Download App

दुख की छांव में सुख की धूप : भाग 1

“मां, मैं निकल रही हूं, अभय आ गया है,” मालती को आवाज लगा कर प्रीति दरवाजे से बाहर निकल गई.

“अरे, सुनो तो…यह टिफिन तो रख लो…” मालती लगभग भागते हुए दरवाजे की ओर आई.

“प्यारी मां,” मालती के हाथ से टिफिन ले प्रीति सीढ़ियों की ओर दौड़ गई. उसे निकलते देख मालती के चेहरे पर मुसकान खिल गई. 2 साल से यही दिनचर्या बन चुकी थी दोनों की.

“अभय कौन है?” पीछे से आई आवाज ने घर समेटती मालती के हाथों को रोक दिया. वह पीछे पलटी और मुसकरा कर बोली, “जिज्जी, बैठो नाश्ता लगा देती हूं,” ननद सुरेखा की बात को अनसुना कर मालती रसोई की ओर बढ़ती हुई बोली.

“लगा देना नाश्ता, पहले यह बता अभय कौन है? प्रीति ने नाम लिया था उस का,” सुरेखा ने सवाल दागा.

“सहकर्मी है प्रीति का,” संक्षिप्त सा जवाब दे मालती रसोई में घुस गई. थोड़ी देर में हाथ में नाश्ते की प्लेट ले कर वापस आई और सुरेखा के सामने रख दी,”आज आप की पसंद के पतोड़ बनाई हूं. कल प्रीति लाई थी अरबी के पत्ते. कह रही थी कि बुआजी को पसंद है इसलिए नाश्ते में यही बनाएंगे,” प्लेट लगाती हुई मालती बोली.

“हां, तो कौन सा कमाल कर दिया. तेरे सिर पर ही छोड़ गई न काम. इतना सिर मत चढ़ा मालती, समझ जा तू.”

“अरे नहीं जिज्जी, सारी तैयारी वही कर के गई है बल्कि खुद नाश्ता नहीं कर पाई. खा कर देखो बहुत अच्छे बने हैं.” सुरेखा के चेहरे के भाव मालती की आंखों से छिपे न थे लेकिन वह खामोश ही रहती.

“यह अभय क्यों आया था सुबहसुबह?” सुरेखा ने फिर सवाल किया.

“एक ही रूट है दोनों का तो प्रीति को लिफ्ट दे देता है अभय. और ठीक भी तो है, दुनिया की भीड़ से बचते सुरक्षित औफिस पहुंच जाती है बच्ची,” मालती ने जवाब दिया.

“अच्छा, दुनिया की भीड़ से बचते और जो कुछ ऊंचनीच हो गई तो क्या मुंह दिखाएगी समाज को? अरे, तुझे भी बेटी की शादी करनी है, प्रीति के लिए नेहा का भविष्य न खराब कर,” सुरेखा की आवाज में नाराजगी का स्वर कुछ ज्यादा गहरा था.

“परेशान न हो जिज्जी, प्रीति समझदार है. कुछ गलत नहीं होगा,” मालती ने दृढ़ता से कहा.

“तेरे कहने से गलत नहीं होगा. अरे, वह जमाना गया जोकि औरतें जमाने के डर से खुद को आंचल में समेटे रहती थीं. अब तो दुपट्टा उखाड़ने में ही राजी हैं. तू भी तो रही. भाई के जाने के बाद सारी जिम्मेदारी ओढ़ ली. बच्चों को लायक बनाया. रिश्तों को बचाए रखा. अरे, तेरी वजह से ही हम समाज में सिर उठाए रखते हैं. मायके की इज्जत रखी तुम ने,” सुरेखा अपनी रौ में बोल गई.

“हां जिज्जी, जमाना सच में वह नहीं अब. सोच में फर्क आ गया है,” इतना कह मालती वहां से उठ गई. सुरेखा की बातें उस के जख्मों को फिर से खरोंच गई. आंखों के सामने पति का चेहरा घूम गया और घूम गई वह रात जो स्याह बन उस की जिंदगी में जबरन घुस गई.

जमीन पर सफेद चादर में लिपटा पति की देह उसे बीच राह में ही अकेला कर गई. उम्र के 23 वसंत ही देखे थे मालती ने. इस उम्र में वैधव्य का दाग उस के माथे पड़ गया. रोहन 2 साल का था और नेहा पेट में. बेटे को पालने की जिम्मेदारी के साथ बुजुर्ग सासससुर की देखभाल भी मालती के कमजोर कंधे पर आ गई. अनुकंपा से नियुक्ति मिल तो गई लेकिन जमाने की हिदायतें उस के कंधे पर बोझ बन कर चिपक गई. सुरेखा जिज्जी की तीर सी आंखें उस के पहनावे व बालों पर अकसर गड़ जातीं. सादी सूती साड़ियां भी उन्हें फैशन नजर आती. हलके रंग ही बचे थे मालती के जीवन में लेकिन चेहरे को कैसे बदरंग कर देती. कुदरत ने क्यों दी उसे सुंदरता.

“मालती…ओ मालती,” जिज्जी की आवाज से सुरेखा अतीत से वर्तमान में लौट आई.

“आई जिज्जी,” मालती ने तह किए कपड़ों को उठाया और अलमारी में सलीके से रख दिए.

“ये कपड़े तो प्रीति के हैं न?” सुरेखा कमरे में आ चुकी थी.

“इतने चटक और फैशनेबल कपड़े… यह शोभा नहीं देता मालती. तुझे समाज की चिंता नहीं क्या? कुछ ऊंचनीच हो गई तो कहां मुंह दिखाएगी.”

“जिज्जी, आप चिंता न करो. समाज से मैं खुद निबट लूंगी,” मालती ने कुछ दृढ़ता से कहा.

“क्या निबट लेगी? रोहन की विधवा है वह, तेरे बेटे की विधवा. अरे कुछ तो खयाल कर. भाई चला गया, भतीजा चला गया. कोई सुनने वाला नहीं. अपनी मनमरजी चल रही है,” सुरेखा बड़बड़ाते हुए बाहर निकल गई.

मालती के सामने एक बार फिर अतीत झांकने लगा. नेहा और रोहन में खोई मालती के जीवन में एक बार फिर प्यार ने दस्तक दी. खुद को परिवार के लिए समर्पित करने वाली मालती इस दस्तक को सुन भय से पीली पड़ गई. प्रकाश से नजरें चुराती मालती उस के प्रेम में धीरेधीरे भीगने लगी. प्रकाश उसे अपनी श्रद्धा कहता और ताउम्र उस के साथ गुजारना चाहता था. मालती के इनकार को इजहार में बदलने की कामना करता प्रकाश उसे अतिरिक्त सरंक्षण देने लगा. दुनिया की आंखों से अपनी भावनाओं को छिपाए मालती औफिस में प्रकाश से दूर ही रहती लेकिन यह दूरी उस के मन को प्रकाश की ओर धकेल रही थी.

जमाने की निगाहें इतनी कमजोर कब रही? प्रकाश और मालती के बीच के पनप रहे प्रेम की चर्चा मालती के ससुराल तक पहुंच चुकी थी. सवालों और आरोपों के बीच गूंगी बनी मालती की ढाल बना प्रकाश बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया गया. मालती ने दिल को कड़ा कर प्रकाश को साफ मना कर दिया. मालती की बेरुखी से टूटा प्रकाश ट्रांसफर ले शहर से जा चुका था. रह गई थी मालती, जो परिवार की जिम्मेदारी उठाती खुद में घुटती और अपशब्द सहती.

25 साल की उम्र में प्रौढ़ा सा वेश धारण कर मालती ने सफेद रंग को ही अपनी नियति मान अपने आसपास एक कंटीली झाड़ी उगा ली ताकि कोई प्रकाश उस के निकट आने की सोच ही न सके. समय भी बेशर्म रगड़ कर ही चल रहा था. सासससुर के जाने के बाद सुरेखा के लिए जिज्जी ही एकमात्र रिश्ता रह गया जो कठोर हो कर भी उस के आसपास था वरना मायके वालों ने तो उस के वैधव्य से खौफ खा कर दूरी बना ही ली थी. रोहन और नेहा की परवरिश में खुद को डूबो कर मालती जैसे ठहर सी गई थी.

उस का ठहराव उस के बच्चों को सही मार्ग पर चला रहा था, तभी तो कम उम्र में ही रोहन कामयाबी को अपने करीब ले आया था. प्रीति से शादी के बाद रोहन अपनी मां के और अधिक निकट आ गया. प्रीति तो जैसे उस के लिए ही इस घर में आई थी. उस के पहनावे से ले कर उस के रहनसहन तक को जिद से बदल चुकी थी. खुशियां खिलने लगी थी प्रीति के आने से. मालती का दिन प्रीति की बनाई चाय से शुरू होता और रात उस के दिए मरहम से.

“मम्मी, मुझे लगता है कि इस छिपकली ने आप के साथ शादी की है,” रोहन चिढ़ कर कहता.

“जलनखोर, जलते रहो. मम्मी मुझे ऐसे ही प्यार करेगी,” मुंह बना कर रोहन को और चिढ़ा देती प्रीति. खिलखिला उठती थी मालती. नेहा अपनी किताबों की दुनिया में बंद. उसे मां का संघर्ष और अकेलापन इस कदर मजबूत बना चुका है कि वह हारने की हर वजह को खत्म कर देना चाहती थी.

“नेहा के लिए इस से भी पढ़ाकू दुल्हा ढूंढ़ेंगे,” रोहन अकसर उस के कमरे में जा कर जोर से बोलता.

“भाई, मुझे पढ़ने दो और पढ़ाकू दुल्हा मैं खुद ढूंढ़ लूंगी,” नेहा भी भाई को छेड़ने से बाज न आती.

“अरे मां, देखो इसे. पता नहीं किसे हमारे सामने ला कर खड़ा कर देगी. बता रहा हूं मां इस की शादी अभी कर दो. कहीं मौका ही न दे यह हमें,” रोहन नेहा के सिर पर चपत लगा कर बोलता.

“आप को क्या दिक्कत है जो नेहा अपनी पसंद से शादी करे. मैं तो नेहा के साथ हूं,” प्रीति नेहा के सपोर्ट में खड़ी हो जाती.

तीनों की धक्कामुक्की शुरू हो जाती और मालती हंसती रह जाती.

“ऐ…मालती, अकेले बैठी हंस रही है,” सुरेखा ने उसे अपनेआप में खोया देख जोर से हिलाया.

“जिज्जी, देखो इन तीनों को… कैसे बच्चों की तरह लड़ रहे हैं. रोहन को देखो कैसे बंदरों की तरह…” मालती की बात अधूरी रह गई. आंखों के सामने सुरेखा खड़ी थी. वह कमरे में चारों ओर देखने लगी लेकिन बच्चे वहां नहीं थे.

“रोहन ही तो नहीं है. भाई भी गया भतीजा भी गया. मैं जिंदा हूं,” बड़बड़ाते हुए सुरेखा बिस्तर के कोने पर बैठ गई. उस की बड़बड़ाहट से मालती को दुख होता. वह सुबक कर रोने लगी. सुरेखा उसे रोता देखती रही फिर उठ कर उसे कस कर भींच ली.

“देख बिट्टो, तेरा दुख जानती हूं लेकिन क्या करूं…कैसे इस दुख को… तुझे भरी जवानी में विधवा होते देखा…अब प्रीति…लेकिन तू ने माधव को अपने मन में जिंदा रखा तभी तो तेरे लिए दौड़ी आती हूं,” सुरेखा ने मालती के सिर को सहला कर कहा.

“जिज्जी, यह दुख मुझे ही क्यों मिला? मेरा क्या कुसूर था? मेरा रोहन…कुदरत मुझे ले जाता, मेरे बच्चे को तो छोड़ देता. प्रीति की बेरंग मांग मुझ से देखी नहीं जाती,” रूंधे गले से मालती बोली.

“यह उस का भाग्य है तू क्या कर सकती है. संभाल खुद को,” सुरेखा बोली.

“कैसा भाग्य जो औरत से उस के जीने का हक छीन ले. आदमी अकेले नहीं जाता. औरत की सारी खुशियां ले जाता है लेकिन औरत तो ऐसा नहीं करती. मर कर आदमी को आजाद कर जाती है. वह दूसरी औरत को अपनी जिंदगी में ले आता है,” मालती अपनी रौ में बोल रही थी.

“बच्चों की परवरिश के लिए उसे औरत की जरूरत पड़ती है,” सुरेखा ने मालती की बात को काटते हुए कहा.

“तो क्या आदमी की जरूरत नहीं बच्चों की परवरिश के लिए? जब आदमी अकेले बच्चे नहीं पाल सकता तो औरत कैसे…” मालती का गुबार जैसे आंसू बन कर निकल पड़ा था. बरसों का जमा गुबार.

“आदमी शरीर की भूख बरदाश्त नहीं कर सकता लेकिन औरत कर सकती है. चल अब उठ, शाम हो गई है. यों रो कर मनहूसियत न फैला,” सुरेखा ने मालती के सवालों से बचते हुए कहा.

“और अगर औरत को शरीर की भूख लगी और वह बरदाश्त न कर पाए तो वह कहां जाएगी…बोलो जिज्जी, कहां जाएगी वह?” मालती ने सुरेखा को झकझोरते हुए कहा.

“तू पागल हो गई क्या, शर्म कहां छोड़ दी…जवान बेटी घर पर है और अनर्गल बोल रही है, पागल अपनी बुद्धि संभाल. उम्र देख अपनी…ओह क्या हो गया इसे…” सुरेखा ने माथा पीटते हुए कहा.

“नहीं पागल नहीं हुई. मेरे सवाल का जवाब दो जिज्जी. आदमी और औरत के लिए यह अलग नियम क्यों? समाज इतना दोगला क्यों है?” मालती की बात को अनसुना कर सुरेखा उस के कमरे से निकल गई. दरवाजे पर खड़ी नेहा को देख कर सुरेखा ठिठक गई.

“तू यहां क्यों खड़ी है? पढ़ाई कर जा कर,” सुरेखा ने उसे डपटते हुए कहा.

“कर लूंगी पढ़ाई बुआ. उस से पहले अपनी मां के दिल को तो पढ़ लूं. न जाने जितने अध्याय छिपाए बैठी है मां,” नेहा मालती के करीब जा कर खड़ी हो गई. उसे देख मालती अपने आंसुओं को साफ करने लगी.

“नहीं मां, मत रोको आंसुओं को. हमारे लिए इन्हें न छिपाओ. पापा को कभी देखा नहीं और न ही उन की कमी लगी क्योंकि आप मां की जगह बाप बन चुकी थीं लेकिन मैं कैसे भूल गई कि मेरी मां के अंदर एक औरत भी है जो खुद से ही लड़ रही है,” मालती की हथेलियों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए नेहा ने कहा.

“बहुत बड़ी हो गई है तू. मैं ठीक हूं. बस प्रीति के लिए बुरा लगता है,” नेहा के सिर पर हाथ फेर कर मालती बोली.

“मैं समझती हूं मां, लेकिन भाभी की चिंता न करो. मैं हूं न आप के साथ. भाभी को कभी अकेला नहीं छोडेंगे हम.”

सजा : भाग 1

असगर अपने दोस्त शकील की शादी में शरीक होने रामपुर गया. स्कूल के दिनों से ही शकील उस के करीबी दोस्तों में शुमार होता था. सो दोस्ती निभाने के लिए उसे जाना मजबूरी लगा था. शादी की मौजमस्ती उस के लिए कोई नई बात नहीं थी और यों भी लड़कपन की उम्र को वह बहुत पीछे छोड़ आया था.

शकील कालेज की पढ़ाई पूरी कर के विदेश चला गया था. पिछले कितने ही सालों से दोनों के बीच चिट्ठियों द्वारा एकदूसरे का हालचाल पता लगते रहने से वे आज भी एकदूसरे के उतने ही नजदीक थे जितना 10 बरस पहले.

असगर को दिल्ली से आया देख शकील खुशी से भर उठा, ‘‘वाह, अब लगा शादी है, वरना तेरे बिना पूरी रौनक में भी लग रहा था कि कुछ कसर बाकी है. तुझ से मिल कर पता लगा क्या कमी थी.’’

‘‘वाह, क्या विदेश में बातचीत करने का सलीका भी सिखाया जाता है या ये संवाद भाभी को सुनाने से पहले हम पर आजमाए जा रहे हैं.’’

‘‘अरे असगर, जब तुझे ही मेरे जजबात का यकीन न आ रहा हो तो वह क्यों करेगी मेरा यकीन, जिसे मैं ने अभी देखा भी नहीं,’’ शकील, असगर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

बातें करतेकरते जैसे ही दोनों कमरे के अंदर आए असगर की निगाहें पल भर के लिए दीवान पर किताब पढ़ती एक लड़की पर अटक कर रह गईं. शकील ने भांपा, फिर मुसकरा दिया. बोला, ‘‘आप से मिलिए, ये हैं तरन्नुम, हमारी खालाजाद बहन और आप हैं असगर कुरैशी, हमारे बचपन के दोस्त. दिल्ली से तशरीफ ला रहे हैं.’’

दुआसलाम के बाद वह नाश्ते का इंतजाम देखने अंदर चली गई. असगर के खयाल जैसे कहीं अटक गए. शकील ने उसे भांप लिया, ‘‘क्यों साहब, क्या हुआ? कुछ खो गया है या याद आ रहा है?’’

असगर कुछ नहीं बोला, बस एक नजर शकील की तरफ देख कर मुसकरा भर दिया.

शादी के सारे माहौल में जैसे तरन्नुम ही तरन्नुम असगर को दिखाई दे रही थी. उसे बिना बात ही मौसम, माहौल सभी कुछ गुनगुनाता सा लगने लगा. उस के रंगढंग देख कर शकील को मजा आ रहा था. वह छेड़खानी पर उतर आया. बोला, ‘‘असगर यार, अपनी दुनिया में वापस आ जाओ. कुछ बहारें देखने के लिए होती हैं, महसूस करने के लिए नहीं, क्या समझे? भई, यह औरतों की आजादी के लिए नारा बुलंद करने वालियों की अपने कालेज की जानीमानी सरगना है, तुम्हारे जैसे बहुत आए और बहुत गए. इसे कुछ असर होने वाला नहीं है.’’

‘‘लगानी है शर्त?’’ असगर ने चुनौती दी, ‘‘अगर शादी तक कर के न दिखा दूं तो मेरा नाम असगर कुरैशी नहीं.’’

शकील ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘मियां, लोग तो नींद में ख्वाब देखते हैं, आप जागते में भी.’’

‘‘बकवास नहीं कर रहा मैं,’’ असगर ने कहा, ‘‘बोल, अगर शादी के लिए राजी कर लूं तो?’’

‘‘ऐसा,’’ शकील ने उकसाया, ‘‘जो नई गाड़ी लाया हूं न, उसी में इस की डोली विदा करूंगा, क्या समझा. यह वह तिल है जिस में तेल नहीं निकलता.’’

और इस चुनौती के बाद तो असगर तरन्नुम के आसपास ही नजर आने लगा. अचानक ही एक से एक शेर उस के होंठों पर और हर महफिल में गजलें उस की फनाओं में बिखर रही थीं.

शकील हैरान था. यह तरन्नुम, जो हर आदमी को, आदमी की जात पर लानत देती थी, कैसे अचानक ही बहुत लजीलीशर्मीली ओस से भीगे गुलाब सी धुलीधुली नजर आने लगी.

घर में उस के इस बदलाव पर हलकी सी चर्चा जरूर हुई. शकील के साथ तरन्नुम के अब्बाअम्मी उस से मिलने आए. शकील ने कहा, ‘‘ये तुम से कुछ बातचीत करना चाहते थे, सो मैं ने सोचा अभी ही मौका है फिर शाम को तो तुम वापस दिल्ली जा ही रहे हो.’’

असगर हैरान हो कर बोला, ‘‘किस बारे में बातचीत करना चाहते हैं?’’

‘‘तुम खुद ही पूछ लो, मैं चला,’’ फिर अपनी खाला शहनाज की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘खालू, देखो जो भी बात आप तफसील से जानना चाहें उस से पूछ लें, कल को मेरे पीछे नहीं पडि़एगा कि फलां बात रह गई और यह बात दिमाग में ही नहीं आई,’’ इस के बाद शकील कमरे से बाहर हो गया.

असगर ने कहा, ‘‘आप मुझ से कुछ पूछना चाहते थे, पूछिए?’’

शहनाज बड़ा अटपटा महसूस कर रही थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या सवाल करें. उन के शौहर रज्जाक अली ने चंद सवाल पूछे, ‘‘आप कहां के रहने वाले हैं. कितने बहनभाई हैं, कहां तक पढ़े हैं? सरकारी नौकरी न कर के आप प्राइवेट नौकरी क्यों कर रहे हैं? अपना मकान दिल्ली में कैसे बनवाया? वगैरहवगैरह.’’

असगर जवाब देता रहा लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी तहकीकात किसलिए की जा रही है. शहनाज खाला थीं कि उस की तरफ यों देख रही थीं जैसे वह सरकस का जानवर है और दिल बहलाने के लिए अच्छा तमाशा दिखा रहा है. खालू के चंदएक सवाल थे जो जल्दी ही खत्म हो गए.

शहनाज खाला बोलीं, ‘‘तो बेटा, जब तुम्हारे सिर पर बुजुर्गों का साया नहीं है तो तुम्हें अपने फैसले खुद ही करने होते होंगे, है न…’’

‘‘जी,’’ असगर ने कहा.

‘‘तो बताओ, निकाह कब करना चाहोगे?’’

‘‘निकाह?’’ असगर ने पूछा.

‘‘और क्या,’’ खाला बोलीं, ‘‘भई, हमारे एक ही बेटी है. उस की शादी ही तो हमारी जिंदगी का सब से बड़ा अरमान है. फिर हमारे पास कमी भी किस चीज की है. जो कुछ है सब उसे ही तो देना है,’’ खाला ने खुलासा करते हुए कहा.

‘‘पर आप यह सब मुझ से क्यों कह रही हैं?’’

इस पर खालू ने कहा, ‘‘बात ऐसी है बेटा कि आज तक हमारी तरन्नुम ने किसी को भी शादी के लायक नहीं समझा. हम लोगों की अब उम्र हो रही है. अब उस ने तुम्हें पसंद किया है तो हमें भी अपना फर्ज पूरा कर के सुर्खरू हो लेने दो.’’

‘‘क्या?’’ असगर हैरान रह गया, ‘‘तरन्नुम मुझे पसंद करती है? मुझ से शादी करेगी?’’ असगर को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘हां बेटा, उस ने अपनी अम्मी से कहा है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम्हीं से शादी करेगी. देखो बेटा, अगर लेनेदेने की कोई फरमाइश हो तो अभी बता दो. हमारी तरफ से कोई कसर नहीं रहेगी.’’

‘‘पर खालू मैं तो शादी,’’ असगर कुछ कहने के लिए सही शब्द सोच ही रहा था कि खालू बीच में ही बोले, ‘‘देखो बेटा, मैं अपनी बच्ची की खुशियां तुम से झोली फैला कर मांग रहा हूं, न मत कहना. मेरी बच्ची का दिल टूट जाएगा. वह हमेशा से ही शादी के नाम से किनारा करती रही है. अब अगर तुम ने न कर दी तो वह सहन नहीं कर सकेगी.’’

एक पल को असगर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप ने शकील से बात कर ली है.’’

‘‘हां,’’ खालू बोले, ‘‘उस की रजामंदी के बाद ही हम तुम से बात करने आए हैं.’’

शहनाज खाला उतावली सी होती हुई बोलीं, ‘‘तुम हां कह दो और शादी कर के ही दिल्ली जाओ. सभी इंतजाम भी हुए हुए हैं. इस लड़की का कोई भरोसा नहीं कि अपनी हां को कब ना में बदल दे.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप सही समझें करें,’’ असगर ने कहा.

शहनाज खाला ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी आंखों से लगाया, ‘‘बेटा, तुम तो मेरे लिए फरिश्ते की तरह आए हो, जिस ने मेरी बच्ची की जिंदगी बहारों से भर दी,’’ खुशी से गमकते वह और खालू घर के अंदर खबर देने चले गए.

उन के जाने के बाद शकील कमरे में आते हुए बोला, ‘‘तो हुजूर ने मुझे शह देने के लिए सब हथकंडे आजमाए.’’

असगर ने कहा, ‘‘तू डर मत, मैं जीत का दावा कार मांग कर नहीं कर रहा हूं.’’

‘‘तू न भी मांगे,’’ शकील ने कहा, ‘‘तो भी मैं कार दूंगा. हम मुगल अपनी जबान पर जान भी दे सकने का दावा करते हैं, कार की तो बात ही क्या.’’

‘‘मजाक छोड़ शकील,’’ असगर ने कहा, ‘‘कल उसे पता लगेगा तब…’’

‘‘अब कुछ असर होने वाला नहीं है,’’ शकील ने कहा, ‘‘अपनेआप शादी के बाद हालात से सुलह करना सीख जाएगी. अपने यहां हर लड़की को ऐसा ही करने की नसीहत दी जाती है.’’

‘‘पर तू कह रहा था शकील कि वह आम लड़कियों जैसी नहीं है, बड़ी तेजतर्रार है.’’

‘‘वह तो शादी से पहले 50 फीसदी लड़कियां खास होने का दावा करती हैं पर असलीयत में वे भी आम ही होती हैं. है न, जब तक तरन्नुम को शादी में दिलचस्पी नहीं थी, मुहब्बत में यकीन नहीं था, वह खास लगती थी. पर तुम्हें चाह कर उस ने जता दिया है कि उस के खयाल भी आम औरतों की तरह घर, खाविंद, बच्चों पर ही खत्म होते हैं. मैं तो उस के ख्वाबों को पूरा करने में उस की मदद कर रहा हूं,’’ शकील ने तफसील से बताते हुए कहा.

और यों दोस्त की शादी में शरीक होने वाला असगर अपनी शादी कर बैठा. तरन्नुम को दिल्ली ले जाने की बात से शकील कन्नी काट रहा था. अपना मकान किराए पर दिया है, किसी के घर में पेइंगगेस्ट की तरह रहता हूं. वे शादीशुदा को नहीं रखेंगे. इंतजाम कर के जल्दी ही बुला लेने का वादा कर के असगर दिल्ली वापस चला आया.

