लेखिका- छाया श्रीवास्तव
लेखिका- छाया श्रीवास्तव
‘‘ऐसा नहीं कहते, बेटा,’’ साधना ने आगे बढ़ कर रज्जू के होंठों पर हथेली रखते हुए कहा, ‘‘तेरे पापा तो देवता हैं, बेटे. हमारे सुख के लिए निर्वासित सा जीवन बिता रहे हैं. हम सब मिल कर इस बार तेरे पापा से साफ कह देंगे कि या तो हमें साथ ले चलें या नौकरी छोड़ कर यहां चले आएं. रज्जू, मेहनत की तो तुम भी लैक्चरर बन ही जाओगे.’’
रज्जू ने मां से पैसे ले, आज्ञानुसार पर्स में रख और मुसकराता हुआ चल दिया.
साधना गृहस्थी के कामों में व्यस्त हो जाना चाहती थी, क्योंकि उस के पास यही तो एक तरकीब थी, जिस से श्रीकृष्ण शर्मा की मचलती स्मृतियों को समझाया करती थी. उस ने सिटकनी लगा दी. रज्जू के पिता की तसवीर को स्नेहपूर्वक आंचल से साफ किया और नतमस्तक खड़ी हो गई. उस की आंखें श्रद्धावश स्वत: ही मूंदने लगीं. सपने उमड़नेघुमड़ने लगे. उसे अब तक का सबकुछ चलचित्र सा तैरने लगा. उस के समक्ष, श्रीकृष्ण का रस भीगा मादक स्वर लहराया, ‘‘साधना, रज्जू को यह अहसास तक न हो कि तुम उस की मां नहीं हो. औलाद का सुख और विमाताओं के व्यवहारगत दुख को सुन कर, मैं तो दूसरी शादी के लिए कतई तैयार नहीं हूं, साधना आज से रज्जू और दोनों बच्चों की तमाम जिम्मेदारियां तुम्हें सौंप कर, मैं मुक्त होता हूं… इसी आशा के साथ तुम कभी भी मेरे विश्वास को आहत न होने दोगी.’’
‘‘अब आप के विश्वास की रक्षा करना ही तो मेरा धर्म है. आप ने जो किया है, वह तो कोई अपने सगों के लिए भी नहीं करता,’’ वह केवल इतना ही बोल पाई थी.
समय कब आया, कब गया, उस को पता तक नहीं चल पाया, क्योंकि उस का सारा ध्यान तो श्रीकृष्ण के विश्वास की रक्षा में संलग्न रहा. रज्जू, दीपू, मंजू को किसी भी तरह के अभाव का एहसास नहीं होने दिया.
श्रीकृष्ण पूरी तरह आश्वस्त हो चले थे कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं हो सकती. और शायद तभी करीबकरीब दो साल पहले उन्होंने खुश हो कर कहा था, ‘‘साधना यह देखो, यह और्डर, तुम्हें याद होगा, कुछ माह पहले मैं ने दिल्ली के एक कालेज में प्रोफैसर की जगह के लिए इंटरव्यू दिया था, वह मुझे मिल गया है. सब तुम्हारे आने से ही हुआ है.
“साधना, वरना जिंदगीभर मैं इस प्राइवेट कालेज में ही सड़ता रहता.’’
‘‘कब तक ज्वाइन करना है?’’ वह बमुश्किल अपनी खुशी को दबाते हुए बोली.
‘‘बस, इसी सप्ताह में.’’
वह असमंजस में पड़ गई कि इतनी जल्दी यहां का सबकुछ कैसे समेटा जा सकेगा. दुविधापूर्ण स्थिति भांप कर वह बोले, ‘‘क्या सोच रही हो, नहीं ज्वाइन करूं यह नौकरी?’’
‘‘नहीं, नहीं, यह बात नहीं है. भला ऐसी नौकरी बारबार मिलती है? मैं तो सोच रही थी कि इतनी जल्दी यह सब कैसे हो सकेगा? रज्जू को कालेज से निकालना होगा, दीपू और मंजू को स्कूल से… इस अपने मकान की भी व्यवस्था करनी होगी, क्योंकि आजकल के किराएदार तो…’’
‘‘लेकिन साधना, अभी तो मुझे अकेले ही जाना है,’’ बात काट कर वह बोले.
‘‘बच्चों की पढ़ाई है, मकान की देखभाल है और… मैं एकदो माह में आताजाता रहूंगा ही, भला भोपाल और दिल्ली में फासला ही क्या है, बैठे कि 12 घंटे में यहां से वहां, वहां से यहां. इस पत्र के बाद जैसे ही मकान की व्यवस्था होगी, हम वहां चले जाएंगे.’’
श्रीकृष्ण का आदेश, भगवान का आदेश, अत: वह बोलती भी क्या. मन श्रद्धा से भर गया कि उस के वह वास्तव में कितने महान हैं, जो पत्नी, बच्चों के सुख के निमित्त इतनी दूर अकेले जा रहे हैं. पहली बार दो माह में आए थे. सब के लिए ढेर सारी चीजें भी लाए थे, लेकिन मकान न मिलने की शिकायत करते हुए बोले थे, ‘‘सच, साधना, तुम्हारे और बच्चों के बिना एकएक दिन वर्षों सा लगता है. बच्चों की इतनी याद आती है कि अकसर सबकुछ बरदाश्त करना पड़ता है. सबकुछ.’’
धीरेधीरे आने का समय लंबा होता गया और मकान न मिलने का जिक्र भी.
अकसर अड़ोसपड़ोस के लोग और जो नए दोस्त बने थे, वे भी पति के इस त्याग की सराहना करते हुए कहते हैं कि भई डाक्टर शर्मा आदमी के रूप में फरिश्ता हैं, फरिश्ता, जो अपने परिवार के लिए समस्त सुखों को इस प्रकार तिलांजलि दे कर बाहर पड़े हैं.
पति की इस तरह प्रशंसा सुनसुन कर साधना का मन पुलकित हो जाता है, क्योंकि उन की प्रशंसा में उस को अपनी प्रशंसा का भी तो अहसास होता है.
साधना उद्विग्न हो चली. उस के कोमल हृदय से कई शंकाएं आ कर टकराने लगीं. गंभीरता से बोली भी, ‘‘रज्जू, एमएससी में प्रथम श्रेणी मिलने की खबर पापा को, मेरा मतलब, अपने पापा को दी? कितनी खुशी होगी यह जान कर कि उन के रज्जू ने यूनिवर्सिटी में टौप किया है.’’
‘‘माफ करना, मां, पापा को खबर देना तो भूल ही गया मैं.’’
इस बार साधना खीज कर बोली, ‘‘तुम्हें याद रहता ही क्या है, रज्जू? उस दिन पर्स रखवाए.”
‘‘मां, उस दिन तो मैं ने पापा को मैसेज तो दे दिया था,’’ नम्रता से बोला रज्जू, ‘‘लेकिन, अपनी सफलता की बात मैं पापा को आप के मुंह से कहलवाना चाहता था यहां आने पर, क्योंकि मेरी इस सफलता का सारा श्रेय आप को है, मां.’’
इस बार साधना उदास हो कर बोली, ‘‘लेकिन, तेरे पापा अब शायद ही आएं. गरमी की छुट्टियां तो…’’
‘‘पापा को किसी विशेष काम की व्यस्तता होगी, मां,’’ रज्जू ने भाईबहन की तरफ देख कर कहा. ‘‘आप, तो बेकार चिंतित रहती हैं.’’
‘‘ऐसी भी क्या व्यस्तता, रज्जू, कि बच्चों को ही भूल जाएं.’’
मां की रोआंसी आवाज से रज्जू जमीन ताकने लगा. मां की व्यथा उस की अपनी व्यथा थी. लेकिन वह कर भी क्या सकता था?
‘‘रज्जू बेटे, एक काम करें?’’ साधना ने उस की विचार श्रृंखला को तोड़ते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम ही दिल्ली हो आएं. अभी तो बच्चों की कुछ छुट्टियां बाकी हैं. लगे हाथ आगरा का ताजमहल भी देखते आएंगे. हो सकता है, तुम्हारे पापा वहीं तुम्हारी नौकरी की भी व्यवस्था करवा दें. क्या विचार है?’’
रज्जू को मां का प्रस्ताव बहुत ही अच्छा लगा – काश, ऐसे ही प्रस्ताव मां यदाकदा रखतीं, तो शायद आज उस को इस कदर परेशान नहीं होना पड़ता. दिल्ली और आगरा घूमने की बात सुन कर दीपू, मंजू ने तो सारा घर ही सिर पर उठा लिया. साधना मन ही मन पति मिलन की अदम्य लालसावश शून्य में झांकने लगी, जहां शायद उस के जीवन के विविध चित्र बनतेमिटते जा रहे थे.
रज्जू गंभीर था, जबकि दीपू, मंजू चहक रहे थे. साधना शिकायत करने के लिए, लंबाचौड़ा शिकायतनामा तैयार कर रही थी. शताब्दी ट्रेन की गति तीव्र ही थी, लेकिन प्राय: सभी को उस के धीमेपन का एहसास हो रहा था. न खाने में मन था, न सोने में दिलचस्पी और न ही बतियाने की इच्छा ही.
‘‘रज्जू, अपने पापा को मैसेज दे दिया था न?’’
रज्जू ने चौंक कर कहा, ‘‘हां, मां. पर मां, आप अपना मोबाइल क्यों नहीं…’’ फिर कहताकहता वह रुक गया. वह जानता था कि मां किसी तरह का कागज अपने नाम से नहीं बनवाती थीं.
‘‘तब तो स्टेशन पर आएंगे वह?’’
‘‘आएंगे ही देखो, मां, पता नहीं क्या होता है और क्या नहीं.’’
रज्जू की अटपटी बातों से साधना को जरा गुस्सा आ गया और वह एक तरफ मुंह कर के बैठ गई, सोचती हुई कि शिकायतनामे में एक शिकायत यह भी जोड़नी है कि रज्जू की शादी कर दो, ताकि इस का तीखापन कम हो सके.
