Download App

मेरी बेटी की शादी होने वाली है,औफिस जाने की वजह से उसे वक्त नहीं मिलता, त्वचा में ग्लो लाने का कोई उपाय बताएं?

सवाल
मेरी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली है. औफिस जाने की वजह से उसे त्वचा की देखभाल के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता है. त्वचा में ग्लो व आकर्षण लाने का कोई उपाय बताएं?

जवाब
आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से प्रीब्राइडल ट्रीटमैंट बुक करवा लें. इस के अंतर्गत बौडी पौलिशिंग, पैडीक्योर, मैनीक्योर, फेशियल, ब्लीच, हैड मसाज, हेयर स्पा जैसे ट्रीटमैंट्स करवाए जाते हैं, जो न सिर्फ आप के चेहरे बल्कि आप की बौडी की हर एक समस्या का निदान कर त्वचा में निखार लाते हैं. इस के साथसाथ घरेलू तौर पर आप रात को थोड़ी सी केसर 2 चम्मच दूध में भिगो दें और सुबह उस में चंदन पाउडर और चुटकी भर हलदी डाल कर चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं. सूखने पर पानी से धो लें. इस के अलावा सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

लड़की- भाग 3 : क्यों डर रही थी वो बेटी को खो देने से?

आज उसे लग रहा था कि उस ने व उस के पति ने बेटी के प्रति न्याय नहीं किया. क्या हमारी सोच गलत थी? उस ने अपनेआप से सवाल किया. शायद हां, उस के मन ने कहा. हम जमाने के साथ नहीं चले. हम अपनी परिपाटी से चिपके रहे.

पहली गलती हम से यह हुई कि बेटी के परिपक्व होने के पहले ही उस की शादी कर देनी चाही. अल्हड़ अवस्था में उस के कंधों पर गृहस्थी का बोझ डालना चाहा. हम जल्द से जल्द अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. और दूसरी भूल हम से तब हुई जब वीणा ने अपनी पसंद का लड़का चुना और हम ने उस की मरजी को नकार कर उस की शादी में हजार रोडे़ अटकाए. अब जब वह अपनी शादी से खुश नहीं थी और पति से तलाक लेना चाह रही थी तो हम दोनों पतिपत्नी ने इस बात का जम कर विरोध किया.

बेटी की खुशी से ज्यादा उन्हें समाज की चिंता थी. लोग क्या कहेंगे, यही बात उन्हें दिनरात खाए जाती थी. उन्हें अपनी मानमर्यादा का खयाल ज्यादा था. वे समाज में अपनी साख बनाए रखना चाहते थे, पर बेटी पर क्या बीत रही है, इस बात की उन्हें फिक्र नहीं थी. बेटी के प्रति वे तनिक भी संवेदनशील न थे. उस के दर्द का उन्हें जरा भी एहसास न था. उन्होंने कभी अपनी बेटी के मन में पैठने की कोशिश नहीं की. कभी उस की अंतरंग भावनाओें को नहीं जानना चाहा. उस के जन्मदाता हो कर भी वे उस के प्रति निष्ठुर रहे, उदासीन रहे.

अहल्या को पिछली बीसियों घटनाएं याद आ गईं जब उस ने वीणा को परे कर बेटों को कलेजे से लगाया था. उस ने हमेशा बेटों को अहमियत दी जबकि बेटी की अवहेलना की. बेटों को परवान चढ़ाया पर बेटी जैसेतैसे पल गई. बेटों को अपनी मनमानी करने की छूट दी पर बेटी पर हजार अंकुश लगाए. बेटों की उपलब्धियों पर हर्षित हुई पर बेटी की खूबियों को नजरअंदाज किया. बेटों की हर इच्छा पूरी की पर बेटी की हर अभिलाषा पर तुषारापात किया. बेटे उस की गोद में चढ़े रहते या उस की बांहों में झूलते पर वीणा के लिए न उस की गोद में जगह थी न उस के हृदय में. बेटे और बेटी में उस ने पक्षपात क्यों किया था? एक औरत हो कर उस ने औरत का मर्म क्यों नहीं जाना? वह क्यों इतनी हृदयहीन हो गई थी?

बेटी के विवर्ण मुख को याद कर उस के आंसू बह चले. वह मन ही मन रो कर बोली, ‘बेटी, तू जल्दी होश में आ जा. मुझे तुझ से बहुतकुछ कहनासुनना है. तुझ से क्षमा मांगनी है. मैं ने तेरे साथ घोर अन्याय किया. तेरी सारी खुशियां तुझ से छीन लीं. मुझे अपनी गलतियों का पश्चात्ताप करने दे.’

आज उसे इस बात का शिद्दत से एहसास हो रहा था कि जानेअनजाने उस ने और उस के पति ने बेटी के प्रति पक्षपात किया. उस के हिस्से के प्यार में कटौती की. उस की खुशियों के आड़े आए. उस से जरूरत से ज्यादा सख्ती की. उस पर बचपन से बंदिशें लगाईं. उस पर अपनी मरजी लादी.

वीणा ने भी कठपुतली के समान अपने पिता के सामंती फरमानों का पालन किया. अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं का दमन कर उन के इशारों पर चली. ढकोसलों, कुरीतियों और कुसंस्कारों से जकड़े समाज के नियमों के प्रति सिर झुकाया. फिर एक पुरुष के अधीन हो कर उस के आगे घुटने टेक दिए. अपने अस्तित्व को मिटा कर अपना तनमन उसे सौंप दिया. फिर भी उस की पूछ नहीं थी. उस की कद्र नहीं थी. उस की कोई मान्यता न थी.

प्रतीक्षाकक्ष में बैठेबैठे अहल्या की आंख लग गई थी. तभी भास्कर आया. वह उस के लिए घर से चायनाश्ता ले कर आया था. ‘‘मांजी, आप जरा रैस्टरूम में जा कर फ्रैश हो लो, तब तक मैं यहां बैठता हूं.’’

अहल्या नीचे की मंजिल पर गई. वह बाथरूम से हाथमुंह धो कर निकली थी कि एक अनजान औरत उस के पास आई और बोली, ‘‘बहनजी, अंदर जो आईसीयू में मरीज भरती है, क्या वह आप की बेटी है और क्या वह भास्करजी की पत्नी है?’’

‘‘हां, लेकिन आप यह बात क्यों पूछ रही हैं?’’

‘‘एक जमाना था जब मेरी बेटी शोभा भी इसी भास्कर से ब्याही थी.’’

‘‘अरे?’’ अहल्या मुंहबाए उसे एकटक ताकने लगी.

‘‘हां, बहनजी, मेरी बेटी इसी शख्स की पत्नी थी. वह इस के साथ कालेज में पढ़ती थी. दोनों ने भाग कर प्रेमविवाह किया, पर शादी के 2 वर्षों बाद ही उस की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, यह सुन कर बहुत अफसोस हुआ.’’

‘‘हां, अगर उस की मौत किसी बीमारी की वजह से होती तो हम अपने कलेजे पर पत्थर रख कर उस का वियोग सह लेते. उस की मौत किसी हादसे में भी नहीं हुई कि हम इसे आकस्मिक दुर्घटना समझ कर मन को समझा लेते. उस ने आत्महत्या की थी.

