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बिन घुंघरू की पायल : भाग 2

भाभी ने लाख सेवा की. भैया ने डाक्टरों को दिखाने में कोई कमी न की पर उन्हें जाना था, सो चली गईं. रुन?ान कुछ दिन बहुत उदास रही, फिर धीरेधीरे सब ठीक हो गया. भाभी के फिर बच्चा होने वाला था. नए भाईबहन के आने के एहसास से पायल बहुत खुश थी. फिर वह दिन भी आ गया जिस का सब को इंतजार था पर कितना दुखद दिन था वह. भाभी अस्पताल से वापस न आ पाईं. केस बिगड़ गया था. डाक्टर न बच्चे को बचा पाए, न भाभी को. 5 साल की उस अबोध बच्ची को मैं अपने पास ले आई थी. उस के पैरों में बंधी पायल, जो भाभी मरने से कुछ दिनों पहले ही लाई थीं, की रुन?ान में मैं कभी मां को और कभी निशा भाभी को ढूंढ़ने की कोशिश करने लगती. भाभी की पायल और मां की रुन?ान को मैं ने स्नेह और प्यार की डोर में इस कदर बांध लिया था कि वह एक हद तक उन्हें भूल गई थी. भैया को देख कर दिल में टीस सी उठती. भरी दोपहरी में अकेले जो रह गए थे.

2 साल में 2 सदमे सहे थे, इसलिए टूट से गए थे. काफी समय से मेरे पति का विदेश जाने का प्रस्ताव विचाराधीन था. अब सरकार की ओर से उन्हें 5 साल के लिए कनाडा भेजा जा रहा था. मैं ने भैया से पायल को भी अपने साथ ले जाने की स्वीकृति चाही. तब वे इतना ही कह पाए थे, ‘‘पायल निशा की आखिरी निशानी है. इतनी दूर चली जाएगी तो इसे देखे बिना मैं कैसे जी पाऊंगा?’’ उन के दिल का दर्द इन चंद शब्दों में सिमट कर आ गया था. फिर मैं पायल को ले जाने की जिद नहीं कर पाई थी. 5 साल हम कनाडा में रहे. इस बीच भैया के पत्र आते रहे. भैया ने दूसरा विवाह कर लिया था.

पायल के 2 छोटेछोटे भाई हो गए थे. 5 साल बाद जब स्वदेश लौटने का समय आया तो मन में सब से बड़ी इच्छा पायल को देखने की थी. वह गोलमटोल गुडि़या अब कैसी लगती होगी? उसे मेरी याद भी होगी या नहीं? ऐसे ही न जाने कितनी बातें रास्तेभर सोचती रही थी. मुंबई पहुंचने के बाद सब से पहले भैया के पास दिल्ली जाने का फैसला किया. भैया को आश्चर्य में डालने के लिए बिना सूचना के ही दिल्ली पहुंच गए. जुलाई की उमसभरी दोपहरी में दिल्ली तप रही थी. भैया के घर पहुंच कर द्वार पर दस्तक दी. जो शायद कूलर की आवाज में ही दब कर रह गई. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. हाथ से ठेलते ही खुल गया. रसोईघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी. सोचा, भाभी वहीं होंगी, सो सीधी वहीं चली गई. एक दुबलीपतली 11-12 साल की लड़की मैली सी फ्रौक पहने नल के पास बैठी बरतन धो रही थी. मु?ो अचानक देख कर जल्दी से हाथ धो कर खड़ी हो गई.

 

पिया बावरा : भाग 2

बच्चे क्या जानें कि वीणा सुहानी को ले कर कितनी हिंसक हो उठी थी. एक दिन गुस्से में  उस ने कहा भी था, ‘आप अगर सोचते हैं कि मैं आप से तलाक ले लूंगी और आप मजे से उस से शादी कर लेंगे तो मैं आप को याद दिला दूं कि मैं उस बाप की बेटी हूं जो अपनी जिद के लिए कुछ भी कर सकती है. मेरे एक इशारे पर आप की वह प्रेमिका कहां गायब हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा.’

वीणा की धमकियां जैसेजैसे बढ़ रही थीं वैसेवैसे सुभाष की घबराहट भी बढ़ रही थी…वे अच्छी तरह जानते थे कि इस आयु में बड़ेबड़े बच्चों के सामने पत्नी को तलाक देना या दूसरा विवाह करना उन के लिए सरल न होगा. पर सुहानी को वीणा सताए यह भी उन्हें स्वीकार नहीं था. इसलिए ही उन्होंने सुहानी से कहा था कि वह जितनी जल्दी हो सके यहां से लंबे समय के लिए कहीं दूर चली जाए.

अगले दिन सुहानी को नर्सिंग होम में न देख कर वीणा बोली थी, ‘उसे भगा दिया न. क्या मैं उसे खोज नहीं सकती. पाताल से भी खोज कर उसे अपनी राह से हटाऊंगी. तुम समझते क्या हो अपनेआप को.’

‘इतनी नफरत किस काम की,’ गुस्से से डा. सुभाष ने कहा था, ‘क्या इस उम्र में मैं दूसरी शादी कर सकता हूं.’

‘प्यार तो कर रहे हो इस उम्र में.’

‘नहीं, किसी ने गलत खबर दी है.’

‘किसी ने गलत खबर नहीं दी,’ वीणा फुफकारती हुई बोली, ‘मैं ने स्वयं आप का पीछा कर के अपनी आंखों से आप दोनों को एकदूसरे की बांहों में सिमटते देखा है.’

डा. सुभाष स्तब्ध थे, कितनी तेज है यह औरत. घबरा कर कहा, ‘अपने बच्चों को भी तो हम किसी अच्छी बात पर प्यार कर लेते हैं.’

‘शर्म नहीं आती तुम को इतना झूठ बोलते हुए,’ वीणा के अंदर का झंझावात बुरी तरह उफन रहा था.

उस दिन पत्थर तोड़ते हुए हीरा ने कहा, ‘‘डाक्टर आप चाहते तो बच सकते थे. आप ने बीवी की कार का पीछा क्यों किया. अच्छेभले नर्सिंग होम में बैठे रहते तो बच जाते.’’

‘‘मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि वीणा के पिता के आदमी उस की सुरक्षा में लगे हुए थे. शायद हत्या की सुपारी लेने वाला अपना काम न कर पाता,’’ हीरालाल की सहानुभूति पा कर

डा. सुभाष ने भी बोल दिया.

‘‘उस के आदमी चारों तरफ सुरक्षा में फैले रहते हैं. तभी तो आप आसानी से अंदर हैं.’’

मां का घर : भाग 2

लगभग 2 घंटे बाद अजय भैया का फोन आया. फोन पर भैया ने जो कहा, सुन कर सुप्रिया के चेहरे का रंग बदलने लगा. पूजा उस के और पास चली आई. सुप्रिया ने पूरी बात सुन कर जैसे ही फोन रखा, पूजा ने उसे झकझोरा, ‘‘बता न सुप्रिया, अजय भैया ने क्या कहा?’’

सुप्रिया सोफे पर ढह गई. उस ने आंखें बंद कर लीं. पूजा ने चीखते हुए पूछा, ‘‘सुप्रिया, मां को कुछ हुआ तो नहीं?’’

सुप्रिया ने किसी तरह अपने को संभालते हुए कहना शुरू किया, ‘‘पूजा, तुम्हें यह खबर सुनने के लिए अपने को कंट्रोल करना होगा. सुनो…भैया बैंक गए थे. वहां पता चला कि अनुराधाजी ने पिछले महीने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. तुम्हारी शादी और पढ़ाई के लिए उन्होंने बैंक से लोन लिया था, अपना फ्लैट बेच कर उन्होंने कर्ज चुका दिया और शायद उन्हीं बचे पैसों से तुम्हें 5 लाख रुपए भेजे.’’

पूजा की आंखें बरसने लगीं, ‘‘मां ने ऐसा क्यों किया? वे हैं कहां, सुप्रिया?’’

सुप्रिया ने धीरे से कहा, ‘‘वे अपनी मरजी से कहीं चली गई हैं, पूजा…’’

‘‘कहां?’’

दोनों सहेलियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि मां कहां गईं. सुप्रिया ने पूजा के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं जहां तक तुम्हारी मां को जानती हूं वे संतुलित और आत्मविश्वासी महिला हैं. तुम्हारे पिताजी की मृत्यु के बाद जिस तरह से उन्होंने खुद को और तुम्हें संभाला वह तारीफ के काबिल है. तुम्हीं ने बताया था कि तुम्हारे ताऊजी और दादी ने मां से कहा था कि वे तुम्हारे चाचा से शादी कर लें…पर मां ने यह कह कर मना कर दिया था कि वे अपनी बेटी को खुद पाल सकती हैं. उन्होंने किसी से 1 रुपए की मदद नहीं ली.’’

पूजा ने हां में सिर हिलाया और बोली, ‘‘इस के बाद दादी और ताऊजी हम से मिलने कभी नहीं आए. मेरी शादी में भी नहीं.’’

सुप्रिया ने अचानक पूछा, ‘‘पूजा, तुम्हें याद है, हम जब 10वीं में थे तो एक दिन तुम मेरे घर रोती हुई आई थीं मुझे यह बताने कि तुम्हारी मां कहीं और शादी कर रही हैं और तुम ऐसा नहीं चाहतीं.’’

पूजा का चेहरा पीला पड़ गया. उस घटना ने तो पूजा को तोड़ ही दिया था. पूजा को हलकी सी याद है समीर अंकल की. मां के साथ बैंक में काम करते थे. हंसमुख और मिलनसार. जिस समय पापा गुजरे, मां की उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं थी. मां बिलकुल अकेली थीं. न ससुराल से कोई उन से मिलने आता न मायके से. मायके में एक बड़ी और बीमार दीदी के अलावा दूसरा कोई था भी नहीं.

समीर अंकल कभीकभी घर आते. मां और उसे पिक्चर दिखाने या रेस्तरां में ले जाते. वह मुंबई में अकेले रहते थे. मां ने ही कभी बताया था पूजा को कि बचपन में वे पोलियो का शिकार हो गए थे. एक पांव से लंगड़ा कर चलते थे. कभी शादी नहीं की यह सोच कर कि एक अपंग के साथ कोई कैसे निर्वाह करेगा. मां की तरह उन्हें भी शास्त्रीय गायन का बहुत शौक था. जब भी वे घर आते, मां के साथ मिल कर खूब गाते, कभी ध्रुपद तो कभी कोई गजल.

उसी दौरान एक दिन जब मां ने एक रात 15 साल की पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहा था, ‘पूजा, मेरी गुडि़या, हर बच्चे को जिंदगी में मांपिताजी दोनों की जरूरत होती है. मैं भी तेरी उम्र की थी, जब मेरे पापा गुजर गए थे. मैं चाहती हूं कि तुझे कम से कम इस बात की कमी न खटके. पूजा, मेरी बच्ची, समीर तेरे पापा बनने को तैयार हैं…अगर तू चाहे…’

पूजा बिफर कर उठ बैठी थी और जोर से चिल्ला पड़ी थी, ‘मां, तुम बहुत बुरी हो. मुझे नहीं चाहिए कोई पापावापा. तुम बस मेरी हो और मेरी रहोगी. मैं समीर अंकल से नफरत करती हूं. उन को कभी यहां आने नहीं दूंगी.’

सुप्रिया ने तब पूजा को समझाया था कि जब समीर अंकल मां को अच्छे लगते हैं, उस का भी खयाल रखते हैं तो वह मां की शादी का विरोध क्यों कर रही है?

‘मैं मां को किसी के साथ बांट नहीं सकती, सुप्रिया. समीर अंकल के आते ही मां मुझे भूल जाएंगी. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.’

इस के बाद सब शांत हो गया. मां ने कभी समीर अंकल की बात उठाई ही नहीं. जिंदगी पुराने ढर्रे पर आ गई. बस, समीर अंकल का उन के घर आना बंद हो गया. बाद में उस ने मां को किसी से फोन पर कहते सुना था कि समीरजी की तबीयत बहुत खराब हो गई है और वे कहीं और चले गए हैं.

पूजा ने सिर उठाया, ‘‘सुप्रिया, लेकिन मां के गायब होने का इस बात से क्या संबंध है?’’

सुप्रिया ने सिर हिलाया, ‘‘पता नहीं पूजा, लेकिन भाई कह रहे थे कि अनुराधाजी ने कई दिन से अपना घर बेचने और नौकरी छोड़ने की योजना बना रखी थी. अचानक एक दिन में कोई ऐसा नहीं करता. तुम बताओ कि तुम्हारी शादी के बाद वे यहां क्यों नहीं आईं?’’

‘‘मां हमेशा कहती थीं कि मैं तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी में दखल नहीं दूंगी. तुम्हारी अपनी जिंदगी है, अपनी तरह से चलाओ.’’

‘‘हुंह, यह भी तो हो सकता है न पूजा कि वे तुम्हें अकेले रहने का मौका दे रही हों? तुम आज तक उन से अलग नहीं रहीं, यह पहला मौका है. वे हर बार तुम से पूछती थीं कि तुम खुश तो हो?’’

पूजा सोच में डूब गई. जिस दिन शादी के बाद वह दिल्ली के लिए निकल रही थी, मां अपने कमरे से बाहर ही नहीं आईं. टे्रन का समय हो गया था और उसे मां से बिना मिले ही निकलना पड़ा. रास्ते भर वह सोचती रही कि मां ने ऐसा क्यों किया? उस के टे्रन में बैठते ही मां का फोन आ गया कि उन्हें चक्कर सा आ गया था. शादी के कामों में वे बुरी तरह थक गई थीं. पूजा का मन हुआ कि मां के पास वापस लौट जाए, लेकिन जब बगल में बैठे पति सुवीर ने प्यार से उस का हाथ दबाया, तो सबकुछ भूल कर वह नई जिंदगी के सपनों की झंकार से ही रोमांचित हो गई.

पुनर्जन्म : भाग 2

‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’

‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध…’’

‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’

‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’

‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’

‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.

शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.

मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.

यश और उस के परिवार की जरूरतों के लिए मां शिखा को उसी स्वर में याद दिलाया करती थीं जिस में वह कभी पापा से घर के बच्चों की जरूरतें पूरी करने को कहती थीं यानी मां के खयाल में यश का परिवार शिखा का उत्तरदायित्व था. शिखा को इस से कुछ एतराज भी नहीं था. उस की अपनी इच्छाएं तो सूरज से बिछुड़ने के साथ ही खत्म हो गई थीं. उसे यश या उस के परिवार से कोई शिकायत भी नहीं थी, बस, बीचबीच में पापा के अंतिम शब्द, ‘जब ये दोनों अपने घरपरिवार में व्यवस्थित हो जाएंगे तो तू अकेली क्या करेगी, बेटी? जिन सपनों की तू ने आज आहुति दी है उन्हें पुनर्जीवित कर के फिर जीएगी तो मेरी भटकती आत्मा को शांति मिल जाएगी. जिस तरह तू मेरी जिम्मेदारियां निभाने को कटिबद्ध है, उसी तरह मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने को भी रहना,’ याद आ कर कचोट जाते थे.

ऐसा ही कुछ सूरज ने भी कहा था, ‘जिस तरह अपने परिवार के प्रति तुम्हारा फर्ज तुम्हें शादी करने से रोक रहा है उसी तरह अपने मातापिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ साल तक तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी होने के इंतजार में शादी न करने के फैसले पर मैं चाह कर भी अडिग नहीं रह पा रहा. कैसे जी पाऊंगा किसी और के साथ, नहीं जानता, लेकिन फिलहाल दफ्तर और घर के दायित्व निभाने में मेरा और तुम्हारा समय कट ही जाया करेगा लेकिन जब तुम दायित्व मुक्त हो जाओगी तब क्या करोगी, शिखा? मैं यह सोचसोच कर विह्वल हो जाया करूंगा कि तुम अकेली क्या कर रही होगी.’

‘फुरसत से तुम्हारी यादों के सहारे जी रही हूंगी और क्या?’

‘जीने के लिए यादों के सहारे के अलावा किसी अपने के सहारे की भी जरूरत होती है. मैं तो खैर सहारे के लिए नहीं मांबाप की जिद से मजबूर हो कर शादी कर रहा हूं लेकिन तुम जीवन की सांध्यवेला में अकेली मत रहना. मेरे सुकून के लिए शादी कर लेना.’

यश के परिवार के रहते अकेली होने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन घर में अपनेपन की ऊष्मा ऋचा के जाते ही खत्म हो गई थी और रह गया था फरमाइशों और शिकायतों का अंतहीन सिलसिला. शिकायत करते हुए यश और मां को अपनी फरमाइश की तारीख तो याद रहती थी लेकिन यह पूछना नहीं कि शिखा किस वजह से वह काम नहीं कर सकी.

वैसे भी लगातार काम करतेकरते वह काफी थक चुकी थी और छुट्टियां भी जमा थीं सो उस ने सोचा कि कुछ दिन को कहीं घूम ही आएं. उस की सचिव माधवी मेनन जबतब केरल की तारीफ करती रहती थी, ‘तनमन को शांति और स्फूर्ति से भरना हो तो कभी भी केरल जाने पर ऐसा लगेगा कि आप का पुनर्जन्म हो गया है.’

अगले रोज उस ने माधवी से पूछा कि वह काम की थकान उतारने को कुछ दिन शोरशराबे से दूर प्रकृति के किसी सुरम्य स्थान पर रहना चाहती है, सो कहां जाए?

‘‘वैसे तो केरल में ऐसी जगहों की भरमार है,’’ माधवी ने उत्साह से बताया, ‘‘लेकिन आप को त्रिचूर का अथरियापल्ली वाटरफाल बहुत पसंद आएगा. वहां वन विभाग का सभी सुखसुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस भी है. तिरुअनंतपुरम के अपने आफिस वाले त्रिचूर के जिलाध्यक्ष से कह कर आप के रहने का प्रबंध करवा देंगे.’’

‘‘लेकिन वहां तक जाना कैसे होगा?’’

‘‘तिरुअनंतपुरम तक प्लेन से, उस के बाद आप को एअरपोर्ट से अथरियापल्ली तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने आफिस वालों की होगी. आप अपने जाने की तारीख तय करिए, बाकी सब व्यवस्था मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.

‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

न उम्र की सीमा हो : भाग 2

विकास के दिल की भी यही हालत थी. वह भी चाहता था रातदिन नलिनी के साथ रहे. वह नलिनी के प्रेम में पूरी तरह डूब चुका था और नलिनी उस के.

फिर एक दिन विकास ने नलिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव भी रख दिया और उसे समझाया कि तुम्हारी मम्मी बाद में भी हमारे साथ रह सकती हैं. अब तुम उन से बात कर लो.

जब नलिनी ने अपनी मां से इस विवाह की बात की तो उन्होंने तूफान खड़ा कर दिया. ऐसीऐसी बातें कीं, जिन्हें सुन कर नलिनी को शर्म आ गई. उन्होंने उसे अधेड़ कुंआरी मान लिया था. दोनों बेटे विदेश में थे, कुसुम की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, वे अपने भविष्य की सुखसुविधाओं के लिए नलिनी के विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी.

नलिनी मां को समझासमझा कर थक गई कि विवाह के बाद भी उन का ध्यान रखेगी, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं और रोरो कर इतना तमाशा किया कि नलिनी ने ही हार मान ली.

विकास ने यह सब सुना तो बहुत दुखी हुआ. वह उन के मन बदलने का इंतजार करने के लिए तैयार था. औफिस में पूरा दिन दोनों उदास रहे. कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शाम को विकास ने नलिनी को उदास व गंभीर देख कर कहा, ‘‘चलो, वीकैंड पर काशिद बीच घूम आते हैं. कुछ मन बहल जाएगा. सोचते हैं, क्या कर सकते हैं.’’

थोड़े संकोच के बाद नलिनी तैयार हो गई. वह कब तक अपनी इच्छाओं को दबाए? क्या वह अपने लिए कभी नहीं जी पाएगी? वह विकास के साथ खुशीखुशी घूम कर आएगी.

शनिवार को निकलना था, शुक्रवार की रात उसे नींद नहीं आई. उसे अजीबअजीब एहसास होता रहा. वह सोचती रही, क्या विवाह से पहले वाली शाम को दुलहनें ऐसा ही महसूस करती होंगी. पहली बार उस ने कुछ अपनी खुशी के लिए सोचा है, क्या मां कभी नहीं सोचेंगी कि उसे भी किसी की जरूरत है, किसी का प्यार चाहिए, ये सब सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

नलिनी आवेगी नहीं थी, पूरा समय लगा कर हर काम करती. विकास के साथ जाने के लिए उस ने अच्छी तरह सोचसमझ लिया और जब हर कोण और नजरिए से सोच लिया था तभी फैसला लिया. उस की मां को उस का जाना अच्छा नहीं लगेगा वह जानती थी. इन दिनों वह जो भी करती या कहती, उस की मां को उस पर संदेह होता. उसे बैग पैक करते देख उस की मां की आंखों में संदेह उभर आया. वह जानती थी मां क्या सोच रही हैं, वह अकेली जा रही है या उस के साथ कोई है.

उस ने मां को इतना ही बताया, ‘‘औफिस से फैमिली पिकनिक जा रही है, मैं भी जा रही हूं.’’

‘‘आज से पहले तो कभी पिकनिक पर नहीं गई?’’ वे बोलीं.

‘‘आज जा रही हूं, पहली बार.’’

विकास की कार से ही दोनों 3 घंटे में काशिद बीच पहुंच गए. होटल में

रूम लिया, फिर खाना खाया. थोड़ा घूम कर आए. रूम में पहुंच कर विकास ने नलिनी को अपनी बांहों में ले लिया. बोला, ‘‘तुम्हारी आंखों की हसरत, दिल के रंग मुझे दिखते हैं नलिनी.’’

नलिनी कसमसा उठी. देह का अपना संगीत, अपना राग होता है. उसे पहले कभी कुछ इतना अच्छा नहीं लगा था. एक कसक भरे तनाव ने उसे जकड़ लिया, वह विकास की बांहों में बंधी झरने के पानी की तरह बहती चली गई. जीवन में पहली बार उस ने अनुभव किया कि पुरुष का शरीर तपता हुआ लोहा है और वह हर औरत की तरह मोम सी पिगलती जा रही है. उस दिन वे पहली बार एक हुए. चांद जब होटल की खिड़की से आधी रात को झांकता तो देखता, दोनों परम तृप्त, बेसुध, एकदूसरे पर समर्पित नींद में होते.

संडे दोपहर तक दोनों एकदूसरे में खोए रहे, अब वापस मुंबई के लिए निकलना था. घर आते समय नलिनी कई बातों को ले कर मन में व्यथित थी. विकास ने कई बार पूछा, लेकिन वह टाल गई. घर आ कर चुपचाप सो गई. मां ने भी थकान समझ कर कुछ नहीं कहा.

लेकिन अगले दिन औफिस के लिए तैयार होते हुए वह शीशे के सामने बैठ गई. 2 दिन से जो बात मन में बैठ गई थी, वह साफ दिखाई देने लगी. वह अपनी आंखों के नीचे उम्र के दायरे देख थोड़ा सहमी. बारीक लकीरें उम्र की चुगली कर रही थीं. उस ने सोचा वे कैसे लगते हैं एक युवक और एक अधेड़ महिला, समय के साथ स्थिति और बिगड़ेगी ही. उसे आजकल वे सारी निगाहें चुभने लगी थीं जो अकसर होटलों,

पार्कों में उन्हें घूरती थीं. वे बेमेल थे और विकास जो चाहे कह ले इस सच को बदला नहीं जा सकता था.

अभी काशिद बीच पर लोगों की नजरें उसे याद आ रही थीं. उसे लगा वह हर समय यही सोच कर डरती रहेगी कि वह उस से पहले बूढ़ी हो जाएगी और विकास कहीं उस से मुंह न फेर ले. फिर वह विकास के बिना कैसे जी पाएगी. वह शीशे के सामने बैठी बहुत देर तक अपनी सोच में गुम रही. फिर दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला उस ने ले ही लिया जो उस के लिए इतना आसान नहीं था.

