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नास्तिक : कैसे परिवार में हुई श्वेता की शादी

श्वेता के ससुराल जाने के बाद उस के मातापिता को अपना खाली घर काटने को दौड़ रहा था.

श्वेता चुलबुली, बड़बोली और खुले दिल की लड़की थी. मम्मी के दिल में एक ही बात खटकती रहती थी कि श्वेता देवधर्म, कर्मकांड वगैरह नहीं मानती थी.

तरहतरह के पकवान हम कभी भी खा, बना सकते हैं, इस के लिए किसी त्योहार की जरूरत क्यों? दीवाली के व्यंजन तो पूरे साल मिलते हैं. हम कभी भी खरीद सकते हैं, इस में कोई समस्या नहीं है? श्वेता की सोच कुछ ऐसी ही थी.

मातापिता को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन उस की ससुराल वालों को होने लगी.

श्वेता का पति आकाश किसी सुपरस्टार की तरह दिखता था. औरतें मुड़मुड़ कर उसे देखती थीं और कहती थीं कि एकदम रितिक रोशन की तरह दिखता है.

श्वेता की सहेलियां उस से जलती थीं. जिम जाने और खूबसूरत दिखने वाले पति के साथ श्वेता की शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी बीत रही थी.

दोनों पर मिलन की एक अलग ही धुन सवार थी.

लेकिन एक दिन आकाश ने उस से बोल ही दिया, ‘‘केवल मेरे मातापिता के लिए तुम रोज पूजा कर लिया करो… प्लीज. प्रसाद के रूप में नारियल बांटने में तुम्हें क्या दिक्कत है. नाम के लिए एक दिन व्रत रखा करो ताकि मां को तसल्ली हो कि उन की बहू सुधर गई है.’’

श्वेता गुस्से में बोली, ‘‘सुधर गई, मतलब…? नास्तिक औरतें बिगड़ी हुई होती हैं क्या? दबाव में आ कर भक्ति करना क्या सही है?

‘‘जब मुझे यह सब करना नहीं अच्छा लगता तो जबरदस्ती कैसी? मैं ने कभी अपने मायके में उपवास नहीं किया है. मुझे एसिडिटी हो जाती है इसलिए मैं कम खाती हूं, 2 रोटी और थोड़े चावल तो व्रत क्यों रखना?’’

श्वेता सच बोल रही थी. लेकिन इस बात से आकाश नाराज हो गया और धीरेधीरे उस ने श्वेता से बात करना कम कर दिया.

जब भी श्वेता की जिस्मानी संबंध बनाने की इच्छा होती तो ‘आज नहीं, मैं थक गया हूं’ कहते हुए आकाश मना कर देता. ये सब बातें अब रोज की कहानी बन गई थीं.

‘‘तुम्हारा मुझ में इंटरैस्ट क्यों खत्म हो गया? तुम्हारी दिक्कत क्या है?’’ श्वेता ने आकाश से पूछा.

बैडरूम में उस का खुला और गठीला बदन देख कर श्वेता का मन अपनेआप ही मचल जाता था, लेकिन आकाश ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘तुम पहले भगवान को मानने लगो, मां को खुश करो, उस के बाद हम अपने बारे में सोचेंगे…’’

‘‘मेरा भगवान, पूजापाठ में विश्वास नहीं है, यह सब मैं ने शादी से

पहले तुम्हें बताया था. जब हम दोनों गोरेगांव के बगीचे में घूमने गए थे… तुम्हें याद है?’’

‘‘मुझे लगा था कि तुम बदल जाओगी…’’

‘‘ऐसे कैसे बदल जाऊंगी. मैं

कोई मन में गुस्से की भावना रख कर नास्तिक नहीं बनी हूं, यह मेरा सालों का अभ्यास है.’’

धीरेधीरे श्वेता और उस की सास के बीच झगड़े होने लगे. श्वेता उन के साथ मंदिर तो जाती थी लेकिन बाहर ही खड़ी रहती थी, जिस पर झगड़े और ज्यादा बढ़ जाते थे.

एक बार सास ने कहा, ‘‘मंदिर के बाहर चप्पल संभालने के लिए रुकती है क्या? अंदर आएगी तो क्या हो जाएगा?’’

श्वेता ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप अपना काम पूरा करें, मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. मैं इन ढकोसलों को नहीं मानती.’’

सास घर लौट कर रोने लगीं, ‘‘मुझ से इस जन्म में आज तक किसी ने ऐसी बात नहीं की थी. ऊपर वाला देख लेगा तुम्हें,’’ ऐसा बोलते हुए सास ने पलभर में एक पढ़ीलिखी बहू को दुश्मन ठहरा दिया.

शाम को आकाश के आने के बाद श्वेता बोली, ‘‘मैं मायके जा रही हूं, मुझे लेने मत आना. जब मेरा मन करेगा तब आऊंगी. लेकिन अभी से कुछ तय नहीं है. मायके ही जा रही हूं, कहीं भाग नहीं रही हूं. नहीं तो कुछ भी झूठी अफवाहें उड़ेंगी.’’

आकाश उस की तरफ देखता रह गया. उस की तीखी और करारी बातों से उसे थोड़ा डर लगा.

श्वेता अपने अमीर मातापिता के साथ जा कर रहने लगी. मां को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन श्वेता ने कहा, ‘‘आप थोड़ा धीरज रखो. आकाश को मेरे बिना अच्छा नहीं लगेगा.’’

आखिर वही हुआ. 15-20 दिन बीतने के बाद उस का फोन आना शुरू हो गया. पत्नी का मायके में रहने का क्या मतलब है? यह सोच कर वह बेचैन हो रहा था. उस का किया उस पर ही भारी पड़ गया. मां के दबाव में आ कर वह भगवान को मानता था.

श्वेता ने फोन काट दिया इसलिए आकाश ने मैसेज किया, ‘मुझे तुम से बात करनी है, विरार आऊं क्या?’

श्वेता के मन में भी प्यार था और उस ने झट से हां कह दिया.

श्वेता ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें भगवान को मानने के लिए कभी मना नहीं किया. पूजाअर्चना, जो तुम्हें करनी है जरूर करो, लेकिन मुझे मेरी आजादी देने में क्या दिक्कत है. तुम्हारी मां को समझाना तुम्हारा काम है. अब तुम बोल रहे हो इसलिए आ रही हूं. अगर फिर कभी मेरी बेइज्जती हुई तो मैं हमेशा के लिए ससुराल छोड़ दूंगी…

इस तरह से श्वेता ने अपनी नास्तिकता की आजादी को हासिल कर लिया.

टिप्स : न्यूट्रीशंस की कमी को कैसे दूर करें महिलाएं

आप ने सुना होगा ‘हैल्थ इज वैल्थ’. अच्छी हैल्थ के लिए अच्छा न्यूट्रीशन यानी पोषण बहुत जरूरी है. पोषण के लिए संतुलित आहार होना जरूरी है. इस का अर्थ यह है कि हर व्यक्ति को भोजन के सभी न्यूट्रीशंस पर्याप्त मात्रा में मिल सकें ताकि शरीर स्वस्थ रहे. यह तभी हो सकता है जब शरीर को स्वस्थ रखने वाले जरूरी न्यूट्रीशंस का सेवन किया जाए जो इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत कर बीमारियों से लड़ सके.

बात भारत की हो, तो देश में लोगों के भोजन की थाली से न्यूट्रीशंस नदारद रहते हैं. महिलाएं, खासकर, इस की कमी से ज्यादा जूझती हैं. मालूम हो कि न्यूट्रीशन के कारण ही शरीर का विकास होता है. न्यूट्रीशंस से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी बढ़ती है और साथ ही मेटाबौलिक समस्याएं, जैसे डायबिटीज की समस्या और हार्ट संबंधित समस्याओं के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.

अकसर भारत में महिलाओं में न्यूट्रीशंस की कमी होने का बड़ा कारण कम व असंतुलित खाना यानी बचाखुचा बासी खाना खाना है. इस को ले कर मल्टीविटामिन सेंट्रम ब्रैंड हैलोन की टीम ने ‘नो योर माइंड’ कैंपेन चलाया. इस अभियान में महिलाओं में न्यूट्रीशन की दैनिक जरूरत और स्वास्थ्य के लिए जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया गया, ताकि भारतीयों में माइक्रोन्यूट्रीएंट की स्थिति में सुधार लाया जा सके.

हैलोन का मानना था कि परिवारों और समुदायों का स्वास्थ्य महिलाओं पर निर्भर है लेकिन महिलाएं ही हैं जिन का स्वास्थ्य कमजोर रहता है. इस सर्वे के अनुसार, कमजोर हड्डी का स्वास्थ्य, अपर्याप्त रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता और कम ताकत का स्तर का होना भारतीय महिलाओं में मुख्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं.

यह सही भी है. आजकल महिलाएं अपने घर/औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां निभा रही हैं. वे अपने बच्चों, परिवार की डाइट पर पूरा ध्यान देती हैं लेकिन खुद पर ध्यान नहीं रख पातीं. लंबे समय तक हैल्दी डाइट न लेने से महिलाओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है.

महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की इसी कमी को दूर करने के लिए फैडरेशन औफ औब्सटेट्रिक एंड गायनीकोलौजिकल सोसाइटीज औफ इंडिया के साथ साझेदारी में एक पैनल वार्त्ता का आयोजन किया गया जिस में कई जानेमाने  डाक्टर शामिल हुए.

माइक्रोन्यूट्रीएंट्स पर्याप्त मात्रा में लेने को प्रोत्साहित करते हुए हैलोन के भारतीय उपमहाद्वीप के मैनेजर नवनीत सलूजा कहते हैं, ““हम महिलाओं को खुद की देखभाल करने के लिए सशक्त बनाना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य इसी बात को उजागर करना है कि स्वस्थ महिलाएं किस प्रकार एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकती हैं. लोगों को ऐसा आहार मिलना मुश्किल हो सकता है जो उन्हें स्वस्थ रहने के लिए उन सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्याप्त स्तर प्रदान करे, जो उन के दैनिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. स्व-देखभाल किसी विशेष व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है.”

हैलोन इंडिया की मार्केटिंग औफिसर अनुरिता चोपड़ा कहती हैं, “महिलाओं की आम स्वास्थ्य समस्याओं को चर्चा में ला कर माइक्रोन्यूट्रीएंट्स सप्लीमैंट्स पर केंद्रित होने से हमें मानवता के साथ प्रतिदिन बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में मदद मिलेगी.”

न्यूट्रीशंस शरीर के लिए जरूरी होते हैं. इस की कमी से शरीर में स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है. आजकल अधिकतर महिलाएं हेयर फौल, हौर्मोनल डिसबैलेंस, शरीर में दर्द, डिप्रैशन और मूड स्विंग की शिकायत करती हैं. पोषक तत्वों की कमी होने पर थकान, कम उम्र में चेहरे पर झुर्रियां, ग्लो न रहना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. ऐसे में यह जान लें कि वे कौन से पोषक तत्त्व हैं जो महिलाओं में इन समस्याओं को जन्म देते हैं.

1.आयरन                                         

 भारतीय महिलाओं में आयरन की कमी सब से ज्‍यादा पाई जाती है. यह मिनरल रेड ब्‍लड सैल्‍स के निर्माण और औक्सीजन के परिवहन के लिए आवश्यक है. हेम आयरन वह प्रकार है जो मीट में मौजूद होता है, नौनहेम मांस और सब्जी दोनों स्रोतों में है. हमारा शरीर नौनहेम की तुलना में हेम आयरन को बहुत आसानी से अवशोषित करता है. शाकाहारियों को नौनहेम आयरन और फोर्टिफाइड इंस्टैंट ओटमील के स्रोत के रूप में फलियों को लेना चाहिए.

2.विटामिन डी

   विटामिन डी हड्डियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी है. वैसे इस के लिए कुछ देर धूप में रहना अच्छा माना जाता है पर उपयुक्त नहीं. इस के लिए भोजन में ऐसी डाइट लेनी जरूरी है जो इस कमी को पूरा कर सके. जैसे, अपनी डाइट में फैटी फिश जैसे ट्राउट या सैलमन खा सकती हैं.