‘अब आप से क्या बताऊं. यह एक अबूझ पहेली है. मेरी हंसतीखेलती बेटी जो जिजीविषा से भरी थी, जो अपनी जिंदगी भरपूर जीना चाहती थी, जिस के जीवन में कोई गम नहीं था उस ने अचानक अपनी जान क्यों देनी चाही, यह हम मांबाप कभी जान नहीं पाएंगे. मरने के पहले दिन वह हम से फोन पर बातें कर रही थी, खूब हंसबोल रही थी और दूसरे दिन हमें खबर मिली कि वह इस दुनिया से जा चुकी है. उस के बिस्तर पर नींद की गोलियों की खाली शीशी मिली. न कोई चिट्ठी न पत्री, न सुसाइड नोट.’’

‘‘और भास्कर का इस बारे में क्या कहना था?’’

‘‘यही तो रोना है कि भास्कर इस बारे में कुछ भी बता न सका. ‘हम में कोई झगड़ा नहीं हुआ,’ उस ने कहा, ‘छोटीमोटी खिटपिट तो मियांबीवी में होती रहती है पर हमारे बीच ऐसी कोई भीषण समस्या नहीं थी कि जिस की वजह से शोभा को जान देने की नौबत आ पड़े.’ लेकिन हमारे मन में हमेशा यह शक बना रहा कि शोभा को आत्महत्या करने को उकसाया गया.

‘‘बहनजी, हम ने तो पुलिस में भी शिकायत की कि हमें भास्कर पर या उस के घर वालों पर शक है पर कोई नतीजा नहीं निकला. हम ने बहुत भागदौड़ की कि मामले की तह तक पहुंचें पर फिर हार कर, रोधो कर चुप बैठ गए. पतिपत्नी के बीच क्या गुजरती थी, यह कौन जाने. उन के बीच क्या घटा, यह किसी को नहीं पता.

‘‘हमारी बेटी को कौन सा गम खाए जा रहा था, यह भी हम जान न पाए. हम जवान बेटी की असमय मौत के दुख को सहते हुए जीने को बाध्य हैं. पता नहीं वह कौन सी कुघड़ी थी जब भास्कर से मेरी बेटी की मित्रता हुई.’’

अहल्या के मन में खलबली मच गई. कितना अजीब संयोग था कि भास्कर की पहली पत्नी ने आत्महत्या की. और अब उस की दूसरी पत्नी ने भी अपने प्राण देने चाहे. क्या यह महज इत्तफाक था या भास्कर वास्तव में एक खलनायक था? अहल्या ने मन ही मन तय किया कि अगर वीणा की जान बच गई तो पहला काम वह यह करेगी कि अपनी बेटी को फौरन तलाक दिला कर उसे इस दरिंदे के चंगुल से छुड़ाएगी.

वह अपनी साख बचाने के लिए अपनी बेटी की आहुति नहीं देगी. वीणा अपनी शादी को ले कर जो भी कदम उठाए, उसे मान्य होगा. इस कठिन घड़ी में उस की बेटी को उस का साथ चाहिए. उस का संबल चाहिए. देरसवेर ही सही, वह अपनी बेटी का सहारा बनेगी. उस की ढाल बनेगी. हर तरह की आपदा से उस की रक्षा करेगी.

एक मां होने के नाते वह अपना फर्ज निभाएगी. और वह इस अनजान महिला के साथ मिल कर उस की बेटी की मौत की गुत्थी भी सुलझाने का प्रयास करेगी.

भास्कर जैसे कई भेडि़ये सज्जनता का मुखौटा ओढ़े अपनी पत्नी को प्रताडि़त करते रहते हैं, उसे तिलतिल कर जलाते हैं और उसे अपने प्राण त्यागने को मजबूर करते हैं. लेकिन वे खुद बेदाग बच जाते हैं क्योंकि बाहर से वे भले बने रहते हैं. घर की चारदीवारी के भीतर उन की करतूतें छिपीढकी रहती हैं.

वह वापस प्रतीक्षाकक्ष में पहुंची तो उस ने देखा कि एक डाक्टर आईसीयू से निकल कर सीधा उस की तरफ आ रहा था. अहल्या के हृदय में धुकधुकी होने लगी. उस की आशान्वित नजरें उस डाक्टर पर टिक गईं.

 

YRKKH: अभिमन्यु के सामने आया आरोही का काला सच

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों धमाल मचा हुआ है, सीरियल की कहानी हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौड़ और अबीर के आस-पास घूमम रही है. बता दें कि सीरियल में इन दिनों अबीर को लेकर आरोही चाल चल रही है. आरोही नहीं चाहती है कि अबीर अभि के करीब आए.

वहीं अभिमन्यु अपने बेटे अबीर को पाना चाहता है लेकिन अक्षरा खुद से अबीर को दूर नहीं होने देना चाहती है. दोनों में अबीर को लेकर लड़ाई चल रही है. वह अबीर अक्षरा को लेकर दूर जाना चाहती है. अबीर के लिए अभि हर कोई कोशिश करता नजर आ रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Abhir Birla (@abhir_offic)

अभि अबीर को पाने के लिए कोर्ट पहुंच गया है, जहां जाकर वह अबीर के लिए फाइल करता है. वहीं आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अबीर घर से चला जाता है जिसके बाद मंजरी का गुस्सा आरोही पर भड़क जाता है.

अभि को मंजरी के गुस्से से समझ में आ जाता है कि आरोही अबीर को नहीं पसंद करती है. जिसके बाद अभि भी आरोही से नाराज हो जाता है. जिसके बाद से आरोही को कुछ समझ नहीं आता है कि अभि को कैसे समझाए.

संसद में जब राघव चड्ढा को याद दिलाया गया पहला प्यार, स्पीकर ने दिया ये जवाब

इन दिनों अभिनेत्री परिणीति  चोपड़ा और राघव चर्चा में बने हुए हैं, परिणीति और राघव की जोड़ी को रागनीति नाम दिया गया है. बीते दिनों उनकी इंग्जेंटममेंट हुई है जहां पर बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक हस्तियां इक्टठ्ठा हुई थीं.

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि संसद में सभी उन्हें बधाई दे रहे हैं, वहीं स्पीकर वैंकया नायडू ने भी राघव के मजे लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा. वह पूछते हैं कि राघव मुझे लगता है कि प्यार एक बार ही होता है, पहला प्यार होता हा या दूसरा प्यार भी होता है, इस पर राघव हंसते हुए जवाब देते है कि मुझे इस बारे में ज्यादा अनुभव नहीं है . जिस पर सभी लोग हंसने लगते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Instant Bollywood (@instantbollywood)

इसके बाद राघव के जवाब के बाद से वैंकया नायडू कहते हैं कि मुझे लगता है कि पहला प्यार अच्छा होता है, अच्छा होता है वहीं रहना है जिंदगी भर.

बता दें कि राघव और परिणीति का प्यार ज्यादा पुराना नहीं है वह दोनों फिल्म के सेट पर मिले थें, जहां से दोनों की कहानी की शुरुआत हुई थी. बता दें कि परिणिती इम्तयाज अली की फिल्म चमकीला की शूटिंग कर रही थीं.हालांकि दोनों बहुत प्यारे कपल हैं. अब साथ में दोनों काफी ज्यादा अच्छे लग रहे हैं.

धर्मकर्म में उलझी मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति

यह तो कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान ही स्पष्ट हो गया था कि भाजपा को धर्म की राजनीति के अलावा कुछ और आता नहीं. इसलिए वहां भाजपा नेता बेहद लड़खड़ाए से नजर आए थे..प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में बजरंगबली बजरंगबली करते रहे थे लेकिन हिंदीभाषी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित सभी भाजपाई मुख्यमंत्री बड़ा सहज महसूस करते हैं क्योंकि यहां वे अपने मनपसंद मुद्दों और एजेंडे पर खुल कर बोलते हैं. कैसे, इसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो इन दिनों चुनाव की तैयारियों में दिनरात जुटे हैं, की कुछ गतिविधियों और बयानों से समझते हैं.

-24 अप्रैल को शिवराज सिंह तंत्रमंत्र के जरिए दुश्मनों का नाश कर देने के लिए प्रसिद्ध दतिया स्थित पीतांबरा पीठ की रथयात्रा में रथ खींच रहे थे. रथ के अंदर ऋषि वशिष्ठ की सी मुद्रा में एक स्वामी बैठे हुए थे. भव्यता के लिए दिल्ली से मंगाए गए हैलिकौप्टर से पुष्पवर्षा का इंतजाम किया गया था. उन के साथ राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया और मध्यप्रदेश के गृह मंत्री पंडित नरोत्तम मिश्रा भी रथ में जुते थे. इस दिन शिवराज सिंह पूरे वक्त माईमाई करते रहे.

उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर पीतांबरा माई महालोक बनाने की घोषणा करते उन्होंने  कहा, ‘मैया की ऐसी इच्छा है कि पीतांबरा माई महालोक बन जाए तो काहे की चिंता, हम पर तो माई की कृपा है. माई, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा, मैया जो बनाना है बनवा लो, मां क्या बनाना है, यह गृहमंत्री संतों से मिल कर तय कर लें.’ कुछ और इधर उधर की हांक कर वे उपसंहार में बोले, ‘मां, कृपा की बरसात करना.’

पूरी तरह माई की भक्ति के रंग में रंगे शिवराज के ये शब्द भी यह साबित करते हैं कि सबकुछ ऊपरवाला करता है. नीचे वाले तो अलाल और निकम्मे हैं. उन्होंने कहा, “मैं माई से प्रार्थना करता हूं कि सुखसमृद्धि और रिद्धिसिद्धि दतिया और मध्यप्रदेश की जनता की जिंदगी में आए. माई, ऐसी कृपा करना कि इन के पैरों में कांटा भी न लग पाए.”

यह अनिष्ट और दैवीय प्रकोप से डरे और सहमे हुए घोर भाग्यवादी, भक्तटाइप की भाषाशैली थी जो बातबात में प्रभु और हरिइच्छा का राग अलापता रहता है. उस में इतना आत्मविश्वास भी नहीं होता कि अपने किए का श्रेय भी खुद लेने का साहस जुटा पाए. बात जहां तक शिवराज सिंह और भाजपा की है तो हर कोई जानता है कि मध्यप्रदेश की सत्ता उन्हें माई की कृपा से नहीं, बल्कि खालिस बेईमानी से मिली थी.

 

ब्राह्मण श्राप से महंगी मुक्ति

दतिया के 4 दिन पहले शिवराज सिंह भोपाल की एक कथा में प्रवचन करते नजर आए थे. उस दिन मौजूदा दौर के ब्रैंडेड बाबा बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री ब्राह्मणों के आराध्य परशुराम की जयंती मनाने भोपाल खासतौर से तशरीफ लाए थे. ब्राह्मणों को साधने शिवराज सिंह ने परशुराम की जन्मस्थली जानापाव में 11 करोड़ की लागत से परशुराम लोक और परशुराम धाम बनाने का ऐलान कर दिया.

इतना ही नहीं, मत चूको चौहान की तर्ज पर ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन की भी घोषणा करते उन्होंने कहा कि अब मंदिर की गतिविधियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा. मंदिरों की जमीन की नीलामी कलैक्टरों द्वारा नहीं, बल्कि पुजारियों द्वारा की जाएगी. गौरतलब है कि राज्य के 21 हजार से भी ज्यादा मंदिरों में से 1,320 मंदिरों के पास 10 एकड़ से ज्यादा जमीन है जो सीधेसीधे पुजारियों की मिल्कीयत हो जाएगी.

वे बिना कुछ करेधरे करोड़ों के मालिक हो जाएंगे. जिन मंदिरों के पास जमीनें नहीं हैं उन के पुजारियों को 5 हजार रुपए महीना दिया जाएगा. अच्छा तो उन का यह ऐलान न करना रहा कि जो ब्राह्मण पुजारी भी नहीं हैं उन्हें 2 हजार रुपए महीना दिया जाएगा. लग ऐसा रहा था जैसे वैदिककालीन राजा ने खजाने का मुंह ब्राह्मणों के भले के लिए खोल दिया है, बाकी जातियों वाले, उन में भी खासतौर से दलितपिछड़ेआदिवासी, बदहाली में जिएं तो जीते रहें. उन की फिक्र सिर्फ भाषणों का आभूषण बन कर रह गई है.

सरकारी खजाने से तो करोड़ों रुपए जाएंगे ही लेकिन जमीनों की नीलामी से जो अरबों मिलते वे भी ब्राह्मणों को खैरात में दे दिए गए हैं. जनता के पैसे की इतनी खुली लूट एक मिसाल है जो भाजपा के राज में ही मुमकिन है. महज 6 फीसदी ब्राह्मणों को खुश करने के लिए  शिवराज सिंह ने यह रिस्क बेवजह नहीं उठाई है. असल में साल 2018 के चुनाव में ब्राह्मणों ने भोपाल की सड़कों पर आ कर उन्हें खुलेतौर पर श्राप दिया था और इसे फलीभूत करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

ब्राह्मणों की नारागजी की बड़ी वजह शिवराज सिंह का दलितों की एक सभा में सीना ठोक कर दिया गया यह बयान था कि कोई माई का लाल आप का आरक्षण छीन नहीं सकता. इस पर ब्राह्मण युवा इतने गुस्साए थे कि उन्होंने शिवराज के खिलाफ तख्तियां ले कर प्रदर्शन भी किया था. माई के लाल वाले बयान से ताल्लुक रखता एक दिलचस्प वाकेआ भोपाल के शिवाजीनगर स्थित परशुराम मंदिर में 17 अप्रैल, 2018 को देखने में आया था जब वे ब्राह्मणों की एक सभा को संबोधित करने गए थे.

शिवराज का भाषण पूरा हो पाता, इस के पहले ही ब्राह्मण युवाओं ने आक्रामक अंदाज में मंच की तरफ बढ़ते उन के खिलाफ हायहाय के नारे लगाए थे तो घबराए शिवराज सिंह चुपचाप वहां से खिसक लिए थे. जब चुनावी नतीजे आए तो कोई 30 सीटों से यह साफ हो गया था कि ब्राह्मणों की नाराजगी भाजपा को ले डूबी.

यह दोहराव न हो, इसलिए इस परशुराम जयंती पर शिवराज ने ब्राह्मणों की स्तुति धीरेंद्र शर्मा से सहमति जताते इन शब्दों से की, ‘ब्राह्मणों ने हमेशा धर्म की रक्षा की है. अगर आप देखेंगे तो हम सब को बहुत गर्व होता है कि ब्राह्मण धर्म, आध्यात्म, ज्ञानविज्ञान, योगआयुर्वेद, परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करने का काम करते हैं. ब्राह्मणों ने यज्ञोंहवनों और शस्त्रशास्त्रों सब को सुरक्षित रखने का काम किया है.’ इस पूरे झमेले से साबित यह भी हुआ कि ब्राह्मण श्राप से मुक्ति सरकारी पैसे को ब्राह्मणों को दान में देने से भी मिलती है. इस के लिए शिव आराधना करना या हनुमान चालीसा पढ़ने की अब बहुत ज्यादा जरूरत नहीं.

इस प्रसंग के पहले शिवराज सिंह चुनावी वैतरणी पार करने अपने गृहनगर विदिशा में बागेश्वर बाबा के दरबार में राम भजन गा रहे थे. इस के और पहले वे फलां मंदिर और उस के भी पहले ढिकाने मंदिर में हाथ जोड़े दंडवत हो रहे थे. सालभर उन का सार्वजनिक पूजापाठ चलता ही रहता है.

धर्मकर्म की इस धुआंधार राजनीति से आम लोगों में चुनाव को ले कर हताशा है कि कोई तुक की बात भाजपा की तरफ से नहीं हो रही. रस्म अदा करने को एकदो काम या योजनाएं गिना दी जाती हैं. हकीकत में आम लोग भी बेहतर समझने लगे हैं कि भाजपा अब धर्म बेचने की राजनीति कर रही है और चुनाव तक यह सिलसिला जारी रहेगा.

कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तंज कस चुके हैं कि भाजपा ने धर्म का ठेका ले रखा है. हिंदू होने पर गर्व हमें भी है लेकिन हम वेबकूफ नहीं हैं, हम धर्म को राजनीतिक मंच पर नहीं लाते. भाजपा महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगार जैसे अहम मुद्दों से ध्यान हटा रही है.

 

गायब हैं मुद्दे

लगभग 6 महीने बाद होने जा रहे न केवल मध्यप्रदेश बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव 2024 का सैमी फाइनल करार दे रहे हैं. यह एक बेतुकी और हकीकत से परे बात है क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दों में जमीनआसमान का फर्क होता है. कई बार तो रातोंरात वोटर का मूड और इरादा बदल जाता है. इस की एक बेहतर मिसाल 232 विधानसभा सीटों वाला मध्यप्रदेश ही है.

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 115 सीटें मिलीं थी जबकि सत्तारूढ़ भाजपा 109 पर अटक कर रह गई थी. तब भाजपा को 41.6 फीसदी और कांग्रेस को थोड़े कम 41.5 फीसदी वोट मिले थे.

वोटर का मिजाज कैसे बदलता है, यह 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चला था. उस चुनाव में भाजपा को 58.5 फीसदी रिकौर्ड वोट मिले थे जबकि कांग्रेस 34.8 फीसदी वोटों पर सिमट कर रह गई थी. पूरे देश की तरह यहां भी मोदी लहर थी जिस का फायदा भाजपा को मिला था. इस के भी पहले जाएं तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 165 सीटें और 44.88 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 58 सीटें और 36.38 फीसदी वोट मिले थे.

इस बिना पर कोई राय कायम नहीं की जा सकती. हां, अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को ज्यादा वोट मिले थे. सीटें भी उस ने 29 में से 28 जीती थीं और 180 विधानसभा सीटों पर वह बढ़त पर रही थी. अगर इसी थ्योरी पर लोकसभा में भाजपा का भविष्य देखा जाए तो उसे विधानसभा में हारने तैयार रहना चाहिए. हकीकत में ऐसी थ्योरियां तोता छाप ज्योतिषियों की तरह सियासी पंडित गढ़ा करते हैं जिस से आम वोटरों का गणित और मूड गड़बड़ा जाता है.

मौजूदा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के पास मतदाता को लुभाने वाला कोई मुद्दा नहीं है. वे हर जाति के लोगों के लिए घोषणाएं कर रहे हैं कि आप के लिए ये कर देंगे वो कर देंगे. इस से भी बात बनते नहीं दिखी तो शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाड़ली बहिना योजना’ बड़े जोरशोर से लांच कर दी जिस के तहत बेसहारा औरतों को एक हजार रुपए महीना सरकार देगी.

भाजपा को इस योजना से बहुत ज्यादा चुनावी लाभ मिलेगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि हर कोई कहने लगा है कि हमारे खूनपसीने की कमाई यों न लुटाओ और कब तक मुफ्तखोरी फैला कर चुनाव जीतने का ख्वाब आप देखते रहेंगे. जो थोड़ाबहुत फायदा इस के बाद भी भाजपा को मिलेगा, उस से कहीं ज्यादा रोजगार के मुद्दे पर उस के वोट कटेंगे. इसी साल जनवरी में राज्य में कुल 38 लाख 93 हजार बेरोजगार थे.

ये तो वे बेरोजगार हैं जिन्होंने रोजगार कार्यालयों में पंजीयन करा रखा है, वरना तो असल बेरोजगारों की तादाद इस से कहीं ज्यादा है. मध्यप्रदेश सरकार का सब से बड़ा मजाक देखिए कि वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक मेघाराम जाटव के किए सवाल के एवज में स्वीकार चुकी है कि पिछले 22 सालों  में रोजगार कार्यालयों में 39 लाख बेरोजगारों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. उन में से महज 21 को ही नौकरी दी जा सकी है. खुद सरकार के जारी किए गए एक आंकड़े के मुताबिक, अब राज्य में शिक्षित बेरोजगारों की तादाद 95.07 फीसदी हो गई है जो कि एक रिकौर्ड है.

बेरोजगारी का मुद्दा जब चुनाव आतेआते मुंह उठाएगा तब भाजपा को बेरोजगारों से आंख मिलाने में भी परेशानी होगी. उलट इस के, कांग्रेस इस मुद्दे को असरदार तरीके से नहीं उठा पा रही है तो इस के पीछे उस की भी कमियां व कमजोरियां हैं क्योंकि मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ भी बेरोजगारी की बाबत कुछ खास नहीं कर पाए थे. अब उन की कोशिश यह होनी चाहिए कि बेरोजगारी का ठीकरा, जैसे भी हो, शिवराज सरकार के सिर फूटे.

उधर अपना सिर बचाने सरकार 3 महीने से वैकेंसियां निकाल रही है. पटवारी, क्लर्क, नर्स और टीचर जैसी छोटी नौकरियों के लिए लाखों नौजवान फौर्म भर रहे हैं और कुछ में प्रवेशपरीक्षा भी हो रही है. लेकिन नतीजे कब आएंगे और नियुक्तिपत्र कब मिलेंगे, यह किसी को नहीं पता. हां, यह जरूर इन नौजवानों को पता है कि इन नौकरियों में 5 हजार आवेदकों पर एक को नौकरी मिलेगी, बाकी 4,999 बेरोजगार ही रहेंगे.

 

चंबल पर ज्यादा जोर

महंगाई, बेरोजगारी और प्रदेश में सुरसा से मुंह की तरह पसरते भ्रष्टाचार पर कोई ज्यादा तवज्जुह न दे, इस के लिए चुनाव की तैयारी जाति और इलाके पर सिमटती जा रही है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस गुणाभाग और जोड़तोड़ में लगे हैं कि पिछली बार जहांजहां से हारे थे वहांवहां ज्यादा जोर लगाया जाए. चंबल इलाके में भाजपा की उम्मीद से ज्यादा दुर्गति हुई थी जहां उसे 8 जिलों की कुल 34 सीटों में से महज 7 सीटें मिली थीं, कांग्रेस 26 सीटें ले गई थी. खत्म होती बसपा के खाते में भी एक सीट गई थी.

तब चंबल ग्वालियर इलाके में खासा असर रखने वाले दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी पार्टी कांग्रेस को जिताने में एड़ीचोटी का जोर इस उम्मीद के साथ लगाया था कि मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा. उन का यह सपना पूरा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री कमलनाथ को बना दिया गया. इस के बाद पार्टी के अंदर जम कर अनदेखी होने लगी तो एक सौदेबाजी के तहत वे अपने 21 विधायकों सहित भाजपा में शामिल हो गए जिस से भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिल गया और बगैर कुछ किएधरे शिवराज सिंह चौथी बार सीएम बन बैठे.

यह साफतौर पर बेईमानी थी क्योंकि जनता ने भाजपा और शिवराज दोनों को नकार दिया था. 15 सालों बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार 15 महीने ही चल पाई. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. इस के बाद 27 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा 19 ले गई और कांग्रेस के खाते में महज 9 सीटें आ पाईं.

सौदे और वादे के मुताबिक सिंधिया कोटे के सभी प्रमुख विधायक मंत्री बनाए गए और बतौर इनाम, उन्हें राज्यसभा में ले कर उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया गया लेकिन एक गिल्ट ज्योतिरादित्य सिंधिया के दिल में भी है और शिवराज सिंह के तो दिलोदिमाग दोनों में घर कर चुका है जिस से छुटकारा पाने के लिए वे धर्म का सहारा ले रहे हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ अब चंबल में ढीली पड़ रही है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि वे 34 में से कितनी सीटों से भाजपा की झोली भर सकते हैं. चूंकि इस इलाके में सपा और बसपा भी हैं, इसलिए मुकाबला बेहद करीबी और दिलचस्प होना तय है.हालफिलहाल तो भाजपा वोटर से ज्यादा भरोसा ऊपरवाले पर जता रही है.

गिद्ध-भाग 3: समाज के गिद्धों से बचने के लिए माही ने क्या किया ?

माही को रहरह कर पुरानी बातें याद आ रही थीं…’क्या कर्ण का वह प्यार झूठ था? कर्ण के सीने पर सिर रख कर उसे कितनी गहरी नींद आती थी. कर्ण क्यों नहीं उस से बात कर सकता है?’

उधर कर्ण को भी लग रहा था कि माही ने अपने मम्मीपापा को बीच में ला कर उस के प्यार का अपमान किया है. कर्ण ने तो 10 दिन बाद के टिकट भी करा रखे थे मगर माही के इस बचपने ने सब चौपट कर दिया था.कर्ण को लग रहा था कि माही उसे कौल जरूर करेगी मगर माही के बजाय उस के मम्मीपापा का फोन देख कर कर्ण का पारा गरम हो गया था. कर्ण ने फोन उठाया और रूखे स्वर में कहा,”आपको जो बात करनी है गाजियाबाद जा कर मेरे मम्मीपापा से कीजिए।”

माही के पापा ने कर्ण के पापा को फोन लगाया मगर कर्ण के पापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात
करें. पहले तच उन्होंने फोन नहीं उठाया और फिर उठा कर कहा कि मैं शादी में लखनऊ आया हुआ हूं, जा कर बात करूंगा।”

माही गुस्से में बोली,”पापा कितना इंतजार करेंगे, कल किसी अच्छे वक़ील से बात करते हैं।”

माही के पापा ने एक अच्छे वकील का पता भी कर लिया था. जब माही वकील सुरेंद्र के दफ्तर पहुंचे तो
वे किसी फाइल में उलझे हुए थे.
माही की सारी बात सुनने के बाद सुरेंद्र की आंखों में चमक आ गई. मन ही मन सुरेंद्र सोच रहा था कि बड़ी
मुश्किल से एक मोटा आसामी हाथ आया है और करना भी कुछ खास नहीं है बस इस गलतफहमी की
चिनगारी में थोड़ा सा घी डाल कर उसे लावा बनाना है.

माही पूरी बात बताने के बाद बोली,”वकील साहब, क्या मुझे एक बार कर्ण से बात करनी चाहिए?”

सुरेंद्र बोले,”अरे नहीं, आप ऐसा बिलकुल भी मत कीजिए, न जाने उस के मन मे क्या है?” सुरेंद्र अच्छे से जानते थे कि अगर माही और कर्ण की आपस में बात हो गई तो बिगड़ती बात बन जाएगी, जो उस के लिए घाटे का सौदा साबित होता. वकील सुरेंद्र ने माही और उस के परिवार को सलाह दी कि माही को गाजियाबाद जा कर अपने ससुराल में
रहना चाहिए तभी आप को पता चलेगा कि माही के ससुराल वालों के मन में क्या है?तुम उस घर की बहू हो
तुम्हारा अधिकार है जब तक चाहो तुम रहो.

माही ने कर्ण को फोन लगाया कि मैं गाजियाबाद में ही रहूंगी जब तक तुम बात करने इंडिया नहीं आते। तुम ने मुझे क्या शोपीस समझा हुआ है? जब तक मेरा मन करेगा मैं अपनी ससुराल में रहूंगी।

उधर कर्ण को भी माही पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने अपने मम्मी, पापा को फोन कर के कह दिया था कि अगर माही आए तो वे लोग जब तक उसे घुसने न दें जब तक माही के मम्मीपापा आ कर बातचीत नही
कर लेते हैं.

जब माही के पापा सिद्धार्थ ने कर्ण के पिता तेज कुमार को माही के गाजियाबाद जाने के लिए फोन किया तो वे बोले,”भाई साहब, अच्छा रहेगा अगर आप और माही की मम्मी माही के साथ आएं।”

मगर वकील के कहे अनुसार सिद्धार्थ बोले,”मेरी बेटी मेरी बात नहीं मान रही है, मैं क्या कर सकता हूं?
तेज कुमार गिड़गिड़ाते हुए बोले,”भाई साहब, समझने की कोशिश कीजिए, आप एक बार तो आइए। मिलबैठ कर ही बात होती है।”

उधर माही के घर वालों का रुख देख कर तेज कुमार ने भी वकील से सलाह लेने की सोची. जब वे शाम
के धुंधले में अपनी पत्नी कल्पना के साथ वकील प्रेमचंद के औफिस पहुंचे तो प्रेमचंद उठने ही वाले थे। पूरी बात सुनने के बाद प्रेमचंद अपनी आखों में चमक लाते हुए बोले,”ये लड़की वालों के पुराने पैंतरे हैं। अकेली लड़की को अंदर मत लेना। वह आप लोगों पर कुछ भी इलजाम लगा सकती है और फिर लड़के वालों की कहीं कोई सुनवाई नही है।”

कर्ण का परिवार वकील से सलाह लेने गया था मगर प्रेमचंद से बात करने के बाद उन्हें लगा मानो माही को अगर वे घर के अंदर आने देंगे तो वह उन्हें अवश्य पुलिस केस में फंसा देगी. उधर माही के मम्मीपापा वकील सुरेंद्र के कहे अनुसार माही के साथ गाजियाबाद तक जरूर आए मगर वे 3 किलोमीटर पहले ही उतर गए थे. जब माही अपने ससुराल राजनगर पहुंची तो सांझ रात से मिलने को बेताब हो रही थी. माही ने बाहर वाले गेट की घंटी बजाई तो माही के ससुर तेज कुमार अंदर से ही बोले,” मैं यहां पर अकेला हूं, तुम्हारी मम्मी और वसुधा आगरा गए हुए हैं. बेटा, आप के पापा से पहले भी कहा था कि वे आपको अकेले न भेजें।”

माही गुस्से में बोली,”क्या मैं आप की बहू नहीं हूं?”

तेज कुमार नरमी से बोले,”बहू हो मगर तुम्हारे और कर्ण के बढ़ते हुए मनमुटाव के कारण यही बेहतर होगा कि तुम्हारे घर का कोई बड़ा तुम्हारे साथ हो।”

बात अब माही के अहंकार पर आ गई थी. वह वहीं बाहर बैठ गई थी.धीरेधीरे पासपड़ोस के लोग इक्कठे हो
गए थे. कोई माही को नसीहतें दे रहा था तो कोई कर्ण के पापा को समझा रहा था. तभी औटो से कर्ण की
मम्मी चंद्रकला उतरीं और माही के हाथ जोड़ते हुए बोलीं,”मेरा ब्लड प्रैशर बहुत बढ़ा हुआ है। प्लीज मुझे परेशान मत करो। तुम्हारे इन्हीं ड्रामों के कारण कर्ण तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता है।”

पड़ोस में रहने वाले रिटायर्ड जज सहगलजी तमाशा देख कर वहीं आ गए और चंद्रकला से बोले,”यह क्या कर रही हैं आप? बहू को अंदर ले लीजिए।”

चंद्रकलाजी बोलीं,”अरे भाई साहब, आप को नहीं पता माही बातबात पर आत्महत्या की धमकी देती है। अगर यह ऊपर से नीचे कूद गई तो कौन जिम्मेदारी लेगा? हम बस यही तो बोल रहे थे कि अपने मम्मीपापा के साथ आओ।”

माही ने जब अपनी सास की यह बात सुनी तो माही को ऐसा लगा मानो उस के और कर्ण के रिश्ते में कभी कुछ निजी था ही नहीं. माही की गुस्से में, प्यार में कही हुई हर बात कर्ण ने अपनी मम्मी चंद्रकला को बता रखी
थी.

माही को घर के बाहर खड़े हुए जब 3 घंटे हो गए तो वकील के कहे अनुसार माही ने पुलिस को फोन लगा दिया. पुलिस के 2 सिपाही तकरीबन आधे घंटे बाद तब आए जब माही के पापा ने उन की थोड़ी जेब गरम कर
दी थी.

काफी बहस के पश्चात माही के लिए घर का दरवाजा खोलने के लिए चंद्रकला तैयार हो गईं मगर इस शर्त पर कि अगर माही के पापा यह मैसेज कर दें कि माही अपनी मरजी से यहां आई हैं और उस की हर अच्छीबुरी बात के लिए वे जिम्मेदार होंगे.

पुलिस का सिपाही संदीप जिस की जेब मे फिलहाल पैसों की गरमी थी, हंसते हुए बोला,”मैडमजी, आप क्या
चाहती हो कि अपने हाथ से सिद्धार्थजी खुद अपनी बेटी का सुसाइड नोट लिख दें।”

दूसरा सिपाही सुबोध बोला,”माही मैडम कुछ नही करेंगी, आप उन के कमरे का ताला खोलिए।”

तभी तेज कुमार बोले,”अरे हम कहां मना कर रहे हैं, अगर मम्मीपापा मुंबई से नहीं आ सकते हैं तो माही के
चाचा अनिल दिल्ली से तो आ सकते हैं।”

बराबर में रहने वालीं ओमवतीजी माही को समझा रही थीं,”क्यों इतना तमाशा करना, भले घर की बहूबेटियां अपने ससुराल की इज्जत ऐसे नहीं उछालती हैं। माही बाहर पोर्च में ही बैठी हुई थी. अपने पापा और वकील के कहे अनुसार वह वीडियो बना रही थी। न जाने क्या सोच कर माही ने वह वीडियो कर्ण को भेज दिया था.शमाही को ऐसे बदहवास देख कर कर्ण का मन भर आया। कर्ण ने अपने पापा को कहा,”पापा माही को घर के अंदर ले लीजिए, मैं आता हूं फिर मिलबैठ कर बात कर लेते हैं।” मगर कर्ण की मम्मी इस बात पर नही मानी.

रात के 1 बज रहे थे तभी कर्ण का फोन आया और वह अपनी बहन वसुधा को कुछ समझाने लगा. वसुधा ने अपनी मम्मी चंद्रकला को कहा कि मम्मी, कर्ण को माही को एक बार फिर से मौका देना है। मगर चंद्रकला अड़ गई और बोली,”हम माही को अंदर जाने की इजाजत नहीं दे सकते हैं? पूरी बिरादरी में हमारी नाक कटवा दी है। अब इस रिश्ते में कुछ नहीं बचा है।”

मगर पुलिस के कहनेसुनने पर माही को घर के अंदर ले लिया गया था. माही ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया पुरानी यादों ने उसे एकाएक घेर लिया था. हर कोने में मीठी यादें बसी हुई थीं. ड्रेसिंग टेबल पर अभी भी कांच की लाल चूड़ियां ऐसे ही बिखरी हुई थीं. सिंगापुर जाने से पहले जल्दीजल्दी में वह सब समान को अंदर नही रख पाई थी. न जाने क्यों माही ने वे चूड़ियां हाथ में डाल लीं और सिंदूर से अपनी मांग भर ली और फिर एकाएक जोरजोर से रोने लगी. कितने सतरंगी सपने बुन कर माही आई थी और यह क्या हो गया था.

एक खूबसूरत रिश्ता पनपने से पहले गलतफहमी और अहंकार की भेंट चढ़ गया था. अब बचेखुचे रिश्ते की
लाश को कानून और समाज के गिद्ध नोंचनोंच कर इतना विकृत कर रहे हैं कि माही शादी के नाम से ही डरने लगी थी.

माही जब रोतेरोते थक गई तो उस की आंख लग गई थी. सुबह 5 बजे अनिल चाचा ऊपर आए और
बोले,”माही, सिद्धार्थ भैया बोल रहे हैं कि इन की कार और अपने सारे जेवर ले कर ही आना।”

माही बोली,”चाचा, क्या मैं यहां रह लूं, कर्ण कह रहा है वह 2-3 दिन में आ जाएगा। मैं अपनी शादी को फिर से मौका देना चाहती हूं।”

अनिल चाचा सोचते हुए बोले,”तुम्हारे मम्मीपापा मान जाएंगे क्या?”

माही ने अपने मम्मीपापा को फोन किया,”मुझे अपनी शादी बचानी है।”

माही की मम्मी गुस्से में बोलीं,”यहां पापा तुम्हारे कारण बीमार पड़े हुए हैं और तुम्हें शादी की पड़ी हुई है…”
माही इस से पहले कुछ बोलती, फोन काट दिया गया था.

अनिल चाचा बोले,”आज भैयाभाभी तेरे साथ खड़े हैं, अगर तू यहां रुक गई तो फिर शायद तेरे घर के
दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। माही ने कर्ण को फोन मिलाया मगर वह असमंजस में था, उसे पता था कि उस की मम्मी ने माही को पुलिस के कारण ही अंदर आने दिया है. कर्ण को लगा कि माही उसे लानतसलामत देने के लिए फोन किया होगा. इसलिए उस ने फोन नही उठाया.

माही के पास अब और कोई चारा नहीं बचा था इसलिए उस ने कर्ण की बहन वसुधा से कहा,”मुझे मेरे गहने चाहिए या मुझे फिर से पुलिस के पास जाना पड़ेगा।” वसुधा ने यह बात रिकौर्ड कर के कर्ण को भेज दी थी.

जब कर्ण को पता लगा कि माही अपने गहने मांग रही है तो कर्ण बोला,”उसे गहने दे कर रफादफा करो। इस लालची लड़की के साथ मैं अब कोई रिश्ता रखना नहीं चाहता हूं।”

वसुधा वीडियो बना रही थी जब माही ने अपने गहने लिए थे. पासपड़ोस के लोग भी वहीं गवाह के तौर पर
खड़े हुए थे. माही ने गहने लेने के बाद अपने पापा को फोन किया, तो सिद्धार्थ बोले,”शाबाश, अब किसी बहाने से कार भी ले कर आओ।वकील साहब कह रहे हैं कि तुम्हारा उस घर की हर चीज पर हक है। जैसे उन्होंने तुम्हें परेशान किया है, तुम्हें भी करना चाहिए।”

माही थके स्वर में बोली,”पापा, बहुत हुआ, अपने गहने मैं ने ले लिए हैं, अब बस और नहीं।”

तब तक अनिल चाचा भी आ गए थे. माही और उस के अनिल चाचा जब तक अपने दिल्ली वाले घर में पहुंचते
तब तक मैसेज और फोनों की बरसात होने लगी थी. माही द्वारा बनाया गया वीडियो वायरल हो गया था. हर किसी को माही से हमदर्दी हो रही थी. सब लोगों को यही जानना था कि इतनी खूबसूरत परीकथा जैसी शादी का ऐसे दर्दनाक अंत कैसे हो गया था?

1-2 बार तो माही ने फोन उठाया मगर वही बात दोहरादोहरा कर जब वह थक गई तो उस ने फोन स्विच्ड औफ कर दिया था.

जब माही घर पहुंची तो उस की चाची बीणा बोली,”अरे माही, क्या से क्या हो गया। भैया ने कितने शौक से तुम्हारी शादी करी थी और अब यह तमाशा… बताओ तुम्हारी शक्ल कितनी बुझीबुझी हो गई है। वह वीडियो देखा तुम्हारा, बड़ा दुख हुआ।”

तभी अनिल गुस्से में बोला,”लड़की को सांस भी लेने दोगी या नहीं,” बीना मुंह बिचकाते हुए बोली,”किसकिस का मुंह बंद करते फिरोगे?”

माही बिना कुछ बोले अंदर चली गई थी. कमरा बंद कर के माही फूटफूट कर रोने लगी. उस के रिश्ते की लाश
सब के सामने बेपरदा थी और समाज और कानून के गिद्धों ने उस रिश्ते में बचाखुचा प्यार भी सोख लिया
था. चारों तरफ नफरत और संदेह के बादल घूम रहे थे और तबाही की सुनामी की लहरें ऊंचीऊंची उठ रही
थीं.

माही के सब्र का बांध टूट गया था और वह बेहोश सी कमरे के एक अंधेरे कोने में बैठी हुई थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो माही समाज के गिद्धों से अपनेआप को बचाने के लिए सदा के लिए इस अंधकार में विलीन होना चाहती है.

मैं बौयफ्रैंड के साथ खुश कम और परेशान ज्यादा रहती हूं, क्या मुझे उस से दोस्ती तोड़ लेनी चाहिए?

सवाल

मैं 18 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है. हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. लेकिन उस के  साथ एक समस्या है कि वह छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाता है, जैसे अगर उस का फोन रिसीव नहीं किया, उस ने बाहर चलने को कहा लेकिन मैं नहीं जा पाई, उस की पसंद की ड्रैस नहीं पहनी आदि. मुझे उस का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता. ऐसा लगता है वह मुझे अपने हिसाब से चलाना चाहता है. मैं उस के साथ खुश कम, परेशान ज्यादा रहती हूं. क्या मुझे उस से अपनी दोस्ती तोड़ लेनी चाहिए?

जवाब

आप का बौयफ्रैंड आप को इमोनशनल फूल बना रहा है और आप के साथ सिर्फटाइमपास कर रहा है. साथ ही, आप की बातों से लगता है कि वह आप पर हावी रहना चाहता है. जब आप खुद समझ रही हैं कि आप उस के साथ खुश कम और परेशान ज्यादा रहती हैं तो आप को यह भी समझ जाना चाहिए कि वह आप की दोस्ती के काबिल नहीं है. आप उस की बातों को महत्त्व न दें और अपना ध्यान उस से हटा लें और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें. ऐसे टाइमपास लड़के के साथ आप की दोस्ती ज्यादा समय तक नहीं निभेगी इसलिए अभी से ही दूरी बनाने में भलाई है.

मैं मां हूं इस की -भाग 4 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजेहद

“मैं बीवी मटेरियल नहीं हूं, तो तुम ने इतने दिनों तक मुझे अंधेरे में क्यों रखा निखिल? क्यों कहते रहे कि तुम सिर्फ मुझ से प्यार करते हो. आज तुम्हारी वजह से मैं प्रेग्नेंट हुई हूं और कहते हो कि तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते. क्यों? जवाब दो,” निखिल का कंधा हिलाते हुए श्लोका चिल्ला पड़ी.

“देखो, ज्यादा तैश में आने की जरूरत नहीं है समझी,” अपनी शर्ट झाड़ते हुए निखिल बोला, “तुम प्रेग्नेंट हो गई तो इस में मेरी क्या गलती है. क्या तुम्हें ध्यान नहीं रखना चाहिए था? नहीं रखा तो तुम जानो न. और हो सकता है, शादी की बातें मैं ने यों ही मजाक में बोल दी होंगी, तो तुम ने इतना सीरियसली क्यों ले लिया?”

“मजाक में… तो क्या शादी, प्यार जैसी बातें तुम्हारे लिए मजाक है निखिल ?”

“और नहीं तो क्या?” निखिल हंसा, “तुम्हारे जैसी कई लड़कियां मेरी जिंदगी आईं और गईं. अगर मैं सब से शादी ही करने लगता तो मेरा तो बंटाधार ही हो जाता न. वैसे, इस बात की क्या गारंटी है कि तुम्हारे पेट में जो बच्चा है वह मेरा ही है? किसी और का भी तो हो सकता है न और उस का पाप तुम मेरे सिर मढ़ना चाहती हो?”

“निखिल…” श्लोका ने एक जोर का थप्पड़ निखिल के गाल पर जड़ दिया. “तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई ऐसी घटिया बातें करने की? छिः, मुझे नहीं पता था कि तुम इतने नीच इनसान हो.”

श्लोका के तनबदन में आग लगी हुई थी. मन तो कर रहा था उस का अभी इसी वक्त पुलिस को फोन कर के उसे जेल भिजवा दे. लेकिन किस गुनाह में…? गलती तो उस की भी थी न, जो अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सकी. निखिल पर भरोसा कर उसे सबकुछ सौंप दिया. और आज वही इनसान उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग रहा है.

विनी ने कई बार आगाह भी किया था उसे कि निखिल अच्छा लड़का नहीं है. उस के कई लड़कियों से संबंध हैं. पर श्लोका को लगा था कि विनी उस से जलती है, इसलिए ऐसा बोल रही है.

“रुको निखिल, मेरी बात सुनो,” दौड़ कर उस ने जाते हुए निखिल को रोका और उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, “थप्पड़ के लिए सौरी. मु… मुझे तुम पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था. लेकिन मेरा विश्वास करो, यह तुम्हारा ही बच्चा है निखिल. कसम खाती हूं कि मैं ने आज तक तुम्हारे सिवा अपनेआप को किसी और को छूने तक नहीं दिया.“

श्लोका की बात पर निखिल अजीब तरह से हंसा, जैसे कह रहा हो कि तुम जैसी लड़कियों को मैं अच्छे से जानता हूं.

“एनी वे, मुझे तुम्हारे थप्पड़ का बुरा नहीं लगा. लेकिन अब भी मैं यही कहूंगा कि किसी अच्छे डाक्टर के पास जा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लो और मजे करो… मेरे साथ,” श्लोका के कंधे को मसलते हुए निखिल ने आंख मारी, तो श्लोका को खुद पर ही घृणा हो आई.

“वैसे, पैसे की चिंता मत करना, जितना खर्चा होगा मैं दे दूंगा,” कह कर वह चलता बना और श्लोका अपने आंखों में आंसू लिए उसे जाते देखती रही यह सोच कर कि यह वही निखिल है, जिस से उस ने टूट कर प्यार किया था?

ऐयाश निखिल के लिए कसमेवादे, प्यारवफा सब फालतू की बातें थीं, मगर श्लोका यह बात समझ ही न सकी और उस पर अपना सबकुछ लुटाती रही, जिस का नतीजा आज वह इतनी बड़ी मुसीबत में फंस चुकी थी. लेकिन अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने घर वालों का सामना कैसे करेगी जब उन्हें उस की प्रेग्नेंसी के बारे में पता चलेगा तो…?

श्लोका जिस कालेज में आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रही थी, निखिल उसी कालेज में सेकंड ईयर का स्टूडैंट था. 19 साल की सुंदर, मासूम श्लोका पर निखिल ऐसा रिझा कि वह उस के आगेपीछे मंडराने लगा.

वैसे, श्लोका का दिल भी हैंडसम निखिल को देख कर धड़का तो था. लेकिन वह यह सोच कर उस से दूरी बना कर रखती थी कि कहां वो एक साधारण परिवार की लड़की और कहां निखिल एक पैसे वाले बाप का बेटा. कोई मेल ही नहीं है दोनों का.

हालांकि, कालेज की बहुत सी लड़कियां निखिल पर मरती थीं. लेकिन निखिल तो केवल श्लोका पर जान छिड़कता है, ऐसा वह श्लोका से कहता था और उस की बात पर वह विश्वास भी कर लेती थी.

उसे लगता था, निखिल सिर्फ उसे चाहता है. उसी पर मरता है, लेकिन उसे नहीं पता कि निखिल का उस के अलावा भी कई लड़कियों से शारीरिक संबंध था और वह उसे सिर्फ चीट कर रहा था.

वैसे, विनी ने समझाया तो था उसे कि निखिल अच्छा लड़का नहीं है और वह उस से बच कर रहे. मगर उस की बात सुननेसमझने के बजाय वह उस से ही लड़ पड़ती थी. अब रास्ता तो अंधे को दिखाया जा सकता है न? इसलिए विनी ने फिर कुछ बोलना ही छोड़ दिया उसे.

 

समर स्पेशल :घर पर बनी बादाम कुल्फी देगी आपको गरमी से राहत

गरमी में मांइड और बौडी को रिलेक्स देने के लिए अगर कुल्फी का नाम लिया जाए तो हर किसी को पसंद आती हैं, और अगर आप भी कुल्फी के शौकीन हैं तो अब घर पर ही आप बादाम कुल्फी बना सकते हैं…

सामग्री

2 कप बारीक कटा हुआ बादाम

2 कप कंडेंस्ड मिल्क

आधा कप दूध

8 बड़ा चम्मच क्रीम

1 छोटा चम्मच केसर

1 बड़ा चम्मच साबुत बादाम

बनाने के लिए…

-एक बड़े बर्तन में बादाम, क्रीम और कंडेंस्ड मिल्क को अच्छी तरह से फेंटकर इसका डार्क पेस्ट बना लें.

– धीमी आंच में एक पैन में दूध उबालने के लिए रखें और इसमें केसर भी डाल दें.

– केसर जब दूध में अच्छी तरह से मिक्स हो जाए और दूध का कलर भी बदल जाए तब आंच बंद करके इसे ठंडा होने के लिए रख दें.

– अब केसर वाले दूध को तैयार पेस्ट के साथ मिला लें.

– धीमी आंच में एक तवे में साबुत बादाम को सूखा भून लें और इन्हें बारीक काट लें.

– इनमें से कुछ बादाम कुल्फी मिक्सचर में मिला लें और कुछ गार्निश के लिए अलग रख दें.

– अब इस तैयार मिक्सचर को कुल्फी के सांचे में डालें और ढक्कन लगाकर इसे लगभग 4 घंटे के लिये फ्रीजर में रख दें.

– 4 घंटे बाद फ्रिजर से निकालें और कुल्फी को सांचे से निकालकर भूने बादाम और केसर से गार्निश कर ठंडी-ठंडी सर्व करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें