भाजपा सरकार में देश स्वर्णिम मूत्रकाल से गुजर रहा है. दलित आदिवासियों के मुंह पर थूक दो, पेशाब कर दो क्या फर्क पड़ता है. मध्य प्रदेश के सीधी जिले में भाजपा नेता के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला ने तो, बस, आदिवासी दशमत रावत के मुंह पर पेशाब करने का अपराध या पौराणिक भाषा में कहें तो कर्तव्य दोहराया है लेकिन हकीकत यह है कि यह कोई नया अपराध नहीं है.

इस घटना के बाद भले मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान पीड़ित के पैर धोए या आरोपी प्रवेश शुक्ला पर कार्यवाही की, लेकिन घटना के बाद जिस तरह पीड़ित दशमत ने आरोपी को माफ करने की बात कही उस से यही साबित होता है कि पौराणिकता कहीं न कहीं पीड़ित को मजबूर कर रही है कि वह इसे सह ले, और गुनाहगार को माफ कर दे.

यह घटना जातीय दंभ से भरे लोगों के लिए ऐसा करना कोई अनोखी बात भी नहीं है, क्योंकि ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें वही धर्मशास्त्र रोज देते हैं जिन का गुणगान सुबहशाम उठतेबैठते वे करते रहते हैं. ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में लिखा है कि शूद्र यदि वेद/पुराण पढ़ता है तो आंख फोड़ दो, सुनता है तो कान में पिघला सीसा डाल दो और उच्चारण करता है तो जीभ काट दो.

इसी देश के गांव में ‘चप्पल प्रथा’ क्या इस की गवाही नहीं जहां कथित सवर्णों के घरों से निकलने पर दलितों को अपने सिर पर चप्पल रख कर निकलना पड़ता था. बात कोई पुरानी नहीं है. दलित को जबरन जूते से पानी पिलाना यहीं की ही बात है. ऊना कांड कोई पिछली सदी की बात नहीं, जहां बीच सड़क पर नंगा कर दलितों पीटा गया, और हाथरस में दलित की बेटी से सवर्णों ने बलात्कार किया और उस का बचाव सब भगवाइयों ने किया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...