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जब गला हो खराब तो अपनाएं ये 4 टिप्स

गले में खरास होना एक आम समस्या है, ये समस्या  किसी को भी हो सकती है. पर इससे राहत पाने के लिए आप कुछ आसान टिप्स अपना सकते हैं.

  1. नमक का पानी

गला खराब होने परल आप इस उपाय को आजमा सकते हैं. इससे गले में काफी आराम मिलता है. नमक गले से कफ हटाता है और अगर इन्फेक्शन से सूजन आ जाती है तो उसमें भी राहत मिलती है. गुनगुने पानी में एक चुटकी नमक डाल कर आप दिन में दो से तीन बार गरारा कर सकते हैं.

2. इंफेक्शन

मौसम बदलने के साथ बैक्टीरिया, वायरस का हमला होता है तो सबसे पहले शुरुआत गले की खराश से होती है. गले की खराश काफी मुश्किल भरी हो सकती है और दिक्कत बढ़ने पर आप खाना तक नहीं खा पाते. इस समस्या से राहत पाने के लिए आप यह घरेलू उपाय आजमा सकते हैं.

3. शहद

शहद में ऐटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं इससे गले की हीलिंग तेजी से होती है. गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पी लें.

4.  अदरक

अदरक के एंटीबैक्टीरियल गुण गले के इंफेक्शन और दर्द से राहत देते हैं. एक कप पानी में अदरक डाल कर उबालें और हल्का गुनगुना करके इसमें शहद मिलाएं और दो बार पिएं.

बदला : मंजूषा को क्यों हो रही थी कॉलेज जाने की जल्दी ?

चमन, दौड़ता हुआ मंजूषा के पास पहुंचा. चमन को हांफते देख मंजूषा एकदम सकते में आ गई.

‘‘अरे…अरे, क्या हुआ चमन? किसी से झगड़ा हो गया क्या? भंवर भैया कहां हैं? जल्दी बताओ. तुम दौड़ते हुए क्यों आए हो?’’ मंजूषा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘ब…बतलाता… हूं दीदी. पहले सांस तो ले लेने दो,’’ चमन एक पल को रुका. फिर गहरी सांस लेता हुआ बोला, ‘‘मंजूषा दी, मेरी बात ध्यान से सुनो…’’ चमन फुसफुसा कर मंजूषा के कान में कुछ कहने लगा.

 पूरी बात सुन कर मंजूषा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई, ‘‘उस की यह मजाल…?’’

‘‘आप कुछ करें दीदी वरना बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा.’’

मंजूषा ने कुछ सोचते हुए चमन से कहा, ‘‘तुम जाओ, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘हां दीदी, कुछ करो, वरना गोपाल और भंवर आपस में जरूर टकरा जाएंगे,’’ इतना कह कर चमन चला गया.

मंजूषा ने अपनी किताबें लीं और झटपट कालेज जाने के लिए घर से निकल पड़ी. मंजूषा जल्दीजल्दी कदम बढ़ाती हुई सुरसी के घर की ओर चली जा रही थी. ‘कहीं सुरसी कालेज के लिए घर से निकल न पड़ी हो,’ सोच कर मंजूषा ऊपर से नीचे तक कांप जाती थी. उस के कदम पहले से और तेज हो गए. सुरसी के घर पर पहुंचते ही उस ने घंटी बजाई.

‘‘आती हूं, आती हूं,’’ और उसी समय दरवाजा खुल गया. सामने सुरसी की मां को खड़ी देख कर मंजूषा का दिल एकदम ‘धक्क’ रह गया. फिर संयत हो कर बोली, ‘‘नमस्ते आंटी, सुरसी कालेज चली गई क्या?’’

‘‘अभी नहीं गई. जाने ही वाली है बस, नाश्ता कर रही है. आओ, अंदर आओ,’’ सुरसी की मां ने कहा. यह सुन कर मंजूषा को बड़ी राहत महसूस हुई.

‘‘कौन है मां?’’ पूछती हुई सुरसी की निगाह मंजूषा पर पड़ी तो वह खुशी से चहक पड़ी, ‘‘अरे, तुम?’’

‘‘हां सुरसी… मैं ने सोचा आज तुम्हारे साथ चलूं. रजनी  आज मुझ से पहले ही कालेज निकल गई.’’

‘‘अच्छा, बस थोड़ी देर रुको, अभी चलती हूं. मुझे भी आज जल्दी पहुंचना है. आज भौतिकी का प्रैक्टिकल है,’’ सुरसी ने कहा और अपनी जरूरी चीजें उठाने में लग गई.

उधर, बाजार के चौैराहे के पास ही भंवर अपने दोस्तों के साथ बड़ी बेसब्री से सुरसी का इंतजार कर रहा था. उस ने चंदन से कहा, ‘‘मैं गोपाल की बहन को आज रंग व गुलाल से रंग कर ही रहूंगा, चाहे जो भी हो जाए. मैं उसे बताना चाहता हूं कि भंवर से दुश्मनी लेना कितना महंगा पड़ता है. बदला लेना है मुझे उस से.’’

‘‘हां भंवर,’’ चंदन बोला, ‘‘वह अपनेआप को बहुत होशियार समझता है. उसे सबक सिखाना ही चाहिए.’’

‘‘उस ने मेरी बहन को स्कूल में रंगा था तो मैं उस की बहन को बीच चौराहे पर रंग दूंगा,’’ भंवर ने उत्तेजित होते हुए कहा.

‘‘भंवर,’’ दीपक बोला, ‘‘अभी तक चमन का पता नहीं है. उसे गुलाबी रंग लेने को भेजा था. अभी तक नहीं आया.’’

‘‘अरे, वह तो एकदम मूर्ख है. तू खुद ही क्यों नहीं चला गया रंग लेने?’’ चंदन ने कहा.

‘‘मैं कैसे जाता? वह खुद जाने के लिए जिद कर रहा था.’’

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ भंवर झल्ला कर बोला, ‘‘मैं उसे बाद में देख लूंगा. अब तुम सब तैयार हो जाओ. हमारे पास जितना गुलाल है, उसी से होली खेल लेंगे.’’

‘‘अरे, कैसे खेल लोगे दोस्तो?’’ चमन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘लो… ले आया मैं गुलाबी रंग और गुलाल,’’ कहते हुए चमन ने पु़िड़या भंवर की ओर बढ़ा दी.

‘‘अब मजा आएगा, जब सुरसी के मुंह पर, दांतों पर, बालों में, गुलाबी रंग चमकेगा… हा…हा…’’ खुशी से झूमता हुआ भंवर बोला.

उसी समय दीपक उछलता हुआ बोला, ‘‘भंवर, वह देख सुरसी आ रही है. उस के साथ मंजूषा दीदी भी हैं…’’

भंवर एकदम सकपका गया. फिर संभलता हुआ बुदबुदाया, ‘‘मंजूषा दीदी, सुरसी के साथ?’’

‘‘अब क्या होगा?’’ चंदन फुसफुसा कर बोला.

भंवर कुछ कहता, तब तक सुरसी और मंजूषा बिलकुल उस के पास पहुंच गई थीं. भंवर तिलमिला उठा. उस ने रंग से सने अपने हाथ चुपचाप पीछे कर लिए. दीपक, चंदन और लखन पहले ही मंजूषा को सुरसी के साथ देख कर भंवर से कुछ दूर हट गए थे. चमन मन ही मन बेहद खुश हो रहा था. उस ने भंवर के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘यार, मंजूषा दीदी ने बचा लिया सुरसी को, लेकिन जो भी होता है, अच्छा ही होता है.’’ भंवर ने चमन को खा जाने वाली नजरों से देखा.

दोनों सहेलियां आगे निकल गईं. उन के काफी दूर निकल जाने के बाद भंवर ने तमतमा कर गुस्से में दोनों मुट्ठियों में लिया हुआ रंग जमीन पर बिखेर दिया और खीज कर रह गया. शाम को भंवर भन्नाया हुआ घर पहुंचा. मंजूषा पहले ही घर पहुंच चुकी थी. भंवर ने दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजा मंजूषा ने ही खोला. सामने मंजूषा को देख वह चीख कर बोला, ‘‘आज बचा लिया अपनी सहेली को? आखिर इस तरह वह कब तक बच पाएगी?’’

‘‘क्या मतलब?’’ मंजूषा बोली.

 ‘‘मतलब साफ है. आज मैं सुरसी को बीच चौराहे पर रंगना चाहता था.’’

‘‘क्यों, आखिर क्यों रंगना चाहते थे?’’ मंजूषा ने पूछा.

‘‘इसलिए कि उस के भाई गोपाल ने पिछले साल तुम्हें रंगा था,’’ भंवर चिल्ला कर बोला.

‘‘वाह भंवर, खूब बदला लेने की ठानी थी.’’

‘‘ठानी थी नहीं, ठानी है. आज नहीं तो कल, मैं सुरसी को रंग कर ही रहूंगा.’’

‘‘लेकिन यह मत भूलो कि जब गोपाल ने मुझे रंगा था तब वह होली स्कूल में बच्चों की स्नेह भरी होली थी. हम सभी ने खुशी से एकदूसरे को रंगा था न कि जबदरस्ती, लेकिन तुम और तुम्हारी सड़कछाप टोली…’’

‘‘मंजूषा…’’ भंवर जोर से चीखा.

उसी समय बगल वाले कमरे से परदे की आड़ में खड़ी सुरसी सामने आ गई. उसे देख भंवर हक्काबक्का रह गया. दोनों एकदूसरे को देखते ही रह गए. सुरसी बोली, ‘‘तो यह बात थी. मंजूषा इसीलिए मेरे साथ कालेज गई थी?’’ फिर सुरसी भंवर की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘लो… मैं खड़ी हूं. जितना चाहो, उतना रंग लो. ले लो अपना बदला.’’ भंवर से कुछ बोलते नहीं बना. उस की जबान में मानो ताला पड़ गया. उस ने मंजूषा की ओर देखा. मंजूषा ने कहा, ‘‘हां, रंग डालोे. होली चौराहे की नहीं, चौखट के अंदर वाली अच्छी होती है.’’

भंवर ने एक नजर सुरसी पर डाली. फिर जेब में रखी गुलाल की थैली से एक चुटकी गुलाल निकाल कर सुरसी के माथे पर तिलक लगा दिया और झटके से मुड़ कर बाहर जाने लगा. सुरसी ने आवाज दी, ‘‘रुको भैया,’’ और वह भंवर के सामने जा पहुंची, बोली, ‘‘इस तरह नहीं, आप ने तो तिलक लगा दिया अब मैं भी तो लगाऊंगी,’’ कहते हुए सुरसी ने भंवर के हाथ से गुलाल की थैली ले कर भरपूर गुलाल से भंवर के गालों व बालों को रंग दिया. 

दहेज : अलका के घरवाले क्यों परेशान थें ?

डाक्टर के केबिन से बाहर निकल कर राहुल सिर पकड़ कर बैठ गया. उस की मम्मी आईं और उस से पूछने लगीं, ‘‘डाक्टर ने ऐसा क्या कह दिया कि तू अपना सिर पकड़ कर बैठ गया?’’

