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एक्स हसबैंड के साथ स्पॉट हुई करिश्मा कपूर, फैंस ने पूछा ये सवाल

90 के दशक की मशहूर अभिनेत्री करिश्मा कपूर आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं, हाल ही में करिश्मा को अपने एक्स हसबैंड संजय कपूर के साथ स्पॉट किया गया है. जहां दोनों एक साथ डिनर डेट पर नजर आएं. साथ में दोनों काफी लंबे समय बाद खुश लग रहे थें.

बता दें कि करिश्मा फ्लोरल प्रिंट ड्रेस में नजर आईं जिसमें वह काफी खूबसूरत लग रही थीं, एक्स हसबैंड के साथ काफी ज्यादा चर्चा में रही करिश्मा, साथ में बेटी समायरा भी नजर आ रही हैं, एक लंबे समय बाद करिश्मा को अपने पति के साथ स्पॉट किया गया है. रेस्तरा से बाहर आने के बाद से करिश्मा ने पैपराजी को पोज भी दिया , जिसके बाद से कुछ लोगों ने सवाल भी किए हालांकि करिश्मा ने इसका जवाब नहीं दिया है.

 

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करिश्मा लगातार पोज देकर अपने कार में जाकर बैठ गई, करिश्मा आए दिन अपनी दोस्तों के साथ घूमते नजर आती हैं, करिश्मा 2 बच्चे की सिंगल मदर हैं. लेकिन वह अपनी लाइफ को बेहद खूबसूरत तरीके से जीती हैं. जिसमें कोई कंट्रोवर्सी नहीं है. वह आए दिन करीना के साथ भी स्पॉट होती है.

मलाइका ने शेयर की अर्जुन कपूर की शर्टलेस फोटो,कही ये बात

मलाइका अरोड़ा इन दिनों लगातार अर्जुन कपूर के साथ अपनी शादी को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं, हाल ही में मलाइका ने अर्जुन कपूर की एक तस्वीर शेयर की है जिसमें वह लेजी लुक में नजर आ रहे हैं.

तस्वीर में अर्जुन कपूर अंगड़ाई लेते हुए नजर  आ रहे हैं, मलाइका ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है ‘माई वैरी ऑन लेजी बॉय’ वहीं अर्जुन कपूर ने इस तस्वीर को अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है, उन्होंने एक कुशन रखा है इसके अलावा उनके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है.

 

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मलाइका की दूसरी तस्वीर देखकर पता चल रहा है कि मलाइका इन दिनों दिल्ली में है और वह हेयर स्टाइल के ग्रूमिंग पर काम कर रही हैं,इसके अलावा मलाइका ने तब्बू रतनानी के साथ अपना एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह काफी ज्यादा स्टाइलिस लग रही है.

बता दें कि मलाइका अर्जुन के उम्र में सिर्फ 12 साल का अंतर है लेकिन देखकर लगता है कि उम्र सिर्फ एक नंबर है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

खबर ये भी है कि दोनों जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं, दोनों की शादी होने वाली है. मलाइका और अर्जुन की बॉन्डिंग की सब खूब तारीफ करते हैं.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी के 9 साल, सवाल दर सवाल

यह कहना सही होगा कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के 9 वर्ष पूरे होने पर देश का जनमानस सवाल पूछ रहा है कि आखिर इन 9 वर्षों में हमें क्या मिला? जवाब सिर्फ इतना है कि नरेंद्र मोदी के राजकाज के इन 9 वर्षों में देश की जनता को सिर्फ और सिर्फ त्रासदी और दर्द के सिवा कुछ भी नहीं मिला है. आने वाले समय में इतिहास के पन्नों पर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार और स्वयं नरेंद्र मोदी के कामकाज को जब लिखा जाएगा, तो वह बड़ा ही दर्दनाक होगा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी ने जिस तरह देश की जनता को गुजरात मौडल और बड़ीबड़ी बातें करकर के अपने पक्ष में वोट देने के लिए रिझाया और बाद में अपने हिंदुत्व की ढपली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के संरक्षण में बजाने लगे, यही नहीं, उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के झूठ बोलने के रिकौर्ड की कुछकुछ बराबरी करने का भी प्रयास किया है, यह सब इतिहास से छिपाया नहीं जा सकेगा.

आज सत्ता के आसन पर बैठ कर नरेंद्र मोदी सरकार चाहे जितने भी झूठ बोल ले, मगर इतिहास के नीर, क्षीर, विवेक के सामने नरेंद्र मोदी बौने बन जाएंगे, यह कहा जा सकता है.

अगर हम खुली आंखों से देखें, तो नरेंद्र दामोदरदास मोदी का एकएक कदम देश के संवैधानिक ढांचे और जनजन के विरुद्ध ही दिखाई देता है. इस में सब से बड़ा मामला है कोरोना काल का.

कोरोना काल के समय नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कार्य व्यवहार को अगर हम ध्यान से देखें तो पाते हैं कि वह किसी भी तरह से लोकतांत्रिक देश के एक चुने हुए प्रधानमंत्री के कामकाज की नीयत से मेल नहीं खाता. उन्होंने देश की जनता को कोरोना का टीका बेचने का प्रयास किया, जो न्यायालय में दरकिनार हो गया. कोरोना से मृत लोगों को मुआवजा देने के नाम पर भी सरकार ने कन्नी काट ली और न्यायालय के आदेश पर आखिरकार सिर्फ 50,000 की राशि देने को तैयार हुए.

लाख टके का सवाल है, जब आप देश की जनता के दुख में साथ नहीं हैं, तो फिर आप कैसे प्रधानमंत्री हैं और कैसे आप की सरकार है? सिर्फ हर चीज में इतिहास जोड़ देना और उसे ऐतिहासिक बता देना या उसे उत्सव में परिवर्तित कर देना ही सरकार का काम नहीं है. सच्चे अर्थों में देश की जनता के चेहरे पर खुशियां आएं, यह सरकार का पहला दायित्व होना चाहिए, जिस में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार पूरी तरह विफल दिखाई देती है.

नरेंद्र मोदी पर अनेकानेक गंभीर आरोप हैं, जिन का अभी तक जवाब नहीं दिया है. आप देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो पत्रकारवार्ता से कन्नी काटते हैं. लोगों से सिर्फ ‘मोदीमोदी’ कहलवा लेना आप का बड़प्पन नहीं है. आप की महानता और श्रेष्ठता इस में है कि देश की जनता आप को सच्चे मन से प्यार करे. देश का हर एक नागरिक आप को अपना संरक्षक समझे.

नरेंद्र मोदी सरकार के 9 वर्ष पूरे हो गए हैं. ऐसे भी नरेंद्र मोदी को कम से कम एक दिन मौन रह कर के अपने कार्यकाल की स्वयं समीक्षा करनी चाहिए.

विपक्षी के गंभीर आरोप

देश की सब से बड़ी पार्टी और विपक्ष कांग्रेस ने केंद्र सरकार के 9 साल पूरे होने पर महंगाई, बेरोजगारी व कुछ अन्य विषयों पर 9 सवाल पूछे हैं. पार्टी के मुताबिक, नरेंद्र मोदी की भाजपानीत सरकार ने अपने वादों को पूरा न कर के देश के साथ जो विश्वासघात किया है, उस के लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए.

मुख्य विपक्षी दल ने ‘9 साल, 9 सवाल’ शीर्षक से एक पुस्तिका भी जारी की और कहा कि 26 मई को भाजपा को ‘माफी दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महंगाई, नफरत और बेरोजगारी जैसी नाकामियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.”

राहुल गांधी ने कांग्रेस की ओर से सरकार से पूछे गए 9 सवालों की फेहरिस्त साझा करते हुए ट्वीट किया, ‘झूठे वादों और जनता की दुर्दशा पर भाजपा ने खड़ी की 9 साल की इमारत. महंगाई, नफरत और बेरोजगारी – प्रधानमंत्रीजी, अपनी इन नाकामियों की लीजिए जिम्मेदारी.’

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा, “9 साल बाद आज कांग्रेस 9 सवाल पूछ रही है. राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान ये सवाल पूछे थे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया है.”

उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने जो 9 सवाल पूछे हैं, उन पर प्रधानमंत्री मोदी को चुप्पी तोड़नी चाहिए.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर कहा, ‘9 सालों की भयावह बेरोजगारी को ‘अमृतकाल’, कमरतोड़ महंगाई को ‘सब का विकास’, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था व भ्रष्टाचार को ‘डबल इंजन ग्रोथ’ कहा गया. जनता की समस्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन उन्हें हल करने के बजाय सरकार का प्रचार – पीआर और जुमलों का व्यापार बढ़ता जा रहा है.’

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा के मुताबिक, “आज का दिन सरकार को माफी दिवस के तौर पर मनाना चाहिए. सभी देशवासियों से प्रधानमंत्री को माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि भारत के लोगों के साथ विश्वासघात हुआ है.”

देश के सच्चे हालात ये हैं कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के आने के बाद देश निरंतर पीछे की ओर जा रहा है, आपस में वैमनस्य बढ़ता चला जा रहा है, कानून को अपने हाथ में लिया जा रहा है, बुलडोजर सरकार बन कर स्वयं को डबल इंजन की सरकार संज्ञा से विभूषित कर के अपनी पीठ थपथपाई जा रही है, विपक्ष को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है और इस चक्कर में अपने ही पैरों पर नरेंद्र मोदी सरकार कुल्हाड़ी मार रही है. यह सब इतिहास में जब वृहद स्वरूप में सामने आएगा, तब शायद नरेंद्र दामोदरदास मोदी को अवश्य अफसोस होगा.

टोटकेबाजों का नया शिगूफा है सेंगोल

हैरानी नही होनी चाहिए अगर दस पंद्रह दिन बाद गाँव के साप्ताहिक हाट बाजारों से लेकर शहरों के फुटपाथों और बड़े भव्य माल्स तक में 3 इंच से लेकर 3 फुट तक के सेंगोल सौ से लेकर हजार रु तक में बिकते नजर आएं . मिथ्या स्टार्ट अप में पैसा खंगाल रहे युवाओं के लिए यह वाकई सुनहरी मौका है कि वे कहीं से मशीनें और सांचे जुगाड़ कर सेंगोल का धंधा शुरू कर दें . मुफ्त के इस आइडिये से लाखों करोड़ों बनाने की गारंटी बिना किसी रिस्क के कोई भी ले सकता है . बाजार के मुताबिक प्लास्टिक और रबर से लेकर धातुओं तक के सेंगोल लांच किये जा सकते हैं .

लेकिन शर्त यह है कि ये सेंगोल हुबहू वही होने चाहिए जो संसद में स्थापित किया जाने बाला है . चार दिन पहले तक मुट्ठी भर लोग भी इसके बारे में नही जानते थे . अब मुट्ठी भर ही बचे होंगे जो सेंगोल के बारे में न जानते हों हालाँकि.जानने बाले भी इसके बारे में अभी तक इतना ही जान और समझ पाए हैं कि यह कोई उच्च कोटि का नया चमत्कारी रक्षक यंत्र है जिसे नई संसद में किसी खास मकसद से ही स्थापित किया जा रहा है . चोल और मोर्य सहित गुप्त व प्रगट वंशों के बारे में जानने इतिहास में झाँकने की न तो आम लोगों को जरूरत है न इतना वक्त है और न ही इसकी अब कोई तुक है .

सोचा सिर्फ इतना जा रहा है कि चूँकि सरकार इसे संसद में स्थापित कर रही है इसलिए जरुर इसमें कोई चमत्कार होगा ठीक वैसे ही जैसे काले मटकों में होना माना जाता है . देश में नए बने और निर्माणाधीन मकानों के आंगन और छतों में काला मटका झूलता अगर न मिले तो मकान मालिक के धर्म , ज्ञान और मानसिकता पर तरस खाया जा सकता है जो यह नही जानता कि लाखों करोड़ों के मकान को यह 40 – 50 रु का अदना सा काला मटका कैसे बुरी नजर से बचाता है .मकान का बीमा हो न हो लेकिन काला मटका जरुर होना चाहिए .

कहले बाले विज्ञानं की थ्योरी की बखिया उधेड़ते बताते हैं कि काले मटके से नकारात्मक उर्जा नही आती और घर के लोग सुख चैन से रहते हैं . यह दीगर बात है कि लोग अपनों से ही ज्यादा दुखी रहते हैं . काला मटका बेचारा लटका लटका तमाशा देखते अपनी रिहाई यानी फूटने का इंतजार करता रहता है .
लेकिन सेंगोल की बात कुछ हटकर है जिसके बारे में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह एक तरह का राज दंड है जिसे आजादी के साथ अंग्रेज पहले प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को सौंप गए थे . अब अंग्रेजों को यह किसने सौंपा था यह किसी को नही मालूम . उधर कांग्रेसी हल्ला मचाकर कह रहे हैं कि इस बात के तो कोई लिखित या मौखिक प्रमाण ही नही हैं कि सेंगोंल ब्रिटिश सरकार ने नेहरु जी को सौंपा था जिसे कथित तौर पर उन्होंने म्यूजियम में पटकवा दिया था .

गुजरे कल के इन अर्धसत्यों के कोई माने नही हैं ठीक वैसे ही जैसे आज सेंगोल को बतौर टोटका संसद में ले जाने के नही हैं . चूँकि मोदी शाह ऐसा कर रहे हैं इसलिए इसके माने गोदी मीडिया गढ़ने की कोशिश कर रहा है जिस पर भी तरस ही आता है . यूनान , मिस्र और अफ्रीकियों से लेकर प्रिंस चार्ल्स तक का हवाला दिया जा रहा है . जिससे भगवा गेंग की अन्धविश्वासी मानसिकता घूँघट में ही रहे .जिस चोल वंश का जोर शोर से हवाला दिया जा रहा है वह खुद को हिन्दू नही मानता . इतिहास की जानकारी रखने बाले बेहतर जानते हैं कि चोल वंश के वक्त में हिन्दू शब्द और धर्म दोनों अस्तित्व में नही थे .

इस विवाद और साजिश को समझने मणिरत्नम की 2022 में प्रदर्शित फिल्म पोंनियन्न सेल्वन -1 से आसानी से समझा जा सकता है जिसे देखने के बाद मशहूर तमिल डायरेक्टर वेत्रिमारन ने कहा था कि फिल्म में चोल राजराजा चोजलन को हिन्दू के रूप में पेश किया गया लेकिन असल में वे हिन्दू नही थे भाजपा हमारी पहचान चुराने की कोशिश कर रही है . वह लगातार हमारे पहचान चिन्हों को हमसे छीन रही है . भगवान वेल्लुवर का भगवाकरण हो या राजा चोल को हिन्दू बताना ये लगातार हो रहा है प्रतिभावान अभिनेता और नेता कमलहासन ने भी कहा था कि राजराजा के दौर में हिन्दू धर्म जैसी कोई चीज नही थी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद भाजपा को समझना चाहिए कि वह लाख सर पटक ले दक्षिण भारत उसका हिंदुत्व या हिन्दू राष्ट्र नही स्वीकारेगा . .

लेकिन बात में वजन नहीं आया तो इस विवाद से बचते होनहार मीडिया बाले महाभारत के शांति पर्व में भी सेंगोल को खोज लाये कि कृष्ण ने अर्जुन से यह कहा था , वह कहा था कि दंड यानी सजा ही धर्म है . यही राज दंड है . बहुत जल्द सेंगोल का वैज्ञानिक महत्व भी मार्किट में आ सकता है जो ठीक वैसा ही होगा जो शिवलिंग और जनेऊ बगैरह का बताया गाया जाता है .

यह कहने की जुर्रत कोई नही कर पा रहा कि यह सरकार ही टोटकेबाजों की है जिसकी एक अंतर्राष्ट्रीय मिसाल 8 अक्तूबर 2019 को दुनिया भर ने देखी थी तब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने फ़्रांस जाकर राफेल विमानों के नीचे नीबू रखकर उस पर स्वस्तिक और ॐ का चिन्ह रंगोली से अंकित कर दिया था . सारी दुनिया के वैज्ञानिक हैरान रह गए थे कि यह क्या बला है . ये वैज्ञानिक अगर भारत के बाजार घूम लें तो उन्हें ॐ और नीबू मिर्ची के टोटके की पहुँच का पता चल जायेगा और वे विज्ञानं भूल जायेंगे.
यह भी उन्हे समझ आ जायेगा कि इस टोटके का दैनिक बाजार ही करोड़ों रु का है . इससे कोई 75 लाख लोगों के पेट पलते हैं . भारत में 4 व्हीलर पेट्रोल , सड़कों और ड्राइवरों के नही बल्कि ॐ और नीबू मिर्ची की माला के भरोसे चलते हैं .

लगभग इतने ही पण्डे पुजारियों के भी पूजा – पाठ , यज्ञ – हवन , तंत्र – मंत्र और ज्योतिष आदि से पेट और घर भरते हैं . जिस देश में संसद प्रवेश भी बिना वैदिक पूजा पाठ के होना मुमकिन न हो वहां गृह प्रवेश भला कैसे बिना पण्डे पुजारियों के आशीर्वाद के हो सकता है . हमारा देश मान्यताओं , रूढ़ियों और परम्पराओं का देश है जिसमें बच्चों की किताबों तक पर स्वस्तिक बनाया जाता है .नवजातों को वेक्सीन लगवा दिए ठीक नही तो काला टीका तो जिंदाबाद है ही .

बिरले ही घर मिलेंगे जिनके ड्राइंग रूम और पूजा घरों में श्री यंत्र सहित चाइनीज कछुए , मेंढक , लटकती घंटी और लाफिंग बुद्धा बगैरह की मूर्तियाँ न हों . ये और इन जैसे सैकड़ों टोटके शुभ लाभ बाले माने जाते हैं तो बेचारे सेंगोल को कोसना एक फिजूल की बात है . इसका तो बड़े पैमाने पर स्वागत किया जाना चाहिए की टोटकों और टोटकेबाजों की भारत भूमि पर नए आयटम का हार्दिक स्वागत है .

सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है जैसी बहानेबाजी से कोई फायदा नही क्योंकि यह तो 75 साल पहले ही हो चुकी थी अब दौबारा हो रही हो तो और बात है . हाँ 2014 में भी जो हुआ था वह एक तरह का ट्रांसफर आफ पावर अगर माना जा रहा है तो कांग्रेसियों और कुछ विपक्षी दलों को विदेशी घोषित किया जाना चाहिए लेकिन घोषित तौर पर क्योंकि अघोषित रूप से तो वे विदेशी , अधर्मी ,नास्तिक , वामपंथी और नक्सली कहे ही जाते हैं . यही मौजूदा सरकार का लोक कल्याण और निष्पक्ष न्याय है .

जोगीरा सारा रा रा फिल्म रिव्यू: औसत दर्जे की हास्य फिल्म, नवाजुद्दीन की बजाय संजय मिश्रा छोड़ते हैं छाप

  • रेटिंग: पांच में से एक स्टार
  • निर्माता: किरण श्राफ व नईम सिद्दिकी
  • लेखक: गालिब असद भोपाली
  • निर्देशक: कुषान नंदी
  • कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दकी, नेहा शर्मा, रोहित चौधरी, संजय मिश्रा, विश्वनाथ चटर्जी,  घनश्याम,  महाअक्षय उर्फ मिमोह चक्रवती व अन्य. . .
  • अवधि: दो घंटे एक मिनट

मशहूर गीतकार व षायर असद भोपाली के बेटे व मशहूर लेखक गालिब असद भोपाली से कुछ दिन पहले उनके घर पर हमारी लंबी बातचीत हुई थी. उस बातचीत के दौरान गालिब ने स्वीकार किया था कि उनकी नई फिल्म ‘‘जोगीरा सारा रा रा. . ’’ का नायक जोगी वह स्वयं है. फिल्म का प्रिमायसेस उनकी जिंदगी व उनके घर के कुछ किरदार हैं. जिन्हे उन्होने प्यार को लेकर वर्तमान सामाजिक सोच के आधार पर हास्य के रूप में पेश किया है. उस दिन गालिब असद भोपाली से बातचीत करने के बाद इस फिल्म को लेकर काफी उम्मीदें पैदा हुई थी, लेकिन फिल्म देखकर उन पर पानी फिर गया. यह फिल्म अति औसत दर्जे के हास्य घटनाक्रमों से भरी हुई है. फिल्म के निर्माण व निर्देशन से वही टीम जुड़ी हुई है, जिसने गालिब असद भोपाली लिखित पिछली फिल्म ‘‘बाबूमोषाय बंदूकबाज’’ का निर्माण व निर्देशन किया था. गालिब असद भोपाली काफी समझदार व सुलझे हुए इंसान व लेखक हैं. कम से कम उनसे इस स्तर की फिल्म की उम्मीद नही की जा सकती थी. इतना ही नही मैं गालिब असद भोपाली को ‘शक्तिमान’ के जमाने से जानता हॅंू और कुछ हद तक उनके लेखन से परिचित हूंू, इसलिए भी ‘‘जोगीरा सारा रा रा’ देखकर बहुत निराषा हुई. . फिल्म ‘‘जोगीरा सारा रा रा. . ’देखते हुए मुझे गालिब की यह बातंे याद आ रही थीं कि जब इंसान के हाथ से किताबें छूटती हैं, तो भाषा भी छूटती है.  किताबों व साहित्य की बजाय जब इंसान मोबाइल व इंटरनेट पर निर्भर हो जाता है, तब वह यह भूल जाता है कि भोपाल व लखनउ इस देश के ेतहजीब वाले शहर हैं, जहां ‘संडास’ शब्द नहीं बोला जाता. यह तो महज मंुबईया जुबान वाला शब्द है. फिल्म में बार बार मूख्य किरदार यानी कि अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दकी कहते हैं-‘‘जोगी का जुगाड़ कभी फेल नहीं हो सकता. ‘अफसोस फिल्म में जुगाड़ फेल हो गया.

मशहूर पत्रकार प्रीतीश नंदी के बेटे तथा ‘एक राजा एक रानी’, ‘दो लफ्जों की कहानी’ सहित लगभग दस सीरियलों और ‘88 एंटाप हिल’व ‘हम दम’ जैसी फिल्मों के निर्देशक कुषान नंदी 2017 में जतब बतौर निर्देशक ‘बाबू मोषाय बंदूकबाज’ लेकर आए थे, तभी इस बात का अहसास हो गया था कि उनके ेअंदर का निर्देशक खो गया है. अब ‘जोगीरा सारा रा रा’ देखने के बाद कुषान नंदी के निर्देशन से उम्मीद खत्म हो गयी है. मैंने कुषान नंदी के निर्देशन मंे बने सभी सीरियल व फिल्में देखी हैं, मैने उन्हे सेट पर काम करते हुए देखा है, मेरी उनसे कई मुलाकातें रही हैं, कम से कम मुझे निजी स्तर पर कुषान नंदी से इतने निम्न स्तर के निर्देशन की उम्मीद बिलकुल नहीं थी.

कहानीः

उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर की पृष्ठभूमि में यह कहानी जोगी प्रताप (नवाजुद्दीन सिद्दिकी)की है, जो कि एक वेडिंग प्लानर हैं. जोगी ने खुद षादी नही की है. उसने षादी न करने की कसम खा रखी है.  क्योंकि उनके घर में छह औरतें हैं और वह अकेला मर्द है. अब वह इसमें औरतों की संख्या बढ़ाना नही चाहता. पर जोगी की अचानक बरेली में एक षादी के कार्यक्रम में बेशर्मी के साथ डंास करती व शराब पीती डिंपल (नेहा ष्र्मा) से हो जाती है.  बाद में लखनउ में डिंपल,  जोगी से लल्लू (महाक्षय चक्रवर्ती) संग अपनी होने वाली षादी को तुड़वाने के लिए मिलती है. यह षादी डिंपल के पिता चैबे ने तय की है. अब जोगी,  दूल्हे के परिवार को दहेज मांगने के लिए उकसाने से लेकर दूल्हा की टांग तुड़वाने तक काफी कुछ करते हैं. लेकिन उनकी सारे जुगाड़ असफल हो जाते हैं. अंततः जोगी अपने दोस्त मनु (रोहित चैधरी) की मदद से डिंपल के अपहरण की साजिश रचते हैं,  जिससे शादी टूट जाए.  ऐसा हो भी जाता है. मगर जोगी अपने झूठ के जाल में फंस जाते हैं. मनु कभी स्थानीय गुंडे चैधरी (संजय मिश्रा) के सथस मिलकर अपहरण का ही काम किसा करता था. चाचा चैधरी फिरौती की रकम का एक हिस्सा स्थानीय पुलिस अफसरों यादव (विश्वनाथ चटर्जी और घनश्याम गर्ग) उर्फ डबल यादव नाम के दो पुलिस इंस्पेक्टरों को दिया करते थे. इस बार डिंपल के अपहरण में भी डबल यादव को अपना बीस प्रतिशत चाहिए, पर फिरौती की रकम तो ली या दी ही नही गयी. इसलिए मामला उलझता है.  इस तरह जोगी का जुगाड़ चीजों को जरुरत से ज्यादा उलझा देता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म का लेखन व निर्देशन दोनों ही निराषाजनक है.  लेखक गालिब असद भोपाली ने फूहड़ हास्य के साथ अराजकता का मिश्रण किया है. इतना ही नही कहानी व पटकथा में काफी गड़बड़ियां है. फूहड़ व अर्धनग्न नृत्य करने, शराब व सिगरेट पीने वाली डिंपल का परिवार व उसके पिता संस्कारी व कठोर हैं. यह कुछ अजीब सा नही लगता. डिंपल व जोगी दोनो का परिवार के ही शहर में रहता है. डिंपल के पिता की भी दुकाने हंै और बड़ा नाम है. इसके बावजूद अपहृत डिंपल खुलेआम, महज बुरका पहनकर, मगर दुकान के अदंर चेहरे से बुरका हट जाता है, घूमती है, पर कोई उन्हे नही पहचनात. जब ंिडपल अपने घर पहुॅच जाती हैं, तब एक दुकान का मालिक , चैबे जी को इस बात की खबर देता है. लेखक व निर्देशक ने इस दुकानदार के किरदार को भी ठीक से विकसित नहीं किया. जबकि वास्तव में यह भी विलेन है. जोगी और उिंपल के बीच कहीं कोई केमिस्ट्ी नजर नही आती.  मैने पहले ही कहा कि कुषान नंदी अपने अंदर की निर्देशकीय प्रतिभा व सोच को पूरी तरह से खो चुके हैं. फिल्म की षुरुआत जिस तरह के गाने से हुइ है, वह उनकी निर्देष्कीाय विफलता का प्रतीक है. इतना ही नहीं रेड लाइट एरिया मंे जिस तरह के गाने की कल्पना की गयी है, वह फिल्म की कहानी को बाधित करने के साथ ही निर्देशकीय सोच व कल्पना के दिवालिएपन को दर्षाता है. फिल्म में जोगी व डिंपल दोनों परिवार हिंदू हैं, मगर सब कुछ मुस्लिम परिवारांे ंजैसा नजर आता है.

अभिनयः

जोगी प्रताप के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने निराश किया है. वह जयादातर दृष्यों में थके हुए नजर आते हैं. षायद जब इस फिल्म को फिल्माया गया, उस वक्त वह अपनी घरेलू समस्याओं से जूझ रहे थे. इसलिए उसका पूरा असर उनके अभिनय में नजर आता है. वैसे इस फिल्म को तब फिल्माया गया था जब लखनउ की वयोवृद्ध अदाकारा फारुख जफर जिंदा थी. डिंपल की दादी के किरदार में वह अपनी छाप छोड़ जाती हैं.  नेहा शर्मा सिर्फ सुंदर लगती हैं. अभिनय के लिए उन्हे कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. कुछ दृष्यों में वह ओवर एक्टिंग कर लोगों को हंसाने का असफल प्रयास करती नजर आती है. लल्लू के किरदार मंे महाअक्षय चक्रवर्ती उर्फ मिमोह जरुर अपने गोल मटोल शरीर के साथ कुछ हद तक लोगों को हंसाने में कामयाब रहे हैं. चाचा चैधरी के किरदार में संजय मिश्रा पूरी फिल्म में छा जाते हैं.

मोहब्बत में खलल का अंजाम

 

परवेज अफसाना की बातों में आ गया था, लेकिन उस ने यह नहीं सोचा था कि वह उस का गुनहगार भी बन जाएगा. मुरादाबाद से करीब 25 किलोमीटर दूर भोजपुर में देवीपुरा मड़ैया गांव के उत्तरी छोर पर 17 दिसंबर, 2021 को लटूरी शाह सुबहसुबह अपने

खेत पर गया था. वह पिछले 2 हफ्ते से लगातार गेहूं की फसल देखने के लिए जाता था. फसल लहलहा रही थी. किंतु खेत के कुछ हिस्से में पानी पटाने का काम बाकी था.

लटूरी जब खेत के सूखे हिस्से की ओर गया, तब उस ने पाया कि गेहूं की फसल को कई मीटर तक रौंदा गया है. मुड़ेतुड़े पौधों को देख कर उस ने सोचा शायद ऐसा वहां आए दिन रात में आने वाले जंगली जानवरों के कारण हुआ होगा.

लेकिन जब उस ने ध्यान से देखा तो पाया कि गेहूं की फसल किसी जानवर ने खाई नहीं थी बल्कि वह जमीन पर बिछी सी हुई थी.

वह खेत में देखने के लिए आगे बढ़ा. कुछ दूरी पर ही फसल के बीचोबीच उसे एक व्यक्ति बेजान पड़ा दिखाई दिया. उस के बेतरतीब हालत में लेटे और शरीर पर चोटों के निशान एवं खून के धब्बे देख कर समझ गया कि वह व्यक्ति मर चुका है.

यह देख कर उस के होश उड़ गए और वह उल्टे पैर अपने गांव वापस लौट गया. इस की जानकारी उस ने गांव वालों को दी. उस के बाद बड़ी संख्या में गांव वाले घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने इस की सूचना भोजपुर थाने को को दे दी. उस समय थाने में थानाप्रभारी राजीव कुमार शर्मा मौजूद थे.

खेत में अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना पा कर वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने उस की शिनाख्त के लिए गांव वालों से पूछताछ की, लेकिन कोई भी उस की पहचान नहीं सका.

लाश को सिपाहियों ने पलट कर देखा तो जेब से नकद 300 रुपए, एक कार की चाबी और बीड़ी का एक बंडल मिला. थानाप्रभारी ने अज्ञात व्यक्त की लाश मिलने की सूचना अपने उच्च अधिकारियों को दे दी.

सूचना मिलते ही मुरादाबाद के एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्र और क्षेत्राधिकारी डा. अनूप सिंह भी पहुंच गए. उन्होंने भी लाश के बारे में वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

कोई ठोस जानकारी नहीं मिलने पर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. घटनास्थल की स्थिति का मुआयना कर पुलिस भी थाने लौट आई.

उस दिन देर शाम तक मृतक की पहचान नहीं हो पाई थी. लाश की शिनाख्त के तौर पर उस के गले पर दबाए जाने के निशान थे. हालांकि कपड़े पर कुछ खून के धब्बे भी थे. इस लाश के बारे में पूरी जानकारी एसएसपी बबलू कुमार को भी दे दी गई.

एसएसपी बबलू कुमार ने अपने अधीनस्थों को निर्देश देते हुए जल्द से जल्द लाश की पहचान करवाने और हत्यारे को  गिरफ्तार करने के आदेश दिए.

एसएसपी ने केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में सीओ डा. अनूप सिंह, थानाप्रभारी राजीव कुमार शर्मा, एसआई सुधीर मलिक, मेघपाल सिंह, रमेश चंद, ईश्वर चंद, कांस्टेबल दीक्षांत शर्मा, प्रशांत वर्मा, बबीता आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम ने सब से पहले अज्ञात व्यक्ति की शिनाख्त हेतु पैंफ्लेट छपवा कर आसपास के गांवों में वितरित करवा दिए गए. साथ ही उस की फोटो वाट्सऐप ग्रुप पर भी पोस्ट कर दिए गए.

जल्द ही इस का परिणाम सामने आ गया. मृतक व्यक्ति की पहचान भोजपुर थाने के ही मनिहारान मोहल्ला निवासी अहमद हसन के रूप में हो गई. वह पिकअप वैन का ड्राइवर था, जो 16 दिसंबर, 2021 से ही गायब था. उस के पिता इब्ने हसन ने उसी दिन अपने बेटे अहमद हसन की गुमशुदगी थाने में दर्ज करवा दी थी.

पुलिस जांच के सिलसिले में एक चौंकाने वाली जानकारी मालूम हुई. जांच में पाया गया कि अहमद की पत्नी अफसाना उर्फ सोनम का मोहल्ले में ही रहने वाले परवेज नाम के युवक के साथ गहरा रिश्ता था.

यह बात कइयों ने दबी जुबान में कही तो कुछ ने खुलेआम दावे के साथ बताई. उन्होंने बताया कि वे दोनों को अकसर एक साथ आतेजाते देखते रहे हैं.

अहमद के मरने के ठीक एक दिन पहले ही सोनम और परवेज एक साथ देखे गए थे. परवेज भी सोनम के लिए जरूरी खरीदारी में हाथ बंटाता था. ईद बकरीद के मौके पर वह सोनम के यहां जरूर शामिल होता था.

पेशे से बिजली मैकेनिक परवेज दूसरे इलाके का रहने वाला था, लेकिन उस ने 2 साल पहले अहमद के मकान में किराए पर दुकान ले रखी थी. मोहल्ले वालों ने बताया कि परवेज ने सोनम के पति अहमद की गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर उस से नजदीकियां बढ़ा ली थीं.

सोनम भी घरेलू जरूरतों की पूर्ति के सिलसिले में चौखट लांघ चुकी थी. जरूरत पड़ने पर परवेज को साथ ले लेती थी. परवेज भी खुशीखुशी सोनम की मदद के लिए हर वक्त हाजिर रहता था.

उन की उम्र में 19-20 का ही फर्क था. इस कारण सोनम और परवेज ने एकदूसरे को देवरभाभी के रिश्ते का नाम दे दिया था.

इतनी जानकारी मिल जाने के बाद पुलिस ने अहमद हसन के बारे में पूछताछ के लिए दोनों को थाने बुला लिया. तब तक अहमद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट के अनुसार उस के शरीर पर चोट के निशान पाए गए थे और पीटपीट कर हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई थी.

उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट के सिलसिले में भोजपुर थाने की पुलिस सोनम से पहले भी पूछताछ कर कर चुकी थी.

तब सोनम ने बताया था कि बगैर किसी को जानकारी दिए वह कहीं चला गया है. इसी के साथ उस ने डबडबाई आंखों से यह भी कह दिया था कि हो सकता है उसे किसी ने मार डाला हो.

पुलिस को यह बात गले नहीं उतरी कि आखिर एक पत्नी अपने पति के बारे में मरने जैसी बात कैसे कर सकती है.

थानाप्रभारी ने जब दोबारा सोनम और परवेज को पूछताछ के लिए बुलाया, तब सोनम से सीधेसीधे कई सवाल किए, ‘‘तुम ने गुमशुदा शौहर के बारे में पूछे जाने पर उस के मारे जाने की आशंका क्यों जताई थी? क्या तुम्हें उस की हत्या के बारे में पहले से मालूम था? अहमद की किसी के साथ कोई दुश्मनी थी?’’

एक साथ इतने सवाल सुन कर सोनम घबरा गई. किस का किस तरह से जवाब दे, समझ नहीं पाई. गोलमोल बातें करने लगी. जिस से थानाप्रभारी संतुष्ट नहीं हुए. यहां तक कि पति अहमद की लाश देख कर उस ने दुपट्टे से मुंह ढंक लिया था.

रुआंसेपन को दिखाने के लिए केवल आंखें पोंछती नजर आई. उस की इन गतिविधियों को पुलिस टीम ने बारीकी से नोट किया. वह पूछे सवालों के ठोस जवाब नहीं दे पाई थी.

थानाप्रभारी सोनम को अकेला छोड़ कर परवेज से पूछताछ के लिए दूसरे कमरे में ले कर चले गए. औपचारिक बातें करते हुए उन्होंने अहमद और सोनम के साथ उस के संबंध और कामधंधे के बारे में पूछताछ की.

इस सिलसिले में परवेज ने बताया कि वह बिजली मैकेनिक का काम करता है, इसलिए करीब 2 साल पहले अहमद हसन के पिता इब्ने हसन से किराए पर दुकान ली थी. दुकान में बिजली के सामान बेचने का काम करता था और मोहल्ले में किसी के बुलावे पर घरों में जा कर बिजली की खराबी भी ठीक कर दिया करता था.

अहमद के घर की बिजली ठीक करने के लिए वह उस के घर जाता था. अहमद का किराएदार होने नाते वह उन से केवल सामान का ही पैसा लेता था, बहुत कहने पर भी मेहनताना लेने से इनकार कर देता था. खुश हो कर अहमद की पत्नी अफसाना उर्फ सोनम उसे चायनाश्ते किए बगैर नहीं जाने देती थी.

यह सब बातें सुनते हुए थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘और इस का तुम ने नाजायज फायदा उठाया.’’

‘‘कैसा फायदा साहबजी!’’

‘‘यही कि तुम सोनम पर डोरे डालने लगे. अहमद की गैरमौजूदगी में भी उस के घर जाने लगे,’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘नहीं, यह गलत बात है. मैं कभी अहमद की गैरहाजिरी या किसी के बुलावे के बगैर उस के घर में नहीं घुसा. वह तो जब कभी सोनम, उस के ससुर या अहमद कहते थे तभी वहां जाता था,’’ परवेज ने सफाई दी.

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. पूरा मोहल्ला जानता है कि तुम्हारा अहमद की बीवी के साथ चक्कर चल रहा है. तुम उस के प्रेमी हो,’’ थानाप्रभारी ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मोहल्ले वाले गलत कहते हैं, साहब. मैं सोनम का कुछ बाहरी काम कर देता हूं इसलिए वह ऐसा बोलते हैं. उन्होंने हमें साथसाथ देखा है, मैं उसे भाभी कहता हूं. इसलिए लोगों ने हमें बदनाम किया है,’’ परवेज बोला.

‘‘अगर तुम अहमद और सोनम के करीबी थे तो अहमद के लापता होने की खबर पा कर थाने क्यों नहीं आए थे? क्या इस बारे में तुम्हें सोनम ने नहीं बताया था?’’

यह सुन कर परवेज चुप्पी लगा गया. उस की चुप्पी पर थानाप्रभारी ने डपटते हुए कहा, ‘‘अब और कुछ भी मत छिपाओ. मुझे सब पता चल चुका है. सोनम अपने बयान में बहुत कुछ बता चुकी है, जो तुम्हारे खिलाफ है.’’

यह सुन कर परवेज तिलमिलाता हुआ बोला, ‘‘तो मैं क्या करूं? अहमद की मौत में मेरा हाथ है? मैं ने उसे कहा था खूब शराब पिओ और बीवी से मारपीट करो? वह तो सोनम से जब शौहर का जुर्म बरदाश्त नहीं होता था तब मेरे पास अपना दुखड़ा सुनाने चली आती थी. और मैं उसे सब कुछ ठीक हो जाने का ढांढस बंधा दिया करता था.’’

परवेज का इस तरह से तिलमिलाना पुलिस के लिए आशा की किरण के समान था. अब उस से सख्ती से पूछताछ की जानी थी. सोनम को साथ बिठा कर अहमद हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

सोनम ने बताया कि परवेज को जब उस ने पहली बार देखा था, तभी वह उस की नजर में भा गया था. सोनम 2 बच्चों की मां होते हुए भी परवेज के गठीले शरीर और बातचीत करने की अदाओं पर मर मिटी थी.

परवेज भी सोनम की सुंदरता का दीवाना बन गया था और वह जब भी उस की दुकान पर आती थी, तो सब काम छोड़ कर उस की जरूरतों को तरजीह देता था. उसे भाभी कह कर बुलाता था. उस ने अपनी लच्छेदार बातों से सोनम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

अहमद हसन जब अपने काम पर पिकअप वैन चलाने चाला जाता था, तब परवेज सोनम से मिलने उस के घर चला जाता था. इसी दौरान उन के बीच अवैध रिश्ते भी बन गए थे. उन के संबंधों के बारे में अहमद को मोहल्ले वालों  से पता चला. तब उस ने पिता इब्ने हसन से कह कर परवेज से दुकान खाली करवा ली. इस के बाद भी सोनम और परवेज का मिलनाजुलना जारी रहा. दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला चलता रहा.

अहमद और उस के परिवार वालों ने सोनम को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस के दिमाग से परवेज के इश्क का फितूर नहीं उतर पाया.

वह उलटे जवाब देने लगी कि लोग उस की सुंदरता और जवानी पर जलते हैं, इसलिए ऐसा कहते हैं. जबकि अहमद के दिल और दिमाग में परवेज और सोनम के बीच चल रहा इश्क का चक्कर कांटे की तरह चुभने लगा था.

कई बार यह सोच कर वह बौखला जाता था और गहरे अवसाद में घिर जाता था. उस गम को भुलाने के लिए वह शराब पी कर घर आने लगा था.

सोनम उस के शराब पीने का विरोध करने लगी थी. एक तरफ शराब का नशा था तो दूसरी तरफ मोहब्बत का नशा. नतीजा आए दिन पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे.

धीरेधीरे सोनम और अहमद के बीच होने वाली गुस्से भरी बातें, नाराजगी और गालीगलौज, मारपीट में बदल गईं. शरीर से बलिष्ठ अहमद शराब के नशे में सोनम की जम कर पिटाई कर देता था.

सोनम इस की शिकायत ले कर सीधे परवेज के पास जाती थी, उस से कहती थी वह कोई रास्ता निकाले ताकि वह अहमद की मारपीट और जुल्मों से बच सके.

इस की जानकारी अहमद को भी हुई. एक रोज वह गुस्से में तमतमाया हुआ परवेज के पास जा पहुंचा. उसे रास्ते में रोक कर भलाबुरा कहने लगा.

इस के जवाब में परवेज ने कहा, ‘‘यार देखो, तुम मेरे ऊपर नाहक ही शक करते हो. तुम जो सोच रहे हो ऐसा नहीं है. मोहल्ले वाले मुझे और तुम्हारी बीवी सोनम को बदनाम करने पर तुले हुए हैं. वैसे भी मैं अपने काम में बिजी रहता हूं.’’

अहमद को परवेज की बातों पर भरोसा नहीं हुआ. वह सीधा घर आया और शराब की बोतल भी साथ लाया. उस ने घर पर ही जी भर कर शराब पी और नशे में धुत हो कर सोनम की खूब पिटाई कर दी.

उस रोज की पिटाई सोनम के लिए काफी असहनीय हो गई थी. उस रोज तो वह सीधा परवेज के पास गई. उस से फरियाद करने लगी कि चाहे जैसे भी हो, वह उसे शौहर की मारपीट से निजात दिलाए, वरना वह जान दे देगी.

सोनम ने यहां तक कहा कि वह उसे ठिकाने लगा दे. फिर दोनों निकाह कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.

17 दिसंबर, 2021 को जुमे का दिन था. उस रोज अहमद की साप्ताहिक छुट्टी होती थी. यह सभी जानते थे. उस दिन अहमद 11 बजे बाजार जा रहा था. रास्ते में उसे परवेज मिला. बोल पड़ा, ‘‘बड़ी जल्दी में जा रहे हो.’’

‘‘आज जुमे की छुट्टी है, घर का राशनपानी लाना पड़ता है. बाजार जा रहा हूं.’’  अहमद ने कहा.

‘‘आज तो मेरी भी छुट्टी है,’’ परवेज भी बोला.

‘‘तो मैं क्या करूं तुम्हारी छुट्टी का?’’ अहमद रूखेपन से बोला.

‘‘अरे यार, इतनी भी क्या बेरुखी है. तुम तो हमेशा नाराज ही रहते हो. क्यों न आज 2-2 पेग हो जाएं. साथ पीने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘देखो, आज जुमा है, मुझे नमाज को भी जाना है. आज नहीं, फिर कभी.’’

‘‘खर्च मैं करूंगा.’’

शराब पीने का शौकीन अहमद परवेज की बात टाल नहीं सका. जैसा कि अकसर एक आम शराबी के साथ होता है. वे इस के चलते सभी गिलेशिकवे और दुश्मनी भूल जाते हैं.

परवेज ने कहा कि वह शराब भोजपुर से खरीदेगा जरूर, लेकिन कहीं दूर जा कर एकांत में पीएंगे. कोई देखेगा भी नहीं.

अहमद को परवेज की यह बात और भी अच्छी लगी. वह उस के कहने के मुताबिक उस की बातों में आ गया.

परवेज समय गंवाए बगैर शराब के ठेके से शराब की एक बोतल, 2 डिसपोजल गिलास, नमकीन का पैकेट, सिगरेट की डब्बी और पानी की बोतल खरीद लाया. सारा सामान स्कूटी की डिक्की में रख लिया. अहमद को स्कूटी पर बिठा कर भटियारा और सना होटल होते हुए गांव देवीपुरा की मड़ैया के उत्तरी दिशा के जंगल में ले गया. वहीं पर बैठ कर दोनों ने शराब पी.

परवेज ने कम पी और अहमद को पैग पर पैग पिलाता रहा. जब तक पूरी बोतल खाली नहीं हो गई, तब तक वह पीता रहा. परवेज ने जब देखा कि अहमद पर शराब का नशा चढ़ चुका है और उस के पैर लड़खडाने लगे हैं, तो परवेज ने सहारे से अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

कुछ दूर जा कर गेहूं के खेत के नजदीक परवेज ने अपनी स्कूटी रोकी और धक्का दे कर उसे गेहूं के खेत में गिरा दिया. अहमद नशे की हालत में उठ नहीं पाया. परवेज उसे खींच कर गेहूं के खेत के भीतर ले गया. नीचे गिरा कर उस के सीने पर घुटने रख कर अहमद का गला दबा दिया.

परवेज ने उस का गला तब तक दबाए रखा, जब तक कि अहमद हसन के प्राण निकल नहीं गए.

जब परवेज ने देख लिया कि अहमद मर चुका है, तब वह अपनी स्कूटी से अपने घर लौट आया. मनिहारन आ कर उस ने अपनी प्रेमिका सोनम को फोन किया, ‘‘मेरी प्यारी सोनम, तुम अब पूरी तरह से आजाद हो गई हो. तुम्हें आए दिन पीटने वाले को ठिकाने लगा दिया है. अब मैं तुम्हारे साथ धूमधाम से निकाह करूंगा. तुम अब पूरी तरह से मेरी हो.’’

सोनम की शादी 10 साल पहले अहमद से हुई थी. सोनम का मायका रुद्रपुर (उत्तराखंड) के कस्बा बिलासपुर का है. शादी के बाद उस की 2 बेटियां हुईं. सोनम इश्क में इतनी अंधी हो गई थी कि उसे अपनी बेटियों का जरा सा भी खयाल नहीं रहा. दोनों बेटियों की जिंदगी संवरने से पहले ही सोनम ने उन के सपने को नष्ट कर डाला.

20 दिसंबर, 2021 को दोनों बेटियां अपनी दादी मकसूदन के साथ थीं. दादी मकसूदन दोनों बेटियों के पास बैठी रो रही थी कि बुढ़ापे में बहू ऐसा जख्म दे गई, जिसे वह जिंदगी भर नही भूल पाएंगी.

कानून की निगाह में सोनम अपने पति को मरवाने में मुख्य साजिशकर्ता बन गई थी, जबकि परवेज हत्या का आरोपी था. दोनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

समर स्पेशल : दहीबड़ा के साथ चटपटी चाट

दही बड़ा ऐसा खाने का सामान है, जिस को चाट और खाना दोनों के साथ इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो दहीबड़ा एक ही व्यंजन माना जाता है. प्रमुख रूप से यह दही और बड़ा 2 अलगअलग खाने की चीजों से मिल कर बनता है. बड़ा उड़द और मूंग दाल दोनों से बनता है. उत्तर भारत के अवध क्षेत्र में यह उड़द दाल से अधिक तैयार किया जाता है. छोटी से बड़ी कोई दावत हो, दहीबड़ा के बिना पूरी नहीं होती है. चाट की कोई ऐसी दुकान नहीं होती है जहां दहीबड़ा न मिलता हो.

स्ट्रीट फूड से ले कर रैस्टोरैंट तक में हर जगह दहीबड़ा मिलता है. उत्तर भारत में खाने और चाट दोनों के साथ इस का इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में केवल दहीबड़ा बेचने वाली कई मशहूर दुकानें भी हैं जो केवल मीठे दहीबड़े ही बेचती हैं. लोगों की पसंद को देखते हुए चाट की दुकानों में भी दहीबड़ा बनने लगे हैं. बड़ी दुकानों में एक प्लेट दहीबड़ा की कीमत 80 रुपए तक पहुंच गई है.

दहीबड़ा बनाने में बहुत ही आसान और खाने में मजेदार होता है. दहीबड़ा हर दिल को भाता है. बच्चों को बहुत पसंद है, साथ में सेहत से भरपूर है. इस वजह से यह गांव से ले कर शहर तक हर जगह पर इस का इस्तेमाल होता है. शादीविवाह की दावत में इस का खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है. उड़द दाल की सब से ज्यादा खपत दहीबड़ा बनाने में ही होती है.

उत्तर भारत में उड़द दाल की खेती की सब से बड़ी वजह यही है कि यहां दहीबड़ा का इस्तेमाल खूब होता?है. शायद ही चाट की कोई ऐसी दुकान हो, शादी की कोई ऐसी दावत हो, जिस में दहीबड़ा न बनता हो.

उड़द दाल से बड़ा बनाने के लिए सामान :

250 ग्राम उड़द दाल

आधा कड़ाही तेल तलने के लिए

नमक स्वादानुसार

आधी चम्मच हींग

मिक्सर ग्राइंड बड़ा बनाने वाला सांचा, जिस में कम समय में ज्यादा बड़ा बन जाते हैं.

दहीबड़ा बनाने के लिए सामग्री:

एक चम्मच भुना जीरा पाउडर

आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

2 कटोरी दही

एक छोटी कटोरी मीठी चटनी

एक छोटा चम्मच नमक मिला लें.

इन को आपस में मिला कर दही कर लें.

जब दहीबड़ा परोसना हो, तब धीमे से बड़ा निकालें. इसे पहले से तैयार दही में डाल दें और परोस दें.

बबिता श्रीवास्तव कहती हैं कि दहीबड़ा को ऊपर से गार्निश करने के लिए हरा धनिया और मीठी चटनी के साथ चाट मसाला डाल सकते हैं. दहीबड़ा चाट की तरह और खाने के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

बच्चों को सिखाएं जरूरी टेबल मैनर्स

बच्चों को पब्लिक प्लेस पर ले जाना किसी मुसीबत से कम नहीं होता खासकर जब बच्चे बदमाश हों और बाहर जाकर तूफान मचा देते हों. कई बार तो बच्चे बाहर जाकर खाने की टेबल पर इतना आतंक मचाते हैं कि औरों के सामने आपको शर्मिंदा होना पड़ता है. कुछ बच्चे खाना खाते समय एक जगह पर टिक कर नहीं बैठते, इधर उधर भागते रहते हैं, क्रोकरी के साथ छेड़छाड़ करते रहते हैं. कभी पानी टेबल पर गिरा देते हैं तो कभी खाना, जिससे मेजबानों को अत्यंत परेशानी का सामना करना पड़ता है, इसलिये कम उम्र से ही बच्चों को टेबल मैनर्स सिखाएं, ताकि घर में या घर बाहर जाकर आपको शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े.

घर से करें शुरुआत

कई बच्चों को नैपकिन व नाइफ का इस्तेमाल करना नहीं आता. तो कुछ बच्चों को खाना खाने वक्त जोर से आवाज करने की आदत होती है. पेरैंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चे को रेस्तरां, सामाजिक आयोजनों में ले जाने से पहले टेबल पर बैठने और खाने के तरीकों के बारे में सिखाना चाहिए. नन्हे बच्चों में टेबल मैनर्स और खाने के शिष्टाचार सिखाने की शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए. टेबल मैनर्स का प्रयोग बच्चा घर से बाहर कर सके, इसके लिए उसे पहले घर पर प्रैक्टिस करायें. अगर बच्चा रेस्तरां में या किसी के घर पर कहने की टेबल पर कोई गलती कर रहा है तो उसे वहां डांटें या उस पर चीखे या चिल्लाएं नहीं, घर आकर आराम से प्यार से समझाएं. शुरुआती दौर में ऐसे रेस्त्रां में ले जाएं जहां बहुत ज्यादा भीड़ न हो, ताकि वह आपके द्वारा सिखाये गए टेबल मैनर्स का सहजता से प्रयोग कर सके अगर आपका बच्चा टेबल मैनर्स का पालन करता है तो उसकी तारीफ करें ताकि वह आगे भी उन नियमों का पालन करे. बचपन से बच्चों को टेबल मैनर्स सिखाना बहुत जरूरी है, क्योंकि जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, उसे सोशल गेट टूगेदर में यह मैनर्स उसे आत्मविश्वास दिलाएंगे.

जरूरी टेबल मैनर्स

– अपने बच्चे को सिखाएं कि किस तरह उन्हें छोटे-छोटे टुकड़े तोड़कर, खाने को अच्छी तरह से चबाकर और मुंह बंद करके खाना खाना है साथ ही उन्हें यह भी सिखाएं कि पानी पीते व भोजन करते समय अनावश्यक आवाज न करें. साथ ही बच्चों में ऐसी आदत भी डालें कि वह प्लेट में उतना ही खाना लें जितना खा सकें या पहले थोड़ा ही ले और जरुरत हो तो बाद में ले लें, ताकि खाने को बर्बाद होने से बचाया जा सके.

– खाना खाते समय किस बर्तन में क्या खाना है इसकी जानकारी भी शुरुआती उम्र से ही बच्चों को दें, जैसे सूप के लिए बड़े चम्मच और डेजर्ट के लिए छोटे चम्मच और  ग्रेवी वाली डिश के लिए कटोरी का इस्तेमाल करना सिखाएं.

– बच्चों को यह भी सिखाएं कि अगर उन्हें खाने की कोई चीज टेस्टी लगती है तो उन्हें उसे बनाने वाली कि तारीफ किस तरह करनी चाहिए. साथ ही अगर कोई चीज उन्हें अच्छी न लगे तो किस तरह विनम्रतापूर्वक यह बताना है कि उन्हें वह डिश पसंद नहीं आयी.

– बच्चो को बताएं कि अपने घर में भी और किसी और के घर में भी खाना खाने के बाद वे अपनी प्लेट खुद उठाकर सिंक में रखें .

– किसी भी रेस्टोंरट में जाने पर बच्चों को नैपकिन का यूज करना सिखाएं. नैपकीन का यूज मुंह या हाथ पोंछने के लिए ही करें.

– बच्चों को टेबल पर बैठने के  मैनर्स भी सिखाएं. उन्हें बताएं कि हाथों को टेबल पर रखें. उन्हें यह भी बताएं कि खाना खाते वक्त आपके हाथों की पोजीशन ऐसी हो कि साथ बैठे लोगों को दिक्कत नहीं आए.

– उसे बताएं कि वह खाना खाते समय बात न करे. बच्चे को सिखाएं कि वह भोजन करते समय नाइफ को राइट और फॉक को लेफ्ट हेंड से पकड़े. खाना खत्म होने के बाद पानी के गिलास में हाथ न धोएं. अगर वे खाना खा चुके हों तब भी तुरंत बाद टेबल से नहीं उठें. सबके भोजन समाप्त होने का इंतज़ार करें.

– अपने बच्चे को घर पर शुरुआत से ही अलग-अलग तरह की कटलरी का प्रयोग करना सिखाएं. खास कर चम्मच या छुरी से खाना, कई बार किसी किसी पार्टी में छुरी कांटे  से  ही खाने का ऑप्शन होता है. बच्चे को प्लेट से भोजन को चम्मच से मुंह के पास ला कर खाना खाने को कहें. उसे बताएं कि अगर डाइनिंग टेबल पर उसे कोई डिश चाहिए तो पास बैठे व्यक्ति से वह डिश पास करने को कहे न कि टेबल के दूसरी ओर हाथ बढ़ा कर खुद लेने की कोशिश करे.

– बच्चे को सिखाएं कि अगर वह किसी के घर पार्टी पर जाता है और उसे कोई खाने की कोई चीज़ पसंद आती है तो वह मेजबान को थैंक यू बोले और उस की तारीफ अवश्य करे. साथ ही उसे यह भी सिखाएं कि यदि उसे कोई डिश पसंद नहीं आती तो उसके लिए खराब कमेन्ट न दे. ऐसा करना बैड मैनर्स माना जाता है.

समर स्पेशल : बनें स्मार्ट पेशेंट

बदलती जीवनशैली और अनियमित खानपान के चलते आज हर शख्स डाक्टर की शरण में पहुंच जाता है. मुश्किल तब पैदा होती है जब हम अपनी नासमझी से डाक्टर को अधूरी, गलत या दिग्भ्रमित जानकारी दे कर बरगलाने की कोशिश करते हैं बगैर अपने नुकसान की परवा किए. ऐसे में समुचित व सही इलाज के लिए स्मार्ट पेशेंट कैसे बना जाए, बता रही हैं वीना सुखीजा.
आप स्मार्ट पेशेंट हैं तो दब्बू नहीं हो सकते. आप को उच्चकोटि का शरलौक होम्स होना होगा. होम्स की तरह स्मार्ट पेशेंट अक्लमंदी भरे प्रश्न पूछते हैं. उन्हें बारीक मैडिकल परिभाषाओं को जानने की जरूरत नहीं है लेकिन उन्हें अपनी सेहत के बारे में बुनियादी बातों को जानने का प्रयास तो करना ही होगा. आखिरकार अपने स्वास्थ्य की सफलता के लिए आप ही सब से जिम्मेदार व्यक्ति हैं, इसलिए आप अपना सही व अच्छा इलाज कराना चाहते हैं तो आप को स्मार्ट पेशेंट बनना पड़ेगा.
परेशानी को बयान करें
जब आप डाक्टर से अपने स्वास्थ्य इतिहास या समस्या की व्याख्या कर रहे हों तो अपने साथ अपने जीवनसाथी या पार्टनर को अवश्य रखें. बहुत से ऐसे प्रश्न हैं जिन का जवाब सिर्फ पार्टनर ही दे सकता है. मसलन, सोते समय आप कितनी बार सांस लेना बंद कर देते हैं. लेकिन डाक्टर की छठी इंद्रिय से सावधान रहें. जब आप डाक्टर को बताते हैं कि आप बामुश्किल ही तली हुई चीजें खाते हैं या आप सैन्य अनुशासन की तरह कोलैस्ट्रौल कम करने वाली दवाएं लेते हैं, तो आप का पार्टनर अपनी लुक से ही डाक्टर को यह संकेत दे देगा कि आप झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर आप के पार्टनर की इस लुक को कभी भी नजरअंदाज नहीं करता. और हां, कभीकभी आप का पार्टनर ही आप के राज को जाहिर करना चाहेगा, इसे प्यार कहते हैं.
आप डाक्टर को बेवकूफ बनाने की कोशिश करेंगे तो डाक्टर आप की घेराबंदी का भी प्रयास कर सकता है. मसलन, डाक्टर आप से मालूम कर सकता है कि क्या आप 3 मंजिल सीढ़ी चढ़ने में सक्षम हैं. आप हां कहेंगे, अगर आप 80 बरस के या बिस्तर से टिके हुए नहीं हैं. फिर डाक्टर आप से मालूम करेगा, ‘आप आखिरी बार 3 मंजिल सीढ़ी कब चढ़े थे?’ आप कहेंगे, ‘शायद 1 माह पहले.’ और आप का पार्टनर ऐसी लुक देगा जो डाक्टर से कहेगी, जब से शादी हुई है तब से आप कौन से 3 माले चढ़े हो?’
सच या नतीजे
डाक्टर को अपनी बात बताते हुए आप यकीनन सच को थोड़ा मोड़ देते हैं. ये अच्छा और बुरा आप स्वयं ही करते हैं. इसलिए डाक्टर आप के दावों को कम या ज्यादा कर के समीक्षा करता है. मसलन, जब आप कहते हैं कि आप दिन में सिर्फ 2 ड्रिंक्स लेते हैं, तो डाक्टर सुनता है कि आप सप्ताह में एक कार्टन पी जाते हैं. जब आप सप्ताह में 2 बार कसरत करते हैं, तो डाक्टर सुनता है कि आप बामुश्किल ही कभी कसरत करते हैं. जब आप कहते हैं कि आप दिन में दोचार ही सिगरेट पीते हैं, तो डाक्टर सुनता है कि आप दिनभर में सिगरेट का पूरा पैकेट पी जाते हैं. जब आप कहते हैं कि आप का जौब तनावपूर्ण है तो डाक्टर सुनता है कि आप की जौब की वजह से आप को हार्ट अटैक हो जाएगा. जब आप कहते हैं कि दौड़ने पर आप की सांस फूल जाती है तो डाक्टर सुनता है कि 5 सीढि़यां चढ़ने पर ही आप हांफने लगते हैं. जब आप कहते हैं कि आप डाक्टर के पास नियमित चैकअप के लिए आते रहेंगे और कभी भूलेंगे नहीं तो डाक्टर सुनता है कि आप उस समय उस के पास लौटेंगे जब आप के बच्चे जवान हो जाएंगे.
नर्सें सब जानती हैं
आप यह जानना चाहते हैं कि कौन सा डाक्टर सब से अच्छा है तो सब से बड़े स्थानीय अस्पताल की आईसीयू नर्स से बात करें. अगर उस अस्पताल में मैडिकल शिक्षा भी दी जाती है तो ज्यादा अच्छा है. नर्सें क्योंकि डाक्टरों को दिनरात देखती हैं, इसलिए उन्हें मालूम होता है कि डाक्टर अच्छा है या खराब. अगर आप अस्पताल में किसी मरीज को देखने गए हैं तो वह अच्छा समय होता है नर्स से बात करने का.
नर्स अगर व्यस्त नहीं है और उस के पास समय है तो आप शालीनता से उस के पास जा सकते हैं और डाक्टर के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं. नर्स आप से कह सकती है, ‘सच कहूं तो डाक्टर गिरि बहुत ही सनकी हैं. हर कोई उन से नफरत करता है. लेकिन अगर आप को कोई गंभीर परेशानी है तो उन से अच्छा कोई डाक्टर नहीं है.’ मैडिसिन के क्षेत्र में इस किस्म की समीक्षा असामान्य नहीं है.
फार्मासिस्ट से दोस्ती कर लें
आप का फार्मासिस्ट सब से सस्ता स्वास्थ्य स्रोत है जिस तक आप आसानी से पहुंच सकते हैं. किसी छोटे मैडिकल स्टोर पर एक फार्मासिस्ट से व्यक्तिगत संबंध स्थापित करना आसान प्रतीत होता है, लेकिन स्मार्ट पेशेंट सुपर स्टोर के फार्मासिस्टों से भी अच्छे संबंध स्थापित कर लेते हैं. आप जब चाहें, बिना किसी अपौइंटमैंट के, फार्मासिस्ट से संपर्क कर सकते हैं और मुफ्त की सलाह ले सकते हैं. आप के फार्मासिस्ट को गजब की जानकारी होती है, जिसे आप भी आसानी से हासिल कर सकते हैं. बहुत से फार्मासिस्टों को नई तकनीक की भी जानकारी होती है जो आप के बहुत से सवालों का उत्तर दे सकते हैं, जैसे क्या इस नई दवा को लेना सुरक्षित होगा? इस के अलावा फार्मासिस्ट उन रोगियों को भी जानता है जो आप जैसे ही रोग से पीडि़त हैं और अलगअलग किस्म की दवाएं लेते हैं. उस तरह फार्मासिस्ट को यह जानकारी होती है कि किस का इलाज सही हो रहा है और कौन साइड इफैक्ट की शिकायत कर रहा है. फार्मासिस्ट यह भी जानते हैं कि कौन से साइड इफैक्ट्स गंभीर हो सकते हैं.
इस सिलसिले में यह बात विशेष रूप से ध्यान रखें कि मैडिकल स्टोर के कर्मचारी से बात न करें बल्कि वहां जो बी फार्मा ग्रेजुएट है, उस से ही बातचीत व दोस्ती करें.
इंतजार करें
जब आप टैस्ट रिजल्ट्स के लिए उतावले हों तो सोचें नहीं. कोई खबर अच्छी नहीं होती. बहुत से रोगी इंतजार करते हैं कि टैस्ट के नतीजे बताने के लिए डाक्टर उन्हें कौल करेगा या वे अंदाजा लगाते हैं कि डाक्टर की खामोशी का अर्थ सबकुछ ठीक है. स्मार्ट पेशेंट हमेशा मालूम करते हैं कि टैस्ट के नतीजे कब आएंगे और वे उसी दिन ही डाक्टर के पास जाते हैं.
पेथोलौजी लैब से नतीजे समय से नहीं आ रहे हैं तो फिर यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उसे अपने टैस्ट के बारे में याद दिलाएं. यह भी हो सकता है कि जो लैब से रिपोर्ट आई हो वह खो गई हो. और व्यस्त क्लिनिक में रिकौर्ड 1-2 दिन हमारी बिना जानकारी के भी पड़े रह सकते हैं. इसलिए जैसे ही समय हो जाए फौरन फोन उठाएं और टैस्ट नतीजों के बारे में मालूम कर लें.
पिछली बातों से सीखें
क्या आप ने कभी यह सोचा कि जब आप के किसी करीबी का निधन होगा तो आप उस की अटौप्सी कराएंगे? इस बारे में कम ही सोचा जाता है. हालांकि अटौप्सी कराना महंगा पड़ता है लेकिन उस से मिलने वाली जानकारी आप के लिए बहुत लाभकारी हो सकती है. मसलन, अगर आप को यह मालूम पड़े कि आप के पिता का निधन 82 वर्ष की आयु में हुआ और उन्हें प्रोस्टेट कैंसर पिछले 32 वर्ष से था, तो आप इस रोशनी में स्वयं अपनी देखभाल बेहतर तरीके से कर सकते हैं. अटौप्सी कराने का केवल यही अर्थ नहीं होता कि मृत्यु की वजह संदिग्ध है या उस में कोई गड़बड़ की गई है.
सर्जरी की आवश्यकता है
अगर जरूरत सर्जरी की है तो विशेषज्ञों के विशेषज्ञ को तलाश करें. आप को सिर्फ उस डाक्टर की जरूरत नहीं है जो एक किस्म की सर्जरी करने में सहजता महसूस करता है. आप को ऐसा सर्जन चाहिए जो उस तकनीक पर फोकस करता है जिस की आप को जरूरत है.
आजकल एक सर्जन एक विशेष किस्म की सर्जरी में इतना अनुभव व महारत हासिल कर लेता है कि उस के रोगियों को कोई शिकायत का मौका ही नहीं मिलता. अपने नियमित डाक्टर से मालूम करने के अलावा इंटरनैट या जानकार लोगों से मालूम करें कि आप को जो सर्जरी करानी है उस का माहिर कौन है. आप को बस यह उम्मीद करनी चाहिए कि वह माहिर सर्जन पास के ही अस्पताल में हो ताकि आप को ज्यादा दूर न जाना पड़े.
लिविंग विल कस्टमाइज करें
लिविंग विल हालांकि दो शब्द हैं लेकिन उन्होंने आजकल इतनी ही दिलचस्पी उत्पन्न कर रखी है जितनी किसी जमाने में लाइफ इंश्योरेंस ने की थी. 2005 में जब ब्रेन डेड टैरी शिआवो की बहस दुनियाभर में छिड़ी तो लिविंग विल भी फैशन में आ गई. खासकर उन व्यक्तियों में भी जो अभी 40 वर्ष के भी नहीं हुए हैं. लेकिन ऐसी कोई लिविंग विल नहीं है जो सभी पर समान रूप से लागू होती हो.
लिविंग विल का अर्थ है कि आप जिंदा रहते हुए अपनी वसीयत बना दें. अगर स्थितियां त्रासदी की ओर चली जाएं तो आप अपने लिए बोल नहीं सकते. इसलिए अस्पताल के स्टाफ को पहले ही बतला दें कि आप किस तरीके को बाद में स्वीकार करना पसंद करेंगे और किस को नहीं, जैसे:
आर्टिफिशियल ब्रीदिंग:यह वेंटीलेटर नामक मशीन के जरिए आप के फेफड़े में हवा पंप करने का तरीका है.
आर्टिफिशियल फीडिंग : अगर आप स्वयं खा नहीं सकते तो आप को पौष्टिक तत्त्व आईवी या ट्यूब के जरिए दिए जाते हैं जिसे आप के पेट तक पहुंचा दिया जाता है. कुछ रोगी सिर्फ सुविधा के लिए इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ऐसा करना कुछ खास अच्छा नहीं है. बेहतर यही है कि अगर आप स्वयं खा सकते हैं तो आर्टिफिशियल फीडिंग के बजाय खुद ही खाएं.
कार्डियोपल्मोनरी रीसक्शन (सीपीआर) : यह नाटक आप ने टीवी सीरियल्स व फिल्मों में देखा होगा जहां अस्पताल की टीम रोगी के हृदय को जीवित करने का प्रयास करती है, जब वह सांस लेना बंद कर देता है. अगर आप ने सीपीआर न इस्तेमाल करने की वसीयत की है तो ही इस का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा वरना डाक्टर आप को जिंदा करने का प्रयास इस के जरिए जरूर करेंगे. ध्यान रहे कि टीवी सीरियल की तरह सीपीआर में 99.99 प्रतिशत जीवित होने की संभावना नहीं होती है. फिर भी डाक्टर अपनी तरफ से भरपूर प्रयास करते हैं.
अगर आप इस गाइड के अनुसार अपना इलाज कराएंगे तो विशेषज्ञों का कहना है कि आप का इलाज सही भी होगा और सस्ता भी.

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