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ये कैसी बेबसी : अरुण चाह कर भी कुछ क्यों नहीं कह पाया ?

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हौबी : पति की आदतों से वह क्यों परेशान थी ?

मेरे पति को सदा ही किसी न किसी हौबी ने पकड़े रखा. कभी बैडमिंटन खेलना, कभी शतरंज खेलना, कभी बिजली का सामान बनाना, जो कभी काम नहीं कर सका. बागबानी में सैकड़ों लगा कर गुलाब जितनी गोभी के फूल उगाए. कभी टिकट जमा करना, कभी सिक्के जमा करना. तांबे के सिक्के सैकड़ों साल पुराने वे भी सैकड़ों रुपए में लिए जाते जो अगर तांबे के मोल भी बिक जाएं तो बड़ी बात.

ये उन्हें खजाने की तरह संजोए रहते हैं. जब ये किसी हौबी में जकड़े होते हैं, तो इन को घर, बच्चे, मैं कुछ दिखाई नहीं देता. सारा समय उसी में लगे रहते हैं. खानेपीने तक की सुध नहीं रहती. औफिस जाना तो मजबूरी होती थी. अब ये रिटायर हो गए हैं तो सारा समय हौबी को ही समर्पित हैं. लगता अगर मुख्य हौबी से कुछ समय बच जाए तो ये पार्टटाइम हौबी भी शुरू कर दें.

आजकल सिक्कों की मुख्य हौबी है, जिस में सिक्कों के बारे में पढ़नालिखना और दूसरों को सिक्कों की जानकारी देना कि यह सिक्का कौन सा है, कब का है आदि. इंटरनैट पर सिक्काप्रेमियों को बताते रहते हैं. सारा दिन इंटरनैट पर लगे रहते हैं. कुछ समय बचा तो सुडोकू भरना. यहां तक कि सुडोकू टौयलेट में भी भरा जाता है और मैं टौयलेट के बाहर इंतजार करती रहती हूं कि मेरा नंबर कब आएगा. आजकल सुडोकू कुछ शांत है. अब ये एक नई हौबी की पकड़ में आ गए हैं. इन को खाना पकाने का शौक हो गया है. जीवन में पहली बार कुछ काम की हौबी ने इन को पकड़ा है. मैं ने सोचा कुछ तो लाभ होगा. बैठेबैठे पकापकाया स्वादिष्ठ भोजन मिलेगा.

इन्होंने पूरे मनोयोग से खाना पकाना शुरू किया. पहले इंटरनैट से रैसिपी पढ़ते, फिर उसे नोट करते. बाद में ढेरों कटोरियों में मसाले व अन्य सामग्री निकालते. नापतोल में कोई गड़बड़ नहीं. जैसे लिखा है सब वैसे ही होना चाहिए. हम लोगों की तरह नहीं कि यदि कोई मसाला नहीं मिला तो भी काम चला लिया. ये ठहरे परफैक्शनिस्ट अर्थात सब कुछ ठीक होना चाहिए. सो यदि डिश में इलायची डालनी है और घर में नहीं है तो तुरंत कार से इलायची लाने चले जाएंगे. 10 रुपए की इलायची और 50 रुपए का पैट्रोल.

जब सारा सामान इकट्ठा हो जाता तो बनाने की प्रक्रिया शुरू होती. शुरूशुरू में तो गरम तेल में सूखा मसाला डाल कर भूनते तो वह जल जाता. फिर उस जले मसाले की सब्जी पकती. फिर डिश सजाई जाती. फिर फोटो खींच कर फेसबुक पर डाला जाता. फेसबुक पर फोटो देख कर लोग वाहवाह करते, पर जले मसाले की सब्जी खानी तो मुझे पड़ती. मैं क्या कहूं? सोचा बुरा कहा तो इन का दिल टूट जाएगा. सो पानी से गटक कर ‘बढि़या है’ कह देती. इन का हौसला बढ़ जाता.

ये और मेहनत से नएनए व्यंजन पकाते. कभी सब्जी में मिर्च इतनी कि 2 गिलास पानी से भी कम न होती. कभी साग में नमक इतना कि बराबर करने के लिए मुझे उस में चावल डाल कर सगभत्ता बनाना पड़ता. किचन ऐसा बिखेर देते कि समेटतेसमेटते मैं थक जाती. बरतन इतने गंदे करते कि कामवाली धोतेधोते थक जाती. डर लगता कहीं काम न छोड़ दे.

मेरी सहनशीलता तो देखिए, सब नुकसान सह कर भी इन की तारीफ करती रही. इस आशा में कि कभी तो ये सीख जाएंगे और मेरे अच्छे दिन आएंगे. सच ही इन की पाककला निखरने लगी और हमारी किचन भी संवरने लगी. विभिन्न प्रकार के उपयोग में आने वाले बरतन, कलछियां, प्याज काटने वाला, आलू छीलने वाला, आलू मसलने वाला सारे औजारहथियार आ गए. चाकुओं में धार कराई गई. पहले इन सब चीजों की ओर कभी ये ध्यान ही नहीं देते थे. अब ये इतने परफैक्ट हो गए कि नैट पर विभिन्न रैसिपियां देखते, फिर अपने हिसाब से उन में सब मसाले डालते और स्वादिष्ठ व्यंजन बनाते.

अब देखिए मजा. कभी कुम्हड़े का हलवा बनता तो कभी गाजर का, जिस में खूब घी, मावा और सारे महीने का मेवा झोंक दिया जाता. हम दोनों कोलैस्ट्रौल के रोगी और घर में खाने वाले भी हम दोनों ही. अब इतना मेवामसाला पड़ा हलवा कोई फेंक तो देगा नहीं. सो खूब चाटचाट कर खाया.

अब उन सब्जियों को भी खाने लगे, जिन्हें पहले कभी मुंह नहीं लगाते थे. एक से एक स्वादिष्ठ व्यंजन खूब घी, तेल, मेवा, चीनी में लिपटे व्यंजन. मेरे भाग्य ही खुल गए. इन की इस हौबी से बैठेबैठे एक से एक व्यंजन खाने को मिलने लगे. इतना अच्छा खाना खाने के बाद तबीयत कुछ भारी रहने लगी. डाक्टर को दिखाया तो पता चला कोलैस्ट्रौल लैबल बहुत बढ़ गया है.

डाक्टर की फीस, खून जांच, दवा सब मिला कर कई हजार की चपत बैठी. घीतेल, अच्छा खाना सब बंद हो गया. अब उबला खाना खाना पड़ रहा है. अब बताइए इन की हौबी मेरे लिए मजा है या सजा?

अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर हैं Neha Dhupia, जानें कैसा रहा एक्ट्रेस का करियर

Neha Dhupia Success Story : अपनी शानदार एक्टिंग से लाखों लोगों का दिल जीतने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस ”नेहा धूपिया” को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपनी उम्दा एक्टिंग से लोगों को अपना दीवाना बना रखा है. नेहा ने कई फिल्मों में अपने दमदार और स्ट्रांग रोल्स से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं. उन्होंने कुछ ही समय में हिन्दी सिनेमा में फर्श से अर्श तक का सफर अपने बलबूते पर हासिल किया है. तो आइए जानते हैं बॉलीवुड की जानी मानी अभिनेत्री ‘नेहा धूपिया’ के फिल्मी करियर के बारे में.

बतौर टीवी एक्ट्रेस शुरु किया था करियर

आपको बता दें कि अब तक के अपने करियर में बॉलीवुड एक्ट्रेस ”नेहा धूपिया” (Neha Dhupia) ने कई हिट फिल्में दी हैं. हालांकि फिल्मों में आने से पहले साल 2000 में उन्होंने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत बतौर टीवी आर्टिस्ट के तौर पर की थी. उन्होंने टीवी सीरियल ‘राजधानी’ में अपनी शानदार एक्टिंग से इस इंडस्ट्री में कदम रखा था.

मिस यूनिवर्स के बाद बदली किस्मत

बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि एक्ट्रेस ‘नेहा’ ने साल 2002 में भारत को मिस यूनिवर्स कॉम्पिटिशन में रिप्रजेन्ट किया था और मिस इंडिया कॉम्पिटिशन को जीता भी था. इसी के बाद से उनका बतौर एक्ट्रेस करियर शुरू हुआ.

मिस इंडिया बनने के अगले ही साल 2003 में उन्हें बॉलीवुड में डेब्यू करने का मौका मिला. उन्होंने फिल्म कयामत से बॉलीवुड में कदम रखा. हालांकि उनकी ये फिल्म हिट तो नहीं हो पाई लेकिन उनकी दमदार एक्टिंग को देखकर उन्हें कई नए प्रोजेक्टस में काम करने का मौका जरूर मिला. इसके बाद उन्होंने ‘क्या कूल हैं हम’, ‘चुपके चुपके’, ‘दस कहानियां’, ‘जूली’ और ‘हे बेबी’ आदि कई बड़ी फिल्मों में काम किया.

हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखती हैं एक्ट्रेस

आपको बताते चलें कि ”नेहा धूपिया” (Neha Dhupia) मीडिया के सामने अपनी बात को बेबाकी से कहने में भी कभी पीछे नहीं रहती है. उन्होंने कई बार कई मुद्दों पर निडर होकर अपनी बात रखी है. हालांकि इसके चलते वह कई बार लोगों के निशाने पर भी आ जाती हैं. वहीं, रोडीज में अपनी शानदार जजिंग के लिए भी नेहा की तारीफ की जाती है.

Mahesh Bhatt से लेकर Sanjay Dutt तक, जानें क्यों इन 5 एक्टर्स की बेटियों ने किया एक्टिंग से किनारा?

Star Kids Career : बॅालीवुड इंडस्ट्री में आने की चाह हर किसी की होती है. हर कोई चाहता है कि हम फिल्मों में आए, एक्टिंग करें, लाखों लोग हमारे फैन हो, हर समय हमारे घर के बाहर फैंस का जमावड़ा लगा रहे. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसे स्टार किड्स भी हैं जिनहोंने अभी तक फिल्मों से दूरी बना रखी है और अपने-अपने करियर में उम्दा काम कर रहे हैं. तो आइए जानतें हैं उन्हीं कुछ स्टार किड्स (Star Kids Career) के बारे में.

  1. शाहीन भट्ट

हिन्दी फिल्म निर्माता और निर्देशक महेश भट्ट व एक्ट्रेस सोनी राजदान की छोटी बेटी आलिया भट्ट, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. तो वहीं उनकी बड़ी बेटी शाहीन भट्ट (Shaheen Bhatt) ने बड़े पर्दे से दूरी बना रखी है. वह लंबे समय से स्क्रीन राइटर और ऑथर के रूप में काम कर रही हैं.

2. रिद्धिमा कपूर साहनी

70 के दशक के मशहूर अभिनेता ऋषि कपूर और अभिनेत्री नीतू सिंह की बेटी रिद्धिमा कपूर साहनी (riddhima kapoor sahni) ने भी ग्लैमर वर्लड से दूरी बना रखी हैं. वह इस समय ज्वेलरी डिजाइनर के तौर पर काम कर रही हैं.

3. अलविरा अग्निहोत्री और अर्पिता खान

लेखक और एक्टर सलीम खान को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी है. उनके तीनों बेटों नें भी एक्टिंग में अपना करियर बनाया है, लेकिन उनकी दोनों बेटियां अलविरा अग्निहोत्री (alvira agnihotri) और अर्पिता खान (arpita khan sharma) फिल्म इंडस्ट्री से कोसों दूर है. अलविरा, जहां पेशे से एक फैशन डिजाइनर हैं तो वहीं अर्पिता हाउसवाइफ हैं.

4. सबा अली खान

अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री शर्मिला टैगोर की एक्टिंग के लोग आज भी दीवाने हैं. एक्ट्रेस शर्मिला की तरह उनके बेटे सैफ अली खान और छोटी बेटी सोहा अली खान ने फिल्मी दुनिया में खूब नाम कमाया. लेकिन उनकी बड़ी बेटी सबा अली खान (saba pataudi) ने कभी फिल्मों में अपनी किस्मत नहीं आजमाई. वो इन सब से दूर बतौर ज्वेलरी डिजाइनर काम कर रही हैं.

5. त्रिशाला दत्त

आपको बता दें कि बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त और उनकी पहली पत्नी ऋचा शर्मा की बेटी त्रिशाला दत्त (trishala dutt) भी बॉलीवुड से कोसों दूर हैं. यहां तक की वह इंडिया से दूर न्यूयॉर्क में अपनी नानी मां के साथ रहती हैं. इसके अलावा कई बार उन्होंने ये भी कहा है कि उनकी फिल्म इंडस्ट्री में करियर बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

नरेंद्र मोदी का जन्मदिन : सत्ता के आगे शहादत भूल गए

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को देश की राजधानी दिल्ली से ले कर हर राज्य और शहर में भाजपा द्वारा एक इवेंट बना दिया गया.

दरअसल, नरेंद्र मोदी का जैसा बौडी लैंग्वेज है, जैसा विचार वे व्यक्त करते हैं उसे देखा जाए तो कहा जा सकता है कि मोदी की संवेदनशीलता यह होती कि अगर वे कश्मीर में हुई मुठभेड़ के बाद वीर शहीदों के सम्मान में अपने जन्मदिन को मनाने के बजाय इस इवेंट को स्थगित कर देते तो देश में एक बड़ा सकारात्मक संदेश जाता.

मगर प्रधानमंत्री 5 राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस से कोताही कर गए. सवाल यह है कि शहादत को नमन जरूरी है, देश जरूरी है या फिर सत्ता? इस का जवाब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास जरूर होगा या फिर विक्रमादित्य की सिंहासन बत्तीसी में. यही कारण है कि देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस की जम कर आलोचना की है.

कांग्रेस पार्टी के जायज सवाल

देश के प्रमुख विपक्षी दल अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिस से नरेंद्र मोदी सब से ज्यादा भयभीत दिखाई देते हैं और जिन के नेताओं पर सब से ज्यादा प्रहार करते हैं, ने ‘पीएम विश्वकर्मा’ योजना को ‘चुनावी जुमला’ करार दिया है. कांग्रेस ने कहा कि आगामी चुनाव को देखते हुए ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी जातिगत जनगणना पर कुछ नहीं बोल रहे.

पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा,”जनता दोबारा ‘बेवकूफ’ नहीं बनेगी और प्रधानमंत्री की सेवानिवृत्ति का समय आ गया है.”

जयराम रमेश ने ‘ऐक्स’ पर लिखा,”नोटबंदी, जीएसटी और उस के बाद कोरोनाकाल में अचानक लगाए गए बंद से भारत में लघु उद्यमों के लिए सब से ज्यादा विनाशकारी रहा. इन में से अधिकांश छोटे व्यवसाय उन लोगों द्वारा चलाए जाते हैं जो अपने हाथों से काम करते हैं. इन में कपड़ा, चमड़ा, धातु, एवं लकड़ी आदि के काम शामिल हैं.”

उन्होंने कहा,”भाजपा सरकार की नीतियों से प्रभावित बहुत से लोगों ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी से मुलाकात की थी. राहुल गांधी यात्रा के बाद भी उन से जुड़े रहे हैं। वे उन की पीड़ा और परेशानियों को लगातार सुन रहे हैं.”

सचमुच अगर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि वैश्विक महामारी करोनाकाल में जिस तरह केंद्र सरकार द्वारा देश के नागरिकों के साथ व्यवहार किया गया उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। उस दुख और त्रासदी को अब साहित्य और फिल्मों में भी देखा जा सकता है जो एक इतिहास बन चुका है.

सत्ता के लिए कुछ भी ‌‌

कश्मीर में जो कुछ बुधवार को घटित हुआ वह गुरुवार और शुक्रवार को देशभर में देखा और अनुभूत किया. शहीदों की चिताओं पर जिस तरह लोगों ने उमड़ श्रद्धांजलि दी और मासूम बच्चों ने अंतिम सलामी दी उसे देख कर तो हजारों किलोमीटर दूर बैठे हिंदुस्तानियों के आंसू भी छलक आएं. मगर हाय, सिंहासन बत्तीसी…

जन्मदिन के इवेंट में नरेंद्र मोदी को और भाजपा को कुछ भी दिखाई नहीं दिया क्योंकि सामने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे महत्त्वपूर्ण 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं और आगामी समय में लोकसभा चुनाव.

दरअसल, आतंकवादियों के साथ बुधवार सुबह मुठभेड़ के दौरान सेना की 19 राष्ट्रीय राइफल्स इकाई के कमांडिंग अधिकारी कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष ढोचक, जम्मू कश्मीर पुलिस के उपाधीक्षक हुमायूं भट्ट और सेना का एक जवान शहीद हो गए थे।

अधिकारियों के मुताबिक, इस अभियान के लिए किश्तवाड़ के ऊंचाई वाले इलाकों में पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं ताकि पीर पंजाल पर्वत श्रेणी में आतंकवादियों की किसी भी गतिविधि पर नजर रखी जा सके.

यह सारा देश जानता है कि भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद और देश की राजनीति करती है मगर सिंहासन बत्तीसी का सच है कि सचाई और नैतिकता से मुंह भी चुराती है.

सनातन धर्म: बवाल, रूढ़ियां और एचआईवी का प्रतीक

एक लेखक संघ के आयोजित तमिलनाडु में सनातन धर्म उन्मूलन विषय में मंत्री उदय निधि ने सनातन धर्म की तुलना मलेरिया और डेंगू से कर दी.और इसके बाद देश भर में बवाल मच गया . प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने  इसका विरोध कर संकेत दिए हैं कि  आने वाले समय में देश में इसे एक मुद्दा बना दिया जाए. ऐसे में सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी संविधान के तहत ली गई अपनी शपथ भूल गए हैं जिसका सार यह है कि सभी धर्म हमारे लोकतंत्र में बराबर बराबर हैं.

सच्चाई यह है कि सनातन धर्म प्राचीन और रूढ़ियों से भरा हुआ है जिसके सच को देखकर के आज आधुनिक समय में कोई भी प्रगतिशील इसकी आलोचना करेगा और इसकी स्वच्छता और सफाई की कामना भी. शायद यही कारण है कि दक्षिण में सनातन धर्म को लेकर  लगातार जन जागृति के अभियान चल रहे हैं. दरअसल, सच यह है कि दक्षिण में चल रहे अभियान आधुनिकता की सोच के प्रतीक हैं जो उत्तर भारत में आने वाले  समय में स्थापित हो सकते हैं.

मुख्यमंत्री स्टालिन के पुत्र और मंत्री उदय निधि के कथन पर द्रविड़ मुनेत्र कषगम (प्रमुक) के उप महासचिव एवं लोकसभा सदस्य ए राजा ने एक कदम और आगे बढ़कर कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सात सितंबर , गुरुवार को कई कदम बढ़ कर सनातन धर्म की तुलना कुष्ठ रोग और एचआइवी जैसी बीमारियों से की है. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान केंद्रीय मंत्री रहे राजा ने कहा -” तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि की टिप्पणी काफी मामूली थी और उन्होंने केवल यह कहा था कि सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया की तरह खत्म किया जाना चाहिए, जिसमें कोई सामाजिक कलंक नहीं है.” उन्होंने साफ-साफ संदेश दिया -” उदय निधि की टिप्पणी सामान्य है मैं और कड़ी टिप्पणी करूंगा.”

राजा ने कहा –” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सनातन धर्म का पालन करने की वकालत करते हैं और यदि उन्होंने इसका पालन किया होता, तो उन्होंने इतने सारे विदेशी देशों का दौरा नहीं किया होता. राजा ने कहा कि एक अच्छे हिंदू को समुद्र पार करके दूसरे देश में नहीं जाना चाहिए.”

 ए राजा ने कहा –” मोदी ने सनातन धर्म के सिद्धांतों का उल्लंघन किया और  विदेशों का दौरा किया और अब वे इसकी रक्षा करने का दावा कर रहे है जो एक धोखा है. उन्होंने शंकराचार्य के समक्ष नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बहस करने की चुनौती दी है. अब देखना यह होगा कि क्या बहस के लिए कौन सामने आता है.

सुप्रीम कोर्ट: दूध का दूध और पानी का पानी

‘सनातन धर्म को उखाड़ फेंकने संबंधी तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान पर छिड़ी तीखी बहस के बीच सात सितंबर , गुरुवार को सुप्रीम प्राथमिकी दर्ज कोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश देने की गई. जिसमें उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. याचिकाकर्ता ने सनातन धर्म के बारे में टिप्पणियों के लिए द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम ( द्रमुक) के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा के खिलाफ बाथमिकी दर्ज करने का भी अनुरोध किया . राजा ने द्रमुक के प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन का समर्थन करते हुए ‘सनातन धर्म’ की तुलना कुष्ठ रोग व एचआईवी से की . इस बिनाह पर वकील विनीत जिंदल की ओर से दायर याचिका में दिल्ली और चेन्नई पुलिस के खिलाफ अवमानना मोटिस जारी करने की भी मांग की गई . सनातन धर्म को लेकर के सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा हुआ यह मामला अब देश भर में और भी ज्यादा जन चर्चा का विषय बनने जा रहा है, की संडे हा देश के सबसे बड़े अदालत में आने वाले समय पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बाद भारतीय जनता पार्टी की सत्ता वाले राज्य मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन्माष्टमी के अवसर पर कहा -” सनातन धर्म का विरोध करने वालों का राजनीतिक अंत जरूर होगा.”

तमिलनाडु के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि ने तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक एवं कलाकार संघ की विगत शनिवार को चेन्नई में आयोजित बैठक को तमिल में संबोधित करते हुए सनातन धर्म को समानता एवं सामाजिक न्याय के खिलाफ बताते हुए कहा कि इसे समाप्त किया जाना चाहिए. उन्होंने अपनी बात संकेत मैं कहीं जिससे लोग उनकी भावना को समझ सके और चिंतन करें मगर अब यह मामला धीरे-धीरे तुल पकड़ता चला जा रहा है और बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होंठों तक पहुंच चुकी है. अच्छा तो यह होना चाहिए कि हम खुले दिमाग से अपने धर्म और कर्म की विवेचना करने में सक्षम हो और आज के आधुनिक समय में जब भारत चंद्रमा के साउथ पोल में पहुंच गया है सूर्य के अन्वेषण में लग गया है अपनी पुरानी रूढ़ियों से बाहर निकलने की कोशिश करते रहे.

कैप्टन नीरजा गुप्ता

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माई दादू : बड़ों की सूझबूझ कैसे आती है लोगों के काम ?

‘‘हाय माई स्वीटी, दादू! आज आप इतना डल कैसे दिख रही हो? मैं तो मूड बना कर आया था आप के साथ बैडमिंटन खेलूंगा, लेकिन आप तो कुछ परेशान दिख रही हो.’’

‘‘अरे बेटा, कुश, बस तेरी इस लाड़ली बहन कुहु की फिक्र हो रही है. ये कुहु अंशुल के साथ अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुकी है पर अंशुल के पेरैंट्स इस रिश्ते से खुश नहीं. अब जब तक लड़के के मांबाप खुशीखुशी बहू को अपनाने के लिए राजी नहीं होते तो भला कोई रिश्ता अंजाम तक कैसे पहुंचेगा. मुझे तो बस यही फिक्र खाए जा रही है. मेरी तो कल्पना से परे है कि आज के जमाने में भी किसी की इतनी पिछड़ी सोच हो सकती है. आजकल जाति में ऊंचनीच भला कौन सोचता है. वे ऊंचे गोत्र वाले ब्राह्मण हैं तो हम भी कोई नीची जात के तो नहीं.’’

‘‘अरे दादू, इकलौते बेटे को नाराज कर वे कहां जाएंगे, मान जाएंगे देरसवेर. आप टैंशन मत लो, वरना नाहक आप का बीपी बढ़ जाएगा. चलो थोड़ी देर बैडमिंटन खेलते हैं, मेरी अच्छी दादू.’’

बैडमिंटन खेलतेखेलते भी पोती की चिंता ने आभाजी का पीछा नहीं छोड़ा. आभाजी ने इस साल ही 69वीं वर्षगांठ मनाई है. चुस्तीफुरती अभी भी बरकरार रखी है. कालोनी में फेमस हैं. सब की मदद को तैयार रहती हैं.

करीबन आधे घंटे खेल कर, तरोताजा हो कर उन्होंने अंशुल को घर बुला कर उस से उस की शादी के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की.

‘‘अंशुल, तुम्हारा क्या फैसला है? मैं तो हर तरह से तुम्हारे पेरैंट्स को समझ कर हार गई. अब तो बस एक ही रास्ता बचता है. अगर तुम कुहु के साथ कोर्ट मैरिज कर के उन के सामने जाओ तो उन्हें मजबूरन तुम्हारी शादी के लिए तैयार होना ही होगा. मुझे तो इस के अलावा कोई और विकल्प नजर नहीं आ रहा.’’

‘‘दादी, इस की जरूरत नहीं पड़ेगी. अगर मैं बस उन से यह कह दूं कि मैं कुहू के साथ कोर्ट मैरिज करने के लिए कोर्ट में अर्जी दे रहा हूं तो उन के पास हमारी शादी के लिए हामी भरने के अलावा कोई चारा न बचेगा.’’

‘‘ठीक है, बेटा. जैसा तुम चाहो.’’

अंशुल ने उसी दिन अपने पेरैंट्स को कोर्ट मैरिज की धमकी दी और उस की सोच के मुताबिक कुहु के साथ उस के विवाह के लिए उन का प्रतिरोध ताश के पत्तों के महल की भांति ढह गया.

आज आभाजी बेहद खुश थीं. आज ही तो कुहु के होने वाले सासससुर अपने बेटे के साथ खुशीखुशी रोके की तिथि निश्चित कर के अभीअभी गए थे.

‘‘दादू, दादू, अब तो खुश? अब तो आप की समस्या हल हो गई न?’’

‘‘हां बेटा. आज मैं बहुत खुश हूं. आज कुहु की शादी की मेरी बरसों पुरानी साध पूरी हुई.’’

‘‘हां दादू, मैं भी बहुत खुश हूं. आप तो वाकई में अमेजिंग हो. आप के पास हर समस्या का तोड़ है,’’ पोते ने लडि़याते हुए उन की गोद में लेटते हुए कहा.

तभी उन की एक पड़ोसिन वंदिता का फोन उन के पास आया.

‘‘हैलो दीदी, प्रणाम.’’

‘‘प्रणाम वंदिता. कहो, कैसे याद किया?’’

‘‘दीदी, रुझान को ले कर मन में कुछ उलझन थी तो मैं उसी बाबत आप से सलाह लेना चाह रही थी.’’

‘‘हांहां, बोलो. निस्संकोच बोलो.’’

‘‘दीदी, रुझान को घर आए 3 महीने हो चले, लेकिन वह ससुराल जाने का नाम ही नहीं लेती. जब भी मैं कहती हूं, बेटा, दामादजी को तुम्हारे बिना परेशानी हो रही होगी, वह कह देती है, ‘अरे मां, आप के दामादजी के पास उन की मां और बहनें हैं न. वे मुझ से ज्यादा उन के साथ खुश रहते हैं. मेरा फिलहाल उन के पास जाने का मन नहीं.’

‘‘अब आप ही बताओ दीदी, शादी के बाद लड़की का इतने इतने दिन मायके में रहना क्या सही है?’’

‘‘हूं, तो यह बात है. चलो, शाम को बिटिया को ले कर घर आ जाओ. मैं उसे समझाती हूं.’’

शाम को वंदिता रुनझुन को ले कर आभाजी के घर पहुंच गईं. आभाजी ने रुझान को समझाया, ‘‘बेटा, शादी एक बेहद जिम्मेदारीभरा रिश्ता है, जिसे बेहद सम?ादारी और धैर्य से निभाना पड़ता है. तुम्हें ससुराल या दामादजी से क्या परेशानी है?’’

‘‘ताईजी, ससुराल में मुझे बहुत घुटन महसूस होती है. सुबह 7 प्राणियों का खाना बना कर जाओ और रात को फिर वही रूटीन. आजकल मेरे औफिस में बेहद व्यस्त दिनचर्या चल रही है. वर्षांत होने की वजह से औडिटिंग के सिलसिले में दसदस घंटों की ड्यूटी देनी पड़ रही है तो सुबह 9 बजे की निकलीनिकली रात के 7 बजे ही घर लौट पाती हूं. अब आप ही बताइए, मैं रसोई का काम कैसे करूं? इतना लेट आने पर सासुजी कलह करती हैं. मुझे नौकरी छोड़ने के लिए धमकाती हैं इसलिए मैं अभी वापस नहीं जा रही.’’

‘‘बेटा, बुरा मत मानना. शादी के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना क्या सही है? औफिस के काम की आड़ ले कर अगर तुम मायके से ससुराल जाना ही नहीं चाहो तो यह तो अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना हुआ

न बेटा?’’

‘‘आंटीजी, मैं आप की बात से पूरी तरह सहमत हूं. आप ही बताइए, बारहबारह घंटे घर से बाहर बिता कर मैं रसोई का काम कैसे करूं. मैं अपनी यह इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने वाली तो बिलकुल नहीं हूं.’’

रुझान की ये बातें सुन अम्माजी ने वंदिता से उस के दामाद अमेय से मिलने की इच्छा जाहिर की.

अगले दिन दामाद अमेय के अपने घर आने पर आभाजी ने औपचारिक कुशलक्षेम के बाद उस से कहा, ‘‘अमेयजी, हमारी बिटिया की जिम्मेदारी पूरी तरह से आप के ऊपर है. इसे बस यह गिला है कि 12 घंटे घर से बाहर रहने के बाद उस में दोनों वक्त की रसोई निबटाने की हिम्मत नहीं बचती. अब आप ही बताइए, वह पूरी तरह से गलत तो नहीं?’’

‘‘आंटीजी, घर के काम की वजह से मायके आ कर बैठ जाना क्या सही है? मैं तो इसे सम?ासम?ा कर हार गया. लेकिन यह घर चलने को तैयार ही नहीं होती.’’

इस पर आभाजी ने उसे समझाया कि वह खाना बनाने के लिए एक सहायिका का इंतजाम करे.

घर पहुंच कर अमेय ने यह बात मां के समक्ष रखी. सब की सहमति से यह फैसला हुआ कि एक सहायिका खाना बनाने में रुझान की मदद करने के लिए

रखी जाएगी.

इस निर्णय को अमेय के मुंह से सुनने के बाद वंदिता ने आभाजी का लाखलाख शुक्रिया अदा किया कि उन के मशवरे से उन की बेटी का घर उजड़ने से बच गया.

आभाजी वंदिता के घर से लौट कर अपने कमरे में आराम ही कर रही थीं कि तभी उन का बेटा घर में घुसा.

‘‘क्या हुआ बेटा, बेहद थके थके नजर आ रहे हो?’’

‘‘अरे मां, औफिस में अकाउंट में भारी गड़बड़ी नजर आ रही है. लेकिन अकाउंटैंट उसे ठीक तरह से सम?ा नहीं पा रहे. मैं भी सुबह से वही गड़बड़ पकड़ने की कोशिश में लगा हुआ था, लेकिन पकड़ नहीं पाया.’’

‘‘ओ बेटा, तू ने मुझे क्यों नहीं बुलवा लिया औफिस? तुझे तो पता है, ऐसी गड़बड़ी ढूंढ़ने में मैं माहिर हूं. आखिर मेरी एमकौम की डिग्री कब काम आएगी?’’

‘‘मां, अब बारबार आप को औफिस के कामों में उलझाने का मन नहीं करता.’’

‘‘अरे बेटा, तू नाहक ही परेशान होता रहता है. चल, अभी अपने लैपटौप पर तेरा अकाउंट चैक करती हूं.’’

आभाजी ने पूरे दिन लग कर अकाउंट की बारीकी से जांच कर उस में की गई भयंकर हेराफेरी पकड़ ली.

अकाउंट की गहन छानबीन से पता चला कि उन के नए मैनेजर ने बेहद चतुराई से एक बड़ी रकम का गबन किया था.

अम्माजी ने फौरन ही बेईमान अकाउंटैंट को नौकरी से हटा दिया और एक नया ईमानदार अकाउंटैंट को नियुक्त कर दिया.

पूरे दिन अकाउंट की जांच करतेकरते अम्माजी पस्त हो आराम कर रही थीं कि तभी उन की बहू की चचेरी बहन की बिन मांबाप की बेटी सलोनी यह कहते हुए उन के पास आई, ‘‘दादू, दादू, यह देखो मेरा नीट का रिजल्ट आ गया. मुझे पूरे स्टेट में 5वीं पोजीशन मिली है.’’ इस बिन मांबाप की बच्ची को उन्होंने बचपन में ही गोद ले कर पाला था.

‘‘ओह, इतनी बढि़या पोजीशन! सब तेरी कड़ी मेहनत का नतीजा है मेरी लाडो. आज तेरी इस शानदार सफलता का जश्न मनाने वृद्धाश्रम चलेंगे. अरे कुश, ओ कुश बेटा, 5 किलो मिठाई ले आना बाजार से. सलोनी की यह सफलता कोई मामूली नहीं. पूरे पड़ोस में मिठाई बंटवाऊंगी. ले, ये रुपए ले और जा कर ?ाटपट मिठाई ले आ.’’

‘‘हां दादू, हां दादू, तनिक ठंड रखो. अभी बाजार जा कर लाता हूं. यह चुहिया अब डाक्टर बनेगी! न बाबा न, मैं तो कभी अपना इलाज इस से नहीं करवाने वाला. इस नीमहकीम की दवाई से कहीं अपना पत्ता ही साफ हो गया तो, हो गया अपना बेड़ा गर्क,’’ कुश ने सलोनी को खिलखिलाते हुए छेड़ा.

‘‘दादू, देखो, यह शैतान क्या कह रहा है? बेटू 5वीं पोजीशन आई है मेरी पूरे स्टेट में. कोई छोटीमोटी बात नहीं है यह. मैं तो हार्ट सर्जन बनूंगी.’’

‘‘हा…हा…हा…, हार्ट सर्जन! हार्ट खोल कर सिलना भूल जाएगी तो मरीज की तो हो गई छुट्टी!’’ कुश ने सलोनी को फिर से चिढ़ाया और वह उसे एक धौल जमाने के लिए उस के पीछेपीछे भागी.

कुछ ही देर में सलोनी नम आंखों से दादी के पास आ कर बैठ गई और उस ने झाक कर उन के चरण स्पर्श कर लिए. ‘‘दादू, अगर आप मुझ अनाथ को अपने घर में ला कर सहारा न देतीं तो मेरा कुछ न होता.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते, बेटा.’’ यह कह कर आभाजी ने सलोनी को गले से लगा लिया.

तभी कुश का कोई फोन आया और वह आभाजी से यह कहते हुए घर से भाग छूटा, ‘‘दादू, बहुत जरूरी काम है. मु?ो अभी जाना पड़ेगा. लौट कर आते हुए मिठाई लेता आऊंगा.’’

‘‘अरे बेटा, यह तो बता दे जा कहां रहा है इतनी जल्दबाजी मैं?’’

‘‘आता हूं, दादू. फिर आप को बताता हूं.’’

10 बजे घर से गया कुश दोपहर के 3 बजे हैरानपरेशान घर लौटा.

उस का तनावग्रस्त चेहरा देख आभाजी ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, बेटा? इतने टैंशन में क्यों दिख रहा है?’’

‘‘कुछ नहीं, दादू. बस, ऐसे ही,’’ उस ने बात टालते हुए कहा.

‘‘अपनी दादू को नहीं बताएगा? कोई प्रौब्लम तो जरूर है जो तू इतना टैंशन में दिख रहा है.’’

‘‘अरे दादू, वह मेरी फास्ट फ्रैंड रितुपर्णा है न, उस की कुछ प्रौब्लम है. अब मेरी समझ में नहीं आ रहा इसे सौल्व करूं तो कैसे करूं?’’

‘‘अरे बेटा, मुझे बता तो सही, तेरी क्या परेशानी है?’’

बेहद सकुचातेझिकते कुश ने आभाजी को बताया, ‘‘यह रितुपर्णा वैसे तो बहुत अच्छी है, मेरी उस की बहुत पटती है. बस दादू, वह खर्चीली बहुत है. होस्टल में रहती है न. घर से पैसे आते ही वह पहले तो उन्हें नईनई ड्रैसेस व महंगेमहंगे कौस्मेटिक में उड़ा देती है. फिर पैसे खत्म होने पर मुझे से मांगती है. मेरे उस पर नहींनहीं करतेकरते 12 हजार रुपए उधार हो गए हैं. अब आप ही बताओ, दादू, पापा मुझे बेहिसाब पैसे तो देते नहीं. वह तो हर महीने अपने रुपए महीने की शुरुआत में ही खर्च कर लेती है. आज भी वह मुझ से जिद कर रही थी कि मैं उस के अगले माह के कालेज ऐक्सकर्शन के लिए रुपए जमा कर दूं. जब मैं ने इस के लिए हामी नहीं भरी तो उस ने मु?ो दस बातें सुना दीं. खूब लड़ी?ागड़ी मु?ा से.’’

‘‘क्या? रुपए न देने की वजह से लड़ीझगड़ी? बातें सुनाईं? अरे फिर तो वह सही लड़की नहीं, बेटा. उस से दोस्ती रखना ठीक नहीं. उस से धीरेधीरे दोस्ती तोड़ दे.’’

‘‘अरे दादू, उस से दोस्ती तोड़ना आसान नहीं,’’ कुश ने बेहद मायूसी से कहा.

‘‘क्यों भई? किसी से फ्रैंडशिप रखने की जबरदस्ती थोड़े ही है?’’

‘‘अरे दादू, आप समझ नहीं रहीं. वह मेरी खास फ्रैंड है,’’ इस बार वह तनिक हिचकतेअटकते बोला.

‘‘खास फ्रैंड क्या? तेरा उस से कहीं प्यारव्यार का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा?’’

‘‘हां दादू. कुछ ऐसा ही समझा लो. पहले तो मुझे उस पर भयंकर क्रश आया हुआ था, लेकिन अब जब से वह मु?ा से हर महीने रुपए मांगने लगी है और नहीं देने पर मु?ा से ?ागड़ने लगी है तो मेरे प्यार का बुखार उतरने लगा है.’’

‘‘वह तो उतरेगा ही, बेटा. हां, एक बात बताओ, तुम मानते हो न कि हर प्यार का अंजाम शादी होना चाहिए?’’

‘‘हां दादू, औब्वियसली.’’

‘‘साथ ही तुम यह भी मानते हो कि आप को शादी का रिश्ता ऐसे शख्स से जोड़ना चाहिए जिस का वैल्यू सिस्टम पुख्ता हो?’’

‘‘यसयस दादू. विदाउट फेल.’’

‘‘तुम्हारी इस रितुपर्णा का वैल्यू सिस्टम मुझे बहुत खोखला नजर आ रहा है. जो लड़की बातबात पर अपने बौयफ्रैंड से रुपए मांगती हो. नहीं मिलने पर बुरी तरह से लड़ती?ागड़ती हो, उस की वैल्यू में कोई दम नहीं, बेटा. अभी तो तुम्हारी शादी भी नहीं हुई तो वह किस हक से तुम से रुपए मांगती है और लड़ती?ागड़ती है? यह तो उस की बेहद गैरजिम्मेदाराना हरकत है. सम?ा रहे हो न बेटा, मैं क्या कहना चाह रही हूं?’’

‘‘जी दादू. बिलकुल समझ रहा हूं.’’

‘‘उस से तू ब्रेकअप कर ले, बेटा. नहीं तो उस से तेरा रिश्ता तुझे जिंदगीभर नासूर की तरह दुख देगा.’’

‘‘हां दादू. सोच तो मैं भी यही रहा हूं पर मैं उस से अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुका हूं कि अब पीछे कैसे लौटूं, सम?ा नहीं पा रहा.’’

‘‘तुझे कुछ नहीं करना, बेटा. बस, तू उस से  साफसाफ कह दे कि मैं तुम जैसी उड़ाऊ, गैरजिम्मेदार और झगड़ालू लड़की से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता.’’

‘‘अरे दादू. यह इतना आसान नहीं.’’

‘‘मुश्किल भी नहीं. बस, तुझे यह कहना होगा कि अगर तुम ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा तो मेरी दादी तुम्हारे पेरैंट्स को तुम्हारे ऊपर मेरे 12 हजार रुपए की बकाया रकम के बारे में बता देंगी. बस, तेरा इतना कहते ही वह तेरी जिंदगी से दुम दबा कर नौदोग्यारह हो जाएगी.’’

इस पर कुश ने आभाजी के हाथ चूमते हुए कहा, ‘‘वाह दादू. मान गया मैं आप को. कितना धांसू आइडिया दिया है आप ने. लव यू, दादू. मैं कल ही उसे साफसाफ लफ्जों में यही कहता हूं और उस से अपनी जान छुड़ाता हूं.’’

लाडले पोते की यह बात सुन कर आभाजी की आंखें चमक उठीं और उन्होंने राहत की सांस ली.

तभी उन की एक सहेली दीपा का फोन आ गया.

‘‘अरे आभाजी, आज कालोनी के मंदिर में कीर्तनभजन का कार्यक्रम रखा है. आप तो कभी इन धर्म के कामों में कोई रुचि ही नहीं लेती हो. घर ही घर में घुसी रहती हो. ऐसी भी क्या व्यस्तता भई, जो बुढ़ापे में परलोक सुधारने की भी सुध न रहे.’’

‘‘अरे दीपाजी, परलोक किस ने देखा है? मैं तो अपना यही लोक सुधारने की जुगत भिड़ाने में लगी रहती हूं. घरपरिवार में आएदिन कोई न कोई मसला होता ही रहता है. अब घर की बड़ीबुजुर्ग होने के नाते मेरा ही तो फर्ज है न, उन की उल?ानों को सुलझाने का. मुेझे तो भई माफ करो. मेरे अपने ही काम बहुत हैं. मेरे पास इन फालतू की चीजों के लिए बिलकुल वक्त नहीं.

तभी कुश बाहर से आया और दादी से बोला, ‘‘दादू, आप का फार्मूला तो वाकई हिट रहा. मैं ने जैसे ही उधारी की बात उस के पेरैंट्स को बताने की धमकी दी, वह भीगी बिल्ली बन गई. मैं ने उस से कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारा नंबर ब्लौक कर रहा हूं. अब कभी मुझे कौंटैक्ट करने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ओ दादू, लव यू. आप तो वाकई में लाजवाब हो.’’

इन्हें आजमाइए

हमारी उम्र के साथ हमारा लक्ष्य भी बदला जा सकता है. इसलिए देखें कि पहले जो लक्ष्य था क्या अब भी महत्त्वपूर्ण है. ऐसे लक्ष्य को छोड़ दें जो अब आप के काम का नहीं है.

अगर आप लंबे वक्त से मैटल और इमोशनल चैलेंजेस से गुजर रहे हैं तो मनोचिकित्सक और प्रोफैशनल्स की मदद लें. कभीकभी खुद को दूसरों के नजरिए से देखना भी मददगार होता है.

किसी भी फंक्शन या पार्टी में अकेले शामिल होने की जगह अपने पार्टनर को भी साथ ले जाएं. अपने जानकारों से उसे मिलाएं. इस से वह अच्छा महसूस करेगा और उसे एहसास होगा कि वह आप के जीवन में कितनी अहमियत रखता है.

हमेशा शांत मन से बच्चे से बात करें. इस से वह चिड़चिड़ा नहीं होगा. बातबात में बच्चे पर चिल्लाना बंद करें. जब तक उस से कोई बड़ी गलती न हो उस से तेज आवाज में बात न करें.

सुख और दुख दोनों के संतुलन का नाम ही जीवन है. इसलिए सुखों के साथ दुखों को सहने की भी आदत डाल लें. सुख में सुखी हो तो दुख का भी इजहार करो. अप्रसन्नता की भावना को स्वीकार करो.

वैज्ञानिकों पर गर्व

चंद्रयान-3 के लैंडर मौड्यूल का सफलतापूर्वक चांद पर उतरना देश के वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व सफलता है और पूरे देश को आज अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है. 3,80,000 किलोमीटर का सफर तय करा कर, प्रोपल्शन मौड्यूल से चंद्रयान-3 को उतारना व उस की सौफ्ट लैंडिंग करवाने में वैज्ञानिकों को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी, आम भारतीय इस की बस, कल्पना कर सकता है.

चांद पर पहुंचने का काम दुनिया के कई देशों ने पहले शुरू कर दिया था और 21 जुलाई, 1969 को अमेरिका ने पहला व्यक्ति नील आर्मस्ट्रौंग को वहां उतार कर दुनिया के दूसरे देशों के लिए एक चुनौती फेंकी थी. देर से ही सही, भारत ने अपने सीमित साधनों के बावजूद उस दिशा में एक मजबूत कदम रख दिया है. आदमी को पहुंचाने के लक्ष्य में अभी बहुत देर है.

इंडियन स्पेस रिसर्च और्गेनाइजेशन का यह संकल्प कि हम ऐसा कुछ कर सकते हैं, दशकों पहले दिखाने लगा था और 2008 में तो चंद्रयान-1 ने खुद को चांद की कक्षा में स्थापित भी कर लिया था.

चंद्रयान-2 के लैंडिंग मौड्यूल के 2019 में गिरने से हताशा हुई थी, लेकिन आज 2023 में भारतीय वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया कि वे किसी भी गलती से निराशा नहीं पालते, बल्कि उस से सीखते हैं.

दुनिया में भारत की छवि गरीब व पिछड़े देश की है. इस के बावजूद हमारे वैज्ञानिकों की श्रेष्ठता सिद्ध करती है कि उन में किसी भी तरह की नई खोज करने, घंटों, दिनों, सप्ताहों तक गणना करने, सही हार्डवेयर व सौफ्टवेयर बनाने में कोई कमी नहीं है और उन्हें सही मार्गदर्शन व काम करने की स्वतंत्रता चाहिए.

इस उपलब्धि पर पूरा देश गर्व से फूला नहीं समा रहा. यह साफ है कि वैज्ञानिकों के हाथ में देश की कमान हो तो वे पूरे देश को सीमित साधनों के बावजूद उसी तरह से सुधार सकते हैं जिस तरह उन्होंने इसरो का निर्माण किया और उस के एक लक्ष्य को पूरा किया, बीच में सिर्फ एक अफसोसनाक घटना घटने के.

पिछली 4-5 सदियों में मानव को जो सुख मिले हैं वे वैज्ञानिकों के बल पर मिले हैं जिन्होंने प्रकृति को पूजा नहीं, उस के रहस्यों की परतें खोलीं और उन से अपने काम का रास्ता अपनाया. भारत दशकों तक इस मामले में पिछड़ा रहा था. पर इसरो के इन वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि एक उन्नत व वैज्ञानिक सोच वाले भारत का निर्माण संभव है.

वैज्ञानिकों ने दर्शा दिया है कि बुद्धि में हम भारतीय किसी से कम नहीं हैं और हमें दुनिया के किसी देश, समाज या गुट के आगे शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है. हमें बस, इसरो जैसा नेतृत्व चाहिए जहां पूरी लगन और निष्ठा से हजारों वैज्ञानिकों ने 2019 की असफलता के बाद रातदिन काम किया और देश को असीम गौरव दिलाया.

भारत की आर्थिक गिरावट

भारत में मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में हुए कार्यों का चाहे जितना बखान करते रहें, अंतर्राष्ट्रीय फाइनैंशियल संस्थाएं भारत के भविष्य के प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. मूडी, एस एंड पी व फिच जैसी रेटिंग करने वाली संस्थाओं ने भारत को स्थिरता और विश्वसनीयता के पैमाने पर बहुत नीचे, बीएए-3, पर रखा हुआ है.

युवा आबादी बढ़ने की वजह से देश में उत्पादन तो बढ़ेगा पर संपन्नता आएगी, इस में दुनियाभर को संदेह है क्योंकि भारत में सामाजिक समरसता को बुरी तरह कुचला जा रहा है जिस के जीतेजागते उदाहरण मणिपुर और दिल्ली के निकट नूहं हैं. देश अमीर होगा, सरकारी खजाना भरेगा, ऐशोआराम की चीजें बनेंगी, भव्य मंदिरों का निर्माण होगा, बड़ी गाडि़यां होंगी पर इन सब के साथ बदबूदार बस्तियों में भारत की 85 फीसदी जनता रहती रहेगी.

जो हो रहा है, उस का लाभ कुछ को मिलेगा और बाकी, सदियों की तरह फाकों में रहेंगे.

चीन का अनुभव सामने है. चीन ने धर्म का राज तो नहीं थोपा पर कम्यूनिस्ट तानाशाही धार्मिक तानाशाही का ही एक रूप है जिस में कम्यूनिस्ट नीति ही हर कुछ होती है. 4 दशकों तक अपनी बढ़ती आबादी के कारण व उस युवा आबादी के अपने सपने पूरे करने के संकल्पों के बल पर चीन दुनिया की फैक्ट्री बन बैठा. लेकिन वहां की सरकार को विशिष्ट लोगों का एक वर्ग तैयार करना पड़ा जो करोड़ों को कंट्रोल कर सके.

अब यह वर्ग फलफूल रहा है. लेकिन गरीब सामान्य तबका कम बच्चे, विवाह का बो?ा न होने के कारण काम के प्रति लगन और उत्साह खोता जा रहा है. कम्यूनिज्म ने अफीम और तकनीक के मिश्रण के 4 दशक चीन को दिए, पर, अब पासा पलट रहा है.

हमें तो वे अब भी न मिले. नेहरू-गांधी राज में सोशलिज्म के मंदिरों पर पैसा बरबाद किया गया और जो सोशलिस्ट न हो, सरकारी क्षेत्र का भक्त न हो वह देशद्रोही हो गया. इस दौरान ?ालाछाप सोशलिस्ट संपन्न हो गए, कैपिटलिस्ट फूल गए. उस के बाद आज मोदीकाल में सोशलिज्म की जगह हिंदू धर्म के कर्मकांड ने ले ली है. चारों ओर देवीदेवता बिखरने लगे हैं.

भारत का हाल उस स्टालिन के रूस और माओ के चीन सा होता जा रहा है जहां नारेबाजी की कमी नहीं थी, हर नुक्कड़ पर महान गाथाएं लिखी थीं और लोग एक वक्त का दूध व ब्रैड लेने के लिए घंटों लाइनों में लगते थे.

मूडी और फिच जो भी कह रही हैं, शायद गलत नहीं है. भारत ऐसी काली गुफा में घुसता जा रहा है जिस में अंदर हीरे तो लगे हैं पर न कपड़ा है, न मकान.

प्रेम : सुरक्षा और समर्पण का आनंद

90 के दशक में एक मूवी आई थी ‘प्रेमगीत’ जिस का एक गाना बहुत प्रचलित था, ‘होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो, न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’

यह बात सच है कि जब व्यक्ति किसी से प्रेम करता है या उस के प्रति आकृष्ट होता है तो वह उस के विचार, उस की सोच से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है. किसी व्यक्ति का स्वरूप तभी तक आंखों में रहता है जब तक वह व्यक्ति उस के सामने होता है किंतु उस की बातें दूसरे व्यक्ति के मानसपटल पर बहुत समय तक छाई रहती हैं. यानी व्यक्ति के व्यक्तित्व में उस की सोच का बहुत अहम किरदार होता है और प्रेम वही होता है जो व्यक्ति से न हो कर व्यक्तित्व से होता है.

शायद प्रेम और आकर्षण में यही फर्क है. व्यक्ति शारीरिक रूप से जिस उम्र का होता है मानसिक रूप से कभीकभी उस से कम या ज्यादा उम्र का हो सकता है. यानी जरूरी नहीं है कि शारीरिक और मानसिक उम्र एकबराबर ही हो. कभीकभी व्यक्ति जिस्म से प्रौढ़ हो जाता है किंतु मन से बहुत युवा होता है और प्यार में अगर 2 व्यक्ति मानसिक रूप से एकदूसरे के पूरक हैं तो शारीरिक उम्र का अंतर बेमानी साबित हो जाता है. अगर दोनों की उम्र में अंतर होता है तो रोजमर्रा के बहुत से मतभेद आसानी से निबट जाते हैं. जबकि एक ही उम्र का होने पर दोनों का ईगो क्लैश होना भी बड़ी सामान्य बात होता है जो रिश्तों की बुनियाद हिला देता है.

पता नहीं क्यों हमारे समाज में प्रेम और विवाह के लिए समान उम्र को महत्त्व दिया जाता है किंतु मु?ो लगता है, वैचारिक सामंजस्य प्रगाढ़ रिश्ते की गारंटी होता है न कि समान उम्र. एक मानसिक रूप से परिपक्व व्यक्ति किसी भी विषम परिस्थिति में आप को मानसिक संबल प्रदान करता है जो कि पढ़नेसुनने में हो सकता है कि मामूली बात लगे किंतु व्यावहारिक रूप से यह बहुत बड़ी बात है और इस का बड़ा महत्त्व होता है. सो, अगर आप अपने से बड़े व्यक्ति से विवाह करते हैं या प्रेम कर रहे हैं तो इस संबध की परिणति सुखद ही होगी. निश्ंिचत हो कर अपने संबंध को आगे बढ़ाएं और किसी भी दुविधा या किंतुपरंतु को मन से निकाल दें.

हमारे समाज में एक और भी मान्यता है कि लड़के को लड़की से बड़ा होना चाहिए. किंतु अगर लड़की लड़के से बड़ी हो तो न जाने क्यों लोगों को अजीब लगता है. जबकि बड़ी उम्र की स्त्री बड़ी संजीदगी से अपने प्यार और विवाह के बाद आने वाली हर परिस्थिति में समायोजन कर लेती है. सोच में ठहराव भी बड़ी उम्र के लोगों में ज्यादा देखने मिलती है.

यहां यह कहना मुश्किल है कि समान उम्र के लोगों के संबंध स्थाई नहीं होते. किंतु अगर मानसिक सामंजस्य है तो अपने से बड़ी उम्र की लड़की या लड़के के साथ रिश्ते को आगे बढ़ाने में कदापि संकोच न करें, वह भी सिर्फ इस आधार पर कि आप दोनों की शारीरिक उम्र में अंतर है.

प्यार मन का मेल है, दिल का खेल है. सो, जिस से भी मन मिले, जिस के साथ दिल खेले वही मन मीत है. बस, सच्चे मीत को मन की आंखों से पहचानें. फिर देखिए एक खुशगवार जिंदगी आप की राह देख रही होगी.

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