राहुल बोला, ‘‘मम्मी, अलका डाक्टर बन गई है.’’

‘‘कौन अलका?’’ मम्मी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘वही अलका, जिस से दहेज में 5 लाख रुपए न मिलने की वजह से हम फेरों के समय बरात वापस ले आए थे.’’

‘‘पर बेटा, शादी के लिए तो उस ने ही मना किया था,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘और क्या करती वह? ताऊजी और पापा ने उस समय उस के पापा को इतना जलील किया था कि उस ने शादी करने से मना कर दिया,’’ राहुल बोला.

‘‘पर बेटा, तू इतना परेशान क्यों हो गया है?’’

‘‘मम्मी, मैं ने तो बस यही कहा था, ‘डाक्टर, हमें तो अलका की हाय खा गई. शादी को 12-13 साल हो गए, पर औलाद का मुंह देखने को तरस गए. हर बार किसी न किसी वजह से पेट गिर जाता है. इस बार खुश थे कि अब हम औलाद का मुंह देख लेंगे, पर यह समस्या आ गई.’

‘‘हमारी डाक्टर ने अलका का नाम लिया और कहा कि अब वे ही कुछ कर सकती हैं.’’

‘‘मम्मी, अलका रिपोर्ट देखतेदेखते बोली, ‘जिस लड़की की बरात फेरों के समय वापस लौट जाए, वह कभी दुआ तो नहीं देगी.’

‘‘फिर उस ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा. उस की शक्ल देख कर मेरी बोलती बंद हो गई.

‘‘आगे और कोई बात होती कि तभी नर्स ने आ कर तैयारी शुरू कर दी. अलका उठ कर चलने लगी, फिर मेरी पीठ को सहलाते हुए बोली, ‘डरो मत, मैं डाक्टर पहले हूं, अलका बाद में.’’’

पर राहुल की मम्मी कुछ और ही सोच रही थीं, इसलिए उन्होंने बेटे की बात पर कोई गौर नहीं किया.

थोड़ी देर बाद मम्मी ने पूछा, ‘‘क्या अलका शादीशुदा है?’’

राहुल बोला, ‘‘नहीं मम्मी. लेकिन आप यह क्या पूछ रही हैं?’’

‘‘बेटा सोच, उस ने अभी तक शादी क्यों नहीं की? उस से कह दे कि बच्चे को बचाने की कोशिश करे. बहू न बचे, तो कोई बात नहीं.’’

राहुल चीखा, ‘‘आप कितनी बेरहम हैं. मैं वही गलती दोबारा नहीं करूंगा. एक बार ताऊजी और पापा के खिलाफ नहीं बोल कर मुझे अलका जैसी लड़की से हाथ धोना पड़ा था. मुझे अपनी बीवी और बच्चा दोनों चाहिए.’’

उधर डाक्टर अलका  के सामने लेटी कविता जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वह उस शख्स की बीवी थी, जो अलका के साथ होने वाले फेरों पर अपनी बरात वापस ले गया था.

डाक्टर अलका के सामने उस दिन का एकएक सीन घूम गया, जिस ने उन की जिंदगी बदल दी थी.

राहुल और अलका मंडप के नीचे बैठे हुए थे कि तभी राहुल के पापा की आवाज गूंजी थी, ‘रुक जाओ…’

फिर वे अलका के पापा से बोले थे, ‘5 लाख रुपए का इंतजाम और करो. अब फेरे तभी होंगे, जब आप 5 लाख रुपए का इंतजाम कर लोगे.’

अलका और उस के परिवार वाले सभी चौंक कर रह गए थे. अलका के पापा और चाचा दोनों राहुल के पापा के सामने गिड़गिड़ा रहे थे, पर उन का एक ही राग था कि 5 लाख रुपए का इंतजाम करो, नहीं तो बरात वापस ले जाएंगे.

इसी बीच राहुल के ताऊजी बोले थे, ‘अरे समधीजी, आप के लिए गर्व की बात होनी चाहिए कि आप की 12वीं पास लड़की को सरकारी नौकरी वाला लड़का मिल रहा है… ऊपर से यह सांवली भी है. आप 5 लाख रुपए का इंतजाम कर लें, फिर सारी कमियां छिप जाएंगी.’

फिर पापा राहुल से बोले थे, ‘उठ बेटा, हम वापस चलते हैं.’

बहुत देर से चुपचाप सुन रही अलका उठी और दहाड़ी, ‘अरे, यह क्या उठेगा, मैं ही उठ जाती हूं.

‘मैं अब यह शादी नहीं करूंगी. आप शौक से बरात ले जाएं. लेकिन मेरे पापा का जो अब तक खर्च हुआ है, सब दे कर जाएं.’

फिर अलका अपने चाचा से बोली थी, ‘चाचाजी, आप पुलिस को बुलाइए.’

अब तक जो शेर की तरह दहाड़ रहे थे, वे भीगी बिल्ली बन गए थे. वे अलका पर शादी के लिए दबाव डालने लगे थे, पर अलका ने शादी करने से साफ मना कर दिया और बरात लौट गई थी. कमरे में आ कर अलका रोने लगी थी. उस की बूआ पास आ गई थीं. वह उन से लिपट कर रोने लगी और बोली थी, ‘बूआ, मैं और पढ़ना चाहती हूं.’

बूआ ने अपने भाई से कहा था, ‘भैया, मैं ने पहले ही कहा था कि अभी अलका की उम्र ही क्या हुई है… पर आप को तो बस नौकरीपेशा लड़के का लालच आ गया. देख लिया नतीजा…

‘भैया, मेरे कोई बच्चा नहीं है, इसलिए अलका की जिम्मेदारी मुझे सौंप दो. इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगी. मैं इसे आगे पढ़ाऊंगी.’

इस के बाद बूआ अलका को अपने साथ ले गई थीं. उस समय वह 12वीं जमात विज्ञान से कर रही थी, तभी पीएमटी का इश्तिहार आया था. अलका ने पीएमटी का इम्तिहान देने की इच्छा जाहिर की, तो उस की बूआ ने उस की इच्छा पूरी की.

अलका ने बहुत मेहनत की. अब उस का एक ही मकसद था कि कुछ कर के दिखाना है. उस की मेहनत रंग लाई और उस का पीएमटी में चयन हो गया. अलका को पता था कि बूआ भी माली रूप से कमजोर थीं, लेकिन बूआ ने किसी तरह उसे डाक्टरी पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था. अलका को बाद में पता चला था कि उस की बूआ ने उस के दाखिले के लिए अपने कुछ जेवर बेचे थे, इसलिए उस ने अपने सहपाठियों से कहा कि उस के लिए कुछ ट्यूशन बता दें, जिस से वह अपनी बूआ को कुछ राहत दे सके.

अलका के सहपाठी उस के काम आए. उन्हीं में डाक्टर विश्वास भी थे. उन्होंने कुछ ट्यूशन बता दिए. बस, यहीं से अलका की निकटता डाक्टर विश्वास से बढ़ने लगी और उस हद तक पहुंच गई, जहां दोनों एकदूसरे के बिना नहीं रह पा रहे थे. 3 साल बाद अलका एक नर्सिंगहोम की मालकिन थी. इस नर्सिंगहोम की मालकिन बनने में भी डाक्टर विश्वास ने ही मदद की थी  अब अलका इतनी काबिल डाक्टर हो गई थी कि बिगड़े केस भी ठीक कर देती थी. कविता का केस भी तभी अलका के पास आया, जब दूसरे डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे.

डाक्टर अलका के लिए यह सब से मुश्किल केस था, क्योंकि अगर वह अपने काम में नाकाम हुई तो लोग यही कहेंगे कि अलका ने अपना बदला ले लिया. उस का कैरियर भी चौपट हो जाएगा, जबकि उस को पता था कि उस के सामने लेटी औरत का कोई कुसूर नहीं था. अलका को बारबार पसीना आ रहा था. उस की ऐसी हालत देख कर नर्स बोली, ‘‘डाक्टर क्या हुआ? आप अपनेआप को संभालो.’’

अलका बोली, ‘‘डाक्टर विश्वास को फोन लगाओ.’’

थोड़ी देर बाद जब नर्स ने कहा कि डाक्टर विश्वास कुछ ही देर में पहुंचने वाले हैं, तब जैसे अलका को हिम्मत मिली. अब उस के लिए कविता एक आम मरीज थी. 2 घंटे बाद जब बच्चे के रोने की आवाज गूंजी, तब सब खुशी से उछल पड़े. बाकी काम अपने सहायकों पर छोड़ कर डाक्टर अलका डाक्टर विश्वास के साथ बाहर निकल गई. कविता 3 दिन अस्पताल में रही. राहुल और अलका की मुलाकात नहीं हुई या राहुल ही खुद अलका से कन्नी काट लेता था.

3 महीने बीत गए थे. अलका अस्पताल जाने की तैयारी कर रही थी कि तभी एक आवाज ने उसे चौंकाया. उस ने आवाज की तरफ देखा और बोली, ‘‘अरे कविताजी, आप?’’ अपने बच्चे को डाक्टर अलका की गोद में सौंपते हुए कविता बोली, ‘‘मुझे सब पता चल गया है, जो इन्होंने आप के साथ किया था.’’

‘‘मैं तो अब सबकुछ भूल गई हूं, क्योंकि आज मैं जिस मुकाम पर खड़ी हूं, तब मैं सोचती हूं कि अगर उस समय मेरी शादी हो गई होती, तब मैं इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती.’’

‘‘पर इन्होंने जो किया, वह गलत किया.’’

‘‘हां, मुझे भी उस समय बुरा लगा था कि राहुल ने अपने पापा का विरोध नहीं किया था. तब मुझे लगा कि अगर मेरी शादी राहुल के साथ हो जाती, तो हो सकता है कि बाद में भी दहेज ही मेरी मौत की वजह बन जाए, इसलिए मैं ने शादी के लिए मना कर दिया.’’

फिर अलका ने कविता से पूछा, ‘‘क्या अब भी राहुल ऐसे ही हैं?’’

‘‘नहीं, अब वे बदल गए हैं. मुझे आप के अस्पताल की नर्स ने बताया कि उस दिन भी इन की मम्मी ने दबाव डाला था कि डाक्टर से कह दे कि अगर बचाने की बात हो, तो बहू को नहीं, बल्कि बच्चे को बचा ले. तब इन्होंने मम्मी को डांट दिया था.

‘‘इन्होंने अपनी मां से कहा था कि एक बार पापा की बात का विरोध न कर के अलका जैसी लड़की को खो बैठा हूं, पर वह गलती अब दोबारा नहीं करूंगा.

‘‘तब मुझे यह पता नहीं था कि वह लड़की आप हैं.’’

बात को मोड़ देते हुए अलका ने पूछा, ‘‘इस बच्चे का क्या नाम रखा?’’

‘‘विश्वास,’’ कविता बोली.

तभी डाक्टर विश्वास वहां आए. अपना नाम सुन कर वे बोले, ‘‘मेरा नाम क्यों लिया जा रहा है?’’

कविता ने बताया, ‘‘हम ने अपने बच्चे का नाम आप के नाम पर रखा है.’’

डाक्टर विश्वास बोले, ‘‘अरे, विश्वास नाम मत रखो, वरना मेरी तरह कुंआरा ही रह जाएगा.’’

‘‘देखो, कैसे ताना मार रहे हैं,’’ अलका बोली, ‘‘आज से पहले कभी इन्होंने प्रपोज नहीं किया? और आज प्रपोज किया है, तो ताना भी मार रहे हैं. अब मुझे क्या सपना आया था कि आप से केवल दोस्ती नहीं है, कुछ और भी है.’’

डाक्टर विश्वास के बोलने से पहले ही कविता बोली, ‘‘बहुत खूब. दोनों ने प्रपोज भी किया और ताना भी मारा. अब शादी की तारीख भी तय कर लो.’’

‘शादी की तारीख तो हमारे बड़े तय करेंगे,’ वे दोनों एकसाथ बोले.

कुछ दिन बाद अलका और विश्वास की शादी की तारीख तय हो गई. राहुल और कविता उन के खास मेहमान थे.

तीसरी कौन : दिशा में क्यों हो रहे थे इतने बदलाव ?

पलंग के सामने वाली खिड़की से बारिश में भीगी ठंडी हवाओं ने दिशा को पैर चादर में करने को मजबूर कर दिया. वह पत्रिका में एक कहानी पढ़ रही थी. इस सुहावने मौसम में बिस्तर में दुबक कर कहानी का आनंद उठाना चाह रही थी, पर खिड़की से आती ठंडी हवा के कारण चादर से मुंह ढक कर लेट गई. मन ही मन कहानी के रस में डूबनेउतराने लगी…

तभी कमरे में किसी की आहट ने उस का ध्यान भंग कर दिया. चूडि़यों की खनक से वह समझ गई कि ये अपरा दीदी हैं. वह मन ही मन मुसकराई कि वे मुझे गोलू समझेंगी. उसी के बिस्तर पर जो लेटी हूं. मगर अपरा अपने कमरे की साफसफाई में व्यस्त हो गईं. यह एक बड़ा हौल था, जिस के एक हिस्से में अपरा ने अपना बैड व दूसरे सिरे पर गोलू का बैड लगा रखा है. बीच में सोफे डाल कर टीवी देखने की व्यवस्था कर रखी है.

‘‘लाओ, यह कपड़ा मुझे दो. मैं तुम से बेहतर ड्रैसिंग टेबल चमका दूंगा… तुम इस गुलाब को अपने बालों में सजा कर दिखाओ.’’

‘‘यह तो रोहित की आवाज है,’’ दिशा बुदबुदाई. एक क्षण तो उसे लगा कि दोनों मियांबीवी के वार्त्तालाप के बीच कूद पड़े. फिर दूसरे ही क्षण जैसा चल रहा है वैसा चलने दो, सोच चुपचाप पड़ी रही. उन का वार्त्तालाप उस के कान गूंजने लगा…

‘‘अरे, आप रहने दो मैं कर लूंगी.’’

‘‘फिक्र न करो. मुझे अपने काम की कीमत वसूलनी भी आती है.’’

‘‘आप जाइए न यहां से… कहीं दिन में ही न शुरू हो जाइएगा.’’

‘‘अरे मान भी जाओ… यह रोमांटिक बारिश देख रही हो.’’

दिशा के कान बंद हो चुके थे और आंसू आंखों से निकल कर कनपटियों को जलाने लगे थे. ये रोहित कब से इतने रोमांटिक हो गए? चूडि़यों की खनखन और एक उन्मत्त प्रेमी की सांसें मानो उस के चारों ओर भंवर सी मंडराने लगी थीं. अब उस के अंदर हिलनेडुलने की भी शक्ति शेष न रही थी. कमरे में आया तूफान भले ही थम गया हो, मगर दिशा की गृहस्थी की जड़ों को बुरी तरह हिला गया. किसी तरह अपनेआप को संभाला और दरवाजे की ओर बढ़ गई. जातेजाते एक नजर उस बैड पर डालना न भूली जिस पर अपरा और रोहित कंबल के अंदर एकदूसरे को बांहों में भरे थे. अपने कमरे में आ कर दिशा ने एक नजर चारों तरफ दौड़ाई… क्या अंतर है इस बैडरूम और अपरा दीदी के बैडरूम में? जो रोहित इस कमरे में तो शांत और गंभीर बने रहते हैं वे उस कमरे में इतने रोमांटिक हो जाते हैं? आज भले ही उस के वैवाहिक जीवन के 15 वर्ष गुजर गए हों. मगर उस ने रोहित का यह रूप कभी नहीं देखा. आईने के सम्मुख दिशा एक बार फिर से अपने चेहरे को जांचने को विवश हो गई थी.

रोहित और दिशा के विवाह के 10 वर्ष बीत जाने पर भी जब उन को संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो अपनी शारीरिक कमी को स्वीकारते हुए दिशा ने खुद ही रोहित को पुनर्विवाह के लिए राजी कर लिया और अपने ताऊजी की बेटी, जो 35 वर्ष की दहलीज पर भी कुंआरी थी के साथ करवा दिया. अपरा भले ही दिशा से 6-7 वर्ष बड़ी थी, मगर विवाह के विषय में पीछे रह गई थी. शुरूशुरू के रिश्तों में अपरा मीनमेख ही निकालती रही. 30 पार करतेकरते रिश्ते आने बंद हो गए. फिर दुहाजू रिश्ते आने लगे, जिन के लिए वह साफ मना कर देती. मगर दिशा का लाया प्रस्ताव उस ने काफी नानुकर के बाद स्वीकार कर लिया. तीनों जानते थे कि यह दूसरा विवाह गैरकानूनी है. ज्यादातर मामलों में हर जगह पत्नी का नाम दिशा ही लिखा जाता चाहे मौजूद अपरा हो. कुछ जुगाड़ कर के अपरा ने 2-2 आधार कार्ड और पैन कार्ड बनवा लिए थे. एक में उस का फोटो पर नाम दिशा था और दूसरे में फोटो व नाम भी उसी के. तीनों जानते थे कि कभी कुछ गड़बड़ हो सकती है पर उन्हें आज की पड़ी है.

फिर साल भर में गोलू भी गोद में आ गया तो सभी कहने लगे कि देखा अपरा का गठजोड़ तो यहां का था तो पहले कैसे विवाह हो जाता. दिशा तो पहले ही इस स्थिति को कुदरत का लेखा मान कर स्वीकार कर चुकी थी. अब तो गोलू भी 4 वर्ष का हो गया है. तो फिर आज ही उसे क्यों लग रहा है कि वही गलत थी. उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. उस ने कभी अपने और अपरा दीदी के बीच रोहित के समय को ले कर न कोई विवाद किया, न ही शारीरिक संबंधों को कोई तवज्जो दी. लेकिन आज रोहित का उन्मुक्त व्यवहार उसे कचोट गया. आज लग रहा है वह ठगी गई है अपनों के ही हाथों. वह कभी रोहित से पूछती कि कैसी लग रही हूं तो सुनने को मिलता ठीक. खाना कैसा बना है? ठीक. यह सामान कैसा लगा? ठीक है. इन छोटेछोटे वाक्यों से रोहित की बात समाप्त हो जाती. न कभी कोई उपहार, न कोई सरप्राइज और न ही कोई हंसीमजाक. वह तो रोहित के इसी धीरगंभीर रूप से परिचित थी. फिर आज का उन्मुक्त प्रेमी. यह नया मुखौटा… ये सब क्या है? वह रातदिन अपरा दीदी, अपरा दीदी कहते नहीं थकती. पूरे घर की जिम्मेदारी अपरा को सौंप गोलू की मां बन कर ही खुश थी. अगर कोई नया घर में आता तो उसे ही दूसरे विवाह का समझता, एक तो कम उम्र दूसरा कार्यों को जिस निपुणता से अपरा संभालती उस का मुकाबला तो वह कर ही नहीं सकती थी. लोग कहते दोनों बहनें कितने प्रेम से रहती हैं. रहती भी कैसे नहीं, दिशा ने अपने सारे अधिकार जो खुशीखुशी अपरा को सौंप दिए थे. घर की चाबियों से ले कर रोहित तक. पर आज उसे इतना कष्ट क्यों हो रहा है?

बारबार एक ही खयाल आ रहा है कि वह एक बच्चा गोद भी ले सकती थी. मां ने कितना समझाया था कि एक दिन तू जरूर पछताएगी दिशा, पुनर्विवाह का चक्कर छोड़ एक बच्चा गोद ले ले अनाथाश्रम से… उसे घर मिल जाएगा और तुझे संतान… जब रोहित को कोई एतराज ही नहीं है तो फिर तू यह जिद क्यों कर रहीहै? सौत तो मिट्टी की भी बुरी लगती है. इस पर दिशा कहती कि नहीं मां रोहित मेरी हर बात मानते हैं, कमी मुझ में है, तो मैं रोहित को उस की संतान से वंचित क्यों रखूं? आजलगता है कि क्या फर्क पड़ जाता यदि गोलू की जगह गोद लिया बच्चा होता तो? घर में सिर्फ 3 प्राणी ही होते और रोहित उस के पहलू में सोया करते. आज उसे अपरा से ज्यादा रोहित अपराधी लग रहे थे. वे हमेशा उस की उपेक्षा करते रहे. लोग ठीक ही कहते हैं कि पहली सेवा करने के लिए और दूसरी मेवा खाने के लिए होती है. वह हमेशा 2 मीठे बोल सुनने को तरसती रही. फिर इसे रोहित की आदत मान कर चुप्पी साध ली, पर आज यह क्या था? ये उच्छृंखल व्यवहार, ये मीठेमीठे बोल, वह गुलाब का फूल.

अपरा दीदी मुझे जो इतना मान देती हैं वह सब नाटक है. मेरे सामने दोनों आपस में ज्यादा बात भी नहीं करते और अपने कमरे में बिछुड़े प्रेमीप्रेमिका या फिर कोई नयानवेला जोड़ा? दिशा की आंखें रोतेरोते सूजने लगी थीं. अपरा दीदी, अपरा दीदी कहतेकहते उस की जबान न थकती थी… वही अपरा आज उस की अपराधी बन सामने है. उस से उम्र में तजरबे में हर लिहाज से बड़ी थीं. उसे समझा सकती थीं कि यह दूसरे विवाह का चक्कर छोड़ एक बच्चा गोद ले ले. मेरा विवाह तो 19 वर्ष की कच्ची उम्र में ही हो गया था.

रोहित 10 साल बड़े थे. एक परिपक्व पुरुष… उन का मेरा क्या जोड़? न तो एकजैसे विचार न ही आचार… सास भी विवाह के साल भर में साथ छोड़ गईं. अपनी कच्ची गृहस्थी में जैसा उचित लगा वैसा करती गई. शायद ज्यादा भावुकता भी उचित नहीं होती. अपनी बेरंग जिंदगी के लिए किसे दोषी ठहराए? कौन है उस का अपराधी. रोहित, अपरा या वह खुद?

क्राकउ युनिवर्सिटी में अमिताभ बच्चन पढ़ चुके हैं अपने पिता की कविताएं

अभिनेता अमिताभ बच्चन सिर्फ नाम नहीं बल्कि अपनेआप में एक इतिहास हैं. उन्हें अभिनय करते हुए 54 साल हो गए. बौलीवुड में सर्वाधिक व्यस्त रहते हुए भी अमिताभ बच्चन ने हमेशा अपने मातापिता की सेवा की. आज उन के मातापिता इस संसार में नहीं हैं, मगर उन के दिलोंदिमाग में हमेशा वह छाए रहते हैं.

अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन कोई आम इंसान नहीं थे. पद्मभूषण से सम्मानित हरिवंशराय बच्चन ख्याति प्राप्त लेखक व कवि थे. वे हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक थे. उन की सब से प्रसिद्ध कृति मधुशाला है, जिसे उन्होंने 1935 में लिखा था. इस के अलावा तेरा हार, मधुशाला, मधुकलश, आत्म परिचय, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, दो चट्टानें, बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज, उभरते प्रतिमानों के रूप, जाल समेटा जैसी कुछ चर्चित कविता संग्रह हैं.

1985 में उन का कविता संग्रह ‘नई से नई – पुरानी से पुरानी’ बाजार में आया था. तो वहीं उन्होंने ‘क्या भुलुं क्या याद करूं, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’, दशद्वार से सोपान तक, प्रवासी की डायरी, उमर खय्याम की रुबाइयां, सहित कई किताबें भी लिखीं. 18 जनवरी 2003 को सांस की बीमारी की वजह से उन का मुम्बई में निधन हुआ था.

अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन का साहित्य जगत में अमूल्य योगदान रहा है. उन की रचनाएं लोग पढ़ना चाहते हैं तो वहीं अमिताभी बच्चन भी अपने पिता की यादों को जीवंत रखने में कोई कसर नहीं रखते. तभी तो हम ने अभिनेता अमिताभ बच्चन को यदाकदा समारोहों में अपने पिता की कविताएं सुनाते हुए देखा व सुना है.

एक बार जब हमारी बातचीत अमिताभ बच्चन से हो रही थी, तब हम ने सिनेमा से इतर बात करते हुए उन से जानना चाहा था कि वह आपने अपने पिता के साहित्यिक कार्य को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए किस तरह प्रयत्नशील हैं.

तब अमिताभ बच्चन ने कहा था, ‘‘मैं ने सोचा कि अपने बाबूजी की कविताओं को अपनी आवाज में रिकौर्ड कर लोगों तक पहुंचाऊ. और मैं ने कुछ किया भी है. हम ने कुछ रचनाओं को छापने के बारे में भी सोचा है. बीच में हम ने कुछ ऐसे कार्यक्रम किया, जहां हम ने बाबूजी की कविताओं का पाठ किया. इस तरह के कार्यक्रम मैं ने ना सिर्फ भारत देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी किए हैं. न्यूयौर्क, पेरिस, लंदन,पोलैंड.पोलैंड में एक बहुत जाग्रत युनिवर्सिटी है क्राकउ.

“क्राकउ अलग वजहों से चर्चित है. यहाॅं ज्यूइश और नाजी के बीच टकराव हुआ था. यहां हिंदी विभाग है. बहुत अच्छी हिंदी पढ़ाते हैं. बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं. इस युनिवर्सिटी में बाबूजी के नाम पर एक चेअर भी है. यह बड़ी बात है तो इस युनिविर्सिटी में भी हम बाबूजी की कविताओ का पाठ कर चुके हैं. इस के अलावा मुंबई के विद्याभवन सभाग्रह में जब बाबूजी की शताब्दी थी, तब भी कार्यक्रम किया था. भोपाल,दिल्ली में भी किया. धीरेधीरे हम इस तरह के कार्यक्रम दूसरे शहरों में भी करना चाहते हैं.

“मधुषाला को हम ने संगीतबद्ध किया है और अपनी सत्तरवीं वर्षगांठ पर जिन्हे हम ने निमंत्रित किया था, उन के स्वागत में हम ने मधुशाला का संगीतमय पाठ किया था. उस वक्त बंगलौर की रहने वाली मयूरी का अपना नृत्य ग्रुप है, जिस ने मधुशाला पर बहुत सुंदर नृत्य में रूपांतरण किया था. मैं ने गाया था और आदेश श्रीवास्तव ने संगीत से संवारा था. हम अपने बाबूजी की कविताओं पर वीडियो ले कर आने की भी सोची. जिस पर काम चल रहा है. सिर्फ मधुशाला ही नहीं बाबूजी की सभी कविताओं को हम संगीतबद्ध करना चाहते हैं. हम उनकी हर कविता का कार्यक्रमों में पाठ भी करना चाहते हैं. जब बाबू जी जिंदा थे, तब हम ने एक कार्यक्रम ‘बच्चन के साथ बच्चन’’ किया भी था, जिस का एचएमवी ने एक रिकार्ड बनाया था. उस के बाद से हम कुछ कर नहीं पाए हैं. पर अब करना है.’’

उसी वक्त अमिताभ बच्चन ने ही हमें बताया था कि हरिवंश राय बच्चन की कविताओं का अनुवाद पेरिस में किया जा चुका है. अमिताभ बच्चन ने मुझ से कहा था, ‘‘आप को बता दूं कि न्यूयौर्क में लिंकन की सौंवी वर्षगांठ पर जब मुझे आमंत्रित किया गया था, तब वहां एक फ्रेंच महिला मुझे मिली थीं. उन्होने ही मुझ से पेरिस में बाबूजी की कविताओं का पाठ करने के लिए निमंत्रित किया था. उन्होने पेरिस के विख्यात अपरा थिएटर में यह कविता पाठ रखा था. उन्होने कहा कि थिएटर के अंदर कविता का अनुवाद भी चलाएंगे. मैं ने हामी भर दी. उन्होने खुद ही कविताओं का अनुवाद भी करवाया.

“उस वक्त पेरिस युनिवर्सिटी में हिंदी के विभागाध्यक्ष फ्रेंच थे. उन्होने बाबूजी की कविताओं का अनुवाद किया था. यह पूरे 2 घंटे का कार्यक्रम था. मैं अकेला इंसान बाबूजी की कविताओं का पाठ करता रहा, लोग सुनते रहे. हाल भरा हुआ था. 500 लोगों को इस हाल में प्रवेश नहीं मिल पाया था. 80 प्रतिशत श्रोता फ्रेंच थे.’’

जब मौत को हरा कर वापस आए थे Amitabh Bachchan, बड़े से बड़े डॉक्टर्स ने खड़े कर दिए थे हाथ

Amitabh Bachchan Coolie Accident : हिन्दी सिनेमा के सबसे प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक ”अमिताभ बच्चन” 70 के दशक से बॉक्स ऑफिस पर राज कर रहे हैं. आज यानी 11 अक्टूबर को बिग बी 81 साल के हो गए हैं. हालांकि उन्होंने अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं. यहां तक की उनकी जिंदगी में एक ऐसा भी मोड़ आया था जब बड़े से बड़े डॉक्टर्स ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे कि वो उन्हें बचा नहीं पाएंगे. तो आइए जानते हैं उसी घटना के बारे में जब मौत को मात देकर ”अमिताभ बच्चन” वापस आए थे.

डॉक्टरों ने भी छोड़ दी थी आस

10 अगस्त 1982, ये वो ही तारीख है जिस दिन महानायर ”अमिताभ बच्चन” अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहे थे. दरअसल, उस समय वह बेंगलुरु स्टेशन में फिल्म ‘कुली’ के एक स्टंट सीन की शूटिंग कर रहे थे. इस दौरान अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan Coolie Accident) बुरी तरह घायल हो गए थे. उनकी हालात इतनी क्रिटिकल हो गई थी कि डॉक्टर्स को उन्हें बचा पाना मुश्किल हो गया था. वहीं दूसरी तरफ दूनियाभर में उनके फैंस उनके ठीक होने के लिए दुआ, हवन, यज्ञ तथा अरदास कर रहे थे. इसके अलावा उनकी लंबी उम्र के लिए कई लोगों ने तो चर्च में गॉड से प्रेयर भी की थी.

फाइट सीन के दौरान हुआ था हादसा

आपको बता दें कि उस समय अमिताभ बेंगलुरु यूनिवर्सिटी के ”ज्ञान भारती परिसर” में फिल्म ‘कुली’ की शूटिंग कर रहे थे. जहां एक फाइट सीन के दौरान फिल्म में खलनायाक बने एक्टर ‘पुनीत इस्सर’ को ”अमिताभ बच्चन” के पेट में घूंसा मारना था. जब पुनीत ने अभीताभ के पेट में घूंसा मारा तो उनके पीछे एक बोर्ड आ गया, जिससे महानायर उससे टकरा गए. ऐसे में उनको पुनीत का वो घूंसा इतना तेज लगा कि वो दर्द से कराह उठे. उन्हें इतनी तेज दर्द हो रहा था कि वो वहीं जमीन पर लेट गए. हालांकि टीम के अन्य लोगों को ये नहीं पता था कि अमिताभ के साथ दुर्घटना घटी है.

जया बच्चन की भी हालात हो गई थी खराब

जब एक्टर से दर्द बर्दाश्त नहीं हो पाया तो वो उस दिन के लिए छुट्टी लेकर वापस होटल चले गए. जहां उनकी पत्नी जया और बच्चे पहले से मौजूद थे. होटल पहुंचते ही वह बेड पर लेट गए और पत्नी जया से बोला मुंबई से मेरे निजी चिकित्सक ‘डॉ शाह’ को तुरंत बुलाओ और बच्चों को वापस घर भेज दो. अमिताभ की खराब हालत देख ”जया बच्चन” घबरा गई और अपने स्टाफ के साथ बच्चों को तुरंत मुंबई भेज दिया.

अगले दिन सुबह होते ही डॉक्टर के साथ अमिताभ के भाई ‘अजिताभ’ भी बेंगलुरु आ गए. हालांकि रात में दो डॉक्टर ने अमिताभ को चेक किया था और उन्हें दर्द की गोली और इंजेक्शन दिया था. लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ. फिर सुबह ‘डॉ शाह’ ने अभिनेता का एक्सरे किया और तुरंत उन्हें वहां के ‘सेंट फिलोमिना अस्पताल’ में भर्ती कराया. हालांकि तब तक ये खबर  पूरे देश में फैल गई थी. आम से लेकर तमाम बड़े लोग एक्टर के सही होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे.

अमिताभ के शरीर में फैल गया था जहर

वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर्स को अमिताभ (Amitabh Bachchan Coolie Accident) की बीमारी के बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. बीते दिन से एक्टर दर्द और सांस लेने में परेशानी की समस्या का सामना कर रहे थे. डॉक्टर्स को ऐसा लग रहा था कि वो कोमा में भी जा सकते हैं. हालांकि जिस अस्पताल में अभिनेता का इलाज चल रहा था तब वहां सर्जरी के लिए विख्यात यूरोलोजिस्ट ”डॉ हट्टंगडी शशिधर भट्ट” मौजूद थे. जिन्होंने जया बच्चन के कहने पर अमिताभ का इलाज किया.

इलाज के दौरान डॉक्टर को पता चला कि अमिताभ की आंत फट गई थी और जहर पूरे पेट में फैल चुका था. जो शरीर के दूसरे अंगों पर भी हमला करने को तैयार था. इसलिए डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन करना ठीक समझा, जिससे अमिताभ के सिर पर मंडराता मौत का खतरा कुछ समय के लिए टल गया. लेकिन जिस अस्पताल में उनका ऑपरेशन हो रहा था वहां सीमित सुविधाएं ही थी. इसलिए उन्हें तुरंत चार्टेड प्ले में एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था कर मुंबई के ‘ब्रीच कैंडी अस्पताल’ में शिफ्ट किया गया. जहां उनकी एक ओर सर्जरी की गई. पर सर्जरी के बाद भी उनकी आंत से खून लगातार बह रहा था, जिससे उनके शरीर में खून की कमी हो गई. इसके बाद उन्हें करीब 60 यूनिट खून चढ़ाया गया.

इस तरह हुआ अमिताभ का पुनर्जन्म

हालांकि तमाम प्रयास के बाद भी उनकी हालात खराब हो रही थी. फिर एक दिन अचानक से उनका बीपी और पल्स जीरो हो गई. जिसे देख डाक्टर्स ने उम्मीद छोड़ दी. फिर आखिरी उम्मीद के तौर पर डॉक्टर ने उन्हें एक दवाई की ओवरडोज के रूप में कुछ इंजेक्शन दिए, जिसका असर होते ही अमिताभ के पैर के अंगूठे में कुछ हरकत हुई और कुछ ही पल में उन्होंने अपनी आंखें खोल दी. माना जाता है कि उस दिन ”अमिताभ बच्चन” (reincarnation of amitabh bachchan) का पुनर्जन्म हुआ था. फिर धीरे-धीरे वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गए.

अंतरधर्मीय विवाह करने से डरें नहीं

समाज में जितना हौवा गैरबिरादरी में विवाह करने का बना दिया गया है, उतना डर शायद किसी और चीज का नहीं है. न जाने कितनी प्रेम कहानियां प्रेमीप्रेमिका के दूसरी जाति के होने पर दम तोड़ देती हैं. कभी लड़का, कभी लड़की सारी उम्र एक टीस के साथ आहें भरते जीते रह जाते हैं.

अपनी मरजी से विवाह करना किसी भी तरह से गलत नहीं है. इस के विपरीत दूसरे धर्म में, किसी दूसरी जाति में शादी करना आजकल के माहौल में प्रेम, सद्भाव बनाए रखने के लिए ज़रूरी है. कल्पना कर के देखिए ऐसे एक समाज की जहां कोई धर्म, जाति महत्त्व नहीं रखते. सब एक हैं, जीवन का आनंद हंसीख़ुशी उठा रहे हैं, मिलजुल कर रह रहे हैं, पतिपत्नी किसी तीर्थ की ओर नहीं बल्कि किसी शानदार पर्यटन स्थल की ओर जा रहे हैं, नई, खिली उमंगों के साथ, समुद्र, पहाड़ों की सैर कर रहे हैं.

पर यह इतना आसान भी नहीं है कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से प्रेम किया और आराम से विवाह कर लिया. आसान तब है जब इस की पूरी तरह से जानकारी हो जाए कि इस विषय में क़ानून क्या कहता है. तो क्या कहता है क़ानून, आइए, एक नज़र डालते हैं, जानते हैं-

कुछ समय पहले केरल से एक खबर आई थी, वहां एक मुसलिम दंपती ने 29 साल बाद दोबारा शादी की. कारण यह था कि शरीयत कानून से की गई शादी में उन की बेटियों को पैतृक हक़ नहीं मिल पा रहा था. यह शादी उन्होंने स्पैशल मैरिज एक्ट के अनुसार की. यह भी खबर आई थी कि पिछले दिनों बौलीवुड ऐक्ट्रैस स्वरा भास्कर और फहाद अहमद ने भी इसी कानून के अनुसार शादी की थी. अभी अपने देश में विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुसलिम मैरिज एक्ट 1954 या स्पैशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत होते हैं.

न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि पति और पत्नी के अधिकारों की रक्षा की जा सके. विशेष विवाह अधिनियम की इन दिनों काफी चर्चा है. संसद ने यह क़ानून धर्म या जाति से इतर भारतीयों और विदेश में बसे सभी भारतीय नागरिकों की सिविल मैरिज के लिए पारित किया है.

हमारे देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं. इसलिए यहां सभी धर्मों के अलगअलग पर्सनल लौ बनाए गए हैं, जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, मुसलिम्स के लिए मुसलिम पर्सनल लौ आदि. बालिग़ लोगों को अपनी मरजी से विवाह करने की छूट दी गई है. वे किसी अन्य जाति, धर्म या राष्ट्रीयता में अपनी मरजी से विवाह कर सकते हैं. तो जब अलगअलग धर्म के 2 लोग आपस में विवाह करते हैं तो उस विवाह को कानूनी तौर पर स्पैशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर किया जाता है.

स्पैशल मैरिज एक्ट भारतीयों को अपना धर्म बदले बिना शादी करने की अनुमति देता है. इसी अधिनियम की धारा 5 में कपल को अपने विवाह को ले कर ‘आपत्तियां आमंत्रित करने’ के लिए 30 दिन की सार्वजनिक सूचना देने की आवश्यकता होती है यदि कोई हो तो. इस कानून के तहत 2 अलगअलग धर्मों के लोग आपस में विवाह कर सकते हैं.

जब पति या पत्नी दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हों तो इस एक्ट के तहत विवाह का पंजीकरण कराया जा सकता है. इस के तहत कपल को शादी की प्रस्तावित तारीख से 30 दिन पहले मैरिज औफिसर को संबंधित दस्तावेज के साथ नोटिस देना होता है. यह प्रक्रिया अब औनलाइन https://www.onlinemarriageregisteration.com/शुरू हो गई है.

हालांकि, विवाह कार्यक्रम के लिए कपल को मैरिज औफिसर के सामने उपस्थित होना होता है. पर्सनल लौ में एक बड़ी समस्या यह है कि वरवधू का धर्म एक ही होना चाहिए. नहीं है तो धर्म परिवर्तन की बात कही जाती है. लेकिन अगर कोई हिंदू या मुसलिम बिना धर्म बदले विवाह करना चाहते हैं तो क्या विकल्प है? ऐसे में यह एक्ट ज़रूरी था. इस के तहत आप अपनी धार्मिक पहचान के साथ दूसरे धर्म का अपना जीवनसाथी चुन सकते हैं. वरवधू पक्ष से नोटिस मिलने के बाद अगले 30 दिन में शादी को ले कर कोई तीसरा व्यक्ति आपत्ति दर्ज़ करा सकता है. इस बीच, एक पब्लिक नोटिस जारी होता है. एक कौपी नोटिसबोर्ड पर लगती है और एकएक कौपी दोनों पक्षों को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजी जाती है. एसडीएम 30 दिनों में आई आपत्तियों को देखते हैं और उस के बाद पंजीकरण होता है.

सबकुछ ठीक रहा, तो प्रक्रिया आगे बढ़ती है. दोनों पक्ष औफिस में उपस्थित रहते हैं और 3 गवाह साइन करते हैं. मैरिज औफिसर ‘मैरिज सर्टिफिकेट लैटरबुक’ में कपल का प्रमाणपत्र दर्ज़ करता है. अगर दोनों पार्टनर्स और 3 गवाहों के साइन हो जाते हैं तो उस सर्टिफिकेट को कपल की कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र या मैरिज सर्टिफिकेट माना जाता है. यह प्रमाणपत्र पूरे भारत में और विदेशों में भी मान्य है. इस तरह से मैरिज औफिसर विवाह को कानूनी मान्यता दे देते हैं. इस एक्ट के तहत लड़का और लड़की दोनों बालिग होने चाहिए.

देश में होने वाले किसी भी अंतरधर्मीय विवाह में यह एक्ट काम कर सकता है. यही नहीं, एक ही धर्म के कई जोड़े भी इस एक्ट की मदद लेते हैं क्योंकि इस में नियम और कानून काफी अलग हैं.

स्पैशल मैरिज एक्ट की एलिजिबिलिटी

-इस के लिए कोई भी भारतीय आवेदन दे सकता है.

-यह एक्ट धर्म के हिसाब से काम नहीं करता है. यह सभी के लिए एकजैसा है.

-ऐसे भारतीय जो विदेशों में रह रहे हैं, उन्हें इस के तहत शादी करने की सुविधा है.

-दोनों को ही मानसिक रूप से सक्षम होना चाहिए.

-शादी की डेट कोर्ट से ही तय होती है. आप को जब भी शादी करनी हो, उस के 30 दिन पहले नोटिस देना है.

-नोटिस जिस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दी गई है, दोनों में से किसी एक को उस डिस्ट्रिक्ट में 30 दिनों तक रहना होगा.

पर 30 दिन की नोटिस अवधि की आवश्यकता एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, क्यों?

इस से तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप या उत्पीड़न हो सकता है. इस विषय पर जागरूकता बढ़नी चाहिए क्योंकि भारत में बहुत से लोग विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों से अवगत नहीं हैं या यह नहीं जानते हैं कि उन के पास इस कानून के तहत किसी अलग धर्म या जाति से विवाह करने का विकल्प है.

अपनी मरजी से दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह करने में कानून साथ दे सकता है. यदि इस एक्ट की जानकारी कसबों, गांवों में रह रहे लोगों तक भी पहुंचे तो कई दिल टूटने से बचेंगे, धर्म का खौफ कुछ कम होगा. धर्म और जाति के बंधनों ने प्रेम करने वाले जोड़ों से छीना  ही है, उन्हें दिया कुछ भी नहीं.

धर्म को एकतरफ रख कानून के बारे में जानकारी रखें, अपने सपने पूरे करें. यह भी देखा है कि अंतरधर्मीय विवाह करने वालों की संतानें भी बहुत खुली सोच वाली, खुश रहने वाली होती हैं क्योंकि उन की ऐसे माहौल में परवरिश होती है जहां धर्म को प्रमुखता नहीं दी जाती. इन के बच्चे भी धर्म के मायाजाल में न फंस कर समाज को आगे बढ़ाने वाली बातें करते हैं. ऐसे परिवारों में किसी पंडित, मौलवी, धर्मगुरु की नहीं, शिक्षा, मनोरंजन और प्रेम की बातें होती हैं. सो, विजातीय से प्रेम हो जाए तो डरें नहीं, कानून का सहारा लें और अपनी जिंदगी अपनी मरजी से बिताएं. किसी धर्म को अपनी जिंदगी का मालिक न बनने दें.

खट्टामीटा : इकलौते बच्चे के सुखदुख से जूझती मां की कहानी

साढ़े 4 बजने में अभी पूरा आधा घंटा बाकी था पर रश्मि के लिए दफ्तर में बैठना दूभर हो रहा था. छटपटाता मन बारबार बेटे को याद कर रहा था. जाने क्या कर रहा होगा? स्कूल से आ कर दूध पिया या नहीं? खाना ठीक से खाया या नहीं? सास को ठीक से दिखाई नहीं देता. मोतियाबिंद के कारण कहीं बेटे स्वरूप की रोटियां जला न डाली हों? सवेरे रश्मि स्वयं बना कर आए तो रोटियां ठंडी हो जाती हैं. आखिर रहा नहीं गया तो रश्मि बैग कंधे पर डाल कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. आज का काम रश्मि खत्म कर चुकी है, जो बाकी है वह अभी शुरू करने पर भी पूरा न होगा. इस समय एक बस आती है, भीड़ भी नहीं होती.

‘‘प्रभा, साहब पूछें तो बोलना कि…’’

‘‘कि आप विधि या व्यवसाय विभाग में हैं, बस,’’ प्रभा ने रश्मि का वाक्य पूरा कर दिया, ‘‘पर देखो, रोजरोज इस तरह जल्दी भागना ठीक नहीं.’’

रश्मि संकुचित हो उठी, पर उस के पास समय नहीं था. अत: जवाब दिए बिना आगे बढ़ी. जाने कैसा पत्थर दिल है प्रभा का. उस के भी 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. सास के ही पास छोड़ कर आती है, पर उसे घर जाने की जल्दी कभी नहीं होती. सुबह भी रोज समय से पहले आती है. छुट्टियां भी नहीं लेती. मोटीताजी है, बच्चों की कोई फिक्र नहीं करती. उस के हावभाव से लगता है घर से अधिक उसे दफ्तर ही पसंद है. बस, यहीं पर वह रश्मि से बाजी मार ले जाती है वरना रश्मि कामकाज में उस से बीस ही है. अपना काम कभी अधूरा नहीं रखती. छुट्टियां अधिक लेती है तो क्या, आवश्यकता होने पर दोपहर की छुट्टी में भी काम करती है. प्रभा जब स्वयं दफ्तर के समय में लंबे समय तक खरीदारी करती है तब कुछ नहीं होता. रश्मि के ऊपर कटाक्ष करती रहती है. मन तो करता है दोचार खरीखरी सुनाने को, पर वक्त बे वक्त इसी का एहसान लेना पड़ता है.

रश्मि मायूस हो उठी, पर बेटे का चेहरा उसे दौड़ाए लिए जा रहा था. साहब के कमरे के सामने से निकलते समय रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. कहीं देख लिया तो क्या सोचेंगे, रोज ही जल्दी चली जाती है. 5-7 लोगों से घिरे हुए साहब कागजपत्र मेज पर फैलाए किसी जरूरी विचारविमर्श में डूबे थे. रश्मि की जान में जान आई. 1 घंटे से पहले यह विचार- विमर्श समाप्त नहीं होगा.

वह तेज कदमों से सीढि़यां उतरने लगी. बसस्टैंड भी तो पास नहीं, पूरे 15 मिनट चलना पड़ता है. प्रभा तो बीमारी में भी बच्चों को छोड़ कर दफ्तर चली आती है. कहती है, ‘बच्चों के लिए अधिक दिमागखपाई नहीं करनी चाहिए. बड़े हो कर कौन सी हमारी देखभाल करेंगे.’

बड़ा हो कर स्वरूप क्या करेगा यह तो तब पता चलेगा. फिलहाल वह अपना कर्तव्य अवश्य निभाएगी. कहीं वह अपने इकलौते पुत्र के लिए आवश्यकता से अधिक तो नहीं कर रही. यदि उस के भी 2 बच्चे होते तो क्या वह भी प्रभा के ढंग से सोचती? तभी तेज हार्न की आवाज सुन कर रश्मि ने चौंक कर उस ओर देखा, ‘अरे, यह तो विभाग की गाड़ी है,’ रश्मि गाड़ी की ओर लपकी.

‘‘विनोद, किस तरफ जा रहे हो?’’ उस ने ड्राइवर को पुकारा.

‘‘लाजपत नगर,’’ विनोद ने गरदन घुमा कर जवाब दिया.

‘‘ठहर, मैं भी आती हूं,’’ रश्मि लगभग छलांग लगा कर पिछला दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. अब तो पलक झपकते ही घर पहुंच जाएगी. तनाव भूल कर रश्मि प्रसन्न हो उठी.

‘‘और क्या हालचाल है, रश्मिजी?’’ होंठों के कोने पर बीड़ी दबा कर एक आंख कुछ छोटी कर पान से सने दांत निपोर कर विनोद ने रश्मि की ओर देखा.

वितृष्णा से रश्मि का मन भर गया पर इसी विनोद के सहारे जल्दी घर पहुंचना है. अत: मन मार कर हलकी हंसी लिए चुप बैठी रही.

घर में घुसने से पहले ही रश्मि को बेटे का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दादाजी, टीवी बंद करो. मुझ से गृहकार्य नहीं हो रहा है.’’

‘‘अरे, तू न देख,’’ रश्मि के ससुर लापरवाही से बोले.

‘‘न देखूं तो क्या कान में आवाज नहीं पड़ती?’’

रश्मि ने संतुष्टि अनुभव की. सब कहते हैं उस का अत्यधिक लाड़प्यार स्वरूप को बिगाड़ देगा. पर रश्मि ने ध्यान से परखा है, स्वरूप अभी से अपनी जिम्मेदारी समझता है. अपनी बात अगर सही है तो उस पर अड़ जाता है, साथ ही दूसरों के एहसासों की कद्र भी करता है. संभवत: रश्मि के आधे दिन की अनुपस्थिति के कारण ही आत्मनिर्भर होता जा रहा है.

‘‘मां, यह सवाल नहीं हो रहा है,’’ रश्मि को देखते ही स्वरूप कापी उठा कर दौड़ आया.

बेटे को सवाल समझा व चाय- पानी पी कर रश्मि इतमीनान से रसोईघर में घुसी. दफ्तर से जल्दी लौटी है, थकावट भी कम है. आज वह कढ़ीचावल और बैगन का भरता बनाएगी. स्वरूप को बहुत पसंद है.

खाना बनाने के बाद कपड़े बदल कर तैयार हो रश्मि बेटे को ले कर सैर करने निकली. फागुन की हवा ठंडी होते हुए भी आरामदेह लग रही थी. बच्चे चहलपहल करते हुए मैदान में खेल रहे थे. मां की उंगली पकड़े चलते हुए स्वरूप दुनिया भर की बकबक किए जा रहा था. रश्मि सोच रही थी जीवन सदा ही इतना मधुर क्यों नहीं लगता.

‘‘मां, क्या मुझे एक छोटी सी बहन नहीं मिल सकती. मैं उस के संग खेलूंगा. उसे गोद में ले कर घूमूंगा, उसे पढ़ाऊंगा. उस को…’’

रश्मि के मन का उल्लास एकाएक विषाद में बदल गया. स्वरूप के जीवन के इस पहलू की ओर रश्मि का ध्यान ही नहीं गया था. सरकार जो चाहे कहे. आधुनिकता, महंगाई और बढ़ते हुए दुनियादारी के तनावों का तकाजा कुछ भी हो, रश्मि मन से 2 बच्चे चाहती थी, मगर मनुष्य की कई चाहतें पूरी नहीं होतीं.

स्वरूप के बाद रश्मि 2 बार गर्भवती हुई थी पर दोनों ही बार गर्भपात हो गया. अब तो उस के लिए गर्भधारण करना भी खतरनाक है.

रश्मि ने समझौता कर लिया था. आखिर वह उन लोगों से तो बेहतर है जिन के संतान होती ही नहीं. यह सही है कपड़ेलत्ते, खिलौने, पुस्तकें, टौफी, चाकलेट स्वरूप की हर छोटीबड़ी मांग रश्मि जहां तक संभव होता है, पूरी करती है. पर जो वस्तु नहीं होती उस की कमी तो रहती ही है.

‘‘देख बेटा,’’ 7 वर्षीय पुत्र को रश्मि ने समझाना आरंभ कर दिया, ‘‘अगर छोटी बहन होगी तो तेरे साथ लड़ेगी. टौफी, चाकलेट, खिलौनों में हिस्सा मांगेगी और…’’

‘‘तो क्या मां,’’ स्वरूप ने मां की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘मैं तो बड़ा हूं, छोटी बहन से थोड़े ही लड़ूंगा. टौफी, चाकलेट, खिलौने सब उस को दूंगा. मेरे पास तो बहुत हैं.’’

रश्मि की बोलती बंद हो गई. समय से पहले क्यों इतना समझदार हो गया स्वरूप? रात का भोजन देख कर नन्हे स्वरूप के मस्तिष्क से छोटी बहन वाला विषय निकल गया. पर रश्मि जानती है यह भूलना और याद आना चलता ही रहेगा. हो सकता है बड़ा होने पर रश्मि स्वरूप को बहन न होने का सही कारण बता भी दे लेकिन जब तक वह इसी तरह जीने का आदी नहीं हो जाता, रश्मि को इस प्रसंग का सामना करना ही होगा.

मनपसंद व्यंजन पा कर स्वरूप चटखारे लेले कर खा रहा था, ‘‘कितना अच्छा खाना है. सलाद भी बहुत अच्छा है. मां, आप रोज जल्दी घर आ जाया करो.’’

रश्मि का मन कमजोर पड़ने लगा. मन हुआ कल ही त्यागपत्र भेज दे, नहीं चाहिए यह दो कौड़ी की नौकरी, जिस के कारण उस के लाड़ले को मनपसंद खाना भी नसीब नहीं होता.

‘‘चलो मां, लूडो खेलते हैं,’’ स्वरूप हाथमुंह धो आया था.

‘‘थोड़ी देर तक पिता के संग खेलो, मैं चौका संभाल कर आती हूं,’’ रश्मि ने बरतन समेटते हुए कहा.

ऐसा नहीं कि केवल सतीश की तनख्वाह से गृहस्थी नहीं चलेगी लेकिन घर में स्वयं उस की तनख्वाह का महत्त्व भी कम नहीं. रोज तरहतरह का खाना, स्वरूप के लिए विभिन्न शौकिया खर्चे, उस के कानवैंट स्कूल का खर्चा आदि मिला कर कोई कम रुपयों की जरूरत नहीं पड़ती. अभी तो अपना मकान भी नहीं. फिर वास्तविकता यह है कि प्रतिदिन हर समय मां घर में दिखेगी तो मां के प्रति उस का आकर्षण कम हो जाएगा. इसी तरह रोज ही अच्छा भोजन मिलेगा तो उस भोजन का महत्त्व भी उस के लिए कम हो जाएगा. जैसेजैसे स्वरूप बड़ा होगा उस की अपनी दुनिया विकसित होती जाएगी. मां के आंचल से निकल कर पढ़ाई- लिखाई, खेलकूद और दोस्तों में व्यस्त हो जाएगा. उस समय रश्मि अकेली पड़ जाएगी. इस से यही बेहतर है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ेगा.

सब काम निबटा कर रश्मि की आंखें थकावट से बोझिल होने लगीं. निद्रित पुत्र के ऊपर चादर डाल कर वह सतीश की ओर मुड़ी.

‘‘कभी मेरा भी ध्यान कर लिया करो. हमेशा बेटे में ही रमी रहती हो,’’ सतीश ने रश्मि का हाथ थामा.

‘‘जरा याद करो तुम्हारी मां ने भी कभी तुम्हारा इतना ही ध्यान रखा था,’’ रश्मि ने शरारत से कहा.

‘‘वह उम्र तो गई, अब तो हमें तुम्हारा ध्यान चाहिए.’’

‘‘अच्छा, यह लो ध्यान,’’ रश्मि पति से लिपट गई.

सुबह उठ कर, सब को चाय दे कर रश्मि ने स्वरूप के स्कूल का टिफिन तैयार किया. फिर दूध गरम कर के उसे उठाने चली.

‘‘ऊं, ऊं, अभी नहीं,’’ स्वरूप ने चादर तान ली.

‘‘नहीं बेटा, और नहीं सोते. देखो, सुबह हो गई है.’’

‘‘नहीं, बस मुझे सोना है,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

आखिर 15 मिनट तक समझाने- बुझाने के बाद उस ने बेमन से बिस्तर छोड़ा. पर ब्रश करने, कपड़े पहनने व दूध पीने के बीच वह बारबार जा कर फिर से चादर ओढ़ कर लेट जाता और मनाने के बाद ही उठता. अंत में बैग कंधे पर डाले सतीश का हाथ पकड़े वह बस स्टाप की ओर रवाना हुआ तो रश्मि ने चैन की सांस ली. बिस्तर संवारना है, खाना बनाना, नाश्ता बनाना, नहाना फिर तैयार हो कर दफ्तर जाना है. रश्मि झटपट हाथ चलाने लगी. कपड़ों का ढेर बड़ा होता जा रहा है. 2 दिन से समय ही नहीं मिल रहा. आज शाम को आ कर अवश्य धोएगी.

‘‘कभी तो आंगन में झाड़ू लगा दिया कर रश्मि,’’ सब्जी छौंकते हुए रश्मि के कान में सास की आवाज पड़ी. कमरों के सामने अहाते के भीतर लंबाचौड़ा आंगन है, पक्के फर्श वाला. झाड़ू लगाने में 15-20 मिनट लग जाना मामूली बात है.

‘‘आप ही बताओ अम्मां, किस समय लगाऊं?’’

‘‘अब यह भी कोई समस्या है? जो दफ्तर जाती हैं क्या वे झाड़ू नहीं लगातीं?’’

रश्मि चुप हो गई. बहस में कुछ नहीं रखा. सब्जी में पानी डाल कर वह कपड़े निकालने लगी.

मांजी अब भी बोले जा रही थीं, ‘‘करने वाले बहुत कुछ करते हैं. स्वेटर बनाते हैं, पापड़बड़ी अचार, डालते हैं, कशीदाकारी करते हैं…’’

बदन पर पानी डालते हुए रश्मि सोच रही थी, ‘आज जा कर सब से पहले मार्च के महीने का ड्यूटी चार्ट बनाना है.’

‘‘अम्मां, जमादार आए तो उसे 2 रुपए दे कर आंगन में झाड़ू लगवा लेना,’’ रश्मि ने सास को आवाज दी.

‘‘सुन, मेरे लिए एक जोड़ी चप्पल ले आना.’’

‘‘ठीक है, अम्मां,’’ कंघी कर के रश्मि ने लिपस्टिक लगाई.

‘‘वह सामने अंगूठे और पीछे पट्टी वाली चप्पल.’’

रश्मि ने भौंहें सिकोड़ीं, सास किसी खास डिजाइन के बारे में कह रही थीं.

‘‘अरे, वैसी ही जैसी स्वीटी की नानी ने पहनी थी, हलके पीले से रंग की.’’

‘‘अम्मां, मैं शाम को समझ लूंगी और कल चप्पल ला दूंगी.’’

रश्मि टिफिन पैक करने लगी. परांठा भी पैक कर लिया. नाश्ता करने का समय नहीं था.

‘‘मेरे ब्लाउज के जो बटन टूटे थे, लगा दिए हैं?’’

‘‘ओह,’’ रश्मि को याद आया, ‘‘शाम को लगा दूंगी.’’

अम्मां का चेहरा असंतुष्ट हो उठा. रश्मि किसी तरह पैरों में चप्पल डाल कर दफ्तर के लिए रवाना हुई. तेज चले तो 9 बजे वाली बस अब भी मिल सकती है.

आज शाम रश्मि जल्दी नहीं निकल सकी. 4 बजे साहब ने बुला कर जो टारक योजना समझानी शुरू की तो 5 बजने पर भी नहीं रुके.

‘‘मेरी बस निकल जाएगी, साहब,’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया,’’ बौस ने चौंक कर घड़ी देखी.

‘‘जी, कोई बात नहीं,’’ रश्मि ने मुसकराने का प्रयास किया.

दफ्तर से निकलते ही टारक योजना दिमाग से निकल गई और रात को क्या भोजन बनाए इस की चिंता ने आ घेरा. जाते हुए सब्जी भी खरीदनी है. बस आने पर धक्कामुक्की कर के चढ़ी पर वह बीच रास्ते में खराब हो गई. रश्मि मन ही मन गालियां देने लगी. दूसरी बस ले कर घर पहुंचतेपहुंचते 7 बज गए. दूर से ही छत के ऊपर छज्जे पर खड़ा स्वरूप दिख गया. छुपनछुपाई खेल रहा था बच्चों के संग. बहुत ही खतरनाक स्थिति में खड़ा था. गलती से भी थोड़ा और खिसक आया तो सीधे नीचे आ गिरेगा. रश्मि का तो कलेजा मुंह को आ गया.

‘‘स्वरूप,’’ उस ने कठोर स्वर में आवाज दी, ‘‘जल्दी नीचे उतर आओ.’’

‘‘अभी आया, मां,’’ कह कर स्वरूप दीवार फांद कर छत के दूसरी ओर गायब हो गया. अभी तक स्कूल के कपड़े भी नहीं बदले थे. सफेद कमीज व निकर पर दिनभर की गर्द जमा हो गई थी. बाल अस्तव्यस्त और हाथपांव धूल में सने थे. रश्मि का खून खौलने लगा. अम्मां दिन भर क्या करती रहती हैं. लगता है सारा दिन धूप में खेलता रहा है. हजार बार कहा है उसे छत के ऊपर न जाने दिया करें.

‘‘अम्मां,’’ अभी रश्मि ने आवाज ही दी थी कि सास फूट पड़ीं, ‘‘तेरा बेटा मुझ से नहीं संभलता. कल ही किसी क्रेच में इस का बंदोबस्त कर दे. सारा दिन इस के पीछे दौड़दौड़ कर मेरे पैरों में दर्द हो गया. कोई कहना नहीं मानता. स्कूल से लौट कर न नहाया, न कपड़े बदले, न ही ठीक से खाना खाया. ऊधम मचाने में लगा है. तू अपनी आंखों से देख क्या हाल बनाया है. मैं ने छत पर जाने से रोका तो मुझे धक्का मार कर निकल गया.’’

‘‘है कहां वह? अभी तक आया नहीं नीचे,’’ क्रोध से आगबबूला होती रश्मि स्वयं ही छत पर चली.

‘‘क्या बात है? नीचे क्यों नहीं आए?’’ ऊपर पहुंच कर उस ने स्वरूप को झिंझोड़ा.

‘‘बस, अपनी पारी दे कर आ रहा था मां.’’

मां के क्रोध से बेखबर स्वरूप की मासूमियत रश्मि के क्रोध को पिघलाने लगी, ‘‘चलो नीचे. दादी का कहा क्यों नहीं माना?’’

‘‘मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ स्वरूप ने मुंह फुलाया, ‘‘इधर मत कूदो, कागज मत फैलाओ. कमरे में बौल से मत खेलो, गंदे पांव ले कर सोफे पर मत चढ़ो.’’

रश्मि की समझ में न आया किस पर क्रोध करे. बच्चे को बचपना करने से कैसे रोका जा सकता है? सास की भी उम्र बढ़ रही है, ऐसे में सहनशीलता कम होना स्वाभाविक है.

‘‘दादी तुम से बड़ी हैं स्वरूप. तुम्हें बहुत प्यार करती हैं. उन का कहना मानना चाहिए.’’

‘‘फिर मुझे आइसक्रीम क्यों नहीं खाने देतीं?’’

रश्मि थकावट महसूस करने लगी. कब तक नासमझ रहेगा स्वरूप.

‘‘आ गए लाट साहब,’’ पोते को देखते ही दादी का गुस्सा भड़क उठा, ‘‘तुम ने अभी तक इसे कुछ भी नहीं कहा? अरे, मैं कहती हूं इतना सिर न चढ़ाओ,’’ अपने प्रति दोषारोपण होते देख रश्मि का शांत होता क्रोध फिर उबल पड़ा.

‘‘चलो, कपड़े बदल कर हाथमुंह धोओ.’’

‘‘मैं नहीं धोऊंगा,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

‘‘क्या?’’ रश्मि जोर से चिल्लाई.

‘‘बस, मैं न कहती थी तुम्हारा लाड़प्यार इसे जरूर बिगाड़ेगा. लो, अब भुगतो,’’ सास ने निसंदेह उसे उकसाने के लिए नहीं कहा था पर रश्मि ने तड़ाक से एक चांटा बेटे के कोमल गाल पर जड़ दिया.

स्वरूप जोर से रो पड़ा, ‘‘नहीं बदलूंगा कपड़े. जाओ, कभी नहीं बदलूंगा,’’ कह कर दूर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘हांहां, कपड़े क्यों बदलोगे, सारा दिन आवारा बच्चों के साथ मटरगश्ती के सिवा क्या करोगे? देख रश्मि, असली बात तो मैं भूल गई, जा कर देख बौल मार कर ड्रेसिंग टेबल का शीशा तोड़ डाला है.’’

रश्मि को अब अचानक सास के ऊपर क्रोध आने लगा. थकीमांदी लौटी हूं और घर में घुसते ही राग अलापना शुरू कर दिया. गुस्से में उस ने स्वरूप के गाल पर 2 चांटे और जड़ दिए.

रश्मि क्रोध से और भड़की. पुत्र को खींच कर खड़ा किया और तड़ातड़ पीटना शुरू कर दिया.

‘‘सारी उम्र मुझे तंग करने के लिए ही पैदा हुआ था? बाकी 2 तो मर गए, तू भी मर क्यों न गया?’’

‘‘क्या पागल हो गई है रश्मि. बच्चे ने शरारत की, 2 थप्पड़ लगा दिए बस. अब गाली क्यों दे रही है? क्या पीटपीट कर इसे मार डालेगी?’’

क्रोध, ग्लानि और अवसाद ने रश्मि को तोड़ कर रख दिया था. कमरे में आ कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. यह क्या किया उस ने. जान से भी प्रिय एकमात्र पुत्र के लिए ऐसी अशुभ बातें उस के मुंह से कैसे निकलीं?

‘‘जोश को समय पर लगाम दिया कर. जो मुंह में आता है वही बकने लगती है,’’ इकलौता पोता रश्मि की सास को भी कम प्रिय न था, ‘‘अरे, मैं सारा दिन सहती हूं इस की शरारतें और तू ने सुन कर ही पीटना शुरू कर दिया,’’ रश्मि की सास देर तक उसे कोसती रही. रश्मि के आंसू थम ही नहीं रहे थे. रहरह कर किसी अज्ञात आशंका से हृदय डूबता जा रहा था.

तभी एक कोमल स्पर्श पा कर रश्मि ने आंखें खोलीं. जाने स्वरूप कब आंगन से उठ आया था और यत्न से उस के आंसू पोंछ रहा था, ‘‘मत रोओ, मां. कोई मां की बद्दुआ लगती थोड़ी है.’’

रश्मि ने खींच कर पुत्र को हृदय से लगा लिया. कौन सिखाता है इसे इस तरह बोलना. समय से पहले ही संवेदनशील हो गया. फिर अभीअभी जो नासमझी कर रहा था वह क्या था?

जो हो, नासमझ, समझदार या परिपक्व, रश्मि के हृदय का टुकड़ा हर स्थिति में अतुलनीय है. पुत्र को बांहों में भींच कर रश्मि सुख का अनुभव कर रही थी.

मेरा एक विधवा औरत से संबंध है, क्योंकि मेरी पत्नी मेरे साथ संबंध नहीं बनाना चाहती, क्या मैं सही कर रहा हूं ?

सवाल 

मैं 62 साल का हूं और पत्नी की आयु 60 साल है. जबकि उम्र को देखते हुए हम दोनों का शारीरिक स्वास्थ्य बहुत अच्छा है. मैं ने पत्नी को कई उदाहरण दे कर बताया कि इस उम्र में शारीरिक संबंध कोई गलत नहीं हैं पर वह किसी भी तरह मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है. उस का कहना है कि बहूबेटे के घर में और 50 के बाद इंसान को यह सब छोड़ देना चाहिए.

उस दौरान जब पत्नी के मन में शारीरिक संबंधों को लेकर अरुचि पैदा हुई थी, मैं एक विधवा औरत के प्रति आकर्षित होने लगा था जो मेरे खेतों में काम करने आती थी. धीरेधीरे वह विधवा भी मुझ में रुचि लेने लगी और हमारे बीच शारीरिक संबंध कायम हो गए. हम सप्ताह में एक बार सहवास करते हैं. उस की कोई मांग नहीं, जो देता हूं, ले लेती है. हमारे शारीरिक संबंधों पर इसलिए परदा पड़ा है क्योंकि उस ने नसबंदी करा रखी है.

मैं कई बार महसूस करता हूं कि यह गलत है. पत्नी को समझाता हूं कि घर में खाना नहीं मिलने पर कितने दिन आदमी भूखा रहेगा. जवाब मिलता है, अगर घर में खाना नहीं मिलता तो होटल में खाइए. कृपया रास्ता बताइए.

जवाब 

आप का पत्र पढ़ कर लगता है, आप की समस्या इतनी गंभीर नहीं थी जितनी आप ने अनैतिकता का लबादा ओढ़ कर बना दी है. अगर आप का पक्ष देखा जाए तो आप अपनी पत्नी के साथ ही शारीरिक संबंधों को सुचारु रखना चाहते थे, मगर उन की उदासीनता के चलते आप अपनेआप पर संयम खो बैठे और अवैध संबंधों की दलदल में फंस गए.

जरा सोचिए कि इतने सालों तक आप की पत्नी ने आप को संतुष्ट रखा, आप की इच्छाओं का सम्मान किया, हो सकता है अब उन्हें कोई अंदरूनी शारीरिक कष्ट हो, जिस की वजह से वे इस के प्रति उदासीन हैं. आप उन्हें किसी महिला चिकित्सक के पास ले जाएं, शायद सबकुछ आसान हो जाए. आप की पत्नी को भी आप की भावनाओं का आदर करना चाहिए और समझना चाहिए कि बहूबेटी के होने से पतिपत्नी की निजी जिंदगी खत्म नहीं हो जाती.

अब आप को एक सलाह है कि आप एक इज्जतदार इंसान हैं, ऐसे अवैध संबंध कभी न कभी उजागर हो ही जाते हैं. सोचिए, अगर आप के साथ ऐसा हो गया तो आप की पत्नी, घर, परिवार और समाज के सामने आप की क्या इज्जत रह जाएगी. इतने सालों में आप ने जो विश्वास, प्यार और मानसम्मान अर्जित किया है, सब रेत की तरह हाथ से फिसल जाएंगे.

आप पत्नी के सहयोगी न होने पर संयम से काम लें, अच्छा साहित्य पढ़ें, योगा व ध्यान का अभ्यास करें. वरना आप जिस अनैतिक संबंधों के गर्त में गिरते जा रहे हैं उस से आप की जो छिछालेदर होगी उस की कल्पना करना भी बड़ा वीभत्स है.

अस्थमा मरीजों के लिए कारगर उपाय है इन्हेलेशन थैरेपी

ठंड के मौसम में अस्थमा के अटैक होने का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसे में इन्हेलेशन थैरेपी सांस न ले पाने की तकलीफ को रोकने में लाभदायक साबित हो सकती है.

सर्दी का मौसम शुरू होते ही स्वादिष्ठ खाने के साथ गरमागरम चाय की चुस्कियां और पिकनिक या पहाड़ों की ट्रिप मौसम के मजे को दोगुना कर देते हैं. लेकिन सर्दी का आगमन 17 साल के कालेज जाने वाले राहुल सिंह के लिए काफी मुश्किलभरा रहता है क्योंकि उसे अस्थमा की समस्या है. राहुल के लिए तो सर्दी में होने वाला मामूली सा जुकाम भी कई बार अस्थमा के अटैक का कारण बन जाता है.

राहुल को बचपन से ही अस्थमा है और यह बीमारी न सिर्फ राहुल के लिए, बल्कि उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है. इस मामले में राहुल अकेला नहीं है, बल्कि दुनियाभर में 235 मिलियन लोग अस्थमा से ग्रस्त हैं. ठंड में यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है.

विशेषज्ञों के अनुसार, अकसर लोग मानते हैं कि यह समस्या बुजुर्गों में होती है जबकि अस्थमा फेफड़ों की बीमारी है जिस में फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियों में सूजन आ जाती है. अमेरिकन लंग एसोसिएशन के तथ्यों के अनुसार, अस्थमा बचपन में पाई जाने वाली समस्याओं में आम है और वर्तमान में 18 साल से कम उम्र के 7.1 मिलियन बच्चे इस समस्या से पीडि़त हैं.

अस्थमा और सर्दी का संबंध

अस्थमा से ग्रस्त रोगी के फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियां बहुत ही संवेदनशील होती हैं और ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस या कीटाणुओं की बढ़ोतरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. विभिन्न अनुसंधानों में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, ठंड के मौसम में अस्पताल में अस्थमा से पीडि़त रोगियों की संख्या ज्यादा होती है.

नैशनल इंस्टिट्यूट औफ ट्यूबरक्लोसिस ऐंड रेस्पिरेटरी डिजीज के एमडी (चैस्ट) डा. सुशील मुंजाल का कहना है, ‘‘सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिस से बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है और यह नलियों को सांस लेने में प्रभावित करता है. इस से अस्थमा के रोगियों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. सर्दी में ठंडी हवाओं के कारण सांस की नलियां और ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिस से सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगती है. इसलिए लोगों को यह समझना जरूरी है कि सर्दियों में सही इलाज और दवाओं से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित और मैनेज किया जा सकता है.’’

आम भ्रांतियां

रोगियों और उन के परिवारों में अस्थमा की जानकारी व उस के इलाज को ले कर कई तरह की भ्रांतियां होती हैं.

लोगों को लगता है कि अस्थमा सिर्फ उन्हीं को हो सकता है जिन के परिवार में अस्थमा की समस्या है, अस्थमा संचारी रोग है, अस्थमा को मछली वाली थैरेपी से ठीक किया जा सकता है, अन्य दवाएं ज्यादा बेहतर हैं या सिर्फ योग से अस्थमा अटैक को रोकने में मदद मिलती है.

लोग सोचते हैं कि अस्थमा के ट्रिगर से परहेज करने पर इसे रोका जा सकता है और इन्हेलर अस्थमा के इलाज में आखिरी विकल्प है. अस्थमा को ले कर लोगों में इस तरह की कई भ्रांतियां हैं.

डा. सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘अस्थमा के इलाज के दौरान रोगी और उस के परिवार वाले अकसर इस से जुड़ी कई गलत सूचनाओं के साथ आते हैं. इसलिए हैल्थकेयर से जुड़े लोगों को रोगियों और उस के परिवार वालों को अस्थमा से जुड़े तथ्यों के बारे में जानकारी देनी चाहिए. अस्थमा को छिपाने के बजाय उस से जुड़े इलाज के महत्त्व को समझाना जरूरी है. इलाज के विकल्पों में सब से कम साइड इफैक्ट्स इन्हेल्ड कोरटिकोस्टेरौयड यानी कि इन्हेलेशन थैरेपी की जानकारी देनी चाहिए.’’

इन्हेलेशन थैरेपी

स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों ने देखा है कि अस्थमा रोगी इसे नियंत्रित करने में काफी लापरवाही बरतते हैं. इसी वजह से लगातार नियमित दवाएं लेने के बावजूद रोगी रोजाना अस्थमा के लक्षणों से प्रभावित रहता है और रोजमर्रा के कामों में उसे दिक्कत महसूस होती है. इस समस्या से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थैरेपी ज्यादा बेहतर है क्योंकि इस में साइड इफैक्ट्स तो कम होते ही हैं, साथ ही यह जल्दी काम भी करती है. इन्हेलेशन थैरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरौयड सांस की नलियों में जाता है. इस बारे में डा. सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘मुश्किल यह है कि रोगी स्टेरौयड सुन कर ही इन्हेलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहते लेकिन लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि कोरटिकोस्टेरौयड प्राकृतिक रूप से शरीर में भी बनता है जो शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है. इसलिए यह बच्चों के साथसाथ गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित है.’’

रेस्पिरेटरी मैडिसन में प्रकाशित अध्ययन लेख के अनुसार, अस्थमा के लिए इन्हेलेशन थैरेपी और क्लिनिकल प्रभाव के बीच संबंध सकारात्मक है. अध्ययन में वयस्कों, किशोरों और बच्चों में अस्थमा के लक्षणों व फेफड़ों के काम को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में सुधार दिखा है.

सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए बहुत ही कम मात्रा (तकरीबन 25 से 100 माइक्रोग्राम) कोरटिकोस्टेरौयड की जरूरत होती है लेकिन ओरल दवाओं या टैबलेट में ज्यादा मात्रा (तकरीबन 10 हजार माइक्रोग्राम) शरीर में चली जाती है और दवा की बहुत ही कम मात्रा फेफड़ों तक पहुंचती है. अस्थमा रोगी गोली या टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है.

डा. सुशील मुंजाल बताते हैं, ‘‘ओरल दवाओं की ज्यादा मात्रा पहले रक्त में घुल कर सभी अंगों में पहुंचती है जिस में फेफड़े भी शामिल हैं लेकिन इन्हेलेशन थैरेपी में कोरटिकोस्टेरौयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरौयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थैरेपी से मिलती है.’’ इस तरह आसान विकल्पों से रोगी सर्दी के मौसम में अस्थमा को नियंत्रित कर के मौसम का भरपूर मजा ले सकते हैं.

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