हमारे बहुत ही खास पारिवारिक मित्र के बेटे की शादी थी. समीर के मम्मीपापा हमें खुद निमंत्रण दे गए थे. समीर की मेरे भांजे व भतीजों से खूब दोस्ती थी. वह खुद भी शादी में आने का आग्रह कर गया था. संयोग से जिस दिन समीर की शादी थी उसी दिन मम्मी की तबीयत एकदम खराब हो गई. उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. उसी परेशानी और अफरातफरी में समीर की शादी की बात ध्यान से निकल गई. कोई भी शादी में न जा सका. तीसरे दिन समीर मिठाई ले कर आया और खूब गिला करने लगा, ‘‘कोई भी मेरी शादी में नहीं आया, हम सब आप की कितनी राह देखते रहे.’’

मैं ने उसे सारी स्थिति बताई तो कहने लगा, ‘‘आप लोग नहीं आ सके, ठीक है पर आप ने बच्चों को तो भेज देना था.’’ इतना सुनते ही मेरा 5 साल का भतीजा मुन्नू बोल पड़ा, ‘‘कोई बात नहीं, समीर भाई, हम सब आप की अगली शादी में जरूर आएंगे.’’ इतना सुनना था कि सब जोर से हंस पड़े. मुन्नू को बात तो समझ में नहीं आई, पर वह भी सब के साथ हंसने लगा.

शकीला एस हुसैन, भोपाल (म.प्र.)

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मेरी आंटी का बेटा सुधांशु, जो नर्सरी में पढ़ता है, चंचल स्वभाव का है. एक दिन हम 11:30 बजे उन के घर गए. वह स्कूल से घर आ चुका था क्योंकि छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों की छुट्टी जल्दी हो जाती है. बातों ही बातों में जब उसे यह पता चला कि बड़े बच्चों की छुट्टी देर से होती है तो वह झट से बोला, ‘‘मम्मी, फिर तो मैं हमेशा नर्सरी में ही पढ़ता रहूंगा.’’ यह सुन कर हम सब हंसने को मजबूर हो गए.

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