Download App

पापा जल्दी आ जाना : पापा से मुलाकात को तरसती बेटी की कहानी

story in hindi

एक शादीशुदा पुरुष मेरे लिए अपनी पत्नी को छोड़ने को तैयार है, क्या मेरे लिए वो सही व्यक्ति है?

सवाल

मेरी उम्र 23 वर्ष है, एक प्राइवेट कंपनी में काम करती हूं. मेरी हाइट व पर्सनैलिटी अच्छी है. पिछले दिनों एक फैमिली फंक्शन के दौरान मेरी मुलाकात एक 30 वर्षीय शादीशुदा पुरुष से हुई. वह मेरी सुंदरता का कायल हो गया और मैं भी उस के प्रति आकर्षित हो गई. अब वह मेरे लिए अपनी पत्नी तक को छोड़ने की बात कहता है. क्या मेरे लिए उस के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाना सही है?

जवाब
आप की जैसी उम्र हो और शादी न हुई हो तो विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण होना आम बात है. सचाई यह है कि जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, हमारी पसंदनापसंद भी बदलती रहती है. आज जो हमें अपने सपनों का राजकुमार लगता है वह बाद में हमें नापसंद होने लगता है. और यह भी जरूरी नहीं कि जो पुरुष आज आप के लिए अपनी पत्नी को छोड़ने को तैयार है, कल को किसी और के लिए आप को न छोड़ दे. इसलिए उस के प्रति अपनी बढ़ती भावनाओं पर कंट्रोल करें. आप उस में रुचि न दिखाएं, तो हो सकता है वह अपनी गृहस्थी के प्रति ही सीरियस रहे.

ये भी पढ़ें…क्या करें, जब आपकी बेटी को विवाहित से प्रेम हो जाए

युवाओं में प्रेम होना एक आम बात है. अब समाज धीरे-धीरे इसे स्वीकार भी कर रहा है. माता- पिता भी अब इतना होहल्ला नहीं मचाते, जब उनके बच्चे कहते हैं कि उन्हें अमुक लड़की/लड़के से ही शादी करनी है, लेकिन अगर कोई बेटी अपनी मां से आकर यह कहे कि वह जिस व्यक्ति को प्यार करती है, वह शादीशुदा है तो मां इसे स्वीकार नहीं कर पाती.

ऐसे में बेटी से बहस का जो सिलसिला चलता है, उसका कहीं अंत ही नहीं होता, लेकिन बेटी अपनी जिद पर अड़ी रहती है. मां समझ नहीं पाती कि वह ऐसा क्या करे, जिससे बेटी के दिमाग से इश्क का भूत उतर जाए. ऐसे संबंध प्राय: तबाही का कारण बनते हैं. इस से पहले कि बेटी का जीवन बरबाद हो, उसे उबारने का प्रयास करें.

कारण खोजें

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलिज में मनोचिकित्सा विभाग के निदेशक डॉक्टर आरसी जिलोहा का कहना है कि इस तरह के मामले में मां एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं. मां के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि बेटी का किसी अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षण का कारण घरेलू वातावरण तो नहीं है. कहीं यह तो नहीं कि जिस प्यार व अपनेपन की बेटी को जरूरत है, वह उसे घर में नहीं मिलता हो और ऐसे में वह बाहर प्यार ढूंढ़ती है और हालात उसे किसी विवाहित पुरुष से मिलवा देते हैं.

यह भी संभव है कि वह व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन से संतुष्ट न हो. चूंकि दोनों के हालात एक जैसे हैं, सो वे भावुक हो एकदूसरे के साथ न जुड़ गए हों. यह भी संभव है कि अपनी पत्नी की बुराइयां कर के और खुद को बेचारा बना कर लड़कियों की सहानुभूति हासिल करना उस व्यक्ति की सोचीसमझी साजिश का एक हिस्सा है.

सो, बेटी से एक दोस्त की तरह व्यवहार करें व बातोंबातों में कारण जानने का प्रयास करें, तभी आप अगला कदम उठा पाएंगी.

सही तरीका अपनाएं

डॉक्टर जिलोहा का कहना है कि बेटी ने किसी शादीशुदा से प्यार किया, तो अकसर माताएं उन को डांटती-फटकारती हैं और उसे उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए कहती हैं, पर ऐसा करने से बेटी मां को अपना दुश्मन मानने लगती है. बेहतर होगा कि प्यार से उसे इसके परिणाम बताएं. बेटी को बताएं कि ऐसे रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. व्यावहारिक तौर पर उसे समझाएं कि उसके संबंधों के कारण बहुत सी जिंदगियां तबाह हो सकती हैं. फिर जो व्यक्ति उस के लिए अपनी पत्नी व बच्चों को छोड़ सकता है, वह किसी और के लिए कभी उसे भी छोड़ सकता है, फिर वह क्या करेगी?

मदद लें

आप चाहें तो उस व्यक्ति की पत्नी से मिलकर समस्या का हल ढूंढ़ सकती हैं. अकसर पति के अफेयर की खबर सुनते ही कुछ पत्नियां भड़क जाती हैं और घर छोड़ कर मायके चली जाती हैं. उसे समझाएं कि वह ऐसा हरगिज न करे. बातोंबातों में उस से यह जानने का प्रयास करें कि कहीं उसके पति के आप की बेटी की ओर झुकाव का कारण वह स्वयं तो नहीं. ऐसा लगे तो एक दोस्त की तरह उसे समझाएं कि वह पति के प्रति अपने व्यवहार को बदल कर उसे वापस ला सकती है.

प्लान बनाएं

आप की सभी तरकीबें नाकामयाब हो जाएं तो उसकी पत्नी से मिल कर एक योजना तैयार करें, जिस के तहत पत्नी आप की बेटी को बिना अपनी पहचान बताए उसकी सहेली बन जाए. उसे जताएं कि वह अपने पति से बहुत प्यार करती है. उसके सामने पति की तारीफों के पुल बांधें. अगर वह व्यक्ति अपनी पत्नी की बुराई करता है तो एक दिन सच्चाई पता चलने पर आपकी बेटी जान जाएगी कि वह अब तक उसे धोखा देता रहा है. ऐसे में उसे उस व्यक्ति से घृणा हो जाएगी और वह उस का साथ छोड़ देगी.

यह भी हो सकता है कि उन का शादी का इरादा न हो और अपने संबंधों को यों ही बनाए रखना चाहते हों. ऐसे में बेटी को बारबार समझाने या टोकने से वह आप से और भी दूर हो जाएगी. उस को दोस्त बना कर उसे समझाएं और प्रैक्टिकली उसे कुछ उदाहरण दें तो शायद वह समझ जाए.

