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देश में स्वर्णिम मूत्रकाल का दौर : क्या अब आदिवासी पर पेशाब करने से विश्वगुरु बनेगा देश?

भाजपा सरकार में देश स्वर्णिम मूत्रकाल से गुजर रहा है. दलित आदिवासियों के मुंह पर थूक दो, पेशाब कर दो क्या फर्क पड़ता है. मध्य प्रदेश के सीधी जिले में भाजपा नेता के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला ने तो, बस, आदिवासी दशमत रावत के मुंह पर पेशाब करने का अपराध या पौराणिक भाषा में कहें तो कर्तव्य दोहराया है लेकिन हकीकत यह है कि यह कोई नया अपराध नहीं है.

इस घटना के बाद भले मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान पीड़ित के पैर धोए या आरोपी प्रवेश शुक्ला पर कार्यवाही की, लेकिन घटना के बाद जिस तरह पीड़ित दशमत ने आरोपी को माफ करने की बात कही उस से यही साबित होता है कि पौराणिकता कहीं न कहीं पीड़ित को मजबूर कर रही है कि वह इसे सह ले, और गुनाहगार को माफ कर दे.

यह घटना जातीय दंभ से भरे लोगों के लिए ऐसा करना कोई अनोखी बात भी नहीं है, क्योंकि ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें वही धर्मशास्त्र रोज देते हैं जिन का गुणगान सुबहशाम उठतेबैठते वे करते रहते हैं. ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में लिखा है कि शूद्र यदि वेद/पुराण पढ़ता है तो आंख फोड़ दो, सुनता है तो कान में पिघला सीसा डाल दो और उच्चारण करता है तो जीभ काट दो.

इसी देश के गांव में ‘चप्पल प्रथा’ क्या इस की गवाही नहीं जहां कथित सवर्णों के घरों से निकलने पर दलितों को अपने सिर पर चप्पल रख कर निकलना पड़ता था. बात कोई पुरानी नहीं है. दलित को जबरन जूते से पानी पिलाना यहीं की ही बात है. ऊना कांड कोई पिछली सदी की बात नहीं, जहां बीच सड़क पर नंगा कर दलितों पीटा गया, और हाथरस में दलित की बेटी से सवर्णों ने बलात्कार किया और उस का बचाव सब भगवाइयों ने किया.

हिंदू राष्ट्र की मांग पर नाचनेथिरकने वाले क्या ऐसा ही देश बनाना चाह रहे हैं, जहां मुसलामानों के प्रति नफरती उबाल के लिए तो सब हिंदू हो जाएंगे लेकिन बात जब खुद के धर्म की आएगी तो कोई सवर्ण होगा, कोई दलित, कोई आदिवासी?

इसी जातीय दंभ से भरे समाज में क्या ऐसी प्रथाएं नहीं रहीं जिन में दलितों को सूर्योदय के समय व सूर्यास्त के समय बाहर निकलने की मनाही थी ताकि उस की लंबी छाया किसी स्वर्ण पर न पड़ जाए. नीची जाति वालों को अपनी कमर में झाड़ू लगा कर चलना पड़ता था कि जिस रास्ते वे जाएं वह रास्ता साफ़ होता जाए, और अपने पेट में टोकरी ले कर चलनी पड़ती थी कि अगर थूक आए या पसीना टपके तो जमीन पर न थूकें उसी टोकरी में थूकें.

‘“पूजयें विप्र सकल गुण हीना . शूद्र ना पूजिये ज्ञान प्रवीणा ..‘” यह श्लोक कहीं आसमान से नहीं टपका. भगवा कट्टरपंथी जिस मनुस्मृति को आंबेडकर के संविधान की जगह देश का विधिविधान बनाना चाहते हैं वहीं से यह आया है. क्या है इस का अर्थ, “ब्राह्मण चाहे कितना भी व्यभिचारी हो, पूजा जाना चाहिए, क्योंकि शास्त्र उसे ब्रह्मा के मुख से आया बताते हैं. वहीं, नीची जाति वाला चाहे कितना ही ज्ञानी हो, उसे नहीं पूजना चाहिए.”

ऐसे ही रामचरितमानस में कहा गया है,

“पद पखारि जलुपान करि आपु सहित परिवार

पितर पारु प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार

अर्थात – भगवान श्रीराम के चरण धो कर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया, बल्कि उस ने अपने पूर्वजों को भी तार दिया.

तुलसीदास ने सिर्फ़ रामचरितमानस में ब्राह्मणों को कम से कम 30 स्थानों पर भूसुर और महिसुर यानी “धरती का देवता” लिखा है. पूरी रामचरितमानस में किसी भी ब्राह्मण ने राम के पैर नहीं छुए हैं. राम ने दर्जनों बार ब्राह्मणों के पैर छुए और चरणामृत लिया है. मतलब जो भगवान राम से खुद की चरण वंदना करवाने का अधिकार समझते हैं वो तो किसी निचली जाति के दीनहीन पर कुछ भी करें कहें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों को वनवासी कहा, मतलब जंगलों में रहने वाला. अब चूंकि आदिवासी जंगल में रहता है तो प्रवेश शुक्ला को भला वह शहर में कैसे हजम हो पाता.

इस घटना के बाद सरकार ने प्रवेश शुक्ला का घर बुलडोजर से ढहा दिया, उस पर एनएसए लगा दिया. इस से यह बात तो साबित हो जाती है कि जिस नफरत से दूसरों के घर जलाए जा रहे थे उस आग में खुद के भी हाथ जलते ही हैं. यह सबक भगवाई कार्यकर्ताओं को समझ आएगी. लेकिन फिर भी सवाल यह कि क्या इस का इलाज बस यही है क्योंकि यह महज दर्ज हुआ अपराध है. ऐसे बेनाम अदर्ज अपराध हर रोज किसी गांव, शहर में हो रहे हैं. हाथ का पानी न पी कर, किसी खास समुदाय से कचरा/गंदगी साफ करवाना, जाति सुनते ही मुंहनाक सिकोड़ने आदि का अपराध पूरा समाज कर ही रहा है.

रूस में आधीअधूरी म्यूटिनी, कट्टरपंथियों को सही संदेश

24 जून की सुबह ‘वैगनर ग्रुप’ के कमांडरों ने 25 हजार सैनिकों के काफिले के साथ मास्को की तरफ कूच कर दिया. टैंको और बख्तरबंद वाहनों पर सवार इन सैनिकों को देख कर लगा जैसे मास्को पर कोई दुश्मन चढ़ाई कर रहा हो. इस ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन ने मास्को से 200 किलोमीटर दूर इस विद्रोही काफिले को रोक दिया. इस को देख पूरी दुनिया को लगा कि रूस में सैनिक विद्रोह हो जाएगा. रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इन हालात को जल्द संभाल लिया लेकिन जिस तरह के हालात हैं उस से लगता नहीं की यह आग पूरी तरह बुझ गई है. पुतिन ने सपने में भी ऐसे विद्रोह की कल्पना न की होगी.

वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया को यह समझाने का काम किया है कि वह अपनों के खिलाफ भी वही व्यवहार कर सकता है जो विरोधियों के खिलाफ सत्ताधारी करते हैं. इस की असल वजह यह है कि वैगनर ग्रुप भगोड़ों का एक ग्रुप है जो अपने घरपरिवार और करीबियों से दूर हैं. उन के अंदर भावनाएं नहीं हैं. उन को केवल पैसे चाहिए जिस से वे ऐयाशी कर सकें. पैसों के लिए वे किसी के भी खिलाफ हथियार उठाने से नहीं चूकते. वैगनर ग्रुप जैसे ग्रुपों को तैयार करने से पहले सौ बार सोचने की जरूरत है वरना किसी की भी हालत रूस के राष्ट्रपति पुतिन जैसी हो सकती है.

रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोग से बने ‘वैगनर ग्रुप’ ने उन के ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस से पूरी दुनिया के तानाशाहों को संदेश मिला है कि भाड़े के गैंग, चाहे भगवा हों या रशिया, अपनों को कभी भी दगा दे सकते हैं. पुतिन के खिलाफ 20 साल में यह सब से बड़ी चुनौती है. इस से पूरी दुनिया में उन की साख गिरी है. एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘सांप को कितना भी दूध पिला लो वह मौका पाते ही डंसने का काम करेगा जरूर.’ प्राइवेट सेना, निजी आर्मी, कट्टरवादी समर्थक भी ऐसे ही मुसीबत खड़ी करने का काम कर सकते हैं.

रूस की प्राइवेट आर्मी कहे जाने वाले वैगनर ग्रुप ने विद्रोह कर दिया. रोस्तोव और वोरोनेझ शहरों पर कब्जा करने के बाद वैगनर ग्रुप का इरादा मास्को पर कब्जे का था. यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चुनौती देने वाला कदम ही नहीं था बल्कि इस से पुतिन की छवि खराब भी हुई. वे कमजोर दिखने लगे हैं. पूरी दुनिया में यह सवाल पूछा जा रहा था कि एक प्राइवेट आर्मी के खिलाफ पुतिन इतना कमजोर कैसे पड़ रहे हैं.

वैगनर ग्रुप के चीफ और पुतिन के साथी रहे येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा कि वे रूस के सैन्य नेतृत्व को उखाड़ कर ही दम लेंगे. इस के चलते मास्को में ‘नौन वर्किंग डे’ घोषित कर दिया गया. नागरिकों से कहा गया कि जहां तक संभव हो, वे यात्रा न करें. रूस में वैगनर ग्रुप के सैनिक ने नागरिकों को हिरासत में लिया तो इस को देख पड़ोसी देश भी घबरा गए. फ्रांस ने सभी तरह की उड़ानों को रूस की यात्रा न करने की सलाह दी. लिथुआनिया और पोलैंड ने अपनी सीमा पर सुरक्षा और कड़ी कर दी.

वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा, ‘हम देशभक्त हैं. राष्ट्रपति गलती कर रहे हैं. यह कोई सैन्य तख्तापलट नहीं था. यह न्याय के लिए मार्च था. हमारे लड़ाके सरैंडर नहीं करेंगे क्योंकि हम नहीं चाहते कि देश भ्रष्टाचार, धोखे और नौकरशाही के चंगुल में फंसा रहे.’ प्रिगोजिन कुछ भी कहें पर पूरी दुनिया और खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बात इतनी सरल थी. वे इसे विदेशी ताकतों के बहकावे में आ कर किया गया विद्रोह मान रहे हैं.

रूस की इस हालत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा, ‘जो कोई बुराई का रास्ता चुनता है वह खुद को नष्ट कर लेता है. रूस अपने सैनिकों को यूक्रेन में जितने लंबे समय तक रखेगा उसे उतना ही दर्द होगा.’

यूक्रेन के खिलाफ प्राइवेट आर्मी का प्रयोग यह बताता है कि रूस की सेना उस खतरनाक तरह से यूक्रेन में युद्ध करने के लिए मानसिक रूप से सक्षम नहीं थी जिस तरह से प्राइवेट आर्मी युद्ध कर सकती थी.

यही कारण है कि यूक्रेन में लड़ाई के संचालन को ले कर प्राइवेट आर्मी और रूसी सेना के बीच मतभेद था. यूक्रेन भी रूस का हिस्सा रहा है. ऐसे में रूसी सेना की रणनीति कुछ और थी और वैगनर ग्रुप इसे किसी और ही तरह से लड़ना चाहता था. वैगनर ग्रुप के इस कदम को बगावत कहें या कुछ और, बहरहाल इस ने रूस की सेना के खिलाफ मोरचा खोल दिया.

यूक्रेन की लड़ाई किस तरह से लड़ी जाए, इस,को ले,कर वैगनर ग्रुप और सेना के बीच एक राय नहीं बन रही थी. इस बगावत के पीछे केवल यही कारण नहीं है. प्राइवेट आर्मी की बगावत पुतिन के लिए अच्छी बात नहीं है. वैगनर ग्रुप का मानना है कि अगर उस की योजना के हिसाब से लड़ाई लड़ी गई होती तो यूक्रेन युद्ध इतना लंबा न खिंचता. सेना नियम और अनुशासन के हिसाब से लड़ाई लड़ती है और वैगनर ग्रुप जैसों का काम मरना और मारना होता है.

वैगनर ग्रुप ने रूसी जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदियों को माफी दिलवाने का वादा कर के यूक्रेन के भीतर जाने के लिए राजी किया था. वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन का आरोप है कि रूसी रक्षा मंत्री सजेंई षोएगू और सेना प्रमुख वेलेरी जिरासोमोव ने लड़ाई के दौरान वैगनर के जवानों को वक्त पर गोलाबारूद और अन्य जरूरी रसद नहीं पहुंचाई जिस से 10 हजार वैगनर सैनिकों की मौत हो गई. प्रिगोजिन ने वैगनर और सरकारी सेना के सैनिकों के बीच भेदभाव का भी आरोप लगाया.

क्या है ‘वैगनर ग्रुप’?

रूस में प्राइवेट आर्मी का विद्रोह सुन कर हर कोई यह जानना चाहता है कि यह ‘वैगनर ग्रुप’ क्या है? यह एक प्राइवेट मिलिट्री ग्रुप है. वैगनर की प्राइवेट सेना में करीब 50 हजार सैनिक है. इन में से 25 हजार सैनिक यूक्रेन से लड़ने के लिए भेज दिए गए थे. इस ग्रुप के वर्तमान प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन डकैती के आरोप में 12 साल जेल में रहे हैं. इस के बाद उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग में एक कौफी रैस्तरां खोला था. रूसी राष्ट्रपति पुतिन उस समय वहां के डिप्टी मेयर होते थे. वे वहां अकसर आतेजाते रहते थे. वहीं से दोनों की जानपहचान हुई. पुतिन के कहने पर ही प्रिगोजिन ने मीडिया बिजनैस में भी हाथ डाला. इस के बाद एक सुरक्षा कंपनी भी खोली, जिस ने देशविदेश में अपना विस्तार किया.

वैगनर ग्रुप के सैनिकों और एजेंटो का प्रयोग पुतिन ने प्राइवेट सेना की तरह से किया. यह ग्रुप रूसी सरकार के कंधे से कंधा मिला कर काम करने लगा. आरोप यह है कि रूसी सरकार के पूरी दुनिया में चलने वाले अभियानों में गुप्त रूप से लड़ाई लड़ने वालों में वैगनर ग्रुप सब से आगे रहता था. अक्टूबर 2015 से लेकर 2018 तक वैगनर ग्रुप ने सीरिया में रूसी सेना और बशर अल असद की सरकार के साथ मिल कर लड़ाई लड़ी.

दिमित्री उत्कींन ने 2014 में वैगनर ग्रुप की शुरुआत की थी. तब से वे इस के साथ जुड़े हैं. दिमित्री उत्कींन ने 1993 से ले कर 2013 तक रूसी सेना में नौकरी की. इस समय वैगनर ग्रुप की कमान येवगेनी प्रिगोजिन के हाथ में है. वैगनर ग्रुप पर लीबिया, माली सहित पूरे अफ्रीका में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा है.

यूक्रेन युद्ध में भी इस की भूमिका अपराध करने वाली रही है. इस ने कीव नागरिकों को मारने का काम किया. जरमन खुफिया विभाग ने कहा कि इन सैनिकों ने मार्च 2022 में बुचा में नागरिकों का संहार किया. 2020 में इन भाड़े के सैनिकों पर लीबिया में बारूदी सुरंगों के विस्फोट का आरोप लगा है.

वैगनर ग्रुप ने 2022 में बड़े पैमाने पर लड़ाकों की भरती करने के लिए शुरुआत की. 80 फीसदी लड़के जेल से भरती किए गए. रूसी शहरों में पोस्टर लगा कर खुलेआम भरती की गई थी. अब इन पोस्टरों को वंहा से हटाया गया है. वैगनर ग्रुप के विद्रोह को ले कर यह सवाल बारबार उठ रहा है कि इस को मदद कहां से मिल रही है. कुछ लोगों की राय यह है कि इस को रूस के बाहर के देशों से मदद मिल रही है. दूसरी राय यह है कि रूसी आर्मी चीफ और डिफैंस मिनिस्टर से नाराज खेमा सहयोग कर रहा है.

वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन के अपने कोई राजनीतिक विचार नहीं हैं. वे अधिक पढ़ेलिखे भी नहीं हैं. लिहाजा, उन के सोचने का नजरिया नेता की तरह का नहीं, एक भगोड़े सैनिक की तरह का है जो केवल मरनेमारने पर यकीन रखता है. जिस रूसी राष्ट्रपति ने उन को सहयोग किया, उसी के खिलाफ उन्होंने बगावत कर दी.

20 साल के राज में पुतिन पर उठ रहे सवाल

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह बड़ा संकट है. पुतिन ने निजी महत्त्वाकांक्षाओं को रूसी राष्ट्र के हितों को महत्त्व दिया. वैसे पुतिन ने वैगनर ग्रुप से उपजे सकंट को हल कर लिया है. इस मसले को हल करने का काम बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने किया.

वैगनर ग्रुप के साथ बातचीत कर के विद्रोह को फिलहाल रुकवा दिया गया है. अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पुराने दोस्त हैं. पुतिन के लिए परेशानी की बात यह है कि उन को अब कमजोर समझा जाएगा. 70 साल के पुतिन के लिए यह सब से कठिन दौर है. पुतिन के आलोचक यह मानते हैं कि यह उन के अंत की शुरुआत है.

हालफिलहाल भले ही पुतिन खामोश हो गए हों पर वे इस का बदला ले सकते हैं. पुतिन विद्रोह करने वालों को माफ नहीं करेंगे. वे और अधिक तानाशाह हो सकते हैं. पुतिन की निगाहें एक बार फिर से 2024 के चुनाव जीतने पर हैं. जिस तरह से पुतिन के सहयोग से बने वैगनर ग्रुप उन के ही खिलाफ विद्रोह कर बैठा, उस के बाद यह कहा जा सकता है कि यह ग्रुप अपनों को भी दगा दे सकता है. वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया के कट्टरपंथियों को सबक सिखाया है कि ऐसे ग्रुप वाले उन के खिलाफ भी बगावत कर सकते हैं जो उन की मदद करते हैं.

और देश भी सर्तक रहें

वैगनर ग्रुप जैसे समर्थक दूसरे नेता और देशों में भी हैं. ऐसे में ही एक बड़ा नाम ‘तालिबानी’ है. अफगानिस्तान और पासपड़ोस के देशों में सब से बड़ी आशांति का कारण तालिबानी ही हैं. वे अपने मनमाने कानून को लागू करने के लिए आंतक पैदा करते हैं. भारत में भी ऐसे कट्टरवादी दल हैं. 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो कट्टरपंथियों ने ‘गौ हत्या’ रोकने के नाम पर जिस तरह से मौब लिचिंग शुरू की उस ने देश और प्रधानमंत्री की छवि को न केवल खराब किया बल्कि समाज में अलगाव की नींव खींच दी.

विश्व हिंदू परिषद और हिंदू युवा वाहिनी, रामसेना जैसे संगठन भी समयसमय पर सरकार के सामने असहज हालात पैदा करते रहते हैं. गाय को ले कर जब पूरे देश में खूब विवाद होने लगे तो प्रधानमंत्री को अपने भाषण में इस की आलोचना करनी पड़ी.

मणिपुर में हिंसा का दौर भी ऐसे की कट्टरपंथियों का चल रहा है. कट्टरपंथियों का काम सरकार चलाना नहीं होता. लिहाजा, वे हर जगह अपनी मनमानी करने का प्रयास करते हैं. उन के उद्देश्य और काम करने का तरीका अलगअलग हो सकता है. अपने कामों से वे अपने ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं.

मैं अपने पड़ोस के लड़के से प्यार कर बैठी हूं, मैं उस के साथ सैक्स करना चाहती हूं,क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

सवाल
मेरी उम्र बहुत छोटी है लेकिन मैं अपने पड़ोस के लड़के से प्यार कर बैठी हूं. देखता वह भी है लेकिन अभी तक उस ने मुझ से कुछ नहीं कहा. मैं रातों में भी बस उसी के बारे में सोचती रहती हूं और उसे अपने दिल का हाल बता कर उस के साथ सैक्स करना चाहती हूं. आप ही बताएं कि क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

जवाब
अभी आप की उम्र पढ़ाईलिखाई में ध्यान दे कर अच्छा कैरियर बनाने की है, न कि प्यारव्यार के चक्कर में पड़ने की. इसलिए इस तरफ से अपना ध्यान हटाइए और अगर वह आप से दोस्ती करने के बारे में कहे तो उसे सिर्फ अच्छा दोस्त मानिए, न कि उस के साथ सैक्स करने के बारे में सोचें. इस से आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है. भूल कर भी आप खुद की तरफ से पहल न करें.

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.

इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’

‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी वाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’

सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’

इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.

नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.

तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.

सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.

बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.

मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?

बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.

अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.

नारायणी की दोनों बहुओं मीनाक्षी और अंजू के पास मोबाइल फोन नहीं थे. केवल घर के पुरुषों के पास ही मोबाइल फोन थे. लेकिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनाक्षी को सिमकार्ड के साथ एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिसे वह अपने घर वालों से छिपा कर रखती थी. उस का उपयोग वह केवल अब्दुल से बात करने के लिए करती थी. बातों के अलावा वह उस से वाट्सऐप पर भी चैटिंग करती थी. पति ने जब उस के जिम जाने पर रोक लगा दी तो वह फोन द्वारा अपने प्रेमी के संपर्क में बनी रही.

एक तो मीनाक्षी का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था, दूसरे पति ने जो उस के मायके वालों से उस की शिकायत कर दी थी, वह उसे बुरी लगी थी. अब प्रेमी के सामने उसे सारे रिश्तेनाते बेकार लगने लगे थे. पति अब उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा था. उस ने अब्दुल से बात कर के पति नाम के रोड़े को रास्ते से हटाने की बात की. इस पर अब्दुल ने कहा कि वह उसे नींद की गोलियां ला कर दे देगा. किसी भी तरह वह उसे 10 गोलियां खिला देगी तो इतने में उस का काम तमाम हो जाएगा.

एक दिन अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 10 गोलियां ला कर दे दीं. मीनाक्षी ने रात के खाने में पति को 10 गोलियां मिला कर दे दीं. रात में अनूप की तबीयत खराब हो गई तो उस के बच्चे परेशान हो गए. उन्होंने रात में ही दूसरे मकान में रहने वाले चाचा राज सिंह को फोन कर दिया. वह उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां अनूप को बचा लिया गया. पति के बच जाने से मीनाक्षी को बड़ा अफसोस हुआ.

इस के कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने पति को ठिकाने लगाने के लिए एक बार फिर नींद की 10 गोलियां खिला दीं. इस बार भी उस की तबीयत खराब हुई तो घर वाले उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां वह फिर बच गया.

मीनाक्षी की फोन पर लगातार अब्दुल से बातें होती रहती थीं. प्रेमी के आगे पति उसे फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. वह उस से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच अनूप की मां नारायणी को भी जानकारी हो गई कि बड़ी बहू मीनाक्षी की हरकतें अभी बंद नहीं हुई हैं. अभी भी उस का अपने यार से याराना चल रहा है.

अनूप तो अपने समय पर औफिस चला जाता था. उस के जाने के बाद पत्नी क्या करती है, इस की उसे जानकारी नहीं मिलती थी. उस के घर से कुछ दूर ही मकान नंबर 74 में छोटा भाई राज सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. मां भी वहीं रहती थी. कुछ सोचसमझ कर अनूप पत्नी और बच्चों को ले कर राज सिंह के यहां चला गया. मकान बड़ा था, पहली मंजिल पर सभी लोग रहने लगे. यह घटना से 10 दिन पहले की बात है. उसी मकान में ग्राउंड फ्लोर पर अनूप का ट्रांसपोर्ट का औफिस था.

इस मकान में आने के बाद मीनाक्षी की स्थिति पिंजड़े में बंद पंछी जैसी हो गई. नीचे उस का पति बैठा रहता था, ऊपर उस की सास और देवरानी रहती थी. अब मीनाक्षी को प्रेमी से फोन पर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता था. अब वह इस पिंजड़े को तोड़ने के लिए बेताब हो उठी. ऐसी हालत में क्या किया जाए, उस की समझ में नहीं आ रहा था?

एक दिन मौका मिला तो मीनाक्षी ने अब्दुल से कह दिया कि अब वह इस घर में एक पल नहीं रह सकती. इस के लिए उसे कोई न कोई इंतजाम जल्द ही करना होगा. अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 90 गोलियां ला कर दे दीं. इस के अलावा उस ने जहांगीरपुरी में अपने पड़ोसी से एक छुरा भी ला कर दे दिया. तेजधार वाला वह छुरा जानवर की खाल उतारने में प्रयोग होता था. अब्दुल ने उस से कह दिया कि इन में से 50-60 गोलियां शाम के खाने में मिला कर पूरे परिवार को खिला देगी. गोलियां खिलाने के बाद आगे क्या करना है, वह फोन कर के पूछ लेगी.

अब्दुल के प्यार में अंधी मीनाक्षी अपने हंसतेखेलते परिवार को बरबाद करने की साजिश रचने लगी. वह उस दिन का इंतजार करने लगी, जब घर के सभी लोग एक साथ रात का खाना घर में खाएं. नारायणी के पड़ोस में रहने वाली उन की रिश्तेदार कुसुम की बेटी की शादी थी. शादी की वजह से उन के घर वाले वाले भी खाना कुसुम के यहां खा रहे थे. मीनाक्षी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेचैन थी, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

इत्तफाक से 19 जून, 2017 की शाम को उसे मौका मिल गया. उस शाम उस ने कढ़ी बनाई और उस में नींद की 60 गोलियां पीस कर मिला दीं. मीनाक्षी के दोनों बच्चे कढ़ी कम पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने कम खाई. बाकी लोगों ने जम कर खाना खाया. देवरानी अंजू ने तो स्वादस्वाद में कढ़ी पी भी ली. चूंकि मीनाक्षी को अपना काम करना था, इसलिए उस ने कढ़ी के बजाय दूध से रोटी खाई.

खाना खाने के बाद सभी पर नींद की गोलियों का असर होने लगा. राज सिंह सोने के लिए बालकनी में बिछे पलंग पर लेट गया, क्योंकि वह वहीं सोता था. अनूप और उस की मां नारायणी ड्राइंगरूम में जा कर सो गए. उस के दोनों बच्चे बैडरूम में चले गए. राज सिंह की पत्नी अंजू अपनी 12 साल की बेटी के साथ अपने बैडरूम में चली गई.

सभी सो गए तो मीनाक्षी ने आधी रात के बाद अब्दुल को फोन किया. अब्दुल ने पूछा, ‘‘तुम्हें किसकिस को निपटाना है?’’

‘‘बुढि़या और अनूप को, क्योंकि इन्हीं दोनों ने मुझे चारदीवारी में कैद कर रखा है.’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम उन्हें हिला कर देखो, उन में से कोई हरकत तो नहीं कर रहा?’’ अब्दुल ने कहा.

मीनाक्षी ने सभी को गौर से देखा. राज सिंह शराब पीता था, ऊपर से गोलियों का असर होने पर वह गहरी नींद में चला गया था. उस ने गौर किया कि उस की सास नारायणी और पति अनूप गहरी नींद में नहीं हैं. इस के अलावा बाकी सभी को होश नहीं था. मीनाक्षी ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तुम नींद की 10 गोलियां थोड़े से पानी में घोल कर सास और पति के मुंह में सावधानी से चम्मच से डाल दो.’’

मीनाक्षी ने ऐसा ही किया. सास तो मुंह खोल कर सो रही थी, इसलिए उस के मुंह में आसानी से गोलियों का घोल चला गया. पति को पिलाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन उस ने उसे भी पिला दिया.

आधे घंटे बाद वे दोनों भी पूरी तरह बेहोश हो गए. मीनाक्षी ने फिर अब्दुल को फोन किया. तब अब्दुल ने सलाह दी कि वह अपनी देवरानी के कपड़े पहन ले, ताकि खून लगे तो उस के कपड़ों में लगे. देवरानी के कपड़े पहन कर मीनाक्षी ने अब्दुल द्वारा दिया छुरा निकाला और नारायणी का गला रेत दिया. इस के बाद पति का गला रेत दिया.

इस से पहले मीनाक्षी ने मेहंदी लगाने वाले दस्ताने हाथों में पहन लिए थे. दोनों का गला रेत कर उस ने अब्दुल को बता दिया. इस के बाद अब्दुल ने कहा कि वह खून सने कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन ले और कढ़ी के सारे बरतन साफ कर के रख दे, ताकि सबूत न मिले.

बरतन धोने के बाद मीनाक्षी ने अब्दुल को फिर फोन किया तो उस ने कहा कि वह उन दोनों को एक बार फिर से देख ले कि काम हुआ या नहीं? मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची तो उसे उस का पति बैठा हुआ मिला. उसे बैठा देख कर वह घबरा गई. उस ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा कि वह दोबारा जा कर गला काट दे नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है.

छुरा ले कर मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची. अनूप बैठा जरूर था, लेकिन उसे होश नहीं था. मीनाक्षी ने एक बार फिर उस की गरदन रेत दी. इस के बाद अनूप बैड से फर्श पर गिर गया. मीनाक्षी ने सोचा कि अब तो वह निश्चित ही मर गया होगा.