3. फोलिक एसिड

प्रैग्नैंट महिलाओं में न्यूट्रीशंस की सख्त जरूरत होती है. इस में जो सब से जरूरी पोषक तत्त्व है वह फोलिक एसिड है. यह पहले महीने में न्यूरल ट्यूब डिफैक्ट्स के जोखिम को कम करता है. इस के लिए भोजन में दाल, ब्रोकली, ब्रेड, अनाज को शामिल करना होता है.

4.फाइबर

 फाइबर शरीर के डाइजैस्टिव सिस्‍टम के लिए बहुत अच्‍छा होता है, जिस में मल त्याग को नियमित रखना भी शामिल है. फाइबर कोलैस्ट्रौल को कम करने और ब्‍लडशुगर लैवल को स्थिर रखने में मदद करता है. साबुत अनाज में भरपूर मात्रा में फाइबर होते हैं जैसे कि बीन्स. अच्छी मात्रा में फाइबर वाले फलों में कीवी, आम और अमरूद शामिल हैं.

5.मैग्नीशियम

 मैग्नीशियम एक ऐसा मिनरल है जो दांतों और हड्डियों के निर्माण में मदद करता है,  और यह सैकड़ों एंजाइम प्रतिक्रियाओं में शामिल है. साबुत अनाज, जैसे ओट्स आदि इस का सब से अच्छा स्रोत हैं. अगर आप ओटमील नहीं चाहती हैं तो बादाम अच्छा स्रोत है.

6. पोटैशियम

पोटैशियम हड्डियों, हैल्दी मसल्स, नर्वस और एनर्जी उत्पादन में काम करता है. कच्चे पालक में पोटैशियम की उपयुक्तता अधिक होती है. इस के अलावा संतरे, केले और शकरकंद में भी पोटैशियम होता है, जिन का सेवन आप कर सकते हैं.

7.आयोडीन

 दुनियाभर में लगभग 40 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त आयोडीन की कमी का खतरा है. आयोडीन थायराइड के सही कामकाज और थायराइड हार्मोन के उत्पादन के लिए जरूरी मिनरल है. इस से हड्डियों की हैल्‍थ, शरीर के विकास और ब्रेन के विकास में मदद मिलती है. अपने शरीर में आयोडीन की मात्रा बढ़ाने के लिए डेयरी, फिश या सूखे समुद्री शैवाल का सेवन फायदेमंद है.

बच्चों में डालें साफ सफाई की आदत

यह तो हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है. इसलिए बचपन से ही बच्चों को अच्छी आदतें और व्यवहार सिखाने की जरूरत होती है. क्योंकि साफ-सफाई में रखी गयी जरा सी लापरवाही अनेक रोगों जैसे संक्रमण, एलर्जी का कारण बन सकती है. शेमराक प्रीस्कूल्स की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर एवं शेमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल्स की फाउंडर डायरेक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार “बच्चों में व्यक्तिगत स्तर पर साफ-सफाई की आदत पर कम उम्र से ही ध्यान देने की ज़रुरत होती है.”  बचपन से निम्न आदतें अपना कर आप उन्हें साफ सफाई के प्रति सजग बना सकते हैं .

·       अपने बच्चे के दिन की शुरुआत हाथ-मुंह धोने से कराएं.

·       उन्हें अपने दांत 2 से 3 मिनट तक उचित ढंग से साफ करने को कहें, जिससे उनके दांत कैविटी मुक्त रहें. दिन में दो बार ब्रश करने को उनकी नियमित आदत बनाएं.

·       6 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बच्चों को अच्छी तरह कुल्ला करने की आदत डालें, जिससे उन्हें मुंह और मसूड़े संबंधी समस्याएं नहीं हों.

·       उन्हें नियमित तौर पर रोजाना एंटी-बैक्टीरियल साबुन से नहाने के लिए शिक्षित करें.

·       उन्हें हर भोजन से पहले और बाद में अच्छी गुणवत्ता के एंटी-बैक्टिरियल साबुन से हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित करें.

·       बच्चो को अपने  नाखून छोटा रखने को कहें क्योंकि बढे हुए नाखूनो में गंदगी जमा हो जाती हैं जिससे संक्रमण का खतरा रहता हैं.

·       खांसते या छींकते समय उन्हें टिशू पेपर का उपयोग करना सिखाएं.

·       सुनिश्चित करें कि वे नियमित तौर पर अपने नाखून काटें क्योंकि नाखूनों में ही कीटाणु सबसे ज्यादा पनपते हैं.

·       उन्हें धुले, साफ-सुथरे और आयरन किए गए कपड़े पहनने को कहें.

·       उन्हें उंगली, पेंसिल, पेन और रबड़ जैसी चीजों को नाक या मुंह में नहीं डालने का निर्देश दें.

जिम्मेदार एवं सतर्क अभिभावकों के तौर पर बच्चे को समझाएं कि खुद को साफ-सुथरा रखने के साथ साथ हमें हमारे घर, मोहल्ले और आस-पड़ोस को भी साफ रखना चाहिए. बच्चों को इस बात का अहसास करना बहुत जरूरी है कि न सिर्फ निजी बल्कि आस पास के वातावरण की साफ-सफाई रखना भी बेहद महत्वपूर्ण है.

·       उन्हें कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में ही डालने की आदत डालें .

·       अपने बच्चों को उनकी चीजें जैसे खिलौने और किताबें सही जगह रखने की सलाह दें.

·       उन्हें सिखाएं कि वे शहर की सड़कों पर कूड़ा-कचरा नहीं डालें. उन्हें बाहर जाते समय हमेशा अपने साथ एक पेपर बैग ले जाने को कहें, जिससे उन्हें कचरा कहीं खुले में नहीं डालना पड़े.

आप की संपत्ति पर सरकार की नजर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग इलाके में शिवा एम्पायर बिल्डिंग है. बिल्डिंग 10 साल से ज्यादा पुरानी है. 4 मंजिली इस बिल्डिंग के बारे में बताया जाता है कि इस के 2 फ्लोर बनाने का नक्शा पास था लेकिन यहां पर 4 फ्लोर बना डाले गए. लोगों ने फ्लैट खरीद लिए. एलडीए यानी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कभी इस बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया. लोग आराम से रह रहे थे. अचानक प्रयागराज में उमेश पाल और 2 सिपाहियों की हत्या होती है. मसला अतीक अहमद से जुड़ता है. तब यह पता लगाया जाता है कि अतीक के तार कहांकहां तक फैले हैं.

इस क्रम में पुलिस को यह पता चलता है कि शिवा एम्पायर बिल्डिंग को बनाने का काम बिल्डर मोहम्मद मुसलिम ने किया था, जो अतीक का करीबी बताया जाता है. पुलिस और एलडीए सक्रिय हो गईं. जैसे ही पाया कि इस बिल्डिंग में 2 फ्लोर अवैध बने हैं, उन को गिराने का नोटिस दे दिया गया.

यहां रहने वाले परेशान दरदर भटक कर अपनी मजबूरी बयान कर रहे. खरीदने वालों को न तो अतीक से बिल्डर के संबंधों का कुछ पता था न यह पता था कि 2 फ्लोर गलत तरह से बने थे. एलडीए ने अगर बिल्डिंग बनाते समय ही इस को रोका होता तो लोग यहां खरीदते ही नहीं.

कानपुर देहात में मंडौली गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित अपने परिवार सहित झोपड़ीनुमा घर में रहते थे. यह घर सरकारी जमीन पर बना था. इस को तोड़ने के आदेश दिए गए. पुलिस जेसीबी ले कर घर तोड़ने जाती है. झोपड़ी के अंदर कृष्ण गोपाल दीक्षित का बेटा शिवम दीक्षित खड़ा होता है. झोपड़ी में एक तरफ जनरेटर रखा था. शिवम को पुलिस घर से बाहर निकलने को कहती है. कृष्ण गोपाल दीक्षित भी पीछे से हाथ में घासफूस ले कर बाहर निकलते हैं. जैसे ही दोनों लोग झोपड़ी के बाहर निकलते हैं, जेसीबी झोपड़ी को गिराने के लिए बढ़ती है.

ठीक उसी समय कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला दीक्षित ‘आवैं दे…आवै दे…’ कहते झोपड़ी के अंदर आ जाती हैं. पीछे से कृष्ण गोपाल भी वापस झोपड़ी में आ जाते हैं और प्रमिला ‘हम जान दई देबै’ कहते हुए दरवाजा बंद कर लेते हैं. जेसीबी बिना प्रमिला और उस के परिवार को निकाले उन के ऊपर छप्पर गिरा देती है. अंदर आग लग जाती है. कृष्ण गोपाल और बेटा शिवम तो जैसेतैसे बाहर आ जाते हैं पर प्रमिला और उस की 18 साल की बेटी नेहा मकान के अंदर ही जल कर मर जाती हैं. इस तरह की घटनाओं की कमी नहीं है.

सर्वोच्च न्यायलय ने निजी संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार माना है. जिस के तहत यह आदेश है कि अगर किसी के अवैध कब्जे को हटाना है तो पहले उस के रहने के लिए अलग व्यवस्था करनी जरूरी है. कानून कहता है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से किसी जगह पर काबिज है तो उसे हटाया नहीं जा सकता. संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में बदल दिया गया था. 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(ए) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया.

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, लेकिन राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को उस की निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन कर के ही वंचित किया जा सकता है.

 

संविधान में संपत्ति का अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 19 और 31 के अंतर्गत संपत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण का मौलिक अधिकार दिया गया था. इस में साफतौर पर कहा गया था कि सरकार लोक कल्याण के लिए संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है. 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाए जिन से संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध लगा. 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में संपत्ति के अधिकार को संविधान के मूल ढांचे का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान में संशोधन कर के इसे प्रतिबंधित करने का अधिकार है.

जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन 1978 के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल कर संविधान के भाग 12 में एक नए अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 300 में एक सामान्य कानूनी अधिकार के रूप में रखा. उस में कहा गया कि “किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से कानून का पालन करते हुए ही हटाया जाएगा.”

2007 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संपत्ति अर्जित करने का अधिकार यद्यपि मूल अधिकार नहीं है, लेकिन यह संवैधानिक और मानव अधिकार है. किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से संसद, विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि से ही वंचित किया जा सकता है. आज जिस तरह से संपत्तियों पर बुजडोजर चला कर ध्वस्त किया जा रहा उस में इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है.

 

खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही!             

सरकार किस तरह से संपत्ति पर नजर रखती है, इस के तमाम उदाहरण हैं. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर का प्रयोग कर के लोगों की संपत्ति ध्वस्त की जा रही है. इस के बारे में कहा जाता है- ‘खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही’.

अवैध संपत्ति एक दिन में तैयार नहीं होती. जिस समय वह तैयार होती है उस समय किसी का ध्यान नहीं जाता. जैसे ही इस पर सरकार की नजर टेढ़ी होती है, संपत्ति पर बुलडोजर चल जाता है. पुलिस ने 2 साल में 64 गैंगस्टर्स की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है. इस लिस्ट में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की संपत्ति को भी जोड़ दिया जाए तो संपत्ति करीब 3 हजार करोड़ रुपए तक की पहुंच जाती है.

गैंग्स्टर्स की तरफ से अवैध तरीके से हासिल की गई इन संपत्तियों की लिस्ट पूर्वांचल से ले कर पश्चिमी यूपी तक की है. इन में विजय मिश्र, सुशील मूच, सुंदर भाटी, अनुपम दुबे, ध्रुव सिंह, सुनील राठी, बदन सिंह बद्दो आदि मुख्य तौर पर शामिल हैं. मुख्तार अंसारी की 523 करोड़ रुपए की संपत्ति और अतीक अहमद की 413 करोड़ रुपए की संपत्ति को जब्त किया गया. पिछले एक साल के दौरान 1842 करोड़ रुपए कीमत की अवैध संपत्ति को या तो खाली कराया गया है या फिर ध्वस्त किया गया है.

अपराधियों की संपत्ति के अलावा अवैध संपत्ति के नाम से तमाम लोगों के मकान ध्वस्त किए गए हैं. इन में नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. इस तरह से कई लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है. सरकार द्वारा संपत्तियों पर नजर रखने के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रहीं हैं. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिन को कोई छूता भी नहीं है. यह मानमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं वहां ज्यादा हो रहा है.

