”

“अंश, बस अब हो गया बेटा. देखो, नानी मां थक गई हैं, इसलिए अब आप टीवी पर कार्टून देखो,” टीवी औन करते हुए श्लोका बोली, लेकिन वह कहां मानने वाला था. उसे तो अपनी नानी मां के साथ अभी और खेलना था.

“अच्छा चलो, पहले हम कुछ खाते हैं, फिर खेलेंगे. ओके ?” लेकिन, अंश तो अपनी जिद पर ही था कि उसे अभी और खेलना है नानी के साथ.

“ओहो, कितना जिद्दी हो गया है यह बुआ. रुको, अभी बताती हूं,” कह कर वह उस के पीछे भागी थी कि तभी वह जा कर बुआ की गोद में छुप गया और कुछ ही देर में उसे नींद आ गई.

“अच्छा हुआ जो सो गया,” श्लोका ने राहत की सांस ली और हंस पड़ी.

बुआ को बड़े प्यार से अंश के बालों में उंगली फिराते देख आज श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने उन के अतीत के बारे में पूछ लिया.
लेकिन अपने अतीत के बारे में क्या बताती कि वे भी उसी दर्द से गुजर चुकी हैं, जिस से श्लोका. यहां फर्क सिर्फ इतना था कि श्लोका को बिनब्याही मां बनने की सजा मिली और उन्हें बांझ होने की.

शादी के 5 साल बाद भी जब मनीषा बुआ मां नहीं बन पाईं, तो घर में सब की नजरें टेढ़ी हो गईं. उस पति की भी, जिस ने सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. सिर्फ एक बच्चा न होने से उन का नाम मनीषा से बांझ औरत पड़ गया.

मां न बन पाने के कारण अब उन के साथ उस घर में अलग ही तरह का व्यवहार होने लगा. पति सास, ननद और जेठानी की आंखों में अपने लिए व्यंग्यात्मक घृणा के भावों को देख कर बुआ सोचती कि क्या ये वही लोग हैं, जो कभी उन्हें सिरआंखों पर बिठा कर रखते थे? क्या एक मां न बन पाना औरत के लिए इतना बड़ा पाप होता है कि लोग उस का मुंह भी देखना पसंद नहीं करते?

एक दिन जब बुआ को पता चला कि उन के पति की दूसरी शादी की बात चल रही है घर में, तो वह टूट गई. पति से सवाल किया, तो जवाब में तलाक के पेपर उस के सामने यह कह कर पटक दिए गए कि साइन करो इस पर, क्योंकि उन्हें वंश चाहिए और वह एक बांझ औरत है.

तलाक के बाद बुआ का अब इस घर में बचा ही क्या था. लेकिन मायके में भी कहां कुछ रह गया था. मातापिता रहे नहीं, भाईभाभी ने अपनाने से इनकार कर दिया तो अब उन के पास एक ही रास्ता बचा था कि वह कहीं जा कर डूब मरे या जहर खा कर सो जाए. वह नदी में कूदने ही वाली थी कि किसी ने पीछे से उन्हें खींचा. एक औरत श्वेत वस्त्र पहने खड़ी थी. उन का चेहरा सूरज सा चमक रहा था. अभी भी उन का हाथ बुआ के हाथ को पकड़े हुए था और वह पूछ रही थीं कि वह मरना क्यों चाहती है? तब बुआ फफक कर रो पड़ी. बुआ की कहानी सुन कर उन्हें दुख हुआ. वह औरत बुआ जैसी महिलाओं की मदद करती थीं. उस औरत की वजह से बुआ को एक आसरा मिल गया.

धीरेधीरे दोनों का रिश्ता मांबेटी जैसा बन गया था. उस औरत के गुजरने के बाद इस संस्था को बुआ ही संभालने लगीं और अपना पूरा जीवन इसी में लगा दिया.

अपनी सोच से बाहर निकल कर बुआ ने एक लंबी सांस ली और कहा, “पता नहीं क्यों, हम औरतों के साथ ही ऐसा क्यों होता है. अगर हम बिनब्याही मां बने तब भी और अगर मां न बन पाएं, तब भी समाज हम से ही सवाल क्यों करता है. सारा दोष हम पर ही क्यों मढ़ता है, हम पर ही उंगलियां क्यों उठाई जाती हैं?

लेकिन सचाई तो यही है कि समाज हमें अपने हिसाब से चलाना चाहता है और हम उन के हिसाब से चलना नहीं चाहते, बस इतनी सी बात है,” बोल कर बुआ जोर से हंस पड़ीं, तो श्लोका भी खिलखिला पड़ी.

अंश अब 8 साल का हो चुका था और बस से स्कूल जाने लगा था. आज बस की हड़ताल थी, इसलिए श्लोका औफिस के बीच से ही निकल कर अंश को लेने उस के स्कूल पहुंच गई. लेकिन जब वाचमैन ने बताया कि उसे ले कर कोई चला गया, तो श्लोका को लगा, शायद बुआ आ कर उसे ले गई होंगी. लेकिन जब बुआ ने बताया कि अंश उन के पास नहीं है, तो श्लोका को चिंता हो आई कि फिर कौन उसे ले कर चला गया. वहां खड़े वाचमैन को उस ने झाड़ लगाई और कहा कि कैसे कोई भी आ कर उस के बच्चे को ले कर चला गया और उसे पता नहीं चला?

तभी पीछे से अंश ‘मम्मामम्मा’ करते उस के आंचल से लिपट गया, तो जैसे उस की जान में जान आई.

‘”कहां गए थे आप?” वह उस से अभी पूछ ही रही थी कि पीछे से निखिल को आते देख उस का पूरा शरीर गनगना उठा. “तुम यहां…? ओह, तो तुम ले गए थे मेरे बेटे को?”

“हां, मम्मा, मैं इन के साथ ही था. ये बता रहे थे कि ये आप के दोस्त हैं, तो मैं इन के साथ चला गया,” अंश कहने लगा, “पता है मम्मा, ये अंकल न बहुत अच्छे हैं. इन्होंने मुझे चौकलेट खरीद कर दी और आइसक्रीम भी.“

“अंश, मैं ने आप को समझाया था न कि किसी भी अनजान आदमी से बात नहीं करनी चाहिए और न ही उस के साथ कहीं जाना चाहिए? फिर आप ने मेरी बात क्यों नहीं मानी?”

मां को गुस्से में देख अंश की आंखें भर आईं और वह अपना होंठ बिलखाते हुए रोने ही वाला था कि श्लोका ने प्यार से उस से कहा, “सौरी, मुझे आप को नहीं डांटना चाहिए था. लेकिन, अब से आप ऐसा नहीं करेंगे न ?” मां की बात पर अंश ने सिर हिला कर कहा कि अब से वह ऐसा कभी नहीं करेगा.

“मेरा प्यारा बच्चा, अब आप जा कर गाड़ी में बैठो, ओके. मुझे अंकल से कुछ बात करनी है, ओके,“ श्लोका ने गौर से देखा, निखिल में पहले वाली फुटानी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. जैसे किसी चीज का भाव नहीं गिरा जाता है. वैसे ही उस का भी भाव गिरा हुआ जान पड़ रहा था, पर उसे उस से क्या. उसे तो अब उस के नाम से भी चिढ़ होती है, तो बात करना तो दूर की बात है, लेकिन आज उस के बेटे की बात थी, इसलिए उस से मुंह लगाना जरूरी था.

“तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मेरे बेटे को यहां से ले जाने की? अगर मैं पुलिस में कंप्लेन कर दूं तो…? बच्चा किडनैपिंग में जेल जाओगे सीधे?” श्लोका गुस्से से फट पड़ी.

“सौरी श्लोका, मुझे इस तरह से अंश को यहां से नहीं ले जाना चाहिए था. लेकिन मैं यहां तुम से माफी मांगने आया हूं. प्लीज, मुझे माफ कर सको तो…” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल बोला, लेकिन श्लोका को समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने सालों बाद वह यहां उस से मिलने क्यों आया है? सिर्फ माफी मांगने तो नहीं आया होगा?

“हां, पता है मुझे कि मैं तुम से माफी मांगने के काबिल भी नहीं रहा. लेकिन…”

“ए… एक मिनट,” श्लोका ने उसे बीच में ही टोका, “यह सब क्या…? यह सब नाटक किसलिए? जब मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल चुकी हूं, फिर ये माफीवाफी का दिखावा किसलिए?”

“अपने बेटे के लिए. मुझे पता चल गया कि अंश मेरा ही खून है और मैं उसे यहां से ले जाने आया हूं,” एकदम से निखिल ने कहा, तो श्लोका चौंक उठी.

“क्या… क्या, क्या? फिर से कहना जरा,” श्लोका ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा, “अंश तुम्हारा बेटा है. और तुम उसे यहां से ले जाने आए हो? लेकिन, यह तुम से किस ने कह दिया कि अंश तुम्हारा बेटा है?”

“मुझे पता है और इस के लिए तुम जो चाहो, मतलब, मैं कुछ भी देने को तैयार हूं. अपनी सारी संपत्ति भी, पर मुझे मेरा बेटा चाहिए,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल कहने लगा कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई, लेकिन उस भूल की इतनी बड़ी सजा मिलेगी नहीं पता था उसे.

