जिस घर का मुखिया ही भ्रष्ट हो अथवा उस की गतिविधियां संदेहास्पद हों तो उस घर की खुशहाली की कल्पना नहीं की जा सकती. सार्वजनिक क्षेत्र के सिंडिकेट बैंक की भी वही कहानी है. बैंक का मुख्य प्रबंध निदेशक एस के जैन, भूषण स्टील को ऋण देने के पहले रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया तो बैंकिंग क्षेत्र में भूचाल आ गया. वह 100 करोड़ रुपए के ऋण की अवधि बढ़ाने की स्वीकृति देने के बदले 50 लाख रुपए की रिश्वत ले रहा था. कंपनी पैसा नहीं लौटा पा रही थी और वह भुगतान के लिए समय मांग रही थी जिस की स्वीकृति जैन ही उसे प्रदान कर सकता था. जैन की गिरफ्तारी की खबर ने सब के कान खड़े कर दिए.

खबर फैलते ही सभी सतर्क हो गए, बाद में पता चला कि भूषण स्टील ने अन्य कई बैंकों से भी कर्ज ले रखा है. उन में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, आईडीबीआई के साथ ही 30 से अधिक सरकारी और निजी बैंक शामिल हैं. सिंडिकेट बैंक पहले से ही बहुत लाभकारी साबित नहीं हो रहा है और इस खुलासे से उस का संकट और गहरा गया है. वित्त मंत्रालय की योजना अब इस बैंक को और गहरे संकट में जाने से बचाने की है और इस के लिए वह उस के विलय की योजना बना रहा है.

सरकार कुछ बैंकों के विलय की योजना पर तो पहले ही काम कर रही थी लेकिन सिंडिकेट बैंक अब उस की नजर में चढ़ गया है और उसे ज्यादा देर तक उस के प्रबंध तंत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. बड़ा सवाल यह है कि बैंक जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का शीर्ष अधिकारी इस तरह के अनैतिक काम में कैसे लग जाता है. वह एक सरकारी बैंक का मालिक सा था. उस पर सतर्कता विभाग की कड़ी निगाह होनी चाहिए थी. अच्छी बात यह है कि बैंकों ने बड़े ऋणधारकों पर इस घटना के सामने आने के बाद नजर रखनी शुरू कर दी है.

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