सोशल मीडिया पर एक भगवा प्रोपेगंडा तेजी से वायरल हो रहा है, जिस में दावा किया जा रहा है कि साल 1850 तक भारत में कुल 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे. इसे प्रचार करने वाले खुद को कट्टर सनातनी बता रहे हैं और कह रहे हैं कि जिस समय ये गुरुकुल थे उस समय भारत के शतप्रतिशत लोग शिक्षित थे. इस गुरुकुल में अग्नि विद्या, वायु विद्या, जल विद्या, सूर्य विद्या समेत लगभग 50 तरह की शिक्षाएं दी जाती थीं.
इस वायरल मैसेज में कहा जा रहा है कि गुरुकुल के खत्म होने का कारण मैकाले की सोच और कौन्वेंट स्कूल थे. मैसेज के अनुसार, 1835 के दौरान अंगरेजों ने इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाया, जिस की ड्राफ्ंिटग लौर्ड मैकाले द्वारा की गई. ड्राफ्ंिटग करने से पहले मैकाले ने भारत में एक सर्वे किया और सर्वे में पता चला कि देश में 100 प्रतिशत लोग साक्षर हैं.
इस के बाद मैकाले ने ड्राफ्ट बनाते हुए स्पष्ट किया कि अगर भारत को गुलाम बनाना है तो भारत की सांस्कृतिक शिक्षा को ध्वस्त करना होगा और उस की जगह इंग्लिश शिक्षा व्यवस्था लानी होगी. वायरल मैसेज के अनुसार, यही कारण था कि देश के 7 लाख से अधिक गुरुकुल गैरकानूनी कर दिए गए और संस्कृत को गैरकानूनी घोषित कर पूरे देश में गुरुकुल खत्म किए गए.
इस मैसेज में बताया जा रहा है कि गुरुकुलों में शिक्षा निशुल्क दी जाती थी. जब इंग्लिश शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया तो कलकत्ता (अब कोलकाता) में पहला कौन्वेंट स्कूल खोला गया. उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था. इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गई, मुंबई यूनिवर्सिटी बनाई गई, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गई. ये तीनों गुलामी के जमाने की यूनिवर्सिटीज आज भी देश में हैं.
अब अगर इस मैसेज को सम?ाने की कोशिश करें तो सम?ा आ जाएगा कि इस तरह के मैसेज किस फैक्ट्री से बन कर तैयार हो रहे हैं और क्यों इतने ठेले जा रहे हैं. भारत की वर्तमान जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है. देश जब आजाद हुआ तब यह जनसंख्या 31 करोड़ के आसपास थी. इसी आनुपातिक तौर पर 1820-22 में कथित गुरुकुल जब अपने चरम पर रहे थे तब जनसंख्या कोई 7 करोड़ के आसपास रही होगी.
अब इस आंकड़े के अनुसार, अगर 7,32,000 को उस समय देश की जनसंख्या से भाग दिया जाए तो लगभग हर 90-100 लोगों पर 1 गुरुकुल जरूर रहा होगा. इन 100 लोगों में बच्चे, बूढ़े, औरत, जवान सभी आ जाते हैं. चलो खींचखांच कर अगर शिक्षायोग्य 50 प्रतिशत लोगों को गिन लें तो एक गुरुकुल में 50 लोग पढ़ने योग्य रहे होंगे.
अब चूंकि सनातन संस्कृति में महिलाओं को पढ़ने की मनाही थी तो यह संख्या आधी बन जाती है, यानी हर 25 जने पर एक गुरुकुल. अब चूंकि 80 प्रतिशत आबादी इस देश में शूद्र दलितों की रही, जिन्हें वैसे ही वेद का उच्चारण करने तक में कड़ी सजा का प्रावधान था, तो वे पहले ही साइड हो लिए होंगे. यानी लेदे कर बचे 4-5 लोग गुरुकुल में पढ़ने जाते रहे होंगे. अब कोई बताए कि 4-5 लड़कों पर चलने वाला गुरुकुल अपनेआप भी टिक सकता है भला? ऐसी पाठशालाएं कोई दूसरा क्या खत्म करे, इकोनौमिकल और सोशल वायबल न होने के चलते खुद ही ढह जाएंगी.
लेकिन इस से बड़ी पते की बात यह है कि ये 4-5 ऊंचे लोग गुरुकुल से पढ़ कर भी निरे बेवकूफ ही निकले. वेदों को पढ़ कर इन से हवाई जहाज, फ्रिज, वाशिंग मशीन, कार, मैट्रो, मोबाइल तक नहीं बन पाए. ये सब इंग्लिश शिक्षा प्राप्त किए आविष्कारक ही बना पाए हैं.
इस मैसेज को समझा जाए तो इस में एकाध बात ही तथ्यात्मक होगी, बाकी सारी ?ाठ. एकआध तथ्यपरक इसलिए होगी कि लोगों को बेवकूफ बनाया जा सके. इन प्रोपेगंडा मैसेजों को फैलाने वालों की कुंडली निकाल ली जाए तो दिखेगा कि ये वे ही हैं जिन के बच्चे बढि़या इंग्लिश कौन्वेंट स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं और इन से बड़े वाले तो अपने बच्चों को सात समंदर पार विदेशी स्कूलकालेजों में पढ़ाने के लिए भेजे हुए हैं और ये गरीब भारतीयों से कह रहे हैं कि वे अपनी संस्कृति ढोएं.