जब शिशु का जन्म होता है तो उस शिशु के प्रति पैरैंट्स की न सिर्फ जिम्मेदारी होती है बल्कि  उस की सुरक्षा व देखभाल का वादा करना भी होता है. पैरैंट्स का यह प्रयास होता है कि उन के बच्चे का पालनपोषण सर्वश्रेष्ठ हो. एक बच्चे की परवरिश करना दैनिक जीवन की प्रक्रिया से कहीं अधिक उत्तरदायित्व है. यह एक ऐसा कार्य है, जिसे प्रत्येक पेरैंट्स बेहद स्नेहपूर्ण व समपर्ण भाव से करते हैं. आज के समय में पेरैंट्स अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. भविष्य की इन योजनाओं को बनाने के दौरान उन के मन में रहरह कर यह सवाल उठता है कि बेहतर परवरिश के लिए एक बच्चे का होना अच्छा होगा या एक से अधिक बच्चों का.

इस बारे में बता रही हैं सेमफोर्ड स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोरा.

एक आधुनिक पेरैंट्स की योजनाएं

आप के पेरैंट्स अनेक कारणों से केवल एक ही बच्चे की योजना बनाते हैं. कुछ मामलों में परिवार की आर्थिक स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जबकि दूसरी ओर पेरैंट्स का स्वयं का कैरियर एवं महत्वाकांक्षा का भी इस संदर्भ में बड़ा रोल होता है, और कभीकभी पेरैंट्स ऐसा मानते हैं कि एक बच्चे को पैदा कर के वे न सिर्फ अपने संसाधनों को बचा सकते हैं बल्कि अपने बच्चे को बहुत सारा प्या व देखभाल उपलब्ध कराने में भी सफल हो सकते हैं, लेकिन अनेक ऐसे पहलू हैं. जिन्हें बच्चे के नजरिए से देखना और समझना जरूरी है.

नजरिया इकलौते का

सब से बड़ा कारण इकलौता बच्चा, जिसे सब से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है वह है अकेलेपन का अहसास, अपने हमउम्र बच्चे के घर में न होने के कारण वह कुछ मुख्य बातों से संबंधित पारस्परिक आदान प्रदान से वंचित रह जाता है. अपने पसंदीदा खिलौनों को ले कर हंसने, खेलने का सुख, पसंदीदा खाद्य पदार्थ को ले कर छीनाझपटी, रंगों के नए पैक को ले कर जोरजबरदस्ती इत्यादि. ऐसी स्थिति में बच्चो अपने पेरैंट्स से अतिरिक्त ध्यान प्राप्त करने की उम्मीद करने लग जाता है, चूंकि अब मैट्रो सिटीज में अधिकांश लोग एक संतान रखते हैं. इसलिए सामान्यतः घर पर कोई ऐसा नहीं होता, जो बच्चे की देखभाल कर सके, जबकि संयुक्त परिवार में यह समस्या नहीं आती है. यह समस्या आगे चल कर उस समय और अधिक पेचीदा हो जाती है, जब मातापिता दोनों कामकाजी हो जाते हैं.

लेकिन यदि मातापिता अपने बच्चे से मित्रवत रिश्ता कायम रखते हैं एवं उस के साथ पर्याप्त समय बिताते हैं व उसे लाड़प्यार देते हैं, तो वे निश्चित रूप् से अपने बच्चे को जीवन में व्याप्त भाईबहनों की कमी के एहसास को दूर कर सकते हैं. इकलौते बच्चे के साथ एक और बड़ी चुनौती स्कूल में उस के द्वारा गैर सामाजिक स्वाभाव का प्रदर्शन होता है. ऐसे बच्चे अन्य बच्चों से घुलमिल नहीं पाते.

एक ऐसे बच्चे की कल्पना करें, जो अपना अधिकांश समय अपने पेरैंट्स के साथ बिताता है एवं अपने आयु वर्ग के भाई बहनों व अन्य बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने में असहज रहता है क्योंकि वहां पर उस के मातापिता उसे सहजता प्रदान करने के लिए उपस्थित नहीं होते. उसे अन्य लोगों के साथ घुलने मिलने व सीखने, समझने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत पड़ती है.

इकलौता बच्चा आकर्षण का केंद्र

इकलौते बच्चे के होने से लाभ यह है कि इस से पेरैंट्स के सामने बच्चे की परवरिश सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाती है. वह उसे नईनई गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं. ऐसा कर के वे उस के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं और जब वे बच्चे की काल्पनिक दुनिया एवं उससे संबंधित गतिविधियों से सामंजस्य नहीं स्थापित कर पाते, तब वे उसे अपनी दुनिया के तिलिस्म से रूबरू कराने का विकल्प अपना सकते हैं. वे उसे फिल्म दिखाने के लिए ले जा सकते हैं. गेम आर्केड में ले जा सकते हैं. इस से बच्चा अपने पैरेंट्स के और अधिक नजदीक आ जाता है एवं इस से परिवार में प्यार मोहब्बत का रिश्ता और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है.

इस के अतिरिक्त इकलौता बच्चा पैरेंट्स को स्वयं पर पूरा ध्यान देने का अवसर देता है एवं वे उन की परवरिश में अपना पूरा प्रयास व संसाधन लगा देते हैं. इस प्रकार वह उन के आकर्षण का केंद्र बन जाता है एवं वे उस की सभी आवश्यकताओं व मांगों को पूरा करने पर ध्यान देने लगते हैं.

अनेक सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि इकलौते बच्चे संतुष्ट एवं शांत होते हैं. इस से इस झूठ की अस्वीकृति हो जाती है कि इकलौते बच्चे घमंडी और आत्मकेंद्रित होते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे बच्चों को किसी प्रकार की ‘सिबलिंग राइवलरी’ अथवा शीत युद्ध का सामना नहीं करना पड़ता और वे अपने मातापिता का भूरपूर प्यार व देखभाल प्राप्त करते हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है, ऐसी स्थिति में पैरेंट्स की गलती से बच्चा बिगड़ भी सकता है एवं जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार उसे बरबादी के कगार पर भी ले जा सकता है.

एक तरफ जहां इकलौते बच्चे के होने की अपनी चुनौती है, वही दूसरी तरफ 2 या 2 से अधिक बच्चों के होने के फायदे और नुकसान भाई बहन से युक्त एक बच्चे के लिए सब से स्वाभाविक लाभ यह है कि वह कभी भी अकेला व बोर महसूस नहीं करता. क्योंकि वह हर समय अपनी भावनाओं एवं अपनी कहानियों को उन के साथ साझा कर सकता है एवं अपने भाई बहनों की कुछ खोजपरक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. कई बार अत्यन्त समर्पित पेरैंट्स के लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उन की कामकाजी जिंदगी अथवा उन का वयस्क मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क बच्चे की मनोस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनुकूल नहीं होता. यह कहना गलत नहीं होगा. आज के बिजी पैरेंट्स कभीकभी अपने बच्चे की कल्पनाशीलता के अनुकूल बनने में बड़ी चुनौती महसूस करते हैं इस के विपरीत समान उम्र के भाई बहन के लिए उन की कल्पनाशीलता को समझना आसान रहता है.

समान उम्र का असर

समान उम्र अथवा लगभग समान आयु के भाईबहन एक साथ मिल कर ढेर सारी चीजें एक साथ कर सकते हैं. मसलन काररेसिंग का दिलचस्प खेल, गुड़िया को सजाना संवारना एवं मनमौजी गतिविधियां इत्यादि वास्तव में ये गतिविधियां उन्हें जीवन भर के प्रगाढ़ बंधन में बांधने में सफल होती हैं. एक समान आयु वाले भाईबहनों के साथ बच्चा अधिक सहज होता है एवं वह उन के साथ भयमुक्त हो कर अपनी बातों को साझा करता है, जबकि अपने मातापिता के सामने ऐसी बातों को साझा करने में असहजता महसूस होती है और डर भी होता है कि कीं वह नाराज न हो जाएं. इस के अतिरिक्त घर पर अपने भाईबहनों के साथ संवाद स्थापित करने से उन का समग्र विकास होता है एवं सहज अभिव्यक्ति के कारण उन की भाषा भी काफी आकर्षक एवं लच्छेदार हो जाती है.

अकसर ऐसा देखा गया है कि जो बच्चे बड़े भाई बहनों से नियमित संपर्क में रहते हैं. वे उन के तौर तरीकों को सीख कर तेजी से परिपक्वता के स्तर को प्राप्त कर लेते हैं एवं कम अवस्था में भी जिम्मेदारी का अहसास करने लगते हैं.

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स पर असर

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स बनने पर उन पर थोड़ा अधिक ध्यान देने की समस्या का सामना करना पड़ता है. सब से पहली चुनौती बच्चों के खर्च को सुचारू रूप् से वहन करने की होती है एवं उन्हें एक साथ दोनों अथवा सभी बच्चों को संतुष्ट करने की शुरुआत करनी पड़ती है. अलग आयु वर्ग का होना, अलग पसंद एवं अलग आवश्यकताओं का होना. इस कठिनाई को और अधिक बढ़ा देता है. इस के अतिरिक्त एक बच्चे एवं उस के भाई बहनों के बीच मधुर संबंध का पूर्वानुमान लगाना भी काफी मुश्किल काम है. कई बार यह देखा जाता है कि अनेक कारणों से भाई बहनों के बीच प्या ही नहीं होता. जिस में आयु, व्यक्तित्व, पसंदगी, नापसंदगी की भिन्नता की विशेष भूमिका होती है. मित्रता, देखभाल, समानुभूति एवं आयुगत भिन्नता के बावजूद बच्चों में मातापिता के ध्यानाकर्षण के कारण रिरंतर एक स्पर्धा चल रही होती है. वास्तव में एक से अधिक बच्चों के होने से मातापिता को हर समय काफी ध्यान रखना पड़ता है एवं उन्हें अपने लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है. कामकाज की व्यस्तता एवं पारिवारिक जीवन के बीच की आपाधापी के कारण एक पतिपत्नी के रूप में उन की व्यक्तिगत जिंगदी पर असर पड़ता है.

आखिर में यह कहा जा सकता है कि एक बच्चे की योजना बनाना अथवा एक से अधिक बच्चों का नियोजन करना पतिपत्नी की विशेष स्थिति पर निर्भर करता है. वास्तव में यह सोचना अधिक जरूरी है कि आप अपने बच्चे को भावनात्मक एवं भौतिक रूप् से क्यार अच्छा दे सकते हैं एवं इस के साथ ही साथ आप को अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ भी बहुत अधिक समझौता नहीं करना चाहिए. सही मायनों में यदि देखा जाए तो पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी मातापित ही बच्चों को पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी कर सकते हैं और एक प्रसन्न परिवार का निर्माण संभव हो जाता है.

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