अपने प्रेमी की सलाह पर उस ने अपना मोबाइल और सिम तोड़ कर कूड़े में फेंक दिया. जिस छुरे से उस ने दोनों का गला काटा था, उसे और दोनों दस्ताने एक पौलीथिन में भर कर सामने बहने वाले नाले में फेंक आई. इस के बाद नींद की जो 10 गोलियां उस के पास बची थीं, उन्हें पानी में घोल कर पी ली और बच्चों के पास जा कर सो गई.

मीनाक्षी और अब्दुल से पूछताछ कर के पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 307, 328, 452, 120बी के तहत गिरफ्तार कर 22 जून, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार की कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में अन्य सबूत जुटा कर पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मीनाक्षी ने अपनी सास और पति को जान से मारने की पूरी कोशिश की थी, पर डाक्टरों ने उन्हें बचा लिया है. कथा लिखे जाने जाने तक दोनों का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

मीनाक्षी के मायके वाले काफी धनाढ्य हैं. उन्होंने उस की शादी भी धनाढ्य परिवार में की थी. ससुराल में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. खातापीता परिवार होते हुए भी उस ने देहरी लांघी. उधर अब्दुल भी पत्नी और एक बेटी की अपनी गृहस्थी में हंसीखुशी से रह रहा था. उस का बिजनैस भी ठीक चल रहा था. पर खुद की उम्र से 10 साल बड़ी उम्र की महिला के चक्कर में पड़ कर अपनी गृहस्थी बरबाद कर डाली.

बहरहाल, गलती दोनों ने की है, इसलिए दोनों ही जेल पहुंच गए हैं. निश्चित है कि दोनों को अपने किए की सजा मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खूबसूरत बीवी के साइड इफेक्ट्स

आप विवाह के योग्य हैं और कोई अच्छी नौकरी कर रहे हैं तो आप को लड़की वाले अवश्य घेरते होंगे. अकसर किसी न किसी लड़की की फोटो आप को देखनी पड़ती होगी. फिर आप की मां एकांत में आप से अवश्य पूछती होंगी, ‘क्यों बेटा, लड़की पसंद है?’ और आप हैं कि आप को कोई भी लड़की पसंद नहीं आती. कारण स्पष्ट है कि आप अपने लिए स्वप्नलोक की किसी सुंदरी की तलाश में रहते हैं जिस का एकएक अंग सुघड़ हो, नाक पतली हो, होंठ गुलाबी, कमर लचीली और रंग गोरा वगैरावगैरा.

यह सच है कि सुंदरता हरेक को प्रिय है. सुंदर चेहरे और रूपरंग की ओर हर कोई आकर्षित होता है. इसीलिए हर नवयुवक सुंदर पत्नी की ही तलाश करता है. हां, यह बात दूसरी है कि वह चाहे स्वयं उस सुंदर पत्नी के योग्य न हो, साथसाथ चलने पर लोग उन की जोड़ी पर कटाक्ष करें. किंतु सुंदर पत्नी मिल जाने पर रोजमर्रा के जीवन में कितनी परेशानियां आती हैं, क्या किसी ने कभी इस पर भी गौर फरमाया है? शायद नहीं. जरा इतिहास के पन्ने पलट कर देखिए, सुंदरता के नाम पर क्या हुआ? कितनी ही लड़ाइयां सिर्फ सुंदरता के नाम पर हुई हैं.

सुंदरता मनुष्य की चाहत

हमारे रिश्ते के एक भाई हैं. शादी से पहले उन पर भी खूबसूरत पत्नी पाने का भूत सवार था. खैर, उन्हें सुंदर पत्नी मिल गई. सुंदर पत्नी पा कर वे फूले नहीं समाए. रोज शाम को अपनी पत्नी के साथ सैर करने निकलते थे. पर, इधर कुछ दिनों से उन्होंने घूमनाफिरना बिलकुल बंद कर दिया था. भाभीजी भी दिनभर घर पर ही रहती थीं. कारण पूछने पर पता चला कि एक दिन वे अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे, तभी कुछ लोगों ने उन की पत्नी की सुंदरता को ले कर कटाक्ष किया. भाईसाहब बिगड़ गए. मामला बढ़ गया और उन्हें पुलिस थाने जाना पड़ा. उस दिन से उन्होंने अपनी पत्नी के साथ बाहर निकलना बंद कर दिया. लेकिन यह कब तक चल सकता है? सुंदर चीज को देखना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है. आप सुंदर पत्नी को ले कर बाहर जाएंगे तो लोग उसे देखेंगे ही. वे उस पर फिकरे कसेंगे और उसे देख कर आहें भरेंगे. उस समय आप जहर का घूंट पी कर रह जाएंगे क्योंकि आप अकेले क्या कर पाएंगे? क्या आप अकेले ऐसे लोगों से लड़ने का साहस जुटा पाएंगे? शायद नहीं. और अगर आप शरीर से कमजोर हैं तो क्या आप अपनी सुंदर पत्नी की सुंदरता की रक्षा कर पाएंगे? उस समय आप की सुंदर पत्नी आप को सदैव के लिए अपनी नजरों से गिरा देगी क्योंकि वह आप को अपने सौंदर्य का एकमात्र रक्षक समझती है.

आप उसे सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकेंगे तो उस की नजरों से आप का गिरना स्वाभाविक है. आप की सुंदर पत्नी में आप के लिए कभी भी समर्पण की भावना नहीं आ सकेगी. इस से आप के अहं को ठेस पहुंचेगी. यहीं से आप के परिवार के विघटन की नींव पड़ जाएगी.

सुंदर पत्नी तो मुसीबत

हमारे एक परिचित हैं, कमलजी. शादी से पहले यानी कुंआरेपन में वे दिनभर शीशे के सामने बैठ कर चेहरा देखा करते थे, तरहतरह से बाल बनाते थे. घर वालों पर उन का बड़ा रोब था. किसी की जरा सी भी बात सहन नहीं करते थे. उन की भी सुंदर पत्नी पाने की इच्छा थी. खैर, स्वयं सुंदर थे, सो सुंदर पत्नी उन्हें मिल गई. पर जब से उन की शादी हुई है, वे कुछ परेशान से दिखने लगे हैं. कारण स्पष्ट है, पत्नी सुंदर है. सुंदर पत्नी के हजारों नखरे उन्हें उठाने पड़ते हैं. पहले मांबाप तक का कहना नहीं मानते थे, पर अब सुंदर पत्नी की हर बात उन्हें सिर झुका कर माननी पड़ती है. और न मानने पर डांट पड़ती है.

घर में पत्नी की डांट और दफ्तर में अफसर की डांट, दोनों के बीच वे घुन की तरह पिसते हैं. कभीकभी उन्हें क्रोध भी आता है, पर कर कुछ नहीं सकते. किस पर क्रोध करें? दफ्तर में अफसर पर क्रोध प्रकट करें तो नौकरी जाती है. घर में पत्नी पर क्रोध उतार नहीं सकते क्योंकि वह सुंदर है. सो, अपना सारा गुस्सा अंदर ही अंदर पी लेते हैं. क्रोध को अंदर ही अंदर पीने से वे मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं. देखा आप ने, सुंदर पत्नी के कारण क्याक्या कष्ट उठाने पड़ते हैं. क्रोध दबाने से हृदयरोग, मधुमेह, रक्तचाप आदि गंभीर बीमारियां तक हो जाती हैं.

सुंदर पत्नी के कारण अकसर घर में बिना किसी बात के झगड़ा हो जाता है. मान लीजिए कि आप अपनी पत्नी से कम सुंदर हैं. आप के घर आप का कोई ऐसा मित्र आता है जो आप से सुंदर है. ऐसे में यदि कभी आप की पत्नी ने आप के मित्र के सौंदर्य, स्वभाव या आदतों की प्रशंसा कर दी तो उस समय आप के मन में संदेह का अंकुर पनप जाएगा. अकारण ही उस मित्र के साथ आप के संबंध खराब हो जाएंगे. आप अपनी पत्नी पर शक करने लगेंगे. बातबात पर आप के उस से झगड़े होंगे. शक की बीमारी का कोई इलाज नहीं है, इसलिए आप तनावग्रस्त रहने लगेंगे. चिंता की दशा में कोई बीमारी आप को घेर लेगी.

सौंदर्य की मारी सुंदर पत्नियां

सुंदर पत्नियां अपने सौंदर्य को बनाए रखने के लिए अपना अधिक से अधिक समय बनावशृंगार में लगाती हैं. वे अपनी घरगृहस्थी, बच्चों और पति की ओर उतना ध्यान नहीं देती हैं, जितना देना चाहिए. अपने बनावशृंगार के सामान पर वे खुल कर खर्च करती हैं. महंगी से महंगी क्रीम, पाउडर तथा महंगी से महंगी साड़ी खरीदने से वे कतराती नहीं हैं. यहां तक कि सुंदर पत्नियां अपने सौंदर्य के चक्कर में पड़ कर अपने बच्चों का लालनपालन भी उचित ढंग से नहीं कर पाती हैं. वे उन्हें स्तनपान कराने से कतराती हैं ताकि उन का शारीरिक सौंदर्य कम न हो जाए, हालांकि स्तनपान कराने से ऐसा होता नहीं. अकसर सुंदर पत्नी चाहने वाले युवक मात्र खूबसूरत चेहरा देख कर ‘हां’ कह देते हैं. उस समय वे यह जानने की कोशिश नहीं करते हैं कि उस की होने वाली पत्नी को घरगृहस्थी संभालना आता है या नहीं, जो एक सुघड़ और कुशल गृहिणी के लिए आवश्यक है. ज्यादातर देखा जाता है कि सुंदर लड़कियों में यह भावना होती है कि उन्हें तो पसंद कर ही लिया जाएगा, इसलिए वे घरगृहस्थी के कामों में शून्य होती हैं.

किंतु शादी के बाद उन्हें घरगृहस्थी के चक्करों में फंसना पड़ता है. उन्हें खाना बनाना तो आता नहीं है, पर मात्र यह दिखाने के लिए कि वे खाना बनाने में निपुण हैं, वे खूब मिर्चमसाले तथा चिकनाई का प्रयोग करती हैं. कभी खूब भुना यानी जला, तो कभी कच्चा भोजन बना कर खिलाती हैं. चूंकि पत्नी सुंदर है तो पति को भोजन करना ही पड़ेगा और वह भी भरपेट. अगर कभी आप अरुचि प्रकट करेंगे तो वह तुरंत आप से पूछेगी, ‘‘क्यों जी, क्या खाना अच्छा नहीं बना?’’ सुंदर पत्नी के भय से आप कहेंगे, ‘‘नहीं, बड़ा स्वादिष्ठ बना है.’’ उस के आग्रह पर आप कुछ ज्यादा ही खा लेंगे. भले ही बाद में आप को वह अपच हो जाए या खट्टी डकारें आने लगें. इस प्रकार सुंदर पत्नी के हाथों का बना भोजन खाने से चंद दिनों में ही आप के शरीर में अनावश्यक चरबी बढ़ने लगेगी और फिर उठनेबैठने में कष्ट होगा.

सीरत पर ध्यान दें

आप सुंदर पत्नी की तलाश न करें. सुंदरता हरेक को अपनी ओर आकर्षित करती है, यह एक शाश्वत सत्य है. पर सुंदरता के साथसाथ आप उस के गुणों और स्वभाव को भी प्रमुखता दें तो ज्यादा अच्छा है. अगर लड़की अधिक सुंदर नहीं है, पर उस में कुशल गृहिणी के गुण हैं तो आप को उसे अपनी पत्नी बनाने में संकोच नहीं करना चाहिए. बाद में आप को लगेगा कि आप ने सही निर्णय लिया ह

नादान दिल : क्या ईशा को मिल पाएगा उसका प्यार?

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नरेंद्र मोदी के बिगड़ैल महामहिम ‘राज्यपाल’

आज अगर नरेंद्र मोदी के राज्यपालों पर शोध किया जाए, तो एक आश्चर्यजनक समानता और निष्कर्ष सामने आएगा. ये राज्यपाल राज्यों की चुनी हुई सरकार के खिलाफ काम करने के निर्णय लेने में आनंद की अनुभूति करते हैं और येनकेन प्रकारेण मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के लोकतांत्रिक कामकाज में बाधा पहुंचाने में अग्रणी भूमिका में आ जाते हैं.

शोध का विषय यह भी है कि क्या ये राज्यपाल सिर्फ स्वविवेक से ऐसा करते हैं या फिर (केंद्र) नरेंद्र मोदी के संरक्षण में उन के आदेश से.

राज्यपाल महामहिम राज्यपाल से ‘हास्यपाल’ बन जाते हैं, यह देश की जनता बखूबी देख रही है. मगर एक विचित्र किंतु सच यह है कि राज्यपाल चाहे वे किसी भी प्रदेश के हों, इन महामहिम को अपने पद की गरिमा का खयाल नहीं रहा, वे तो सिर्फ अपने ‘आका’ के आदेश का पालन करने में मुस्तैद दिखाई देते हैं.

यह रेखांकित करने वाली बात है कि देश की आजादी के बाद राज्यों में संविधान के मुताबिक केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की नियुक्ति होती है. मगर ये राज्यपाल निष्पक्ष नहीं रह पाते और नियुक्तिकर्ता केंद्र के प्रति वफादारी दिखाने में कोई कोताही और शर्म भी महसूस नहीं करते.

सारी परिस्थितियों के विहंगम अवलोकन के पश्चात कहा जा सकता है कि ऐसी परिस्थितियों में देश के उच्चतम न्यायालय को स्वविवेक से संज्ञान लेना चाहिए था, मगर वह भी आमतौर पर मौन हो जाता है, क्योंकि उस की आंखों पर कथित तौर पर पट्टी बांध दी गई है.

आज देशभर में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्यपाल की खबर सुर्खियों में है, यहां राज्यपाल राज्य सरकार के बिना किसी सलाह के स्वविवेक से निर्णय ले कर चर्चा में आ गए हैं. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर मामले को और भी तूल दे दिया है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राज्यपाल आरएन रवि की शिकायत करते हुए कहा, “राज्यपाल सांप्रदायिक नफरत को भड़काते हैं और वे तमिलनाडु की शांति के लिए ‘खतरा’ हैं.”

कठपुतली बनते राज्यपाल

हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा मंत्री वी. सेंथिल के संदर्भ में राज्य सरकार की बिना सलाह उन की बर्खास्तगी का निर्णय ले लिया और देशभर में वे चर्चा का विषय बन गए. यह संदेश भी देशभर में चला गया कि राज्यपाल केंद्र की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री स्टालिन ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 159 के तहत ली गई पद की शपथ का उल्लंघन किया है.

विपक्षी दलों की हाल ही में पटना में हुई बैठक के बारे में स्टालिन ने कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सत्ता कौन संभालेगा, बल्कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मौजूदा नरेंद्र मोदी का शासन जारी नहीं रहना चाहिए.