इशारों को समझो, क्या चाहती हैं स्त्रियां

कोई भी स्त्री तब और निखर उठती है, जब कोई उसकी खूबसूरती की तारीफ करने वाला हो. कोई उसकी छोटी-छोटी जरूरतों का खयाल रखने वाला हो. अगर वह अपने साथी के लिए कुछ करे तो वह उसे नोटिस करे. जब साथी इन बातों का खयाल रखता है तो दांपत्य जीवन खुशियों से महक उठता है. आज सुबह से ही मन कुछ उदास था, न जाने किस सोच में गुम थी. पिछले काफी समय से मैं सोच रही थी कि हमारी शादी में कुछ कमी सी है लेकिन तभी मोबाइल पर आए एक मेसेज ने जिंदगी में छाई सारी निराशाओं को पल भर में मानो दूर भगा दिया और मेरे मन में एकाएक नई उमंगें तैरने लगीं. इसमें लिखा था, ‘जानेमन कैसी हो? तुम्हारा दिन कैसा बीत रहा है?’ उदासी में डूबा दिन जरा से इक मेसेज से खुशनुमा हो उठा. मन में शाम की कई प्लैनिंग चलने लगीं. मैंने आईने में खुद को देखा. वाकई मैं खुश ही थी और इसकी चमक मेरे चेहरे पर दिख रही थी. मैंने पूरी गर्मजोशी से मेसेज का जवाब दिया.

क्या चाहती हैं स्त्रियां

अकसर पुरुष सोचते हैं कि स्त्रियों को खुश करना बडा मुश्किल है, लेकिन वे नहींजानते कि उनकी जीवनसंगिनी खुश होने के लिए बेशकीमती तोहफा नहीं चाहती, उसे तो प्यार से दी गई एक कैंडी भी खुश कर सकती है. लंबे से मेल के बजाय प्यार में डूबी छोटी सी पंक्ति भी जीवनसाथी को प्रसन्न कर सकती है. बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

समझो न मन की बात

हम जिस दौर में जी रहे हैं, वह स्त्री-पुरुष की बराबरी वाला दौर है. यहां स्त्रियां ऑफिस में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. पुरुष थोडा कंफ्यूज है. उसे समझ नहींआ रहा कि समानता की बात करने वाली, हर फील्ड में बराबर दखल रखने वाली स्त्री क्यों चाहती है कि पुरुष उनके लिए गाडी का दरवाजा खोले या फिर उनका भारी सामान उठाने में उनकी मदद करे. अगर स्त्रियां समानता की बात करती हैं तो उन्हें इस तरह की इच्छा करने का क्या हक है! कई बार स्त्रियों की छोटी-छोटी इच्छाओं को पुरुष समझ नहीं पाते और उनकी यही बात स्त्रियों को खलती है.

बस थोडी सी केयर

सच्चाई यह है कि करियर में कोई स्त्री कितनी भी कामयाब क्यों न हो जाए, उसे सबसे बडी खुशी तब मिलती है, जब उसका साथी उसकी छोटी-छोटी ख्वाहिशों को समझता हो, उनका खयाल रखता हो. दरअसल ऐसा करते हुए वह यह जता देता है कि वह उसके लिए कितनी खास है. स्त्रियां हमेशा चाहती हैं कि साथी उनकी तारीफ करे. जब साथी उसकी तारीफ करता है तो वह और निखर जाती है. वह चाहती है कि उसका साथी कार में पहले खुद बैठने की बजाय उनके लिए कार का दरवाजा खोले. ये चाहत इसलिए नहीं है कि वह यह काम खुद नहीं कर सकती या फिर शारीरिक रूप से कमजोर है, वह सिर्फ अपने पार्टनर से एक स्नेह भरे रिश्ते की अपेक्षा रखती है. प्रकृति ने पुरुष को फिजिकली मजबूत बनाया है. वह मेहनत करता है, परिवार चलाता है. स्त्री उसका खयाल रखती है. आदिकाल से ऐसा ही होता रहा है लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव भी आया है. अब स्त्रियां घर-ऑफिस साथ संभाल रही हैं. पुरुष उनकी मेहनत की कद्र करता है, लेकिन कहींन कहीं वह इसका इजहार करने से चूक जाता है. उसे यही समझना है कि अगर प्यार है तो इजहार भी जरूरी है.

Sushant Singh Rajput केस में रिया चक्रवर्ती को मिली बड़ी राहत

Sushant Singh Rajput Drug Case : 14 जून 2020, ये वो तारीख है जिस दिन बॉलीवुड ने एक उभरते सितारे को खो दिया था. इसी दिन एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुई थी. हालांकि अब तक उनकी मौत के पीछे की वजह सामने नहीं आई है, लेकिन पुलिस से लेकर एनसीबी इस मामले में छानबीन कर रही है.

इसी बीच अब इस केस में सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput Drug Case) की गर्लफ्रेंड रहीं एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती (rhea chakraborty) को बड़ी राहत मिली है. दरअसल, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एनसीबी ने कहा कि, ‘वह सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े मादक पदार्थ मामले की जांच के सिलसिले में रिया चक्रवर्ती को दी गयी जमानत को चुनौती नहीं दे रहे हैं’

एनसीबी ने जमानत को चुनौती देने से किया इंकार

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एस वी राजू ने न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ से कहा कि, ‘‘एनसीबी रिया (Sushant Singh Rajput Drug Case) की जमानत को चुनौती नहीं दे रही है, लेकिन एनडीपीएस कानून की धारा 27-ए के तहत कानून के प्रश्न को खुला रखा जाए.’’

जो अवैध मादक पदार्थों की तस्करी को वित्तपोषित करने और प्रश्रय देने से संबंधित है. हालांकि अगर इस धारा के तहत आरोप तय होता है तो आरोपी को 10 साल तक की जेल और जमानत दिये जाने पर रोक लगाने का प्रावधान है.

शीर्ष अदालत- इस फैसले को मिसाल के रूप में न लिया जाए

इसके अलावा रिया (Sushant Singh Rajput Drug Case) को जमानत देने की मुंबई हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एनसीबी की याचिका पर सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने एनसीबी के रुख में बदलाव पर एएसजी की दलील पर संज्ञान भी लिया. साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के इस फैसले को किसी भी अन्य केस में मिसाल के रूप में न लिया जाए. पीठ ने अपने बयान में कहा, ‘‘एएसजी की दलील सुनने के बाद लगता है कि अभी रिया (rhea chakraborty) को जमानत देने के संबंध में लागू आदेश को चुनौती देने की जरूरत नहीं है.’’

वहीं उच्च न्यायालय ने कहा कि, ”किसी ड्रग संबंधी लेनदेन के लिए भुगतान करने का अर्थ ये नहीं है कि मादक पदार्थ की तस्करी को वित्तपोषित (financed) किया जा रहा है. इसलिए आवेदक के खिलाफ सुशांत के लिए मादक पदार्थ खरीदने में पैसे खर्च करने के आरोप का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अवैध तस्करी के लिए धन दिया था.”

Suniel Shetty ने टमाटर वाले बयान पर किसानों से मांगी माफी, जानें क्या कहा

Suniel Shetty On Tomato Statement : बॉलीवुड अभिनेता सुनीला शेट्टी (Suniel Shetty) फिल्मों में जितने अपने किरदार के लिए सुर्खियों में रहते हैं. उतने ही वह अपने बेबाक बयानों के लिए भी चर्चा में रहते हैं. एक्टर हर एक मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं. हाहली ही में उन्होंने टमाटर के बढ़ रहे दामों पर भी अपनी बात रखी थी. हालांकि इस बार वह टमाटार के दाम पर दिए अपने बयान के चलते ट्रोल्स के निशाने पर आ गए और उन्हें खूब निंदा का सामना करना पड़ा. पर अब उन्होंने अपने दिए बयान पर माफी मांग ली है.

जानें क्या कहा था एक्टर ने?

बता दें कि, एक इंटरव्यू में सुनील शेट्टी ने कहा था कि, ‘इन दिनों टमाटर का दाम बढ़ रहा है, जिसका असर हम जैसे लोगों की किचन पर भी पड़ता है. इसलिए उन्होंने टमाटर खाने कम कर दिए हैं.’ हालांकि उन्हें अपने इस बयान के चलते ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा हैं. लोगों के अलावा किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सोशल मीडिया पर उनके बयान की निंदा की है. वहीं अब ट्रोलिंग से परेशान होकर सुनील (Suniel Shetty) ने सफाई दी है.

सुनील शेट्टी- किसान मेरी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक्टर (Suniel Shetty) ने किसानों से माफी मांगी है. साथ ही ये भी कहा कि कुछ लोगों ने उनके बयान को गलत तरीके से दर्शाया है. उन्होंने कहा, ‘मैं तो दिल से देसी आदमी हूं और हमेशा ही मैंने किसानों का सपोर्ट किया है. उनके लिए गलत सोचना तो दूर की बात है.’ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि हम अपनी देसी चीजों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें और मैं तो चाहता हूं कि हमारे देश के किसानों को हमेशा ही इसका फायदा मिले. किसान मेरे जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि मैं खुद एक होटल बिजेनस चलाता हूं तो हमेशा मेरे ताल्लुक उनसे सीधे तौर पर रहे हैं.’

जानें सुनील ने मांगी मांगते हुए क्या कहा?

इसके अलावा एक्टर (Suniel Shetty On Tomato Statement) ने कहा, ‘मैं तो कभी अपने सपने में भी किसानों के खिलाफ बात करने की बात सोच नहीं सकता. अगर मेरे किसी भी बयान से, जिसे मैंने कहा भी नहीं. उससे अगर आपको बुरा लगा है तो मैं इसके लिए दिल से माफी मांगता हूं.’ इसके आगे सुनील ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि, ‘कृप्या उनके बयान को तरीके से पेश किया जाए और मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता.’

दौलत से जीता दिल

जगतार सिंह में भले ही लाख बुराईयां रही हों, लेकिन उस में एक सब से बड़ी अच्छाई यह थी कि उसे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे तक घर जरूर लौट आता था. जिस किसी को उस से मिलना होता या कोई काम करवाना होता, वह शाम 7 बजे के बाद उस का इंतजार उस के घर पर करता था. 

जगतार सिंह पंजाब बिजली बोर्ड में नौकरी करता था. लेकिन न जाने क्यों आज से 5-6 साल पहले उस ने अपनी यह नौकरी छोड़ दी और घर पर रह कर स्वतंत्र रूप से बिजली मरम्मत का काम करने लगा था. उस के इलाके के ज्यादातर किसान बिजली बोर्ड के बजाय उस पर ज्यादा भरोसा करते थे. 

इसीलिए दूरदूर तक के गांवों में जब किसी की घर की बिजली या ट्यूबवेल की मोटर खराब होती, लोग बिजली बोर्ड में शिकायत करने के बजाय जगतार को ले जा कर अपना काम करवाना ज्याद बेहतर समझते थे. एक तो इस से उन का समय बच जाता था, दूसरे जगतार की भी रोजीरोटी अच्छी तरह से चल रही थी. 

एक शाम जब जगतार अपने निश्चित समय पर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को ङ्क्षचता हुई. इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. क्योंकि उस का फोन बंद बता रहा था. जब रात 10 बजे तक भी वह घर नहीं लौटा तो उस के घर वाले परेशान हो उठे. 

जगतार सिंह का मोबाइल बंद था, इसलिए बात नहीं हो पा रही थी. उस की पत्नी परमजीत  कौर, बड़ा भाई गुरबख्श सिंह तथा गांव के कुछ अन्य लोग उस की तलाश में निकल पड़े थे. रात करीब 11 बजे अचानक उस का फोन मिल गया. उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी से उस की बात हो गई. 

इस के बाद उस ने सभी को बताया कि जगतार अपने दोस्तों के साथ कहीं बैठा खापी रहा है. ङ्क्षचता की कोई बात नहीं है, थोड़ी देर में वह घर आ जाएगा. जगतार अपने किन दोस्तों के साथ बैठा खापी रहा है, यह उस ने नहीं बताया था. 

बहरहाल, जगतार से बात हो जाने के बाद घर वालों की ङ्क्षचता कुछ कम हो गई. लेकिन फोन पर कहने के बावजूद जगतार रात को घर नहीं आया. उस के बाद से उस का फोन बंद हो गया तो सुबह तक बंद ही रहा.

अगले दिन किसी ने बताया कि गांव नरीकोकलां स्थित पंचायती अनाज मंडी स्टोर की ट्यूबवेल की हौदी में जगतार सिंह की लाश पड़ी है. 

पंचायती अनाज मंडी जगतार के गांव सहिके से करीब 4-5 किलोमीटर दूर थी. लाश पड़ी होने की सूचना मिलने पर गांव के सरपंच, उस की पत्नी, भाई और गांव के कुछ लोग नरीकोकलां जा पहुंचे. वहां एक ट्यूबवेल की पानी की हौदी में जगतार की लाश पड़ी थी. 

उस के सिर और पैर पर मामूली चोटों के निशान थे. लाश को ट्रैक्टर की ट्रौली पर लाद कर उस के गांव सहिके लाया गया. जगतार के पास अपना स्कूटर था, जिस से वह गांवगांव जा कर लोगों का बिजली का काम करता था. काफी तलाशने पर भी उस का स्कूटर वहां नहीं मिला. यही नहीं, उस के औजार और मोबाइल फोन भी नहीं मिला.

बहरहाल, गांव आ कर जब घर और गांव वालों ने कहा कि यह साफसाफ हत्या का मामला और इस की सूचना पुलिस को देनी चाहिए तो उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी ने रोते हुए स्पष्ट कहा कि वह इस बात की सूचना पुलिस को कतई नहीं देना चाहती. 

क्योंकि पुलिस को सूचना दी गई तो वह लाश को कब्जे में ले कर उस का पोस्टमार्टम कराएगी. वह नहीं चाहती कि मरने के बाद उस के पति की लाश को काटपीट कर दुर्दशा की जाए. 

जगतार के बड़े भाई गुरबख्श सिंह और सरपंच ने परतजीत को काफी समझाया कि पोस्टमार्टम होने से पता चल जाएगा कि जगतार की मौत क्यों और कैसे हुई है? लेकिन परमजीत अपनी बात पर अड़ी रही. उस का कहना था कि जगतार की मौत बिजली का करंट लगने से हुई होगी, इसलिए पोस्टमार्टम की कोई जरूरत नहीं है. 

सरपंच ही नहीं, घर तथा गांव वाले कहते रह गए, लेकिन परमजीत ने किसी की नहीं सुनी. मजबूर हो कर गांव वालों ने पुलिस को सूचित किए बगैर ही जगतार सिंह का अंतिम संस्कार करा दिया.

पंजाब के जिला संगरूर का एक कस्बा है अमरगढ़. इसी कस्बे से लगभग 8 किलोमीटर दूर गांव है सहिके. गुरनाम सिंह इसी गांव के रहने वाले थे. उन की 7 संताने थीं, जिन में 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. बड़ा बेटा गुरबख्श सिंह सेना से रिटायर्ड हो कर गांव में ही रहता था. उस से छोटा था जगतार, जो बिजली मरम्मत का काम करता था और गांव में ही रहता था. उस से छोटा था अवतार सिंह, जिस की 20 साल पहले मौत हो गई थी. 

उस की मौत कैसे हुई, इस बात का पता आज तक नहीं चला. गुरनाम सिंह की भी मौत हो चुकी है. गांव में अब सिर्फ 2 भाई, फौजी गुरबख्श सिंह और जगतार सिंह ही रहते थे. दोनों के मकान भले ही अलगअलग थे, लेकिन आमनेसामने थे. 

जगतार का विवाह परमजीत कौर से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे, 19 साल की बेटी हरप्रीत कौर और 14 साल का बेटा.

परमजीत कौर ने जिद कर के पति का अंतिम संस्कार भले ही करा दिया था, लेकिन फौजी गुरबख्श सिंह के मन में हर समय यही बात घूमा करती थी कि आखिर परमजीत ने जगतार की लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराने दिया. यह एक ऐसा संदेह था, जो उसे किसी भी तरह से चैन नहीं लेने दे रहा था. 

जगतार के अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी हो गईं तो परमजीत अपने मायके मलेरकोटला चली गई. इस के बाद तो वह पूरी तरह से आजाद हो गई. कभी वह संगरूर चली जाती तो कभी अमरकोट. उसे न पति की मौत का दुख था और न अब बच्चों की कोई परवाह रह गई थी. यह सब देख कर फौजी गुरबख्श सिंह को और ज्यादा दुख होता.

जब नहीं रहा गया तो उन्होंने सरपंच के साथ मिल कर निजी तौर पर परमजीत कौर के बारे में छानबीन की तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. परमजीत की हरकतों से मन का संदेह बढ़ता गय, फिर वह सरपंच को साथ ले कर थाना अमरगढ़ जा पहुंचे. 

सारी बात उन्होंने थानाप्रभारी इंसपेक्टर संजीव गोयल को बताई तो उन्होंने भी संदेह व्यक्त किया कि उन के भाई की मौत बिजली का करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

संजीव गोयल ने गुरबख्श सिंह की पूरी बात सुन कर उन की शिकायत दर्ज करा कर उन्हें पूरा विश्वास दिलाया कि वह जल्दी ही जगतार की मौत के रहस्य से परदा उठा देंगें.

इस मामले में संजीव गोयल के सामने समस्या यह थी कि मर चुके जगतार सिंह का अंतिम संस्कार हो चुका था. कोई इस तरह का सबूत भी नहीं था कि उसी के आधार पर वह इस मामले की जांच करते. 

अब जो भी सबूत जुटाए जा सकते थे, वे सिर्फ पूछताछ कर के ही जुटाए जा सकते थे. इसलिए उन्हें लगा कि सब से पहले मृतक जगतार की पत्नी परमजीत कौर से ही पूछताछ करनी चाहिए.

उन्होंने सहिके जा कर परमजीत कौर से जगतार सिंह की मौत के बारे में पूछा तो उस ने उन से भी कहा कि उन की मौत बिजली का करंट लगने से हुई थी. उस दिन वह पंचायती मंडी के उस ट्यूबवेल की मोटर ठीक करने गए थे. मोटर ठीक करते हुए उन्हें करंट लगा और वह हौदी में गिर गए, जिस से उन की मौत हो गई. 

“वह सब तो ठीक है, लेकिन तुम ने इस बात की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? तुम्हें ऐसी क्या जल्दी थी कि बिना पोस्टमार्टम कराए ही तुम ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया?” संजीव गोयल ने पूछा.  

“सर, मैं ने सोचा कि आज नहीं तो कल उन का अंतिम संस्कार कराना ही है, इसलिए मैं ने देर करना उचित नहीं समझा और उन का अंतिम संस्कार करा दिया.”

“अच्छा जगतार की अस्थियां कहां हैं?” संजीव गोयल ने पूछा.

“उन्हें तो मैं ने श्रीकीरतपुर साहिब में प्रवाह दी हैं.”

“मतलब, तुम ने सारे सबूत मिटा दिए, कुछ भी नहीं छोड़ा. खैर, फिर भी मैं सच्चाई का पता लगा ही लूंगा.” संजीव गोयल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने अन्य लोगों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें पता चला कि जगतार के मरने के बाद से परमजीत कौर को न बच्चों की कोई ङ्क्षचता है और न उस की मौत का जरा भी दुख है. उसे देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि 10-15 दिन पहले ही उस के पति की मौत हुई है.

बहरहाल, उस दिन की पूछताछ में सरपंच ने ही नहीं, गांव के जिस किसी से उन्होंने पूछा, सभी ने यही आशंका व्यक्त की कि जगतार की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है और उस की हत्या में कहीं न कहीं से परमजीत का हाथ जरूर है. 

इसी पूछताछ में संजीव गोयल को गांव वालों से पता चला कि परमजीत कौर के घर रविंद्र उर्फ रवि तथा जुगराज का काफी आनाजाना था. हत्या वाले शाम जगतार को उन्हीं दोनों के साथ टोरिया गांव की ओर जाते देखा गया था. 

संजीव गोयल थोड़ा और गहराई में गए तो पता चला कि परमजीत कौर और रविंद्र के बीच जरूर कुछ चल रहा है. इस के तुरंत बाद उन के एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि परमजीत कौर को उस ने रविंद्र के साथ मलेरकोटला की ओर जाते देखा था. उन के हाथ में बैग थे, जिस से यही लगता है कि वे गांव छोड़ कर कहीं जा रहे हैं.

यह सूचना मिलते ही संजीव गोयल ने समय गंवाना उचित नहीं समझा और तुरंत जीप से पीछा कर के रास्ते में ही रविंद्र और परमजीत कौर को गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

फौजी गुरबख्श सिंह के बयान के आधार पर रविंद्र, जुगराज और परमजीत कौर को नामजद कर के जगतार की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर पूछताछ शुरु की गई. 

अगले महीने संजीव गोयल ने रविंद्र और परमजीत को सक्षम अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ के लिए 2 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान रविंद्र की निशानदेही पर मृतक जगतार का स्कूटर और मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया. 

रिमांड खत्म होने पर दोनों को एक बार फिर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें संगरूर की जिला जेल भेज दिया गया.

मृतक जगतार के भाई फौजी गुरबख्श सिंह, सरपंच एवं गांव वालों तथा अभियुक्तों से की गई पूछताछ में जगतार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह परमजीत कौर के पतन की कहानी थी.

जगतार सिंह और रविंद्र बचपन के दोस्त थे. उन का खेलनाकूदना, खानापीना बचपन से अब तक साथ रहा. जवान होने पर भी दोनों ज्यादातर साथ ही रहते थे. रविंद्र सिंह उर्फ रवि पड़ोसी गांव मुंडिया के रहने वाले काका सिंह का बेटा था. 

सवेरा होते ही रविंद्र जगतार के गांव सहिके आ जाता या फिर जगतार उस के गांव मुंडिया पहुंच जाता. जवान होने पर दोनों की शादियां ही नहीं हो गईं, बल्कि वे एकएक बेटी के बाप भी बन गए. 

जगतार बिजली मरम्मत का काम करता था, जबकि रविंद्र निठल्ला घूमते हुए आवारागर्दी किया करता था. बचपन से ही उस की काम करने की आदत नहीं थी. लगभग 8 साल पहले वह अपने एक रिश्तेदार के पास विदेश चला गया, जहां 3 साल रहा. वहां से लौटा तो उस के पास ढेर सारे रुपए थे. 

वह कार से जगतार से मिलने उस के घर गया तो उस के लिए भी ढेर सारे महंगे उपहार ले गया था. रविंद्र के ठाठबाट देख कर जगतार की पत्नी परमजीत खूब प्रभावित हुई. 

उस दिन के बाद जगतार का घर शराब का अड्डा बन गया. रोज महफिलें सजने लगीं. रविंद्र के साथ उस का दोस्त जुगराज भी आता था. वह गांव शेरखां वाला के रहने वाले राम सिंह का बेटा था. 

2 बच्चों की मां होने के बावजूद परमजीत अभी जवान और खूबसूरत लगती थी. उस की मांसल देह किसी को भी दीवाना बना सकती थी. रविंद्र पहले से ही उस का दीवाना था. इसीलिए विदेश से लौटने पर परमजीत को खुश करने के लिए वह उस के लिए भी तरहतरह के महंगे उपहार खरीद कर लाने लगा. 

एक दिन जब जगतार की गैरमौजूदगी में उस ने परमजीत कौर का हाथ पकड़ कर कहा कि वह उस से प्यार करने लगा है और उस के लिए पागल हो गया है तो परमजीत खुशीखुशी उस के आगोश में समा गई. इस की वजह यह थी कि वह भी तो रविंद्र और उस की कमाई की दीवानी थी. 

रविंद्र और परमजीत के बीच अवैधसंबंध तो बन गए, लेकिन जगतार के घर पर रहने की वजह से उन्हें मिलने का अवसर कम ही मिल पाता था. इस का उपाय रविंद्र ने यह निकाला कि जगतार की उस ने मलेरकोटला में बिजली बोर्ड में नौकरी लगवा दी. 

वह सुबह नौकरी पर जाता तो रात में ही लौटता. उस के नौकरी पर जाते ही रविंद्र उस के घर पहुंच जाता. यह लगभग रोज का नियम बन गया. रविंद्र परमजीत कौर पर दोनों हाथों से रुपए लुटा रहा था. वह उस के इस तरह खर्च करने से बहुत खुश थी. 

शायद इसी वजह से उस ने रविंद्र के कहने पर उस के दोस्त जुगराज से भी संबंध बना लिए थे. अब परमजीत एक ही समय में अपने 2 प्रेमियों, रविंद्र और जुगराज को खुश करने लगी थी.

सब कुछ बढिय़ा चल रहा था कि मोहल्ले में उड़तेउड़ते यह खबर किसी दिन जगतार के कानों तक पहुंच गई. इस के बाद उस ने मलेरकोटला छोड़ दिया और घर पर ही रहने लगा. उसी बीच किसी दिन उस ने परमजीत कौर, रविंद्र और जुगराज को रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस समय परमजीत कौर और रविंद्र ने माफी मांग कर बात संभाल ली. जगतार ने भी उन्हें माफ कर दिया. लेकिन वे चोरीछिपे मिलते रहे. 

परमजीत कौर को इस तरह चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने रुआंसी हो कर कहा, “देखो रविंद्र, इस तरह चोरीछिपे मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. अगर इस बार हम पकड़े गए तो जगतार माफ नहीं करेगा. तुम मुझ से संबंध बनाए रखना चाहते हो तो तो मुझे भगा ले चलो या फिर जगतार का कोई इंतजाम कर दो.”

रविंद्र परमजीत की देह का इतना दीवाना था कि उस से बिछुडऩे की कल्पना से ही डरता था. इसलिए उस ने परमजीत कौर के साथ मिल कर जगतार को ही रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने जुगराज को भी शामिल कर लिया. 

शाम को रविंद्र ने जगतार के साथ खानेपीने का कार्यक्रम बनाया. यह महफिल उन्होंने सहिके गांव से 4 किलोमीटर दूर खेतों में जमाई. शराब पीने के दौरान रविंद्र और जुगराज ने बातोंबातों में जगतार को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी. 

जब जगतार संतुलन खोने लगा तो दोनों उसे ले कर पंचायती मंडी के पास आ गए और वहां उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश ट्यूबवेल की हौदी में फेंक कर परमजीत को फोन कर दिया कि उन्होंने जगतार की हत्या कर दी है.

इस के बाद परमजीत कौर ने घटनास्थल पर जा कर खुद देखा कि जगतार सचमुच मर चुका है या वे झूठ बोल रहे हैं. जगतार की लाश देख कर उसे विश्वास हो गया तो वह गांव लौट आई. जगतार की हत्या के समय वह इतना बेचैन थी कि मात्र एक घंटे में उस ने कई बार रविंद्र को फोन कर के पूछा था कि काम हो गया या नहीं

यह बात संजीव गोयल को तब पता चली, जब उन्होंने परमजीत कौर और रविंद्र के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

रविंद्र और परमजीत को जेल भेज कर संजीव गोयल ने इस हत्याकांड के तीसरे अभियुक्त जुगराज की तलाश शुरू की तो उन्होंने उसे भी संगरूर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी स्वीकार कर लिया कि जगतार की हत्या में रविंद्र के साथ वह भी शामिल था.

पूछताछ के बाद संजीव गोयल ने जुगराज को भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया. जगतार की मौत के बाद उस के बच्चे अकेले रह गए थे. अब वे अपने फौजी ताऊ गुरबख्श सिंह के साथ रह रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुछ दिनों से मेरी सैक्स में दिलचस्पी बिलकुल खत्म हो गई है, मेरी पत्नी को इस से काफी बुरा लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी शादी को 6 साल हो गए हैं. मेरी पत्नी नौकरी करती है और हर मामले में मेरा सहयोग भी करती है. लेकिन कुछ दिनों से मेरी सैक्स में दिलचस्पी बिलकुल कम हो गई है. जब भी वह मेरे पास आती है तो मैं उसे दूर भगा देता हूं जिस से उसे काफी बुरा लगता है. मैं उसे अपनी समस्या भी नहीं बता पा रहा हूं. मुझे डर है कि कही इस का असर हमारे रिश्ते पर न पड़े.

जवाब
पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है और उस में कुछ छिपाने के बारे में तो सोचना ही नहीं चाहिए. जब आप खुद मानते हैं कि आप की पत्नी काफी सहयोग करती है तो फिर मन में कैसा डर.

आप उसे एकांत में बताएं कि आजकल आप का सैक्स करने का बिलकुल मन नहीं करता है और जब वह आप के पास आती है तो आप चाह कर भी सैक्स की इच्छा नहीं जता पाते, मजबूरी में आप को खुद से दूर करना पड़ता है.

आप उस से ऐसा कहेंगे तो यकीन मानिए कि वह आप को गले लगा लेगी और आप को सैक्स विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह देगी ताकि आप का वैवाहिक जीवन सुखदपूर्ण बन सके. सो, आप को बोल्ड बन कर अपना पक्ष रखना पड़ेगा वरना रिश्ते में दूरियां बढ़ जाएंगी.

ये भी पढ़ें…

सेक्स में आनंद और यौन तृप्ति का मतलब भी जानें

विभा ने 25-26 वर्ष की उम्र में जिस से विवाह करने का निर्णय लिया वह वाकई दूरदर्शी और समझदार निकला. विभा ने खूब सोचसमझ कर, देखपरख कर यानी भरपूर मुलाकातों के बाद निर्णय लिया कि इस गंभीर विचार वाले व्यक्ति से विवाह कर वह सुखी रहेगी.

विवाह होने में कुछ ही दिन बचे थे कि इसी बीच भावी पति ने एसएमएस भेजा जिसे पढ़ विभा सकुचा गई. लिखा था, ‘‘तुम अभी से गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन शुरू कर दो वरना बाद में कहोगी कि खानेखेलने भी नहीं दिया बच्चे की परवरिश में फंसा दिया. सैक्स पर कुछ पढ़ लो. कहोगी तो लिंक भेज दूंगा. नैट पर देख लेना.’’ यह पढ़ विभा अचरज में पड़ गई.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने होने वाले पति की, अटपटी सलाह पर कैसे अमल करे? कैसे व किस से गोलियां मंगवाए व खाए? साथ ही इस तरह की बातें नैट पर पढ़ना तो सब से कठिन काम है, क्योंकि वहां तो पोर्न ही पोर्न भरा है, जो जानकारी देने की जगह उत्तेजित कर देता है.

मगर विभा की यह दिक्कत शाम होतेहोते हल हो गई. दोपहर की कुरियर से अपने नाम का पैकेट व कुछ किताबें पाईं. गोली प्रयोग की विधि भी साथ में भेजे पत्र में थी और साथ एक निर्देश भी था कि किताबें यदि मौका न मिले तो गुसलखाने में ले जा कर पढ़ना, संकोच मत करना. विवाह वाले दिन दूल्हा बने अपने प्यार की आंखों की शरारती भाषा पढ़ विभा जैसे जमीन में गढ़ गई. सुहागरात को पति ने प्यार से समझाया कि सकुचाने की जरूरत नहीं है. इस आनंद को तनमन से भोग कर ही जीवन की पूर्णता हासिल होती है.

आधी अधूरी जानकारी

ज्यादातर युवतियों को तो कुछ पता ही नहीं होता. न उन्हें कोई बताता है और न ही वे सकुचाहट व शर्म के कारण खुद ही कुछ जानना चाहती हैं. पासपड़ोस, सखीसहेलियों से जो आधीअधूरी जानकारी मिलती है वह इतनी गलतफहमी भरी होती है कि यौन सुख का अर्थ भय में बदल उन्मुक्त आनंद व तृप्ति नहीं लेने देता. नैट पर केवल प्रोफैशनल दिखते हैं, आम लोग नहीं जो पोर्न बेचने के नाम पर उकसाते भर हैं. वास्तव में पिया के घर जाने की जितनी चाहत, ललक हर लड़की में होती है, उसी प्रियतम से मिलन किस तरह सुख भरा, संतोषप्रद व यादगार हो, यह ज्यादातर नहीं जानतीं.

कभीकभार सहेलियों की शादी के अनुभव सुन वे समझती हैं कि शादी के बाद पति का संग तो दुखदायी व तंग करने वाला होता है. जैसे कोई हमउम्र सहेली कहे कि बड़े तंग करते हैं तेरे बहनोई पूरीपूरी रात सोने नहीं देते. सारे बदन का कचूमर बना देते हैं. बिन ब्याही युवतियों के मन में यह सब सुन कर दहशत जगना स्वाभाविक है. ये बातें सुनते समय कहने वाली की मुखमुद्रा, उस के नेत्रों की चंचलता, गोपनीय हंसी, इतराहट तो वे पकड़ ही नहीं पातीं.

बस, शब्दों के जाल में उलझ पति का साथ परेशानी देगा सोच घबरा जाती हैं. ब्याह के संदर्भ में कपड़े, जेवर, घूमनाफिरना आदि तो उन्हें लुभाता है, पर पति से एकांत में पड़ने वाला वास्ता आशंकित करता रहता है. परिणामस्वरूप सैक्स की आधीअधूरी जानकारी भय के कारण उन्हें या तो इस खेल का भरपूर सुख नहीं लेने देती या फिर ब्याह के बाद तुरंत गर्भधारण कर लेने से तबीयत में गिरावट के कारण सैक्स को हौआ मानने लगती हैं.

सैक्स दांपत्य का आधार

सैक्स दांपत्य का आधार है. पर यह यदि मजबूरीवश निभाया जा रहा हो तो सिवा बलात्कार के और कुछ नहीं है और जबरन की यह क्रिया न तो पति को तृप्त कर पाती है और न ही पत्नी को. पत्नी पति को किसी हिंसक पशु सा मान निरीह बनी मन ही मन छटपटाती है. उधर पति भी पत्नी का मात्र तन भोग पाता है. मन नहीं जीत पाता. वास्तव में यह सुख तन के माध्यम से मन की तृप्ति का है. यदि तन की भूख के साथ मन की प्यासी चाहत का गठबंधन न हो तब सिर्फ शरीर भोगा जाता है जो मन पर तनाव, खीज और अपराधभाव लाद दांपत्य में असंतोष के बीज बोता है.

सिर्फ काम नहीं, बल्कि कामतृप्ति ही सुखी, सुदीर्घ दांपत्य का सेतु है. यह समझना बेहद जरूरी है कि पति के संग शारीरिक मिलन न तो शर्मनाक है न ही कोई गंदा काम. विवाह का अर्थ ही वह सामाजिक स्वीकृति है जिस में स्त्रीपुरुष एकसूत्र में बंध यह वादा करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन अपने तनमन को संतुष्ट रख कर वंशवृद्धि भी करेंगे व सफल दांपत्य भी निबाहेंगे. यह बात विशेषतौर पर जान लेने की है कि कामतृप्ति तभी मिलती है जब पतिपत्नी प्रेम की ऊर्जा से भरे हों.

यह वह अनुकूल स्थिति है जब मन पर कोई मजबूरी लदी नहीं होती और तन उन्मुक्त होता है. विवाह का मर्म है अपने साथी के प्रति लगाव, चाहत और विश्वास का प्रदर्शन करना. सैक्स यदि मन से स्वीकारा जाए, बोझ समझ निर्वाह न किया जाए तभी आनंद देता है. सैक्स पुरुष के लिए विशेष महत्त्व रखता है.

पौरुष का अपमान

पत्नियों को इस बात को गंभीरता से समझ लेना चाहिए कि पति यौन तिरस्कार नहीं सह पाते हैं, क्योंकि पत्नी का ऐसा व्यवहार उन्हें अपने पौरुष का अपमान प्रतीत होता है. पति खुद को शारीरिक व भावनात्मक माध्यम के रूप में प्रस्तुत करे तो वह स्पष्ट प्यार से एक ही बात कहना चाहता है कि उसे स्वीकार लो. यह पति की संवेदनशीलता है जिसे पहचान पाने वाली पत्नियां ही पतिप्रिया बन सुख व आनंद के सागर में गोते लगा तमाम भौतिक सुखसाधन तो भोगती ही हैं, पति के दिल पर भी राज करती हैं.

कितनी आश्चर्यजनक बात है कि सैक्स तो सभी दंपती करते हैं, लेकिन वे थोड़े से ही होते हैं जिन्हें हर बार चरमसुख की अनुभूति होती. आज की मशीनी जिंदगी में और यौन संबंधी भ्रामक धारणाओं ने समागम को एकतरफा कृत्य बना दिया है. पुरुष के लिए आमतौर पर यह तनाव से मुक्ति का साधन है, कुछ उत्तेजित क्षणों को जी लेने का तरीका है. उसे अपने स्खलन के सुख तक ही इस कार्य की सीमा नजर आती है पर सच तो यह है कि वह यौन समागम के उस वास्तविक सुख से स्वयं भी वंचित रह जाता है जिसे चरमआनंद कहा जा सकता है. अनिवार्य दैनिक कार्यों की तरह किया गया अथवा मशीनी तरीके से किया गया सैक्स चरमसुख तक नहीं ले जाता.

इस के लिए चाहिए आह्लादपूर्ण वातावरण, सुरक्षित व सुरुचिपूर्ण स्थान और दोनों पक्षों की एक हो जाने की इच्छा. यह अनूठा सुख संतोषप्रद समागम के बाद ही अनुभव किया जा सकता है. तब ऐसा लगता है कि कभी ये क्षण समाप्त न हों. तब कोई भी तेजी बर्बरता नहीं लगती, बल्कि मन करता है कि इन क्षणों को और जीएं, बारबार जीएं. जीवन का यह चरमआनंद कोई भी दंपती प्राप्त कर सकता है, लेकिन तभी जब दोनों की सुख के आदानप्रदान की तीव्र इच्छा हो.

ओवर ईटिंग से बचने के लिए अपनाएं ये 6 तरीके

कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाते हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाते हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाते हैं.

पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे:

  1. खाने में सिरका और दालचीनी डालें:

खाने को स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

2. भूख न लगने पर खाएं:

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगे, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगते हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हलकी लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगे और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

3. पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं:

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

4. धीरेधीरे खाएं:

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खा जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगे.

5. स्नैक्स लेते रहें:

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकते हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हलके स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

6. फ्रंट डोर स्नैक:

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

– डा. साक्षी कक्कड़, पारस ब्लिस हौस्पिटल

मेरी मां का नया प्रेमी: मां के प्रेमी को क्या श्वेता स्वीकार कर पाई?

story in hindi

हम दो तो हमारे कितने ?

जब शिशु का जन्म होता है तो उस शिशु के प्रति पैरैंट्स की न सिर्फ जिम्मेदारी होती है बल्कि  उस की सुरक्षा व देखभाल का वादा करना भी होता है. पैरैंट्स का यह प्रयास होता है कि उन के बच्चे का पालनपोषण सर्वश्रेष्ठ हो. एक बच्चे की परवरिश करना दैनिक जीवन की प्रक्रिया से कहीं अधिक उत्तरदायित्व है. यह एक ऐसा कार्य है, जिसे प्रत्येक पेरैंट्स बेहद स्नेहपूर्ण व समपर्ण भाव से करते हैं. आज के समय में पेरैंट्स अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. भविष्य की इन योजनाओं को बनाने के दौरान उन के मन में रहरह कर यह सवाल उठता है कि बेहतर परवरिश के लिए एक बच्चे का होना अच्छा होगा या एक से अधिक बच्चों का.

इस बारे में बता रही हैं सेमफोर्ड स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोरा.

एक आधुनिक पेरैंट्स की योजनाएं

आप के पेरैंट्स अनेक कारणों से केवल एक ही बच्चे की योजना बनाते हैं. कुछ मामलों में परिवार की आर्थिक स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जबकि दूसरी ओर पेरैंट्स का स्वयं का कैरियर एवं महत्वाकांक्षा का भी इस संदर्भ में बड़ा रोल होता है, और कभीकभी पेरैंट्स ऐसा मानते हैं कि एक बच्चे को पैदा कर के वे न सिर्फ अपने संसाधनों को बचा सकते हैं बल्कि अपने बच्चे को बहुत सारा प्या व देखभाल उपलब्ध कराने में भी सफल हो सकते हैं, लेकिन अनेक ऐसे पहलू हैं. जिन्हें बच्चे के नजरिए से देखना और समझना जरूरी है.

नजरिया इकलौते का

सब से बड़ा कारण इकलौता बच्चा, जिसे सब से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है वह है अकेलेपन का अहसास, अपने हमउम्र बच्चे के घर में न होने के कारण वह कुछ मुख्य बातों से संबंधित पारस्परिक आदान प्रदान से वंचित रह जाता है. अपने पसंदीदा खिलौनों को ले कर हंसने, खेलने का सुख, पसंदीदा खाद्य पदार्थ को ले कर छीनाझपटी, रंगों के नए पैक को ले कर जोरजबरदस्ती इत्यादि. ऐसी स्थिति में बच्चो अपने पेरैंट्स से अतिरिक्त ध्यान प्राप्त करने की उम्मीद करने लग जाता है, चूंकि अब मैट्रो सिटीज में अधिकांश लोग एक संतान रखते हैं. इसलिए सामान्यतः घर पर कोई ऐसा नहीं होता, जो बच्चे की देखभाल कर सके, जबकि संयुक्त परिवार में यह समस्या नहीं आती है. यह समस्या आगे चल कर उस समय और अधिक पेचीदा हो जाती है, जब मातापिता दोनों कामकाजी हो जाते हैं.

लेकिन यदि मातापिता अपने बच्चे से मित्रवत रिश्ता कायम रखते हैं एवं उस के साथ पर्याप्त समय बिताते हैं व उसे लाड़प्यार देते हैं, तो वे निश्चित रूप् से अपने बच्चे को जीवन में व्याप्त भाईबहनों की कमी के एहसास को दूर कर सकते हैं. इकलौते बच्चे के साथ एक और बड़ी चुनौती स्कूल में उस के द्वारा गैर सामाजिक स्वाभाव का प्रदर्शन होता है. ऐसे बच्चे अन्य बच्चों से घुलमिल नहीं पाते.

एक ऐसे बच्चे की कल्पना करें, जो अपना अधिकांश समय अपने पेरैंट्स के साथ बिताता है एवं अपने आयु वर्ग के भाई बहनों व अन्य बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने में असहज रहता है क्योंकि वहां पर उस के मातापिता उसे सहजता प्रदान करने के लिए उपस्थित नहीं होते. उसे अन्य लोगों के साथ घुलने मिलने व सीखने, समझने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत पड़ती है.

इकलौता बच्चा आकर्षण का केंद्र

इकलौते बच्चे के होने से लाभ यह है कि इस से पेरैंट्स के सामने बच्चे की परवरिश सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाती है. वह उसे नईनई गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं. ऐसा कर के वे उस के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं और जब वे बच्चे की काल्पनिक दुनिया एवं उससे संबंधित गतिविधियों से सामंजस्य नहीं स्थापित कर पाते, तब वे उसे अपनी दुनिया के तिलिस्म से रूबरू कराने का विकल्प अपना सकते हैं. वे उसे फिल्म दिखाने के लिए ले जा सकते हैं. गेम आर्केड में ले जा सकते हैं. इस से बच्चा अपने पैरेंट्स के और अधिक नजदीक आ जाता है एवं इस से परिवार में प्यार मोहब्बत का रिश्ता और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है.

इस के अतिरिक्त इकलौता बच्चा पैरेंट्स को स्वयं पर पूरा ध्यान देने का अवसर देता है एवं वे उन की परवरिश में अपना पूरा प्रयास व संसाधन लगा देते हैं. इस प्रकार वह उन के आकर्षण का केंद्र बन जाता है एवं वे उस की सभी आवश्यकताओं व मांगों को पूरा करने पर ध्यान देने लगते हैं.

अनेक सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि इकलौते बच्चे संतुष्ट एवं शांत होते हैं. इस से इस झूठ की अस्वीकृति हो जाती है कि इकलौते बच्चे घमंडी और आत्मकेंद्रित होते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे बच्चों को किसी प्रकार की ‘सिबलिंग राइवलरी’ अथवा शीत युद्ध का सामना नहीं करना पड़ता और वे अपने मातापिता का भूरपूर प्यार व देखभाल प्राप्त करते हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है, ऐसी स्थिति में पैरेंट्स की गलती से बच्चा बिगड़ भी सकता है एवं जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार उसे बरबादी के कगार पर भी ले जा सकता है.

एक तरफ जहां इकलौते बच्चे के होने की अपनी चुनौती है, वही दूसरी तरफ 2 या 2 से अधिक बच्चों के होने के फायदे और नुकसान भाई बहन से युक्त एक बच्चे के लिए सब से स्वाभाविक लाभ यह है कि वह कभी भी अकेला व बोर महसूस नहीं करता. क्योंकि वह हर समय अपनी भावनाओं एवं अपनी कहानियों को उन के साथ साझा कर सकता है एवं अपने भाई बहनों की कुछ खोजपरक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. कई बार अत्यन्त समर्पित पेरैंट्स के लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उन की कामकाजी जिंदगी अथवा उन का वयस्क मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क बच्चे की मनोस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनुकूल नहीं होता. यह कहना गलत नहीं होगा. आज के बिजी पैरेंट्स कभीकभी अपने बच्चे की कल्पनाशीलता के अनुकूल बनने में बड़ी चुनौती महसूस करते हैं इस के विपरीत समान उम्र के भाई बहन के लिए उन की कल्पनाशीलता को समझना आसान रहता है.

समान उम्र का असर

समान उम्र अथवा लगभग समान आयु के भाईबहन एक साथ मिल कर ढेर सारी चीजें एक साथ कर सकते हैं. मसलन काररेसिंग का दिलचस्प खेल, गुड़िया को सजाना संवारना एवं मनमौजी गतिविधियां इत्यादि वास्तव में ये गतिविधियां उन्हें जीवन भर के प्रगाढ़ बंधन में बांधने में सफल होती हैं. एक समान आयु वाले भाईबहनों के साथ बच्चा अधिक सहज होता है एवं वह उन के साथ भयमुक्त हो कर अपनी बातों को साझा करता है, जबकि अपने मातापिता के सामने ऐसी बातों को साझा करने में असहजता महसूस होती है और डर भी होता है कि कीं वह नाराज न हो जाएं. इस के अतिरिक्त घर पर अपने भाईबहनों के साथ संवाद स्थापित करने से उन का समग्र विकास होता है एवं सहज अभिव्यक्ति के कारण उन की भाषा भी काफी आकर्षक एवं लच्छेदार हो जाती है.

अकसर ऐसा देखा गया है कि जो बच्चे बड़े भाई बहनों से नियमित संपर्क में रहते हैं. वे उन के तौर तरीकों को सीख कर तेजी से परिपक्वता के स्तर को प्राप्त कर लेते हैं एवं कम अवस्था में भी जिम्मेदारी का अहसास करने लगते हैं.

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स पर असर

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स बनने पर उन पर थोड़ा अधिक ध्यान देने की समस्या का सामना करना पड़ता है. सब से पहली चुनौती बच्चों के खर्च को सुचारू रूप् से वहन करने की होती है एवं उन्हें एक साथ दोनों अथवा सभी बच्चों को संतुष्ट करने की शुरुआत करनी पड़ती है. अलग आयु वर्ग का होना, अलग पसंद एवं अलग आवश्यकताओं का होना. इस कठिनाई को और अधिक बढ़ा देता है. इस के अतिरिक्त एक बच्चे एवं उस के भाई बहनों के बीच मधुर संबंध का पूर्वानुमान लगाना भी काफी मुश्किल काम है. कई बार यह देखा जाता है कि अनेक कारणों से भाई बहनों के बीच प्या ही नहीं होता. जिस में आयु, व्यक्तित्व, पसंदगी, नापसंदगी की भिन्नता की विशेष भूमिका होती है. मित्रता, देखभाल, समानुभूति एवं आयुगत भिन्नता के बावजूद बच्चों में मातापिता के ध्यानाकर्षण के कारण रिरंतर एक स्पर्धा चल रही होती है. वास्तव में एक से अधिक बच्चों के होने से मातापिता को हर समय काफी ध्यान रखना पड़ता है एवं उन्हें अपने लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है. कामकाज की व्यस्तता एवं पारिवारिक जीवन के बीच की आपाधापी के कारण एक पतिपत्नी के रूप में उन की व्यक्तिगत जिंगदी पर असर पड़ता है.

आखिर में यह कहा जा सकता है कि एक बच्चे की योजना बनाना अथवा एक से अधिक बच्चों का नियोजन करना पतिपत्नी की विशेष स्थिति पर निर्भर करता है. वास्तव में यह सोचना अधिक जरूरी है कि आप अपने बच्चे को भावनात्मक एवं भौतिक रूप् से क्यार अच्छा दे सकते हैं एवं इस के साथ ही साथ आप को अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ भी बहुत अधिक समझौता नहीं करना चाहिए. सही मायनों में यदि देखा जाए तो पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी मातापित ही बच्चों को पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी कर सकते हैं और एक प्रसन्न परिवार का निर्माण संभव हो जाता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें