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मैरी कोम

‘मैरी कोम’ भारत की एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कोम के जीवन संघर्ष पर आधारित है. सफल लोगों के संघर्ष पर बनने वाली फिल्मों में से यह एक है और प्रियंका चोपड़ा की परफौर्मेंस में उस का मैरी कोम के किरदार को जीवंत बनाने का जज्बा दिखता है.

हमारे देश में स्पोर्ट्स पर बहुत ही कम फिल्में बनी हैं. ‘चक दे इंडिया’ हौकी पर थी पर नकली कहानी थी. ‘भाग मिल्खा भाग’ असल बायोपिक पर थी. ये दोनों फिल्में खूब चलीं और इन्होंने वाहवाही लूटी. ‘मैरी कोम’ में इन दोनों फिल्मों की तरह तीखापन तो नहीं है पर इस में मैरी कोम के जीवन की सचाई को सामने सफलता से लाया गया है. निर्देशक ओमंग कुमार ने लगभग 2 घंटे की इस फिल्म में मणिपुर की मुक्केबाज मैरी कोम की बचपन से ले कर विश्व चैंपियन बनने तक की कहानी बयां की है. ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है.

‘मैरी कोम’ में सिर्फ बौक्ंसग ही नहीं है, इमोशंस भी हैं, पतिपत्नी का प्यार भी. नायिका को हालात से लड़ते हुए ऊंचाइयों तक पहुंचते हुए दिखाया गया है. उस का पिता उसे बाप और बौक्ंिसग में से किसी एक को चुनने को कहता है तो वह अपने पिता के बजाय बौक्ंिसग को चुनती है.

पूरी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने बहुत मेहनत की है. नैचुरल लगने के लिए उस ने बौक्ंसग सीखी और जिम में जा कर कईकई घंटों तक रोजाना वर्कआउट किया. नतीजा यह है फिल्म को देखते वक्त दर्शकों के दिमाग पर मुक्केबाज मैरी कोम ही हावी रहती है. ठीक है कि प्रियंका चोपड़ा की बौडी लैंग्वेज ऐसी है कि वह मैरी कोम की तरह हार्ड नहीं लगती पर वह मैरी कोम को परदे पर सदा के लिए अमर कर गई है. फिल्म को प्रियंका चोपड़ा की परफौर्मेंस के कारण देखा जाना चाहिए कि साधारण घर की लड़की संघर्ष कर के क्या नहीं कर सकती.

मुक्केबाजी में 5 बार वर्ल्ड चैंपियन रही मुक्केबाज मैरी कोम की कहानी इंफाल से शुरू होती है. शहर दंगों की चपेट में है. मैरी कोम का पति ओनलर (दर्शन कुमार) अपनी पत्नी को डिलीवरी के लिए अस्पताल ले कर जा रहा है.

यहां कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. मैरी कोम के स्कूली दिनों से ले कर पिता से विद्रोह कर के बौक्ंसग कोच थापा (सुनील थापा) की एकेडमी तक पहुंचने की कहानी है. वह सफल मुक्केबाज बन जाती है और कई पदक पा लेती है. मुक्केबाज बनने का उस का सपना पूरा होता है. एक दिन उस का दोस्त ओनलर उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है तो वह ना नहीं कर पाती. उस की शादी हो जाती है और वह 2 जुड़वां बच्चों की मां बन जाती है. अब उस में वह ऊर्जा नहीं रह पाती. उस का पति उसे दोबारा मुक्केबाजी के लिए प्रेरित करता है. वह कमबैक करती है. परंतु खेल प्रशासन की बेरुखी के कारण उसे बारबार अपमान का सामना करना पड़ता है. आखिरकार वह खेल प्रशासन से माफी मांगती है और वर्ल्ड चैंपियनशिप मुकाबले में भाग लेती है. वह यह चैंपियनशिप जीत कर स्वर्ण पदक विजेता बनती है.

फिल्म की कहानी कुछ हद तक दर्शकों को बांधे रखती है. निर्देशक ने मैरी कोम की जीवनी को सीधेसीधे फिल्माया है. उस ने सिनेमेटिक लिबर्टी नहीं ली है. प्रियंका चोपड़ा के कैरियर के लिए यह एक अहम फिल्म है. इस से पहले उस ने ‘बरफी’ फिल्म में दर्शकों की वाहवाही लूटी थी. इस फिल्म में फाइटिंग सीन्स में उस ने डुप्लीकेट का इस्तेमाल नहीं किया है.

फिल्म में फाइट सीन काफी लंबे खींचे गए हैं. मध्यांतर से पहले फ्लैशबैक से आए सीन कहानी में ब्रेक लगाते प्रतीत होते हैं. मध्यांतर से पहले का भाग काफी धीमा है और कुछ ऊब पैदा करता है. लेकिन मध्यांतर के बाद का हिस्सा फिल्म में तेजी लाता है. हां, क्लाइमैक्स में वह जोश पैदा नहीं हो पाता जो ‘चक दे इंडिया’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ में क्रिएट हुआ था.

फिल्म में मैरी कोम के किरदार के माध्यम से भारतीय खेल प्रशासन द्वारा की जा रही धांधलियों और बेईमानियों का परदाफाश करते हुए दिखाया गया है. आज ऊंचेऊंचे पदों पर बैठे ऊंची जातियों के खेल अधिकारी किस तरह निचले व पिछड़े वर्ग से आए खिलाडि़यों का शोषण करते हैं, उस की पोल खोली गई है. खिलाडि़यों को सिर्फ चाय और केला दिया जाता है और डोरमेट्री में सोने की जगह दी जाती है जबकि अधिकारी खुद फाइवस्टार होटलों में लजीज खाना खाते हैं और ठाट से रहते हैं, इस का खुलासा भी है. शाबाश मैरी कोम.

यूएस ओपन के नए बादशाह बने मारिन सिलिच

क्रोएशिया के 14वीं वरीय खिलाड़ी मारिन सिलिच ने यूएस ओपन के पुरुष एकल फाइनल मुकाबले में जापान के केई निशिकोरी को हरा कर अपने कैरियर का पहला ग्रैंड स्लैम खिताब जीत लिया. सिलिच सेमीफाइनल में रोजर फेडरर को हरा कर यहां पहुंचे थे. वर्ष 2002 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब शीर्ष 10 से बाहर के किसी खिलाड़ी ने यूएस ओपन का खिताब जीता हो. वर्ष 2002 में पीट सैंप्रास ने 17वें वरीय खिलाड़ी के तौर पर यह खिताब जीता था. 25 वर्षीय सिलिच ने 13 वर्ष बाद क्रोएशिया को ग्रैंड स्लैम का खिताब दिलाया. इस से पहले 2001 में गोरान इवनिसेविच ने यह खिताब दिलाया था. अब वे सिलिच के कोच हैं. बचपन से ही टैनिस के प्रति उन का लगाव था और 5-6 वर्ष से ही उन्होंने टैनिस खेलना शुरू कर दिया था. पिछले ही वर्ष सिलिच विंबलडन के दौरान ड्रग्स सेवन के आरोपी पाए गए थे जिस के कारण उन्हें अमेरिकी ओपन से हटना पड़ा था.

जीत के बाद उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से, खासकर पिछले वर्ष से मैं ने काफी मेहनत की थी. 6 फुट 6 इंच लंबे और 82 किलोग्राम के सिलिच और 5 फुट 10 इंच लंबे और 68 किलोग्राम के निशिकोरी के बीच विपरीत शैली का यह मुकाबला था. निशिकोरी ने भी स्वीकार किया कि सिलिच ने खेल के हर विभाग में हराया और वास्तव में वे बहुत अच्छा खेले और मैं अच्छा टैनिस नहीं खेल पाया. यह मेरी कड़ी हार थी लेकिन उम्मीद है कि मैं अगली बार ट्रौफी जरूर हासिल करूंगा.

क्रिकेट की पिच पर धर्म परिवर्तन!

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तानी बल्लेबाज अहमद शहजाद और श्रीलंका के खिलाड़ी तिलकरत्ने दिलशान के बीच हुई आपसी बातचीत में धार्मिक टिप्पणी की जांच के लिए एक समिति बनाई है. हुआ यों था कि दंबुला में श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच एकदिवसीय मैच चल रहा था. जैसे ही मैच खत्म हुआ तो ड्रैसिंगरूम की ओर लौटते समय अहमद शहजाद ने तिलकरत्ने से कहा कि अगर कोई गैर मुसलिम इसलाम कुबूल कर लेता है तो वह सीधा जन्नत में जाता है. लेकिन इस के जवाब में तिलकरत्ने ने कहा कि नहीं, मुझे अपना धर्म नहीं बदलना है. इस पर शहजाद ने कहा कि तो फिर तैयार रहो आग में जलने के लिए.

बात जांच की नहीं है, सोच की है. अब तक खेलों में राष्ट्र भावना देखी गई है लेकिन शहजाद के इस रवैए से खेलों में धार्मिक कट्टरता की मानसिकता रोपित होती दिख रही है. हर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी का इस तरह मजहबी दखलंदाजी करना आम जनता को नकारात्मक संदेश भेजेगा. धार्मिक कट्टरता से दुनिया के बड़ेबड़े मुल्क मारकाट के शिकार हुए हैं. सीरिया व इराक इस बात के गवाह हैं जो शहजाद को या फिर दिलशान को अपना रोल मौडल मानते होंगे. भला वे क्या सीखेंगे इन से? अगर खिलाड़ी इस तरह धर्म की पैरवी करने लगे तो न खेल बच पाएगा और न ही खिलाड़ी. आज पिच पर धर्म के नाम पर सिर्फ जिरह हो रही है. कल को लव जिहाद की तर्ज पर खेल जिहाद का गंदा खेल शुरू हो जाए तो आश्चर्य कैसा. दरअसल, तिलकरत्ने दिलशान मुसलमान पिता और बौद्ध मां के बेटे हैं. इस से पहले उन का नाम तुआन मोहम्मद दिलशान था.

लेकिन बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. इस के पहले जब उन्हें मुसलिम नाम दिया गया तब भी वे अपनी मां के धर्म का पालन करते थे. दिलशान ने वर्ष 1999 में जब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत की थी तब अपना नाम तिलकरत्ने मुदियांसेलगे दिलशान रख लिया था.

23 वर्षीय अहमद शहजाद पाकिस्तान के टौप और्डर के बैट्समैन हैं और अपने आक्रामक खेल के लिए जाने जाते हैं. लाहौर में जन्मे शहजाद और दिलशान के बीच इस से पहले लड़ाई भी हो चुकी है. शहजाद ने दिलशान का बैट पकड़ लिया था और शाहिद अफरीदी ने उस वक्त बीचबचाव किया था. इस के लिए शहजाद को आईसीसी ने जुर्माना भी ठोका था.

मेरे पापा

जब मैं कक्षा 4 में थी तब मैं ने अपने पापा से नई साइकिल की मांग की. मेरे पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम इस बार कक्षा में प्रथम आईं तो नई साइकिल दिलवा दूंगा.’’ मैं ने खूब मेहनत की और वार्षिक परीक्षा में मैं प्रथम आई. मेरे पापा को भी शायद यकीन न था कि मैं उन की यह शर्त जीत जाऊंगी. उन्होंने नई साइकिल खरीद कर देते हुए कहा, ‘‘यह जनून जीवनभर रखना.’’ उन की यह बात मेरी प्रेरणा बनी. सच ही तो कहा मेरे पापा ने कि आदमी अपनी लगन से क्या कुछ नहीं कर सकता.

सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

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मैं 5 भाईबहनों में तीसरी हूं. सब से छोटा भाई है. हमारा परिवार सामान्य आर्थिक स्थिति वाला था. ऐसे में एक छोटे शहर की मानसिकता के साथ कभीकभी कच्ची उम्र की कुंठा भी मन में घर करती थी. बात तब की है जब मैं उम्र के 15वें साल से गुजर रही थी. मैं बाबूजी के पास बैठी थी. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे जैसा बदनसीब कौन होगा, जिस की 4 बेटियां हैं.’’ ऐसा सुनते ही मेरे चेहरे पर हीनभावना, डर और उपेक्षा के भाव एकसाथ उभर आए परंतु बाबूजी की बात अभी जारी रही, ‘‘ऐसा इसलिए कह रहा हूं बेटा, क्योंकि इतनी प्यारी बेटियों को शादी कर के दूर भेजना है और मुझे 4 बार हृदयाघात जैसा कष्ट सहना है.’’ मेरे मनोभाव तुरंत बदल गए और अपने पिता की स्नेहसिक्त बातों से न सिर्फ उन के लिए श्रद्धा बढ़ गई बल्कि मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया.

सीमा ओझा, बक्सर (बिहार)

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मेरे पापा अपने पूरे परिवार में पहले युवक थे जिन्होंने मैट्रिक पास की थी और उन्हें तुरंत बैंक में नौकरी भी मिल गई. हमारे परिवार वाले राजस्थान के एक गांव में रहते थे और खेतीबाड़ी करते थे. उस जमाने में पढ़ाईलिखाई का इतना चलन नहीं था. लेकिन पापा को शौक था इसलिए उन्होंने अपने बच्चों यानी हम पांचों भाईबहनों को खूब पढ़ाया. पढ़ाई के अलावा उन्होंने हम सभी को अच्छी पुस्तकें, पत्रिकाएं, अखबार पढ़ने को भी प्रेरित किया.

बच्चों की पत्रिकाएं जैसे सुमन सौरभ, चंदामामा, पराग, नंदन इत्यादि नियमित रूप से हमारे लिए पापा खरीदते और जैसेजैसे हम बड़े हुए उसी हिसाब से पत्रिकाएं भी बदलती रहीं लेकिन बचपन की यह आदत आज भी हम सभी में ज्यों की त्यों है. कंप्यूटर के युग के बावजूद हम और हमारे बच्चे आज भी पत्रिकाएं पढ़ने का आनंद उठाते हैं. आज पापा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ऐसी अच्छी आदत डालने के लिए, जिस से मेरी जिंदगी बदल गई, उन्हें मेरा सलाम.

विमला गुगलानी, चंडीगढ़ (पंजाब)

पाठकों की समस्याएं

मैं 45 वर्षीय विवाहिता, 3 बच्चों की मां हूं. मेरे पति बहुत अच्छे हैं. घर में सबकुछ ठीक है पर अचानक कुछ समय से मुझे अपने से काफी छोटे उम्र के लड़के से प्यार हो गया है और मैं उस के साथ पतिपत्नी वाले रिलेशनशिप में हूं. हमारे इस रिश्ते को मेरी बेटी भी जानती है. मैं बहुत परेशान हूं. क्या करूं?

आप एक परिपक्व आयु की होते हुए भी छिछोरे मन की महिला हैं. घर में सबकुछ ठीक और व्यवस्थित है, फिर भी आप एक कम आयु के लड़के से प्यार करने की गलती कर बैठीं. हैरानी होती है कि आप की बेटी भी ये सब जानती है, फिर भी आप इस रिलेशनशिप में हैं. खुद सोचिए कि आप की बेटी आप की इस हरकत से क्या सबक लेगी. कल को वह भी ऐसा कुछ करने लगे तो आप क्या कुछ कहने की स्थिति में होंगी? आप को इतने अच्छे पति व बच्चे मिले हैं. उन की सज्जनता का गलत फायदा उठा रही हैं आप. अपने इस असामाजिक रिश्ते पर फौरन पूर्णविराम लगा दीजिए वरना आप कहीं की न रहेंगी.

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मैं 35 साल का विवाहित, 2 बेटियों का पिता हूं. पत्नी 28 साल की है. इधर कुछ समय से उसे सैक्स की बातों व सैक्स में अरुचि हो गई है. वह सैक्स पर बात तक करना पसंद नहीं करती. मुझे उस का सामीप्य बहुत पसंद है, क्या करूं कि वह सैक्स में रुचि लेने लगे?

अकसर कुछ स्त्रियों में सैक्स को ले कर अरुचि हो जाती है. इसे मनोवैज्ञानिक रूप से देखें. पत्नी से सीधे सैक्स की बात न कर के पहले फोरप्ले करें. पत्नी को जो पसंद है, वही करिए. हो सकता है आप उस समय वे बातें करते हैं जब वैसा माहौल बना ही न हो. पत्नी को खुश रखें, सैक्स के अनुकूल माहौल बनाइए, हो सकता है कि पहल आप की पत्नी की ओर से ही हो जाए.

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मैं 24 वर्षीय अविवाहिता हूं और 40 वर्षीय पुरुष से मेरा विवाह होने वाला है. क्या यह विवाह ठीक रहेगा? क्या वे इस उम्र में पिता बन सकते हैं? कृपया बताइए, बहुत तनाव में हूं, क्या करूं?

पुरुष काफी उम्र तक पिता बन सकते हैं, मेनोपौज होने के बाद स्त्री मां नहीं बन सकती. आप के होने वाले पति आने वाले 30-35 साल तक भी बाप बन सकते हैं. यह निर्भर करता है पुरुष की सक्षमता पर. सब सोचविचार कर विवाह करें.

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मैं 16 वर्षीय अविवाहित छात्रा हूं. एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है पर जब भी उस से शादी की बात करती हूं तो उस का व्यवहार बदल जाता है. कहता है कि पहले कैरियर बनाऊंगा, वह पहले जरूरी है. मैं उस के बिना जी नहीं सकती, क्या करूं?

आप जैसी कम उम्र लड़कियां दोस्ती होते ही जीनेमरने तक पहुंच जाती हैं. आप का बौयफ्रैंड एकदम ठीक ही तो कह रहा है कि पहले कैरियर बनाना जरूरी है. कैरियर ही न बना तो शादी कर के भी क्या करेंगी आप. पहले जीवन में सैटिल हो जाइए, अभी विवाह के लिए काफी समय है. कैरियर बनने के बाद सब स्पष्ट हो ही जाएगा.

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मैं 25 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी को 5 वर्ष हो गए. 1 साल हम दोनों में अच्छी बनी. फिर ये बदल से गए, कहते हैं, तुम्हें खाना बनाने और एक पत्नी का फर्ज निभाने के लिए ही लाया हूं. इस बीच, हमारा एक परिचित लड़का काफी दिनों से मुझे पसंद कर रहा है, मैं भी उसे पसंद करती हूं. वह मुझ से दोस्ती करना चाहता है. मैं बहुत अकेली हूं, क्या करूं?

आप दोनों पतिपत्नी में 1 साल अच्छी बनी, उसी तर्ज पर फिर कोशिश कीजिए निभाने की, यह समझ लीजिए कि निभाना बेशक मुश्किल होता है और तोड़ना बहुत आसान. उस परिचित लड़के की ओर कभी ध्यान न दें वरना घर तो उजड़ेगा ही, पति से अलग होंगी सो अलग. यह परिचित सिर्फ आप से फायदा उठाना चाहता है. आप के पति ने यदि बातोंबातों में कह भी दिया कि पत्नीधर्म निभाने को आप को लाए हैं तो क्या हो गया, अपने विवाहित जीवन पर ध्यान दे कर पति के साथ निभाने की कोशिश कीजिए.

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मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं और नौकरी करती हूं. आजकल पति बेरोजगार हैं. वे दिन में सोना पसंद करते हैं और मुझे रात में भी नींद नहीं आती, क्या करूं?

चूंकि आप के पति कहीं काम नहीं करते तो दिन में उन्हें सोना अच्छा लगता है और चूंकि आप काम करती हैं तो जाहिर है आप को कई तरह की फिक्र भी रहती होगी. नींद न आने की समस्या ज्यादा हो तो डाक्टर से पूछ कर दवा ले सकती हैं. एक बार पति की कहीं नौकरी लग जाएगी तो उन का सोना भी व्यवस्थित हो जाएगा.

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मैं 20 वर्षीय अविवाहिता हूं. एक लड़का और मैं, दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. हम दोनों का ही कैरियर अभी तक ढंग से बन नहीं पाया है. उस के मांबाप हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं.
इधर, 1 महीने से हम दोनों में बहुत ज्यादा लड़ाईझगड़ा हो रहा है. उसे मेरा कहीं आनाजाना बिलकुल पसंद नहीं है. यह बात मुझे बहुत बुरी लगती है. हम दोनों के बीच जरा सी भी अंडरस्टैंडिंग नहीं बची. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

आप दोनों में ही जब अंडरस्टैंडिंग नहीं बची और उस के घर वाले भी आप लोगों की शादी के खिलाफ हैं तो आप को अपने इस फैसले के बारे में फिर से सोचना जरूरी है. वैसे भी आप दोनों का कैरियर ढंग से नहीं बना है और आप लोगों में झगड़ा भी बहुत होता है. ऐसे में आपसी सहमति से अपनी राहें जुदा कर लेना ही विकल्प रह जाता है. लड़ाईझगड़े में शादी की बुनियाद भी कमजोर ही होती है, सोचसमझ कर ही निर्णय लें.

बात ऐसे बनी

कुछ दिन पहले एक रिश्तेदार अपने बेटे की शादी का निमंत्रणकार्ड देने के लिए घर आए. रिश्तेदार महोदय कार्ड पकड़ाने के बाद तुरंत चलने के लिए तैयार हो गए. ससुरजी ने उन से बैठने और कुछ जलपान आदि ग्रहण करने के लिए अनुरोध किया. वे कहने लगे कि उन्हें अभी कई जगहों पर कार्ड देना है, उन के पास बिलकुल समय नहीं है. कई बार अनुरोध करने पर भी वे रुकने को तैयार नहीं हुए. उन का यह आचरण ससुरजी को अच्छा नहीं लगा. उन्होंने रिश्तेदार महोदय को कार्ड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘भैया, अगर आप को हमारे यहां के लिए 5 मिनट का समय नहीं है तो हमारे पास भी आप के यहां शादी में शामिल होने के लिए 2-4 घंटे देने का समय नहीं है. यह कार्ड पकडि़ए और आप को जल्दी है, आप निकलिए.’’ रिश्तेदार महोदय बुरी तरह झेंप गए और उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और फिर जलपान करने के बाद ही गए.

अर्चना अग्रहरि, हावड़ा (प.बं.)

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मेरे दादाजी पड़ोसी से बहुत परेशान थे. उस ने 2 कुत्ते पाल रखे थे. टौयलेट के लिए वह उन्हें हमारे खेत में छोड़ देता था. खेत बटाई का था. बटाईदार बारबार हम से शिकायत करता. खेत की निराईगुड़ाई में उसे दिक्कत होती थी.

पड़ोसी अपनी करनी से बाज नहीं आया तो दादाजी एक प्लास्टिक की थैली में दालसब्जी के रस में भिगोई रोटी और उस में मड़वे का आटा मिला कर खेत के पास ले गए और बटाईदार से जोरजोर से बोले, ताकि पड़ोसी भी सुन सके, ‘‘अरे बिनयपाल, खेत में बहुत चूहे हो गए हैं. मैं रोटी को मीट के रस में भिगो कर, चूहामार दवा मिला कर लाया हूं. तू इस में से कुछ चूहे के बिल के पास रख दे, शेष को खेत में फैला दे,’’ यह कहते हुए उन्होंने उसे थैली सौंप दी. वह बोला, ‘‘बाबूजी, यह आप ने ठीक किया, इस से चूहे क्या बिल्लीकुत्ते भी मर जाएंगे.’’ उस ने रोटी खेत में बिखेर दी. पड़ोसी ने यह सब सुना तो जलभुन गया. दादाजी न तो उस से उलझना चाहते थे और न कुत्तों को कोई नुकसान पहुंचाना चाहते थे. इस तरकीब से पड़ोसी के कुत्तों का खेत में आना बंद हो गया.

वरुण मेहरा, नैनीताल (उत्तराखंड)

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मैं एक रिटायर्ड परमाणु वैज्ञानिक हूं. पत्नी का निधन हुआ तो रिश्तेदार, मित्रगण चिंता करने लगे कि वृद्धावस्था में अब कौन सेवा करेगा. मेरी केवल एक बेटी है. लेकिन मेरी बेटी ने समाज को दिखा दिया कि बेटी भी पिता की सेवा करने में समर्थ, सक्षम है. आज मैं अपनी इकलौती संतान अपनी बेटी के साथ रह रहा हूं और गौरवान्वित जीवन जी रहा हूं.

दिलीप भाटिया, कोटा (राजस्थान)

बच्चों के मुख से

हमारे बहुत ही खास पारिवारिक मित्र के बेटे की शादी थी. समीर के मम्मीपापा हमें खुद निमंत्रण दे गए थे. समीर की मेरे भांजे व भतीजों से खूब दोस्ती थी. वह खुद भी शादी में आने का आग्रह कर गया था. संयोग से जिस दिन समीर की शादी थी उसी दिन मम्मी की तबीयत एकदम खराब हो गई. उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. उसी परेशानी और अफरातफरी में समीर की शादी की बात ध्यान से निकल गई. कोई भी शादी में न जा सका. तीसरे दिन समीर मिठाई ले कर आया और खूब गिला करने लगा, ‘‘कोई भी मेरी शादी में नहीं आया, हम सब आप की कितनी राह देखते रहे.’’

मैं ने उसे सारी स्थिति बताई तो कहने लगा, ‘‘आप लोग नहीं आ सके, ठीक है पर आप ने बच्चों को तो भेज देना था.’’ इतना सुनते ही मेरा 5 साल का भतीजा मुन्नू बोल पड़ा, ‘‘कोई बात नहीं, समीर भाई, हम सब आप की अगली शादी में जरूर आएंगे.’’ इतना सुनना था कि सब जोर से हंस पड़े. मुन्नू को बात तो समझ में नहीं आई, पर वह भी सब के साथ हंसने लगा.

शकीला एस हुसैन, भोपाल (म.प्र.)

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मेरी आंटी का बेटा सुधांशु, जो नर्सरी में पढ़ता है, चंचल स्वभाव का है. एक दिन हम 11:30 बजे उन के घर गए. वह स्कूल से घर आ चुका था क्योंकि छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों की छुट्टी जल्दी हो जाती है. बातों ही बातों में जब उसे यह पता चला कि बड़े बच्चों की छुट्टी देर से होती है तो वह झट से बोला, ‘‘मम्मी, फिर तो मैं हमेशा नर्सरी में ही पढ़ता रहूंगा.’’ यह सुन कर हम सब हंसने को मजबूर हो गए.

शिवांगी, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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काफी पुरानी बात है. तब हम पुणे में थे. मेरा 6 वर्षीय पुत्र शिखर तथा जेठ का बेटा प्रभाकर, जो ला स्टूडैंट था, मेरे साथ फुफेरे भाई के यहां राखी के पर्व पर राखी बांधने गए थे. भाई खड़कवासला हाइडल में डायरैक्टर थे, उन का पाश्चात्य ढंग से सुसज्जित बहुत बड़ा बंगला था. प्रभाकर घर में प्रवेश करते ही टौयलेट गया था. उस समय देश में प्रसाधनगृहों में टौयलेट पेपर का अधिक प्रचलन नहीं था परंतु भाई के यहां प्रयोग में लाया जाता था. शिखर प्रभाकर से अपने मामा के वैभव की शेखी बघार रहा था जिसे सुन कर प्रभाकर उस को चिढ़ाने के ढंग में बोला, ‘‘तुम फालतू की ऊंचीऊंची हांक रहे हो, तुम्हारे मामा के यहां शौच कर के कागज से पोंछ कर फेंक देते हैं. साफ करने के लिए पानी तक तो है नहीं.’’ बेटा खिसिया कर रोने लगा. शेष सभी लोग स्वयं भाईभाभी, बच्चे तथा हम जोरजोर से हंसने लगे.

मंजुला, महरौली (न.दि.)

सिंडिकेट बैंक के बुरे दिन

जिस घर का मुखिया ही भ्रष्ट हो अथवा उस की गतिविधियां संदेहास्पद हों तो उस घर की खुशहाली की कल्पना नहीं की जा सकती. सार्वजनिक क्षेत्र के सिंडिकेट बैंक की भी वही कहानी है. बैंक का मुख्य प्रबंध निदेशक एस के जैन, भूषण स्टील को ऋण देने के पहले रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया तो बैंकिंग क्षेत्र में भूचाल आ गया. वह 100 करोड़ रुपए के ऋण की अवधि बढ़ाने की स्वीकृति देने के बदले 50 लाख रुपए की रिश्वत ले रहा था. कंपनी पैसा नहीं लौटा पा रही थी और वह भुगतान के लिए समय मांग रही थी जिस की स्वीकृति जैन ही उसे प्रदान कर सकता था. जैन की गिरफ्तारी की खबर ने सब के कान खड़े कर दिए.

खबर फैलते ही सभी सतर्क हो गए, बाद में पता चला कि भूषण स्टील ने अन्य कई बैंकों से भी कर्ज ले रखा है. उन में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, आईडीबीआई के साथ ही 30 से अधिक सरकारी और निजी बैंक शामिल हैं. सिंडिकेट बैंक पहले से ही बहुत लाभकारी साबित नहीं हो रहा है और इस खुलासे से उस का संकट और गहरा गया है. वित्त मंत्रालय की योजना अब इस बैंक को और गहरे संकट में जाने से बचाने की है और इस के लिए वह उस के विलय की योजना बना रहा है.

सरकार कुछ बैंकों के विलय की योजना पर तो पहले ही काम कर रही थी लेकिन सिंडिकेट बैंक अब उस की नजर में चढ़ गया है और उसे ज्यादा देर तक उस के प्रबंध तंत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. बड़ा सवाल यह है कि बैंक जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का शीर्ष अधिकारी इस तरह के अनैतिक काम में कैसे लग जाता है. वह एक सरकारी बैंक का मालिक सा था. उस पर सतर्कता विभाग की कड़ी निगाह होनी चाहिए थी. अच्छी बात यह है कि बैंकों ने बड़े ऋणधारकों पर इस घटना के सामने आने के बाद नजर रखनी शुरू कर दी है.

सूचकांक की उड़ान का नया मुकाम

शेयर बाजार की उड़ान नित नए रिकौर्ड कायम कर रही है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने और आम चुनाव में भाजपा की प्रचार कमान संभालने के बाद उन की आक्रामकता से बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक को ऐसे पर लगे कि वह अब थम नहीं रहा है और पहले दिन के अपने रिकौर्ड को दूसरे दिन तोड़ कर ऊंचाई की नई छलांग लगा रहा है. इतिहास में पहली बार शेयर बाजार इस कदर आसमान की ऊंचाई को नाप रहा है. मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होते ही बाजार ने पहली बार 27 हजार अंक क आंकड़ा पार किया. उस में कई शेयर थे जिन्होंने 52 सप्ताह में सर्वाधिक ऊंचाई हासिल की. 50 शेयर वाले नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 8 हजार अंक को पार कर गया.

शेयर सूचकांक में यह उछाल पिछले 7 माह से लगातार देखने को मिल रहा है लेकिन पिछले 2 माह से बाजार लंबी छलांग लगा रहा है. 1 जुलाई को सूचकांक 25,576 अंक पर था, 2 सितंबर को यह 27,020 अंक पर पहुंच गया. इस अवधि में रुपए में मजबूती रही लेकिन यह मजबूती शेयर सूचकांक के मुकाबले धीमी गति पर रही. सरकार के 100 दिन पूरे होने पर सूचकांक तो उत्साहित रहा लेकिन रुपया जरूर कमजोर पड़ गया. डौलर के मुकाबले रुपए का उत्साह फीका क्यों रहा, यह सवाल उत्साहित निवेशकों को जरूर परेशान कर रहा है. सितंबर के पहले सप्ताह में बाजार लगातार 11वें सत्र में तेजी पर और रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंचा लेकिन कारोबार के आखिर में मामूली गिरावट पर बंद हुआ.

भारत भूमि युगे युगे

देर आए दुरुस्त आए

बात कतई हैरत की नहीं कि कांग्रेस के छुटभैये नेता ही राहुल गाधी को पानी पीपी कर कोस रहे हैं. राहुल में समझ नहीं है, उन्हें राजनीति नहीं आती, वे जमीनी नेता नहीं हैं और राहुल की खामोशी कांग्रेस को ले डूबी जैसे दर्जनों वाक्य  सुनने में आ रहे हैं. सीधेसाधे कहा जाए तो यह है कि कांग्रेसियों को लोकसभा चुनाव की करारी हार के 4 महीने बाद होश आया है.

इसी समीकरण को उलट कर देखें तो हकीकत यह है कि 4 महीने बाद कांग्रेसियों में सच बोलने की हिम्मत आ रही है हालांकि यह भड़ास है पर देर से निकली कि जब कांग्रेस के हाथ में कुछ भी नहीं है. राहुल के साथ दिक्कत हमेशा से यह रही है कि उन्हें नहीं मालूम कि वे चाहते क्या हैं, अभी भी इस संकट से वे उबर नहीं पा रहे हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि असमंजस भी गरीबी की तरह एक मानसिक अवस्था है.

लहर की खुरचन

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को करिश्माई कहने और प्रयोगवादी नेता मानने की एक वजह यह भी है कि वे जोखिम उठाने में भरोसा करते हैं. सितंबर के पहले हफ्ते उन्होंने मुंबई में बगैर किसी झिझक के मान लिया कि मोदी लहर धीरेधीरे कमजोर पड़ रही है. इस बयान के सियासी माने सभी अपने हिसाब से लगा रहे हैं पर यह संदेश जरूर अमित शाह ने दे दिया कि जरूरत पड़ने पर भाजपा मोदी की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा की खुरचन को भी दांव पर लगा सकती है यानी भुना सकती है. यह राजनीति की विचित्रता नहीं बल्कि उस का मूलभूत सिद्धांत है.

दिल्ली का संकट

दिल्ली में सरकार कोई भी कैसे भी बनाए यह उतनी महत्त्वपूर्ण बात नहीं रही जितनी यह है कि अगर आप की जेब में ज्यादा नहीं सवा अरब रुपए भी हैं तो आप दिल्ली के शहंशाह बन सकते हैं. भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ के आरोपप्रत्यारोप और खरीदफरोख्त की बातें सुन लगता ऐसा ही है कि संकट संवैधानिक कम, आर्थिक ज्यादा है. लोकतंत्र में सरकार जनता चुनती है, यह बात भी गलत साबित हो रही है. अब न्यायपालिका दिल्ली संकट का हल ढूंढ़ रही है. दिल्ली के विधायकों को चिंता कैरियर, पगार और पैंशन की है, जनता की नहीं. जनता तो त्रिशंकु विधानसभा देने की अपनी गलती की सजा भुगत रही है.

झूम जीतन झूम

बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का ‘रोज पउवा भर शराब पीने में हर्ज नहीं’ वाला बयान दरअसल दलित तबके की व्यथा का चित्रण करता है जिस से होते हुए वे इस मुकाम तक आए हैं. राजनेताओं का सामाजिक जागृति से कोई सरोकार नहीं, यह तो मांझी की दारू वकालत से उजागर हुआ ही पर चिंता की बात उन का इस की हिमायत करना है. जिस तबके को ले कर उन्होंने यह बयान दिया है वह सदियों से हताशा की जिंदगी जी रहा है, शोषित है और समझौतावादी भी है. जरूरत उसे जगाने की है न कि यह मशवरा देने की कि गम भुलाने के लिए शाम को पाव भर शराब हलक के नीचे उतार कर सो जाओ. यह हल नहीं है बल्कि शराब जैसे ऐब के नाम पर वोट भुनाने की चालाकी है जिस के लिए जीतन राम मांझी को माफ नहीं किया जा सकता. 

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