उन्होंने यह टिप्पणी केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार का संदर्भ देते हुए की थी. जुलाई में कर्नाटक में विपक्षी दलों की होने वाली प्रस्तावित बैठक का संदर्भ देते हुए द्रमुक प्रमुख ने दावा किया कि भाजपा सरकार इस तरह के घटनाक्रम से आक्रोशित है.

स्टालिन ने एक विवाह कार्यक्रम में कहा कि कोई भी स्थिति उत्पन्न हो, यहां तक कि भाजपा का विरोध करने से तमिलनाडु की द्रमुक सरकार को खतरा होने पर भी ‘थोड़ी एक भी चिंता करने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने कहा कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में द्रमुक और साझेदारों की प्रचंड जीत और भाजपा की हार मुख्य लक्ष्य है.

दरअसल, उल्लेखनीय है कि राज्यपाल द्वारा सेंथिल बालाजी के मामले में शीघ्र कार्यवाही की गई, जबकि उन के खिलाफ केवल जांच शुरू हुई थी, यह उन के राजनीतिक पक्षपात को इंगित करता है.

मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में कहा, ‘राज्यपाल के व्यवहार और कदम ने साबित किया है कि वे पक्षपात करने वाले हैं और राज्यपाल के पद पर रहने के लायक नहीं है. रवि शीर्ष पद से हटाए जाने योग्य हैं.’

स्टालिन ने राष्ट्रपति से यह भी कहा है कि वे यह उन पर छोड़ते हैं कि रवि को पद से हटाया जाए या नहीं.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति फैसला करें कि भारत के संविधान निर्माताओं की भावना और गरिमा पर विचार करने के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल को पद पर बनाए रखना क्या उचित होगा?

उन्होंने यह टिप्पणी केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार का संदर्भ देते हुए की. जुलाई की 17 और 18 तरीख को कर्नाटक में विपक्षी दलों की होने वाली प्रस्तावित बैठक का संदर्भ देते हुए द्रमुक प्रमुख ने दावा किया कि भाजपा के चेहरे इस तरह के घटनाक्रम से आक्रोशित हैं.

ज्योति मोर्य के बहाने महिलाएं निशाने पर

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के बरेली की एसडीएम ज्योति मोर्य का मामला खासा तूल पकड़ता जा रहा है. ज्योति मोर्य पर उस के पति आलोक मोर्य ने किसी गैरपुरुष के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगाया है. आरोप लगाते हुए पति ने यहां तक कहा है कि ज्योति उस से तलाक चाहती है जिस के लिए वह उस पर दबाव बनाने के लिए दहेज का झूठा आरोप भी लगा रही है.

अलोक के अनुसार, वर्ष 2010 में दोनों की शादी हुई थी. उस समय वह पंचायतराज विभाग में फोर्थ ग्रेड कर्मचारी के पद पर था. शादी के बाद उस ने ज्योति को पढ़ाया, जिस के बाद ज्योति ने लोक सेवा आयोग में महिलाओं में तीसरा व कुल मिला कर 16वां स्थान हासिल किया. घर में तब तक सब ठीक चल रहा था.

मामला तब बिगड़ा जब 2020 में ज्योति की जानपहचान गाजियाबाद में तैनात डिस्ट्रिक्ट कमांडैंट होमगार्ड से हुई. दिलचस्प यह कि जिस सोशल मीडिया पर यह मामला गरमाया है, वहीं से ज्योति के कथित अवैध संबंध का भांडा फूटा.

ज्योति अपने फेसबुक अकाउंट को लौगआउट करना भूल गई जिस के मैसेज उस के पति आलोक ने पढ़ लिए. इस के बाद का सारा मामला यहांवहां आरोपप्रत्यारोप की शक्ल में तैर ही रहा है और अब मामला इतना आगे बढ़ गया है कि एसडीएम पर भ्रष्टाचार के एंगल भी खोजे जा रहे हैं.

अब यह आमतौर पर घटित होने वाला धोखेबाजी का मामला है, जो हर गली के लगभग हरचौथे मकान की कहानी है जिस में आमतौर पर पुरुषमहिला दोनों लिप्त पाए जाते हैं. पर इस ख़ास मामले को ले कर सोशल मीडिया पर ट्रैंड चलने का क्या कारण है? टीवी चैनल से ले कर औनेपौने, पुछल्ले यूट्यूबरों ने इस मामले को इतना क्यों भुना रहे है? और लोग इस में क्यों इतनी दिलचस्पी ले रहे हैं?

मसला इस के पीछे छिपे मर्दवादी मंशा को समझने की है जो ट्रैंड की शक्ल में दिखाई दी जाएगी. ‘एसडीएम ज्योति बेवफा है’, ‘बेटी पढ़ाओ, पत्नी नहीं’, ‘एसडीएम का इलूइलू’, ‘औरतों की फितरत’, ‘जरूरत खत्म, बेवफाई शुरू’.

इन सब की आड़ में यह बात खूब प्रचारित की जा रही है कि शादी के बाद लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहिए, जो पढ़ाता है उस का हाल अलोक मोर्य जैसा हो जाता है. इस में कुछ यूट्यूबर महिलाओं का ही इंटरव्यू कर रहे हैं और उन्हीं से कहलवा रहे हैं कि ऐसे हाल में तो कोई पति पत्नी को न पढ़ाए.

ऐसे ही सोशल मीडिया पर कुछ तरह के पोस्टर बना कर भेजे जा रहे हैं जिन में 2 महिलाओं की आपस में तुलना की जा रही है, एक में ज्योति मोर्य है जिस ने नौकरी मिलने के बाद अपने पति को छोड़ा, दूसरे में निशा बांगरे है जिस ने पति के लिए नौकरी ही छोड़ दी. यानी, यह बताया जा रहा है कि जो औरत पति के लिए सबकुछ छोड़ दे वही संस्कारी है, वही प्रिय है.

असल दिक्कत यहीं से शुरू हो जाती है क्योंकि ये बातें कहीं न कहीं हमारे धर्मसंस्कार सिखाते ही हैं कि पत्नी पति की दासी है. उसे पति के लिए अपना सबकुछ त्यागना पड़ेगा. इस में यह बिलकुल नहीं कहा जा रहा कि एसडीएम ज्योति मोर्य कोई दूध की धुली होगी, या उस की कोई गलती नहीं लेकिन किसी एक मामले को सभी महिलाओं के खिलाफ जनरलाइज करना कहां तक सही है?

जो बात जोर दे कर कही जा रही है कि ज्योति मोर्य को अलोक मोर्य ने पढ़ाया तो इस में एहसान जैसी तो कोई चीज नहीं. यह तो पतिपत्नी के बीच का आपसी सहयोग है जिसे हर पति या पत्नी को निभाना चाहिए. और अगर यह एहसान है तो क्या पत्नी कभी बोलती है कि मैं ने पति के लिए खाना बनाया या कपड़े धोए, बच्चे संभाले, परिवार के लिए बच्चे पैदा किए?

वैसे भी, पढ़ना हर व्यक्ति का संवैधानिक हक है, इस में एहसान वाली तो कोई बात नहीं. असल सवाल तो यह होना चाहिए कि पत्नी को पति के फैसले पर क्यों निर्भर होना पड़ता है? यहां तक कि किसी के साथ रहने, न रहने का हक भी संविधान ही देता है. यह बात तो उन लोगों को समझनी चाहिए जो पत्नियों को न पढ़ाने का ट्रैंड चला रहे हैं, क्योंकि जो भी पढ़ा रहा है वह इसी इच्छा में पढ़ा रहा है ताकि पत्नी बाहर का काम करे और पैसा कमा कर लाए.

मसलन, इस मामले का हौआ बनाना दोगलापन है. जैसा ज्योति ने अपने पति के साथ किया उसी तरह पुरुषों के खिलाफ तो ऐसे कई मामले हर रोज के बिखरे पड़े हैं. इस रिपोर्ट को लिखते ही यह खबर सामने है कि एक पति ने अपनी पत्नी की नाक और कान काट दिए, क्योंकि उस का दूसरी जगह अफेयर था और पत्नी उस का विरोध कर रही थी. यहां तो पति द्वारा वायलैंस तक का इस्तेमाल किया गया है.

सवाल यह कि आखिर क्यों इस तरह के मामले को ओवर एग्जेजरेट किया जाता है? आखिर समाज महिलाओं के मामले में ही क्यों खाप जैसा व्यवहार करने लगता है? इसी तरह के ट्रैंड आखिरकार महिलाओं के खिलाफ चलते क्यों दिखाई देते हैं? ऐसे ट्रैंड पुरुषों के खिलाफ क्यों नहीं चलते?

पिछले दिनों ही एक लड़की के सड़क पर एक लड़के को पीटते व हंगामा करने का वीडियो खूब वायरल हुआ. उसे ले कर महिलाओं का खूब मखौल उड़ाया गया, जबकि रोड पर लड़तेभिड़ते अधिकतर पुरुष ही दिखाई देते हैं. कुछ समय पहले शराब पीती लड़की वायरल हुई, लेकिन शराब पीने के मामलों और हंगामा करने वालों को देखो, तो लड़के ही बवाल काटते नजर आते हैं. कोई लड़की स्कूटी चलाते गिर जाए, तो सभी लड़कियों का मखौल उड़ाया जाता है कि इन्हें गाड़ी चलानी नहीं आती. इसे ले कर मीम्स वायरल किए जाते हैं.

समस्या यह है कि महिलाओं का पढ़ना और ऊंचे पदों तक पहुंचना पुरुषों को चुभता है, खासकर तब जब महिला पुरुष से आगे निकल गई हो. इस में मोरल पोलिसिंग करने वाला समाज अपने भीतर झांक कर नहीं देखता कि उस ने समाज में पहले ही कितनी गंद मचा रखी है. ऐसे में एक केस को ले कर उस से सभी महिलाओं के चरित्र पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है.

Bigg Boss OTT 2 : सलमान खान से साइरस ब्रोचा ने मांगी भीख, जानें क्यों हुए घर से बेघर?

Cyrus Broacha : बिग बॉस ओटीटी 2 को इस बार दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है. फैंस इसे काफी पसंद कर रहे हैं. इसी वजह से शो को दो हफ्ते के लिए एक्सटेंड किया गया है. हालांकि इस वक्त बिग बॉस ओटीटी 2 (Bigg Boss OTT 2) के कंटेस्टेंट कॉमेडियन और एंकर साइरस ब्रोचा सुर्खियों में बने हुए हैं.

दरअसल वीकेंड के वार में साइरस (Cyrus Broacha) ने सलमान खान से विनती की थी कि वह शो छोड़कर जाना चाहते हैं, पर सलमान ने उन्हें अचानक शो छोड़कर जाने की इजाजत नहीं दी थी. लेकिन अब देर रात कुछ ऐसा हुआ कि जिसके कारण बिग बॉस ने साइरस को घर से बेघर कर दिया.

साइरस क्यों जाना चाहते थे घर से बाहर?

आपको बता दें कि, साइरस घर (Bigg Boss OTT 2) से बाहर इसलिए जाना चाहते थे क्योंकि पिछले कुछ दिनों से वो अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे. उन्हें यहां उदास महसूस होता था. उन्होंने शो के होस्ट सलमान खान से भी कहा था कि घर में रहने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्हें यहां ठीक से नींद नहीं आती है, जिसकी वजह से उनका वजन और भूख दोनों कम हो रही है. इसके अलावा वीकेंड के वार में उन्होंने (Cyrus Broacha) कम से कम 30 मिनट तक सलमान से  विनती की थी कि वह शो छोड़ कर जाना चाहते हैं.

बिग बॉस ने साइरस को क्यों निकाला घर से ?

हालांकि अब खबर आ रही है कि जनता के वोट से सुरक्षित होने के बाद भी साइरस (Cyrus Broacha) को देर रात घर से बेघर कर दिया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साइरस की खराब तबियत के कारण उन्हें घर (Bigg Boss OTT 2) से बाहर भेजा गया है. बहरहाल, साइरस अब शो में वाइल्ड कार्ड के तौर पर एंट्री करेंगे या नहीं ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा.

YRKKH Spolier : अभीर ने अभिमन्यु को दिया सबसे बड़ा गिफ्ट, लेकिन अभिनव ने खोया हक!

YRKKH Spolier : प्रणाली राठौड़ (Pranali Rathod) और हर्शद चोपड़ा (Harshad Chopda) स्टारर टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस वक्त काफी मजेदार ट्रैक चल रहा है. जहां एक तरफ गोयनका परिवार में अभीर के जाने से सब उदास हैं, तो वहीं दूसरी तरफ बिड़ला फैमिली में खुशियों का माहौल है क्योंकि लंबे समय के बाद अभिमन्यु अपने बेटे से मिला है. वहीं सीरियल (YRKKH Spolier) के आगामी एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभीर अभिमन्यु को एक ऐसा गिफ्ट देगा, जिससे पूरे परिवार में खुशी की लहर झूम उठेगी.

अभीर से क्या मांगेगा अभिमन्यु?

सोमवार के एपिसोड (YRKKH Spolier) में दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु अपने बेटे अभीर से कुछ ऐसा मांगेगा, जिसे सुनने के बाद सबकी आंखें नम हो जाएगी. दरअसल अभिमन्यु अभीर से कहेगा कि बेटा क्या आप मुझे पापा बुला सकते हो? अभिमन्यु का सवाल सुनने के बाद कुछ देर तक अबीर कुछ नहीं कहता. जब काफी देर तक अबीर कुछ नहीं कहता तो अभिमन्यु वहां से जाने लगता है और तभी अभीर अभिमन्यु को ‘डैडा’ कहकर पुकारता है. ये सुनते ही जहां एक तरफ अभिमन्यु के चहरे पर मुस्कान आ जाती है, तो वहीं बिड़ला परिवार के सभी सदस्य खुश हो जाते हैं.

अभिनव से छिन गया ये अधिकार

वहीं गोयनका परिवार में कुछ ऐसा होगा जिससे दर्शकों का दिल टूट जाएगा. दरअसल जब अक्षरा अभीर के स्कूल का फॉर्म भर रही होती है तो वहां अभिनव (YRKKH Spolier) आता है और वो अक्षरा से पूछता है कि वो क्या कर रही है? अक्षरा अभिनव से कहती है कि वह अबीर का एडमिशन फॉर्म भर रही है. फॉर्म पर अपनी और अक्षरा की तस्वीर देखकर अभिनव कहता है आप अभी भी अभीर की मां हैं, लेकिन मैंने उसके पिता का हक खो दिया है.

अब आगे देखना होगा कि क्या अबीर अभिनव-अक्षरा के पास वापस आता है या फिर हमेशा-हमेश के लिए बिड़ला परिवार के साथ रहता है.

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