नलिनी ने औफिस से पहली बार 1 हफ्ते की छुट्टी ले ली. विकास ने उस के मोबाइल पर कई बार फोन किया, लेकिन उस ने नहीं उठाया. वह पता नहीं किन सोचों में घिरी रहती. उस की मां चुपचाप उसे देखती रहतीं, बोलतीं कुछ नहीं.

जब विकास रातदिन कई बार फोन करता रहा तो उस ने अपनेआप को मजबूत बनाते हुए विकास से कह ही दिया, ‘‘इतने दिन से मैं खुद को समझाने की कोशिश कर रही हूं कि इस से फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने प्यार से उम्र के फासले को पाट लेंगे पर मुझे नहीं लगता मैं ऐसा कर पाऊंगी. जब भी लोग हमें देखते हैं, मुझे उन की नजरों में प्रश्न दिखता है. यह इस औरत के साथ क्या कर रहा है, मुझे बहुत दुख होता है. मैं बड़ी हूं और मैं इस खयाल के साथ नहीं जी सकती कि एक दिन तुम इस रिश्ते पर पछताओ या मुझ से दूर हो जाओ और मैं खाली हाथ रह जाऊं. काशिद पर घूमते हुए लोगों की नजरें तुम्हें याद हैं न?’’

विकास नलिनी को समझाता रह गया, अपने प्यार का वास्ता देता रहा पर नलिनी के मन में उम्र के फासले को ले कर जो बात बैठ गई थी उसे वह चाह कर भी निकाल नहीं पाई. विकास कभी नलिनी के घर नहीं आया था. औफिस में ही उस के आने का इंतजार करता रहा और जब नलिनी एक दिन अकेलेपन से घबरा कर औफिस चली आई तो विकास उसे देख कर अपनी जगह जमा खड़ा रह गया. नलिनी बहुत उदास और कमजोर लग रही थी. लंचटाइम में विकास उसे जबरदस्ती कैंटीन ले गया. हर तरह से उसे समझाता रहा, लेकिन नलिनी बुत बनी बैठी रही. उम्र के फर्क को नजरअंदाज करने के लिए तैयार नहीं हुई. उस ने जैसे खुद को पत्थर बना लिया था.

फिर विकास ने एक दिन उस से कहा, ‘‘मैं यहां रह कर तुम्हारी बेरुखी सहन नहीं कर सकता. मैं ने दिल्ली शाखा में अपना ट्रांसफर करवा लिया है. तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारा इंतजार करूंगा. जब भी इस बात पर यकीन आ जाए, एक फोन कर देना, मैं चला आऊंगा.’’

नलिनी का चेहरा आंसुओं से भीग गया पर वह कुछ कह न पाई. थोड़े दिन बाद विकास दिल्ली चला गया. जातेजाते भी उस ने नलिनी से अपने सारे वहम निकालने के लिए कहा. लेकिन नलिनी को उस की कोई बात समझ नहीं आई. उस के जाते ही नलिनी फिर खालीपन और अकेलेपन से घिर गई. उसे लगता जैसे उस का शरीर निष्प्राण हो गया है. बाहर से सबकुछ कितना शांत पर भीतर ही भीतर बहुत कुछ टूट कर बिखर गया. सोचती रहती उसे छोड़ कर क्या उस ने गलती की या वैसा करना ही सही था?

विकास ने जब उस के जन्मदिन पर उसे सुबहसुबह फोन किया तो उस की इच्छा हुई कि दौड़ कर विकास के पास पहुंच जाए, लेकिन उस ने फिर खुद पर नियंत्रण रख कर औपचारिक बात की. अब उस के जीवन का एक ढर्रा बन गया था और वह किसी भी तरह इसे तोड़ना नहीं चाहती थी. वह सोचती, उन के बीच जो फासला पसरा हुआ था उसे अभी भी नहीं पाटा जा सकता था शायद यह और लंबा हो गया था.

विकास को गए 4 महीने हो चुके थे. नलिनी की मां की अचानक हृदयघात से मृत्यु हो गई. वह अब बिलकुल अकेली हो गई. कुसुम अपने पति मोहन और दोनों बच्चों के साथ अकसर आ जाती. अभी तक नलिनी मां के साथ अपने वन बैडरूम फ्लैट में आराम से रह रही थी, कुसुम सपरिवार आती तो घर में जैसे तूफान आ जाता. जिस शांति की नलिनी को आदत थी, वह भंग हो जाती और मोहन की भेदती नजरें उस से सहन न होतीं. जितनी तनख्वाह नलिनी की थी उस में उस का और मां का गुजारा आराम से चलता आया था. सोसायटी की मैंटेनैंस, बिजली का बिल, फोन का बिल, जरूरी खर्चों के बाद भी नलिनी आराम से अपने और मां के खर्चों की पूरी जिम्मेदारी निभाती रही थी.

अब कुसुम के परिवार के अकसर रहने पर उस का हिसाब गड़बड़ा जाता. ऊपर से वह कहती रहती, ‘‘आप के अकेलेपन का सोच कर हम यहां भागे चले आते हैं और आप न तो बच्चों की शरारत पर हंसती न मोहन से ठीक से बात करती हैं.’’

एक दिन वह औफिस से अपने लिए कुछ क्रीम वगैरह खरीद कर लौटी तो कुसुम ताने देने लगी, ‘‘भई वाह, मैं तो आप की उम्र में शालीनता से अधेड़ होना पसंद करूंगी. औरत के चेहरे पर छाए संतोष की आभा की कोई बराबरी नहीं है.’’

इन बातों से नलिनी के दिल में टीस सी उठती. ऐसा नहीं था कि उसे बहन के जीवन में भरी खुशियों से कोई जलन होती थी, उसे अब परेशानी थी तो यह कि उस का अपना जीवन अपनी उसी सोई, नीरस, बिनब्याही, ठहरी हुई स्थिति में पड़ा था, न खुशी न गम, बस रोजरोज औफिस आनेजाने का एक रूटीन. उसे विकास की बहुत याद आती. काशिद बीच पर बीता समय याद कर के कई बार रो पड़ती. काश, वह इतनी दब्बू और कायर न होती.

एक दिन वह घर का सामान खरीद रही थी कि बीते समय की एक आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘नलिनी.’’

उस ने मुड़ कर देखा. सामने वह रिश्ता खड़ा था जो बचपन छूटने के साथ खत्म हो गया था. उस के बचपन की सब से प्रिय सहेली मधु पूछ रही थी, ‘‘मुझे भूल गई क्या? पहचाना नहीं?’’

नलिनी खुश हो गई, ‘‘यह तुम ही हो,

मधु? सच?’’

नलिनी को महसूस हुआ जैसे मधु की नजरों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. उसे क्या दिखा होगा? पिछले रूप का एक धुंधला साया, मनप्राणहीन शांत प्राणी, रंगहीन तुच्छ सी औरत जिस के करने के लिए कुछ नहीं था सिवा दुकानों में अनावश्यक सामान खरीदने का बहाना करती अकारण भटकने के.

मधु ने उसे टोका, ‘‘चलो कहीं बैठते हैं.’’

नलिनी ने देखा संतुष्टि की आभा से मधु दमक रही थी. उस की आंखों में चमक थी, बालों में कहींकहीं सफेदी झलक आई थी. हर ओर परिपक्वता थी, बढि़या साड़ी, खूबसूरत ज्वैलरी. कौफी पीते हुए मधु बोली, ‘‘अपने पिता की मृत्यु के बाद तुम ने जिस तरह घर संभाला था, मुझे याद है उस की सब तारीफ करते थे… और बताओ, क्या किया तुम ने अब तक?’’

टाइमपास : भाग 2

‘‘तो ठीक है. जो बाकी है, वह भी कर के अपनी इच्छा पूरी कर लो. मेरे यहां रहने से परेशानी है तो मैं फिर से चली जाती हूं. त्रिशा को इस समय मेरी बहुत जरूरत है. मैं तो तुम्हारे लिए भागी आई हूं. परंतु तुम तो दूसरी दुनिया बसा चुके हो. मैं बेकार में अपना माथा खाली कर रही हूं. व्यर्थ का तमाशा मत बनाओ. मेरे सामने से हट जाओ.’’ घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पार्वती की सिसकियों की आवाज और सामान समेटने की आवाज बीचबीच में आ जाती थी. घर उजड़ रहा था, रीना दुखी थी. उसे पार्वती से ज्यादा रोमेश दोषी लग रहे थे. वह मन ही मन सोच रही थी कि जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे को क्यों दोष दे. कुछ भी हो, पार्वती को यहां से हटाना आवश्यक था. वह उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने पार्वती को अपने घर पर काम करने के लिए रखा था. लगभग 20 वर्ष पहले सुमित्राजी ने पार्वती को उस के पास काम के लिए भेजा था. उस की कामवाली भागवती हमेशा के लिए गांव चली गई थी. 2 बेटियां, पति और बूढ़ी अम्माजी के सारे काम करतेकरते उस की हालत खराब थी. उसे नई कामवाली की सख्त जरूरत थी. सुमित्राजी ने कह दिया था, ‘पार्वती नई है, इसलिए निगाह रखना.’ वह अतीत में खो गई थी. पार्वती का जीवन तो उस के लिए खुली किताब है.

21-22 वर्ष की पार्वती का रंग दूध की तरह सफेद था, गोल चेहरा, उस की बड़ीबड़ी आंखों में निरीहता थी. अपने में सिकुड़ीसिमटी हुई एक बच्चे की उंगली पकड़े हुए तो दूसरे को गोद में उठाए हुए कातर निगाहों से काम की याचना कर रही थी. उसे काम की सख्त जरूरत थी. उस के माथे के जख्म को देख रीना पूछ बैठी थी, ‘ये चोट कैसे लगी तुम्हारे?’ पार्वती धीरे से बोली थी, ‘मेरे आदमी ने हंसिया फेंक कर मारा था, वह माथे को छूता हुआ निकल गया था. उसी से घाव हो गया है.’

‘ऐसे आदमी के साथ क्यों रहती हो?’

‘अब मैं उसे छोड़ कर शहर आ गई हूं. यहां नई हूं, इसलिए ज्यादा किसी को जानती नहीं.’ रीना को पार्वती पर दया आ गई थी, ‘तुम्हारे बच्चे कहां रहेंगे?’ वह पूछ बैठी.

‘जी, जब तक कोठरी नहीं मिलती, वे दोनों बरामदे में बैठे रहेंगे.’ अम्माजी अंदर से बोली थीं, ‘इस को रखना बिलकुल बेकार है. 2-2 बच्चे हैं, सारे घर में घूमते फिरेंगे.’ रीना को रसोई के अंदर पड़े हुए ढेर सारे जूठे बरतन याद आ रहे थे. उस ने पार्वती से बरतन साफ करने को कहा. उस ने फुरती से अच्छी तरह बरतन साफ किए. स्टैंड में लगाए. स्लैब और गैस साफ कर के रसोई में पोंछा भी लगा दिया था. उस के काम से वह निहाल हो उठी थी. धीरेधीरे वह उस की मुरीद होती गई. बच्चे सीधे थे, बरामदे में बैठे रहते थे. मेरे बच्चों के पुराने कपड़े पहन कर खुश होते. टूटेफूटे खिलौनों से खेलते और बचाखुचा खाना खाते. पार्वती मेरे घर के सारे कामों को मन लगा कर करती थी. मेहमानों के आने पर वह घर के कामों के लिए ज्यादा समय देती. वह भी उस का पूरा ध्यान रखती. तीजत्योहार पर वह बच्चों के लिए नए कपड़े बनवा देती थी. पार्वती भी रीना के एहसान तले दबी रहती थी. रीना को अपना आत्मीय समझ वह अपने दिल की बातें कह देती थी.

2 छोटेछोटे बच्चों को पालना आसान नहीं था. पार्वती ने धीरेधीरे आसपास के कई घरों में काम पकड़ लिया था. कहीं झाड़ू तो कहीं बरतन तो कहीं खाना बनाना. वह देखती थी, जैसे चिडि़या अपनी चोंच में दाने भर कर सीधा अपने घोंसले में रुकती है, वैसे ही वह कहीं से कुछ मिलता तो सब इकट्ठा कर के बच्चों के लिए ले आती थी. कपड़े मिलते तो उन्हें काटपीट कर बच्चों की नाप के बना कर पहनाती. उस की कर्मठता से रीना बहुत प्रभावित थी. उस ने अपनी पुरानी सिलाई मशीन उसे दे दी थी जिसे पा कर वह बहुत खुश थी. पार्वती एक दिन महेश को ले कर आई थी, ‘भाभी, मैं इस के साथ शादी करना चाहती हूं.’ रीना उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली थी कि आदमी को अच्छी तरह जांचपरख लेना. कहीं पहले वाले की तरह दूसरा भी हाथ न उठाने लगे.

पार्वती ने खुशीखुशी बताया था कि वह मेरे बच्चों को अपनाएगा और वह पहले की तरह ही काम करती रहेगी. वह 8-10 दिन की छुट्टी ले कर चली गई थी. रोमेश को पता चला तो बोले, ‘गई भैंस पानी में. वह तुम्हें गच्चा दे गई. अब दूसरी ढूंढ़ो. इस के भी पर निकल आए हैं.’ पार्वती अपने वादे की पक्की निकली. वह 10 दिन बाद आ गई थी. परंतु यह क्या? उस का तो रूप ही बदल गया था. अब वह नईनवेली के रूप में थी. लाल बड़ी सी बिंदिया उस के माथे पर सजी हुई थी. होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक, गोरेगोरे पैर पायल, बिछिया और महावर से सजे हुए थे. हाथों में भरभर हाथ चूडि़यां और चटक लाल चमकीली साड़ी पहने हुए थी वह. चेहरे पर शरम की लाली थी. रीना ने मजाकिया लहजे में उस से पूछा था, ‘क्यों री, क्या मंडप से सीधे उठ कर चली आई है?’ रोमेश तो एकटक उस को निहारते रह गए थे. धीरे से बोले, ‘ये तो छम्मकछल्लो दिख रही है.’

वह तो बहुत खुश थी कि चलो इस के जीवन में खुशियों ने दस्तक तो दी. जबकि आसपड़ोस की महिलाओं को गौसिप का एक नया विषय मिल गया था. काश, उस दिन मिसेज गुलाटी की बात रीना मान लेती, उन्होंने उसे सावधान करते हुए कहा था, ‘इस से सावधान रहिएगा. यह बदचलन औरत है. इस के संबंध कई आदमियों से हैं.’ शोभाजी ने नहले पर दहला मारा था, ‘यह बहुत बदमाश औरत है. हम लोगों से साड़ीसूट मांग कर ले जाती है और अपनी झुग्गी पर जाते ही बेच देती है.’ रीना तल्खी से बोली थी, ‘इन बातों से उसे क्या मतलब है. उस का काम वह ठीक से करती है. बस, इतना काफी है.’ पार्वती ने अपने बच्चों के लिए ख्वाब पाल रखे थे. दोनों बच्चों का स्कूल में नाम लिखा दिया था. महेश से शादी के बाद बच्चों से उस का ध्यान बंटने लगा था. वह बच्चों को स्कूल और ट्यूशन भेज कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठी थी. दोनों स्कूल जाने का बहाना कर के इधरउधर घूमा करते थे.

बेटा दीप पानमसाला खाता, पैसा चुरा कर जुआ खेलता. बेटी पूजा चाल के लड़कों से नजरें लड़ाती. दोनों बच्चों की वजह से उस के और महेश के बीच अकसर लड़ाई हो जाती. महेश भी नकली चेहरा उतार कर खूब शराब पीने लगा था. एक दिन वह पूजा को ले कर आई थी. बोली, ‘यह दिनभर आप के पास रहेगी तो चार अच्छी बातें सीख लेगी.’ पूजा को देखे हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह जींसकुरती पहन कर आई थी. उस के कानों में बड़ेबड़े कुंडल थे. वह स्वयं उस खूबसूरत परी को एकटक देखती रह गई थी. वह हाथ में मोबाइल पकड़े हुई थी. उस का मोबाइल थोड़ेथोड़े अंतराल में बजता रहा. वह कमरे से बाहर जा कर देरदेर तक बातें करती रही. वह समझ गई थी कि पूजा का किसी के साथ चक्कर जरूर है. उस ने पार्वती को आने वाले खतरे के लिए आगाह कर दिया. शायद वह भी उन बातों से वाकिफ थी. उस ने महेश की सहायता से आननफानन उस की सगाई करवा दी थी. पार्वती खुश हो कर लड़के वालों के द्वारा दिया हुआ सोने का हार, उसे दिखाने भी लाई थी. उस ने इशारों में उस से 10 हजार रुपए की फरियाद भी कर दी थी. रोमेश ने उसे रुपए देने के लिए हां कर दी थी.

दोषी कौन : भाग 2

लॉकडाउन के दौरान सरकारी दफ्तर भी बंद हैं इसलिए श्रीमति वर्मा और रोहित एक दूसरे से मिल नहीं पा रहे थे .  चूनाभट्टी और रचनानगर के बीच की दूरी कोई 8 किलोमीटर है , रास्ते में जगह जगह पुलिस की नाकाबंदी है जिससे इज्जतदार मध्यमवर्गीय लोग ज्यादा डरते हैं और बेवजह घरों से बाहर नहीं निकल रहे .  इससे फायदा यह है कि वे खुद को कोरोना के संकमण से बचाए हुए हैं . नुकसान यह है प्रेमी प्रेमिकाएं एक दूसरे से रूबरू मिल नहीं पा रहे . जुदाई का यह वक्त उन पति पत्नियों पर भी भारी पड़ रहा है जो एक दूसरे से दूर या अलग फंस गए हैं .

जिन्हें सहूलियत है वे तो वीडियो काल के जरिये एक दूसरे को देखते दिल का हाल बयां कर पा रहे हैं लेकिन शायद श्रीमति वर्मा और रोहित को यह सहूलियत नहीं थी और थी भी तो बहुत सीमित रही होगी क्योंकि रश्मि घर में थी .  श्रीमति वर्मा तो एक बारगी अपने बेडरूम से वीडियो काल कर भी सकतीं थीं लेकिन रोहित यह रिस्क नहीं ले सकता था . जिस प्यार या अफेयर पर दस साल से परदा पड़ा था और जो चोरी चोरी चुपके चुपके परवान चढ़ चुका था वह परदा अगर जरा सी बेसब्री में उठ जाता तो लेने के देने पड़ जाते .

लेकिन न न करते ऐसा हो ही गया . 30 अप्रेल की सुबह श्रीमति वर्मा रोहित के घर पहुँच ही गईं . कहने को तो अब कहानी में कुछ खास नहीं रह गया है लेकिन मेरी नजर में कहानी शुरू ही अब होती है . रश्मि किचिन से चाय बनाकर निकली तो उसने देखा कि रोहित एक महिला से पूरे अपनेपन और अंतरंगता से बतिया रहा है तो उसका माथा ठनक उठा . खुद पर काबू रखते उसने जब इस बात का लब्बोलुआब जानना चाहा तो सच सुनकर उसके हाथ के तोते उड़ गए .

श्रीमति वर्मा ने पूरी दिलेरी से कहा कि वे और रोहित एक दूसरे से प्यार करते हैं और लॉकडाउन की जुदाई उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वे रोहित से मिलने चलीं आईं .  इतना सुनना भर था कि रश्मि का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा उसने सवालिया निगाहों से रोहित की तरफ देखा तो माजरा झट से उसकी समझ आ गया . चोर निगाहों से इधर उधर देखते रोहित की हिम्मत पत्नी से निगाहें मिलकर बात करने की नहीं पड़ी .

रश्मि की हालत काटो तो खून नहीं जैसी थी लिहाजा वह आपा खोते हिस्टीरिया और सीजोफ़्रेनिया के मरीजों जैसी फट पड़ी . जब एक पत्नी का भरोसा आखो के सामने पति पर से उठता है तो उसकी हालत क्या होती होगी यह सहज समझा जा सकता है . अब ड्राइंग रूम में कहानी के तीनों प्रमुख किरदार मौजूद थे और अपनी अपनी भूमिकाएँ तय कर रहे थे . खामोशी से शुरू हुई बात जल्द ही कलह और तू तू मैं मैं में बदल गई . रोहित बेचारा बना प्रेमिका और पत्नी के बीच अपराधियों सरीखा खड़ा था उसके चेहरे से मास्क यानि नकाब उतर चुका था .

कहते हैं सौत तो पुतले या मिट्टी की भी नहीं सुहाती फिर यहाँ तो रश्मि के सामने साक्षात श्रीमति वर्मा खड़ी थीं जिनके चेहरे या बातों में कोई गिल्ट नहीं था . उल्टे हद तो तब हो गई जब बात बढ़ते देख उन्होने रश्मि से यह कहा कि चाहो तो मेरी सारी जायदाद ले लो लेकिन मेरा रोहित मुझे दे दो , मुझे उसके साथ रह लेने दो .

माय स्मार्ट मॉम : क्यों वह अपनी मां से नफरत करती थी ?

‘‘वाउ, कितनी स्मार्ट हैं तुम्हारी मौम. उन की स्किन कितनी सौफ्ट और यंग है. रिअली तुम दोनों मांबेटी नहीं, 2 बहनें लगती हो.’’

प्रिया मुझ से मेरी मौम की तारीफ कर रही थी. मुझे तो खुश होना चाहिए, मगर मैं उदास थी. मुझे जलन हो रही थी अपनी मां से. कोई इस बात पर यकीन नहीं करेगा. कहीं किसी बेटी को अपनी मां से जलन हो सकती है, भला? पर मेरी जिंदगी की यही हकीकत थी.

मैं समझती हूं, मेरी मां दूसरों से अलग हैं. 40-42 वर्ष की उम्र में भी उन की खूबसूरती देख सब हतप्रभ रह जाते हैं.

ऐसा नहीं है कि मैं खूबसूरत नहीं हूं. मैं कालेज की सब से प्यारी और चुलबुली लड़की के रूप में जानी जाती हूं. मगर मौम की खूबसूरती में जो ग्रेस और ठहराव है वह शायद मुझ में नहीं.

इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मेरा बौयफ्रैंड मेरी मां को दीवानों की तरह चाहने लगा. यह सब अचानक नहीं हुआ था. किसी प्लानिंग के तहत भी नहीं हुआ. मैं मां को दोष नहीं दे सकती, पर अचानक सामने आई इस हकीकत ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया. मां की वजह से मेरा बौयफ्रैंड मुझ से दूर हो रहा था. इस बात की कसक मेरे मन में कड़वाहट भरने लगी थी.

2-3 महीने पहले तक कितनी खुश थी मैं. विकास मेरी जिंदगी में एकाएक ही आ गया था. मैं ने फ्रैंच क्लासेज जौइन की थी. कालेज के बाद मैं फ्रैंच क्लासेज के लिए जाती. वहीं मुझे विकास मिला. कूल, हैंडसम और परफैक्ट फिजिक वाले विकास पर मैं पहली नजर में ही फिदा हो गई. उसे भी मैं पसंद आ गई थी. बहुत जल्द हमारे बीच दोस्ती हो गई और फिर हम ने एकदूसरे को जिंदगी के सब से खूबसूरत रिश्ते में बांध लिया.

उन दिनों मैं बहुत खुश रहा करती थी. एक दिन मौम ने टोका, ‘‘क्या बात है, मेरी बिटिया, आजकल गीत गुनगुनाने लगी है, खोईखोई सी रहती है अपनी दुनिया में गुम. जरा मैं भी तो जानूं, किस राजकुमार ने हमारी बेटी की दुनिया खूबसूरत बना दी है?’’

मैं शरमा गई थी. अपनी मौम के गले लग गई. मौम प्यार से मुझे दुलारने लगीं. मैं ने उन के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘मौम, मेरे बाद आप अकेली हो जाओगी न.’’

‘‘मौम, आप शादी कर लो फिर से,’’ एकाएक बोल गई थी मैं.

मौम ने मुझे फिर से गले लगा लिया. कितने प्यारे लमहे थे वो. तब मुझे कहां पता था कि मौम ही मेरी खुशियों को नजर लगा देंगी. वैसे मैं मौम के बहुत करीब हूं. उन की जिंदगी में मेरे सिवा कोई है भी तो नहीं.

20 साल की उम्र में उन की शादी हुई. एक साल बाद मैं पैदा हो गई. इस के अगले साल पापा इस दुनिया से रुखसत हो गए. तब से आज तक मौम ने ही मुझे पालापोसा, बड़ा किया. अपनी जिंदगी के हादसे से वे बिखरी नहीं, बल्कि और भी मजबूत हो कर उभरीं. उन्हें पापा की जगह जौब मिल गई थी. तब से वे मेरे लिए मम्मीपापा दोनों के दायित्त्व निभा रही थीं.

मेरे मनमस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला वह हादसा तब मेरे साथ हुआ जब विकास के प्यार में गुम मैं अपनी दुनिया में मदहोश रहती थी. उस दिन मेरी छुट्टी थी. पर मौम को जिम के लिए निकलना था. वे अभी दरवाजे के पास ही थीं कि पड़ोस की उर्वशी मुझ से मिलने आ गई. उर्वशी की मां भी उसी जिम में जाती थीं जहां मेरी मौम जाया करतीं. दोनों सहेलियां थीं.

मौम के जाते ही उर्वशी मेरे पास बैठती हुई बोली, ‘‘यार, क्या लगती हैं आंटीजी, गोरी, लंबी, छरहरी, लंबेकाले बाल, मुसकराता चेहरा और चमकती त्वचा. सच कहती हूं, जो भी उन को देखे, दीवाना हो जाए.’’

‘‘इट्स ओके, यार. बट, यह मत भूल कि अब उन का नहीं, हमारा समय है. अपनी सुंदरता की चिंता कर.’’ मैं ने उस का ध्यान बांटना चाहा पर वह थोड़ी सीरियस होती हुई बोली, ‘‘यार, मुझे लगता है, समय आ गया है जब तुझे अपनी चिंता करनी चाहिए. तुझे शायद बुरा लगे पर यह सच है कि तेरी मां का अफेयर चल रहा है.’’

‘‘क्या, वाकई?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां. वह कोई और नहीं, नया जिम ट्रेनर है जो तुम्हारी मौम के पीछे पड़ा है.’’

मैं इस बात से चकित तो थी पर प्रसन्न भी थी. मैं खुद चाहती थी कि मौम मेरे बाद किसी से जुड़ जाएं.

मुझे आघात तब लगा जब उर्वशी ने उस जिम ट्रेनर की फोटो दिखाई. वह कोई और नहीं, मेरा विकास ही था.

खुद को संभालना मुझे मुश्किल हो रहा था. मैं समझ नहीं पाई कि विकास ने मेरे प्यार का तिरस्कार किया है या वाकई मौम के आगे मैं कुछ भी नहीं, एकाएक ही मौम के प्रति मेरा मन घृणा और विद्वेष से भर उठा.

अब मैं मौम पर नजर रखने लगी. वाकई वे आजकल ज्यादा ही स्टाइलिश कपड़े पहन कर निकला करतीं. उन के चेहरे पर सदैव एक रहस्यमयी मुसकान खिली होती. वे गुनगुनाने लगी थीं. अपनी ही दुनिया में खोई रहती थीं.

मुझे यह सब देख कर खुश होना चाहिए पर विकास की वजह से मुझे खीझ होती थी. मैं गुमसुम रहने लगी. विकास की नजरों में मुझे मौम का चेहरा नजर आने लगा. वह भी अब मुझ से बचने की कोशिश करता, जितना हो पाता नजरें चुराने का प्रयास करता.

मैं इन परिस्थितियों में घिरी बहुत ही बेचैन रहने लगी. अकसर लगता कि मुझे सारी बात मौम को बता देनी चाहिए. शायद कोई समाधान निकल आए या असलियत जानने के बाद मौम विकास को अपनी जिंदगी से निकाल दें.

एक दिन हिम्मत जुटा कर मैं ने मौम को बातों ही बातों में विकास की फोटो दिखाते हुए बताया कि यही विकास है जिस के लिए मेरे दिल में बहुत सारा प्यार है. मौम उस फोटो को देर तक देखती रहीं. उन का चेहरा पीला पड़ गया था. जरूर उन्हें झटका लगा होगा कि वे जिसे अपना प्यार समझ रही थीं, वास्तव में वह तो उन की बेटी का प्यार है. मैं ध्यान से मौम का चेहरा देखती रही. मन में सुकून था कि अब मौम उसे छोड़ देंगी.

पर हुआ मेरी सोच के विपरीत. मौम अब मुझे ही विकास से दूर रहने की सीख देने लगीं. अगले दिन मैं जब कालेज के लिए तैयार हो रही थी तो मौम मेरे करीब आईं और समझाने के अंदाज में कहने लगीं, ‘‘बेटा, प्यार का रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है. इस में एकदूसरे के लिए मन में विश्वास और सम्मान की भावना जितनी आवश्यक है उतना ही एकदूसरे के प्रति समर्पण भी. यदि कोई तुम्हें प्यार करे तो सिर्फ तुम से करे और यदि ऐसा नहीं है तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल देना ही बेहतर होता है.’’

मैं ने कुछ कहा नहीं, पर मौम का तात्पर्य समझ रही थी. वे मुझे विकास से दूर हो जाने की सलाह दे रही थीं. यह जानते हुए भी कि वे ही हमारे बीच आई थीं, न कि मैं उन के बीच.

उस दिन कालेज जा कर मैं बहुत रोई. मुझे लग रहा था जैसे मेरा सब से कीमती सामान कोई छीन कर भाग गया हो और मैं कुछ भी नहीं कर सकी. सब से ज्यादा दुख मुझे इस बात का था कि मौम ने मेरी खुशी से ज्यादा अपनी खुशी को तवज्जुह दी थी. यह सब मेरे लिए बहुत अप्रत्याशित था. मुझे मौम पर गुस्सा आ रहा था और अकेलापन भी महसूस हो रहा था. एक अजीब सा एहसास था जो न जीने दे रहा था, न मरने. अपनी ही तनहाइयों में कहीं मैं खोने लगी थी.

मैं मौम से कट सी गई जबकि मौम पहले की तरह जिम जाती रहीं. एक दिन मौम के पीछे उर्वशी फिर से मेरे घर आई. मुझे अंदर ले जा धीरे से बोली, ‘‘जानती है, आज तेरी मौम उस विकास के साथ डेट पर जा रही हैं. मेरी मौम ने यह न्यूज दी है मुझे.’’

चौंक गई थी मैं. ‘‘कहां जा रही हैं,’’ मैं ने पूछा.

‘‘मनभावन रैस्टोरैंट. ट्रीट विकास की तरफ से है. कल तेरी मौम का उस जिम में अंतिम दिन है न.’’

‘‘यानी, मौम अब जिम नहीं जाएंगी?’’

‘‘नहीं. मगर आज जब विकास ने डेट पर चलने को कहा तो वे मान गईं. आज वह पक्के तौर पर उन्हें प्रपोज करेगा.’’

मैं ने उसी पल तय कर लिया कि वेश बदल कर मैं उन की बातें सुनने के लिए वहां जरूर जाऊंगी और उसी रैस्टोरैंट में लोगों के सामने मां को उन की इस हरकत के लिए जलीकटी भी सुनाऊंगी.

उर्वशी के बताए समय पर मैं उस रैस्टोरैंट में पहुंच गई. मौम और विकास जहां बैठे थे, उस की बगल वाली टेबल बुक की और बैठ गई. विकास बहुत प्रेम से मौम की तरफ देख रहा था. मेरे तनबदन में आग लग रही थी. थोड़ी इधरउधर की बातों के बाद विकास ने कह ही दिया कि वह उन्हें पसंद करता है. विकास प्रपोज करने के लिए अंगूठी भी साथ ले कर आया था. मैं उठ कर उन के रंग में भंग डालने ही वाली थी कि मौम के शब्दों ने मुझे चौंका दिया.

मौम कह रही थीं, ‘‘विकास, प्रेम समर्पण का दूसरा नाम है. इस में ठहराव जरूरी है. यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो बस, आप उसी के हो जाते हैं. मगर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं. तुम एकसाथ मुझे और प्रिया को प्यार कैसे कर सकते हो?’’

‘‘प्रिया को आप जानती हैं?’’ वह चौंका.

‘‘हां, वह मेरी बेटी है और मैं ने बहुत करीब से उसे तुम्हारे प्यार में सराबोर देखा है. तुम उस से प्यार नहीं करते थे क्या?’’

विकास पहले तो हकबकाया, फिर सपाट लहजे में बोला, ‘‘नो, कुसुमजी, वह तो प्रिया ही मेरे पीछे पड़ी थी. उस में बहुत बचपना है. मुझे तो आप जैसी मैच्योर और ग्रेसफुल जीवनसाथी की आवश्यकता है.’’

‘‘जैसे प्रिया में तुम्हें आज बचपना लगने लगा है, क्या पता वैसे ही आज मैं तुम्हें अच्छी लग रही हूं पर कल मेरी बढ़ती उम्र तुम्हें खटकने लगे? मुझे छोड़ कर तुम किसी और के करीब हो जाओ. विकास, प्यार इंसान के गुणदोष या रंगरूप से नहीं, बल्कि दिल व सोच से होता है. प्यार किसी एक के प्रति समर्पण का नाम है, एक से दूसरे के प्रति परिवर्तन का नहीं.’’

‘‘मगर कुसुमजी, आप भी तो मुझे…’’

विकास ने कुछ बोलना चाहा पर मौम ने उसे रोक दिया, ‘‘नो विकास, आई थिंक, तुम मुझे समझ सकोगे. मैं तुम्हें पसंद करती थी, पर अब, इस से आगे कुछ सोचना भी मत. इट्स माई फाइनल डिसीजन.’’

मौम उठ गई थीं और विकास अवाक सा उन्हें जाता देखता रहा. मैं खुशी से उछलती हुई उठी और पीछे से जा कर मौम को चूम लिया.

नींव के पत्थर : भाग 2

मैं चारों ओर देखने लगा. किरण में झांक कर देखा, तो उस में भी पानी कम रह गया था… लगा, संभवतः यह जीवनरेखा भी किसी रोज अदृश्य हो जाएगी, मेरे परिवार की तरह…‘‘

“हांजी, दस्सो सरदारजी, मैं तुहाडी की सेवा कर सकदां ऐ.. ?’’

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा, तो एक भद्र सरदारजी प्रश्नचिह्न बने खड़े थे. मैं ने उन को गौर से देखा… ‘अरे, यह तो राजी के दादाजी हैं.’

मैं उन को पहचान नहीं पाता, यदि उन की आंखों के ऊपर गहरा निशान न देखता… तो दादू ने अपने बचपन के दोस्त को जमीन बेची है. मन में तसल्ली हुई कि पुरखों की जमीन सुरक्षित हाथों में है. मन में तो हुआ कि राजी के बारे में पूछूं?

राजी के दादाजी ने फिर वही अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘पहचान बताना जरूरी है…?’’ मैं ने उत्तर देने के बजाय प्रश्न किया.

‘‘जी, कोई वी अनजान आदमी, ऐथे चलार तक नहीं पहुंच सकदा… जरूर तुहाडा इस मिट्टी नाल… इस जमीन नाल कोई न कोई संबंध है.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं. मैं अपनी पहचान नहीं बताना चाहता हूं. पर एक शर्त पर कि इस पहचान को आप अपने तक रखेंगे और गिरधारी आप भी.’’

‘‘जी जरूर…’’ राजी के दादाजी ने कहा. मैं ने देखा, मेरे मुंह से अपना नाम सुन कर गिरधारी की आंखें फैल गई हैं. उस ने सोचा होगा, मुझे जानने वाला यह अनजान सरदार कौन है?

‘‘मैं सरदार सुरिंदर सिंहजी का बेटा, गुरजीत हूं. सरदार गुरशरण सिंहजी मेरे दादाजी थे. और गिरधारी आप के लिए केवल जीतू हूं.’’

‘‘अरे पुत्तरजी,’’ कहते हुए बांहें फैला कर गले लगाने के लिए आगे बढ़े, परंतु कुछ कदम चल कर रुक गए. बोले, ‘‘तुस्सीं तां पुलिस दे बहुत बड़े अफसर हो… ’’

‘‘पर, आप के लिए जीतू हूं, दादाजी.’’

‘‘ओह, पुत्तरजी, ठंड पड़ गई.’’

जब मैं उन के गले लगा तो अनायास ही मेरे मुख से निकल गया, ‘‘आओ गिरधारी, आप भी गले लग जाओ. मैं आप के लिए भी जीतू हूं.’’

इस मिलन से तीनों की आंखें नम थीं. दूर व्योम के किसी कोने में बादलों की गड़गड़ाहट हुई. मुझे लगा, ऊपर स्वर्ग में दादू भी इस मिलन से खुश हो रहे हैं, जैसे बादलों की गड़गड़ाहट न हो कर वे करतल ध्वनि कर रहे हों.

‘‘चल जीतू, घर चलें. तुहाडे नाल बौत सारियां गल्लां करनियां ने…’’ राजी के दादाजी ने कहा.

‘‘दादाजी, अभी मुझे माफ करें. मैं शाम को आप की सेवा में हाजिर होता हूं. अभी मुझे बहुत सी जगह जाना है.’’

‘‘चंगा, जिवें तुहाडी मरजी. शामी परशादे इकठ्ठे शकांगे.’’

‘‘जी, दादाजी.’’

मैं वहां से लौट आया. थाने के समक्ष पहुंचा, तो एसएचओ साहब कहीं जाने के लिए जीप में बैठ रहे थे. हम दोनों की आंखें मिलीं, फिर वे तेजी से चले गए. इस का मतलब यह भी था कि वे मुझे पहचान नहीं पाए.

मैं होटल के कमरे में आया, खाना खाया और सोने का प्रयत्न करने लगा. पर बच्चों के शोर से मैं सो नहीं पाया. लगता है, अभीअभी छुट्टी हुई है. तभी उन्होंने अपनी किलकारियों से आसमान सिर पर उठा रखा है. मैं इस मोह का संवरण नहीं कर पाया कि मैं अपने स्कूल को देखूं, जहां मैं ने जीवन के 12 साल पढ़ाई की है. मैं धीरेधीरे नीचे उतरा. होटल के बाहर दाईं ओर मुड़ने पर, सड़क पार करते सामने स्कूल का गेट है. इक्कादुक्का विद्यार्थी अभी भी गेट से निकल रहे थे.

मन के भीतर इस बात की बड़ी जिज्ञासा थी कि संभवतः कोई जानापहचाना चेहरा मिले. मैं ने स्टाफरूम में भी झांक कर देखा, परंतु मुझे वहां भी कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आया. समय का अंतराल भी तो बहुत है. स्कूल छोड़ने के 16 साल बाद मैं फिर यहां आया हूं. मैं 12वीं क्लास की ओर बढ़ा. मैं वह डैस्क देखना चाहता था, जहां मैं और राजी बैठा करते थे. मैं ने अपनी प्रकार से डैस्क के अंदर की ओर उस का नाम खोद दिया था. उसे पता चला तो उस ने मुझ से बहुत झगड़ा किया और रोई. मैं ने उस से कहा, “तुम तो राजबीर हो, राजी को कोई नहीं जानता.” उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं तो जानती हूं.’’

बाद में वह मुझ से कभी नहीं बोली. उस ने अपना डैस्क भी बदल लिया था. मैं ने राजी खुदे उस डैस्क को ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु वह मुझे कहीं नहीं मिला. मैं क्लास से बाहर आ गया. देखा, सबकुछ बदल गया है. स्कूल एक स्टोरी से डबल स्टोरी हो गया है. सामने मैदान में जहां हम खेला करते थे, वहां भी क्लासें बन गई हैं.

मैं होटल के अपने कमरे में लौट आया. जबरदस्ती आंखें बंद कर सोने का प्रयत्न करने लगा, पर मुझे पता नहीं कब नींद आई. जब आंख खुली तो 7 बजने वाले थे. मैं जल्दी से तैयार हो कर नीचे उतर आया. मैं कलानौर के एक ही मुख्य बाजार की ओर बढ़ा. अंदर घुसा तो एक नजर में पूरे बाजार का अवलोकन कर लिया. मुझे उस में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आया. केवल लूने शाह की दुकान बड़ी हो गई है, पर मुझे लूने शाह कहीं दिखाई नहीं दिया.

मैं आगे बढ़ा. मेरी आंखें राज नाई को ढूंढ़ने लगीं. यहींकहीं उस की दुकान होनी चाहिए. हमारे परिवार की बरबादी में इस नाई का बहुत बड़ा हाथ था. इस ने चाचाजी को वह खराब आदतें डाल दीं, जो वह डाल सकता था. चाचा इन आदतों की गर्त में घुसता चला गया. दादू उस को सुधारने के चक्कर में स्वयं बरबाद होते चले गए. उन्होंने सबकुछ दांव पर लगा दिया. जमीन, जायदाद, मकान सबकुछ. सबकुछ गंवाने के बावजूद चाचा दादू को दो कौड़ी की औकात रखने वाले आदमी से अधिक कुछ नहीं समझता था.

एक बार… सिर्फ एक बार राज नाई मिल जाए, मैं उसे रगड़ कर रख दूंगा. पर… पर, मन के भीतर यह आक्रोश भी अल्प समय का था. जब अपना सिक्का खोटा हो तो किसी को दोष नहीं दिया जा सकता. नाई की दुकान आई, तो मेरी आंखें राज नाई को ढूंढ़ने लगीं, परंतु वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया. मैं ने दुकान में काम कर रहे एक नाई से पूछा, ‘यहां राज नाई हुआ करता था, वह अब कहां है?’

अंतरिक्ष में वर्चस्व की दौड़

23 अगस्त की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर भारतीय चंद्रयान-3 की सौफ्ट लैंडिंग होने के साथ भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी भी देश का चंद्रयान नहीं उतरा है,हालांकि चांद के दूसरे भागों में कई देशों के ‘चंद्रयान’ उतर चुके हैं. चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने वालों में भारत चौथे नंबर पर है. इससे पहले अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के ‘चंद्रयान’ चांद पर पहुंच चुके हैं.

भारत ने इससे पहले 2019 में भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी,मगर कामयाब नहीं हो पाया. भारत का चंद्रयान-2 चांद तक तो पहुंचामगर चांद की सतह पर उतरने में कामयाब नहीं हुआ.अंतिम 15 मिनटों, जिन्हें इसरो के वैज्ञानिक ‘आतंक के 15 मिनट’ कहते हैं,ने भारतीय वैज्ञानिकों की एक बहुत बड़ी कोशिश के परखच्चे उड़ा दिए.चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सौफ्ट लैंडिंग की कोशिश में लड़खड़ा गया और महज 7.42 किलोमीटर की ऊंचाई पर क्रैश हो गया.

इस विफलता से इसरो के डायरैक्टर एस सोमनाथ फफक कर रो पड़े थे. हालांकि इस विफलता में चंद्रयान-2 का लैंडर ही दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. वह और्बिटर सहीसलामत थाजिससे अलग होकर लैंडर सतह पर लैंड करने की कोशिश कर रहा था. चंद्रयान-2 का और्बिटर बिलकुल सहीसलामत बीते 4र वर्षों से न सिर्फ चांद की परिक्रमा कर रहा है, बल्कि लगातार सूचनाएं भी भेज रहा है. इन्हीं सूचनाओं और विश्लेषणों के आधार पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने तकनीकी खामियों को दूर करके चंद्रयान-3 को डिजाइन किया और उसे सफलतापूर्वक चांद की सतह पर लैंड करवाया.

गौरतलब है कि इससे पहले इजराइल, जापान, रूस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सहित कई देश चांद के दक्षिणी हिस्से पर उतरने में नाकाम रहे हैं. मंगल ग्रह पर मंगलयान और अब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग करके भारत स्पेस साइंस में उल्लेखनीय तरक्की तो दिखा रहा हैमगर इस रफ्तार को अब तेज करने की जरूरत है क्योंकि दुनिया के तमाम देशों की अंतरिक्ष यात्राएं अब सिर्फ अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने मात्र की नहीं हैं, बल्कि ये यात्राएं अब अंतरिक्ष में अपने वर्चस्व को कायम करने और वहां से प्राप्त जानकारियों व खनिज के भंडारों पर कब्जा जमाने की हैं.

भारत की हालिया सफलता से चीन और रूस जैसे देशों के कान खड़े हो गए हैं क्योंकि भारत औटोनौमस स्पेसक्राफ्टी की सफल लैंडिंग कराकर, रोवर को चांद पर उतारकर और एल्यूमीनियम जैसे एलिमैंट्स का इस्तेमाल करके सिस्लुनर (पृथ्वी और चांद के बीच की जगह) तकनीक में न सिर्फ आगे बढ़ रहा है, बल्कि चांद की सतह पर मिलने वाले अयस्कों की जानकारियां भी बटोर रहा है.

भारत के चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद चांद पर जल्द से जल्द पहुंचने के लिए विश्व के देशों की लंबी कतारें लग गई हैं. नासा का आर्टेमिस और चीन का चांग-ई6 के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, यूरोप, स्पेस एक्स और ब्लू ओरिजन के मून मिशन कतार में हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियां चांद को छूने के लिए बेताब दिख रही हैं. दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों की अचानक चांद में दिलचस्पी यों ही नहीं बढ़ी है. इसके पीछे कई अहम कारण हैं. सबसे प्रमुख है मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए चांद को एक बेस के तौर पर इस्तेमाल करना. इसीलिए दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां चांद पर पानी, खनिज और औक्सीजन की खोज में जुटी हैं, ताकि चांद पर एक ऐसा बेस बन सके, जिससे मंगल ही नहीं, बल्कि अन्य ग्रहों पर पहुंचना भी आसान हो जाए.

अंतरिक्ष में मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना काफी समय से व्यक्त की जा रही है. 1960 से लेकर अब तक मंगल के लिए अनगिनत मिशन लौंच हो चुके हैं. अमेरिका और रूस इनमें सबसे आगे हैं. तो वहीं भारत, चीन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियां भी इस लिस्ट में शामिल हैं. मंगल ग्रह पर दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों की नजर है, लेकिन धरती से इसकी दूरी अधिक होने की वजह से सिर्फ गिनेचुने मिशन ही सफल हो पाए हैं. सूर्य की परिक्रमा करते ग्रहों और उपग्रहों में एक समय ऐसा आता है जब चांद धरती और मंगल ग्रह के बीच से गुजरता है,ऐसे में अंतरिक्ष एजेंसियां चांद को बेस बनाना चाहती हैं ताकि यहां से आगे वे मंगल के लिए रवाना हो सकें.

चांद पर वर्चस्व के अन्य कारण

मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए चांद को बेस बनाना ही एक वजह नहीं है, बल्कि चांद पर पहुंचने की होड़ के अन्य कारण भी हैं. इनमें पानी की खोज प्रमुख है. वैज्ञानिक मानते हैं कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और औक्सीजन हो सकता है. अगर पानी है तो वहां खेती भी हो सकती है और जीवन भी बसाया जा सकता है. बर्फ को तोड़ने पर औक्सीजन भी मिल सकती है. यह भी माना जा रहा है कि चांद की सतह पर या उसके कुछ नीचे बहुमूल्य खनिज, जैसे सोना, टाइटेनियम, प्लेटिनम और यूरेनियम भी हो सकते हैं, जो किसी भी देश को मालामाल कर सकते हैं. वैज्ञानिकों की इस सोच पर भारतीय चंद्रयान-3 के रोवर्स ने मुहर भी लगा दी है.

चांद पर पहुंचने की कोशिश में अमेरिका और रूस सबसे आगे हैं. चीन भी इस दौड़ से खुद को पीछे नहीं रखना चाहता और भारत भी इसीलिए दौड़ लगा रहा है क्योंकि वह विश्व की बड़ी शक्ति बन कर उभरना चाहता है.

50 साल बाद फिर अंतरिक्ष में भागमभाग

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1966 में पहली बाद रूस ने चांद की सतह पर सौफ्ट लैंडिंग की थी. कहा जाता है कि इस यान में कोई इंसान नहीं, बल्कि एक जानवर गया था. इस अभियान की सफलता के बाद 1968 में रूस ने यूरी गागरिन को पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में स्पेस में भेजा. जो स्पेस के कई चक्कर लगा कर सकुशल वापस लौटे. रूस की इस कामयाबी से अमेरिका परेशान हो उठा और उसने भी मून मिशन शुरू कर दिए.

अमेरिका के स्पेस यान अपोलो-11 के जरिए 1969 में पहली बार चांद की सतह पर इंसान के कदम पड़े. अमेरिकी नागरिक और वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रोंग चांद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे. बज एल्डिरिन उनके साथ गए दूसरे अंतरिक्ष यात्री थे जिन्होंने उनके बाद चांद पर कदम रखा. उल्लेखनीय है कि अमेरिका चांद पर इंसान भेजने वाला इकलौता देश है और उसने 1972 में अपोलो-17 मिशन तक कुल 12 एस्ट्रोनौट्स चांद पर भेजे हैं. अपोलो-17 अमेरिका का आखिरी मून मिशन था. इसके बाद कहा जाता है कि वियतनाम युद्ध में हो रहे जबरदस्त खर्चे के कारण अमेरिका ने अपने खर्चीले मून मिशन पर रोक लगा दी. मगर सोवियत संघ अपने अंतरिक्ष मिशन में लगा रहा और साल 1974 में उसने लूना-24 चांद पर भेजा जो वहां की सतह से 170 ग्राम मिट्टी लेकर धरती पर वापस लौटा. मगर इसके बाद सोवियत संघ की भी दिलचस्पी चांद को लेकर खत्म हो गई.

1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद अमेरिका अंतरिक्ष का इकलौता सुपर पावर रह गया और उसने अपना फोकस चांद से हटाकर मंगल ग्रह की ओर करना शुरू कर दिया. लेकिन हाल के सालों में दुनिया के देशों की चांद में दिलचस्पी फिर से पैदा हो गई और इस दिलचस्पी की वजह है चीन. एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभरने के बाद चीन जिस तरह से दुनिया में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है ठीक वैसी ही उसने चांद पर भी अपनी पताका फहराने का अभियान बड़े जोरशोर से शुरू कर दिया है.

बीते कुछ सालों में जबसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के होने का पता चला है, चीन सहित अनेक देशों में अंतरिक्ष यात्राओं को लेकर हलचल तेज हो गई है. अगर चांद की सतह पर मौजूद बर्फ को तोड़ने में कामयाबी मिलती है तो उससे औक्सीजन पैदा की जा सकती है और चांद पर जीवन का संभावना भी तलाशी जा सकती है. यही नहीं, इस सूरत में चांद पर अपना स्टेशन बना कर मंगल ग्रह सहित अंतरिक्ष के बाकी ग्रहों की तलाश और वहां जीवन जीने के रास्ते ढूंढे जा सकते हैं. चांद पर मौजूद पानी रौकेट फ्यूल बनाने के काम भी आ सकता है. इसके अलावा चांद पर हीलियम गैस का एक बड़ा भंडार मौजूद है, जिससे क्लीन एनर्जी हासिल की जा सकती है. और अब तो वहां सोना, प्लेटेनियन, टाइटेनियन और यूरेनियन जैसे कीमती खनिजों की मौजूदगी भी मालूम चल गई है. जाहिर है चांद के इस खजाने पर चीन ने अपनी नजरें गड़ा दी हैं.

चीन ने पिछले 10 सालों में अपने 3 कामयाब मिशन चांद पर भेजे हैं. चीन ने 2013 में चांग ई-3, 2019 में चांग ई-4 और 2020 में चांग ई-5 मिशन चांद पर भेजे और न सिर्फ चांद की सतह पर रोबोट की सौफ्ट लैंडिंग कराई, बल्कि चांग ई-5 मिशन ने तो चांद पर चीन का झंडा भी फहराया दिया. दुनिया के देश चांद पर पहुंचने की जल्दी इसी कारण दिखा रहे हैं क्योंकि चीन यहीं रुकने वाला नहीं है. उसकी योजना साल 2027 तक चांग ई-7 मिशन के तहत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद पानी और बर्फ की जांच करने और 2030 तक चांद पर इंसान भेजने की है. चांद पर इंसान भेजने के चीन के मिशन में रूस भी उसका साथ दे रहा है.

चीन के तेज गति से चल रहे इन अभियानों ने अमेरिका को मानो नींद से जगा दिया है और अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने अपने मून मिशन आर्टेमिस के जरिए 2026 तक चांद पर फिर से इंसान को भेजने की योजना बना ली है और इस बार तो उसके इस मिशन में महिलाएं भी शामिल होंगी. यह अमेरिकी टीम चांद पर मौजूद बर्फ पर रिसर्च करेगी.

दक्षिण अफ्रीकी-कनाडाई-अमेरिकी दिग्गज व्यापारी और एलन स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स जैसे प्राइवेट प्लेयर भी चांद पर जल्द से जल्द पहुंचने की रेस में शामिल हो चुके हैं. इन सबके मुकाबले भारत की रफ्तार अभी काफी कम है.

अमेरिका का आर्टेमिस मिशन

यह अमेरिका बहुप्रतीक्षित मिशन है जो 3 चरणों में पूरा होगा. पहले आर्टेमिस-1 लौंच होगा जो चांद की और्बिट में खुद को स्थापित करेगा. आर्टेमिस टू में अंतरिक्ष यात्री भी भेजे जाएंगे जो चांद की और्बिट का चक्कर लगाएंगे और वापस आ जाएंगे. इसके बाद आर्टेमिस-3 लौंचकिया जाएगा जो चांद की सतह पर उतरेगा और एस्ट्रोनौट्स वहां घूम कर खनिज व पानी की खोज करेंगे.

चीन का चांगई-6

चीन अगले साल इस मिशन को लौंच करेगा जो चांद के दक्षिणी भाग पर उतरकर वहां से नमूने लेकर लौटेगा. 2027 में चांगई-7 मिशन लांच किया जाएगा, जो चांद पर पानी ढूंढेगा और 2030 तक इसी मिशन से चीनी टैकनौट्स को चांद पर उतारने व 2036 तक चीन, रूस और वेनेजुएला के सहयोग से एक रिसर्च सैंटर के निर्माण की भी योजना है. पाकिस्तान भी चीन के साथ शामिल होने में रुचि दिखा रहा है. यह प्रतियोगिता इस आधार पर होगी कि चंद्रमा की सतह पर किसके पास स्थायी उपस्थिति है.

जापान भी है दौड़ में

जनवरी 2024 में जापान अपना चांद मिशन लौंच करेगा. हालांकि यह मिशन भारत के चंद्रयान-3 मिशन के चौथे दिन ही होना था, मगर खराब मौसम के चलते इसे स्थगित करना पड़ा. इसके बाद 2026 में यूरोप तथा साउथ कोरिया और सऊदी अरब भी चांद पर अपने मिशन भेजेंगे.

मून मिशन के सफल होने के बाद भारत ने 2 सितंबर, 2023 को अपना पहला सोलर मिशन आदित्य एल-1 भी लौंच कर दिया है, ताकि दुनिया के बड़े देश इस मुगालते में न रहें कि अंतरिक्ष पर सिर्फ उन्हीं का हक है.

भारत का आदित्य एल-1 जहां सूर्य के अध्ययन के लिए अपनी तरह का पहला मिशन है, वहीं कई दूसरे देश कई सूर्य अभियान भेज चुके हैं. हालांकि, लाखों डिग्री तापमान वाले सूर्य का अध्ययन कर सौरमंडल को जानने के लिए प्रयासों की वैश्विक दौड़ में गिनेचुने देश ही शामिल हुए हैं. अब इसमें भारत का नाम भी दर्ज हो गया है.

नासा ने सबसे पहले भेजे सोलर मिशन

अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2018 में पार्कर सोलर प्रोब मिशन भेजा था. यह दिसंबर 2021 में सूर्य के निकट पहुंचा और ऊपरी सतह कोरोना के तत्त्वों और चुम्बकीय क्षेत्र का डाटा दर्ज किया. उम्मीद है कि यह सूर्य की सतह के 73 लाख किलोमीटर निकट तक पहुंचेगा. नासा ने इसे ‘सूर्य को छूने वाला’ मिशन करार दिया है. इस बीच, फरवरी 2020 में नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ भी सूर्य की परिक्रमा के लिए मिशन भेजा था.

इससे पहले नासा ने अगस्त 1997 में एडवांस कंपोजिशन एक्सप्लोररअक्टूबर 2006 में सोलर डायनेमिक औब्जर्वेटरी और जून 2013 में इंटरफेस इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ मिशन भेजे थे.दिसंबर 1995 में यूरोप और जापान की एजेंसियों के साथ भेजे गए मिशन सोलर एंड हेमिस्फेरिक औब्जर्वेटरी को नासा का अहम मिशन माना जाता है.

जापान एयरोस्पेस आक्सा ने 1981 में सूर्य की लपटों के अध्ययन के लिए पहला सूर्य मिशन हिनोटोरी भेजा था. इस मिशन का मकसद एक्स-रे के जरिए सोलर फ्लेयर्स की स्टडी करना था. 1991 में उसने योहकोह लौंच किया. 1995 में नासा और ईएसए के साथ मिलकर सोहो और 1998 में नासा के साथ ‘ट्रांजिएंट रिजन एंड कोरोनल एक्सप्लोरर’ मिशन लौंच किया.

2006 में जापान ने हिनोडे लौंच किया, जो एक सोलर औब्जर्वेटरी की तरह आज भी सूर्य का चक्कर लगा रहा है. इस मिशन का मकसद सूर्य से पृथ्वी पर होने वाले प्रभाव को समझना है. मगर जापान के इन अभियानों की ज़्यादा चर्चा इसलिए नहीं होती क्योंकि वह अपनी जानकारियां साझा नहीं करता है.

2 साल में 2 और मिशन

यूरोपीय देशों ने भी मिलकर सूर्य के लिए कई मिशन भेजे हैं. यहां की एजेंसी ने 1990 में अल्सेस मिशन के जरिए सूर्य के ध्रुवों के वातावरण के अध्ययन का प्रयास किया है. 2001 में उसने नासा व जाक्सा के साथ प्रोबा-2 अभियान भेजा. इसके जरिए प्रयोग व डाटा संग्रह जैसी गतिविधियां अंजाम दी गईं. यूरोप 2024 में प्रोब-3 और 2025 में स्माइल मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए भेजने जा रहा है.

2022 में भेजी सौर वेधशाला

चीन ने अक्टूबर 2022 में सौर वेधशाला (एएसओ-एस) सफलतापूर्वक भेजी है. इसका लक्ष्य सौर चुंबकीय क्षेत्र, सौर लपटों और कोरोना से होने वाले उत्सर्जन का अध्ययन करना है.अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के पूर्व कमांडर व अपोलो मर्डर्स के लेखक क्रिस हेडफील्ड का दावा है कि अब स्पेस में विश्व के देशों की दौड़ सिर्फ अंतरिक्ष के भेदों को जानने के लिए नहीं, बल्कि यह दौड़ अंतरिक्ष पर वर्चस्व और आर्थिक फायदे उठाने की है.

भारतीय चंद्रयान-3 का उद्देश्य

भारतीय चंद्रयान-3 के मुख्यतया3 उद्देश्य थे- चांद के दक्षिणी ध्रुव, जहां पहुंचने में अब तक कोई देश सफल नहीं हुआ है, वहां लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग कराना. दूसरा, चांद की सतह, जिसे रेजोलिथ कहते हैं, पर लैंडर को उतार कर वहां रोवर्स को घुमाना और तीसरा, लैंडर और रोवर्स के जरिए चांद की सतह पर शोध करना. इसरो ने अपने ये तीनों उद्देश्य सफलतापूर्वक संपन्न कर लिए हैं.

चांद पर लैंडर और रोवर्स ने 14 दिन तक काम किया और अब इसरो ने उन्हें सोने के लिए भेज दिया है क्योंकि चांद के इस हिस्से में अब रात हो चुकी है. गौरतलब है कि चांद पर 14 दिन अंधेरा और 14 दिन उजाला रहता है. इन 14 दिनों के काम के दौरान लैंडर और रोवर्स ने कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं इसरो को पहुंचाई हैं.

बताते चलें कि वैज्ञानिकों द्वारा लैंडर मौड्यूल में जो पेलोड स्थापित किए गए थे उन में से एक का नाम है- रेडियो एनाटौमी औफ मून बाउंड हाइपरसैंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमौस्फियर, जिसे इसरो के वैज्ञानिक रम्भा के नाम से बुलाते हैं. रम्भा ने चांद की सतह पर प्लाज्मा घनत्व की जांच कर वहां आयनों और इलैक्ट्रौनों के स्तर व समयसमय पर उनमें होने वाले बदलावों का अध्ययन कर जानकारी इसरो के साथ साझा की है. लैंडर में स्थापित एक अन्य उपकरण चांद की सतह के तापमान को मौनीटर कर रहा है. आईएलएसए यानी इंस्ट्रुमैंट फौर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी उपकरण वहां भूकंपीय गतिविधियों को नोट कर रहा है. यह इस बात को भी निर्धारित कर रहा है कि भविष्य में चांद पर मनुष्य की मौजूदगी और निवास संभव है भी या नहीं.

उल्लेखनीय है कि चांद पर भी पृथ्वी की तरह टैक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण लगातार भूकंप आते हैं. ऐसे में यदि वहां कोई इंसानी बस्ती बसाने की बात सोची जाती है तो भूकंपीय गतिविधियों का पता लगाना बहुत जरूरी है. बीते 14 दिनों में 26 किलो वजन वाले रोवर्स ने अपने 6 पहियों पर चांद की सतह पर चहलकदमी कर लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप यानी एलआईबीएस उपकरण, जिसकेउपयोग से किसी स्थान पर तत्त्वों और उनके गुणों की पहचान होती है, चांद की सतह पर मैग्नीशियम, टाइटेनियम, सिलिकोन, लौह अयस्क और बर्फ की उपस्थिति के सुबूत जुटा लिए हैं और उसने ये तमाम जानकारियां भारतीय डीप स्पेस नैटवर्क को भेज दी हैं. चंद्रयान-3 मिशन से इसरो के वैज्ञानिकों को पता चला है कि चांद की सतह पर दिन में तापमान 180 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि रात के समय यह तापमान शून्य से भी 120 डिग्री नीचे चला जाता है.

चांद की ओर वैज्ञानिकों का रुझान हमेशा से रहा है. पृथ्वी के बाद अगर किसी उपग्रह को इंसानों के लिए उपयुक्त समझा गया है तो वह चांद ही है. पृथ्वी के सबसे करीब और ठंडे इस उपग्रह पर कई देशों की स्पेस एजेंसियां समयसमय पर अपने यान भेजती रही हैं. भारत भी 3 बार चंद्रयान भेज चुका है. चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के बाद चंद्रयान-3 दुनिया के लिए इसलिए भी जिज्ञासा का विषय बना क्योंकि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच बनाने वाला भारत पहला देश है लेकिन भारत के पहले चंद्रयान की उपलब्धि भी कम नहीं थी.

चंद्रयान-1 ने पहली बार पानी खोजा

15 अगस्त,2003. यहवह तारीख थी जब भारत ने चंद्रयान कार्यक्रम की शुरुआत की थी. नवंबर 2003 को भारत सरकार ने पहली बार भारतीय मून मिशन के लिए इसरो के चंद्रयान-1 को मंजूरी दी. इसके करीब 5 साल बाद,भारत ने 22 अक्टूबर,2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-1 मिशन लौंच किया. उस समय तक केवल 4 अन्य देश अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही चंद्रमा पर अपने मिशन भेजने में कामयाब हो सके थे. ऐसा करने वाला भारत 5वां देश था.

14 नवंबर,2008 को चंद्रयान-1 चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया. लेकिन तब तक उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी. चंद्रयान-1 का डेटा इस्तेमाल करके चांद पर बर्फ की उपस्थिति पक्की हो गई थी.28 अगस्त,2009 को इसरो ने चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा कर दी और अगले लौंच की तैयारियों में जुट गया.

चंद्रयान-2 को मिली आंशिक सफलता

22 जुलाई, 2019 को 14:43 बजे भारत ने चांद की ओर अपना दूसरा कदम बढ़ाया. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी),श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी- मार्क-III एम1 द्वारा चंद्रयान-2लौंच किया गया.20 अगस्त को चंद्रयान-2 अतंरिक्ष यान चांद की कक्षा में प्रवेश कर गया. इस मिशन का पहला मकसद चांद की सतह पर सुरक्षित उतरना और चांद की सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना था लेकिन 2 सितंबर को चांद की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते समय लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया और सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का स्पेस सैंटर से संपर्क टूट गया.

2019 में चंद्रयान-2 चांद की सतह पर सुरक्षित उतरने में विफल रहा था. मगर इसरो की तीसरी कोशिश ने सफलता के झंडे गाड़ दिए. चंद्रयान-3 न सिर्फ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा बल्कि उसने अपने वे सभी काम सफलतापूर्वक अंजाम दिए जो उसके लिए निश्चित किए गए थे.

गौरतलब है कि दक्षिणी ध्रुव का तापमान अधिकतम 100 डिग्री सैल्सियस से ऊपर और न्यूनतम माइनस 200 डिग्री सैल्सियस से अधिक हो जाता है. वहां मौजूद पानी ठोस रूप में यानी बर्फ के रूप में है. चंद्रयान 3 में जो उपकरण लगाए गए हैं उन में से चास्टे चांद की सतह पर तापमान की जांच के लिए है. रंभा चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच कर रहा है.वहीं, इल्सा लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों पर नज़र रखे हुए है. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे चांद के डायनेमिक्स को समझने का कोशिश कर रहा है.

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे कैमरे ने जो तसवीरें भेजी हैंउन में चांद की सेहत पर कहीं बड़े गड्ढे तो कहीं मैदानी एरिया नजर आ रहा है. वहां ज्यादातर जमीन ऊबड़खाबड़ है. बता दें कि 1958 से 2023 तक भारत, अमेरिका, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजराइल ने कई तरह के मिशन चांद पर भेजे हैं. लगभग 7 दशकों में 111 मिशन भेजे गए हैं, जिनमें 66 सफल हुए और 41 फेल हुए हैं जबकि 8 को आंशिक सफलता मिली है. अब चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत जल्द ही चंद्रयान-4 की तैयारी शुरू करेगा.

सैकड़ों वैज्ञानिकों का संयुक्त प्रयास है चंद्रयान-3

चांद पर भारतीय चंद्रयान को उतारने के पीछे कई सालों की कड़ी मेहनत और इसरो के सैकड़ों वैज्ञानिकों का संयुक्त प्रयास शामिल है. इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन में 54 महिला इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. कुछ मुख्य नामों की चर्चा जरूरी है.

एस सोमनाथ, इसरो के चेयरमैन

भारत के महत्त्वाकांक्षी चंद्र मिशन के पीछे इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ की बड़ी भूमिका है.‘गगनयान’ और सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल-1’ समेत इसरो के अन्य अंतरिक्ष अभियानों को रफ़्तार देने का श्रेय भी उन्हें जाता है. इसरो के प्रमुख की जिम्मेदारी निभाने से पहले एस सोमनाथ विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सैंटर के डायरैक्टर रह चुके हैं. लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सैंटर मुख्य रूप से इसरो के लिए रौकेट टैक्नोलौजी विकसित करता है.

पी वीरामुथुवेल, चंद्रयान-3 के प्रोजैक्ट डायरैक्टर

इसरो के प्रोजैक्ट निदेशक पी वीरामुथुवेल के पिता रेलवे कर्मचारी थे, मगर पी वीरामुथुवेल का मन शुरू से विज्ञान व तकनीक में रमता था. इसरो के अलगअलग सैंटर और चंद्रयान-3 के साथ समन्वय का पूरा काम उन्होंने ही संभाला था. 2019 में उन्होंने इस मिशन का चार्ज लिया था.

मून मिशन शुरू होने से पहले वीरामुथुवेल इसरो मुख्यालय में स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम औफिस में डिप्टी डायरैक्टर थे. उन्हें बेहतरीन टैक्निकल हुनर के लिए जाना जाता है.वीरामुथुवेल ने चंद्रयान-2 मिशन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने नासा के साथ तालमेल बिठाने में भी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई है. वे तमिलनाडु के विल्लुपुरम के रहने वाले हैं और उन्होंने मद्रास आईआईटी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. वीरामुथुवेल लैंडर के एक्सपर्ट हैं और विक्रम लैंडर की डिजाइनिंग में उनकी सक्रिय भूमिका रही है.

कल्पना के, डिप्टी प्रोजैक्ट डायरैक्टर, चंद्रयान-3

कल्पना के ने चंद्रयान-3 टीम का नेतृत्व किया है. उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान भी दृढ़ इच्छाशक्ति के सहारे सारी चुनौतियों का सामना करते हुए मिशन के काम को आगे बढ़ाया. भारत के सैटेलाइन प्रोग्राम के पीछे इस प्रतिबद्ध इंजीनियर की बड़ी भूमिका रही है. कल्पना ने चंद्रयान-2 और मंगलयान मिशन में भी मुख्य भूमिका निभाई है.

एम शंकरन यूआर राव, सैटेलाइट सैंटर के डायरैक्टर

एम शंकरन यूआर राव सैटेलाइट सैंटर के प्रमुख हैं और उनकी टीम इसरो के लिए भारत के सभी उपग्रहों को बनाने की जिम्मेदारी निभाती है. चंद्रयान-1,मंगलयान और चंद्रयान-2 सैटेलाइट के निर्माण में शंकरन शामिल रहे. चंद्रयान-3 का तापमान संतुलित रहे, इस बात को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी शंकरन की थी. सैटेलाइट के अधिकतम और न्यूनतम तापमान की टैस्टिंग एक पूरी प्रक्रिया का बेहद अहम हिस्सा होता है. उन्होंने चंद्रमा के सतह का प्रोटोटाइप तैयार करने में मदद की जिस पर लैंडर के टिकाऊपन का परीक्षण किया गया.

एस मोहन कुमार, मिशन डायरैक्टर

एस मोहन कुमार विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और चंद्रयान-3 मिशन के डायरैक्टर हैं. एस मोहन कुमार एनवीएम-3 मिशन के तहत वन वेव इंडिया 2 सैटेलाइट के सफल व्यावसायिक लौंच में भी डायरैक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं.

एस उन्नीकृष्णनन नायर, विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के डायरैक्टर

एस उन्नीकृष्णन नायर केरल के तिरुअनंतपुरम के थुम्बा विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के प्रमुख हैं.वे और उनकी टीम इस अहम मिशन के मुख्य संचालन के लिए जिम्मेदार थी.जियोसिंक्रोनस सैटेलाइल लौंच व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क-3भी विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर ने ही तैयार किया था.

ए. राजाराजन, लौंचऔथराइजेशन बोर्ड के प्रमुख

ए राजाराजन सतीश धवन स्पेस सैंटर,श्रीहरिकोटा के डायरैक्टर और वैज्ञानिक हैं. उन्होंने मानव अंतरिक्ष मिशन प्रोग्राम- ‘गगनयान’ और ‘एसएसएलवी’ के मोटर को लेकर काम किया है. लौंच औथराइजेशन बोर्ड असल में लौंचकरने की हरी झंडी देता है.

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