 

कैसे संपत्ति पर नजर रखती है सरकार

संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इस की शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गई थी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिन के पास ज्यादा जमीन है उन से ली जाएगी. सरकार ने इस के तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.

छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उन के मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग कर के मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.

केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उन के पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकते हैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उस ने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को ले कर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.

संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इस के फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इस से अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.

 

जमीन ही नहीं है अकेली संपत्ति   

जब संपत्ति की बात होती है तो आमतौर पर केवल हम अपनी जमीन, जायदाद और रूपयोंपैसों, गहनेजेवरों के बारे में सोचते हैं. असल में संपत्ति हमारे मौलिक अधिकार जैसी है. सरकार को यह हक नहीं है कि वह हमारी संपत्ति पर डाका डाले, बुलडोजर लगा कर घर गिरा दे, मनमाने तरीके से संपत्ति को कुर्क कर दे, बिना मंहगाई और बेरोजगारी का ध्यान रखे टैक्स बढ़ा दे.

यह एक तरह की सरकारी डकैती है. इसी तरह से अचानक नोटबंदी की घोषणा, मनमानी जीएसटी और आयकर के नियमों में बदलाव भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी फैसले थे. जनता के पास जो भी जमीन, जायदाद और जेवर हैं वे सब उस की मेहनत की कमाई हैं. उस पर नजर रखना जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करने जैसा है.

ऐसे में अपनी संपत्ति को बचाने के लिए जरूरी है कि संपत्ति का बीमा कराएं जिस से अगर कोई ऐसी घटना हो तो पुलिस और प्रशासन मनमानी न कर सकें. संपत्ति बीमा के साथ ही साथ ज्वैलरी का बीमा भी कराएं जिस से चोरी होने की दशा में मुआवजा मिल सके.

संपत्ति के विवादों में विल यानी वसीयत भी एक प्रमुख दस्तावेज होता है. अपनी जायदाद की वसीयत करा कर रखें. वसीयत रजिस्टर्ड होनी चाहिए. अगर किसी कारणवश वसीयत रजिस्टर्ड नहीं भी है तो उसे बाद में रजिस्टर्ड करा लें. इस से यह कानूनी रूप से मजबूत हो जाती है. जमीन ही नहीं, नोट भी हमारी संपत्ति में आते हैं. सरकार नोटबंदी कर के इन पर नजर रखने का काम करती है.

 

नोटबंदी ने खत्म किए नोटों पर अधिकार

‘नोटबंदी पार्ट-2’ में जब 2 हजार रुपए का नोट बंद होने की खबर सुनी तो लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाली शालिनी श्रीवास्तव की मां को सब से ज्यादा डर लगा. वे अपनी बेटी से बोलीं, ‘मेरे पास 2 हजार रुपए के कुछ नोट हैं उन का क्या करून?’ उन के मन में 2016 में हुई नोटबंदी के बाद लंबीलंबी लाइनों का खौफ दिखने लगा. वे इस प्रयास में थीं कि कितनी जल्दी ये नोट बदल जाएं. पहली नोटबंदी के समय भी लोगों के पास रखी जमापूंजी निकल कर बाहर आ गई थी. नोटबंदी पार्ट-2 में अब एक बार फिर से लोग अपने पास रखे 2 हजार रुपए के नोट बाहर निकालने को मजबूर हो गए हैं.

हमारे घरों में बड़ेबूढ़े बच्चों की नजर से छिपा कर कुछ न कुछ पैसे अपने पास रखते हैं. जिस का प्रयोग वे किसी अचानक से आई जरूरत को पूरा करने के लिए करते हैं. ‘नोटबंदी पार्ट-1’ में जिन महिलाओं का ऐसा इमरजैंसी फंड बैंक में जमा हो गया वह दोबारा बाहर नहीं निकला. इस के बाद पिछले 6-7 सालों में फिर एक घरेलू फंड इकठ्ठा होने लगा था. यह 2 हजार रुपए के रूप में ही एकत्र किया जाता रहा. छोटीछोटी बचत किस तरह से घरेलू महिलाएं एकत्र कर के उस को बड़े नोट में बदल कर इमरजैंसी फंड में रख लेती हैं. इस हुनर के सामने बड़े से बड़े प्रबंधक भी फेल हैं.

सरकार नोटबंदी के जरिए इस घरेलू इमरजैंसी फंड को खत्म कर रही है. आज भी बहुत सारे काम ऐसे होते हैं जहां नकद पैसों की जरूरत होती है. घरेलू इमरजैंसी फंड ऐसा फंड होता है जो बिना किसी ब्याज या आत्मसम्मान का समझौता कर के मिल जाता है. कालेज जाने वाली वाराणसी की सुष्मिता भारती कहती हैं, ““एक दिन एटीएम नहीं चल रहा था. इंटरनैट खराब था. मुझे कालेज के लिए 10 हजार रुपए की जरूरत थी. नकद मेरे पास नहीं थे. मैं और मेरी मां दोनों परेशान थे कि कैसे क्या करें? यह बात दादी को पता चली तो उन्होंने अपने इमरजैंसी फंड से निकाल कर 10 हजार रुपए दिए. सच में उस दिन हमें इस के महत्त्व का आभास हुआ. पहले हम भी दूसरे युवाओं की तरह इस के महत्त्व को नहीं समझते थे, ‘नोटबंदी-1’ के समय कई तरह के मजाक उड़ाए थे.”

 

अब बंद हुआ 2 हजार रुपए का नोट

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2 हजार रुपए के नोट वापस लिए जाने की घोषणा के बाद ट्विटर पर लिखा, ‘“चौथी पास प्रधानमंत्री होने से यही दिक्कत होती है कि उस को कोई भी कुछ भी समझा कर चला जाता है. 2016 में 2 हजार रुपए का नोट जारी करते दावा किया कि इस से भ्रष्टाचार कम होगा. 2023 में यह कह कर इस को वापस लिया जा रहा है कि यह नोट कालाधन बढ़ा रहा है.’”

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2,000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा पर समाजवादी पार्टी ने पूछा है कि क्या आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर लगाम लग गई? सपा के प्रवक्ता अमीक जामेई ने ट्वीट किया, ‘“नोटबंदी की क्रूरता में हजारों जानें गईं.’” बीजेपी ने कहा आतंकवाद, भ्रष्टाचार और कालाधन की कमर टूट जाएगी. चिप वाले 2,000 रुपए के नोट बंद किए जाने का एलान बताता है कि आर्थिक मोरचे पर फेल, कौर्पोरेटपरस्त नरेंद्र मोदी ने सत्ता के नशे में भारतीयों को जोकर समझा है. अब 2024 में जनता इन्हें सत्ता से बेदखल करेगी.”

नोटबंदी के 6 साल के बाद 2023 में रिजर्व बैंक ने नया आदेश जारी करते कहा कि अब 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर किया जा रहा है. 2016 की नोटबंदी में जनता परेशान हुई थी. लंबीलंबी लाइनें लगीं थीं. हमारा ही पैसा हमारा नहीं रह गया था. हम अपनी जरूरत पर उसे खर्च करने के लिए नहीं पा रहे थे. धीरेधीरे लोगों का जीवन वापस पटरी पर आ रहा था तब तक फिर से 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर करने का फैसला हो जाता है.

रिजर्व बैंक बारबार क्लीन नोट पौलसी का नाम ले कर नोट बदलने का बहाना बनाता है. दरअसल, यह पूरा सच नहीं है. अगर बैंकों को कटेफटे नोट बदलने हैं तो इस के लिए नोटबंद करने की जरूरत नहीं होती. नोट तब खराब होते हैं जब वे बारबार हाथों में जाते हैं. बड़े नोट छोटे नोटों के मुकाबले कम चलते हैं. ऐसे में छोटे नोट जल्दी खराब होते हैं न कि बड़े नोट. नोटों को इस तरह से बारबार बदलने का एक ही कारण ही कि सरकार आप के नोटों पर नजर रखना चाहती है.

नोटबंदी के बाद बैंकों की हुई खराब हालत के कारण ही उन को एकदूसरे के साथ मर्ज किया गया. कई बैंक बंद हो गए. उन में जनता की मेहनत की कमाई का पैसा डूब गया. बैंक डूबने की हालत में बैंक में जमा पैसे का कुछ हिस्सा ही मिलता है. जिस की ऊपरी लिमिट पहले एक लाख रुपए थी, बाद में इसे बढ़ा कर 5 लाख रुपए किया गया. इस के बाद भी पूरा पैसा मिलने की गारंटी नहीं है. लोग बैंक में अपना पैसा सुरक्षा के लिए रखते हैं. बंद होते बैंक अब जनता को डरा रहे हैं.

असल में इस तरह के फैसलों से ही सरकार आम लोगों की संपत्ति पर नजर रखती है. हमारे समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बड़े नोटों में बचत रखते हैं. खासकर घरों की महिलाएं इस तरह के नोट बचा कर रखती हैं. नोटबंदी के समय भी यह परेशानी उठानी पड़ी थी. अब 2 हजार रुपए के नोट चलन से बाहर होने पर यही दर्द सामने आ रहा है. 6 साल में जो नोट छिपाछिपा कर बचत के रूप रखे गए थे वे सामने लाने पड़ेंगे. इस तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखने का काम कर रही है.

 

नोटबंदी से न कालाधन रुका, न नकली नोट

नोटबंदी की वजह कालाधन और नकली नोट बताया गया था. ‘नोटबंदी-2’ में जब रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने 23 मई से 30 सितंबर, 2023 तक 2 हजार रुपए के नोट बैंकों को वापस करने का आदेश दिया तो कहा कि करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा के 2 हजार रुपए वाले नोट चलन से बाहर हो गए हैं. इस का मतलब कि वे कालेधन में बदल गए हैं. जिस से साफ हुआ कि ‘नोटबंदी-1’ से कालेधन को रोका नहीं जा सका. इस के बाद तमाम जगहों से छापे में जो नोट बरामद हुए उन में तमाम नकली नोट भी शामिल थे यानी नोटबंदी से जाली नोट भी नहीं रुके.

‘नोटबंदी-2’ में नोटवापसी के लिए रिजर्व बैंक ने कहा कि हर दिन 2 हजार रुपए के 10 नोट वापस किए जा सकते हैं. रुपए बदलने वाले से किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की जाएगी. इस आदेश से यह साफ होता है कि सरकार की रुचि नोट वापस लेने में है, कालाधन का पता लगाने में नहीं. ऐसे में इस नोटबंदी के पीछे सरकार का असल उद्देश्य क्या है?

असल में 2016 की नोटबंदी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हुई थी. उस के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा ने बहुमत से जीत हासिल की. अब ‘नोटबंदी-2’ के समय राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे. भारत के चुनाव में कालेधन का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है. नोटबंदी के जरिए इस को रोका जा सकता है. यह एक अलग तरीका हो गया है विरोधी दलों को मुसीबत में डालने का.

2016 में अचानक नोटबंदी की गई थी. उस में 5 सौ और 1 हजार रुपए के नोट बंद कर दिए गए थे. उस के बाद 5 सौ और 2 हजार रुपए के नए नोट जारी किए गए थे. नोटबंदी करने की वजह यह बताई गई थी कि उस से भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद पर रोक लगेगी. 7 सालों में न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही कालाधन और आंतकवाद खत्म हुआ है. फिर उस नोटबंदी का लाभ क्या हुआ? उलटे, नोटबंदी के चलते तमाम छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए, जिस से लोग बेरोजगार हो गए. सरकार ने कहा था कि नोटबंदी से कालाधन वापस आएगा जिस से बेरोजगारी घटेगी जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ.

कोरोनाकाल में घरों में खाने के लिए भोजन का प्रबंध करने का अनाज नहीं था. सरकार तब से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन दे रही है. जिस से यह पता चलता है कि देश में अभी भी कितनी गरीबी है? नोटबंदी से कैशलैस अर्थव्यवस्था का प्रभाव जनता की जेब पर पड़ रहा है. अब उसे हर बैंकसेवा की कीमत चुकानी पड़ रही है. औनलाइन फ्रौड अलग से बढ़ गए हैं जो जनता की जेब को चूना लगा रहे हैं. इस की मुख्य वजह पैन और आधार कार्ड हैं. मोबाइल नंबर से जुड़ने के बाद इन के खतरे बढ़ गए हैं.