नई दिल्ली स्टेशन पर भीड़भाड़ भी थी. लोगों को बाहर निकलने की जल्दी थी. सब की आंखें चुंधिया गईं. महानगर का सजासंवरा विशाल स्टेशन. रज्जू दो बार यहां से वहां तक प्लेटफार्म से प्लेटफार्म चक्कर लगा आया, लेकिन पापा का कहीं पता नहीं था. हताश हो कर वह भी मां के पास आ कर बैठ गया. काफी समय बैठेबैठे ही बीत गया, तो साधना बोली, ‘‘रज्जू, तुम ने अपने पापा को मैसेज तो कर दिया था न, कहीं जल्दीजल्दी में भूल गए हों?’’
इस बार सारी खीज निकालने की गरज से रज्जू बोला, ‘‘आप बातबात पर अविश्वास करने लगी हैं आजकल, यह क्या अच्छी आदत है? यह देखिए, मैसेज फिर?’’
“सुधा कुछ पूछना चाह रही थी. अब आप हमारे पड़ोसी हैं, आप को तो इस की मदद करनी ही पड़ेगी,’’ मम्मी का मातृत्व सुधा के लिए था.
‘‘जी… बिलकुल. वैसे तो सुधा स्वयं ही बहुत होशियार है, पर फिर भी यदि उसे मेरी मदद की जरूरत होगी, तो मैं जरूर करूंगा.”
मम्मी मौन हो गईं. वे चाहती थीं कि अब आगे सुधा ही बोले.
‘‘जी… मैं आप से माफी मांगने आई हूं. अनजाने में मैं ने आप के लिखे लेख को ही आप के सामने बोल दिया,’’ सुधा का सिर झुका था.
कमिल को सुधा का यों संस्कारित रूप बहुत अच्छा लगा.
‘‘नहीं, मैं पहले भी बोल चुका हूं कि इस में माफी मांगने जैसा कुछ नहीं है.’’
‘‘पर, फिर भी.’’
कमिल उठते हुए बोला, ‘‘मैं चाय बनाता हूं.’’
‘‘नहीं, हमें कुछ नहीं पीना. आप बैठिए,’’ सुधा समझ गई थी कि कमिल इस विषय पर बात नहीं करना चाह रहे हैं.
‘‘चाय तो पीनी ही पड़ेगी. आप लोग पहली बार मेरे घर… नहीं, कमरे पर आए हैं,’’ कमिल ने उठ कर स्टोव जलाना शुरू कर दिया था.
‘‘आप बैठिए, मैं चाय बना देती हूं,’’ सुधा उस के करीब पहुंच चुकी थी.
चाय सुधा ने ही बनाई.
लौटते समय सुधा की मम्मी कमिल को शाम का खाना उन के यहां खाने का निमंत्रण दे गईं.
उन दोनों के बीच बातों का सिलसिला प्रारंभ हो चुका था. धीरेधीरे रिश्ते अनौपचारिक होते चले गए. कमिल अकसर सुधा के घर ही खाना खाता या सुधा खाने का डब्बा ले कर उस के कमरे पर आ जाती.
कमरे की एक चाबी अब सुधा के पास रहने लगी थी. शाम को जब कमिल लौटता, तो उसे अपना कमरा सजासंवरा मिलता. वह समझ जाता कि सुधा ने कालेज से लौटने के बाद यहां साफसफाई की होगी. कई बार तो सुधा उस के कमरे में उस का इंतजार करती मिलती.
‘‘आज लेट क्यों हो गए आप…?’’ सुधा के प्रश्न में उस का अधिकार नजर आता.
‘‘अरे, वह एक प्रैस कौंफ्रैंस में जाना पड़ा…’’
जब तब कमिल कपड़े बदल कर मुंहहाथ धोता, तब तक सुधा उस के लिए चाय बना देती.
‘‘तुम्हारे हाथों की चाय में अजीब सी मिठास आती है,’’ कमिल ऐसा सच ही कहता था. यह सुन कर सुधा के चेहरे पर आत्मीय मुसकान आ जाती.
सुधा का परिवार कमिल को अपने परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकार कर चुका था. सुधा और उस के बीच में एक अव्यक्त रिश्ता महसूस होने लगा था.
वैसे तो महल्ले में शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जहां कमिल का आनाजाना न हो. घर के बुजुर्गबच्चे यहां
तक कि महिलाएं तक कमिल को अपने परिवार का सदस्य ही मानते थे. कमिल हरेक के सुखदुख में उन के साथ होता. पड़ोस की एक आंटी के घर बिटिया की शादी की रस्म तब तक शुरू नहीं हुई, जब तक कि कमिल वहां आ नहीं गया था.
‘‘मैं ने कहा था न आंटी कि मुझे देर हो जाएगी, पर आप भी…’’
आंटी ने कमिल के कान खींचे, “बहन की शादी है और साहब औफिस में बैठे हैं…’’
सुधा के लिए कमिल अब हवापानी से ज्यादा जरूरी हो गया था. अकसर वह कमिल के साथ ही कालेज जाती. यहां तक कि बाजार भी जाना हो तो कमिल का ही इंतजार करती.
‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि अपनी जरूरतों की चीजें खुद खरीदा करो… मेरा इंतजार मत किया करो…. मैं महिलाओं के चक्कर में पड़ कर अपना समय खराब नहीं करना चाहता… समझी न…’’
कमिल वाकई झल्ला पड़ता, पर सुधा हंसती रहती, ‘‘मैं क्या करूं… सड़क पर खड़े किसी भी व्यक्ति के साथ बाजार चली जाऊं… फिर तुम ही कहोगे कि कैसे आवारा सी घूमती फिरती हो…’’
ऐसा सुन कर कमिल हाथ जोड़ लेता.
‘‘अब चलो जल्दी से. मुझे एक आर्टिकल भी लिखना है,’’ कमिल की मोटरसाइकिल पर बैठ कर सुधा बाजार चली जाती.
‘‘आंटी, जरा सुधा को समझा लो. बाजार में लगभग 2 घंटे लगा दिए. मेरा तो समय ही बेकार कर दिया. मुझे कितना जरूरी आर्टिकल लिखना था.’’
यह सुन कर आंटी हंस पड़तीं, ‘‘मैं तुम्हारे झगड़े में नहीं पड़ने वाली.’’
कमिल रामलीला के मंचन से अपनेआप को दूर रखना चाहता था, पर महल्ले की कमेटी उसे ऐसा करना नहीं देना चाहती थी.
कमिल के बिना महल्ले में पत्ता भी हिल जाए, यह तो संभव है नहीं, फिर इतनी बड़ी रामलीला में कमिल दूर रहे, यह कैसे हो सकता है.
बेमन से कमिल ने निर्देशन का काम अपने हाथ में ले लिया था, ताकि वह इस में सहभागी भी रहे और काम का बोझ भी न रहे. पर, सुधा ने सब गड़बड़ कर दिया.
राम का अभिनय कमिल के सिर पर आ कर बैठ गया, तो उसे ज्यादा समय इस के लिए निकालना पड़ रहा था. ऊपर से सुधा सिर पर सवार रहती. उसे भी अभिनय सिखाना पड़ता. इस के बाद भी वह राम की जगह कमिल बोल देती. वह सिर पकड़ कर बैठ जाता.
‘‘सिर दुखने लगा क्या… सिर में इतनी खाली जगह रखोगे तो वह दुखेगा ही, मेरी तरह कुछ नहीं तो भूसा ही भर लो. कम से कम दुखेगा तो नहीं,’’ सुुधा उसे चिढ़ाने का प्रयास करती.
‘‘मैं तुम्हारी चोटी पकड़ कर तुम्हें मारीच बना दूंगा, पगली कहीं की.’’
‘‘चलो, अच्छा है, इस बहाने तुम मुझे छू तो लोगे और वैसे भी महिलाओं को शूर्पणखां बनाया जाता है, मारीच नहीं,’’ ऐसा कह सुधा हंस पड़ती.
सुधा की कालेज की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. सुधा उस के साथ ही अखबार के दफ्तर में काम करने लगी थी. कमिल ने उसे बहुत समझाया था कि पत्रकारिता बहुत आसान काम नहीं है, पर वह नहीं मानी थी. सच तो यह है कि वह इसलिए भी इस काम को करना चाह रही थी कि उसे कमिल के साथ ज्यादा वक्त बिताने को मिलेगा और मिल भी रहा था. कमिल जहां जाता, मजबूरन उसे सुधा को भी साथ ले कर जाना पड़ता.
जब से सुनील शर्मा इस दफ्तर में प्रमोशन ले कर आए हैं तब से वे कभी चपरासी गणेशी से पानी नहीं मंगाते हैं. वे खुद ही उठ कर पी आते हैं, चाहे मेज पर कितना भी काम हो.
गणेशी कई दिनों से सुनील शर्मा की इस आदत को देख रहा था. आज भी जब वे पानी पी कर अपनी मेज पर आ कर बैठे तब गणेशी आ कर बोला, ‘‘बाबूजी, एक बात कहूं…’’
‘‘कहो,’’ सुनील शर्मा ने नजर उठा कर गणेशी की तरफ देखा.
‘‘जब से आप आए हो, उठ कर पानी पीते हो.’’
‘‘हां, पीता हूं,’’ सुनील शर्मा ने सहजता से जवाब दिया.
‘‘आप मुझे आदेश दे दिया करें न, मैं पिला दिया करूंगा. आखिर मेरी ड्यूटी पानी पिलाने की ही है,’’ गणेशी ने सवालिया निगाहों से पूछा.
‘‘देखो गणेशी, मेरा उसूल है कि अपना काम खुद करना चाहिए,’’ सुनील शर्मा ने अपनी बात रखी.
‘‘ऐसी बात नहीं है बाबूजी, आप मेरे हाथ का पानी पीना नहीं चाहते हैं,’’ गणेशी ने यह कह कर गुस्से से सुनील शर्मा को देखा.
सुनील शर्मा तुरंत कोई जवाब नहीं दे पाए. गणेशी फिर बोला, ‘‘मगर, मैं सब जानता हूं बाबूजी, आप मेरे हाथ का पानी क्यों नहीं पीना चाहते हैं.’’
‘‘क्या जानते हो?’’
‘‘मैं अछूत हूं, इसलिए आप मेरा दिया पानी नहीं पीना चाहते हो.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है गणेशीजी, मैं छुआछूत को नहीं मानता हूं.’’
‘‘फिर मुझ से पानी मंगा कर क्यों नहीं पीते हो?’’
‘‘देखो गणेशीजी, आप चपरासी हो. मैं जब से इस दफ्तर में आया हूं, किसी को आप ने अपनी मरजी से पानी नहीं पिलाया. जिस बाबू ने पानी पीने के लिए कहा तब कहीं जा कर आप ने पिलाया…’’ समझाते हुए सुनील शर्मा बोले, ‘‘इसी बात को मैं कई दिनों से देख रहा था, जबकि तुम्हारा यह फर्ज बनता है कि बाबुओं को बिना मांगे पानी पिलाना चाहिए.’’
‘‘बाबूजी, जब प्यास लगती है तभी तो पानी पिलाना चाहिए.’’
‘‘नहीं, यही तो आप गलती कर रहे हो. बिना मांगे पानी ले कर हर मेज पर पहुंच जाना चाहिए. यही एक चपरासी का फर्ज होता है…’’ समझाते हुए सुनील शर्मा बोले, ‘‘यही वजह है कि मैं खुद उठ कर पानी पीता हूं. आप ने आज तक अपनी मरजी से मुझे पानी नहीं पिलाया है.’’
‘‘अरे बाबूजी, आप ही पहले ऐसे आदमी हो वरना सभी बाबू मांग कर पानी पीते हैं. आप ही ऐसे हैं जो मुझे अछूत समझ कर पानी नहीं मंगाते हो,’’ गणेशी ने आरोप लगाते हुए कहा.
सुनील शर्मा सोच में डूब गए. गणेशी उन की बात का उलटा मतलब ले रहा है. वे कुछ और जवाब दें, इस से पहले ही साहब की घंटी बज उठी. गणेशी साहब के केबिन में चला गया.
सुनील शर्मा मन ही मन झुंझला उठे. पास की मेज पर बैठे मुकेश भाटी बोले, ‘‘शर्माजी, देख लिए गणेशी के तेवर. आप की बात का उस पर कोई असर नहीं पड़ा.’’
‘‘हां भाटीजी, असर तो नहीं पड़ा,’’ उन्होंने भी स्वीकार करते हुए कहा.
‘‘इसलिए मैं कहता हूं कि अपने उसूल छोड़ दो वरना यह आप पर छुआछूत बरतने का केस दायर कर देगा…’’ समझाते हुए मुकेश भाटी बोले, ‘‘फिर कचहरी के चक्कर काटते रहना क्योंकि कानून भी इस का ही पक्ष लेगा.’’
‘‘देखो भाटीजी, मैं तो उस को अपने फर्ज की याद दिला रहा था.’’
‘‘कोई जरूरत नहीं है शर्माजी. जिस को अपना फर्ज समझना ही नहीं है उसे याद दिलाना फुजूल है. उस से बहस कर के खुद का सिर फोड़ना है. फिर मेरा काम था समझाने का समझा दिया. आप अपने उसूलों पर ही रहना चाहते हो तो रहो. कल को कुछ हो जाए, तो फिर मुझे कुछ मत कहना,’’ कह कर मुकेश भाटी अपने काम में लग गए.
सुनील शर्मा के भीतर इन बातों को सुन कर हलचल मच गई. अब पहले वाला जमाना नहीं है. सरकार भी रिजर्वेशन के तहत सब महकमों में इन की भरती करती जा रही है, इसलिए चपरासी से ले कर अफसर तक ये ही मिलेंगे.
जिस परिवार में सुनील शर्मा का जन्म हुआ है, वह ब्राह्मण परिवार है. 1970 के पहले उन का ठेठ देहाती गांव था. छुआछूत का जोर था. किसी अछूत को छूना भी पाप समझा जाता था, इसलिए वे गांव में ही अलग बस्ती में रहते थे.
सुनील शर्मा के पिता गंगा सागर गांव में शादीब्याह कराने और कथा बांचने का काम करते थे. वे यह काम केवल ऊंची जाति वालों के यहां किया करते थे. निचली जाति के लोगों के यहां कर्मकांड के लिए वे मना कर दिया करते थे.
गांव की दलित बस्ती गंगा सागर से बहुत नाराज रहती थी. मगर वे कर कुछ नहीं पाते थे, क्योंकि उन की चलती ही नहीं थी.
जब कोई दलित किसी काम से गंगा सागर के पास आता था, तो वे उन्हें बाहर बिठा कर संस्कार करा देते थे. बदले में वे कुछ सिक्के देते थे, जिन्हें वे जमीन पर ही रखवा देते थे. तब यजमान मखौल उड़ा कर कहते थे, ‘पंडितजी, यह कैसा नियम. मेरे हाथ से नहीं लिया, मगर हाथ से अपवित्र सिक्के को आप ने ग्रहण कर लिया तो अपवित्र नहीं हुए.’
बदले में गंगा सागर संस्कृत में शुद्धीकरण के श्लोक पढ़ कर उसे शुद्धी का पाठ पढ़ा देते थे.
उस समय दलितों में कूटकूट कर अपढ़ता भरी थी. विरोध करने के बजाय वे सबकुछ सच मान लेते थे. गांव में कोई गंगा सागर को दलित दिख जाता, तो वे उस से बच कर निकलते थे.
मगर जैसेजैसे दिन बीतते रहे, छुआछूत की यह परंपरा शहरों में खत्म होने के साथसाथ गांवों में भी खत्म होने लगी थी. अब तो न के बराबर रही है. अब भी कुछ पुराने लोग हैं जो छुआछूत को मानते हैं क्योंकि वे उसी जमाने में जी रहे हैं.
सुनील शर्मा को आज नौकरी करते हुए 32 साल हो गए हैं. इन 32 सालों में उन्होंने बहुतकुछ देख लिया है. रिटायरमैंट में 3 साल बचे हैं. गणेशी जैसे कितने ही लोग हैं जो इस दलित अवसर को भुनाना चाहते हैं. इन को सामान्य वर्ग के प्रति हमेशा से नफरत थी, जो विष बीज बन कर वट वृक्ष
बन गई है. सरकार ने साल 1989 में इन के लिए जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने पर बैन लगा दिया है, तब से ही इन के हौसले बढ़ने लगे हैं.
‘‘अरे शर्माजी, पानी पीयो,’’ इस आवाज से सुनील शर्मा की सारी विचारधारा भंग हो गई.
गणेशी गिलास लिए उन के सामने खड़ा था. उन्होंने गटागट पानी पी कर वापस उसे गिलास थमा दिया.
गणेशी बोला, ‘‘बाबूजी, आप ने मुझे मेरा फर्ज याद दिला दिया.’’
‘‘वह कैसे गणेशीजी?’’ हैरानी से सुनील शर्मा ने पूछा.
‘‘देखिए बाबूजी, अब तक जो मांगता था, उसे ही मैं पानी पिलाता था, मगर आप ने यह कह कर मेरी आंखें खोल दीं कि पानी तो हर मेज पर जा कर पिलाना चाहिए, इसलिए आज से ही मैं ने आप से शुरुआत की है.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छा काम किया गणेशीजी. चलो, मेरी बात पर आप ने गौर तो किया.’’
‘‘हां बाबूजी, अब मुझे किसी को फर्ज की याद दिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ कह कर गणेशी चला गया.
मगर सुनील शर्मा उस में अचानक आए इस बदलाव को देख कर हैरान थे.
श्वेता के ससुराल जाने के बाद उस के मातापिता को अपना खाली घर काटने को दौड़ रहा था.
श्वेता चुलबुली, बड़बोली और खुले दिल की लड़की थी. मम्मी के दिल में एक ही बात खटकती रहती थी कि श्वेता देवधर्म, कर्मकांड वगैरह नहीं मानती थी.
तरहतरह के पकवान हम कभी भी खा, बना सकते हैं, इस के लिए किसी त्योहार की जरूरत क्यों? दीवाली के व्यंजन तो पूरे साल मिलते हैं. हम कभी भी खरीद सकते हैं, इस में कोई समस्या नहीं है? श्वेता की सोच कुछ ऐसी ही थी.
मातापिता को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन उस की ससुराल वालों को होने लगी.
श्वेता का पति आकाश किसी सुपरस्टार की तरह दिखता था. औरतें मुड़मुड़ कर उसे देखती थीं और कहती थीं कि एकदम रितिक रोशन की तरह दिखता है.
श्वेता की सहेलियां उस से जलती थीं. जिम जाने और खूबसूरत दिखने वाले पति के साथ श्वेता की शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी बीत रही थी.
दोनों पर मिलन की एक अलग ही धुन सवार थी.
लेकिन एक दिन आकाश ने उस से बोल ही दिया, ‘‘केवल मेरे मातापिता के लिए तुम रोज पूजा कर लिया करो… प्लीज. प्रसाद के रूप में नारियल बांटने में तुम्हें क्या दिक्कत है. नाम के लिए एक दिन व्रत रखा करो ताकि मां को तसल्ली हो कि उन की बहू सुधर गई है.’’
श्वेता गुस्से में बोली, ‘‘सुधर गई, मतलब…? नास्तिक औरतें बिगड़ी हुई होती हैं क्या? दबाव में आ कर भक्ति करना क्या सही है?
‘‘जब मुझे यह सब करना नहीं अच्छा लगता तो जबरदस्ती कैसी? मैं ने कभी अपने मायके में उपवास नहीं किया है. मुझे एसिडिटी हो जाती है इसलिए मैं कम खाती हूं, 2 रोटी और थोड़े चावल तो व्रत क्यों रखना?’’
श्वेता सच बोल रही थी. लेकिन इस बात से आकाश नाराज हो गया और धीरेधीरे उस ने श्वेता से बात करना कम कर दिया.
जब भी श्वेता की जिस्मानी संबंध बनाने की इच्छा होती तो ‘आज नहीं, मैं थक गया हूं’ कहते हुए आकाश मना कर देता. ये सब बातें अब रोज की कहानी बन गई थीं.
‘‘तुम्हारा मुझ में इंटरैस्ट क्यों खत्म हो गया? तुम्हारी दिक्कत क्या है?’’ श्वेता ने आकाश से पूछा.
बैडरूम में उस का खुला और गठीला बदन देख कर श्वेता का मन अपनेआप ही मचल जाता था, लेकिन आकाश ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘तुम पहले भगवान को मानने लगो, मां को खुश करो, उस के बाद हम अपने बारे में सोचेंगे…’’
‘‘मेरा भगवान, पूजापाठ में विश्वास नहीं है, यह सब मैं ने शादी से
पहले तुम्हें बताया था. जब हम दोनों गोरेगांव के बगीचे में घूमने गए थे… तुम्हें याद है?’’
‘‘मुझे लगा था कि तुम बदल जाओगी…’’
‘‘ऐसे कैसे बदल जाऊंगी. मैं
कोई मन में गुस्से की भावना रख कर नास्तिक नहीं बनी हूं, यह मेरा सालों का अभ्यास है.’’
धीरेधीरे श्वेता और उस की सास के बीच झगड़े होने लगे. श्वेता उन के साथ मंदिर तो जाती थी लेकिन बाहर ही खड़ी रहती थी, जिस पर झगड़े और ज्यादा बढ़ जाते थे.
एक बार सास ने कहा, ‘‘मंदिर के बाहर चप्पल संभालने के लिए रुकती है क्या? अंदर आएगी तो क्या हो जाएगा?’’
श्वेता ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप अपना काम पूरा करें, मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. मैं इन ढकोसलों को नहीं मानती.’’
सास घर लौट कर रोने लगीं, ‘‘मुझ से इस जन्म में आज तक किसी ने ऐसी बात नहीं की थी. ऊपर वाला देख लेगा तुम्हें,’’ ऐसा बोलते हुए सास ने पलभर में एक पढ़ीलिखी बहू को दुश्मन ठहरा दिया.
शाम को आकाश के आने के बाद श्वेता बोली, ‘‘मैं मायके जा रही हूं, मुझे लेने मत आना. जब मेरा मन करेगा तब आऊंगी. लेकिन अभी से कुछ तय नहीं है. मायके ही जा रही हूं, कहीं भाग नहीं रही हूं. नहीं तो कुछ भी झूठी अफवाहें उड़ेंगी.’’
आकाश उस की तरफ देखता रह गया. उस की तीखी और करारी बातों से उसे थोड़ा डर लगा.
श्वेता अपने अमीर मातापिता के साथ जा कर रहने लगी. मां को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन श्वेता ने कहा, ‘‘आप थोड़ा धीरज रखो. आकाश को मेरे बिना अच्छा नहीं लगेगा.’’
आखिर वही हुआ. 15-20 दिन बीतने के बाद उस का फोन आना शुरू हो गया. पत्नी का मायके में रहने का क्या मतलब है? यह सोच कर वह बेचैन हो रहा था. उस का किया उस पर ही भारी पड़ गया. मां के दबाव में आ कर वह भगवान को मानता था.
श्वेता ने फोन काट दिया इसलिए आकाश ने मैसेज किया, ‘मुझे तुम से बात करनी है, विरार आऊं क्या?’
श्वेता के मन में भी प्यार था और उस ने झट से हां कह दिया.
श्वेता ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें भगवान को मानने के लिए कभी मना नहीं किया. पूजाअर्चना, जो तुम्हें करनी है जरूर करो, लेकिन मुझे मेरी आजादी देने में क्या दिक्कत है. तुम्हारी मां को समझाना तुम्हारा काम है. अब तुम बोल रहे हो इसलिए आ रही हूं. अगर फिर कभी मेरी बेइज्जती हुई तो मैं हमेशा के लिए ससुराल छोड़ दूंगी…
इस तरह से श्वेता ने अपनी नास्तिकता की आजादी को हासिल कर लिया.
आप ने सुना होगा ‘हैल्थ इज वैल्थ’. अच्छी हैल्थ के लिए अच्छा न्यूट्रीशन यानी पोषण बहुत जरूरी है. पोषण के लिए संतुलित आहार होना जरूरी है. इस का अर्थ यह है कि हर व्यक्ति को भोजन के सभी न्यूट्रीशंस पर्याप्त मात्रा में मिल सकें ताकि शरीर स्वस्थ रहे. यह तभी हो सकता है जब शरीर को स्वस्थ रखने वाले जरूरी न्यूट्रीशंस का सेवन किया जाए जो इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत कर बीमारियों से लड़ सके.
बात भारत की हो, तो देश में लोगों के भोजन की थाली से न्यूट्रीशंस नदारद रहते हैं. महिलाएं, खासकर, इस की कमी से ज्यादा जूझती हैं. मालूम हो कि न्यूट्रीशन के कारण ही शरीर का विकास होता है. न्यूट्रीशंस से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी बढ़ती है और साथ ही मेटाबौलिक समस्याएं, जैसे डायबिटीज की समस्या और हार्ट संबंधित समस्याओं के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.
अकसर भारत में महिलाओं में न्यूट्रीशंस की कमी होने का बड़ा कारण कम व असंतुलित खाना यानी बचाखुचा बासी खाना खाना है. इस को ले कर मल्टीविटामिन सेंट्रम ब्रैंड हैलोन की टीम ने ‘नो योर माइंड’ कैंपेन चलाया. इस अभियान में महिलाओं में न्यूट्रीशन की दैनिक जरूरत और स्वास्थ्य के लिए जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया गया, ताकि भारतीयों में माइक्रोन्यूट्रीएंट की स्थिति में सुधार लाया जा सके.
हैलोन का मानना था कि परिवारों और समुदायों का स्वास्थ्य महिलाओं पर निर्भर है लेकिन महिलाएं ही हैं जिन का स्वास्थ्य कमजोर रहता है. इस सर्वे के अनुसार, कमजोर हड्डी का स्वास्थ्य, अपर्याप्त रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता और कम ताकत का स्तर का होना भारतीय महिलाओं में मुख्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं.
यह सही भी है. आजकल महिलाएं अपने घर/औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां निभा रही हैं. वे अपने बच्चों, परिवार की डाइट पर पूरा ध्यान देती हैं लेकिन खुद पर ध्यान नहीं रख पातीं. लंबे समय तक हैल्दी डाइट न लेने से महिलाओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है.
महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की इसी कमी को दूर करने के लिए फैडरेशन औफ औब्सटेट्रिक एंड गायनीकोलौजिकल सोसाइटीज औफ इंडिया के साथ साझेदारी में एक पैनल वार्त्ता का आयोजन किया गया जिस में कई जानेमाने डाक्टर शामिल हुए.
माइक्रोन्यूट्रीएंट्स पर्याप्त मात्रा में लेने को प्रोत्साहित करते हुए हैलोन के भारतीय उपमहाद्वीप के मैनेजर नवनीत सलूजा कहते हैं, ““हम महिलाओं को खुद की देखभाल करने के लिए सशक्त बनाना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य इसी बात को उजागर करना है कि स्वस्थ महिलाएं किस प्रकार एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकती हैं. लोगों को ऐसा आहार मिलना मुश्किल हो सकता है जो उन्हें स्वस्थ रहने के लिए उन सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्याप्त स्तर प्रदान करे, जो उन के दैनिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. स्व-देखभाल किसी विशेष व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है.”
हैलोन इंडिया की मार्केटिंग औफिसर अनुरिता चोपड़ा कहती हैं, “महिलाओं की आम स्वास्थ्य समस्याओं को चर्चा में ला कर माइक्रोन्यूट्रीएंट्स सप्लीमैंट्स पर केंद्रित होने से हमें मानवता के साथ प्रतिदिन बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में मदद मिलेगी.”
न्यूट्रीशंस शरीर के लिए जरूरी होते हैं. इस की कमी से शरीर में स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है. आजकल अधिकतर महिलाएं हेयर फौल, हौर्मोनल डिसबैलेंस, शरीर में दर्द, डिप्रैशन और मूड स्विंग की शिकायत करती हैं. पोषक तत्वों की कमी होने पर थकान, कम उम्र में चेहरे पर झुर्रियां, ग्लो न रहना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. ऐसे में यह जान लें कि वे कौन से पोषक तत्त्व हैं जो महिलाओं में इन समस्याओं को जन्म देते हैं.
1.आयरन
भारतीय महिलाओं में आयरन की कमी सब से ज्यादा पाई जाती है. यह मिनरल रेड ब्लड सैल्स के निर्माण और औक्सीजन के परिवहन के लिए आवश्यक है. हेम आयरन वह प्रकार है जो मीट में मौजूद होता है, नौनहेम मांस और सब्जी दोनों स्रोतों में है. हमारा शरीर नौनहेम की तुलना में हेम आयरन को बहुत आसानी से अवशोषित करता है. शाकाहारियों को नौनहेम आयरन और फोर्टिफाइड इंस्टैंट ओटमील के स्रोत के रूप में फलियों को लेना चाहिए.
2.विटामिन डी
विटामिन डी हड्डियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी है. वैसे इस के लिए कुछ देर धूप में रहना अच्छा माना जाता है पर उपयुक्त नहीं. इस के लिए भोजन में ऐसी डाइट लेनी जरूरी है जो इस कमी को पूरा कर सके. जैसे, अपनी डाइट में फैटी फिश जैसे ट्राउट या सैलमन खा सकती हैं.
3. फोलिक एसिड
प्रैग्नैंट महिलाओं में न्यूट्रीशंस की सख्त जरूरत होती है. इस में जो सब से जरूरी पोषक तत्त्व है वह फोलिक एसिड है. यह पहले महीने में न्यूरल ट्यूब डिफैक्ट्स के जोखिम को कम करता है. इस के लिए भोजन में दाल, ब्रोकली, ब्रेड, अनाज को शामिल करना होता है.
4.फाइबर
फाइबर शरीर के डाइजैस्टिव सिस्टम के लिए बहुत अच्छा होता है, जिस में मल त्याग को नियमित रखना भी शामिल है. फाइबर कोलैस्ट्रौल को कम करने और ब्लडशुगर लैवल को स्थिर रखने में मदद करता है. साबुत अनाज में भरपूर मात्रा में फाइबर होते हैं जैसे कि बीन्स. अच्छी मात्रा में फाइबर वाले फलों में कीवी, आम और अमरूद शामिल हैं.
5.मैग्नीशियम
मैग्नीशियम एक ऐसा मिनरल है जो दांतों और हड्डियों के निर्माण में मदद करता है, और यह सैकड़ों एंजाइम प्रतिक्रियाओं में शामिल है. साबुत अनाज, जैसे ओट्स आदि इस का सब से अच्छा स्रोत हैं. अगर आप ओटमील नहीं चाहती हैं तो बादाम अच्छा स्रोत है.