दरअसल, एक एक्सीडेंट में निखिल पिता बनने की शक्ति खो चुका है. और जब उसे पता चला कि अंश उस का ही बेटा है तो वह उसे ढूंढ़ते हुए यहां लेने पहुंच गया.

“अच्छा, तो तुम्हें पता था कि मेरे पेट में तुम्हारा ही बच्चा है, फिर भी तुम ने मुझे चरित्रहीन कहा. यह कह कर कि पता नहीं मैं किस का पाप तुम्हारे माथे मढ़ना चाहती हूं. और अब जब तुम्हें पता चला कि तुम बाप नहीं बन सकते तो तुम्हें अंश अपना बेटा लगने लगा?

“याद नहीं, तुम ने ही तो कहा था न कि मैं इस बच्चे को गिरा दूं? फिर किस मुंह से तुम इसे यहां लेने पहुंच गए हो…“ श्लोका चिल्ला पड़ी एकदम से, “तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं अपना बेटा तुम्हें दे दूंगी? वह मेरा अंश है, मैं मां हूं इस की. तुम कोई नहीं लगते इस के, समझे…?

“अरे, देना तो दूर की बात है, मैं तुम्हारी परछाईं तक अपने बेटे पर नहीं पड़ने दूंगी,” बोल कर श्लोका जाने ही लगी कि पीछे से निखिल बोला, “तो क्या तुम एक पिता के नाम के बिना बच्चे को पाल सकोगी? क्या जवाब दोगी समाज और लोगों को, जब वे सवाल करेंगे कि अंश का पिता कौन है?” बड़े ही तन कर निखिल बोला.

“रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया,” श्लोका हंसी, “तुम्हें शायद पता नहीं, पर कोर्ट का यही फैसला है कि बिनब्याही मां ही अपने बच्चे की सबकुछ होगी. वही उस की पालक होगी और उसे पिता के नाम की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि पिता की अनुमति की भी जरूरत नहीं है.

“अगर कोई बच्चे के पिता के बारे में पूछता भी है तो यह गुनाह है,” आज श्लोका बेहद गंभीर और निर्णायक मूड में थी.

श्लोका के कड़े बरताव से निखिल के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं, पर वह दिखा नहीं रहा था.

“और एक बात, एक मां का अपने बच्चे से 9 महीने ज्यादा का रिश्ता होता है, इसलिए वह उस के दर्द को पिता से बेहतर समझती है. तुम्हारे जैसे नहीं, जिस ने उसे पेट में ही मारने का फरमान सुना दिया.”

श्लोका की बात पर निखिल का चेहरा शर्म से नीचे हो गया.

“फिर तुम किस मुंह से यहां बाप का अधिकार जताने चले आए? शर्म नहीं आई तुम्हें यहां आते हुए? तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं, मैं अपने बेटे को तुम्हें दे दूंगी तुम्हारी दौलत के बदले? थूकती हूं मैं तुम्हारी दौलत पर.

“आज तो छोड़ दिया, लेकिन अगर आइंदा से तुम ने मेरे बेटे से मिलने की भी कोशिश की न, तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी, समझे,” बोल कर श्लोका चलती बनी और वह ठगा सा वहां तब तक खड़ा रहा, जब तक कि श्लोका की गाड़ी उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

कर्नाटक की किंग कैसे बनी कांग्रेस

कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को करारी मात देकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है.कांग्रेस ने बहुमत से अधिक कुल 135 सीटें हासिल की हैं वहीँ भाजपाएड़ीचौटी का दम लगाने के बाद भी 64 सीटों में सिमट कर रह गई. कर्णाटक चुनाव में मोदी, शाह और योगी किसी का जादू कर्नाटक में नहीं चला.

पांच साल भाजपा (कु)शासन बर्दाश्त करने के बाद जनता ने उसे बुरी तरह पटखनी दे दी है. इतनी बुरी पराजय की उम्मीद मोदीशाह को नहीं रही होगी. कर्नाटक की जनता पर न बजरंगबली का दांव काम आया और न हिंदुत्व की ध्वजा फहराते योगी का दौरा. कांग्रेस का भ्रष्टाचार का मुद्दा और जनकल्याण के लिए किए वादे ही जनता को जंचे और उसी पर उस जनता ने अपना मत भी दिया. कर्नाटक में भाजपा की हार के साथ लगभग पूरा दक्षिण भारत भाजपा मुक्त हो गया है.

कर्नाटक में भाजपा की पराजय के और भी अनेक कारण हैं.

 

  1. कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना

कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को भाजपा ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं रहा. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना भाजपा को महंगा पड़ा.

 

  1. भ्रष्टाचार

भाजपा की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार का होना था. कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरेधीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक भाजपा विधायक को जेल भी जाना पड़ा. स्टेट कान्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली. भाजपा के लिए यह मुद्दा चुनाव में गले की फांस बन गया और पार्टी इसकी काट नहीं खोज पाई.

 

  1. सियासी समीकरण नहीं साध सकी भाजपा

कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी भाजपा नहीं साध पाई. भाजपा न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और न ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी. वहीं, कांग्रेस मुसलमानों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथसाथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही.

 

4.ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम

कर्नाटक में एक साल से भाजपा के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई. लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें भाजपा के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो भाजपा ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. यह बात कर्नाटक की जनता को पसंद नहीं आई. भाजपा ने इस चुनाव में जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन उसका यह दांव भोथरा साबित हुआ.

 

5- येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा

कर्नाटक में भाजपा को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का भाजपा नेतृत्व ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थाम कर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना भाजपा को महंगा पड़ गया.

 

6- सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी

कर्नाटक में भाजपा की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है. भाजपा के खिलाफ लोगों में नाराजगी पनप रही थी, जिसको समय रहते भाजपा भांप नहीं पाई. धर्म की हांडी को बारबार चुनाव की वेदी पर चढ़ाना काम नहीं आया. सत्ता विरोधी लहर इससे और तेज हुई और उससे निपटने में भाजपा पूरी तरह असफल रही.

Cannes 2023 में शामिल होने बेटी संग निकली ऐश्वर्या ,इस अंदाज में आईं नजर

बॉलीवुड एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन अपनी बेटी के साथ कांस फेस्टिवल 2023 में शामिल होने के लिए निकल गई हैं. ऐश्वर्या और आराध्या दोनों की तस्वीर सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. ऐश्वर्या की नई तस्वीर आई है जिसमें दोनों साथ नजर आ रहे हैं.

तस्वीर में ऐश्वर्या की तस्वीर फैंस को खूब पसंद आ रही है, ऐश्वर्या और आराध्या को साथ देखकर काफी खुश नजर आ रहे हैं, एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें वह फैंस के बीच नजर आ रही हैं. ऐश्वर्या राय अपने फैंस से बात करती नजर आ रही हैं.

 

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ऐश्वर्या काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं तस्वीर में, फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं ऐश्वर्या राय की तस्वीर पर. ऐश्वर्या अपनी बेटी का हाथ पकड़ी नजर आ रही है. जिसमें दोनों काफी ज्यादा प्यारी लग रही हैं.

वहीं कुछ फैंस एयरपोर्ट पर ऐश्वर्या राय के साथ सेल्फी लेते हुए भी नजर आ रहे हैं. जिसमें ऐश्वर्या खूबसूरत स्माइ देती नजर आ रही है. ऐश्वर्या का हेयर स्टाइल लोगों को खूब पसंद आ रहा है. ऐश्वर्या का आउटफिट लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

सरकारी पैसे के बलबूते ‘‘द केरला स्टोरी ’’ प्रोपेगंडा फिल्म के निर्माता को आर्थिक सहायता क्यों?

हर देश का सिनेमा विष्व स्तर पर उस देश का सांस्कृतिक राजदूत होता है. लेकिन पिछले कुछ दशक से देश की सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा बदलने लगा है.जिसे कोई भी फिल्मकार खुलकर स्वीकार करने को तैयार नही है.मगर यह सच है कि फिल्मकार खुद को सत्ता के करीब रखने के लिए उसी एजेंडे के तहत फिल्में बनाता है,जो सरकारी एजेंडा हो.यॅूं तो मलयालम सिनेमा भी सदैव एक एजेंडे के साथ बनता रहा है.मगर मलयालम सिनेमा पर कभी भी ‘एजेंडे वाला सिनेमा’ या ‘प्रोपेगंडा फिल्म’ का लेबल चस्पा नही हुआ.क्योकि मलयालम सिनेमा सिर्फ प्रोपेगंडा के लिए नही बनता,उसमें कहानी होती है ,जिसे यकीन दिलाने के लिए सरकार या किसी अन्य हथकंडे की जरुरत नही पड़ती.लेकिन यह बात कम से कम पिछले आठ दस वर्षों से बन रहे हिंदी सिनेमा के साथ लागू नही होती. पिछले कुछ वर्षों के अंतराल में कई फिल्में महज प्रोपेगंडा और झूठ को सच साबित करने वाली ही बनी हैं.इन फिल्मों को सरकार का अपरोद्वा रूप से वरदहस्त हासिल हुआ और फिल्म के निर्माता निर्देशक की झोली भर गयी.लेकिन इस तरह के सिनेमा से समाज को नुकसान हुआ.लोगों के बीच वैमनस्यता बढ़ी है.

