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टैक्नोलौजी की असलियत

नई टैक्नोलौजी का गुणगान बहुत किया जा रहा है पर यह टैक्नोलौजी यदि आम आदमी को छू रही है तो केवल मोबाइल के जरिए. मोबाइल, स्मार्ट मोबाइल, सोशल मीडिया, टैक्ंिस्टग, शेयरिंग, व्हाट्सऐप, सैल्फी, एप्स आदि हाल ही में जबान पर चढे़ हैं और ये पूरी तरह समझ भी नहीं आते कि आउट डेटेड हो जाते हैं. नई टैक्नोलौजी अब नई फिल्मों की रिलीज की तरह होने लगी है, लोग कतारें लगा कर नए स्वैंकी मोबाइल खरीद रहे हैं.

पर क्या यह टैक्नोलौजी क्रांति लोगों का जीवन सुधार रही है? हां, मगर बहुत थोड़ा सा. जिस नई टैक्नोलौजी का गुणगान किया जा रहा है, वह केवल पुरानी टैक्नोलौजी की पहुंच को सुगम बना रही है. वह टैक्नोलौजी खुद कुछ नहीं दे रही.

आप को रेल का टिकट लेना है, घर बैठे मोबाइल से खरीद लें पर रेल तो पुरानी ही टैक्नोलौजी पर चल रही है. रेलवे स्टेशन तक तो पुरानी टैक्नोलौजी पर जाना होगा. प्लेटफौर्म पर चलना तो पुरानी पैरों की टैक्नोलौजी से ही होगा. हो सकता है कि कल आप के प्लेटफौर्म पर पहुंचते ही रेलवे आप के मोबाइल पर बता दे कि बाएं मुड़ें या दाएं, 3 पटरियां पार करें या 4, आप की सीट चौथे डब्बे में है या 5वें में. पर चलना तो पड़ेगा ही. लोहे के पुराने डब्बे में घुसना होगा और पुरानी टैक्नोलौजी से बनी सीट पर बैठना होगा. एअरकंडीशंड है तो वर्षों पुरानी टैक्नोलौजी पर आधारित ही.

फोटो खींचे, शेयर किए, यह है किस काम का? कौन जानना चाहता है कि आप मसूरी में हैं या मैड्रिड में, आप के दूसरे बच्चे ने साल में 5वीं बार बर्थडे मनाया कि 5 साल में पहली बार? इस टैक्नोलौजी पर दुनिया इस कदर फिदा हो गई है, इतना पैसा बरबाद कर रही है कि असल टैक्नोलौजी की खोज धीमी हो गई है.

हमारे दफ्तरों में 40 साल में सिवा कंप्यूटरों के कोई बदलाव नहीं आया. रसोई नहीं बदली. बैड नहीं बदले. एअरकंडीशनर भी नहीं बदले. खाने के सामान में और्डर करना बदल गया पर कोई नया स्वाद मुंह में नहीं आया. हवाई जहाज पुरानी तरह ही उड़ रहे हैं. गाडि़यां थोड़ी सुधरी हैं पर टैक्नोलौजी क्रांति नहीं आई जैसी घोड़ागाड़ी के बाद मोटरकार के बदलाव पर आई थी.

टैक्नोलौजी का हल्ला मचाने वालों को समझना चाहिए कि केवल हल्ला बोलने, शोर मचाने, अपनी भड़ास निकालने, गालियां देने की टैक्नोलौजी में फर्क आया है कि अब आप के सामने यह न कर के मोबाइलों पर किया जा रहा है. पर जनाब, बातें वही हैं, अंदाज वही है. बस, खुशबूदार कागजों पर पैन चलाने या जबान के छटपटाने की जगह कीपैड पर उंगली चलने लगी है. बस, इसी का सारा हल्ला है.

राजनीति और न्यायपालिका

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी राजनीतिक दबावों में आ कर काम करते हैं, इस का एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने यह किया कि 10 साल पहले एक जिला न्यायाधीश को तमिलनाडु में पहले उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया और फिर स्थायी कर दिया गया. यह राजनीतिक दबाव, न्यायाधीश काटजू के अनुसार, मनमोहन सिंह सरकार पर द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी द्वारा डाला गया था जिस के समर्थन के बिना कांगे्रस सरकार गिर जाती. इस न्यायाधीश ने कभी द्रमुक नेता को जमानत की छूट दी थी और इसलिए द्रमुक उस का पक्ष ले रही थी.

न्यायाधीशों की नियुक्तियों में तरफदारी होती है, यह न कोई अजूबा है न नई बात. न्यायाधीश उसी समाज से बनते हैं जिस से अफसर व नेता बनते हैं और इस शक्ति के खेल में वही जीतता है जिस के संपर्क हों, जिस ने दूसरों पर एहसान किए हुए हों, जिस ने किसी को मुसीबत के दिनों में बचाया हो, न नेतागीरी और न अफसरगीरी इस तरह के एहसानों के बिना चल सकती है और न ही न्यायाधीशों की नियुक्तियां. निचली अदालतों में भी नियुक्ति को ले कर सवाल अदालतों के गलियारों में गूंजते रहते हैं.

इस देश की छोडि़ए, दुनिया के तकरीबन सभी देशों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में शासकों का हाथ होता है. हां, जैसे ही नियुक्त करने वाला शासक सत्ता से बाहर होता है, न्यायाधीश एहसानों का गाउन उतार फेंकता है और स्वतंत्र न्याय करने लगता है. न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने यह कह कर चौंका तो दिया कि उच्च न्यायालय में नियुक्ति राजनीतिक दबाव के कारण हुई पर क्या अदालतों में पहुंचने वाले, न्याय की दुहाई देने वालों को हानि हुई? सिर्फ इसलिए कि खुफिया जांच खराब थी, किसी को न्यायाधीश पद के लिए अयोग्य मानना गलत है क्योंकि इस से तो इंटैलीजैंस ब्यूरो सर्वशक्तिमान बन जाएगा जो किसी के भी खिलाफ बिना अपील बिना दलील के रिपोर्ट दे कर उस के कैरियर को समाप्त कर सकता है, जैसा कि हाल में वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम के साथ हुआ.

न्यायपालिका को बचाना है तो अपने हितों को ताक पर रख कर काटजू साहब को तभी आपत्ति करनी चाहिए थी. 10 साल बाद जब कई लोग सत्ता से बाहर हैं और कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है, ऐसे में तो मामला उछालने का अर्थ है कि न्यायाधीश भी दबावों और बदले के डर से चुप रहते हैं. यह लोकतंत्र, स्वतंत्रता और पारदर्शिता की पोल खोलता है. यह पूरा मामला संदेहजनक है पर हम यह नहीं कहेंगे कि इस की जांच हो क्योंकि जो भी जांच करेगा वह भी उन्हीं दबावों में रहेगा. हम सिर्फ अपना सिर धुन सकते हैं कि हम कैसे समाज में रह रहे हैं, जहां किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

राजेश खन्ना का बंगला विवाद

बीते जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना का बंगला ‘आशीर्वाद’ उन की मौत के बाद से ही विवादों से घिरा है. कभी इस बंगले पर दावेदारी को ले कर खन्ना का परिवार और उन की तथाकथित प्रेमिका अनीता आडवाणी आमनेसामने नजर आते हैं तो कभी बंगले को संग्रहालय बनाने को ले कर विवाद पैदा हो जाता है.

अब इस मामले में एक और मोड़ आ गया है. कहा जा रहा है कि खन्ना के परिवार ने आशीर्वाद को 90 करोड़ रुपए में एक कारोबारी को बेच दिया है. यों तो यह बंगला उन की बेटियों के नाम था लेकिन आडवाणी इस बंगले पर अपनी हिस्सेदारी जताती रही हैं. इस मामले को भी उन्होंने अदालत तक ले जाने की धमकी दी है. दिलचस्प बात तो यह है कि इस बाबत खबर की पुष्टि किसी ने नहीं की है लेकिन तमाशा जरूर खड़ा हो गया है.

सोहा की हां

शर्मिला टैगोर की सुपुत्री सोहा अली खान ने आखिरकार अपने लिव इन बौयफ्रैंड अभिनेता कुणाल खेमू के प्रपोजल को हां कर दिया है. वैसे तो यह कपल कई साल से एकदूसरे के साथ है लेकिन दोनों ने कभी आधिकारिक तौर पर अपने रिश्ते को स्वीकार नहीं किया था. अब सोहा ने खुलासा किया है कि कुणाल ने उन्हें पेरिस में प्रपोज किया और उन्होंने हां कर दी. खबर फैलते ही सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर उन्हें बधाई देने का सिलसिला चल पड़ा. वैसे हमेशा की तरह यहां भी वही किस्सा है कि अभिनेत्री का कैरियर कोई खास नहीं चलता और अभिनेता भी लगभग बेरोजगार. लिहाजा, दोनों मिल कर घर बसाने की तैयारी करते हैं. सोहा व कुणाल का मामला भी इतर नहीं है.

अक्षय का जोखिमभरा शो

‘मिस्टर खिलाड़ी’ अक्षय कुमार स्टंटबाजी में कितने माहिर हैं, बताने की जरूरत नहीं है. जल्द ही अक्षय टीवी पर ऐसा रिऐलिटी शो ले कर आ रहे हैं जिस का आइडिया उन्हें अपने बेटे के स्कूल से मिला. ‘डेयर टू डांस’ नाम के इस रिऐलिटी शो में अक्षय बतौर मेजबान और प्रशिक्षक नजर आएंगे. उन के मुताबिक, इस में डांस के साथ नएनए खतरे और चैलेंज भी जोड़े जाएंगे, जैसे प्रतियोगी का बर्फ पर नाचना या 6 हजार फुट की ऊंचाई पर डांस करना आदि. दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में इस शो की कई कडि़यां शूट हो चुकी हैं. खास बात यह है कि यह शो किसी इंटरनैशनल रिऐलिटी शो का देसी संस्करण नहीं है. ऐसे में कुछ ओरिजिनल की उम्मीद की जा सकती है.

मिथुन से पूछताछ

सारदा चिटफंड घोटाले ने पूरे देश का ध्यान खींचा था. इस घोटाले की आंच कई नामीगिरामी नेताओं और व्यवसायियों पर पड़ी लेकिन अब बारी अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की है. खबर है कि पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने मिथुन से इस घोटाले के बाबत 8 घंटे तक लंबी पूछताछ की. मिथुन टीएमसी से राज्यसभा सांसद हैं. उन्होंने पूछताछ के दौरान ईडी को अपने और सारदा ग्रुप के संबंधों के बारे में बताया. साथ ही ईडी को कुछ दस्तावेज भी सौंपे. वैसे इस मामले में मिथुन से काफी पहले ही पूछताछ होनी थी लेकिन फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में उन के विदेश में होने के चलते ऐसा संभव न हो सका. अब उन का बयान रिकौर्ड हो चुका है. गौरतलब है कि हाल ही में मिथुन की फिल्म ‘किक’ रिलीज हुई है और जल्द ही अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘इंटरटेनमैंट’ रिलीज होगी. ऐसे में वे किसी मुश्किल में न फंसें तो बेहतर है.

मैरी कौम प्रियंका

इन दिनों आटोबायोग्राफिकल फिल्मों को ले कर ऐक्टर्स ज्यादा उत्साहित नजर आते हैं. हों भी क्यों न इस विषय पर बनी ज्यादातर फिल्में कामयाब हुई हैं. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’, ‘भाग मिल्खा भाग’ इस बात की तसदीक करती हैं. इस कड़ी में ताजा नाम प्रियंका चोपड़ा का जुड़ चुका है. विदित हो कि प्रियंका ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कौम के जीवन पर आधारित फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रही हैं. सुनने में आया है कि इस किरदार के लिए प्रियंका ने सिर तक मुंडवा लिया था. उन के मुताबिक, किरदार के साथ न्याय करना उन की जिम्मेदारी थी. लिहाजा, उन्होंने ऐसा करने में संकोच नहीं किया. वैसे आजकल तकनीक इतनी कारगर हो गई है कि असल में गंजा होने की जरूरत नहीं पड़ती.

अमित साहनी की लिस्ट

इस फिल्म को देखने के बाद यह तो पक्का हो गया कि आज के युवा शादी के मामले में कन्फ्यूज्ड रहते हैं. अपने लिए वे फेसबुक, इंटरनैट और मैट्रिमोनियल साइटों में जीवनसाथी की तलाश तो करते हैं लेकिन सही फैसला नहीं ले पाते.

‘अमित साहनी की लिस्ट’ लाइफ पार्टनर की तलाश कर रहे एक ऐसे युवक पर बनी फिल्म है जिस ने एक लंबी लिस्ट अपने लैपटौप में सेव कर रखी है कि उस की होने वाली पत्नी में क्याक्या खासीयतें होनी चाहिए. उस के प्यार का अपना एक अलग मैजरमैंट है. इसी लिस्ट से मेल न खाने से कई लड़कियां उसे छोड़ कर चली जाती हैं और वह हर वक्त कन्फ्यूज्ड रहता है.

फिल्म की कहानी अमित साहनी (वीरदास) के मुंह से कहलवाई गई है. वह एक इन्वैस्टमैंट बैंकर है. उसे एक परफैक्ट लड़की की तलाश है, जिस में वे सारी खूबियां हों जो उस की बनाई लिस्ट में हैं. एक दिन अमित की मुलाकात देविका (आनंदिता नायर) से होती है. उस से मिल कर अमित को लगता है कि देविका में वे सब खूबियां हैं जो उस की लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन कुछ दिनों बाद देविका को अमित में वे खूबियां दिखाई नहीं देतीं जो उस की खुद की लिस्ट में थीं. वह अमित से बे्रकअप कर लेती है. फिल्म के क्लाइमैक्स का पहले से ही पता चल जाता है. निर्देशक अजय भुयान ने इस हलकीफुलकी फिल्म में बीचबीच में हंसी की फुलझडि़यां छोड़ी हैं. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कमजोर है. छायांकन ठीक है.

हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया

फिल्म में नायकनायिका का खुल कर रोमांस हो तो दर्शकों को अच्छा लगता है. इसीलिए युवा जोडि़यों को ले कर बनी रोमांटिक फिल्में खूब चलती हैं. ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ में परदे पर काजोल और शाहरुख खान का रोमांस दर्शकों को इतना भाया कि फिल्म सुपरडुपर हिट हो गई.

आज भी कई फिल्मों में ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ के रोमांटिक सींस को बारबार दोहराया जाता है. फिल्म ‘हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया’ भी एक रोमांटिक फिल्म है जो ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ से प्रेरित है. इस लव स्टोरी में कोई संदेश तो नहीं है, फिर भी बहुत से युवा और किशोर इस के साथ खुद को रिलेट करने लगते हैं. निर्देशक शशांक खेतान ने बौलीवुड के बहुचर्चित प्यार के फार्मूले को युवा पीढ़ी के लिए मनोरंजक तरीके से इस्तेमाल किया है.

फिल्म की कहानी अंबाला शहर की रहने वाली एक बोल्ड युवती काव्या (आलिया भट्ट) की है. वह अपनी शादी पर 5 लाख रुपए का लहंगा पहनना चाहती है. लहंगा खरीदने के लिए वह अकेली ही दिल्ली आती है, जहां उसे अपनी सहेली की शादी भी अटैंड करनी है. दिल्ली में उस की मुलाकात राकेश उर्फ हम्प्टी शर्मा (वरुण धवन) से होती है. हालांकि काव्या हम्प्टी को बता देती है कि उस की शादी एक एनआरआई लड़के अंगद (सिद्धार्थ शुक्ला) से होने वाली है. फिर भी दोनों में प्यार हो जाता है.

दिल्ली में कुछ द न रह कर काव्या अंबाला लौट जाती है. हम्प्टी शर्मा भी अपने 2 दोस्तों शोंटी (गौरव पांडेय) और पोपलू (साहिल वैद) के साथ अंबाला पहुंच जाता है. वह काव्या के पिता (आशुतोष राणा) के सामने काव्या के साथ प्यार का इजहार करता है परंतु वे इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं.

आखिरकार, वे हम्प्टी शर्मा को 5 दिन का समय देते हैं कि वह एक भी ऐसी वजह बता दे जिस से वे काव्या की शादी अंगद से न करें. इन 5 दिनों के दौरान काव्या के घर रहते हुए हम्प्टी शर्मा और काव्या में संबंध और भी प्रगाढ़ हो जाते हैं. अंतत: हम्प्टी काव्या के पिता को इंप्रैस कर ही लेता है और वे काव्या का हाथ उस के हाथ में दे देते हैं. फिल्म की इस कहानी में आप को पूर्व में बनी प्रेम कहानियों वाली फिल्मों के बहुत से सीन देखने को मिल जाएंगे. फिर भी फिल्म का प्रस्तुतीकरण ऐसा है कि दर्शक बोरियत महसूस नहीं करते.

फिल्म की कहानी स्वयं निर्देशक शशांक खेतान ने ही लिखी है. बतौर निर्देशक यह उस की पहली फिल्म है और उस ने फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखी है. फिल्म में लगभग सभी प्रमुख किरदारों को शराब और बीयर पीते दिखाया गया है मानो शराब कोई अच्छी चीज हो. नायिका आलिया भट्ट तो कईकई बोतलें बीयर पी कर डकार भी नहीं लेती है. यह दिखा कर निर्देशक ने युवाओं को बिगाड़ने का ही काम किया है.

वरुण धवन और आलिया भट्ट की कैमिस्ट्री खूब जमी है. आलिया भट्ट में अब आत्मविश्वास लौट आया है. अपनी फिल्म ‘हाईवे’ में अच्छा अभिनय करने के बाद उस के अभिनय में काफी निखार आया है. उस ने इस फिल्म में कुछ बोल्ड सीन भी दिए हैं. वरुण धवन फिल्म निर्देशक डेविड धवन का बेटा है. उस ने अपनी प्रतिभा पिछली फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ में ही दिखा दी थी. उस के अभिनय में गोविंदा की झलक देखने को मिलती है. इस फिल्म में एक खिलंदड़ लड़के की भूमिका में वह जंचा है. डांस और ऐक्शन दृश्यों में वह जंचता है. आशुतोष राणा काफी अरसे बाद परदे पर नजर आया है. लेकिन उस के चेहरे पर एक सख्त पिता का वह खौफ नजर नहीं आया जो ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ में पिता अमरीश पुरी के चेहरे पर नजर आया था. गौरव पांडेय और साहिल वैद ने कौमेडी करने की कोशिश की है.

फिल्म का गीतसंगीत युवाओं को अच्छा लगने वाला है. 2-3 गीत पहले ही लोकप्रिय हो चुके हैं. फिल्म का छायांकन अच्छा है.

किक

सलमान खान की यह किक स्कूटर या बाइक की नहीं है, यह किक सलमान खान की है. तभी तो उस ने फिल्म में ‘किक’ शब्द का प्रयोग कई बार किया है. बौलीवुड में एक सलमान खान ही ऐसा ऐक्टर है जो अपनी बेशर्मी, बेहूदगियों से भी अपने फैंस को इंप्रैस कर लेता है.

उस के फैंस उस की हर बेहूदगी को ऐंजौय करते हैं. ‘किक’ में उस ने बड़े प्यार से किक मारी है और उस के फैंस हैं कि किक खा कर भी उस पर वारीवारी जा रहे हैं. फिल्म के अंत में सलमान खान कहता दिखाई देता है कि मेरे बारे में मत सोचो. जिंदगी की सब से बड़ी किक इसी में है.

‘किक’ 2009 में इसी शीर्षक से बनी तेलुगु फिल्म की रीमेक है. इस फिल्म में सलमान ने सीरियस हो कर ऐक्ंिटग नहीं की है. उसे गरीब बच्चों के इलाज के लिए खजाना लूटते दिखाया गया है. इसीलिए उसे तालियां मिली हैं.

जिस फिल्म में सलमान खान हो उस फिल्म की कहानी क्या है और उस में कौनकौन से कलाकार हैं, इस पर ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. सलमान खान ही काफी है. उस का ऐक्टिंग का अपना स्टाइल है. ‘किक’ में उस ने ‘दबंग’,‘बौडीगार्ड’ और ‘एक था टाइगर’ वाली स्टाइल को बरकरार रखा है. इसीलिए यह फिल्म सलमान के फैंस को तो किक देती है लेकिन बाकियों को जोर से किक मारती है.

फिल्म की कहानी पोलैंड की एक टे्रन में डाक्टर शाइना (जैकलीन फर्नांडीस) और भारत से पोलैंड गए इंस्पैक्टर हिमांशु त्यागी (रणदीप हुड्डा) की बातचीत से शुरू होती है. शाइना उसे एक दिलचस्प आदमी देवी लाल सिंह (सलमान खान) के बारे में बताती है. शाइना की मुलाकात देवी लाल सिंह से होती है. वह मनमौजी किस्म का आदमी है और जिंदगी में रोमांच चाहता है. शाइना को उस से प्यार हो जाता है. एक दिन अचानक वह गायब हो जाता है. इस बीच शाइना की जिंदगी में हिमांशु त्यागी आ जाता है. हिमांशु को डेविल नाम के आदमी की तलाश है.

दरअसल, डेविल सलमान खान ही है जो गरीब बच्चों के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए बड़ीबड़ी चोरियां करता है. हिमांशु शाइना को डेविल के बारे में बताता है. वह शिवम (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) जैसे खतरनाक विलेन का खात्मा करता है. शाइना नहीं जानती कि पोलैंड में अपनी याददाश्त खत्म होने का इलाज कराने आया देवी सिंह ही डेविल है. डेविल बैंक रौबरी का प्लान बनाता है. हिमांशु उस के पीछे पड़ जाता है. दोनों के बीच चोरसिपाही का खेल चलता है. लेकिन डेविल पकड़ में नहीं आ पाता. अंत में रहस्य खुलता है कि देवी लाल सिंह उर्फ डेविल एक पुलिस अफसर है जो एक मिशन पर था.

फिल्म का कैनवास बड़ा है. फिल्म की स्टारकास्ट इसे भव्य बनाती है. फिल्म के ऐक्शन सीन जबरदस्त हैं. सलमान खान का पोलैंड में 40वीं मंजिल से छलांग लगाना दर्शकों को रोमांचित करता है, साथ ही साइकिल को धकेल कर रेलगाड़ी के आगे से पटरियां पार करना भी हैरतअंगेज है. ये सभी स्टंट सलमान ने खुद ही किए हैं.

निर्देशक साजिद नाडियावाला ने काफी मेहनत की है. लेकिन वह फिल्म को पूरी तरह मनोरंजक नहीं बना पाया है. फर्स्ट हाफ में तो ऊलजलूल कौमेडी है. बीच का हिस्सा थम सा गया लगता है. सैकेंड हाफ में फिल्म गति पकड़ती है. इस भाग में पोलैंड में फिल्माए गए स्टंट सीन अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स लंबा खींचा गया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं.

सलमान खान ने ‘कृष’ के रितिक रोशन की नकल कर लगभग वैसा ही मास्क चेहरे पर पहना है. जैकलीन फर्नांडीस ने खुद को ग्लैमरस दिखाने में कसर नहीं छोड़ी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कुटिल हंसी हंसना नाटकीय लगता है. रणदीप हुड्डा ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है.

फिल्म का गीतसंगीत अच्छा है. 2 गाने पहले ही हिट हो चुके हैं. एक गाना ‘हैंग ओवर’ सलमान ने खुद गाया है. एक आइटम सौंग नरगिस फाखरी पर फिल्माया गया है. फिल्म की फोटोग्राफी अच्छी है. दिल्ली और पोलैंड की लोकेशनों पर शूटिंग की गई है. विदेश में पुलिस से बच कर भागते हुए सलमान ने ‘धूम-3’ के आमिर खान की स्टाइल की नकल की है

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