6. पोटैशियम
पोटैशियम हड्डियों, हैल्दी मसल्स, नर्वस और एनर्जी उत्पादन में काम करता है. कच्चे पालक में पोटैशियम की उपयुक्तता अधिक होती है. इस के अलावा संतरे, केले और शकरकंद में भी पोटैशियम होता है, जिन का सेवन आप कर सकते हैं.
7.आयोडीन
दुनियाभर में लगभग 40 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त आयोडीन की कमी का खतरा है. आयोडीन थायराइड के सही कामकाज और थायराइड हार्मोन के उत्पादन के लिए जरूरी मिनरल है. इस से हड्डियों की हैल्थ, शरीर के विकास और ब्रेन के विकास में मदद मिलती है. अपने शरीर में आयोडीन की मात्रा बढ़ाने के लिए डेयरी, फिश या सूखे समुद्री शैवाल का सेवन फायदेमंद है.
यह तो हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है. इसलिए बचपन से ही बच्चों को अच्छी आदतें और व्यवहार सिखाने की जरूरत होती है. क्योंकि साफ-सफाई में रखी गयी जरा सी लापरवाही अनेक रोगों जैसे संक्रमण, एलर्जी का कारण बन सकती है. शेमराक प्रीस्कूल्स की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर एवं शेमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल्स की फाउंडर डायरेक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार “बच्चों में व्यक्तिगत स्तर पर साफ-सफाई की आदत पर कम उम्र से ही ध्यान देने की ज़रुरत होती है.” बचपन से निम्न आदतें अपना कर आप उन्हें साफ सफाई के प्रति सजग बना सकते हैं .
· अपने बच्चे के दिन की शुरुआत हाथ-मुंह धोने से कराएं.
· उन्हें अपने दांत 2 से 3 मिनट तक उचित ढंग से साफ करने को कहें, जिससे उनके दांत कैविटी मुक्त रहें. दिन में दो बार ब्रश करने को उनकी नियमित आदत बनाएं.
· 6 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बच्चों को अच्छी तरह कुल्ला करने की आदत डालें, जिससे उन्हें मुंह और मसूड़े संबंधी समस्याएं नहीं हों.
· उन्हें नियमित तौर पर रोजाना एंटी-बैक्टीरियल साबुन से नहाने के लिए शिक्षित करें.
· उन्हें हर भोजन से पहले और बाद में अच्छी गुणवत्ता के एंटी-बैक्टिरियल साबुन से हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित करें.
· बच्चो को अपने नाखून छोटा रखने को कहें क्योंकि बढे हुए नाखूनो में गंदगी जमा हो जाती हैं जिससे संक्रमण का खतरा रहता हैं.
· खांसते या छींकते समय उन्हें टिशू पेपर का उपयोग करना सिखाएं.
· सुनिश्चित करें कि वे नियमित तौर पर अपने नाखून काटें क्योंकि नाखूनों में ही कीटाणु सबसे ज्यादा पनपते हैं.
· उन्हें धुले, साफ-सुथरे और आयरन किए गए कपड़े पहनने को कहें.
· उन्हें उंगली, पेंसिल, पेन और रबड़ जैसी चीजों को नाक या मुंह में नहीं डालने का निर्देश दें.
जिम्मेदार एवं सतर्क अभिभावकों के तौर पर बच्चे को समझाएं कि खुद को साफ-सुथरा रखने के साथ साथ हमें हमारे घर, मोहल्ले और आस-पड़ोस को भी साफ रखना चाहिए. बच्चों को इस बात का अहसास करना बहुत जरूरी है कि न सिर्फ निजी बल्कि आस पास के वातावरण की साफ-सफाई रखना भी बेहद महत्वपूर्ण है.
· उन्हें कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में ही डालने की आदत डालें .
· अपने बच्चों को उनकी चीजें जैसे खिलौने और किताबें सही जगह रखने की सलाह दें.
· उन्हें सिखाएं कि वे शहर की सड़कों पर कूड़ा-कचरा नहीं डालें. उन्हें बाहर जाते समय हमेशा अपने साथ एक पेपर बैग ले जाने को कहें, जिससे उन्हें कचरा कहीं खुले में नहीं डालना पड़े.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग इलाके में शिवा एम्पायर बिल्डिंग है. बिल्डिंग 10 साल से ज्यादा पुरानी है. 4 मंजिली इस बिल्डिंग के बारे में बताया जाता है कि इस के 2 फ्लोर बनाने का नक्शा पास था लेकिन यहां पर 4 फ्लोर बना डाले गए. लोगों ने फ्लैट खरीद लिए. एलडीए यानी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कभी इस बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया. लोग आराम से रह रहे थे. अचानक प्रयागराज में उमेश पाल और 2 सिपाहियों की हत्या होती है. मसला अतीक अहमद से जुड़ता है. तब यह पता लगाया जाता है कि अतीक के तार कहांकहां तक फैले हैं.
इस क्रम में पुलिस को यह पता चलता है कि शिवा एम्पायर बिल्डिंग को बनाने का काम बिल्डर मोहम्मद मुसलिम ने किया था, जो अतीक का करीबी बताया जाता है. पुलिस और एलडीए सक्रिय हो गईं. जैसे ही पाया कि इस बिल्डिंग में 2 फ्लोर अवैध बने हैं, उन को गिराने का नोटिस दे दिया गया.
यहां रहने वाले परेशान दरदर भटक कर अपनी मजबूरी बयान कर रहे. खरीदने वालों को न तो अतीक से बिल्डर के संबंधों का कुछ पता था न यह पता था कि 2 फ्लोर गलत तरह से बने थे. एलडीए ने अगर बिल्डिंग बनाते समय ही इस को रोका होता तो लोग यहां खरीदते ही नहीं.
कानपुर देहात में मंडौली गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित अपने परिवार सहित झोपड़ीनुमा घर में रहते थे. यह घर सरकारी जमीन पर बना था. इस को तोड़ने के आदेश दिए गए. पुलिस जेसीबी ले कर घर तोड़ने जाती है. झोपड़ी के अंदर कृष्ण गोपाल दीक्षित का बेटा शिवम दीक्षित खड़ा होता है. झोपड़ी में एक तरफ जनरेटर रखा था. शिवम को पुलिस घर से बाहर निकलने को कहती है. कृष्ण गोपाल दीक्षित भी पीछे से हाथ में घासफूस ले कर बाहर निकलते हैं. जैसे ही दोनों लोग झोपड़ी के बाहर निकलते हैं, जेसीबी झोपड़ी को गिराने के लिए बढ़ती है.
ठीक उसी समय कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला दीक्षित ‘आवैं दे…आवै दे…’ कहते झोपड़ी के अंदर आ जाती हैं. पीछे से कृष्ण गोपाल भी वापस झोपड़ी में आ जाते हैं और प्रमिला ‘हम जान दई देबै’ कहते हुए दरवाजा बंद कर लेते हैं. जेसीबी बिना प्रमिला और उस के परिवार को निकाले उन के ऊपर छप्पर गिरा देती है. अंदर आग लग जाती है. कृष्ण गोपाल और बेटा शिवम तो जैसेतैसे बाहर आ जाते हैं पर प्रमिला और उस की 18 साल की बेटी नेहा मकान के अंदर ही जल कर मर जाती हैं. इस तरह की घटनाओं की कमी नहीं है.
सर्वोच्च न्यायलय ने निजी संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार माना है. जिस के तहत यह आदेश है कि अगर किसी के अवैध कब्जे को हटाना है तो पहले उस के रहने के लिए अलग व्यवस्था करनी जरूरी है. कानून कहता है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से किसी जगह पर काबिज है तो उसे हटाया नहीं जा सकता. संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में बदल दिया गया था. 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(ए) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया.
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, लेकिन राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को उस की निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन कर के ही वंचित किया जा सकता है.
संविधान में संपत्ति का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 19 और 31 के अंतर्गत संपत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण का मौलिक अधिकार दिया गया था. इस में साफतौर पर कहा गया था कि सरकार लोक कल्याण के लिए संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है. 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाए जिन से संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध लगा. 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में संपत्ति के अधिकार को संविधान के मूल ढांचे का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान में संशोधन कर के इसे प्रतिबंधित करने का अधिकार है.
जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन 1978 के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल कर संविधान के भाग 12 में एक नए अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 300 में एक सामान्य कानूनी अधिकार के रूप में रखा. उस में कहा गया कि “किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से कानून का पालन करते हुए ही हटाया जाएगा.”
2007 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संपत्ति अर्जित करने का अधिकार यद्यपि मूल अधिकार नहीं है, लेकिन यह संवैधानिक और मानव अधिकार है. किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से संसद, विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि से ही वंचित किया जा सकता है. आज जिस तरह से संपत्तियों पर बुजडोजर चला कर ध्वस्त किया जा रहा उस में इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है.
खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही!
सरकार किस तरह से संपत्ति पर नजर रखती है, इस के तमाम उदाहरण हैं. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर का प्रयोग कर के लोगों की संपत्ति ध्वस्त की जा रही है. इस के बारे में कहा जाता है- ‘खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही’.
अवैध संपत्ति एक दिन में तैयार नहीं होती. जिस समय वह तैयार होती है उस समय किसी का ध्यान नहीं जाता. जैसे ही इस पर सरकार की नजर टेढ़ी होती है, संपत्ति पर बुलडोजर चल जाता है. पुलिस ने 2 साल में 64 गैंगस्टर्स की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है. इस लिस्ट में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की संपत्ति को भी जोड़ दिया जाए तो संपत्ति करीब 3 हजार करोड़ रुपए तक की पहुंच जाती है.
गैंग्स्टर्स की तरफ से अवैध तरीके से हासिल की गई इन संपत्तियों की लिस्ट पूर्वांचल से ले कर पश्चिमी यूपी तक की है. इन में विजय मिश्र, सुशील मूच, सुंदर भाटी, अनुपम दुबे, ध्रुव सिंह, सुनील राठी, बदन सिंह बद्दो आदि मुख्य तौर पर शामिल हैं. मुख्तार अंसारी की 523 करोड़ रुपए की संपत्ति और अतीक अहमद की 413 करोड़ रुपए की संपत्ति को जब्त किया गया. पिछले एक साल के दौरान 1842 करोड़ रुपए कीमत की अवैध संपत्ति को या तो खाली कराया गया है या फिर ध्वस्त किया गया है.
अपराधियों की संपत्ति के अलावा अवैध संपत्ति के नाम से तमाम लोगों के मकान ध्वस्त किए गए हैं. इन में नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. इस तरह से कई लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है. सरकार द्वारा संपत्तियों पर नजर रखने के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रहीं हैं. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिन को कोई छूता भी नहीं है. यह मानमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं वहां ज्यादा हो रहा है.
कैसे संपत्ति पर नजर रखती है सरकार
संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इस की शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गई थी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिन के पास ज्यादा जमीन है उन से ली जाएगी. सरकार ने इस के तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.
छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उन के मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग कर के मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.
केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उन के पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकते हैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उस ने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को ले कर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.
संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इस के फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इस से अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.
जमीन ही नहीं है अकेली संपत्ति
जब संपत्ति की बात होती है तो आमतौर पर केवल हम अपनी जमीन, जायदाद और रूपयोंपैसों, गहनेजेवरों के बारे में सोचते हैं. असल में संपत्ति हमारे मौलिक अधिकार जैसी है. सरकार को यह हक नहीं है कि वह हमारी संपत्ति पर डाका डाले, बुलडोजर लगा कर घर गिरा दे, मनमाने तरीके से संपत्ति को कुर्क कर दे, बिना मंहगाई और बेरोजगारी का ध्यान रखे टैक्स बढ़ा दे.
यह एक तरह की सरकारी डकैती है. इसी तरह से अचानक नोटबंदी की घोषणा, मनमानी जीएसटी और आयकर के नियमों में बदलाव भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी फैसले थे. जनता के पास जो भी जमीन, जायदाद और जेवर हैं वे सब उस की मेहनत की कमाई हैं. उस पर नजर रखना जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करने जैसा है.
ऐसे में अपनी संपत्ति को बचाने के लिए जरूरी है कि संपत्ति का बीमा कराएं जिस से अगर कोई ऐसी घटना हो तो पुलिस और प्रशासन मनमानी न कर सकें. संपत्ति बीमा के साथ ही साथ ज्वैलरी का बीमा भी कराएं जिस से चोरी होने की दशा में मुआवजा मिल सके.
संपत्ति के विवादों में विल यानी वसीयत भी एक प्रमुख दस्तावेज होता है. अपनी जायदाद की वसीयत करा कर रखें. वसीयत रजिस्टर्ड होनी चाहिए. अगर किसी कारणवश वसीयत रजिस्टर्ड नहीं भी है तो उसे बाद में रजिस्टर्ड करा लें. इस से यह कानूनी रूप से मजबूत हो जाती है. जमीन ही नहीं, नोट भी हमारी संपत्ति में आते हैं. सरकार नोटबंदी कर के इन पर नजर रखने का काम करती है.
नोटबंदी ने खत्म किए नोटों पर अधिकार
‘नोटबंदी पार्ट-2’ में जब 2 हजार रुपए का नोट बंद होने की खबर सुनी तो लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाली शालिनी श्रीवास्तव की मां को सब से ज्यादा डर लगा. वे अपनी बेटी से बोलीं, ‘मेरे पास 2 हजार रुपए के कुछ नोट हैं उन का क्या करून?’ उन के मन में 2016 में हुई नोटबंदी के बाद लंबीलंबी लाइनों का खौफ दिखने लगा. वे इस प्रयास में थीं कि कितनी जल्दी ये नोट बदल जाएं. पहली नोटबंदी के समय भी लोगों के पास रखी जमापूंजी निकल कर बाहर आ गई थी. नोटबंदी पार्ट-2 में अब एक बार फिर से लोग अपने पास रखे 2 हजार रुपए के नोट बाहर निकालने को मजबूर हो गए हैं.
हमारे घरों में बड़ेबूढ़े बच्चों की नजर से छिपा कर कुछ न कुछ पैसे अपने पास रखते हैं. जिस का प्रयोग वे किसी अचानक से आई जरूरत को पूरा करने के लिए करते हैं. ‘नोटबंदी पार्ट-1’ में जिन महिलाओं का ऐसा इमरजैंसी फंड बैंक में जमा हो गया वह दोबारा बाहर नहीं निकला. इस के बाद पिछले 6-7 सालों में फिर एक घरेलू फंड इकठ्ठा होने लगा था. यह 2 हजार रुपए के रूप में ही एकत्र किया जाता रहा. छोटीछोटी बचत किस तरह से घरेलू महिलाएं एकत्र कर के उस को बड़े नोट में बदल कर इमरजैंसी फंड में रख लेती हैं. इस हुनर के सामने बड़े से बड़े प्रबंधक भी फेल हैं.
सरकार नोटबंदी के जरिए इस घरेलू इमरजैंसी फंड को खत्म कर रही है. आज भी बहुत सारे काम ऐसे होते हैं जहां नकद पैसों की जरूरत होती है. घरेलू इमरजैंसी फंड ऐसा फंड होता है जो बिना किसी ब्याज या आत्मसम्मान का समझौता कर के मिल जाता है. कालेज जाने वाली वाराणसी की सुष्मिता भारती कहती हैं, ““एक दिन एटीएम नहीं चल रहा था. इंटरनैट खराब था. मुझे कालेज के लिए 10 हजार रुपए की जरूरत थी. नकद मेरे पास नहीं थे. मैं और मेरी मां दोनों परेशान थे कि कैसे क्या करें? यह बात दादी को पता चली तो उन्होंने अपने इमरजैंसी फंड से निकाल कर 10 हजार रुपए दिए. सच में उस दिन हमें इस के महत्त्व का आभास हुआ. पहले हम भी दूसरे युवाओं की तरह इस के महत्त्व को नहीं समझते थे, ‘नोटबंदी-1’ के समय कई तरह के मजाक उड़ाए थे.”
अब बंद हुआ 2 हजार रुपए का नोट
आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2 हजार रुपए के नोट वापस लिए जाने की घोषणा के बाद ट्विटर पर लिखा, ‘“चौथी पास प्रधानमंत्री होने से यही दिक्कत होती है कि उस को कोई भी कुछ भी समझा कर चला जाता है. 2016 में 2 हजार रुपए का नोट जारी करते दावा किया कि इस से भ्रष्टाचार कम होगा. 2023 में यह कह कर इस को वापस लिया जा रहा है कि यह नोट कालाधन बढ़ा रहा है.’”
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2,000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा पर समाजवादी पार्टी ने पूछा है कि क्या आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर लगाम लग गई? सपा के प्रवक्ता अमीक जामेई ने ट्वीट किया, ‘“नोटबंदी की क्रूरता में हजारों जानें गईं.’” बीजेपी ने कहा आतंकवाद, भ्रष्टाचार और कालाधन की कमर टूट जाएगी. चिप वाले 2,000 रुपए के नोट बंद किए जाने का एलान बताता है कि आर्थिक मोरचे पर फेल, कौर्पोरेटपरस्त नरेंद्र मोदी ने सत्ता के नशे में भारतीयों को जोकर समझा है. अब 2024 में जनता इन्हें सत्ता से बेदखल करेगी.”
नोटबंदी के 6 साल के बाद 2023 में रिजर्व बैंक ने नया आदेश जारी करते कहा कि अब 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर किया जा रहा है. 2016 की नोटबंदी में जनता परेशान हुई थी. लंबीलंबी लाइनें लगीं थीं. हमारा ही पैसा हमारा नहीं रह गया था. हम अपनी जरूरत पर उसे खर्च करने के लिए नहीं पा रहे थे. धीरेधीरे लोगों का जीवन वापस पटरी पर आ रहा था तब तक फिर से 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर करने का फैसला हो जाता है.
रिजर्व बैंक बारबार क्लीन नोट पौलसी का नाम ले कर नोट बदलने का बहाना बनाता है. दरअसल, यह पूरा सच नहीं है. अगर बैंकों को कटेफटे नोट बदलने हैं तो इस के लिए नोटबंद करने की जरूरत नहीं होती. नोट तब खराब होते हैं जब वे बारबार हाथों में जाते हैं. बड़े नोट छोटे नोटों के मुकाबले कम चलते हैं. ऐसे में छोटे नोट जल्दी खराब होते हैं न कि बड़े नोट. नोटों को इस तरह से बारबार बदलने का एक ही कारण ही कि सरकार आप के नोटों पर नजर रखना चाहती है.
नोटबंदी के बाद बैंकों की हुई खराब हालत के कारण ही उन को एकदूसरे के साथ मर्ज किया गया. कई बैंक बंद हो गए. उन में जनता की मेहनत की कमाई का पैसा डूब गया. बैंक डूबने की हालत में बैंक में जमा पैसे का कुछ हिस्सा ही मिलता है. जिस की ऊपरी लिमिट पहले एक लाख रुपए थी, बाद में इसे बढ़ा कर 5 लाख रुपए किया गया. इस के बाद भी पूरा पैसा मिलने की गारंटी नहीं है. लोग बैंक में अपना पैसा सुरक्षा के लिए रखते हैं. बंद होते बैंक अब जनता को डरा रहे हैं.
असल में इस तरह के फैसलों से ही सरकार आम लोगों की संपत्ति पर नजर रखती है. हमारे समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बड़े नोटों में बचत रखते हैं. खासकर घरों की महिलाएं इस तरह के नोट बचा कर रखती हैं. नोटबंदी के समय भी यह परेशानी उठानी पड़ी थी. अब 2 हजार रुपए के नोट चलन से बाहर होने पर यही दर्द सामने आ रहा है. 6 साल में जो नोट छिपाछिपा कर बचत के रूप रखे गए थे वे सामने लाने पड़ेंगे. इस तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखने का काम कर रही है.
नोटबंदी से न कालाधन रुका, न नकली नोट
नोटबंदी की वजह कालाधन और नकली नोट बताया गया था. ‘नोटबंदी-2’ में जब रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने 23 मई से 30 सितंबर, 2023 तक 2 हजार रुपए के नोट बैंकों को वापस करने का आदेश दिया तो कहा कि करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा के 2 हजार रुपए वाले नोट चलन से बाहर हो गए हैं. इस का मतलब कि वे कालेधन में बदल गए हैं. जिस से साफ हुआ कि ‘नोटबंदी-1’ से कालेधन को रोका नहीं जा सका. इस के बाद तमाम जगहों से छापे में जो नोट बरामद हुए उन में तमाम नकली नोट भी शामिल थे यानी नोटबंदी से जाली नोट भी नहीं रुके.
‘नोटबंदी-2’ में नोटवापसी के लिए रिजर्व बैंक ने कहा कि हर दिन 2 हजार रुपए के 10 नोट वापस किए जा सकते हैं. रुपए बदलने वाले से किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की जाएगी. इस आदेश से यह साफ होता है कि सरकार की रुचि नोट वापस लेने में है, कालाधन का पता लगाने में नहीं. ऐसे में इस नोटबंदी के पीछे सरकार का असल उद्देश्य क्या है?
असल में 2016 की नोटबंदी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हुई थी. उस के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा ने बहुमत से जीत हासिल की. अब ‘नोटबंदी-2’ के समय राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे. भारत के चुनाव में कालेधन का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है. नोटबंदी के जरिए इस को रोका जा सकता है. यह एक अलग तरीका हो गया है विरोधी दलों को मुसीबत में डालने का.
2016 में अचानक नोटबंदी की गई थी. उस में 5 सौ और 1 हजार रुपए के नोट बंद कर दिए गए थे. उस के बाद 5 सौ और 2 हजार रुपए के नए नोट जारी किए गए थे. नोटबंदी करने की वजह यह बताई गई थी कि उस से भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद पर रोक लगेगी. 7 सालों में न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही कालाधन और आंतकवाद खत्म हुआ है. फिर उस नोटबंदी का लाभ क्या हुआ? उलटे, नोटबंदी के चलते तमाम छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए, जिस से लोग बेरोजगार हो गए. सरकार ने कहा था कि नोटबंदी से कालाधन वापस आएगा जिस से बेरोजगारी घटेगी जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ.
कोरोनाकाल में घरों में खाने के लिए भोजन का प्रबंध करने का अनाज नहीं था. सरकार तब से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन दे रही है. जिस से यह पता चलता है कि देश में अभी भी कितनी गरीबी है? नोटबंदी से कैशलैस अर्थव्यवस्था का प्रभाव जनता की जेब पर पड़ रहा है. अब उसे हर बैंकसेवा की कीमत चुकानी पड़ रही है. औनलाइन फ्रौड अलग से बढ़ गए हैं जो जनता की जेब को चूना लगा रहे हैं. इस की मुख्य वजह पैन और आधार कार्ड हैं. मोबाइल नंबर से जुड़ने के बाद इन के खतरे बढ़ गए हैं.
पैन कार्ड लाभ से अधिक मुसीबत का कारण
सरकार पैन कार्ड के कई तरह के फायदे गिनाती है. परंतु अगर आप पूरी तरह सावधानी नहीं बरतेंगे तो आप को नुकसान भी हो सकता है. सरकार ने पैन कार्ड जनता के लाभ के लिए नहीं, उस के पैसों की निगरानी के लिए बनाया है. अगर आप बैंक या कहीं भी 50,000 रुपए से ऊपर के लेनदेन करते हैं तो आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी जरूरी हो गई है.
इस का मतलब यह है कि जैसे ही 50 हजार रुपए से ऊपर के लेनदेन करेंगे, सरकार की नजर में आ जाएगा. हर तरह के लेनदेन में पैन कार्ड को जरूरी कर दिया गया है. बैंक में खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड सब से जरूरी हो गया है. किसी कंपनी में नौकरी करने के लिए जब फौर्म भरा जाता है तब भी पैन कार्ड की जरूरत होती है.
पैन कार्ड को पहचानपत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आप बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो आप के पास पैन कार्ड होना जरूरी है. अगर आप के पास पैन कार्ड नहीं होगा तो आप बहुत से ऐसे सरकारी लाभ हैं जो आप नहीं ले पाएंगे.
पैन नंबर का इस्तेमाल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आवश्यक होता है. अगर आप 50 हजार रुपए से अधिक की गाड़ी खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं तो आप को पैन कार्ड की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी. 5 लाख रुपए से अधिक की ज्वैलरी खरीदते हैं तो दुकान को खरीदारी के समय आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी अनिवार्य है.
इसी तरह से आप किसी तरह की बीमा योजना का लाभ लेते हैं या बीमा में निवेश करते हैं तो आप के पास पैन कार्ड अवश्य होना चाहिए. म्यूचुअल फंड या शेयर मार्केट में निवेश करने हेतु भी आप के पास पैन कार्ड होना अनिवार्य है. क्रैडिट व डैबिट कार्ड के आवेदन करना चाहते हैं तो आप को पैन कार्ड देना आवश्यक होता है. इस तरह से कोई भी आर्थिक लेनदेन बिना पैन कार्ड के नहीं कर सकते हैं.
पैन कार्ड का प्रयोग आर्थिक लेनदेन तक सीमित रहता, तब भी कोई बात नहीं थी. अब पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक कर दिया गया है. आधार कार्ड का प्रयोग हर जगह होने लगा है क्योंकि यह पते के प्रमाणपत्र के रूप में देखा जाता है. पैन कार्ड इस से लिंक होने से आर्थिक अपराध या साइबर फ्रौड करना सरल हो गया है. आधार नंबर, पैन नंबर और फोन नंबर एकसाथ लिंक होते ही फ्रौड करना बेहद सरल हो जाता है. एक ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) मिलने की देर होती है, फ्रौड करने वाले आप के बैंक से आप का पैसा निकाल सकते हैं.
पैन आधार या फोन किसी भी नंबर को हैक कर के फाइनैंशियल डिटेल या आर्थिक जानकारी आसानी से ली जा सकती है. अगर आप ने पैन कार्ड को आधार से लिंक नहीं कराया है तो पैन कार्ड को बंद किया जा सकता है जिस से आप को आर्थिक व अन्य कई तरह के नुकसान का सामना करना पड़ता है. कभी भी एक से ज्यादा पैन कार्ड नहीं रखना चाहिए अन्यथा आप को जुर्माने के साथसाथ जेल भी हो सकती है. पैन कार्ड बनवाते समय अपनी पूरी जानकारी सहीसही देनी चाहिए वरना आप के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
पैन कार्ड खो जाने की स्थिति में उस का गलत प्रयोग किया जा सकता है. अगर आप का पैन नंबर दूसरे के हाथ में लग जाए तो उस से वह अधिक पैसे का लेनदेन कर सकता है और डिपार्टमैंट आप से उस अधिक पैसे के स्रोत के बारे में जानकारी मांग सकता है. जानकारी न दे पाने पर ऐसी स्थिति में आप को जेल हो सकती है. पैन कार्ड का गलत प्रयोग कर के आप का पूरा डाटा लीक हो सकता है. आप बैंक से जितने भी लेनदेन करते हैं या पैन कार्ड का प्रयोग कर के लेनदेन करते हैं, उन की पूरी जानकारी पैन कार्ड में सबमिट होती रहती है, जिस का पूरा डाटा सरकार के पास होता है. इस प्रकार कहें तो आप का लेनदेन सरकार की नजर में होता है.
फ्रौड का आधार बन गया आधार कार्ड
आधार कार्ड के बिना आज एक भारतीय खुद की कल्पना नहीं कर सकता. यही आधार कार्ड फ्रौड का सब से बड़ा कारण बन गया है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि आधार का नंबर फोन नंबर, पैन कार्ड नंबर और बैंक के खाता नंबर से जोड़ दिया गया है. अब अगर आधार नंबर मिल जाए तो उस के जरिए बैंक के खाते तक पहुंचना सरल हो गया है.
सरकार ने हर जगह पर आधार कार्ड को दिखाने का नियम बना दिया है. घर पर लगी रसोई गैस से ले कर ड्राइविंग लाइसेंस तक, ट्रेन के सफर से ले कर घरेलू उड़ान तक जैसी जीवन की सभी जरूरतों में इस का प्रयोग होने लगा है. इस के जरिए संपत्ति पर नजर रखी जाने लगी है.
आधार कार्ड का इस्तेमाल पहचानपत्र के रूप में भी किया जाने लगा है. भारत अथवा राज्य सरकार की योजनाओं में तो आधार कार्ड का इस्तेमाल व्यक्तिगत पहचानपत्र के रूप में किया जाने लगा है. एक बार आधार कार्ड बन जाने के बाद इस की उपलब्धता काफी आसान है. इस कार्ड को देश के किसी भी कोने में रहते हुए केवल एक क्लिक में डाउनलोड किया जा सकता है.
इस के अलावा इस की फिजिकल कौपी को भी कहीं भी और कभी भी मांगा जा सकता है. इस से फ्रौड की संभावना बढ़ती है. एक आधार कार्ड नंबर पर आप की सारी संपत्ति का विवरण दर्ज हो जाता है. इस से सरकार को संपत्ति पर नजर रखना सरल हो गया है.
आधार कार्ड और प्राइवेसी से जुड़ी चिंताओं का आपस में गहरा नाता है. भारत सरकार ने जनवरी 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी आधार कार्ड का गठन किया. सितंबर 2010 से आधार कार्ड बनना शुरू हुआ. विवाद होने पर सरकार द्वारा कहा गया कि किसी भी आधार कार्ड की फोटोकौपी साझा न करें, इस से प्राइवेसी लीक हो सकती है. बाद में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आननफानन इस को वापस ले लिया. आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम ऐसी सुविधा है जो नकद निकासी और फंड ट्रांसफर जैसे बैंकिंग लेनदेन की सहूलियत देती है.
इस तरह का लेनदेन कोई बैंकिंग कौरेस्पौंडैंट मिनी-एटीएम के जरिए करता है. इस ट्रांजैक्शन के लिए आप को आधार नंबर, बैंक का नाम व उंगलियों के निशान चाहिए. ऐसे में कोई भी जालसाज किसी का आधार नंबर और बायोमीट्रिक्स चुरा कर उस का बैंक अकाउंट आसानी से खाली कर सकता है. पिछले दिनों तेलंगाना और हरियाणा में कई ऐसे मामले सामने आए भी. हरियाणा में अपराधियों ने कथित तौर पर एक सरकारी वैबसाइट से लोगों के बायोमीट्रिक्स चुराए थे.
साल 2018 में टैलीकौम रैगुलेटरी अथौरिटी औफ इंडिया (ट्राई) के तत्कालीन चेयरमैन आर एस शर्मा ने ट्विटर पर अपना आधार नंबर शेयर किया. उन्होंने ओपन चैलेंज दिया कि उन के आधार नंबर से डेटा लीक कर के दिखाया जाए. इस के बाद एलियट एल्डरसन नाम के एक हैकर ने शर्मा के फोन नंबर, अकाउंट नंबर, ऐड्रेस, पैन नंबर समेत कई पर्सनल फोटो भी ट्विटर पर शेयर कर दीं.
इस के साथ एलियट एल्डरसन ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपना आधार नंबर शेयर करने का चैलेंज दिया. शर्मा ने दलील दी कि ये सारी जानकारियां पब्लिक प्लैटफौर्म पर पहले ही मौजूद हैं. उन्होंने इस बात की पुष्टि नहीं की थी कि एथिकल हैकर ने जो पैन कार्ड की डिटेल शेयर की, वह उन की थी या नहीं.
सरकार आधार से जुड़ी असल समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है. अगर जनता को आधार डेटा के दुरुपयोग से बचाना है, तो मजबूत डेटा प्रोटैक्शन कानून की जरूरत पड़ेगी. इस के बिना हर होटल, मूवी थिएटर और स्कूल फ्रौड संस्थाओं के रहमोकरम पर हैं जो एक पल में पता लगा सकती हैं कि हम कौन हैं. सरकार तो आधार कार्ड के जरिए जनता की संपत्ति पर नजर रखती ही है. अब फ्रौड करने वालों को भी इस का मौका मिल गया है.
क्यों करते हैं बारबार केवाईसी
पहले के दौर में जब बैंक में खाता खुलता था उस समय खाता खोलने वाले की डिटेल मांगी जाती थी. उन में पहचानपत्र होता था. जो इस बात का प्रमाण होता था कि बैंक में खाता खोलने वाला कहां रहता था.
खाता खोलने के बाद जब निवास बदलता था, तब बैंक को बताना पड़ता था कि पता बदल गया है. इस के बाद खाता खोलते समय पैन कार्ड लगने लगा. अब पैन कार्ड के साथ आधार कार्ड भी लिया जाता है. आधार और पैन के साथ मोबाइल नंबर भी जरूरी हो गया है बैंक खाता खोलने के लिए. इस तरह से लोगों के सारे खाते एक ही जगह पर दिखने लगते हैं जिस से सरकार संपत्ति पर नजर रखने में सफल हो जा रही है.
पैन, फोन नंबर, आधार और मोबाइल नंबर एकसाथ जुड़ने से सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं व योजनाओं के लाभ को भी नजर में रखा जा सकता है. हर सालदोसाल के अंतराल में बैंक केवाईसी कराने के लिए बुलाते हैं. जब नहीं जाते हैं तो वह खाते को बंद कर देता है. केवाईसी कराने के बाद ही दोबारा खाता चालू होता है. केवाईसी में पूरी तरह से वही सब डाक्यूमैंट्स जमा करने होते हैं जो बैंक में खाता खोलते समय हुए थे. केवाईसी के जरिए भी एक तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखती है. ऐसे में बारबार केवाईसी कराना गलत है. इस से डाक्यूमैंट्स के गलत हाथों में जाने का खतरा रहता है.
संपत्ति पर डाका डालने के लिए डिजिटल पेमेंट
औनलाइन ट्रांजैक्शन को डिजिटल पेमेंट के नाम से भी जाना जाता है. यह संपत्ति पर नजर रखने का एक जरियाभर है. सरकार कैशलैस इकोनौमी को बढ़ावा देने के नाम पर कुछ सुविधाओं का झांसा दे कर लोगों को लुभा रही है. जैसे, कार्ड ट्रांजैक्शन पर सरकार ने 2,000 रुपए तक के पेमेंट को सर्विस टैक्स से फ्री कर दिया है. कार्ड से पैट्रोल खरीदने पर 0.75 फीसदी छूट, रेल टिकट, हाइवे पर टोल, बीमा खरीदने जैसी कई छूट की घोषणा की गई है. सरकार द्वारा जारी छूट स्कीम और ई-वौलेट कंपनियों के कैशबैक औफर, रिवार्ड पौइंट्स व लौयल्टी बेनिफिट के चलते बचत दिखती है लेकिन असल में इस का प्रयोग सरकार की नजर में रहता है, जिस का इस्तेमाल वह अपने तरह से करती है.
डिजिटल ट्रांजैक्शन में सब से बड़ा जोखिम आइडैंटिटी चोरी का है. लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन के अभ्यस्त नहीं हैं, जबकि बहुत पढ़ेलिखे और समझदार लोग भी फिशिंग ट्रैप में फंस जाते हैं. औनलाइन फ्रौड के बढ़ते खतरे के दौर में अधिकतर लोगों के डिजिटल ट्रांजैक्शन प्लेटफौर्म पर आने से हैकिंग के खतरे बढ़ रहे हैं. इस तरह का फ्रौड अगर हो गया तो शिकायत कहां करनी होगी? देश में शिकायत पर सुनवाई की दशा बहुत खराब है, जिस से फ्रौड किया पैसा वापस मिलना मुश्किल होता है. साइबर क्राइम से बचने के लिए आज भी लोग चैकबुक के प्रयोग को सब से सही रास्ता मानते हैं. कमजोर शिकायत सुनवाई व्यवस्था की वजह से लोगों के पास औनलाइन फ्रौड से निबटने का कोई उपाय नहीं है. इस के अलावा इस तरह के फ्रौड से निबटने के लिए कोई कड़ा कानून भी नहीं है.
सारे फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन डिजिटल होने की वजह से मोबाइल का महत्त्व बहुत बढ़ गया है. इस के खोने का मतलब दोहरा नुकसान है. पेमेंट का कोई दूसरा विकल्प नहीं होने और कैश नहीं होने की वजह से समस्या ज्यादा गहरा सकती है. देश की जनता गांव में भी रहती है. वहां फोन हमेशा चार्ज नहीं रहता. अगर फोन बंद हो गया तो ट्रांजैक्शन बीच में फंस जाएगा. इसी तरह से बुजुर्ग लोगों के लिए इस में दिक्कतें ज्यादा हैं. दूसरे की मदद लेने पर डिजिटल पेमेंट में फ्रौड होने की संभावना ज्यादा होगी. कार्ड के प्रयोग से लोगों में अधिक खर्च करने की लत लग जाती है. कैश खर्च करने में लोग हिचकते हैं. लोगों का खर्च बढ़ जाएगा, जिस से उन का बजट बेकार साबित हो जाएगा.
जेवर और जमीन पर भी सरकार की नजर
सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को ले कर भी कानून लाने वाली है जिस में यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.
इस के पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सब से बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनो में इस का हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस पर भी है.
जेवर या गहने जब भी खरीदें उस की रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिश करें कि उस की रसीद आप के पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उस को उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इस के बिना जेवर नहीं देतीं. इस के अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमेंट का रास्ता अपनाती है. इस में आप का फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.
ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आप के पास नहीं हो सकती. सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उस के जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें.
‘रिश्ता क्या कहलाता है’ एक्ट्रेस चारु असोपो और राजीव सेन की जिंदगी में काफी ज्यादा उथल-पुथल मची हुई है, दोनों एक -दूसरे से काफी समय से अलग रह रहे हैं. उनकी एक बेटी है जिसका नाम जियाना है. जियाना इन दिनों अपनी मां के साथ हैं.
हालांकि राजीव सेन अपनी बेटी से मिलने आते रहते हैं, बता दें कि अब दोनों को लेकर खबर आ रही है कि चारुल और राजीव दोनों तलाक लेने वाले हैं. खबर है कि दोनों ने कोर्ट में अर्जी डाल दी है, इस महीने दोनों अग हो सकते हैं.
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बता दें कि राजीव और चारुल की आखिरी सुनवाई 8 जून को हो सकती है, रिपोर्ट के मुताबिक चारुल और राजीव की सुनवाई इस साल जनवरी से हो रही है, इस आखिरी सुनवाई के बाद से दोनों की राहें अलग -अलग हो जाएंगी. इस खबर पर राजीव और चारू ने कमेंट नहीं किया है.
बता दें कि शादी के तुरंत बाद से चारू और राजीव के रिश्ते में उथल-पुथल मची हुई है, दोनों एक-दूसरे के साथ रहना पसंद नहीं करते हैं.
बता दें कि साल 2019 में इन दोनों कि शादी हुई थी, जिसके बाद से दोनों कि अब एक बेटी भी है.
अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा पिछले कई सालों से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं, दोनों साथ में कई जगह डेट करते नजर आते हैं, हाल ही में मलाइका अरोड़ा अर्जुन कपूर को लेकर कई सारी खबरें आ रही हैं, खबर थी कि मलाइका प्रेग्नेंट हैं.
जिसके बाद कई सारी रिपोर्ट में यह खबर छप गई कि मलाइका अरोड़ा प्रेग्नेंट हैं, हालांकि अब जाकर अर्जुन कपूर ने इस बारे में खुलासा किया है कि मलाइका अरोड़ा की प्रेग्नेंसी की खबर झूठी थी, वह प्रेग्नेंट नहीं थीं, उन्होंने बताया कि मलाइका को लेकर जो खबर फैलाई जा रही थी, वह बिल्कुल गलत थी, लोग किसी भी खबर को छापने से पहले सोचते नहीं है.
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आगे अर्जुन ने कहा कि मलाइका कि प्रेग्नेंसी को लेकर जो लोग अफवाह उड़ाएं थें, उसके पीछे कि वजह थी, सिर्फ पब्लिसिटी को लेना हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए, लोग अपने फायदे के लिए कुछ भी करते है, उन्हें यह नहीं पता होता है कि इसका असर हमारे पर्सनल लाइफ पर कितना ज्यादा पड़ता है.
मीडिया वाले ही हमें आगे बढ़ाते हैं और यहीं लोग हमें परेशान भी करते हैं, इसलिए हमें इन लोगों से बच कर रहना चाहिए और रिक्वेस्ट है कि ऐसी अफवाह खबरें ना फैलाएं.