‘द कष्मीर फाइल्स’ से प्रोपेगंडा फिल्म को बढ़ावा यह एक कटु सत्य है.हम यहां छोटे मोट उदहारण को नजरंदाज करते हुए विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 11 मार्च 2022 को प्रदर्षित ‘द कष्मीर फाइल्स’ का जिक्र करना चाहेंगे, जिसे अभूतपूर्व सफलता दिलाने और निर्माता निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की जेब में करोड़ से रूपए पहुंचाने के मकसद से फिल्म को सभी भाजपा षासित राज्यों में टैक्स फ्री करने के अलावा भाजपा के नगरसेवकों व विधायकों ने मुफ्त में फिल्म की टिकटें बांटकर फिल्म का एक अलग माहौल बनाया.परिणामतः पंद्रह करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘‘द कष्मीर फाइल्स’ के निर्माता की जेब में लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ पहुॅच गए।

विपुल अमृतलाल शाह

‘‘द कष्मीर फाइल्स ने कई फिल्मकारों को प्रेरणा दी.इन्ही में से एक हैं- निर्माता व निर्देशक विपुल अमृत लाल षाह. विपुल अमृतलाल षाह ने 2002 में ‘आॅंखें’, ‘2005 में ‘वक्तः द रेस अगेंस्ट टाइम’,2007 में ‘नमस्ते लंदन’ और 2009 में ‘‘लंदन ड्ीम्स’ का निर्देशन किया था.फिल्म ‘‘लंदन ड्ीम्स’’ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा और विपुल अमृतलाल षाह ने निर्देशन से तोबा कर लिया.लेकिन बतौर निर्माता 2010 में उन्होने सबसे पहले फिल्म ‘सिंह इज किंग’ बनायी थी,जिसने अच्छी कमायी की थी.उसके बाद ‘कुछ लव जैसा’ व ‘फोर्स’ बनायी,जिनसे नुकसान हुआ.तब विद्युत जामवाल को लेकर फिल्म ‘कमांडो’ बनायी, इसने उन्हे फायदा दिया.उसके बाद ‘होलीडेः ए सोल्जर नेवर आफ ड्यूटी’ ठीक ठाक चली.पर ‘फोर्स 2’ ने नुकसान पहुॅचाया.फिर

‘कमांडो 2’ और ‘कमाडो 3’ के अलावा ‘सनक’ से उन्हे काफी नुकसान हुआ.निर्माता निर्देशक के तौर पर वेब सीरीज ‘ह्यूमन’ भी नही चली.तब विपुल अमृतलाल षाह ने विवेक अग्निहोत्री के पदचिन्हों पर चलते हुए फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ का निर्माण किया,जिसके निर्देशक सुदीप्तो सेन हैं.

सुदीप्तो सेन

सभी जानते हैं कि सुदीप्तो सेन मूलतः पष्चिम बंगाल से हैं. इसके बावजूद 2006 में सुदीप्तो सेन पहली फिल्म ‘‘द लास्ट मांेक’’ लेकर आए थे,जिसमें उन्होने एक अमीर महिला को धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपनाने की कहानी बयां की थी. इसी से सुदीप्तो सेन की मंषा समझी जा सकती है. सुदीप्तो सेन ने 2022 में ‘‘इन द नेम आफ लव’’ नामक डाक्यूमेंट्ी भी बना चुके हैं.इस डाक्यूमेंट्ी में सुदीप्तो सेन ने कहा है कि केरला राज्य से 17 हजार और मंगलोर से 15 हजार हिंदू व क्रिष्चियन लड़कियों का धर्म बदलवाकर उन्हे मुस्लिम बनाया गया.यह ‘लव जेहाद’ का परिणाम है. ऐसे बनी ‘‘द केरला स्टोरी’’

उसके बाद आनन फानन में वपुल अमृतलाल षाह व सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ बनाकर 5 मई को प्रदर्षित कर दिया.इस फिल्म के निर्माण से लेकर प्रदर्शन से एक सप्ताह पहले तक सब कुछ गुप्त रखा गया.फिल्म के प्रदर्शन से महज एक सप्ताह पहले केरला से 32 हजार लड़कियों को धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनाने के अलावा उन्हे आईएसआई में भेजने की बात प्रचारित कर फिल्म को विवादास्पद बनाया गया.

प्रधानमंत्री और भाजपा का समर्थन

फिर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ की जमकर तारीफ की.तो वहीं भाजपा अध्यक्श जे पी नड्डा ने भी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ देखकर तस्वीरें वारयल करते हुए फिल्म की तारीफ में कसीदे पढ़े.यहीं से सवाल उठता है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित षाह या भाजपा अध्यक्श जे पी नड्डा ने सिर्फ एक खास अजेंडे वाली फिल्में ‘‘द कष्मीर फाइल्स’ और ‘‘ द केरला स्टोरी ’’ ही क्यांे देखी? पांच मई को ही अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ प्रदर्षित मलयालम फिल्म ‘2018’ देखकर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते थे.खैर,यह उनका अपना एकाधिकार है कि वह किस फिल्म को देखो या न देखें.

टैक्स फ्री

फिल्म ‘‘ द केरला स्टोरी’’ के प्रदर्षित होते और जे पी नड्डा द्वारा इस फिल्म को देखने के बाद भाजपा षासित मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड और हरियाणा में टैक्स फ्री कर दी गयी.ऐसा ही ‘ द कष्मीर फाइल्स’ के साथ भी हुआ था.सवाल यह उठता है कि जिन फिल्मों को दर्शक देखना नही चाहता,उन फिल्मों को सरकारें टैक्स फ्री करके सरकारें राजस्व की हानि कर आम इंसान को नुकसान क्यो पहुॅचाती हैं.एक अज्ञानी इंसानी भी यह जानता है कि हर इंसान मनोरंजन चाहता है.हर इंसान मनोरंजन के लिए फिल्म देखना चाहता है.यदि फिल्म अच्छी बनी होगी और मनोरंजक होगी,तो दर्शक हर हाल में फिल्म देखना चाहेगा.पर जो फिल्म मनोरंजक न हो,जिसमें झूठ का लबादा परोसा गया हो,जो बहुत सस्ते स्तरहीन हो,ऐसी फिल्म को टैक्स फ्र्री किया जाना जायज नही ठहराया जा सकता.कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि ‘‘द केरला स्टोरी’ में जिस सच को दिखाया गया है,उससे हर इंसान का वाकिफ होना आवष्यक है.तो सवाल यह भी उठता है कि यह घटना 2016 से 2018 के बीच की है.यदि फिल्मकार की बातों में सच्चाई है तो फिर राज्य सरकार व केंद्र सरकार चुप क्यों रही.फिल्मकार ने अपनी फिल्म में राज्य पुलिस के साथ ही राज्य सरकार या केंद्र सरकार पर कोई उंगली नही उठायी है.मतलब सब कुछ तोड़ मरोड़कर पेश किया गया.

भाजपा नगर सेवक व विधायक बांट रहे हैं मुफ्त की टिकटें
इतना ही नहीं कर्नाटक चुनाव खत्म होते ही भाजपा के नगरसेवक व विधायकों ने लोगों को बिना पैसा लिए हाथ में टिकट पकड़ाते हुए उन्हे ‘द केरला स्टोरी’ देखने के लिए भेजने लगे.विलेपार्ले,मंुबई से नगरसेवक सुनीता राजेश मेहता ने लोगों को व्हाट्सअप संदेश भेजकर रवीवार,14 मई को विलेपार्ले पूर्व,मंुबई स्थित ‘‘सनसिटी’ सिनेमाघर में दिनभर में किसी भी षो में मुफ्त में फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखने का आव्हान किया.अर्थात सिनेमाघर को पैसे भरकर पूरे दिन फिल्म दिखाने का आदेश दिया गया था.विष्व हिंदू परिशद के सुजीत सिंह ठाकुर ने अपना नंबर देकर मंुबई के गोरगांव व जोगेष्वरी इलाके में रहने वाली 18 से तीस वर्श की महिलाओं को 14 मई को मुफ्त में और पुरूषांे ंको सौ रूपए में फिल्म ‘‘ द केरला स्टोरी’’ देखने के लिए बुलाया था. जबकि उससे पहले मंुबई से सेटे भायंदर इलाके की भाजपा विधायक गीता जैन व नगरसेवक रवि व्यास ने 18 से तीस वर्श की महिलाओं को 12 मई को षाम साढ़े चार बजे, मैक्सस माॅल मल्टीप्लैक्स सिनेमा घर में मुफ्त फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ देखने के लिए निमंत्रित किया था.यह महज चंद उदाहरण हैं.जबकि ऐसा हर भाजपा नगरसवेक व भाजपा विधायक अपने अपने क्षेत्र में कर रहा है.

जयपुर में हिंदू को मुफ्त और मुस्लिम को सिनेमाघर में इंट्री बंद

जयपुर मंे कई सिनेमाघरों ने ऐलान किया है कि जो हिंदू भगवा पोषाक पहनकर आएगा,उसे मुफ्त में ‘द केरला स्टोरी’ देखने को मिलेगी. वहीं कुछ सिनेमाघरों ने ऐलान कर दिया है कि उनके यहां मुस्लिम को एंट्ी नहीं मिलेगी.

