छत्तीसगढ़ में त्रिभुवन शरण सिंह और अब महाराष्ट्र में अजित पवार उप मुख्यमंत्री बन गए हैं जबकि सभी जानते हैं कि उप मुख्यमंत्री पद का संविधान में न तो कोई स्थान है और न ही कोई अतिरिक्त पावर। इन सब के बावजूद उप मुख्यमंत्री पद महत्त्वाकांक्षी नेताओं के लिए एक ऐसा झुनझुना बन गया है, जिसे हर वह नेता बजाना चाहता है जो राजनीति में थोड़ा भी रसुख बना लेता है.
यक्ष प्रश्न यही है कि जब संविधान में उप मुख्यमंत्री पद का कोई उल्लेख नहीं है फिर कोई मुख्यमंत्री अपने मनमरजी से किसी को यह उप मुख्यमंत्री पद का झुनझुना कैसे दे सकता है?
लाख टके का सवाल
अगर देश में संविधान है, कानून है उच्चतम न्यायालय है तो इस पर संज्ञान लिया जाना चाहिए क्योंकि लाख टके का सवाल है कि अगर यह सब चलता रहा तो जो व्यक्ति सत्ता पावर में होगा वह आगे चल कर ऐसे भी निर्णय ले सकता है जिस से देश को बड़ी क्षति का सामना करना पड़े.
आजादी के बाद संविधान इसीलिए बनाया गया ताकि उस के संरक्षण में काम किया जा सके और देश को आगे ले जाने की भूमिका अदा की जा सके. मगर संविधान को दरकिनार कर के उप प्रधानमंत्री, उप मुख्यमंत्री, संसदीय सचिव जैसे पदों का निर्माण किया गया है जो चिंता का सबब होना चाहिए.
जवाब कौन देगा?
इस मसले पर कुछ ऐसे तथ्य आप के सामने हैं जो आप को सोचने पर मजबूर कर सकते हैं. देश के नेताओं से एक सवाल है कि क्या उप मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक पद है? निस्संदेह इस का कोई जवाब सरकार के पास नहीं है. यह भी सच है कि संविधान में उप मुख्यमंत्री, उप प्रधानमंत्री और संसदीय सचिव पद को ले कर कोई व्याख्या नहीं की गई है.