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Suhana khan से लेकर Shanaya kapoor तक, 2024 से पहले बॉलीवुड में एंट्री करेंगे ये स्टार किड्स

Star kids set to make Debut before 2024 : महाराष्ट्र में मौजूद सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर ‘मुंबई’ में रोजाना कई लोग अपनी किस्मत को आजमाने आते हैं. अगर टैलेंट और लक का सिक्का चल जाता है, तो ये ही शहर उन्हें बुलंदियों तक पहुंचाता है. आज हमारे पास कई उम्दा स्टार्स के उदाहरण मौजूद हैं. जो इसी माया नगरी मुंबई में अपने सपनों को सच करने आए थे और आज कामयाबी के शिखर पर बैठे हैं.

इसके अलावा हर साल बॉलीवुड में नई पीढ़ी भी अपनी जमीन तलाशती है. प्रत्येक वर्ष कई बड़े अभिनेता व अभिनेत्रियों के बच्चे एवं करीबी अपनी किस्मत आजमाते हैं लेकिन उनमें से कुछ ही फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बना पाते हैं. इस साल भी कई ”स्टार किड्स” ने बॉलीवुड में डेब्यू किया है. वहीं अब साल के अंत से पहले कुछ और ”स्टार किड्स” जनता के दिलों में अपनी जगह बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं. तो आइए जानते हैं उन्ही ”स्टार किड्स” के बारे में जो 2024 से पहले बॉलीवुड में एंट्री करने वाले हैं.

शाहरुख खान की बेटी ‘सुहाना खान’

साल 2024 से पहले बॉलीवुड के सुपरस्टार ‘शाहरुख खान’ की बेटी ”सुहाना खान” (suhana khan) फिल्मी दुनिया में कदम रख देंगी. आपको बता दें कि ”सुहाना” फिल्म ‘द आर्ची’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने जा रही हैं. जो इसी साल 7 दिसंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी. हालांकि बॉलीवुड में कदम रखने से पहले ”सुहाना” ने सोशल मीडिया पर अपनी तगड़ी फैन फॉलोइंग बना रखी हैं. वह आए दिन अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने फैंस के साथ अपनी फोटो व वीडियो शेयर करती रहती हैं.

श्रीदेवी की छोटी बेटी ‘खुशी कपूर’

‘सुहाना खान’ के अलावा हिंदी सिनेमा की जानी मानी अभिनेत्री रही ‘श्रीदेवी’ की छोटी बेटी ”खुशी कपूर” भी इसी साल फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली हैं. वो भी फिल्म ‘द आर्ची’ से ही अपने अभिनय की शुरुआत कर रही हैं. ”खुशी” से पहले उनकी बड़ी बहन ‘जाह्नवी कपूर’ भी बॉलीवुड में डेब्यू कर चुकी हैं. उन्होंने अब तक कई फिल्मों में काम किया है, जिसमें से ज्यादातर फिल्मों में उनके अभिनय ने खूब वाहवाही बटोरी है.

अमिताभ बच्चन के नाती ‘अगस्त्य नंदा’

आपको बता दें कि ‘जोया अख्तर’ की फिल्म ”द आर्ची” से ‘सुहाना खान’ और ‘खुशी कपूर’ के अलावा हिंदी सिनेमा के स्टार ‘अमिताभ बच्चन’ के नाती ”अगस्त्य नंदा” भी डेब्यू करने जा रहे हैं. श्वेता बच्चन के पुत्र ‘अगस्त्य’, अमिताभ बच्चन के परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं जो फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने आ रहे हैं. हालांकि पहले कयास लगाए जा रहे थे कि ‘श्वेता बच्चन’ की बेटी ‘नव्या नवेली नंदा’ अगस्त्य से पूर्व बॉलीवुड में कदम रखेंगी लेकिन फिलहाल उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली है.

सलमान खान की भांजी ‘अलीजेह अग्निहोत्री’

बॉलीवुड के भाईजान यानी ‘सलमान खान’ ने फिल्म इंडस्ट्री में कई कलाकारों को मौका दिया है. उन्होंने कई कलाकारों की जिंदगी बदली है. वहीं अब उनकी भांजी भी फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली हैं. ”अलीजेह अग्निहोत्री”, अभिनेता ‘सलमान खान’ की बड़ी बहन ‘अलवीरा अग्निहोत्री’ और एक्टर ‘अतुल अग्निहोत्री’ की बेटी हैं. जो राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार ‘सौमेंद्र पाधी’ की फिल्म ‘फर्रे’ से डेब्यू करने वाली हैं. हालांकि फिल्म का टीजर रिलीज किया जा चुका हैं, जो दर्शकों को खूब पसंद आया है. वहीं ‘फर्रे’ बड़े पर्द पर 24 नवंबर 2023 को रिलीज होगी.

संजय कपूर की बेटी शनाया कपूर

बॉलीवुड अभिनेता ‘संजय कपूर’ की बेटी ”शनाया कपूर” भी इसी साल फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली हैं. वो ‘करण जौहर’ के धर्मा प्रोडक्शन में बनी फिल्म ‘बेधड़क’ से डेब्यू करने वाली हैं. यह फिल्म 22 सितंबर 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

बहरहाल हर साल कई ‘स्टार किड्स’  फिल्मी दुनिया में कदम रखते हैं लेकिन ये तमाम ‘स्टार किड्स’ क्या दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना पाएंगे या नहीं ? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल लोगों को इनकी फिल्मों का बेसब्री से इंतजार हैं.

हाशिए पर कायदे : भाग 3

आर्यन ने अपने एक वकील मित्र से सलाह ली. उस ने कहा, “यहां इस शहर में तुम दोनों की शादी में बहुत सी मुश्किलें आ सकती हैं. विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत कोई भी व्यक्ति इस शादी पर आपत्ति दर्ज करवा सकता है. बेहतर होगा कि तुम किसी और शहर में जा कर कोर्ट मैरिज करो. तुम देश के किसी भी शहर में ऐसा कर सकते हो, बशर्ते शादी की अर्जी देने के बाद कम से कम अगले तीस दिन तुम उस शहर में होना निश्चित करो.”

“लेकिन, हमारे केस से किसी तीसरे को क्या लेनादेना? कोई अन्य व्यक्ति आपत्ति दर्ज करवा सकता है…? वैसे भी हम बालिग हैं और अपने सारे दस्तावेज अर्जी के साथ नत्थी तो करेंगे ही,” आर्यन ने वकील से पूछा.

“ये कानूनी प्रक्रिया है, जिसे पूरा करना ही होता है. बेशक, तुम सही कह रहे हो, लेकिन आपत्ति दर्ज होने की स्थिति में जांच तो करवाई ही जाएगी ना? ख्वाहमख्वाह क्यों पचड़े में पड़ते हो. तुम ऐसा करो, दिल्ली चले जाओ. वहां कोई काम भी ढूंढ़ लो और वहीं बसने की तैयारी भी कर लो, क्योंकि यहां लखनऊ में तो तुम दोनों को कोई चैन से रहने नहीं देगा,” वकील ने आर्यन को सलाह दी और उसे यह सलाह पसंद भी आ गई.

वकील की सलाहनुसार दोनों ने फिलहाल कुछ समय के लिए शादी का इरादा और अपनेअपने समाज के नियमों का विरोध टाल दिया. कुछ दिन दोनों को शंकित निगाहों से देखने के बाद धीरेधीरे मामला शांत पड़ने लगा. इस बीच आर्यन नौकरी के सिलसिले में दिल्ली चला गया. वहां उस ने जिले के विवाह अधिकारी के सामने प्रस्तुत हो कर अपने और मीनल के विवाह के लिए प्रार्थनापत्र दे दिया. उन्हें तीस दिन का समय दिया गया. यदि इस बीच विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत किसी तरह की कोई आपत्ति दर्ज नहीं होती तो तीस दिन के पश्चात दो गवाहों की उपस्थिति में वे दोनों शादी कर सकते हैं.

आर्यन और मीनल दोनों के लिए ये तीस दिन बहुत तनाव वाले थे. दोनों भरसक प्रयास कर रहे थे कि घर वालों को किसी तरह का कोई शक ना हो. दोनों ने फोन पर बातचीत बंद कर दी थी. जो भी कहना होता, वह चैट पर ही टेक्स्ट मैसेज के द्वारा कहा जाता. टेक्स्ट करने के तुरंत बाद मीनल उसे डिलीट भी कर देती, ताकि यदि कोई उस का मोबाइल चेक भी करे तो उसे कोई हिस्ट्री न मिले.

कल तीसवां दिन है. उन की परीक्षा की मियाद पूरी होने वाली है. परसों सुबह 10 बजे मीनल को दिल्ली में विवाह अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना है. यदि वह किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से दिल्ली जाती है, तो उस के पकड़े जाने के चांसेस ज्यादा थे, इसलिए आर्यन ने अपने दो दोस्तों के साथ उसे लेने के लिए गाड़ी भेजी थी. लखनऊ से दिल्ली तक का लगभग 9 घंटे का सफर उसे रातभर में तय करना था, क्योंकि सुबह होने के बाद तो उस का अकेले बाहर निकलना संभव ही नहीं था.

रात बारह बजे उस के मोबाइल पर मैसेज आया कि गली के मोड़ पर गाड़ी खड़ी है. पूरा परिवार नींद में बेसुध था. मीनल बहुत ही सावधानी से बाहर निकली. उस ने धीरे से सभी कमरों के दरवाजे भी बाहर से बंद कर दिए, ताकि नींद खुलने पर भी तत्काल तो कोई बाहर न निकल सके.
रातभर का सफर तय कर के सुबह 9 बजे वह सीधी अदालत ही पहुंची, जहां आर्यन उस का इंतजार कर रहा था. आर्यन के दोस्तों ने फूलमाला और मिठाई का प्रबंध कर लिया था. शादी के बाद वे दोनों अपने हनीमून के लिए शिमला जाने वाले थे. इस की व्यवस्था भी आर्यन और मीनल के कुछ खास दोस्तों ने मिल कर की थी.

मीनल बहुत घबरा रही थी. अब तक उस का वकील दोस्त भी आ चुका था. सभी आवश्यक कार्यवाही पूरी कर के दस बजते ही वकील उन दोनों को विवाह अधिकारी के सामने ले गया और कानूनन मीनल आर्यन की हो गई. छोटे से गेटटुगेदर के बाद दोनों शिमला के लिए रवाना हो गए.

उधर, मीनल के घर पर जैसे ही उस के गायब होने की बात पता चली, वहां हडकंप मच गया. दोनों पक्ष एकदूसरे पर इल्जाम लगा रहे थे, लेकिन अब भला हो भी क्या सकता था. दुलहन तो दूल्हे राजा के साथ चली गई थी. शादी के बाद वाले ड्रामे भी सब हुए ही. आर्यन के घर वालों ने उन्हें घर और संपत्ति से बेदखल कर दिया. मीनल के परिवार वालों ने अपनी तरफ से उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया. ये सब हुआ, लेकिन आर्यन और मीनल का प्यार ना तो कम हुआ और ना ही कभी कमजोर पड़ा. वे दोनों दुनिया से बेखबर अपने घोंसले में अभावों के साथ ही खुश हैं.

ऐसी फिल्मी कहानी को भला कौन बारबार याद नहीं करना चाहेगा? मीनल तो हर रोज करती है और इन्हीं यादों में डूबे हुए उसे नींद भी आ जाती है. आज भी यही हुआ. नींद टूटी तो आर्यन के फोन से. मीनल ने फोन उठाया.

“अमा बेगम, यों घोड़े बेच कर तो न सोया कीजिए. बंदा कितनी देर से बाहर खड़ा आप के जगने का इंतजार कर रहा है,” आर्यन ने हमेशा की तरह मुहब्बत से कहा, तो मीनल समाज के कायदों को हाशिए पर सरकाती अपना दुपट्टा संभालती हुई दरवाजा खोलने के लिए उठ खड़ी हुई.

रूपहली चमक : भाग 3

घर आ कर सुकु ने दोनों बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं व अनुप्रिया की पसंदनापसंद चीजों की सूची बनाई. बच्चों के सारे सामान के बैग के साथ हम ने बच्चों को दूसरे दिन शिशुसदन पहुंचा दिया. इस प्रकार बच्चों की समस्या का समाधान हो गया था.

सुकु साढ़े 8 बजे दोनों बच्चों को शिशुसदन छोड़ती हुई स्कूल चली जाती थी और लौटते समय उन्हें लेते हुए घर चली आती थी. कुछ माह यों ही व्यतीत हो गए. अनुप्रिया कुछ दुबली लगने लगी थी लेकिन अनन्य का स्वास्थ्य ठीक था.

एक दिन सुकु की अनुपस्थिति में मैं ने अनु से पूछा, ‘‘बेटे अनु, तुम्हें शिशुसदन में रहना अच्छा नहीं लगता है क्या?’’

वह पलकें झपकाते हुए मासूमियत भरे स्वर में बोली, ‘‘पिताजी, यदि मैं कहूं कि मुझे वहां अच्छा नहीं लगता तो क्या मां नौकरी छोड़ देंगी?’’

छोटी सी बच्ची की इस तर्कसंगत बात को सुन कर मैं खामोश हो गया. उस दिन मैं ने मन में सोचा कि जो उम्र बच्चों को मां के साथ अपने परिवार में गुजारनी चाहिए, वह उम्र उन्हें एक नितांत ही अनजान स्त्री व परिवार के साथ व्यतीत करनी पड़ रही है.

परंतु सुकु के पास यह सब सोचने- समझने का समय नहीं था. वह तो स्वयं को शतप्रतिशत सही समझती थी. शीघ्र ही उस ने कार ले ली. मैं अब भी बस से फैक्टरी जाता था.

देखतेदेखते 3 वर्ष व्यतीत हो गए. इस अंतराल में हमारे मध्य सैकड़ों बार झगड़े हुए थे. अनु अब प्राथमिक स्कूल व अनन्य नर्सरी स्कूल में जाता था. अब दोनों बच्चों को हम दूसरे शिशुसदन में भेजने लगे थे.

जब से बच्चे नए शिशुसदन में जाने लगे थे तब से सुकु के आने के समय में मैं ने आधे घंटे का अंतर लक्ष्य करना आरंभ किया था. एक दिन मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम आजकल समय से नहीं आती हो, कहां रह जाती हो?’’

उस ने उत्तर दिया, ‘‘कभीकभी स्कूल के पास रहने वाली पामेला के घर चली जाती हूं. वह मेरी अच्छी मित्र है, चाय के लिए खींच कर ले जाती है.’’

उस समय तो मैं कुछ न बोला पर मेरे चेहरे के भाव छिप न सके थे. परंतु मुझे सप्ताह में कभी 2 तो कभी 3 दिन उस का देर से आना जरा भी न भाया था. मैं झगड़े की वजह से चुप था क्योंकि बच्चे भी समझदार हो चले थे और मैं नहीं चाहता था कि वे मातापिता के झगड़ों के प्रत्यक्ष गवाह बनें. अत: मैं खून के घूंट पी कर रह जाता.

एक दिन मेरे एक भारतीय मित्र अभिन्न ने बताया, ‘‘विशेष, तुम्हारी पत्नी तो मेरी गली में रहने वाले पाल के घर अकसर ही आती है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘भई, मैं भाभीजी व कार दोनों को ही पहचानता हूं,’’ वह धीरे से बोला.

फिर मैं ने स्वयं को सांत्वना देते हुए सोचा कि पामेला शायद पाल की पत्नी होगी. पर नहीं, मेरा यह अनुमान भी गलत निकला. मेरे उसी मित्र ने फिर बताया कि पाल अविवाहित है. अब मेरे लिए काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई. किसी पति के लिए इस से अधिक शर्मनाक बात भला और क्या होगी कि उसे अपनी पत्नी के गलत आचरण की सूचना किसी तीसरे से मिले.

दूसरे दिन मैं रोज की तरह फैक्टरी गया, पर काम में मन नहीं लगा. अत: 11 बजे मैं ने अपने मैनेजर से अस्वस्थ होने की बात कह कर उस दिन का अवकाश मांगा और सीधे सुकु के स्कूल में पहुंचा. मैं पहली बार वहां गया था. अत: पहचाने जाने का भय भी नहीं था. मैं ने एक कर्मचारी से पाल के बारे में पूछा तो उस ने कैंटीन की ओर इशारा किया. मैं वहां पहुंचा तो देखा कि पाल और सुकेशनी अगलबगल बैठे हुए कौफी की चुसकियां ले रहे हैं और जोरजोर से हंस रहे हैं.

लंबे कद का गोल चेहरे व नीली आंखों वाला लगभग 35 वर्षीय अंगरेज युवक पाल ठहाके लगाता हुआ बीचबीच में सुकु के कंधों को दबाना नहीं भूलता था, ‘जब यहां अर्थात सार्वजनिक स्थल पर यह हाल है तो अपने घर पर न जाने क्या करता होगा?’ यह सोचते ही सुकेशनी के प्रति इतनी घृणा हुई कि इच्छा हुई, उसी क्षण अपनी दुश्चरित्र पत्नी के मुंह पर थूक दूं. परंतु वहां पर मैं ने कोई दृश्य उपस्थित करना उचित न समझा और सीधे घर लौट आया.

उस दिन प्रथम बार मुझे विदेश आने पर पछतावा हो रहा था. इस इच्छा के कारण मैं ने अपने मातापिता के अनमोल प्यार को धूल बराबर भी महत्त्व नहीं दिया था. संभवत: इसी का दंड मुझे मिल रहा था. मेरे हिस्से का प्यार किसी और को मिल रहा था. मेरी पत्नी ने मुझे तो निरा बेवकूफ समझा था. मैं विश्वास की डोर थामे न जाने कब तक बैठा रहता यदि मेरे मित्र अभिन्न ने मेरे हाथ से वह डोर झटक कर यथार्थ का दर्शन न कराया होता.

आज मैं अपना मनोविश्लेषण कर रहा था, सोच रहा था कि मनुष्य कभीकभी अपनी अदम्य आकांक्षाओं के समक्ष किस हद तक स्वार्थी व लोभी हो जाता है. मैं विदेश आना चाहता था. यह जानते हुए भी कि मैं अपने मातापिता की एकमात्र संतान हूं और मेरे विदेश जाने से ये लोग कितने अकेले पड़ जाएंगे, उन्हें संतान सुख से वंचित हो जाना पड़ेगा. फिर भी मैं ने आगापीछा सोचे बगैर विदेश गमन की इस अदम्य लालसा के समक्ष स्वयं को इस तरह समर्पित कर दिया, जैसे मातापिता से कभी मेरा कोई संबंध ही न रहा हो. यह क्या मेरी भयंकर भूल न थी?

मेरे पिता इतने अच्छे पद पर कार्यरत थे. क्या मेरे लिए योग्य लड़की खोजना उन के लिए असंभव था? मेरे मातापिता अपने पोतापोती का मुंह देखने को तरस गए और मैं ने कुछ फोटो भेज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली. उस दिन पहली बार मेरे अंतर्मन ने मुझे अपने मातापिता का अपराधी सिद्ध कर दिया. उस ने मुझे बारबार धिक्कारा.

मेरे मातापिता ने मुझे भलीभांति पालपोस कर क्या इसीलिए बड़ा किया था कि मैं अपने जीवन से उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंकूं? उस दिन मुझे उन के दुख का अनुमान हो रहा था, वह भी इसलिए कि मुझे भी मेरी पत्नी ने दूध में पड़ी मक्खी की भांति अपने जीवन से निकाल बाहर फेंका था. दूसरे की स्थिति का भान तो तभी होता है, जब स्वयं उस स्थिति को भोगना पड़े.

शाम को बच्चों को ले कर सुकेशनी घर आई. कपड़े बदल कर अनु व अनन्य टेलीविजन देखने लगे. मैं वहीं बैठा रहा. तभी सुकु भी कपड़े बदल कर आई व चाय के लिए पूछने लगी, ‘नहीं’ का संक्षिप्त उत्तर पा कर वह स्वयं के लिए चाय बनाने चली गई.

थोड़ी देर बाद चाय का प्याला हाथ में लिए हुए वह आई और बोली, ‘‘विशेष, बढि़या खबर सुनो, मैं स्कूल की ओर से 2 वर्ष के प्रशिक्षण हेतु अमेरिका जा रही हूं.’’

मैं समझ गया कि मुझ से पूछा नहीं बल्कि बताया जा रहा है.

मैं ने पूछा, ‘‘और बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे केवल मेरे नहीं, तुम्हारे भी हैं और उन्हें साथ ले जाने का कोई औचित्य भी नहीं है.’’

तब मैं ने शांत स्वर में ही पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ और कौनकौन जा रहा है?’’

‘‘मेरे ही स्कूल के कुछ लोग.’’

‘‘अच्छा…तो एक बात बताओ, उन कुछ लोगों में पामेला भी है?’’

एक क्षण के लिए सुकेशनी का चेहरा फक पड़ गया. ऐसा प्रतीत हुआ कि उसे आभास हो गया है कि मुझे उस की तथाकथित सखी पामेला के विषय में सबकुछ ज्ञात हो गया है. फिर भी वह सकपकाए स्वर में बोली, ‘‘हां.’’

तब मैं ने उस की आंखों में गहरी नजर से झांकते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हारी इस परम सखी पामेला से मिल सकता हूं?’’

अब चौंकने व स्तब्ध रह जाने की बारी सुकेशनी की थी. वह चकित स्वर में बोली, ‘‘तुम क्यों उस से मिलना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मेरी अपेक्षा उस के सान्निध्य में तुम अधिक खुश रहती हो और यह मैं स्वयं अपनी आंखों से देख चुका हूं,’’ मैं ने संयत स्वर में कहा.

ऐसा लगा कि उस पर किसी ने घड़ों पानी एकसाथ उड़ेल दिया हो, पर एका- एक उस ने शर्म को उतार कर बेशर्मी का बाना पहन लिया और बोली, ‘‘ओह, तो तुम्हें पता लग गया है, पर इस से क्या…मैं और पाल अच्छे मित्र हैं.’’

अब मैं चीख पड़ा, ‘‘मत बतलाओ मुझे कि वह तुम्हारा मित्र है. मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि इस देश में पले लोगों के मित्र की परिभाषा क्या होती है? यदि ऐसा ही था तो तुम ने कभी उसे घर क्यों नहीं बुलाया? मुझ से क्यों नहीं मिलवाया? मुझे पता है क्योंकि तुम्हारे मन में चोर था, तभी तो उस के साथ सारा दिन स्कूल में व्यतीत करने के पश्चात तुम्हें सप्ताह में 3-4 दिन उस के घर भी मिलने जाना पड़ता था. तुम और पाल अमेरिका जा कर मौज करो और मैं तुम्हारा नाममात्र का पति अपनी नौकरी के साथ इन बच्चों का पालनपोषण करूं. शायद ही इस दुनिया में कोई ऐसा बेगैरत पति होगा जो ऐसा करेगा.’’

कुछ क्षण ठहर कर मैं फिर बोला था, ‘‘तुम्हें पाल अच्छा लगता है न? तो ठीक है, तुम्हें तुम्हारा पाल, तुम्हारा देश, तुम्हारा सुख मुबारक हो, तुम उस के साथ अमेरिका खुशीखुशी जा सकती हो. पर एक बात ध्यान से सुन लो, हमारे विवाह में तुम्हारे मातापिता ने कन्यादान कर के तुम्हारा दायित्व मुझे सौंपा था.

‘‘यदि तुम मुझ से संतुष्ट व खुश नहीं हो तो मैं तुम्हें मुक्त कर दूंगा. पर इस के पहले तुम पाल के पास जाओ, तुम उसे चाहती हो न? और वह भी तुम्हें चाहता है…तो जाओ और जा कर उस से पूछो कि वह तुम से विवाह करेगा? यदि करेगा तो मैं तुम्हें तलाक दे कर इन बच्चों के साथ सदा के लिए भारत चला जाऊंगा. मैं अपने बच्चों को यहां के खुले व बेशर्म वातावरण में खराब नहीं होने दूंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि भविष्य में मैं कभी भी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा.’’

सुकेशनी मुझे आंखें फाड़े देखती रही. ऐसा लगा कि उसे मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. वह भौचक्के स्वर में बोली, ‘‘तो तुम्हें कोई एतराज नहीं है?’’

मैं शांत पर खीजे स्वर में बोला, ‘‘नहीं, 10 लोगों से तुम्हारे बारे में तरह- तरह के किस्से सुनने से तो यही अच्छा होगा कि तुम पाल से विवाह कर लो.’’

सुकेशनी उसी समय पर्स उठा कर बाहर चली गई. उस की आधी बची चाय में से अभी तक थोड़ीथोड़ी भाप निकल रही थी. मेरे संतप्त हृदय का भी यही हाल था. मैं समझ गया कि वह पाल के घर गई है. मैं दोनों बच्चों को साथ ले कर पार्क में चला गया.

मुझे सुखसुविधाओं से संपन्न इस घर से विरक्ति सी हो रही थी. विरक्ति से उत्पन्न घुटन मुझे सांस नहीं लेने दे रही थी. मैं रोना चाहता था, पर बच्चों के सामने रो भी नहीं सकता था. पार्क में ठंडी हवा में टहलने से मन कुछ शांत हुआ. हाथ में हाथ डाले अनेक जोड़े वहां टहल रहे थे, उन्हें देख कर मैं और भी उदास हो गया. तभी एहसास हुआ कि रात घिर आई है और मैं बच्चों को ले कर घर आ गया.

लगभग 10-15 मिनट के बाद ही सुकेशनी के आने की आहट हुई.

मैं सोचने लगा कि वह आ कर खिले हुए मुख से मुझे एक और खुश- खबरी सुनाएगी. मैं उदास व खोयाखोया सा बैठा रहा. वह कमरे में आई, पर उदास, निढाल व थकीथकी सी. मैं अभी भी चुप रहा.

उस चुप्पी को भंग करते हुए सुकेशनी बोली, ‘‘विशेष, मुझे क्षमा कर दो, मैं तुम्हारी अपराधी हूं. मैं तुम से दंड चाहती हूं…वह यह कि तुम मुझे जिंदगी भर के लिए अपने हृदयरूपी पिंजरे में कैद कर लो. पाल मुझे खिलौना समझ कर मुझ से खेल रहा था. विवाह की बात सुनते ही वह साफ इनकार कर गया और बोला, ‘मैं ने तुम से विवाह करने की बात तो कभी सोची भी नहीं, यह बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे? क्या तुम अपने पति व बच्चों को जरा भी नहीं चाहती हो? कैसी औरत हो तुम? जब तुम उन से प्यार नहीं कर सकीं तो मुझ से क्या कर पाओगी?’

‘‘विशेष, मुझे अपनी भयंकर भूल का उसी समय एहसास हो गया. मैं तुम से वादा करती हूं कि ऐसी भूल मैं भविष्य में कभी भी नहीं दोहराऊंगी. मुझे एक और अवसर दे दो, विशेष. मैं ने सोच लिया है कि उस स्कूल से अपना तबादला करवा लूंगी. आज से मैं तुम्हारे व बच्चों के प्रति अपने सभी उत्तरदायित्व पूरी ईमानदारी के साथ निभाऊंगी,’’ कहतेकहते वह हिचकियां ले कर रोते हुए मेरे पैरों पर गिर पड़ी.

मैं ने उसे बांहों से पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘सुकु, तुम एक भयंकर भूल कर रही थीं, पर तुम्हें सही समय पर ही अपनी भूल का एहसास हो गया, यह अच्छी बात है. मैं संकीर्ण विचारधारा का नहीं हूं, पर मेरा यह दृष्टिकोण है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्यादा व सीमाओं में रहना चाहिए. फिर भी मैं तुम्हें क्षमा कर रहा हूं और तुम्हारे लिए तुम्हारे द्वारा मांगा दंड ही निर्धारित कर रहा हूं अर्थात जीवन भर तुम्हें अपने हृदयरूपी पिंजरे में कैद रखूंगा. तुम्हारे लिए यह अंतिम अवसर है और मुझे विश्वास है कि तुम अपनी कही बातों का पालन करोगी.’

दोनों बच्चे वहीं आ गए थे, जिन्हें सुकु ने अपनी बांहों में समेट लिया. आंसू उस की आंखों में झिलमिला रहे थे. बच्चों के चेहरों को देख कर ऐसा लगा कि उन्हें वर्षों बाद अपनी मां मिली हो और मुझे भी एक तरह से उसी दिन अपनी पत्नी मिली थी क्योंकि सुकु की आंखों में बहते हुए आंसुओं में उस का मिथ्या- भिमान, जिद, अहं मुझे साफ बहते दिखाई दे रहे थे.

उसी रात हम दोनों ने यह निर्णय लिया कि अपने मतभेदों को बजाय झगड़ा कर के और बढ़ाने के, बच्चों की अनुपस्थिति में एकसाथ बैठ कर सुलझाएंगे. तभी सुकु ने अनुप्रिया व अनन्य का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो बच्चो, तुम्हें कल स्कूल भी तो जाना है.’’

मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से सुकु की ओर देखा तो वह बोली, ‘‘विशेष, मैं एक माह की छुट्टी ले लूंगी. मुझे वर्षों से बिखरा घर सहेजना है.’’

मैं कुछ न बोल कर मुसकराता रहा. दोनों बच्चे मेरे दोनों गालों पर स्नेहचिह्न अंकित कर अपनी मां का हाथ पकड़े खुशीखुशी सोने के कमरे में चले गए.

मुझे गहन काले बादलों में रुपहली चमक दृष्टिगोचर हो रही थी. ऐसी चमक, जो सूर्योदय की प्रतीक थी.

थ्रोट इन्फैक्शन बढ़ा सकता है दिल की परेशानी

‘दिल से शरीर के अंगों का संचालन होता है. मौजूदा समय में रूमैटिक हार्ट डिजीज के मामले काफी आ रहे हैं. खराब लाइफस्टाइल भी हार्टअटैक की समस्या को बढ़ावा दे रही है. बच्चों में जन्मजात हृदयरोग के साथसाथ रूमैटिक हार्ट डिजीज यानी आरएचडी के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. विकासशील देशों में रूमैटिक हार्ट डिजीज ज्यादा मिलती है.

5 से 15 साल के बच्चे रूमैटिक फीवर से ज्यादा ग्रसित हो रहे हैं जोकि ग्रुप ए स्ट्रैप्टोकोक्कल इन्फैक्शन के कारण होता है.

क्या है रूमैटिक हार्ट डिजीज

रूमैटिक हार्ट डिजीज एक छोटी अवधि (एक्यूट) और एक लंबी अवधि (क्रोनिक) के हार्ट डिस्और्डर का एक समूह है. इस में घटित या उत्पन्न समस्या को रूमैटिक फीवर कहते हैं. रूमैटिक फीवर आमतौर पर हार्ट के वौल्व को नुकसान पहुंचाता है. इस से वौल्व डिस्और्डर भी हो सकता है. वौल्व खून के बहाव को कंट्रोल में रखते हैं. यह एक तरह की पतली सी झिर्री होती है जो मुख्यतया 4 तरह की होती हैं, ऐऔर्टिक, मिटरैल, पल्मोनरी और ट्रीकस्पिड.

हार्ट डिजीज कई तरह की होती हैं, लेकिन रूमैटिक हार्ट डिजीज को बाल्यावस्था से होने वाला रोग भी कहा जाता है. वैसे वौल्व हार्ट डिजीज होने के बहुत से कारण हैं. बाल्यावस्था में बारबार गला खराब रहने, ब्लड में इन्फैक्शन होने, जन्मजात सिकुड़न होने, डिजनरेटिव डिजीज, कौलाजन टिश्यू डिस्और्डर होने और तनाव के कारण भी आजकल लोगों को हार्ट की बीमारियां हो रही हैं.

हृदय रोगियों की संख्या बढ़ने का कारण हमारा खानपान व बदलती लाइफस्टाइल है, जिस में शरीर की देखभाल के लिए लोगों को फुरसत नहीं है. काम व टारगेट ने लोगों में तनाव बढ़ा दिया है, जिस के कारण ऐसा हो रहा है.

इस के अलावा, भीड़भाड़ वाले इलाकों और गंदगी में पनपने वाले बैक्टीरिया मुंह के रास्ते गले तक जाते हैं, जिस से सब से पहले गले में खराश होती है, फिर हृदय के वौल्व के छेद छोटे होने लगते हैं जिस से खून का बहाव रुक जाता है और आखिर में यह बीमारी फेफड़ों तक पहुंच जाती है. इस की वजह से फेफड़ों में पानी भर जाता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जिस की वजह से हार्ट फेल हो सकता है.

वहीं, इस के लक्षण भी बहुत आम होते हैं, जिन्हें ज्यादातर लोग नजरअंदाज कर देते हैं. या सामान्य रोग समझ कर अनदेखी कर देते हैं, लेकिन अगर बच्चों में रहरह कर थ्रोट इन्फैक्शन या जोड़ों में दर्द जैसी शिकायतें रहती हैं तो यह रूमैटिक हार्ट डिजीज का सब से बड़ा लक्षण है. इस का एक कारण अनियमित लाइफ भी है. अकसर पेरैंट्स बच्चों में इन्फैक्शन को नजरअंदाज कर बड़ी बीमारी को न्योता देते हैं. इस के साथ ही, सांस चढ़ने लगे, सांस लेने में दिक्कत होने लगे, हमेशा खांसी रहना, कमजोरी, थकान आदि का होना भी इस के अन्य लक्षण हैं. यदि बीमारी लंबे समय तक रहती है तो लिवर के साथ पैरों, एड़ी, पेट और फिर उस से गरदन में सूजन हो जाती है. आमतौर पर मरीज को भूख कम लगती है, जिस के फलस्वरूप मरीज का वजन कम हो जाता है.

गौरतलब है कि रूमैटिक हार्ट डिजीज 2 तरह की होती हैं. पहली, सिकुड़ने वाली जिसे स्टेनोसिस कहते हैं और दूसरी, फैली हुई जिसे रिगर्जिटेशन कहते हैं. इसलिए रूमैटिक हार्ट डिजीज से रोगमुक्त होने के उपचार भी 2 तरह से होते हैं. एक वौल्व को रिपेयर कर के यानी उस रोग को ठीक कर के और दूसरा, वौल्व को बदल कर यानी जब रोग सामान्य तरीके से ठीक न हो पा रहा हो तो उस को बदल दिया जाता है. लेकिन सिकुड़ने के उपचार का तीसरा जरिया बैलुनिंग भी है चूंकि सिकुड़ी हुई चीज को फुलाया भी जा सकता है.

रखें खास खयाल

रूमैटिक हार्ट डिजीज का सब से बड़ा कारण गंदगी और साफसफाई की कमी रहती है. इसलिए हमेशा अपने खानपान और अपने आसपास सफाई का विशेष ध्यान रखें. गले के कोर्निक थ्रोट इन्फैक्शन की समस्या को हलके में न ले कर तुरंत इलाज कराएं. यदि परेशानी लंबे समय तक बनी रहती है तो जल्द से जल्द किसी हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

-डा. दिनेश कुमार मित्तल

(लेखक मैक्स सुपरस्पैशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में प्रमुख सीटीवीएस व सीनियर कंसल्टैंट हैं)

पुनर्मिलन : भाग 3

वैसे तो वह सुनीता पर बेहद नाराज था. उसे लगता है कि सुनीता को शादी करनी ही नहीं थी. उस ने तो उस के साथ ही शादी करने की कसम खाई थी, फिर यकायक यों शादी कर लेना… सुनीता बेईमान निकली. पर समय के साथ उस की नाराजगी दूर होती चली गई.

‘वह तो लड़की थी… भला वह क्या कर सकती थी… और जो कुछ कर सकती थी, उस ने किया भी होगा. मैं ही समय रहते कुछ नहीं कर पाया, वरना ऐसी नौबत ही नहीं आती… पर, मैं भी क्या करता… हम तो पढ़ ही रहे थे… ऐसे में उसे भगा कर तो शादी नहीं की जा सकती थी. वैसे भी उसे तो उस के ब्याह की जानकारी उस के पत्र से ही बाद में मिली थी. तो वह क्या करता… जब तुम कुछ नहीं कर सकते थे, तो सुनीता कैसे कर लेती… नहीं, सुनीता गलत नहीं थी, बल्कि मजबूर थी…’ वह खुद अपने ही विचारों मेें उलझा रहा बहुत देर तक.

रहीम बहुत दिनों के बाद कटिंग कराने गया था. रिटायरमैंट के बाद वह यों ही अस्तव्यस्त सा बना रहता था. वैसे तो सुनीता से संबंध खत्म हो जाने के बाद से ही उस ने यों सजनासंवरना बंद कर दिया था. वह कैसे भी कालेज चला जाता और ज्यादातर समय पढ़ाई ही करता रहता.

नौकरी लग जाने के बाद भी उस ने अपने ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. उसे महसूस होता था कि उस के जीवन में कोई उत्साह नहीं बचा है. पर, अब जब सुनीता से उस की मुलाकात हुई, तब से उसे अपनी जिंदगी में रस दिखाई देने लगा था. उस ने सोच रखा था कि जब भी सुनीता उसे फोन करेगी, तब ही वह उस से मिलने को बोलेगा.

वह सुनीता से मिलने की तैयारी कर रहा था. चेहरे पर बढ़ चुकी अस्तव्यस्त दाढ़ी और लंबे हो रहे बालों को कटवाने के बाद उन्हें काला भी कराया था. घर आ कर रहीम ने बहुत देर तक स्नान किया. साबुन से रगड़रगड़ कर हाथपैर साफ किए, फिर आईने के सामने खड़ा हो कर देखता रहा था अपनेआप को.

कालेज के दिनों की याद आ गई थी उसे, ‘‘तुम कितनी देर तक आईने के सामने खड़े रहते हो,’’ अम्मी का झंझुलाया स्वर गूंज उठता, ‘‘बिलकुल लड़कियों की तरह’’ कहते हुए वे हंस देती.

‘‘अरे अम्मी, मैं कालेज जा रहा हूं… अच्छे से तैयार हो कर जाना पड़ता है… ऐसे ही गंदा चला गया तो लोग मुझे नहीं आप को ही नाम रखेंगे,’’ कहते हुए वह अपनी अम्मी के बाल खींच देता.

अम्मी उसे प्यार से खाना खिलातीं, ‘‘तेरी कमीज फट गई है… ये पैसे ले और कालेज से लौटते समय ले आना…’’

‘‘अरे वाह अम्मी… कितना ध्यान रखती हो मेरा…’’ वह उन की गोदी में सिर घुसा देता.

‘‘चल, इतना बड़ा हो गया है और अपनी अम्मी के पल्लू में छिपता है…’’ रहीम आईने के सामने खड़ा हो कर खो गया था पुरानी यादों में. अब अम्मी कहां हैं वे तो गुजर गईं… वह खुद ही बूढ़ा हो गया. कानों के पास कुछ कालापन सा दिखाई दिया. उस ने वहां क्रीम तो लगा ली, पर वह कालापन खत्म नहीं हुआ. उस ने गहरी सांस ली.

सुनीता ने वादानुसार फोन किया था, ‘‘फ्री हो, या फिर बाद में लगाऊं…?’’

रहीम तो सुबह से ही फोन का इंतजार कर रहा था. वह जानता था कि सुनीता उसे फोन जरूर लगाएगी. वह उस की इस बात का तो कायल रहा है. कालेज के दिनों में भी वह ऐसा ही करती थी, ‘‘कल कितने बजे मिलना है?”

‘‘दोपहर को 2 बजे… यहां भीड़भाड़ कम रहती है…’’

‘‘ओके…’’

वह 2 बजे पहुंच जाती, यदि रहीम जरा सा भी लेट हो जाता तो नाराज हो जाती, “यार, समय का ध्यान रखा करो… जब हम समय का ध्यान रखते हैं, तो समय भी हमारा ध्यान रखता है.’’

‘‘गलती हो गई मेरी मां… मुझे माफ कर दो…’’ रहीम अपने कान पकड़ कर माफी मांगता.

उसे भरोसा था कि सुनीता ने बोला है तो वह फोन अवश्य करेगी, इसलिए वह फोन हाथ में लिए ही बैठा था.

‘‘अरे, मैं फ्री हूं… कब से इंतजार कर रहा था फोन का…’’

‘‘इंतजार तो मैं भी कर रही थी… पर, समय तो तुम ने ही दिया था… तो उसी समय फोन किया…’’

‘‘ओह, और सुनाएं आप…’’

‘‘क्या सुनाएं… जीवन के गायब हुए 25-30 सालों का हिसाब तो सुना नहीं सकते…’’

‘‘सुनाना तो चाहिए. पर नहीं सुनाना तो कोई बात नहीं है…’’

‘‘तुम को याद है रहीम कि हम परसों के पहले आखिरी बार कब मिले थे…”

‘‘शायद 1982 में…’’

‘‘शायद नहीं, हम 22 अप्रैल,1982 को ही मिले थे.’’

‘‘तारीख सहित याद है तुम्हें…’’

‘‘हां, इस से अंदाजा लगा लो मैं ने अपने जीवन के एकएक पलों को कैसे काटा होगा…’’

रहीम कुछ नहीं बोला.

‘‘रहीम, मैं नहीं जानती कि तुम्हारी लाइफ कैसी रही, पर मैं अपनी लाइफ के बारे में जानती हूं… मेरी जिंदगी के एकएक पल में तुम समाए रहे हो…’’ सुनीता के आंसू निकल आए थे शायद. उस की आवाज में भारीपन आ गया था.

‘‘सुनीता, क्या हम कहीं मिल नहीं सकते?’’

‘‘मिलना ही होगा, वरना हम ढेर सारी बातें फोन पर तो कर नहीं सकते…’’

‘‘कब…?’’

‘‘तुम ही बताओ…’’

‘‘आज मिल सकती हो…”

‘‘ठीक है, पर कहां…?’’

‘‘तुम मेरे घर आ जाओ… अभी मैं घर पर अकेली हूं.’’

‘‘तुम्हारा घर…”

‘‘हां… यहां शांतिनगर में नया फ्लैट लिया है… कुछ महीनों पहले ही…”

‘‘ठीक है, पर…’’

‘‘मैं मोड़ पर तुम्हें लेने आ जाऊंगी…’’

‘‘ओके… मैं अभी पहुंच रहा हूं…’’

सुनीता कालोनी के मोड़़ पर ही मिल गई थी. उस के साथ पैदल चलते हुए उस के घर पर आ गया था.

सुनीता आज बहुत अच्छी लग रही थी. उस ने आसमानी रंग की साड़ी पहनी हुई थी. बालों का जूड़ा बनाया हुआ था. मैं उसे देखता रहा बहुत देर तक…

‘‘क्या देख रहे हो…?”

‘‘तुम बहुत दिनों के बाद मिली हो न…”

‘‘अब मैं कालेज के दिनों वाली सुनीता तो रही नहीं. बूढ़ी हो गई हूं…”

‘‘लगती तो नहीं हो कि तुम बूढ़ी हो गई हो…’’

‘‘तुम्हारी आंखों का धोखा है… मोतियाबिंद हो गया हो गया होगा. चैक करा लेना…’’ उस के होंठों पर मुसकान तैर गई.

‘‘तुम भी तो कितने बदल गए हो… उस दिन बाजार में मैं तुम्हें जरा सा भी नहीं पहचान पाई थी. बूढ़े हो गए हो, बूढ़़े… पर लगते अभी भी हैंडसम ही हो…’’ उस ने रहीम के गालों को खींचते हुए कहा.

‘‘हां यार… कितना समय निकल गया जीवन का… हम 60 के हो चले हैं… पर आज तुम को देखा तो ऐसा लगा मानो हम आज भी कालेज के स्टूडैंट ही हैं…’’

‘‘तुम्हारे बाल तो बहुत लंबे हुआ करते थे. अब भी इतने ही लंबे हैं क्या…?’’

सुनीता ने अपना जूड़ा खोल लिया. उस के बाल उस की पीठ पर बिखर गए.

‘‘मैं ने हमेशा इन बालों को तुम्हारी धरोहर ही माना है… देखो, सफेद जरूर हो गए हैं, पर लंबे आज भी उतने ही हैं…’’

वह उसे हैरान सा देख रहा था. उसे सुनीता परी सी नजर आ रही थी.

“रहीम, मेरी शादी अचानक ही कर दी थी… मैं बहुत रोई भी थी. अपनी मां को बताया भी था कि मैं केवल और केवल रहीम से ही शादी करना चाहती हूं, पर मेरी किसी ने एक न सुनी. उन को तुम्हारा धर्म पसंद नहीं था… मैं कुछ नहीं कर सकती थी रहीम… पिताजी ने जिस खूंटे से बांधा, मैं घिसटती हुई उस के साथ चली गई,’’ कहते हुए सुनीता सुबक पड़ी थी. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.

“रहीम, सच मानना कि मैं ने इतना विद्रोह अपने जीवन में कभी नहीं किया था, जितना उस दिन किया वह भी अपने पिताजी के सामने… पर, उन्होंने मेरी एक न सुनी…

“सच बताऊं रहीम, वैसे तो वे मान भी जाते, पर उन के सामने समाज खड़ा था… वे अपने समाज के खिलाफ नहीं जाना चाहते थे… भले ही उन की लाड़ली बिटिया कष्ट सह ले… यह कैसा समाज है रहीम… इसे व्यक्ति के अच्छे होने से कोई मतलब नहीं है… उसे केवल धर्म से मतलब है…?’’ कहते हुए सुनीता अब भी सुबक रही थी.

‘‘मेरे पति बैंक में नौकरी करते थे, मैं भी टीचर बन गई थी. मेरे 2 बच्चे हैें. बड़ी बिटिया की शादी हो गई है और एक बेटा है, वह अब विदेश में है. उस की भी शादी हो गई है. मैं ने अपने बेटे को बहुत रोका कि वह विदेश न जाए, वरना मैं यहां अकेली कैसे रहूंगी, पर वह नहीं माना और चला गया. मैं अकेली हो कर रह गई हूं. पति का देहांत तो 2-3 साल पहले हो गया. मैं अकेली कहां रहती, इसलिए इस शहर में ही यह मकान ले लिया है…’’ सुनीता की आंखों से आंसू बह रहे थे. मैं खामोश था. उस को संयत होने में समय लगा.

सुनीता अंदर चली गई. जब वह लौटी, तो उस के हाथोें में पानी के गिलास थे.

‘‘तुम भी अपनी दास्तां सुनाओ रहीम,’’ पानी का गिलास देते हुए सुनीता ने पूछा.

‘‘तुम्हारे जाने के बाद मैं ने यह शहर छोड़ दिया था. मैं कैसे रह पाता इस शहर में तुम्हारे बिना… भोपाल जा कर पढ़ाई की और फिर नौकरी भी लग गई, तो लगभग सारा समय ही बाहर रहा. पिछले साल ही मेरा रिटायरमैंट हुआ है तो यहां आ गया…’’

‘‘बच्चे कितने हैं…?”

‘‘मैं ने शादी नहीं की.मैं ने तो केवल तुम से शादी करने की कसम खाई थी. उसे मैं कैसे तोड़ सकता था,’’ रहीम ने अपनी नजरों को दूसरी ओर घुमा लिया था.

सुनीता हैरान सी उसे देख रही थी.

‘‘क्या… पागल हो तुम… वाकई पागल ही हो… सारी जिंदगी ऐसे ही काट ली…’’ सुनीता ने अपने साड़ी के पल्लू को अपनी आंखों में लगा लिया था.

रहीम चुप रहा.

‘‘यहां अकेले रहते हो…?’’

‘‘नहीं, मेरे छोटे भाई के परिवार के साथ…’’

‘‘ओह, अच्छा… वह नौशाद के साथ…’’

‘‘हां…’’

‘‘अच्छे से रखता है वह…’’

‘‘हां, बहुत स्नेह करता है मुझ से.’’

‘‘अच्छा…’’

दोनों चुप हो गए. रहीम बहुत देर तक बैठा रहा था सुनीता के यहां. लौटते समय सुनीता ने फिर आने की बोला था. सुनीता तब तक उसे देखती रही, जब तक कि वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया.

रहीम को आज बहुत सुकून मिला था. जाने कितने दिनों के बाद उस के चेहरे पर रौनक थी. उस की दिनचर्या अब बदल चुकी थी. वैसे भी वह ऊपर के कमरे में अकेला ही रहता था, केवल खाना खाने नीचे आता था. दोपहर को वह बाहर निकल जाता था और शाम को लौट कर अपने कमरे में. अब उस ने दोपहर में बाहर निकलना कम कर दिया था. यही वह समय था, जब सुनीता उसे फोन करती थी. दोनों बहुत देर तक फोन पर बातें करते रहते. कभीकभी वह बाजार चला जाता, ऐसा वो तब ही करता, जब सुनीता उसे बताती कि वह बाजार जा रही है. दोनों वहां कैफे हाउस पर बैठ कर कौफी पीते. कभीकभी गंगा किनारे भी चले जाते. दोनों साथ ही प्रकृति के दर्शन करते और वहीं बैठ कर बातें करते रहते थे.

वैसे तो सुनीता चाहती थी कि रहीम उस के घर आ जाया करे, पर वह कहने में हिचकता था, ‘‘देखो, तुम अकेली रहती हो… तो बारबार तुम्हारे घर आना… अच्छा नहीं लगेगा. वैसे भी कालोनी में मेरे परिचित बहुत से लोग रहते हैं…’’

‘‘अरे, इस उम्र में किस बात का डर…’’

‘‘उम्र की बात नहीं है, बल्कि परिस्थितियों की बात है…’’

सुनीता ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया, पर बात करने और हर दूसरे दिन मुलाकातों का सिलसिला अनवरत जारी रहा. दोनों में जवानी का जोश दिखाई देने लगा था.

‘‘रहीम, अब तो यही लगता है कि हमारी जो कहानी अधूरी रह गई है, उसे पूरा कर लिया जाए…’’ सुनीता ने पूरी गंभीरता के साथ बात की थी. वे बगीचे में रखी बैंच पर साथ बैठे थे. रहीम ने चौंकते हुए उस की ओर देखा.

सुनीता की आंखों में नेह निमंत्रण साफ दिखाई दे रहा था.

‘‘क्या पागलों जैसी बातें कर रही हो…? यह कोई उम्र है… हमारे बच्चों के बच्चे जवान हो चुके हैं…’’ और फिर हमारी जिंदगी बची ही कितनी है…’’

‘‘तुम क्या यह बारबार उम्र को बीच में ले आते हो…? उम्र से प्यार का क्या संबंध…? हम जब संयोग से मिल ही गए हैं और अपना अकेलापन काट रहे हैं, तो ऐसे में घुटघुट कर जिंदगी जीने का क्या मतलब है…’’ सुनीता नाराज हो गई थी. उसे भी लग रहा था कि वह हर बार अपनी उम्र को ढाल बना लेता है. यदि वाकई उसे अपनी उम्र की इतनी ही फिक्र है, तो फिर मिलता ही क्यों है सुनीता से.

उस ने सुनीता की ओर देखा और बोला, ‘‘तुम्हारे गाल गुस्से में और भी लाल हो जाते हैं… तुम ऐसे ही गुस्सा बनी रहा करो…’’

रहीम चाह रहा था कि सुनीता का मूड ठीक हो जाए. सुनीता ने अपने गुस्से को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया.

‘‘ये जो तुम्हारे बालों की लट है न, किसी दिन मेैं इसे कैंची से कतर दूंगा…’’

‘‘काट दो… ये तो वैसे भी तुम्हारे ही हैं…’’

‘‘तो इस से कह दो कि वे अपनी हद में रहे…’’

सुनीता कुछ नहीं बोली.

‘‘देखो रहीम, हम को जिस धर्म और संप्रदाय ने अलग किया था, अब समाज की सोच और मानसिकता में फर्क आ चुका है… मैं जानती हूं कि तुम एक बेहतर इनसान हो… समाज जानता है कि तुम एक बेहतर इनसान हो… तो अब क्या परेशानी है…?’’

‘‘अच्छा, मैं सेाचता हूं तुम्हारे प्रस्ताव के बारे में…’’

उस ने केवल अपनी निगाह उठा कर रहीम की ओर देखा और उठ खडी हुई.

रहीम को सुनीता की बात तो ठीक लग रही थी, पर उसे केवल यह ही भय था कि लोग क्या सोचेंगे. उस ने अपनी सारी उम्र ऐसे ही अकेले काटी थी. उम्र बढ़ने के साथ ही उसे लगने लगा था कि कोई ऐसा उस के साथ होना ही चाहिए, जो उस की फिक्र भी करे और देखभाल भी.

सुनीता की भी यही स्थिति थी. वह तो और अकेली थी. अकेलापन उसे काटने दौड़ता होगा. जब दोनों अकेले हैं और दोनों को अपना जीवन ऐसे ही गुजारना है, तब दोनों एकदूसरे का सहारा क्यों नहीं बन सकते.

रहीम का चिंतन चलता रहा और एक फैसले पर जा कर रुक गया. उस ने तय कर लिया था कि उसे सुनीता के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना है और यह भी कि सुनीता को कोई परेशानी न हो, इसलिए उस के धर्म के अनुरूप वह अपनेआप को ढाल लेगा.

नौशाद को रहीम की बात सुन कर आश्चर्य हुआ, ‘‘पर, भाई… आप इतने समझदार हैं, फिर भी…’’

‘‘देखो नौशाद, मैं तुम्हारे भरोसे अपना बुढ़ापा नहीं काट सकता… अब तुम भी तो बुजुर्ग होते जा रहे हो… ऐसे में… कल तुम मेरी कितनी देखभाल कर पाओगे…?

‘‘पर…’’

‘‘तुम से मैं कुछ पूछ नहीं रहा हूं… केवल बता रहा हूं कि मैं सुनीता के  साथ ब्याह करने जा रहा हूं… इसलिए तुम मुझे कोई सलाह न दो…’’

नौशाद चुप हो गया.

एक नए मकान के मुख्य द्वार पर नई नेम प्लेट लग चुकी थी ‘सुनीता रहीम निवास’. ड्राइंगरूम के एकदम सामने एक नया फोटो फ्रेम भी लग चुका था, जिस में सुनीता और रहीम एकदूसरे को माला पहना रहे थे. रहीम सुनीता का हाथ अपने हाथों में लिए मुसकरा रहा था.

मां की बनारसी साड़ी : भाग 3

उस रोज जब पूर्णिमा किसी काम से घर से बाहर गई थी तब अलीमा ने उस की अलमारी से वह साड़ी निकाल कर देखी. सच में साड़ी बहुत ही सुंदर थी. लेकिन उस का आंचल बुरी तरह से जल चुका था, बिलकुल भी पहनने लायक नहीं बची थी. देररात तक अलीमा यही सोचती रही कि ऐसा क्या करे वह जिस से पूर्णिमा की खोई खुशियां वापस लौट आएं.

‘‘आलोक, सुनो न, मम्मापापा की 25वीं एनिवर्सरी पर हम उन्हें क्या गिफ्ट देंगे?’’ आलोक का ध्यान अपनी तरफ करती हुई अलीमा बोली.

‘‘क्या देंगे, शहर के सब से बड़े होटल में उन के लिए सरप्राइज पार्टी रखते हैं?’’ आलोक बोला.

‘‘वह तो ठीक है लेकिन कुछ और सोचो न,’’ अलीमा बोली.

‘‘तो हम उन्हें एक बढि़या मौडल की गाड़ी गिफ्ट करते हैं,’’ आलोक ने दिमाग चलाया.

‘‘नहीं, कुछ ऐसा जिसे देखते ही मम्मा का चेहरा खिल उठे,’’ अलीमा बोली.

‘‘तो फिर तुम्हीं सोचो, क्या देना है क्योंकि तुम में ही ज्यादा दिमाग है,’’ खी?ाते हुए आलोक बोला.

‘‘सो तो है,’’ बोल कर जब अलीमा खिलखिला पड़ी तो आलोक ने उसे गुर्रा कर देखा. ‘‘जस्ट जोकिंग,’ बोल कर अलीमा ने सौरी तो बोल दिया लेकिन सवाल अब भी वही था कि ऐसा क्या गिफ्ट दिया जाए जिस से पूर्णिमा का चेहरा खिल उठे? अपनी सोच में डूबी अलीमा यों ही मोबाइल स्क्रौल कर ही रही थी कि एक जगह उस का हाथ रुक गया. सोच लिया उस ने कि 25वीं एनिवर्सरी पर वह पूर्णिमा को क्या गिफ्ट देगी.

‘‘मम्मा, यह लहंगा कितना सुंदर है न,’’ सुबह की चाय पीते हुए अलीमा बोली तो अपने चश्मे को ठीक करते हुए पूर्णिमा कहने लगी कि हां, सच में, बड़ा ही खूबसूरत लहंगा है यह तो.

‘‘मम्मा, आप पर यह लहंगा बहुत खूबसूरत लगेगा सच में.’’ उस की इस बात पर पूर्णिमा को हंसी आ गई कि अब इस उम्र में वह लहंगा पहनेगी?

‘‘क्यों, क्यों नहीं पहन सकतीं आप लहंगा? अपनी 25वां एनिवर्सरी पर आप लहंगा ही पहनेंगी, बस,’’ एक बच्ची की तरह जिद करती हुई अलीमा बोली तो पूर्णिमा को कहना पड़ा कि ठीक है भाई, पहन लेगी वह लहंगा अपनी एनिवर्सरी पर. लेकिन फिर उसे भी लहंगा पहनना पड़ेगा. ‘‘ओके डन’’ बोल कर अलीमा बच्ची की तरह पूर्णिमा के गले से लिपट गई.

‘चलो, लहंगा पहनने के लिए तो मैं ने मम्मा को राजी कर लिया लेकिन अब आगे के प्लान के लिए मु?ो बुद्धू आलोक, सौरीसौरी, पतिदेव की मदद लेनी होगी’ अपने मन में सोच अलीमा ने और एक गहरी सांस ली, फिर आलोक को सारी बातों से अवगत कराते हुए कहा कि उसे उस की मदद करनी पड़ेगी. वह मान तो गया लेकिन अलीमा को छेड़ते हुए बोला कि इस के लिए उसे घूस देनी पड़ेगी.

‘‘घूस, क्या घूस देनी होगी? क्या घूस चाहिए तुम्हें, सुनें तो जरा?’’ अलीमा की बात पर आलोक ने आंख मारते हुए कहा कि रोज उसे आलोक को ढेर सारी पप्पी देनी पड़ेगी.

‘‘ओहो, तो जनाब, मौके का फायदा उठाना चाहते हैं,’’ बोल कर एक जोर की पप्पी आलोक के गाल पर जड़ते हुए अलीमा ने उसे ‘थैंक यू’ कहा और अपने काम में लग गई.

पूर्णिमा को कोई शंका न हो, इसलिए कहसुन कर उस ने उसे रजत के साथ फिल्म देखने जाने के लिए राजी कर लिया. इस बीच, वह अपने काम को अंजाम देने में लग गई. रजत और पूर्णिमा की 25वीं शादी की सालगिरह की पार्टी घर पर ही रखी गई थी जहां रजत, आलोक, अलीमा के दोस्तों के अलावा और भी कई मेहमानों को बुलाया गया था. अमेरिका से रजत की बहन और बेंगलुरु से मीठी भी आ चुकी थी. घर में खूब रौनक थी. पूर्णिमा को तैयार करने के लिए अलीमा ने पार्लर वाली को घर पर ही बुला लिया था.

‘‘मम्मा, मैं आप के लिए कुछ लाई हूं,’’ एक प्यारा सा गिफ्ट का पैकेट पूर्णिमा की तरफ बढ़ाते हुए अलीमा बोली तो पूर्णिमा कहने लगी कि इस की क्या जरूरत थी.

‘‘जरूरत थी, मम्मा. लेकिन पहले आप यह पैकेट खोलो तो सही. देखो तो यह गिफ्ट कैसा लगा,’’ अलीमा का कलेजा जोरजोर से धड़क रहा था कि पता नहीं पूर्णिमा इस गिफ्ट को देख कर कैसे रिएक्ट करेगी? कहीं गुस्सा न हो जाए. आलोक भी सांस रोके खड़ा था. लेकिन जैसे ही पूर्णिमा ने वह पैकेट खोला, अवाक उसे देखती रह गई.

‘‘ये, ये क्या है, बेटा? ये तो… मेरी मां की साड़ी जैसी दिख रही है. लेकिन यह तो लहंगा….’’

‘‘मम्मा, मैं ने आप की मां की बनारसी साड़ी, जो दीवाली के पटाखे से जल गई थी, उसे लहंगे का रूप दे दिया. कैसा लगा, बताओ मम्मा? पसंद आया आप को यह लहंगा?’’

उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस के हाथ में उस की मां की साड़ी का बना लहंगा है वह भी इतना खूबसूरत. लेकिन उस के पास बोलने के लिए शब्द नहीं थे कि वह क्या बोले. बस, उस की आंखों से ?ार?ार कर आंसू बहने लगे यह सोच कर कि क्या वह अपनी शादी की 25वीं सालगिरह पर मां की बनारसी साड़ी पहन सकती है. हां, भले ही साड़ी का रूप बदला है पर है तो उस की मां की बनारसी साड़ी ही न. साड़ी से बने लहंगे को अपने सीने से लगा कर पूर्णिमा फफक पड़ी. जब उस ने वह लहंगा पहना तो लगा, उस की मां उसे आशीर्वाद दे रही है और यह सब हुआ था सिर्फ और सिर्फ उस की बहू अलीमा की वजह से.

अपनी बहू को अपने सीने लगा कर पूर्णिमा ने जाने कितनी पर उसे चूमा और प्यार करते हुए बोली, ‘‘कितनी किस्मत वाली हूं मैं, जो मु?ो तुम जैसी बहू मिली.’’

‘‘और बेटा कुछ नहीं?’’ आलोक ने मुंह बनाया तो पूर्णिमा उसे भी प्यार करने लगी. ‘‘वैसे मम्मा, अलीमा का मतलब ही होता है, सम?ादार, बुद्धिमान, संस्कारी और शक्तिशाली. इसलिए तो मैं ने इसे चुना अपने लिए’’ आलोक की बात पर जहां सब हंस रहे थे वहीं पूर्णिमा मां की बनारसी साड़ी से बने लहंगे को प्यार से सहला रही थी.

खुशियों की उम्र : भाग 3

कार्ड में लिखे संदेश को पढऩे के बाद बहू के मन में ससुर को ले कर उपजी शंका का कारण भी जड़ गया. उस की नजरों के सामने वे दिन याद आ गए जब सास की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु होने से अकेले पड़ गए रमण प्रसाद ने अपनी पत्नी की याद में तड़पते हुए कैसे अपनी जिंदगी को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. कुश के बहाने ही उस ने रमण प्रसाद को घर से बाहर खुली हवा में सांस लेने का एक बहाना दिया था. ससुर के चेहरे पर खुशी की झलक पाने के लिए अनजाने में उस के उठाए गए कदम से वह अब तक यह मानकर खुश हो रही थी कुश को स्कूल छोडऩे और ले जाने के एक काम से उन की दुख की परतें मन में कहीं दब कर खुशी की लहरें अब उन के जीवन का हिस्सा बन रही थीं. लेकिन वह आज जान पाई कि उन की खुशी का कारण तो कुछ और ही था. उन्हें दुख से उबरता पा कर ही उन की और कुश की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही तो उस ने कुश को स्कूलवैन में भेजना शुरू किया था.

उस ने चुपचाप जींस और टीशर्ट को उसी तरह फोल्ड कर उस कार्ड को उस के बीच रख कर वापस रमण प्रसाद की तिजोरी में करीने से सहेज कर रख दिया.

उसी रात को उस ने शेखर से रमण प्रसाद के बारे में कुछ बात की और फिर पतिपत्नी दोनों ने एक बात पर सहमत हो कर एक महत्त्वपूर्ण फैसला कर लिया.

बहूबेटे के फैसले से अनजान रमण प्रसाद अपने कमरे में बैठे हुए सुनंदा का दिया हुआ कार्ड हाथ में ले कर काफी देर तक बैठे रहे. फिर कुछ सोचते हुए तिजोरी खोल कर जींस और टीशर्ट पर एक नजर डाल उसे बाहर खींच लिया. अपने शरीर पर टीशर्ट लगा कर उन्होंने तिजोरी के दरवाजे पर लगे कांच में देखा और मंदमंद मुसकरा दिए. थोड़ी देर तक कुछ सोचने के बाद मन ही मन एक फैसला कर उन्होंने जींस, टीशर्ट और वह कार्ड वापस तिजोरी में सहेज कर रख दिए.

रविवार होने से शेखर आज घर पर ही था. सोफे पर बैठा हुआ वह अखबार पढ़ रहा था. कुश उस के पास फर्श पर चुपचाप बैठा हुआ होमवर्क कर रहा था. घर में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी. रमण प्रसाद अखबार पढ़ जब अपने कमरे से बाहर निकले तो उन्हें आशा थी उन का बेटा भले ही उन्हें उन का जन्मदिन विश करना भूल जाए पर बहू यह बात कभी नहीं भूल सकती. लेकिन उन की आशा के विपरीत जब वह चुपचाव चाय का कप उन के हाथ में थमा कर चली गई तो वे निराश हो गए. चाय पी कर उन्होंने कुश के सिर पर हाथ फेरा और अपने कमरे में चले गए. तिजोरी खोल कर उन्होंने कपड़ों के बीच सहेज कर रखे जींस और टीशर्ट पर एक नजर डाली फिर कुछ सोच कर उन्हें बाहर निकाला. उन की नजरों के सामने सुनंदा का हंसता हुआ चेहरा तैर गया लेकिन अगले ही पल बहू और बेटे का खयाल आते ही उन्होंने फुरती से जींस और टीशर्ट वापस तिजोरी के अंदर रख दी और अपने 60वें जन्मदिन पर रमा द्वारा भेंट किया गया उस की ही पसंद का कुरतापाजामा बाहर निकाल लिया. वे उसे पहन कर बाहर जाने को तैयार हो गए.

तभी बहू ने उन के कमरे में प्रवेश किया और उस के पीछेपीछे शेखर भी चला आया.

“यह क्या पिताजी? आज के दिन भी आपने कुर्तापाजामा ही पहन लिया?”’

“क्यों? तो क्या हुआ? आज क्या विशेष है?” आखरी वाक्य बोलते हुए रमण प्रसाद को बहुत तकलीफ हुई.

“मैं बताती हूं आप को आज क्या पहनना चाहिए,” रमण प्रसाद की बात सुन कर बहू ने झट से तिजोरी खोल कर जींस और टीशर्ट निकाल कर उन के हाथों में थमा दी.

बहू की यह हरकत देख कर रमण प्रसाद सकपका गए. उन्हें लगा जैसे उन्होंने कोई चोरी की और उन की चोरी रंगेहाथों पकड़ी गई.

‘ये…ये क्या है, बहू. मैं ने ऐसे कपड़े आज तक नहीं पहने हैं.”

“तो आज पहन लीजिए, पापा. सुनंदा आंटी के बारे में सारी खोजबीन करते हुए आप को अंधेरे में रखा, इस के लिए माफी चाहते हैं. लेकिन सुनंदा आंटी ने आप दोनों के बारे में हमें सबकुछ बता दिया है,” शेखर ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा.

“चार दिनों पहले आप के कमरे की सफाई करते हुए यह जींस मेरे हाथ आ गया था. पहले मुझे लगा कि इन का होगा तो निकालने गई तो फिर यह टीशर्ट और एक कार्ड भी हाथ आ गया,” बहू ने आगे की बात बताते हुए कहा.

रमण प्रसाद उन की बातों का कुछ जवाब दे पाते, उस से पहले ही दोनों ने उन के पैरों में झुक कर उन के चरण स्पर्श कर लिए.

“जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, पापा. आज तक आप दूसरों की खुशी के लिए ही जीते आए और उस के आगे आप ने अपनी खुद की खुशी को महत्त्व ही न दिया.

“पिताजी, कोई अपराधबोध मन में रखने की जरूरत न है. आप के बहूबेटे इतने तो समझदार हैं कि आप के हिस्से की खुशियों का ख़याल रख सकें. सुनंदा आंटी से हम ने वादा किया है, आज आप जींसटीशर्ट पहन कर ही उन से मिलने जाएंगे,” बहू ने मुसकराते हुए रमण प्रसाद को देखा.

“हां पापा, खुशियां उम्र की मुहताज थोड़े ही होती हैं. अपनी दोस्ती निभाने के लिए तैयार हो जाइए,” शेखर ने कहा और फिर दोनों पतिपत्नी वहां से निकल गए.

रमण प्रसाद ने मुसकराते हुए टीशर्ट पर हाथ फेरा और फिर कुरता उतारने लगे.

जिंदगी बदगुमां नहीं : भाग 3

राम के इस व्यवहार से सब का मन दुखी होता, पर आखिर विकल्प क्या था?

ऐसे दुख की घड़ी में शिशिर को पदम की बड़ी याद आती. काश, वह यहां होता. कितना स्वार्थी था शिशिर जो शिखंडी बेटे के जाने के बाद उस की सुध भी न ली.

आज आत्मग्लानि से वह बेटे का सामना नहीं कर पा रहा है. क्या हुआ इन 20-22 बरसों में जानने की उत्कंठा तो थी परंतु जबान जैसे तालू से चिपक गई थी उस की. आज बेटा सामने है तो खुशी तो है पर कहेपूछे किस मुंह से?

जब से पदम ने घर में कदम रखा है, मुन्ना और रेवा बच्चों की तरह खुश हैं जैसे किसी खोए खिलौने को पा लिया है, पर शिशिर अपनी सोच और व्यवहार से नजरें चुरा रहा है.

आज सब ने सुबहसुबह दूधजलेबी खाई थी. नाश्ते के बीच पदम ने पूछा, ‘‘मां, राम भैया कहां हैं?’’

‘‘अमेरिका में,’’ मां ने जवाब दिया था.

‘‘वहां क्या करते हैं?’’

‘‘पता नहीं, बेटा. फोन आता रहता है. आज इतवार है, देखना फोन जरूर आएगा.’’

‘‘चलो, यह भी अच्छा हुआ जो पढ़लिख कर वे नौकरी कर रहे हैं,’’ पदम ने ठंडी प्रतिक्रिया दी.

‘‘छोड़, यह बता तू ने क्या पढ़ाई की है?’’

‘‘मैं ने एनीमेशन इंजीनियरिंग की है यानी सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं.’’

‘‘वाह, क्या बात है. तू तो बड़ा लायक निकला, सब ने खुशी व्यक्त की थी.’’

‘‘हां, यहां नोएडा में एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई है. कल से जाना है.’’

‘‘बहुत खूब,’’ मुन्ना बाबू ने उस की पीठ थपथपाई.

‘‘भैया का फोन आएगा तब मैं भी बात करूंगा.’’

सब ने सुनी थी उस की बात पर ‘राम प्रकरण’ को छेड़ना इस वक्त किसी को भला नहीं लग रहा था. तभी फोन की घंटी बजी.

शिशिर बाबू ने फोन उठाया, जानते थे उसी का होगा. पदम दूसरे कमरे में रखे पैरलेल लाइन पर बापबेटे की बातें सुन रहा था.

‘‘पापा, वह मकान का क्या हुआ? कोई कस्टमर मिला?’’

‘‘तुझ से मैं ने पहले भी कहा है, मैं यह मकान नहीं बेचूंगा.’’

बापबेटे में बहस छिड़ गई. बीच में पदम बोला, ‘‘भैया, मकान की बात क्यों करते हो?’’

राम चौंका, ‘‘भई, बीच में तू कौन?’’

‘‘मैं आप का छोटा भाई पदम हूं. आज ही आया हूं.’’

‘‘मेरा कोई भाई नहीं है. पता नहीं पापा किसकिस को घर में घुसा लेते हैं. बुढ़ापे में पापा का दिमाग सठिया गया है. भाई, तू जो भी हो, मुझे परायों से बात नहीं करनी.’’

‘‘बूढ़ा होगा तू, मैं अब तेरी परवा नहीं करता. जैसे तू मेरा बेटा है वैसे पदम भी है. बोल, क्या कहना है?’’ शिशिर बाबू तेज आवाज में बोले.

‘‘मैं अगले महीने इंडिया आ रहा हूं. मकान तो मैं बेचूंगा जरूर,’’ राम ने फिर धमकी दी. गुस्से में शिशिर ने फोन पटक दिया.

सब उन की हिम्मत देख हैरान थे. मुन्ना उन्हें देख मुसकराया, ‘‘आज  दूसरा कंधा मिल गया है तो  शिशिर में ताकत आ गई है. अच्छा जवाब दिया राम को.’’

‘‘अरे, बाजार से सामान ले आओ, मैं ने लिस्ट बना ली है,’’ रेवा ने माहौल बदलने की गरज से बात बदली.

‘‘हां, लाओ लिस्ट,’’ वे भी इस वक्त बात को छोड़ना चाहते थे.

‘‘पापा, मैं भी साथ आता हूं,’’ पदम साथ हो लिया.

दरअसल, शिशिर बाबू बेटे से अकेले में बातें करना चाहते थे. शायद पदम भी यही चाहता था.

‘‘भैया के साथ क्या प्रौब्लम है?’’ पदम ने पूछा.

उन्होंने सारी कहानी बेटे को सुना दी. ‘‘बेटा, मैं तो यहां तेरी कहानी सुनने आया हूं. वैसे यह बता इन 22 बरसों में क्या बीता, मेरा मन सब जानने को उत्सुक है.’’

‘‘पापा, मैं बता दूं कि भाई की सोच मुझ से छिपी नहीं है. मैं सारा हैंडिल कर लूंगा, भाई को तो चुटकी में मनाऊंगा. बस, मैं चाहता हूं कि हम सब मिल कर प्यार से रहें. मैं यहां आप लोगों के लिए आया हूं, रिश्ते जोड़ने आया हूं, तोड़ने नहीं. भैया या किसी और से भी.’’

पिता ने बेटे की परिपक्वता और सकारात्मक सोच को मन से सराहा.

‘‘पापा, मैं अपने बारे में क्या बताऊं, शुरू के 6 वर्षों में जो भोगा दुखदर्द उफ, उस का विवरण आप सुन न पाएंगे. सो, उसे छोड़ो.

‘‘जब मैं 12 वर्ष का हुआ तो एक दिन मैं ने देखा कि एक सरदारजी मुझ से बारबार मेरे बारे में पूछते हैं. मैं जान गया कि यह व्यक्ति मेरी कमजोरी और साहसिक सोच से प्रभावित है.

‘‘बस, एक रोज उस की गाड़ी में बैठ कर उस की कोठी पर चला गया. लगा, सुख की दुनिया में आ गया हूं.’’

‘‘सरदारजी ने मुझ से सब से पहले कहा, ‘यहां तुम पूर्ण सुरक्षित हो, तुम्हें तुम्हारा टोला छू भी नहीं सकता.

‘‘वे एक व्यापारी थे. पर रहते अकेले थे. घर में नौकरचाकर थे और वो, बस.’’

‘‘वहां मैं ने पाया न कोई मुझे हिज्जू कहता है, न ही मेरे चेहरेमोहरे को ले कर कोई ताना कसा जाता है.

‘‘मेरा स्कूल में ऐडमिशन हो गया. मैं पढ़ता गया जब 12वीं की तो उन के एक डाक्टर मित्र ने मुझ से पूछा, ‘बेटा, आप ठीक हो सकते हो किंतु आप को कुछ महीने मुंबई में गुजारने होंगे. क्या तुम तैयार हो?’

‘‘डाक्टर साहब मुझे अपने साथ मुंबई ले गए. जहां सालभर मैं उन की देखरेख में रहा. सालभर में मैं ने महसूस किया कि मेरे चेहरे के पीछे एक पुरुष चेहरा छिपा है, मन में आत्मविश्वास आ गया था.

‘‘मैं काफी बदल गया था. लोग मुझ से बात करना पसंद करते थे. मैं ने महसूस किया जिंदगी बदगुमां नहीं है. कई बार मुझे लगता कि मैं वापस अपने घर दिल्ली आ जाऊं पर मैं ने सरदारजी से वादा किया था, ‘मैं मम्मीपापा के पास कुछ बन कर ही जाऊंगा.’

‘‘उस गौडफादर को मैं कभी नहीं भूलूंगा. मैं ने एनीमेशन इंजीनियरिंग की और कंप्यूटर पर कार्टून बनाने का काम करने लगा.

‘‘आज भी याद है सरदारजी की बात, ‘बेटा, जीवन एक युद्ध है. इसे हमें जीतना ही है. और जो जीतता है वही सिकंदर है.’

‘‘उन का वह बातबात पर प्यार से समझाना आज तक याद है. पापा, जन्म तो आप ने मुझे दिया पर इस जीवन को तराशा सरदारजी ने. वे न मिलते तो मैं मिट्टी के ढेले सा मिट्टी में समा जाता.’’

सब सुन कर पिता की आंखें छलछला गईं. उन्होंने आसमान की तरफ देखा. ढेरों सितारें भी बेटे की कहानी सुन रहे थे और वहीं से शायद कह रहे थे, वैल डन पदम, सैल्यूट है तेरे जज्बे को.

भ्रम : भाग 3

“मैडम बहुत अच्छी इंसान हैं। तुम्हें इस बात को तूल नहीं देना चाहिए और उन की शारीरिक सुंदरता के जगह उन के काम को देखना चाहिए,” वीरेंद्र बोला।

“कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल. मैं भी कोशिश करता हूं लेकिन तुम्हारी तरह सफल नहीं हो पाता।”

“अपनी कोशिश जारी रखना। हो सकता है तुम्हें एक दिन इस में सफलता मिल जाए,” वीरेंद्र बोला।

सुमित के दिल में अपने लिए जगह बनाने में चारु अपनेआप को असफल पा रही थी. उस ने बहुत कोशिश की लेकिन सुमित उस की शारीरिक सुंदरता से बढ़ कर और कुछ देख नहीं पा रहा था। शरीर से वह स्वस्थ, युवा और आकर्षक थी. बस, चेहरा ऐसिड अटैक की वजह से खराब हो गया था जिसे कौस्मेटिक सर्जरी भी ठीक नहीं कर पाई थी. यह देख कर चारु पहले से भी ज्यादा टूट गई थी. फिर भी उस ने अपने मनोबल को ऊंचा रखा और आज अपने काम के कारण उस ने अलग पहचान बना ली थी.

सुमित के लिए वाणी से दूर रहना अब मुश्किल हो रहा था. वह जल्दी से जल्दी उस से मिलना चाहता था जिस से आगे के लिए बात बढ़ाई जा सके. सुमित ने सोच लिया था कि आज वह फैसला कर के रहेगा. 6 महीने से बात  चैटिंग से आगे बढ़ नहीं रही थी, जहां की तहां अटकी हुई थी और वाणी अपनी ओर से इस में कोई रुचि नहीं ले रही थी। वह सोचने लगा कि कहीं वह उसे बेवकूफ तो नहीं बना रही. क्या पता केवल दिल बहलाने के लिए उस से बात करती हो.

शाम के समय लैपटौप पर चैटिंग की शुरुआत से ही सुमित ने अपने मन की बात उसे लिख दी,”मैं तुम से मिलना चाहता हूं। अब मुझ से सब्र नहीं होता। कब मिलेगी?”

“जब तुम कहो.”

“कल मिलते हैं. सामने बैठ कर मैं तुम्हें देखना चाहता हूं. तुम्हारी बातें सुनना चाहता हूं। चैटिंग से मन नहीं भरता। कब तक हम इसी तरह एकदूसरे के हाल पूछते रहेंगे?”

“आजकल मैं घर पर हूं। कुछ दिन बाद तुम से मिलने आऊंगी. मम्मीपापा से भी बात करनी है. उन्हें भी थोड़ी जानकारी होनी चाहिए.”

“तुम ने मेरे बारे में उन्हें बता दिया?”

“अभी नहीं पर सोच रही हूं कि बता देना चाहिए.”

“तुम से मिलने के बाद ही मैं बात आगे बढ़ा सकता हूं. उन से क्या कहूंगा कि मैं एक लड़की से बात करता हूं जिसे मैं ने देखा तक नहीं है और आवाज भी नहीं सुनी।”

“थोड़ा सब्र रखो सुमित. बहुत जल्दी तुम मुझे देखोगे भी और बातें भी करोगे। अच्छा बताओ कैसी है तुम्हारी बौस?”

“उस का जिक्र मत छेड़ा करो. मेरा मन खराब हो जाता है. औफिस में किसी तरह उन्हें झेलता हूं। वहां से बाहर निकलने पर लगता है जैसे जेल से छूट गया हूं। तुम मेरे साथ होतीं तो उन सब बातों को भूल भी सकता था. अकेले में अगर उस का चेहरा याद आ जाए तो मैं अंदर से सिहर उठता हूं.”

“किसी के प्रति ऐसी नकारात्मक भावना अच्छी बात नहीं है, सुमित. पता नहीं तुम उसे ले कर इतने संवेदनशील कैसे हो गए? उस की जगह रह कर सोचो. तुम्हारी प्रतिक्रिया से उस पर क्या बीतती होगी.”

“दुनिया में इतने मर्द हैं वह किसी से भी अपने दिल की बात कह सकती है. मुझ में रुचि दिखाने की क्या जरूरत है?”

“तुम ने बताया वह एक इंटैलिजेंट महिला है. शायद उसे तुम में वह सब दिखता हो जो वह एक पुरुष में तलाश कर रही है.”

“कैसी बातें करती हो वाणी? मुझे तुम अच्छी लगती हो. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. दुनिया में कोई एक ऐसा साथी होता है जिस से इंसान का मिलने का, बातें करने का मन करता है. वह उस के साथ अपने मन की बात साझा करता है. प्लीज, मुझ से जल्दी मिलो. मेरे लिए अब तुम से दूर रहना मुश्किल हो रहा है.”

“मैं तुम से जल्दी मिलने की कोशिश करती हूं,” इतना कह कर वाणी ने लैपटौप बंद कर दिया और बात वहीं पर छूट गई.

नए जमाने की वाणी का ऐसा व्यवहार कभीकभी उसे बड़ा संदेहास्पद लगता। वह तकनीक का उपयोग तो पूरी तौर पर कर रही थी। पहचान छिपा कर केवल चैट ही करती. इस से आगे वाणी कोई कदम नहीं उठा रही थी। चारु की हरकतों से परेशान हो कर वह वाणी की तरफ भागता। वह दुविधा में था कि क्या करे… एक बार वाणी से मुलाकात हो जाती तो उसे भविष्य के लिए निर्णय लेने में आसानी रहती।

आखिर सुमित का इंतजार खत्म हुआ और एक दिन वाणी की चैट पढ़ कर वह खुशी से उछल पड़ा.

“मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि तुम मुझ से मिलने आ रही हो.”

“इस में विश्वास की क्या बात है? हम दोनों पिछले कई महीनों से एकदूसरे के संपर्क में हैं. अब समय आ गया है कि हम आमनेसामने बैठ कर अपनी बातें एकदूसरे के साथ शेयर करें। रविवार के दिन मैं तुम्हें होटल प्रियंका में मिलने आऊंगी, ठीक शाम को 4 बजे.”

उस समय से सुमित बड़ा बेचैन हो गया था। वाणी से मिलने के लिए उस ने नई ड्रैस भी खरीद ली थी। 2 दिन बाकी थे और सुमित का समय काटे नहीं कट रहा था. आखिर इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं और रविवार के दिन वह वाणी की बताई हुई जगह पर समय से पहले पहुंच गया. वाणी उस का ही इंतजार कर रही थी। वाणी से पहली मुलाकात के लिए वह एक सुंदर उपहार ले कर आया था. दिल में प्यार की हजारों कलियां चटक रही थीं, जिसे एकसाथ बयां करना थोड़ा मुश्किल था.

धड़कते दिल से वह बोला,”हैलो वाणी,” सुमित की आवाज से पहली मुलाकात की उत्सुकता साफ झलक रही थी।

वाणी उस समय एक फोन कौल में व्यस्त थी. दुबलीपतली, स्मार्ट देह की स्वामिनी वाणी जींस और टौप के साथ खुले बालों में अच्छी लग रही थी. उस का चेहरा दूसरी तरफ था। फोन कौल खत्म करते ही जैसे ही वह सुमित से मुखातिब हुई, सुमित गिरतेगिरते बचा. वह बोला,”तुम?”

“क्या हुआ? मुझे देख कर चौंक गए?”

“ऐसा नहीं हो सकता.”

“क्यों नहीं हो सकता? आज के जमाने में सबकुछ संभव है.”

“तुम ने मुझे इतने समय तक अंधेरे में रखा वाणी.”

“अंधेरा मैं ने नहीं किया. तुम ने अपने चारों ओर फैला रखा है. मैं देखना चाहती थी कि तुम्हारी कथनी और करनी में कितना अंतर है?”

“सबकुछ जानने के बाद भी तुम्हें मुझ से मिलने नहीं आना चाहिए था. कम से कम मेरे मन में एक भ्रम बना रहता कि मैं ने जिस से प्यार किया वह बहुत सुंदर है. किसी मजबूरी की वजह से मुझे छोड़ कर चली गई।”

“मुझे भ्रम में जीने की आदत नहीं है, सुमित. मैं वास्तविकता को स्वीकार करने में यकीन रखती हूं. मैं ने पहले तुम से चैटिंग शुरू की और उस के बाद तुम्हारी खातिर इस कंपनी में काम करने आई हूं. मैं ने अपनी ओर से तुम्हारे साथ मित्रता बढ़ानी चाही लेकिन तुम्हारी आंखों में मुझे हमेशा घृणा ही दिखाई दी।”

“सबकुछ जानने के बाद भी तुम ने मुझ से मिलना स्वीकार क्यों किया?”

“तुम्हारा भ्रम तोड़ने के लिए. जरूरी नहीं जिस आदमी के विचार सुंदर हों उस का चेहरा भी खूबसूरत हो। तुम्हारे व्यवहार से मुझे भी बहुत धक्का लगा। मैं ने एक बहुत अच्छी कंपनी छोड़ कर तुम्हारे लिए इस कंपनी की ओर रुख किया और तुम  मेरे चेहरे पर अटक कर रह गए।”

“चेहरे की सुंदरता पर मैं कोई समझौता नहीं कर सकता.”

“मैं चाहती भी नहीं हूं कि तुम कोई समझौता करो. मैं जैसी हूं अगर स्वीकार कर सकते हो तो ठीक नहीं तो तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग हैं. मैं तुम्हारे साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं कर रही हूं,” वाणी बोली।

“तुम ने मुझ से छल किया है. अपना  नाम छिपा कर मुझ से वाणी बन कर मिली हो.”

“अगर पहले ही बता देती तो तुम्हारा असली चेहरा कैसे देख पाती? उसे देखने के लिए यह सब जरूरी था, सुमित,” वह बोली.

“तुम्हें अपने ही जैसे किसी स्मार्ट पुरुष को चुनना चाहिए था. मुझे  नहीं.”

“मैं जन्मजात ऐसी नहीं थी. मेरी सुंदरता के पीछे एकतरफा प्यार में पड़ कर एक लड़का दीवाना था. मेरे मना करने पर उस ने मेरे चेहरे पर ऐसिड फेंक दिया और उसे हमेशा के लिए बिगाड़ दिया। तुम्हारे मना करने पर मैं ऐसी कोई हरकत नहीं कर सकती. जानती हूं इस से कितना कष्ट होता है.”

आगे कुछ बोलने की गुंजाइश नहीं थी. सुमित तुरंत लौट आया। वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वाणी बन कर चारु उस से चैट कर रही थी. क्या कुछ नहीं कहा था उस ने उस के बारे में। सबकुछ जान कर भी उस ने औफिस में कभी उस के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई और आज उस के सामने असली रूप में आ भी गई। सुमित को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? कल तक वह चारु के खिलाफ सारी बातें उसी को बता रहा था, आज किसे कहे? उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. उस ने तुरंत एक लेटर टाइप किया और अपना त्यागपत्र सुभाष सर को भेज दिया।

सोमवार को उम्मीद के अनुसार चारु को सुमित कहीं नहीं दिखाई दिया। सुभाष सर बोले,”समझ नहीं आता कि सुमित ने अचानक कंपनी से रिजाइन क्यों कर दिया? वह एक होनहार लड़का था और पिछले 2 सालों से कंपनी के लिए अच्छा काम कर रहा था.”

उन की बातें सुन कर चारु ने कुछ नहीं कहा. सबकुछ जानते हुए भी वह  चुप थी. इतना तो निश्चित था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकती थीं. किसी एक को यहां से जाना ही था. उस ने भी अपना मन पक्का कर लिया था कि वह परिस्थितियों से भाग कर कहीं नहीं जाएगी। जिसे उसे स्वीकार करना होगा वह उसे इस हकीकत के साथ ही स्वीकार करेगा. सुमित अब उसे अपना मुंह नहीं दिखा सकता था इसलिए चुपचाप शहर छोड़ कर चला गया। चारु ने उसे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. जल्दी ही औफिस में उस की जगह दूसरा कर्मचारी आ गया था.

कभीकभी उस की बातें याद कर चारु के चेहरे पर हलकी सी उदासी छा जाती जिसे वह तुरंत झटक देती. वह जानती थी कि सुमित उस की जिंदगी में फिर कभी लौट कर नहीं आएगा.

मन आंगन की चंपा : भाग 3

सुभद्रा उदास हो कर बड़बड़ाई, ‘अच्छा सोचूंगी, तो अच्छा ही होगा. लीला की भी चिंता खाए जा रही है, हर बार यही कहती है कि आऊंगी लेकिन अब तक आई नहीं. उस की जरूर कोई मजबूरी होगी.’

सुभद्रा की तबीयत खराब होने लगी थी. छाती में बलगल जमा हो गया था. खांसी और दर्द भी बढ़ रहा था. ठंड से जांघों में ऐंठन और दर्द इतना हो गया कि वह गुसलखाने तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.

चंपा मैडिकल की दुकान से टौयलेटपौट ले आई.

सुभद्रा को जब जरूरत होती, वह सामने खड़ी हो जाती. साफसफाई का ध्यान देती, स्पंज करती और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को घर पर बुला देती.

सुभद्रा ने अनीता को फोन किया और अपनी बीमारी के विषय में बताया इस आशा से कि शायद इन दुर्दिनों में मदद ही कर दे.

अनीता ने स्वास्थ लाभ हेतु कई नुस्खे बता डाले.

“भाभी, सोते समय हल्दी वाला दूध पीना शुरू कर दो. ज्यादा ऐलोपैथिक दवाएं मत खाना, छाती में जकड़न होगी. ठंडी चीजें लेना भी बंद कर दो.”

सुभद्रा सुनती रही. फिर खांसते हुए धीमी आवाज में बोली, “कुछ दिनों के लिए आ जातीं तो…”

“कैसे आऊं, भाभी, घर में पेंटिंग का काम लगा हुआ है. ठीक हो जाओगी. शहद और सीतोपलादी चूर्ण लेती रहो और हां, पानी गरम ही पीना.”

“अच्छा, निर्मल को ही भेज दे कुछ दिनों के लिए.”

“ओहो भाभी, तुम हमारी परेशानी नहीं समझ पाओगी. ये तो मुंबई गए हैं काम से. पूरे महीने भर का टूर है.”

उस ने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा था. अनीता के बच्चे अब छोटे नहीं रह गए हैं, उस ने यह सोचा और खांसते हुए रुकरुक कर बोली, “बेटाबेटी घर संभाल लेंगे कुछ दिन, फिर चली जाना.”

“बच्चों पर क्या भरोसा करना, भाभी. घर पर टिकें तब न. रोज का टंटा रहता है कि हम बिजी हैं,” अनीता ने चतुराई से अपना पल्ला झाड़ दिया.

सुभद्रा ने भी दुनिया देखी थी, सो, झूठसच भांप गई. काम चल रहा है और घर में मर्द नहीं है… कितना सफेद झूठ है यह.

उस ने फोन बंद कर दिया और खांसखांस कर दोहरी हो गई.

सुभद्रा के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा था. अनीता के प्रति उस की उम्मीद किसी सूखे दरख्त की तरह टूट गई.

अब उसे फोन करना ही व्यर्थ लगा. जयपुर से आना अनीता के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. पहले भी कई बार अकेले आई है वह.

इधर सुभद्रा की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ती ही गई. कमजोरी भी बढ़ती जा रही थी. पड़ोसियों की मदद से चंपा ने उसे कसबे के एक निजी अस्पताल में भरती करा दिया.

अनीता को इस की न जाने कहां से भनक लगी, वह अपने पति के साथ अस्पताल आ धमकी. दोनों हड़बड़ी में थे. अस्पताल के काउंटर से पता चला कि सुभद्रा आईसीयू में है.

आईसीयू के बाहर पहुंच कर वहीं दोनों बैंच पर बैठ गए. तभी अंदर से विजिटिंग डाक्टर निकला तो अनीता उसे घेर कर खड़ी हो गई. “डाक्टर, आईसीयू में मेरी भाभी हैं सुभद्रा, वे अब कैसी हैं?”

“फिलहाल हालत क्रिटिकल है, चैस्ट में काफी इंफैक्शन है.”

“कोई उम्मीद, डाक्टर?”

“ओल्ड एज है, इसलिए अभी कुछ कह नहीं सकते,” डाक्टर कहते हुए आगे बढ़ा तो अनीता उस के पीछेपीछे चलती हुई बोली, “मिल सकती हूं उन से?”

“शाम 5 बजे के बाद. ओनली वन परसन एट अ टाइम.”

निर्मल बैंच पर बैठा था. बीच की चेयर खाली थी. अनीता उस के पास जा कर बैठ गई.

“क्या कहा डाक्टर ने?”

“कंडीशन क्रिटिकल है,” अनीता ने फीके स्वर में कहा और समय देखने लगी, “अभी 4 ही बज रहे हैं. अभी और एक घंटा इंतजार करना पड़ेगा.”

“मैं तुम से कब से कह रहा था अकेली चली जाओ लेकिन तुम्हारे भेजे में बात ही नहीं आती,” निर्मल ऊंचे स्वर में बोल रहा था, “बिना वसीयत लिखे चली गईं तो जायजाद हाथ से चली जाएगी. तुम्हारा भाई भी दावा कर सकता है. प्रौपर्टी कौन आसानी से छोड़ता है?”

“तुम्हीं चले जाते. मैं तो शर्म के मारे नहीं जा पाई. 2 लाख रुपए लेक र आज तक तुम ने नहीं लौटाए. 10 साल बीत गए. अरे, लाखों की जायजाद के सामने 2 लाख रुपए क्या थे,” अनीता गुस्से से बिफ़र गई.

“अब बस भी करो, आसपास लोग बैठे हैं. अंदर जा कर वसीयत की बात कर लेना. यही आखिरी मौका है.”

उस समय लीला भी वहीं थी, जो जैसेतैसे अपने पोते को ले कर अस्पताल आई थी. उस के कानों में दोनों के वार्त्तालाप पड़े तो वह समझ गई कि यही अनीता है. उसे दोनों पर क्रोध आने लगा. कैसे लोग हैं, बीमार औरत को देखने आए हैं या स्वार्थ  के लिए.

उसे घृणा हो गई उन की सोच से. लीला चुप न रह सकी, “क्या तुम सुभद्रा की ननद हो?”

अनीता हड़बड़ा कर बोली, “हां जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं.”

“मैं उस की बहन की तरह हूं. कुछ माह पहले सुभद्रा ने अपनी वसीयत अपने गांव की अनाथ लड़की के नाम कर दी है.”

“क्या…” दोनों के मुंह से एकसाथ निकला.

अनीता का मुंह उतर गया, झल्लाहट में बोली, “भाभी, कम से कम एक बार तो सलाह ले लेतीं.”

“रजिस्ट्री भी हो गई है. लेकिन जब तक जिंदा है, सुभद्रा का ही हक रहेगा.”

दोनों आवाक रह गए. उन की उम्मीदों पर पानी फिर गया था.

“मेरे भाई की संपत्ति को कोई कैसे दान कर सकता है?”

“पति के बाद संपत्ति में पत्नी और बच्चों का हक होता है. अब वह क्या करे, यह उस की इच्छा है. सामने बैठी हुई लड़की को देख रहे हो, सुभद्रा के लिए दिनरात एक कर दिया है उस ने.”

“नौकरानी और ननद में फर्क होता है.”

“तुम नहीं समझ पाओगी. जिसे नौकरानी कहती हो वह बड़ी स्वाभिमानी है. उस ने जितनी सेवा की है, उस के आगे सुभद्रा की संपति का कोई मोल नहीं है.”

“छोड़िए, मैं आप से बहस नहीं करना चाहती. चलो यहां से निर्मल, यहां दम घुटने लगा है,” वह बोलतेबोलते बैंच से उठ खड़ी हुई.

“माफ़ करना, तुम्हें बुरा लगा, जो सच था, मैं ने कह दिया,” लीला ने कहा. किंतु अनीता ने मुंह फेर लिया.

लीला ने चंपा पर निगाह डाली. उस की रोरो कर आंखें सूज गई थीं. उस के सिर की छत भरभरा रही थी और वह दुपट्टे से आंसूं पोंछती जा रही थी.

शाम 5 बजे के बाद बारीबारी से सुभद्रा को देखने गए. सांस लेने के उपकरण लगे होने से ठीक से बात नहीं कर पाई लेकिन इशारे में वह अपनी भावनाएं दर्शाती रही. अनीता को जो कहना था, कहा. लेकिन सुभद्रा के मुखमंडल पर किसी तरह के भाव नहीं थे.

चंपा जब अंदर गई तो उसे देख कर सुभद्रा की आंखों में चमक आ कर ठहर गई. वह हाथ बढ़ा कर चंपा के आंसुओं से भीगे चेहरे को थपथपाने लगी. सुभद्रा कुछ देर के लिए सबकुछ भूल गई, फिर उसे घर जाने का इशारा करने लगी.

तभी वार्ड बौय आया और उस से बाहर जाने का आग्रह करने लगा.

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