सांसदों व विधायकों को भाजपा नेतृत्वने सौपा काम

बौलीवुड में हर कोई एक ही बात कह रहा है कि भाजपा नेतृत्व ने अपने सांसदों और विधायकों से कह दिया है कि वह ज्यादा से ज्यादा लड़कियांे और महिलाओं को ‘द केरला स्टोरी’’दिखाने के लिए सिनेमाघरो में लेकर आएं.

टैक्स पेअर का पैसा या….?

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह नगरसेवक और विधायक अपनी जेब से पैसे खर्च कर टिकट खरीदकर लोगों को दे रहे हैं अथवा यह लोग ‘नगरसेवक निधि’ व ‘विधायक निधि’ इस कार्य के लिए खर्च कर रहे हैं? कहीं टैक्स पेअर के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं हो रहा है? क्या इन विधायकों व नगरसेवकों ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखने के बाद केरला जाकर जमीनी सच को जानने का प्रयास किया और क्या इस सच को जानने का प्रयास किया कि अगर यह सच है,तो फिर इसके लिए दोषी कौन हैं.वास्तव में हकीकत यही है ‘‘द केरला स्टोरी’’ एक झूठ का ऐसा पुलंदा है, जिसे लोग देखना नही चाहते,उसे न सिर्फ सस्ती करके बेचा जा रहा है,बल्कि मुफ्म में दिखाया जा रहा है,ताकि एक झूठ को सच साबित करा जा सके. कहीं यह अफीम की आदत डालने वाला मसला तो नही है. तो वही अहम सवाल यह भी है कि यह सभी विधायक व नगर सेवक और विष्व हिंदू परिशद व बजरंग दल से जुड़े लोग सिर्फ 18 से तीस वर्श की उम्र की महिलाओं को ही मुफ्त में ‘‘द केरला स्टोरी’’ क्यो दिखा रहे हैं? क्या इसके पीछे इन सभी की मंषा युवा महिलाओं का ब्रेन वाॅश करना है? केरल के मुख्यमंत्री ने फिल्म को किया था खारिज फिल्म का ट्ेलर आने पर ही केरला के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन अपने बयान में कह चुके हैं कि फिल्म जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य और केरल के खिलाफ नफरत फैलाने के उद्देश्य से बनाई गई है.उनके बयान में कहा गया-‘‘हिंदी फिल्म ‘द केरला स्टोरी‘ का ट्रेलर जो जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य से और केरल के खिलाफ नफरत फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया प्रतीत होता है, पिछले दिन जारी किया गया था। ट्रेलर से यह संकेत मिलता है कि यह फिल्म संघ परिवार के प्रचार को फैलाने की कोशिश कर रही है, जिसने खुद को धर्मनिरपेक्शता की भूमि केरल में धार्मिक अतिवाद के केंद्र के रूप में स्थापित किया है।’’

फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी के सच पर फिल्मकार अडिग क्यों नहीं..

फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखकर यह बात साफ नजर आती है कि फिल्मकार का एक मात्र मकसद हर दर्शक का ‘ब्रेनवाश’ करना मात्र है.फिल्म कहती है कि कोई भी मुसलमान अच्छा नही होता.नास्तिकता व साम्यवाद में अंतर नही है. फिल्म इस बात को भी रेखंाकित करती है कि कोई जान- बूझकर धर्मांतरण नहीं है,गुप्त उद्देश्यों के बिना आपसी प्रेम नहीं है…वाह क्या बात है? पर यह समझ से परे है कि जब नर्स बनने की पढ़ाई कर रही षालिनी का मुस्लिम प्रेमी रमीज उसे धोखा दे देता है,तब वह एक बार अपने माता पिता से मिलने की बजाय मौलवी की बातों में आकर इस्लाम धर्म कबूल कर एक अनजान मुस्लिम युवक इषाक संग षादी कैसे कर लेती है?

इतना ही नही फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन और रचनात्मक निर्माता विपुल अमृतलाल शाह जोर देकर कहते हैं कि उनकी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ केरल की ‘32,000 युवा लड़कियों की सच्ची कहानी‘ पर आधारित है, जिन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के बाद अफगानिस्तान -तुर्की-सीरिया की सीमा पर आईएसआईएस शिविरों में बंदी बना कर रखा गया था.जिनका काम इस्लाम के जेहादियों की सेक्स भूख को षांत करना था.इन षिविरांे में हर लड़की के साथ हर दिन कई बार बलात्कार किया जाता था.यदि यह सच है,तो केरला सरकार ही नहीं केंद्र सरकार की भी इस मसले पर चुप्पी समझ से परे है.

अपनी बात से पलटे निर्देशक सुदीप्तो सेन

मजेदार बात यह है कि 5 मई को ‘द केरला स्टोरी’ प्रदर्षित हुई.चार राज्यों में टैक्स फ्री हो गयी,इसके बाद भी सिनेमाघरों में दर्शक नही थे.तब सोमवार, 8 मई को विपुल अमृतलाल षाह और सुदीप्तो सेन ने आफिस में प्रेस काॅर्फे्रंस बुलायी,जहां उन्होने तमिलनाड़ु में फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ न दिखाने के लिए तमिलनाड़ु सरकार व पष्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की बात की. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुॅच चुका है,जहां तमिलनाड़ु सरकार ने कहा कि उन्हेोन फिल्म पर बैन नही लगाया है.पर सिनेमाघर में दर्शक नही जा रहे हैं,इसलिए शो रद्द किए गए.जब पत्रकारों ने आंकड़ों की बात की,तो सुदीप्तो सेन ने कहा-‘‘आप लोग आंकड़े भूल जाएं.आप सिर्फ यह ध्यान दें कि कुछ तो गलत हो रहा है.जो गलत हो रहा है,उसे ही हमने दिखाया है.आप लोग आंकड़ो पर न जाएं.’’ इसका अर्थ यह हुआ कि सुदीप्तो सेन ने अपनी डाक्यूमेंट्ी में भी गलत आंकड़े पेश किए थे.खैर,इतना ही नही पत्रकारों के कई सवाल थे,मगर निर्माता व निर्देशक दोनों एक ही रट लगाए रहे कि ‘हमें जो कहना था,हमने कह दिया.’उसके बाद वह प्रेस काॅंफ्रेंस छोड़कर चले गए थे.जब उनसे पूछा गया था कि जे पी नड्डा को फिल्म क्यों दिखायी? तब विपुल षाह ने कहा-‘‘यह तो आप उनसे पूछे कि उन्होने ‘द केरला स्टोरी’ क्यांेे देखी.मुझसे क्यों पूछते हो.’इस प्रेस काॅॅंफंेस में निर्माता और निर्देशक दोनों बार बार दोेहराते रहे-‘‘हमने किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ फिल्म नहीं बनायी.हमने सिर्फ सच दिखाया है.’’ अब एक बार फिर बुधवार ,सत्रह मई को ‘द केरला स्टोरी’ के निर्माता व निर्देशक ने प्रेस काफ्रेंस बुलायी है.

फिल्म की सफलता और डेढ़ सौ करोड़ से अधिक कमाने के दावे

फिल्मकार हर दिन अपनी फिल्म के बाक्स आफिस पर सफलता के दावे और डेढ़ सौ करोड़ से अधिक कमाने के दावे करते जा रहे हैं.पर वह यह कबूल करने को तैयार नही है कि सिर्फ वही थिएटर भर रहे हैं,जहां भाजपा विधायक या नगर सेवक,विष्व हिंदू परिशद व बजरंग दल से जुड़े लोग अपनी जेब से टिकट खरीदकर कर लोगों को थिएटर में भेज रहे है,अन्यथा सिनेमाघर खाली पड़े हैं.

केरला में हुए थे शो कैंसिल

केरला में कोची,त्रिवेंद्रम और इर्नाकुलम में ही हिंदी फिल्में देखी जाती हैं.केरला में पांच मई को यह फिल्म पचास सिनेमाघरों /स्क्रीन में लगने वाली थी,पर अंततः सिर्फ तीन स्क्रीन में ही लगी थी.बाकी के षो कैंसिल हो गए थे.क्यांेकि दशर््ाक ही नहीं पहुॅचे थे. ‘‘द केरला स्टोरी’’ के चलते अकोला में सांप्रदायिक झड़पों में एक व्यक्ति की मौत और आठ गंभीर रूप से घायल, डेढ़ सौ से अधिक गिरफ्तार,36 घंटे के लिए

इंटरनेट सेवा बंद

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट् के अकोला शहर में सोशल मीडिया पर विवादित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ पर एक पोस्ट के कारण हिंसा भड़की थी। जिसमें एक युवक की मौत हो गयी.आठ लोग घायल हुए.मारपीट में घायल होने वालों में एक महिला कांस्टेबल भी शामिल है.पुलिस के अनुसार हिंसा सबसे पहले शनिवार,13 मई को शुरू हुई,जब फिल्म के बारे में एक सोशल मीडिया पोस्ट (‘‘द वायर’’के अनुसार यह सब अकोला ‘छत्रपति सेना‘ से जुड़े कट्टरपंथी दक्षिणपंथी समूह के नेता करण साहू द्वारा एक इंस्टाग्राम पोस्ट के साथ शुरू हुआ.) के विरोध में अकोला में एक पुलिस स्टेशन के बाहर एक समुदाय के सदस्य एकत्र हुए.बहरहाल,हिंसा के बाद मुख्यमंत्री ने अकोला जिले में फोर्स भेज दी. धारा 144 लागू कर दी.इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयी.यह सांप्रदायिक वैमनस्ता फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ के चलते पैदा हुई.जबकि ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ यानी कि सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन्स के अनुसार सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने का अंदेषा देने वाली फिल्म को सेंसर प्रमाणपत्र नही दिया जाता.ऐसे में लोग सवाल पूछ रहे है कि क्या सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’ को पारित कर सही किया? 2011 की जनगणना के आंकड़ांे के अनुसार अकोला मंे लगभग 55 प्रतिशत हिंदू,लगभग 13 प्रतिशत बौद्ध,डेढ़ प्रतिशत जैन तथा लगभग तीस प्रतिशत मुस्लिम आबादी है.

जम्मू में झड़पें

रविवार,14 मई को केंद्र षासित प्रदेश जम्मू कष्मीर के जम्मू जिले के एक मेडिकल कॉलेज में भी फिल्म को लेकर झड़पें हुईं.इस झड़प ने हिंसा का रूप ले लिया और कम से कम दो छात्र घायल हो गए, जो कथित तौर पर एक छात्र के व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा की गई फिल्म पर एक पोस्ट के कारण भड़की थी.पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अशांति के लिए संघीय सरकार को दोषी ठहराया और उस पर ‘‘सांप्रदायिक आग भड़काने वाली फिल्मों के माध्यम से‘‘ हिंसा को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया. इंग्लैंड सेंसर बोर्ड ने ‘‘द केरला स्टोरी’ को किया

बैन

इंग्लैंड के सिनेमाघरों में ‘‘द केरला स्टोरी’’ केा दिखाने की सारी तैयारी हो गयी थी.सिनेमाघर मालिको ने टिकटें भी बेच दी थीं. लेकिन फिल्म के प्रदर्शन से एक दिन पहले इंग्लैंड के सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ को सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने वाली बताकर फिल्म को सेंसर प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया.उसके बाद सिनेमाघर मालिकों को फिल्म के षो रद्द करने के साथ ही बेची गयी टिकटों के पैसे भी लौटाने पड़े.ष् तो जिस फिल्म की वजह से देश में सांप्रदायिक वैमनस्यता बढ़ रही हो,ऐसी फिल्म को भाजपा नगरसेवक,विधायक आदि लोगों को मुफ्त में दिखाकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं?

Yrkkh : अबीर को पाने के लिए एक-दूसरे से लड़ेंगे अक्षरा और अभिमन्यु

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए- नए ट्विस्ट आ रहे हैं, फैंस अभि और अक्षरा को एक साथ देखना चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. आए दिन कुछ न कुछ ट्विस्ट आ जा रहा है.

इन दिनों अभि और अक्षरा के बीच में काफी गंभीर लड़ाई चल रही है ,दोनों अबीर को पाने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं. इसी बीच दोनों के बीच लड़ाई होती नजर आई. बीते एपिसोड में आपने देखा था कि अभिनव पैसा कमाने के चक्कर में अबीर पर ध्यान नहीं दे पा रहा है.जिस वजह से अक्षरा काफी परेशान हो जाती है. दूसरी तरफ अभिममन्यु से रूही और आरोही भी परेशान हो जाते हैं. अभि एकदम से बीच ें फंसा हुआ है.

 

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अभि पहले जितना रूही और आरोही पर प्यार नहीं दे पा रहा है इसलिए वह दोनों अभि से नाराज है. आने वाले एपिसोड में नए ड्रामे देखने को मिलने वाले हैं. बीते एपिसोड में मंजरी और आरोही के बीच बहस दिखाई गई थी. जिस वजह से आरोही घर छोड़ने की बात कह रही थी. हालांकि ऐसा होगा नहीं.

अभि आरोही और रूही के पीछे आ जाएगा और उन दोनों को घर से बाहर नहीं जाने देगा, वह अपनी मां से भी कहेगा कि वह अबीर के लिए रूही को बिल्कुल भी नहीं खो सकता है.

समर स्पेशल : जब भेजें बच्चे को डे केयर

कुछ दिन पहले नवी मुंबई के एक क्रेच में 10 महीने की एक बच्ची को पीटने और पटकने की दिल दहलाने वाली घटना सामने आई थी. जब पुलिस एवं बच्ची के अभिभावकों ने क्रेच के सीसी टीवी कैमरे में फुटेज देखीं तो वे हैरान रह गए. फुटेज में डे केयर सैंटर की आया बच्ची की पिटाई कर रही थी. उसे लातें और थप्पड़ मार रही थी. वैसे यह पहली घटना नहीं है जब क्रेच में बच्चों के साथ ऐसा किया गया हो. इस से पहले भी दिल्ली में पुलिस ने क्रेच चलाने वाले करीब 70 साल के एक शख्स को गिरफ्तार किया था, जिस पर आरोप था कि वह क्रेच में 5 साल की बच्ची के साथ छेड़छाड़ करता था.

आए दिन इस तरह की घटनाएं घटती हैं, जिन में क्रेच में बच्चों के साथ शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है.

दरअसल, आज महिलाएं सासससुर के साथ रहना पसंद नहीं करतीं और न ही अपने कैरियर के साथ किसी तरह का समझौता करती हैं. उन्हें लगता है क्रेच तो हैं ही, जहां उन के बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं. वहां उन के खानेपीने से ले कर खेलने, आराम करने और ऐक्टिविटीज सीखने तक का पूरा इंतजाम होता है. वे सुबह औफिस जाते समय बच्चे को क्रेच में छोड़ देती हैं और शाम को घर लौटते समय साथ ले आती हैं. अगर किसी दिन वे लेट हो जाती हैं, तो क्रेच संचालक को फोन कर के बता देती हैं.

जब बच्चे को घर ले कर आती हैं तब उस के साथ समय बिताने के बजाय अन्य कामों में व्यस्त हो जाती हैं, सिर्फ संडे को ही बच्चे के साथ समय बिताती हैं.

मगर अपने बच्चे को पूरी तरह से डे केयर के हवाले छोड़ना सही नहीं है. ऐसा करने से आप के और बच्चे के बीच बौंडिंग नहीं बन पाती है. वह आप से अपनी बातें शेयर नहीं कर पाता, उदास रहने लगता है. कई बार तो बच्चा अपने साथ हो रहे शोषण को समझ ही नहीं पाता कि उस के साथ क्या हो रहा है.

क्रेच में बच्चे का अच्छी तरह ध्यान रखा जाता है, वह वहां नईनई चीजें भी सीखता है, लेकिन इस के बावजूद हर दिन बच्चे की मौनिटरिंग करें कि क्रेच में उसे किस तरह से रखा जाता है, उसे वहां कोई परेशानी तो नहीं होती, क्योंकि बच्चे कुछ कहते नहीं हैं, बस रोते रहते हैं और मातापिता को लगता है कि वे वहां जाना नहीं चाहते, इसलिए रो रहे हैं. यह आप की जिम्मेदारी है  कि आप जानें कि आखिर बच्चा वहां क्यों नहीं जाना चाहता.

हर दिन करें ये काम

– औफिस से घर आने के बाद आप कितनी भी क्यों न थक गई हों, अपने बच्चे के साथ समय जरूर बिताएं. उस से बातें करें कि आज क्रेच में क्या किया, क्या खाया, क्या सीखा? वहां मजा आता है या नहीं? अगर बच्चा कुछ अजीब सा जवाब दे तो उसे हलके में न लें, बल्कि यह जानने की कोशिश करें कि बच्चा ऐसा क्यों कह रहा है.

– बच्चा जब क्रेच से वापस आए तो जरूर चैक करें कि उस के शरीर पर कोई निशान तो नहीं है. अगर है तो बच्चे से पूछें कि निशान कैसे पड़ा, साथ ही यह भी देखें कि उस का नैपी बदला गया है या नहीं. आप ने लंच में उसे जो खाने के लिए दिया था क्या उस ने वह खाया है या नहीं.

जब करें क्रेच का चयन

– बिजली व पानी की कैसी व्यवस्था है, बिस्तर साफ है या नहीं, बच्चे के खेलने के लिए किस तरह के खिलौने हैं, यह जरूर देखें.

– क्रेच हमेशा हवादार, खुला और रोशनी वाला होना चाहिए.

– यह भी देखें कि क्रेच में जो बच्चे का ध्यान रखती है वह कैसी है, बच्चों के प्रति उस का व्यवहार कैसा है.

– वहां आने वाले बच्चों के मातापिता से बात करें कि क्रेच कैसा है, वे संतुष्ट हैं कि नहीं, वे अपने बच्चे को कब से वहां भेज रहे हैं आदि.

– सस्ते व घर के पास के चक्कर में अपने बच्चे को किसी भी क्रेच में न रखें, क्योंकि वहां आप के बच्चे को रहना है, इसलिए कोशिश करें क्रेच साफसुथरा हो.

कोलैस्ट्रौल पर रखें नजर

उच्च कोलैस्ट्रौल ऐसी स्थिति है जहां रक्त में कोलैस्ट्रौल का स्तर सामान्य सीमा से अधिक हो जाता है. कोलैस्ट्रौल एक वसा जैसा पदार्थ है जो शरीर की हर कोशिका में पाया जाता है. यह हार्मोन, विटामिन डी और भोजन को पचाने में मदद करने वाले पदार्थों के उत्पादन के लिए आवश्यक है. हालांकि जब रक्त में कोलैस्ट्रौल का स्तर बहुत अधिक हो जाता है तो इस से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

कोलैस्ट्रौल को रक्त में 2 प्रकार के लिपोप्रोटीन द्वारा ले जाया जाता है, कम डैंसिटी वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) और उच्च डैंसिटी वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल). एलडीएल कोलैस्ट्रौल को अकसर खराब कोलैस्ट्रौल कहा जाता है क्योंकि यह धमनियों में प्लाक का निर्माण कर सकता है जिस से हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. दूसरी ओर एचडीएल कोलैस्ट्रौल को अच्छा कोलैस्ट्रौल माना जाता है क्योंकि यह रक्तप्रवाह से एलडीएल को हटाने में मदद करता है.

मानव शरीर अधिकांश कोलैस्ट्रौल का उत्पादन करता है जिस की उसे आवश्यकता होती है. हालांकि हम अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन से भी कोलैस्ट्रौल प्राप्त करते हैं, विशेष रूप से मांस, अंडे और डेयरी जैसे पशु उत्पादों से. ट्रांस वसा वाला आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ा सकता है.
उच्च कोलैस्ट्रौल को अकसर साइलैंट किलर के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण पैदा नहीं करता. उच्च कोलैस्ट्रौल जानने का एकमात्र तरीका है कि आप रक्त परीक्षण करवाएं. 20 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को हर 5 साल में अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की जांच करवानी चाहिए.

अमेरिकन कालेज औफ कार्डियोलौजी (जेएसीसी) के एक जर्नल के अनुसार, कोलैस्ट्रौल के लिए स्वीकार्य सीमाएं निम्न हैं :
टोटल कोलैस्ट्रौल : 200 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).
एचडीएल (अच्छा) कोलैस्ट्रौल : 40 से अधिक (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).
एलडीएल (बुरा नहीं) कोलैस्ट्रौल:60 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर)
ट्राइग्लिसराइड : 150 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).

जोखिम कारक
ऐसे कई जोखिम कारक हैं जो उच्च कोलैस्ट्रौल में योगदान कर सकते हैं. इन में उच्च कोलैस्ट्रौल का पारिवारिक इतिहास, सैचुरेटेड और ट्रांस वसा में उच्च आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, मोटापा, धूम्रपान और मधुमेह व हाइपोथायरायडिज्म जैसी कुछ चिकित्सीय स्थितियां शामिल हैं.
नतीजे
उच्च कोलैस्ट्रौल एक सामान्य व गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है जो दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है. उच्च कोलैस्ट्रौल को गंभीरता से लेना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस से हृदय रोग और स्ट्रोक हो सकता है.उच्च कोलैस्ट्रौल के परिणाम गंभीर हो सकते हैं. एलडीएल कोलैस्ट्रौल के उच्च स्तर से धमनियों की दीवारों में प्लाक का निर्माण हो सकता है जिस से वे संकरे और कठोर हो सकते हैं. इस स्थिति को एथेरोस्क्लेरोसिस के रूप में जाना जाता है और इस से दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

कैसे रखें कंट्रोल
जीवनशैली में बदलाव आप के उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने में मदद कर सकता है. इस में स्वस्थ आहार अपनाना, नियमित व्यायाम करना, यदि आवश्यक हो तो वजन कम करना, धूम्रपान छोड़ना और शराब का सेवन सीमित करना शामिल हैं.

फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है. नियमित व्यायाम भी एचडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ाने व एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है.

जीवनशैली में बदलाव के अलावा कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने के लिए दवाओं का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. उच्च कोलैस्ट्रौल के लिए सब से अधिक निर्धारित दवाएं स्टैटिन हैं. स्टैटिन कोलैस्ट्रौल के उत्पादन को अवरुद्ध कर के काम करती हैं जो रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम कर सकते हैं.
धूम्रपान छोड़ना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि धूम्रपान धमनियों की दीवारों को नुकसान पहुंचा सकता है. शराब के सेवन को सीमित करने की भी सलाह दी जाती है क्योंकि शराब रक्त में ट्राइग्लिसराइड के स्तर को बढ़ा सकती है, जो उच्च कोलैस्ट्रौल में योगदान कर सकती है.

यहां कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों के उदाहरण दिए गए हैं जो कोलैस्ट्रौल के स्तर को प्रतिबंधित करने में मदद कर सकते हैं-
फल और सब्जियां : फल और सब्जियां फाइबर से भरपूर होती हैं जो एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकती हैं. इन में सेब, नाशपाती, जामुन, खट्टे फल, ब्रोकली, गाजर, शकरकंद और पत्तेदार साग शामिल हैं.
साबुत अनाज : साबुत अनाज फाइबर के एक अच्छे स्रोत हैं और एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं. इन में ओट्स, ब्राउन राइस, होल व्हीट ब्रैड और होल व्हीट पास्ता शामिल हैं.
मेवे और बीज : मेवे और बीज स्वस्थ वसा और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं. इन में बादाम, अखरोट, पिस्ता, चिया के बीज और अलसी शामिल हैं.
प्लांट बेस्ड औयल्स : प्लांट बेस्ड औयल्स, जैसे औलिव औयल, कैनोला औयल और एवोकाडो औयल स्वस्थ वसा के अच्छे स्रोत हैं और ये कोलैस्ट्रौल के स्तर को सुधारने में मदद कर सकते हैं.
सोया : सोया उत्पाद, जैसे टोफू और एडामेम में आइसोफ्लेवोन्स नामक यौगिक होते हैं जो एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं.
मछली : सैल्मन, ट्यूना और मैकेरल जैसी वसायुक्त मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड की अच्छी स्रोत हैं जो ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने और समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकती हैं.
यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि भोजन की मात्रा और खाना पकाने के तरीके भी कोलैस्ट्रौल के स्तर को मैनेज करने में भूमिका निभाते हैं. उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने के लिए आप कई कदम उठा सकते हैं. पहला कदम यह है कि आप अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की नियमित जांच करवाएं. यदि आप के कोलैस्ट्रौल का स्तर अधिक है तो आप का डाक्टर आप के कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और दवा की सलाह दे सकता है.

स्वस्थ आहार अपनाना उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है. सैचुरेटेड और ट्रांस वसा वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए, क्योंकि वे एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ा सकते हैं.

आप का डाक्टर आप के उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने में मदद करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के संयोजन की सलाह दे सकता है. यदि आप का उच्च कोलैस्ट्रौल का निदान किया गया है तो नियमित रूप से अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की निगरानी करना भी महत्त्वपूर्ण है.

उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने के अलावा, हृदय रोग और स्ट्रोक के लिए अन्य जोखिम कारकों को मैनेज करना भी महत्त्वपूर्ण है. इन में ब्लडप्रैशर, मधुमेह, मोटापा और धूम्रपान शामिल हैं. इन जोखिम कारकों को मैनेज कर के आप कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के विकास के अपने जोखिम को कम कर सकते हैं.
अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की नियमित रूप से जांच करवाना महत्त्वपूर्ण है और यदि वे उच्च हैं तो अपने डाक्टर से तुरंत सलाह लें. अपने चिकित्सक के साथ एक उपचार योजना विकसित करने के लिए काम करें जो आप के लिए सही हो. सही उपचार योजना और जीवनशैली में बदलाव के साथ आप अपने उच्च कोलैस्ट्रौल को कंट्रोल में ला सकते हैं और एक स्वस्थ व पूर्ण जीवन जी सकते हैं. द्य
(लेखक मैक्स अस्पताल, शालीमार बाग, दिल्ली में कार्डियोलौजिस्ट हैं. )

सैचुरेटेड फैट से शरीर पर असर
गुड फैट्स जैसे सब्जियों से बने तेल जैसे कैनोला, सूरजमुखी, सोया और कौर्न का तेल, बीज, मछली, नट्स आदि. इन के सेवन से गंभीर बीमारियों का खतरा कम रहता है. यह फूड अनसैचुरेटेड फैट में आते हैं जिन्हें गुड फैट भी कहा जाता है. वहीं सैचुरेटेड फैट अनसैचुरेटेड फैट की तुलना में सेहत पर नैगेटिव असर डालता है. खासकर, यह दिल के लिए अनहैल्दी फैट है.

सैचुरेटेड फैट्स युक्त फूड्स के नियमित सेवन से शरीर में कोलैस्ट्रौल की मात्रा हाई हो सकती है. यह फैट आर्टरीज वाल पर धीरेधीरे जमा होने लगता है और ब्लौकेज के कारण दिल तक ब्लड सर्कुलेशन में रुकावट का काम करता है. इस तरह से दिल अपना कार्य सही से नहीं कर पाता है, जिस से हार्ट अटैक, स्ट्रोक, कार्डियक अरेस्ट आने का जोखिम बढ़ जाता है.

सैचुरेटेड फैट जैसे बटर, घी, नारियल तेल, केक, बिसकुट, पैस्ट्री, सौसेजेज, बेकन, मीट के चरबी वाले भाग, सलामी, चीज, मिल्कशेक, कोकोनट क्रीम, मेयोनीज, आइसक्रीम, चौकलेट, चौकलेट स्प्रैड्स, एनिमल फैट जैसे चिकन, डक इत्यादि होते हैं.

औलाद की खातिर : रेखा ने बेटे के इलाज के खातिर क्या कदम उठाएं?

सूरज की गरमी के बढ़ने के साथ ही गांव धनुहावासियों की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी अभी तक सो कर क्यों नहीं उठे. जबकि गांव में वही दोनों सब से पहले उठते थे. बालबच्चे थे नहीं,

इसलिए बूढ़ाबुढ़ऊ रात को जल्दी सो जाते थे. यही वजह थी कि वे सुबह जल्दी उठ भी जाते थे. लेकिन उस दिन सुबह दोनों में से कोई दिखाई नहीं दिया तो पड़ोस में रहने वाले उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद पता लगाने के लिए उन के घर जा पहुंचे. वह यह देख कर हैरान रह गए कि बाहर ताला लगा है.इस की वजह यह थी कि लल्लूराम कभी बाहर दरवाजे में ताला लगाते ही नहीं थे. वैसे तो वह जल्दी कहीं आतेजाते नहीं थे. अगर कभी किसी के शादीब्याह में जाना भी होता था तो घरद्वार सब भाई को ही सौंप कर जाते थे. अब तक 9 बज चुके थे. बिना बताए कहीं बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अगर गांव या खेतों की ओर कहीं गए होते तो अब तक आ गए होते. यह खबर सुन कर पूरा गांव लल्लूराम के घर के सामने इकट्ठा हो गया था.

दरवाजे पर जो ताला लगा था, वह एकदम नया था, इसलिए लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी. लल्लूराम का घर सड़क के किनारे था. लोगों ने विचार किया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रात में डकैतों ने इन के घर धावा बोल कर लूटपाट करने के साथ दोनों को खत्म कर दिया हो. यही सोच कर कुछ बुजुर्गों ने वहां खड़े लड़कों से कहा कि दरवाजे पर चढ़ कर ऊपर लगी जाली से देखो तो अंदर कोई दिखाई दे रहा है या नहीं?

बुजुर्गों के कहने पर 2 लड़कों ने दरवाजे पर चढ़ कर अंदर झांका तो उन के मुंह से चीख निकल गई. लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी की रक्तरंजित लाशें अलगअलग चारपाइयों पर पड़ी थीं. तुरंत क्षेत्रीय थाना नैनी को फोन द्वारा इस घटना की सूचना दी गई.सूचना मिलने के लगभग आधा घंटे बाद थाना नैनी के थानाप्रभारी रामदरश यादव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर आ पहुंचे. पुलिस ने ताला तोड़वा कर दरवाजा खोलवाया. अंदर जाने पर पता चला कि बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दे कर लाश तथा घटनास्थल का निरीक्षण शुरू कर दिया. थोड़ी देर में डीआईजी एन.रवींद्र और एसएसपी मोहित अग्रवाल, एसपी यमुनापार लल्लन राय डाग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम के साथ वहां पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंचे फोरेंसिक एक्सपर्ट प्रेम कुमार भारती ने खून के धब्बों का नमूना उठाने के साथ वहां पड़े 2 पत्थरों से अंगुलियों के निशान उठाए. उन पत्थरों पर खून लगा था. पुलिस का अंदाजा था कि पत्थरों से बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या की गई थी. सारी औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. यह 14 जून, 2013 की बात है.

काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतक लल्लूराम के बड़े भाई जमुना प्रसाद से पूछताछ शुरू की तो उन्होंने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार लल्लूराम निस्संतान थे. वह अपने काम से काम रखते थे. भाइयों में भी आपस में कोई झगड़ाझंझट नहीं था. हां, उन के पास रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. इसलिए लगता यही है कि लूट के लिए पतिपत्नी को मारा गया है.

लल्लूराम के परिवार वालों के अनुसार, उन का मकान ही लगभग 20 लाख रुपए के आसपास था. इस के अलावा उन के पास कई बीघा जमीन थी, जो करोड़ों रुपए की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने अपना एक बीघा खेत 15 लाख रुपए में बेचा था. उन के पास लाखों के गहने भी थे. जबकि उन की करोड़ों की इस संपत्ति का कोई वारिस नहीं था. उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद का बेटा रवि जरूर उन की तथा उन के खेतों की देखभाल के लिए उन्हीं के घर ज्यादा रहता था. दोनों भाइयों के घर अगलबगल ही थे, इसलिए रवि को चाचाचाची की देखभाल में कोई परेशानी नहीं होती थी.

लेकिन रवि एक नंबर का नशेड़ी था. वह हमेशा स्मैक के नशे में डूबा रहता था. उस की शादी भी हो चुकी थी और वह 3 बच्चों का बाप था. ये तीनों बच्चे उस की दूसरी पत्नी रेखा तिवारी से थे. उस की पहली पत्नी ने उस के नशेड़ीपने की वजह से ही तलाक ले लिया था. उस के बाद लल्लूराम की पत्नी यानी रवि की चाची सुशीला देवी ने उस की शादी अपनी बहन की बेटी रेखा से करा दी थी.
रेखा भी रवि के नशे से आजिज आ चुकी थी. यही वजह थी कि इधर वह बच्चों को ले कर करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां रह रही थी.

एक तो रवि नशेड़ी था, दूसरे करताधरता भी कुछ नहीं था. इस के अलावा लल्लूराम के यहां रहने की वजह से उसे उन के घर के बारे में पूरी जानकारी थी, इसलिए पुलिस को पहले उसी पर संदेह हुआ. पुलिस ने उसे थाने ला कर हर तरह से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में रवि निर्दोष साबित हुआ. हत्याएं लूटपाट के इरादे से की गई थीं. लेकिन घर का कोई सामान गायब हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था.

अगर कुछ गायब हुआ भी था तो इस की जानकारी रवि की पत्नी रेखा से ही मिल सकती थी. क्योंकि लल्लूराम और सुशीला देवी के अलावा उस घर के बारे में सब से ज्यादा जानकारी रेखा को ही थी. पुलिस रेखा से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आ रही थी. वह सिर्फ क्रियाकर्म वाले दिन ही दिखाई दी थी. उस के बाद गायब हो गई थी.मामले के खुलासे के लिए एसपी यमुनापार लल्लन राय ने सीओ राधेश्याम राम के नेतृत्व में इंस्पेक्टर नैनी रामदरश यादव, एसआई वी.पी. तिवारी, हेडकांस्टेबल शशिकांत यादव, कांस्टेबल मोहम्मद खालिद, शिवबाबू आदि को ले कर एक टीम बनाई. इस टीम ने पहले तो अपने मुखबिरों को सक्रिय किया.

अपने इन्हीं मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि नशेड़ी पति के अत्याचार से परेशान रेखा के संबंध धनुहा के ही रहने वाले बब्बू पांडेय से बन गए थे.रेखा इस समय कहां है, पुलिस टीम ने यह पता किया तो जानकारी मिली कि उस का मंझला बेटा लक्ष्य काफी बीमार है, जिसे उस ने इलाहाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कर रखा है. उस के इलाज का सारा खर्च करछना का रहने वाला बब्बू पांडे का दोस्त रामबाबू पाल उठा रहा है.

पुलिस का माथा ठनका. रेखा के बेटे का इलाज एक गैर आदमी क्यों करा रहा है? पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार पति की प्रताड़ना और ससुराल वालों की उपेक्षा से रेखा पति और ससुराल वालों से दूर होती चली गई थी. उसी बीच गांव के ही रहने वाले बब्बू पांडेय और उस के दोस्त रामबाबू पाल ने उस से सहानुभूति दिखाई तो दोनों से ही उस के घनिष्ठ संबंध बन गए थे.

इन बातों से पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में कहीं रेखा और उस से सहानुभूति दिखाने वालों का हाथ तो नहीं है. यह बात दिमाग में आते ही थाना नैनी पुलिस ने 18 जून की रात छापा मार कर बब्बू पांडेय और रामबाबू पाल को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की जाने लगी. पहले तो दोनों कहते रहे कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि लल्लूराम तिवारी और उन की पत्नी सुशीला देवी की हत्या उन्हीं लोगों ने रेखा की मदद से की थी. रामबाबू पाल ने रेखा से अपने अवैध संबंध होने की बात भी स्वीकार कर ली. लेकिन बब्बू ने ऐसी कोई बात नहीं स्वीकार की. जबकि रेखा से उस के भी संबंध थे, क्योंकि उसी की वजह से रामबाबू पाल रेखा तक पहुंचा था.

रेखा को रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह बच्चों को ले कर फरार हो गई. मगर जल्दी ही पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार यह कहानी कुछ इस प्रकार है.मध्यप्रदेश के जिला रीवां के चाकघाट के गांव मरवरा की रहने वाली रेखा का विवाह सन 2010 में उस की सगी मौसी सुशीला देवी ने अपने जेठ जमुना प्रसाद के बेटे रवि से करा दिया था. रेखा विदा हो कर ससुराल आई तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि उस का पति हद दर्जे का नशेड़ी है. इस की वजह यह थी कि निस्संतान सुशीला देवी को रवि से सहानुभूति थी. इसीलिए वह उसे ज्यादातर अपने साथ रखती थीं.

रवि भी उन लोगों की हर तरह से देखभाल करता था. सुशीला देवी ने रेखा की शादी उस से यह सोच कर कराई थी कि रेखा अपनी है, इसलिए वह बुढ़ापे में उन की देखभाल ठीक से करेगी. लेकिन शादी के बाद मौसी को कोसने और अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाने के अलावा रेखा के पास कोई उपाय नहीं था.
समय धीरेधीरे बीतता रहा और रेखा अंश, लक्ष्य और सुख, 3 बेटों की मां बनी. 3 बेटों का बाप बनने के बाद भी रवि की नशे की आदत छूटने के बजाय बढ़ती ही गई. रेखा मना करती तो वह उसे जानवरों की तरह पीटता.

रेखा के लिए एक परेशानी यह थी कि रवि उस के पास के पैसे भी छीन लेता था. शादी में मिले गहने तो उस ने पहले ही नशे की भेंट चढ़ा दिए थे. पति के उत्पातों से आजिज आ कर रेखा कभीकभी करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां चली जाती थी. वक्तजरूरत मौसी सुशीला भी मदद कर देती थी. लेकिन जिस तरह की मदद की उम्मीद रेखा उन से करती थी, वह भी नहीं करती थी. सासससुर ने तो पहले ही हाथ खींच लिए थे. इस तरह रेखा और उस के बच्चे उपेक्षित सा जीवन जी रहे थे. इस के लिए वह अपनी मौसी सुशीला को ही दोषी मानती थी.

पति और ससुराल वालों से त्रस्त रेखा अकसर करछना में रहने वाली अपनी बहन के यहां आतीजाती रहती थी. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात उस के बहनोई राजू पांडेय तथा गांव के बब्बू पांडेय के दोस्त रामबाबू पाल से हुई. रामबाबू पाल से रेखा ने अपनी परेशानी बताई तो वह रेखा से सहानुभूति दिखाने के साथसाथ वक्तजरूरत उस की मदद भी करने लगा. इसी का नतीजा था कि दोनों के बीच संबंध बन गए.
बब्बू की वजह से रेखा के संबंध रामबाबू पाल से बन गए, बब्बू रामबाबू का पक्का दोस्त था. यही नहीं, गांव का होने की वजह से बब्बू रेखा के घर भी आताजाता था और रवि का दोस्त होने की वजह से रेखा को भाभी कहता था. भले ही रेखा ने दोनों से मजबूरी में शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन संबंध तो बन ही गए थे.

मई के अंतिम सप्ताह में रेखा का मंझला बेटा 7 साल का लक्ष्य अचानक बीमार पड़ा. रेखा ने मौसा लल्लूराम और मौसी सुशीला देवी से बच्चे की बीमारी के बारे में बताया. लेकिन किसी ने खास ध्यान नहीं दिया. झोलाछाप डाक्टर से दवा ला कर उसे दी जाती रही. फायदा होने के बजाए धीरेधीरे उस की बीमारी बढ़ती गई. रवि को बेटे की बीमारी से कोई मतलब नहीं था. वह स्मैक पिए पड़ा रहता था.

रेखा ने देखा कि लक्ष्य की बीमारी को ससुराल में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है तो वह बेटों को ले कर अपनी बहन के यहां करछना चली गई. वहां उस ने बेटे की बीमारी के बारे में रामबाबू को बताया तो एक पल गंवाए बगैर वह उसे सीधे इलाहाबाद ले गया और एक प्राइवेट अस्पताल में भरती करा दिया. जांचपड़ताल के बाद डाक्टरों ने लक्ष्य को जो बीमारी बताई, उस के इलाज पर लंबा खर्च आने वाला था.
डाक्टर की बात सुन कर रेखा रोने लगी. उसे रोता देख रामबाबू ने तड़प कर कहा, ‘‘रेखा, तुम रो क्यों रही हो? मैं हूं न. मेरे रहते तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. चाहे जैसे भी होगा, मैं लक्ष्य का इलाज कराऊंगा.’’

रेखा जानती थी कि रामबाबू के पास भी उतने पैसे नहीं हैं, जितने लक्ष्य के इलाज के लिए जरूरत है. रामबाबू की करछना बाजार में चाय की एक छोटी सी दुकान थी. उसी की कमाई से किसी तरह घर का खर्च चलता था. यही सब सोच कर रेखा ने कहा, ‘‘कहां से लाओगे इतने रुपए. यहां 10-20 हजार रुपए की बात नहीं है, डाक्टर ने लाख रुपए से ऊपर का खर्च बताया है. सासससुर के पास इतना पैसा है नहीं. पति बेकार ही है. जिन के पास पैसा है, उन से किसी तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती.’’
‘‘रेखा, मन छोटा मत करो. मेरे खयाल से एक बार अपने मौसामौसी से बात कर लो. पोते का मामला है, शायद वे इलाज के लिए पैसे दे ही दें.’’

‘‘वे लोग बहुत कंजूस है, फूटी कौड़ी नहीं देंगे,’’ रेखा ने कहा, ‘‘फिर भी तुम कह रहे हो तो गांव जा कर जरूर कहूंगी, बेटे के लिए उन के पैरों पर गिर कर रोऊंगीगिड़गिड़ाऊंगी. इस पर भी उन का दिल न पसीजा तो क्या होगा?’’‘‘उस के बाद देखा जाएगा. कोई न कोई रास्ता तो निकालूंगा ही. वैसे भी तुम्हारी मौसी के पास पैसों की कमी नहीं है. करोड़ों की संपत्ति है उन के पास. कोई खाने वाला भी नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मना नहीं करेंगी.’’ रामबाबू ने कहा.

रामबाबू के कहने पर रेखा धनुहा जा कर लल्लूराम से मिली. उस ने रोते हुए उन से बेटे की बीमारी और इलाज पर आने वाले खर्च के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है. तुम अपने ससुर से क्यों नहीं कहती.’’सुशीला देवी ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया.रेखा को पता था कि उस के ससुर जमुना प्रसाद की माली हालत जर्जर है. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. रेखा क्या करती, इलाहाबाद वापस आ गई. रेखा का उतरा चेहरा देख कर ही रामबाबू समझ गया कि उस के वहां जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘मैं ने वहां भेज कर तुम्हें बेकार ही परेशान किया.’’

रामबाबू की बात सुन कर रेखा रोते हुए बोली, ‘‘मेरे मौसा और मौसी कंजूस ही नहीं, बेरहम भी हैं. इतना पैसा जोड़ कर रखे हैं, न जाने किसे देंगे. कल को मर जाएंगे, सब यहीं रह जाएगा. उन की कोई औलाद तो है नहीं, वे औलाद का दर्द क्या जानें.’’‘‘पैसा उन का है. नहीं दे रहे हैं तो कोई कर ही क्या सकता है.’’ रामबाबू ने कहा.‘‘कर क्यों नहीं सकता. अगर तुम मेरा साथ दो तो उन की सारी दौलत हमारी हो सकती है. लक्ष्य का इलाज भी हो जाएगा और मैं उस नशेड़ी को तलाक दे कर हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी.’’ रेखा ने कहा.

‘‘इस के लिए करना क्या होगा?’’
‘‘हत्या, उन दोनों बूढ़ों की हत्या करनी होगी. आज नहीं तो कल, उन्हें वैसे भी मरना है. क्यों न यह शुभ काम हम लोग ही कर दें. बोलो, तुम मेरा साथ दे सकते हो?’’
‘‘तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं ही क्या, इस नेक काम में बब्बू भी हमारा साथ दे सकता है. इस के एवज में उसे भी कुछ दे दिया जाएगा.’’

‘‘ठीक है, बब्बू से बात कर लो. अब यह नेक काम हमें जल्द ही कर लेना चाहिए. ऐसे लोगों का ज्यादा दिनों तक जीना ठीक नहीं है. इस तरह के लोग इसी लायक होते हैं.’’ रेखा ने कहा.रामबाबू ने फोन कर के बब्बू को भी वहीं बुला लिया. इस के बाद तीनों ने बैठ कर लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या कर के उन के यहां लूटपाट की योजना बना डाली.उसी योजना के तहत रेखा अपनी ससुराल जा पहुंची. रात में खापी कर लल्लूराम और सुशीला गहरी नींद सो गए तो उस ने फोन कर के रामबाबू और बब्बू को बुला लिया. दरवाजा उस ने पहले ही खोल दिया था.

दोनों सावधानीपूर्वक अंदर पहुंचे और गहरी नींद सो रहे वृद्ध दंपत्ति के ऊपर भारीभरकम पत्थर पटक कर उन की जीवनलीला समाप्त कर दी. इस के बाद तीनों ने रुपए और गहने की तलाश में कमरों का एकएक सामान खंगाल डाला. लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. रामबाबू और बब्बू लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का पछतावा करते हुए भाग निकले.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने रेखा, रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय के खिलाफ लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के 21, जून को इलाहाबाद की अदालत में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में नैनी जेल भेज दिया गया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी मोहित अग्रवाल ने 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है.

लेखिका -प्रेमा देवी

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