माही को रहरह कर पुरानी बातें याद आ रही थीं…’क्या कर्ण का वह प्यार झूठ था? कर्ण के सीने पर सिर रख कर उसे कितनी गहरी नींद आती थी. कर्ण क्यों नहीं उस से बात कर सकता है?’
उधर कर्ण को भी लग रहा था कि माही ने अपने मम्मीपापा को बीच में ला कर उस के प्यार का अपमान किया है. कर्ण ने तो 10 दिन बाद के टिकट भी करा रखे थे मगर माही के इस बचपने ने सब चौपट कर दिया था.कर्ण को लग रहा था कि माही उसे कौल जरूर करेगी मगर माही के बजाय उस के मम्मीपापा का फोन देख कर कर्ण का पारा गरम हो गया था. कर्ण ने फोन उठाया और रूखे स्वर में कहा,”आपको जो बात करनी है गाजियाबाद जा कर मेरे मम्मीपापा से कीजिए।”
माही के पापा ने कर्ण के पापा को फोन लगाया मगर कर्ण के पापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात
करें. पहले तच उन्होंने फोन नहीं उठाया और फिर उठा कर कहा कि मैं शादी में लखनऊ आया हुआ हूं, जा कर बात करूंगा।”
माही गुस्से में बोली,”पापा कितना इंतजार करेंगे, कल किसी अच्छे वक़ील से बात करते हैं।”
माही के पापा ने एक अच्छे वकील का पता भी कर लिया था. जब माही वकील सुरेंद्र के दफ्तर पहुंचे तो
वे किसी फाइल में उलझे हुए थे.
माही की सारी बात सुनने के बाद सुरेंद्र की आंखों में चमक आ गई. मन ही मन सुरेंद्र सोच रहा था कि बड़ी
मुश्किल से एक मोटा आसामी हाथ आया है और करना भी कुछ खास नहीं है बस इस गलतफहमी की
चिनगारी में थोड़ा सा घी डाल कर उसे लावा बनाना है.
माही पूरी बात बताने के बाद बोली,”वकील साहब, क्या मुझे एक बार कर्ण से बात करनी चाहिए?”
सुरेंद्र बोले,”अरे नहीं, आप ऐसा बिलकुल भी मत कीजिए, न जाने उस के मन मे क्या है?” सुरेंद्र अच्छे से जानते थे कि अगर माही और कर्ण की आपस में बात हो गई तो बिगड़ती बात बन जाएगी, जो उस के लिए घाटे का सौदा साबित होता. वकील सुरेंद्र ने माही और उस के परिवार को सलाह दी कि माही को गाजियाबाद जा कर अपने ससुराल में
रहना चाहिए तभी आप को पता चलेगा कि माही के ससुराल वालों के मन में क्या है?तुम उस घर की बहू हो
तुम्हारा अधिकार है जब तक चाहो तुम रहो.
माही ने कर्ण को फोन लगाया कि मैं गाजियाबाद में ही रहूंगी जब तक तुम बात करने इंडिया नहीं आते। तुम ने मुझे क्या शोपीस समझा हुआ है? जब तक मेरा मन करेगा मैं अपनी ससुराल में रहूंगी।
उधर कर्ण को भी माही पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने अपने मम्मी, पापा को फोन कर के कह दिया था कि अगर माही आए तो वे लोग जब तक उसे घुसने न दें जब तक माही के मम्मीपापा आ कर बातचीत नही
कर लेते हैं.
जब माही के पापा सिद्धार्थ ने कर्ण के पिता तेज कुमार को माही के गाजियाबाद जाने के लिए फोन किया तो वे बोले,”भाई साहब, अच्छा रहेगा अगर आप और माही की मम्मी माही के साथ आएं।”
मगर वकील के कहे अनुसार सिद्धार्थ बोले,”मेरी बेटी मेरी बात नहीं मान रही है, मैं क्या कर सकता हूं?
तेज कुमार गिड़गिड़ाते हुए बोले,”भाई साहब, समझने की कोशिश कीजिए, आप एक बार तो आइए। मिलबैठ कर ही बात होती है।”
उधर माही के घर वालों का रुख देख कर तेज कुमार ने भी वकील से सलाह लेने की सोची. जब वे शाम
के धुंधले में अपनी पत्नी कल्पना के साथ वकील प्रेमचंद के औफिस पहुंचे तो प्रेमचंद उठने ही वाले थे। पूरी बात सुनने के बाद प्रेमचंद अपनी आखों में चमक लाते हुए बोले,”ये लड़की वालों के पुराने पैंतरे हैं। अकेली लड़की को अंदर मत लेना। वह आप लोगों पर कुछ भी इलजाम लगा सकती है और फिर लड़के वालों की कहीं कोई सुनवाई नही है।”
कर्ण का परिवार वकील से सलाह लेने गया था मगर प्रेमचंद से बात करने के बाद उन्हें लगा मानो माही को अगर वे घर के अंदर आने देंगे तो वह उन्हें अवश्य पुलिस केस में फंसा देगी. उधर माही के मम्मीपापा वकील सुरेंद्र के कहे अनुसार माही के साथ गाजियाबाद तक जरूर आए मगर वे 3 किलोमीटर पहले ही उतर गए थे. जब माही अपने ससुराल राजनगर पहुंची तो सांझ रात से मिलने को बेताब हो रही थी. माही ने बाहर वाले गेट की घंटी बजाई तो माही के ससुर तेज कुमार अंदर से ही बोले,” मैं यहां पर अकेला हूं, तुम्हारी मम्मी और वसुधा आगरा गए हुए हैं. बेटा, आप के पापा से पहले भी कहा था कि वे आपको अकेले न भेजें।”
माही गुस्से में बोली,”क्या मैं आप की बहू नहीं हूं?”
तेज कुमार नरमी से बोले,”बहू हो मगर तुम्हारे और कर्ण के बढ़ते हुए मनमुटाव के कारण यही बेहतर होगा कि तुम्हारे घर का कोई बड़ा तुम्हारे साथ हो।”
बात अब माही के अहंकार पर आ गई थी. वह वहीं बाहर बैठ गई थी.धीरेधीरे पासपड़ोस के लोग इक्कठे हो
गए थे. कोई माही को नसीहतें दे रहा था तो कोई कर्ण के पापा को समझा रहा था. तभी औटो से कर्ण की
मम्मी चंद्रकला उतरीं और माही के हाथ जोड़ते हुए बोलीं,”मेरा ब्लड प्रैशर बहुत बढ़ा हुआ है। प्लीज मुझे परेशान मत करो। तुम्हारे इन्हीं ड्रामों के कारण कर्ण तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता है।”
पड़ोस में रहने वाले रिटायर्ड जज सहगलजी तमाशा देख कर वहीं आ गए और चंद्रकला से बोले,”यह क्या कर रही हैं आप? बहू को अंदर ले लीजिए।”
चंद्रकलाजी बोलीं,”अरे भाई साहब, आप को नहीं पता माही बातबात पर आत्महत्या की धमकी देती है। अगर यह ऊपर से नीचे कूद गई तो कौन जिम्मेदारी लेगा? हम बस यही तो बोल रहे थे कि अपने मम्मीपापा के साथ आओ।”
माही ने जब अपनी सास की यह बात सुनी तो माही को ऐसा लगा मानो उस के और कर्ण के रिश्ते में कभी कुछ निजी था ही नहीं. माही की गुस्से में, प्यार में कही हुई हर बात कर्ण ने अपनी मम्मी चंद्रकला को बता रखी
थी.
माही को घर के बाहर खड़े हुए जब 3 घंटे हो गए तो वकील के कहे अनुसार माही ने पुलिस को फोन लगा दिया. पुलिस के 2 सिपाही तकरीबन आधे घंटे बाद तब आए जब माही के पापा ने उन की थोड़ी जेब गरम कर
दी थी.
काफी बहस के पश्चात माही के लिए घर का दरवाजा खोलने के लिए चंद्रकला तैयार हो गईं मगर इस शर्त पर कि अगर माही के पापा यह मैसेज कर दें कि माही अपनी मरजी से यहां आई हैं और उस की हर अच्छीबुरी बात के लिए वे जिम्मेदार होंगे.
पुलिस का सिपाही संदीप जिस की जेब मे फिलहाल पैसों की गरमी थी, हंसते हुए बोला,”मैडमजी, आप क्या
चाहती हो कि अपने हाथ से सिद्धार्थजी खुद अपनी बेटी का सुसाइड नोट लिख दें।”
दूसरा सिपाही सुबोध बोला,”माही मैडम कुछ नही करेंगी, आप उन के कमरे का ताला खोलिए।”
तभी तेज कुमार बोले,”अरे हम कहां मना कर रहे हैं, अगर मम्मीपापा मुंबई से नहीं आ सकते हैं तो माही के
चाचा अनिल दिल्ली से तो आ सकते हैं।”
बराबर में रहने वालीं ओमवतीजी माही को समझा रही थीं,”क्यों इतना तमाशा करना, भले घर की बहूबेटियां अपने ससुराल की इज्जत ऐसे नहीं उछालती हैं। माही बाहर पोर्च में ही बैठी हुई थी. अपने पापा और वकील के कहे अनुसार वह वीडियो बना रही थी। न जाने क्या सोच कर माही ने वह वीडियो कर्ण को भेज दिया था.शमाही को ऐसे बदहवास देख कर कर्ण का मन भर आया। कर्ण ने अपने पापा को कहा,”पापा माही को घर के अंदर ले लीजिए, मैं आता हूं फिर मिलबैठ कर बात कर लेते हैं।” मगर कर्ण की मम्मी इस बात पर नही मानी.
रात के 1 बज रहे थे तभी कर्ण का फोन आया और वह अपनी बहन वसुधा को कुछ समझाने लगा. वसुधा ने अपनी मम्मी चंद्रकला को कहा कि मम्मी, कर्ण को माही को एक बार फिर से मौका देना है। मगर चंद्रकला अड़ गई और बोली,”हम माही को अंदर जाने की इजाजत नहीं दे सकते हैं? पूरी बिरादरी में हमारी नाक कटवा दी है। अब इस रिश्ते में कुछ नहीं बचा है।”
मगर पुलिस के कहनेसुनने पर माही को घर के अंदर ले लिया गया था. माही ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया पुरानी यादों ने उसे एकाएक घेर लिया था. हर कोने में मीठी यादें बसी हुई थीं. ड्रेसिंग टेबल पर अभी भी कांच की लाल चूड़ियां ऐसे ही बिखरी हुई थीं. सिंगापुर जाने से पहले जल्दीजल्दी में वह सब समान को अंदर नही रख पाई थी. न जाने क्यों माही ने वे चूड़ियां हाथ में डाल लीं और सिंदूर से अपनी मांग भर ली और फिर एकाएक जोरजोर से रोने लगी. कितने सतरंगी सपने बुन कर माही आई थी और यह क्या हो गया था.
एक खूबसूरत रिश्ता पनपने से पहले गलतफहमी और अहंकार की भेंट चढ़ गया था. अब बचेखुचे रिश्ते की
लाश को कानून और समाज के गिद्ध नोंचनोंच कर इतना विकृत कर रहे हैं कि माही शादी के नाम से ही डरने लगी थी.
माही जब रोतेरोते थक गई तो उस की आंख लग गई थी. सुबह 5 बजे अनिल चाचा ऊपर आए और
बोले,”माही, सिद्धार्थ भैया बोल रहे हैं कि इन की कार और अपने सारे जेवर ले कर ही आना।”
माही बोली,”चाचा, क्या मैं यहां रह लूं, कर्ण कह रहा है वह 2-3 दिन में आ जाएगा। मैं अपनी शादी को फिर से मौका देना चाहती हूं।”
अनिल चाचा सोचते हुए बोले,”तुम्हारे मम्मीपापा मान जाएंगे क्या?”
माही ने अपने मम्मीपापा को फोन किया,”मुझे अपनी शादी बचानी है।”
माही की मम्मी गुस्से में बोलीं,”यहां पापा तुम्हारे कारण बीमार पड़े हुए हैं और तुम्हें शादी की पड़ी हुई है…”
माही इस से पहले कुछ बोलती, फोन काट दिया गया था.
अनिल चाचा बोले,”आज भैयाभाभी तेरे साथ खड़े हैं, अगर तू यहां रुक गई तो फिर शायद तेरे घर के
दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। माही ने कर्ण को फोन मिलाया मगर वह असमंजस में था, उसे पता था कि उस की मम्मी ने माही को पुलिस के कारण ही अंदर आने दिया है. कर्ण को लगा कि माही उसे लानतसलामत देने के लिए फोन किया होगा. इसलिए उस ने फोन नही उठाया.
माही के पास अब और कोई चारा नहीं बचा था इसलिए उस ने कर्ण की बहन वसुधा से कहा,”मुझे मेरे गहने चाहिए या मुझे फिर से पुलिस के पास जाना पड़ेगा।” वसुधा ने यह बात रिकौर्ड कर के कर्ण को भेज दी थी.
जब कर्ण को पता लगा कि माही अपने गहने मांग रही है तो कर्ण बोला,”उसे गहने दे कर रफादफा करो। इस लालची लड़की के साथ मैं अब कोई रिश्ता रखना नहीं चाहता हूं।”
वसुधा वीडियो बना रही थी जब माही ने अपने गहने लिए थे. पासपड़ोस के लोग भी वहीं गवाह के तौर पर
खड़े हुए थे. माही ने गहने लेने के बाद अपने पापा को फोन किया, तो सिद्धार्थ बोले,”शाबाश, अब किसी बहाने से कार भी ले कर आओ।वकील साहब कह रहे हैं कि तुम्हारा उस घर की हर चीज पर हक है। जैसे उन्होंने तुम्हें परेशान किया है, तुम्हें भी करना चाहिए।”
माही थके स्वर में बोली,”पापा, बहुत हुआ, अपने गहने मैं ने ले लिए हैं, अब बस और नहीं।”
तब तक अनिल चाचा भी आ गए थे. माही और उस के अनिल चाचा जब तक अपने दिल्ली वाले घर में पहुंचते
तब तक मैसेज और फोनों की बरसात होने लगी थी. माही द्वारा बनाया गया वीडियो वायरल हो गया था. हर किसी को माही से हमदर्दी हो रही थी. सब लोगों को यही जानना था कि इतनी खूबसूरत परीकथा जैसी शादी का ऐसे दर्दनाक अंत कैसे हो गया था?
1-2 बार तो माही ने फोन उठाया मगर वही बात दोहरादोहरा कर जब वह थक गई तो उस ने फोन स्विच्ड औफ कर दिया था.
जब माही घर पहुंची तो उस की चाची बीणा बोली,”अरे माही, क्या से क्या हो गया। भैया ने कितने शौक से तुम्हारी शादी करी थी और अब यह तमाशा… बताओ तुम्हारी शक्ल कितनी बुझीबुझी हो गई है। वह वीडियो देखा तुम्हारा, बड़ा दुख हुआ।”
तभी अनिल गुस्से में बोला,”लड़की को सांस भी लेने दोगी या नहीं,” बीना मुंह बिचकाते हुए बोली,”किसकिस का मुंह बंद करते फिरोगे?”
माही बिना कुछ बोले अंदर चली गई थी. कमरा बंद कर के माही फूटफूट कर रोने लगी. उस के रिश्ते की लाश
सब के सामने बेपरदा थी और समाज और कानून के गिद्धों ने उस रिश्ते में बचाखुचा प्यार भी सोख लिया
था. चारों तरफ नफरत और संदेह के बादल घूम रहे थे और तबाही की सुनामी की लहरें ऊंचीऊंची उठ रही
थीं.
माही के सब्र का बांध टूट गया था और वह बेहोश सी कमरे के एक अंधेरे कोने में बैठी हुई थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो माही समाज के गिद्धों से अपनेआप को बचाने के लिए सदा के लिए इस अंधकार में विलीन होना चाहती है.