हर देश का सिनेमा विष्व स्तर पर उस देश का सांस्कृतिक राजदूत होता है. लेकिन पिछले कुछ दशक से देश की सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा बदलने लगा है.जिसे कोई भी फिल्मकार खुलकर स्वीकार करने को तैयार नही है.मगर यह सच है कि फिल्मकार खुद को सत्ता के करीब रखने के लिए उसी एजेंडे के तहत फिल्में बनाता है,जो सरकारी एजेंडा हो.यॅूं तो मलयालम सिनेमा भी सदैव एक एजेंडे के साथ बनता रहा है.मगर मलयालम सिनेमा पर कभी भी ‘एजेंडे वाला सिनेमा’ या ‘प्रोपेगंडा फिल्म’ का लेबल चस्पा नही हुआ.क्योकि मलयालम सिनेमा सिर्फ प्रोपेगंडा के लिए नही बनता,उसमें कहानी होती है ,जिसे यकीन दिलाने के लिए सरकार या किसी अन्य हथकंडे की जरुरत नही पड़ती.लेकिन यह बात कम से कम पिछले आठ दस वर्षों से बन रहे हिंदी सिनेमा के साथ लागू नही होती. पिछले कुछ वर्षों के अंतराल में कई फिल्में महज प्रोपेगंडा और झूठ को सच साबित करने वाली ही बनी हैं.इन फिल्मों को सरकार का अपरोद्वा रूप से वरदहस्त हासिल हुआ और फिल्म के निर्माता निर्देशक की झोली भर गयी.लेकिन इस तरह के सिनेमा से समाज को नुकसान हुआ.लोगों के बीच वैमनस्यता बढ़ी है.
‘द कष्मीर फाइल्स’ से प्रोपेगंडा फिल्म को बढ़ावा यह एक कटु सत्य है.हम यहां छोटे मोट उदहारण को नजरंदाज करते हुए विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 11 मार्च 2022 को प्रदर्षित ‘द कष्मीर फाइल्स’ का जिक्र करना चाहेंगे, जिसे अभूतपूर्व सफलता दिलाने और निर्माता निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की जेब में करोड़ से रूपए पहुंचाने के मकसद से फिल्म को सभी भाजपा षासित राज्यों में टैक्स फ्री करने के अलावा भाजपा के नगरसेवकों व विधायकों ने मुफ्त में फिल्म की टिकटें बांटकर फिल्म का एक अलग माहौल बनाया.परिणामतः पंद्रह करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘‘द कष्मीर फाइल्स’ के निर्माता की जेब में लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ पहुॅच गए।
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