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पतझड़ में झांकता वसंत : क्या सूखा ही रह गया रूपा का जीवन?

‘‘हैलो सर, आज औफिस नहीं आ पाऊंगी, तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है,’’ रूपा ने बुझीबुझी सी आवाज में कहा. ‘‘क्या हुआ रूपाजी, क्या तबीयत ज्यादा खराब है?’’ बौस के स्वर में चिंता थी.

‘‘नहींनहीं सर, बस यों ही, शायद बुखार है.’’ ‘‘डाक्टर को दिखाया या नहीं? इस उम्र में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, टेक केयर.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं सर,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया. 55 पतझड़ों का डट कर सामना किया है रूपा सिंह ने, अब हिम्मत हारने लगी है. हां, पतझड़ का सामना, वसंत से तो उस का साबका नहीं के बराबर पड़ा है. जब वह 7-8 साल की थी, एक ट्रेन दुर्घटना में उस के मातापिता की मृत्यु हो गई थी. अपनी बढ़ती उम्र और अन्य बच्चों की परवरिश का हवाला दे कर दादादादी ने उस की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया. नानी उसे अपने साथ ले आई और उसे पढ़ायालिखाया. अभी वह 20 साल की भी नहीं हुई थी कि नानी भी चल बसी. मामामामी ने जल्दी ही उस की शादी कर दी.

पति के रूप में सात फेरे लेने वाला शख्स भी स्वार्थी निकला. उस के परिवार वाले लालची थे. रोजरोज कुछ न कुछ सामान या पैसों की फरमाइश करते रहते. वे उस पर यह दबाव भी डालते कि नानी के घर में तुम्हारा भी हिस्सा है, उन से मांगो. मामामामी से जितना हो सका उन्होंने किया, फिर हाथ जोड़ लिए. उन की भी एक सीमा थी. उन्हें अपने बच्चों को भी देखना था. उस के बाद उस की ससुराल वालों का जुल्मोसितम बढ़ता गया. यहां तक कि उन लोगों ने उसे जान से मारने की भी प्लानिंग करनी शुरू कर दी. श्वेता और मयंक अबोध थे. रूपा कांप उठी, बच्चों का क्या होगा. वे उन्हें भी मार देंगे. उन्हें अपने बेटे की ज्यादा दहेज लेने के लिए दोबारा शादी करनी थी. बच्चे राह में रोड़ा बन जाते. एक दिन हिम्मत कर के रूपा दोनों बच्चों को ले कर मामा के यहां भाग आई. ससुराल वालों का स्वार्थ नहीं सधा था. वे एक बार फिर उसे ले जाना चाहते थे, लेकिन उस घर में वह दोबारा लौटना नहीं चाहती थी. मामा और ममेरे भाईबहनों ने उसे सपोर्ट किया और उस का तलाक हो गया.

उसे ससुराल से छुटकारा तो मिल गया लेकिन अब दोनों बच्चों की परवरिश की समस्या मुंहबाए खड़ी थी. बस, रहने का ठिकाना था. उस के लिए यही राहत की बात थी. मामा ने एक कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. उस के जीवन का एक ही मकसद था, श्वेता और मयंक को अच्छे से पढ़ानालिखाना. दोनों बच्चों को वह वैल सैटल करना चाहती थी. वह जीतोड़ मेहनत करती, कुछ मदद ममेरे भाईबहन भी कर देते. उस के मन में एक ही बात बारबार उठती थी कि जैसी जिंदगी उसे गुजारनी पड़ी है, बच्चों पर उस की छाया तक न आए. रूपा ने दोनों बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में करवा दिया. उन्हें हमेशा यही समझाती रहती कि पढ़लिख कर अच्छा इंसान बनना है. बच्चे होनहार थे. हमेशा कक्षा में अव्वल आते. वक्त सरपट दौड़ता रहा. मयंक ने आईआईटी में दाखिला ले लिया. श्वेता ने फैशन डिजाइनिंग में अपना कैरियर बनाया. श्वेता बैंगलुरु में ही जौब करने लगी थी. उस ने अपने जीवनसाथी के रूप में देवेश को चुना. दोनों ने साथसाथ कोर्स किया और साथसाथ स्टार्टअप भी किया. रूपा और मयंक को भी देवेश काफी पसंद आया. मयंक ने भी अपने पसंद की लड़की से शादी की. रूपा काफी खुश थी कि उस के दोनों बच्चों की गृहस्थी अच्छे से बस गई. उन्हें मनपसंद जीवनसाथी मिले. मयंक पहले हैदराबाद में कार्यरत था. पिछले साल कंपनी ने उसे अमेरिका भेज दिया. वह कहता, ‘मम्मा, यदि मैं यहां सैटल हो गया, तो फिर तुम्हें भी बुला लूंगा.’

रूपा हंस कर कहती, ‘बेटा, मैं वहां आ कर क्या करूंगी भला. तुम लोग लाइफ एंजौय करो. मामामामी की भी उम्र काफी हो गई है. ऐसे में उन्हें छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी.’

मयंक भी इस बात को समझता था लेकिन फिर भी वीडियो चैटिंग में यह बात हमेशा कहता. मामामामी भी रूपा से कहते, ‘अब हमारी उम्र हो गई. जाने कब बुलावा आ जाए. इसलिए तुम मयंक के पास चली जाओ.’ श्वेता और देवेश बीचबीच में आते और बेंगलुरु में सैटल होने के लिए कहते. बच्चों को हमेशा मां की चिंता सताती रहती. उन्होंने बचपन से मां को कांटों पर चलते, चुभते कांटों से लहूलुहान होते और सारा दर्द पीते हुए देखा था. वे चाहते थे कि अब मां को खुशी दें. उन्हें अब काम करने की क्या जरूरत है. लेकिन वह कहती, ‘जब तक यहां हूं, काम करने दो. इसी काम ने हम लोगों को सहारा दिया और हमारा जीवन जीने लायक बनाया है. जब थक जाऊंगी, देखा जाएगा.’

कुछ समय बाद मामामामी की मृत्यु हो गई. रूपा अब निपट अकेली हो गई. इधर कुछ दिनों से बारबार उस की तबीयत भी खराब हो रही थी. इस वजह से वह थोड़ी कमजोर हो गई थी. 6 महीने पहले उस के औफिस में नए बौस आए थे, रूपेश मिश्रा. वे कर्मचारियों से बहुत अच्छे से पेश आते, उन के साथ मिल कर काम करते. उन की उम्र 60 साल के आसपास होगी. कुछ साल पहले एक लंबी बीमारी से उन की पत्नी का साथ छूट गया था. 2 बेटियां थीं, दोनों की शादी हो गई थी. वे अकेलेपन से जूझते हुए खुद को काम में लगाए रहते. कर्मचारियों में अपनापन ढूंढ़ते रहते. वे उदार और खुशदिल थे. कभीकभी रूपा से अपने दिल की बात शेयर करते थे. जब वे अपनी पत्नी की बीमारी का जिक्र करते तब उन की आंखें भर आतीं. वे पत्नी को बेहद प्यार करते थे. वे कहते, ‘हम ने रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी की प्लानिंग कर रखी थी, लेकिन वह बीच में ही छोड़ कर चली गई. मेरी बेटियां बहुत केयरफुल हैं, लेकिन इस मोड़ पर तनहा जीवन बहुत सालता है.’

तनहाई का दर्द तो रूपा भी झेल रही थी. उसे भी रूपेश से दिल की बात करना अच्छा लगता था. जल्दी ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. वे दोनों जब अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोचते, तब मन कसैला हो जाता. यह भी कि यदि कभी बीमार पड़ गए तो कोई एक गिलास पानी पिलाने वाला भी न होगा. उस पर आएदिन अकेले बुजुर्गों की मौत की खबर उन में खौफ पैदा करती. जब भी ऐसी खबर पढ़ते या टीवी पर ऐसा कुछ देखते कि मौत के बाद कईकई दिनों तक अकेले इंसान की लाश घर में सड़ती रही, तो उन के रोंगटे खड़े हो जाते. मौत एक सच है. यदि उस की बात छोड़ भी दें तो भी शेष जीवन अकेले बिताना आसान नहीं था. न कोई बात करने वाला, न कोई दुखदर्द बांटने वाला. बंद कमरा और उस की दीवारें. कैसे गुजरेंगे उन के दिन? रात की तनहाई में जब वे सोचते, सन्नाटा राक्षस बन कर उन्हें निगलने लगता. रूपा ने बातोंबातों में मयंक और श्वेता को अपने बौस रूपेश मिश्रा के बारे में बता दिया था. यह भी कि वे एक अच्छे इंसान हैं और सब के सुखदुख में काम आते हैं. वह बच्चों से वैसे भी कुछ नहीं छिपाती थी. बच्चों के साथ शुरू से ही उस का ऐसा तारतम्य है कि वह जितना बताती उस से ज्यादा वे दोनों समझते.

रूपा बिस्तर पर लेटीलेटी जिंदगी के पन्ने पलट रही थी. एकएक दृश्य चलचित्र बन उस की आंखों में उभर आए थे. उस की बीती जिंदगी पर लगाम तब लगी जब कौलबैल बजी. उस ने घड़ी देखी तो शाम के साढ़े 6 बज रहे थे. इस वक्त कौन होगा? वह अनमनी सी बालों का जूड़ा बनाते हुए उठी. की-होल से देखा, सामने रूपेश मिश्रा खड़े थे. उस ने झटपट दरवाजा खोल दिया, ‘‘अरे आप?’’

‘‘आप की तबीयत कैसी है? मुझे फिक्र हो रही थी, इसलिए चला आया’’, रूपेश ने खुशबूदार फूलों का बुके उस की तरफ बढ़ाया. बहुत दिनों बाद कमरा भीनाभीना महक उठा. इस महक ने रूपा को भी सराबोर कर दिया, ‘‘सर, बैठिए न मैं ठीक हूं.’’ उस के होंठों पर प्यारी सी मुसकराहट आ गई.

‘‘आप ने डाक्टर को दिखाया?’’ ‘‘अरे, बस यों ही मामूली बुखार है, ठीक हो जाएगा.’’

‘‘देखिए, ऐसी लापरवाही ठीक नहीं होती. चलिए, मैं साथ चलता हूं,’’ रूपेश मोबाइल निकाल कर डाक्टर का नंबर लगाने लगा. ‘‘नहीं सर, मैं ठीक हूं. यदि बुखार कल तक बिलकुल ठीक नहीं हुआ, तो मैं चैकअप करा लूंगी.’’ उस की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे. उसे इस बात का थोड़ा भी अंदाजा नहीं था कि रूपेश घर आ जाएंगे.

‘‘यह सरसर क्या लगा रखा है आप ने, यह औफिस नहीं है,’’ उस ने प्यार से झिड़की दी, ‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगा, डाक्टर को दिखाना ही होगा. बस, आप चलिए.’’ यह कैसा हठ है. रूपा असमंजस में पड़ गई. उसी समय मयंक का वीडियोकौल आया. उसे जैसे एक बहाना मिल गया. उस ने कौल रिसीव कर लिया. मयंक ने भी वही सवाल किया, ‘‘मम्मी, तुम ने डाक्टर को दिखाया? तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम सारा दिन कष्ट सहती रही.’’

‘‘अब तुम मुझे डांटो. तुम लोग तो मेरे पीछे ही पड़ गए. अरे, कुछ नहीं हुआ है मुझे.’’ ‘‘मम्मी, तुम अपने लिए कितनी केयरफुल हो, यह मैं बचपन से जानता हूं. अरे, अंकल आप, नमस्ते,’’ मयंक की नजर वहीं सोफे पर बैठे रूपेश पर पड़ी.

‘‘देखो न बेटे, मैं भी यही कहने आया हूं, पर ये मानती ही नहीं. वैसे तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’ ‘‘मम्मी से आप के बारे में बात होती रहती है. अंकल, आप आ गए हो तो मम्मी को डाक्टर के पास ले कर ही जाना. आप को तो पता ही है कि अगले महीने हम लोग आ रहे हैं, फिर मम्मी की एक नहीं चलेगी.’’

मयंक ने रूपेश से भी काफी देर बात की. ऐसा लगा जैसे वे लोग एकदूसरे को अच्छे से जानते हों. दोनों ने मिल कर रूपा को राजी कर लिया. मयंक ने कहा, ‘‘अब आप लोग जल्दी जाइए. आने के बाद फिर बात करता हूं.’’ साढ़े 8 बजे के करीब वे लोग डाक्टर के यहां से लौटे. रूपेश ने उसे दरवाजे तक छोड़ जाने की इजाजत मांगी, लेकिन रूपा ने उन्हें अंदर बुला लिया. इस भागदौड़ में चाय तक नहीं पी थी किसी ने. वह 2 कप कौफी ले आई. साथ में ब्रैड पीस सेंक लिए थे. अब वीडियोकौल पर श्वेता थी, अपने बिंदास अंदाज में, ‘‘चलो मम्मी, तुम ने किसी की बात तो मानी. मयंक ने मुझे सब बता दिया है. मम्मी और अंकल, हम लोगों ने आप दोनों के लिए कुछ सोचा है…’’

दोनों आश्चर्य में पड़ गए. अब ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं? श्वेता ने बिना लागलपेट के दोनों की शादी का प्रस्ताव रख दिया. उन लोगों की समझ में नहीं आया कि कैसे रिऐक्ट करें, गुस्सा दिखाएं, इग्नोर करें या…दोनों ने कभी इस तरह सोचा ही नहीं था. लेकिन बात यह भी थी कि दोनों को एकदूसरे की जरूरत और फिक्र थी. श्वेता देर तक मां और दोस्त की भूमिका में रही. आखिर, उस ने कहा कि आप लोगों को अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का पूरा हक है. अगर आप दोनों दोस्त हो तो क्या साथसाथ नहीं रह सकते. हमारा समाज इस दोस्ती को बिना शादी के कुबूल नहीं करेगा और इस से ज्यादा की परवा करने की हमें जरूरत भी नहीं. आप की शादी के गवाह हम बनेंगे. रूपेश के मन में हिचक थी, बोले, ‘‘मेरी बेटियों को भी रूपा के बारे में पता है, लेकिन उतना नहीं जितना तुम दोनों भाईबहनों को.’’ ‘‘अंकल, आप फिक्र मत कीजिए. उन लोगों का नंबर मुझे दे दीजिए. मैं बात करूंगी. सब ठीक हो जाएगा. और मम्मी ब्रैड से काम नहीं चलेगा. आप खाना और्डर कर दो. अंकल को खाना खिला कर ही भेजना. और हां, डाक्टर ने जो दवा लिखी है, उसे समय पर लेना और कल सारा चैकअप करवा लेना.’’

दोनों अवाक थे. बच्चों को यह क्या हो गया है? उन के दिल में कब से कुछ घुमड़ रहा था, वह आंखों के रास्ते छलक आया. रूपेश ने रूपा का हाथ थाम लिया, ‘‘और कुछ नहीं तो उम्र के इस पड़ाव पर हमें सहारे की जरूरत तो है ही.’’

रूपा ने उस के कंधे पर सिर रख दिया. इतना सुकून शायद जीवन में उसे पहली बार महसूस हुआ. वह सोच रही थी, जब वसंत की उम्र थी, उस ने पतझड़ देखे. अब पतझड़ के मौसम में वसंत आया है…लकदक लकदक.

‘भाग्यलक्ष्मी’ फेम एक्टर Akash Choudhary का हुआ एक्सीडेंट, दिमाग पर पड़ा असर

Akash Choudhary Road Accident : छोटे पर्दे के शो ‘भाग्यलक्ष्मी’ से लोगों के दिल में अपनी जगह बनाने वाले एक्टर आकाश चौधरी का शनिवार को भयंकर एक्सीडेंट हो गया. जब वह अपनी कार से लोनावला जा रहे थे तो तभी अचानक एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी. हालांकि इस एक्सीडेंट में एक्टर को कोई चोट नहीं आई है, क्योंकि उन्होंने सीट बेल्ट लगाई हुई थी. लेकिन इस हादसे से उनके (Akash Choudhary) दिमाग पर गहरा असर पड़ा है और वो इस एक्सीडेंट के ट्रामा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

एक्सीडेंट से एक्टर को पहुंचा गहरा सदमा

अपने एक्सीडेंट (Akash Choudhary Road Accident) की जानकारी खुद आकाश चौधरी ने मीडिया को दी है. उन्होंने बताया कि, ‘जब ट्रक ने उनकी गाड़ी को टक्कर मारी तो उन्हें एहसास नहीं हुआ. मैंने सीट बेल्ट लगाई हुई थी. इसलिए हमें चोट तो नहीं आई लेकिन इस भयंकर एक्सीडेंट ने मुझे अंदर तक हिला डाला.’ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘मेरी नींद तक उड़ गई है. हालांकि उस वक्त मैं छुट्टी पर था लेकिन रात में सो नहीं पाया. रातभर उसी एक्सीडेंट के बारे में सोचता रहा कि मेरे साथ क्या हो सकता था.’

ट्रक चालक को किया गया गिरफ्तार

इसके अलावा उन्होंने बताया कि, एक्सीडेंट (Akash Choudhary Road Accident) के बाद ट्रक डाइवर को गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि ये हादसा उसकी लापरवाही से ही हुआ था. आगे आकाश ने बताया कि, जब से उन्होंने वैभव उपाध्याय और देवराज पटेल को एक्सीडेंट में खोया है, तब से वह सड़क पर ड्राइविंग को लेकर काफी ज्यादा घबराएं हुए हैं.’ हालांकि उन्होंने ड्राइवर के खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले ली है क्योंकि वह बहुत ज्यादा गरीब है.

Dipika-Shoaib ने यूनिक तरीके से किया बेटे का नाम रिवील, जानें मतलब

Dipika-Shoaib Son Name : टीवी के पॉपुलर कपल शोएब इब्राहिम और दीपिका कक्कड़ पेरेंट्स बन चुके हैं. 21 जून को दीपिका ने एक बेटे के जन्म दिया. वहीं अब कपल ने अपने बेटे का नाम रिवील किया है. साथ ही उन्होंने अपने बेटे के नाम का मतलब भी बताया.

कपल ने बताया क्या है बेटे का नाम ?

बीते दिन शोएब ने अपने ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो साझा की है, जिसका टाइटल दिया है, “हमारे बच्चे का नाम आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूं.” इस वीडियो में दीपिका और शोएब (Dipika-Shoaib Son Name) ने यूनिक तरीके से अपने बेटे का नाम फैंस को बताया हैं.

वीडियो में देख सकते है कि सबसे पहले एक्टर के पिता अपने पोते के नाम का पहला एलईडी लाइट वाला लेटर हाथ में लिए नजर आते हैं. इसके बाद एक-एक कर घर के सभी फैमिली मेंबर्स एक-एक लेटर दिखाते हैं. फिर आखिर में पूरी फैमिली एक साथ बच्चे का नाम अनाउंस करती है. आपको बता दें कि दीपिका-शोएब ने अपने बेटे का नाम रूहान शोएब इब्राहिम रखा हैं.

जानें क्या है इस नाम का मतलब

वीडियो में आगे दीपिका-शोएब (Dipika-Shoaib Son Name) रूहान का मतलब भी बताते हैं. रुहान का मीनिंग है दयालु और आध्यात्मिक. हालांकि कपल ने अभी तक अपने बेटे की झलक शेयर नहीं की है.

तलाश : भाग 3, क्या मम्मीपापा के पसंद किए लड़के से शादी करेगी कविता?

रात के 9 बजे तो पूछताछ करने वालों का हौसला पस्त हो चला था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि कविता को ढूंढ़ने का अब कौन सा रास्ता अपनाया जाए.

अपनी नियति पर आंसू बहातेबहाते कविता का दिमाग सुन्न सा हो चला था. फिर भी रहरह कर उसे बहुत सी पुरानी बातें याद आ रही थीं. कविता छोटी बेटी होने के कारण अपने मातापिता की ज्यादा लाडली थी. बचपन में उन की हर इच्छा पूरी करने को उस के पिता सदा तैयार रहते थे. वे सभी भाईबहन अच्छा खातेपहनते थे, अच्छे स्कूल में पढ़ते थे.

जब 2 साल बड़ी उस की बहन अनिता की कालेज जाने की बारी आई तब उस ने अपने मातापिता के नजरिए में बदलाव आता साफ महसूस किया था. देखते ही देखते दोनों बहनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जाने लगी. टोकाटाकी बहुत बढ़ गई थी. आनेजाने पर नियंत्रण लग गया. पूरे घर में अजीब सा तनाव रहने लगा था.

अनिता की शादी उस के मातापिता ने तय की थी. उस के विदा हो जाने के बाद बस, वही रह गई थी अपने मातापिता की लगातार निरीक्षण करती नजरों का केंद्र बन कर. कई बार उन की रोकटोक कविता को गुस्सा करने या रोने पर मजबूर कर देती थी. उस की समझ में नहीं आता था कि अपने मातापिता की आंखों का तारा बनी रहने वाली किशोर लङकी एकाएक जवान होने के बाद क्यों उन दोनों की आंखों में कांटा बन कर चुभने लगी थी.

रवि बीएससी में कविता के साथ पढ़ता था. कालेज में उन की विशेष जानपहचान नहीं थी, पर बाद में जब दोनों नौकरी करने लगे थे तब पुरानी मित्रता की जड़ें मजबूत होती गईं और  आखिरकार दोनों ने जीवनसाथी बनने का फैसला कर लिया था. विशेषकर नरेश चंद्र को कविता का चुनाव बिलकुल पसंद नहीं आया था. वह बड़े अफसर थे और अपने रुतबे व धनदौलत के बल पर उस के लिए कहीं ज्यादा बेहतर लङका ढूंढ़ने के ख्वाहिशमंद थे.

उस ने सदा यही सोचा था कि वह अपने मातापिता को अपनी पसंद के लङके से शादी करवाने के लिए राजी कर लेगी लेकिन जिस कठोर व कड़वे अंदाज में उन दोनों ने प्रेमविवाह करने की राह में रुकावटें खड़ी की थीं, वह अंदाज कविता के दिलोदिमाग पर गहरे जख्म कर गया था.

वह जितना ज्यादा घर में तनावग्रस्त रहती, रवि का कोमल व प्यार भरा व्यवहार उतना ही ज्यादा उस के दिल पर जादू करता गया था. वह उस के लिए बहुत ही ज्यादा उपयुक्त जीवनसाथी सिद्ध होगा, यह बात बड़ी गहराई से उस के दिल में जड़ जमा गई थी.

फिर उस के पिता ने उस के लिए बैंक में कार्यरत अफसर लङका देख लिया था. उस लङके से कविता ने ढंग से बात भी नहीं की, फिर भी तगड़े दहेज के लालच में लङके ने ‘हां’ कह दी थी.

कविता ने इस शादी का डट कर विरोध किया था, पर उस के पिता ने उस के विद्रोह को ताकत से ही कुचल दिया था. उसे गालियां भी सुनने को मिली थीं और मार भी खानी पड़ी थी.

आखिरकार कविता ने आत्महत्या करने का फैसला कर ही लिया था. रवि का प्यार सच्चा था. तभी तो उस ने भी उस के साथ अपना जीवन समाप्त करने का करार कर लिया था.

सोने से पहले कविता ने नींद की गोलियां खाने का पक्का निश्चय किया हुआ था. वैसे उस के दिल के किसी कोने में शाम तक यह उम्मीद बनी हुई थी कि उस के मातापिता अपनी बेटी की इच्छा के सामने अपना फैसला बदल देंगे मगर बीतते समय के साथ उम्मीद की वह किरण धूमिल होती चली गई थी.

उस ने उठ कर बैग में से नींद की गोलियों वाली शीशी निकाल ली. उसे उलटपलट कर देखती रही और आंखों से आंसू बह कर जमीन पर गिरते रहे.

वह अभी जीना चाहती थी, लेकिन रवि की जीवनसंगिनी बन कर. दिल का एक हिस्सा उसे समझा रहा था कि यों आत्महत्या करना गलत है पर अपने मातापिता के व्यवहार से निराश हो कर उसे अपने दुखदर्द से छुटकारा पाने का कोई अन्य रास्ता नजर भी तो नहीं आ रहा था.

एक बार फिर विशाल ने ही निराश हो चुके लोगों में आशा और उत्साह पैदा किया,”पापा, कविता यहां आई थी, पर यहां रहती नहीं है. अब हमें उस की किस सहेली या रिश्तेदार की खोज करनी चाहिए. कविता की नहीं,’’ विशाल की इस राय से सभी सहमति जताने लगे. कविता के किसी परिचित की खोजबीन फिर जोरशोर से शुरू हो गई.

थके पैरों में फिर से पंख लग गए. 10 बजे का समय निकट आता जा रहा था. बाहर से ढूंढ़ने आए किशोरों व आदमियों के साथसाथ कालोनी वाले भी कविता की किसी सहेली या रिश्तेदार को ढूंढ़ने में लग गए.

फिर से फ्लैटों के दरवाजे खटखटाए जाने लगे. जितनी बार असफलता हाथ लगती उतनी ही बार ढूंढ़ने वालों का चिंता व घबराहट का स्तर पहले से कुछ ज्यादा बढ़ जाता. कदमों की रफ्तार के साथसाथ दिल की धङकने भी तेज होती गईं.

विशाल सब के सामने तो हिम्मत बांधे रहा पर अपनी मां नीरजा के पास आ कर उस का सब्र टूट गया,”क्यों नहीं मिल रही कविता हमें, मां,’’ यह सवाल पूछ कर वह सुबकने लगा था.

इस पर नीरजा ने भले गले से जवाब दिया, ‘‘सब अच्छा होगा, बेटे. हम जो कर सकते हैं कर ही रहे हैं, तू यों दिल छोटा न कर.’’

विशाल कुछ कहता इस से पहले अधेड़ उम्र की एक महिला ने नीरजा के पास आ कर पूछा, ‘‘यहां इतनी हलचल क्यों नजर आ रही है? कहीं चोरी हो गई है क्या?’’

‘‘चोरी नहीं हुई है, कविता नाम की एक युवा लङकी या उस की किसी सहेली या रिश्तेदार को ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं हमलोग,’’ नीरजा ने जवाब दिया.

‘‘एक कविता तो मेरी बेटी की भी पक्की सहेली है, पर क्यों ढूंढ़ रहे हैं आप उसे?’

‘‘वह मैं बाद में बताऊंगी. पहले आप अपनी बेटी से मिलवाइए मुझे,’’ नीरजा की आवाज उत्तेजना से कांप उठी.

‘‘रेखा, इधर आ जरा,’’ उस महिला ने कुछ दूर खड़ी एक युवा लडक़ी को हाथ से पास आने का इशारा किया.

विशाल सब्र न कर सका और भागता हुआ उस लङकी के पास पहुंच गया.

‘‘दीदी, क्या कविता आप की फ्रैंड है?’’ विशाल ने उस का हाथ पकड़ कर व्यग्र लहजे में पूछा.

‘‘तुम क्यों पूछ रहे हो यह सवाल?’’ रेखा ने उलझन भरे लहजे में उलटा सवाल किया.

‘‘दीदी, प्लीज, समय मत बरबाद कीजिए. क्या आप की सहेली कविता की उस की मरजी के खिलाफ कल कहीं सगाई या रोकने की रस्म अदा की जा रही है?’’

‘‘हां, लेकिन…’’

‘‘पापा…मम्मी, अरे, सब लोग यहां आइए. यह दीदी कविता को जानती हैं,’’ विशाल की ऊंची आवाज चारों तरफ गूंज उठी थी.

बहुत जल्दी विशाल और रेखा के इर्दगिर्द अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई. सब को खामोश रहने का इशारा कर के आदित्य ने रेखा से जरूरी सवाल पूछने शुरू कर दिए.

ठीक 10 बजे कविता ने मेज पर रखी अपने मातापिता की तसवीर को चूमा फिर रवि की एक तसवीर किताब में से निकाली. कुछ देर वह उसे आंसू भरी आंखों से निहारने के बाद पानी का गिलास भर लाई.

नींद की गोलियों वाली शीशी खोल कर उस ने ढेर सारी गोलियां हाथ में निकाल लीं. उस का हाथ अचानक जोर से कांपने लगा. हाथ में पकड़ी शीशी छूट कर फर्श पर बिखर गईं. जो 7-8 गोलियां हाथ में बची थीं उन्हें कविता ने गले से नीचे उतार लिया. फिर वह झुक कर बिखरी गोलियां इकट्ठी करने लगी थी.

रेखा से कविता के घर का पता मालूम पड़ गया था. फिर स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार व रिकशों का एक काफिला सा कविता के घर की तरफ चल पड़ा. रेखा के मातापिता के अलावा कालोनी के कई अन्य लोग भी उत्सुकता का शिकार हो कर कविता के घर की तरफ चल पड़े थे.

कविता के पिता नरेश उस वक्त टीवी देख रहे थे जब उन की कोठी के मुख्यद्वार को किसी ने जोर से पीटना शुरू किया व लगातार घंटी बजाना भी चालू रखा.

बहुत क्रोधित अंदाज में उन्होंने दरवाजा खोला, लेकिन बाहर खड़ी भीड़ देख कर वह चौंक उठे,”क्या चाहिए आप लोगों को?’’ उन्होंने सब से आगे खड़े आदमी से पूछा.

‘‘आप की बेटी कविता की जान खतरे में है. हमारी बात पर नहीं तो अपनी बेटी की सहेली रेखा की बात पर आप जरूर विश्वास कर लें सर, वरना अनर्थ हो जाएगा,’’ आदित्य की आवाज में भय व घबराहट के भाव झलक रहे थे.

रेखा ने आगे बढ़ कर नरेश से कहा, ‘‘अंकल, कविता ने रवि के अलावा किसी और से शादी करने के बजाय आत्महत्या करने का फैसला किया है. आप फौरन देखें कि वह किस हाल में है…’’

रेखा की बात सुन कर कविता की मां अनुपमा की चीख निकल गई. नरेश का चेहरा पीला पड़ता चला गया. रेखा को कविता के कमरे की जानकारी थी. लिहाजा, वह उस के कमरे की ओर भागी तो विशाल, आदित्य, नीरजा और रेखा के मातापिता उस के पीछेपीछे तेजी से दौड़े. बाकी लोग बेचैनी से बाहर खड़े इंतजार करने लगे. कैसी भी खबर मिलने को बेहद भयभीत नजर आते अनुपमा व नरेश भी डगमगाते कदमों से अपनी बेटी के कमरे की तरफ चल पड़े थे.

जैसे ही वे लोग कविता के कमरे में घुसे उन्होंने कविता को फर्श पर औंधा पड़ा पाया. चारों तरफ बिखरी गोलियां पूरी कहानी साफ बता रही थीं. आदित्य ने कविता को उठा कर पलंग पर लिटाया. फिर उस के गालों पर चांटे लगा कर वह उसे होश में लाने का प्रयास करने लगे. गहरी नींद में सोती लग रही कविता के गले से अजीब सी आवाजें निकल रही थीं. नींद की गोलियों का ज्यादा असर न होने के कारण वह पूरी तरह बेहोश नहीं हुई थी. उसे दर्द पहुंचा कर आदित्य उस की आंखें खुलवाने में सफल रहे थे. यह उन के प्रयास करने का ही नतीजा था जो कविता उन्हें बता पाई कि उस ने 7-8 गोलियां 10 बजे खाई थीं. वह उस से रवि के घर का फोन नंबर पूछने में भी कामयाब हो गए थे.

रेखा के पिता प्राथमिक चिकित्सा के जानकार थे. उन की सलाह पर कविता को ढेर सारा नमक का पानी जबरदस्ती मिला कर उलटी कराई गई. अधधुली स्थिति में कई गोलियां उलटी में बाहर आ गई थीं. इस बीच आदित्य ने रवि के घर फोन कर के उस के पिता से बात की. संक्षेप में सारी बात बता कर उन से फौरन रवि का हालचाल जानने को कहा.

‘‘रवि का एक दोस्त आया हुआ था. वह उसे छोड़ कर अभी लौटा है. मैं अभी उस के कमरे में जाता हूं,’’  रवि के पिता ने कांपते स्वर में कहा और संबंधविच्छेद किए बिना फोन अलग रख दिया.

आदित्य के साथसाथ नीरजा, विशाल व रेखा की मां फिर से रवि के पिता की आवाज सुनने को बेताब थे.

करीब 5 मिनट बाद रवि के पिता की आवाज फिर से फोन पर सुनाई दी, ‘‘आप का बहुतबहुत धन्यवाद, सर. रवि के पास जो नींद की गोलियां थीं वह अब मेरे कब्जे में हैं. आप के कारण मेरे बेटे की जान बच गई है. वह आप से बात करना चाहता है.’’

‘‘मैं भी उस से बात करना चाहूंगा,’’ आदित्य का जवाब सुन कर रवि के पिता ने फोन रवि को दे दिया.

रवि कविता का हालचाल जानना चाहता था. आदित्य ने उस का हौसला बंधाया और अपने पिता के साथ फौरन आने को कहा. फोन पर बात समाप्त कर के जब वे सब कविता के आसपास इकट्ठे हुए तब रेखा के पिता न सब को खुशखबरी दे डाली, ‘‘कविता की जान को कोई खतरा नहीं है अब. गोलियों का असर दिमाग तक नहीं पहुंच सका. नरेशजी और अनुपमाजी, आप दोनों बहुत ही खुशहाल मातापिता हैं जो यह भयानक खतरा आदित्यजी के कारण टल गया है.’’

‘‘मैं आप के इस पकार का बदला कैसे चुकाऊंगा, भाई साहब,’’ नरेश ने आगे बढ़ कर आदित्य को गले लगा लिया.

‘‘असली नायक तो मेरा बेटा है, नरेशजी. उसी के पीछे पङने के कारण हम कविता व रवि की तलाश करने को मजबूर हो गए थे,’’ आदित्य ने विशाल को सब के सामने छाती से लगाया तो वह शरमा गया था. आदित्य व नरेश विशाल को ले कर मुख्य दरवाजे पर पहुंचे. कविता ठीकठाक है, यह खबर सुन कर बाहर खड़ी भीड़ के हर सदस्य का चेहरा खिल उठा.

विशाल को गणेशी व उस के दोस्तों ने हवा में उछाल कर स्वागत किया. फिर आदित्य से इनाम पा कर गणेशी व उस के रिकशे वाले साथी विदा हुए.

विशाल अपने दोस्तों के साथ सब का मुंह मीठा कराने के लिए मिठाई लाने चला गया. मिठाई के लिए रुपए नरेश ने दिए थे.

‘‘जवान बच्चों को सलाह देना एक बात है, नरेशजी, पर मातापिता को उन पर अपने आदेश जबरदस्ती थोपने से परहेज रखना चाहिए. बदलते समय को देखते हुए शादी के मामले में हमें उन की इच्छाओं को ही ज्यादा महत्त्व देना चाहिए,’’ नीरजा की इस सलाह को नरेश ने बड़े ध्यान से सुना.

‘‘आप ठीक कह रही हैं, बहनजी, अपनी बात मनवाने के चक्कर में आज मैं अपनी बेटी को ही खो देता. कविता की शादी अब रवि के साथ ही होगी, मैं इस का आश्वासन अब सब को देता हूं,’’ नरेश की इस घोषणा का सभी ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

विशाल यह खुशखबरी कविता को देने दौड़ गया. कविता को तलाश करने की उस की जिद आखिरकार 2 युवाओं के जीवन में खुशियों के फूल खिलाने में सफल रही थी.

वे जीना चाहते थे

मोहब्बत की आखिरी मंजिल शादी होती है, अधिकतर प्यार करने वालों का यही मानना है. प्यार करने वाले साथसाथ जीना चाहते हैं, लेकिन कभीकभी उन की यह चाहत सपना बन कर रह जाती है. समाज अपने लोगों को अपने नियमकायदे के अनुसार ही चलाना चाहता है. लेकिन प्रेम करने वालों को समाज की कहां परवाह होती है.

आगरा को मोहब्बत की नगरी माना जाता है. इस की वजह यह है कि पूरी दुनिया को मोहब्बत का पैगाम देने वाला ताजमहल यहीं है. हजारों प्रेमी जोड़े हर साल इसे देखने आगरा आते हैं.

राजू और गौरी भी कई सौ किलोमीटर का सफर तय कर के प्रेम की इस इमारत को देखने आए थे. लेकिन उसे देखते ही उन्हें पता नहीं क्या हुआ कि वे आगरा से वापस नहीं जा सके?

कर्नाटक के जिला गदग के कोन्नूर में रहता था हनुमंत का परिवार. राजू हनुमंत का बेटा था. राजू के अलावा हनुमंत की 2 संतानें और थीं.

हनुमंत की टेलरिंग की दुकान थी. लोगों के कपड़े सिल कर वह परिवार को पालपोस रहा था. बेटा राजू जब हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका तो उस ने उसे भी अपने टेलरिंग के काम में लगा दिया. 2-3 सालों में काम सीख कर वह अच्छा टेलर बन गया. राजू खुद कमाने लगा तो बनठन कर रहने लगा.

राजू को गली की गौरी बचपन से ही बहुत अच्छी लगती थी. वह उस के घर से थोड़ा दूर रहती थी, इसलिए उस से कभी बातचीत का मौका नहीं मिला. वह उस की दुकान के सामने से ही स्कूल आतीजाती थी, इसलिए उस के स्कूल आतेजाते समय वह उसे देखने के लिए अपनी दुकान से बाहर आ कर खड़ा हो जाता था.

इसी तरह देखतेदेखते वह उसे मन ही मन चाहने लगा. लेकिन जब एक दिन गौरी उस की दुकान पर कपड़े सिलवाने आ गई तो उसे बात करने का भी मौका मिल गया. नाप लेने के बाद राजू ने पूछा, “क्या नाम लिखूं?”

“रघु, रघु लिख दो.” गौरी ने कहा.

“तुम्हारा नाम रघु है?” राजू ने हैरानी से पूछा तो वह खिलखिला कर हंसते हुए बोली, “मैं तुम्हें रघु दिखती हूं?”

“नहीं, यह तो लडक़ों का नाम है. लेकिन तुम्हीं ने तो कहा है कि रघु लिख दो.”

“हां, कहा तो है, रघु मेरे मामा हैं. मेरा नाम तो गौरी है.” उस ने कहा.

“यह तो बहुत अच्छा नाम है.” राजू तारीफ करते हुए बोला.

“मेरी तरह मेरा नाम भी है.” कह कर गौरी फिर खिलखिला कर हंसी.

उस की यह हंसी राजू के दिल में उतरती चली गई. उस ने उसे गौर से देखते हुए कहा, “गौरी, तुम सचमुच बहुत अच्छी हो.”

उस की इस बात पर गौरी मुसकराई और चली गई.

गौरी की निश्छल हंसी का राजू दीवाना सा हो गया. 4 दिनों बाद उस ने गौरी को सिले कपड़ों को ले जाने को कहा था, लेकिन वह अगले दिन से ही उस के आने का इंतजार करने लगा था. जिस अंदाज में राजू ने उस से बातें की थीं, उस से गौरी भी उस का मतलब समझ गई थी, लेकिन यह बात उस ने राजू को महसूस नहीं होने दी थी.

दूसरी तरफ राजू ने सोच लिया था कि जैसे ही गौरी कपड़े लेने आएगी, वह अपने मन की बात उस से कह देगा. चौथे दिन शाम को गौरी राजू की दुकान पर आई तो संयोग से उस समय वह अकेला था. आते ही गौरी ने पूछा, “हमारे कपड़े सिल गए?”

“हां…हां सिल गए,” कह कर राजू ने शोकेस से कपड़े निकाल कर गौरी के सामने रख दिए. गौरी कपड़ों को देखने लगी तो राजू ने मुसकराते हुए पूछा, “अच्छे सिले हैं?”

“हां.” कह कर गौरी ने राजू को सिलाई के पैसे दिए और मुसकराती हुई चली गई. राजू मन की बात उस से कह नहीं पाया.

यह मुलाकात कोई खास नहीं थी. फिर भी गौरी के दिल में राजू की तसवीर उतर गई थी. 15 साल की गौरी का भावुक मन राजू की ओर खिंचता चला जा रहा था. राजू ने जो कहा था, वे बातें उस के दिमाग में घूम रही थीं.

आतेजाते उन की नजरें टकराने लगीं. राजू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह उस से मिलना चाहता था, लेकिन समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. उस के मन में इस बात का भी डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए.

हिम्मत कर के एक दिन राजू छुट्टी के समय गौरी के कालेज के समाने जा कर खड़ा हो गया. गौरी सहेलियों के साथ कालेज से निकली तो राजू को देख कर उस का दिल तेजी से धडक़ उठा. राजू ने उसे एक तरफ आने का इशारा किया तो वह उस का इशारा समझ गई.

वह अपनी सहेलियों से अलग हो कर राजू के पास आ गई. जैसे ही वह उस के पास आई, राजू ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठने का इशारा किया. गौरी बैठ गई तो वह तेजी से चल पड़ा. गौरी ने कहा, “कहां जा रहे हो, मुझे घर जाना है?”

“चली जाना, आज मुझे तुम से कुछ कहना है.” राजू ने कहा तो गौरी ने हंसते हुए कहा, “यही न कि तुम मुझ से प्यार करते हो.”

राजू ने बिना किसी संकोच के कहा, “गौरी, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.”

गौरी मुसकरा कर बोली, “मैं भी तो तुम से प्यार करती हूं.”

राजू ने उसे हैरानी से देखा तो गौरी ने नजरें झुका लीं. यह थी गौरी और राजू के प्यार की शुरुआत. अकसर प्रेम करने वालों के प्यार की शुरुआत कुछ इसी तरह से होती है. लेकिन इस के बाद कभीकभी यही प्यार जीवन के लिए ऐसा नासूर बन जाता है कि जीवन ही लील लेता है.

गौरी के पिता की मौत हो चुकी थी. वह अपनी मां शैला और बड़ी बहन रजनी के साथ अपने मामा रघु के घर रहती थी. पिता की मौत के बाद मामा उन्हें अपने साथ ले आए थे. रजनी बीएससी कर रही थी, जबकि गौरी दसवीं में पढ़ रही थी. इसी नादान उम्र में गौरी को राजू से प्यार हो गया था.

प्यार ऐसी चीज है, जिसे कितना छिपा कर रखा जाए, वह कभी न कभी समाज की नजरों में आ ही जाता है. राजू और गौरी की मुलाकातें मोबाइल के जरिए तय होने लगीं. दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. उन के प्यार को मंजिल मिल पाएगी, इस बात को ले कर उन्हें शक था.

दरअसल, उन के रास्ते में सब से बड़ा रोड़ा था उन की जाति. गौरी कन्नड़ थी और राजू मराठी. दोनों को ही पता था कि समाज की नजरों में जैसे ही उन का प्यार आएगा, तूफान आ जाएगा.

एक दिन गौरी ने राजू से कहा,

“राजू अगर समाज ने हमारे संबंधों को कबूल नहीं किया तो हम क्या करेंगे?”

राजू ने गौरी को भरोसा दिलाया कि दुनिया वाले कुछ भी कहें, वह उस का साथ हरगिज नहीं छोड़ेगा. दुनिया की कोई भी ताकत उसे जुदा नहीं कर सकेगी. दोनों साथ जिएंगे और साथ मरेंगे.

प्यार की दीवानगी राजू के दिलोदिमाग पर छाने लगी तो उस का मन काम से उचट गया. एक दिन उस के पिता ने टोका, “क्या बात है बेटा, आजकल तुम्हारा मन काम में नहीं लग रहा है. कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम दुकान से गायब हो जाते हो. कस्टमर भी परेशान होते हैं. बताओ क्या बात है?”

“कोई बात नहीं है पापा. बस ऐसे ही थोड़ा मन उचट गया था. लेकिन अब आप ङ्क्षचता न करें, मैं काम पर पूरा ध्यान दूंगा.” राजू ने कहा.

इस के बाद वह गौरी से उस समय मिलता, जब दुकानदारी पर कोई असर न पड़ता. उस के मन में एक ही बात घूमा करती थी कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के प्यार के बीच जाति न आए. उस का ध्यान फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ की तरफ गया, जिस में नायक कमल हासन और नायिका रति अग्निहोत्री अलगअलग जाति के थे. फिल्म का ध्यान आते ही राजू ने सोच लिया कि वह भी उसी तरह अपने प्यार के लिए करेगा.

लेकिन एक दिन गौरी की मां शैला ने उसे फोन पर हंसहंस कर बातें करते देखा तो उसे शक ही नहीं हुआ, बल्कि उसे लगा कि उस की किशोर बेटी इश्क की खतरनाक राह पर चल पड़ी है. शैला परेशान हो उठी. उस ने गौरी से पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया.

कुछ दिनों बाद शैला के दूर के रिश्तेदार नीलकंठ ने उसे बताया कि उस ने गौरी को बाजार में राजू टेलर के साथ देखा है तो पूरी बात उस की समझ में आ गई. इस बार उस ने बेटी से सख्ती से पूछा तो उस ने कहा, “मम्मी, मैं राजू से प्यार करती हूं और वह भी मुझे बहुत चाहता है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.”

“शादी, प्यार यह सब क्या कह रही है तू. तू जानती है तेरी उम्र क्या है? फिर वह हमारी जाति का भी तो नहीं है. इसलिए यह बात तू मन से निकाल दे. तेरी शादी उस से किसी भी तरह नहीं हो सकती.”

“मम्मी, राजू बहुत अच्छा लडक़ा है. तुम भी उस से बात करोगी तो वह तुम्हें भी पसंद आ जाएगा.” गौरी बोली.

छोटी सी लडक़ी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर शैला हैरान रह गई. उस ने सख्ती से कहा, “गौरी, अब बहुत हो चुका. कल से तुम कालेज नहीं जाओगी.”

“क्यों मम्मी?” गौरी ने हैरानी से पूछा.

“कह दिया न, नहीं जाना है तो नहीं जाना है.” कह कर शैला अपने काम में लग गई. शाम को शैला का भाई घर लौटा तो उसे शैला ने सारी बात बता दी.

भांजी के प्यार और शादी की जिद के बारे में सुन कर रघु ङ्क्षचतित हो उठा. लेकिन उस ने बहन से कहा कि वह सब संभाल लेगा. अगले दिन रघु राजू की दुकान पर गया और उसे धमकाते हुए बोला, “तू गौरी का पीछा छोड़ दे, यही तेरे लिए अच्छा रहेगा.”

“मामा, मैं गौरी से प्यार करता हूं.”

“यह प्यारव्यार कुछ नहीं होता. अगर तू नहीं माना तो मुझे दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा.” रघु ने धमकाते हुए कहा.

जिस समय रघु राजू से बात कर रहा था, नीलकंठ ने उसे देख लिया. नीलकंठ ने तो पहले भी गौरी और राजू को बाजार में देखा था. वह भी रघु के पास आ गया. उस ने रघु से कहा, “तुम चिंता मत करो, इसे मैं सभाल लूंगा.”

इस के बाद नीलकंठ ने राजू को धमकाते हुए कहा, “तुम संभल जाओ, वरना तुम्हें जेल की हवा खिला दूंगा.”

जेल का नाम आते ही राजू डर गया. क्योंकि वह नीलकंठ की दबंगई को जानता था. लेकिन गौरी को छोडऩा उस के लिए नामुमकिन था. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें जो खाई थीं.

नीलकंठ की दबंगई के कारण अब मोहल्ले में राजू और गौरी के प्यार के चर्चे कुछ ज्यादा ही होने लगे. परिवार वालों को बदनामी का डर सताने लगा. गौरी पर पाबंदियां भी लगने लगीं. पाबंदियों की वजह से वह प्रेमी से नहीं मिल पा रही थी. इस से दोनों बेचैन हो रहे थे. राजू जल्द ही गौरी से कोर्टमैरिज करना चाहता था, लेकिन समस्या यह थी कि अभी गौरी 16 साल की थी.

राजू ने गौरी से शादी करने की बात अपने घर में कही तो एक दिन राजू की मां अन्नपूर्णा और पिता हनुमंत रघु के घर गए. उन्होंने रघु से कहा कि अगर बच्चे एकदूसरे से प्यार करते हैं तो वे क्यों उन का विरोध कर रहे हैं. गौरी को अपने घर की बहू बनाने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है.

“लेकिन मुझे है.” रघु ने कहा, “क्योंकि हम दोनों की जाति अलग है. इसलिए यह संबंध कभी नहीं हो सकता.”

राजू के मांबाप निराश हो कर वापस आ गए. अगले दिन गौरी ने राजू को फोन कर के कहा कि घर वाले उस के लिए रिश्ता तलाश रहे हैं और जल्दी ही उस की शादी कर देना चाहते हैं. जबकि वह उसी से शादी करना चाहती है, क्योंकि वह उस के बिना जी नहीं सकती.

राजू ने उसे विश्वास दिलाया कि कुछ भी हो, कोई उन दोनों को अलग नहीं कर सकता. वह ङ्क्षचता न करे. इस समाज से कहीं दूर जा कर वह उस के साथ अपनी दुनिया बसाएगा.

गौरी को राजू पर पूरा भरोसा था. वह अपने प्यार के साथ इस जालिम समाज से कहीं दूर चली जाना चाहती थी, जहां वह अपने सपनों की दुनिया बसा सके.

एक दिन राजू ने फोन कर के गौरी से कहा कि आगरा में ताजमहल है, जिसे बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की यादगार में बनवाया था. हम दोनों उसी ताज के साए में अपनी दुनिया बसाएंगे.

गौरी उस के साथ चलने को तैयार हो गई. राजू ने गौरी को तैयार रहने को कह कर कहा कि वह कभी भी फोन कर के उसे आगरा चलने को कह सकता है.

राजू जानता था कि जाति का यह अड़ंगा उसे कभी गौरी के साथ अपनी दुनिया बसाने नहीं देगा. गौरी के बालिग होने में अभी 2 साल बाकी थे. इस बीच कुछ भी हो सकता था. उसे सब से ज्यादा डर दबंग नीलकंठ का था, जो उसे किसी केस में फंसा कर जेल भिजवाने की धमकी दे रहा था.

ऐसे में राजू और गौरी योजना बना कर घर से निकले और दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. उस समय राजू की जेब में 50 हजार रुपए थे. वह देश की राजधानी में गौरी के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहता था, ताकि राजधानी की भीड़ में कोई उन्हें ढूंढ़ न पाए.

दिल्ली पहुंच कर दोनों 3 दिनों तक एक होटल में रुके. वे ताज के दीदार को बेताब थे. 10 अक्तूबर की सुबह 11 बजे आगरा के नजदीक ईदगाह रेलवे स्टेशन पर उतरे. वहां से औटो कर के वे होटल ताज पैलेस गए, जहां कमरा नंबर 304 बुक कराया. होटल के रिसैप्शन पर राजू ने गौरी को अपना दोस्त बताया.

आगरा पहुंच कर दोनों बहुत खुश थे. उन की बरसों की तमन्ना पूरी होने वाली थी. ताजमहल को या तो उन्होंने किताबों में पढ़ा था या फिर फिल्मों में देखा था. अब वे अपनी आंखों से उस का दीदार करने वाले थे.

होटल में फ्रैश होने के बाद दोनों एक औटो से ताजमहल देखने गए. ताजमहल परिसर में प्रवेश करने पर उन्हें लगा, जैसे सारा वातावरण प्यार की खुशबू से सराबोर है. ताज के सामने पार्क की हरीभरी मुलायम घास पर बैठ कर उन्होंने खाना खाया. उस के बाद राजू ने पूछा, “गौरी, अब आगे क्या करना है?”

गौरी की मन:स्थिति अजीब सी थी. वह पहली बार घर से बाहर निकली थी. उम्र नादान थी और जीवन का कोई तजुरबा नहीं था. घर से निकल कर पीछे लौटने के सारे दरवाजे वह बंद कर आई थी. उस ने ठंडी सांस ले कर कहा, “मैं क्या जानूं.”

25 साल के राजू की भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उस के लिए अब एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. घर वापसी का मतलब था जेल जाना. उसे लग रहा था कि नाबालिग लडक़ी को भगाने के जुर्म में उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है. वह जानता था कि समाज उसे कभी माफ नहीं करेगा. इन्हीं सब बातों ने उसे निराश कर दिया.

राजू गौरी का हाथ पकड़ कर बोला, “गौरी हम ने साथ जीनेमरने की कसमें खाई हैं, अगर हम साथ जी नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं?”

गौरी राजू की बात सुन कर हैरान रह गई. करीब एक साल से दोनों मोहब्बत कर रहे थे, गजब का जोश था राजू में. उस की जिंदादिली से प्रभावित हो कर ही वह उस के साथ दुनिया बसाने चली आई थी. लेकिन आज राजू उसे कुछ थका हुआ सा लग रहा था.

राजू ने आगे कहा, “शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत उन की मौत के बाद अमर हो गई थी. शाहजहां ने मुमताज की विरह में जीवन के आखिरी दिन गुजारे थे. लेकिन हम दोनों खुशनसीब हैं कि साथसाथ हैं. अगर साथसाथ मौत को गले लगा लें तो अगले जनम में हम एक साथ रहेंगे.”

गौरी को भी लगा कि इस दुनिया में जीने से अच्छा है कि एकदूसरे की बांहों में मर जाएं. समाज का डर जीने नहीं दे रहा है. दोनों घर से सैकड़ों मील दूर थे. कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उन्होंने एक भयानक फैसला ले लिया.

रात करीब 8 बजे दोनों होटल पहुंचे और औटो वाले से उन्होंने सुबह आने को कहा कि कल कहीं और घूमने चलेंगे. दोनों बाहर से खाना पैक करा कर लाए थे, साथ में एक कोल्डङ्क्षड्रक की बोतल भी थी. इस के बाद उन्होंने कमरा अंदर से बंद किया तो उस रात उस कमरे में क्या हुआ, कोई नहीं जानता.

सुबह औटो वाले ने कमरा नंबर 304 का दरवाजा खटखटाया. लेकिन काफी देर तक अंदर से कोई आवाज नहीं आई. तब उस ने होटल के मैनेजर आशीष को इस बात की जानकारी दी.

आशीष ने तुरंत थाना रकाबगंज पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही पुलिस आ गई और कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. पुलिस अंदर पहुंची तो हैरान रह गई. पलंग पर 2 लाशें पड़ी थीं. टेबल पर पुलिस को कफ सीरप की 2 शीशियां मिलीं, जिन्हें जांच के लिए भेज दिया गया.

दोनों ने कोल्डङ्क्षड्रक में शायद कोई जहरीला पदार्थ मिला कर पी लिया था. 2 गिलासों में कोल्डङ्क्षड्रक भी मिली थी. उन के सामान से एक सुसाइड नोट मिला. गौरी के हाथ पर लिखा था ‘लव यू राजू’.

पुलिस को उन के सामान में हुबली से हजरत निजामुद्दीन तक का ट्रेन टिकट मिला था.  सूचना पा कर सीओ असीम चौधरी और एसपी सिटी आर.के. सिंह भी आ गए थे.

पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला था, वह कन्नड़ भाषा में था. उस सुसाइड नोट में दोनों ने अपनी मौत का जिम्मेदार नीलकंठ को ठहराया था. उस में लिखा था कि उसी के कारण वे घर छोड़ कर आगरा आए थे. उन्होंने नीलकंठ को कड़ी सजा देने की गुजारिश की थी और अपने घर वालों को तंग न करने का अनुरोध किया था.

सुसाइड नोट पर गौरी और राजू के दस्तखत के अलावा 2 मोबाइल नंबर भी लिखे थे. पुलिस को अभी तक यह नहीं मालूम था कि प्रेमी युगल कहां से आया था. पुलिस ने दिए गए मोबाइल नंबरों पर बात की तो पता चला कि वे नंबर कर्नाटक में रहने वाले अमृत के थे. अमृत राजू का मामा था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया राजू पड़ोसी लडक़ी के साथ कहीं भाग गया है. पुलिस ने दोनों के आत्महत्या करने की सूचना अमृत को दे दी.

राजू और गौरी की मौत की सूचना पा कर राजू के घर हाहाकार मच गया. लेकिन गौरी का परिवार खामोश रहा. उस की मां शैला ने कहा कि उन के लिए तो गौरी उसी दिन मर गई थी, जिस दिन घर से भागी थी. गौरी के मामा ने शव लेने से भी इनकार कर दिया.

हनुमंत अपने दूसरे बेटे परशु के साथ आगरा आए. उन्होंने दोनों शवों की शिनाख्त की और उन का दाहसंस्कार आगरा के ताजगंज श्मशान घाट पर कर दिया.

राजू और गौरी साथसाथ जी तो नहीं पाए, पर उन की चिताएं जरूर आसपास लगी थीं. हनुमंत को अपने जवान बेटे के खोने का गम था. वह तो बेटे को खुशियां देना चाहता था, पर जाति की दीवार ने उसे ऐसा गम दिया, जिसे वह पूरी जिंदगी नहीं भुला पाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीमारियों का हब बनता भारत

ब्रिटिश मैडिकल जर्नल ‘लासेंट’ में छपे इंडियन काउंसलिंग औफ मैडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक शोध के मुताबिक, भारत के कुछ राज्यों में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जिन राज्यों में मामले बढ़ रहे हैं उन राज्यों के लिए यह खतरे की घंटी है.

रिपोर्ट में बताया गया कि देशभर में प्री-डायबिटीज के मामले 15 फीसदी यानी 13.6 करोड़ के आसपास हैं. वहीं, डायबिटीज के मामले लगभग 11.4 करोड़ हैं. प्री-डायबिटिक का मतलब, आने वाले सालों तक इन लोगों के डायबिटिक होने की संभावना है. इस में गोवा, पुद्दूचेरी, केरल, चंड़ीगढ़ व दिल्ली टौप पर हैं. वहीं यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश विस्फोटक स्थिति में हैं.

इसी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में हाइपरटैंशन और कोलैस्ट्रौल बीमारी से लगभग 35 फीसदी से अधिक लोग ग्रस्त हैं. जबकि, मोटापे से लगभग 26.6 फीसदी लोग ग्रस्त हैं.

इस अध्ययन की प्रमुख लेखक डाक्टर आर एम अंजना के मुताबिक, “जब प्री-डायबिटीज के प्रसार की बात आती है, तो लगभग ग्रामीण और शहरी विभाजन नहीं दिखाई देता है. प्री-डायबिटीज का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया है जहां डायबिटीज का मौजूदा प्रसार कम था. यह एक टिकटिक करने वाले टाइम-बम जैसा है.”

दरअसल, डायबिटीज के प्रकार टाइप-1 और टाइप-2 हैं. टाइप-1 जैनेटिक होता है. यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है लेकिन मामले कम होते हैं. टाइप-2 डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ा है और दुनियाभर में इस का असर तेजी से हो रहा है.

प्री-डायबिटिक की बात की जाए, तो यह एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है. इस में शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि उसे टाइप-2 डायबिटीज की श्रेणी में रखा जा सके.

ऐसे में घबराने वाली बात तो है कि वे लोग भी इस की चपेट में पड़ रहे हैं जो बचे हुए थे. डाक्टर आर एम अंजना ने बताया, “प्री-डायबिटीज वाले 60 प्रतिशत से अधिक लोग अगले 5 सालों में डायबिटीज के शिकार हो जाएंगे. इस के अलावा भारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, इसलिए अगर डायबिटीज का प्रसार 0.5 से 1 प्रतिशत भी बढ़ जाता है, तो असल संख्या बहुत बड़ी हो जाएगी.”

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 31 राज्यों में एक लाख से अधिक शहरी और ग्रामीण लोगों को सर्वे में शामिल किया. सर्वे में शामिल लोगों की 18 अक्टूबर, 2008 और 17 सितंबर, 2020 के बीच जांच की गई. इस से पहले 2019 में आंकड़े सामने आए थे तब 7 करोड़ के लगभग डायबिटीज के मरीज थे. एक साल में यह बड़ा उछाल है. सर्वे में शामिल लोगों की उम्र 20 वर्ष या उस से अधिक थी. और उस के बाद इस शोध के नतीजे सामने आए.

कई मानों में यह बड़ा सर्वे है. इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि भारत में लोगों की हैल्थ कंडीशन बिलकुल भी सामान्य नहीं है, बल्कि कहा जा सकता है कि बीमारी में रहना अब सामान्य हो चला है. न्यू इंडिया के नाम से जाने जाना वाला भारत ज्यादा बीमारू हो चला है.

कपल्स के बीच ट्रैंड में ‘स्लीप डाइवोर्स’

शादी के रिश्ते में सबसे जरूरी बात क्या है, यह पूछने पर कई तरह के जवाब मिलते हैं, जैसे एकदूसरे को समझना चाहिए, एकदूसरे का खयाल रखना चाहिए और बाकी अलगअलग तरह की और भी कई बातें. लेकिन जिंदगी की सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है नींद, इसके बारे में कोई बात नहीं करता.

हाल ही के नए जेनरेशन के शादीशुदा कपल के बीच एक नया ट्रैंड शुरू हुआ है, जो ट्विटर पर ‘स्लीप डाइवोर्स’के नाम से काफी ट्रैंड हो रहा है.

दरअसल,स्‍लीप डाइवोर्स तब होता हैजब अच्छी और बेहतर नींद के लिए कपल अलगअलग कमरे, अलग बिस्तर या फिर या अलगअलग समय पर सोते हैं. इसे हम स्लीप डाइवोर्स कहते हैं. इसके ट्रैंड में आने का कारण है कपल्स की नींद का पूरा न हो पाना.

स्‍लीप डाइवोर्स ठीक से नींद न ले पाने वाले लोगों के लिए बड़ा समाधान है. स्‍लीप डाइवोर्सवह है जिसमें पार्टनर्स रात को साथ में न सोकर अपनी सुविधानुसार अलगअलग सोते हैं. इसके चलते कपल्स की नींद भी पूरी हो जाती है और वे अगली सुबह पूरी एनर्जी के साथ उठते हैं. हालांकि,इसका चलन बेहद पुराना है.

साल 1850 में यह ट्विन-शेयरिंग बैड के नाम से फेमस हुआ. तब के समय में पतिपत्नी एक कमरे में तो होते थेलेकिन होटलों की तर्ज पर ट्विन-शेयरिंग बैड की तरह एक रूम में ही 2 अलगअलग बिस्तर पर सोया करते थे. यह इसलिए शुरू हुआ ताकि पतिपत्नी एक रूम में साथ होकर भी बिना एकदूसरे को डिस्टर्ब किए आराम से नींद पूरी कर सकें. लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी की प्रोफैसर हिलेरी हिंड्स ने इस पर कल्चरल हिस्ट्री औफ ट्विन बैड्स के नाम से एक किताब भी लिखी है. बुक के अनुसार, उस समय में डाक्टर नींद न पूरी होने पर मानसिक नुकसान मानते थे.जैसे,दिनभर की भागदौड़ व सोने के समय में देरी होना. इस के अलावा पार्टनर के सोने की खराब आदतें या खर्राटे, पार्टनर का देर तक काम में लगे रहना आदि.

ग्रेट इंडियन स्लीप2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 55 प्रतिशत लोग रात में 11 बजे के बाद सोते हैं जिसके कारण 8 घंटे से कम नींद ले पाते हैं. साथ ही,हैल्थ टैक्नोलौजी कंपनी फिलिप्स इंडिया की2019 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 93 प्रतिशत भारतीय पूरी नींद नहीं ले पाते और इनमें से करीब 58 प्रतिशत लोग 7 घंटे से कम नींद ले पाते हैं.

नींद पूरी न होने के कारण रिश्तों पर सीधासीधा असर होता है. नींद की कमी से जूझते जोड़े छोटीमोटी बातों पर भी उलझ पड़ते हैं. इस के कारण चिड़चिड़ापन होता है और यह कारण  भी झगड़े का मुख्य कारण बन जाता है.

लोग मानते हैं कि स्लीप डाइवोर्ससे नींद पूरी होती है और नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है. इसके अलावा एकसाथ होने के बाद हर किसी का अपना एक पर्सनल स्पेस होता है, जो हर व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी है. कई लोग सोने से पहले किताबें पढ़ना चाहते हैं, कई लोगों को मैडिटेशन के बाद सोने की आदत होती है. तो इस समय में आप अपनी चीजों के लिए समय निकाल सकते हैं.

मैंने अपने पति को अपने प्रेमी के बारे में बता दिया था, पर अब वो मेरी बातों पर यकीन नहीं करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं ने प्रेम विवाह किया है और मेरा एक 9 महीने का बेटा है. मैं ने अपने पति को अपने पुराने प्रेमी के बारे में पहले बताया था. पिछले कुछ समय से मेरे पति मुझ पर यकीन नहीं करते हैं. वे छोटीछोटी बातों पर गालीगलौज करते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब
कोई भी शौहर बीवी के प्रेमी को बरदाश्त नहीं कर पाता है. अपने प्रेमी के बारे में बता कर आप भूल कर चुकी हैं. अब इसे प्यार और सब्र से सुधारने की कोशिश करें.

पति को भरोसा दिलाती रहें कि अब आप सिर्फ उन्हीं की हैं और किसी की नहीं. बेवजह उन का विरोध न करें. सवाल बच्चे के भविष्य का भी है इसलिए आप को ही झुक कर काम लेना होगा.

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जब पति पीटे

मध्यवर्गीय परिवार की रेखा और यतिन ने अपने परिवारों की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था. शादी की शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ समय बाद रेखा के प्रति यतिन का व्यवहार बदलने लगा. वह आएदिन छोटीछोटी बातों को ले कर रेखा पर गुस्सा करने लगा और एक दिन ऐसा आया जब उस ने रेखा पर हाथ उठा दिया. पहली बार हाथ क्या उठाया, यह रोज का नियम बन गया. हालांकि यतिन किसी गलत संगत में नहीं था. खानेपीने का शौकीन यतिन अकसर रेखा के बनाए खाने में कोई न कोई कमी निकाल कर उसे पीटता था.

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धीरेधीरे 15 वर्ष गुजर गए. रेखा 3 बच्चों की मां बन गई. बच्चे बड़े हो गए लेकिन यतिन के व्यवहार में बदलाव न आया. वह बच्चों के सामने भी रेखा को पीटता था. वहीं, वह कई बार अपनी गलती के लिए माफी भी मांग लेता था. रेखा चुपचाप पति की मार खा लेती. उन का बड़ा बेटा जब 14 साल का हुआ तो उस ने पिता के इस व्यवहार पर आपत्ति जताते हुए मां को ये सब और न सहने की सलाह दी. रेखा भी पति की रोजरोज की मार से अब तंग आ चुकी थी. एक दिन रेखा का बेटा अपनी मां को महिला आयोग में अपने पिता की शिकायत दर्ज करवाने ले गया. आयोग ने रेखा की परेशानी को ध्यान से सुना और यतिन को बुला कर दोनों को समझाने का प्रयास किया.

स्थिति यहां तक हो गई थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह कर एकदूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. कड़वाहट बढ़ती जा रही थी. कुछ दिनों के बाद रेखा ने घर छोड़ने का फैसला किया. वह बच्चों को ले कर किराए के एक मकान में अलग रहने लगी. अब आएदिन दोनों महिला आयोग में जा कर आमनेसामने खड़े होते थे. दोनों के बीच कहासुनी होती, आरोपप्रत्यारोप होते. बात बनने के बजाय बिगड़ती जा रही थी. यतिन ने घर के मामले को पुलिस में ले जाने को अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया. उसे इस बात को ले कर बच्चों से भी घृणा होने लगी. उसे लगा कि रेखा ने उस के बच्चों को उस के खिलाफ भड़का दिया है.

रेखा घर चलाने के लिए पति से हर माह खर्च देने की मांग कर रही थी. उधर, यतिन खर्च देने को तैयार नहीं था. इस सब के बीच दोनों की रिश्तेदारों व आसपड़ोस में कई लोग ऐसे भी थे जो स्थिति का लुत्फ उठा रहे थे. कुछ महीनों बाद जब यतिन से बच्चों की दूरी नहीं झेली गई तो आखिरकार वह पत्नी और बच्चों को मना कर घर वापस ले आया. इधर रेखा को भी इस दौरान यह समझ आ गया था कि उस के लिए बच्चों को अकेले पालना आसान काम नहीं था. इस तरह एक बिगड़ता हुआ घरौंदा फिर से बस गया. हालांकि इस तरह के हर मामलों में बिगड़ी हुई बात हमेशा बन ही जाए, ऐसा हमेशा संभव नहीं होता. अकसर पतिपत्नी के बीच की बात जब चारदीवारी से निकलती है तो रिश्तों में तल्खियां बढ़ जाती हैं और बनने की संभावना वाला रिश्ता भी टूट जाता है.

हम इस बात की पैरवी बिलकुल नहीं कर रहे हैं कि महिलाओं को चुपचाप घरेलू हिंसा का शिकार होते रहना चाहिए या खुद पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए बल्कि आशय यह है कि जिन रिश्तों में कुछ गर्माहट हो और उन के बचने की थोड़ीबहुत भी उम्मीद हो तो उन्हें टूटने से बचा लेना ही समझदारी है. रिश्तों के टूटने का दंश किसी एक को नहीं बल्कि कई लोगों को जीवनभर झेलना पड़ता है. ऐसे भी अनेक मामले हैं जिन में मामूली बात पर परिवार टूट जाते हैं. पत्नी आवेश में आ कर घरेलू हिंसा कानून का फायदा उठाना चाहती है.

महिलाओं को उन के कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की बात की जाती है तो उन अधिकारों के गलत इस्तेमाल न करने की नसीहत भी देनी जरूरी है.

बेवजह : कहानी युवती के पिघलते हुए एहसासों की

‘‘तू ने वह डायरी पढ़ी?’’ प्राची ने नताशा से पूछा.

‘‘हां, बस 2 पन्ने,’’ नताशा ने जवाब दिया.

‘‘क्या लिखा था उस में?’’

’’ज्यादा कुछ नहीं. अभी तो बस 2 पन्ने ही पढ़े हैं. शायद किसी लड़के के लिए अपनी फीलिंग्स लिखी हैं उस ने.’’

‘‘फीलिंग्स? फीलिंग्स हैं भी उस में?‘‘ प्राची ने हंसते हुए पूछा.

‘‘छोड़ न यार, हमें क्या करना. वैसे भी डायरी एक साल पुरानी है. क्या पता तब वह ऐसी न हो,’’ नताशा ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘अबे रहने दे. एक साल में कौन सी कयामत आ गई जो वह ऐसी बन गई. तू ने भी सुना न कि उस के और विवान के बीच क्या हुआ था. और अब उस की नजर तेरे अमन पर है. मैं बता रही हूं उसे तान्या के साए से भी दूर रख, तेरे लिए अच्छा होगा.’’

‘‘हां,’’ नताशा ने हामी भरी.

‘‘चल तू यह डायरी जल्दी पढ़ ले इस से पहले कि उसे डायरी गायब होने का पता चले. कुछ चटपटा हो तो मु झे भी बताना,’’ कहते हुए प्राची वहां से निकल गई.

नताशा कुछ सोचतेसोचते लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई. 2 मिनट बैठ कर वह तान्या के बारे में सोचने लगी. उस के मन में तान्या को ले कर कई बातें उमड़ रही थीं. आखिर तान्या की डायरी में जो कुछ लिखा था उस की आज की सचाई से मिलताजुलता क्यों नहीं था? क्यों तान्या उसे कभी भी अच्छी नहीं लगी. वह एक शांत स्वभाव की लड़की है जो किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखती. लेकिन, विवान के साथ उस का जो सीन था वह क्या था फिर.

पिछले साल कालेज में हर तरफ तान्या और विवान के किस्से थे. तान्या और विवान एकदूसरे के काफी अच्छे दोस्त थे. हालांकि, हमेशा साथ नहीं रहते थे पर जब भी साथ होते, खुश ही लगते थे. पर कुछ महीनों बाद तान्या और विवान का व्यवहार काफी बदल गया था. दोनों एकदूसरे से कम मिलने लगे. जबतब एकदूसरे के सामने आते, यहांवहां का बहाना बना कर निकल जाया करते थे. किसी को सम झ नहीं आया असल में हो क्या रहा है. फिर 2 महीने बाद नताशा को प्राची ने बताया कि तान्या और विवान असल में एकदूसरे के फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स थे. उन दोनों ने कानोंकान किसी को खबर नहीं होने दी थी, लेकिन उसे खुद विवान ने एक दिन यह सब बताया था. उन दोनों के बीच यह सब तब खत्म हुआ जब तान्या ने ड्रामा करना शुरू कर दिया. ड्रामा यह कि वह हर किसी को यह दिखाती थी कि वह बहुत दुखी है और इस की वजह विवान है. वह तो बिलकुल पीछे ही पड़ गई थी विवान के.

नताशा को यह सब सुन कर तान्या पर बहुत गुस्सा आया था. उस जैसी शरीफ सी दिखने वाली लड़की किसी के साथ फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स में रहेगी और फिर पीछे भी पड़ जाएगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था. जब क्लासरूम में डैस्क के नीचे उसे तान्या की डायरी पड़ी मिली तो वह उसे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पाई. वह बस यह जानना चाहती थी कि आखिर यह तान्या डायरी में क्या लिखती होगी, अपने और लड़कों के किस्से या कुछ और.

लाइब्रेरी में बैठेबैठे ही नताशा ने वह डायरी पढ़ ली. डायरी पूरी पढ़ते ही उस ने अपना फोन उठाया और प्राची को कौल मिला दी.

‘‘हैलो,’’ प्राची के फोन उठाते ही नताशा ने कहा.

‘‘हां, बोल क्या हुआ,’’ प्राची ने पूछा.

‘‘जल्दी से लाइब्रेरी आ.’’

‘‘हां, पर हुआ क्या?’’

‘‘अरे यार, आ तो जा, फिर बताती हूं न.’’

‘‘अच्छा, रुक, आई,’’ प्राची कहते हुए लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गई.

प्राची नताशा के पास पहुंची तो देखा कि वह किसी सोच में डूबी हुई है. प्राची उस की बगल में रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘‘बता, क्या हुआ,’’ प्राची ने कहा.

‘‘यार, हम ने शायद तान्या को कुछ ज्यादा ही गलत सम झ लिया.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तू यह डायरी पढ़. तू खुद सम झ जाएगी कि मैं क्या कहना चाहती हूं और यह भी कि तान्या के बारे में हम जो कुछ सोचते हैं, सचाई उस से बहुत अलग है. तू बस यह डायरी पढ़, अभी इसी वक्त,’’ नताशा ने प्राची को डायरी थमाते हुए कहा.

‘‘हां, ठीक है,’’ प्राची ने कहा और डायरी हाथ में ले कर पढ़ना शुरू किया.

5/9/18

कितना कुछ है जो मैं तुम से कहना चाहती हूं, कितना कुछ है जो तुम्हें बताना चाहती हूं, तुम से बांट लेना चाहती हूं. पर तुम कुछ सम झना नहीं चाहते, सुनना नहीं चाहते, कुछ कहना नहीं चाहते. मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगी हूं तुम्हारे आगे. ऐसा लगने लगा है कि मेरी सारी सम झ कहीं खो गई है. मेरी उम्र उतनी नहीं जिस में मु झे बच्चा कहा जा सके. बस, 18  ही तो है. उतनी भी नहीं कि मु झे बड़ा ही कहा जाए. इस उम्र में कुछ दीनदुनिया भुला कर जी रहे हैं, कुछ नौकरी कर रहे हैं, कुछ पढ़ रहे हैं तो कुछ प्यारव्यार में पड़े हैं.

मैं किस कैटेगरी की हूं, मु झे खुद को सम झ नहीं आ रहा. शायद उस कैटेगरी में हूं जिस में सम झ नहीं आता कि जिंदगी जा किस तरफ रही है. ऐसा लग रहा है कि बस चल रही है किसी तरह, किसी तरफ. मेरे 2 रूप बन चुके हैं, एक जिस में मैं अच्छीखासी सम झदार लड़की हूं और अपने कैरियर के लिए दिनरात मेहनत कर रही हूं. दूसरा, जहां मैं किसी को पाने की चाह में खुद को खो रही हूं और ऐसा लगने लगा है कि मेरा दिमाग दिनबदिन खराब हुआ जा रहा है.

कैसी फिलोसफर सी बातें करने लगी हूं मैं, है न? तुम हमेशा कहते रहते हो कि मैं इस प्यार और दोस्ती जैसी चीजों में माथा खपा रही हूं, यह सब मोहमाया है जिस में मैं जकड़ी जा रही हूं. पर तुम यह क्यों नहीं देखते कि मैं अपने कैरियर पर भी तो ध्यान दे रही हूं, पढ़ती रहती हूं, हर समय कुछ नया करने की कोशिश करती हूं. तुम्हारी हर काम में मदद भी तो करती हूं मैं, अपने खुले विचार भी तो रखती हूं तुम्हारे सामने. यह सबकुछ नजर क्यों नहीं आता तुम्हें?

शायद तुम सिर्फ वही देखते हो जो देखना चाहते हो. लेकिन, अगर मेरे इस प्यारव्यार से तुम्हें कोई मतलब ही नहीं है, फिर मु झ में तुम्हें बस यही क्यों नजर आता है, और कुछ क्यों नहीं?

13/9/18

मैं सम झ चुकी हूं कि तुम्हें मु झ से कोई फर्क नहीं पड़ता. अच्छी बात है. मैं ही बेवकूफ थी जो तुम्हारे साथ पता नहीं क्याक्या ही सोचने लगी थी. जो कुछ भी था हमारे बीच उसे मैं हमारी दोस्ती के बीच में नहीं लाऊंगी. लेकिन, तुम्हें नहीं लगता कि उस बारे में अगर हम कुछ बात कर लेंगे तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. मु झे ऐसा लगने लगा है जैसे तुम ने मु झे खुद को छूने दिया, लेकिन मन से हमेशा दूर रखा. मैं तुम्हारे करीब हो कर भी इतना दूर क्यों महसूस करती हूं. जो सब मैं लिखती हूं, वह कह क्यों नहीं सकती तुम से आ कर.

5/10/18

हां, मैं ने हां कहा तुम्हें बारबार, पर सिर्फ तुम्हें ही कहा, यह तो पता है न तुम्हें. मैं तुम्हें तब गलत क्यों नहीं लगी जब मैं ने यह कहा था कि मैं तुम्हें चाहने लगी हूं, लेकिन तुम्हें मजबूर नहीं करना चाहती कि तुम मु झ से जबरदस्ती रिश्ते में बंधो. याद है तब तुम ने क्या कहा था कि तुम भी मु झ में इंटरेस्टेड हो लेकिन किसी रिश्ते में पड़ कर मु झे खोना नहीं चाहते. मैं इतना सुन कर भी बहुत खुश हुई थी. मु झे लगा था अगर 2 लोग एकदूसरे में इंटरैस्ट रखते हों, तो फिर तो कोई परेशानी ही नहीं है.

मैं ने बस इतना सोचा कि तुम्हें मेरी फिक्र है, तुम मु झे खोना नहीं चाहते और इतना शायद दोस्ती से बढ़ कर कुछ सम झने के लिए काफी है. फिर, जब तुम मु झे अचानक से ही नजरअंदाज करने लगे, मु झ से नजरें चुराने लगे, और मैं ने गुस्से में तुम्हें यह कहा कि तुम ने मु झे तकलीफ पहुंचाई है, तो तुम मु झे ही गलत क्यों कहने लगे?

23/10/18

एक दोस्त हो कर अगर तुम एक दोस्त के साथ सैक्स करने को गलत नहीं मानते, तो मैं क्यों मानूं? नहीं लगा मु झे कुछ गलत इस में, तो नहीं लगा. पर मैं ने यह भी तो नहीं कहा था न कि मेरे लिए तुम सिर्फ एक दोस्त हो. यह तो बताया था मैं ने कि तुम्हारे लिए बहुतकुछ महसूस करने लगी हूं मैं. फिर तुम ने यह क्यों कहा कि मेरी गलती है जो मैं तुम से उम्मीदें लगाने लगी हूं.

26/10/18

नहीं, तुम सही थे. ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे ले कर मु झे दुखी होना चाहिए. आखिर हां तो मैं ने ही कहा था. फैं्रड्स विद बैनिफिट्स ही था वह. अगर कुछ दिन पहले पूछते तुम मु झ से कि मैं दुखी हूं या नहीं तो मैं कहती कि मैं बहुत दुखी हूं, मर रही हूं तुम्हारे लिए. लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कहूंगी. बल्कि कुछ नहीं कहूंगी. और कहूं भी क्यों जब मु झे पता है कि तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा. मैं भी कोशिश कर रही हूं कि मु झे भी फर्क न पड़े.

हां, जब भी कालेज की कैंटीन में तुम्हें किसी और से उसी तरह बात करते देखती हूं जिस तरह खुद से करते हुए देखा करती थी तो बुरा लगता है मु झे. वह हंसी जो तुम मेरे सामने हंसा करते थे. सब याद आता है मु झे, बहुत याद आता है. पर यह सब मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती, अब नहीं.

2/11/18

तुम्हारी गलती नहीं थी, मु झे सम झ आ गया है. तुम मु झे नहीं चाहते और इस में तुम्हारी गलती नहीं है और न ही मेरी है. उस वक्त हम एकदूसरे को छूना चाहते थे, महसूस करना चाहते थे, सीधे शब्दों में सैक्स करना चाहते थे, जो हम ने किया. मैं न तुम्हें सफाई देना चाहती हूं कोई और न किसी और को. अब अगर तुम ने या किसी ने भी मु झ से यह पूछा कि मैं ने हां क्यों की थी तो मेरा जवाब यह नहीं होगा कि मैं तुम्हें चाहने लगी थी.  मेरा जवाब होगा कि मैं तुम्हारे साथ सैक्स करना चाहती थी, जो मैं ने किया, और मु झे नहीं लगता कि इस में कुछ भी गलत है.

तुम किसी को बताना चाहो तो बता दो, अब मु झे फर्क पड़ना बंद हो चुका है. मु झे अगर अपनी इच्छाओं और  झूठी शान में से कुछ चुनना हो तो मैं अपनी इच्छाएं ही चुनूंगी, हमेशा. लेकिन, मैं तुम से अब कभी उस तरह नहीं मिलूंगी जिस तरह कभी मिलती थी. उस तरह बातें नहीं करूंगी जिस तरह किया करती थी. तुम्हारे लिए वैसा कुछ फील नहीं करूंगी जो कभी करती थी. सब बेवजह था, मैं सम झ चुकी हूं.

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