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Swara Bhaskar ने फ्लॉन्ट किया बेबी बंप, तस्वीरें शेयर कर जाहिर की मां बनने की खुशी

Swara Bhaskar Baby Bump Photos : बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) ने इसी साल फरवरी में समाजवादी पार्टी के नेता फहद अहमद (Fahad Ahmad) संग साथ सात फेरे लिए थे. हालांकि शादी के कुछ समय बाद ही एक्ट्रेस ने अपने फैंस को गुडन्यूज दी थी कि वह जल्द ही मां बनने वाली हैं. वहीं अब एक्ट्रेस अपने प्रेग्नेंसी पीरियड को इंजॉय कर रही हैं. इसी बीच अब उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने बेबी बंप के साथ कई तस्वीरें साझा की हैं.

ट्विटर पर शेयर की तस्वीरें

आपको बता दें कि सोमवार को अपने ट्विटर हैंडल पर स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar)  ने कुछ तस्वीरें शेयर की हैं. इन सभी तस्वीरों में वो अपने बेबी बंप को फ्लॉन्ट करते हुए नजर आ रही हैं. उन्होंने ब्लू कलर की एक प्रिंटेड वन पीस ड्रेस पहनी है और वह ये फोटोशूट अपने घर की लाइब्रेरी के पास खड़े होकर करवा रही हैं. गौरतलब है कि इस समय उनके चेहरे पर मां बनने की खुशी साफ-साफ झलक रही है.

प्रोटेस्ट के दौरान हुई थी स्वरा-फहद की मुलाकात

एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) की फहद अहमद (Fahad Ahmad) से सबसे पहली मुलाकात साल 2019 में एक प्रोटेस्ट के दौरान हुई थी. इसके बाद वह अच्छे दोस्त बने और धीरे-धीरे इनकी दोस्ती प्यार में बदल गई. फिर कपल ने 16 फरवरी 2023 को कोर्ट मैरिज की और बाद में रीति-रिवाजों के साथ सात फेरे लिए.

दूसरी औरत नहीं बनूंगी : क्या था लखिया का मुंह तोड़ जवाब?

लखिया ठीक ढंग से खिली भी न थी कि मुरझा गई. उसे क्या पता था कि 2 साल पहले जिस ने अग्नि को साक्षी मान कर जिंदगीभर साथ निभाने का वादा किया था, वह इतनी जल्दी साथ छोड़ देगा. शादी के बाद लखिया कितनी खुश थी. उस का पति कलुआ उसे जीजान से प्यार करता था. वह उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करता. वह खुद तो दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करता था, लेकिन लखिया पर खरोंच भी नहीं आने देता था. महल्ले वाले लखिया की एक झलक पाने को तरसते थे.

पर लखिया की यह खुशी ज्यादा टिक न सकी. कलुआ खेत में काम कर रहा था. वहीं उसे जहरीले सांप ने काट लिया, जिस से उस की मौत हो गई. बेचारी लखिया विधवा की जिंदगी जीने को मजबूर हो गई, क्योंकि कलुआ तोहफे के रूप में अपना एक वारिस छोड़ गया था. किसी तरह कर्ज ले कर लखिया ने पति का अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन कर्ज चुकाने की बात सोच कर वह सिहर उठती थी. उसे भूख की तड़प का भी एहसास होने लगा था.

जब भूख से बिलखते बच्चे के रोने की आवाज लखिया के कानों से टकराती, तो उस के सीने में हूक सी उठती. पर वह करती भी तो क्या करती? जिस लखिया की एक झलक देखने के लिए महल्ले वाले तरसते थे, वही लखिया अब मजदूरों के झुंड में काम करने लगी थी.

गांव के मनचले लड़के छींटाकशी भी करते थे, लेकिन उन की अनदेखी कर लखिया अपने को कोस कर चुप रह जाती थी. एक दिन गांव के सरपंच ने कहा, ‘‘बेटी लखिया, बीडीओ दफ्तर से कलुआ के मरने पर तुम्हें 10 हजार रुपए मिलेंगे. मैं ने सारा काम करा दिया है. तुम कल बीडीओ साहब से मिल लेना.’’

अगले दिन लखिया ने बीडीओ दफ्तर जा कर बीडीओ साहब को अपना सारा दुखड़ा सुना डाला. बीडीओ साहब ने पहले तो लखिया को ऊपर से नीचे तक घूरा, उस के बाद अपनापन दिखाते हुए उन्होंने खुद ही फार्म भरा. उस पर लखिया के अंगूठे का निशान लगवाया और एक हफ्ते बाद दोबारा मिलने को कहा.

लखिया बहुत खुश थी और मन ही मन सरपंच और बीडीओ साहब को धन्यवाद दे रही थी. एक हफ्ते बाद लखिया फिर बीडीओ दफ्तर पहुंच गई. बीडीओ साहब ने लखिया को अदब से कुरसी पर बैठने को कहा.

लखिया ने शरमाते हुए कहा, ‘‘नहीं साहब, मैं कुरसी पर नहीं बैठूंगी. ऐसे ही ठीक हूं.’’ बीडीओ साहब ने लखिया का हाथ पकड़ कर कुरसी पर बैठाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मालूम नहीं है कि अब सामाजिक न्याय की सरकार चल रही है. अब केवल गरीब ही ‘कुरसी’ पर बैठेंगे. मेरी तरफ देखो न, मैं भी तुम्हारी तरह गरीब ही हूं.’’

कुरसी पर बैठी लखिया के चेहरे पर चमक थी. वह यह सोच रही थी कि आज उसे रुपए मिल जाएंगे. उधर बीडीओ साहब काम में उलझे होने का नाटक करते हुए तिरछी नजरों से लखिया का गठा हुआ बदन देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे.

तकरीबन एक घंटे बाद बीडीओ साहब बोले, ‘‘तुम्हारा सब काम हो गया है. बैंक से चैक भी आ गया है, लेकिन यहां का विधायक एक नंबर का घूसखोर है. वह कमीशन मांग रहा था. तुम चिंता मत करो. मैं कल तुम्हारे घर आऊंगा और वहीं पर अकेले में रुपए दे दूंगा.’’ लखिया थोड़ी नाउम्मीद तो जरूर हुई, फिर भी बोली, ‘‘ठीक है साहब, कल जरूर आइएगा.’’

इतना कह कर लखिया मुसकराते हुए बाहर निकल गई. आज लखिया ने अपने घर की अच्छी तरह से साफसफाई कर रखी थी. अपने टूटेफूटे कमरे को भी सलीके से सजा रखा था. वह सोच रही थी कि इतने बड़े हाकिम आज उस के घर आने वाले हैं, इसलिए चायनाश्ते का भी इंतजाम करना जरूरी है.

ठंड का मौसम था. लोग खेतों में काम कर रहे थे. चारों तरफ सन्नाटा था. बीडीओ साहब दोपहर ठीक 12 बजे लखिया के घर पहुंच गए. लखिया ने बड़े अदब से बीडीओ साहब को बैठाया. आज उस ने साफसुथरे कपड़े पहन रखे थे, जिस से वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

‘‘आप बैठिए साहब, मैं अभी चाय बना कर लाती हूं,’’ लखिया ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘अरे नहीं, चाय की कोई जरूरत नहीं है. मैं अभी खाना खा कर आ रहा हूं,’’ बीडीओ साहब ने कहा.

मना करने के बावजूद लखिया चाय बनाने अंदर चली गई. उधर लखिया को देखते ही बीडीओ साहब अपने होशोहवास खो बैठे थे. अब वे इसी ताक में थे कि कब लखिया को अपनी बांहों में समेट लें. तभी उन्होंने उठ कर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.

जल्दी ही लखिया चाय ले कर आ गई. लेकिन बीडीओ साहब ने चाय का प्याला ले कर मेज पर रख दिया और लखिया को अपनी बांहों में ऐसे जकड़ा कि लाख कोशिशों के बावजूद वह उन की पकड़ से छूट न सकी. बीडीओ साहब ने प्यार से उस के बाल सहलाते हुए कहा, ‘‘देख लखिया, अगर इनकार करेगी, तो बदनामी तेरी ही होगी. लोग यही कहेंगे कि लखिया ने विधवा होने का नाजायज फायदा उठाने के लिए बीडीओ साहब को फंसाया है. अगर चुप रही, तो तुझे रानी बना दूंगा.’’

लेकिन लखिया बिफर गई और बीडीओ साहब के चंगुल से छूटते हुए बोली, ‘‘तुम अपनेआप को समझते क्या हो? मैं 10 हजार रुपए में बिक जाऊंगी? इस से तो अच्छा है कि मैं भीख मांग कर कलुआ की विधवा कहलाना पसंद करूंगी, लेकिन रानी बन कर तुम्हारी रखैल नहीं बनूंगी.’’ लखिया के इस रूखे बरताव से बीडीओ साहब का सारा नशा काफूर हो गया. उन्होंने सोचा भी न था कि लखिया इतना हंगामा खड़ा करेगी. अब वे हाथ जोड़ कर लखिया से चुप होने की प्रार्थना करने लगे.

लखिया चिल्लाचिल्ला कर कहने लगी, ‘‘तुम जल्दी यहां से भाग जाओ, नहीं तो मैं शोर मचा कर पूरे गांव वालों को इकट्ठा कर लूंगी.’’ घबराए बीडीओ साहब ने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी.

नार्मल डिलीवरी चाहती हैं तो अपनाएं ये 5 टिप्स

एक लड़की का जीवन सीढ़ियों जैसा होता है वो एक ही जिंदगी में कई जिंदगियां जीती है पहले वो लड़की होती है अपने माता पिता की दुलारी. फिर शादी कर के ससुराल में जाती है तो वह बहु और बीवी कहलाती है लेकिन एक और पड़ाव आता है और वो है मां बनने का. इसमें वो औरत से मां तक का सफर तय करती है. यह उसके सामने सबसे बड़ा ख़ुशी का पल होता है. हालाकि यह 9  महीने का समय उसके लिये काफी कष्टदायी होता है लेकिन इसके बाद की खुशी के लिये वो शुक्रियाआदा करती है .और अगर उसका बच्चा नार्मल डिलीवरी से हो जाये तो यह उसके लिये और भी खुशी की बात होती है क्योंकि नार्मल डिलीवरी से वो खुद का और अपने बच्चे का ध्यान भी अच्छे से रख पाती है और न ही डिलीवरी के बाद कोई शारारिक कष्ट होता है.

लेकिन आज कल की हमारी दिनचर्या काफी भागदौड़ भरी होती है. ऐसे  बिजी वक्त में खुद को स्वस्थ्य रख पाना महिलाओं के लिए मुश्किल हो गया है और पहले की तरह नौर्मल डिलीवरी करना नामुमकिन… क्योंकि पूरी प्रेग्नेंसी में महिलाओं को सभी काम करने पड़ते हैं, जिस वजह से वो फिजिकली और मेंटली नौर्मल डिलीवरी नहीं कर पाती. जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिनको अपना कर नार्मल डिलीवरी की उम्मीद की जा सकती है.

तनाव से रहे दूर

सबसे पहले आप को अपनी लाइफ से तनाव को बिल्कुल दूर करना होगा. क्योंकि तनाव की वजह से प्रेगनेंसी में जटिलताएं आ सकती हैं. जिसका सबसे अधिक प्रभाव आप पर और   अंदर पल रहे बच्चे पर पड़ेगा. तो कोशिश करें कि आप परेशानी में भी खुश रहें. ऐसे में आप किताबें पढ़ें, दूसरों से बात करें और हमेशा अच्छा सोचें और जो काम आपको करना पसंद है उस काम में लगे.

व्यायाम करें

प्रेग्नेंसी के दौरान व्यायाम बहुत ज़रूरी है. क्योंकि इस दौरान शरीर के भारी वजन से आपको जौइंट्स में दर्द, अकड़न जैसी तकलीफ हो सकती है. इससे बचने के लिए किसी एक्सपर्ट के साथ व्यायाम करें. इनसे आपकी पेल्विक मसल्स और थाइज स्ट्रौंग बनेंगी, जिससे आपको लेबर पेन में दर्द कम होगा. ध्यान रहे बिना एक्सपर्ट के कोई भी एक्सरसाइज ना करें.

खान पान का रखें ध्यान

प्रेगनेंसी के वक्त खानपान का ध्यान अवश्य रखें क्योंकि आप ही का खाया हुआ बच्चे तक पहुंचता है यदि आप ज्यादा खाते हैं तो वो भी बच्चे के लिये समस्या बन सकता है और भूखा रहना भी.

पानी अधिक पिए

पानी हर किसी के लिए ज़रूरी है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान ये और भी ज़रूरी हो जाता है. इससे आपको लेबर के दौरान होने वाले दर्द को सहने की शक्ति मिलेगी. इसीलिए सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि ताजे फलों का जूस और एनर्जी ड्रिंक्स भी लेती रहें.

ज्यादा देर खड़े न रहे

अगर आप काम कर रहे हैं तो ज्यादा देर तक खड़े न रहे इससे आपके पैरो में दर्द होगा और बच्चे का प्रेशर भी नीचे की तरफ बढ़ेगा इसलिए थोड़ी थोड़ी देर में आराम करती रहें.

मेरी पति का दूसरी स्त्रियों से संबंध है, जिस कारण वह घर व बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी उम्र 50 वर्ष है, मेरे 3 बच्चे हैं. बच्चे पढ़ाई में काफी होशियार हैं. मेरे पति दूसरी स्त्रियों से संबंध रखने के कारण घर व बच्चों पर बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं. बच्चों की एकएक जरूरत के लिए मुझे अपने मम्मीपापा के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

बच्चों को पालना अकेले माता की जिम्मेदारी नहीं है. आप को तो बहुत पहले ही पति के इस रवैए के खिलाफ कदम उठाना लाहिए था, क्योंकि आप के पति जिस राह पर चल रहे हैं, वहां से वापस आएं या न आएं, कुछ कह नहीं सकते. इसलिए आप उन का सुधरने तक का इंतजार नहीं कर सकती.

बच्चे इतने बड़े तो हैं कि वह अपने पिता का रवैया देख रहे होंगे. वे भी आप के पक्ष में होंगे. आप को हर हालत में कानूनी कार्यवाही कर पति से गुजारे भत्ते की मांग करनी चाहिए. यह आप का कानूनन अधिकार है, आप पति को ऐसे बेलगाम नहीं छोड़ सकती है, वह अय्याशी करते रहें और आप तीन बच्चों को पालने में पिसती रहें.

फिलहाल, तब तक आप कुछ कामधंधा करने की कोशिश कर सकती हैं, आत्मनिर्भर बनना आप के लिए जरूरी है.

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गलतफहमियां जब रिश्तों में जगह बनाने लगें

राधा और अनुज की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. राधा को अपनी नौकरी की वजह से अकसर बाहर जाना पड़ता है. वीकैंड पर जब वह घर पर होती है, तो कुछ वक्त अकेले, पढ़ते हुए या आराम करते हुए गुजारना चाहती है या फिर घर के छोटेमोटे काम करते हुए समय बीत जाता है.

अनुज जो हफ्ते में 5 दिन उसे मिस करता है, चाहता है कि वह उन 2 दिनों में अधिकतम समय उस के साथ बिताए, दोनों साथ आउटिंग पर जाएं, मगर राधा जो ट्रैवलिंग करतेकरते थक गई होती है, बाहर जाने के नाम से ही भड़क उठती है. यहां तक कि फिल्म देखने या रेस्तरां में खाना खाने जाना भी उसे नागवार गुजरता है.

अनुज को राधा का यह व्यवहार धीरेधीरे चुभने लगा. उसे लगने लगा कि राधा उसे अवौइड कर रही है. वह शायद उस का साथ पसंद नहीं करती है जबकि राधा महसूस करने लगी थी कि अनुज को न तो उस की परवाह है और न ही उस की इच्छाओं की. वह बस अपनी नीड्स को उस पर थोपना चाहता है. इस तरह अपनीअपनी तरह से साथी के बारे में अनुमान लगाने से दोनों के बीच गलतफहमी की दीवार खड़ी होती गई.

अनेक विवाह छोटीछोटी गलतफहमियों को न सुलझाए जाने के कारण टूट जाते हैं. छोटी सी गलतफहमी को बड़ा रूप लेते देर नहीं लगती, इसलिए उसे नजरअंदाज न करें. गलतफहमी जहाज में हुए एक छोटे से छेद की तरह होती है. अगर उसे भरा न जाए तो रिश्ते के डूबने में देर नहीं लगती.

भावनाओं को समझ न पाना

गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है और जब वह आप के रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है तो कभी फूल लगने वाला रिश्ता आप को खरोंचें देने लगता है. जो युगल कभी एकदूसरे पर जान छिड़कता था, एकदूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, उसे जब गलतफहमी का नाग डसता है तो रिश्ते की मधुरता और प्यार को नफरत में बदलते देर नहीं लगती. फिर राहें अलगअलग चुनने के सिवा उन के पास कोई विकल्प नहीं बचता.

आमतौर पर गलतफहमी का अर्थ होता है ऐसी स्थिति जब कोई व्यक्ति दूसरे की बात या भावनाओं को समझने में असमर्थ होता है और जब गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं, तो वे झगड़े का आकार ले लेती हैं, जिस का अंत कभीकभी बहुत भयावह होता है.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट अंजना गौड़ के अनुसार, ‘‘साथी को मेरी परवाह नहीं है या वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, इस तरह की गलतफहमी होना युगल के बीच एक आम बात है. अपने पार्टनर की प्राथमिकताओं और सोच को गलत समझना बहुत आसान है, विशेषकर जब बहुत जल्दी वे नाराज या उदास हो जाते हों और कम्यूनिकेट करने के बारे में केवल सोचते ही रह जाते हों.

‘‘असली दिक्कत यह है कि अपनी तरह से साथी की बात का मतलब निकालना या अपनी बात कहने में ईगो का आड़े आना, धीरेधीरे फूलताफलता रहता है और फिर इतना बड़ा हो जाता है कि गलतफहमी झगड़े का रूप ले लेती है.’’

वजहें क्या हैं

  • स्वार्थी होना: पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे पर विश्वास करने के लिए जरूरी होता है कि वे एकदूसरे से कुछ न छिपाएं और हर तरह से एकदूसरे की मदद करें. जब आप के साथी को आप की जरूरत हो तो आप वहां मौजूद हों. गलतफहमी तब बीच में आ खड़ी होती है जब आप सैल्फ सैंटर्ड होते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है, तब आप का साथी कैसे आप पर विश्वास करेगा कि जरूरत के समय आप उस का साथ देंगे या उस की भावनाओं का मान रखेंगे.
  • मेरी परवाह नहीं: पति या पत्नी किसी को भी ऐसा महसूस हो सकता है कि उस के साथी को न तो उस की परवाह है और न ही वह उसे प्यार करता है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह लविंग और केयरिंग के आधार पर टिका होता है. जब साथी के अंदर इग्नोर किए जाने या गैरजरूरी होने की फीलिंग आने लगती है तो गलतफहमियों की ऊंचीऊंची दीवारें खड़ी होने लगती हैं.

जिम्मेदारियों को निभाने में त्रुटि होना: जब साथी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती है. ऐसे में तब मन में सवाल उठने स्वाभाविक होते हैं कि क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा खयाल नहीं है? क्या वह मजबूरन मेरे साथ रह रहा है? गलतफहमी बीच में न आए इस के लिए युगल को अपनीअपनी जिम्मेदारियां खुशीखुशी उठानी चाहिए.

वैवाहिक सलाहकार मानते हैं कि रिश्ता जिंदगी भर कायम रहे, इस के लिए 3 मुख्य जिम्मेदारियां अवश्य निभाएं-अपने साथी से प्यार करना, अपने पार्टनर पर गर्व करना और अपने रिश्ते को बचाना.

  • काम और कमिटमैंट: आजकल जब औरतों का कार्यक्षेत्र घर तक न रह कर विस्तृत हो गया है और वे हाउसवाइफ की परिधि से निकल आई हैं, तो ऐसे में पति के लिए आवश्यक है कि वह उस के काम और कमिटमैंट को समझे और कद्र करे. बदली हुई परिस्थितियों में पत्नी को पूरा सहयोग दे. रिश्ते में आए इस बदलाव को हैंडल करना पति के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यह बात आज के समय में गलतफहमी की सब से बड़ी वजह बनती जा रही है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे के काम की कमिटमैंट के बारे में डिस्कस कर उस के अनुसार खुद को ढालना होगा.
  • धोखा: यह सब से आम वजह है. यह तब पैदा होती है जब एक साथी यह मानने लगता है कि उस के साथी का किसी और से संबंध है. ऐसा वह बिना किसी ठोस आधार के भी मान लेता है. हो सकता है कि यह सच भी हो, लेकिन अगर इसे ठीक से संभाला न जाए तो निश्चित तौर पर यह विवाह के टूटने का कारण बन सकता है. अत: आप को जब भी महसूस हो कि आप का साथी किसी उलझन में है और आप को शक भरी नजरों से देख रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं.
  • दूसरों का हस्तक्षेप: जब दूसरे लोग चाहे वे आप के ही परिवार के सदस्य हों या मित्र अथवा रिश्तेदार आप की जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो गलतफहमियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे लोगों को युगल के बीत झगड़ा करा कर संतोष मिलता है और उन का मतलब पूरा होता है. यह तो सर्वविदित है कि आपसी फूट का फायदा तीसरा व्यक्ति उठाता है. पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितना ही मधुर क्यों न हो, उस में कितना ही प्यार क्यों न हो, पर असहमति या झगड़े तो फिर भी होते हैं और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. जब ऐसा हो तो किसी तीसरे को बीच में डालने के बजाय स्वयं उन मुद्दों को सुलझाएं जो आप को परेशान कर रहे हों.
  • सैक्स को प्राथमिकता दें: सैक्स संबंध शादीशुदा जिंदगी में गलतफहमी की सब से अहम वजह है. पतिपत्नी दोनों ही चाहते हैं कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय करें. जब आप दूरियां बनाने लगते हैं, तो शक और गलतफहमी दोनों ही रिश्ते को खोखला करने लगती हैं. आप का साथी आप से खुश नहीं है या आप से दूर रहना पसंद करता है, तो यह रिश्ते में आई सब से बड़ी गलतफहमी बन सकती है.

क्या होगा जब बहू पिए सिगरेट और शराब?

सिगरेट, शराब, हुक्का, बीड़ी आदि नशे पुरुषों के व्यसन माने जाते हैं. घर, औफिस या दूसरी सार्वजनिक जगहों पर कोई पुरुष धूम्रपान करता दिखे या शादी, पार्टी में शराब का सेवन करे तो भी कोई बड़ी बात नहीं होती. लेकिन अगर यही काम एक युवती करे तो लोगों की सवालिया नजरें उस की ओर उठ जाती हैं. वे उस पर लूजकैरेक्टर का टैग तक लगा देते हैं.

अगर सिगरेटशराब पीने वाली युवती कहीं बाहर नजर आए तो लोग आजकल के बुरे जमाने और उस की परवरिश को कोस कर आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन तब क्या होगा जब ऐसी ही कोई युवती आप के घर में बहू बन कर आ जाए? यह कल्पना करते ही खिसक गई न पैरों तले की जमीन.

सामाजिक मर्यादाओं को अपने कंधों पर ढो कर चलने वाले मध्यवर्गीय परिवार के लिए यह बहुत बड़ा आघात साबित होगा. खासकर घर की पुरानी पीढ़ी के लिए. बडे़ घरों में बहुत सी बातें छिपी रहती हैं, क्योंकि सभी अपने कामों में व्यस्त रहते हैं.

सविता एक सामान्य गृहिणी थी. उस का जीवन परिवार और बच्चों की देखरेख में ही समर्पित था. जब बेटे के विवाह की बारी आई तो उस की आंखों में एक ऐसी बहू के सपने थे जो संस्कारी व परिवार का खयाल रखने वाली हो. साथ ही पढ़ीलिखी भी हो जो उन के बेटे के स्टेटस को मैच करे. ऐसी ही एक लड़की देख उन्होंने बेटे की शादी तय कर दी. बेटे को भी लड़की पसंद थी.

शादी के हफ्तेभर पहले उत्सुकतावश सविता की एक सहेली ने होने वाली बहू का फेसबुक प्रोफाइल चैक कर लिया. उस पर उस के दर्जनों ऐसे फोटो थे जिन में वह पब, डिस्को में दोस्तों के साथ हाथों में जाम और सिगरेट लिए पार्टी कर रही थी. सहेली ने सविता को फोन कर सारी जानकारी देते हुए तंज कसा, ‘‘बड़ी मौडर्न बहू पसंद की है तुम ने सविता. खूब जमेगी जब मिल बैठेंगी दो दीवानी.’’

सविता की यह बात सुन कर ऐसी हालत हो गई कि काटो तो खून नहीं. क्या करे, क्या न करे, कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे. उस ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. शादी तोड़ने पर उतारू हो गई. ‘आजकल यह सब तो चलता ही है. इस में क्या बड़ी बात है,’ कहते हुए बेटा शादी तोड़ने के लिए तैयार नहीं था.

मां के कड़ा विरोध के बावजूद लड़के की जिद पर शादी हो गई. अब जरा सोचिए, जिस सासबहू के रिश्ते में पहले से ही इतनी नकारात्मकता आ गई हो, उन की गाड़ी आगे कैसे चलती. सविता ने सिगरेटशराब के सेवन को बहू के चरित्र से जोड़ लिया था. उस की नजरों में वह कैरेक्टरलैस हो गई थी. वह उस पर बातबात पर ताने कसती, हर काम में कमियां निकालती. परिणाम यह हुआ कि उस के इस व्यवहार के चलते बेटा और बहू उस से अलग हो गए. बहू ने तो घर आना भी छोड़ दिया.

रवनीत कौर की बिजनैस फैमिली थी. घर में बेटे की शादी के बाद पहली कौकटेल पार्टी चल रही थी, जिस में पुरुष ड्राइंगरूम में बैठ आराम से सिगरेटशराब का सेवन कर रहे थे. बेटे के दोस्तों ने उन की नईनवेली बहू को भी ड्रिंक औफर की. बहू तुरंत तैयार हो गई. उस ने बेटे और उस के दोस्तों के साथ बैठ कर ड्रिंक ली और बातचीत में सम्मिलित हो गई.

रवनीत को यह बात बड़ी अखरी, क्योंकि उन के परिवार में महिलाएं ड्रिंक नहीं करती थीं. जब बाद में उन्होंने बहू को समझाने की कोशिश की तो उस ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘जब आप के पति और बेटे ड्रिंक कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. अगर ऐसा करना गलत है तो उन के लिए भी यह गलत होना चाहिए.’’ इस पर रवनीत कुछ बोल न पाई.

यहां बात सिगरेटशराब के सेवन से होने वाले नुकसान की नहीं हो रही है, न ही इन व्यसनों की सामाजिक स्वीकार्यता की हिमायत की जा रही है. बात इतनी सी है कि आप के परिवार में एक सिगरेट व शराब पीने वाली बहू आ गई है. यह बात आप को बुरी तरह डिस्टर्ब कर रही है, क्योंकि यह आप की सोच और घर के रवैए के विरुद्ध है. वह बहू आप के गले की ऐसी हड्डी बन गई है जो न निगलते बन रही है न ही उगलते. तो ऐसे में क्या किया जाए? कुछ सुझाव हैं जो ऐसी स्थिति में मदद करेंगे :

स्थिति को स्वीकारें

मन के विरुद्ध ऐसी बड़ी घटना होने पर हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते. मन में फालतू के विचार आते रहते हैं, जैसे ऐसा कैसे हो गया, मेरे साथ ही क्यों, काश, ऐसा न होता आदि. तो ऐसे विचारों को इस एक मजबूत विचार से समाप्त करें, ‘जो हो गया वह मेरे सामने है. मैं इसे बदल नहीं सकती, इसलिए मैं इसे पूरी तरह स्वीकार करती हूं.’

रिश्ते बनाना और तोड़ना बच्चों का खेल नहीं है. सो, रिश्ते को तोड़ने की न तो मन में दुर्भावना रखें न ही कोई कोशिश करें. ‘वह जो है, जैसी है, मेरी प्यारी बहू है,’ इस शुभभावना के साथ उसे प्यार से स्वीकार कर आगे बढ़ें.

बहू के शूज में जा कर देखें

ऐसी स्थिति में ज्यादातर महिलाएं अपने जमाने का रोना ले कर बैठ जाती हैं, ‘हमारे समय में तो ऐसा नहीं हो सकता था, मैं ऐसा करती तो मेरी सास मेरी टांगें तोड़ कर रख देती, तेरे पापा मुझे छोड़ देते,’ ऐसा सोचने के बजाय इस बात को स्वीकारें कि यह आप का जमाना नहीं है.

आज हर क्षेत्र में युवतियों को युवकों के जितना ऐक्सपोजर मिल रहा है. होस्टल लाइफ, फ्रैंड्स संग आउटिंग, पार्टीज, पब, डिस्कोज ऐसी सभी जगहों पर युवतियां जाने लगी हैं, जहां खुलेआम सिगरेट व शराब का सेवन किया जाता है. वहां पर इन व्यसनों को ग्लैमराइज कर के परोसा जाता है. ऐसे में जितनी सरलता से एक युवक इन आदतों में फंस सकता है वैसे ही युवती भी. आप खुद को उस की जगह पर रख कर देखें.

चरित्र से न जोड़ें

बहू के एक व्यसन के लिए उस के पूरे चरित्र पर उंगली न उठाएं. खास कर उस के परिवार या परवरिश पर दोषारोपण न करें. कोई भी बहू यह बरदाश्त नहीं करेगी. यह कदम आप के घर की शांति भंग करेगा. हो सकता है वह दोस्तों के कहने पर, दिखावे में आ कर या आजकल की स्टै्रसफुल लाइफ को हैंडल करने के लिए ऐसे व्यसनों में फंसी हो. इस का अर्थ यह नहीं कि उस का पूरा चरित्र ही दूषित है. आप का प्यार और आत्मीयता उसे सुधार भी सकती है. सो, सुधारने की कोशिश करें, बिगाड़ने की नहीं.

बेटे को भी रोकें

रीना मेहरा जब अपने बहूबेटे के पास यूएस गई तो उस ने देखा कि वे दोनों सिगरेट और शराब का ऐसे सेवन करते थे जैसे लोग चायकौफी का करते हैं. यह बात उन्हें बहुत नागवार गुजरी. खास कर इसलिए कि वे दोनों बेबी प्लान कर रहे थे. रीना ने आराम से बैठ कर दोनों को इन बुरी आदतों के बारे में समझाया. बेटे को डांटते हुए यह भी कहा, ‘‘जब तुम पैदा होने वाले थे तो तुम्हारी भलाई के लिए तुम्हारे पापा ने इन बुरी आदतों से तौबा कर ली थी. तो क्या तुम अपने बच्चे के लिए ऐसा नहीं कर सकते.’’

यदि आप एकजैसे व्यसन के लिए बेटे को खुली छूट देंगी और बहू को रोकने की कोशिश करेंगी तो वह नहीं समझेगी. आजकल बराबरी का जमाना है. वह आप को रवनीत कौर की बहू जैसा उलटा जवाब सुना देगी. हां, यदि आप उस से ज्यादा बेटे को समझाएंगी तो बेटे के साथसाथ बहू भी समझ जाएगी. रोकटोक में उसे सासगीरी नहीं, बल्कि मां की फिक्र नजर आएगी.

गुणों पर फोकस करें

सविता को बहू के सिगरेट व शराब पीने की आदतों का पता चलने से पहले उस में बहुत गुण नजर आते थे. मगर उस की एक कमी सारे गुणों पर भारी पड़ गई. जरा सोचें, एक गुण या एक कमी इंसान के व्यक्तित्व का छोटा सा हिस्सा होती है, पूरा व्यक्तित्व नहीं. अपने अंदर झांक कर देखें, आप को कोई कमी, कोई व्यसन जरूर मिल जाएगा. कमी के बजाय उन गुणों पर फोकस करें जिन के लिए आप ने अपनी बहू को पसंद किया था. उसे सिर्फ गुणों के साथ ही नहीं, बल्कि कमियों के साथ भी पूरी तरह से अपनाएं. कमियां तो भविष्य में दूर भी हो सकती हैं मगर रिश्ता एक बार बिखर गया, तो दोबारा नहीं जुड़ता.

कड़वाहट से दूरी भली

आप को यह समझना जरूरी है कि आप की बहू का एक अलग व्यक्तित्व है, आप की मिल्कीयत नहीं. उस की सोच, व्यवहार, आदतें सब अपनी हैं. उस का अच्छाबुरा भी उस के साथ है. आप उसे समझा सकती हैं किंतु अपनी बात उस पर थोप नहीं सकतीं. उसे क्या करना है, क्या नहीं, यह निर्णय उसी पर छोड़ें. बहूबेटे की खुशी में अपनी खुशी देखें.

लेकिन फिर भी यदि आप उस की इस आदत को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं और इस बात पर घर में लड़ाईझगड़े हो रहे हैं तो बेहतर है कि अलग हो जाएं. एक छत के नीचे रह कर रोजरोज की चिकचिक से बेहतर है आप बहूबेटे को कहीं अलग शिफ्ट कर दें या खुद हो जाएं ताकि दूर रह कर रिश्तों की गरिमा बनी रहे. यदि यह कदम आप खुद नहीं उठाएंगी तो किसी न किसी दिन समय ऐसा करा देगा और तब रिश्तों में पनप चुकी कड़वाहट को आप दूर नहीं कर पाएंगी.

दंश: सोना भाभी को कौन-सी बीमारी थी?

सोना भाभी वैसे तो कविता की भाभी थीं. कविता, जो स्कूल में मेरी सहपाठिनी थी और हमारे घर भी एक ही गली में थे. कविता के साथ मेरा दिनरात का उठनाबैठना ही नहीं उस घर से मेरा पारिवारिक संबंध भी रहा था. शिवेन भैया दोनों परिवारों में हम सब भाईबहनों में बड़े थे. जब सोना भाभी ब्याह कर आईं तो मुझे लगा ही नहीं कि वह मेरी अपनी सगी भाभी नहीं थीं.

सोना भाभी का नाम उषा था. उन का पुकारने का नाम भी सोना नहीं था, न हमारे घर बहू का नाम बदलने की कोई प्रथा ही थी पर चूंकि भाभी का रंग सोने जैसा था अत: हम सभी भाईबहन यों ही उन्हें सोना भाभी बुलाने लगे थे. बस, वह हमारे लिए उषा नहीं सोना भाभी ही बनी रहीं. सुंदर नाकनक्श, बड़ीबड़ी भावपूर्ण आंखें, मधुर गायन और सब से बढ़ कर उन का अपनत्व से भरा व्यवहार था. उन के हाथ का बना भोजन स्वाद से भरा होता था और उसे खिलाने की जो चिंता उन के चेहरे पर झलकती थी उसे देख कर हम उन की ओर बेहद आकृष्ट होते थे.

शिवेन भैया अभी इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे कि उन्हें मातापिता ही नहीं दादादादी के अनुरोध से विवाह बंधन में बंधना पड़ा. पढ़ाई पूरी कर के वह दिल्ली चले गए फिर वहीं रहे. हम लोग भी अपनेअपने विवाह के बाद अलगअलग शहरों में रहने लगे. कभी किसी खास आयोजन पर मिलते तो सोना भाभी का प्यार हमें स्नेह से सराबोर कर देता. उन का स्नेहिक आतिथ्य हमेें भावविभोर कर देता.

आखिरी बार जब सोना भाभी से मिलना हुआ उस समय उन्होंने सलवार सूट पहना हुआ था. वह मेरे सामने आने में झिझकीं. मैं ड्राइंगरूम में बैठने वाली तो थी नहीं, भाग कर दूसरे कमरे में पहुंची तो वह साड़ी पहनने जा रही थीं.

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘यह क्या भाभी, आज तो आप बड़ी सुंदर लग रही हो, खासकर इस सलवार सूट में.’’

‘‘नहीं,’’ उन्होंने जोर देते हुए कहा.

मैं ने उन्हें शह दी, ‘‘भाभी आप की कमसिन छरहरी काया पर यह सलवार सूट तो खूब फब रहा है.’’

‘‘नहीं, माया, मुझे संकोच लगता है. बस, 2 मिनट में.’’

‘‘पर क्यों? आजकल तो हर किसी ने सलवार सूट अपने पहनावे में शामिल कर लिया है. यहां तक कि उन बूढ़ी औरतों ने भी जिन्होंने पहले कभी सलवार सूट पहनने के बारे में सोचा तक नहीं था… सुविधाजनक होता है न भाभी, फिर रखरखाव में भी साड़ी से आसान है.’’

‘‘यह बात नहीं है, माया. मुझे कमर में दर्द रहता है तो सब ने कहा कि सलवार सूट पहना करूं ताकि उस से कमर अच्छी तरह ढंकी रहेगी तो वह हिस्सा गरम रहेगा.’’

‘‘हां, भाभी, सो तो है,’’ मैं ने हामी भरी पर मन में सोचा कि सब की देखादेखी उन्हें भी शौक हुआ होगा तो कमर दर्द का एक बहाना गढ़ लिया है…

सोना भाभी ने इस हंसीमजाक के  बीच अपनी जादुई उंगलियों से खूब स्वादिष्ठ भोजन बनाया. इस बीच कई बार मोबाइल फोन की घंटी बजी और भाभी मोबाइल से बात करती रहीं. कोई खास बात न थी. हां, शिवेन भैया आ गए थे. उन्होंने हंसीहंसी में कहा कि तुम्हारी भाभी को उठने में देर लगती थी, फोन बजता रहता था और कई बार तो बजतेबजते कट भी जाता था, इसी से इन के लिए मोबाइल लेना पड़ा.

साल भर बाद ही सुना कि सोना भाभी नहीं रहीं. उन्हें कैंसर हो गया था. सोना भाभी के साथ जीवन की कई मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई थीं इसलिए दुख भी बहुत हुआ. लगभग 5 सालों के बाद कविता से मिली तब भी हम दोनों की बातों में सोना भाभी ही केंद्रित थीं. बातों के बीच अचानक मुझे लगा कि कविता कुछ कहतेकहते चुप हो गई थी. मैं ने कविता से पूछ ही लिया, ‘‘कविता, मुझे ऐसा लगता है कि तुम कुछ कहतेकहते चुप हो जाती हो…क्या बात है?’’

‘‘हां, माया, मैं अपने मन की बात तुम्हें बताना चाहती हूं पर कुछ सोच कर झिझकती भी हूं. बात यह है…

‘‘एक दिन सोना भाभी से बातोंबातों में पता लगा कि उन्हें प्राय: रक्तस्राव होता रहता है. भाभी बताने लगीं कि पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. 50 से 5 साल ऊपर की हो रही हूं्…

‘‘भाभी पहले से भी सुंदर, कोमल लग रही थीं. बालों में एक भी रजत तार नहीं था. वह भी बिना किसी डाई के. वह इतनी अच्छी लग रही थीं कि मेरे मुंह से निकल गया, ‘भाभी, आप चिरयौवना हैं न इसीलिए. देखिए, आप का रंग पहले के मुकाबले और भी निखरानिखरा लग रहा है और चेहरा पहले से भी कोमल, सुंदर. आप बेकार में चिंता क्यों कर रही हैं.

‘‘यही कथन, यही सोच मेरे मन में आज भी कांटा सा चुभता रहता है. क्यों नहीं उस समय उन पर जोर दिया था कि आप के साथ जो कुछ हो रहा है वह ठीक नहीं है. आप डाक्टर से परामर्श लें. क्यों झूठा परिहास कर बैठी थी?’’

मुझे भी उन के कमर दर्द की शिकायत याद आई. मैं ने भी तो उन की बातों को गंभीरता से नहीं लिया था. मन में सोच कर मैं खामोश हो गई.

भाभी और भैया दोनों ही अस्पताल जाने से बहुत डरते थे या यों कहें कि कतराते थे. शायद कुछ कटु अनुभव हों. वहां बातबात में लाइन लगा कर खड़े रहना, नर्सो की डांटडपट, बेरहमी से सूई घुसेड़ना, अटेंडेंट की तीखी उपहास करती सी नजर, डाक्टरों का शुष्क व्यवहार आदि से बचना चाहते थे.

भाभी को सब से बढ़ कर डर था कि कैंसर बता दिया तो उस के कष्टदायक उपचार की पीड़ा को झेलना पड़ेगा. उन्हें मीठी गोली में बहुत विश्वास था. वह होम्योपैथिक दवा ले रही थीं.

‘‘माया, बहुत सी महिलाएं अपने दर्द का बखान करने लगती हैं तो उन की बातों की लड़ी टूटने में ही नहीं आती,’’ कविता बोली, ‘‘उन के बयान के आगे तो अपने को हो रहा भीषण दर्द भी बौना लगने लगता है. सोना भाभी को भी मैं ने ऐसा ही समझ लिया. उन से हंसी में कही बात आज भी मेरे मन को सालती है कि कहीं उन्होंने मेरे मुंह से अपनी काया को स्वस्थ कहे जाने को सच ही तो नहीं मान लिया था और गर्भाशय के अपने कैंसर के निदान में देर कर दी हो.

‘‘माया, लगता यही है कि उन्होंने इसीलिए अपने पर ध्यान नहीं दिया और इसे ही सच मान लिया कि रक्तस्राव होते रहना कोई अनहोनी बात नहीं है. सुनते हैं कि हारमोन वगैरह के इंजेक्शन से यौवन लौटाया जा रहा है पर भाभी के साथ ऐसा क्यों हुआ? मैं यहीं पर अपने को अपराधी मानती हूं, यह मैं किसी से बता न सकी पर तुम से बता रही हूं. भाभी मेरी बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करती थीं. 3-4 महीने भी नहीं बीते थे जब रोग पूरे शरीर में फैल गया. सोने सी काया स्याह होने लगी. अस्पताल के चक्कर लगने लगे, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’’

मुझे भी याद आने लगा जब मैं अंतिम बार उन से मिली थी. मैं ने भी उन्हें कहां गंभीरता से लिया था.

‘‘माया, तुम कहानियां लिखती हो न,’’ कविता बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि सोना भाभी के कष्ट की, हमारे दुख की, मेरे अपने मन की पीड़ा तुम लिख दो ताकि जो भी महिला कहानी पढ़े, वह अपने पर ध्यान दे और ऐसा कुछ हो तो शीघ्र ही निदान करा ले.’’

कविता बिलख रही थी. मेरी आंखें भी बरस रही थीं. उसे सांत्वना देने वाले शब्द मेरे पास नहीं थे. वह मेरी भी तो बहुत अपनी थी. कविता का अनुरोध नहीं टाल सकी हूं सो उस की व्यथाकथा लिख रही हूं.

ऊंच नीच की दीवार- भवानीराम कब सोच में पड़ गए?

‘‘बाबूजी…’’

‘‘क्या बात है सुभाष?’’

‘‘दिनेश उस दलित लड़की से शादी कर रहा है,’’ सुभाष ने धीरे से कहा.

‘‘क्या कहा, दिनेश उसी दलित लड़की से शादी कर रहा है…’’ पिता भवानीराम गुस्से से आगबबूला हो उठे.

वे आगे बोले, ‘‘हमारे समाज में क्या लड़कियों की कमी है, जो वह एक दलित लड़की से शादी करने पर तुला है? अब मेरी समझ में आया कि उसे नौकरी वाली लड़की क्यों चाहिए थी.’’

‘‘यह भी सुना है कि वह दलित परिवार बहुत पैसे वाला है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम कुछ सोच कर बोले, ‘‘पैसे वाला हुआ तो क्या हुआ? क्या दिनेश उस के पैसे से शादी कर रहा है? कौन है वह लड़की?’’

‘‘उसी के स्कूल की कोई सरिता है?’’ सुभाष ने जवाब दिया.

‘‘देखो सुभाष, तुम अपने छोटे भाई दिनेश को समझाओ.’’

‘‘बाबूजी, मैं तो समझा चुका हूं, मगर वह तो उसी के साथ शादी करने का मन बना चुका है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम सोच में पड़ गए. वे दिनेश को शादी करने से कैसे रोकें? चूंकि उन के लिए यह जाति की लड़ाई है और इस लड़ाई में उन का अहं आड़े आ रहा है.

भवानीराम पिछड़े तबके के हैं और दिनेश जिस लड़की से शादी करने जा रहा है, वह दलित है, फिर चाहे वह कितनी ही अमीर क्यों न हो, मगर ऊंचनीच की यह दीवार अब भी समाज में है. सरकार द्वारा भले ही यह दीवार खत्म हो चुकी है, मगर फिर भी लोगों के दिलों में यह दीवार बनी हुई है.

दिनेश भवानीराम का छोटा बेटा है. वह सरकारी स्कूल में टीचर है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से उस के लिए लड़की की तलाश जारी थी. उस के लिए कई लड़कियां देखीं, मगर वह हर लड़की को खारिज करता रहा.

तब एक दिन भवानीराम ने चिल्ला कर उस से पूछा था, ‘तुझे कैसी लड़की चाहिए?’

‘मुझे नौकरी करने वाली लड़की चाहिए,’ दिनेश ने उस दिन जवाब दिया था. भवानीराम ने इस शर्त को सुन कर अपने हथियार डाल दिए थे. वे कुछ नहीं बोले थे.

जिस स्कूल में दिनेश है, वहीं पर सरिता नाम की लड़की भी काम करती है. सरिता जिस दिन इस स्कूल में आई थी, उसी दिन दिनेश से उस की आंखें चार हुई थीं. सरिता की नौकरी रिजर्व कोटे के तहत लगी थी.

सरिता उज्जैन की रहने वाली है. वहां उस के पिता का बहुत बड़ा जूतों का कारोबार है. इस के अलावा मैदा की फैक्टरी भी है. उन का लाखों रुपयों का कारोबार है.

फिर भी सरिता सरकारी नौकरी करने क्यों आई? इस ‘क्यों’ का जवाब स्टाफ के किसी शख्स ने नहीं पूछा.

सरिता को अपने पिता की जायदाद पर बहुत घमंड था. उस का रहनसहन दलित होते हुए भी ऊंचे तबके जैसा था. वह अपने स्टाफ में पिता के कारोबार की तारीफ दिल खोल कर किया करती थी. वह हरदम यह बताने की कोशिश करती थी कि नौकरी उस ने अपनी मरजी से की है. पिता तो नौकरी कराने के पक्ष में नहीं थे, मगर उस ने पिता की इच्छा के खिलाफ आवेदन भर कर यह नौकरी हासिल की.

स्टाफ में अगर कोई सरिता के पास आया, तो वह दिनेश था. ज्यादातर समय वे स्कूल में ही रहा करते थे. पहले उन में दोस्ती हुई, फिर वे एकदूसरे के ज्यादा पास आए. जब भी खाली पीरियड होता, उस समय वे दोनों स्टाफरूम में बैठ कर बातें करते रहते.

शुरूशुरू में तो वे दोस्त की तरह रहे, मगर उन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला. स्टाफरूम के अलावा वे बगीचे और रैस्टोरैंट में

भी मिलने लगे, भविष्य की योजनाएं बनाने लगे.

ऐसे ही रोमांस करते 2 साल गुजर गए. उन्होंने फैसला कर लिया कि अब वे शादी करेंगे, इसलिए सरिता ने पूछा था, ‘हम कब शादी करेंगे?’

‘तुम अपने पिताजी को मना लो, मैं अपने पिताजी को,’ दिनेश ने जवाब दिया.

‘मेरे पिताजी ने तो अपने समाज में लड़के देख लिए हैं और उन्होंने कहा भी है कि आ कर लड़का पसंद कर लो. मैं ने मना कर दिया कि मैं अपने ही स्टाफ में दिनेश से शादी करूंगी,’ सरिता बोली.

‘फिर पिताजी ने क्या कहा?’ दिनेश ने पूछा.

‘उन्होंने तो हां कर दी…’ सरिता ने कहा, ‘तुम्हारे पिताजी क्या कहते हैं?’

‘पहले मैं बड़े भैया से बात करता हूं,’ दिनेश ने कहा.

‘हां कर लो, ताकि मेरे पिताजी शादी की तैयारी कर लें,’ कह कर सरिता ने गेंद दिनेश के पाले में फेंक दी. मगर दिनेश कैसे अपने पिता से कहे. उस ने अपने बड़े भाई सुभाष से बात करनी चाही, तो सुभाष बोला, ‘तुम समझते हो कि बाबूजी इस शादी के लिए तैयार हो जाएंगे?’

‘आप को तैयार करना पड़ेगा,’ दिनेश ने जोर देते हुए कहा.

‘अगर बाबूजी नहीं माने, तब तुम अपना इरादा बदल लोगे?’

‘नहीं भैया, इरादा तो नहीं बदलूंगा. अगर वे नहीं मानते हैं, तो शादी करने का दूसरा तरीका भी है,’ कह कर दिनेश ने अपने इरादे साफ कर दिए.

मगर सुभाष ने जब पिताजी से बात की, तब उन्होंने मना कर दिया. अब सवाल यह है कि कैसे शादी हो? सुभाष भी इस बात से परेशान है. एक तरफ पिता?हैं, तो दूसरी तरफ छोटा भाई. इन दोनों के बीच में उस का मरना तय है.

बाबूजी का अहं इस शादी में आड़े आ रहा है. इन दोनों के बीच में सुभाष पिस रहा?है. ऐसा भी नहीं है कि दोनों नाबालिग हैं. शादी के लिए कानून भी उन पर लागू नहीं होता है.

एक बार फिर बाबूजी का मन टटोलते हुए सुभाष ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप ने क्या सोचा है?’’

भवानीराम के चेहरे पर गुस्से की रेखा उभरी. कुछ पल तक वे कोई जवाब नहीं दे पाए, फिर बोले, ‘‘अब क्या सोचना है… जब उस ने उस दलित लड़की से शादी करने का मन बना ही लिया है, तब उस के साथ शादी करने की इजाजत देता हूं? मगर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कौन सी शर्त बाबूजी?’’ कहते समय सुभाष की आंखें थोड़ी चमक उठीं.

‘‘न तो मैं उस की शादी में जाऊंगा और न ही उस दलित लड़की को बहू स्वीकार करूंगा और मेरे जीतेजी वह इस घर में कदम नहीं रखेगी. आज से मैं दिनेश को आजाद करता हूं,’’ कह कर बाबूजी की सांस फूल गई.

बाबूजी की यह शर्त भविष्य में क्या गुल खिलाएगी, यह तो बाद में पता चलेगा, मगर यह बात तय है कि परिवार में दरार जरूर पैदा होगी.

जब से अम्मां गुजरी हैं, तब से बाबूजी बहुत टूट चुके हैं. अब कितना और टूटेंगे, यह भविष्य बताएगा. उन की इच्छा थी कि दिनेश शादी कर ले तो एक और बहू आ जाए, ताकि बड़ी बहू को काम से राहत मिले, मगर दिनेश ने दलित लड़की से शादी करने का फैसला कर बाबूजी के गणित को गड़बड़ा दिया है.

उन्होंने अपनी शर्त के साथ दिनेश को खुला छोड़ दिया. उन की यह शर्त कब तक चल पाएगी, यह नहीं कहा जा सकता है.

मगर शादी की सारी जिम्मेदारी सरिता के बाबूजी ने उठा ली.

पाकिस्तानी एक्टर Humayun Saeed ने किया सीमा हैदर का बचाव, जानें क्या कहा

Humayun Saeed : सीमा हैदर और सचिन मीना की प्रेम कहानी इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई हैं. इनकी दोस्ती, प्यार और शादी के ऊपर खूब हंगामा हो रहा है. दरअसल सीमा हैदर (Seema Haider) पाकिस्तानी है और वो अवैध तरीके से भारत आई, जिसको लेकर कई लोग उनका विरोध कर रहे हैं, तो वहीं कई उनके सपोर्ट में भी है. हालांकि अब उनके सपोर्ट में पाकिस्तानी एक्टर हुमायूं सईद भी आ गए हैं. आइए जानते हैं हुमायूं ने सीमा का बचाव करते हुए क्या कहा.

हुमायूं ने हंगामे को बताया बकवास

मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में हुमायूं सईद (Humayun Saeed) ने कहा, ‘‘भारत में मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं जिन्हें पहले प्यार हुआ और फिर उन्होंने शादी की यानी उनकी पत्नी पाकिस्तानी हैं.’’ इसके अलावा उन्होंने कहा कि, ‘‘पाकिस्तान में भी ऐसी कई ख्वातिन यानी महिलाएं हैं जिनके पति इंडियन हैं. वहीं कई सारे लोग हैं जिनके भारत में रिश्तेदार हैं. ये सब होता रहता है.’’

आगे हुमायूं (Humayun Saeed) ने ये भी बताया कि, ‘वो कराची में पैदा हुए है लेकिन उनके पिता का भारत से खास रिश्ता है और उनके पिता इंदौर में पैदा हुए.’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, ‘सोशल मीडिया का दौर है, किसी भी खबर को कोई भी व कैसे भी रंग दिया जा सकता है. किसी ने कुछ गलत बात कर दी तो वह बात उछल जाती है और जो गलत बात होती है वो ज्यादा दूर तक जाती है लेकिन जो पॉजिटिव बात होती है वो दब जाती है. मैं यही कहूंगा कि यह सब बकवास है.’

पाकिस्तान में एक्टर्स के बैन पर क्या कहा हुमायूं ने?

इसके अलावा हुमायूं ने भारत पाकिस्तान में एक्टर्स के बैन पर भी खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि, ‘‘दोनों देशो के आर्टिस्ट तो मिलकर काम करना चाहते हैं लेकिन राजनीति के कारण ऐसे हालात बन जाते हैं. इसलिए भले ही अगर वह साथ में काम ना कर पाएं लेकिन लोगों का एक दूसरे से मिलना जुलना बंद नहीं करना चाहिए.’’

आगे एक्टर (Humayun Saeed) ने कहा,’ अगर पाकिस्तान में इवेंट हो रहा हो तो सलमान खान, शाहरुख खान और अक्षय कुमार आएं मिले. उन्हें इज्जत मिले और अगर मैं वहा जाउं तो मुझे इज्जत मिले. इसके बावजूद भी अगर साथ में काम करना पॉसिबल नहीं है तो कोई बात नहीं. लेकिन किसी को भी एक दूसरे से मिलने से नहीं रोकना चाहिए. यह ज्यादा जरुरी है कि हम एक दूसरे के काम की तारीफ कर सकें.’

इस सीरिल में काम कर रहे हैं हुमायूं

आपको बता दें कि इन दिनों हुमायूं सईद (Humayun Saeed) अपने सीरियल ‘मेरे पास तुम हो’ को लेकर लाइमलाइट में बने हुए हैं. इस शो में वह दानिश अख्तर का किरदार निभा रहे हैं, जो लोगों को खूब पसंद आ रहा हैं और अब 2 अगस्त से ये सीरियल भारत में जिंदगी चैनल पर भी टेलिकास्ट हो जाएगा.

‘कुंडली भाग्य’ एक्ट्रेस Akankasha Juneja के साथ हुई हजारों की ठगी, लोगों को दी चेतावनी

Akankasha Juneja : टीवी एक्ट्रेस आकांक्षा जुनेजा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. सीरियल में अपनी दमदार एक्टिंग से उन्होंने लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई है. इन दिनों वह ‘कुंडली भाग्य’ सीरियल में निधि का रोल निभा रही हैं. हालांकि अब उनका नाम ऑनलाइन धोखाधड़ी (Cyber Fraud) का शिकार हुए लोगों की लिस्ट में जुड़ गया है. दरअसल, आकांक्षा (Akankasha Juneja) ने मीडिया को खूद जानकारी दी है कि उनके साथ हजारों की धोखाधड़ी हुई है.

एक्ट्रेस हुई साइबर धोखाधड़ी क शिकार

मीडिया से बात करते हुए एक्ट्रेस आकांक्षा जुनेजा (Akankasha Juneja) ने कहा, ”रोजाना हमें साइबर धोखाधड़ी के मामले सुनने को मिल ही जाते हैं. इसलिए हम अलर्ट रहने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन जालसाज आजकल इतने स्मार्ट हो गए हैं कि वह आपको बेवकूफ बनाने के लिए नए-नए तरीके ढूंढ ही लेते हैं.”

तीस हजार का हुआ नुकसान

आगे उन्होंने (Akankasha Juneja) कहा कि, ”एक बार जब मैं ऑनलाइन खाना ऑर्डर कर रही थी तो मुझे एक कंपनी के नंबर से कॉल आया. उस शख्स ने मुझसे ऑर्डर कंफर्म करने के लिए मेरे नंबर पर भेजे गए एक लिंक पर क्लिक करने के लिए कहा. हालांकि मैंने उनसे पूछा कि ऐसा करने की क्या जरूरत है तो उन्होंने बताया कि फूड कंफर्म करना और ऑर्डर करने का यह नया प्रोटोकॉल है. फिर जैसे ही मैंने लिंक पर क्लिक किया तो मेरे अकाउंट (Cyber Fraud) से हर 5-5 मिनट में 10 हजार रूपए अपने आप कटने लगे.”

आगे उन्होंने बताया, ”वह सोच ही रही थी कि यह क्या हो रहा है और क्यों? तभी मुझे याद आया कि मैंने उस लिंक पर क्लिक किया था. इसके बाद तुरंत मैंने अपने बैंक से कॉन्टेक्ट किया और उन्हें मुझे बताया कि मैं जल्दी से जल्दी अपना अकाउंट ब्लॉक कर दूं. हालांकि तब तक मैंने तीस हजार गंवा दिए थे. जो सही में मेरे लिए दुख था क्योंकि जब मेहनत की कमाई के पैसे बेवजह चले जाते हैं तो बहुत ज्यादा दुख होता हैं.”

आकांक्षा ने दी लोगों को चेतावनी

एक्ट्रेस (Akankasha Juneja) ने लोगों को ऑनलाइन धोखाधड़ी (Cyber Fraud) के बारे में सचेत करते हुए कहा, “लोगों को आजकल होने वाले ऑनलाइन स्कैम से सावधान रहना चाहिए. जालसाज ने मुझे जो लिंक भेजा था, उससे उन्हें मेरा फोन हैक करने में मदद मिली. इसलिए कभी भी किसी अनजान शख्स द्वारा भेजे गए लिंक पर क्लिक नहीं करें, क्योंकि आजकल हैकर्स इतने स्मार्ट हो गए हैं कि वह आसानी से आपको बेवकूफ बना सकते हैं.”

मणिपुर कांड से इंसानियत हुई शर्मसार

मणिपुर के हालात से सभी वाकिफ हैं. वहां पर कई महीनों से हिंसा हो रही है. लेकिन 19 जुलाई को जो वायरल वीडियो आया, जिस में 2 महिलाओं को नग्न कर के सड़क पर दौड़ाया गया, जिस से इंसानियत व महिलाओं की इज्जत तारतार हो गई, वह बेहद शर्मनाक है. मणिपुर हिंसा को ले कर तब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई जब तक वायरल वीडियो सब के सामने नहीं आ गई और इस पर हंगामा करना शुरू कर दिया. मणिपुर की इस घटना ने इंसानियत पर सवाल उठा दिया, वहशी दरिंदों के नए चेहरे दिखा दिए. मणिपुर में कुछ लोग इतने वहशी हो गए कि उन्होंने 2 लड़कियों को निर्वस्त्र किया, फिर उन्हें बिना कपड़ों के घुमाया.

प्रधानमंत्री अब तक चुप क्यों

मणिपुर में 3 मई से हिंसा हो रही है, वायरल वीडियो 4 मई का है. 78 दिन तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस मामले में कोई कमैंट नहीं आया जो उन्हें शक के दायरे में खड़ा करता है जबकि विपक्षी नेता लगातार इस मामले में पीएम के दखल की मांग कर रहे थे. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मोरचा जरूर संभाला लेकिन उन के दिल्ली वापस होते ही हिंसा फिर से शुरू हो गई. संसद के मानसून सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री मीडिया के सामने आए और वायरल वीडियो के मामले में 36 सैकंड में अपनी बात कह गए. इस दौरान उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम भी गिना दिया.

यह नाकाफी लगा तो केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी 22 जुलाई को नरेन्द्र मोदी की बात और आइडियोलौजी को विस्तार देते हुए यह भी जोड़ दिया कि बिहार और पश्चिम बंगाल सहित  जहांजहां भी गैर भाजपाई सरकारें हैं वहां भी ऐसा होता रहता है. भगवा गैंग की यह मानसिकता समझ से परे है जिसका सार यह है कि चूंकि वे गलत हैं इसलिए हमें भी गलती करने का हक है.

बातबात में भाजपा नेता अपने बचाव में बेदम दलीलें गढ़ते जनता को गुमराह करते रहते हैं मसलन यह कि क्या भ्रष्टाचार कांग्रेस के राज में नहीं था क्या, उनके राज में महंगाई नहीं थी. सार ये कि उनकी गलती हमारे लिए गलती करने का लाइसेंस हैसुधार करने का मौका नहीं जिसके लिए जनता ने उन्हें चुना है. इससे होता यह है कि बहुसंख्यक हिंदू भटकाव और गलतफहमी का शिकार होते अतीत में गोते लगाने लगते हैं. और यही भगवागैंग चाहती है कि सच से मुंह मोड़े रहो, हमे तो झूठ बोलने ही जनता ने अपार बहुमत से चुना है. ऐसे में यह सोचना बेमानी है कि सरकार का अपनी गलतियां सुधारने का कोई इरादा है.

अब सवाल यह उठता है कि मणिपुर जैसे जघन्य अपराध की किसी दूसरे अपराध से तुलना कैसे की जा सकती है? सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार कब तक दूसरे अपराधों की तुलना में अपने अपराधों को छिपाया जाएगा? जब भी कभी भाजपा पर सवाल उठते हैं तो भाजपावाले वह तुरंत कांग्रेस के 70 सालों का इतिहास बताने लगते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी इसलिए भी सवाल खड़ी करती है कि वे हर छोटे मसले पर ट्वीट करते हैं लेकिन मणिपुर 78 दिनों से जल रहा था, पीएम खामोश थे. वायरल वीडियो और मणिपुर हिंसा को देखते हुए पीएम मोदी ने चुप्पी तो तोड़ी, साथ ही 2 और प्रदेशों का नाम जोड़ कर उन्होंने यह जता दिया कि सिर्फ बीजेपी शासित राज्य में ऐसे कांड नहीं होते, जहां पर कांग्रेस की सरकारें हैं वहां भी ऐसी शर्मनाक हरकतें हो रही हैं. ऐसा कर के उन्होंने मणिपुर पर दिए अपने बयान का स्तर काफी नीचे गिरा दिया, लगा मानो वह मणिपुर घटना से दुखी कम, इसे बैलेंसवादी राजनीति की भेंट चढ़ा गए हों.

मणिपुर में जब से हिंसा हो रही है तब से प्रधानमंत्री ने एक भी शब्द मणिपुर पर नहीं कहा, न ही किसी ऐक्शन की बात कही. मानसून सत्र की शुरुआत में मीडिया से महाभारत के महात्मा विदुर की तरह सिर्फ इतना कहा कि, ‘मणिपुर की घटना से मेरा हृदय दुख से भरा है. यह घटना शर्मसार करने वाली है. पाप करने वाले कितने हैं, कौन हैं, यह अपनी जगह है, पर बेइज्जती पूरे देश की हो रही है. 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. नारी का सम्मान सर्वोपरि.’

संसद में क्यों मणिपुर पर बहस नहीं कर रहे पीएम

विपक्ष लगातार सवाल कर रहा है कि आखिर प्रधानमंत्री संसद में मणिपुर पर चर्चा क्यों नहीं कर रहे हैं. इस मुद्दे पर बात करना बाकी सभी मुद्दों से ज्यादा जरूरी है, क्योंकि बाकी सभी मुद्दों की तुलना में यह बहुत ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं, जबकि मणिपुर पर नियम के तहत चर्चा चाहता है विपक्ष. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने मणिपुर सीएम पर हमला बोला, कहा, ‘अपने बयान के बाद भला सीएम की कुरसी पर कैसे बैठे हैं मुख्यमंत्री.’ देखा जाए तो बात सही भी है.इतने दिनों से मणिपुर जल रहा लेकिन सरकार ने चुप्पी साध रखी है.

मणिपुर मामला है क्या

मणिपुर में 3 मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा शुरू हुई थी. मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उस को कुकी की तरह राज्य में एसटी का दरजा दिया जाए. लेकिन कुकी समुदाय को यह बात नागवार गुजरी. वह नहीं चाहता कि मैतेई समाज के लोग उन के बराबर आएं और यही कारण है कि इस के खिलाफ कुकी समाज ने आवाज उठाई और आदिवासी एकजुटता रैली निकाली, जिस का विरोध होतेहोते बात हिंसा तक पहुंच गई और मणिपुर इतने दिनों से हिंसा की आग में जल रहा है.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वायरल वीडियो को शर्मनाक बताते हुए मैतेई समुदाय से आने वाले फ़िल्ममेकर निंगथोउजा लांचा ने कहा, ‘हम किसी अपराध या अपराधी के बचाव में यह नहीं कह रहे लेकिन हमारे पास इस से भी भयावह वीडियो हैं. पीएम मोदी को टिप्पणी करने से पहले इस वीडियो की जांच होनी चाहिए थी. इस के बिना किसी एक समुदाय पर आरोप लगाना गलत है. बहुत से ऐसे वीडियो और तसवीरें हैं जिन में कुकी समुदाय के लोग मैतेई लोगों को मार रहे हैं. पीएम उन पर क्या कहेंगे? इतना एकतरफ़ा रुख क्यों? प्रधानमंत्री को हमेशा निष्पक्ष रहना चाहिए.’बात कम हैरत की नहीं कि निंगथोउजा अभी तक इन वीडियोज को दबाकर क्यों बैठे थे उन्हें जिम्मेदारी दिखाते हुए इन्हें सरकार को दे देना चाहिए था जिससे हकीकत सामने आने में सहूलियत रहती.

मणिपुर पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के इस वायरल वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया, कहा, ‘इस मामले में 28 जुलाई को सुनवाई करेगा कोर्ट.’

चीफ जस्टिस औफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए और ऐक्शन लेना चाहिए. यह पूरी तरह अस्वीकार्य है. यह संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि, ‘सरकार बताए कि ऐसी घटनाएं फिर न हों, इस के लिए क्या कदम उठाए गए. सरकार इस का जवाब दे.’शायद देश के इतिहास में ऐसा भी पहली बार हुआ कि सबसे बड़ी अदालत को यह कहने भी मजबूर होने पड़ा कि अगर सरकार से कुछ नहीं हो रहा है तो हम कार्रवाई करेंगे.

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