Download App

छत : भाग 1

‘‘सुनते हो जी,’’ दीबा ने धीरे

से उस के हाथों को छूते

हुए पुकारा.

‘‘क्या है,’’ वह इस कदर थक चुका था कि उसे दीबा का उस समय इतने प्रेम से आवाज देना और स्पर्श करना भी बुरा लगा.

उस का मन चाह रहा था कि वह बस यों ही आंखें बंद किए पलंग पर लोटपोट करता रहे और अपने शरीर की थकान दूर करता रहे.

उस दिन स्थानीय रेलगाड़ी में कुछ अधिक ही भीड़ थी और उसे साइन स्टेशन तक खड़ेखड़े आना पड़ा था और वह भी इस बुरी हालत में कि शरीर को धक्के लगते रहे और लगने वाले हर धक्के के साथ उसे अनुभव होता था, जैसे उस के शरीर की हड्डियां भी पिस रही हैं.

उस के बाद पैदल सफर, दफ्तर के काम की थकान, इन सारी बातों से उस का बात करने तक का मन नहीं हो रहा था.

बड़ी मुश्किल से उस ने कपड़े बदल कर मुंह पर पानी के छींटे मार कर स्वयं को तरोताजा करने का प्रयत्न किया था. इस बीच दीबा चाय ले आई थी. उस ने चाय कब और किस तरह पी थी, स्वयं उसे भी याद नहीं था.

पलंग पर लेटते समय वह सोच रहा था कि यदि नींद लग गई तो वह रात का भोजन भी नहीं करेगा और सवेरे तक सोता रहेगा.

‘‘दोपहर को पड़ोस में चाकू चल गया,’’ दीबा की आवाज कांप रही थी.

‘‘क्या?’’ उसे लगा, केवल एक क्षण में ही उस की सारी थकान जैसे कहीं लोप हो गई और उस का स्थान भय ने ले लिया है. उसे अपने हृदय की धड़कनें बढ़ती अनुभव हुईं, ‘‘कैसे?’’

‘‘वह अब्बास भाई हैं न…उन का कोई मित्र था. कभीकभी उन के घर आता था. आज शायद शराब पी कर आया था और उस ने अब्बास भाई की पत्नी पर हाथ डालने का प्रयत्न किया. पत्नी सहायता के लिए चीखी…उसी समय अब्बास भाई भी आ गए. उन्होंने चाकू निकाल कर उसे घोंप दिया…उस के पेट से निकलने वाला वह खून का फुहारा…मैं वह दृश्य कभी नहीं भूल सकती,’’ दीबा का चेहरा भय से पीला हो गया था.

‘‘फिर?’’

‘‘किसी ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस आ कर उस घायल को उठा कर ले गई. पता नहीं, वह जिंदा भी है या नहीं. अब्बास भाई फरार हैं. पुलिस उन्हें ढूंढ़ रही है. पुलिस वाले पड़ोसियों से भी पूछने लगे कि सबकुछ कैसे हुआ. मुझ से भी पूछा… परंतु मैं ने साफ कह दिया कि मैं उस समय सोई हुई थी.’’

दीबा की सांसें तेजी से चल रही थीं. उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया था, जैसे वह दृश्य अब भी उस की आंखों के सामने नाच रहा हो. स्वयं उस के माथे पर भी पसीने की बूंदें उभर आई थीं. उस ने जल्दी से उन्हें पोंछा कि कहीं दीबा उस की स्थिति से इस बात का अनुमान न लगा ले कि वह इस बात को सुन कर भयभीत हो उठा है. वह यही कहेगी, ‘आप सुन कर इतने घबरा गए हैं तो सोचिए, मेरे दिल पर क्या गुजर रही होगी. मैं ने तो वह दृश्य अपनी आंखों से देखा है.’

‘‘पड़ोसी कह रहे थे,’’ दीबा आगे बताने लगी, ‘‘अब्बास भाई ने जो किया, अच्छा ही किया था. वह आदमी इसी सजा का हकदार था. शराब पी कर अकसर वह लोगों के घरों में घुस जाता था और घर की औरतों से छेड़खानी करता था. अब्बास भाई का तो वह दोस्त था, परंतु उस ने उन की पत्नी के साथ भी वही व्यवहार किया…’’ उस ने दीबा का अंतिम वाक्य पूरी तरह नहीं सुना क्योंकि उस के मस्तिष्क में एक विचार बिजली की तरह कौंधा था. ‘अब्बास भाई के पड़ोस में ही उस का घर था. दीबा घर में अकेली थी… अगर वह आदमी…’

‘‘आप कहीं और खोली नहीं ले सकते क्या?’’ दीबा की सिसकियों ने उस के विचारों की शृंखला भंग कर दी. वह उस के सीने पर अपना सिर रख कर सिसक रही थी.

‘‘आप सुबह दफ्तर चले जाते हैं और शाम को आते हैं. मुझे दिन भर अकेले रहना पड़ता है. अकेले घर में मुझे बहुत डर लगता है. दिन भर आसपास लड़ाईझगड़े, मारपीट होती रहती है. कभी चाकू निकलते हैं तो कभी लाठियां. पुलिस छापे मार कर कभी शराब, अफीम बरामद करती है तो कभी तस्करी का सामान. कभी कोई गुंडा किसी औरत को छेड़ता है तो कभी किसी खोली में कोई वेश्या पकड़ी जाती है. हम कब तक इस गंदगी से बचते रहेंगे. कभी न कभी तो हमारे दामन पर इस के छींटे पड़ेंगे ही… और कभी इस गंदगी का एक छींटा भी मेरे दामन पर पड़ गया तो मैं दुनिया को अपना मुंह दिखाने के बजाय मौत को गले लगाना बेहतर समझूंगी,’’ उस के सीने पर सिर रख कर दीबा सिसक रही थी.

उस की नजरें छत पर जमीं थीं. मस्तिष्क कहीं और भटक रहा था, उस का एक हाथ दीबा की पीठ पर जमा था और दूसरा हाथ उस के बालों से खेल रहा था.

दीबा ने जो सवाल उस के सामने रखा था, उस ने उसे इतना विवश कर दिया था कि वह चाह कर भी उस का उत्तर नहीं दे सकता था. न वह दीबा से यह कह सकता था कि ‘ठीक है, हम किसी दूसरे घर का प्रबंध करेंगे और न ही यह कह सकता था कि यहां से कहीं और जाना हमारे लिए संभव नहीं है.

इस बात का पता दीबा को भी था कि कितनी मुश्किल से यह घर मिला था.

शकील का एक जानपहचान वाला था जो पहले यहीं रहता था. उस ने अपने वतन जाने का इरादा किया था. उसे पता था कि शकील मकान के लिए बहुत परेशान है. उस ने पूरी सहानुभूति से उस की सहायता करने की कोशिश की थी.

नाखूनों से जानें हेल्थ का राज : ये बदलाव दिखे तो हो जाएं अलर्ट

हमारे नाखून हमारे शरीर में किस चीज की कमी है या कौन सी बीमारी दस्तक दे रही है, उस की कंडीशन क्या है आदि आसानी से बता देते हैं.

इस बारे में मुंबई की ‘द स्किन इन’ की डर्मेटोलौजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती हैं कि नाखूनों की सहायता से मिनरल्स, विटामिंस की कमी के अलावा थायराइड, ऐनीमिया, कार्डियक डिजीज, लंग्स डिसऔर्डर आदि बीमारियों का पता आसानी से लगाया जा सकता है. हैल्दी नाखूनों का रंग हमेशा हलका गुलाबी होता है. हर दिन हैल्दी नाखून 0.003 मिलीमीटर से 0.01 मिलीमीटर तक बढ़ते हैं, लेकिन यह व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है. कम उम्र में नाखून जल्दी बढ़ते हैं, जबकि अधिक उम्र होने पर इन के बढ़ने की रफ्तार धीमी हो जाती है. ठंड के मौसम में नाखून जल्दी नहीं बढ़ते, जबकि गरमी के मौसम में जल्दी बढ़ते हैं.

क्या कहते हैं नाखून

– अगर नाखूनों का आकार तोते की चोंच की तरह हो रहा है, तो उस व्यक्ति को कार्डियक की बीमारी या लंग्स डिसऔर्डर होने की संभावना होती है.

– नाखून की सतह पर सफेद लकीरें बायोटिन की कमी का संकेत देती हैं. बायोटिन शरीर में उपस्थित बैड कोलैस्ट्रौल को घटा कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है. इस के अलावा ऐसे नाखून लिवर संबंधी बीमारी की ओर भी इशारा करते हैं. इस के लिए फ्रैश वैजिटेबल्स और सलाद खाना लाभदायक रहता है.

– कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिंस की कमी से नाखून ब्रिटल हो जाते हैं. इस में नाखूनों के ऊपर से पपड़ी निकलने लगती है. असल में ऐसे नाखूनों में ब्लड सर्कुलेशन कम होता है. ऐसे नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर थायराइड या आयरन की कमी के शिकार होते हैं. अत: समय रहते इलाज कराना जरूरी है. एग, फिश, बादाम आदि का सेवन इस में लाभदायक होता है.

– जिन के नाखूनों का रंग नीला होता है उन की श्वास की बीमारी, निमोनिया या दिल से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होने की संभावना होती है.

– पीले नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर पीलिया के शिकार होते हैं. इस के अलावा सिरोसिस और फंगल इन्फैक्शन जैसी बीमारियां भी उन्हें हो सकती हैं. धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के नाखून भी पीले या बदरंग हो जाते हैं.

– आधे सफेद और आधे गुलाबी रंग के नाखून वाले व्यक्ति को किडनी से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं. ऐसे नाखून खून की कमी का भी संकेत देते हैं.

– सफेद रंग के नाखून लिवर से संबंधित बीमारियों जैसे हैपेटाइटिस का संकेत देते हैं.

– कई बार नाखूनों के आसपास की त्वचा सूखने लगती है. इस की अनदेखी न करें. ऐसा विटामिन सी, फौलिक ऐसिड या प्रोटीन की कमी से होता है, इसलिए अपने आहार में प्रोटीनयुक्त पदार्थ, पत्तेदार सब्जियां आदि जरूर शामिल करें.

डा. सोमा कहती हैं कि महिलाएं पानी में अधिक काम करती हैं. इसलिए उन में नाखूनों की बीमारी अधिक देखी जाती है. उन्हें अपने नाखूनों की देखभाल ऐसे करनी चाहिए:

– काम करने के बाद हलके गरम पानी से नाखूनों को साफ करने के बाद नेल क्रीम या किसी भी कोल्ड क्रीम से नाखूनों को मौइश्चराइज करें.

– ऐसीटोन युक्त नेल रिमूवर से नेल पौलिश कभी साफ न करें.

– नाखूनों को समयसमय पर काट कर नेल फौइलर द्वारा साफ करें.

– नेल पौलिश लगाने से पहले नेल हार्डर लगाएं ताकि नाखून कैमिकल से सुरक्षित रहें.

– नाखूनों की बाहरी त्वचा का खास ध्यान रखें. नेल क्यूटिकल्स ही नाखूनों को फंगल और बैक्टीरिया के इन्फैक्शन से बचाते हैं.

– खाने में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स वाले पदार्थ अधिक लें.

मैं गृहणी हूं, मेरा पूरा परिवार अपने-अपने काम में व्यस्त रहता है, मैं घर की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते थक चुकी हूं, अब मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 38 वर्षीय गृहिणी हूं. घर की पूरी जिम्मेदारी मेरी है. पति जौब पर सुबह चले जाते हैं जो रात 9 बजे तक वापस घर लौटते हैं. बच्चे कालेज में पढ़ते हैं. दोनों का अपनाअपना रूटीन है. मैं सब के  हिसाब से चलती हूं. घर का हिसाबकिताबलेनादेनानातेरिश्तेदारीअड़ोसपड़ोस सब का खयाल रखना मेरी जिम्मेदारी है. कभीकभी तो ऐसा लगता है जैसे मैं कोई मशीन हूं जिस में सब बातें फीड हो रही हैं. दिमाग लगता है जैसे सब बातों से भर गया है. आजकल तो कुछ ज्यादा ही महसूस कर रही हूं कि मन और दिमाग अव्यवस्था का शिकार हो रहा है. कैसे मैं अपना दिमाग शांत करूंकुछ सम नहीं आ रहा?

जवाब

सब से पहले फालतू की बातों को दिमाग से निकालना जरूरी है. आप घरगृहस्थी के कामों में बुरी तरह से फंसी हुई हैं. कई तरह की समस्याओं का सामना अकेली कर रही हैं. अकसर गृहिणी को यह सुनने को मिलता है कि घर में तो रहती हो सारा समयकाम ही क्या है तुम्हारे पास.

लेकिन कहने वाले नहीं जानते कि गृहिणी होममेकर होती है. उसी के बलबूते घर के बाकी सदस्य बेफिक्र हो कर बाहर काम करते हैं.

खैरबात करते हैं आप के मन को स्थिर करने की. तोसब से पहले साउंड स्लीप को प्राथमिकता दें. मैंटल हैल्थ को मजबूती प्रदान करने के लिए नींद जरूरी है. पर्याप्त नींद नहीं मिलती तो इस से सोचनेसम?ाने की शक्ति प्रभावित होती है. यदि आप अपने दिमाग को व्यवस्थित करना चाहती हैं तो सब से पहले साउंड स्लीप लेने की आदत विकसित करें.

आप को नियमित रूप से व्यायाम करने की जरूरत है. आप का दिमाग कई सारी बातों से भरा हुआ है तो आप निश्चित रूप से तनाव में रहती होंगी. तनावमुक्त होने के लिए व्यायाम शुरू करें. आप शांत और सहज होती जाएंगी. आप की व्याकुलता खत्म होती जाएगी.

आप के पास एक लंबी टू-डू लिस्ट होगी लेकिन यह आप को सोचना है कि पहले कौन सा काम करना है. आप देखेंगी कि जैसे ही आप प्रायोरिटी के अनुरूप काम करना शुरू करेंगी तो आप का दिमाग हल्का होना शुरू हो जाएगा.

कई बार हम खुद को बैस्ट साबित करने के लिए अपने ऊपर कई तरह के काम लाद लेते हैं. यह मल्टीटास्किंग हमारे दिमाग को प्रभावित करने लगता है. इसलिए कई काम करने के बजाय एक काम पर ध्यान केंद्रित करें.

इन सब बातों को अपनाएं. आप अपने में काफी बदलाव महसूस करेंगी.

मां की बनारसी साड़ी : भाग 1

आज फिर अलमारी खोलते ही पूर्णिमा की नजर जब बनारसी साड़ी पर पड़ी तो वह उदास हो उठी. साड़ी को हाथ में उठा कर उसे सहलाते हुए वह सोचने लगी कि आज भी इस की सुंदरता में कोई फर्क नहीं पड़ा है और इस का रंग तो आज भी वैसे ही चटक है जैसे सालों पहले था.

याद है उसे, अपने बहू भातरिसैप्शन पर जब उस ने यह साड़ी पहनी थी तब जाने कितनों की नजरें इस बनारसी साड़ी पर अटक गई थीं. अटकें भी क्यों न, यह बनारसी साड़ी थी ही इतनी खूबसूरत. केवल खास शुभ अवसरों पर ही पूर्णिमा इस बनारसी साड़ी को पहनती और फिर तुरंत उसे ड्रायवाश करवा कर अलमारी में रख दिया करती थी. अपनी शादी की सालगिरह पर भी जब वह इस बनारसी साड़ी को पहनती, तो रजत, उस के पति, उसे अपलक देखते रह जाते थे, जैसे वह आज भी कोई नईनवेली दुलहन हो. लाल-हरे रंग की इस बनारसी साड़ी में पूर्णिमा का गोरा रंग और दमक उठता था.

मम्मा, पापा कब से आप को आवाज दे रहे हैं,” पीछे से जब अलीमा बोली तो पूर्णिमा ने वह बनारसी साड़ी झट से अलमारी के एक कोने में लगभग ठूंस दी और कुछ यों ही ढूंढ़ने का नाटक करने लगी. आप अलमारी में कुछ ढूंढ़ रही हो, मम्मा?” अलीमा ने पूछा तो पूर्णिमा बोली कि नहीं तो, कुछ भी तो नहीं. लेकिन उसे लगा कि पूर्णिमा हाथ में कुछ पकड़े अपने आप में बुदबुदा रही थी और जैसे ही उस की आवाज सुनाई पड़ी, झट से उस ने वह चीज अलमारी में रख दी. लेकिन पता नहीं वह झूठ क्यों बोल रही है कि अलमारी में कुछ ढूंढ़ रही थी पर मिल नहीं रहा है. आप बताओ, मैं ढूंढ़ देती हूं न,” अलीमा बोली तो अलमारी बंद कर पूर्णिमा कहने लगी कि नहींनहीं, कुछ खास जरूरी नहीं था. तुम रहने दो. ठीक है मम्मा, लेकिन वो पापा आप को बुला रहे हैं, जल्दी आ जाओ.

हांहां, मैं आती हूं, तुम जाओ,” बोल कर पूर्णिमा ने फिर एक बार अलमारी खोल कर उस चीज को देखा और भरे मन से अलमारी बंद कर दी. बोलो, कुछ कहना चाह रहे थे तुम?” सोफे पर रजत के बगल में बैठती हुई पूर्णिमा बोली, तो रजत कहने लगा कि उन की शादी की 25वीं सालगिरह पर अमेरिका से पल्लवी दीदी अपने पति के साथ आ रही हैं. तो सोच रहा हूं कि ऊपर का कमरा ठीकठाक करवा कर पूरे घर को पेंट करवा दिया जाए. थोड़ा अच्छा लगेगा.

अरे, तो मुझ से क्यों पूछ रहे हो. जो करना है, करो न,” जरा झुंझलाती हुई पूर्णिमा बोली, “ऐसे लगता है कि हर काम तुम मुझ से पूछ कर ही करते हो.अलीमा ने महसूस किया कि जब से वह अपने कमरे से बाहर आई है, थोड़ा बेचैन नजर आ रही है. कारण क्या है, नहीं पता उसे, पर जानना चाहती थी.

अरे, पूछ इसलिए रहा हूं कि तुम कहो तो…आधी बात बोल कर रजत चुप हो गए. फिर बोले, “अच्छा, आलोक को वौक पर से आ जाने दो, फिर बात करते हैं. यह लो, आलोक भी आ ही गया. मैं कह रहा था कि ऊपर का कमरा ठीकठाक करवा कर पूरे घर में पेंट करवा दिया जाए, तो कैसा रहेगा? दीपावली भी आ रही है. हां, थोड़ा खर्चा तो आएगा लेकिन घर की लाइफ बढ़ जाएगी. बोलो, तुम क्या कहते हो?” बेटे आलोक की तरफ मुखातिब हो कर रजत बोले, तो वह कहने लगा कि यह तो बहुत ही अच्छा आइडिया है.

तो फिर ठीक है, मैं बात कर लेता हूं,” पूर्णिमा की तरफ देखते हुए रजत बोले और फिर उठ कर औफिस जाने के लिए तैयार होने लगे.

पूर्णिमा ने उन की बातों पर हां-नकुछ भी नहीं कहा और वह भी उठ कर किचन में चली आई. किचन में भले ही वह अलीमा का हाथ बंटा रही थी पर उस का दिल-दिमाग अब भी उसी साड़ी पर अटक हुआ था कि काश, काश वैसा न हुआ होता तो कितना अच्छा होता. पूर्णिमा को गुमसुम, उदास देख कर अलीमा ने कई बार हिम्मत जुटाई पूछने की कि क्या बात है? क्यों वह इतनी चुपचुप है. लेकिन पूछ न पाई.

खैर, खापी कर आलोक और रजत दोनों औफिस के लिए निकल गए और कुछ देर बाद अलीमा भी यह कह कर अपने औफिस के लिए निकल गई कि आज वह जल्दी घर आ जाएगी. कहीं न कहीं उसे पूर्णिमा की उदासी बेचैन कर रही थी. समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें हुआ क्या है? भले ही रजत और आलोक ने मार्क न किया हो पर अलीमा इंसान का चेहरा अच्छे से पढ़ना जानती है. अपनी सोच में डूबी अलीमा औफिस तो पहुंच गई लेकिन इधर सब के औफिस जाने के बाद पूर्णिमा अपने कमरे में आ कर सिसकसिसक कर रोने लगी.

दरअसल, आज ही के दिन पूर्णिमा की मां का देहांत हुआ था और यह बनारसी साड़ी उस की मां की आखिरी निशानी थी उस के पास. वह इस दुख से मरी जा रही है कि अपनी मां की आखिरी निशानी भी वह संभाल कर रख नहीं पाई ठीक से. उस ने तो मना किया था पर रजत ने ही जिद कर के उसे दीपावली पर वह बनारसीर साड़ी पहनने को मजबूर कर दिया था कि वह इस साड़ी में बहुत ही सुंदर लगती है.

रजत का मन रखने के लिए जब वह उस साड़ी को पहन कर छत पर दीपावली मनाने गई, तो जलता हुआ एक फूलचकरी उस के आंचल में लग गई और देखते ही देखते उस का आंचल जलने लगा. वह तो रजत ने देख लिया वरना उस साड़ी के साथ पूर्णिमा भी जल कर खाक हो जाती उस दिन.

दोष तो इस में किसी का भी नहीं था. एक होनी थी जो हो गई. लेकिन पूर्णिमा आज भी उस बात के लिए रजत को ही दोषी मानती है कि उस की ही जिद के कारण उस की मां की आखिरी निशानी आग में जल गई. पहन तो नहीं सकती अब वह उस साड़ी को, पर उस की मां की आखिरी निशानी है, इसलिए संभाल कर अलमारी में रख दिया. लेकिन जब कभी भी उस की नजर उस साड़ी पर पड़ती है तो दिल में मां की याद हुक मारने लगती है.

पूर्णिमा की मां ने अपनी एकलौती बेटी की शादी को ले कर हजारों सपने देख रखे थे. बचपन से ही वह उस के लिए गहने-कपड़े जोड़जोड़ कर रखती आई थी. रजत से जब उस की शादी तय हुई तो कितना रोई थी वह यह सोच कर की नाजों से पली गुड़िया बेटी अब पराई हो जाएगी. फिर कैसे जिएगी वह उस के बिना. लेकिन फिर उस ने खुद को ही समझाया था कि बेटियां पराई थोड़े ही होती हैं, बल्कि शादी के बाद तो वे और अपने मांबाप के करीब आ जाती हैं और फिर कौन सा उस की ससुराल बहुत दूर है. जब मन होगा, चले जाएंगे मिलने. बिटिया भी आती ही रहेगी.

हिंडोला : भाग 1

ढाई इंच मोटी परत चढ़ आई थी, पैंतीसवर्षीय अनुभा के बदन पर. अगर परत सिर्फ चर्बी की होती तो और बात होती, उस के पूरे व्यक्तित्व पर तो जैसे सन्नाटे की भी एक परत चढ़ चुकी थी. खामोशी के बुरके को ओढ़े वह एक यंत्रचालित मशीनीमानव की तरह सुबह उठती, उस के हाथ लगाने से पहले ही जैसे पानी का टैप खुल जाता, गैस पर चढ़ा चाय का पानी, चाय के बड़े मग में परस कर उस के सामने आ जाता. कार में चाबी लगाने से पहले ही कार स्टार्ट हो जाती और रास्ते के पेड़ व पत्थर उसे देख कर घड़ी मिलाते चलते, औफिस की टेबल उसे देखते ही काम में व्यस्त हो जाती, कंप्यूटर और कागज तबीयत बदलने लगते.

आज वह मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोस्ट पर काबिज थी. सधे हुए कदम, कंधे तक कटे सीधे बाल, सीधे कट के कपड़े उस के आत्मविश्वास और उस की सफलता के संकेत थे.

कादंबरी रैना, जो उस की सेके्रटरी थी, की ‘गुडमार्निंग’ पर अनुभा ने सिर उठाया. कादंबरी कह रही थी, ‘‘अनु, आज आप को अपने औफिस के नए अधिकारी से मिलना है.’’

‘‘हां, याद है मुझे. उन का नाम…’’ थोड़ा रुक कर याद कर के उस ने कहा, ‘‘जीजीशा, यह क्या नाम है?’’

कादंबरी ने हंसी का तड़का लगा कर अनुभा को पूरा नाम परोसा, ‘‘गिरिजा गौरी शंकर.’’

किंतु अनुभा को यह हंसने का मामला नहीं लगा.

‘‘ठीक है, वह आ जाए तो 2 कौफी भेज देना.’’

बाहर निकल कर कादंबरी ने रोमा से कहा, ‘‘लगता है, एक और रोबोट आने वाली है.’’

‘‘हां, नाम से तो ऐसा ही लगता है,’’ दोनों ने मस्ती में कहा.

जीजीशा तो निकली बिलकुल उलटी.  जैसा सीरियस नाम उस का, उस के उलट था उस का व्यक्तित्व. क्या फिगर थी, क्या चाल, फिल्मी हीरोइन अधिक और एक अत्यंत सीनियर पोस्ट की हैड कम लग रही थी. उस के आते ही सारे पुरुषकर्मी मुंहबाए लार टपकाने लगे, सारी स्त्रियां, चाहें वे बड़ी उम्र की थीं या कम की, अपनेअपने कपड़े, चेहरे व बाल संवारने लगीं.

लगभग 35 मिनट के बाद जीजीशा जब अनुभा के कमरे से लौटी तो उस के कदम कुछ असंयमित से थे. वह कादंबरी के सामने की कुरसी पर धम से बैठ गई.

‘‘लीजिए, पानी पीजिए. उन से मिल कर अकसर लोगों के गले सूख जाते हैं,’’ मिस रैना ने अनुभा के औफिस की तरफ इशारा किया. अनुभा तो थी ही ऐसी, कड़क चाय सी कड़वी, किंतु गर्म नहीं. कड़वाहट उस के शब्दों में नहीं, उस के चारों ओर से छू कर आती थी.

जीजीशा अनुभा की हमउम्र थी, परंतु औफिस में उसे रिपोर्ट तो अनुभा को ही करना था. औफिस में सब एकदूसरे का नाम लेते थे, सिर्फ नवीन खन्ना को बौस कहते थे.

ऐसा नहीं था कि गला सिर्फ जीजीशा का सूखा हो, उस से मिल कर अनुभा की जीवनरूपी मशीन का एकएक पुर्जा चरचरा कर टूट गया था. जीजीशा ने उसे नहीं पहचाना, किंतु अनुभा उसे देखते ही पहचान गई थी. जीजीशा, उर्फ गिरिजा गौरी शंकर या मिट्ठू?

पलभर में कोई बात ठहर कर सदा के लिए स्थायी क्यों बन जाती है? अनुभा के स्मृतिपटल पर परतदरपरत यह सब क्या खुलता जा रहा था? कभी उसे अपना बचपन झाड़ी के पीछे छुप्पनछुपाई खेलता दिखता तो कभी घुटने के ऊपर छोटी होती फ्रौक को घुटने तक खींचने की चेष्टा में बढ़ा अपना हाथ.

एक दिन फ्रौक के नीचे सलवार पहन कर जब वह बाहर निकली थी उस की फैशनेबल दीदी यामिनी, जो कालेज में पढ़ती थीं, उसे देख कर हंसते हुए उस के गाल पर चिकोटी काट कर बोलीं, ‘अनु, यह क्या ऊटपटांग पहन रखा है? सलवारसूट पहनने का मन है तो मम्मी से कह कर सिलवा ले, पर तू तो अभी कुल 14 बरस की है, क्या करेगी अभी से बड़ी अम्मा बन कर?’

इठलाती हुई यामिनी दीदी किताबें हवा में उछाल कर चलती बनीं.

अनुभा कभी भी दीदी की तरह नए डिजाइन के कपड़े नहीं पहन पाई. उस में ऐसा क्या था जो तितलियों के झुंड में परकटी सी अलगथलग घूमा करती थी. घर में भी आज्ञाकारी पुत्री कह कर उस के चंचल भाईबहन उस पर व्यंग्य कसते थे.

‘मां की दुलारी’, ‘पापा की लाड़ली’, ‘टीचर्स पैट’ आदि शब्दों के बाण उस पर ऐसे छोड़े जाते थे मानो वे गुण न हो कर गाली हों. अनुभा के भीतर, खूब भीतर एक और अनुभा थी, जो सपने बुनती थी, जो चंचल थी, जो पंख लगा कर आकाश में ऊंची उड़ान भरा करती थी. उस के अपने छोटेछोटे बादल के टुकड़े थे, रेशम की डोर थी और तीज बिना तीज वह पींग बढ़ाती खूब झूला झूलती थी, जो खूब शृंगार करती थी, इतना कि स्वयं शृंगार की प्रतिमान रति भी लजा जाए. पर जिस गहरे अंधेरे कोने में वह अनुभा छिपी थी उसे कोई नहीं जान पाया कभी.

एक दिन जब उस के साथ कालेज आनेजाने वाली सहेली कालेज नहीं आई थी, वह अकेली ही माल रोड की चौड़ी छाती पर, जिस के दोनों ओर गुलमोहर के सुर्ख लाल पेड़ छतरी ताने खड़े थे, साइकिल चलाती घर की तरफ आ रही थी. रेशमी बादलों के बीच छनछन कर आ रही धूप की नरमनरम किरणों में ऐसी उलझी कि ध्यान ही नहीं रहा कि कब उस की साइकिल के सामने एक स्कूटर और स्कूटर पर विराजमान एक नौजवान उसे एकटक देख रहा था.

‘लगता है आप आसमान को सड़क समझ रही हैं. यदि मैं अपना पूरा बे्रक न लगा देता तो मैडम, आप उस गड्ढे में होतीं और दोष मिलता मुझे. माना कि छावनी की सड़कें सूनी होती हैं, पर कभीकभी हम जैसे लोग भी इन सड़कों पर आतेजाते हैं और आतेजाते में टकरा जाएं और वह भी किस्मत से किसी परी से…’

अनुभा इस कदर सहम गई, लजा गई और पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि गुलमोहर का लाल रंग उस के चेहरे को रंग गया. अटपटे ढंग से ‘सौरी’ बोल कर तेजतेज साइकिल भगाती चल पड़ी वहां से.

स्कूटर वाला तो निकला उस के भाई सुमित का दोस्त, जो कुछ दिन पहले ही एअरफोर्स में औफिसर बन कर लौटा था. बड़ा ही स्मार्ट, वाक्चतुर. ड्राइंगरूम में उसे बैठा देख वह चौंक पड़ी, वह बच कर चुपके से अपने कमरे की ओर लपकी तभी उस के भाई ने उसे आवाज दी, अपने मित्र से परिचय कराया, ‘आलोक, मिलो मेरी छोटी बहन अनुभा से.’

‘हैलो,’ कह कर वह बरबस मुसकरा पड़ी.

‘सुमित, अपनी बहन से कहो कि सड़क ऊपर नहीं, नीचे है.’

और वह भाग गई, उस के कानों में उन दोनों की बातचीत थोड़ीथोड़ी सुनाई पड़ रही थी, समझ गई कि माल रोड की चर्चा चल रही थी. अपने को बातों का केंद्र बनता देख वह कुमुदिनी सी सिमट गई थी. रात होने को आई, पर उस रात वह कुमुदिनी बंद होने के बदले पंखड़ी दर पंखड़ी खिली जा रही थी.

उन के घर जब भी आलोक आता, उस के आसपास मीठी सी बयार छोड़ जाता. पगली सी अनुभा आलोक की झलक सभी चीजों में देखने लगी थी, सिनेमा के हीरो से ले कर घर में रखी कलाकृतियों तक में उसे आलोक ही आलोक नजर आता था. अनुभा अचानक भक्तिन बनने लगी, व्रतउपवास का सिलसिला शुरू कर दिया. मां ने समझाया, ‘पढ़ाई की मेहनत के साथ व्रतउपवास कैसे निभा पाएगी?’

‘मम्मी, मेरा मन करता है,’ उस ने उत्तर दिया था.

‘अरे, तो कोई बुरा काम कर रही है क्या? अच्छे संस्कार हैं,’ दादी ने मम्मी से कहा.

अनुभा के मन में सिर्फ अब आलोक को पाने की चाहत थी. कालेज जाने से पहले वह मन ही मन सोचती कि बस किसी तरह आलोक मिल जाए.

‘बिटिया, कहीं पिछले जन्म में संन्यासिनी तो नहीं थी? पता नहीं इस का मन संसार में लगेगा कि नहीं?’ मम्मी को चिंता सताती.

‘कुछ नहीं होगा. अपनी यामिनी तो दोनों की कसर पूरी कर देती है. चिंता तो उस की है. न पढ़ने में ध्यान, न घर के कामकाज में. जब देखो तब फैशन, डांस और हंगामा,’ उस के पिता ने मां से कहा था.

‘हां जी, ठीक कहते हो, अब यामिनी की शादी कर दो. फिर मेरी अनुभा के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ़ देना.’

और अनुभा के भीतर वाली अनुभा ‘धत्’ बोल कर हंस पड़ी.

फैसला हमारा है : भाग 1

औफिस से घर लौटी प्रिया ने 50 हजार रुपए अपनी मां के हाथ में पकड़ाते कहा, ‘‘इस में 30 हजार रुपए सुमित की कंप्यूटर टेबल और नई जींस के लिए हैं.’’

‘‘कार की किस्त कैसे देगी इस बार?’’ मां ने चिंतित लहजे में पूछा. यह कार उन लोगों ने कोविड से पहले ली थी, पर कोविड में पिता की मौत के बाद वह भारी हो गई है.

‘‘उस का इंतजाम मैं ने कर लिया है. अब तुम जल्दी से मु झे कुछ हलकाफुलका खिला कर एक कप चाय पिला दो. फिर मु झे कहीं निकलना है.’’

‘‘कहां के लिए? इन दिनों कहीं भी जाना ठीक है क्या?’’

‘‘सुबह बताया तो था. एक कौन्फ्रैंस है, 2 दिन वहां रहना भी है. रविवार की शाम तक लौट आऊंगी.’’

‘‘मल्होत्रा साहब भी जा रहे हैं न?’’

‘‘पीए अपने बौस के साथ ही जाती है मां,’’ प्रिया अकड़ कर उठी और अपनी खुशी दिखाते हुए बाथरूम में घुस गई.

प्रिया की मां की आंखों में पैसे को ले कर चमक थी. जहां पैसेपैसे को मुहताज हो, वहां कहीं से भी कैसे भी पैसे आएं, अच्छा लगता है.

वह घंटेभरे बाद घर से निकली तो एक छोटी सी अटैची उस के हाथ में थी.

उसे विदा करते समय उस की मां का मूड खिला हुआ था. उन की खामोश खुशी साफ दर्शा रही थी कि वे उसे पैसे कमाने की मालकिन मान चुकी थीं.

प्रिया उन के मनोभावों को भली प्रकार सम झ रही थी. अपनी 25 साल की बेटी का 45 साल के आदमी से गहरी दोस्ती का संबंध वैसे भी किसी भी मां के मन की सुखशांति नष्ट कर सकता था, एक मां को समाज के लोगों का डर लगता था. बेटी बदनाम हो गई तो न मां सुरक्षित रह पाएगी, न बेटी.

मल्होत्रा साहब के पीए का पद प्रिया ने तकरीबन 2 साल पहले संभाला था. उन के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली मुलाकात में ही प्रिया के मन को जीत लिया था.

अपनी सहयोगी ऊषा से शुरू में मिली चेतावनी याद कर के प्रिया कार चलातेचलाते मुसकरा उठी.

‘यह मल्होत्रा किसी शैतान जादूगर से कम नहीं है, प्रिया,’ ऊषा ने कैंटीन में उस का हाथ थाम कर बड़े अपनेपन से उसे सम झाया था, ‘अपने चक्कर में फंसा कर यह पहले भी कई लड़कियों को इस्तेमाल कर मौज ले चुका है. तु झे इस के जाल में नहीं फंसना है. सम झी? उसे लगता है कि हम जैसी जाति की लड़कियों को जब चाहे पैसे दे कर खरीदा जा सकता है.’

ऐसी चेतावानियां उसे औफिस के लगभग हर व्यक्ति ने दी थीं जो उन की जाति या उस जैसी जाति का था. उन की बातों के प्रभाव में आ कर प्रिया मल्होत्रा साहब के साथ कई दिनों तक खिंचा सा व्यवहार करती रही थी, पर आखिरकार उसे अपना वह बनावटी रूप छोड़ना पड़ा था.

मल्होत्रा साहब बहुत सम झदार, हर छोटेबड़े को पूरा सम्मान देने वाले एक अच्छे इंसान हैं. मु झे उन से कोई खतरा महसूस नहीं होता है. मु झे उन के खिलाफ भड़काना बंद करो आप, ऊषा मैडम, प्रिया के मुंह से कुछ ही हफ्तों बाद इन वाक्यों को सुन कर ऊषा ने नाराज हो कर उस के साथ बोलचाल लगभग बंद कर दी थी.

नौकरी शुरू करने के 2 महीने बाद ऊषा ही ठीक साबित हुई और प्रिया का मल्होत्रा साहब के साथ अफेयर शुरू हो गया था.

उस दिन प्रिया का जन्मदिन था. मल्होत्रा साहब ने उसे एक बेहद खूबसूरत ड्रैस उपहार में दी. दोनों ने महंगे होटल में डिनर किया. वहां से बाहर आ कर दोनों कार में बैठे और मल्होत्रा साहब ने उस की तरफ अचानक  झुक कर जब उस के होंठों पर प्यारभरा चुंबन अंकित किया तो प्रिया आंखें मूंद कर उस स्पर्श सुख से मदहोश सी हो गई थी.

उस दिन के ठीक 10 दिनों बाद प्रिया ने रविवार का पूरा दिन मल्होत्रा साहब के साथ उन की कोठी पर गुजारा था. उसे भरपूर यौन सुख दे कर मल्होत्रा साहब ने स्वयं को एक बेहद कुशल प्रेमी सिद्ध कर दिया था.

बाद में मल्होत्रा साहब ने उस के बालों को प्यार से हिलाते हुए इस संबंध को ले कर अपनी स्थिति साफ शब्दों में बयान कर दी थी, ‘प्रिया, मेरी बेटी 17 साल की है और होस्टल में रह कर मसूरी में पढ़ रही है. अपनी पत्नी से मैं कई वर्षों से अलग रह रहा हूं. मैं ने तलाक लेने का मुकदमा चला रखा है, लेकिन वह आसानी से मु झे नहीं मिलेगा. शायद 3-4 साल और लगेंगे तलाक मिलने में, पर मैं जो कहना चाह रहा हूं, उसे अच्छी तरह से तुम आज सम झ लो, प्लीज.’

‘मैं पूरे ध्यान से आप की बात सुन रही हूं,’ प्रिया ने उन की आंखों में प्यार से  झांकते हुए जवाब दिया था.

‘तलाक मिल जाने के बाद भी मैं तुम से कभी शादी नहीं कर सकूंगा. उस तरह के सहारे की तुम मु झ से कभी उम्मीद मत रखना.’

‘फिर किस तरह के सहारे की उम्मीद रखूं?’ प्रिया को अचानक अजीब सी उदासी ने घेर लिया था.

‘अपना नाम देने के अलावा मैं अपना सबकुछ तुम्हारे साथ बांटने को तैयार हूं, डार्लिंग.’

‘सबकुछ?’

‘हां.’

‘क्या यह कोठी मेरे नाम कर दोगे?’

‘तुम्हें चाहिए?’

डर : भाग 1

मैं सुबह की सैर पर था. अचानक मोबाइल की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है, मैं ने खुद से ही प्रश्न किया. देखा, यह तो अमृतसर से कौल आई है.

‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो फूफाजी, प्रणाम, मैं सुरेश बोल रहा हूं?’’

‘‘जीते रहो बेटा. आज कैसे याद किया?’’

‘‘पिछली बार आप आए थे न. आप ने सेना में जाने की प्रेरणा दी थी. कहा था, जिंदगी बन जाएगी. सेना को अपना कैरियर बना लो. तो फूफाजी, मैं ने अपना मन बना लिया है.’’

‘‘वैरी गुड’’

‘‘यूपीएससी ने सेना के लिए इन्वैंट्री कंट्रोल अफसरों की वेकैंसी निकाली है. कौमर्स ग्रैजुएट मांगे हैं, 50 प्रतिशत अंकों वाले भी आवेदन कर सकते हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है.’’

‘‘फूफाजी, पापा तो मान गए हैं पर मम्मी नहीं मानतीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहती हैं, फौज से डर लगता है. मैं ने उन को समझाया भी कि सिविल में पहले तो कम नंबर वाले अप्लाई ही नहीं कर सकते. अगर किसी के ज्यादा नंबर हैं भी और वह अप्लाई करता भी है तो बड़ीबड़ी डिगरी वाले भी सिलैक्ट नहीं हो पाते. आरक्षण वाले आड़े आते हैं. कम पढ़ेलिखे और अयोग्य होने पर भी सारी सरकारी नौकरियां आरक्षण वाले पा जाते हैं. जो देश की असली क्रीम है, वे विदेशी कंपनियां मोटे पैसों का लालच दे कर कैंपस से ही उठा लेती हैं. बाकियों को आरक्षण मार जाता है.’’

‘‘तुम अपनी मम्मी से मेरी बात करवाओ.’’

थोड़ी देर बाद शकुन लाइन पर आई, ‘‘पैरी पैनाजी.’’

‘‘जीती रहो,’’ वह हमेशा फोन पर मुझे पैरी पैना ही कहती है.

‘‘क्या है शकुन, जाने दो न इसे फौज में.’’

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात से?’’

‘‘लड़ाई में मारे जाने का.’’

‘‘क्या सिविल में लोग नहीं मरते? कीड़ेमकोड़ों की तरह मर जाते हैं. लड़ाई में तो शहीद होते हैं, तिरंगे में लिपट कर आते हैं. उन को मर जाना कह कर अपमानित मत करो, शकुन. फौज में तो मैं भी था. मैं तो अभी तक जिंदा हूं. 35 वर्ष सेना में नौकरी कर के आया हूं. जिस को मरना होता है, वह मरता है. अभी परसों की बात है, हिमाचल में एक स्कूल बस खाई में गिर गई. 35 बच्चों की मौत हो गई. क्या वे फौज में थे? वे तो स्कूल से घर जा रहे थे. मौत कहीं भी किसी को भी आ सकती है. दूसरे, तुम पढ़ीलिखी हो. तुम्हें पता है, पिछली लड़ाई कब हुई थी?’’

‘‘जी, कारगिल की लड़ाई.’’

‘‘वह 1999 में हुई थी. आज 2018 है. तब से अभी तक कोई लड़ाई नहीं हुई है.’’

‘‘जी, पर जम्मूकश्मीर में हर रोज जो जवान शहीद हो रहे हैं, उन का क्या?’’

‘‘बौर्डर पर तो छिटपुट घटनाएं होती  ही रहती हैं. इस डर से कोईर् फौज में ही नहीं जाएगा. यह सोच गलत है. अगर सेना और सुरक्षाबल न हों तो रातोंरात चीन और पाकिस्तान हमारे देश को खा जाएंगे. हम सब जो आराम से चैन की नींद सोते हैं या सो रहे हैं वह सेना और सुरक्षाबलों की वजह से है, वे दिनरात अपनी ड्यूटी पर डटे रहते हैं.’’

मैं थोड़ी देर के लिए रुका. ‘‘दूसरे, सुरेश इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के रूप में जाएगा. इन्वैंट्री का मतलब है, स्टोर यानी ऐसे अधिकारी जो स्टोर को कंट्रोल करेंगे. वह सेना की किसी सप्लाई कोर में जाएगा. ये विभाग सेना के मजबूत अंग होते हैं, जो लड़ने वाले जवानों के लिए हर तरह का सामान उपलब्ध करवाते हैं. लड़ाई में भी ये पीछे रह कर काम करते हैं. और फिर तुम जानती हो, जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु तक का रास्ता तय हो जाता है. जीवन उसी के अनुसार चलता है.

उम्र भर का रिश्ता : भाग 1

शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन तन्हा प्रकृति के बीच बिताने के ख्याल से मैं हर साल करीब 15 -20 दिनों के लिए मनाली, नैनीताल जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाकर ठहरता हूं. मैं पापा के साथ फैमिली बिजनेस संभालता हूं इसलिए कुछ दिन बिजनेस उन के ऊपर छोड़ कर आसानी से निकल पाता हूं.

इस साल भी मार्च महीने की शुरुआत में ही मैं ने मनाली का रुख किया था  मैं यहां जिस रिसॉर्ट में ठहरा हुआ था उस में 40- 50 से ज्यादा कमरे हैं. मगर केवल 4-5 कमरे ही बुक थे. दरअसल ऑफ सीजन होने की वजह से भीड़ ज्यादा नहीं थी. वैसे भी कोरोना फैलने की वजह से लोग अपनेअपने शहरों की तरफ जाने लगे थे. मैं ने सोचा था कि 1 सप्ताह और ठहर कर निकल जाऊंगा मगर इसी दौरान अचानक लॉक डाउन हो गया. दोतीन फैमिली रात में ही निकल गए और यहां केवल में रह गया.

रिसॉर्ट के मालिक ने मुझे बुला कर कहा कि उसे रिसॉर्ट बंद करना पड़ेगा. पास के गांव से केवल एक लड़की आती रहेगी जो सफाई करने, पौधों को पानी देने, और फोन सुनने का काम करेगी. बाकी सब आप को खुद मैनेज करना होगा.

अब रिसॉर्ट में अकेला मैं ही था. हर तरफ सायं सायं करती आवाज मन को उद्वेलित कर रही थी. मैं बाहर लॉन में आ कर टहलने लगा. सामने एक लड़की दिखी जिस के हाथों में झाड़ू था. गोरा दमकता रंग, बंधे हुए लंबे सुनहरे से बाल, बड़ीबड़ी आंखें और होठों पर मुस्कान लिए वह लड़की लौन की सफाई कर रही थी. साथ ही एक मीठा सा पहाड़ी गीत भी गुनगुना रही थी. मैं उस के करीब पहुंचा. मुझे देखते ही वह ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहती हुई सीधी खड़ी हो गई.

“तुम्हें इंग्लिश भी आती है ?”

“जी अधिक नहीं मगर जरूरत भर इंग्लिश आती है मुझे. मैं गेस्ट को वेलकम करने और उन की जरूरत की चीजें पहुंचाने का काम भी करती हूं.”

“क्या नाम है तुम्हारा?” मैं ने पूछा,”

“सपना. मेरा नाम सपना है सर .” उस ने खनकती हुई सी आवाज़ में जवाब दिया.

“नाम तो बहुत अच्छा है.”

“हां जी. मेरी मां ने रखा था.”

“अच्छा सपना का मतलब जानती हो?”

“हां जी. जानती क्यों नहीं?”

“तो बताओ क्या सपना देखती हो तुम? मुझे उस से बातें करना अच्छा लग रहा था.

उस ने आंखे नचाते हुए कहा,” मैं क्या सपना देखूंगी. बस यही देखती हूं कि मुझे एक अच्छा सा साथी मिल जाए.  मेरा ख्याल रखें और मुझ से बहुत प्यार करे. हमारा एक सुंदर सा संसार हो.” उस ने कहा.

“वाह सपना तो बहुत प्यारा देखा है तुम ने. पर यह बताओ कि अच्छा सा साथी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अच्छा सा यानी जिसे कोई गलत आदत नहीं हो. जो शराब, तंबाकू या जुआ जैसी लतों से दूर रहे. जो दिल का सच्चा हो बस और क्या .” उस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली,” वैसे मुझे लगता है आप को भी कोई बुरी लत नहीं.”

“ऐसा कैसे कह सकती हो?” मैं ने उस से पूछा.

“बस आप को देख कर समझ आ गया. भले लोगों के चेहरे पर लिखा होता है.”

“अच्छा तो चेहरा देख कर समझ जाती हो कि आदमी कैसा है.”

“जी मैं झूठ नहीं बोलूंगी. औरतें आदमियों की आंखें पढ़ कर समझ जाती हैं कि वह क्या सोच रहा है. अच्छा सर आप की बीवी तो बहुत खुश रहती होगी न.”

“बीवी …नहीं तो. शादी कहां हुई मेरी?”

“अच्छा आप की शादी नहीं हुई अब तक. तो आप कैसी लड़की ढूंढ रहें हैं?”

उस ने उत्सुकता से पूछा.

“बस एक खूबसूरत लड़की जो दिल से भी सुंदर हो चेहरे से भी. जो मुझे समझ सके.”

“जरूर मिलेगी सर. चलिए अब मैं आप का कमरा भी साफ कर दूं.” वह मेरे कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

सपना मेरे आगेआगे चल रही थी. उस की चाल में खुद पर भरोसा और अल्हड़ पन छलक रहा था.

मैं ने ताला खोल दिया और दूर खड़ा हो गया. वह सफाई करती हुई बोली,” मुझे पता है. आप बड़े लोग हो और हम छोटी जाति के. फिर भी आप ने मेरे से इतने अच्छे से बातें कीं. वैसे आप यहां के नहीं हो न. आप का गांव कहां है ?”

“मैं दिल्ली में रहता हूं. वैसे हूं बिहार का ब्राह्मण .”

“अच्छा जी, आप नहा लो. मैं जाती हूं. कोई भी काम हो तो मुझे बता देना. मैं पूरे दिन इधर ही रहूंगी.”

“ठीक है. जरा यह बताओ कि आसपास कुछ खाने को मिलेगा?”

“ज्यादा कुछ तो नहीं सर. थोड़ी दूरी पर एक किराने की दुकान है. वहां कुछ मिल सकता है. ब्रेड, अंडा तो मिल ही जाएगा. मैगी भी होगी और वैसे समोसे भी रखता है. देखिए शायद समोसे भी मिल जाएं.”

“ओके थैंक्स.”

मैं नहाधो कर बाहर निकला. समोसे, ब्रेड अंडे और मैगी के कुछ पैकेटस ले कर आ गया. दूध भी मिल गया था. दोपहर तक का काम चल गया मगर अब कुछ अच्छी चीज खाने का दिल कर रहा था. इस तरह ब्रेड, दूध, अंडा खा कर पूरा दिन बिताना कठिन था.

मैं ने सपना को बुलाया,” सुनो तुम्हें कुछ बनाना आता है?”

दो चेहरे वाले लोग : भाग 1

वैसे, जीजी मेरी सगी बहन तो नहीं, लेकिन अम्मां और आपा ने उन्हें हमेशा अपनी बेटी के समान ही माना. इसलिए जब मेरे पति ने मुंबई की नौकरी छोड़ कर हैदराबाद में काम करने का निश्चय किया, तब आपा ने नागपुर से चिट्ठी में लिखा, ‘अच्छा है, हमारे कुछ पास आओगे तुम लोग. और हां… जीजी के हैदराबाद में होते हुए फिर हमें चिंता कैसी.’

जीजी बड़ी सीधीसादी, मीठे स्वभाव की हैं. दूसरों के बारे में सोचतेसोचते अपने बारे में सबकुछ भूल जाने वाले लोगों में वह सब से आगे गिनी जा सकती हैं. अपने मातापिता, भाईबहन, कोई न होने पर भी केवल निस्वार्थ प्रेम के बल पर उन्होंने सैकड़ों ‘अपने’ जोड़े हैं.

‘लेकिन, तुम्हारे जीजाजी को वह जीत नहीं पाई हैं,’ मुकुंद मेरे पति ने 2-3 बार टिप्पणी की थी.

‘जीजाजी कितना प्यार करते हैं जीजी से,’ मैं ने विरोध करते हुए कहा था, ‘घर उन के नाम पर, गाड़ी उन के लिए, साड़ियां, गहने… सबकुछ…’

मुकुंद ने हर बार मेरी तरफ ऐसे देखा था जैसे कह रहे हों, ‘बच्ची हो, तुम क्या समझोगी.’

हैदराबाद आने के बाद मेरा जीजाजी के घर आनाजाना शुरू हुआ. घरों में फासला था, पर मैं या जीजी समय निकाल कर सप्ताह में एक बार तो मिल ही लेतीं.
अब तक मैं ने जीजी को मायके में ही देखा था. अब ससुराल में जिम्मदारियों के बोझ से दबी, लोगों की अकारण उठती उंगलियों से अपने भावनाशील मन को बचाने की कोशिश करती जीजी मुझे दिखाई दीं, कुछ असुरक्षित सी, कुछ घबराई सी. और मैं केवल उन्हें देख ही सकती थी.

जीजी की बेटी शिवानी कंप्यूटर इंजीनियर थी. वह मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद अब एक प्रतिष्ठित फर्म में अच्छे पद पर काम कर रही थी. जीजाजी उस के लिए योग्य वर की तलाश में थे. मैं ने कुछ अच्छे रिश्ते सुझाए भी, पर जीजाजी ने मुंह बनाते हुए कहा था, ‘क्या तुम भी रश्मि, शिवानी की योग्यता का कोई लड़का बताओ तो जानें…’

‘लेकिन जीजाजी, उमेश बहुत अच्छा लड़का है. होशियार, सुदर्शन, स्वस्थ, अच्छा कमाता है. कोई बुरी आदत नहीं है.’

‘पर, उस पर अपनी 2 छोटी बहनों के विवाह की जिम्मेदारी है. और उस का अपना कोई मकान भी नहीं…’ जीजाजी ने एकएक उंगली मोड़ कर गिनाना चाहा.

‘यह तो दोनों मिल कर आराम से कर सकते हैं. शिवानी भी तो कमाती है,’ मैं ने उन की बातों को काटते हुए कहा.

प्रेम की उदास गाथा : काकाजी को क्यों थी शादी के नाम से भी चिढ़?

story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें