Top 10 very short Motivational stories in hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट मोटिवेशनल कहानी छोटी सी. तो पढ़िए वो छोटी-छोटी कहानियां. जिन्हें पढ़ने के बाद आपको प्रेरणा तो मिलेगी ही. साथ ही आपके जीवन में सफलता के नए आयाम भी अग्रसर होंगे. दरअसल, कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती है. जहां से बाहर निकलना हमारे लिए असंभव सा हो जाता है. ऐसे में हमे प्रेरणा की अति आवश्यकता पड़ती है और सरिता पत्रिका मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित आर्टिकल व कहानियां इंसान को उनकी ज्यादातर परेशानियों का हल देती है.
Special Inspirational Stories in Hindi : सफलता की वो कहानियां जो बदल सकती हैं आपके जीवन को
1. नारायण बन गया जैंटलमैन
कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.
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2. का से कहूं : सहेलियों की व्यथा की दिल छूती कहानी
कहने को तो मैं बाजार से घर आ गई थी पर लग रहा है मेरी खाली देह ही वापस लौटी है, मन तो जैसे वहीं बाजार से मेरी बचपन की सखी सुकन्या के साथ चला गया था. शायद उस का संबल बनने के लिए. आज पूरे 3 वर्ष बाद मिली सुकन्या, होंठों पर वही सदाबहार मुसकान लिए. यही तो उस की विशेषता है, अपनी हर परेशानी, हर तकलीफ को अपनी मुसकराहट में वह इतनी आसानी, इतनी सफाई से छिपा लेती है कि सामने वाले को धोखा हो जाता है कि इस लड़की को किसी तरह का कोई गम है.
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3. एक इंच मुस्कान
“अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली. “मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया. “अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली. “मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”
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4. कशमकश : दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?
मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा. ‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’
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5. राधेश्याम नाई : आखिर क्यों खास था राधेश्याम नाई ?
‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’ राजेश तो राधेश्याम का गुण गाए जा रहा था और मुझे उस का यह राग जरा भी पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि गगन टायर कंपनी वालों ने मुझे राधेश्याम का परिचय कुछ अलग ही अंदाज से दिया था. गगन टायर का शोरूम राधेश्याम की दुकान के ठीक सामने सड़क पार कर के था. मैं उन के यहां 5 दिनों से बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट बहीखातों का निरीक्षण अपने सहयोगियों के साथ कर रहा था. कंपनी के अधिकारियों ने इस नाई के बारे में कहा था कि यह दिमाग से जरा खिसका हुआ है. अपनी ऊलजलूल हरकतों से यह बाजार का माहौल खराब करता है. चीखचिल्ला कर ड्रामा करता है और टोकने पर पड़ोसियों से लड़ता है.
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6. जूमजूम झूम वाला : लड़कियों की फोटो खींचना कैसे पड़ गया भारी हेमंत और रोहित को ?
रोहित ने शान से अपना नया स्मार्टफोन निकाल कर अपने दोस्तों को दिखाया और बोला, ‘‘यह देखो, पूरे 45 हजार रुपए का है.’’ ‘‘पूरे 45 हजार का?’’ रमन की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘आखिर ऐसा क्या खास है इस मोबाइल में?’’ ‘‘6 इंच स्क्रीन, 4 जीबी रैम, 32 जीबी आरओएम, 16 एमपी ड्यूल सिम, 13 मेगापिक्सल कैमरा…’’ रोहित अपने नए फोन की खासीयतें बताने लगा. रोहित के पापा शहर के बड़े व्यापारी थे. रोहित मुंह में सोने का चम्मच ले कर पैदा हुआ था. उस की जेब हमेशा नोटों से भरी रहती थी इसलिए वह खूब ऐश करता था.
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7. चाहत : एक गृहिणी की ख्वाहिशों की दिल छूती कहानी
‘थक गई हूं मैं घर के काम से. बस, वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर की सारी टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं. अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,’ शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं. एक बार अपनी बोरियतभरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान बनाया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.
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8. पांच रोटियां, पंद्रह दिन
धनबाद के पास एक कोयले की खान में सैकड़ों मजदूर काम करते थे. मंगल सिंह उन में से एक था. उसे हाल ही में नौकरी पर रखा गया था. उस के पिता भी इसी खान में नौकरी करते थे, लेकिन एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. खान के मालिक ने मंगल सिंह को उस के पिता की जगह पर रख लिया था. मंगल सिंह 18 वर्ष का एक हंसमुख और फुरतीला जवान था. सुबहसुबह नाश्ता कर के वह ठीक समय पर खान के अंदर काम पर चला जाता था. उस की मां उस को रोज एक डब्बे में खाना साथ में दे दिया करती थीं. अपने कठिन परिश्रम औैर नम्र स्वभाव केकारण वह सब का प्यारा बन गया था. बरसात का मौसम था. सप्ताह भर से जोरों की वर्षा हो रही थी. खान के ऊपर चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता था.
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9. आंधी से बवंडर की ओर : क्या सोनिया अपनी बेटी को मशीनी सिस्टम से निजात दिला पाई ?
फन मौल से निकलतेनिकलते, थके स्वर में मैं ने अपनी बेटी अर्पिता से पूछा, ‘‘हो गया न अप्पी, अब तो कुछ नहीं लेना?’’ ‘‘कहां, अभी तो ‘टी शर्ट’ रह गई.’’ ‘‘रह गई? मैं तो सोच रही थी…’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बोली, ‘‘हां, मम्मा, आप को तो लगता है, बस थोडे़ में ही निबट जाए. मेरी सारी टी शर्ट्स आउटडेटेड हैं. कैसे काम चला रही हूं, मैं ही जानती हूं…’’ सुन कर मैं निशब्द रह गई. आज की पीढ़ी कभी संतुष्ट दिखती ही नहीं. एक हमारा जमाना था कि नया कपड़ा शादीब्याह या किसी तीजत्योहार पर ही मिलता था और तब उस की खुशी में जैसे सारा जहां सुंदर लगने लगता.
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10. पश्चात्ताप की आग
बरसों पहले वह अपने दोनों बेटों रौनक और रौशन व पति नरेश को ले कर भारत से अमेरिका चली गई थी. नरेश पास ही बैठे धीरेधीरे निशा के हाथों को सहला रहे थे. सीट से सिर टिका कर निशा ने आंखें बंद कर लीं. जेहन में बादलों की तरह यह सवाल उमड़घुमड़ रहा था कि आखिर क्यों पलट कर वह वापस भारत जा रही थी. जिस ममत्व, प्यार, अपनेपन को वह महज दिखावा व ढकोसला मानती थी, उन्हीं मानवीय भावनाओं की कद्र अब उसे क्यों महसूस हुई? वह भी तब, जब वह अमेरिका के एक प्रतिष्ठित फर्म में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर थी. साल के लाखों डालर, आलीशान बंगला, चमचमाती कार, स्वतंत्र जिंदगी, यानी जो कुछ वह चाहती थी वह सबकुछ तो उसे मिला हुआ था, फिर यह विरक्ति क्यों? जिस के लिए निशा ससुराल को छोड़ कर आत्मविश्वास और उत्साह से भर कर सात समंदर पार गई थी, वही निशा लुटेपिटे कदमों से मन के किसी कोने में पछतावे का भाव लिए अपने देश लौट रही थी.