Download App

मैं कुछ मीनिंगफुल करना चाहती हूं, जिस से मेरे दिल को संतुष्टि मिले, कृप्या मेरी मदद करें?

सवाल

मैं कुछ मीनिंगफुल करना चाहती हूं, जिस से मेरे दिल को संतुष्टि मिले,पति की हाल ही में डैथ हुई है, लाइफ वैसे तो बिलकुल रूटीन पर चल रही है, बच्चे बड़े हैं, अपने डिसीजन खुद लेते हैं, मेरी उम्र अभी 48 है, अच्छी पढ़ीलिखी हूं लाइफ में कुछ करना चाहती थी लेकिन मौका नहीं मिला, वैसे, मेरा जो मन करता है वह मैं करती हूं, किसी तरह की कोई रोकटोक नहीं है, मैं ऐसा क्या करूं?

जवाब 

जैसा कि आप लिख रही हैं कि लाइफ में कुछ करना चाहती थी लेकिन मौका नहीं मिला तो फिर अब अपनी इच्छा पूरी कीजिए. लाइफ में कुछ करने के लिए सब से पहले आप के इरादे मजबूत होने चाहिए. फिर अपने उद्देश्य पर फोकस कर के आगे बढ़िए. आप पढ़ीलिखी हैं, अच्छे व्यक्तित्व वाली है तो खुद को किसी ग्रुप में शामिल कीजिए. सामाजिक परिचर्चाओं में भाग लें.
आप में प्रतिभा है कुछ करने, कुछ सीखने की तो जिस चीज में आप की रुचि है उस काम को करने की ट्रेनिंगलें. वुमन और्गेनाइजेशनों में अपना योगदान दे सकती हैं जिस से आप की अपनी एक पहचान बनेगी.
एनजीओ से जुड़े सोशल वर्क कर सकती हैं. इस से मीनिंगफुल काम और क्या होगा. निस्वार्थ भावना से जरूरतमंदों की सहायता करना, उन की सेवा करने से बड़ा काम और क्या होगा. समाज में अपने आसपास करने के लिए बहुतकुछ होता है. बस, अपने कदम उठाने की देर होती है. शुरुआत करिए, एक के बाद एक और दरवाजे खुलते जाएंगे.

Nutrition Special: न्यूट्रिशन से भरपूर है दही, जानें इसके फायदे

दूध के मुकाबले दही खाना सेहत के लिये हर तरह से ज्यादा लाभकारी है. दूध में मिलने वाला फैट और चिकनाई बौडी को एक उम्र के बाद नुकसान देता है. इसके मुकाबले दही में मिलने वाला फासफोरस और विटामिन डी बौडी के लिये लाभकारी होता है. दही में कैल्शियम को एसिड के रूप में समा लेने की खूबी भी होती है. रोज 300 मिली दही खाने से आस्टियोपोरोसिस, कैंसर और पेट के दूसरे रोगों से बचाव होता है. दही बौडी की गर्मी को शांत कर ठंडक का अहसास दिलाता है. फंगस को भगाने के लिये भी दही का प्रयोग खूब किया जाता है.

हेल्थजोन की डायरेक्टर और डाइटिशयन तान्या साहनी का कहना है सबसे बड़ी बात यह है कि दही को भोजन के रूप में देखा जाता है और इसका प्रयोग कई रूपों में किया जाता है. देश के अलग अलग हिस्सों में दही का प्रयोग रायता, लस्सी और श्रीखंड के रूप में किया जाता है. दही का प्रयोग करके कई तरह की सब्जी भी बनायी जाती है. कुछ लोग दही में काला नमक और जीरा डालकर खाते हैं. यह पेट के लिये कई तरह से लाभकारी होता है.  जो लोग वजन घटाने का काम करते हैं दही उनके लिये भी कई तरह से लाभकारी होता है.

बीमारियां भगाये दही

दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है. दही में मिलने वाला फास्फोरस और विटामिन डी के साथ कैल्शियम को एसिड रूप में ढाल देता है. जो लोग बचपन से ही दही का भरपूर मात्रा में सेवन करते हैं उनको बुढ़ापे में आस्टियोपोरोसिस जैसा रोग होने का खतरा कम हो जाता है. दही में अच्छी किस्म के बैक्टिरिया पाये जाते हैं जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं. पेट में मिलने वाली आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टिेरिया का अभाव हो जाता है तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं. इसके अलावा बीमारी के दौरान या एंटीबाइटिक थेरेपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते. इस हालत में दही ही सबसे अच्छा भोजना बन जाता है. यह इन तत्वों को हजम करने में मदद करता है. जिससे पेट में होने वाली बीमारियां अपने आप ही खत्म हो जाती हैं.

तान्या साहनी कहती हैं कि आज की दौड़ती भागती जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान होने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होती है. ऐसे लोग अपनी डाइट में प्रचुर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा रहेगा. उनको पेट में होने वाली सबसे खास बीमारी भोजन का न पचना या अपच रहना दूर हो सकता है. दही खाने से उन लोगों को भी लाभ होगा जो भूख न लगने की शिकायत करते रहते हैं. दही खाने से पाचन क्रिया सही रहती है जिससे खुलकर भूख भी लगती है और खाना सही तरह से पच भी जाता है. दही खाने से बौडी को अच्छी डाइट मिलती है जिससे स्किन में एक अच्छा ग्लो भी रहता है.

इंफैक्शन से बचाव

जानकारी के मुताबिक 300 मिली दही रोज खाने से केंडिडा इंफैक्शन द्वारा होने वाले मुंह के छालों से निजात मिलती है. महिलाओं में अक्सर केंडिडा इंफैक्शन होने के कारण मुंह में छाले पड़ जाते हैं. जिन महिलाओं को इस तरह की शिकायत हो वह दही का भरपूर मात्रा में सेवन करें. मुंह के छालों पर दिन में 2 से 3 बार दही लगाने से भी छालें जल्द ही ठीक हो जाते हैं. बौडी के ब्लड सिस्टम में इंफैक्शन को कंट्रोल करने में व्हाइट ब्लड सेल का योगदान सबसे ज्यादा होता है. दही खाने से व्हाइट ब्लड सेल मजबूत होता है. जो बौडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

बढ़ती उम्र के लोगों को दही का सेवन जरूर करना चाहिये. जो लोग लंबी बीमारी से लड़ रहे होते हैं दही उनके लिये भी बहुत उपयोगी होता है. सभी डाइटिशयन एंटीबाइटिक थेरेपी के दौरान दही का नियमित सेवन करने के लिये राय देते हैं. दही का सेवन करके ब्लड में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है जिससे हार्ट में होने कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव करना आसान हो जाता है. डाक्टरों का कहना है कि दही खाने से ब्लड कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है.

दही है खास

दूध में लेक्टोबेसिलस बुलगारिक्स बैक्टिरिया को डाला जाता है. जिससे शुगर लेक्टिस एसिड में बदल जाता है. इससे दूध जम जाता है. इस जमे हुये दूध को ही दही कहा जाता है. यह प्रिजर्वेटिव की तरह से काम करता है.  दही खमीर युक्त डेरी उत्पाद माना जाता है. पौष्ठिकता के मामले में दही को दूध से कम नहीं माना जाता है. यह कैल्शियम तत्व के साथ ही तैयार होता है. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स को साधारण रूप में तोड़ा जाता है. इसी लिये दही को प्री डाइजेस्टिक फूड माना जाता है. बच्चों के डाक्टर दही को छोटे बच्चों के लिये भी उपयुक्त मानते हैं. जो लोग किसी कारणवश लैक्टोस यानि शुगर मिल्क का सेवन नहीं कर पाते वे भी दही का सेवन कर सकते हैं. शुगर लेक्टिक एसिड में बंट जाती है. बैक्टीरिया भी कैल्शियम और विटामिन बी को हजम करने में मदद करता है.

दही में कंजुगेटिड लिनोलेइक एसिड (सीएलए) होता है. सीएलए फ्री रेडिकल्स सेल्स को बनने से रोकने का काम करता है. यह सेल्स बौडी के विकास को रोकने का काम करते हैं. बौडी में होने वाले रोग से बचाव में मदद करते हैं. दही से कैंसर और हार्ट रोगों को रोकने में मदद मिलती है. दही को तैयार करते समय इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिये कि इसको फुल फैट मिल्क से तैयार न किया जाये. इस तरह से तैयार दही में पफैट और कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है. पहले से मीठी और मीठे के रूप में तैयारी दही में सीएलए के लाभ कम हो जाते है.

तान्या साहनी कहती हैं अगर दही को मीठा खाना है तो इसमें चीनी की जगह पर शहद या ताजे फल को मिलाया जा सकता है. दही और दही से बनाया जाने वाला छाछ गर्मी को अंदर और बाहर दोनों तरह से बचाता है. गर्मियों में तपती धूप का प्रकोप रोकने के लिये दही और छाछ का सेवन जरूरी हो जाता है. कुछ लोगों में यह भ्रांति होती है कि दही खाने से जुकाम और सर्दी जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस तरह के लोगों को दही का सेवन दिन में खाने के बाद करना चाहिये. ठंडे या फ्रिज में रखे दही का सेवन नहीं करना चाहिये. दही का सेवन हमेशा ताजा ही करना चाहिये. यह खाने में अच्छा लगता है.

किताब पढ़ने के फायदे हैं क्या

‘दिल की किताब कोरी है’, ‘किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुम ने, मगर कोई चेहरा क्या तुम ने पढ़ा है…’हिंदी फिल्मों के ऐसे कई गानेकिताबों के जरिए ही प्यार की गहराई को, प्रेमी जोड़े एकदूसरे को जाहिर करते आ रहे हैं.यह सभी जानते भी हैं.लेकिन आज फिल्मों के साथसाथ लोगों ने भी किताबों को पढ़ना कम कर दिया है. इसी वजह से विश्व में लोगों के बीच में किताब पढ़ने के सिलसिले को जारी रखने के लिए हर साल 23 अप्रैल को वर्ल्ड बुक डे मनाया जाता है.

बचपन में पहले पेरैंट्स बच्चों को किताबें पढ़ने पर जोर दिया करते थे, क्योंकि किताबें पढ़ना अच्छी बात मानी जाती है. इस से बच्चे में एकाग्रता, याद्दाश्त, नई खोज को जानने की इच्छाआदि विकसित हुआ करती है. पेरैंट्स से ले कर डाक्टर, टीचर्स और लाइब्रेरियन तक, सभी हमें यही एडवाइस करते थे कि हमें बुक्स पढ़नी चाहिए. बुक्स इंसान की हैल्थ और वैलनैस के लिए भी फायदेमंद होती हैं.

यह दुख की बात है कि बदलते वक्त में आज के बच्चे किताबों को छोड़ कर मोबाइल पर व्यस्त हो चुके हैं, जिस से उन की एकाग्रता और याद करने की शक्ति में कमी होने के साथसाथ उन की आंखों पर भी इस का प्रैशर बढ़ रहा है. आज 5 साल के बच्चे को भी चश्मा पहनन पड़ता है. आज वे किसी बात को बारबार कहने पर भी भूल जाया करते हैं.

रिसर्च बताती हैं कि किताबें पढ़ने से न केवल आप स्मार्ट बनते हैं बल्कि उम्र बढ़ने के साथसाथ यह आप को शार्प और एनालिटिकल भी बनातीहैं. किताबें हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं. असल में किताबें बिलकुल एक पार्टनर की तरह होती हैं, उन के बिना व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है.

                                                        

किताबेंपढ़ने से लाभ

किताबें पढ़ने और इसके प्रकाशन को बढ़ावा देने के लिए हर साल 23 अप्रैल को दुनियाभर के लोग वर्ल्ड बुक डे मनाते हैं. लेकिन इस दिन का महत्त्व तभी है जब यह दिन हर रोज मनाया जाए यानी हर दिन कुछ न कुछ छपा हुआ पढ़ा जाए. ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से किताबें पढ़ने से तनाव कम होता है, एकाग्रता, याद्दाश्त और विनम्रता बढ़ती है और कम्युनिकेशन स्किल्स में भी सुधार आता है. किताबें हमें नईनई चीजें सिखाती हैं और हमें अपने काम व रिश्तों में कामयाब होने में मदद करती हैं. कुछ लाभ निम्न हैं-

  • शब्दों और भाषा का ज्ञान होना,
  • अल्जाइमर और डिमैंशिया से बचना,
  • तनाव कम करना,
  • ज्ञान बढ़ना,
  • याद रखने की क्षमता को बढ़ाना,
  • फोकस और एकाग्रता का बढ़ना,
  • आत्मविश्वास बढ़ाना,
  • अच्छी नींद आना,
  • लेखन क्षमता को बढ़ाना आदि.

आज किताबों को कम पढ़े जाने को लेकर टीवी सैलेब्स भी चिंतित हैं और वे अपना संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या कहते हैं वे, आइए जानें-

 

निहारिका राय

धारावाहिक ‘प्यार का पहला नाम राधा मोहन’ की अभिनेत्री निहारिका राय कहती हैं, ‘‘मैं अपने खाली वक्त में हमेशा किताबें पढ़ती हूं. किसी भी दिलचस्प नोवेल को पढ़कर हमेशा मुझे खुशी मिलती है और मैं थका देने वाले शूट शैड्यूल में भी तनावमुक्त महसूस करती हूं.

““मैं बताना चाहूंगी कि मेरे बचपन से ही मेरी किताबों का कलेक्शन बढ़ता जा रहा है. किताबें वाकई आपको एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद करती हैं. ये कभीकभी आपका सपोर्ट सिस्टम भी बन जाती हैं.

“”मैंने यही महसूस किया है. जब भी मुझे निराशा महसूस होती है, मैं एक किताब पढ़ना शुरू कर देती हूं और इससे वाकई मुझे अंदर से खुशी मिलती है. किताबें पढ़ने के असली फायदों को देखते हुए मैं सभी को यह सलाह देना चाहूंगी कि वे महीने में कम से कम एक किताब जरूर पढ़ें.””

 

अनुष्का मर्चंडे

धारावाहिक ‘मैं हूं अपराजिता’ में छवि का रोल निभा रहीं अभिनेत्री अनुष्का मर्चंडे बताती हैं कि जिस पहली किताब ने उन की जिंदगी के प्रति नजरिया बदल दिया था, वह थी रिजर्ड बक की ‘जौनेथन लिविंगस्टन सीगल’. इससे उन्हें चीजों को देखने का एक नया नज़रिया मिला.

वे कहती हैं,““असल में इस किताब को पढ़ने के बाद ही मुझे महसूस हुआ कि मुझे ऐसी विचारोत्तेजक कहानियां पढ़ना पसंद हैंजो मुझे एक इंसान के रूप में आगे बढ़ने में मदद करें. जब भी मुझे खाली वक्त मिलता है, मैं एक नया उपन्यास पढ़ती हूं. मैं बताना चाहूंगी कि जब भी मैं कोई दिलचस्प नोवेल पढ़ती हूं, तो मैं अपने बिजी शूट शैड्यूल के बावजूद बड़ा खुश और तरोताजा महसूस करती हूं.

““कोई किताब पढ़ना एक और जिंदगी जीने जैसा है और इससे मुझे बेइंतहा खुशी मिलती है. मैं सभी को यह सलाह दूंगी कि हर दिन एक नोवेल के कुछ पन्ने जरूर पढ़ें.””

वे आगे कहती हैं,““अपनी पसंद की किताबों के बारे में बात करूं, तो ये अलगअलग विषय की किताबें हैं, जैसे मुझे ऐतिहासिक, बायोग्राफिकल, हैल्थ और फिक्शन जैसे अनोखे जोनर्स की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है. इस समय मेरी फेवरेट बुक्स हैं- ऐलेना अरमास की ‘द स्पैनिश लव डिसैप्शन’, ऐना हुआंग की ‘ट्विस्टेड लव’ और ऐसी ही कई अन्य किताबें हैं.

““मुझे स्टिफेनी मेयेर और कालीन हूवर का काम भी बहुत पसंद है, जिन्होंने मुझे प्रेरित और प्रभावित किया. इसके अलावा कान्स्टैंटिन स्टेनिस्लाव्स्की की ‘बिल्डिंग अ कैरेक्टर’ हर ऐक्टर के लिए पढ़ने लायक किताब है, क्योंकि इसमें व्यक्ति की कला को निखारने के लिए कई नायाब टैक्निक्स बताई गई हैं.””

किताबों के छूटने से भाषा से कनैक्टिविटी खत्म हो गई है- गालिब असद भोपाली

‘दुनिया’,‘इंसाफ’,‘रजिया सुल्तान’ से लेकर ‘मैं ने प्यार किया’ तक लगभग 100 सफलतम फिल्मों के गीतकार असद भोपाली कभी नहीं चाहते थे कि उनकी संतान गालिब असद भोपाली फिल्मी दुनिया से जुड़े.मगर गालिब असद भोपाली के सिर पर फिल्मों में ही काम करने का जनून सवार था.12वीं की पढ़ाई पूरी कर वे राजश्री प्रोडक्शन के दफ्तर में अभिनेता बनने के लिए पहुंच गए,जहां उन्होंने कुछ समय बतौर सहायक लेखक जलीस शेरवानी के साथ काम किया.फिर बतौर सहायक, निर्देशक प्रदीप मैनी के साथ काम किया. उस के बाद ज्योतिस्वरूप के साथ बतौर घोस्ट लेखक काम किया. और सीरियल‘शक्तिमान’ से स्वतंत्र लेखक के रूप में शुरुआत की.तब से अब तक वे कई सफलतम व विचारोत्तेजक फिल्मों व सीरियलों का लेखन कर चुके हैं. इन दिनों गालिब असद भोपाली की चर्चा कुशान नंदी निर्देशित फिल्म ‘जोगीरा सारा रा’ को लेकर हो रही है,जिसका उन्होंने लेखन किया है.

हाल ही में गालिब असद भोपाली से उनके घर पर मुलाकात हुई. उस वक्त उनसे बदलते हुए समाज,युवा पीढ़ी की सोच,दर्शक,भाषा और लोगों में पढ़ने की कम होती आदत से ले कर कई अन्य अहम मुद्दों पर लंबी बातचीत हुई.गालिब असद भोपाली के पिता असद भोपाली लेखक रहे हैं. जब उन से पूछा कि क्या उन्होंने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए लेखन को ही कैरियर बनाने की सोचा,तो वे कहते हैं, “”मुझे बचपन से ही फिल्मों में काम करना था.मेरी सोच यह थी कि मैं अभिनेता बनूं,या स्पौट बौय, लेखक या निर्देशक बनूं. मगर यह तय था कि फिल्मों में ही काम करना है.मजेदार बात यह थी कि मेरे पिताजी फिल्म इंडस्ट्री से सख्त नफरत करते थेऔर मेरा स्वभाव विद्रोही किस्म का था.मैं हमेशा पिताजी के खिलाफ सोचा करता था. वे जिस काम को करने के लिए मना करते,मैं वही काम करता.””

गालिब असद भोपाली के पिता असद भोपाली वैसे तो फिल्मी गीत लिखा करते थे पर फिल्मों में काम करने के खिलाफ थे, इस पर गालिब कहते हैं,“वे फिल्मों से मेरे जुड़ने के नहीं, बल्कि फिल्मों के ही खिलाफ थे.उनके अपने अनुभवों के अनुसार उन्हें लगता था कि फिल्म इंडस्ट्री अच्छी जगह नहीं है. यहां सुरक्षा नहीं है. वे हमेशा कहते थे, ‘मुझे फिल्मलाइन पसंद नहीं है.’मेरे पिताजी ने लोगों को फिल्मलाइन में संघर्ष करते हुए देखा था.मैं ने भी अपने कुछ दोस्तों को संघर्ष करते हुए देखा है.मैंने अपने पिताजी से कहा था कि मुझे दूसरा काम आता नहीं है, इसलिए मुझे फिल्मों में ही काम करना है.

““मुझे लगता था कि मैं डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता.कला के क्षेत्र में ही कुछ कर सकता था, तो फिल्मों के अलावा कोई जगह मेरी समझ में नहीं आ रही थी.पिताजी की नजरों में फिल्मी दुनिया अच्छी जगह नहीं थी.वे बहुत संस्कारी इंसान थे. शायरी करते थे,गीत लिखते थेलेकिन उनकी नजर में फिल्म इंडस्ट्री संस्कारी जगह नहीं लगती थी.वे खुद गीतकार थेमगर घर के अंदर किसी भी इंसान को गाना गुनगुनाने की इजाजत नहीं थी.हमघर में गाना नहीं गा सकते थे.””

वे आगे कहते हैं,““जैसे हम सिगरेट पीते हैंपर अपने बच्चों के सामने नहीं पी सकते.क्या सिगरेट पीना इतना बुरा है?या बच्चों का सिगरेट पीना बुरा है? तो यह दोहरा व्यक्तित्व पूरे समाज का है.आप इसे देाहरा चरित्र कह सकते हैं,पर है जरूर.यह अपने लिए अलग है और दूसरों के लिए अलग है.मेरी अपनी कोशिश रहती है कि मैं वैसा न करून,मैं दोहरा चरित्र न जियूं.मैं अपने परिवार,बच्चों, रिश्तेदारों व दोस्तों को पूरी छूट देने का प्रयास करता हूं कि वे जैसा करना चाहते हैंवैसा करें.मैं वैसा करता हूंजैसा मैं चाहता हूं.””
गालिब कहते हैं,““मेरी राय में दोहरापन कम नहीं हुआ,बल्कि लोगों ने दोहरापन को छिपाना शुरू कर दिया है.आप ट्रेलर में देखेंगे तो लगेगा कि जबरदस्त ट्रोलिंग होने वाली है.तो ट्रोलिंग का जो डर हैवह उसे छिपाने का प्रयास करता है.यह कहना गलत होगा कि हमारी पितृसत्तात्मक सोच बदल गई है.

““यह कहना भी गलत है कि अब लोग ज्यादा मौडर्न हो गए हैं.यह कहना भी गलत होगा कि अब पुरुष अपने घर की स्त्रियों का सम्मान करने लग गएहैं.लेकिन अब ट्रोलिंग के डर से लोगों को यह सब छिपाना आ गया है.अब लोग आजादखयाल होने का थोड़ा सा ढोंग करने लगे हैं.सही मानोमें अभी लोग आजादखयाल हुए नहींहैं, वक्त लगेगा. जैसेजैसे लोग पढ़लिख जाएंगेवैसेवैसे बदलाव आएगा.हमारे देश में लोग पढ़ेलिखे कम हैं.लोग जितना पढ़ेलिखें होंगेउतना ही वे समझदार होंगे,उतने ही उनके पास विकल्प होंगे.””जब उन से पूछा गया कि सफलता पाने के लिए इंसान के अलग मापदंड बने हुए हैं और घर के अंदर उसके मापदंड अलग हैं, ऐसा क्यों, तो वे कहते हैं,““सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, पूरे विश्व में ऐसा है.मैं ने यह सब रशियन व अन्य देशों की फिल्मों में भी देखा है.इन फिल्मों में ऐसे किरदार गढ़े जाते हैं और उनका मजाक भी उड़ाया जाता है. शायद यह मानवीय मनोविज्ञान है.इंसानी स्वभाव है.

““मैं अपने घर में लोगों से कहता हूं कि लोग तुम्हें अच्छी या बुरी बात बोलते हैं,तो वे यह सोचकर बोलते हैं कि वे अच्छा बोल रहे हैं. वे समझते हैं कि वे आपको अच्छी सलाह दे रहे हैंजबकि उन्हें बताने की जरूरत नहीं है कि वे आपको बताएं कि आपको क्या करना है.मैं यहां पर आपको अपने पिताजी की इसी संदर्भ में एक शायरी सुनाता हूं-‘सूरते रोज बदल देते हैं जिंदानों (जिंदान का अर्थ है- जेल) की,होशमंदों को बड़ी फिक्र है दीवानों की.’ मतलब कि बुद्धिजीवी वर्ग को बड़ी फिक्र है कि दुनिया में ये जो पागल हैंइनका क्या होगा.तो उनकी जेल वे हमेशा बदलते रहते हैं.यह बुद्धिजीवी लोग हमें बताते रहते हैं कि हमें कैसे अपनी जिंदगी जीनी है,कैसे जिंदगी को अच्छा किया जा सकता है.कुछ लोग दूसरों की जिंदगी में दखलंदाजी करना अपना कर्तव्य समझते हैं. वे खुद कैसे जी रहे हैं, उस पर उनका अख्तियार नहीं है, तो वे कुछ कर भी नहीं सकते.””

गालिब का मानना हैकि इंसान के दोहरेपन का भाषा से कोई ताल्लुक नहीं है.यह इंसानी स्वभाव है.बच्चों को झूठ बोलना तो बड़े ही सिखाते हैं. वे कहते हैं,““मैं ने कोशिश की कि अपने बच्चों के साथ वह न करूं जो आमतौर पर हर मांबाप अपने बच्चे के साथ करता है.बच्चे के गिर जाने पर जमीन पर हाथ मार कर कहते हैं कि लो हमने इसे मार दिया या देखो चींटी मर गई.”“वे मानते हैं कि बच्चे से अकसर झूठ बोलते हैं.वह रो रहा होता हैतो हम उससे कहते हैं कि बस,मैं 5 मिनट में आ रहा हूंतो यह पूरा हमारे यहां का संस्कार है.यह हमारे अंदर से है.जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से तीसरी पीढ़ी तक चलता रहता है.यही हाल हमें नजर आता रहता है.प्रतिस्पर्धा की भावना भी बच्चे को बचपन से सिखाई जा रही है कि तुम्हेंक्लास में प्रथम ही आना है.लोग खुद को देखने के बजाय खुद को ‘जज’ करने के लिए दूसरों को देखते हैं.”

वे कहते हैं,“18 वर्ष में लोग बालिग हो जाते हैं.घर के संस्कारों के अनुरूप 13-14 वर्ष की उम्र तक हर बच्चा अपने मापदंड बनाता है.कुछ चीजें सीखता है,कुछ चीजें अपने लिए सोचता है कि जिंदगी में ऐसा करना चाहिएजिसे वह20-22 की उम्र तक अपनी जिंदगी पर अप्लाई करता है.फिर वह जो कुछ देखता हैउसअनुभव के आधार पर वह 22 वर्ष तक जो कुछ सोचा होता है,उसमें से छंटनी करना शुरू कर देता है.वह सोचने लगता है कि ये सब किताबी बातें हैं,हमें मूर्ख बनाया गया है.तब वह अपने जीवन में नई आइडियोलौजी तैयार करता है.”गालिब कहते हैं,““यह आइडियोलौजी 40 से 45 वर्ष तक चलती हैजो कि उस की व्यावहारिक जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.वह व्यावहारिक जिंदगी में हर बात को अप्लाई करके देखता है. उसी के साथ वह बदलाव व छंटनी करना शुरू करता है. उसे लगता है कि वह जो कुछ कर रहा है, सही कर रहा है. पर यह एक प्रोसैस होता है.यह प्रोसैस जिंदगी के अंत तक चलता है.

जब जिंदगी अपने अंतिम पड़ाव पर होती हैतब इंसान को लगता है कि उसने क्या सही किया और क्या गलत.यह प्रोसैस पूरी पीढ़ी का होता है.यही वजह है कि जिस ढंग से दर्शक बदलता है,उसी तरह से फिल्में बदलती हैं.””जब उन से पूछा गया कि देश की सरकार बदलने से सिनेमा में क्या अंतर आता है तो वे कहते हैं, ““सरकार व सिनेमा का बदलना वास्तव में समाज का, इंसान का बदलना है.जब समाज की सोच बदलती है,तभी सरकार बदलती है,तभी सिनेमा बदलता है.जब समाज की सोच बदलती है तो लेखक से लेकर निर्देशक-निर्माता सब की सोच बदलती है.आखिर यह सब भी तो समाज का ही हिस्सा हैं.फिल्म व सरकार सब समाज का ही हिस्सा हैं.”

“”आप यदि गौर करें तो पाएंगे कि पुरानी फिल्मों में आदर्शवाद था,क्योंकि तब लोगों में आदर्शवाद था.उस वक्त आदर्शवादी फिल्में लोगों को भा रही थीं.जब लोगों से आदर्शवाद गायब हुआतो उन्हें लगा कि फिल्मों मेंये कौन सी बातें हो रही हैं,हकीकत में ऐसा नहीं होता.तब सिनेमा यथार्थवाद में आया,फिर काल्पनिक दुनिया में आयाक्योंकि यथार्थवाद में मनोरंजन नहीं मिल रहा था.“”यथार्थवादी फिल्मों में कड़वाहट थी,जिससे छुटकारा पाने के लिए ही लोग काल्पनिक कहानियों वाले सिनेमा की तरफ मुड़े.तो जिस तरह समाज बदल रहा है,उसी तरह से सिनेमा और सरकार बदल रही है.पीढ़ी बदल रही है.एक आदर्शवादी पीढ़ी थी,तो दूसरी आज की पीढ़ी हैजो प्यार के बारे में बात ही नहीं करती.

“”आज की पीढी प्यार के बजाय येबातें करती है कि ‘आई लाइक यू’,‘आई लाइक टू स्पैंड टाइम विथ यू’.यह पूरी पीढ़ी का अंतर है.आज की पीढ़ी कमिटेड तक हो जाएगी,पर प्यार नहीं करेगी क्योंकि उस के अनुसार प्यार वास्तविक चीज नहीं बल्कि काल्पनिक चीज है, अव्यावहारिक चीज है.यही बात आपको 26 मई को प्रदर्शित हो रही हमारी फिल्म ‘जोगीरा सारा सारा’ में नजर आएगी,जिसकी कहानी मैं ने लिखी है.
““आज की पीढ़ी पूरी तरह से प्रैक्टिकल हो गई है, तो भाषा नहीं बल्कि पूरी एक पीढ़ी की सोच का परिणाम है.हमारे पूर्वज जो करते आए हैंउसे उसे आज की पीढ़ी वाले अपने हिसाब से कसते हैं,उसमें छांट कर अपना अलग नजरिया बनाते हैं.यह प्रोसैस चलता रहता है और पूरा सर्कल होने के बाद हम फिर वहीं पहुंचते हैं जहां हम पहले कभी थे.इसीलिए कहा जाता है कि इतिहास अपनेआपको दोहराता है.””

फिल्म ‘जोगीरा सारा रा’ की कहानी के आइडिया को ले कर वे बताते हैं,““फिल्म लेखन का अपना एक अलग तरीका है.लेकिन इस फिल्म को लेकर हमारा थौट प्रोसैस यह था कि जब हमने ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ लिखी थी,तो हमारी समझ में आया कि हमारी गलती यह रही कि हमने एक ‘एडल्ट’ फिल्म बना डाली थी. उस फिल्म के समय हमारी समझ में आया था कि अगर हमारी फिल्म एडल्ट न होतीतो ज्यादा दर्शक मिलते.“”तो हमने सोचा कि इस बार हम पारिवारिक फिल्म बनाएं.टैबू वगैरह के बजाय एक साधारण पारिवारिक फिल्म बनानाचाह रहे थे.तो हमने मनोरंजक पारिवारिक फिल्म बनाने की सोची.कहानी पर विचार आया कि किरदार आधारित कहानी हो.हमने सोचा कि एक जुगाड़ू किरदार होजो सारी चीजों का जुगाड़ करता है.दूसरों की शादी करवाता है,पर खुद शादी नहीं करता.वह किसी की शादी तुड़वाता है और फिर खुदशादी के चक्कर में फंस जाता है.

“”इसी लाइन को हमने विस्तृत किया. पहले विचार यह आया था कि एक बेचारा पुरुष परिवार की ढेर सारी औरतों के बीच में फंसा हुआ है.वह मैं स्वयं हूं.जब मेरे भांजे का जन्म हुआ थाउस वक्त मेरे घर में मेरी मां,मेरी बहन,भांजी,मेरी पत्नी व मेरी 2 बेटियां थीं.यानी, मेरे अलावा सारी औरते हैं.इसलिए हम इस कौन्सैप्ट पर काम कर रहे थे कि कैसे सारी औरतों को खुश रखा जा सकता है.क्या आपको एहसास है कि सासननद,ननदभावज,सासबहू के बीच क्या होगा. जब यह पुरुष सभी की सुनेगातो इसका क्या हाल होगा.
“”हालांकि मेरे साथ इतना बुरा नहीं हुआपर मैं कल्पना कर सकता हूंतो मुझे लगा कि यह किरदार मजेदार हो सकता है.तो फिर सोचते हुए यह बात दिमाग में आई कि यह किरदार शादी नहीं करता है, बल्कि दूसरों की शादी करवाता है.तब लगा कि अच्छी कहानी बन सकती है.जब हमने लिखातो कहानी अच्छी बन गई.””

शादी तुड़वाने वाले कौन्सैप्ट पर ‘जोड़ी ब्रेकर’ सहित कई फिल्में बन चुकी हैं. इस मामले में वे बताते हैं,““इस विषय पर इंग्लिश फिल्में भी बन चुकी हैं.पर मेरा मानना है कि कहानियां एकदूसरे से मिलतीजुलती होती ही हैं.कुल मिलाकर कहानियां सीमित हैं.मेरा मानना है कि कहानी बहुत थिन लाइन होती है.एक मां,जिसके 2 बेटे. एक अच्छा या एक बुरा.अब वह फिल्म ‘गंगा जमुना’ या ‘दीवार’ भी हो सकती है. हमने इस बात पर गौर किया कि हम क्या नया कर सकते हैं.यदि आपको यह ‘जोड़ी ब्रेकर’ लगती हैतो हमने उसमें कुछ नयापन लाने की कोशिश की है.”

‘जोगीरा सारारारा’ में ‘लव मैरिज’ का तड़का भी लगाया गया है. इस विषय पर गालिब कहते हैं, “”हमारी फिल्म में प्यार नहीं आया है.हमारी फिल्म 2 ऐसे किरदारों की कहानी है जिन्हें पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं, पर करते जा रहे हैं.ऐसे 2 लोगों की कहानी नहीं हैजो साथ में चलतेचलते प्यार हो गया.हमारी पत्नी रेखा की सलाह थी कि इन्हें प्यार नहीं होना चाहिए.हमारे लिए यही सबसे बड़ी चुनौती थी. पर बाद में हमें लगा कि ‘फील गुड’ के लिए इनका कुछ हो जाना चाहिए.तो वह हमने किया है,मगर प्यार नहीं हुआ है.””
कुछ लोगों की नजर में आज की तारीख में युवा पीढ़ी का प्यार कौफी डे से शुरू और कौफी डे पर ही खत्म हो जाता है. जब उन से पूछा कि समाज में जो बदलाव आया हैउसमें प्यार क्या है? तो इस के जवाब में वे कहते हैं,““मैं वही बता रहा था कि अब प्यार नहीं रहा.अब प्यार अव्यावहारिक चीज हो गया है.नई पीढ़ी के लिए प्यार किताबी बातें हैं.आज की पीढ़ी के पास कई टर्म्स आ गए हैं.

“”यानी कि आज की पीढ़ी वाले अपनी भावनाओं को बहुत अलग तरीके से व्यक्त करने लगे हैं. वे प्यार की बातें करने के बजाय कहते हैं कि वे एकदूसरे के प्रति कमिटेड हैं.प्यार नहीं रहाजबकि ‘लिव इन रिलेशनशिप’ भी होने लगा है. वे प्यार नहीं मानते.युवा पीढ़ी के लिए प्यार भावनात्मक कमजोरी है.वर्तमान समय में प्रैक्टिकल में जीने वाली युवा पीढ़ी प्यार को मानती ही नहीं.युवा पीढ़ी जिंदगी को अपनी नजरों से देखती है.उसे लगता है कि पिछली पीढ़ी ने जो किया,वह नहीं करना चाहिए था.
“”जैसा कि मैं ने बताया कि पहले आदर्शवादी हीरो हुआ करता था.नई पीढ़ी को लगा कि यह क्या बात हुई.देश के लिए जान दे दी,पर देश ने तो हमको कुछ दिया नहीं.फिर वह हीरो आया जो सभी नेताओं को गोली मारने लगा.फिर करप्शन का दौर आया.इसी तरह प्यार के मसले पर भी आज की पीढ़ी हर टैबू को तोड़ने पर आमादा है.फिर नारीवाद का दौर आया.फिल्मकार दिखाने लगा कि औरतें कुछ भी कर सकती हैं.ऐसे में वे औरतें बिना प्यार के भी किसी के भी साथ रह सकती हैं.

“”पुराने समय से कहा जाता रहा है कि प्यार किसी एक से होता है.हालांकि, करण जौहर ने अपनी फिल्म में एक के मरने के बाद दूसरे से करवाया.लेकिन उस वक्त भी उनका तर्क यही था कि जिंदा में तो एक से ही हो सकता है.मेरे दोस्त हैं,मनोज पुंज.उन्होंने कहा था कि जरूरी तो नहीं कि एक से ही प्यार हो.दो लोगों से भी प्यार हो सकता है.मैं ने उनसे कहा था कि हो सकता है,मगर हमारे यहां जो चलता आया हैउसके अनुसार उसे प्यार नहीं व्यभिचार माना जाएगा.

“”आज की नई पीढ़ी कहती है कि हमें एक नहीं,50 से प्यार हो सकता है. कर लीजिए, आपको जो करना हो.तो चीजें तेजी से बदलने लगी हैं.‘कौफी डे’ यानी कि सीसीडी वाला प्यार,प्यार नहीं है.वह सिर्फ एक सुख की अनुभूति है.उस वक्त उन्हें किसी के साथ बैठकर कौफी पीना अच्छा लगता है.आज की युवा पीढ़ी को कुछ समय के सुख के लिए शारीरिक संबंध बनाने से परहेज नहीं है,मगर वह उसे प्यार का नाम नहीं देती.आज के युवा सामाजिक बंधनों को अहमियत नहीं देते. उन्होंने अपना अलग समाज बनाया हुआ है.
“”लोग ‘लिवइन रिलेशनशिप’ में इसलिए जाते हैंक्योंकि उन्हें शादी वाला सामाजिक बंधन नहीं चाहिए.पर वे अपने स्टेटस में ‘कमिटेड’ शब्द का उपयोग करते हैं. वेशादी वाले सारे बंधन लागू करते हैं.पर कहते हैं कि हम सामाजिक बंधन में यकीन नहीं करते. ये हमारे अपने बंधन हैं.यह पूरी तरह से कन्फ्यूजन है.ऐसा पीढ़ीदरपीढ़ी प्रयोग के तौर पर चल रहा है.अगली पीढ़ी हमेशा खराब मानी जाएगीक्योंकि वह पिछली पीढ़ी को नकारती है.””

पिछली बार निर्मातानिर्देशक को‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ से सैंसर बोर्ड से काफी परेशानी हुई थी.तब ‘एफसीएटी’ फिल्म ट्रिब्यूनल से मदद मिली थी. पर अब सरकार ने ‘एफसीएटी’ बंद कर दिया है.इससे फिल्म निर्माता पर क्या असर पड़ा है, इस सवाल पर गालिब कहते हैं,“सैंसर बोर्ड को तो अभी भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है.सच कहूं तो सैंसरबोर्ड का होना कितना तार्किक है,मुझे नहीं पता. पर मेरी राय में फिल्म ट्रिब्यूनल के पास जाने वाला प्रोसैस ही गलत था.इतना ही नहीं, आज की तारीख में भी हमें सैंसर बोर्ड की गाइडलाइन्स ठीक से पता नहीं है.मेरी राय में फिल्म के प्रमाणीकरण का मसला सैंसर बोर्ड में ही निबट जाना चाहिए.अदालत जाने की जरूरत नहीं आनी चाहिए.””

लोगों में अब पढ़ने की आदत खत्म हो गई है. इस पर वे कहते हैं,““इसमें कुछ अच्छाई है,तो कुछ बुराई है.गांधीजी कहते थे, ‘जिन्हें किताब पढ़ने का शौक है, वे कभी अकेले नहीं रहते.’तो इंसान के अकेलेपन का साथी किताबें हैं.किताबें तो आपकी दुनिया से बाहर की दुनिया है.किताबों की कहानी कह लें या किताबों का ज्ञान कह लें,यह आपकी बाहर की दुनिया हैजिसे आप अपने कमरे में बैठकर आत्मसात करते हैं.
““किताब में किसी काल्पनिक लोक की बात की गई हैतो आप उसे पढ़ते हुए वहां तक पहुंच सकते हैंलेकिन आज की तारीख में अगर आपको वही चीज मोबाइल,लैपटौप या अन्य माध्यम से मिल रही है तो मुझे नहीं लगता कि उसे छोड़कर लोगों को किताबों की तरफ मुड़ना चाहिए.यह आपकी प्रगति है.यह आपकी वैज्ञानिक व साहित्यिक प्रगति ही है. आपके हाथ में एक लेखक की कोई किताब होगीतो आप सिर्फ उस तक ही सीमित रहेंगेजबकि आपके हाथ में किताब के बजाय मोबाइल होतो उस में हजार किताबें भी हो सकती हैं.

“”किताबों के छूटने का जो नुकसान हुआ हैवह यह है कि भाषा से कनैक्टिविटी खत्म हो गई हैलेकिन जिस तरह हम पूरी दुनिया से जुड़ रहे हैं,भाषा बैरियर के तौर पर आ जाती है.मसलन,मेरी भाषा हिंदी है. मैं ‘हिंदी मीडियम’ से पढ़ा हुआ हूं,मुझे इंग्लिश अच्छी नहीं आतीतो मुझे यह कमी लगती है.अगर मुझे इंग्लिश ज्यादा अच्छी आ रही होतीतो मैं ज्यादा लोगों से संपर्क करने,उनसे बातचीत करने में सक्षम हो पाता.मैं ज्यादा लोगों तक पहुंच पाता.

““तो भाषा कहीं पर आपका बहुत बड़ा हथियार हैतो कहीं पर वह आपकी कमजोरी भी है.जब आपके हाथ से किताबें छूटती हैंतो भाषा भी छूटती है.जब भाषा छूटती हैतब साहित्य व काव्य से नाता टूटता है.मैं इसे ‘जज’ नहीं कर रहा.पर ऐसा ही हो रहा है.लोग मानते हैं कि यह बुरा है, पर मैं ऐसा नहीं मानता.मेरा मानना है कि जब आप एक सीढ़ी आगे बढ़ते हैं तो आपको पिछला एक पायदान छोड़ना ही पड़ता है.आप पिछले पायादान का मोह नहीं कर सकते.””

आमतौर पर अब मोबाइल पर फिल्म या कंटैंट देखा जा रहा है. देखने के बाद इस से सोच पर असर पड़ रहा है. जबकि किताब पढ़ते समय जोकुछ पढ़ते हैं,उसको लेकर सोच बढ़तीहै. इस पर गालिब कहते हैं,““आपकी बात से सहमत हूं कि किताबें पढ़ने से कल्पनाशक्ति बेहतर हो सकती है.लेकिन आप जब भी कल्पना करते हैंतब आपकी अपनी स्मृति में या आपके दिमाग में जो डेटा संचित है,उसी से कल्पना कर सकते हैं.आपने जो सड़कें देखी होंगी, उन्हीं सड़कों की आप कल्पना कर सकते हैं.आप उन सड़कों की कल्पना किताब पढ़ने के बावजूद नहीं कर सकते जिन्हें आपने न देखी हो.पर मोबाइल पर आपने 10 हजार प्रकार की सड़कें देखी हैं,तो आपके लिए 10 हजार तरह की सड़कों की कल्पना करना संभव है. आप उसकी गहराई में जा सकेंगे कि वह जा कौन सी सड़क पर था.

“”उस वक्त आप अपनी स्मृति से परे जाकर विचार करेंगे कि यह तो अंगरेज आदमी है.इसका अर्थ यह हुआ कि यह सड़क इस जगह नहीं, बल्कि शायद ब्रिटेन की होगी. पर मैं ने ब्रिटेन तो देखा ही नहीं.मैं मोबाइल पर ब्रिटेन देख सकता हूं,पर किताब में नहीं देख सकता.मैं किताब में उसी ब्रिटेन की कल्पना कर सकता हूंजिस ब्रिटेन को मैं ने किसी अन्य किताब में देखा हो.तो वह हमारी अपनी दुनिया है.किताबें आपको अपनी दुनिया से बाहर ले जाती हैंलेकिन आपकी अपनी ही दुनिया में किताबें एक और दुनिया भी बना सकती हैं,जैसेकि आप सपने में देखते हैं.सपने में आप वही देखते हैंजो आपने सोचा हुआ हो.अवचेतन आपको ऐसी चीजें बताता हैजिसे आपको लगता है कि आप नहीं जानते,जबकि आप जानते होते हैं.””
लेखन में समाज के बदलाव के साथ किस तरह से बदलाव आए हैं, इस पर ग़ालिब बताते हैं,““मैं यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि क्या बदलाव आया.पर मैं जिस तरह से चीजों को देखता रहता हूंवह कहीं न कहीं मेरे लेखन में लक्षित होता रहा है.मेरे आसपास समाज में जो कुछ हो रहा होता है,उसे एक कलाकार के तौर पर आब्जर्व करनामेरा काम है.मैं खुद को क्रिएटिव इंसान मानता हूं.लोग भी लेखन को क्रिएटिव काम मानते हैं.मैं लेखन को ‘क्रिएटिव’ नहीं,बल्कि ‘रीक्रिएशन’ मानता हूं.मतलब लेखन नकल ही है.हम संसार में जो कुछ देखते हैं,उसे ही लिखते हैं.””

वे आगे कहते हैं,““समाज के बदलाव का मेरे लेखन में फिल्मदरफिल्म जो बदलाव आया हैउसका कोई रास्ता नहीं है. क्योंकि मुझे जब जो करने का अवसर मिला, मैं ने किया.मैं ने हर तरह का काम किया. मैं सहायक लेखक,फिर सहायक निर्देशक रहा.जैसेजैसे चीजें बदलती गईं,वैसेवैसे मेरा लेखन बदलता गया.सबसे बड़ा फर्क यह है कि पहले अलग तरह के ‘टारगेट औडियंस’ के लिए लिखते थे, अब ‘टारगेट औडियंस’ बदल गए हैं. तो अब हमें नए वर्ग के दर्शकों के हिसाब से लिखना पड़ता है.””

गालिब बताते हैं कि टारगेट आडियंस चुनने के लिए ज्यादातर निर्माता या निर्देशक तय करते हैं कि उनकी फिल्म देखने कौन जाएगा.जब हम कोई ट्रेलर देखते हैंतो तुरंत कह देते हैं कि अरे, इसे कौन देखेगा?जब मैं टीवी सीरियल लिखता थातब भी यही होता था कि यह सीरियल इस तरह के दर्शकों के लिए है,वही अब फिल्मों के लिए है.तो अब हम सोचते हैं कि क्या टीनएजर हमारी फिल्म देखेगा? क्या बड़ी उम्र के दर्शक फिल्म देखेंगे?वे कहते हैं,““कुछ माह पहले राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘उंचाईं’ आई थी.तब हमारे बीच बहस इस बात पर हुई थी कि इस फिल्म को कौन देखने जाएगा?क्या बुजुर्ग इस फिल्म को देखने के लिए सिनेमाघर जाएंगे, क्या रिकशावाला या क्या टीनएजर इस फिल्म को देखेगा? फिल्म बहुत अच्छी है,पर सवाल था कि इसका दर्शक कौन होगा? आखिर यह फिल्म किन लोगों के लिए बनाई गई है? यह समझना आवश्यक है,जो किसी की भी समझ में नहीं आता.

“”यदि हम इस सच को समझ जाते तो सुपरहिट फिल्में बना रहे होते. हम सभी एक अनुमान के अनुसार काम करते हैं.इस अनुमान को करते समय 2बातों पर गौर करते हैं कि किन्हें और किस तरह का मनोरंजन चाहिए? दूसरा कि मनोरंजन के लिए कौन खर्च करना चाहेगा? मसलन, घर की औरतें तो अपने पति से ही कहेंगी कि हमें यह फिल्म देखनी है? ऐसे में पति ही तय करेगा कि घर की औरत कौन सी फिल्म देखे और कौन सी न देखे.ऐसे में यदि हम पारिवारिक फिल्म बना रहे हैं तो हमें यह सोचना पड़ता है कि हम ऐसी पारिवारिक फिल्म तो नहीं बना रहेजिसे पति अपनी पत्नी या घर की औरतों को न दिखाना चाहे?”

Yrkkh : अबीर के सवाल से परेशान हुए अक्षरा और अभिमन्यु, कहानी में आएगा नया मोड़

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों अलग- अलग तरह के सीन देखने को मिल रहे हैं कुछ दिनों पहले अक्षरा और अभि अबीर के लिए लड़ रहे थें, वहीं अब अक्षरा और अभिमन्यु एक दूसरे से लड़ाई बंद कर दिए हैं तो अबीर को असलीयत पता चल गया है कि अभिनव उसका असली पिता नहीं है.

इस खबर के आने के बाद से अब आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अबीर के सवालों का जवाब अभि औऱ अक्षरा मिलकर देते नजर आएंगे. बता दें कि आने वाले एपिसोड की शुरुआत गोयनका हाउस से होगी, जहां पर पूरे परिवार के सामने अबीर अपना सवाल करेगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ♡ Kanhaiya ♡ (@abhiraforevar____)

सीरियल में देखने को मिलेगा कि अबीर फैमली एलब्म देख रहा होता है उसे देखकर वह सवाल करता है कि रूही के पिता इस दुनिया में नहीं है, उसके इस सवाल के बाद से अभिमन्यु को डर लगता है कि अलगा सवाल क्या होगा.

आगे देखने को मिलेगा कि अक्षरा और अभिमन्यु में बहस होती है जिसके बाद से अक्षरा और अभिमन्यु को चुप कराने के लिए सवाल करता है , वहीं अगले दिन दिखाया जाएगा कि अबीर अभि के सात स्कूल जाता है औऱ वह चुप रहता है इससे अभि घबरा जाता है कि आखिर यह चुप क्यों हैं. जिसके बाद से घर आकर वह रूही से अपने मन की बात करता है तभी अक्षरा कमरे में आ जाती है.

नसीरुद्दीन शाह ने दिया चौकाने वाला बयान

बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं, हाल ही में नसीरुद्दीन शाह जी5 के सीरीज डिवाइडिड बॉय ब्लड में नजर आ रहे हैं. एक्टर को इस किरदार में काफी ज्यादा पसंद किया जा रहा है.

लेकिन हाल ही में नसीरुद्दीन शाह ने मुस्लमानों को लेकर बयान दिया है , जिसमें उन्होंने कहा है कि मुस्लमानों के खिलाफ नफरत अब फैशन बन गया है, जिसको सिनेमा के खिलाफ चतुराई से फैलाया जा रहा है.

एक रिपोर्ट में बातचीत के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने द केरल स्टोरी को लेकर चर्चा की है, जिसमें बताया है कि यह फिल्म नफरत फैला रही है, पढ़े लिखे मुस्लमानों के खिलाफ आग फैलाया जा रहा है. यह पॉलटिक्स पार्टीयां बड़ी आराम से इस बात को बढ़ावा दे रही हैं. जिससे आपस में नफरत फैल रहा है. इन पार्टीयों को इससे खूब फायदा हो रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Naseeruddin Shah (@naseeruddin49)

आगे उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम लोग अल्लाह हो अकबर लेकर वोट मांगती है तो लोग उसे भी नफरत के खिलाफ से देखते हैं.

इस बयान के बाद से लगातार नसरूद्दीन शाह को कुछ लोग सपोर्ट कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग उनकी आोचना कर रहे हैं. नसरुद्दीन शाह ने एक बयान की वजह से काफी ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं.

कोविड के बाद से मेरे बाल इतनी तेजी से गिर रहे हैं कि स्कैल्प दिखने लगी है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे बाल बहुत ज्यादा झड़ रहे हैं. कोविड के बाद से मेरे बाल इतनी तेजी से गिर रहे हैं कि स्कैल्प नजर आने लगी है. मेरी फ्रैंड ने मुझे पीआरपी थेरैपी के बारे में बताया है. क्या वाकई यह कारगर है?

जवाब

बालों के झड़ने से बहुत लोग परेशान हैं. इस परेशानी को दूर करने के लिए पीआरपी एक सफलसुरक्षित और प्रभावशाली इलाज है. इस में शरीर से खून लेकर उसे एक विशेष अपकेंद्रीय यानी कि सैंट्रीफ्यूज में रखते हैंजहां प्लेटलेट्स खून के बाकी हिस्सों से लग से जाते हैं. फिर इस के प्रभाव को बढ़ाने के लिए प्लेटलेट्स को सिर के स्कैल्प में इंजैक्ट किया जाता है. इस से हेयर फौलिकल्स को बढ़ाने के लिए सेल्स उत्तेजित होते हैं.

इस उपचार की मदद से गंजेपन को दूर कर घने और मजबूत बाल पाए जा सकते हैं. आज के समय में बड़ी संख्या में लोग इस विधिका प्रयोग कर रहे हैं.

समर स्पेशल : कैरी शरबत- गरमियों में सेहत के लिए वरदान

उत्तर भारत में जिस तरह से आमपना का चलन है, उसी तरह से गुजरात में कैरी शरबत का चलन है. शहरों में इसे फर्याली मैंगो शरबत के नाम से भी जानते हैं. आम सब का पसंदीदा फल है, इसलिए इस से तैयार हर चीज को लोग खूब पंसद करते हैं. कैरी शरबत को एक बार बना कर रख लिया जाता है, फिर जरूरत पड़ने पर इसे पानी और बर्फ के टुकड़ों के साथ मिला कर पीने में इस्तेमाल किया जाता है. गरमियों में यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है और लू से भी बचाता है.

कैरी शरबत में आम के साथ पुदीना और गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है. आम और पुदीना मिलने से यह शरबत सेहत के लिए बहुत उपयोगी हो जाता है. आम पाचनशक्ति को बढ़ाता है, कब्ज को ठीक करता है और खून को साफ रखने में भी मदद करता है. वहीं पुदीना गैस और अपच जैसी परेशानियों को दूर करता है. यह त्वचा को सुंदर और चमकदार बनाता है.

गुड़ भी बहुत गुणकारी होता है. यह कब्ज ठीक करता है और लीवर को साफ करने में मदद करता है. एनीमिया के मरीजों के लिए गुड़ बहुत लाभकारी होता है. यह शरबत स्वादिष्ठ होने के अलावा सेहत के लिए भी बहुत कारगर होता है.

कैरी शरबत की सामग्री

  • 500 ग्राम कच्चे आम,
  • 1 मुठ्ठी पुदीना के पत्ते,
  • 1 इंच अदरक का टुकडा,
  • 8 से 9 टेबलस्पून  गुड़ का चूरा,
  • 1 छोटा चम्मच भुना जीरा,
  • आधा चम्मच काला नमक,
  • आधा छोटा चम्मच सफेद नमक और उस के साथ 1 कप पानी.

बनाने की विधि

कैरी यानी कच्चे आमों को छील कर बारीक काट लें और कुकर में 1 कप पानी के साथ डाल कर उबाल लें. उबालते समय ही उस में अदरक भी डाल दें. जब उबली कैरियां ठंडी हो जाएं, तो उन को मिक्सी में पुदीनेके पत्तों के साथ डाल कर पीस लें. अब इस मिश्रण को एक पैन में डालें और गैस पर चढ़ा लें. इस में पिसा हुआ गुड़ और बाकी मसाले भी डाल दें. हलकी आंच पर गुड़ के पिघलने तक इसे पकाएं और फिर गैस को बंद कर दें. इस मिश्रण कोे कांच के बरतन में या बोतल में भर कर रखें. जब शरबत पीने का मन हो तो तब 1 चौथाई शरबत में 3 चौथाई पानी और बर्फ डालें. इसे पुदीने की पत्तियों से सजा कर पीने के लिए पेश करें.

मेरी गर्लफ्रेंड ने पिछले महीने किसी दूसरे युवक से शादी कर ली. मैं क्या करूं, कृपया मार्गदर्शन करें?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवक हूं. हाल ही में मेरा ब्रेकअप हो गया. पिछले 2 साल से हमारा अफेयर था. लेकिन उस युवती ने पिछले महीने किसी दूसरे युवक से शादी कर ली. मुझे यह कह कर कि वह वैलसैटल्ड है, उस के पास कार है और मुझे खुश रखेगा. लेकिन हमारे प्यार का कोई मोल नहीं रहा. मन करता है कहीं जा कर आत्महत्या कर लूं. उस के बिना जी नहीं लगता. ‘तुम मेरी धड़कन हो… तुम जीवन हो…’ आदि जैसे अनेक वादेकसमें तोड़ कर जब प्यार ही चला गया तो जीने से क्या फायदा. कृपया मार्गदर्शन करें?

जवाब

ध्यान रखिए, जो चला गया वह आप के योग्य ही नहीं था. उस के मन में आप के लिए सच्चा प्रेम नहीं था और आप हैं कि उस के लिए मरने जा रहे हैं, जबकि उस ने स्वार्थ का रास्ता चुना. अगर आप उस से इतना ही प्यार करते हैं तो उसे प्रेरणा बनाएं. जिस कारण वह आप को छोड़ दूसरे के साथ गई उन चीजों को हासिल करें, ताकि आने वाले समय में आप के रिश्तों को इस कारण आप में कमी न लगे. ब्रेकअप के बाद खुद को तबाह कर लेना या आत्महत्या करना कायरता है. जी कर, मुकाम हासिल कर, उसे दिखा दें कि तुझ से भी बढ़ कर हैं हम और हमारे भी हैं कद्रदान.

टिप्स : होम औफिस ऐटिकेट्स

वर्क फ्रौम होम यानी घर से काम करना. आजकल वर्क फ्रौम होम का कौंसेप्ट तेजी से बढ़ रहा है, कंपनियां भी एफडब्लूओएस यानी फ्लेक्सिबल वर्क औप्शन दे रही हैं, जिस में आप अपनी सुविधानुसार काम कर सकतीं हैं. जब बात घर से काम करने की आती है तो हमारे दिमाग में सब से पहले एक ही ख्याल आता है जब मन करे तब काम करो, जैसे मन करे वैसे काम करो, यहां कोई रोकने टोकने वाला नहीं है. यह बात ठीक है कि यहां कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता लेकिन यहां भी काम करने के कुछ ऐटिकेट्स होते हैं जिन का अगर आप ध्यान नहीं रखतीं तो स्ट्रैस फ्री हो कर सही तरीके से काम नहीं कर पाती हैं .

आइए जानते हैं जब आप घर से काम करें तो किन वर्क ऐटिकेट्स का ध्यान रखें

 

  1. वर्क शेड्यूल है ज​रुरी

घर से काम करते समय हम कोई भी चीज लिख कर कहीं भी रख देते हैं और बाद में खोजने में अपना सारा समय बरबाद करते हैं, इसलिए जरुरी है कि वर्क शेड्यूल बनाया जाए ताकि आप को पता रहे कि कौन सा काम कब खत्म करना है, आप ने क्या क्या पूरा कर लिया और आगे क्या करना है. ऐसा कर के आप कम समय में ज्यादा काम कर सकती हैं.

2. नियमित वर्किंग आवर्स

ऐसा न करें कि आप कभी भी उठ कर काम करने लगें, इस से आप का हैल्थ तो बिगड़ता ही है आप का काम भी प्रभावित होता है इसलिए अगर आप चाहती हैं कि काम के साथसाथ फिट व हैल्दी भी रहें तो काम का एक समय तय कर लें और उसी समय पर अपनी सुविधानुसार काम करें. ऐसा करने से आप सही तरीके से काम पूरा करने के साथसाथ फैमिली के साथ मस्ती भी कर पाएंगी .

3. अनुशासन बनाए रखें

ऐसा न करें कि काम के दौरान चैटिंग व फोन पर बातें करते रहें ब​ल्कि अनुशासन बना कर रखें क्योंकि आप जब तक काम में अनुशासन नहीं बना कर रखेंगी तब तक आप अपना बैस्ट नहीं दे पाएंगी.  इस बारे में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को भी बताएं ताकि वे आप को फ्री समझ कर काम के समय डिस्टर्ब न करें .

4. समय पर काम पूरा करें

ऐसा न करें कि बहाने बना कर काम को टालती रहें, ऐसा करने से आप की छवि खराब होती ब​ल्कि समय पर काम पूरा करने की कोशिश करें, इस से वर्क स्पीड बनी रहती है और आप भी टैंशन फ्री रहती हैं .

5. फील्ड के लोगों से जुड़ कर रहें

आप घर से काम करती हैं, आप को औफिस जाने की जरुरत नहीं पड़ती, इस का ये मतलब नहीं है कि आप लोगों से मिलना जुलना छोड़ दें बल्कि अपने फील्ड के लोगों से कौंटैक्ट बना कर रखें ताकि आप को उन से नईनई चीजें सीखने का मौका मिलते रहे .

6. कुछ जरुरी बातें

लक्ष्य निर्धारित करें कि आप को नई चीजें सीखना है, इस से आप में काम को ले कर जोश बना रहता है.

  • ई-मेल मैनर्स पर भी रखें ध्यान, सिर्फ ओके, थैंक्यू में रिप्लाई न करें .
  • काम का प्रैशर कभी भी फैमिली पर न निकालें .
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें