जगतार सिंह में भले ही लाख बुराईयां रही हों, लेकिन उस में एक सब से बड़ी अच्छाई यह थी कि उसे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे तक घर जरूर लौट आता था. जिस किसी को उस से मिलना होता या कोई काम करवाना होता, वह शाम 7 बजे के बाद उस का इंतजार उस के घर पर करता था.
जगतार सिंह पंजाब बिजली बोर्ड में नौकरी करता था. लेकिन न जाने क्यों आज से 5-6 साल पहले उस ने अपनी यह नौकरी छोड़ दी और घर पर रह कर स्वतंत्र रूप से बिजली मरम्मत का काम करने लगा था. उस के इलाके के ज्यादातर किसान बिजली बोर्ड के बजाय उस पर ज्यादा भरोसा करते थे.
इसीलिए दूरदूर तक के गांवों में जब किसी की घर की बिजली या ट्यूबवेल की मोटर खराब होती, लोग बिजली बोर्ड में शिकायत करने के बजाय जगतार को ले जा कर अपना काम करवाना ज्याद बेहतर समझते थे. एक तो इस से उन का समय बच जाता था, दूसरे जगतार की भी रोजीरोटी अच्छी तरह से चल रही थी.
एक शाम जब जगतार अपने निश्चित समय पर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को ङ्क्षचता हुई. इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. क्योंकि उस का फोन बंद बता रहा था. जब रात 10 बजे तक भी वह घर नहीं लौटा तो उस के घर वाले परेशान हो उठे.
जगतार सिंह का मोबाइल बंद था, इसलिए बात नहीं हो पा रही थी. उस की पत्नी परमजीत कौर, बड़ा भाई गुरबख्श सिंह तथा गांव के कुछ अन्य लोग उस की तलाश में निकल पड़े थे. रात करीब 11 बजे अचानक उस का फोन मिल गया. उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी से उस की बात हो गई.
इस के बाद उस ने सभी को बताया कि जगतार अपने दोस्तों के साथ कहीं बैठा खापी रहा है. ङ्क्षचता की कोई बात नहीं है, थोड़ी देर में वह घर आ जाएगा. जगतार अपने किन दोस्तों के साथ बैठा खापी रहा है, यह उस ने नहीं बताया था.
बहरहाल, जगतार से बात हो जाने के बाद घर वालों की ङ्क्षचता कुछ कम हो गई. लेकिन फोन पर कहने के बावजूद जगतार रात को घर नहीं आया. उस के बाद से उस का फोन बंद हो गया तो सुबह तक बंद ही रहा.
अगले दिन किसी ने बताया कि गांव नरीकोकलां स्थित पंचायती अनाज मंडी स्टोर की ट्यूबवेल की हौदी में जगतार सिंह की लाश पड़ी है.
पंचायती अनाज मंडी जगतार के गांव सहिके से करीब 4-5 किलोमीटर दूर थी. लाश पड़ी होने की सूचना मिलने पर गांव के सरपंच, उस की पत्नी, भाई और गांव के कुछ लोग नरीकोकलां जा पहुंचे. वहां एक ट्यूबवेल की पानी की हौदी में जगतार की लाश पड़ी थी.
उस के सिर और पैर पर मामूली चोटों के निशान थे. लाश को ट्रैक्टर की ट्रौली पर लाद कर उस के गांव सहिके लाया गया. जगतार के पास अपना स्कूटर था, जिस से वह गांवगांव जा कर लोगों का बिजली का काम करता था. काफी तलाशने पर भी उस का स्कूटर वहां नहीं मिला. यही नहीं, उस के औजार और मोबाइल फोन भी नहीं मिला.
बहरहाल, गांव आ कर जब घर और गांव वालों ने कहा कि यह साफसाफ हत्या का मामला और इस की सूचना पुलिस को देनी चाहिए तो उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी ने रोते हुए स्पष्ट कहा कि वह इस बात की सूचना पुलिस को कतई नहीं देना चाहती.
क्योंकि पुलिस को सूचना दी गई तो वह लाश को कब्जे में ले कर उस का पोस्टमार्टम कराएगी. वह नहीं चाहती कि मरने के बाद उस के पति की लाश को काटपीट कर दुर्दशा की जाए.
जगतार के बड़े भाई गुरबख्श सिंह और सरपंच ने परतजीत को काफी समझाया कि पोस्टमार्टम होने से पता चल जाएगा कि जगतार की मौत क्यों और कैसे हुई है? लेकिन परमजीत अपनी बात पर अड़ी रही. उस का कहना था कि जगतार की मौत बिजली का करंट लगने से हुई होगी, इसलिए पोस्टमार्टम की कोई जरूरत नहीं है.
सरपंच ही नहीं, घर तथा गांव वाले कहते रह गए, लेकिन परमजीत ने किसी की नहीं सुनी. मजबूर हो कर गांव वालों ने पुलिस को सूचित किए बगैर ही जगतार सिंह का अंतिम संस्कार करा दिया.
पंजाब के जिला संगरूर का एक कस्बा है अमरगढ़. इसी कस्बे से लगभग 8 किलोमीटर दूर गांव है सहिके. गुरनाम सिंह इसी गांव के रहने वाले थे. उन की 7 संताने थीं, जिन में 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. बड़ा बेटा गुरबख्श सिंह सेना से रिटायर्ड हो कर गांव में ही रहता था. उस से छोटा था जगतार, जो बिजली मरम्मत का काम करता था और गांव में ही रहता था. उस से छोटा था अवतार सिंह, जिस की 20 साल पहले मौत हो गई थी.
उस की मौत कैसे हुई, इस बात का पता आज तक नहीं चला. गुरनाम सिंह की भी मौत हो चुकी है. गांव में अब सिर्फ 2 भाई, फौजी गुरबख्श सिंह और जगतार सिंह ही रहते थे. दोनों के मकान भले ही अलगअलग थे, लेकिन आमनेसामने थे.
जगतार का विवाह परमजीत कौर से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे, 19 साल की बेटी हरप्रीत कौर और 14 साल का बेटा.
परमजीत कौर ने जिद कर के पति का अंतिम संस्कार भले ही करा दिया था, लेकिन फौजी गुरबख्श सिंह के मन में हर समय यही बात घूमा करती थी कि आखिर परमजीत ने जगतार की लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराने दिया. यह एक ऐसा संदेह था, जो उसे किसी भी तरह से चैन नहीं लेने दे रहा था.
जगतार के अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी हो गईं तो परमजीत अपने मायके मलेरकोटला चली गई. इस के बाद तो वह पूरी तरह से आजाद हो गई. कभी वह संगरूर चली जाती तो कभी अमरकोट. उसे न पति की मौत का दुख था और न अब बच्चों की कोई परवाह रह गई थी. यह सब देख कर फौजी गुरबख्श सिंह को और ज्यादा दुख होता.
जब नहीं रहा गया तो उन्होंने सरपंच के साथ मिल कर निजी तौर पर परमजीत कौर के बारे में छानबीन की तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. परमजीत की हरकतों से मन का संदेह बढ़ता गय, फिर वह सरपंच को साथ ले कर थाना अमरगढ़ जा पहुंचे.
सारी बात उन्होंने थानाप्रभारी इंसपेक्टर संजीव गोयल को बताई तो उन्होंने भी संदेह व्यक्त किया कि उन के भाई की मौत बिजली का करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.
संजीव गोयल ने गुरबख्श सिंह की पूरी बात सुन कर उन की शिकायत दर्ज करा कर उन्हें पूरा विश्वास दिलाया कि वह जल्दी ही जगतार की मौत के रहस्य से परदा उठा देंगें.
इस मामले में संजीव गोयल के सामने समस्या यह थी कि मर चुके जगतार सिंह का अंतिम संस्कार हो चुका था. कोई इस तरह का सबूत भी नहीं था कि उसी के आधार पर वह इस मामले की जांच करते.
अब जो भी सबूत जुटाए जा सकते थे, वे सिर्फ पूछताछ कर के ही जुटाए जा सकते थे. इसलिए उन्हें लगा कि सब से पहले मृतक जगतार की पत्नी परमजीत कौर से ही पूछताछ करनी चाहिए.
उन्होंने सहिके जा कर परमजीत कौर से जगतार सिंह की मौत के बारे में पूछा तो उस ने उन से भी कहा कि उन की मौत बिजली का करंट लगने से हुई थी. उस दिन वह पंचायती मंडी के उस ट्यूबवेल की मोटर ठीक करने गए थे. मोटर ठीक करते हुए उन्हें करंट लगा और वह हौदी में गिर गए, जिस से उन की मौत हो गई.
“वह सब तो ठीक है, लेकिन तुम ने इस बात की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? तुम्हें ऐसी क्या जल्दी थी कि बिना पोस्टमार्टम कराए ही तुम ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया?” संजीव गोयल ने पूछा.
“सर, मैं ने सोचा कि आज नहीं तो कल उन का अंतिम संस्कार कराना ही है, इसलिए मैं ने देर करना उचित नहीं समझा और उन का अंतिम संस्कार करा दिया.”
“अच्छा जगतार की अस्थियां कहां हैं?” संजीव गोयल ने पूछा.
“उन्हें तो मैं ने श्रीकीरतपुर साहिब में प्रवाह दी हैं.”
“मतलब, तुम ने सारे सबूत मिटा दिए, कुछ भी नहीं छोड़ा. खैर, फिर भी मैं सच्चाई का पता लगा ही लूंगा.” संजीव गोयल ने कहा.
इस के बाद उन्होंने अन्य लोगों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें पता चला कि जगतार के मरने के बाद से परमजीत कौर को न बच्चों की कोई ङ्क्षचता है और न उस की मौत का जरा भी दुख है. उसे देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि 10-15 दिन पहले ही उस के पति की मौत हुई है.
बहरहाल, उस दिन की पूछताछ में सरपंच ने ही नहीं, गांव के जिस किसी से उन्होंने पूछा, सभी ने यही आशंका व्यक्त की कि जगतार की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है और उस की हत्या में कहीं न कहीं से परमजीत का हाथ जरूर है.
इसी पूछताछ में संजीव गोयल को गांव वालों से पता चला कि परमजीत कौर के घर रविंद्र उर्फ रवि तथा जुगराज का काफी आनाजाना था. हत्या वाले शाम जगतार को उन्हीं दोनों के साथ टोरिया गांव की ओर जाते देखा गया था.
संजीव गोयल थोड़ा और गहराई में गए तो पता चला कि परमजीत कौर और रविंद्र के बीच जरूर कुछ चल रहा है. इस के तुरंत बाद उन के एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि परमजीत कौर को उस ने रविंद्र के साथ मलेरकोटला की ओर जाते देखा था. उन के हाथ में बैग थे, जिस से यही लगता है कि वे गांव छोड़ कर कहीं जा रहे हैं.
यह सूचना मिलते ही संजीव गोयल ने समय गंवाना उचित नहीं समझा और तुरंत जीप से पीछा कर के रास्ते में ही रविंद्र और परमजीत कौर को गिरफ्तार कर के थाने ले आए.
फौजी गुरबख्श सिंह के बयान के आधार पर रविंद्र, जुगराज और परमजीत कौर को नामजद कर के जगतार की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर पूछताछ शुरु की गई.
अगले महीने संजीव गोयल ने रविंद्र और परमजीत को सक्षम अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ के लिए 2 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान रविंद्र की निशानदेही पर मृतक जगतार का स्कूटर और मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.
रिमांड खत्म होने पर दोनों को एक बार फिर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें संगरूर की जिला जेल भेज दिया गया.
मृतक जगतार के भाई फौजी गुरबख्श सिंह, सरपंच एवं गांव वालों तथा अभियुक्तों से की गई पूछताछ में जगतार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह परमजीत कौर के पतन की कहानी थी.
जगतार सिंह और रविंद्र बचपन के दोस्त थे. उन का खेलनाकूदना, खानापीना बचपन से अब तक साथ रहा. जवान होने पर भी दोनों ज्यादातर साथ ही रहते थे. रविंद्र सिंह उर्फ रवि पड़ोसी गांव मुंडिया के रहने वाले काका सिंह का बेटा था.
सवेरा होते ही रविंद्र जगतार के गांव सहिके आ जाता या फिर जगतार उस के गांव मुंडिया पहुंच जाता. जवान होने पर दोनों की शादियां ही नहीं हो गईं, बल्कि वे एकएक बेटी के बाप भी बन गए.
जगतार बिजली मरम्मत का काम करता था, जबकि रविंद्र निठल्ला घूमते हुए आवारागर्दी किया करता था. बचपन से ही उस की काम करने की आदत नहीं थी. लगभग 8 साल पहले वह अपने एक रिश्तेदार के पास विदेश चला गया, जहां 3 साल रहा. वहां से लौटा तो उस के पास ढेर सारे रुपए थे.
वह कार से जगतार से मिलने उस के घर गया तो उस के लिए भी ढेर सारे महंगे उपहार ले गया था. रविंद्र के ठाठबाट देख कर जगतार की पत्नी परमजीत खूब प्रभावित हुई.
उस दिन के बाद जगतार का घर शराब का अड्डा बन गया. रोज महफिलें सजने लगीं. रविंद्र के साथ उस का दोस्त जुगराज भी आता था. वह गांव शेरखां वाला के रहने वाले राम सिंह का बेटा था.
2 बच्चों की मां होने के बावजूद परमजीत अभी जवान और खूबसूरत लगती थी. उस की मांसल देह किसी को भी दीवाना बना सकती थी. रविंद्र पहले से ही उस का दीवाना था. इसीलिए विदेश से लौटने पर परमजीत को खुश करने के लिए वह उस के लिए भी तरहतरह के महंगे उपहार खरीद कर लाने लगा.
एक दिन जब जगतार की गैरमौजूदगी में उस ने परमजीत कौर का हाथ पकड़ कर कहा कि वह उस से प्यार करने लगा है और उस के लिए पागल हो गया है तो परमजीत खुशीखुशी उस के आगोश में समा गई. इस की वजह यह थी कि वह भी तो रविंद्र और उस की कमाई की दीवानी थी.
रविंद्र और परमजीत के बीच अवैधसंबंध तो बन गए, लेकिन जगतार के घर पर रहने की वजह से उन्हें मिलने का अवसर कम ही मिल पाता था. इस का उपाय रविंद्र ने यह निकाला कि जगतार की उस ने मलेरकोटला में बिजली बोर्ड में नौकरी लगवा दी.
वह सुबह नौकरी पर जाता तो रात में ही लौटता. उस के नौकरी पर जाते ही रविंद्र उस के घर पहुंच जाता. यह लगभग रोज का नियम बन गया. रविंद्र परमजीत कौर पर दोनों हाथों से रुपए लुटा रहा था. वह उस के इस तरह खर्च करने से बहुत खुश थी.
शायद इसी वजह से उस ने रविंद्र के कहने पर उस के दोस्त जुगराज से भी संबंध बना लिए थे. अब परमजीत एक ही समय में अपने 2 प्रेमियों, रविंद्र और जुगराज को खुश करने लगी थी.
सब कुछ बढिय़ा चल रहा था कि मोहल्ले में उड़तेउड़ते यह खबर किसी दिन जगतार के कानों तक पहुंच गई. इस के बाद उस ने मलेरकोटला छोड़ दिया और घर पर ही रहने लगा. उसी बीच किसी दिन उस ने परमजीत कौर, रविंद्र और जुगराज को रंगेहाथों पकड़ लिया.
उस समय परमजीत कौर और रविंद्र ने माफी मांग कर बात संभाल ली. जगतार ने भी उन्हें माफ कर दिया. लेकिन वे चोरीछिपे मिलते रहे.
परमजीत कौर को इस तरह चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने रुआंसी हो कर कहा, “देखो रविंद्र, इस तरह चोरीछिपे मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. अगर इस बार हम पकड़े गए तो जगतार माफ नहीं करेगा. तुम मुझ से संबंध बनाए रखना चाहते हो तो तो मुझे भगा ले चलो या फिर जगतार का कोई इंतजाम कर दो.”
रविंद्र परमजीत की देह का इतना दीवाना था कि उस से बिछुडऩे की कल्पना से ही डरता था. इसलिए उस ने परमजीत कौर के साथ मिल कर जगतार को ही रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने जुगराज को भी शामिल कर लिया.
शाम को रविंद्र ने जगतार के साथ खानेपीने का कार्यक्रम बनाया. यह महफिल उन्होंने सहिके गांव से 4 किलोमीटर दूर खेतों में जमाई. शराब पीने के दौरान रविंद्र और जुगराज ने बातोंबातों में जगतार को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी.
जब जगतार संतुलन खोने लगा तो दोनों उसे ले कर पंचायती मंडी के पास आ गए और वहां उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश ट्यूबवेल की हौदी में फेंक कर परमजीत को फोन कर दिया कि उन्होंने जगतार की हत्या कर दी है.
इस के बाद परमजीत कौर ने घटनास्थल पर जा कर खुद देखा कि जगतार सचमुच मर चुका है या वे झूठ बोल रहे हैं. जगतार की लाश देख कर उसे विश्वास हो गया तो वह गांव लौट आई. जगतार की हत्या के समय वह इतना बेचैन थी कि मात्र एक घंटे में उस ने कई बार रविंद्र को फोन कर के पूछा था कि काम हो गया या नहीं?
यह बात संजीव गोयल को तब पता चली, जब उन्होंने परमजीत कौर और रविंद्र के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.
रविंद्र और परमजीत को जेल भेज कर संजीव गोयल ने इस हत्याकांड के तीसरे अभियुक्त जुगराज की तलाश शुरू की तो उन्होंने उसे भी संगरूर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी स्वीकार कर लिया कि जगतार की हत्या में रविंद्र के साथ वह भी शामिल था.
पूछताछ के बाद संजीव गोयल ने जुगराज को भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया. जगतार की मौत के बाद उस के बच्चे अकेले रह गए थे. अब वे अपने फौजी ताऊ गुरबख्श सिंह के साथ रह रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित