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हड्डियां कहीं क्रैक न हो जाएं

आज की जंकफूड संस्कृति के चलते युवा भी हड्डियों से जुड़ी बीमारियों की चपेट में लगातार आ रहे हैं. युवा टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गए हैं कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे रह गया है. पहले लोग शारीरिक काम बहुत करते थे, इसलिए स्वस्थ व फिट रहते थे. इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिनभर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से हड्डियों के रोग होने का रिस्क बढ़ रहा है. वहीं, महिलाएं परिवार के सदस्यों की देखभाल में खुद की सेहत पर ध्यान देना भूल जाती हैं. इस वजह से युवावस्था में ही वे हड्डियों से जुड़ी समस्याओं से जूझने लगती हैं. गर्भधारण, स्तनपान कराने से ले कर मीनोपौज तक महिलाओं की हड्डियों का मजबूत होना बहुत महत्त्वपूर्ण है.

महिलाएं 20 के आखिरी पड़ाव या 30 के शुरुआती सालों में हड्डियों से जुड़े सेहत संबंधी मुद्दों व समस्याओं पर ध्यान नहीं देतीं. इस वजह से वे हड्डियों से जुड़े विकार औस्टियोपोरोसिस से घिर जाती हैं. भारत जैसे देश में तो महिलाओं को शुरुआत में पता तक नहीं चल पता कि वे औस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त हैं.

हड्डियों की देखभाल करने की कोई उम्र नहीं है. किशोर लड़कियां अपनी इसी उम्र में ही हड्डियों का घनत्व बढ़ा सकती हैं. 30 वर्ष की उम्र के बाद यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है. अगर शुरुआती सालों में हड्डियां मजबूत रहेंगी तो उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं स्वस्थ रहेंगी. महिलाओं में 30 वर्ष की उम्र के बाद शरीर से कैल्शियम का भंडार कम होने लगता है और 40 की उम्र पार मीनोपौज के बाद तो कैल्शियम की जरूरत और अधिक हो जाती है क्योंकि मीनोपौज के बाद पुरानी हड्डियों के अवशोषित होने के मुकाबले नई हड्डियों के निर्माण की दर कम होने लगती है जिस से औस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है. मीनोपौज के 5 से 7 साल तक महिलाओं का 20 प्रतिशत तक हड्डियों का घनत्व कम हो सकता है. शरीर में हड्डियां एक तरह की जीवित कोशिकाएं होती हैं जो लगातार अवशोषित होती रहती हैं और साथसाथ बनती भी रहती हैं. लेकिन 30 वर्ष की उम्र के बाद यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, इसलिए महिलाओं के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वे 20 वर्ष की उम्र के पड़ाव से ही सही मात्रा में कैल्शियम लें ताकि मीनोपौज के बाद औस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों का रिस्क कम हो जाए.

बच्चे भी नहीं हैं अछूते

पहले मोटे बच्चे को स्वस्थ बच्चा माना जाता था. मानते थे कि मोटा बच्चा स्वस्थ है लेकिन अब मोटापे से ग्रस्त बच्चे पर ध्यान देने की बहुत ज्यादा जरूरत है क्योंकि अध्ययनों से पता चला है कि मोटे बच्चों की हड्डियों के कमजोर होने का खतरा ज्यादा रहता है. मोटापे से ग्रस्त बच्चे के शरीर में वसा की मात्रा ज्यादा होती है जो कूल्हों के अलावा शरीर के अन्य भागों जैसे लिवर, दिल, मांसपेशियों में भी जमा होने लगता है. इस से हड्डियों को विकास करने की जगह नहीं मिल पाती और बच्चों की हड्डियां अविकसित व कमजोर हो जाती हैं.

वसा की अधिक मात्रा से बच्चों में हड्डियों का विकास रुक जाता है और इस से बच्चों में फ्रैक्चर का रिस्क बहुत जयादा बढ़ जाता है. अभिभावकों के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि गठिया जैसी बीमारियां अब बुजुर्गों तक ही सीमित नहीं रह गई हैं, बल्कि इस से बच्चे व युवा भी नहीं बच पा रहे हैं. इसलिए उन्हें खाने में पौष्टिक व संतुलित आहार दें और हड्डियों की मजबूती के लिए प्रचुर मात्रा में कैल्शियम व विटामिन डी दें. बच्चे अब बाहर खेल कर पसीना बहाने के बजाय घर में मोबाइल, कंप्यूटर व टीवी पर ही लगे रहते हैं और उन के खानपान में जंकफूड व कोल्ड ड्रिंक्स का ज्यादा सेवन होता है. इस के अलावा तली चीजें व पैक्ड फूड के सेवन से बच्चों की हड्डियों के लिए जरूरी खनिज लवणों की कमी हो जाती है. इन वजहों से भी बच्चों के मामूली चोट लगने पर फ्रैक्चर की स्थिति बन जाती है.

बुजुर्गों की परेशानी

उम्र बढ़ने के साथसाथ हड्डियों में घिसाव से कमजोरी आ जाती है. इस वजह से बुजुर्गों में गठिया या औस्टियोपोरोसिस की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है. अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो आर्थ्राइटिस या औस्टियोपोरोसिस की वजह से रोजमर्रा के काम तक करना दूभर हो जाता है. दर्द लगातार हो रहा हो तो डाक्टर से सलाह लेनी बहुत जरूरी है. पेनकिलर दवाएं लगातार नहीं लेनी चाहिए, इस से किडनी और अन्य अंगों पर साइडइफैक्ट्स होते हैं. समय रहते और्थोपैडिक डाक्टर से परामर्श ले करसही इलाज कराना चाहिए.

(लेखक नई दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल, शालीमार बाग में और्थोपैडिक विशेषज्ञ हैं.)

फ्रैक्चर के प्रबंध के तरीके

टूटी हुई हड्डियों का प्रबंध कैसे किया जाता है, जानकारी दे रहे हैं डा. राजू वैश्य.

हड्डी टूटने या फ्रैक्चर की स्थिति में रोगी को तुरंत दर्द शुरू हो जाता है और फ्रैक्चर की वजह से रोगी प्रभावित अंग को हिलाने में भी असमर्थ होता है. ऐसी स्थिति में तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. फ्रैक्चर का पता लगाने के लिए एक्सरे या एमआरआई की जाती है. फ्रैक्चर की सही जगह का पता चलने पर रोगी की स्थिति के अनुसार प्लास्टर लगाया जाता है और अगर रोगी की स्थिति गंभीर है तो सर्जरी कर के रौड भी लगाई जाती है. भिन्न आयुवर्ग के लोगों जैसे बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों में टूटी हुई हड्डी के उपचार का तरीका अलग है. यही नहीं, हड्डी टूटने का पैटर्न भी अलग होता है.

बच्चों में फ्रैक्चर

वयस्कों के मुकाबले बच्चे की हड्डी जल्दी ठीक होती है क्योंकि इस में एक विशेष कवरिंग यानी पेरिऔस्टियम होता है जो हड्डी को औक्सीजन और पोषण की बेहतर आपूर्ति करता है. इस से टूटी हुई हड्डी को जल्दी ठीक होने में सहायता मिलती है. बच्चों में पेरिऔस्टियम के कारण टूटी हुई हड्डी जल्दी जुड़ती है और उन के रीमौडलिंग की संभावना बढ़ जाती है. इस बात की संभावना ज्यादा रहती है कि बच्चे की हड्डियां पूरी तरह टूटने के बजाय मुड़ जाएं (ग्रीन स्टिक फ्रैक्चर) क्योंकि ये कोमल होती हैं.

वयस्कों में फ्रैक्चर

कम उम्र के मरीजों में फ्रैक्चर का मुख्य कारण जोर से चोट या झटका लगना होता है. इस के लिए उपचार के सामान्य तरीकों की आवश्यकता होती है. इन्हें 2 वर्गों में बांटा जा सकता है और यह सौफ्ट टिश्यू से संबंधित होता है. क्लोज्ड फ्रैक्चर : ये ऐसे फ्रैक्चर होते हैं जिन में ऊपर की त्वचा ठीक रहती है. ओपन यानी खुला/कंपाउंड फ्रैक्चर : ऐसे जख्म जिन का संबंध फ्रैक्चर से होता है.

बुजुर्गों में फ्रैक्चर

बुजुर्ग मरीजों की हड्डियां औस्टियोपोरोसिस के कारण नाजुक हो जाती हैं. इसलिए इस वर्ग की हड्डियां बहुत जल्दी टूट जाती हैं. औस्टियोपोरोसिस के कारण आमतौर पर कलाई, रीढ़, कंधे और कूल्हों में फ्रैक्चर होता है. मल्टीपल वर्टिब्रल फ्रैक्चर के कारण व्यक्ति थोड़ा टेढ़ा हो जाता है या झुक जाता है. इस से उस की ऊंचाई कम हो जाती है, लगातार दर्द रहता है और इस कारण आवाजाही कम हो जाती है.

क्या है उपचार

फ्रैक्चर के उपचार का एक सीधा नियम है, हड्डियां सीधी जुड़नी चाहिए और जुड़ने से पहले उन्हें इधरउधर बढ़ने से रोका जाना चाहिए. इस के लिए क्या उपचार किया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि फ्रैक्चर कितना गंभीर है. यह ओपन फ्रैक्चर है या क्लोज्ड और कौन सी हड्डी टूटी है. उदाहरण के लिए कूल्हे की टूटी हड्डी और टूटे हाथ का उपचार अलग होगा. फ्रैक्चर और हड्डियों का प्रबंध गैर औपरेटिव तथा औपरेटिव दोनों तरीकों से किया जा सकता है. नौन औपरेटिव उपचार अकसर फ्रैक्चर को प्लास्टर कास्ट से निष्क्रिय कर के किया जाता है. ऐसा तब होता है जब टूटे हुए हिस्से एकसीध में होते हैं. ऐसा न हो तो मरीज को बेहोश कर के या सुन्न कर के हड्डियों को सीध में लाना होता है और इस के बाद ही प्लास्टर चढ़ाया जाता है. बच्चों में फ्रैक्चर का उपचार अकसर बिना औपरेशन के किया जाता है क्योंकि उन की हड्डियों के रीमौडल करने की संभावना अच्छीखासी होती है.

नौन औपरेटिव

हड्डियों के उपचार की इस थैरेपी में कास्टिंग और ट्रैक्शन (त्वचा और हड्डियां) शामिल है. यह सुनिश्चित करने के बाद कि टूटे हुए हिस्से सही तालमेल में हैं, प्लास्टर कास्ट कर दिया जाता है. यह कास्टिंग फाइबर ग्लास से या फिर प्लास्टर औफ पेरिस यानी पीओपी की पट्टियों से किया जा सकता है.

निष्क्रिय किया जाना : हड्डियों का जुड़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो अकसर होता है. फ्रैक्चर के उपचार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ठीक होने के बाद जख्मी हिस्सा सर्वश्रेष्ठ संभव ढंग से काम करे. फ्रैक्चर का उपचार अकसर टूटी हुई हड्डियों को वापस उन के स्वाभाविक स्थान पर बहाल कर के (अगर आवश्यक हो) ठीक होने तक हिलने नहीं देना है.

ट्रैक्शन : उपचार की इस विधि के तहत हड्डी या हड्डियों को खींच कर तालमेल में रखा जाता है और हड्डी को लगातार हलके खिंचाव में रखा जाता है. इस तरह खींचने का असर हड्डी या हड्डियों पर होता है और इस के लिए हड्डी के जरिए धातु के पिन का उपयोग किया जाता है या फिर स्किन टेप यानी स्किन टै्रक्शन का उपयोग किया जाता है. यह प्राथमिक उपचार है.

सर्किल उपचार

इस उपचार का उपयोग तभी होता है जब कोई अस्थिरोग शल्य चिकित्सक ऐसा करने के लिए कहता है ताकि टूटी हुई हड्डी को पुरानी स्थिति में बहाल किया जा सके. इस तरीके से हड्डी अपनी सही जगह पर स्थापित हो जाती है.

इस प्रक्रिया में हड्डी की सर्जरी होती है और उसे धातु के टुकड़े से ठीक किया जाता है. इस के जरिए हड्डियों को एकसाथ रखा जाता है. टूटी हुई हड्डी को ठीक करने के कई तरीके हैं. इन में बाहरी यानी एक्सटर्नल फिक्सेशन और आंतरिक उपकरण यानी इंटरनल फिक्सेशन शामिल हैं. एक्सटर्नल फिक्सेशन में पिन या स्कू्र से टूटी हुई हड्डी को जोड़ कर कस दिया जाता है. यह टूटे हुए हिस्से के ऊपर, नीचे या ऊपर से नीचे तक हो सकता है. इन्हें लोहे के तार से जोड़ा या कसा जाता है जो त्वचा के बाहर होते हैं. वहीं, आंतरिक फिक्सेशन के तहत टूटी हुई हड्डी को ठीक करने के लिए धातु के कई उपकरण उपलब्ध हैं. ये स्टेनलैस स्टील या टाइटेनियम धातु के बने होते हैं. ये भिन्न किस्म के होते हैं :

तारें : आमतौरपर इन का उपयोग फ्रैक्चर के स्थायी और निर्णायक उपचार के लिए किया जाता है. इन का उपयोग टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले प्लेट और स्कू्र के साथ होता है. आवश्यकता के अनुसार तार का उपयोग त्वचा के ऊपर या किसी सुराख के जरिए किया जा सकता है.

प्लेट और स्कू्र : इन का उपयोग वयस्कों में फ्रैक्चर का प्रबंध करने के लिए किया जाता है. ताकि औपरेशन के बाद की देखभाल के लिए आवश्यक कामकाज संभव हो. प्लेट की डिजाइन अलगअलग होती हैं. सभी प्लेटों को लगाने के लिए सौफ्ट टिश्यू को हटाया जाता है और यह न्यूनतम होता है. हड्डी की गुणवत्ता खराब हो तो लौकिंग प्लेट का उपयोग अकसर किया जाता है, जैसे औस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर्स.

इंट्रामेडुलरी नेल्स : गुजरी आधी सदी के दौरान इंट्रामेडुलरी नेल्स का उपयोग खूब स्वीकार किया गया है. ये नेल्स एक आंतरिक स्प्लिंट की तरह काम करते हैं जो हड्डी के साथ मिल कर भार साझा करते हैं. ये लचीले अथवा सख्त, लौक्ड अथवा अनलौक्ड, रीम्ड अथवा अनरीम्ड हो सकते हैं. लौक्ड इंट्रामेडुलरी नेल्स स्थिरता मुहैया कराते हैं ताकि हड्डियां तालमेल में रहें और उन की लंबाई पहले की ही तरह रहे. इंट्रामेडुलरी नेल्स के उपयोग से फ्रैक्चर वाली जगह पर व्यापक ताकत संभव होती है. इस से हड्डी जल्दी ठीक होती है.

इंट्रामेडुलरी नेल्स का उपयोग आमतौर पर फिमोरल और टिबियल डायफिसील फ्रैक्चर के लिए किया जाता है और अकसर ह्यूमेरेल डायफिसील फ्रैक्चर में भी इस का उपयोग होता है. इंट्रामेडुलरी नेल्स का फायदा यह है कि मिनिमली इनवैसिव प्रक्रिया में उस का उपयोग होता है. यही नहीं, अर्ली पोस्ट औपरेटिव एंबुलेशन और अर्ली आरओएम में भी इस का उपयोग होता है.

सर्जिकल विधियां

आमतौर पर सर्जरी तभी की जाती है जब सामान्य उपाय नाकाम हो जाते हैं. कुछ फ्रैक्चर जैसे कूल्हे की हड्डी टूटने (अमूमन औस्टियोपोरोसिस के कारण होता है) जैसी स्थिति में सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है.

हड्डियों को संक्रमण से बचाएं

संक्रमण की वजह से कई मामलों में हमेशा के लिए हड्डियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. ऐसे में संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है, उपाय बता रहे हैं डा. हेमंत शर्मा.

बैक्टीरिया पनपने से त्वचा में संक्रमण हो जाता है और समय पर ध्यान न देने से वह संक्रमण गंभीर भी हो सकता है. ठीक ऐसे ही हड्डियों में संक्रमण हो सकता है जिसे औस्टियोमाइलाइटिस कहते हैं. अगर हड्डी में बैक्टीरिया या वायरस चला जाए तो हड्डियों में संक्रमण होने का खतरा रहता है. वयस्कों में यह समस्या अकसर कूल्हों, रीढ़ की हड्डी और पैरों में पाई जाती है जबकि बच्चों में यह आमतौर पर बाजू की लंबी हड्डी और टांगों में देखने को मिलती है.

कैसे होता है संक्रमण

कई छोटेछोटे बैक्टीरिया व वायरस खून के रास्ते हड्डियों में पहुंच जाते हैं और हड्डियों में संक्रमण फैलाते हैं. इस में सब से आम स्टेफ्लोकोकस जीव है जिस से शरीर में संक्रमण होता है और बाद में यह हड्डियों तक भी पहुंच जाता है. स्टेफ्लोकोकस जीव त्वचा के ऊपर कोई नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन ये रोगी की इम्युनिटी को कम कर देते हैं और जख्मी अंग को अधिक संक्रमित कर सकते हैं. ये बैक्टीरिया किसी चोट, गहरे जख्म से उत्पन्न होते हैं और मवाद के रूप में संक्रमण के पास की हड्डियों में पहुंच जाते हैं. कई बार ये बैक्टीरिया सर्जरी से हुए कट से भी उत्पन्न हो सकते हैं.

संक्रमण के कारण

हड्डी में संक्रमण होने के कई कारण हो सकते हैं. अगर जख्म को सही तरीके से साफ न किया जाए तो बैक्टीरिया पनप सकते हैं. कई बार जख्म या चोट में मवाद भर जाता है, जिस में बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं. यही मवाद हड्डियों तक पहुंच जाता है. इस के अलावा डायबिटीज के रोगी का जख्म ठीक न होने की स्थिति में बैक्टीरिया हड्डियों पर अटैक कर सकते हैं. अकसर डायबिटीज रोगियों के पैरों पर जख्म होने पर वे भर नहीं पाते, जिस से उस में बैक्टीरिया उत्पन्न होने लगते हैं और फिर वे हड्डियों को संक्रमित करते हैं. त्वचा में संक्रमण के मुकाबले हड्डियों के संक्रमण को ठीक होने में काफी समय लगता है.

क्या हैं लक्षण

आमतौर पर हड्डियों में संक्रमण से रोगी को दर्द बहुत ज्यादा होता है. इस के अलावा उसे बुखार के साथ कंपकंपाहट, संक्रमित अंग में सूजन और लालिमा छा जाती है. संक्रमित हड्डी के पास त्वचा अकड़नभरी हो जाती है. अंग से गाढ़े पीले रंग का मवाद निकलता है और यह दिनप्रतिदिन काफी गहरा होता जाता है और छेद जैसा दिखने लगता है.

संक्रमण का रिस्क

सब से ज्यादा समस्या डायबिटीज रोगियों को हो सकती है. उन की हडिडयों में पहुंचने वाले रक्त से यह समस्या हो सकती है. किडनी के इलाज में इस्तेमाल हिमोडायलिसिस से यह विकार हो सकता है. कृत्रिम प्रत्यारोपण के दौरान भी संक्रमण होने का रिस्क बढ़ जाता है. इस के अलावा ज्यादा शराब व धूम्रपान के सेवन से हड्डी में संक्रमण का रिस्क बढ़ सकता है.

कैसे करें इलाज

बीमारी का पता चलने पर रोगी को ऐंटीबायटिक दवाओं की डोज दी जाती है. अगर स्थिति ज्यादा गंभीर होती है तो डाक्टर सर्जरी का भी परामर्श देते हैं. सर्जरी में संक्रमित हड्डी और उस के आसपास के मृत टिश्यूज को बाहर निकाल दिया जाता है. इस प्रक्रिया में जख्म या चोट के मवाद को भी बाहर निकाला जाता है. संक्रमित हड्डी को निकाल कर उस की जगह नई हड्डी प्रत्यारोपित कर दी जाती है. जख्म की उपयुक्त देखभाल करना बहुत जरूरी है और कई बार इलाज कई महीनों तक चल सकता है. इसलिए रोगी को डाक्टर द्वारा दी गई दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए. अगर रोगी को डायबिटीज है तो बिना डाक्टर के परामर्श के कोई भी दवा या इलाज न करें. वैसे तो अन्य रोगियों को भी इलाज खुद से नहीं करना चाहिए लेकिन डायबिटीज रोगी के मामले में स्थिति गंभीर हो सकती है. रोगी अकसर खुद ही ऐंटीबायटिक दवाएं ले लेते हैं जिस से कई बार रोगी को कई तरह के साइड इफैक्ट्स हो जाते हैं. खासतौर पर डायबिटीज या किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त रोगी को तो बिना डाक्टर के परामर्श के कोई दवा लेनी ही नहीं चाहिए. लोग कैमिस्ट से दवा ले लेते हैं जो काफी जोखिम भरा हो सकता है.

बेहतर देखभाल और जख्म को सूखा रख कर संक्रमण को रोका जा सकता है. दर्द बढ़ने पर समय रहते डाक्टर से परामर्श लेने पर स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है. रोगी को आरामदायक और सही जूते पहनने चाहिए. डायबिटीज रोगियों को खास खयाल रखना चाहिए. चोट से बचना चाहिए ताकि जख्म न हो क्योंकि डायबिटीज रोगियों के जख्म भरने में समय लगता है.

हेयरलाइन फ्रैक्चर : रिस्क फैक्टर्स भी है

हेयरलाइन फ्रैक्चर से जुड़े रिस्क व सावधानी के बारे में जानिए डा. रवि सौहता से.

हेयरलाइन फ्रैक्चर या स्टै्रस फ्रैक्चर आम लोगों में बोन इंजरी की आम समस्या मानी जाती है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है हेयरलाइन फ्रैक्चर हड्डी में बहुत बारीक दरार सा होता है. यह हड्डी पर ज्यादा जोर पड़ने के कारण गंभीर इंजरी से होता है. हेयरलाइन फ्रैक्चर सक्रिय खिलाडि़यों की आम समस्या होती है क्योंकि लगातार दौड़नेउछलने जैसी गतिविधियों के कारण उन की हड्डियों पर ज्यादा दबाव पड़ने का खतरा रहता है. ऐसी गतिविधियों के परिणामस्वरूप पैरों या एडि़यों में हेयरलाइन इंजरी का खतरा रहता है जबकि सोने, गिरने या कूदने के चलते शरीर के किसी हिस्से पर ज्यादा दबाव पड़ने से स्ट्रैस फ्रैक्चर होता है.

जो लोग औस्टियोपोरोसिस के शिकार हैं या जिन की हड्डियों की डैंसिटी कम होती है उन्हें नियमित कार्य करने के दौरान भी हेयरलाइन फ्रैक्चर हो सकता है, जिस से कमजोर हड्डियों पर थोड़ा अधिक स्ट्रैस पड़ जाता है. एक्यूट फ्रैक्चर में हड्डियों में बड़ी इंजरी होती है और उस में इलाज की जरूरत पड़ती है लेकिन हेयरलाइन फ्रैक्चर मामूली होता है और पर्याप्त आराम तथा देखभाल से ही ठीक हो जाता है. इस में किसी सर्जिकल चिकित्सा की जरूरत नहीं पड़ती और कई बार तो प्रभावित हिस्से को पट्टी से लपेटने की भी जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन हेयरलाइन फ्रैक्चर का असर लंबे समय तक रह सकता है और इस की न तो अनदेखी होनी चाहिए और न ही इसे हलके में लेना चाहिए.

हेयरलाइन फ्रैक्चर का असर

ज्यादातर मामलों में हेयरलाइन फ्रैक्चर का प्रभाव कुछ हफ्तों तक ही रहता है और इस दौरान प्रभावित हिस्से पर ज्यादा दबाव डालने या वजन उठाने से बिलकुल बचना चाहिए. कुछ हफ्तों तक भरपूर आराम और प्रभावित हड्डी की सभी गतिविधियों पर विराम लगाना ही हेयरलाइन फ्रैक्चर से नजात पाने के लिए पर्याप्त माना जाता है. यही वजह है कि इस दौरान डाक्टर आप के पैर में पट्टी या बाजू में क्रेप बैंडेज लपेट देते हैं ताकि आप की हड्डी पर किसी तरह का अतिरिक्त दबाव न पड़े. यदि उचित ध्यान न दिया जाए और डाक्टर की सलाह का पूरी तरह पालन न किया जाए तो यह इंजरी परेशानी का सबब बन सकती है. हड्डी को पर्याप्त रूप से आराम नहीं देने पर दोबारा इंजरी होने का खतरा रहेगा या भविष्य में भी आप के उस जगह पर दर्द उभर सकता है. कुछ मामलों में स्ट्रैस फ्रैक्चर पूरी तरह ठीक नहीं होता, जो आगे चल कर क्रोनिक दर्द में बदल जाता है और सामान्य जीवनचर्या को बाधित करने लगता है. पैरों का स्ट्रैस फ्रैक्चर आधाअधूरा ठीक होने पर जब कभी आप ज्यादा देर तक चलेंगे या दौड़ेंगे तो इस का दर्द उभर सकता है. खिलाडि़यों का स्ट्रैस फ्रैक्चर अगर पूरी तरह ठीक नहीं किया जाए तो उस का कैरियर भी खतरे में पड़ सकता है.

खतरे व सावधानियां

स्ट्रैस फ्रैक्चर से पीडि़त होने पर ये फैक्टर्स आप को खतरे में डाल सकते हैं:

कमजोर हड्डियां : औस्टियोपोरोटिक हड्डियों के लिए स्ट्रैस फ्रैक्चर एक बड़ा खतरा होता है. औस्टियोपोरोसिस एक ऐसी स्थिति यानी ‘छिद्रयुक्त हड्डियों की स्थिति’ होती है जिस में आप की हड्डी की डैंसिटी बहुत कम हो जाती है. यदि आप की हड्डियों की डैंसिटी में कमी कैल्शियम या विटामिन डी की कमी के कारण होती है तो आप बड़ी आसानी से हेयरलाइन फ्रैक्चर की चपेट में आ सकते हैं. सीढि़यों के 2 पायदान से कूदने जैसी नुकसानरहित गतिविधियां करने पर भी आप मुश्किल में पड़ सकते हैं. कमजोर बोन डैंसिटी से पीडि़त कई बुजुर्गों को बारबार स्ट्रैस फ्रैक्चर होता रहता है. कई बार स्ट्रैचिंग करने और परदा खींचने जैसे रोजमर्रा के कार्यों में उन्हें यह परेशानी आ सकती है. इस तरह के खतरे से दूर रहने के लिए अपनी हड्डियों को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी के सेवन से मजबूत रखना जरूरी है. यदि आप अपनी सक्रियता अचानक बढ़ा देते हैं तो आप को स्ट्रैस फ्रैक्चर हो सकता है. मसलन, निष्क्रिय लोग यदि अचानक दौड़ना या किसी जिम में वर्कआउट करना व वजन उठाने वाला व्यायाम शुरू कर दें तो उन के स्ट्रैस फ्रैक्चर की चपेट में आने का खतरा बढ़ सकता है. आप को धीरेधीरे अपनी शारीरिक सक्रियता बढ़ानी चाहिए. साथ ही, हड्डियों की मजबूती के लिए उचित व्यायाम भी बहुत जरूरी है. हड्डी एक जिंदा टिश्यू होती है जो व्यायाम से सक्रिय रहती है. हड्डियों के लिए वजन उठाने वाला व्यायाम सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

पैरों की संरचना : कुछ लोगों के पैरों की संरचना ही ऐसी होती है कि उन्हें फ्रैक्चर का खतरा अधिक रहता है. मसलन, फ्लैट पांव या असामान्य छोटे पांव वाले लोगों में अन्य लोगों की अपेक्षा फ्रैक्चर का खतरा रहता है.

इन का परहेज करें

  1. जंक फू्ड खाना
  2. हाई प्रोटीन
  3. मांस
  4. नमक की ज्यादा मात्रा
  5. कौफी और चाय
  6. कैफीन और कार्बोनेटिड ड्रिंक
  7. धूम्रपान व शराब का सेवन
  8. जीवनशैली व खानपान में बदलाव जरूरी
  9. ल्शियम पर्याप्त मात्रा में लें जिस से कि शरीर हड्डियों से कैल्शियम न लें.
  10. हरी पत्तेदार सब्जियां पर्याप्त मात्रा में लेने से विटामिन ‘के’ भरपूर मिलता है.
  11. वजन नियंत्रित रखें. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि अगर शरीर का एक किलो वजन ज्यादा है तो घुटने को कदम बढ़ाने के लिए 4-5 गुना ज्यादा दबाव झेलना पड़ता है और अगर यह दबाव लगातार बना रहे तो कार्टिलेज में टूटफूट हो जाती है और इस से घुटने के जोड़ों में विकृति हो जाती है.
  12. विटामिन के, डी और सी के लिए संतरे, पालक, गोभी और टमाटर प्रचुर मात्रा में लें. ये कार्टिलेज बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शरीर में कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करते हैं जिस से हड्डियां मजबूत होती हैं.
  13. हड्डियों की मजबूती के लिए विटामिन डी बहुत महत्त्वपूर्ण है और इसे पाने के लिए धूप सेंके.
  14. हड्डियों की मजबूती के लिए दूध और उस से बने उत्पाद बहुत जरूरी हैं. 50 साल तक के वयस्कों को दिन में 1,000 मिलीलिटर दूध लेना चाहिए तो महिलाओं को 1,200 मिलीलिटर दूध पीना चाहिए.

Kareena Kapoor के बुरे बर्ताव का इंफोसिस के को-फाउंडर ने किया खुलासा, देखें वीडियो

Kareena Kapoor : बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर ने अपनी एक्टिंग से लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं. हर एक फिल्म में उनकी एक्टिंग की खूब सराहना होती है. हालांकि कई बार वह अपने फैंस को इग्नोर भी कर देती हैं, जिसके चलते वह (kareena kapoor) ट्रोलर्स के निशाने पर आ जाती हैं. हाल ही में इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) ने भी अभिनेत्री करीना कपूर के बुरे बर्ताव पर खुलकर बात की, जिसका वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

करीना के एटीट्यूड पर भड़के नारायण मूर्ति

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो एक कार्यक्रम का है. जहां नारायण मूर्ति ने फ्लाइट की एक घटना को याद किया, जिसमें उनके साथ करीना कपूर खान (kareena kapoor) भी मौजूद थी. हालांकि ये वीडियो बहुत पुराना है.

वीडियो में बिजनेसमैन नारायण मूर्ति कह रहे हैं कि, “उस दिन मैं फ्लाइट में था और लंदन से लौट रहा था. उसी फ्लाइट में उनकी सीट के पास करीना कपूर खान भी बैठी थीं. उनके पास कई लोग आए और उनसे हैलो कहा, लेकिन एक्ट्रेस ने कोई प्रतिक्रिया देने की जहमत नहीं उठाई. वहीं जो भी मेरे (Narayana Murthy) पास आया, मैं खड़ा हुआ और उनसे आधा मिनट या एक मिनट तक बात की. वह बस यही उम्मीद कर रहे थे.”

सुधा मूर्ति ने किया करीना का बचाव

वहीं अपने पति (Narayana Murthy) की बात को बीच में काटते हुए सुधा मूर्ति ने करीना (kareena kapoor) का बचाव किया. उन्होंने कहा, “वह थक गई होंगी. मूर्ति, एक संस्थापक और एक सॉफ्टवेयर व्यक्ति है, जिनके शायद 10,000 प्रशंसक होंगे लेकिन एक अभिनेत्री के दस लाख प्रशंसक होंगे!”

आगे नारायण मूर्ति ने सुधा मूर्ति को जवाब दिया और कहा, “नहीं, नहीं, यह मुद्दा नहीं है. मुद्दा ये है कि जब कोई स्नेह दिखाता है, तो मुझे लगता है कि आप इसे कितने भी गुप्त तरीके से वापस दिखा सकते हैं. मुझे लगता है कि ये बहुत महत्वपूर्ण होता है. वैसे भी यह सभी आपके अहंकार को कम करने के तरीके हैं.” बहरहाल करीना कपूर ने अब तक इस वायरल वीडियो पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

माही विज की बेटी Tara Jay Bhanushali ने पढ़ी नमाज, ट्रोल होने पर दिया ये जवाब

Tara Jay Bhanushali Troll : टीवी एक्टर जय भानुशाली और माही विज की बेटी तारा इस समय सोशल मीडिया सेंसेशन हैं. उनके क्यूट फोटो और वीडियोज लोगों को खूब पसंद आते हैं. माही (mahhi vij) ने अपनी बेटी के नाम से एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी बनाया हुआ है, जहां पर वह रोजाना अपने बच्चों के वीडियो पोस्ट करते हैं. हाल ही में माही ने तारा (Tara Jay Bhanushali Troll) के अकाउंट से उनका एक वीडियो शेयर किया. जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

तारा को किया गया ट्रोल

दरअसल, इस वीडियो में तारा (Tara Jay Bhanushali Troll) नमाज पढ़ रही हैं. वहीं वीडियो के कैप्शन में लिखा है- ‘Shukran’. हालांकि लोगों को तारा का नमाज पढ़ने का ये वीडियो कुछ खास पसंद नहीं आ रहा है. वह लगातार उन्हें ट्रोल कर रहे हैं.

जहां एक यूजर ने लिखा- ‘पूजा करती तो कभी नहीं दिखी आपकी बेटी. मैम सभी धर्म की रिस्पेक्ट किया करो लेकिन जियो उसी धर्म को जिस धर्म में पैदा हुए हो. इतना ही प्यारा लगता है मुस्लिम धर्म तो अपना लो.’ इसके अलावा एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘अपने नाटक का हिस्सा अपनी बेटी को मत बनाओं. हिंदु होते हुए ये सब करना, शर्म करों.’

माही विज ने ट्रोल्स को दिया करारा जवाब

वहीं इसके बाद माही विज ने ट्रोल्स को करारा जवाब दिया, जिससे उनका मुंह बंद हो गया. दरअसल माही ने तारा (Tara Jay Bhanushali Troll) की एक और वीडियो शेयर की, जिसमें वह हाथ जोड़कर मंदिर में बैठकर पूजा कर रही हैं. उनके माथे पर तिलक भी लगा है.

इसके अलावा उन्होंने इस वीडियो के कैप्शन में लिखा, ‘ये उन बकवास लोगों के लिए है जिन्होंने धर्म को मजाक बना कर रख दिया है. आप तारा को अनफॉलो कर सकते हैं. तारा को हेटर्स की जरूरत नहीं है. एक मां (mahhi vij) के तौर पर मुझे पता है कि मैं क्या सिखा रही हूं. छोटी सोच वाले लोग. इतनी नफरत देख कर दुख हुआ. मेरी बेटी की चिंता मत करो अपने बच्चों को सिखाओ.’

भाभी के लिए भाई बना दुश्मन

खेतों का काम निपटा कर सुखविंदर सिंह ने दोपहर का खाना खाने के लिए घर जाने से पहले जानवरों के कमरे में जा कर उन का चारा वगैरह देख लिया था. पूरी तरह संतुष्ट हो कर वह घर के लिए चल पड़ा. उस के खेतों से कुछ दूरी पर कुलदीप सिंह के खेत थे. उस के आगे लखविंदर और जसबीर के खेत थे

चूंकि कुलदीप दूर के रिश्ते में उस का भाई लगता था और गांव जाने का रास्ता उस के खेतों से था, इसलिए उस ने सोचा कि वह उस से भी पूछ ले कि अगर वह भी घर चल रहा है तो दोनों साथसाथ बातचीत करते चले जाएंगे. यही सोच कर सुखविंदर खेतों में बने कुलदीप के नलकूप वाले कमरे की ओर बढ़ा.

जैसे ही वह नलकूप की टंकी के पास पहुंचा, उस के पैर जहां थे, वहीं रुक गए. उस का शरीर कांप उठा और मारे डर के उस का चेहरा पीला पड़ गया. एकाएक उस के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

नलकूप वाले कमरे के दरवाजे के ठीक बीचोबीच कुलदीप सिंह की लहूलुहान लाश पड़ी थी. उस के सिर, पेट और शरीर के अन्य अंगों से खून अभी भी रिस रहा था. कुलदीप को उस हालत में देख कर सुखविंदर घबरा गया. उसे कुछ नहीं सूझा तो वह तेजी से गांव की ओर भागा

गांव पहुंच कर सीधे वह कुलदीप के घर पहुंचा और एक ही सांस में उस की पत्नी करमजीत कौर को पूरी बात बता दी. संयोग से उस समय करमजीत कौर का भाई रछपाल सिंह भी बहन से मिलने आया था. सुखविंदर की बात सुन कर करमजीत कौर भाई रछपाल, सुखविंदर और गांव के कुछ अन्य लोगों के साथ खेतों की ओर भागी

नलकूप पर इन लोगों ने जो देखा, सब की सांसें अटक गईं. करमजीत तो दहाड़ मार कर पति के ऊपर गिर पड़ी. कुछ लोगों ने कुलदीप की नाड़ी देखी तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की जानकारी पुलिस को दी गई. यह घटना 9 सितंबर, 2015 की है.

हत्या की सूचना मिलते ही थाना सुलतानपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरप्रीत सिंह, एसआई जसप्रीत सिंह, एएसआई लखविंदर सिंह, हैडकांस्टेबल जसविंदर सिंह, वतन सिंह, सुखदेव सिंह और कमलजीत सिंह के साथ गांव माछीछोआ पहुंच गए. अब तक वहां लगभग पूरा गांव जमा हो चुका था.

हत्या की सूचना मिलने के तुरंत बाद हरप्रीत सिंह ने घटना की सूचना एसपी (डी) जगजीत सिंह सरोआ के साथसाथ क्राइम टीम को भी दे दी थी. इसलिए उन के घटनास्थल पर पहुंचतेपहुंचते क्राइम टीम भी पहुंच गई थी.

हरप्रीत सिंह ने लाश का गहराई से निरीक्षण किया तो मृतक के सिर और पेट पर चोटों के गंभीर निशान नजर आए. शायद वे किसी तेजधार हथियार से किए गए थे. यही गंभीर चोटें मौत का कारण बनी थीं. उन्होंने आसपास का भी निरीक्षण किया कि शायद कोई ऐसी चीज मिल जाए, जिस की मदद से जांच आगे बढ़ सके

बहरहाल, क्राइम टीम को जो सबूत मिले, उन्हें कब्जे में ले लिए तो हरप्रीत सिंह ने अन्य औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाना लौट कर उन्होंने मृतक की पत्नी करमजीत कौर की ओर से कुलदीप सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर दिया

इस के बाद इस अंधे कत्ल के खुलासे के लिए एसएसपी राजेंद्र सिंह ने सीआईए स्टाफ की एक टीम गठित कर दी

काफी प्रयास के बाद भी पता नहीं चला कि कुलदीप की हत्या किस ने और क्यों की थी? पहले पुलिस ने इस हत्या को अवैध संबंधों से जोड़ कर देखा और अपने कुछ मुखबिरों को करमजीत कौर पर नजर रखने के लिए लगा दिया. मृतक कुलदीप की भी कुंडली खंगाली गई

पुलिस को संदेह था कि अवैध संबंधों में रोड़ा बनने की वजह से करमजीत कौर ने ही पति को मरवा दिया होगा. इस बात पर भी गौर किया जा रहा था कि कहीं कुलदीप के ही किसी से नाजायज संबंध रहे हों और उस के घर वालों ने कुलदीप को रास्ते से हटा दिया हो.

थाना सुलतानपुर लोधी पंजाब के जिला कपूरथला के अंतर्गत आता है. इसी थाने का एक गांव है माछोछीआ, जिस में सरदार समुंद्र सिंह परिवार के साथ रहते थे. उन के पास काफी उपजाऊ जमीन थी, गांव में पक्का मकान था

खेतों से इतनी पैदावार हो जाती थी कि साल का खर्च निकालने के बाद भी उन के पास काफी कुछ बच जाता था, जिस में से गुरु का आदेशवंड छक्कोमान कर काफी पैसा वह गरीबों और जरूरतमंदों को दे देते थे.

कुल मिला कर समुंद्र सिंह अपने नाम की ही तरह नेकदिल और दरियादिल थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे थे. बड़ा कुलदीप सिंह, उस से छोटा अंग्रेज सिंह और सब से छोटा रणजीत सिंह

रणजीत सिंह थोड़ा मंदबुद्धि था. जबकि अंग्रेज सिंह काफी चालाक और शातिरदिमाग था. वह जिस तरह का दिखाई देता था, उस तरह का था नहीं. बड़ा कुलदीप सिंह पिता की ही तरह धार्मिक सोच वाला सीधासादा नेक इंसान था. दूसरों और जरूरतमंदों के काम आना उसे अच्छा लगता था

उस की व्यवहार कुशलता और स्वभाव की वजह से गांव में उस की बड़ी इज्जत थी. सभी उस से प्यार भी करते थे. जबकि उस के छोटे अंग्रेज सिंह को गांव का कोई भी आदमी पसंद नहीं करता था. तीनों भाई अपने पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे

हरप्रीत सिंह ने मृतक की पत्नी करमजीत कौर और गांव वालों से पूछाताछ की. सब का यही कहना था कि कुलदीप की किसी से कोई दुश्मनी थी और अदावत. वह सब के काम आने वाला इंसान था. लोग उस की बहुत इज्जत करते थे.

मुखबिरों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मृतक और उस की पत्नी करमजीत कौर का चरित्र एकदम पाकसाफ था. ना तो मृतक के किसी औरत से नाजायज संबंध थे और ही करमजीत कौर की किसी अन्य मर्द से बोलचाल थी

कुलदीप पूरा दिन अपने खेतों में व्यस्त रहता था. फालतू बातों के लिए पतिपत्नी के पास जरा भी समय नहीं था. मुखबिरों ने यह भी बताया था कि यह काम किसी बाहरी आदमी ने किया है

हरप्रीत सिंह ने मृतक के रिश्तेदारों तथा अगलबगल के गांव वालों से भी पूछताछ की. लेकिन इस का भी कुछ नतीजा नहीं निकला. हर किसी ने मृतक की तारीफ ही की. किसी ने उस के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा.

जब इस मामले की जांच आगे नहीं बढ़ सकी तो एसएसपी राजेंद्र कुमार ने तीन टीमें बना कर जांच में लगा दीं. थानाप्रभारी हरप्रीत सिंह ने इस मामले को चुनौती के रूप में लिया. उन्हें लगता था कि कहीं कोई ऐसी बात है, जो उन की नजरों के सामने नहीं रही है

हरप्रीत सिंह ने मृतक के छोटे भाई अंग्रेज सिंह को बुला कर पूछाताछ की तो उस के बयानों में तमाम बातें विरोधाभासी मिलीं. वह किसी भी सवाल का सीधा जवाब नहीं दे रहा था. वह हर बात को घुमाफिरा कर ही कहता था

पूछताछ के बाद उन्होंने उसे जाने तो दिया, लेकिन उस पर नजर रखने के लिए अपने कुछ चालाक मुखबिरों को लगा दिया. 2 दिनों बाद ही मुखबिरों ने अंग्रेज सिंह के बारे में जो सूचनाएं दीं, उसे सुन कर हरप्रीत सिंह को लगा कि अब हत्यारे उन की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं हैं.

हरप्रीत सिंह अंग्रेज सिंह को पकड़ कर थाने ले आए और सख्ती से पूछताछ शुरु कर दी. हर अपराधी की तरह अंग्रेज सिंह भी खुद को निर्दोष बताता रहा. लेकिन हरप्रीत सिंह के पास जो सबूत थे, उन्हें सामने रख कर जब पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने भाई की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

उस ने कहा कि उसी ने अपने दोस्तों, बगीचा सिंह पुत्र निम्मा सिंह निवासी गांव थेहवाला, जसवंत सिंह पुत्र गुरबचन सिंह निवासी गांव हुसैनपुर दुल्लेवाला, राजू पुत्र दर्शन सिंह निवासी गांव हुसैनपुर दुल्लेवाला, परविंदर सिंह पुत्र दर्शन सिंह निवासी गांव मुहालम, जिला फिरोजपुर तथा चरणजीत सिंह पुत्र सुच्चा सिंह निवासी गांव थेहवाला के साथ मिल कर भाई की हत्या की थी

इस के लिए उस ने अपने इन दोस्तों को 2 लाख रुपए देने का वादा किया था, जिस में से एक लाख रुपए उस ने किसी से उधार ले कर दे भी दिए थे.

उसी दिन हरप्रीत सिंह ने इस हत्या में शामिल लोगों के घरों पर छापे मारे, जिस में से बगीचा सिंह और परविंदर उर्फ पिंटू पकड़ लिए गए. बाकी के 3 लोग फरार होने में सफल रहे. शायद उन्हें पुलिस की काररवाई की भनक लग गई थी.

गिरफ्तार किए गए तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में कुलदीप सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह हीनभावना से ग्रस्त एक ईर्ष्यालु भाई की घृणित मानसिकता का परिणाम था. कुलदीप सिंह और उस के छोटे भाई अंग्रेज सिंह की सोच में जमीनआसमान का अंतर था

कुलदीप सिंह जहां धार्मिक सोच वाला दयालु आदमी था, वहीं अंग्रेज सिंह शैतानी सोच वाला ईर्ष्यालु आदमी था. तीसरा भाई रणजीत सिंह मंदबुद्धि था, इसलिए उसे परिवार की किसी चीज से कोई मतलब नहीं था. उस का ज्यादातर समय गुरुद्वारा में बीतता था

गांव वाले अकसर कुलदीप सिंह की बड़ाई किया करते थे. यह बात अंग्रेज को बिलकुल नहीं भाती थी. गांव में कोई समारोह होता तो कुलदीप सिंह को उस में सब से आगे रखा जाता. यह सब देख कर अंग्रेज सिंह जल उठता था. उसे इस बात पर गुस्सा आता था कि कुलदीप सिंह की तरह लोग उस की इज्जत क्यों नहीं करते

एक दिन शराब पीते समय यही बात उस ने अपने दोस्त बगीचा सिंह से कही तो उस ने कहा, “उस के रहते तुझे कोई नहीं पूछेगा भाई, इसलिए तू उसे खत्म क्यों नहीं कर देता.”

ऐसा कैसे हो सकता है?” अंग्रेज सिंह ने हैरानी से कहा.

भाई बढिय़ा आइडिया दे रहा हूं. तुझे भाभी बहुत अच्छी लगती है ? कब से तू उस के पीछे पड़ा है, लेकिन वह तुझे हाथ नहीं रखने दे रही है. कुलदीप को मार देगा तो वह तेरी हो जाएगी. इस के अलावा उस की जमीन भी तेरी हो जाएगी. तेरा छोटा भाई पागल ही है, उस के हिस्से की भी जमीन तुझे ही मिलेगी. इस तरह पूरी प्रौपर्टी का मालिक तू अकेला हो जाएगा.” बगीचा सिंह ने कहा.

अंग्रेज सिंह की आंखे हैरानी से फैल गईं. उस ने कहा, “यार बगीचा, तू ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. तू ने कितनी सच बात कही है, भाई के रहने पर भाभी करमजीत कौर खुद को संभाल पाएगी और इतनी जमीन को. मजबूरन उसे मेरा सहारा लेना पड़ेगा. फिर तो मेरी चांदी ही चांदी हो जाएगी.”

यह बात दिमाग में आते ही अंग्रेज सिंह भाई कुलदीप की हत्या की योजना बनाने लगा. 2 बार तो उस ने नलकूप की मोटर के स्टार्टर में बिजली का नंगा तार बांध दिया कि कुलदीप मोटर स्टार्ट करने आए तो करंट से उस की मौत हो जाए

लेकिन तार पर नजर पड़ जाने की वजह से कुलदीप बच गया. इस के बाद अंग्रेज ने कुएं के ऊपर रखा लकड़ी का पटरा हटा कर पतली सी प्लाई रख दी, जिस से कुलदीप उस पर चढ़े तो वह टूट जाए और कुलदीप सीधे कुएं में गिर जाए. नीचे पंखा लगा था, अगर कुलदीप उस पर गिरता तो मर जाता. लेकिन उस पर भी कुलदीप की नजर पड़ गई. उस ने उसे हटा कर मोटा पटरा रख दिया.

इस तरह कुलदीप सिंह को मारने की अंग्रेज सिंह की सारी कोशिशें विफल हो गईं. अपनी इन कोशिशों में असफल होने के बाद अंग्रेज सिंह ने कुलदीप की हत्या पैसे ले कर हत्या करने वालों से कराने पर विचार किया और बगीचा सिंह के माध्यम से उस ने राजू, परविंदर और चरणजीत सिंह को 2 लाख रुपए में बड़े भाई की हत्या की सुपारी दे दी

एक लाख रुपए उस ने एक आदमी से उधार ले कर एडवांस भी दे दिए. रुपए देने के बाद अंग्रेज सिंह ने पांचों को पिस्तौल खरीदने के लिए उत्तर प्रदेश भेजा. ये सभी बरेली, अलीगढ़ आदि शहरों में घूम कर 7 सितंबर को लौट आए. इन्हें कहीं पिस्तौल नहीं मिली. आखिर में तय हुआ कि किसी तेजधार हथियार से कुलदीप सिंह की हत्या कर दी जाए

9 सितंबर की दोपहर को जब कुलदीप सिंह खेतों का काम निपटा कर मोटर बंद करने के लिए नलकूप के कमरे में गया तो वहां बगीचा सिंह और परविंदर उर्फ पिंटू पहले से बैठे थे. कुलदीप मोटर बंद करने के लिए जैसे ही कमरे में घुसा, दोनों ने एकदम से कुलदीप पर हंसिया और चाकू से हमला कर दिया

अचानक हुए इस हमले से कुलदीप चकरा कर जमीन पर गिर पड़ा और कुछ देर तड़प कर मर गया. कुलदीप सिंह मर गया तो अंग्रेज सिंह बगीचा और परविंदर को अपनी मोटरसाइकिल से सुलतानपुर लोधी छोड़ आया. इस के बाद घर लौट कर वह इस तरह सामान्य बना रहा, जैसे उसे किसी बात का पता ही नहीं है.

इंसपेक्टर हरप्रीत सिंह ने मुखबिरों को तो अंग्रेज सिंह के पीछे लगाया ही था, उसी समय उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवा ली थी. इसी काल डिटेल्स से पता चला था कि कुलदीप के कत्ल वाले दिन 9 सितंबर को कुलदीप की हत्या से कुछ देर पहले और बाद में अंग्रेज सिंह ने 4-5 लोगों से 60-70 बार बात की थी. उन्हीं पांचों नंबरों से ही अंग्रेज सिंह के पांचों साथियों का पता चला था

बहरहाल, गिरफ्तार अंग्रेज सिंह, बगीचा सिंह और परविंदर का बयान लेने के बाद उन्हें अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान बगीचा सिंह और परविंदर की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हंसिया और चाकू बरामद कर लिया गया

रिमांड खत्म होने पर 15 सितंबर को तीनों अभियुक्तों को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे, किसी की जमानत नहीं हुई थी. बाकी बचे तीनों अभियुक्तों की पुलिस तलाश कर रही थी. कथा लिखे जाने तक वे पकड़े नहीं गए थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पांव पड़ी जंजीर

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मेरी बीवी गुजर चुकी है और मैं अपनी साली से शादी करना चाहता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 30 साल का हूं. मेरी 2 बेटियां हैं और बीवी गुजर चुकी है. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

अगर आप की बीवी सामान्य तरीके से गुजरी है, तो आप की शादी में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, बशर्ते साली राजी हो. ऐसे में आप अपनी ससुराल वालों से खुल कर बात कर सकते हैं. अगर साली तैयार न हो, तो आप इश्तिहार की मदद से किसी और लड़की से शादी कर सकते हैं.

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राजस्थान में अभी भी लड़कियों की कमी के चलते कई लोग कुंआरे हैं. वहां पहले से ही जात-बिरादरी में रिश्तेदारी के जरीए शादियां होती रही हैं. आज भी ज्यादातर लोग परंपरा के मुताबिक अपने समाज में ही शादी करते हैं.

लेकिन आजकल ऐसा भी देखने को मिल रहा है कि एक समाज का लड़का दूसरे समाज की लड़की से प्यार कर के कोर्टमैरिज कर लेता है और अपनी नई दुनिया बसा कर मजे से रहता है.

समाज के ज्यादातर लोग उस प्रेमी जोड़े को कभी स्वीकार नहीं करते. कई बार तो वे उन्हें जान से मार डालते हैं. समाज का कोई आदमी उन से ताल्लुक नहीं रखता, जिस ने दूसरे समाज में जा कर शादी रचाई होती है.

अगर कोई आदमी पंचों की बात नहीं मान कर शादी करने वालों के घर आताजाता है तो पंचायत उसे भी समाज से निकाल देती है. मगर कभीकभार पंचों के गलत फैसले भी उन के लिए मुसीबत बन जाते हैं और वे जेल का सफर भी कर लेते हैं.

ऐसे पंचों की वजह से न जाने कितने घर टूटे हैं और बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. राजस्थान के हर समाज में कुंआरे लड़कों की फौज मिलेगी. जब इन की शादी की उम्र निकल जाती है तो अपने समाज के बजाय ये मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा वगैरह राज्यों से पैसे दे कर दलाल के जरीए अपनी ही जाति की लड़की ढूंढ़ कर शादी करते हैं.

गरीब घरों की ऐसी लड़कियां जब राजस्थान आ कर खुशहाल होती हैं तो उन का मायके जाने का मन नहीं होता. दूसरे प्रदेश से खरीद कर लाई गई लड़कियां थोड़े समय में ही यहां के माहौल के हिसाब से उठनेबैठने लगती हैं.

यह देख कर कई दलालों ने ऐसी फरेबी दुलहनें भी तैयार कर ली हैं जो पैसे ले कर शादी कर के ससुराल जाती हैं और मौका मिलते ही गहनेरुपए ले कर फरार हो जाती हैं.

ऐसी फरेबी दुलहनों का नाम, पता व मातापिता सब फर्जी होते हैं. ऐसे ठग गिरोहों ने ऐसी फरेबी दुलहनों के अलगअलग नाम से आधारकार्ड बना रखे हैं. राजस्थान का ऐसा कोई जिला नहीं बचा जहां ऐसी फरेबी दुलहनों ने ठगी नहीं की हो.

दलाल लोग पैसे ले कर फरेबी दुलहन से ब्याह करा देते हैं. फरेबी दुलहन फिर बनती है लुटेरी दुलहन और वह सबकुछ समेट कर भाग खड़ी होती है और दोबारा कभी नहीं लौटती है.

लुटेरी दुलहनें इतनी शातिर होती हैं कि कई तो पति से सैक्स संबंध तक नहीं बनाती हैं. वे कह देती हैं कि पीरियड्स चालू हैं. इस के बाद 1-2 दिन में ही वे रुपएगहने ले कर फरार हो जाती हैं.

जैसलमेर शहर में एक सेठ के बेटे की शादी मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में एक दलाल की मारफत हुई थी. दिसंबर, 2017 में शादी करने के एवज में लड़की वालों को 8 लाख रुपए दिए. लड़की गोरीचिट्टी और खूबसूरत थी. मगर जैसलमेर आ कर 3 दिन तक सेठजी के बेटे को पास तक फटकने नहीं दिया.

उस ने अपने पति से कहा, ‘‘मैं 4-5 दिन आप के काम की नहीं हूं. आप मुझ से दूर रहें. जब सब ठीक होगा तब प्यार में डूब जाना.’’

सेठ का बेटा दिन गिनने लगा तभी शादी के 5वें दिन सुबहसवेरे ही दुलहन गायब हो गई. वह घर के गहने व 2 लाख रुपए नकद ले कर भाग गई. गहने 5 लाख रुपए के थे. इस हिसाब से सेठ को 15 लाख का चूना लग गया और दुलहन भी नहीं मिली. कई फरेबी दुलहनों ने पतियों के सीने में रख रातें भी गुजारीं. पति समझते थे कि प्यार करने वाली बीवी मिली है. मगर जैसे ही दुलहन को मौका मिला, वह सबकुछ समेट कर भाग गई.

बीवी की आस में लाखों रुपए खर्च कर चुके कुंआरों के साथ जब ऐसी वारदातें होती हैं तो दूसरे लोग भी मजाक करने से बाज नहीं आते. बेचारा कुंआरा जिंदगीभर की कमाई से तो हाथ धो बैठता ही है, लोगों के मजाक की वजह भी बन जाता है.

शहादत : पड़ोसन के आगे नतमस्तक क्यों थे सद्गृहस्थ बेचारे?

विश्वास कीजिए, मैं एक अदद पत्नी का पत्नीव्रता पति और एक जोड़ी बच्चों का बौड़म सा पिता हूं. दुनिया की ज्यादातर महिलाएं मेरे लिए मांबहन के समान हैं. ज्यादातर सद्गृहस्थों की तरह मैं भी घर से नाक की सीध में आफिस जाता हूं और इसी तरह वापस आता हूं.

अपने छोटे से परिवार के साथ मैं एक बड़े से मल्टीस्टोरी कांप्लेक्स में सुखपूर्वक रह रहा था. मेरे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब मेरे पड़ोस वाले फ्लैट में एक फुलझड़ी रहने आ गई. आप की तरह मेरी भी तबीयत खूबसूरत पड़ोसिन को देख कर झक्क हो गई. किंतु मेरे दिल का गुब्बारा अगले ही दिन पिचक गया जब पता चला कि वह एक पुलिस इंस्पेक्टर की अघोषित पत्नी है.

जैसे सरकारी बाबुओं की घोषित संपत्ति के अलावा अनेक अघोषित संपत्तियां होती हैं वैसे ही समझदार पुलिस वालों की घोषित पत्नी के अलावा अनेक अघोषित पत्नियां होती हैं. बेचारों को जनता की सेवा में दिनरात पूरे शहर की खाक छाननी पड़ती है. चौबीसों घंटे की ड्यूटी. थक कर चूर हो जाना लाजमी है. ऐसे में वे शहर के जिस कोने में हों वहीं थकावट दूर कर तरोताजा होने की व्यवस्था को उन की जनसेवा का ही अभिन्न अंग माना जाना चाहिए.

अपनी खूबसूरत पड़ोसिन के बारे में जो सूचना मुझ तक पहुंची उस के अनुसार कुछ दिनों पहले तक हमारी पड़ोसिन निराश्रित और जमाने के जुल्मों की शिकार थीं. एक बार मदद लेने की आस में पुलिस स्टेशन पहुंचीं तो इंस्पेक्टर साहब ने उन्हें पूरा संरक्षण प्रदान कर दिया. रोटी, कपड़ा और मकान के साथसाथ सारी मूलभूत आवश्यकताओं (आप समस्याएं भी कह सकते हैं) का जिम्मा अपने सिर ले लिया. बेचारे कुछ दिनों तक तो हर रात अबला को सुरक्षा प्रदान करने आते रहे किंतु वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के पैरोकार थे. इसलिए किसी एक का पक्षपात करने के बजाय उन्होंने सप्ताह में अपना एक दिन हमारी पड़ोसिन के लिए आरक्षित कर दिया.

वह जब भी आते उन के दोनों हाथ भारीभरकम पैकेटों से लदे रहते. कई बार उन के साथ मजदूर टाइप के दोचार लोग भी होते जो कभी टीवी, कभी फ्रिज तो कभी वाशिंग मशीन जैसी चीजें उठाए रहते.

जिस दिन वह आते पड़ोसिन के फ्लैट में बड़ी चहलपहल रहती. बाकी के 6 दिन उन की आंखों में दुख का सागर लहराता रहता. कई बार मन में आता कि पड़ोसी धर्म का पालन कर उन के दुखदर्द को बांटूं किंतु इंस्पेक्टर का ध्यान आते ही सारा जोश फना हो जाता.

एक दिन मेरा बेटा नए मोबाइल के लिए जिद कर रहा था. मैं काफी देर तक उसे समझाता रहा और आखिर में अधिकांश भारतीय पिताआें की तरह उसे चांटा जड़ दिया. वह भी सच्चा सपूत था. रोरो कर बंदे ने आसमान सिर पर उठा लिया.

अगले दिन मैं आफिस जाने के लिए निकला तो लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं. संयोग से वहां हम दोनों के अलावा और कोई न था. उन्होंने मेरी ओर अपनत्व भरी नजर से देखा फिर संजीदा होती हुई बोलीं, ‘‘देखिए, बच्चों का मन मारना अच्छी बात नहीं होती है. आप उस के लिए एक नया मोबाइल खरीद ही लीजिए.’’

‘‘जी, महीने का आखिरी चल…’’ मैं चाह कर भी अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया.

पड़ोसिन अत्यंत आत्मीयता से मुसकराईं और पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर मेरी ओर बढ़ाती हुई बोलीं, ‘‘यह लीजिए, मेरी ओर से खरीद दीजिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं आप से रुपए कैसे ले सकता हूं,’’ मैं अचकचा उठा.

‘‘अरे, हम पड़ोसी हैं. एकदूसरे के सुखदुख में काम आना पड़ोसी का कर्तव्य होता है,’’ कहतेकहते उन्होंने इतने अधिकार से मेरी जेब में रुपए ठूंस दिए कि मैं न नहीं कर सका.

इस के बाद पड़ोसिन अकसर मुझे लिफ्ट में मिल जातीं और मेरी मदद कर देतीं. पता नहीं उन्हें मेरी जरूरतों के बारे में कैसे पता चल जाता था. जाने वह जादू जानती थीं या हम नौकरीपेशा गृहस्थों के चेहरे पर जरूरतों का बोर्ड टंगा रहता है. जो भी हो, मैं धीरेधीरे उन के एहसानों तले दबता चला जा रहा था.

मैं कमरतोड़ मेहनत करता था फिर भी बहुत मुश्किल से गाड़ी खींचने लायक कमा पाता था. उधर उन के पास जैसे जादू की डिबिया थी जिस में रुपए कभी कम ही नहीं होते थे. एक दिन मैं ने उन से पूछा तो वह खिलखिला पड़ीं, ‘‘जादू की डिबिया तो नहीं लेकिन मेरे पास जादू की पुडि़या जरूर है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘अब आप से क्या छिपाना,’’ पड़ोसिन ने अपने पर्स से एक छोटी सी पुडि़या निकाली. उस में सफेद पाउडर जैसा कुछ भरा हुआ था. वह उसे दिखाती हुई मुसकराईं, ‘‘मुझे जितने पैसों की जरूरत होती है इन्हें बता देती हूं. ये इस पुडि़या के दम पर उतने पैसे किसी से भी मांग लेते हैं.’’

‘‘लेकिन कोई ऐसे ही पैसे कैसे दे देगा,’’ मुझे उस पुडि़या की जादुई शक्तियों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘क्यों नहीं देगा,’’ वह रहस्यमय ढंग से मुसकराईं फिर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘अगर इस पुडि़या में रखी कोकीन की बरामदगी आप की जेब से दिखा दी जाए तो आप क्या करेंगे? अपनी इज्जत बचाने की खातिर मुंहमांगी रकम देंगे या नहीं?’’

‘‘क्या वास्तव में यह कोकीन है?’’ मेरा सर्वांग कांप उठा.

‘‘यह तो फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद कोर्ट में ही पता चलेगा, लेकिन तब तक आप की इज्जत का फलूदा बन जाएगा. सारे रिश्तेदार मान लेंगे कि इसी के दम पर आप कार पर घूमते थे,’’ उन्होंने बताया.

‘‘लेकिन कार तो मैं ने लोन ले कर खरीदी है,’’ मैं ने बचाव की कोशिश की.

‘‘सभी जानते हैं कि लोन आयकर वालों की आंखों में धूल झोंकने के लिए लिया जाता है,’’ उन्होंने मेरे रक्षाकवच को फूंक मार कर उड़ा दिया.

यह सुन कर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया. यह देख वह हलका सा मुसकराईं फिर मेरे कंधे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘लेकिन आप क्यों परेशान हो रहे हैं. आप तो हमारे शुभचिंतक हैं.’’

मेरी जान में जान आई और मैं सांस भरते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब इंस्पेक्टर साहब जिस आदमी की चाहें उस की इज्जत मिनटों में धो सकते हैं?’’

‘‘आदमी की ही क्यों वह औरत की भी इज्जत धो सकते हैं,’’ वह नयनों को तिरछा कर मुसकराईं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘दुनिया के सब से पुराने व्यापार में लिप्त बता कर. सभी जानते हैं कि आजकल अमीर घराने की महिलाएं अपने शौक की खातिर, मिडिल क्लास महिलाएं अपने ख्वाब पूरा करने की खातिर और गरीब महिलाएं अपना पेट पालने के लिए इस धंधे में लिप्त रहती हैं. इसलिए जिस पर चाहो हाथ धर दो, जनता सच मान लेगी,’’ उन्होंने सत्य उजागर किया.

‘‘बाप रे, तब तो आप के वह बहुत खतरनाक आदमी हुए,’’ मैं हड़बड़ाते हुए बोला.

‘‘लेकिन मेरे इशारों पर नाचते हैं,’’ वह गर्व से मुसकराईं और कंधे उचकाते हुए चली गईं.

2 दिन के बाद मेरी श्रीमतीजी अचानक कुछ काम से मायके चली गईं. उन के बिना खाली फ्लैट काटने को दौड़ता था लेकिन मजबूरी थी. शाम को मैं मुंह लटकाए आफिस से लौट रहा था कि लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं.

‘‘सुना है भाभीजी मायके गई हैं?’’ उन्होंने अत्यंत शालीनता से पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘अकेले में तो बड़ी बोरियत होती होगी,’’ उन्होंने मेरी आंखों में झांका.

‘‘मजबूरी है,’’ मेरे होंठ हिले.

‘‘मैं रात को आप के फ्लैट में आ जाऊंगी. सारी बोरियत दूर हो जाएगी,’’ उन्होंने मादक निगाहों से मेरी ओर देखा.

‘‘न, न…आप मेरे फ्लैट पर मत आइएगा,’’ मैं बुरी तरह घबरा उठा.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरे फ्लैट पर आ जाना,’’ वह बड़े अधिकार के साथ आप से तुम पर उतर आईं.

मैं कुछ कहने जा ही रहा था कि लिफ्ट रुक गई. कुछ लोग बाहर खड़े थे.

‘‘मेरी बात ध्यान में रखना,’’ उन्होंने आदेशात्मक स्वर में कहा और लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही तेजी से बाहर निकल गईं.

मैं पसीने से लथपथ हो गया. हांफते हुए अपने फ्लैट में आया और ब्रीफकेस फेंक बिस्तर पर गिर पड़ा.

आज मेरी समझ में आ गया कि वह गाहेबगाहे मेरी मदद क्यों करती थीं. खुद तो किसी की रखैल थीं और मुझे अपना… छी…उन्होंने मुझे बिकाऊ माल समझ रखा है. मेरा अंतर्मन वितृष्णा से भर उठा. टाइम पास करने के लिए मैं ने एक पत्रिका उठा ली. किंतु उस के पन्नों पर भी पड़ोसिन का चेहरा उभर आया. उस की मादक हंसी मुझे पास आने के लिए मौन निमंत्रण दे रही थी किंतु मैं एक सदचरित्र गृहस्थ था. किसी भी कीमत पर उस नागिन के जाल में नहीं फंसूंगा. मैं ने पत्रिका को दूर उछाल दिया.

रिमोट उठा कर मैं ने टीवी चला दिया. एक आइटम गर्ल का उत्तेजक डांस आ रहा था. यह मेरा पसंदीदा गाना था. बच्चों से छिप कर मैं अकसर इस का आनंद लेता रहता था. आज तो घर में कोई नहीं था. मैं निश्चिंत भाव से उसे देखने लगा. अचानक आइटम गर्ल की गर्दन पर पड़ोसिन का चेहरा चिपक गया. अपनी मादक अदाओं से वह मुझे पास आने का आमंत्रण दे रही थी. मेनका की तरह मेरी तपस्या भंग कर देने के लिए आतुर थी.

‘तुम मुझे अपनी तरह दलदल में नहीं घसीट सकतीं,’ मैं ने झल्लाते हुए टीवी बंद कर दिया और बिस्तर पर लेट गया.

धीरेधीरे रात गहराने लगी. मेरी भूखप्यास गायब हो चुकी थी. नींद मुझ से कोसों दूर थी. काफी देर तक मैं करवटें बदलता रहा. पड़ोसिन के शब्द मेरे कानों में अंगार की तरह दहक रहे थे. मेरे बारे में ऐसा सोचने की उस चरित्रहीन की हिम्मत कैसे हुई? अपमान से मेरा पूरा शरीर दहकने लगा था. अगर मेरे परिवार और रिश्तेदारों को इस बारे में पता चल जाए तो मैं तो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूंगा.

अचानक मेरी सोच को झटका लगा, ‘अगर मैं ने उस का कहना नहीं माना और उस ने इंस्पेक्टर से कह कर वह जादू की पुडि़या मेरी जेब से बरामद करवा दी तो क्या होगा? अपने जिस चरित्र को मैं बचाना चाहता हूं क्या उस की धज्जियां नहीं उड़ जाएंगी? क्या समाज के सामने मेरी इज्जत दो कौड़ी की नहीं रह जाएगी?

‘कुछ भी हो मैं उस के जाल में नहीं फंसने वाला. बड़ेबड़े महापुरुषों को सद्चरित्रता दिखलाने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. मेरी भी जो बेइज्जती होगी उसे सह लूंगा,’ मैं ने अटल निर्णय ले लिया.

‘ठीक है. तुम तो महापुरुषों की श्रेणी में आ जाओगे लेकिन यदि उस घायल नागिन ने बदला लेने की खातिर इंस्पेक्टर से कह कर तुम्हारी पत्नी के दामन पर दाग लगवा दिया तो? क्या वह बेचारी बेमौत नहीं मारी जाएगी? उस की पवित्रता का दामन तारतार नहीं हो जाएगा? जिस ने जीवन भर तुम्हारी निस्वार्थ सेवा की है, क्या अपने स्वार्थ की खातिर उस का जीवन बरबाद हो जाने दोगे?’ तभी मेरी अंर्तरआत्मा ने दस्तक दी.

एकएक प्रश्न हथौड़े की भांति मेरे मनोमस्तिष्क पर बरसने लगा. तेज कोलाहल से मेरे कान के परदे फटने लगे.

‘‘नहीं,’’ मैं अपने हाथों को दोनों कानों पर रख कर सिसक पड़ा. पत्नी की इज्जत की रक्षा करना तो पति का कर्तव्य होता है. मैं ने भी सात फेरों के समय इस बात की शपथ खाई थी. चाहे मेरा सर्वस्व ही क्यों न बरबाद हो जाए, मैं उस के चरित्र पर आंच नहीं आने दूंगा.

मैं ने मन ही मन एक कठोर फैसला लिया और अपने परिवार की इज्जत बचाने की खातिर पड़ोसिन के समक्ष आत्म- समर्पण करने चल दिया.

ब्रैस्ट फीडिंग के ये भी हैं फायदे

बच्चे के सही विकास का सब से अच्छा तरीका जन्म के घंटे भर के अंदर उसे मां का दूध पिलाना शुरू करना है. मां का दूध ढेर सारी खासीयतों से भरा होता है, जिस का मुकाबला किसी अन्य दूध से नहीं हो सकता है. यह मुफ्त मिलता है, आसानी से उपलब्ध है और सुविधाजनक भी. मां जब गर्भधारण करती है तब से ले कर प्रसव होने तक उस में कई शारीरिक तथा भावनात्मक बदलाव आते हैं. जब बच्चा पैदा हो जाता है तो उसे दूध पिलाने के चरण की शुरुआत होती है. इस चरण की अपनी मांग है और शुरुआती कुछ सप्ताहों में यह संभवतया सब से चुनौतीपूर्ण चरण होता है. दूध पिलाने के इस चरण को अकसर गर्भावस्था की चौथी तिमाही कहा जाता है. इस अवधि में स्थापित होना बहुत आसान है, बशर्ते बच्चे और मां की त्वचा का संपर्क जल्दी हो जाए.

आदर्श पोषण

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात को शुरू के 6 महीनों तक सिर्फ मां का दूध पिलाया जाना चाहिए. उस के बाद कम से कम 2 साल तक मां का दूध पिलाते रहना चाहिए. तभी बच्चे का स्वस्थ विकास होता है और उस की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ रहती है.

रोट्टैरडैम, नीदरलैंड स्थित इरैसमस मैडिकल सैंटर में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि जन्म के बाद 6 महीनों तक सिर्फ मां का दूध पीने वाले बच्चों में बचपन में दमा जैसे लक्षण का विकास होने का जोखिम कम रहता है. इस अनुसंधान के तहत 5 हजार बच्चों का परीक्षण किया गया. इस से पता चला कि जो बच्चे मां का दूध पीए बगैर बड़े होते हैं उन्हें शुरू के 4 वर्षों तक सांस फूलने, सूखी खांसी और लगातार बलगम निकलने की शिकायत रहती है. कभी मां का दूध नहीं पीने वाले बच्चों में इस जोखिम की आशंका 1.5 गुना और घर्रघर्र की आवाज के जोखिम की आशंका 1.4 गुना ज्यादा होती है.

अध्ययन में इस बात का भी उल्लेख है कि शुरू के 4 महीनों तक जिन बच्चों को फौर्मल दूध पिलाया जाता है और अन्य विकल्प दिए जाते हैं उन में सिर्फ मां का दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में इन लक्षणों के विकसित होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसीलिए सांस संबंधी समस्याओं से शिशुओं की मौत रोकने का सब से आसान और सस्ता विकल्प है उन्हें स्तनपान कराना. सिर्फ मां का दूध पीने वाले बच्चों की मौत की आशंका शुरू के 6 महीनों तक अन्य बच्चों की तुलना में 14 गुना कम होती है.

अच्छा अनुभव

एक मां के रूप में स्तनपान कराना बहुत ही अच्छा अनुभव है, क्योंकि मांएं अपने बच्चे का अच्छा भविष्य सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. प्रसव के बाद घंटे भर के अंदर स्तनपान शुरू कर के एक मां अपने बच्चे को कोलोस्ट्रम पिलाती है, जो बच्चे की स्वास्थ्य की समस्याओं को दुरुस्त रखने के लिहाज से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. यह प्रसव के बाद पहली बार निकलने वाला गाढ़ा, पीला तरल होता है, जिस के कई फायदे हैं.

मां का दूध बच्चे में ऐंटीबौडीज पहुंचाने का भी काम करता है. यह हर तरह के संक्रमण और ऐलर्जी से बच्चे की रक्षा करता है. मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार है. अगर बच्चा स्तनपान से वंचित रहता है तो इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि वह किसी भी संक्रमण का शिकार हो जाएगा. इन में कान का संक्रमण, सांस की समस्या, ऐक्जिमा, सीने में संक्रमण, मोटापा, पेट का संक्रमण, डायबिटीज आदि शामिल हैं.

समझें इस का महत्त्व

मां का दूध बच्चे के लिए खासतौर से तैयार होता है. इस में शामिल तत्त्व जरूरत और समय के अनुसार बदलते रहते हैं. इसलिए नए जमाने की मांओं को समझना चाहिए कि स्तनपान कितना महत्त्वपूर्ण है. उन्हें इसे बच्चे के विकास और प्रगति के लिए सब से बड़ा सहायक मानना चाहिए. कायदे से 6 माह तक के बच्चे को स्तनपान के दौरान और कुछ देने की जरूरत नहीं होती है. अगर आप ऐसा कर सकें तो अपने बच्चे को दमे जैसी कई बीमारियों से बचा सकेंगी.

– डा. प्रिया शशांक. प्रसव विशेषज्ञा, मां के दूध व स्तनपान की सलाहकार, वात्सल्यम की संस्थापक

रसोई से जीतें पति का दिल

पति के दिल का रास्ता पेट से हो कर जाता है. इस कहावत के मद्देनजर पति का प्यार पाने के लिए पत्नी को तरहतरह के लजीज व्यंजन बना कर उसे खिलाने होंगे. वहीं आज की व्यस्त और भागदौड़ भरी जिंदगी में कामकाजी महिला के पास समय कम होने की वजह से घर में सभी काम के लिए मेड रख ली जाती है, जो खाने से ले कर कपड़े, बरतन, साफसफाई सभी कार्य निबटाती है. ऐसे में कोई कामकाजी महिला पति के दिल में कैसे जगह बनाए, इस के लिए भी रास्ता मौजूद है. उस रास्ते को अपनाइए, फिर देखिए रसोई के काम कैसे आसान हो जाते हैं.

रसोई प्रबंधन

वर्तमान समय में भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की कमी को दूर करने के लिए रसोई प्रबंधन बेहद जरूरी है. ऐसा करने से रसोई के काम आसान हो जाते हैं. कैसे,  आइए जानें :

घर के सभी काम अपनी मेड से करवाएं पर रसोई का काम खुद करें, खासकर खाना बनाने का काम. आजकल ‘रेडी टु ईट’ वाले हैल्दी फूड मार्केट में मिलते हैं. उन को आप बहुत ही कम समय में बना सकती हैं. ये कुक्ड, अनकुक्ड और रेडी मिक्स फूड होते हैं. आप इन्हें खरीद कर रसोई का काम मिनटों में कर सकती हैं.

नाश्ते और दोपहर के खाने की तैयारी पिछली रात में ही कर लें, जैसे सब्जी काटना, आटा गूंधना आदि. इस से सुबह के समय आसानी होगी.

रात की बची हुई दाल का सांभर बना कर परोस सकती हैं या दाल को आटे में गूंध कर उस के परांठे या पूरियां बना लें. नाश्ते के लिए ये हैल्दी और बैस्ट औप्शंस है.

खड़ी दाल, राजमा या छोले बनाने हों तो उन्हें रात में ही धो कर भिगो दें. इस से कुकिंग टाइम के साथ रसोई गैस की भी बचत होती है.

होममेड गार्लिक, जिंजर, ग्रीन चिली, ओनियन का पेस्ट बना लें. उस पेस्ट में एक छोटा चम्मच गरम तेल और थोड़ा सा नमक मिला देने से वह ज्यादा दिनों तक फ्रैश रहता है. फिर इस से ग्रेवी वाली सब्जी बनाने में ज्यादा समय नहीं लगता.

पति करें मदद

अगर पति को पत्नी के हाथों का बना खाना ही खाना है तो उन्हें चाहिए कि वे घर के कामों में पत्नी की मदद करें. कामकाजी पत्नी को जब पति से मदद मिलेगी तो उस की पसंद की चीजें बनाने में उस की रुचि जरूर रहेगी. जब दोनों पैसा कमाते हैं तो घर के काम भी दोनों को करने चाहिए. इस से दोनों में प्रेम भी बढ़ेगा.

रसोई संभालने के फायदे

  1. खुद खाना बनाने से महिला अपने परिवार से भावनात्मक रूप से जुड़ी रहेगी और अपने पति व बच्चों की पसंद को भी समझेगी.
  2. जब पत्नी खुद रसोई संभालेगी तो साफसफाई का विशेष ध्यान रखेगी जो उस के परिवार के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होगा.
  3. खुद खाना बनाने से मालूम रहेगा कि कौन सा सामान कितनी मात्रा में बनाना है. बजट के अनुसार ही आप खर्च करेंगी. कोई भी चीज बरबाद नहीं होगी.
  4. वैसे भी रसोई की पत्नी द्वारा देखभाल किया जाना बहुत जरूरी है. इस से रसोईघर व्यवस्थित रहता है.
  5. खुद खाना बनाने से पैसों की बचत, सामान की बचत और स्वास्थ्यवर्द्धक खाना बनने के साथसाथ कई दूसरे लाभ भी होते हैं.
  6. खुद के खाना बनाने से आप अपने पति व परिवार को ज्यादा पौष्टिक व ज्यादा स्वादिष्ठ खानपान दे सकती हैं.
  7. आप के रसोई में काम करने से परिवार में प्यार और अपनत्व की भावना का विकास होगा.
  8. पत्नी रसोई में काम करेगी तो वह अपनी सुविधा और समय के अनुसार काम करेगी.
  9. आप टैंशनमुक्त हो कर परिवार के खानपान पर अच्छी तरह से ध्यान दे पाएंगी.
  10. खाना बनाने के काम में घर के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है. इस से काम का प्रैशर ज्यादा नहीं रहेगा.

पैक्ड फूड

कामकाजी महिलाओं के लिए पैक्ड फूड काफी सुविधाजनक होते हैं. पैक्ड दाल, चावल लाने से समय की बचत होती है. उन्हें न बीनना न साफ करना, सिर्फ धोना और पकाना होता है. आज इन्हीं पैक्ड फूड की वजह से महिलाओं की जिंदगी काफी आसान हो गई है.पत्नी इन सब बातों का ध्यान रखेगी तो वह अपने पति की चहेती बनने के साथसाथ उन के स्वास्थ्य और सेहत का भी ध्यान रख पाएगी. इतना ही नहीं इस से आपस में मिलजुल कर काम करने के साथ प्रेम की भावना का विकास भी होगा.

बेटी के साथ ‘बार्बी’ देखनी पहुंची Juhi Parmar, 10 मिनट में ही फिल्म छोड़ आई बाहर

Juhi Parmar :  रयान गोसलिंग और मार्गोट रॉबी स्टारर ‘बार्बी’ फिल्म इस समय खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. बार्बी की खूबसूरत दुनिया पर बनी ये फिल्म (Barbie) लोगों का दिल जीतने में सफल रही. इसी वजह से कई फेमस सेलेब्स भी अपने बच्चों के साथ इसे देखने थिएटर पहुंच रहे हैं. इसी कड़ी में टीवी एक्ट्रेस जूही परमार भी अपनी 10 साल की बेटी समायरा संग ये मूवी देखने पहुंची. हालांकि एक्ट्रेस (Juhi Parmar) इस फिल्म से निराश है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक ओपन लेटर लिखकर अपनी बात रखी हैं.

जूही को पसंद नहीं आया बार्बी’  कंटेंट

दरअसल एक्ट्रेस जूही (Juhi Parmar) परमार ने अपने इंस्टाग्राम अकांउट पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट शेयर किया है. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, “ डियर बार्बी, मैं अपनी गलती को मानने से स्टार्ट कर रही हूं. मैं अपनी 10 साल की बेटी समायरा को तुम्हारी फिल्म दिखाने गई थी. बिना यह फैक्ट रिसर्च किए कि यह पीजी-14 मूवी है. फिल्म (Barbie) में 10 मिनट तक सही भाषा नहीं थी और आपत्तिजनक सीन भी थे. लास्ट में परेशान होकर मैं यह सोचते हुए बाहर निकल आई कि मैंने अपनी बेटी को यह क्या दिखा दिया. वह कब से तुम्हारी फिल्म देखने का वेट कर रही थी. मैं शॉक्ड थी, निराश थी और मेरा दिल भी टूट गया कि मैंने अपनी बेटी को क्या दिखा दिया.”

फिल्म को बीच में छोड़कर भागी जूही

एक्ट्रेस (Juhi Parmar) ने आगे लिखा, “ मैं पहली थी जो फिल्म (Barbie) शुरू होने के 10-15 मिनट बाद ही इसे बीच में छोड़कर वहां से बाहर चली गई. लेकिन मैंने बाद में नोटिस किया कि कुछ और पेरेंट्स भी फिल्म बीच में छोड़कर बाहर निकल आए थे और उनके बच्चे बहुत रो रहे थे. हालांकि कुछ ने फिल्म पूरी भी देखी. पर मैं खुश हूं कि मैं अपनी बच्ची को लेकर 10-15 मिनट में ही हॉल से बाहर आ गई थी. मैं तो यह ही कहूंगी कि तुम्हारी फिल्म बार्बी लैंग्वेज और कंटेंट के कारण 13 साल से ज्यादा के बच्चों के लिए भी सही नहीं हैं.

जूही परमार बार्बी’ से हुईं निराश

वहीं जूही (Juhi Parmar) ने पोस्ट के कैप्शन में लिखा, “मैं आज जो कुछ भी आपके साथ शेयर कर रही हूं उससे मेरे बहुत सारे ऑडियंस खुश नहीं होंगे और कई लोग तो मुझसे गुस्सा भी हो सकते हैं लेकिन मैं इस नोट को एक कंसर्न पेरेंट्स के रूप में साझा कर रही हूं इसलिए मुझे गलत न समझें.” आगे उन्होंने लिखा, “जो गलती मैंने की है वो न करें और प्लीज अपने बच्चे को फिल्म दिखाने ले जाने से पहले चेक जरूर कर लें. ये ऑप्शन आपका है!”

21 जुलाई को रिलीज हुई थी फिल्म

आपको बता दें कि फिल्म ‘बार्बी’ (Barbie) 21 जुलाई को रिलीज हुई थी, जो भारत के साथ-साथ दुनिया भर में धमाल मचा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस वीकेंड में ‘बार्बी’ ने इंटरनेशनल बॉक्स ऑफिस पर लगभग 182 मिलियन डॉलर का कलेक्शन किया था. इसके बाद इसकी कुल कमाई 337 मिलियन डॉलर यानी 276.39 करोड़ रुपए के पार हो गई है.

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