कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को करारी मात देकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है.कांग्रेस ने बहुमत से अधिक कुल 135 सीटें हासिल की हैं वहीँ भाजपाएड़ीचौटी का दम लगाने के बाद भी 64 सीटों में सिमट कर रह गई. कर्णाटक चुनाव में मोदी, शाह और योगी किसी का जादू कर्नाटक में नहीं चला.

पांच साल भाजपा (कु)शासन बर्दाश्त करने के बाद जनता ने उसे बुरी तरह पटखनी दे दी है. इतनी बुरी पराजय की उम्मीद मोदीशाह को नहीं रही होगी. कर्नाटक की जनता पर न बजरंगबली का दांव काम आया और न हिंदुत्व की ध्वजा फहराते योगी का दौरा. कांग्रेस का भ्रष्टाचार का मुद्दा और जनकल्याण के लिए किए वादे ही जनता को जंचे और उसी पर उस जनता ने अपना मत भी दिया. कर्नाटक में भाजपा की हार के साथ लगभग पूरा दक्षिण भारत भाजपा मुक्त हो गया है.

कर्नाटक में भाजपा की पराजय के और भी अनेक कारण हैं.

 

  1. कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना

कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को भाजपा ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं रहा. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना भाजपा को महंगा पड़ा.

 

  1. भ्रष्टाचार

भाजपा की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार का होना था. कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ शुरू से ही '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया और ये धीरेधीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक भाजपा विधायक को जेल भी जाना पड़ा. स्टेट कान्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली. भाजपा के लिए यह मुद्दा चुनाव में गले की फांस बन गया और पार्टी इसकी काट नहीं खोज पाई.

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