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खाने के फौरन बाद न करें इन 5 चीजों का सेवन, हो सकता हैं नुकसान      

ज्यादातर लोग खाना खाने के तुरंत बाद सो आ जाते हैं या फिर उन्हें चायकॉफी पीने की आदत होती है. कई बार हम जानेअनजाने में भी खाने के बाद कुछ ऐसी चीजों का सेवन करते हैं जिस से शरीर को फायदा होने के बजाय नुकसान होता है. लिहाजा, इन सब चीजों को नोट कर लें और हमेशा याद रखें कि आप को खाना खाने के बाद किनकिन चीजों का सेवन नहीं करना है.

1 खाने के बाद न पिएं चाय-कॉफी

खाना खाने के तुरंत बाद चाय पीना बिलकुल भी सही नहीं है, क्योंकि इस से हमारी पाचन शक्ति पर असर पड़ता है. डॉक्टरों का मानना है कि खाना खाने के 1 घँटे पहले और 1 घंटे बाद तक चाय या कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि चायकॉफी में मौजूद केमिकल टैनिन आयरन को सोखने की प्रक्रिया में बाधा डालता है और उसे 87 प्रतिशत तक घटा देता है, जिस से पाचन में दिक्कत आ सकती है. साथ ही आप की इस आदत की वजह से आप को अनीमिया हो सकता है, हाथपैर ठंडे रहने की दिक्कत हो सकती है, सिर घूमना और भूख न लगना जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं.

2 खाने के तुरंत बाद न खाएं फल

फलों का सेवन खाली पेट ही अच्छा माना जाता है. लंच, डिनर या फिर ब्रेकफास्ट जैसे हेवी भोजन के बाद फलों का सेवन नहीं करना चाहिए. जब पेट भरा हुआ हो और तब आप फल खाने लगें तो इन फलों को पचाने में पेट को दिक्कत महसूस होती है, जिस से आप को फलों का भरपूर पोषण नहीं मिल पाएगा. लिहाजा, फ्रूट्स का सेवन आप स्नैक्स के तौर पर कर सकते हैं.

3 ठंडा पानी न पिएं

खाना पचाने के लिए पानी पीना बेहद जरूरी है, लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए और ज्यादा ठंडा पानी तो बिलकुल भी नहीं पीना चाहिए. खाने के तुरंत बाद ठंडा पानी पीने से खाना पेट में झुंड या गुच्छे में जम जाता है जिस से डाइजेशन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और खाने को पचाना मुश्किल हो जाता है.

एक्सपर्ट्स की मानें तो हमें खाना खाने के बाद गुनगुना पानी पीना चाहिए और वह भी खाना खाने के 45 मिनट बाद. खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए.

4 धूम्रपान करने से बचें

हम सभी जानते हैं कि सिगरेट पीना सेहत के लिए नुकसानदेह है, लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद स्मोकिंग करना और भी ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि ऐसा करने से इरिटेबल बावल सिंड्रोम नाम की बीमारी हो सकती है, जिस से अल्सर होने का खतरा रहता है. शोध बताते हैं कि यदि आप खाने के तुरंत बाद 1 सिगरेट पीते हैं तो वह आप के शरीर को 10 सिगरेट के बराबर नुकसान पहुंचाएगी. लिहाजा, यदि आप को खाने के बाद सिगरेट पीने की आदत है तो उसे आज ही बदल दें.

5 ऐल्कोहल का भी न करें सेवन

खाना खाने के बाद कभी भी ऐल्कॉहल का सेवन करें, क्योंकि इस से भी डाइजेशन की प्रक्रिया प्रभावित होती है और शरीर के साथ-साथ आंतों को भी बहुत नुकसान होता है. लिहाजा, खाने के तुरंत बाद कभी भी ऐल्कॉहल का सेवन न करें.

खाने के तुरंत बाद नहाने से बचें

आयुर्वेद के साथसाथ मॉर्डन मेडिकल साइंस भी इस बात को मानता है कि खाना खाने के तुरंत बाद नहाने से शरीर का बॉडी टेंपरेचर अचानक बहुत कम हो जाता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन पर असर पड़ता है. ऐसा होने पर जिस खून को डाइजेशन में शरीर की मदद करनी चाहिए वह स्किन का तापमान बनाए रखने के लिए स्किन की तरफ आ जाता है। लिहाजा, खाने के बाद नहाने के प्लान को कैंसिल कर दें.

खाने के तुरंत बाद न सोएं

ऐसा खासकर रात के वक्त होता है.दिनभर की थकान के बाद रात में टेस्टी डिनर खाने के बाद नींद को रोक पाना संभव नहीं होता, लेकिन ये बेहद जरूरी है कि आप इस बात का ध्यान रखें और खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर न जाएं. ऐसा करने से आप को हार्ट बर्न यानी सीने में जलन, खर्राटे आना और स्लीप ऐप्निया की भी दिक्कत हो सकती है. खाने के बाद कुछ देर टहल लें और उस के बाद ही सोने के लिए जाएं

पढ़ें एक से बढ़कर एक मोटिवेशनल कहानी छोटी सी

Top 10 very short Motivational stories in hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट मोटिवेशनल कहानी छोटी सी. तो पढ़िए वो छोटी-छोटी कहानियां. जिन्हें पढ़ने के बाद आपको प्रेरणा तो मिलेगी ही. साथ ही आपके जीवन में सफलता के नए आयाम भी अग्रसर होंगे. दरअसल, कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती है. जहां से बाहर निकलना हमारे लिए असंभव सा हो जाता है. ऐसे में हमे प्रेरणा की अति आवश्यकता पड़ती है और सरिता पत्रिका मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित आर्टिकल व कहानियां इंसान को उनकी ज्यादातर परेशानियों का हल देती है.

Special Inspirational Stories in Hindi : सफलता की वो कहानियां जो बदल सकती हैं आपके जीवन को

1. नारायण बन गया जैंटलमैन

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कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.

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2. का से कहूं : सहेलियों की व्यथा की दिल छूती कहानी

प्रेरक कहानी

कहने को तो मैं बाजार से घर आ गई थी पर लग रहा है मेरी खाली देह ही वापस लौटी है, मन तो जैसे वहीं बाजार से मेरी बचपन की सखी सुकन्या के साथ चला गया था. शायद उस का संबल बनने के लिए. आज पूरे 3 वर्ष बाद मिली सुकन्या, होंठों पर वही सदाबहार मुसकान लिए. यही तो उस की विशेषता है, अपनी हर परेशानी, हर तकलीफ को अपनी मुसकराहट में वह इतनी आसानी, इतनी सफाई से छिपा लेती है कि सामने वाले को धोखा हो जाता है कि इस लड़की को किसी तरह का कोई गम है.

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3. एक इंच मुस्कान

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“अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली. “मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया. “अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली. “मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”

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4. कशमकश : दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?

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मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा. ‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’

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5. राधेश्याम नाई : आखिर क्यों खास था राधेश्याम नाई ?

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‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’ राजेश तो राधेश्याम का गुण गाए जा रहा था और मुझे उस का यह राग जरा भी पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि गगन टायर कंपनी वालों ने मुझे राधेश्याम का परिचय कुछ अलग ही अंदाज से दिया था. गगन टायर का शोरूम राधेश्याम की दुकान के ठीक सामने सड़क पार कर के था. मैं उन के यहां 5 दिनों से बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट बहीखातों का निरीक्षण अपने सहयोगियों के साथ कर रहा था. कंपनी के अधिकारियों ने इस नाई के बारे में कहा था कि यह दिमाग से जरा खिसका हुआ है. अपनी ऊलजलूल हरकतों से यह बाजार का माहौल खराब करता है. चीखचिल्ला कर ड्रामा करता है और टोकने पर पड़ोसियों से लड़ता है.

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6. जूमजूम झूम वाला : लड़कियों की फोटो खींचना कैसे पड़ गया भारी हेमंत और रोहित को ?

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रोहित ने शान से अपना नया स्मार्टफोन निकाल कर अपने दोस्तों को दिखाया और बोला, ‘‘यह देखो, पूरे 45 हजार रुपए का है.’’ ‘‘पूरे 45 हजार का?’’ रमन की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘आखिर ऐसा क्या खास है इस मोबाइल में?’’ ‘‘6 इंच स्क्रीन, 4 जीबी रैम, 32 जीबी आरओएम, 16 एमपी ड्यूल सिम, 13 मेगापिक्सल कैमरा…’’ रोहित अपने नए फोन की खासीयतें बताने लगा. रोहित के पापा शहर के बड़े व्यापारी थे. रोहित मुंह में सोने का चम्मच ले कर पैदा हुआ था. उस की जेब हमेशा नोटों से भरी रहती थी इसलिए वह खूब ऐश करता था.

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7. चाहत : एक गृहिणी की ख्वाहिशों की दिल छूती कहानी

प्रेरणादायक कहानियां

‘थक गई हूं मैं घर के काम से. बस, वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर की सारी टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं. अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,’ शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं. एक बार अपनी बोरियतभरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान बनाया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

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8. पांच रोटियां, पंद्रह दिन

short प्रेरणादायक कहानी

धनबाद के पास एक कोयले की खान में सैकड़ों मजदूर काम करते थे. मंगल सिंह उन में से एक था. उसे हाल ही में नौकरी पर रखा गया था. उस के पिता भी इसी खान में नौकरी करते थे, लेकिन एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. खान के मालिक ने मंगल सिंह को उस के पिता की जगह पर रख लिया था. मंगल सिंह 18 वर्ष का एक हंसमुख और फुरतीला जवान था. सुबहसुबह नाश्ता कर के वह ठीक समय पर खान के अंदर काम पर चला जाता था. उस की मां उस को रोज एक डब्बे में खाना साथ में दे दिया करती थीं. अपने कठिन परिश्रम औैर नम्र स्वभाव केकारण वह सब का प्यारा बन गया था. बरसात का मौसम था. सप्ताह भर से जोरों की वर्षा हो रही थी. खान के ऊपर चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता था.

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9. आंधी से बवंडर की ओर : क्या सोनिया अपनी बेटी को मशीनी सिस्टम से निजात दिला पाई ?

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फन मौल से निकलतेनिकलते, थके स्वर में मैं ने अपनी बेटी अर्पिता से पूछा, ‘‘हो गया न अप्पी, अब तो कुछ नहीं लेना?’’ ‘‘कहां, अभी तो ‘टी शर्ट’ रह गई.’’ ‘‘रह गई? मैं तो सोच रही थी…’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बोली, ‘‘हां, मम्मा, आप को तो लगता है, बस थोडे़ में ही निबट जाए. मेरी सारी टी शर्ट्स आउटडेटेड हैं. कैसे काम चला रही हूं, मैं ही जानती हूं…’’ सुन कर मैं निशब्द रह गई. आज की पीढ़ी कभी संतुष्ट दिखती ही नहीं. एक हमारा जमाना था कि नया कपड़ा शादीब्याह या किसी तीजत्योहार पर ही मिलता था और तब उस की खुशी में जैसे सारा जहां सुंदर लगने लगता.

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10. पश्चात्ताप की आग

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बरसों पहले वह अपने दोनों बेटों रौनक और रौशन व पति नरेश को ले कर भारत से अमेरिका चली गई थी. नरेश पास ही बैठे धीरेधीरे निशा के हाथों को सहला रहे थे. सीट से सिर टिका कर निशा ने आंखें बंद कर लीं. जेहन में बादलों की तरह यह सवाल उमड़घुमड़ रहा था कि आखिर क्यों पलट कर वह वापस भारत जा रही थी. जिस ममत्व, प्यार, अपनेपन को वह महज दिखावा व ढकोसला मानती थी, उन्हीं मानवीय भावनाओं की कद्र अब उसे क्यों महसूस हुई? वह भी तब, जब वह अमेरिका के एक प्रतिष्ठित फर्म में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर थी. साल के लाखों डालर, आलीशान बंगला, चमचमाती कार, स्वतंत्र जिंदगी, यानी जो कुछ वह चाहती थी वह सबकुछ तो उसे मिला हुआ था, फिर यह विरक्ति क्यों? जिस के लिए निशा ससुराल को छोड़ कर आत्मविश्वास और उत्साह से भर कर सात समंदर पार गई थी, वही निशा लुटेपिटे कदमों से मन के किसी कोने में पछतावे का भाव लिए अपने देश लौट रही थी.

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अतीत का साया : मृदुला का क्या था एकमात्र मकसद ?

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अविश्वास : रश्मि ने अपने अकेलेपन को खत्म करने के लिए क्या तय किया ?

अपने काम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्चिंत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर 2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी.

मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’

मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर  लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’

‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश.

टॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक R. Madhavan ने बनाई अपनी पहचान, जानें कैसा रहा फिल्मी सफर

R Madhavan journey : साउथ फिल्म इंडस्ट्री से लेकर हिन्दी सिनेमा में अपनी एक्टिंग के दम पर अपनी पहचान बनाने वाले एक्टर ”आर माधवन” (R Madhavan) को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और काम के प्रति अपने समर्पण से लाखों लोगों का दिल जीता हैं. काम के प्रति एक्टर के इसी लगाव के चलते उन्हें ‘केंद्र सरकार’ ने एक बड़ी जिम्मेदारी भी सौंपी हैं. दरअसल, हाल ही में ”आर माधवन” को ‘भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान’ (एफटीआईआई) और ‘गवर्निंग काउंसिल’ का अध्यक्ष बनाया गया हैं.

हालांकि उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए जीवन में कई समस्याओं का भी सामना किया है. तो आइए जानते हैं अभिनेता ”आर माधवन” के फिल्मी करियर के बारे में.

आर्मी की ट्रेनिंग छोड़ एक्टिंग को क्यों चुना आर माधवन ने ?

तब के बिहार और आज के झारखंड में पले-बढ़े ”आर माधवन” (R Madhavan Career) तमिल परिवार से आते हैं. जिनकी पढ़ाई महाराष्ट्र में हुई है. पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने एनसीसी में दाखिला लिया. जहां एक्टर ने कैडेट में इतना अच्छा प्रदर्शन किया कि उन्हें इंग्लैंड में ब्रिटिश आर्मी के साथ ट्रेनिंग करने का मौका मिला. इसी के साथ उन्होंने पब्लिक रिलेशन्स में मास्टर्स भी कर ली.

हालांकि एक्टर बनना उनका कोई सपना नहीं था लेकिन दोस्त के कहने पर उन्होंने कोल्हापुर में पब्लिक स्पीकिंग की क्लास ली. जहां से उनके फिल्मी करियर की शुरुआत हुई. वहां से मुंबई वापस आकर उन्होंने मॉडलिंग की, जिसके बाद उनके लिए पहले सीरियल और फिर फिल्मों का रास्ता खुलता चला गया.

टीवी सीरियल में भी किया है काम

आपको बता दें कि एक्टर ”आर माधवन” (R Madhavan Career) 90 के दशक से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर टीवी एक्टर के तौर पर की थी. 90 के दशक में उन्होंने कई टीवी सीरियल जैसे कि साया, बनेगी अपनी बात और घर जमाई में काम किया है. जिनसे उन्हें घर-घर में पहचान मिली. फिर उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाते हुए फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाई. एक्टर ने साल 1997 में आई इंग्लिश फिल्म ‘इन्फर्नो’ से डेब्यू किया. इसी के साथ उन्होंने कन्नड़, हिंदी, तमिल और कई अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया. हालांकि इतना नाम कमाने के बाद भी माधवन ने फिल्मों में छोटा या सह कलाकार का रोल निभाने से परहेज नहीं किया.

जानें कैसे मिली ”मैडी” के रूप में पहचान

इसके बाद मणिरत्नम ने अपनी तमिल फिल्म ‘अलईपायुदे’ में ”आर माधवन” को कास्ट किया. जिससे उनकी प्रसिद्ध और बढ़ गई. फिर साल 2001 में उन्होंने तमिल फिल्म ‘मिन्नले’ में काम किया. इन फिल्मों से उन्हें एक रोमांटिक हीरो के तौर पर पहचान मिली. हालांकि उस समय तो उनकी फिल्म “रहना है तेरे दिल में” बुरी तरह फ्लॉप हुई लेकिन इसी फिल्म ने उन्हें ‘मैडी’ के नाम से मशहूर कर दिया. इसी वजह से आज भी उनके नाम के साथ ‘मैडी’ जोड़ा जाता हैं. इसी बीच उन्होंने फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में काम किया. जो उनके लिए गेमचेंजर साबित हुई. इस फिल्म में उनके ‘फरहान’ किरदार को लोगों ने खूब पसंद किया.

इस वजह से लिया था फिल्मों से ब्रेक

इसी के बाद उन्हें (R Madhavan) कई और फिल्में ऑफर हुई, लेकिन वो सभी कुछ खास कमाल नहीं कर पाई. इसलिए एक्टर ने कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक ले लिया. ब्रेक के बाद उन्होंने नए तरीके से वापसी की और फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ से इंटस्ट्री में धूम मचा दी. इसके बाद उन्होंने तमिल फिल्म ‘इरुधी सुत्रु’ में काम किया, जिस फिल्म को हाल ही में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है.

इस तरह किया खुद को चैलेंज

हालांकि फिल्मों के साथ उन्होंने बदलते वक्त और नई तकनीक को देखते हुए वेबसिरीज में भी अपना हाथ आजमाया है. साल 2018 में उन्होंने पहली बार वेबसिरीज ”ब्रीथ” (Breathe) से ओटीटी पर डेब्यू किया था. इसके अलावा 50 साल की उम्र में उन्होंने खुद को नया चैलेंज देते हुए फिल्मों को डाइरेक्ट, प्रोडयूस और लिखने का जिम्मा भी ले लिया. बीते साल इसरो वैज्ञानिक डॉक्टर ‘एस नांबी नारायण’ के संघर्षों और उपलब्धियों पर बनी फिल्म ‘रॉकेट्री’ रिलीज हुई, जिसमें उन्होंने एक्टर की मुख्य भूमिका तो निभाई ही. साथ ही वह फिल्म के लेखक, सह-निर्माता औ सह-निर्देशक भी रहे.

गौरतलब है कि जब भी एक्टर ”आर माधवन” (R Madhavan) का नाम आता है तो लोगों के मन में उनके लिए एक ऐसे शख्स की छवी आती है, जो सुपरस्टार तो हैं लेकिन स्टारडम की उलझनों से कोसो दूर हैं और ये ही बात उनके फैंस को खूब पसंद आती है.

मुझे खाली पेट कॉफी पीने की आदत पड़ गई है, बताएं इसको कैसे खत्म करूं ?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. बचपन से दूध पीती आई हूं. चाय मुझे बिलकुल पसंद नहीं. लेकिन इधर कई महीनों से मुझे कौफी पीने की आदत हो गई है. यहां तक कि सुबह खाली पेट कौफी पी लेती हूं. मम्मी मुझे बहुत डांटती हैं कि यह सेहत के लिए अच्छा नहीं. मुझे समझ नहीं आता क्योंकि कोई कहता है कौफी सेहत के लिए अच्छी है, कभी पढ़ने को मिलता है कि सेहत के लिए नुकसानदेह. किस की बात मानी जाए?

जवाब

कई रिसर्च व एक्सपर्ट डायटीशियंस के अनुसार, कैफीन अलगअलग इंसानों पर अलग तरह से रिऐक्ट कर सकती है. कुछ मामलों में यह जेस्टेशनल समस्याओं का कारण बन सकती है, लेकिन कई मामलों में इस का असर बिलकुल नहीं होता. यही कारण है कि कई लोगों के लिए कौफी वर्कआउट ड्रिंक के तौर पर काम करती है और कई लोगों को इसे पीने से गैस की समस्या हो जाती है. आप को यह ध्यान रखना होगा कि अगर आप 1 कप कौफी पीती हैं तो उस के लिए 2 गिलास पानी जरूर पिएं.

अगर दिन में 4 कप कौफी पीती हैं तो दिनभर में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं. जहां तक सुबह खाली पेट कौफी पीने की बात है तो आप को उस कौफी में थोड़ा सा कोकोनट औयल मिला देना चाहिए जो कई समस्याओं से राहत देगा. आप को कौफी पीना अच्छा लगता है, तो ध्यान से पिएं और अपनी सेहत का खयाल रखें.

जानिए कैसे मिलेगा एनीमिया से छुटकारा

शरीर में रक्त की कमी एनीमिया कहलाती है. इसके कारण रोगी की शारीरिक श्रम करने की क्षमता घट जाती है. इसका निदान जितनी शीघ्रता से होगा, इलाज भी उतना ही सरल होगा. खून की थोड़ी सी भी कमी व्यक्ति की कार्यक्षमता पर खासा प्रभाव डालती है और रोग की जितनी गंभीर स्थिति होती है, उसी अनुपात में मरीज की कार्यक्षमता भी घट जाती है. प्रयोगों से यह पता चला है कि रक्त में केवल 1.5 ग्राम हीमोग्लोबिन कम होने से रोगी की शारीरिक श्रम करने की शक्ति काफी घट जाती है.

कार्यक्षमता में कमी

खून की कमी जिसे अंगरेजी में एनीमिया कहते हैं,खून में लाल रक्त कणिकाओं की कमी के कारण होती है. कणिकाओं के एक महत्त्वपूर्ण घटक हीमोग्लोबिन की मात्रा भी इस स्थिति में कम हो जाती है. हीमोग्लोबिन लौह तत्त्व को मिला कर बना एक जटिल यौगिक होता है और इसी के कारण रक्त और रक्त कणिकाओं का रंग लाल रहता है.

हीमोग्लोबिन रक्त से शरीर के विभिन्न अंगों को ऑक्सीजन पहुंचाने का खास कार्य करता है, लेकिन खून में जब इसकी मात्रा कम हो जाती है, तो शरीर के विभिन्न अंगों को ऑक्सीजन भी कम मिलती है. इस कारण जैविक ऑक्सीकरण की क्रिया घट जाने से ऊर्जा भी कम उत्पन्न हो पाती है. यही वजह है कि रोगी की शारीरिक श्रम करने की क्षमता घट जाती है और वह जरा सा शारीरिक श्रम करने के बाद हांफने लगता है.

एनीमिया और कुपोषण

आंतों द्वारा भोजन को अवशोषित करने की शक्ति का प्रमुख कारण कुपोषण अथवा अल्प पोषण है. कुपोषण के कारण ही शरीर को पर्याप्त मात्रा में लौह तत्त्व अथवा विटामिन बी-12 और फौलिक एसिड की मात्रा नहीं मिल पाती और वह खून की कमी का शिकार हो जाता है. हमारे यहां लौह तत्त्व की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता सामान्य है.

सर्वेक्षणों के अनुसार 56.8 प्रतिशत गर्भवती स्त्रियां और 35.6 प्रतिशत अन्य युवा स्त्रियों के शरीर में लौह तत्त्व की मात्रा कम होने के कारण खून की कमी पाई जाती है. भारत में 20 से 50 प्रतिशत स्त्रियों में फौलिक एसिड की कमी भी पाई जाती है. रक्ताल्पता का एक प्रमुख कारण यह भी है. खून की कमी के कुछ अन्य कारण भी हैं, जैसे, मलेरिया, पेट में कृमियों की शिकायत होना आदि. इस तरह से शरीर में खून की कमी बीमारी दूर होने पर स्वयं ठीक हो जाती है. कुछ दवाइयों जैसे क्लोरेफेनीकाल आदि को बगैर चिकित्सक के परामर्श के लंबे समय तक लेने से भी खून की कमी की स्थिति बन सकती है.

रक्त की कमी का दुष्प्रभाव मानसिक दशा पर भी पड़ता है. रोगी खून की कमी के चलते चिड़चिड़ा हो सकता है. उसे सिरदर्द की भी शिकायत रहती है. कभीकभी सीने में दर्द और हलका बुखार भी रह सकता है. अन्य लक्षण जैसे, नाखूनों, हथेलियों और चेहरे का सफेद होना एवं आखों की निचली पलक के अंदरूनी भाग की लालिमा घट जाना आदि भी मिलते हैं.

खून की कमी के सही निदान के लिए इन लक्षणों के दिखाई देने पर रोगी को तुरंत चिकित्सक से संपर्क कर जांच करवानी चाहिए. आमतौर पर खून की जांचों में लाल रक्त कणिकाओं की खून में संख्या और हीमोग्लोबिन की मात्रा का पता करते हैं. एक स्वस्थ पुरुष में हीमोग्लोबिन की मात्रा 13.5 से 18 ग्राम प्रति डेसीलीटर और एक स्वस्थ स्त्री में 12 से 16 ग्राम प्रति डेसीलीटर होती है. हीमोग्लोबिन की मात्रा 10 ग्राम के आसपास होने पर उसे साधारण कमी की श्रेणी में रखते हैं और जब हीमोग्लोबिन 7 ग्राम प्रति डेसीलीटर के आसपास हो जाता है तो इसे गंभीर स्थिति माना जाता है.

यहां एक बात का उल्लेख करना जरूरी है कि कई बार खून की कमी शरीर में बगैर कोई लक्षण या परेशानी उत्पन्न किए भी हो जाती है, तब इस की पहचान केवल प्रयोगशाला में ही संभव हो पाती है. लेकिन आमतौर पर मिलने वाले लक्षणों जैसे थोड़े से श्रम पर थकान अथवा सांस फूलना, सिरदर्द आदि होने पर शीघ्र ही व्यक्ति को किसी अच्छे चिकित्सक को दिखाना चाहिए. गर्भवती माताओं एवं श्रमिकों को तो जरा सी शिकायत होने पर अपने हीमोग्लोबिन की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए. याद रखें खून की कमी का निदान जितनी शीघ्रता से होगा उस का इलाज भी उतना ही सरल होगा.

चिकित्सा

अब सवाल उठता है खून की कमी की समस्या को कैसे कम किया जाए, तो इससे निबटने का एक प्रमुख तरीका यह है कि लोग अपने खानपान की आदतें बदलें और संतुलित आहार की ओर पर्याप्त ध्यान दें. वे प्रोटीन, विटामिन और आयरन युक्त आहार जैसे, दूध, अंडे, सोयाबीन, गुड़ पालक की भाजी एवं अन्य हरी सब्जियां तथा फल भरपूर मात्रा में खाएं.

पेट में कीड़ों की शिकायत होने पर बच्चों को चिकित्सक के परामर्श पर शीघ्र दवाइयां दें. खून की कमी पैदा करने वाली बीमारियां जैसे मलेरिया आदि का इलाज भी अतिशीघ्र करवाएं. गर्भवती महिलाएं लौह और फॉलिक एसिड युक्त गोलियां तब तक लेती रहें, जब तक उन के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा पर्याप्त न हो जाए. खून की कमी से पीडि़त बच्चों को भी यही दवाइयां चिकित्सक की सलाह पर कम मात्रा में देनी चाहिए.

किस्सा डाइटिंग का : गुप्ताजी की पत्नी उनका वजन क्यों कम करवाना चाहती थी ?

एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में

देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया.

मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया.

कद्रदान : समीर और प्रभा के बीच क्या हुआ था ?

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मकड़जाल : रवि की बात सुन क्यों मानवी के होश उड़ गए ?

आज मानवी की आंख जरा देर से खुली, लेकिन जब वह सो कर उठी तब उस ने एक अजीब सी बेचैनी महसूस की. अपनी बिगड़ी हालत देख कर वह समझ गई कि जरूर उस का गर्भपात हुआ है. तब उस ने अधीरता से रवि को आवाज लगाई, पर उस की आवाज उसे नहीं सुनाई दी.

‘जरूर रवि मेरे लिए चाय बना रहा होगा,’ यही सोच कर वह देर तक आंखें मूंदे बिस्तर पर पड़ी रही, लेकिन जब काफी देर के बाद भी रवि नहीं आया तब मानवी का माथा ठनका.

फिर वह किसी तरह अपनी बची शक्ति समेट कर बड़ी मुश्किल से उठी और धीरेधीरे चलती हुई किचन की तरफ बढ़ गई.

पर यह क्या? रवि तो किचन में भी नहीं था. तभी उस की नजर घर में फैले सामान पर पड़ी. सामने वाली अलमारी का ताला टूटा पड़ा था और उस में रखा सारा कीमती सामान गायब था.

ये सब देख कर मानवी की चीख निकल गई. तब वह धम से सामने पड़े सोफे पर बैठ गई और अनायास ही उस का दिल भर आया.

एक तरफ वह बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी तो दूसरी तरफ मानसिक व आर्थिक रूप से भी अक्षम हो चुकी थी.

उसे आज समझ आ रहा था कि उस ने रवि के साथ लिव इन में रह कर कितनी बड़ी भूल की है.

‘कुछ भी ऐसा मत करना मेरी बेटी, जिस से बाद में हमें पछताना पड़े,’ दिल्ली आते समय उस के बाबूजी उस से बोले थे.

‘ओह, बाबूजी… मैं वहां कुछ बनने जा रही हूं, इसलिए कुछ भी ऐसेवैसे की तो गुंजाइश ही नहीं है…’ इतना कह कर उस ने आगे बढ़ कर अपने बाबूजी के चरणस्पर्श कर लिए थे.

फिर वह अपनी आंखों में ढेर सारे सपने लिए दिल्ली आ पहुंची थी. छोटे शहर की मानवी को दिल्ली स्वप्न नगरी से कम नहीं लगी थी. अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए कब रवि उस का हमसफर बन बैठा, इस का एहसास तो उसे बहुत देर में हुआ.

तभी अचानक मानवी को याद आने लगा कि रात को रवि ने जो ड्रिंक उसे औफर किया था, जरूर उस में उस ने कुछ मिलाया होगा. तभी तो उस ड्रिंक को पीते ही उसे बेहोशी छाने लगी थी और शायद इसी वजह से उस का यह गर्भपात हुआ.

अब तो जैसे उस की सोचनेसमझने की शक्ति चुक गई थी. अभी कल ही तो रवि ने उस से मंदिर में शादी की थी. वैसे यह बात नहीं थी कि मानवी ने यह निर्णय जल्दबाजी में लिया था बल्कि लगातार 2 साल लिव इन में रहने के बाद ही उस ने यह निर्णय लिया था.

फिर अचानक मानवी को सारी बीती बातें रवि की सोचीसमझी चाल का हिस्सा लगने लगी थीं.

‘2 महीने का गर्भ है मुझे, अब तो शादी कर लो मुझ से,’ मानवी जब रवि से बोली तो वह खुश होने के बजाय उलटा उस पर ही बरस पड़ा था.

‘पता नहीं, तुम आजकल की लड़कियों को क्या होता जा रहा है. सरकार गर्भनिरोध के नितनए तरीकों पर लाखों रुपए बरबाद कर रही है, पर तुम लोगों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. मैं तो मस्तमौला हूं पर तुम तो ध्यान रख सकती थी,’ रवि अचानक आक्रामक हो उठा था.

ये सब सुन कर मानवी का मुंह उतर गया था. फिर वह रोंआसी सी अपने कमरे की तरफ बढ़ गई थी.

थोड़ी देर रो लेने के बाद जब उस का जी हलका हुआ, तब उस ने रवि को अपने सामने खड़ा पाया. उस के हाथ में एक ट्रे थी, जिस में कौफी के 2 मग और मानवी के मनपसंद वैज सैंडविच थे.

‘‘लो जानेमन, गुस्सा थूको और नाश्ता कर लो, ऐसी स्थिति में तो तुम्हें बिलकुल भूखा नहीं रहना चाहिए और फिर हमारा नन्हा शैतान भी तो भूखा होगा…’’ इतना कह कर रवि ने अपने हाथों में पकड़ी ट्रे मानवी के सामने रख दी थी.

‘‘वैसे तुम जानते सबकुछ हो पर अनजान बनने का नाटक करते हो, शायद इसी वजह से मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी,’’ इतना कह कर मानवी ने रवि को खींच कर अपने पास बैठा लिया और फिर वे दोनों नाश्ता करने लगे.

‘‘मानवी, ऐसा करते हैं कि आज दोपहर में मूवी देखते हैं और फिर लंच भी बाहर ही कर लेंगे,’’ रवि खाली ट्रे उठाते हुए बोला, ‘‘पर हां, आज का सारा खर्च तुम्हें ही करना होगा, क्योंकि मेरी हालत जरा टाइट है.’’

‘‘वह तो ठीक है जनाब, पर आज तुम्हारा आशिकी भरा व्यवहार देख कर मुझे तुम पर बहुत प्यार आ रहा है,’’ यह कहतेकहते वह रवि से लिपट गई थी.

‘‘मैं एक बात सोच रहा था कि अगर अब जिम्मेदारी आ रही है तो उस से निबटने के लिए प्लानिंग भी करनी पड़ेगी.’’

रवि मानवी को चूमते हुए बोला, ‘‘अगर कुछ इंतजाम हो जाए तो मैं अपना कोई काम ही शुरू कर लूं. मुझे तो इस बंधीबंधाई कमाई वाली प्राइवेट नौकरी में आगे बढ़ने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और फिर क्या शादी के बाद भी हर छोटेछोटे खर्च के लिए मैं तुम पर ही निर्भर रहूंगा?’’

‘‘अच्छा जानू, एक बात तो बताओ जरा कि अगर किसी और की मदद लेने की जगह मैं ही तुम्हें फाइनैंस कर दूं तो?’’

‘‘वाह, इस से बढि़या बात तो कोई हो ही नहीं सकती. यह तो वही कहावत हुई, ‘बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा.’ मुझ से ज्यादा तो तुम आर्थिक रूप से सबल हो. इस का तो मुझे तनिक भी एहसास नहीं था,’’ यह कहतेकहते रवि की आंखों में अचानक ही चमक नजर आने लगी थी.

फिर उस ने अचानक ही मानवी को अपनी ओर खींच लिया था और प्यार भरे स्वर में उस से बोला था, ‘‘मैं तो सोच रहा था कि तुम शायद अपने किसी परिचित या सहकर्मी से मदद लोगी पर तुम्हारे पास तो गढ़ा हुआ धन है, मेरी छिपीरुस्तम…’’

‘‘जनाब, जरा अपनी सोच को ब्रेक लगाइए और ध्यान से मेरी बात सुनिए,’’ मानवी हंसते हुए बोली, ‘‘मेरे पास कोई गढ़ा हुआ धन नहीं बल्कि खूनपसीने से कमाए हुए पैसों की बचत है जिस की मैं ने एफडी करवाई हुई है.’’

अब तक मैं ने इस बारे में तुम्हें नहीं बताया था पर अब जब हम दोनों एक होने जा रहे हैं तो भला यह दुरावछिपाव क्यों?’’

‘‘ओह, मेरी प्यारी मानवी,’’ इतना कह कर रवि ने एक प्यारा सा चुंबन मानवी के गाल पर अंकित कर दिया था.

फिर वे दोनों अपने प्यार की खुमारी में डूबे पिक्चर हौल की तरफ बढ़ गए थे.

पहले उन्होंने मस्त मूवी का मजा लिया और फिर एक बढि़या रेस्तरां में लजीज खाना खाया.

जब रात को दोनों सोने के लिए बिस्तर पर लेटे तब फिर से रवि ने सुबह वाली बात का जिक्र छेड़ दिया.

‘‘मैं क्या कह रहा था मानवी,’’ रवि जरूरत से ज्यादा अपने स्वभाव को नम्र करते हुए बोला, ‘‘कल सोमवार है तो तुम औफिस जाने से पहले बैंक से पैसे निकाल कर मुझे दे देना. पैसे हाथ में होंगे तो आगे की प्लानिंग आसान हो जाएगी,’’ फिर रवि मानवी के बालों में अपना हाथ फेरने लगा था.

‘‘वह तो ठीक है जानू,’’ मानवी रवि को गलबहियां डालती हुई बोली, ‘‘पर पहले हमारी शादी होगी, तभी तुम्हें पैसे मिलेंगे, क्योंकि मैं ने यह पैसे अपने फ्यूचर पार्टनर के लिए ही तो बचा कर रखे थे.’’

‘‘ओह, तो तुम्हें मुझ पर भी विश्वास नहीं है,’’ रवि खुद को मानवी की पकड़ से छुड़ाते हुए बोला, ‘‘क्या, मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं जो तुम्हें धोखा दे कर भाग जाऊंगा?’’

‘‘सच, बहुत प्यारे लगते हो तुम, जबजब गुस्से में होते हो,’’ मानवी फिर से रवि से लिपटते हुए बोली, ‘‘मेरे जानेजिगर, अब जब तुम्हें अपना तनमन ही सौंप दिया तो भला शक की कैसी गुंजाइश?

‘‘मैं तो यह सोच रही थी कि अब जब शादी करनी ही है तो फिर देरी कैसी? इधर हमारी शादी हुई तो उधर मैं अपनी सारी जमापूंजी तुम्हें सौंप दूंगी,’’ मानवी रवि के आगोश में समाते हुए बोली.

इतना कह कर मानवी तो सो गई पर रवि बेचैनी से लगातार करवटें बदलता रहा था.

‘‘जल्दी से तैयार हो जाओ. हम लोग अभी मंदिर जा कर शादी करेंगे,’’ इतना कह कर रवि ने एक पैकेट उसे थमा दिया, जिस में एक प्यारी सी लाल साड़ी, लाल चूडि़यां और एक प्यारा सा महकता गजरा था.

‘‘पर रवि, इतनी भी क्या जल्दी है? थोड़ा समय दो मुझे,’’ मानवी चाय बनाते हुए बोली.

‘‘तुम लड़कियां न वाकई में कमाल हो. पहले तो जल्दीजल्दी की रट लगाती हो और फिर अगर तुम्हारी बात मान लो तो उस में भी तुम्हें प्रौब्लम होती है,’’ इतना कह कर रवि गुस्से में पैर पटकता हुआ बाहर चला गया.

वैसे मानवी को ये सब इतनी जल्दी होते देख अटपटा तो अवश्य लग रहा था पर अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

इसलिए वह सबकुछ भुला कर खुशीखुशी तैयार होने लगी थी. बीचबीच में उसे अपने घर वालों की याद भी आ रही थी पर फिर उस ने सोच लिया था कि वह शादी होते ही रवि को ले कर अपने घर जाएगी.

मानवी को दुलहन के रूप में देख कर पहले तो वे लोग अवश्य उस से गुस्सा होंगे पर फिर जल्दी ही मान भी जाएंगे, क्योंकि वह सभी की लाड़ली जो है.

‘‘वाह, क्या गजब ढा रही हो तुम दुलहन के रूप में, आज तो सब तुम पर फिदा हो जाएंगे,’’ रवि की इस चुटकी पर मानवी शरमा कर उस के गले जा लगी थी.

‘‘अरे सुनो, तुम्हारा बैंक भी तो मंदिर के रास्ते में ही पड़ता है न. ऐसा करना तुम अपनी चैकबुक भी रख लेना,’’ रवि कुछ सोचते हुए बोला.

‘‘तुम भी न, हर काम जल्दी में ही करते हो,’’ मानवी अपना मांगटीका ठीक करते हुए बोली, ‘‘वैसे मुझे कम से कम इतना तो बता दो कि तुम कौन सा काम शुरू करने वाले हो?’’

‘‘मैडम, यह सरप्राइज है तुम्हारे लिए. बस, यह समझ लो कि यह शादी का तोहफा होगा तुम्हारे लिए,’’ इतना कह कर उस ने मानवी का हाथ पकड़ा और फिर वे दोनों शादी करवाने वाली दुकान की तरफ बढ़ गए. वहां एक पंडित बैठा था. उस ने जल्दबाजी में रीतिरिवाज निबटा कर उन की शादी करवा दी और एक प्रमाणपत्र पकड़ा दिया. फिर लौटते समय मानवी ने बैंक से पैसे निकाल कर रवि को दे दिए.

पैसे मिलते ही रवि के रंगढंग बदल गए, इस का एहसास मानवी को हुआ तो जरूर पर फिर उस ने इसे वहम मान कर आगे बढ़ने में ही भलाई समझी.

मानवी कपड़े चेंज कर के अभी लेटी ही थी कि तभी रवि आ गया, ‘‘यह क्या जानेमन, आज तो सैलिब्रेशन की रात है और तुम इतनी सुस्त सी लेटी हो. दैट्स नौट फेयर माई लव,’’ इतना कह कर उस ने विदेशी शराब 2 गिलासों में उड़ेल दी.

वैसे तो मानवी थकी होने के कारण सोना चाहती थी पर वह रवि को परेशान भी तो नहीं कर सकती थी.

फिर वह तुरंत उठी और रवि के पास जा कर बैठ गई.

‘‘चीयर्स,’’ कह कर इधर दोनों के गिलास आपस में टकराए तो उधर एक अजीब सा उन्माद छा गया मानवी पर. फिर थोड़ी देर बाद उस की आंखें भारी होने लगीं और वह सो गई. अब जब आंखें खुलीं तो रवि का सारा सच उस के सामने आ गया था.

अभी वह इसी उहापोह में थी कि क्या करे? तभी उस के मोबाइल पर उस की सहेली रम्या का फोन आ गया.

‘‘क्या यार, 2 दिन से औफिस क्यों नहीं आई?’’ रम्या हंसते हुए बोली.

‘‘कुछ नहीं यार.’’

‘‘तू अभी बिजी है तो मैं बाद में कौल करती हूं,’’ रम्या ने चुटकी ली.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है यार,’’ इतना कह कर मानवी रोने लगी.

‘‘तू रो मत, मैं अभी आती हूं,’’ फिर चिंतातुर रम्या सारा काम बीच में ही छोड़ कर मानवी के पास पहुंच गई.

मानवी की इतनी बुरी हालत देख कर रम्या भी सकते में आ गई. फिर मानवी ने भारी मन से रम्या को सबकुछ बता दिया.

‘‘मैं तो तुझे पहले ही समझाती थी कि मत पड़ इस लिव इन के चक्कर में, पर तब तो मैडम पर इश्क का भूत जो सवार था. लिव इन एक कच्चा रिश्ता होता है जो किसी को भी सुख नहीं देता,’’ रम्या गुस्से में बोले जा रही थी.

‘‘मैं तो आत्महत्या कर के अपना जीवन ही समाप्त कर दूंगी. आखिर किस मुंह से मैं सामना करूंगी अपने घर वालों का?’’ इतना कह कर मानवी फिर से रोने लगी.

‘‘आत्महत्या के बारे में सोचना भी मत,’’ यह कह कर रम्या मानवी को समझाने लगी, ‘‘देख मानवी, अब तक तो तू ने जो कुछ गलत किया सो किया पर अब संभल जा. रही बात तेरे परिवार वालों की, तो यह बात समझ ले कि हमारी लाख गलतियों के बावजूद जो हमें स्वीकार करता है, वह हमारा परिवार ही होता है.

‘‘तू शायद यह नहीं जानती थी कि अपने दोस्त तो हम चुनते हैं पर हमें हमारी फैमिली चुनती है.

‘‘शुरू में तो तेरे परिवार वाले तेरे शुभचिंतक होने के नाते तुझे अवश्य डांटेंगे, लेकिन फिर तुझे खुले मन से स्वीकार भी कर लेंगे.

‘‘आत्महत्या तो रवि को करनी चाहिए तूने तो उसे सच्चे दिल से चाहा था, पर दगाबाज तो वही निकला, जो तुझे आर्थिक, मानसिक व शारीरिक स्तर पर धोखा दे कर चंपत हो गया. वह शातिर तो तेरे पैसों पर ऐश कर रहा होगा और तू यहां रोरो कर बेहाल हो रही है.’’

फिर रम्या ने उस के आंसू पोंछे और उसे अपनी कार में बैठा कर डाक्टर के पास ले गई.

डाक्टर ने पहले मानवी का चैकअप किया और फिर थोड़े उपचार के बाद उसे कुछ दवाएं लिख दीं, जिन से मानवी को बहुत आराम मिला.

इसी बीच रम्या ने मानवी द्वारा बताए गए नंबर पर उस के घर वालों से संपर्क किया और उन्हें सारी बात बता दी.

फिर क्या था? शाम होते ही मानवी के घर वाले उसे लेने आ पहुंचे.

मानवी की मनोदशा उस की मां ने तुरंत भांप ली और उसे अपने प्यार भरे आंचल में समेट लिया. पर मानवी की गलतियों पर उस के बाबूजी ने उसे बहुत डांटा. फिर इस बात का एहसास होते ही कि मानवी को अपनी गलतियों का एहसास है, उन्होंने उसे माफ भी कर दिया.

मानवी अपने घर वालों के साथ अपने घर चली गई. रम्या उस की कार को जाते हुए तब तक देखती रही, जब तक  कार उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

एक तरफ जहां उसे अपनी सहेली से बिछुड़ना बहुत खल रहा था वहीं दूसरी तरफ उसे इस बात की बेहद खुशी थी कि चाहे देर से ही सही, उस की सहेली उसे उस मकड़जाल से बाहर निकालने में सफल हो गई थी, जिसे उस ने अपनी नासमझी से अपने इर्दगिर्द बुना था.

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