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एक साथी की तलाश : आखिर मधुप और बिरुवा का रिश्ता था क्या ? – भाग 4

बच्चे शुरूशुरू में कभीकभार उन के पास आ जाते थे. फिर धीरेधीरे वे भी अपने परिवार में व्यस्त हो गए. वैसे भी मां ही तो सेतु होती है बच्चों को बांधने के लिए. वह तो उन्हीं के पास थी. मधुर सोचते उन के स्वभाव में यदि निर्जीवता थी तो श्यामला तो जैसे पत्थर हो गई थी. क्या कभी श्यामला को इतने सालों का साथ, उन का संसर्ग, स्पर्श नहीं याद आया होगा. ऐसी ही अनेक बातें सोचतेसोचते न जाने कब नींद ने उन्हें आ घेरा.

अतीत में भटकते मधुप को बहुत देर से नींद आई थी. सुबह उठे, तो सिर बहुत भारी था. नित्यकर्म से निबट कर मधुप बाहर बैठ गए. बिरुवा वहीं नाश्ता दे गया.

‘‘साहब,’’ बिरुवा झिझकता हुआ बोला, ‘‘एक बार मालकिन को मना लाने की कोशिश कीजिए, हम भी कब तक रहेंगे, अपने बालबच्चों, परिवार के पास जाना चाहते हैं. आप कैसे अकेले रहेंगे. अगर हो सके तो आप ही मालकिन के पास चले जाइए.’’

उन्होंने चौंक कर बिरुवा का चेहरा देखा. इस बार बिरुवा रुकने वाला नहीं है, वह जाने के लिए कटिबद्ध है. देरसवेर बिरुवा अब अवश्य चला जाएगा. कैसे और किस के सहारे काटेंगे वे अब बाकी की जिंदगी. एक विराट प्रश्नचिह्न उन के सामने जैसे सलीब पर टंगा था. सामने मरुस्थल की सी शून्यता थी, जिस में दूरदूर तक छांव का नामोनिशान नहीं था. आखिर ऐसी मरुस्थल सी जिंदगी में वे प्यासे कब तक और कहां तक भटकेंगे अकेले.

2 दिन इसी सोच में डूबे रहे. दिल कहता कि श्यामला को मना लाए. पर कदम थे कि उठने से पहले ही थम जाते थे. क्या करें और क्या न करें, इसी ऊहापोह में अगले कई दिन गुजर गए. सोचते रहते, क्या उन्हें श्यामला को मनाने जाना चाहिए, क्या एक बार फिर प्रयत्न करना चाहिए. अपने अहं को दरकिनार कर इतने वर्षों के बाद जाते भी हैं और अगर श्यामला न मानी तो… क्या मुंह ले कर वापस आएंगे.

किस से कहें वे अपने दिल की बात और किस से मांगें सलाह. बिरुवा उन के दिल में कौंधा. और किसी से तो उन का अधिक संपर्क रहा नहीं. वैसे भी और किसी से कहेंगे तो वह उन की बात पर हंसेगा कि अब याद आई. आखिर बिरुवा से पूछ ही बैठे एक दिन, ‘‘बिरुवा, क्या तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे एक बार उन्हें मना लाने की कोशिश करनी चाहिए?’’ उन के स्वर में काफी बेचारगी थी अपने स्वाभिमान के सिंहासन से नीचे उतरने की.

बिरुवा चौंक गया उन का इस कदर लाचार स्वर सुन कर. उन की कुरसी के पास बैठता हुआ बोला, ‘‘दोबारा मत सोचिए साहब, कुछ बातों में दिमाग की नहीं, दिल की सुननी पड़ती है. मालकिन आ जाएंगी तो यह घर फिर से खुशियों से भर जाएगा. माना कि कोशिश करने में आप ने बहुत देर कर दी पर आप के दिमाग पर यह बोझ तो नहीं रहेगा कि आप ने कोशिश नहीं की थी. बाकी सब नियति पर छोड़ दीजिए.’’

बिरुवा की बातों में दम था. वे सोचने लगे, आखिर एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, जो भी होगा, देखा जाएगा, उन्होंने खुद को समझाया. खुद को तैयार किया. अपना छोटा सा बैग उठाया और जयपुर के लिए चल दिए. आजकल श्यामला जयपुर में थी.

बिरुवा बहुत खुश था. एक तो वह उन का भला चाहता था, दूसरा वह अपने परिवार के पास लौट जाना चाहता था. दिल्ली से जयपुर तक का सफर जैसे सात समुंदर पार का सफर महसूस हो रहा था उन्हें. जयपुर पहुंच कर अपना छोटा सा बैग उठा कर वे सीधे घर पर पहुंच गए. अपने आने की खबर भी उन्होंने इस डर से नहीं दी कि कहीं श्यामला घर से कहीं चली न जाए.

दिल में अजीब सी दुविधा थी. पैरों की शक्ति जैसे निचुड़ रही थी. वर्षों बाद अपने ही बेटे के घर में अपनी ही पत्नी से साक्षात्कार होते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी जिंदगी की कितनी कठिन घडि़यों से गुजर रहे हों. धड़कते दिल से उन्होंने घंटी बजा दी. उन्हें पता था इस समय बेटा औफिस में होगा और बच्चे स्कूल. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. बहू ने उन को बहुत समय बाद देखा था, इसलिए एकाएक पहचान का चिह्न न उभरा उस के चेहरे पर. फिर पहचान कर चौंक गई, ‘‘पापा, आप? ऐसे अचानक…’’ वह पैर छूते हुए बोली, ‘‘आइए.’’ और उस ने दरवाजा पूरा खोल दिया.

वे अंदर आ कर बैठ गए, ‘‘अचानक कैसे आ गए पापा. आने की कोई खबर भी नहीं दी आप ने.’’ बहू का आश्चर्य अभी भी कम न हो रहा था. उन्हें एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा, ‘‘जरा पानी पिला दो और एक कप चाय.’’

‘‘जी पापा, अभी लाती हूं,’’ बहू चली गई. उन्हें लगा अंदर का परदा कुछ हिला. शायद श्यामला रही होगी. पर श्यामला बाहर नहीं आई. वे निरर्थक उम्मीद में उस दिशा में ताकते रहे. तब तक बहू चाय ले कर आ गई.

‘‘श्यामला कहां है?’’ चाय का घूंट भरते हुए वे धीरे से बोले.

‘‘अंदर हैं,’’ बहू भी उतने ही धीरे से बोल कर अंदर चली गई.

थोड़ी देर बाद बहू बाहर आई, ‘‘पापा, मैं जरा काम से जा रही हूं. फिर, बंटी को स्कूल से लेती हुई आऊंगी,’’ फिर अंदर की तरफ नजर डालती हुई बोली, ‘‘आप तब तक आराम कीजिए. लंच पर लक्ष्य भी घर आते हैं,’’ कह कर वह चली गई.

वे जानते थे बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी.

‘‘श्यामला,’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुप को अपने सामने देख कर श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, क्या करने आए हो अब.

कब जाओगे प्रिय : कुछ पल अपने लिए जीती औरत की दिल छूती कहानी

अपनाबैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’

कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया.

कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं,

सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था.

कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ.

मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’

मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’

नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं.

सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’

‘‘मम्मी प्लीज… मम्मी प्लीज,’’ दोनों बच्चे कहने लगे, ‘‘पापा को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’

सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है.

शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई.

अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.

अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे.

अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

Poonam Pandey के मौत की झूठी खबर पर भड़के लोग, सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस हुई जमकर ट्रोल

दो फरवरी की सुबहसुबह इंस्टाग्राम पर पूनम पांडे के आधिकारिक एकाउंट पर खबर आई कि सर्वाइकल कैंसर से पूनम पांडे की मौत हो गई. मगर जगह या अस्पताल आदि के नाम का कोई जिक्र नहीं था. इस वजह से हमें यकीन नहीं हुआ था क्योंकि 28 जनवरी को ही हमारी मुलाकात पूनम पांडे से हुई थी, उस वक्त वह कहीं से भी बीमार नजर नहीं आ रही थी.
यूं भी मेरी व्यक्तिगत राय में सोशल मीडिया महज झूठ का समुद्र है, लेकिन कुछ देर में जब हमारे पास पूनम पांडे की मैनेजर निकिता शर्मा का ईमेल आया, तो लगा कि ईमेल पर गलत खबर नहीं दी जाएगी. तब हम ने पूनम पांडे की मैनेजर के ईमेल में लिखी बातों को समाचार के तौर पर दो फरवरी को जगह दी थी. पर उस में हम ने साफसाफ लिखा था कि हमें यकीन नहीं है कि पूनम पांडे की मौत हुई है और हम ने मैनेजर द्वारा भी मौत की जगह या अस्पताल का नाम न बताने पर सवाल उठाया था.

 

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बहरहाल,दो फरवरी की शाम तक हम समझ चुके थे कि यह सारा खेल महज पब्लिसिटी स्टंट और पैसा कमाने के लिए पूनम पांडे, पूनम पांडे की प्रचारक और मैनेजर ने मिलकर रचा है. इस बीच हमें यह खबर मिल गई थी कि सरकार ने 4 फरवरी,विश्व कैंसर दिन से 9 वर्ष से ले कर 26 वर्ष तक की लड़कियों को मुफ्त में ‘सर्वाइकल कैंसर’ का टीकाकरण की शुरूआत करने वाली है.

 

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जी हां! हाल ही में घोषित केंद्रीय बजट में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि 9-26 वर्ष की आयु की महिलाओं को एचपीवी वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध कराई जाएगी. यह सारे सूत्र भी पोल खोल रहे थे कि पूनम पांडे ने असंवदेनशीलता का परिचय देते हुए कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी व मौत का मजाक बना कर रख दिया है. पर ठोस सबूत नहीं थे. उन की पीआर एक ही वाक्य दोहरा रही थी कि उन के परिवार वालों ने उन्हें मौत की खबर दी थी. उस के बाद से परिवार वालों का फोन बंद आ रहा है.
उधर इंटरनेट पर दिन भी लोग ‘सर्वाइकल कैंसर’ के बारे में ही जानकारी ढूढ़ते नजर आए. लेकिन आज, 3 फरवरी, दोपहर 12 बजे तक खुद पूनम पांडे ने इंस्टाग्राम पर वीडियो डाल कर अपने जिंदा होने की खबर दे दी. उस ने अपने वीडियो में बताया कि उसे कोई बीमारी नहीं है. मगर उस ने यह कदम ‘सर्वाइकल कैंसर’ के प्रति लोगों के बीच जागरूकता लाने के नेक इरादे से ऐसा कदम उठाया.
माना कि पूनम पांडे के इस कदम से लोगों के बीच ‘सर्वाइकल कैंसर’ को ले कर एक जागरूकता आई और हो सकता है कि कल, 4 फरवरी से तमाम लड़कियां स्वतंः स्फूर्ति से सर्वाइकल कैंसर से बचाव का टीका लगावाने भी पहुंच जाएं. मगर पूनम पांडे ने इस जानलेवा  बीमारी और मौत का जिस तरह से मजाक बना कर रख दिया, उस के लिए उन्हें दोषी माना जाना चाहिए, पर पूनम पांडे इस के लिए शर्मिंदा नहीं हैं.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा कर के पूनम पांडे ने अति सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के साथ ही चंद रकम कमाने का ही काम किया है. फिलहाल,वह अपने घर के अंदर ही हैं, लेकिन उम्मीद है कि वह जल्द घर से निकल कर एक बार फिर मीडिया को मूर्ख बनाने के लिए प्रैस कांफ्रेंस जरुर करेंगी.
यूं भी मातापिता को धोखा दे कर मुंबई आने से ले कर अब तक वह लोगों को मूर्ख ही बनाते हुए शोहरत व पैसा बटोरती रही हैं, फिर चाहे 2011 में विश्व कप क्रिकेट जतीने पर नग्न अवस्था में क्रिकेट के मैदान पर घूमने का ऐलान किया था,भारतीय टीम जीत गई. हालांकि, पांडे को कानून अधिकारियों ने ऐसे कृत्य करने से रोक दिया था. या कुछ वर्ष पहले नकली शादी रचानी हो.

क्या कह रहे हैं लोग..?

पूनम पांडे की हरकतों की बड़े पैमाने पर आलोचना हो रही है और उन्हें वास्तविक कैंसर रोगियों के प्रति असंवेदनशील माना जा रहा है. कैंसर रोगी, मौडल व अभिनेत्री रोजलीन खान ने तो लोगों से इस तरह के प्रचार स्टंट से बचने का आग्रह किया है. जिस का वास्तविक रोगियों पर निराशाजनक प्रभाव पड़ सकता है. रोजलीन खान ने इसे इंस्टाग्राम स्टोरी के रूप में पोस्ट किया था,‘‘मुझे नहीं पता कि पूनम (मरने) की यह खबर सच है या नहीं, लेकिन अगर यह फर्जी है, तो यह समझने की जरूरत है कि लोग प्रचार के लिए कैंसर का इस्तेमाल कर रहे हैं.
“भारत में 20 मिलियन कैंसर रोगी हैं, कैंसर से होने वाली प्रत्येक मृत्यु अन्य कैंसर रोगियों को जीवन में आशा खो देती है. इसलिए कृपया ऐसी चीजों से बचें.”
वहीं पूनम पांडे के साथ एक फिल्म कर चुके निर्देशक जगबीर दहिया इस उद्देश्य का सम्मान करते हैं. वह भी पूनम के तरीके को स्वीकार नहीं करते हैं. उन्होने कहा, ‘‘पूनम एक अच्छी, संवेदनशील इंसान हैं. मुझे लगता है कि कैंसर के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए उन की सराहना की जानी चाहिए. इस कारण से कोई नुकसान नहीं है, लेकिन उस ने जो तरीका अपनाया वह संदिग्ध है. पूनम को खबरों में बने रहने से कोई गुरेज नहीं है. जबकि हर कोई अब सर्वाइकल कैंसर के बारे में बात कर रहा है, आगे चल कर यह उस के साथ ‘शेर आया‘ जैसा मामला होगा. अब कोई भी उन पर आसानी से विश्वास नहीं करेगा.”
फिल्मकार अशोक पंडित ने पूनम पांडे और उन की पीआर टीम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है. तीखा हमला बोलते हुए अशोक पंडित कहते है, ‘‘पूनम ने लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है. उन्होंने उन सभी लोगों का मजाक उड़ाया, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. उन्होंने ऐसी बीमारियों से लड़ने में भारत सरकार, चिकित्सकों, डाक्टरों, नर्सों की कड़ी मेहनत का भी मजाक उड़ाया है. कानून प्रवर्तन एजेंसियों को चाहिए कि ऐसे सस्ते, असंवेदनशील पीआर स्टंट के लिए ऐसे अभिनेताओं और उन की पीआर मशीनरी के खिलाफ कार्रवाई करे.’’
पूनम पांडे की झूठी मौत की खबर पर अभिनेत्री ज्योति सक्सेना ने कहा है, ‘‘यह सब से खराब मीडिया रणनीतियों में से एक है जिसे कोई भी कभी भी अपना सकता है. सस्ते प्रचार के लिए सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौत की त्रासदी का फायदा उठाना उचित नहीं है. बिल्कुल अस्वीकार्य यह सर्वथा घृणित है. कैंसर एक गंभीर और संवेदनशील विषय है और इसे प्रचार के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करना न केवल अनैतिक है, बल्कि युवा लोगों के दिमाग के लिए हानिकारक भी है. कैंसर जैसे गंभीर मामले पर नकली जागरूकता फैलाना एक खतरनाक खेल है. यह न केवल अनावश्यक घबराहट और भय पैदा करता है बल्कि वास्तविक मुद्दों को भी कमजोर करता है.
“हमें वास्तविक जागरूकता की दिशा में काम करना चाहिए. पूनम पांडे ने अपने इस असवंदेनशील कृत्य से न सिर्फ अपनी विश्वसनीयता खोई है, बल्कि फिल्म प्रचारकों व मैनेजर को भी अविश्वसनीय ठहरा दिया है. बौलीवुड में पूनम पांडे के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाही किए जाने की मांग भी हो रही है.

सोनम कपूर से लेकर श्रद्धा कपूर तक, बौलीवुड में फ्लौप हैं ये फेमस स्टारकिड्स

Bollywood Star kids Career : फिल्म निर्मातानिर्देशक स्टारकिड्स को यह समझ कर हिंदी फिल्मों में ले लेते हैं कि वे फ़िल्मी माहौल में पलेबढ़े हैं और फ़िल्मी दुनिया को अच्छी तरह से जानते हैं. उन के अंदर अभिनय की क्षमता जन्मजात होगी. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा. इतना ही नहीं, कई बार उन के फ़िल्मी पेरैंट्स उन्हें लौंच करवाने के लिए अच्छी मात्रा में पैसे भी फिल्ममेकिंग पर खर्च कर देते हैं. लेकिन फिर भी वे सफलता हासिल नहीं कर पाते. एक या दो फिल्मों के फ्लौप होने पर वे कहीं नहीं दिखते, क्योंकि निर्मातानिर्देशक उन्हें आगे फिल्मों में लेने से घबराते हैं.

इस श्रृंखला में सब से अधिक स्टारकिड्स को मौका देने वाले निर्माता निर्देशक करण जौहर हैं, जो हमेशा इसे सही मानते हैं. उन के हिसाब से फ़िल्मी माहौल में पैदा हुए बच्चे अच्छी ऐक्टिंग कर सकते हैं. उन्होंने हर बार 2 स्टारकिड्स को लौंच किया है, जबकि इस दौर में एक कदम आगे बढ़ कर निर्देशक जोया अख्तर ने 3 स्टारकिड्स को लौंच किया, जबकि उन की फिल्म ‘द आर्चिज’ एक असफल साबित हुई. इस फिल्म के लिए जोया ने करीब एक से डेढ़ साल तक सभी स्टारकिड्स को ट्रेनिंग भी दी. लेकिन फिल्म ठंडे बसते में चली गई. दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद नहीं किया. इस में सुहाना खान, ख़ुशी कपूर, अदिति सहगल आदि कईयों ने काम किया, पर आगे उन की छवि कुछ स्थापित नहीं हो पाई.

एक इंटरव्यू में पूजा बेदी की बेटी अभिनेत्री अलाया ने कहा भी है कि फिल्म इंडस्ट्री एक व्यवसाय है, इसलिए मैं बहुत सावधानी से फिल्मों का चयन करती हूं, ताकि फिल्म सफल हो. फिल्मों में एंट्री आसानी से मिलना भी एक जोखिम होता है, क्योंकि दर्शक मुझ से वैसी ऐक्टिंग देखने की इच्छा रखते हैं और अगर ऐसा नहीं कर पाई, तो असफलता हाथ लगती है.
देखा जाए तो कई स्टारकिड्स हैं, जो फिल्मों में आसानी से आ तो गए लेकिन अपनी साख जमा नहीं पाए, जबकि बगैर फ़िल्मी माहौल से आए आर्टिस्ट काफी मेहनत करते हैं और खुद को स्थापित भी कर लेते हैं.

सोनम कपूर

बौलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर ने फिल्म ‘सांवरिया’ से इंडस्ट्री में कदम रखा. अभिनेता अनिल कपूर की बेटी होने की वजह से उन्हें फिल्मों में काम तो मिल जाता था, लेकिन अधिकतर फिल्में फ्लौप ही रहीं. वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपना सिक्का नहीं जमा पाईं.

अनन्या पांडे

करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडैंट औफ़ द ईयर 2’ से चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे ने बौलीवुड इंडस्ट्री में एंट्री मारी. इस के बाद उन्हें कई फिल्मों में काम मिला, लेकिन उन की कई फिल्में फ्लौप रहीं. तमिल फिल्म ‘लाइगर’ बुरी तरह से फ्लौप रही. कोई भी डायरैक्टर अब अनन्या को फिल्मों में लेना पसंद नहीं कर रहा क्योंकि उन की अभिनय क्षमता बहुत कमजोर है. इसलिए उन की साख अभी तक नहीं जम पाई है.

सारा अली खान

अभिनेत्री अमृता सिंह और सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान का भी यही हाल है. फिल्म केदारनाथ को लोगों ने कमोबेश पसंद किया लेकिन इस के बाद की फिल्में नहीं चलीं, क्योंकि अभिनय बहुत कमजोर रहा.

जाह्नवी कपूर

सफल अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर ने फिल्म ‘धड़क’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा. उस ने इस फिल्म को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत भी की थी. फिल्म बौक्सऔफिस पर कमजोर रही. इस के बाद आई किसी भी फिल्म में वह कहीं नहीं दिखी. उन की फ्लौप फिल्मों की लिस्ट लंबी है. फिल्म ‘गुड लक जेरी’, ‘मिली’, ‘बवाल’ आदि कई लिस्ट में हैं. इतने सालों बाद भी ऐक्ट्रेस एक बड़ी सुपरहिट फिल्म के लिए तरस रही है.

श्रद्धा कपूर

श्रद्धा कपूर ने अपने 9 साल के कैरियर में तकरीबन 17 फिल्में की हैं. इस अवधि में श्रद्धा 3 बड़े प्रोजैक्ट्स का भी हिस्सा बनी हैं. लेकिन इतने बड़े प्रोजैक्ट करने के बावजूद श्रद्धा कपूर टौप ऐक्ट्रेसेस की सूचीं में शामिल नहीं. ‘एबीसीडी 2’, ‘हसीना पारकर’, ‘साहो’, ‘तू झूठी मैं मक्कार’ आदि कई ऐसी उन की फ्लौप फिल्में हैं. श्रद्धा कपूर आजकल विज्ञापनों में अधिक दिखती हैं, क्योंकि उन की अधिकतर फिल्म सफल नहीं हो पातीं. ‘आशिकी 2’ में उन के अभिनय को दर्शकों ने पसंद किया, लेकिन इस के बाद आई किसी भी फिल्म ने कमाल नहीं किया.

अथिया शेट्टी

90 के दशक के फेमस ऐक्टर सुनील शेट्टी के अलग अंदाज को जहां औडियंस ने खूब सराहा, तो वहीं उन की बेटी थिया शेट्टी इंडस्ट्री में अपने कदम जमाने में असफल रही. अभिनेता सलमान खान के प्रोडक्शन हाउस से लौंच होने वाली अथिया शेट्टी की फिल्म ‘हीरो’ भी बौक्सऔफिस पर फ्लौप हो गई. इस के बाद वे ज्यादा फिल्मों में नजर नहीं आईं.

युवाओं में क्यों बढ़ रहा है हाई ब्लडप्रैशर का खतरा, जानें वजह

औफिस में 27 वर्षीय सीए अतुल अचानक पसीने से तरबतर हो गया और घबराहट महसूस करने लगा. उस के हाथ कांप रहे थे. उस के सीने में दर्द भी था. उसे लगा जैसे वह बेहोश होने वाला है, उसे कुछ होने वाला है. उसे फौरन औफिस के मैडिकलरूम में ले जाया गया जहां मैडिकल सुपरिन्टैंडैंट ने उस का चैकअप किया और बताया कि ब्लडप्रैशर बहुत ज्यादा हाई हो गया है. पलभर तो उसे समझ ही नहीं आया कि डाक्टर साहब क्या कह रहे हैं, क्योंकि उसे अब तक ब्लडप्रैशर की समस्या हुई ही नहीं थी. यह सब इतना अचानक कैसे हो गया. वह हैरान था.

जनरल फिजीशियन प्रशांत कुलकर्णी कहते हैं, ‘‘पहले ब्लडप्रैशर की समस्या बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी पर आजकल अतुल जैसे कई युवा हाई ब्लडप्रैशर की समस्या से ग्रसित हो रहे हैं.’’

डाक्टर कुलकर्णी का कहना है, ‘‘हाई ब्लडप्रैशर अभी तक आनुवंशिक समझा जाता था पर आजकल इस का कारण युवाओं का लाइफस्टाइल भी है. काम से संबंधित तनाव, अल्कोहल, स्मोकिंग और अन्य कई कारण हैं जिन के चलते युवाओं को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या होने लगी है. यह समस्या काफी पहले से शुरू हो चुकी होती है पर इस के लक्षण देर में दिखाई देते हैं, इसलिए पता चलने में वक्त लगता है.

वजन का बढ़ना : जब आप मोटे हो जाते हैं, तो आप के दिल को धमनियों तक खून पहुंचाने में कठिनाई होती है, जिस के कारण ब्लडप्रैशर हाई हो सकता है.

नमक की अधिकता : ज्यादा नमक (सोडियम) खाने से भी व्यक्ति को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या हो सकती है. डाक्टर बिस्वास का कहना है, ‘‘कुकिंग में जितना नमक प्रयोग किया जाता है, उतना पर्याप्त होता है. अपने खाने में अतिरिक्त नमक डालने से आप के शरीर में न केवल चक्कर, वजन बढ़ना और वाटर रिटैंशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है बल्कि हाई ब्लडप्रैशर भी हो सकता है.’’

शारीरिक क्रियाओं की कमी : जब आप अपने रूटीन में किसी भी तरह शारीरिक रूप से ऐक्टिव नहीं रहते, तो आप के दिल को ब्लडपंप करने में कठिनाई होती है जिस से आप का ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है.

तनाव और आदतें : युवाओं का लाइफस्टाइल हाई ब्लडप्रैशर का कारण हो सकता है. काम का तनाव, दबाव आजकल युवाओं पर काफी रहता है, इस के चलते उन्हें हाई ब्लडप्रैशर की शिकायत रहने लगी है.

फैमिली हिस्ट्री : अगर आप के मातापिता को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है, तो आप भी हाई ब्लडप्रैशर के शिकार हो सकते हैं.

परिणाम घातक हो सकते हैं

हृदय पर दुष्प्रभाव : हाई ब्लडप्रैशर का सब से बड़ा साइड इफैक्ट है कि यह दिल को कमजोर कर देता है जिस से हार्टअटैक हो सकता है. शरीर को जब दिल तक पर्याप्त रक्त पहुंचाने में कठिनाई होती है, स्थिति घातक हो सकती है.

दृष्टिबाधा : यह बात अजीब लग सकती है पर हाई ब्लडप्रैशर से अंधापन या आंखों से संबंधित अन्य समस्या हो सकती है क्योंकि हमारी आंखों की नसें हमारे मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं जो पर्याप्त रक्त न मिलने पर प्रभावित हो सकती हैं.

सिरदर्द : यदि आप अपने स्वास्थ्य की उचित तरीके से देखभाल नहीं करते हैं तो आप को बारबार सिरदर्द हो सकता है, जो चिंता का विषय है. अकसर जब आप का ब्लडप्रैशर बढ़ता है, आप सिर में भी तेज दर्द महसूस कर सकते हैं, इस पर ध्यान दें.

लक्षणों की उपेक्षा न करें

हाई ब्लडप्रैशर का सब से आम लक्षण है, सीने में दर्द.

यदि आप को हमेशा चक्कर आते रहते हैं या हर समय असहज महसूस करते हैं, तो अपना ब्लडप्रैशर जरूर चैक करवाएं.

यदि अचानक आप की आंखें लाल रहने लगें, तो ब्लडप्रैशर हाई हो सकता है. लाल आंखें अकसर सिरदर्द से भी हो सकती हैं. ऐसे में तुरंत चैकअप करवाएं.

आंखों के आसपास तेज दर्द हो और बारबार सिरदर्द रहने लगा हो तो हाई ब्लडप्रैशर हो सकता है.

डाक्टरों का कहना है कि आजकल के युवा हाइपरटैंशन के शिकार हो रहे हैं. यह भी युवाओं में बढ़ते हाई ब्लडप्रैशर का एक कारण है.

क्या करें ?

डाक्टरों का कहना है कि हाई ब्लडप्रैशर के मरीज को रोज दवा लेनी होती है. इस से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहता है, रोज दवा लेने में लापरवाही न बरतें.

जब आप किसी भी तरह की शारीरिक ऐक्टिविटी करते हैं, आप का शरीर प्राकृतिक रूप से पर्याप्त रक्त पंप करता है जिस से आप के दिल को पर्याप्त औक्सीजन मिलती रहती है और मुख्य धमनियों को रक्त पहुंचता रहता है. पर्याप्त पानी पिएं, इस से आप को शरीर सुचारु रूप से काम करता रहता है. ब्लडप्रैशर हाई होने की आशंका कम हो जाती हैं.

सब से पहले अतिरिक्त वजन कम कर लेना चाहिए. जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, वजन कम करना मुश्किल हो जाता है.

जनवरी के चौथे सप्ताह में कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार, जानें यहां पूरी डिटेल्स

हम लंबे समय से लिखते आए हैं कि फिल्म निर्माता और फिल्म प्रचारक के पैसे पर पल रहे फिल्म क्रिटिक्स/आलोचक व इन्फ्लुएंसर भारतीय सिनेमा को खत्म करने पर आमादा हैं. वास्तव में फिल्म का प्रचारक उस ‘दक्षिणापंथी’ (शादी कराने वाला पंडित) की तरह हैं जिसे सिर्फ अपनी दक्षिणा यानी कि जेब भरने से मतलब है, फिर चाहे ‘वर’ मरे या ‘कन्या’.

यानी कि फिर फिल्म डूबे, निर्माता डूबे, कलाकार डूबे, इस से प्रचारक को कोई फर्क नहीं पड़ता. इस के लिए भी फिल्म के निर्माता व कलाकार ही दोषी हैं क्योंकि फिल्म का निर्माता ही अपने प्रचारक को पैसा देता है कि वह फिल्म क्रिटिक्स को खरीद कर उस की फिल्म के लिए 4 या 5 स्टार दिलवाए.

किसी भी निर्माता ने आज तक अपने प्रचारक की कोई जवाबदेही तय ही नहीं की. यह कटु सत्य अब नासूर बन चुका है. अब अजय देवगन और करण जौहर की आंखें खुली हैं. कुछ समय पहले अजय देवगन और करण जौहर ने कुबूल किया कि वे पैसे दे कर ‘स्टार’ खरीदते रहे हैं. पत्रकारों को खरीदते रहे हैं. यह गलत है. लोग सवाल कर रहे हैं कि यदि यह गलत है तो वे इस काम में भागीदार क्यों हैं?

बहरहाल, फिल्म निर्माता व प्रचारक की इसी नीति के चलते 25 जनवरी, गुरुवार को प्रदर्शित हृतिक रोशन, दीपिका पादुकोण और अनिल कपूर के अभिनय से सजी देशभक्ति की बात करने वाली फिल्म ‘फाइटर’ एक सप्ताह बाद सिर्फ 140 करोड़ रुपए ही इकट्ठा कर सकी.

ये आंकड़े निर्माता की तरफ से दिए गए हैं और हमारा मानना है कि निर्माता सही आंकड़े देने के बजाय बढ़ा कर आंकड़े देता है. यह हालत तब है जब 26, 27, 28 जनवरी को छुट्टी थी. पूरे देश में राष्ट्रवाद, गणतंत्र व देशभक्ति का माहौल था. खैर, 140 करोड़ रुपए में से सारे खर्च काट कर निर्माता के हाथ में बामुश्किल 50 करोड़ रुपए ही आएंगे, जबकि फिल्म की लागत 300 करोड़ रुपए है. ‘दक्षिणापंथियों’ को दी गई रकम का तो खुलासा ही नहीं हुआ है.

फिल्म ‘फाइटर’ की बौक्सऔफिस पर इस बुरी मौत के लिए पूरी तरह से फिल्म के प्रचारक व बिके हुए दक्षिणापंथी फिल्म क्रिटिक्स के साथ ही इस के कलाकार दोषी हैं. दीपिका पादुकोण, अनिल कपूर व हृतिक रोशन ने इस फिल्म को ठीक से प्रचारित नहीं किया. अपने प्रचारक की सलाह पर वे मीडिया से दूर ही रहे. एक दिन ग्रुप इंटरव्यू के लिए मीडिया के सामने आए थे, पर लोग बताते हैं कि वह महज तमाशा ही था.

तो वहीं 2023 के अंतिम सप्ताह से इन्फ्लुएंसर और कुछ फिल्म क्रिटिक्स ने चिल्लाना शुरू कर दिया था कि हृतिक रोशन व दीपिका की फिल्म ‘फाइटर’ हजार करोड़ रुपए कमा कर एक नया इतिहास रचेगी. मजेदार बात तो यह है कि फिल्म ‘फाइटर’ की अच्छाई का गुणगान करने वाला और फिल्म के रिलीज होने के बाद इसे साढ़े 4 स्टार देते हुए ‘ब्रिलिएंट’ बताने वाला फिल्म क्रिटिक्स पिछले 2 माह से मुंबई के अस्पताल में जीवन व मौत से जूझ रहा है. मगर निर्माता ने कई बड़े अखबारों व डिजिटल पर विज्ञापन दे कर बताया कि किस फिल्म क्रिटिक्स ने फिल्म को कितने स्टार दिए. उन में अस्पताल में पड़े हुए फिल्म क्रिटिक्स का भी नाम है.

इस पत्रकार ने बिना फिल्म देखे अस्पताल से ‘फाइटर’ को बेहतरीन फिल्म बताने वाला ट्वीट भी कर रहा है. इस से लोग आश्चर्यचकित हैं क्योंकि इस के अस्पताल में होने की खबरें भी छप चुकी हैं. मजेदार बात यह है कि एक तरफ निर्माता अखबारों में विज्ञापन दे कर बता रहा है कि फिल्म क्रिटिक्स या समोसा क्रिटिक्स के अनुसार ‘फाइटर’ कितनी बेहतरीन फिल्म है तो दूसरी तरफ कई पूर्व वायुसेना के पायलट फिल्म के खिलाफ बयान दे रहे हैं. वे सवाल उठा रहे हैं कि वायुसेना के पायलट व युद्ध के घटनाक्रमों को गलत तरीके से दिखाने वाली इस फिल्म को सैंसर बोर्ड ने पारित कैसे कर दिया.

हकीकत में फिल्म ‘फाइटर’ बहुत ही घटिया फिल्म है. लगभग 6-7 माह पहले प्रदर्शित कंगना रानौत की फिल्म ‘तेजस’ और ‘फाइटर’ में कोई अंतर नहीं है. ‘फाइटर’ के कई दृश्य देख कर हंसी आती है. ‘फाइटर’ देख कर लगता है कि हृतिक रोशन तो अभिनय ही भूल चुके हैं. यों भी 2014 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैंग बैंग’ से ले कर अब तक हृतिक रोशन की हर फिल्म बौक्सऔफिस पर बुरी तरह से असफल होती रही है. फिल्म में दीपिका पादुकोण ने जिस्म की नुमाइश के अलावा कुछ नहीं किया. ऊपर से सैंसर बोर्ड ने उन के कुछ बिकिनी दृश्यों पर कैंची चला दी. कहानी व पटकथा में तमाम गड़बड़ियां हैं.

26 जनवरी तक ‘फाइटर’ की प्रशंसा में कसीदे पढ़ने वाले ‘समोसा क्रिटिक्स’ अब ‘फाइटर’ की असफलता के लिए अलगअलग वजह बता रहे हैं. एक ने दावा किया है कि ‘फाइटर’ के खिलाफ साजिश की गई है. एक का मानना है कि दीपिका पादुकोण के प्रति देश में नाराजगी के चलते ‘फाइटर’ असफल हुई. एक दक्षिणापंथी फिल्म क्रिटिक्स का दावा है कि लोग दीपिका से नफरत करते हैं, जिस का खमियाजा हृतिक रोशन और ‘फाइटर’ को भुगतना पड़ा.

‘फाइटर’ की असफलता की गाज किस पर गिरी ?

पूरी फिल्म इंडस्ट्री व हर फिल्म निर्माता सच जानता है कि वह अपनी घटिया फिल्म को किस तरह ‘दक्षिणापंथी’ क्रिटिक्स से बेहतरीन फिल्म साबित करवाता रहता है. मगर ‘फाइटर’ की असफलता की गाज फिल्म के प्रचारक पर नहीं गिरी क्योंकि प्रचारक की जवाबदेही तय ही नहीं है. लेकिन इस का असर फिल्म के निर्देशक पर जरूर पड़ा है.

फिल्म ‘फाइटर’ के बुरी तरह असफल होते ही शाहरुख खान ने अपनी बेटी के लिए बनाई जाने वाली फिल्म बंद कर दी, जिस का निर्देशन ‘फाइटर’ के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद करने वाले थे. तो वहीं यशराज फिल्म्स ने भी फिल्म ‘वार 2’ के निर्देशन से सिद्धार्थ आनंद की छुट्टी कर दी. वहीं बौलीवुड के अंदर से ‘समोसा क्रिटिक्स’ या यों कहें कि दक्षिणापंथी फिल्म आलोचकों को पैसा देना बंद किए जाने की मांग तेजी से उठने लगी है.

कलाकार में एक नहीं बल्कि कई प्रतिभाएं होती हैं जन्मजात

कला किसी मनुष्य की जन्मजात प्रतिभा होती है. किसी में चित्रकारी तो किसी में गायकी या अभिनय और नृत्य का जन्मजात गुण होता है. अधिकांश कलाकारों में दो या तीन कलाएं एकसाथ पाई जाती हैं, मगर दुनिया की नजर में वह किसी एक कला में ही पारंगत दिखाई देता है. उस की अन्य कलाओं को या तो मंच नहीं मिलता या उन को डैवलप करने का उन्हें वक्त नहीं मिलता. कई बार कलाकार की एक कला ही इतनी हावी हो जाती है कि उस की दूसरी कलाओं की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता.

फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में तो अपनी बड़ी पहचान बनाई लेकिन कम ही लोगों को उन की अन्य प्रतिभाओं के बारे में मालूम चला. जैसे यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि रेखा गजब की अभिनेत्री तो हैं मगर एक बहुत अच्छी गायिका भी हैं और गजल गायकी में हर शेर के साथ उन की जो भावनाएं उबलती हैं उस का कोई जवाब नहीं. अधिकतर गजल गायक गजल की रूह तक नहीं उतर पाते और ऊपरऊपर से गा कर निकल जाते हैं, मगर रेखा सिर्फ गाती ही नहीं, बल्कि गीत के एकएक शब्द में उतर जाती हैं और सुनने वाले को भी उतार लाती हैं वे.

70 के दशक में जब फिल्म इंडस्ट्री में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, विनोद खन्ना, संजीव कुमार जैसे ऐक्टर्स का बोलबाला था, उसी दौर में उत्तरपूर्वी भारत से आए शेरिंग फिनसो डेन्जोंगपा, जिन्हें हम डैनी डेन्जोंगपा के नाम से बुलाते हैं, ने इंडस्ट्री में अपने अभिनय और अपनी आवाज से तहलका मचा दिया था.

दरअसल, सिक्किम के रहने वाले डैनी डेन्जोंगपा जब मुंबई आए तो उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत एक प्लेबैक सिंगर के तौर पर ही की थी. उन के प्लेबैक का आरंभ लता मंगेशकर के साथ गाए ‘मेरा नाम आओ, मेरे पास आओ…’ गीत से हुआ था. फिर उन्होंने आशा भोंसले के साथ फिल्म ‘काला सोना’ में एक गीत ‘सुन सुन कसम से, लागूं तेरे कदम से, रहा जाए न हम से, गले लग जा…’ गाया जो सुपरडुपर हिट हुआ और जिसे काफी समय तक लोग प्लेबैक सिंगर शैलेंद्र सिंह का गाया गीत समझते रहे.

फिल्म ‘नया दौर’ में राहुल देव बर्मन ने उन्हें मोहम्मद रफी और आशा भोंसले जैसे नामचीन व स्थापित गायकों के साथ गाने का मौका दिया. लेकिन जब संगीतकार लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल लगातार डैनी की गायकी में खामियां निकालने लगे तो उन्होंने फिल्मों में गाना छोड़ अपना सारा ध्यान अभिनय पर लगा दिया और एक सफल अभिनेता के रूप में अपनी पहचान गढ़ी.

कम लोग जानते होंगे कि डैनी नेपाली गीत खूब गाते हैं और कुछ नेपाली फिल्मों के लिए भी उन्होंने गीत रिकौर्ड किए. उन्होंने फे़मस म्यूजिक डायरैक्टर नदीम-श्रवण के साथ एक अलबम में भी काम किया, जिस का नाम ‘10 स्टार’ था.

नए कलाकारों में परिणीति चोपड़ा, जिन्होंने हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता राधव चड्ढा से विवाह किया है, भी गायकी के मामले में पीछे नहीं हैं. उन्होंने कई मंचों पर अपनी गायन प्रतिभा से लोगों को कायल किया है. उन्होंने अपनी फिल्मों में भी कई गानों में अपनी आवाज दी है.

परिणीति चोपड़ा ने वर्ष 2017 में अपनी फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदु’ के ‘माना के हम यार नहीं…’ गाने को अपनी आवाज दी थी. इस के आलावा अभिनेत्री ने वर्ष 2019 में आई फिल्म ‘केसरी’ में देशभक्ति गान ‘तेरी मिट्टी…’ गा कर अपनी आवाज का जादू बिखेरा था. वहीं, वर्ष 2021 की फिल्म ‘द गर्ल औन द ट्रेन’ का ‘मतलबी यारियां…’ गाना गाया था.

अभिनेत्री ने शादी में अपने पति राघव चड्ढा को ‘ओ पिया…’ गीत गा कर डैडिकेड किया था, जिसे सुन कर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए थे. परिणीति का यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. परिणीति एंटरटेनमैंट कंसल्टेंट एलएलपी के साथ साइनअप कर के सिंगिंग के अपने जुनून को एक लाइव मंच पर ले जाने के लिए तैयार हैं. यह टीएम वैंचर्स प्राइवेट लिमिटेड और टीएम टैलेंट मैनेजमैंट का एक हिस्सा है, जो देश के मशहूर संगीतकारों का प्रतिनिधित्व करता है.

‘मकबूल’ और ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से अपनी पहचान बनाने वाले पीयूष मिश्रा ने जब ‘आरंभ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुंड, आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो…’ गीत में अपनी ओजस्वी आवाज भरी तो उसे सुन कर युवाओं की भुजाएं फड़कने लगीं.

पीयूष मिश्रा में सिर्फ अभिनय और गायन की ही प्रतिभा नहीं बल्कि वे गायक और अभिनेता के साथसाथ संगीत निर्देशक, गीतकार, नाटककार और पटकथा लेखक भी हैं. उन्होंने ‘मकबूल’, ‘गुलाल’, ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘रौकस्टार’ और ‘तेरे बिन लादेन’ जैसी फिल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय की जो छाप छोड़ी है वह आने वाले समय में उन्हें और बुलंदी पर ले जाएगी, लेकिन इस के साथ ही उन्होंने जो किताबें लिखी हैं उस की भी चर्चा जरूरी है.

पीयूष मिश्रा ने अब तक 9 किताबें लिखी हैं, जिन में ‘कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया’, ‘जब हमारा शहर सोता है’, ‘गगन दमामा बाज्यो’, ‘मेरे मंच की सरगम’, ‘आरंभ है प्रचंड’, ‘तुम मेरी जान हो रज़िया बी’, ‘सन 2025’, ‘वो अब भी पुकारता है’ और ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ खासी पठनीय हैं.

रैपर सिंगर के रूप में अभिनेता रणवीर सिंह ने अपनी पहचान बना ली है. रणवीर सिंह ने अपनी फिल्म ‘गली बौय’ में पहली बार अपनी आवाज दी. इस फिल्म में रणवीर सिंह ने रैपर आर्टिस्ट का काम किया है और अपने रैप खुद ही गाए हैं. उन्होंने इस फिल्म के लिए 4 गाने गाए हैं. 2 गाने ‘असली हिप-हौप’ और ‘अपना टाइम आएगा’ सौंग इंटरनैट पर खूब वायरल हुए. रणवीर सिंह इकलौते ऐक्टर हैं, जिन्हें बतौर रैपर पसंद किया जाता है.

लोगों की नीरस जिंदगी में हंसी का तड़का लगाने वाले कौमेडियन कपिल शर्मा की दिलकश आवाज ‘द कपिल शर्मा शो’ के मंच से अकसर सुनाई दे जाती है. उन की गाई कई गजलें सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर खूब लाइक्स बटोरती हैं.

कपिल ने अपने कैरियर की शुरुआत भले कौमेडी से की हो मगर उन की गायकी भी लाजवाब है और फिल्म ऐक्टिंग में भी उन्होंने हाथ आजमाए हैं. उन की शानदार गायकी टी सीरीज द्वारा रिलीज किए गए नए अलबम ‘अलोन’ में भी सुनने को मिली. इस में कपिल शर्मा अदाकारी भी करते नजर आ रहे हैं. इस अलबम के गीतों को कंपोज किया है गुरु रंधावा ने जो एक मशहूर गायक हैं.

पुराने जमाने में फिल्म इंडस्ट्री में उन कलाकारों को हीरो या हीरोइन के तौर पर लिया जाता था जिन के अंदर अभिनय के अलावा नृत्य और गायन की प्रतिभा भी होती थी. याद होगा कि सुरैया, उमा देवी यानी टुनटुन जैसी हीरोइनें अपने गीत परदे पर खुद ही गाती थीं. अशोक कुमार, किशोर कुमार, कुंदन लाल सहगल भी अभिनय के साथ परदे पर गायकी भी करते थे. सहगल के अनेक गाने सुपर हिट हुए हैं.

मशहूर गायक मुकेश फिल्म इंडस्ट्री में ऐक्टिंग का शौक ले कर आए थे, मगर गायक बन कर मशहूर हुए. बीच के दौर में ऐक्टर्स-ऐक्ट्रेसेस को प्लेबैक दिया जाने लगा. दरअसल, बीच के दौर में यानी शर्मीला टैगोर, वहीदा रेहमान, आशा पारीख, बलराज साहनी, भारत भूषण, शशि कपूर, शम्मी कपूर जैसे खूबसूरत लोग जब परदे पर आने लगे तो हीरोहेरोइन का रूप लावण्य और अदाएं परदे पर ज्यादा दिखाई जाने लगीं. अब जरूरी नहीं था कि खूबसूरत हीरोइन या चौकलेटी हीरो की आवाज भी उतनी मधुर हो कि वे अपने गाने भी खुद गा लें. यहीं से प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत हुई और फिर जिन कलाकारों में अभिनय के अलावा गायन की भी प्रतिभा थी, उन्हें गायन के लिए कोई ज्यादा तवज्जुह नहीं मिली.

बहुतेरे अच्छे सिंगर बाथरूम सिंगिंग तक ही सिमट कर रह गए. लेकिन इंडस्ट्री में एक बार फिर ऐसे कलाकारों का दौर शुरू हुआ है जो ऐक्टिंग के अलावा अपनी अन्य प्रतिभाओं को भी सामने ला रहे हैं और प्रशंसा बटोर रहे हैं.

मोबाइल फोन आपकी सेहत और रिश्तों का बन गया है सबसे बड़ा दुश्मन

कोई भी रिश्ता तभी मुकम्मल होता है जब दोनों एकदूसरे के लिए 100 परसैंट उपलब्ध होते हैं. मगर इस तरह रिश्ता निभाना आसान नहीं होता. रास्ते में ढेरों चुनौतियां आती हैं. हाल ही में नेशनल ओपिनियन रिसर्च सैंटर के एक सर्वे में 60 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वे अपने रिश्ते से बहुत संतुष्ट नहीं हैं. इस सर्वे के मुताबिक, एक रिश्ते में कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, मसलन घर और नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाना, बच्चे पालने से जुड़ी चुनौतियां, पैसे से जुड़ी परेशानियां और विवाद, रिश्ते में पर्याप्त इंटीमेसी यानी सैक्स का न होना.

इन सब कारणों के अलावा एक और बड़ा कारण है जो पिछले कुछ सालों से रिश्तों में दरार पैदा करने का जरिया बना है, वह है हमारा आप का प्यारा स्मार्टफोन. साइंसडायरैक्टडौटकौम में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, मोबाइल फोन रिश्ते बिगड़ने से ले कर उन के टूटने तक की वजह बन रहा है.

मोबाइल फोन से बिगड़ रहे रिश्ते

मनोविज्ञान में एक टर्म है- फबिंग. इस का अर्थ है कि किसी व्यक्ति का फोन या अन्य मोबाइल डिवाइस पर ध्यान देने के लिए अपने साथी को नजरअंदाज करना. मान लीजिए कि आप बैठे हैं और बात पार्टनर से कर रहे हैं लेकिन नजरें फोन पर टिकी हैं. पार्टनर कुछ बोल रहा है लेकिन आप फोन पर गेम खेल रहे हैं. इस का अर्थ यह हुआ कि सामने बैठे व्यक्ति से आप का कोई कनैक्शन नहीं और मीलों दूर बैठे किसी इंसान से फोन पर आप की चैटिंग चल रही है. इस का नतीजा क्या होगा? क्या आप के पार्टनर को बुरा नहीं लगेगा? उस से आप का इक्वेशन बिगड़ेगा नहीं? आजकल यही समस्या आम बनती जा रही है.

इस स्टडी को कंडक्ट करने वाले डा. जेम्स ए रौबर्ट्स बायलर यूनिवर्सिटी, टेक्सास में मार्केटिंग के प्रोफैसर हैं. वे कहते हैं कि एक अमेरिकी व्यक्ति औसतन हर साढ़े 6 मिनट में अपना फोन चैक करता है और पूरे दिन में तकरीबन डेढ़ सौ बार.

हम भारतीयों का हाल ए दिल भी कुछ अलग नहीं है. स्टेट औफ मोबाइल 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, एक भारतीय दिन में 4.9 घंटे यानी तकरीबन 5 घंटे अपने फोन से चिपके हुए बिताता है. रोज 5 घंटे मतलब महीने के डेढ़ सौ घंटे और साल के 1,800 घंटे.

डा. रौबर्ट्स बताते हैं कि उन की स्टडी में शामिल 92 फीसदी लोगों ने कहा कि पार्टनर की हर वक्त मोबाइल फोन चैक करने की आदत उन के रिश्तों को खराब कर रही है. तकरीबन सभी प्रतिभागियों ने कहा कि पार्टनर का फोन हर वक्त उस के हाथ में रहता है.

रिसर्चगेट की एक स्टडी कहती है कि मोबाइल फोन एडिक्शन के कारण कपल के बीच तनाव और दूरियां पैदा हो रही हैं. इस स्टडी में शामिल 70 फीसदी लोगों का कहना है कि मोबाइल के कारण वे अपने पार्टनर के साथ पूरी तरह कनैक्ट नहीं कर पाते क्योंकि वह 100 फीसदी कभी मौजूद ही नहीं होता.

डा. क्लिंट मैक्सवेल अपनी किताब ‘ब्रेकअप विद योर फोन एडिक्शन’ में इस समस्या से छुटकारा पाने के तरीके बताते हुए लिखते हैं कि मोबाइल फोन की लत का कारण यह है कि हमारा दिमाग डोपामिन एडिक्ट हो गया है.

स्टैनफोर्ड मैडिकल स्कूल के न्यूरोसाइंस डिपार्टमैंट की एक रिसर्च के मुताबिक, मोबाइल फोन हमारे मस्तिष्क के डोपामिन सैंटर्स को एक्टिवेट करता है. यही कारण है कि हम कोई जरूरी काम न होने पर भी हर थोड़ी देर में अपना फोन उठा लेते हैं. अगर फोन पास न हो तो हमें घबराहट और बेचैनी होने लगती है.

रूममेट सिंड्रोम

अपने पार्टनर के साथ वक्त बिताना एक नई रिलेशनशिप की शुरुआत में आप को बहुत अच्छा और रोमांचक लग सकता है. लेकिन जैसे नए कपल्स का हनीमून पीरियड खत्म हो जाता है वैसे ही एकदूसरे के साथ रहने का उत्साह भी धीरेधीरे खत्म हो सकता है और इसे ही रूममेट सिंड्रोम कहते हैं. यह एक रिलेशनशिप या शादी के अंदर होता है जहां ऐसा लगता है कि रिश्ते में दोनों सामान्य रूप से रह रहें है. लेकिन जब आप एकसाथ नएनए आए थे तो वह रोमांच एक अलग ही था और अब वह रोमांच खत्म होता जा रहा है. ऐसा लगने लगता है कि आप एक रूममेट की तरह रह रहे हैं जहां कोई भावनात्मक जुड़ाव या रोमांटिक जुड़ाव नहीं होता. जब साथ रहने का रोमांच खत्म हो जाए तो कपल्स प्रैक्टिकल हो जाते है और अपने कामों में खो जाते हैं और अपने रिश्तों को उतनी प्राथमिकता नहीं देते. इस की वजह बढ़ती जिम्मेदारी और व्यस्तता के साथ मोबाइल एडिक्शन भी है. जिस इंसान ने मोबाइल के जरिए बाहर अपनी एक रोमांचक दुनिया बना रखी है और समय मिलते ही उस में डूब जाता है वह भला अपनी पत्नी के करीब कैसे होगा?

मोबाइल एडिक्शन का सेहत पर असर

औनलाइन कंटैंट से भरी दुनिया में बड़े हो रहे बच्चों के साथ रचनात्मक जुड़ाव और हानिकारक लत के बीच की रेखा खींचनी आसान नहीं है. भारत में स्मार्ट पेरैंटिंग सौल्यूशंस में अग्रणी बातू टैक का एक हालिया सर्वे बच्चों में स्क्रीन की लत, गेमिंग और एडल्ट कंटैंट देखने के बारे में भारतीय मातापिता की चिंताओं पर प्रकाश डालता है. 3,000 प्रतिभागियों के बीच किए गए सर्वे से पता चला कि 95 प्रतिशत भारतीय मातापिता स्क्रीन लत को ले कर चिंतित हैं जबकि 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत ने क्रमशः गेमिंग की लत और एडल्ट कंटैंट के बारे में चिंता व्यक्त की.

पहले भी कई रिसर्च ने बताया है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और उन के विकास और सामाजिक संपर्क में बाधा डाल सकता है. विशेष चिंता बच्चों में गेमिंग की लत की बढ़ती प्रवृत्ति है. यह लत विभिन्न प्रकार के हानिकारक प्रभावों को जन्म दे सकती है, जैसे खराब शैक्षणिक प्रदर्शन, नींद के पैटर्न में व्यवधान और शारीरिक गतिविधि में कमी, बढ़ती आक्रामकता आदि.

हाल ही में किए गए एक और सर्वे में पाया गया कि युवाओं में मोबाइल की लत इतनी ज्यादा है कि इस की वजह से वे दिल के मरीज बन रहे हैं. उन की एक्टिविटी कम होती है, मोटापा बढ़ता है और साथ ही कोलैस्ट्रौल और दिल से जुड़ी दूसरी समस्याएं घर करने लगती हैं.

हमें समझना होगा कि यह लत भले ही थोड़ी देर का एक्साइटमैंट दे रही है लेकिन लौंग टर्म में यह हमारी हैल्थ और रिलेशनशिप दोनों के लिए खतरनाक है.

स्मार्टफोन से ब्रेक जरूरी

हमें शाम को रोजाना एकदो घंटे घर के सभी सदस्यों से बातचीत के लिए देना चाहिए. सब साथ बैठें और आपस में बात करें. उस वक्त किसी के हाथ में भी मोबाइल नहीं होना चाहिए. रोज सुबह पार्टनर के साथ वाक करने जाएं और नियम बनाएं कि उस वक्त मोबाइल फोन साथ ले कर नहीं जाएंगे. अपने घर में यह नियम भी बनाएं कि खाने की मेज पर कोई भी अपना फोन साथ ले कर नहीं आ सकता. उतना वक्त सिर्फ एकदूसरे से बातें करते हुए बिताएं. अगर हम घर में इस तरह के कुछ रूल्स सैट कर दें जिन का पालन करना अनिवार्य हो तो इस से नई आदतें बनने और मोबाइल से दूरी बढ़ाने में मदद मिलती है.

फोन से सोशल मीडिया ऐप्स डिलीट करें

मोबाइल फोन में 70 फीसदी वक्त हम बेवजह सोशल मीडिया ऐप्स स्क्रौल करते हुए बिताते हैं. सोशल मीडिया हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है. इसलिए अपने फोन से सारे सोशल मीडिया ऐप्स, जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट वगैरह डिलीट कर दें. ये एप्स खोलने ही हैं तो दिन में एक बार सिर्फ लैपटौप में ही खोलें.

संडे को काम से छुट्टी के साथ आप अपने मोबाइल फोन से भी छुट्टी ले लें. फोन स्विचऔफ कर के बैग में डाल दें और उसे देखें भी न. आप खुद ये चीजें कर के देखें कि आप के रिश्तों और ओवरऔल हैल्थ में कितना सुधार होता है, आप की जिंदगी कितनी खूबसूरत बन जाती है.

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी – भाग 3

स्वाति की शादी के बाद मोबाइल ठीक करा लिया तो अमरेश का फोन आ गया, ‘‘2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा मोबाइल स्विचऔफ बता रहा था. बात क्या है?’’

उस ने मुंबई आने की बात अमरेश से छिपा ली. उस से कहा कि एक सहेली की शादी में दिल्ली आई हूं.

2 दिनों बाद लौट जाऊंगी.

अमरेश से हमेशा जिस तरह बात करती थी, उसी तरह से बात की. उसे यह संदेह नहीं होने दिया कि उसे उस की बेवफाई का पता चल गया है. अमरेश ने उस के साथ बेवफाई क्यों की? दुबई में नौकरी करने को बता कर दूसरी शादी कर मुंबई में क्यों रह रहा था? आखिर उस की क्या गलती थी? ये सारी बातें जानने के लिए उसे सारिका से मिलना जरूरी था.

स्वाति ससुराल चली गई थी. उस की मां से बहाना बना कर और सुमित को उन के हवाले कर चौधरी साहब की बिल्डिंग पर दोपहर में गई. उसे अनुमान था कि उस समय अमरेश घर पर नहीं रहता होगा. गार्ड से बात करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई. अमरेश उस समय औफिस में रहता था. गार्ड को उस ने अपना परिचय जर्नलिस्ट के रूप में दिया. कहा, ‘‘अमरेश सर ने सारिका का इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया था.’’

गार्ड ने इंटरकौम द्वारा सारिका से बात की. उस की भी बात करवाई. उस के बाद उसे अंदर जाने की इजाजत मिल गई. अंदर गई तो सारिका ने उस का स्वागत किया. अपना परिचय देते हुए उसे सोफे पर बैठाया. बगैर समय गंवाए उस ने कहा, ‘‘अमरेश सर का कहना है कि उन की जिंदगी में यदि आप नहीं आतीं तो वे ऊंचाई के मुकाम पर नहीं पहुंच पाते. बताइए कि अमरेश सर से आप की शादी कब और कैसे हुई?’’

नौकर कोल्डड्रिंक ले आया. कोल्डड्रिंक पीते हुए जैसेजैसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे अमरेश से शादी करने की जानकारी सारिका देती गई. सारिका अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. मुंबई में ही उस ने ग्रेजुएशन की थी. पिता उस की शादी ऐसे लड़के से करना चाहते थे जो अमीर खानदान से हो और घरजमाई बन कर उन का बिजनैस संभाल सके.

सारिका सांवली थी. नाकनक्श भी अच्छे नहीं थे. कद भी छोटा था. शायद इसीलिए अमीर खानदान का कोई युवक चौधरी साहब का घरजमाई बनने के लिए तैयार नहीं था. गरीब युवकों में से कई सारिका से शादी करना चाहते थे, मगर चौधरी गरीब को पसंद नहीं करते थे. सारिका के ग्रेजुएशन करने के बाद चौधरी साहब ने उस की पढ़ाई छुड़वा दी थी और उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी. 3 साल बीत जाने के बाद भी मनपसंद वर नहीं मिला. उस के बाद सारिका की जिंदगी में अचानक अमरेश आ गया. हुआ यों कि सारिका मातापिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में 3 साल पहले कोलकाता गईर् थी. समारोह में अमरेश से उस की मुलाकात हुई थी.

अमरेश जिस कंपनी में काम करता था, उस के मैनेजिंग डायरैक्टर की बेटी की शादी थी. सारे स्टाफ को बुलाया गया था. पार्टी में अमरेश सारिका के आगेपीछे घूमने लगा तो मौका देख कर सारिका ने उस से पूछा, ‘आप मेरे आगेपीछे क्यों घूम रहे हैं, मुझ से चाहते क्या हैं?’

अमरेश ने बगैर किसी संकोच के कह दिया, ‘पहली नजर में ही मुझे आप से प्यार हो गया है. आप से शादी करना चाहता हूं.’

सारिका को अमरेश बड़ा दिलचस्प लगा. उस का व्यक्तित्व उस के दिल को छू गया. मुसकरा कर बोली, ‘आप ने मुझ में ऐसा क्या देखा कि मेरे दीवाने हो गए?’

‘आप बहुत सुंदर हैं. आप की सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है. जब तक आप से शादी नहीं होगी, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’

‘मैं गोरी नहीं, सांवली हूं, फिर सुंदर कैसे हो सकती हूं. आप झूठ बोल रहे हैं?’

‘मैं सच कह रहा हूं. सांवली होते हुए भी आप इतनी सुंदर हैं कि गोरी से गोरी लड़की भी सुंदरता में आप के सामने घुटने टेक देगी.’

अमरेश से सारिका प्रभावित हो गई. उस से उस की सारी जानकारी लेने के बाद उसे अपना परिचय दिया. फिर कहा, ‘घर जा कर मम्मीपापा से बात करूंगी. पापा तो नहीं चाहेंगे कि किसी गरीब लड़के से मेरी शादी हो. मैं आप से शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी. दरअसल, मुझे भी आप से पहली नजर में ही प्यार हो गया है.’

अमरेश ने सारिका को बताया था कि वह कुंआरा है. दुनिया में उस का कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत हो गया था. मामा ने परवरिश की, उन्होंने ही पढ़ायालिखाया. मामा का अचानक देहांत हो गया तो उन के बेटों ने उसे घर से निकाल दिया. ऐसे में उस के एक दोस्त प्रभात ने उसे सहारा दिया. उस की बदौलत ही उसे नौकरी मिली. वह उस के साथ गोल पार्क में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है.

घर जा कर सारिका ने मम्मीपापा को अमरेश के बारे में बताया तो दोनों ने शादी से साफ मना कर दिया. सारिका अमरेश से हर हाल में विवाह करना चाहती थी. इसलिए उस ने घर में बवाल कर दिया. आत्महत्या करने की धमकी दी तो चौधरी साहब को उस की बात मान लेनी पड़ी. कोलकाता जा कर अमरेश से मिलने के 10 दिनों बाद चौधरी साहब ने सारिका की शादी अमरेश से कर दी. अमरेश अच्छा पति साबित हुआ. सारिका को कभी किसी तरह का कष्ट नहीं दिया. चौधरी साहब का बिजनैस भी संभाल लिया. वर्तमान में सारिका

2 महीने से प्रेग्नैंट थी. अमरेश की सचाई जान कर मिताली के दिमाग में जैसे हथौड़े चलने लगे थे. मन में आया कि इसी पल सबकुछ सारिका को बता दे. धोखेबाज अमरेश की कलई खोल कर रख दे. पर ऐसा न कर सकी. जबान तालू से चिपक गई थी. लगा, जैसे ही सारिका को अमरेश की सचाई बताऊंगी उस की जिंदगी में बहार के बाद पतझड़ वाली स्थिति आ जाएगी. न जाने क्यों वह उसे दुख नहीं देना चाहती थी.

वहां रुकना उस के लिए ठीक नहीं था. ‘‘जल्दी ही इंटरव्यू प्रकाशित होगा,’’ कह कर चली आई. तत्काल कोई फैसला लेना आसान नहीं था. अपने साथसाथ सुमित की जिंदगी का भी सवाल था. इसलिए चुपचाप कोलकाता लौट आई. वह प्रभात को जानती थी. वह अमरेश का दोस्त था. अमरेश के साथ उस के घर 3-4 बार जा चुकी थी. अमरेश की उपस्थिति में वह भी कई एक बार घर आ चुका था. कोलकाता में जिस कंपनी में अमरेश जौब करता था, प्रभात भी उसी कंपनी में था.

अमरेश से शादी किए हुए एक वर्ष हुआ था तब की बात है, एक दिन बातोंबातों में प्रभात ने बताया था, ‘अमरेश आप को बहुत प्यार करता है. इसीलिए उस ने आप से शादी की, नहीं तो वह अपनी ख्वाहिश पूरी करता.’

‘कैसी ख्वाहिश?’ उत्सुकतावश पूछ लिया था मैं ने.

‘वह ऐशोआराम की जिंदगी चाहता था. बेहिसाब धनदौलत का मालिक बनना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. मौका नहीं मिला तो 20 हजार रुपए महीने की नौकरी कर आप से शादी कर ली.

‘आप से शादी करने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी है. वह हर हाल में अथाह दौलत का मालिक बनना चाहता है. इसलिए अब भी मौके की तलाश कर रहा है. जिस दिन मौका उस के हाथ आएगा, अंजाम की परवा किए बिना अवसर को हथिया लेगा.’

प्रभात ने जिस अवसर की बात की थी, उस समय समझ नहीं पाई थी. अब सबकुछ समझ गई थी. वह किसी अमीर लड़की से शादी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. मामला शायद ऐसा था, कोलकाता की पार्टी में अमरेश को किसी सोर्स से सारिका की जानकारी मिली होगी. उस के बाद अपनी मंजिल पाने के लिए चिकनीचुपड़ी बातों से सारिका का दिल जीत कर उस से शादी की और मिताली से दुबई जाने की बात कह कर वह सारिका के साथ रहने लगा था.

इस में कोई शक नहीं था कि उस के प्रति अमरेश का प्यार मात्र छलावा था. मिताली दोराहे पर थी. फैसला लेना आसान नहीं था. तलाक लेने की स्थिति में उस की जिंदगी में तो बदलाव आता ही, सुमित की जिंदगी भी एकदम से बदल जाती. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या न करे. इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए. इस बीच फोन पर अमरेश से बिलकुल सामान्य तरीके से बात की. उसे किसी तरह का संदेह नहीं होने दिया. 10 दिनों बाद की बात है. एक दिन शाम के 6 बजे सुमित को पढ़ा रही थी कि डोरबैल बज उठी. जा कर दरवाजा खोला, तो अमरेश था. वह जब भी आता था बगैर सूचना दिए ही आता था. 10-15 दिनों के लिए मुंबई से बाहर जाने के लिए उसे सारिका से कुछ अच्छा बहाना भी तो बनाना पड़ता होगा. सटीक बहाने के लिए उसे समय की प्रतीक्षा करनी होती होगी. इसीलिए आने की पूर्व सूचना नहीं दे पाता होगा.

अमरेश को किसी तरह का शक न हो, इसलिए सदैव की तरह वह उस से लिपट गई और उस का स्वागत किया. फिर उसे अंदर ले गई. आवाज सुन कर सुमित भी दौड़ कर आ गया. अमरेश के चेहरे पर सदैव की तरह खुशनुमा भाव था. जरा भी नहीं लगा कि वह दोहरी जिंदगी जी रहा है. हर बार की तरह इस बार भी उस ने मिताली पर अपना प्यार बरसाने में कोई कमी नहीं की. उस के मन में कई बार आया कि उस की बेवफाई का राज खोल दे. कह दे कि प्यार का नाटक बंद कर दो. पर कह नहीं  सकी. 10 दिनों बाद वह चला गया. प्रति महीना 50 हजार रुपए तो भेजता ही था. इस बार जाते समय उस ने 5 लाख रुपए यह कह कर दिए कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सुमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देना.

सदा अन्याय का मुकाबला करो, अपने हक के लिए सदा लड़ो, समाज में पनपती बुराइयों पर अंकुश लगाओ. यह सब स्कूल और कालेज में पढ़ाया गया था. मिताली ने सीखा भी था. पर जिंदगी की पाठशाला में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा था. अमरेश के प्रति जबान खोलती तो कई जिंदगियां बरबाद हो जातीं.  मातापिता का कोई सहारा न था क्योंकि उन्होंने एक तरह से साफ कह दिया, अपनी जिंदगी खुद भुगतो.

इसलिए अमरेश के जाने के बाद उस ने फैसला किया कि जब तक उस का अभिनय सफलतापूर्वक चलता रहेगा, तब तक चुपचाप सहती रहेगी, ठीक उसी तरह जिस तरह उस की जैसी हजारों महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. क्या उस का फैसला सही था? अगर वह हल्ला मचाती तो सारिका भी टूटती, सुमित भी टूटता, अमरेश भी बेकार होता और वह खुद अदालतों के चक्करों में पिस जाती. सारिका या वह कौन असली पत्नी है, कानूनी है, यह तो अभी नहीं पता, पर इस बोझ को ले कर चलना ही ठीक है.

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