 

पैन कार्ड लाभ से अधिक मुसीबत का कारण

सरकार पैन कार्ड के कई तरह के फायदे गिनाती है. परंतु अगर आप पूरी तरह सावधानी नहीं बरतेंगे तो आप को नुकसान भी हो सकता है. सरकार ने पैन कार्ड जनता के लाभ के लिए नहीं, उस के पैसों की निगरानी के लिए बनाया है. अगर आप बैंक या कहीं भी 50,000 रुपए से ऊपर के लेनदेन करते हैं तो आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी जरूरी हो गई है.

इस का मतलब यह है कि जैसे ही 50 हजार रुपए से ऊपर के लेनदेन करेंगे, सरकार की नजर में आ जाएगा. हर तरह के लेनदेन में पैन कार्ड को जरूरी कर दिया गया है. बैंक में खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड सब से जरूरी हो गया है. किसी कंपनी में नौकरी करने के लिए जब फौर्म भरा जाता है तब भी पैन कार्ड की जरूरत होती है.

पैन कार्ड को पहचानपत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आप बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो आप के पास पैन कार्ड होना जरूरी है. अगर आप के पास पैन कार्ड नहीं होगा तो आप बहुत से ऐसे सरकारी लाभ हैं जो आप नहीं ले पाएंगे.

पैन नंबर का इस्तेमाल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आवश्यक होता है. अगर आप 50 हजार रुपए से अधिक की गाड़ी खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं तो आप को पैन कार्ड की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी. 5 लाख रुपए से अधिक की ज्वैलरी खरीदते हैं तो दुकान को खरीदारी के समय आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी अनिवार्य है.

इसी तरह से आप किसी तरह की बीमा योजना का लाभ लेते हैं या बीमा में निवेश करते हैं तो आप के पास पैन कार्ड अवश्य होना चाहिए. म्यूचुअल फंड या शेयर मार्केट में निवेश करने हेतु भी आप के पास पैन कार्ड होना अनिवार्य है. क्रैडिट व डैबिट कार्ड के आवेदन करना चाहते हैं तो आप को पैन कार्ड देना आवश्यक होता है. इस तरह से कोई भी आर्थिक लेनदेन बिना पैन कार्ड के नहीं कर सकते हैं.

पैन कार्ड का प्रयोग आर्थिक लेनदेन तक सीमित रहता, तब भी कोई बात नहीं थी. अब पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक कर दिया गया है. आधार कार्ड का प्रयोग हर जगह होने लगा है क्योंकि यह पते के प्रमाणपत्र के रूप में देखा जाता है. पैन कार्ड इस से लिंक होने से आर्थिक अपराध या साइबर फ्रौड करना सरल हो गया है. आधार नंबर, पैन नंबर और फोन नंबर एकसाथ लिंक होते ही फ्रौड करना बेहद सरल हो जाता है. एक ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) मिलने की देर होती है, फ्रौड करने वाले आप के बैंक से आप का पैसा निकाल सकते हैं.

पैन आधार या फोन किसी भी नंबर को हैक कर के फाइनैंशियल डिटेल या आर्थिक जानकारी आसानी से ली जा सकती है. अगर आप ने पैन कार्ड को आधार से लिंक नहीं कराया है तो पैन कार्ड को बंद किया जा सकता है जिस से आप को आर्थिक व अन्य कई तरह के नुकसान का सामना करना पड़ता है. कभी भी एक से ज्यादा पैन कार्ड नहीं रखना चाहिए अन्यथा आप को जुर्माने के साथसाथ जेल भी हो सकती है. पैन कार्ड बनवाते समय अपनी पूरी जानकारी सहीसही देनी चाहिए वरना आप के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

पैन कार्ड खो जाने की स्थिति में उस का गलत प्रयोग किया जा सकता है. अगर आप का पैन नंबर दूसरे के हाथ में लग जाए तो उस से वह अधिक पैसे का लेनदेन कर सकता है और डिपार्टमैंट आप से उस अधिक पैसे के स्रोत के बारे में जानकारी मांग सकता है. जानकारी न दे पाने पर ऐसी स्थिति में आप को जेल हो सकती है. पैन कार्ड का गलत प्रयोग कर के आप का पूरा डाटा लीक हो सकता है. आप बैंक से जितने भी लेनदेन करते हैं या पैन कार्ड का प्रयोग कर के लेनदेन करते हैं, उन की पूरी जानकारी पैन कार्ड में सबमिट होती रहती है, जिस का पूरा डाटा सरकार के पास होता है. इस प्रकार कहें तो आप का लेनदेन सरकार की नजर में होता है.

 

फ्रौड का आधार बन गया आधार कार्ड

आधार कार्ड के बिना आज एक भारतीय खुद की कल्पना नहीं कर सकता. यही आधार कार्ड फ्रौड का सब से बड़ा कारण बन गया है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि आधार का नंबर फोन नंबर, पैन कार्ड नंबर और बैंक के खाता नंबर से जोड़ दिया गया है. अब अगर आधार नंबर मिल जाए तो उस के जरिए बैंक के खाते तक पहुंचना सरल हो गया है.

सरकार ने हर जगह पर आधार कार्ड को दिखाने का नियम बना दिया है. घर पर लगी रसोई गैस से ले कर ड्राइविंग लाइसेंस तक, ट्रेन के सफर से ले कर घरेलू उड़ान तक जैसी जीवन की सभी जरूरतों में इस का प्रयोग होने लगा है. इस के जरिए संपत्ति पर नजर रखी जाने लगी है.

आधार कार्ड का इस्तेमाल पहचानपत्र के रूप में भी किया जाने लगा है. भारत अथवा राज्य सरकार की योजनाओं में तो आधार कार्ड का इस्तेमाल व्यक्तिगत पहचानपत्र के रूप में किया जाने लगा है. एक बार आधार कार्ड बन जाने के बाद इस की उपलब्धता काफी आसान है. इस कार्ड को देश के किसी भी कोने में रहते हुए केवल एक क्लिक में डाउनलोड किया जा सकता है.

इस के अलावा इस की फिजिकल कौपी को भी कहीं भी और कभी भी मांगा जा सकता है. इस से फ्रौड की संभावना बढ़ती है. एक आधार कार्ड नंबर पर आप की सारी संपत्ति का विवरण दर्ज हो जाता है. इस से सरकार को संपत्ति पर नजर रखना सरल हो गया है.

आधार कार्ड और प्राइवेसी से जुड़ी चिंताओं का आपस में गहरा नाता है. भारत सरकार ने जनवरी 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी आधार कार्ड का गठन किया. सितंबर 2010 से आधार कार्ड बनना शुरू हुआ. विवाद होने पर सरकार द्वारा कहा गया कि किसी भी आधार कार्ड की फोटोकौपी साझा न करें, इस से प्राइवेसी लीक हो सकती है. बाद में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आननफानन इस को वापस ले लिया. आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम ऐसी सुविधा है जो नकद निकासी और फंड ट्रांसफर जैसे बैंकिंग लेनदेन की सहूलियत देती है.

इस तरह का लेनदेन कोई बैंकिंग कौरेस्पौंडैंट मिनी-एटीएम के जरिए करता है. इस ट्रांजैक्शन के लिए आप को आधार नंबर, बैंक का नाम व उंगलियों के निशान चाहिए. ऐसे में कोई भी जालसाज किसी का आधार नंबर और बायोमीट्रिक्स चुरा कर उस का बैंक अकाउंट आसानी से खाली कर सकता है. पिछले दिनों तेलंगाना और हरियाणा में कई ऐसे मामले सामने आए भी. हरियाणा में अपराधियों ने कथित तौर पर एक सरकारी वैबसाइट से लोगों के बायोमीट्रिक्स चुराए थे.

साल 2018 में टैलीकौम रैगुलेटरी अथौरिटी औफ इंडिया (ट्राई) के तत्कालीन चेयरमैन आर एस शर्मा ने ट्विटर पर अपना आधार नंबर शेयर किया. उन्होंने ओपन चैलेंज दिया कि उन के आधार नंबर से डेटा लीक कर के दिखाया जाए. इस के बाद एलियट एल्डरसन नाम के एक हैकर ने शर्मा के फोन नंबर, अकाउंट नंबर, ऐड्रेस, पैन नंबर समेत कई पर्सनल फोटो भी ट्विटर पर शेयर कर दीं.

इस के साथ एलियट एल्डरसन ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपना आधार नंबर शेयर करने का चैलेंज दिया. शर्मा ने दलील दी कि ये सारी जानकारियां पब्लिक प्लैटफौर्म पर पहले ही मौजूद हैं. उन्होंने इस बात की पुष्टि नहीं की थी कि एथिकल हैकर ने जो पैन कार्ड की डिटेल शेयर की, वह उन की थी या नहीं.

सरकार आधार से जुड़ी असल समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है. अगर जनता को आधार डेटा के दुरुपयोग से बचाना है, तो मजबूत डेटा प्रोटैक्शन कानून की जरूरत पड़ेगी. इस के बिना हर होटल, मूवी थिएटर और स्कूल फ्रौड संस्थाओं के रहमोकरम पर हैं जो एक पल में पता लगा सकती हैं कि हम कौन हैं. सरकार तो आधार कार्ड के जरिए जनता की संपत्ति पर नजर रखती ही है. अब फ्रौड करने वालों को भी इस का मौका मिल गया है.

 

क्यों करते हैं बारबार केवाईसी

पहले के दौर में जब बैंक में खाता खुलता था उस समय खाता खोलने वाले की डिटेल मांगी जाती थी. उन में पहचानपत्र होता था. जो इस बात का प्रमाण होता था कि बैंक में खाता खोलने वाला कहां रहता था.

खाता खोलने के बाद जब निवास बदलता था, तब बैंक को बताना पड़ता था कि पता बदल गया है. इस के बाद खाता खोलते समय पैन कार्ड लगने लगा. अब पैन कार्ड के साथ आधार कार्ड भी लिया जाता है. आधार और पैन के साथ मोबाइल नंबर भी जरूरी हो गया है बैंक खाता खोलने के लिए. इस तरह से लोगों के सारे खाते एक ही जगह पर दिखने लगते हैं जिस से सरकार संपत्ति पर नजर रखने में सफल हो जा रही है.

पैन, फोन नंबर, आधार और मोबाइल नंबर एकसाथ जुड़ने से सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं व योजनाओं के लाभ को भी नजर में रखा जा सकता है. हर सालदोसाल के अंतराल में बैंक केवाईसी कराने के लिए बुलाते हैं. जब नहीं जाते हैं तो वह खाते को बंद कर देता है. केवाईसी कराने के बाद ही दोबारा खाता चालू होता है. केवाईसी में पूरी तरह से वही सब डाक्यूमैंट्स जमा करने होते हैं जो बैंक में खाता खोलते समय हुए थे. केवाईसी के जरिए भी एक तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखती है. ऐसे में बारबार केवाईसी कराना गलत है. इस से डाक्यूमैंट्स के गलत हाथों में जाने का खतरा रहता है.

 

 

संपत्ति पर डाका डालने के लिए डिजिटल पेमेंट

औनलाइन ट्रांजैक्शन को डिजिटल पेमेंट के नाम से भी जाना जाता है. यह संपत्ति पर नजर रखने का एक जरियाभर है. सरकार कैशलैस इकोनौमी को बढ़ावा देने के नाम पर कुछ सुविधाओं का झांसा दे कर लोगों को लुभा रही है. जैसे, कार्ड ट्रांजैक्शन पर सरकार ने 2,000 रुपए तक के पेमेंट को सर्विस टैक्स से फ्री कर दिया है. कार्ड से पैट्रोल खरीदने पर 0.75 फीसदी छूट, रेल टिकट, हाइवे पर टोल, बीमा खरीदने जैसी कई छूट की घोषणा की गई है. सरकार द्वारा जारी छूट स्कीम और ई-वौलेट कंपनियों के कैशबैक औफर, रिवार्ड पौइंट्स व लौयल्टी बेनिफिट के चलते बचत दिखती है लेकिन असल में इस का प्रयोग सरकार की नजर में रहता है, जिस का इस्तेमाल वह अपने तरह से करती है.

डिजिटल ट्रांजैक्शन में सब से बड़ा जोखिम आइडैंटिटी चोरी का है. लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन के अभ्यस्त नहीं हैं, जबकि बहुत पढ़ेलिखे और समझदार लोग भी फिशिंग ट्रैप में फंस जाते हैं. औनलाइन फ्रौड के बढ़ते खतरे के दौर में अधिकतर लोगों के डिजिटल ट्रांजैक्शन प्लेटफौर्म पर आने से हैकिंग के खतरे बढ़ रहे हैं. इस तरह का फ्रौड अगर हो गया तो शिकायत कहां करनी होगी? देश में शिकायत पर सुनवाई की दशा बहुत खराब है, जिस से फ्रौड किया पैसा वापस मिलना मुश्किल होता है. साइबर क्राइम से बचने के लिए आज भी लोग चैकबुक के प्रयोग को सब से सही रास्ता मानते हैं. कमजोर शिकायत सुनवाई व्यवस्था की वजह से लोगों के पास औनलाइन फ्रौड से निबटने का कोई उपाय नहीं है. इस के अलावा इस तरह के फ्रौड से निबटने के लिए कोई कड़ा कानून भी नहीं है.

सारे फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन डिजिटल होने की वजह से मोबाइल का महत्त्व बहुत बढ़ गया है. इस के खोने का मतलब दोहरा नुकसान है. पेमेंट का कोई दूसरा विकल्प नहीं होने और कैश नहीं होने की वजह से समस्या ज्यादा गहरा सकती है. देश की जनता गांव में भी रहती है. वहां फोन हमेशा चार्ज नहीं रहता. अगर फोन बंद हो गया तो ट्रांजैक्शन बीच में फंस जाएगा. इसी तरह से बुजुर्ग लोगों के लिए इस में दिक्कतें ज्यादा हैं. दूसरे की मदद लेने पर डिजिटल पेमेंट में फ्रौड होने की संभावना ज्यादा होगी. कार्ड के प्रयोग से लोगों में अधिक खर्च करने की लत लग जाती है. कैश खर्च करने में लोग हिचकते हैं. लोगों का खर्च बढ़ जाएगा, जिस से उन का बजट बेकार साबित हो जाएगा.

 

जेवर और जमीन पर भी सरकार की नजर

सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को ले कर भी कानून लाने वाली है जिस में यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.

इस के पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सब से बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनो में इस का हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस पर भी है.

जेवर या गहने जब भी खरीदें उस की रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिश करें कि उस की रसीद आप के पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उस को उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इस के बिना जेवर नहीं देतीं. इस के अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमेंट का रास्ता अपनाती है. इस में आप का फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.

ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आप के पास नहीं हो सकती. सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उस के जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें.

चारु असोपा और राजीव सेन हमेशा के लिए होंगे अलग, कोर्ट में डाली अर्जी

‘रिश्ता क्या कहलाता है’ एक्ट्रेस चारु असोपो और राजीव सेन की जिंदगी में काफी ज्यादा उथल-पुथल मची हुई है, दोनों एक -दूसरे से काफी समय से अलग रह रहे हैं. उनकी एक बेटी है जिसका नाम जियाना है. जियाना इन दिनों अपनी मां के साथ हैं.

हालांकि राजीव सेन अपनी बेटी से मिलने आते रहते हैं, बता दें कि अब दोनों को लेकर खबर आ रही है कि चारुल और राजीव दोनों तलाक लेने वाले हैं. खबर है कि दोनों ने कोर्ट में अर्जी डाल दी है, इस महीने दोनों अग हो सकते हैं.

 

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बता दें कि राजीव और चारुल की आखिरी सुनवाई 8 जून को हो सकती है, रिपोर्ट के मुताबिक चारुल और राजीव की सुनवाई इस साल जनवरी से हो रही है, इस आखिरी सुनवाई के बाद से दोनों की राहें अलग -अलग हो जाएंगी. इस खबर पर राजीव और चारू ने कमेंट नहीं किया है.

बता दें कि शादी के तुरंत बाद से चारू और राजीव के रिश्ते में उथल-पुथल मची हुई है, दोनों एक-दूसरे के साथ रहना पसंद नहीं करते हैं.

बता दें कि साल 2019 में इन दोनों कि शादी हुई थी, जिसके बाद से दोनों कि अब एक बेटी भी है.

मलाइका अरोड़ा की प्रेग्नेंसी पर अर्जुन कपूर ने किया रिएक्ट, सोशल मीडिया पर दिया ये जवाब

अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा पिछले कई सालों से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं, दोनों साथ में कई जगह डेट करते नजर आते हैं, हाल ही में मलाइका अरोड़ा अर्जुन कपूर को लेकर कई सारी खबरें आ रही हैं, खबर  थी कि मलाइका प्रेग्नेंट हैं.

जिसके बाद कई सारी रिपोर्ट में यह खबर छप गई कि मलाइका अरोड़ा प्रेग्नेंट हैं, हालांकि अब जाकर अर्जुन कपूर ने इस बारे में खुलासा किया है कि मलाइका अरोड़ा की प्रेग्नेंसी की खबर झूठी थी, वह प्रेग्नेंट नहीं थीं, उन्होंने बताया कि मलाइका को लेकर जो खबर फैलाई जा रही थी, वह बिल्कुल गलत थी, लोग किसी भी खबर को छापने से पहले सोचते नहीं है.

 

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आगे अर्जुन ने कहा कि मलाइका कि प्रेग्नेंसी को लेकर जो लोग अफवाह उड़ाएं थें, उसके पीछे कि वजह थी, सिर्फ पब्लिसिटी को लेना हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए, लोग अपने फायदे के लिए कुछ भी करते है, उन्हें यह नहीं पता होता है कि इसका असर हमारे पर्सनल लाइफ पर कितना ज्यादा पड़ता है.

मीडिया वाले ही हमें आगे बढ़ाते हैं और यहीं लोग हमें परेशान भी करते हैं, इसलिए हमें इन लोगों से बच कर रहना चाहिए और रिक्वेस्ट है कि ऐसी अफवाह खबरें ना फैलाएं.

त्याग की गाथा- भाग 5: पापा को अनोखा सबक

स्वार्थवश प्रेमा इतना नहीं सोच पाई कि वह राजेश के योग्य है भी या नहीं. वैसे, वह डाक्टर शर्मा के साथ एक लंबे अरसे से घूमतीफिरती रही है, लेकिन अभी तक उस ने आत्मिक झुकाव के अतिरिक्त उन से कोई संपर्क नहीं रखा था. डाक्टर शर्मा हमेशा एक दूरी सी बनाए रखते थे. हंसतेबोलते, समझाते थे, पर उस की पहल पर भी कभी उन्होंने उस के प्रति प्रेम का इजहार नहीं किया. वह एकदम रहस्यमयी व्यक्तित्व थे. वह पढ़ीलिखी थी, उस में सोचनेसमझने की शक्ति भी और सुंदर भी, लेकिन आज के युग में एक लड़की के लिए अच्छा पति प्राप्त करना ही तो काफी नहीं होता. मांबाप मजबूर हैं, और ऐसे वक्त डाक्टर शर्मा का स्थायी सहारा पाना, उस के लिए सौभाग्य के अतिरिक्त हो भी क्या सकता था?

बैरा आया, तो रज्जू ने ढेर सारी खाने की चीजों का और्डर दिया.

खानापीना चलता रहा और वहीं तय होता रहा भविष्य का कार्यक्रम.

डाक्टर शर्मा उद्विग्न में बैठे थे. रज्जू बैडरूम में था. उन की हालत इस वक्त बहुत दयनीय हो रही थी. प्रेमा के प्रति उन के मन में एक कमजोरी सी आ चुकी थी और इसीलिए उन्होंने कई बार उस से शादी करने की सोची भी, पर फिर सुषमा और सादिया यानी साधना का त्याग सामने आ गया. वैसे, प्रेमा से उन का भी आत्मिक झुकाव ही था, लेकिन अब वह उस को सहारा दे कर छोड़ना नहीं चाहते थे.

सहसा कमरे में प्रेमा ने प्रवेश किया. उस का चेहरा अन्य दिनों की अपेक्षा गंभीर था. डाक्टर शर्मा कुछ बोलते, इस के पूर्व ही वह बोली, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आज के बाद आप से नहीं मिल सकूंगी.’’

डाक्टर शर्मा हतप्रभ हुए और बोले, ‘‘क्यों…? अच्छा तो रज्जू ने आखिर तुम्हें मेरी किसी स्थिति से अवगत करवा कर, बहका ही दिया? प्रेमा, मैं ने तो तुम्हें सबकुछ पहले ही बता दिया था कि मेरे 3 बच्चे हैं.’’

‘‘मुझे किसी ने नहीं बहकाया, डाक्टर साहब,’’ प्रेमा ने दृढ़ता से कहा, ‘‘दरअसल, मैं शादी कर रही हूं.’’

‘‘किस से?’’

‘‘अरे, श्रीमानजी, इतनी बढ़िया लड़की को लड़कों की क्या कमी है?’’

राजेश ने बीच में आ कर कहा, ‘‘कहो, प्रेमा, कैसी हो?’’

प्रेमा ने निगाहें झुका लीं, तो डाक्टर शर्मा हताश स्वर में बोले, ‘‘लेकिन, प्रेमा, हमतुम तो…’’

‘‘श्रीमानजी,’’ बात काट कर रज्जू बोला, ‘‘कोई भी युवती अपने मन से किसी अधेड़ के साथ बंधना नहीं चाहती. वह तो उन की मजबूरियां होती हैं, जो उस को नारकीय जीवन बिताने पर बाध्य करती हैं. प्रेमा शादी कर रही है, मुझ से.’’

‘‘रज्जू,’’ खुश से हो कर बोले डाक्टर शर्मा.

‘‘यह सच है, डाक्टर साहब,’’ प्रेमा ने भी धीरे से कहा, पर वह भौचक्की थी कि डाक्टर शर्मा खुश क्यों हैं?

डाक्टर शर्मा ने प्रेमा के सिर पर हाथ रख दिया.

प्रेमा ने चौंक कर क्रमश: डाक्टर शर्मा और रज्जू को देखा, तो रज्जू ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘पापा, आप भी तो इस से… पापा, नारी अपनी मरजी से कभी भी घाटघाट का पानी नहीं पीना चाहती है, लेकिन हम पुरुष ही उसे ऐसा करने को बाध्य करते हैं. प्रेमा ने और न आप ने कभी अगर कोई गलती की है तो पापा, आप इतने विद्वान, सुलझे हुए होने के बावजूद जब किसी दलदल में फंस सकते हैं, यह तो मैं सोच ही नहीं सकता. एक अनुभवहीन युवती के लिए आप गुमराह हों, यह बहुत बड़ी बात है. पापा, आप ने मेरी मां के साथ जो किया है, इस का मुआवजा मैं दूंगा प्रेमा से विवाह कर के.’’

डाक्टर शर्मा हंसते हुए बैठ गए. अपनी सोच का अहसास तो उन्हें था, पर यह गनीमत थी कि कभी पानी सिर पर से ऊपर नहीं गया. रज्जू ही बोला, ‘‘प्रेमा, अपने पापा को दलदल से निकालने के लिए मैं ने तुम से झूठ बोला था कि मैं कनाडा जा रहा हूं. ऐसा कुछ भी नहीं है. लेकिन, हां, मैं शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा.’’

‘‘राजेश…’’ अनायास ही प्रेमा के मुंह से निकला.

‘‘लेकिन, यह सच है, प्रेमा, मैं तुम से विवाह करना चाहता हूं, बशर्ते तुम को स्वीकार हो और तुम कुछ दिनों प्रतीक्षा कर सको.’’

प्रेमा की सिसकियां बंध गई थीं, अत: राजेश ही बोलता गया, ‘‘पापा, एक तरह से तुम्हें पसंद कर ही चुके हैं, मां को तुम भा ही जाओगी, क्यों पापा?’’

बेटे की होशियारी देख कर डाक्टर शर्मा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. भरे गले से वह बोले, ‘‘हम सब जल्दी ही भोपाल चलेंगे, रज्जू.’’

हंस कर रज्जू बोला, ‘‘अवश्य, पापा. लेकिन यहां से जाने से पूर्व आप को प्रेमा को वचन देना होगा कि आप इस को पुत्रवधू के रूप में स्वीकारने को तैयार हैं?’’

डाक्टर शर्मा की निगाहें खुशी से फैल गईं, किंतु तभी दृढ़ता लिए हुए उठीं. ‘‘लेकिन एक शर्त है, रज्जू, साधना से क्षमा करवा दोगे.’’

‘‘मेरी मां भी बहुत महान हैं, और आप भी वास्तव में महान हैं पापा.’’

‘‘प्रेमा,’’ डाक्टर शर्मा बोले, ‘‘हम तुम्हारे मातापिता से मिलना चाहते हैं. अभी, इसी वक्त बुलाओ, ताकि वे भी तो रज्जू को देख लें.’’

‘‘मैं किसी कीमत पर प्रेमा जैसी हंसनेबोलने वाली चिड़िया को अपने फंदे से निकलने नहीं देना चाहता. अब तक यह मेरी स्टूडैंट थी, अब मैं इस का ससुर होऊंगा, रोब जमाने वाला…’’ प्रसन्नता की अतिशयता में तीनों के पांव जमीन पर ठीक से नहीं पड़ रहे थे.

प्रेमा बोली, ‘‘अब मुझे समझ आया कि 2 वर्ष से साथ रहने पर भी आप ने मुझे हाथ तक क्यों नहीं लगाया.’’

रज्जू बोला, ‘‘प्रेमा, पापा और साधना मां का क्या संबंध है, यह मैं फिर कभी बताऊंगा. शायद, पापा को भी नहीं मालूम कि साधना मां ने 3 साल पहले ही सारी बात मुझे बता दी. तभी तो जब कालेज में सब पापा और तुम्हें ले कर बातें बना रहे थे, मैं गुस्से में तप रहा था, क्योंकि मैं पापा को जानता हूं. वे महान त्याग करना जानते हैं.’’

एक प्यार पड़ोस में- भाग 1

‘‘मैं ने अपने जीवन में आप के अलावा किसी और पुरुष का स्मरण तक नहीं किया है, कमिल. आप चाहें तो मेरी अग्निपरीक्षा ले लें.’’

‘‘नहीं, नहीं… राम बोलो सुधा, यहां मैं राम बन कर तुम्हारे सामने खड़ा हूं.’’

ऐसा सुन कर कमिल झल्ला गया था. सुधा के चेहरे पर भी क्षमा के भाव थे. दरअसल, रामलीला का मंचन महल्ले की कमेटी द्वारा किया जा रहा था.

इस रामलीला में कमिल राम का अभिनय कर रहा था और सुधा सीता का. पहले तो सुधा ने रामलीला में भाग लेने से ही मना कर दिया था. कमेटी की मुश्किल यह थी कि सीता के पात्र के लिए न केवल खूबसूरत लड़की चाहिए थी, वरन पढ़ीलिखी भी, ताकि वो पात्रों के डायलौग याद रख सके. कमेटी ने तो कमिल को भी राम का अभिनय करने को कहा था, पर कमिल ने निर्देशन करने का निश्चय कर लिया था.

जब सुधा ने साफ मना कर दिया, यहां तक कि अपने पिताजी को भी बोल दिया कि उसे परीक्षा की तैयारी करनी है और उस के पास इतना समय नहीं है कि वह अभिनय करे, तब कमिल को ही बीच में आना पड़ा था.

कमिल ने सुधा को समझाया था. सुधा ने भी साफसाफ कह दिया था,

‘‘अगर आप राम का अभिनय कर रहे हो, तो मैं सीता का अभिनय करने को तैयार हूं. मैं हर किसी के साथ अभिनय नहीं कर सकती.’’

सुधा की जिद के चलते कमिल को राम का किरदार निभाना पड़ा था और सुधा को सीता का. पर, पूरी रामलीला के मंचन में जाने कितनी बार सुधा ने राम के स्थान पर कमिल का ही नाम लिया था.

‘‘सुधा, तुम ठीक से डायलौग याद किया करो. रामलीला में कमिल नहीं, मैं राम हूं. और तुम को केवल राम का संबोधन ही करना है.’’

सुधा अपनेआप को इस के लिए तैयार भी करती, पर जाने कैसे राम की जगह बारबार कमिल का ही नाम उस की जबान पर आ जाता. सीता स्वयंवर के दृश्य में तो उस ने सीधेसीधे कमिल को ही संबोधित कर दिया था, ‘‘आप मुझ से ही शादी करेंगे न कमिल.’’

यह सुन कर कमिल चौंक सा गया था. कमिल ही क्या, वे सारे लोग जो इस मंचन को देख रहे थे, अचंभित से हो गए थे. सुधा के चेहरे पर तब पछतावे के भाव नहीं याचना के भाव थे, मानो चाह रही हो कि कमिल कहे, ‘‘हां सुधा, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम से ही शादी करूंगा.’’

पर, कमिल नाराज हो गया था. वह नाराज होते हुए बोला, ‘‘सब के सामने तुम को इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए थी सुधा.’’

सुधा कमिल के चेहरे पर नाराजगी के भाव साफसाफ पढ़ रही थी.

“अब मैं कोई जानबूझ कर थोड़े न ऐसा करती हूं. वह तो आप को सामने देखती हूं तो आप का ही नाम जबान पर आ जाता है,’’ सुधा मुसकराती हुई कहती.

रामलीला को निर्देशित कर रहे रामबाबू के चेहरे पर हर बार गुस्से के भाव उभर कर रह जाते. कमिल सुधा के बदले में उन से क्षमा मांग लेता.

कमिल कुछ ही दिन पहले सुधा के पड़ोस में एक कमरे में किराएदार बन कर आया था. कमिल पत्रकार था और कहानियां भी लिखता था. अकसर उस की कहानियां अखबारों में छपती भी थीं. वह अकसर सुधा को कालेज जाते और आते देखा करता था. सुधा का ध्यान कभी उस की ओर नहीं गया था. सुधा अपनी आदत के अनुसार नजर झुका कर कालेज जातीआती और बाकी समय अपने कमरे में ही रहती थी. फालतू घूमना और बातें करना उस को बिलकुल भी पसंद नहीं था. लेकिन उस को यह जरूर मालूम था कि कमिल उस के पड़ोस में रहने आए हैं और पत्रकार हैं. उस ने उन से मिलने की कोई उत्सुकता नहीं दिखाई थी.

यह एक संयोग ही था कि कालेज में कमिल सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग के लिए पहुंचा था और उस की सुधा से मुलाकात हो गई थी.

‘‘आप बहुत अच्छा बोलती हैं,’’ कमिल ने कहा था.

‘‘थैंक्यू…’’ कह कर सुधा कमिल के सामने से हट गई थी.

कार्यक्रम के बाद एक टीचर ने कमिल से मिलवाया था. वे बोले, ‘‘सुधा, ये कमिल हैं. अभी तुम जो भाषण बोल रही थीं न, उस का बहुत सा भाग तुम ने इन के लिखे लेख से ही लिया है.’’

‘‘जी…’’ सुधा घबरा सी गई थी. हालांकि उस ने जानतेबूझते ऐसा नहीं किया था. उस ने तो सुबह का अखबार उठाया, उस में विवेकानंद के बारे में लेख छपा था. उस ने उस में से पौइंट लिए और बोल दिया. उस ने पहली बार सिर उठा कर कमिल को देखा था.

‘‘सौरी.’’

‘‘नहीं… नहीं, लेख होते ही इस के लिए हैं, इस में सौरी बोलने की कोई जरूरत नहीं है,’’ कमिल ने उस का घबराना देख लिया था.

कमिल ने भले ही कुछ न बोला हो, पर सुधा के मन में आए अपराध भाव उस का पीछा नहीं छोड़ रहे थे.

शाम को कालेज से लौटने के बाद सुधा अपनी मम्मी को ले कर कमिल के कमरे में गई थी.

‘‘सुधा आप से मिलना चाह रही थी…’’ उस की मम्मी ने आने का कारण बताया.

‘‘जी, बैठिए…’’ कमिल ने एक कुरसी और एक स्टूल उन की ओर खिसका दिए थे.

सुधा ने भरपूर निगाहों से कमिल के कमरे का मुआयना किया. कमरा छोटा था और अस्तव्यस्त भी, पर आकर्षक लग रहा था. कमिल शायद उस समय विवेकानंद की ही कोई किताब पढ़ रहा था.

‘‘सुधा यहीं कालेज में पढ़ती है. एमए की पढ़ाई कर रही है. आखिरी साल है इस का,’’ मम्मी ने बातों का सिलसिला शुरू किया.

‘‘जी, आज ही मालूम हुआ… मैं कालेज में मिला हूं इन से.’’

‘‘अच्छा, आप भी कालेज में पढ़ते हैं…’’

‘‘नहीं… नहीं, मैं तो कालेज के एक कार्यक्रम के सिलसिले में गया था. वहां सुधाजी से मुलाकात हो गई थी.’’

गवाही : आखिर कौन था उस दंगे का गवाह

चकवाड़ा गांव में कल दोपहर को हुआ दंगा आज सुबह अखबारों की सुर्खियां बन गया. 6 घर जल गए. 3 बच्चों, 4 औरतों व 2 मर्दों की मौत के अलावा कुल 12 लोग घायल हो गए. कुछ लोगों को हलकीफुलकी चोटें आईं. इत्तिफाक से पुलिस का गश्ती दल वहां पहुंच गया और दंगे पर काबू पा लिया गया. पुलिस ने 30 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया.

गिरफ्तार हुए लोगों में नारायण भी एक था. उस ने जिंदगी में पहली बार जेल में रात काटी थी. जेल की उस बैरक में नारायण अकेला एक कोने में सहमा सा लेटा रहा. वह उन भेडि़यों के बीच चुपचाप आंखें बंद किए सोने का बहाना करता रहा. बाकी सभी जेल में मटरगश्ती कर रहे थे. सुबह होते ही सब के साथ नारायण को भी कचहरी लाया गया. भीड़ से अलग, उदासी की चादर ओढ़े वह एक कोने में बैठ गया.

पुरानी, मटमैली सफेद धोती, आधी फटी बांहों वाली बदरंग सी बंडी, दोनों पैरों में अलगअलग रंग के जूते, बस यही उस की पोशाक थी. कचहरी के बरामदे में फैली चिलचिलाती धूप सब को परेशान कर रही थी, पर नारायण धूप से ज्यादा अपने मन में छाए डर से परेशान था.

नारायण को इस बात का भी डर था कि अगर आज का सारा दिन कचहरी में ही लग गया तो दिनभर के कामधाम का क्या होगा. शायद आज घर वालों को भूखा ही सोना पड़ेगा. नारायण को मालूम था कि कचहरी में एक मजिस्ट्रेट होता?है, वकील होते हैं और तरहतरह के गवाह होते हैं. जेल से छूटने के लिए जमानत भी देनी पड़ती है.

‘पर आज कौन देगा उस की जमानत? कैसे बताएगा वह अपनी पहचान? कैसे वह अपनेआप को इस कचहरी के चक्कर से बचा पाएगा?’ ये सारे सवाल उस का डर बढ़ाए जा रहे थे. ‘‘नारायण हाजिर हो,’’ कचहरी के गलियारे में एक आवाज गूंजी.

लोगों की भीड़ से नारायण उठा और मजिस्ट्रेट के कमरे की तरफ बढ़ा. कमरे के दरवाजे पर खड़े चपरासी ने उसे टोका, ‘‘हूं, तुम हो नारायण,’’ उस चपरासी की रूखी आवाज में हिकारत भी मिली

हुई थी. ‘‘हां हुजूर, मैं ही हूं नारायण.’’

‘‘यहीं खड़े रहो. अभी तुम्हारा नंबर आने वाला है.’’ थोड़ी देर खड़े रहने के बाद चपरासी की दूसरी आवाज पर वह मजिस्ट्रेट के कमरे में घुस गया. उस ने उन मवालियों की तरफ देखा तक नहीं, जो रातभर जेल में उस के साथ बंद थे.

कमरे में घुसते ही नारायण को एक जोरदार छींक आ गई. सभी उस की तरफ देखने लगे, जैसे उस का छींकना भी जुर्म हो गया हो. नारायण की नजर जब एक आदमी पर पड़ी तो वह चौंक पड़ा और सोचने लगा, ‘अरे, यह आदमी तो अपने गांव का गुंडा है. यही तो गांव में दंगेफसाद कराता है.’

‘‘हां, तो आप दे रहे हैं इस की जमानत?’’ मजिस्टे्रट ने उस आदमी से पूछा. सफेद कुरतापाजामा में वह पूरा नेता लग रहा था. मजिस्ट्रेट ने कागज देखा, फिर वकील से पूछा, ‘‘जगन नाम है न इस का? क्या करता है यह? ऐसा कोई कागज दिखाइए, जिस से इस की कोई पहचान हो सके. भई, अब तो सरकार ने सब को मतदाताकार्ड दे दिए हैं. कोई राशनकार्ड हो तो वह दिखा दो.’’

वकील ने कहा, ‘‘हुजूर, ये मगेंद्रजी इस की जमानत देने आए हैं. अपने मंत्रीजी की बहन के बेटे हें. मैं भी इस को पहचानता हूं. इस का दंगे में कोई हाथ नहीं. यह तो बड़े शरीफ इज्जतदार लोगों के बीच उठताबैठता है.’’ नारायण हैरानी से कभी वकील को तो कभी जगन को देख रहा था. वह सोचने लगा, ‘कितना मीठा बोल रहा है वकील. इस का बस चले तो मजिस्ट्रेट को धरती पर लेट कर प्रणाम कर ले.

‘…और यह जगन तो हमेशा नशे में धुत्त रहता है. बड़ीबड़ी गाडि़यां इसे गांव तक छोड़ने आती हैं. लोग इसे गांव के सरपंच और इस इलाके के मंत्री का खास आदमी बताते हैं तभी तो मंत्री का भांजा इस की जमानत देने आया है. ‘कल भी दंगा इसी ने कराया होगा. पर इस की तो ऊंची पहुंच है, यह पक्का मुजरिम तो जमानत पर छूट जाएगा, पर मेरा क्या होगा?’ सोचतेसोचते नारायण ने अपनेआप से सवाल किया.

नारायण के पास न कोई वकील है, न राशनकार्ड, न मतदाताकार्ड यानी उस के पास पहचान का कोई सुबूत नहीं है. राशनकार्ड बना तो था, जिस से कभीकभार उस की बीवी कैरोसिन लाती थी तो कभी मटमैली सी शक्कर भी मिल जाती थी. थोड़े दिन पहले उस की बीवी ने उसे बताया था कि दुकानदार ने राशनकार्ड रख लिया है.

‘दुकानदार ने, पर क्यों?’ नारायण ने झुंझला कर अपनी बीवी से पूछा था. वह बोली थी, ‘दुकानदार कह रहा था कि सरकार का हुक्म आया है कि राशन की चीजें उसे मिलेंगी, जो इनकाम टकस (इनकम टैक्स) नहीं देता है.

‘यह बात तेरे मर्द को कागज पर लिख कर देनी पड़ेगी. अपने मर्द से इस कागज पर दस्तखत करवा कर लाना. तब मिलेगा राशनकार्ड. यह परची दी है दुकानदार ने.’ नारायण चौथी जमात तक पढ़ा था, पर ये ‘इनकम टैक्स’ क्या होता है, उस की समझ में नहीं आया था. पड़ोसियों की देखादेखी उस ने भी कागज पर दस्तखत कर दिए थे.

नारायण की बीवी उस परची को ले कर राशन की दुकान पर 5-6 बार चक्कर लगा आई थी, पर राशनकार्ड नहीं मिला था. दुकान खुले तभी तो राशनकार्ड मिले.

किसी खास समय में ही खुलती थी राशन की दुकान. फिर अगर नारायण को राशनकार्ड मिल भी जाता तो क्या होता. कौन उसे जेब में रख कर घूमता है. नारायण को याद आया कि मतदाताकार्ड भी बना था. पूरे एक दिन का काम खोटा हो गया था. गांव के सरपंच, प्रधान व पंच जैसे लोग आए थे और सब को जीप में बैठा कर ले गए थे.

पंचायतघर के अहाते में फोटो खिंचवाने वालों की लाइन लग गई थी. मतदाताकार्ड पर फोटो तो नारायण का ही था, पर खुद नारायण भी उसे पहचान नहीं पाया. अजीब सी डरावनी शक्ल हो गई थी उस की. प्रधानी के चुनाव हो गए, तो फिर पंच आए और सब के मतदाताकार्ड छीन कर ले गए. पूछने पर वे बोले, ‘आप लोग क्या करेंगे कार्ड का. कहीं गुम हो जाएगा तो बेवजह पुलिस में एफआईआर दर्ज करानी पड़ेगी. हमें दे दो, संभाल कर रखेंगे. चुनाव आएंगे तो फिर से दे दिए जाएंगे.’

गांव के अनपढ़ लोगों को तो जैसे उल्लू बनाएं, बन जाते हैं बेचारे. कार्ड बटोरने के बाद पंचसरपंच भी कन्नी काटने लगे. नारायण अपने खयालों में खोया हुआ था कि तभी जगन की मोटी भद्दी सी आवाज आई, ‘‘अच्छा हुजूर, बड़ी मेहरबानी हुई.’’

फिर सब एकएक कर कमरे से बाहर निकल गए थे. कमरे में नारायण, मजिस्टे्रट व चपरासी वगैरह रह गए थे. ‘‘आगे चलो,’’ चपरासी ने नारायण को आगे की ओर धकेला. धक्का इतना जोरदार था कि अगर वह मजबूती से खड़ा न होता तो सीधा मजिस्ट्रेट के सामने जा कर गिरता.

मजिस्ट्रेट ने नारायण को ऊपर से नीचे तक देखा. इस के बाद उस ने नारायण की फाइल देखते हुए पूछा, ‘‘नाम क्या है तुम्हारा?’’ ‘‘जी हुजूर, ना… ना… नारायण.’’

वह ‘हुजूर’ तो आसानी से कह गया, पर ‘नारायण’ शब्द उस की जबान पर ठीक से नहीं आ सका. आवाज हलक में ही अटक गई. मजिस्ट्रेट ने अपनी नजरें ऊपर उठाईं और नारायण की आंखों में झांका. नारायण ने आंखें झुका लीं. इधर मजिस्ट्रेट ने अपने तजरबे के तराजू में नारायण को तौल लिया था.

मजिस्टे्रट बोला, ‘‘अब क्यों डर रहे हो? दंगा करते समय डर नहीं लगा था क्या? शराब पीना और दंगा करना, बस यही काम जानते हो तुम गंवार लोग. ‘‘अच्छा सचसच बताओ, फावड़े से किस को मारा था तुम ने?’’ मजिस्ट्रेट की आवाज में कड़कपन था.

नारायण से यह झूठ बरदाश्त नहीं हुआ, बल्कि उस की ताकत बन गया. इस बार उस की आवाज में बिलकुल भी घबराहट नहीं थी. नारायण बोला, ‘‘नहीं हुजूर, मैं कभी शराब नहीं पीता. मैं तो दिनभर दूसरों के खेत में मेहनतमजदूरी करता हूं. अगर नशा करूं तो मेरे बीवीबच्चे भूखे मर जाएं…’’

नारायण में आया यह बदलाव मजिस्ट्रेट को अच्छा नहीं लगा. वह नारायण की बात को बीच में ही काटते हुए बोला, ‘‘अपनी रामकहानी मत सुनाओ मुझे. मेरी बात का जवाब दो. ‘‘मैं ने तुम से पूछा था कि तुम ने फावड़े से किसे मारा था? पुलिस की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पुलिस ने जब तुम्हें पकड़ा तो तुम्हारे हाथ में फावड़ा था.’’

मजिस्ट्रेट की डांट से नारायण फिर घबरा गया. हाथ जोड़ कर वह मजिस्ट्रेट से बोला, ‘‘हुजूर, फावड़े से तो मैं खेत में निराईगुड़ाई कर के आया था. जब दंगा हो रहा था तब मैं खेत से सीधा घर लौट रहा था. मुझे पता नहीं था कि गांव में दंगा हो रहा है. जब फावड़ा मेरे हाथ में था, तभी पुलिस ने मुझे पकड़ लिया.’’ मजिस्ट्रेट का गुस्सा अभी कम

नहीं हुआ था. वह बोला, ‘‘बड़ी अच्छी कहानी बनाई है. अच्छा चलो, पहले अपना पहचानपत्र दो. तुम्हारा न तो कोई वकील है, न जमानत देने वाला और न तुम्हारी पहचान साबित करने वाला कोई गवाह है. ‘‘मुझे तो तुम्हारी बात पर बिलकुल भी यकीन नहीं है. मैं जानता हूं, तुम सब झूठ बोलने में माहिर हो. कोई सुबूत हो तो जल्दी पेश करो, नहीं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी.’’

‘‘हुजूर, मेरे पास तो कोई पहचानपत्र नहीं है. गरीबी की क्या पहचान, हुजूर. मेरी पहचान का सुबूत तो यह मेरा शरीर और ये 2 हाथ हैं,’’ नारायण ने गिड़गिड़ाते हुए कहा और अपने दोनों हाथ की बंद मुट्ठियां मजिस्ट्रेट के सामने खोल दीं. उस की दोनों हथेलियां छालों से भरी हुई थीं. उस के हाथों के छाले उस की पहचान के पक्के सुबूत थे, जिन्हें किसी वकील की मदद के बिना सबकुछ कहना आता था.

ऐसी ठोस ‘गवाही’ उस मजिस्ट्रेट ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखी थी. यह देख कर मजिस्ट्रेट की आंखें भर आईं. मजिस्ट्रेट ने अपनेआप को संभाला और फिर हुक्म दिया, ‘‘इसे बाइज्जत बरी किया जाता है.’’

परनारी के मोह में : फरीदा के मोह में कैसे फंसा इदरीस

मुरादाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा कांठ के मोहल्ला पट्टीवाला के रहने वाले कारोबारी इदरीस 11 जनवरी, 2018 को गायब हो गए. दरअसल, इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई की फैक्ट्री है. उन की फैक्ट्री में सिले कपड़े कई शहरों के कारोबारियों को थोक में सप्लाई होते हैं.

11 जनवरी को वह प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से पेमेंट लेने के लिए घर से निकले थे. जब भी वह पेमेंट के टूर पर जाते तो फोन द्वारा अपने परिवार वालों के संपर्क में रहते थे. घर से निकलने के 2 दिन बाद भी जब उन का कोई फोन नहीं आया तो उन की पत्नी कनीजा ने बड़े बेटे शहनाज से पति को फोन कराया तो इदरीस का फोन स्विच्ड औफ मिला. शहनाज ने अब्बू को कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला. इस पर कनीजा भी परेशान हो गई.

इदरीस की फैक्ट्री के रिकौर्ड में उन सारे कारोबारियों के नामपते व फोन नंबर दर्ज थे, जिन के यहां फैक्ट्री से तैयार माल जाता था. चूंकि इदरीस प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के लिए निकले थे, इसलिए शहनाज ने प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा.

कारोबारियों ने शहनाज को बता दिया कि इदरीस उन के पास आए तो थे लेकिन वह 11 जनवरी को ही पेमेंट ले कर चले गए थे. पता चला कि दोनों कारोबारियों ने इदरीस को 5 लाख रुपए दिए थे. यह जानकारी मिलने के बाद इदरीस के घर वाले परेशान हो गए. सभी को चिंता होने लगी.

इदरीस ने जानपहचान वाले सभी लोगों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा लेकिन उसे उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. तभी कनीजा शहनाज के साथ प्रतापगढ़ पहुंच गईं. वहां के एसपी से मुलाकात कर उन्होंने पति के गायब होने की बात बताई.

एसपी ने इदरीस का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उस की अंतिम लोकेशन अमरोहा जिले के गांव रायपुर कलां की पाई गई. यह गांव अमरोहा देहात थाने के अंतर्गत आता है. प्रतापगढ़ पुलिस ने उन्हें अमरोहा देहात थाने में संपर्क करने की सलाह दी.

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30 जनवरी, 2018 को शहजाद और कनीजा थाना अमरोहा देहात पहुंचे. उन्होंने इदरीस के गुम होने की जानकारी थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह को दी. थानाप्रभारी ने शहनाज की तरफ से उस के पिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. शहनाज ने शक जताया कि उस के घर के सामने रहने वाली फरीदा और उस के पति आरिफ ने ही उस के पिता को कहीं गायब किया होगा.

रहस्य से उठा परदा

मामला एक कारोबारी के गायब होने का था, इसलिए थानाप्रभारी ने सूचना एसपी सुधीर यादव को दे दी. एसपी सुधीर यादव ने सीओ मोनिका यादव के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित की. टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह, एसआई सुनील मलिक, डी.पी. सिंह, महिला एसआई संदीपा चौधरी, कांस्टेबल सुखविंदर, ब्रजपाल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले इदरीस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि इदरीस के घर के सामने रहने वाली फरीदा ने 13 जनवरी को इदरीस के मोबाइल पर 50 बार काल की थी. शहनाज ने भी फरीदा और उस के पति पर शक जताया था, इसलिए पुलिस को भी फरीदा पर शक हो गया.

पुलिस ने फरीदा और उस के पति आरिफ को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन दोनों से पुलिस ने इदरीस के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे फरीदा और उस के पति ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने शहजाद की हत्या कर उस की लाश बशीरा के आम के बाग में दफन कर दी है.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह ने इदरीस का कत्ल हो जाने वाली बात एसपी को बता दी. यह जानकारी पा कर एसपी सुधीर कुमार थाना अमरोहा देहात पहुंच गए. उन की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने अभियुक्तों को रायपुर कलां निवासी बशीरा के आम के बाग में ले जा कर खुदाई कराई तो इदरीस की लाश करीब 5 फीट नीचे दबी मिली.

पुलिस ने वह लाश अपने कब्जे में ले ली. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने इदरीस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फरीदा और आरिफ ने पूछताछ के दौरान इदरीस की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित निकली—

इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई करने की फैक्ट्री थी. उस की फैक्ट्री में फरीदा नाम की महिला भी सिलाई करती थी. वह इदरीस के घर के सामने ही रहती थी. उस का पति साइकिल मरम्मत करता था. अन्य कारीगरों के मुकाबले इदरीस फातिमा का बहुत खयाल रखता था.

इतना ही नहीं, वह अन्य कारीगरों से उसे ज्यादा पेमेंट करता था. इस मेहरबानी की वजह यह थी कि इदरीस फरीदा को चाहने लगा था. इदरीस की कोशिश रंग लाई और उस के फरीदा से प्रेम संबंध बन गए.

इदरीस और फरीदा दोनों ही बालबच्चेदार थे, जहां इदरीस के 5 बच्चे थे, वहीं फरीदा भी 2 बच्चों की मां थी. करीब डेढ़ साल से दोनों के नाजायज संबंध चले आ रहे थे. इसी दौरान फरीदा एक और बेटे की मां बन गई. इदरीस फरीदा के छोटे बेटे को अपना बेटा बताता था, इसलिए वह उस का कुछ खास ही खयाल रखता था. इदरीस फरीदा को बहुत चाहता था. वह चाहता था कि फरीदा जिंदगी भर के लिए उस के साथ रहे, इसलिए वह फरीदा पर निकाह करने का दबाव बना रहा था.

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समझाने पर भी नहीं माने फरीदा और इदरीस

उधर इदरीस और फरीदा के प्रेमसंबंधों की जानकारी पूरे मोहल्ले को थी. फरीदा के पति आरिफ ने भी फरीदा को बहुत समझाया कि उस की वजह से परिवार की मोहल्ले में बदनामी हो रही है. वह इदरीस से मिलना बंद कर दे. उधर इदरीस के पिता बाबू ने भी इदरीस को समझाया कि वह क्यों अपनी घरगृहस्थी और कारोबार को बरबाद करने पर तुला है. फरीदा को भूल कर वह अपने परिवार पर ध्यान दे.

लेकिन इदरीस फरीदा के प्रेमजाल में ऐसा फंसा था कि उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. उस के सिर पर एक ही धुन सवार थी कि फरीदा अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ निकाह कर ले. वह यही दबाव फरीदा पर लगातार बना रहा था, पर फरीदा ऐसा करने को मना कर रही थी. वह कह रही थी कि जैसा चला आ रहा है, वैसा ही चलता रहने दे.

घटना के करीब 15 दिन पहले जब रात में फरीदा के पास इदरीस का फोन आया तो फोन की घंटी बजने से आरिफ की नींद खुल गई. फरीदा लिहाफ के अंदर ही इदरीस से बातें करने लगी. किसीकिसी फोन के स्पीकर की आवाज इतनी तेज होती है कि पास का आदमी भी बातचीत सुन सकता है.

फरीदा के पास भी ऐसा ही फोन था. वह अपने प्रेमी इदरीस से जो भी बात कर रही थी, वह आरिफ भी सुन रहा था. इदरीस उस से कह रहा था कि वह अपने पति आरिफ को ठिकाने लगवा दे. इस काम में वह उस की पूरी मदद करेगा. उस के बाद हम दोनों निकाह कर लेंगे.

अपनी हत्या की बात सुन कर आरिफ के होश उड़ गए. उस ने उस समय पत्नी से कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. सुबह होते ही आरिफ ने इस बारे में पत्नी से बात की. वह झूठ बोलने लगी. इस बात पर दोनों के बीच नोकझोंक भी हुई.

इस के बाद आरिफ ने फरीदा को विश्वास में लिया और घरगृहस्थी का वास्ता दे कर कहा, ‘‘देखो फरीदा, इदरीस कितना गिरा हुआ आदमी है, वह मेरी हत्या कराने पर तुला है. अपने स्वार्थ में वह तुम्हारी भी हत्या करवा सकता है. तुम खुद सोच लो कि अब क्या चाहती हो. यहां रहोगी या उस के साथ?’’

फरीदा ने अपने बच्चों का वास्ता दे कर आरिफ से कहा, ‘‘मैं इसी घर में तुम्हारे और बच्चों के साथ रहूंगी. उस के साथ नहीं जाऊंगी.’’

बन गई कत्ल की भूमिका

आरिफ ने सोचा कि आज नहीं तो कल इदरीस उस के लिए नुकसानदायक साबित होगा, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह इदरीस को सबक सिखाएगा. इस काम में उस ने पत्नी फरीदा को भी मिला लिया. फरीदा ने पति को यह भी बता दिया कि इदरीस पार्टियों से पेमेंट लेने के लिए प्रतापगढ़ और सुलतानपुर गया हुआ है. इस पर आरिफ ने उस से कहा कि किसी बहाने से उसे बुला लो तो बाकी का काम वह कर देगा.

आरिफ के साले फरियाद को यह पता था कि इदरीस की वजह से उस की बहन के घर में तनाव रहता है, इसलिए आरिफ के कहने पर फरियाद भी इदरीस की हत्या के षडयंत्र में शामिल हो गया.

उधर प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से करीब 5 लाख रुपए का कलेक्शन कर के इदरीस 13 जनवरी को कांठ लौट रहा था. सफर में उस ने अपना फोन साइलेंट मोड पर लगा लिया था. फरीदा ने इदरीस से बात करने के लिए फोन किया पर इदरीस को इस का पता नहीं चला. फरीदा उसे लगातार फोन कर रही थी.

कांठ पहुंचने पर इदरीस ने जैसे ही अपना फोन देखा तो प्रेमिका की 50 मिस्ड काल देख कर चौंक गया. उसे लगा कि पता नहीं क्या बात है जो उस ने इतनी बार फोन मिलाया. इदरीस ने फरीदा को फोन कर के कहा, ‘‘फरीदा, मेरा फोन साइलेंट मोड पर था, इसलिए तुम्हारी काल के बारे में पता नहीं लगा. बताओ, क्या बात है?’’

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‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मैं आरिफ को तलाक दे कर तुम से निकाह करूंगी. इसी बारे में तुम से बात करना चाह रही थी.’’ फरीदा बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम अभी कांठ बसअड्डे पर आ जाओ, वहीं पर हम बात कर लेंगे.’’

प्रेमिका के मुंह से अपने मन की बात सुन कर इदरीस खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘फरीदा, मैं कुछ देर में ही वहां पहुंच रहा हूं. तुम भी जल्द पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, तुम आ जाओ, मैं वहीं मिलूंगी.’’ फरीदा बोली.

इदरीस थोड़ी देर में बसअड्डे पर पहुंच गया. फरीदा अपने पति के साथ वहां पहले से ही मौजूद थी. औपचारिक बातचीत के बाद फरीदा ने कहा, ‘‘रायपुर खास गांव में मेरे भाई के यहां खाने का इंतजाम है. वहां चलते हैं, वहीं बातचीत हो जाएगी.’’

इदरीस खानेपीने का शौकीन था. उस समय भी वह शराब पिए हुए था, इसलिए फरीदा के साथ रायपुर खास गांव जाने के लिए तैयार हो गया. जब वह वहां पहुंचा तो फरीदा के भाई फरियाद ने इदरीस का गर्मजोशी से स्वागत किया. उस ने चिकन बना रखा था.

कुछ देर बातचीत के बाद फरियाद ने उस से खाना खाने को कहा तो शराब के शौकीन इदरीस ने शराब पीने की इच्छा जताई. इस पर फरियाद ने कहा कि यह सब घर पर संभव नहीं है. पीनी है तो कांठ बसअड्डे पर ठेका है, वहीं पर पी लेंगे.

इदरीस को मिली मौत की दावत

इदरीस बसअड्डे पर जाने के लिए तैयार हो गया. इदरीस और आरिफ फरियाद की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कांठ बसअड्डे पहुंच गए. इदरीस ने पैसे दे कर एक बोतल रम मंगा ली. फरियाद एक बोतल रम और पकौड़े ले आया तो आरिफ बोला, ‘‘चलो, बाग में बैठ कर पिएंगे. उस के बाद खाना खाएंगे. वहीं बात भी हो जाएगी.’’

शराब की बोतल और पकौड़े ले कर तीनों मोटरसाइकिल से आम के बाग में पहुंच गए. बाग में बैठ कर तीनों ने शराब पी. योजना के अनुसार आरिफ व फरियाद ने कम पी और इदरीस को कुछ ज्यादा ही पिला दी थी.

इदरीस जब ज्यादा नशे में हो गया तो आरिफ इदरीस से बोला, ‘‘देखो इदरीस भाई, तुम पैसे वाले हो. मैं छोटा सा एक साइकिल मैकेनिक हूं. मेरी तुम्हारी क्या बराबरी. तुम यह बताओ कि मेरा घर क्यों बरबाद कर रहे हो. तुम्हारी वजह से वैसे भी मोहल्ले में मेरी बहुत बदनामी हो गई है. अब तो पीछा छोड़ दो.’’

‘‘देखो आरिफ, तुम एक बात ध्यान से सुन लो. मैं फरीदा से बहुत प्यार करता हूं. अब फरीदा मेरी है. उसे मुझ से कोई भी अलग नहीं कर सकता. तुम्हें यह भी बताए देता हूं कि उस का जो 5 महीने का बच्चा है, वह मेरा ही है.’’

आरिफ भी नशे में था. यह सुनते ही उस का और फरियाद का खून खौल उठा. दोनों ने उस से कहा कि लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा. इस के बाद दोनों ने इदरीस के गले में पड़े मफलर से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इदरीस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश मोटरसाइकिल से बाग के बीचोबीच ले जा कर डाल दी. तलाशी लेने पर इदरीस की जेब से 5 लाख रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. दोनों ही चीजें उन्होंने निकाल लीं.

उस के बाद फरियाद घर से फावड़ा ले आया. आरिफ और फरियाद ने करीब 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर इदरीस की लाश दफन कर दी. लाश ठिकाने लगा कर वे अपने घर लौट गए. इदरीस की जेब से मिले पैसे दोनों ने आपस में बांट लिए.

पुलिस ने फरीदा, उस के पति आरिफ के बाद फरियाद को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 70 हजार रुपए, इदरीस का मोबाइल फोन और फावड़ा बरामद कर लिया.

पुलिस ने 11 फरवरी, 2018 को तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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