मेरा मित्र रोहन एक दिन मंडी हाउस स्थित एक थिएटर की बिल्ंिडग में लगे नाटकों के पोस्टर देख रहा था. तभी एक रंगकर्मी आया और रोहन के पास आ कर बोला, ‘‘भाईसाहब, क्या आप अपनी यह शैडो कैप थोड़ी देर के लिए दे सकेंगे? नाटक के सामान में मिल नहीं रही है. हम आप को इस के एवज में 100 रुपए देंगे और नाटक के बाद कैप वापस भी कर देंगे.’’ मित्र बोला, ‘‘मैं तब तक क्या करूंगा?’’

 वह बोला, ‘‘आप भी अंदर बैठ कर मुफ्त में नाटक देखिएगा.’’ उस ने नाटक देखा और 100 रुपए भी कमाए. कभीकभी ऐसा भी होता है.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

मेरे भाईभाभी फर्नीचर पसंद कर रहे थे. दुकान वाले ने एक आदमी साथ कर गोदाम में भेज दिया. वे उस आदमी के पीछे चलने लगे. वह आदमी एक चौड़ी गली में घुसा. वे दोनों भी पीछेपीछे चले. थोड़ा चल कर वह पतली गली में घुसा. वे दोनों भी उस के पीछे चलते गए. वह आदमी एक मकान में घुसा. वे दोनों भी. वह व्यक्ति एक कमरे में घुस कर अलमारी खोलने लगा तो उन्होंने सोचा कि गोदाम की चाबी ले रहा होगा और कमरे में जैसे ही घुसे, उस आदमी ने पलट कर पूछा, ‘‘कैसे?’’

वे बोले, ‘‘कैसे क्या? गोदाम कहां है तुम्हारा?’’

‘‘कौन सा गोदाम?’’ फिर उन्हें थोड़ी देर में समझ में आया कि जिस समय भाभी सैंडिल में अटकी साड़ी छुड़ा रही होंगी, उस दौरान ध्यान हटने के कारण वे गलत आदमी के पीछे चलने लगे थे. यदि उस दिन भाभी साथ न होतीं तो भाई की शामत आ जाती. इस घटना पर हम सब खूब हंसे कि जिंदगी में ऐसा भी होता है.

डा. कंचन छिब्बर, आगरा (उ.प्र.)

मैं रेलगाड़ी से मुंबई जा रही थी. मेरी सीट के सामने एक मांबेटी बैठी थीं. यात्रा के दौरान वे मेरे साथ घुलमिल गईं. खाना खाने के बाद उस महिला ने मिठाई का डब्बा निकाला और मुझ से लेने का आग्रह करने लगी. शिष्टाचारवश मैं ने मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और खाने लगी. तभी उस महिला ने कहा, ‘‘बहनजी, आप ने मुझ अजनबी पर इतना विश्वास कर लिया. यदि इस में नींद की दवा मिली हुई होती और आप बेहोश हो जातीं, तब आप का क्या हश्र होता? आजकल जहरखुरानी की कितनी घटनाएं घट रही हैं, आप को पता नहीं है?’’

मैं ने कहा, ‘‘माफ करना, सच में मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. आगे से ऐसा नहीं होगा.’’ 

ईशू मूलचंदानी, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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