कर्नाटक की करारी हार से भगवा गैंग ने क्या सबक सीखा, इस सवाल का जबाब बीते दिनों  बिहार से मिला कि कुछ खास नहीं सीखा. उलटे, उसकी कट्टरता और बढ़ गई है. सोशल मीडिया की पोस्ट पानी पीपी कर हिंदुओं को कोस रही हैं कि तुमने अपने हाथों से अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार ली, अब अंजाम भुगतने को तैयार रहना.

मोदी बारबार पैदा नहीं होता. ऐसी कई भड़काऊ बातों से भक्त अपनी खीझ, बौखलाहट और भड़ास अभी भी निकाल रहे हैं. डीके शिवकुमार और सीएम घोषित कर दिए गए सिद्धारमैया के टोपी पहने फोटो वायरल किए. वे 12 फीसदी थे और तुम 85, फिर भी सत्ता उस पार्टी को दे दी जो मुसलिम आरक्षण की हिमायती है और हिंदुत्व की दुश्मन है जैसी उत्तेजक बातों के जरिए भी खंभा नोचा गया.

पटना से यही आवाजें आधा दर्जन बड़े भाजपा नेता (वहां हैं ही इतने) भी निकालते दिखे जिन में वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से पूछ रहे हैं कि तुम लोग बागेश्वर बाबा की कथा में क्यों नहीं आए जबकि मुसलमानों की रोजा इफ्तार पार्टियों में तो खूब टोपी पहनकर, मटकमटक कर जाते हो.

बागेश्वर बाबा के तमाशे में न जाने मात्र से आप किस तरह हिंदू और सनातन धर्म के दुश्मन और पापी तक हो जाते हैं, यहकेंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेता बिहार से तरहतरह से चिल्लाचिल्ला कर बताते रहे.यह और बात है कि इन दोनों पर शादी के नाराज फूफा की तरह कोई असर होता नहीं दिखा.

फर्जी चमत्कार

पटना के नौबतपुर में इन दिनों के हिट और ब्रैंडेड बाबा आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की 5-दिवसीय बजरंग कथा 17 मई तक चली जिस में भक्त लोग पागलों की तरह टूट पड़े थे. रोजाना कोई 4 लाख लोग इस भव्य और खर्चीले आयोजन में पहुंचे थे. उमसभरी भीषण गरमी में सैकड़ों लोग चक्कर आने से बेहोश से होकर गिर पड़े लेकिन यह चमत्कारी बाबा कुछ न कर पाया जिसके मंच पर एकदो नहीं, बल्कि 8-8 एसी लगे थे.

जो बाबा जिंदा लोगों को राहत नहीं दे सकता वह क्या खाकर भूतप्रेत और पिशाचों से मुक्ति दिलाएगा, यह तो भगवान, कहीं हो तो वही, जाने. हां, यह जरूर सच है कि ये अज्ञात शैतानी ताकतें काल्पनिक और पंडों के खुराफाती दिमाग की उपज हैं, इसलिए इन्हें भगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. वे तो चुटकीभर राख, जिसे भभूत कहा जाता है, से सिर झुकाकर छू हो जाती हैं.

गौरतलब है कि इस बाबा के चमत्कारों की पोल कई मर्तबा खुल चुकी है और उन्हें चुनौतियां भी मिलती रही हैं लेकिन अभी उनका जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है ठीक वैसे ही जैसे कभी आसाराम और राम रहीम जैसों का बोलता था. इसलिए, उनकी हकीकत पर कोई ध्यान नहीं दे पा रहा.

 गिरिराज क्यों इफ्तार में नहीं जाते

बाबाओं और राजनेताओं की दुकानें परस्पर सहयोग से यानी सहकारिता के सिद्धांत पर चलती हैं. बाबा चमत्कारों के नाम पर भीड़ इकट्ठा कर दक्षिणा बटोरने के कारोबार में व्यस्त रहते हैं तो नेता लाखों की भीड़ में वोट टटोलते रहते हैं.

गिरिराज सिंह जैसे घिसे नेता नीतीश और तेजस्वी को कोस कर अपील असल में यह कर रहे हैं कि कर्नाटक जैसी गलती मत करना नहीं तो पछताओगे. अब भक्त बेचारा, परेशानी का मारा, इस गोरखधंधे को समझ ही नहीं पाता कि सूदखोर साहूकार और बनिए दोनों एक छत के नीचे छतरी लगाए अपनेअपने हिस्से का मुनाफा मेला लगाकर वसूल रहे हैं जबकि कर्ज या उधारी उसे किसी की नहीं देना.

उधर गिरराज सिंह के हमले से खासतौर से लड़खड़ाए नीतीश कुमार संविधान की दुहाई देते रहे  लेकिन यह पलटवार नहीं कर पाए कि गिरिराजजी, आप क्यों इफ्तार में नहीं जाते लेकिन कथाओं में कूदकूद कर जा रहे हो.

अब शायद नीतीश को समझ आ रहा होगा कि भगवा धोती का छोर पकड़ कर 2020 में चुनावी वैतरणी तो पार कर ली थी लेकिन बीच नदी में धोती छोड़ देने से मोक्ष भी आधाअधूरा मिला, पतवार अब लालूपुत्रों के हाथों में है.

 शिव और कृष्ण बनते हैं तेजप्रताप

भीड़ देख गदगद हुए जा रहे धीरेंद्र शास्त्री नेभगवा गैंग केमन की बात कह ही दी कि हिंदू राष्ट्र बनना चाहिए.इसी पुनीत काम के लिए तो वे छतरपुर से 682.2 किलोमीटर दूर पटना गए थे वरना तो भक्तों और पैसों की कमी एमपी में भी नहीं है.

बाबा ने हिंदुओं को आगाह करते बड़े ज्ञान की बात यह कही कि हिंदुओं में 33 करोड़ देवीदेवता हैं, फिर भी कुछ हिंदू चादर चढ़ाने मजारों पर जाते हैं.

इस सनातनी धिक्कार से लगता नहीं कि अंधविश्वासियों ने कुछ सीखा होगा जो हर उस जगह पैसा चढ़ा आते हैं जहां चमत्कारों के जरिए उनकी परेशानी दूर करने की बेमियादी गारंटी दी जा रही हो.

बिहार में5 दिन माहौल ऐसा रहा मानो नीतीश सहित तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों मुसलमान हों. इस पर लालू यादव ने धीरेंद्र शास्त्री का मजाक सा उड़ाते कहा था, ‘हट… वह कोई बाबा है क्या.’

असल में वे एक देहाती कहावत की तरफ इशारा कर रहे थे जिसके तहत रातोंरात चमत्कारी बन गए बाबाओं के बारे में मुंह बिदकाकर कहा जाता है कि ‘हुंह .. कल के जोगी और फलां अंग तक जटा.’

लालू परिवार, खासतौर से उनके बड़े बेटे तेजप्रताप तो इतने बड़े सनातनी हैं कि हर कभी शिव और कृष्ण का रूप धरकर सार्वजनिक स्थलों पर शरीर पर भभूत लपेटे, बांसुरी बजाते घूमा करते हैं. फिर वे कैसे चादर और फादर वालेया टोपी वाले हिंदू हुए, यह भी राम जाने.

 नरेंद्र से ज्यादा धीरेंद्र पर भरोसा

भगवा गैंग कर्नाटक का जला है, लिहाजा, बिहार अभी से फूंकफूंक कर पी रहा है. कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जय बजरंगबली करते रह गए और अली वाले बाजी मार ले गए. इस बात को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभाओं में कई बार कह भी चुके हैं कि उनके पास अली है तो हमारे पास बजरंगबली है.

कर्नाटक में तो महज 12 फीसदी मुसलमान थे लेकिन बिहार में 18 फीसदी के लगभग हैं. इसलिए वहां किसी जीतेजागते देवता सरीखे आदमी की जरूरत पड़ी तो बागेश्वर बाबा को अभी से शिफ्ट और लिफ्ट कर दिया गया. बाबा ने भी निराश नहीं किया और भूखप्यास से बेहाल होती भीड़ का बुंदेलखंडी से, जितना हो सकता था, मनोरंजन किया.

लेकिन बिहार की छाछ भगवा गैंग को अभी और फूंकनी पड़ेगी क्योंकि वहां भी ब्राह्मणों के वोट महज 6 फीसदी हैं और अगर सभी अगड़ों व भूमिहारों को भी अपने खेमे में गिन लें तो भी उसके गारंटेड वोटों की तादाद 15 फीसदी तक ही पहुंचती है. दलित, महादलित, पिछड़े, आदिवासी और ईसाई वगैरह अगर कर्नाटक की तरह हिंदू राष्ट्र से बिदक गए तो सीटों की हाफ सैंचुरी लगाना भी उसके लिए मुश्किल हो जाएगा. पिछले चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के गठबंधन के तहत 78 सीट मिल भी गईं थीं.

जो भक्त हिंदीभाषी राज्यों को लेकर चिंतित और व्यथित हैं, उन्हें कर्नाटक के हिंदू राष्ट्र के मौडल पर एक बार और गौर करते यह समझ लेना चाहिए कि बिहार में पिछड़ों और दलितों को सत्ता ब्राह्मणवाद के खात्मे के बाद ही मिली है. बिहार की नई पीढ़ी तो जगन्नाथ मिश्र को जानती भी नहीं ठीक वैसे ही जैसे उत्तरप्रदेश की नई पीढ़ी नारायणदत्त तिवारी और मध्यप्रदेश की नई पीढ़ी पंडित श्यामाचरण शुक्ल को नहीं जानती.

जाहिर है ये और ऐसे तमाम समीकरण भगवा गैंग को समझ आ रहे हैं, इसीलिए उसने धीरेंद्र पर भरोसा किया जो एक तरह का नया प्रयोग है कि किसी लोकप्रिय संत को अघोषित प्रचारक घोषित कर उससे हिंदू राष्ट्र का शंख बजवाया जाए तो आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा. अगर वाजिब असर पड़ता दिखा तो बाबा घोषित तौर पर भाजपा भी जौइन कर सकते हैं.

अब यह और बात है कि नतीजे तो कर्नाटक जैसे ही आने हैं क्योंकि बाबाओं, धर्म, हिंदुत्व और 33 करोड़ देवीदेवताओं के होहल्ले में फायदा विपक्ष को ज्यादा होता है और बिहार में तो जीतनराम मांझी जैसे तेजतर्रार दलित नेता पहले से ही तैयार बैठे हैं जो खुलेआम ब्राह्मणवाद, मनुवाद, रामायण और रामचरितमानस जैसे धर्मग्रंथों की बखिया उधेड़ रहे हैं जिससे दलित वोट खिसके नहीं.

 इन्हें कभी कुछ नहीं मिलता

पटना के तमाशे से किसे क्या मिला, यह हिसाबकिताब अब कई दिनों तक लगता रहेगा, लेकिन तरस उन भक्तों की अक्ल पर आता है जो चिलचिलाती, झुलसती गरमी में बेहाल बैठे रहे फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिला. ये लोग सदियों से यों ही उम्मीदें और आस लेकर दरबारों में आते हैं और खुद को ठगा कर चले जाते हैं.

सदियों से ही यह वर्ग वहीं खड़ा है जहां से धर्म ने उसे छलना शुरू किया था.बाबा आशीर्वाद और झूठा आश्वासन देकर चलते बनते हैं लेकिन करोड़ों अरबों की नकदी बटोर ले जाते हैं. यही आम आदमी की जिंदगी का कड़वा सत्य है जिसका कोई इलाज नहीं.

बाबाओं के चमत्कारों और देश के हिंदू राष्ट्र बन जाने से अगर बेरोजगारों को रोजगार, बेऔलादों को औलाद मिलती हो,कैंसर जैसी बीमारी ठीक होती हो तो फिर जरूर बात हर्ज की नहीं बशर्ते आम लोग तर्क की कसौटी पर इन्हें कस कर देखें तो.

 

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