तरन्नुम ने जब घर का पता मांगा तो असगर बोला, ‘‘घर तो अब बदलना ही है. दफ्तर के पते पर चिट्ठी लिखना,’’ और वादे और तसल्लियों की डोर थमा कर असगर दिल्ली चला आया.

7-8 महीने खतों के सहारे ही बीत गए. घर मिलने की बात अब खटाई में पड़ गई. किराएदार घर खाली नहीं कर रहा था इसलिए मुकदमा दायर किया है. असगर की इस बात से तरन्नुम बुझ गई, मुकदमों का क्या है, अब्बा भी कहते हैं वे तो सालोंसाल ही खिंच जाते हैं, फिर क्या जिन के अपने घर नहीं होते वह भी तो कहीं रहते ही हैं. शादी के बाद भी तो अब्बू, अम्मी के ही घर रह रहे हैं, ससुराल नहीं गई, इसी को ले कर लोग सौ तरह की बातें ही तो बनाते हैं.

असगर यों अचानक तरन्नुम को अपने दफ्तर में खड़ा देख कर हैरान हो गया, ‘‘आप यहां? यों अचानक,’’ असगर हकलाता हुआ बोला.

तरन्नुम शरारत से हंस दी, ‘‘जी हां, मैं यों अचानक किसी ख्वाब की तरह,’’ तरन्नुम ने चहकते से अंदाज में कहा, ‘‘है न, यकीन नहीं हो रहा,’’ फिर हाथ आगे बढ़ा कर बोली, ‘‘हैलो, कैसे हो?’’ असगर ने गरमजोशी से फैलाए हाथ को अनदेखा कर के सिगरेट सुलगाई और एक गहरा कश लिया.

तरन्नुम को लगा जैसे किसी ने उसे जोर से तमाचा मारा हो. वह लड़खड़ाती सी कुरसी पकड़ कर बैठ गई. मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘हमें आया देख कर आप खुश नहीं हुए, क्यों, क्या बात है?’’

असगर ने अपने को संभालने की कोशिश की, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम्हें यों अचानक आया देख कर मैं घबरा गया था,’’ असगर ने घंटी बजा कर चपरासी से चाय लाने को कहा.

‘‘हमारा आना आप के लिए खुशी की बात न हो कर घबराने की बात होगी, ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ तरन्नुम की आंखें नम हो रही थीं.

हाशिए पर कायदे : भाग 1

जगदंबा इंडस्ट्री के मालिक की बेटी मीनल का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा था, केक काटा जा रहा था, तभी उस का दुपट्टा मोमबत्ती की लौ से छू गया. वहां अफरातफरी मच गई. रमन चद्दर लेने दौड़ा तो आर्यन ने आ कर उस के दुपट्टा और गाउन को उस से अलग किया. इस सब में आर्यन के हाथ जल गए थे. ठीक होने के बाद जब मीनल आर्यन से मिली तो उस का जला हुआ हाथ देख कर पिघल उठी और प्यार का अंकुर फूट गया.  यही प्यार हिंदूमुसलिम समाज के ठेकेदारों को रास न आया. क्या आर्यन और मीनल इतना सख्त विरोध के बावजूद एक हो सके?

नहाने के बाद मीनल जब शरीर पर बौडी लोशन लगाने लगी तो सीने के दाहिनी तरफ जा कर अचानक हाथ वहां आ कर थम गए, जहां एक सफेद निशान झांक रहा था. जले का वो निशान कब उन के प्रेम की निशानी बन गया था, वह आज भी सोचती है तो रोमांचित हो उठती है.

आर्यन के साथ उस की शादी कितनी फिल्मी थी. सामाजिक स्तर में भारी अंतर के साथसाथ शिक्षा से ले कर धर्म और जाति जैसे और भी बहुत से कारक थे, जो उन के रिश्ते के बीच बाधा बने हुए थे. लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं छोड़ी थी और आखिर उस बाधा दौड़ को जीत कर ही दम लिया था.

“अरे बेगम, घर में एक ही गुसलखाना है और बंदे को भी नहाना है. जरा जल्दी करेंगी आप?” आर्यन की आवाज सुन कर मीनल वर्तमान में आई. उस के इसी नफासत भरे लहजे पर तो फिदा थी मीनल. वह मुसकराती हुई फटाफट कपड़े पहन कर बाहर निकल आई. आर्यन बाथरूम के दरवाजे पर ही मिल गया. उस ने मीनल को एक भरपूर निगाह से देखा और आंखों ही आंखों में प्यार बरसाता हुआ नहाने चला गया.

“ये सारी बातें याद करने के लिए तो पूरी दोपहर बाकी है. अभी तो आर्यन को औफिस भेजना ज्यादा जरूरी है,” सोचते हुए मीनल रसोई में जा कर नाश्ता बनाने लगी. अभी उसे आर्यन का टिफिन भी बनाना था.

आर्यन के औफिस जाने के बाद मीनल लगभग पूरी दोपहर खाली सी ही रहती है. क्या हुआ जो कभी किसी फ्रेंड का फोन आ जाए या फिर कभी शौपिंग जाने के अलावा उसे दिनभर में कोई विशेष काम नहीं होता. काम हो तो सकता है, लेकिन आर्यन का बहुत मन था कि उस की पत्नी घर की रानी बन कर रहे, इसलिए उस ने मीनल के सामने अपनी इच्छा जाहिर की और मीनल ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

पढ़ीलिखी एमबीए लड़की का घर पर खाली बैठना हालांकि आज के जमाने के हिसाब से और ट्रेंड से थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन प्यार में चांदसितारों से झोली भरने वाले आशिक डौलर्स की परवाह कहां करते हैं. मीनल की झोली भी आर्यन के प्यार से लबालब थी. और इसी प्यार पर वह सबकुछ वारने को तैयार थी. उसे कोई मलाल नहीं था कि वह महज एक हाउस वाइफ बन कर जी रही है.

“मैं जब भी अकेली होती हूं, तुम चुपके से आ जाते हो… और झांक के मेरी आंखों में बीते दिन याद दिलाते हो…” अकसर दोपहर में बिस्तर पर लेटी मीनल यह गाना गुनगुनाती रहती है और इस के साथ ही वह यादों का एक लंबा सफर भी तय कर आती है. कमाल की बात तो ये है कि हर रोज इतना लंबा सफर तय करने के बाद भी मीनल न तो कभी थकती है और ना ही कभी बोर होती है. आज भी बंद कमरे में चौबीस के तापमान पर आराम फरमाती मीनल अपने सफर पर निकल पड़ी.

बात कालेज के दिनों की है. मीनल का फ्रेंड सर्किल बहुत बड़ा था. कुछ तो पिता का अथाह पैसा और रुतबा और कुछ उस की खूबसूरती… मीनल का चुंबकीय क्षेत्र इतना सघन था कि हर कोई खिंचा चला आता था. मीनल यह बात बहुत अच्छे से जानती थी कि उस के चुंबकीय क्षेत्र में आने वाला व्यक्ति उस के रूप और रुतबे से आकर्षित होता है. उसे तलाश एक सच्चे साथी की थी, जो उस के स्टेटस से नहीं, बल्कि खुद उस से प्यार करे. वह उसे तब भी प्यार करे, जब उस का स्टेटस ना रहे. वह यह भी जानती थी कि ऐसे साथी को पहचानना खुद उस के लिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि खालिस दोस्तों की पहचान संकट के समय ही होती है और ऊपर वाला ऐसा न करे कि उस पर कभी कोई संकट आए.

बात मीनल के जन्मदिन की है. दूरनजदीक के मिला कर कुल पचास दोस्तों का आंकड़ा तो अवश्य ही होगा. पार्टी के लिए लखनऊ के मशहूर ताज महल होटल का हाल बुक करवाया गया था. हाल की दीवारों पर सजी गुलाब की ताजा कलियां माहौल को रूमानी बना रही थीं. दो पौंड का ब्लू बेरी केक, जिस पर “हैप्पी बर्थडे मीनल” लिखा था, हाल के बीचोंबीच रखी गोल टेबल की शोभा बढ़ा रहा था. चाकू और छोटी मोमबत्ती के साथसाथ एक अन्य मोमबत्ती, जिसे माचिस दिखाते ही सितारों की झड़ी लग जाती है, भी केक के पास ही रखे थे. सब मीनल के आने का इंतजार कर रहे थे. वह अपने घर से रवाना हो चुकी थी और बस किसी भी वक्त आने ही वाली थी.

जैसे ही पोर्च में मीनल की गाड़ी के रुकने की आवाज आई, हाल की तमाम बत्तियां गुल कर दी गईं. दीवारों को टटोलते हुए मीनल आगे बढ़ रही थी कि अचानक राह में बाधा आने के कारण उसे रुकना पड़ा. वह रुकी ही थी कि हाल रोशनी से जगमगा उठा. म्यूजिक सिस्टम पर “हैप्पी बर्थडे टू यू सांग” बजने लगा और मीनल फूलों की बरसात में नहा उठी.

मीनल के दोस्तों ने ताली बजा कर उस का स्वागत किया. आसमानी रंग के इवनिंग गाउन में मीनल नील परी सी लग रही थी. फर्श को चूमता उस का दुपट्टा उसे शाही लुक दे रहा था.

मीनल केक वाली टेबल के पास आ कर खड़ी हो गई. एक दोस्त ने दोनों मोमबत्तियां केक पर लगा दीं. पहले सितारे बिखेरने वाली मोमबत्ती जली और हाल में तेज रोशनी हो गई.

मीनल ने इतरा कर अपने दोस्तों की तरफ निगाह दौड़ाई. टेबल के आसपास केक के सब से पास वाले घेरे में रमन, साक्षी, श्वेता, विशाल, कृष और मेघा जैसे मीनल के परम मित्र कहलाने वाले दोस्त खड़े थे. उन के पीछे अन्य कुछ कम खास मित्र थे. और सब से पीछे आखिर वाली पंक्ति में आर्यन भी खड़ा मुसकरा रहा था. मीनल ने हाथ में चाकू लिया और कमर को झुका कर बड़ी अदा के साथ अपने गोलगोल किए होंठ जलती हुई मोमबत्ती की तरफ बढ़ा दिए. हाल में उपस्थित सभी लोगों ने केक कटते ही ताली बजाने के लिए अपने हाथों की पोजीशन ले ली. इस से पहले कि मीनल अपनी फूंक से जलती हुई मोमबत्ती को बुझाती, उस का नेट का दुपट्टा हवा में लहराता हुआ मोमबत्ती की लौ को छू गया.

सब अवाक खड़े थे. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. रमन “पानी लाओ-पानी लाओ” चिल्ला रहा था, तभी श्वेता ने मीनल का जलता हुआ दुपट्टा खींच कर परे फेंक दिया, लेकिन अब तक आग ने मीनल के ब्लाउज वाले हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया था.

जलन और डर के मारे मीनल चिल्ला रही थी. रमन चद्दर लेने के लिए कमरे की तरफ दौड़ा, इतने में भीड़ को चीरता हुआ आर्यन आगे आया और उस ने मीनल का गाउन हाथ से खींच कर फाड़ डाला. आर्यन ने फटे हुए गाउन के ऊपरी हिस्से को मीनल के शरीर से अलग कर दिया. अब वह आग से तो आजाद थी, लेकिन ब्लाउज वाला भाग हटते ही उस के अंतर्वस्त्र और शरीर के स्त्री अंग भी दिखने लगे थे. शर्म के मारे उस ने अपने हाथों से शरीर को ढकने का प्रयास किया, लेकिन असफल रही. सब की आँखें शर्म से नीची हो गईं. कुछ ने अपने चेहरे भी दूसरी दिशा में घुमा लिए. तभी रमन चद्दर ले कर आ गया और साक्षी मीनल को उस चद्दर में लपेट कर कमरे में ले गई.

इस हादसे में किसी ने नहीं देखा कि आर्यन के हाथ भी झुलस गए थे. वह अपने हाथ नल के बहते पानी के नीचे रखे उन की जलन कम करने की कोशिश कर रहा था.

पार्टी के रंग में भंग हो गया. मीनल का शर्म और घबराहट के मारे बुरा हाल था. दोस्तों ने उसे घर ड्राप किया और एक हादसे को अपने साथ लिए अपनेअपने घर चले गए.

मीनल को हालांकि आग से कोई नुकसान नहीं हुआ था, बस सीने के दाहिनी तरह बांह के नीचे कपड़े के चिपक जाने से वहां की स्किन झुलस गई थी. कुछ दिन दवाओं और इलाज से वह घाव पूरी तरह ठीक हो गया था, लेकिन जले का निशान रह गया था.

डाक्टर के अनुसार इस तरह के निशान जाते से ही जाएंगे. हो सकता है, ना भी जाएं, स्थायी ही हो जाएं.
सप्ताहभर बाद जब मीनल कालेज पहुंची, तो सब से पहले आर्यन से मिली. वह उसे थैंक्स कहना चाहती थी. मीनल ने उस की झुलसी हुई हथेलियां देखी थीं, पीड़ा से भर उठी.

“अरे, तुम्हारे हाथ तो बुरी तरह से झुलस गए. किसी डाक्टर को दिखाया क्या?” मीनल ने उस की हथेलियां अपने हाथों में ले लीं. आज उसे ये हाथ किसी मसीहा के लग रहे थे. उधर आर्यन था कि शर्म से गड़ा जा रहा था.

“अरे मोहतरमा, ये कुछ खास नहीं. हमें तो इतना ताप सहने की आदत है. अब्बू का लोहे का कारखाना है ना,” कहते हुए आर्यन ने अपने हाथ खींच लिए. मीनल कृतज्ञता से उसे देखती रही.

इस के बाद मीनल का स्वाभाविक झुकाव आर्यन की तरफ होने लगा. जब तक उस की हथेलियां पूरी तरह से ठीक नहीं हुईं, मीनल नोट्स बनाने में उस की मदद करती रही.

हालांकि इसे प्यार का पहला पायदान कह सकते हैं, लेकिन मीनल को अहसास नहीं था कि वह इस पर कदम रख चुकी है. आर्यन की तरफ उस के रुझान को देखते हुए मीनल के कई साथियों ने उसे “लव जिहाद” का मामला बता कर उस से दूर रहने की सलाह दी.

तिकोनी डायरी : भाग 1

नागेश की डायरी

कई दिनों से मैं बहुत बेचैन हूं. जीवन के इस भाटे में मुझे प्रेम का ज्वार चढ़ रहा है. बूढ़े पेड़ में प्रेम रूपी नई कोंपलें आ रही हैं. मैं अपने मन को समझाने का भरपूर प्रयत्न करता हूं पर समझा नहीं पाता. घर में पत्नी, पुत्र और एक पुत्री है. बहू और पोती का भरापूरा परिवार है, पर मेरा मन इन सब से दूर कहीं और भटकने लगा है.

शहर मेरे लिए नया नहीं है. पर नियुक्ति पर पहली बार आया हूं. परिवार पीछे पटना में छूट गया है. यहां पर अकेला हूं और ट्रांजिट हौस्टल में रहता हूं. दिन में कई बार परिवार वालों से फोन पर बात होती है. शाम को कई मित्र आ जाते हैं. पीनापिलाना चलता है. दुखी होने का कोई कारण नहीं है मेरे पास, पर इस मन का मैं क्या करूं, जो वेगपूर्ण वायु की भांति भागभाग कर उस के पास चला जाता है.

वह अभीअभी मेरे कार्यालय में आई है. स्टेनो है. मेरा उस से कोई सीधा नाता नहीं है. हालांकि मैं कार्यालय प्रमुख हूं. मेरे ही हाथों उस का नियुक्तिपत्र जारी हुआ है…केवल 3 मास के लिए. स्थायी नियुक्तियों पर रोक लगी होने के कारण 3-3 महीने के लिए क्लर्कों और स्टेनो की भर्तियां कर के आफिस का काम चलाना पड़ता है. कोई अधिक सक्षम हो तो 3 महीने का विस्तार दिया जा सकता है.

उस लड़की को देखते ही मेरे शरीर में सनसनी दौड़ जाती है. खून में उबाल आने लगता है. बुझता हुआ दीया तेजी से जलने लगता है. ऐसी लड़कियां लाखों में न सही, हजारों में एक पैदा होती हैं. उस के किसी एक अंग की प्रशंसा करना दूसरे की तौहीन करना होगा.

पहली नजर में वह मेरे दिल में प्रवेश कर गई थी. मेरे पास अपना स्टाफ था, जिस में मेरी पी.ए. तथा व्यक्तिगत कार्यों के लिए अर्दली था. कार्यालय के हर काम के लिए अलगअलग कर्मचारी थे. मजबूरन मुझे उस लड़की को अनुराग के साथ काम करने की आज्ञा देनी पड़ी.

मुझे जलन होती है. कार्यालय प्रमुख होने के नाते उस लड़की पर मेरा अधिकार होना चाहिए था, पर वह मेरे मातहत अधिकारी के साथ काम रही थी. मुझ से यह सहन नहीं होता था. मैं जबतब अनुराग के कमरे में चला जाता था. मेरे बगल में ही उस का कमरा था. उन दोनों को आमनेसामने बैठा देखता हूं तो सीने पर सांप लोट जाता है. मन करता है, अनुराग के कमरे में आग लगा दूं और लड़की को उठा कर अपने कमरे में ले जाऊं.

अनुराग उस लड़की को चाहे डिक्टेशन दे रहा हो या कोई अन्य काम समझा रहा हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तब थोड़ी देर बैठ कर मैं अपने को तसल्ली देता हूं. फिर उठतेउठते कहता हूं, ‘‘नीहारिका, जरा कमरे में आओ. थोड़ा काम है.’’

मैं जानता हूं, मेरे पास कोई आवश्यक कार्य नहीं. अगर है भी तो मेरी पी.ए. खाली बैठी है. उस से काम करवा सकता हूं. पर निहारिकाको अपने पास बुलाने का एक ही तरीका था कि मैं झूठमूठ उस से व्यर्थ की टाइपिंग का काम करवाऊं. मैं कोई पुरानी फाइल निकाल कर उसे देता कि उस का मैटर टाइप करे. वह कंप्यूटर में टाइप करती रहती और मैं उसे देखता रहता. इसी बहाने बातचीत का मौका मिल जाता.

निहारिका के घरपरिवार के बारे में जानकारी ले कर अपने अधिकारों का बड़प्पन दिखा कर उसे प्रभावित करने लगा. लड़की हंसमुख ही नहीं, वाचाल भी थी. वह जल्द ही मेरे प्रभाव में आ गई. मैं ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा, उस ने झट से मान लिया. मेरा मनमयूर नाच उठा. मुझ से हाथ मिलाया तो शरीर झनझना कर रह गया. कहां 20 साल की उफनती जवानी, कहां 57 साल का बूढ़ा पेड़, जिस की शाखाओं पर अब पक्षी भी बैठने से कतराने लगे थे.

निहारिका से मैं कितना भी झूठझूठ काम करवाऊं पर उसे अनुराग के पास भी जाना पड़ता था. मुझे डर है कि लड़की कमसिन है, जीवन के रास्तों का उसे कुछ ज्ञान नहीं है. कहीं अनुराग के चक्कर में न आ जाए. वह एक कवि और लेखक है. मृदुल स्वभाव का है. उस की वाणी में ओज है. वह खुद न चाहे तब भी लड़की उस के सौम्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो सकती थी.

क्या मैं उन दोनों को अलग कर सकता हूं?

अनुराग की डायरी

निहारिका ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. वह इतनी हसीन है कि बड़े से बड़ा कवि उस की सुंदरता की व्याख्या नहीं कर सकता है. गोरा आकर्षक रंग, सुंदर नाक और उस पर चमकती हुई सोने की नथ, कानों में गोलगोल छल्ले, रस भरे होंठ, दहकते हुए गाल, पतलीलंबी गर्दन और पतला-छरहरा शरीर, कमर का कहीं पता नहीं, सुडौल नितंब और मटकते हुए कूल्हे, पुष्ट जांघों से ले कर उस के सुडौल पैरों, सिर से ले कर कमर और कूल्हों तक कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती थी.

वह मेरी स्टेनो है और हम कितनी सारी बातें करते हैं? कितनी जल्दी खुल गई है वह मेरे साथ…व्यक्तिगत और अंतरंग बातें तक कर लेती है. बड़े चाव से मेरी बातें सुनती है. खुद भी बहुत बातें करती है. उसे अच्छा लगता है, जब मैं ध्यान से उस की बातें सुनता हूं और उन पर अपनी टिप्पणी देता हूं. जब उस की बातें खत्म हो जाती हैं तो वह खोदखोद कर मेरे बारे में पूछने लगती है.

बहुत जल्दी मुझे पता लग गया कि वह मन से कवयित्री है. पता चला, उस ने स्कूलकालेज की पत्रिकाओं के लिए कविताएं लिखी थीं. मैं ने उस से दिखाने के लिए कहा. पुराने कागजों में लिखी हुई कुछ कविताएं उस ने दिखाईं. कविताएं अच्छी थीं. उन में भाव थे, परंतु छंद कमजोर थे. मैं ने उन में आवश्यक सुधार किए और उसे प्रोत्साहित कर के एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज दिया. कविता छप गई तो वह हृदय से मेरा आभार मानने लगी. उस का झुकाव मेरी तरफ हो गया.

शीघ्र ही मैं ने मन की बात उस पर जाहिर कर दी. वस्तुत: इस की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि बातोंबातों में ही हम दोनों ने अपनी भावनाएं एकदूसरे पर प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे प्यार को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

काम से समय मिलता तो हम व्यक्तिगत बातों में मशगूल हो जाते परंतु हमारी खुशियां शायद हमारे ही बौस को नागवार गुजर रही थीं. दिन में कम से कम 5-6 बार मेरे कमरे में आ जाते, ‘‘क्या हो रहा है?’’ और बिना वजह बैठे रहते, ‘‘अनुराग, चाय पिलाओ,’’ चाय आने और पीने में 2-3 मिनट तो लगते नहीं. इस के अलावा वह निहारिकासे साधिकार कहते, ‘‘मेरे कमरे से सिगरेट और माचिस ले आओ.’’

मेरा मन घृणा और वितृष्णा से भर जाता, परंतु कुछ कह नहीं सकता था. वे मेरे बौस थे. निहारिका भी अस्थायी नौकरी पर थी. मन मार कर सिगरेट और माचिस ले आती. वह मन में कैसा महसूस करती थी, मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब भी वह सिगरेट ले कर आती, हंसती रहती थी, जैसे इस काम में उसे मजा आ रहा हो.

एक छोटी उम्र की लड़की से ऐसा काम करवाना मेरी नजरों में न केवल अनुचित था, बल्कि निकृष्ट और घृणित कार्य था. उन का अर्दली पास ही गैलरी में बैठा रहता है. यह काम उस से भी करवा सकते थे पर वे निहारिकापर अपना अधिकार जताना चाहते थे. उसे बताना चाहते थे कि उस की नौकरी उन के ही हाथ में है.

सिगरेट का बदबूदार धुआं घंटों मेरे कमरे में फैला रहता और वह परवेज मुशर्रफ की तरह बूट पटकते हुए निहारिका को आदेश देते मेरे कमरे से निकल जाते कि तुम मेरे कमरे में आओ.

जैसा राजा वैसी प्रजा : मोदी की कार्यशैली जैसी बौलीवुड की कदमताल

कुछ वर्षों पहले जब फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लंबा इंटरव्यू लिया,जोकि कई चैनलों पर प्रसारित हुआ, तो लोगों को बड़ा अजीब लगा. उसकी आज भी चर्चा हो रही हैलेकिन हमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा इंटरव्यू लिया जाना अतिसामान्य बात नजर आई.

मूल वजह इस की यह है कि आाजदी के बाद से ही हमारे देश के फिल्मकार व कलाकार हमेशा देश के शीर्ष नेताओं, खासकर, देश के प्रधानमंत्री के साथ ही कदमताल करते आए हैं. यानी, ‘यथा राजा,तथा प्रजा’.जैसा देश का प्रधानमंत्री,वैसा ही फिल्मकार व अभिनेता.वैसा ही सिनेमा.

वर्ष 2014 से पहले तक हमारे प्रधानमंत्री पत्रकारों से काफी बातें करते थेलेकिन 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने पत्रकारों से किनारा कर लिया.प्रैस कौन्फ्रैंस तक से उनका विश्वास उठ गया.अब यदि हम देश के प्रधानमंत्री की कार्यशैली के साथ ही बौलीवुड की कार्यशैली पर गौर करेंतो हमें एहसास होता है कि 2014 से बौलीवुड की कार्यशैली और देश के शासक की कार्यशैली में कोई अंतर नहीं है.देश की संसद के अंदर जिस तरह से शासक पक्ष के साथ विपक्ष है,उसी तरह बौलीवुड में भी 2 पक्ष हैं.

सत्ता बदलने के साथ सिनेमा में बदलाव

शासक पक्ष की ही तरह बौलीवुड में काफी मुखर भाजपा समर्थक फिल्मकार व कलाकार एक खास तरह का न सिर्फ सिनेमा बना रहे हैं,बल्कि वे दूसरे पक्ष को दोयम दरजे का मानते हुएउन्हें धमकाने से भी बाज नहीं आते. सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा बदलता रहा है,मगर 2014 के बाद देश का सिनेमा कुछ ज्यादा ही तीव्र गति से बदलता जा रहा है.इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि 2014 से पहले देश के किसी भी प्रधानमंत्री ने मुंबई आकर बौलीवुड के लोगों से मुलाकात व गपशप नहीं की और न ही बौलीवुड के लोग चार्टर प्लेन से दिल्ली जाकर बारबार प्रधानमंत्री से मिलते थे.लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बौलीवुड की समस्याओं को समझने वउन्हें दूर करने के नाम पर ऐसा कई बार किया.अब बौलीवुड की समस्याएं कितनी दूर हुईं, यह तो सब के सामने है ही.

यह कटु सत्य है कि देश की सरकार बदलने के साथ ही धीरेधीरे बौलीवुड ने भी रंग बदलने शुरू किए.बौलीवुड 2 धड़ों में बंट गया और यह बंटवारा पहली बार खुलकर नजर भी आने लगा.शासक पक्ष की नीतियों की बात करने वाला सिनेमा ज्यादा बनने लगा.यथार्थपरक सिनेमा के नाम पर फिल्मकारों ने शासक की विचारधारा को पोषित करने वाला सिनेमा बनाना शुरू कर दिया.

बहरहाल, ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की कहावत अब बौलीवुड के फिल्मकारों व कलाकारों की कार्यशैली पर एकदम सटीक बैठती है.बौलीवुड में धीरेधीरे मैनेजर,पीआरओ और बाउंसरों का अस्तित्व बढ़ता जा रहा है.फिल्म निर्देशक से लेकर कलाकार तक पत्रकारों से दूरी बनाकर रखते हैं,जबकि पहले ऐसा नहीं था.

चुनिंदा ग्रुप से इंटरव्यू

2014 के बाद एक नया सिलसिला शुरू हुआजिसके तहत ग्रुप इंटरव्यू होने लगे.हर कलाकार चुनिंदा पत्रकारों से वन औन वन बात करता,बाकी से ग्रुप इंटरव्यू में बात कर लेता.मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं अक्षय कुमार के घर पर उनका इंटरव्यू करने गया थातब उन्होंने बड़ी शान से बताया था, ‘आपके लिए मुझे अलग से समय निकालना पड़ा.अन्यथा कल मैंने ग्रुप इंटरव्यू में 15 मिनट के अंदर 57 पत्रकारों से बात कर ली थी.’ यह भी रवैया ठीक नहीं था.

लेकिन कोविड के बाद तो हर निर्माता,निर्देशक,कलाकर पूरी तरह से बदल गया है.अब तो प्रैस कौन्फ्रैंस भी एक इवैंट की तरह होती हैं,जहां पत्रकार महज मूक दर्शक होता है.हर प्रैस कौन्फ्रैंस में एक मंच सजा होता हैजिस पर निर्माता,निर्देशक व कलाकार आकर बैठ जाते हैं.एंकरनुमा किराए का एक बंदा उन की बगल में बैठकर पीआर द्वारा लिखे गए कुछ सवाल पूछ लेता है और प्रैस कौन्फ्रैंस खत्म हो जाती है.जब यह प्रैसकौन्फ्रैंस के नाम पर ‘इवैंट’ हो,तो स्वाभाविक तौर पर यहां पर कलाकार के फैंस भी बुलाए जाते हैंफिर चाहे वह किसी फिल्म का ट्रेलरलौंच हो या किसी ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस हो.

पांचसितारा होटलों में आयोजित प्रैसकौन्फ्रैंसनुमा इवैंट की खासीयत यह है कि सामने एक टैलीप्रिंटर लगा होता है.एंकर उसी पर आ रहे शब्दों-सवालों को पढ़ता है और कलाकार टैलीप्रिंटर पर लिखे जवाब पढ़ देता है.बीचबीच में कलाकारों के तथाकथित प्रशंसक कलाकार के नाम की जोरजोर से रट भी लगाते हैं.ऐसे में कलाकार की बात तक सुनाई नहीं पड़ती.हमारे पत्रकार बंधु भी ऐसे समय ‘रील्स’ बनाने में व्यस्त रहते हैं.हमने तथाकथित फैंस की बात की.

क्योंकि इन फैंस व नेता की सभा में पैसे लेकर आने वाली भीड़ में कोई अंतर नहीं है.एक फिल्म के ट्रेलरलौंच के अवसर पर मुंबई के एक नामीगिरामी कालेज के छात्र व छात्राएं आई थीं,जिनसे जब हमने बात की तो पता चला कि उन्हें उस दिन कालेज से छुट्टी दी गई है.मतलब,वे फिल्म के ट्रेलरलौंच के लिए मल्टीप्लैक्स में कलाकार के लिए नारे लगा रहे हैं,यानी कि वे कालेज में तो अपनी कक्षा से नदारद हैमगर इसके एवज में उनका कालेज उनकी उपस्थित दर्ज कर रहा है.

इस खेल की तह तक जाने की जरूरत है.कलाकार के फैंस के नाम पर आने वालों को सीटियां भी दी जाती हैं,जिन्हेंवेप्रैस कौन्फ्रैंस के दौरान जोरजोर से बजाते हैं. यानी, यह प्रैस कौन्फ्रैंस के नाम पर ‘फैंस कौन्फ्रैंस’होती है.कलाकार भी बीचबीच में इनसे मुखातिब होता रहता है.

कुल मिलाकर यह सारा खेल फिल्म निर्माता,कलाकार व इवैंट कंपनियों की मिलीभगत से होता है.इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि कलाकार पत्रकारों से रूबरू होने से बच जाता है.उसे लगता है कि ये फैंस तो ‘माउथ पब्लिसटी’ करके उनकी फिल्म को करोड़ क्लब का हिस्सा बना देंगे. पर सच यह है कि इसी वजहसे फिल्में बौक्सऔफिस पर मुंह के बल गिर रही हैं.इस सच से अवगत होने के चलते फिल्म ‘फुकरे 3’ के ट्रेलरलौंचइवैंट के दौरान अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने प्रशंसकों से सवाल कर दिया था, ‘अरे भाई, आप लोग मुझे बताएं कि यह सीटी आपको यहीं गेट पर ही दी गई है न?’

बौलीवुड इवेंटबाजी का दौर

वास्तव में इवैंट कंपनियों ने हर कलाकार के नाम पर फैंस क्लब बना लिया है और हर इवैंटमें वे कुछ लड़के व लड़कियों को लेकर आती हैं.इनके साथ इवैंट कंपनियों वाले दादागीरी के साथ पेश आते हैं.एक इवैंट में हमने खुद एक इंसान को कुछ फैंस को धमकाते हुए सुना.उसने फैंस से कहा कि अगर कलाकार के स्टेज पर आते ही उन लोगों ने जोर से सीटी ही बजाई,जोर से हल्लागुल्ला नहीं किया तो वह उन्हें थप्पड़ मारेगा और दूसरी बार से उन्हेंनहीं बुलाएगा.

मजेदार बात यह है कि ठेकेदारनुमा इवैंट वाले कार्यक्रम खत्म होते ही फैंस से सीटी वापस ले ली जाती हैं.मगर कलाकारों से मिलने के मोह तले दबे ये लड़केलड़कियां गाली भी खाते रहते हैं.

अब फैंस आए हैं,तो वे कलाकार के साथ फोटो खिंचवाने से लेकर रील्स तक बनाएंगे ही और उसे सोशल मीडिया पर डालेंगे ही डालेंगे. क्या वर्तमान समय में यही काम हमारे शीर्ष नेता नहीं कर रहे हैं? नई पीढ़ी के पत्रकारों में भी ऐसी हरकतें करने की प्रवृत्ति है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. बहरहाल,इस तरह की प्रैसकौन्फ्रैंस सभी ओटीटी प्लेटफौर्म भी करने लगे हैं जिन्हें पूरी तरह से पीआरओ और इवैंट कंपनियां संभालती हैं.

हमबात ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की कर रहे हैं.इसी कहावत के अनुसार, अब तो बौलीवुड में हालात ऐसे हो गए हैं कि ज्यादातर कलाकार ‘वन औन वन’ तो छोड़िए, ग्रुप इंटरव्यू भी नहीं करते.अक्षय कुमार,वरुण धवन,शाहरुख खान,विक्की कौशल सहित लगभग हर कलाकार ने मीडिया से पूरी दूरी बना ली है. ये सभी केवल सोशल मीडिया अथवा ‘सिटी टूर’ को ही प्रधानता देते हैं.इनके पीआरओ के पास एक ही रटारटाया जवाब होता है कि अब कलाकार की पत्रकारों को इंटरव्यू देने में कोई रुचि नहीं रही. वे अपनी फिल्म का ट्रेलर,टीजर व गाने सोशल मीडिया, यूट्यूब, ट्विटर, फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं.

अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म ‘रामसेतु’ के वक्त पूरे देश से मीडिया को बुलाकर, एक मल्टीप्लैक्स में फिल्म का ट्रेलर दिखाकर, एंकर के माध्यम से अपनी फिल्म को लेकर कुछ बातें करने के बाद मुंबई के एक पांचसितारा होटल में भोजन कराकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी.

पत्रकार भी इसी से गदगद हो गए थे.उसके बाद ‘सैल्फी’ फिल्म से अक्षय कुमार ने पत्रकारों से इस तरह का भी संबंध रखना उचित नहीं समझा.फिल्म से संबंधित सारी जानकारी उनकी पीआर कंपनी पत्रकारों को व्हाट्सऐप ग्रुप पर देती रहती है.अक्षय कुमार अपनी फिल्म के टीजर, ट्रेलर व गानों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते रहते हैं.उसके बाद शाहरुख खान सहित दूसरे कलाकारों ने भी यही रवैया अपनाना शुरू कर दिया.

पीआर का कमाल

‘सैल्फी’, ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’,‘द केरला स्टोरी’,‘नीयत’,‘तरला’,‘ब्लाइंड’,‘बवाल’ ‘ओएमजी 2’,‘पठान’, ‘जवान’ सहित कई फिल्मों के प्रैसइवैंट भी नहीं हुए. अब जो प्रैसइवैंट होते हैं,उनमें से ज्यादातर में पत्रकार को सवाल पूछने का हक नहीं होता,किराए का आया हुआ एंकर ही सवाल कर लेता है.हमारे पत्रकार बंधु उसी का वीडियो बना लेते हैं.यही वजह है कि हिंदी का हो या इंग्लिशका या अन्य भाषा का समाचारपत्र, हर जगह एक ही बात व एक ही शीर्षक से छपी खबरें नजर आती हैं.

हालत यह है कि कुछ पीआरओ ईमेल पर कलाकार के जवाब भिजवाने की बात करते हैं. पर वे जवाब कौन देता है, इसे कोई नहीं जान सकता.हाल ही फिल्म ‘बारहवीं फेल’ का ट्रेलर चुनिंदा 15 पत्रकारों को बुलाकर दिखाया गया और उस वक्त फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने ‘इनफौर्मल’ बातचीत की,जिसे छापना नहीं था.इसके बावजूद हमारे एक सवाल पर विधु विनोद चोपड़ा ने कहा कि वे बोल नहीं सकते, उन्हें बोलने से मना किया गया है.जब विधु विनोद चोपड़ा खुद ही निर्माता व निर्देशक हों,तो उन्हें बोलने से कौन मना कर कसता हैया उनका इशारा उनके अपने पीआरओ की तरफ था, पता नहीं.

कलाकार के साथ ही व्यापारिक बुद्धि में माहिर शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘जवान’ के प्रदर्शन से पहले कोई प्रैसइवैंटनहीं किया.पत्रकारों से न वे मिले और न ही फिल्म से जुड़ा कोई अन्य कलाकार. शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘जवान’ का पोस्टर,टीजर व ट्रेलर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया.फिल्म में दक्षिण के कलाकार भी हैंतो उनके दबाव में चेन्नई जाकर उन्होंने एक प्रैसइवैंट किया.इसके अलावा दुबई जाकर दोतीन इवैंट कर डाले.

अपनी व्यावासायिक बुद्धि और पीआर कंपनी की मदद से ‘जवान’ की कमाई को लेकर शाहरुख़ ने खूब प्रचार किया.फिल्म के प्रदर्शन के एक सप्ताह बाद शाहरुख खान ने ‘जवान’ के लिए ‘सक्सेस प्रैसकौन्फ्रैंस’ का ‘यशराज स्टूडियो’, मुंबई में आयोजन किया.शाम पौने 4 बजे का समय दिया गया था.जब हम वहां पहुंचे तो एहसास हुआ कि यह प्रैस कौन्फ्रैंस के बजाय शाहरुख खान का अपने फैंस के लिए रखा गया इवैंट है,जिसे देखने के लिए प्रैस को बुलाया गया है.

उनके फैंस के हाथ में सीटी दी गई थी.प्रशंसकों की जमात आगे की तरफ रैंप के दाएंबाएं बैठी थी.मीडिया की कुरसियां सबसे पीछे और काफी दूर थीं.पौने चार बजे से ही शाहरुख खान के प्रशंसकों ने जोरजोर से कानफोड़ देने वाली सीटी की आवाज करते हुए नाचनागाना शुरू कर दिया.उनके लिए सामने फिल्म के गाने भी चल रहे थे.पत्रकार बिरादरी मूक दर्शक बनी हुई थी.पूरे 2 घंटे बाद यानी कि शाम पौने 6 बजे शाहरुख खान,दीपिका,विजय सेतुपति व अन्य कलाकार आए और पत्रकारों की तरफ पीठ करके बैठ गए.

उसके बाद रैंप पर जाकर हर कलाकार प्रशंसकों से मुखातिब हुआ. शाहरुख व दीपिका ने डांस भी किया.प्रशंसक सीटी व ताली बजा रहेथे. इससे मीडिया के सामने साबित यह किया जा रहा था कि फिल्म ‘जवान’ कितनी लोकप्रिय हैजबकि सिनेमाघर खाली पड़े हुए थे.

बहरहाल,कुछ समय बाद पत्रकारों के आगे कुछ कलाकार, उस के बाद प्रशंसक,उसके आगे काफी दूर जाकर शाहरुख खान,दीपिका पादुकोण,विजय सेतुपति व निर्देशक एटली बैठे और उन की बगल में किराए का बुलाया हुआ एंकर बैठा.उस एंकर ने ही कुछ सवाल किए.प्रशंसकों ने तालियां बजाईं.बीच में2 बार शाहरुख खान ने मीडिया का धन्यवाद अदा किया और मामला खत्म.शाहरुख खान सहित एक भी कलाकार मीडिया से नहीं मिला. मगर सभी प्रशंसकों संग सैल्फी लेते रहे. हमारे पत्रकार बंधु,टीवी चैनल तो इसी का वीडियो व रील्स बनाते रहे.अब इसे प्रैस कौन्फ्रैंस कहा जाए या ‘फैन्स कौन्फ्रैंस’?

शायद यही वजह है कि जमाना फोटो और वीडियो का हो गया है.यूट्यूब चैनल,फेसबुक चैनल,इंस्टाग्राम का जमाना है.हर पत्रकार का अपना इंस्टाग्राम अकाउंट हैं,जहां कोई गंभीरता नजर नहीं आती.अब मीडिया कवरेज में भी शब्द और संवाद की जगह फोटो और वीडियो ने ले ली है.हर अखबर अपनी वैबसाइट पर कलाकार के इंस्टाग्राम को ही पेश कर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहा है.

जब मीडियाकर्मी के पास केवल रील या वीडियो बनाने के अलावा कोई विकल्प न हो,तो ऐसा ही होगा.ताज्जुब की बात यह है कि नई पीढ़ी के पत्रकार स्टार को देखकर एक प्रशंसक की तरह करतल ध्वनि करते हैं.नई पीढ़ी के पत्रकारों की वजह से भी फैंस और मीडिया का अंतर मिट गया है.हम यहां बता दें कि दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री अभी इस बीमारी से बची हुई है.वहां के कलाकार आज भी पत्रकारों से मिलना व बात करना अपना कर्तव्य समझते हैं.

बौलीवुड में जो कुछ हो रहा है और बौलीवुड के कलाकार जिस तरह पत्रकारों के साथ पेश आ रहे हैं उसे देखते हुए क्या ‘यथा राजा तथा प्रजा’ कहना गलत होगा?

आज भी Rajkummar Rao को क्यों है इस बात का अफसोस ? जानें एक्टर के जीवन से जुड़े अनसुने किस्से

Rajkummar Rao Unheard Story : शमशाद, प्रीतम विद्रोही और न्यूटन कुमार आदि-आदि. ये उन्हीं किरदारों के नाम है जो बॉलीवुड एक्टर ”राजकुमार राव” ने बड़े पर्दे पर बखूबी निभाए हैं. अभिनेता ”राजकुमार राव” को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से और काम के प्रति अपने समर्पण से बहुत ही कम समय में फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं. इसी का नतीजा है कि आज उनके करोड़ों चाहने वाले हैं. फैंस उनकी एक झलक देखने के लिए कई घंटों तक इंतजार करते हैं.

लेकिन क्या आपको पता है कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए एक्टर ”राजकुमार राव” ने एक दो नहीं बल्कि कई समस्याओं का सामना भी किया है ? अगर नहीं. तो आइए जानते हैं अभिनेता ”राजकुमार राव” की जिंदगी के उन अनसुने किस्सों के बारे में, जिनके बारे में शायद ही किसी को पता है.

बचपन से था एक्टर बनने का जुनून

आपको बता दें कि ”राजकुमार” (Rajkummar Rao Personal Life) का जन्म हरियाणा के गुरुग्राम में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. गुरुग्राम के ही एक स्कूल में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की है. वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की है. हालांकि राजकुमार को एक्टर बनने का जुनून बचपन से ही था. इसलिए इसकी शूरुआत उन्होंने अपने स्कूल के दिनों से ही कर दी थी. वह स्कूल में नाटकों और कॉलेज में थियेटर में बढ़ चढ़कर भाग लिया करते थे. इसके अलावा उन्होंने पुणे के ‘फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ से एक्टिंग में ग्रेजुएशन भी की हैं.

दो सालों तक किया है संघर्ष

वहीं 16-17 साल की उम्र में राजकुमार पहली बार अपने भाई के साथ मुंबई आए थे. जब उन्होंने डांस रियलिटी शो ‘बूगी वूगी’ का ऑडिशन दिया था. इसके अलावा जब पहली बार वो मुंबई आए थे तो वो शाहरुख खान के घर ”मन्नत” के बाहर बैठा करते थे ताकि वो उन्हें देख सकें. इसके बाद साल 2008 में फिर वो एक्टर बनने के लिए अपने तीन दोस्तों के साथ पुणे से बाइक पर मुंबई आए. लेकिन यहां आने के बाद दो सालों तक उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. कई बार तो उनके पास खाना खाने तक के भी पैसे नहीं हुआ करते थे.

कई सालों तक सुने हैं ताने

इसी बीच उन्हें एक ऐड में काम करने का मौका मिला, जिसके लिए उन्हें 5 हजार रुपए मिले. लेकिन ऐड में काम करने के बाद भी ”राजकुमार” को फिल्मों में काम करने का मौका नहीं मिल रहा था. जब वह ऑडिशन के लिए जाया करते थे तो उऩ्हें कई-कई तरह की बातें सुनने को मिलती थी. यहां तक की कई लोगों ने तो उनके शारीरिक बनावट पर तक कमेंट किया था. इसके अलावा उन्हें ये कहकर भी रिजेक्ट किया जाता था कि वो हीरो मटेरियल नहीं है. लेकिन वो इन सब चीजों को सफर का हिस्सा मान आगे बढ़ते गए.

इस फिल्म ने बदल दी किस्मत

वहीं इस बीच साल 2010 में उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म ”लव सेक्स और धोखा” में काम करने का मौका मिला, जिससे उन्होंने फिल्मों की दुनिया में कदम रखा. लेकिन इसके बाद भी उन्हें कुछ ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली, जिसकी वजह से वह फिल्मों में छोटे-छोटे रोल करने के लिए भी तैयार हो गए. इसी कड़ी में उन्हें फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ में काम करने का मौका मिला. जो उनके लिए गेम चेंजर साबित हुई. इसके बाद उनके लिए सफलता के रास्ते खुलते चले गए और आज लोग उनके साथ फोटो खींचवाने के लिए पागल रहते हैं.

जानें राजकुमार किसे देते हैं अपनी सफलता का श्रेय ?

आपको बताते चलें कि फिल्म इंडस्ट्री में ”राजकुमार राव” (Rajkummar Rao Struggle Story) का कोई ‘गॉड फादर’ नहीं था, जिसकी वजह से उन्होंने कई समस्याओं का सामना किया है. लेकिन इस मुश्किल घड़ी में उनके साथ व उनका सपना पूरा करने में उनके परिवार ने उनकी खूब मदद की है. उन्होंने उन्हें कभी भी किसी चीज के लिए रोका नहीं. इसलिए अपनी सफलता का पूरा श्रेय एक्टर हमेशा अपने परिवारवालों को ही देते हैं.

एक्टर- स्कूल की फीस देने के भी नहीं थे पैसे

इसके अलावा एक्टर ”राजकुमार राव” ने अपने बचपन के दिनों में आर्थित तंगी का भी सामना किया है. हाल ही में एक इंटरव्यू में अभिनेता ने बताया था कि, जब कुछ समय तक उनके पिता की सैलरी नहीं आ रही थी तो उनकी व उनके भाई-बहन की स्कूल की फीस भी नहीं दी गई थी. लेकिन वह तीनों भाई-बहन हमेशा से एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में भाग लिया करते थे. इसलिए टीचर्स ने उनका सपोर्ट किया और उनकी व उनके भाई-बहनों को दो सालों तक फ्री में पढ़ाया.

राजकुमार को आज भी है इस बात का अफसोस

इसके अलावा एक बार मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने (Rajkummar Rao Interview) ये भी बताया था कि आज भी उन्हें एक बात का अफसोस है. दरअसल ”राजकुमार” के पेरेंट्स इस दुनिया में नहीं है और उन्हें रोजाना इस बात का पछतावा होता है कि उनकी मां उनके साथ नहीं हैं. उनको हमेशा लगता है कि अगर आज उनकी मां उनके साथ होती तो वो अपनी सफलता उनके साथ बांट सकते. लेकिन अब वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते.

सत्ता 80-90 वालों के नहीं बल्कि 30-40 वालों के हाथ हो

वर्तमान में जैसेजैसे राजनीति का स्वरूप बदल रहा है वैसेवैसे राजनीति में युवाओं की मौजूदगी भी बदल रही है. एक वक्त था जब राजनीति केवल उम्र का एक अच्छाखासा समय बिता चुके लोगों की हुआ करती थी. देश और राज्यों की कमान संभालने वाले 50-55 की उम्र पार कर करने वाले ही होते थे लेकिन वक्त के साथसाथ राजनीति में युवा चेहरों की संख्या भी बढ़ रही है.

हालांकि स्थिति संतोषजनक नहीं है फिर भी उम्मीद बढ़ रही है. वर्तमान स्थिति पर नजर डालें तो भारत में 35 वर्ष से कम उम्र के केवल 6% राजनेता ही युवा हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों से, लोकसभा सांसदों की औसत आयु हमेशा 50 से ऊपर रही है. 17वीं लोकसभा के लिए भी यही बात सच है. 550 एमपी में से केवल 64 एमपी 40 से कम उम्र के हैं. ये आंकड़े मन में एक सवाल पैदा करते हैं. सवाल यह कि देश के युवा राजनीति से पीछे भाग रहे हैं या उन्हें पीछे धकेला जा रहा है ये एक चिंता का विषय है. जिसपर बहस की जानी चाहिए.

क्यों है राजनीति में युवाओं की जरूरत

भारत की राजनीति एक बूढ़ी राजनीति है जबकि देश में 65 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या युवा है जो 35 से कम की है. लेकिन हालात ये है कि देश में केवल 22 फीसदी लोकसभा के सदस्य 45 वर्ष से कम आयु के हैं.

हमारे पास उर्जावान उत्साही युवाओं की कमी नहीं है. 65 प्रतिशत की आबादी देश का स्वरूप बदल सकती है. लेकिन मार्गदर्शन की कमी के चलते युवा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है. बेरोजगारी की मार झेल रहा है. जिस का हम सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.

अगर इस युवा जनसंख्या के कुछ हिस्से को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो तसवीर बदल सकती है. कारण है कि एक युवा युवाओं के लिए बेहतर अवसरों की तलाश पर ध्यान केंद्रित करेगा. बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ जैसे मुद्दों पर राजनीति करेगा न कि मंदिरों और मूर्तियों पर न ही व आर्थिक स्थिति को अनदेखा कर नएनए भवन और ईमारतों का निर्माण कराएगा. गलीमोहल्लें में कानून व्यवस्था पर उस का ध्यान होगा न कि रोड़ शो और बड़ेबड़े मैदानों में महंगीमहंगी रैलियों पर. जिनपर ट्रैक्सपेयर्स का करोड़ों रूपया पानी की तरह बहा दिया जाता है.

उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश के थरजून की जबना चौहान को ही ले लीजिए. वह 2016 में 22 साल की उम्र में भारत की सब से कम उम्र की सरपंच चुनी गईं और उन्होंने गांव में महत्वपूर्ण बदलाव किए जैसे शराब और तंबाकू के उपयोग पर रोक लगाना,  बुनियादी ढांचे की मरम्मत करना साथसाथ और भी कई कामों ने उन्हें न केवल ‘सर्वश्रेष्ठ सरपंच’ का खिताब दिलाया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया.

ऐसे उदाहरण देश को युवाओं को राजनीति में लाने के लिए प्रेरणास्रोत का काम करते हैं लेकिन देश में अधिकतर युवा अवसरों की तलाश में भटक रहा है. वह बेरोजगारी से परेशान हैं. सही दिशा न मिल पाने के कारण असामाजिक गतिविधियों का शिकार हो रहा है. हिंसक दंगों, प्रदर्शनों में राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस का भरपूर फायदा तो उठाया जा रहा है लेकिन उसे सक्रिय राजनीति में अपनी जगह बनाने नहीं दी जा रही.

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव रहे बान की मून का कहना था “यदि हम एक सुरक्षित, अधिक न्यायपूर्ण दुनिया का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें युवाओं की भागीदारी को स्वीकार करना चाहिए और उस की सराहना करनी चाहिए. हमें नीतियों, कार्यक्रमों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में युवाओं को शामिल करने के प्रयासों को मजबूत करना चाहिए ताकि युवाओं और अन्य वर्गों को लाभ हो.”

देखा जाए तो एक युवा अपनी और देश की आवश्यकताओं को समझता है और पढ़ालिखा युवा उन आवश्कताओं की पूर्ति के उपाय सुझाने का सामर्थ भी रखता है. इस में कोई शक नहीं है कि नई सोच और बुद्धिमत्ता की सहायता से किसी भी देश की दशा परिवर्तित की जा सकती है. उसे एक नई दिशा दी जा सकती है जो एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकती है.

जेपी आंदोलन जिस का अच्छा उदाहरण माना जा सकता है. बेरोजगारी और सत्ता की अनदेखी से दुखी युवा जब जय प्रकाश नारायण के पास पहुंचे तब उन्होंने उन के साथ मिल कर 1974 में आंदोलन शुरू किया जिसे जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है. इस आंदोलन ने उस वक्त की इंदिरा गांधी की सरकार को हिला कर रख दिया था.

हालांकि बाद में इस की दिशा बदल गई थी. इस आंदोलन ने लालू, नीतीश, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, शरद यादव, अरुण जेटली, विजय गोयल जैसे छात्र नेताओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई थी. जो आज तक सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं जो सीधे तौर पर इस से जुड़े तो नहीं थे, प्रभावित रहे, ऐसा कहा जा सकता है.

युवा भी हैं उदासीन

70 से 90 के दशक तक युवा राजनीति में उत्साह दिखाते रहे थे. कौलेजों में होने वाली राजनीति चर्चाएं छात्रसंघ चुनावों में विद्यार्थियों की भागीदारी इस बात को सही साबित करती है. लेकिन अब धीरेधीरे छात्रसंघ चुनावों के कम या बंद किए जाने पर काम किया जा रहा है.

तर्क दिया जा रहा है कि ये चुनाव छात्रों की शिक्षा में बाधा बन रहे हैं. हाल ही में राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव को कैंसल कर दिया गया. राज्य सरकार का तर्क था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने की स्थिति जानने सहित कई मुद्दों पर चर्चा के लिए 12 अगस्त को एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई थी. जिस में सभी विश्विद्यालयों के कुलपतियों ने हिस्सा लिया और छात्रसंघ चुनाव न कराएं जाने पर आम सहमती बनी.

चुनावों में बड़ी मात्रा में हो रहा धनबल और बाहुबल का उपयोग इस की वजह माना गया. छात्र गुटों में एकदूसरे पर हमले भी आम बात हो गई है. हजारों ख्वाहिशें ऐसी, युवा, हासिल और रांझना जैसी विश्वविद्यालय राजनीति पर आधारित फिल्में इसे बाखूबी फिल्मी पर्दे पर दिखाती है.

वर्तमान में युवा राजनीति की तरफ बढ़ना नहीं चाहता. वो राजनीति को एक कैरियर के रूप में नहीं देखता. भारत में धड़ल्ले से मैनेजमेंट के कोर्स कराएं जाते हैं और यंगस्टर्स भी इन कोर्सों में बढ़चढ़ कर एडमिशन ले रहे हैं. युवा जहां छोटीबड़ी कंपनियों के प्रबंधन का तो  इच्छुक है पर देश के प्रबंधन में आगे नहीं आना चाहता क्योंकि पावर, लालच और हिंसा के नाम पर फेमस हो चुकी राजनीति अब आकर्षण से ज्यादा भय उत्पन्न करती है.

राजनीति, सरकार, नायक, सत्याग्रह जैसी भारतीय फिल्मों ने इसे एक गंदी नाली, राजनीति दलदल है जैसी संज्ञा दे दी है. जिस में जाने के बाद आप कभी सफल सुकून भरा जीवन नहीं जी सकते. ये राजनीति की एक नकारात्मक छवि प्रस्तुत करती है. यही कारण है कि देश का पढ़ालिखा युवा राजनीति में आना नहीं चाहता. या आने से घबराता है.

दुनिया में है युवा राजनीति के भागीदार

इस के विपरीत दुनिया के सभी देशों में युवा राजनीति के बड़े हिस्सेदार बन रहे हैं. और देश के सत्तत विकास के भागीदार भी. ये प्रचलन विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में तेजी से बढ़ रहा है.

न्यूजीलैंड की मुख्यमंत्री रहीं 42 साल की जैसिंडा अर्डर्न. चिली की 36 वर्षीय गेब्रियल बोरिक और 37 वर्षीय फिनलैंड की सना मारिन, दुनिया के सब से युवा नेताओं में से हैं. अब 44 साल के हो चुके लियो वराडकर ने 38 साल की उम्र में आयरलैंड के प्रधानमंत्री का पद संभाला था.

नायब बुकेले, जो अब 41 वर्ष के हैं, 38 वर्ष की आयु में अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति बने. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति सर्दार बर्दीमुहामेदो 41 साल के हैं. जौर्जिया के प्रधानमंत्री इराकली गैरीबाश्विली 40 साल के हैं. सना मारिन, जो अब 37 वर्ष की हैं, 34 वर्ष की उम्र में फिनलैंड की सब से कम उम्र की प्रधानमंत्री बन गईं. ऐसे न जाने कितने युवा दुनिया के देशों की बागडोर सुचारू रूप से संभाल रहे हैं.

44 साल के वोलोडिमिर जैलेंस्की यूक्रेन के राष्ट्रपति, एक राजनेता, पटकथा लेखक, अभिनेता, हास्य अभिनेता और निर्देशक रहे. 2019 के यूक्रेनी राष्ट्रपति चुनाव के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए हैं. रूसयूक्रेन युद्ध में जैलेंस्की एक वार हीरों की तरह उभरे, जिन्होंने रूस के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया और दुनिया में अपनी हिम्मत के लिए विख्यात हो गए.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि हमारे पास युवा संसाधन के रूप में अपार संपदा है और यदि समाज के इस तत्व को सशक्त बनाया जाए तो हम जल्द ही महाशक्ति बनने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.

कलाम की ये बात एक युवा भारत की कल्पना पर आधारित है. जो आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हर क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखता है. लेकिन शायद वर्तमान राजनीति के बड़ेबड़े दिग्गज कलाम की इस बात से सहमत नहीं हैं.

अनुभव के आधार पर पार्टियां कर देती हैं दरकिनार

बड़ीबड़ी पर्टियों में दिग्गज नेताओं के बीच युवा नेता बोने दिखाई पड़ते हैं. उन की बात सुनने का उसपर ध्यान देने का खयाल भी इन दिग्गज नेताओं को नहीं आता. उन का इस्तेमाल केवल राजनीतिक दलों की सड़क की लड़ाई लड़ने के लिए किया जाता है. उन की भूमिका केवल पार्टी प्रचारकों और प्रवक्ताओं के तौर पर सीमित कर दी गई है.

विश्व की सब से बड़ी युवा आबादी वाले भारत में चुनाव में सभी दलों की नजरें केवल युवा वोटबैंक पर होती है. उन को केवल एक वोट के बराबर आंका जाता है लेकिन उन्हें हिस्सेदारी देने की बात हो तो कोई दल उनपर भरोसा नहीं दिखाता. जब तक कि वो किसी बड़े नेता के सुपुत्र नहीं हैं उन की गिनती पार्टी प्रचारकों के अलावा किसी में नहीं होती.

जिन्हें मौके भी दिए भी जाते हैं तो वो केवल मजबूरीवश. वे विश्वविद्यालयों में चल रहे नैशनल स्टूडैंट्स यूनियन औफ इंडिया (एनएसयूआई), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), जैसे छात्र संगठनों को देश का भविष्य तो मानते हैं और उन्हें स्पोंसर भी करते हैं लेकिन विश्वविद्यालयों से निकलते ही छात्र राजनीति से कही गुम हो जाते हैं. राजनीतिक पार्टियों की मदद से कितने युवा संसद तक पहुंचते हैं ये आप खुद देख सकते हैं.

अनुभवहीन फैसले लेने में कमजोर समझ पार्टियों में उन्हें कुछ खास जगह देना पद को जाया करने जैसा महसूस करते हैं. तो ये तबका राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों के लिए फेसबुक, ट्विटर एव अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म तक सीमित हो गया है.

फिर भी है कुछ उम्मीदें   

इन सब के बावजूद निराशा के बीच एक किरण हमेशा मौजूद है. कुछ प्रतिशत आबादी देश को विकास और गतिशीलता की ओर ले जा रही है और ये गतिशीलता युवाओं के रूप में राजनीति में भी दिखाई दे रही है. बदलते वक्त के साथ अब देश की बड़ी आबादी का मानना है कि भारत को अब चौतरफा विकास के लिए युवा नेताओं के सहयोग की आवश्यकता है.

हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश युवा और अनुभवी नेताओं के संयोग से बेहतर तरीके से चलाया जा सकता है. युवा भारत की युवा समस्याओं पर ध्यान देता है और अनुभवी उस के उचित समाधान पर. इस तरह दोनों के सहयोग से देश के विकास की गति को दुगुना होना निश्चित है.

पिछले कुछ वर्षों में युवा नेता  उभर कर सामने आए हैं. युवाओं के राजनीति में भागीदारी को बढ़ाने और उन्हें मजबूत बनाने के उद्देश्य से ‘नैशनल यंग लीडर प्रोग्राम दिसंबर 2014’ में इंट्रड्यूस किया गया जिस का मुख्य उद्देश युवाओं में नेतृत्व के गुणों को विकसित करना था.

दिलचस्प है कि जब भी युवा नेता की बात की जाती है तब 53 साल के हो चुके राहुल गांधी की बात सब से पहले आती है. जो ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलेट जैसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों में राजनीति में एक नई पीढ़ी भी जन्म ले चुकी है जो भावी राजनीति के लिए तैयार हो रही है, जिन में कुछ नामों की चर्चा हम कर सकते हैं.

जैसे गोड्डेती माधवी, 26 साल की उम्र में, वे आंध्र प्रदेश की सब से कम उम्र की सांसद बनीं. 2012 में आम आदमी पार्टी से अपनी शुरूआत करने वाले राघव चड्डा पंजाब के राज्यसभा संसद के सदस्य हैं और एक युवा नेता भी. आजकल राघव फिल्म अभिनेत्री परिनीति चोपड़ा के साथ शादी को ले कर चर्चा में हैं.

बालासाहेब ठाकरे के पोते और उद्धव ठाकरे के बेटे हैं आदित्य ठाकरे. वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में पर्यटन और पर्यावरण मंत्री के रूप में कार्यरत हैं. 25 साल की चंद्राणी मुर्मू बीजू जनता दल की सदस्या और ओड़िसा के क्योंझर से लोकसभा सांसद हैं.

बोलने में कुशल और विद्रोही प्रवर्ति के रहे कन्हैया कुमार को 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का प्रभारी (एनएसयूआई) नियुक्त किया है. जामयांग सेरिंग नामग्याल, जामयांग सेरिंग नामग्याल 33 साल की उम्र में लद्दाख से सब से कम उम्र के सांसद हैं. 30 साल के इंद्र हैंग सुब्बा, सिक्किम के नए सांसद हैं. ऐसे कुछ नाम और भी हैं.

ऐसे ही केरल की महापौर यानी मेयर आर्य राजेंद्र जो हालफिलहाल में अपने 1 माह छोटे बच्चे के साथ औफिस का काम संभाले जाने के कारण खबरों में रहीं देश की सबसे युवा मेयर हैं जबकि उन के पति देव वर्तमान केरल विधानसभा में सब से कम उम्र के विधायक हैं.

भारत के युवा भविष्य की कुछ उम्मीदें तो जगाते हैं लेकिन हजरत निजामुद्दीन औलिया की एक कहावत है ‘दिल्ली अभी दूर है’ जो यहां सार्थक होती है. युवाओं का राजनीति में प्रवेश आरंभ हो गया है, जरूरत है तो उन्हें नए मौके दिए जाने की. भविष्य की समस्याऐं युवाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. उन के राजनीति में प्रवेश की रफ्तार को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि देश के विकास की गति पर उस का असर दिखाई दे.

चुनाव से अलग भी है कैरियर

राजनीति केवल चुनाव लड़ना नहीं है, राजनीति में अब चुनाव से इतर भी कई तरह के अवसर हैं जैसे कैम्पेन मैनेजर, राजनीतिक सलाहकार, कंटेंट राइटर, शोधकर्ता आदि. जिस के बारे में अधिकतर युवा नहीं जानते, इसलिए कैरियर के मौके नहीं तलाशते.

ये जरूरी नहीं कि चुनाव ही लड़ा जाए. नए युवा राजनीति में अपनी अप्रत्यक्ष भागीदारी के बल पर आगे बढ़ सकते हैं और राजनीतिक भविष्य की शुरूआत कर सकते हैं.

मैं अपनी एक सहकर्मी से प्रेम करता हूं, लेकिन वो मैरिड है, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 24 वर्षीय नवयुवक हूं और एक बैंक में अच्छी पोस्ट पर हूं. मुझे अपने  ही बैंक में काम करने वाली एक 23 वर्षीया विधवा लड़की से प्यार हो गया है. उस के पति की मृत्यु अभी 2 साल पहले ही हुई है. उस की और मेरी जाति एक ही है. मेरे मातापिता शादी के लिए तैयार हैं. साथ ही, वह लड़की भी. लेकिन, लड़की के मांबाप मु झे पसंद नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि मैं उसे धोखा दे कर छोड़ जाऊंगा और उस से सिर्फ पैसों के लिए शादी कर रहा हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं.

जवाब

आप के कहेनुसार आप को उस लड़की से प्यार है, यदि ऐसा है तो ऐसे या वैसे आप को उस के परिवार को मनाना ही होगा. आप उन्हें यह स्पष्ट कर दें कि आप खुद भी कमाऊ हैं और अपना और उन की बेटी का खयाल रखने के काबिल हैं. आप सादी सी शादी के लिए कहिए या हो सके तो कोर्ट मैरिज करने का प्रस्ताव रखिए. कुछ लेनदेन के नाम पर कुछ भी न लेने की इच्छा जताइए. आप के निस्वार्थ भाव और उन की बेटी के प्रति प्रेम को देख कर उन्हें मान लेना चाहिए साथ ही आप उस लड़की को भी कहिए कि वह अपने मातापिता को सम झाने की कोशिश करे, उस के कहे बिना तो कुछ नहीं होगा.

खाने के फौरन बाद न करें इन 5 चीजों का सेवन, हो सकता हैं नुकसान      

ज्यादातर लोग खाना खाने के तुरंत बाद सो आ जाते हैं या फिर उन्हें चायकॉफी पीने की आदत होती है. कई बार हम जानेअनजाने में भी खाने के बाद कुछ ऐसी चीजों का सेवन करते हैं जिस से शरीर को फायदा होने के बजाय नुकसान होता है. लिहाजा, इन सब चीजों को नोट कर लें और हमेशा याद रखें कि आप को खाना खाने के बाद किनकिन चीजों का सेवन नहीं करना है.

1 खाने के बाद न पिएं चाय-कॉफी

खाना खाने के तुरंत बाद चाय पीना बिलकुल भी सही नहीं है, क्योंकि इस से हमारी पाचन शक्ति पर असर पड़ता है. डॉक्टरों का मानना है कि खाना खाने के 1 घँटे पहले और 1 घंटे बाद तक चाय या कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि चायकॉफी में मौजूद केमिकल टैनिन आयरन को सोखने की प्रक्रिया में बाधा डालता है और उसे 87 प्रतिशत तक घटा देता है, जिस से पाचन में दिक्कत आ सकती है. साथ ही आप की इस आदत की वजह से आप को अनीमिया हो सकता है, हाथपैर ठंडे रहने की दिक्कत हो सकती है, सिर घूमना और भूख न लगना जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं.

2 खाने के तुरंत बाद न खाएं फल

फलों का सेवन खाली पेट ही अच्छा माना जाता है. लंच, डिनर या फिर ब्रेकफास्ट जैसे हेवी भोजन के बाद फलों का सेवन नहीं करना चाहिए. जब पेट भरा हुआ हो और तब आप फल खाने लगें तो इन फलों को पचाने में पेट को दिक्कत महसूस होती है, जिस से आप को फलों का भरपूर पोषण नहीं मिल पाएगा. लिहाजा, फ्रूट्स का सेवन आप स्नैक्स के तौर पर कर सकते हैं.

3 ठंडा पानी न पिएं

खाना पचाने के लिए पानी पीना बेहद जरूरी है, लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए और ज्यादा ठंडा पानी तो बिलकुल भी नहीं पीना चाहिए. खाने के तुरंत बाद ठंडा पानी पीने से खाना पेट में झुंड या गुच्छे में जम जाता है जिस से डाइजेशन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और खाने को पचाना मुश्किल हो जाता है.

एक्सपर्ट्स की मानें तो हमें खाना खाने के बाद गुनगुना पानी पीना चाहिए और वह भी खाना खाने के 45 मिनट बाद. खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए.

4 धूम्रपान करने से बचें

हम सभी जानते हैं कि सिगरेट पीना सेहत के लिए नुकसानदेह है, लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद स्मोकिंग करना और भी ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि ऐसा करने से इरिटेबल बावल सिंड्रोम नाम की बीमारी हो सकती है, जिस से अल्सर होने का खतरा रहता है. शोध बताते हैं कि यदि आप खाने के तुरंत बाद 1 सिगरेट पीते हैं तो वह आप के शरीर को 10 सिगरेट के बराबर नुकसान पहुंचाएगी. लिहाजा, यदि आप को खाने के बाद सिगरेट पीने की आदत है तो उसे आज ही बदल दें.

5 ऐल्कोहल का भी न करें सेवन

खाना खाने के बाद कभी भी ऐल्कॉहल का सेवन करें, क्योंकि इस से भी डाइजेशन की प्रक्रिया प्रभावित होती है और शरीर के साथ-साथ आंतों को भी बहुत नुकसान होता है. लिहाजा, खाने के तुरंत बाद कभी भी ऐल्कॉहल का सेवन न करें.

खाने के तुरंत बाद नहाने से बचें

आयुर्वेद के साथसाथ मॉर्डन मेडिकल साइंस भी इस बात को मानता है कि खाना खाने के तुरंत बाद नहाने से शरीर का बॉडी टेंपरेचर अचानक बहुत कम हो जाता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन पर असर पड़ता है. ऐसा होने पर जिस खून को डाइजेशन में शरीर की मदद करनी चाहिए वह स्किन का तापमान बनाए रखने के लिए स्किन की तरफ आ जाता है। लिहाजा, खाने के बाद नहाने के प्लान को कैंसिल कर दें.

खाने के तुरंत बाद न सोएं

ऐसा खासकर रात के वक्त होता है.दिनभर की थकान के बाद रात में टेस्टी डिनर खाने के बाद नींद को रोक पाना संभव नहीं होता, लेकिन ये बेहद जरूरी है कि आप इस बात का ध्यान रखें और खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर न जाएं. ऐसा करने से आप को हार्ट बर्न यानी सीने में जलन, खर्राटे आना और स्लीप ऐप्निया की भी दिक्कत हो सकती है. खाने के बाद कुछ देर टहल लें और उस के बाद ही सोने के लिए जाएं

पढ़ें एक से बढ़कर एक मोटिवेशनल कहानी छोटी सी

Top 10 very short Motivational stories in hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट मोटिवेशनल कहानी छोटी सी. तो पढ़िए वो छोटी-छोटी कहानियां. जिन्हें पढ़ने के बाद आपको प्रेरणा तो मिलेगी ही. साथ ही आपके जीवन में सफलता के नए आयाम भी अग्रसर होंगे. दरअसल, कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती है. जहां से बाहर निकलना हमारे लिए असंभव सा हो जाता है. ऐसे में हमे प्रेरणा की अति आवश्यकता पड़ती है और सरिता पत्रिका मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित आर्टिकल व कहानियां इंसान को उनकी ज्यादातर परेशानियों का हल देती है.

Special Inspirational Stories in Hindi : सफलता की वो कहानियां जो बदल सकती हैं आपके जीवन को

1. नारायण बन गया जैंटलमैन

short motivational story in hindi

कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.

पूरी short motivational story in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

2. का से कहूं : सहेलियों की व्यथा की दिल छूती कहानी

प्रेरक कहानी

कहने को तो मैं बाजार से घर आ गई थी पर लग रहा है मेरी खाली देह ही वापस लौटी है, मन तो जैसे वहीं बाजार से मेरी बचपन की सखी सुकन्या के साथ चला गया था. शायद उस का संबल बनने के लिए. आज पूरे 3 वर्ष बाद मिली सुकन्या, होंठों पर वही सदाबहार मुसकान लिए. यही तो उस की विशेषता है, अपनी हर परेशानी, हर तकलीफ को अपनी मुसकराहट में वह इतनी आसानी, इतनी सफाई से छिपा लेती है कि सामने वाले को धोखा हो जाता है कि इस लड़की को किसी तरह का कोई गम है.

पूरी प्रेरक कहानी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

3. एक इंच मुस्कान

short प्रेरक kahaniyan

“अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली. “मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया. “अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली. “मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”

पूरी short प्रेरक kahaniyan पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

4. कशमकश : दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?

short motivational stories

मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा. ‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’

पूरी short story पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

5. राधेश्याम नाई : आखिर क्यों खास था राधेश्याम नाई ?

short motivational stories

‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’ राजेश तो राधेश्याम का गुण गाए जा रहा था और मुझे उस का यह राग जरा भी पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि गगन टायर कंपनी वालों ने मुझे राधेश्याम का परिचय कुछ अलग ही अंदाज से दिया था. गगन टायर का शोरूम राधेश्याम की दुकान के ठीक सामने सड़क पार कर के था. मैं उन के यहां 5 दिनों से बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट बहीखातों का निरीक्षण अपने सहयोगियों के साथ कर रहा था. कंपनी के अधिकारियों ने इस नाई के बारे में कहा था कि यह दिमाग से जरा खिसका हुआ है. अपनी ऊलजलूल हरकतों से यह बाजार का माहौल खराब करता है. चीखचिल्ला कर ड्रामा करता है और टोकने पर पड़ोसियों से लड़ता है.

पूरी short motivational stories पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

6. जूमजूम झूम वाला : लड़कियों की फोटो खींचना कैसे पड़ गया भारी हेमंत और रोहित को ?

hindi motivational story

रोहित ने शान से अपना नया स्मार्टफोन निकाल कर अपने दोस्तों को दिखाया और बोला, ‘‘यह देखो, पूरे 45 हजार रुपए का है.’’ ‘‘पूरे 45 हजार का?’’ रमन की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘आखिर ऐसा क्या खास है इस मोबाइल में?’’ ‘‘6 इंच स्क्रीन, 4 जीबी रैम, 32 जीबी आरओएम, 16 एमपी ड्यूल सिम, 13 मेगापिक्सल कैमरा…’’ रोहित अपने नए फोन की खासीयतें बताने लगा. रोहित के पापा शहर के बड़े व्यापारी थे. रोहित मुंह में सोने का चम्मच ले कर पैदा हुआ था. उस की जेब हमेशा नोटों से भरी रहती थी इसलिए वह खूब ऐश करता था.

पूरी hindi motivational story पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

7. चाहत : एक गृहिणी की ख्वाहिशों की दिल छूती कहानी

प्रेरणादायक कहानियां

‘थक गई हूं मैं घर के काम से. बस, वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर की सारी टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं. अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,’ शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं. एक बार अपनी बोरियतभरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान बनाया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

पूरी प्रेरणादायक कहानियां पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

8. पांच रोटियां, पंद्रह दिन

short प्रेरणादायक कहानी

धनबाद के पास एक कोयले की खान में सैकड़ों मजदूर काम करते थे. मंगल सिंह उन में से एक था. उसे हाल ही में नौकरी पर रखा गया था. उस के पिता भी इसी खान में नौकरी करते थे, लेकिन एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. खान के मालिक ने मंगल सिंह को उस के पिता की जगह पर रख लिया था. मंगल सिंह 18 वर्ष का एक हंसमुख और फुरतीला जवान था. सुबहसुबह नाश्ता कर के वह ठीक समय पर खान के अंदर काम पर चला जाता था. उस की मां उस को रोज एक डब्बे में खाना साथ में दे दिया करती थीं. अपने कठिन परिश्रम औैर नम्र स्वभाव केकारण वह सब का प्यारा बन गया था. बरसात का मौसम था. सप्ताह भर से जोरों की वर्षा हो रही थी. खान के ऊपर चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता था.

पूरी short प्रेरणादायक कहानी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

9. आंधी से बवंडर की ओर : क्या सोनिया अपनी बेटी को मशीनी सिस्टम से निजात दिला पाई ?

short Motivational Stories in Hindi

फन मौल से निकलतेनिकलते, थके स्वर में मैं ने अपनी बेटी अर्पिता से पूछा, ‘‘हो गया न अप्पी, अब तो कुछ नहीं लेना?’’ ‘‘कहां, अभी तो ‘टी शर्ट’ रह गई.’’ ‘‘रह गई? मैं तो सोच रही थी…’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बोली, ‘‘हां, मम्मा, आप को तो लगता है, बस थोडे़ में ही निबट जाए. मेरी सारी टी शर्ट्स आउटडेटेड हैं. कैसे काम चला रही हूं, मैं ही जानती हूं…’’ सुन कर मैं निशब्द रह गई. आज की पीढ़ी कभी संतुष्ट दिखती ही नहीं. एक हमारा जमाना था कि नया कपड़ा शादीब्याह या किसी तीजत्योहार पर ही मिलता था और तब उस की खुशी में जैसे सारा जहां सुंदर लगने लगता.

पूरी short Motivational Stories in Hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

10. पश्चात्ताप की आग

Best Real-life short Motivational Stories

बरसों पहले वह अपने दोनों बेटों रौनक और रौशन व पति नरेश को ले कर भारत से अमेरिका चली गई थी. नरेश पास ही बैठे धीरेधीरे निशा के हाथों को सहला रहे थे. सीट से सिर टिका कर निशा ने आंखें बंद कर लीं. जेहन में बादलों की तरह यह सवाल उमड़घुमड़ रहा था कि आखिर क्यों पलट कर वह वापस भारत जा रही थी. जिस ममत्व, प्यार, अपनेपन को वह महज दिखावा व ढकोसला मानती थी, उन्हीं मानवीय भावनाओं की कद्र अब उसे क्यों महसूस हुई? वह भी तब, जब वह अमेरिका के एक प्रतिष्ठित फर्म में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर थी. साल के लाखों डालर, आलीशान बंगला, चमचमाती कार, स्वतंत्र जिंदगी, यानी जो कुछ वह चाहती थी वह सबकुछ तो उसे मिला हुआ था, फिर यह विरक्ति क्यों? जिस के लिए निशा ससुराल को छोड़ कर आत्मविश्वास और उत्साह से भर कर सात समंदर पार गई थी, वही निशा लुटेपिटे कदमों से मन के किसी कोने में पछतावे का भाव लिए अपने देश लौट रही थी.

पूरी short story पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें