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क्या सुगंधा की निजी जिंदगी पर है फिल्म ‘जुगनी’

फिल्म ‘‘जाने तू या जाने ना’’ में शालीन का किरदार निभाकर सुगंधा गर्ग ने बालीवुड में कदम रखा था. उसके बाद उन्होने ‘माई नेम इज खान’,‘तेरे बिन लादेन’,‘मुंबई कालिंग’, ‘पतंग’ जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय किया. उनकी नई फिल्म ‘‘जुगनी’’ अब 22 जनवरी 2016 को रिलीज हो रही है, जिसमें सुगंधा गर्ग ने संगीतकार विभावरी का किरदार निभाया है. फिल्म ‘‘जुगनी’’ में विभावरी मुंबई में अपने मित्र व फिल्म निर्माता सिद्धार्थ के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. वह संगीत की खोज में पंजाब के एक गांव पहुंचती है, जहां वह गायक मस्ताना के साथ शराब के नशे में हमबिस्तर हो जाती है. पर इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह वापस मुंबई आती है. सिद्धार्थ से कहा सुनी होती है. सिद्धार्थ का आरोप है कि विभावरी उसके साथ कम और दूसरों के साथ समय ज्यादा बिताती है. उस वक्त विभावरी चुप रहती है, मगर मस्ताना की तारीफ किए बगैर नहीं रहती. विभावरी को एक फिल्म में संगीत देने के लिए मस्ताना की आवाज के ही चलते अवार्ड मिलता है. और अवार्ड मिलते विभावरी, सिद्धार्थ का घर छोड़कर अपने लिए नया किराए का मकान लेकर रहने चली जाती है. पर सिद्धाथे से वह दोस्ती रखने की बात करती है.

फिल्म ‘‘जुगनी’’ देखने वाले अब सवाल पूछ रहे हैं कि क्या सुगंधा गर्ग ने जनवरी 2016 में अपनी निजी जिंदगी का जो सबसे बड़ा निर्णय सार्वजनिक किया, वह निर्णय उन्होने फिल्म ‘‘जुगनी’’ से प्रेरित होकर लिया अथवा सुगंधा गर्ग ने अपने निर्णय व अपनी जिंदगी की कहानी फिल्म निर्देशक व लेखक शेफाली भूषण को बताकर फिल्म ‘‘जुगनी’’ का निर्माण करवाया. और वह फिल्म के रिलीज की तारीख तय होने का इंतजार कर रही थीं.? सच हमें नहीं पता..सच तो सुगंधा गर्ग या रघु राम ही बता सकते है, जो कि फिलहाल मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं.

जी हॅा! सुगंधा गर्ग की निजी जिंदगी की दास्तान भी विभावरी से काफी मिलती जुलती है. सुगंधा गर्ग निजी जिंदगी में गायक और अभिनेत्री हैं. फिल्म‘‘जाने तू या जाने ना’’ के रिलीज के बाद 2008 में ही टीवी निर्माता व एमटीवी रियालिटी शो ‘एमटीवी रोडीज’’ के संचालक रघु राम के साथ शसादी रचायी थी. मगर जनवरी 2016 के पहले सप्ताह में दोनो ने पत्रकारों को बुलाकर एक दूसरे से अलग होने की बात स्वीकार की. दोनों का मानना है कि यह दोनो एक साथ समय कम बिता रहे थे, जबकि दोनो बाहर दूसरों के साथ समय ज्यादा बिता रहे थे. इसी के चलते दोनो ने तलाक लेने का निर्णय लिया है. मगर दोनो दोस्त बने रहेंगे.

एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘सिनेमा समाज का दर्पण होता है.’’ मगर फिल्म ‘‘जुगनी’’ और सुगंधा गर्ग की निजी जिंदगी की कहानी जानने के बाद अब क्या कहा जाए?

अर्जुन कपूर को मिल रहे हैं मंगलसूत्र

​‘की एंड का’ के किया और कबीर याने की करीना कपूर खान और अर्जुन कपूर ​की इस फ्रेश जोड़ी को काफी बढ़िया रिस्पॉन्स मिल रहा है, और बहुत ही मनोरंजक किस्से भी हो रहे है.

​सूत्रों ने यह खुलासा किया है की फिल्म का मोशन पोस्टर जब से ऑनलाइन ​लॉन्च किया है, तब से ही अर्जुन कपूर की डाईहार्ड फीमेल फैंस उन्हें मंगलसूत्र भेज रहे है.

आर.बाल्की निर्देशित फिल्म की एंड का के पोस्टर में यह नजर आता है की अर्जुन अपने गले मे मंगल सूत्र पहने हुए है. फिल्म के इस पोस्टर को प्रेक्षक और इंडस्ट्री से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है , इतना ही नहीं ऑनलाइन पोस्टर लॉन्च के बाद अर्जुन को दो दिनों के भीतर 60 मंगल सूत्र उनके फीमेल फैंस से मिले है. 

बिंदिया गोस्वामी ने बेटी को गिफ्ट किया लकी चार्म

फिल्म "जी भर के जीले" से निधि दत्ता अपना डेब्यू कर रही है, यह फिल्म उनके लिए बेहद खास क्यूंकि फिल्म से डेब्यू तो वे कर रही है साथ इस फिल्म में उन्होंने जो गहने पहने है वे बहुत ही खास और निजी है.

दिलचस्प बात है की बिंदिया गोस्वामी ने अपनी प्रिया बेटी को एक ब्रेसलेट गिफ्ट किया है, यह ब्रेसलेट बिंदिया गोस्वामी ने उनकी डेब्यू फिल्म "जीवन ज्योत" ​में पहना था. निधि  ब्रेसलेट बतौर अपना लकी चार्म स्वीकार किया है. निधि ने फिल्म में उनके माँ के ब्रेसलेट के अलावा और कई चीजो का तथा वार्डरोब का इस्तेमाल किया है. 

नई सियासत की नई फसल, अब बेटों की बल्ले-बल्ले

राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी लालू यादव और रामविलास पासवान के दुलारे बिहार की राजनीति की नई उमर की नई फसल हैं. राजद सुप्रीमो लालू के बेटे तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव एवं मीसा भारती अपने पिता की ‘लालटेन’ (राजद का चुनाव चिन्ह) की रोशनी बढ़ाने में लग गए हैं, वहीं लोजपा प्रमुख रामविलास के लाडले चिराग पासवान अपने पिता की ‘झोपड़ी’ (लोजपा का चुनाव चिन्ह) को जगमग कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि लालू और पासवान के बेटों का पहला शौक राजनीति नहीं रही है. पिता की राजनीतिक विरासत थामने से पहले बेटों ने अपनी अलग राह बनाने की पूरी कोशिश की पर उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. उसके बाद ही बेटों ने सबसे आसान और भरोसेमंद रास्ता चुना एवं सियासत के मैदान में पिता के द्वारा बिछाए गए मखमली कारपेट पर उतर पड़े. खास बात यह है कि अपने पिता के ठेठ गवंई अंदाज से इतर बेटों ने अपना अलग अंदाज गढ़ते हुए पार्टी को नए सिरे से एकजुट करते रहे हैं और लालू और पासवान का पारंपरिक वोटर भी उन्हें सिर-आंखों पर बिठा चुका है.

चिराग और तेजस्वी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह केवल अपने-अपने पिता के द्वारा तैयार किए गए वोट बैंक के भरोसे ही राजनीति नहीं करना चाहते हैं. अपनी पार्टी में नए और युवा वोटरों को जोड़ना उनका मकसद है. चिराग कहते हैं कि युवाओं को जोड़े बगैर न तो सही राजनीति हो सकती है और न ही सूबे की असली तरक्की हो सकती है. उनकी पैनी नजर हमेशा ही बिहार के युवा वोटरों पर रही है, जो राजनीति से कटा हुआ है और वोट डालने से कतराता है. बिहार में एक करोड़ 71 लाख 9 हजार 728 युवा वोटर हैं. इनमें 18 से 19 साल के वोटरों की संख्या 18 लाख 39 हजार 213 है. 20 से 29 साल के वोटरों की संख्या एक करोड़ 52 लाख 70 हजार 500 है. तेजस्वी कहते हैं कि युवाओं को सियासत के प्रति जागरूक करने के बाद ही सियासत का तौर-तरीका बदलेगा और सूबे की तरक्की हो सकेगी.

गौरतलब है कि साल 2009 के चुनाव में जब रामविलास पासवान अपने सियासी गढ़ हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव हार गए और साल 2014 के लोक सभा चुनाव में जब यूपीए, कांग्रेस और राहुल गांधी ने उन्हें भाव नहीं दिया तो उन्हें अपना सियासी वजूद बचाना मुश्किल नजर आने लगा था. ऐसे में उनके बेटे चिराग पासवान ने ही उन्हें नरेंद्र मोदी से हाथ मिला लेने की सलाह दी. पासवान असमंजस की हालत में थे कि जिस मोदी के गुजरात दंगे में शामिल होने की वजह से उन्होंने साल 2002 में राजग का साथ छोड़ दिया था, उससे दुबारा कैसे हाथ मिलाया जाए? क्या नरेंद्र मोदी का साथ देने से उनके सेकुलर इमेज को धक्का तो नहीं लगेगा? उनका वोटर कहीं नाराज तो नहीं होगा? तब चिराग ने समझाया कि जिस गुजरात दंगे के मामले में अदालत और एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है, ऐसे में उनसे हाथ मिलाना नुकसान को सौदा नहीं होगा. उसके बाद ही रामविलास ने राजग से हाथ मिलाया और कामयाबी मिल गई.

हिन्दी फिल्मों में हीरो के तौर पर नाकाम रहे चिराग अपने पिता और खुद की सियासत को चमका कर असल जिंदगी में हीरो बन चुके हैं. 31अक्टूबर 1982 में पैदा हुए चिराग ने दिल्ली विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई की है और क्वालिटी पौलिटिक्स में यकीन करते हैं. साल 2011 में उनकी पहली पिफल्म ‘मिले न मिले हम’ रिलीज हुई पर बौक्स औफिस पर पानी नहीं मांग सकी थी. उसके बाद 2 साल तक मुंबई में हाथ-पैर मारने के बाद जब कोई चांस नहीं मिला तो चिराग अपने पिता की पार्टी लोजपा के जरिए राजनीति के मैदान में कूद पडे़. पिफलहाल वह जमुई के सांसद हैं और लोजपा को नए सिरे से मजबूत करने में लगे हुए हैं.

क्रिकेटर से नेता बने राजद सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को पार्टी के भावी सुप्रीमो के तौर पर देखा जाने लगा है. साल 2015 के बिहार विधन सभा चुनाव में राघेपुर से जीत कर तेजस्वी नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री बन चुके हैं. राजद के नेताओं और वर्कर्स को तेजस्वी में पार्टी की अगुवाई करने की क्षमता दिखने लगी है. इस मसले पर पूछे जाने पर तेजस्वी मुस्कुराते हुए किसी मंजे हुए नेता की तरह जबाब देते हैं- ‘मै तो पार्टी का छोटा वर्कर हूं  और इसी हैसियत से पार्टी और बिहार की जनता की सेवा करना चाहता हूं. पार्टी में कई सीनियर लीडर मौजूद हैं, जिन्होंने अपने खून और पसीने से पार्टी को सींचा है. वे सब मेरे लिए गार्जियन की तरह हैं और उनकी की देखरेख में पार्टी को आगे बढ़ाया जाएगा. राजद में सभी को साथ लेकर चलने का ही नियम है.’

9 नबंबर 1989 में पटना में जन्मे और दिल्ली पब्लिक स्कूल से पढ़ाई करने वाले तेजस्वी का पहला शौक क्रिकेट था और उसी में कैरियर बनाना चाहते थे. झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की टीम के आलराउंडर खिलाड़ी रहे तेजस्वी को आईपीएल की दिल्ली डेयर डेविल्स टीम से खेलने का मौका मिला. साल 2008-09 और 2011-12 में उन्हें टीम में चुना तो गया पर उन्हें कभी खेलने का मौका नहीं मिला. उसके बाद साल 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पिता की बनाई सियासी पिच पर उतर गए. तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप यादव भी महुआ विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर राज्य के हेल्थ मंत्री बने हैं और पिता की तरह ठेठ गवंई लहजे में राजनीति कर रहे हैं.

तेजप्रताप और तेजस्वी के साथ लालू की बड़ी बेटी 38 साल की मीसा भारती भी अपनी सियासी पहचान और ताकत बनाने के लिए आतुर हैं. उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री ले रखी है और उनके पति शैलेश इंजीनियर है. पिछले लोक सभा चुनाव में उन्हें पाटलीपुत्रा सीट से राजद का उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन राजद छोड़ भाजपा में शामिल हुए रामकृपाल यादव ने उन्हें संसद में जाने से रोक दिया. उसके पहले सियासी मंचों पर बिल्कुल ही नहीं दिखाई पड़ने वाली मीसा अब से राजद का लोकप्रिय, युवा और ताजा चेहरा बन गई हैं. 1974 के जेपी आंदोलन के दौरान इमरजेंसी का ऐलान होने के बाद लालू को ‘मीसा’ याने मेंटेनेंस औफ इंटर सेक्योरिटी एक्ट के तहत जेल में डाल दिया था. जब लालू जेल में बंद थे तो उसी दौरान साल 1977 में राबड़ी देवी ने बड़ी बेटी को जन्म दिया था. जिसका नाम लालू ने ‘मीसा’ रखा गया था. मीसा भारती कहती हैं कि बिहार में अपने पिता के द्वारा शुरू की गई सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाना ही उनका मकसद है. फिलहाल पार्टी उन्हें राज्य सभा में भेजने की तैयारियों में लगी हुई है.

सियासत से दूर निशां

लालू और पासवान के बेटों के उलट नीतीश कुमार के बेटे निशांत सियासत और मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं. बीआईटी मेसरा से बीटेक करने के बाद निशांत ने कभी भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने में दिलचस्पी नही दिखाई है. पिछले साल जब नीतीश कुमार पांचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके शपथ ग्रहण समारोह में निशांत नजर आए थे. उस समय भी वह मीडिया से कटे-कटे रहे और उसके सवालों को मुस्कुरा कर टालते रहे. निशांत के करीबी बताते हैं कि निशांत अपने पिता से ज्यादा अपनी मां मंजू सिन्हा के करीब थे और उन्हीं से अपने दिल की बात बताते थे. सरकारी स्कूल में शिक्षिका रही मंजू सिन्हा की साल 2007 में मौत हो गई थी.

समाचार

नकली रसायनों की चपेट में खेती

भारत का 20 से 30 फीसदी अनाज रसायनमय

नई दिल्ली : खतरनाक नकली रसायनों के मसले को ले कर देश में अकसर होहल्ला मचता है, मगर कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आते. खेती उसी ढर्रे पर लगातार चलती रहती है और लोग जहरीला अनाज खाने से बच नहीं पाते.

हकीकत तो यही है कि सरकार के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद देश की कृषि व्यवस्था सुधरती नजर नहीं आ रही?है. भारतीय खेती पहले से ही ढेरों मुसीबतों से घिरी हुई है, ऊपर से नकली बीजों व खतरनाक रसायनों ने और दिक्कतें पैदा कर दी?हैं. इन सब के साथसाथ जलवायु परिवर्तन का झमेला अपनी जगह पर अलग से बरकरार है.

सरकारी और गैरसरकारी कोशिशें तो बहुत की जाती?हैं, लेकिन असलियत में नकली रसायन और नकली बीज बदस्तूर खेतों पर अपना कहर बरपा रहे?हैं. पिछले दिनों किए गए अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि देश के अनाज उत्पादन का 20 से 30 फीसदी हिस्सा रसायनमय और तमाम बीमारियां पैदा करने वाला है. इस बात को हलके में नहीं लिया जा सकता. मामला खासा गंभीर और सोचविचार वाला है. अध्ययनों के मुताबिक भारतीय किसान हर साल करीब 45 हजार करोड़ रुपए का ऐसा अनाज पैदा कर रहे?हैं, जोकि खराब बीज का नतीजा है और नकली रसायन के असर वाला?है. इतनी ज्यादा मात्रा में नकली रसायनमय अनाज आखिरकार क्या गुल खिलाएगा, यह बहुत गंभीरतापूर्वक सोचने वाली बात?है. कृषिजगत के जानकार रामकृष्ण मुधोलकर ने इस बारे में कहा कि देश में खेती की सेहत बेहतर की जा सकती है, बशर्ते किसानों को साधन मुहैया कराने के साथसाथ तालीम दे कर माहिर बनाया जाए. अगर किसान प्रशिक्षित होंगे तो वे हर काम सोचसमझ कर ही करेंगे. मुधोलकर ने कहा कि किसानों को जागरूक बनाने के साथसाथ इस मामले में आम जनता की भागीदारी भी माने रखती?है. देश में तमाम कंपनियां नकली बीज और रसायन धड़ल्ले से बेच रही हैं. इस मामले में आम जनता भी किसानों को जागरूक करने का काम कर सकती है.

उन्होंने फिक्की की नकली रसायन पर आई अध्ययन रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि खराब रसायनों और बीजों की वजह से भारत में हर साल 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की फसल का नुकसान होता है. इस में भी ज्यादातर नुकसान की वजह नकली रसायन ही हैं. आमदनी के चक्कर में मानकों पर फेल होने वाले रसायनों की बिक्री भी खुलेआम हो रही?है. फिक्की की कृषि संबंधी समिति के प्रमुख मुधोलकर के मुताबिक क्राप लाइफ इंडिया किसानों को नकली रसायनों से बचाने के लिए जागरूकता मुहिम चलाने में लगी है. मगर यह मुहिम ही काफी नहीं है. राज्य सरकारों की सख्त कार्यवाही के बगैर किसानों को इस कहर से बचाना कठिन है.                           

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महज एक्सपायरी डेट ही काफी

हैदराबाद : उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण प्रणाली मंत्री राम विलास पासवान का कहना है कि खाने की चीजों के लेबल पर केवल उस की ‘एक्सपायरी की तारीख’ छपी होनी चाहिए, न कि ‘बेस्ट बिफोर’ जिस का कोई मतलब नहीं?है. पासवान ने कहा कि वे चाहते?हैं कि खाने की चीजों के लेबल पर सिर्फ उस की ‘एक्सपायरी की तारीख’ हो. उन के हिसाब से ‘बेस्ट बिफोर’ छापने का कोई मतलब नहीं है. पासवान ने कहा कि इस बात को लागू करने के उपायों पर काम करने के लिए वे विभाग की खास बैठक बुलाएंगे.

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के अध्यक्ष डीके जैन ने पिछले दिनों कहा था कि खाद्य वस्तुओं के लेबल को ले कर उपभोक्ता उलझन में पड़ जाते हैं. लिहाजा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को एक्सपायरी की तारीख और बेस्ट बिफोर जैसे लेबलिंग के मसले पर गौर करना चाहिए. बेस्ट बिफोर लेबल का मतलब यह होता है कि कई महीने बाद भी उत्पाद लोगों द्वारा खाने लायक?है. पासवान ने कहा कि सरकार नेशन एसोसिएशन आफ स्ट्रीट वेंडर्स आफ इंडिया के साथ चर्चा कर रही है. साथ ही शहरों की कुछ खास जगहों को ऐसे खाद्य पदार्थ बेचने के लिए छांट रही है. उन्होंने कहा कि स्ट्रीट फूड (गली में बेचा जाने वाला खाने का सामान) बेचने के लिए वे एक प्रणाली यानी सिस्टम चाहते हैं.        

सुधार

प्याज न्यूनतम निर्यात मूल्य से बाहर

नई दिल्ली : प्याज की हालत सुधरने के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) खत्म कर दिया?है. सरकार के इस कदम से प्याज के निर्यात में इजाफा होना लाजिम है.

विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की तरफ से जारी की गई अधिसूचना में कहा गया?है कि प्याज की तमाम किस्में बिना किसी एमईपी के निर्यात की जा सकेंगी.

महाराष्ट्र सहित देश की तमाम मंडियों में अब भरपूर मात्रा में प्याज आ रहा है, इसी वजह  किसानों को प्याज की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही, लेकिन अब निर्यात के जरीए किसानों को उन के प्याज के माकूल दाम हासिल हो सकेंगे.

सरकार का मानना?है कि देश में प्याज की आपूर्ति अब भरपूर है, लिहाजा प्याज के दाम बढ़ाने का कोई झंझट नहीं है. ऐसे में सरकार को किसानों के हित में फैसला लेने में कोई हिचक नहीं हुई. पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार से प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य खत्म करने की मांग की थी, जिसे अब केंद्र सरकार ने मान लिया?है. गौरतलब है कि अगस्त 2015 में जब प्याज के दाम 60-70 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो गए थे, तब सरकार ने प्याज के एमईपी को 425 डालर प्रति?टन से बढ़ा कर 700 डालर प्रति?टन कर दिया था, ताकि प्याज बाहर न भेजा जा सके.         

इजाफा

बढ़ी बिहारी मछलियों की मांग

पटना : बिहार में मछली का उत्पादन भले ही कम हो और उस कमी को पूरा करने के लिए बिहार दूसरे राज्यों से मछली खरीदने पर मजबूर हो, पर बिहार की मछलियों की मांग विदेशों में काफी बढ़ रही?है. पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछलियां नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा होने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जा रही हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारियों के द्वारा मंगवाई जा रही हैं. मंत्री का मानना है कि बिहार की मछलियों के लाजवाब टेस्ट की वजह से दूसरे देशों के लोग इन के दीवाने बन रहे?हैं. इस से जहां बिहार की मछलियों की बाहर डिमांड बढ़ रही?हैं, वहीं उत्पादकों को दोगुनी कीमत भी मिल रही है. इसी वजह से मछली उत्पादक भी मछलियों को दूसरे देशों और राज्यों में भेजने में दिलचस्पी ले रहे?हैं.

बिहार में मछली की सालाना खपत 5 लाख, 80 हजार टन है, जबकि सूबे का अपना उत्पादन 4 लाख, 30 हजार टन है. बाकी मछलियों को आंध्र प्रदेश समेत दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता?है. यह बिहार सूबे के लिए फख्र की बात है कि किसी मामले में तो दुनिया भर में उस की धाक है, वरना बिहार की छीछालेदर ज्यादा की जाती है.  

योजना

किसानों के लिए नई बीमा योजना

मोतिहारी : साल 2016 में पूरे देश में किसानों के लिए नई बीमा योजना लागू होगी और मौजूदा बीमा नीति में फेरबदल किया जाएगा. इस की प्रीमियम दर घटेगी और किसानों को जल्दी भुगतान की सुविधा मुहैया की जाएगी. ये बातें केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने कहीं. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर आयोजित ‘जय जवान जय किसान’ समारोह व किसान वैज्ञानिक महासंगम के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि नौजवानों को खेती से भागने की जरूरत नहीं है. सरकार उन्हें खेती से जुड़े रोजगारों की तालीम देगी.

जलसा

किसान सम्मान दिवस मनाया गया

गाजियाबाद : किसानों के सच्चे हितैषी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर विकास भवन में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस आयोजन में चौधरी चरण सिंह के जन्मदिवस को किसान सम्मान दिवस के रूप में मनाया गया. गोष्ठी की शुरुआत मुख्य विकास अधिकारी कृष्णा करुणेश ने चौधरी चरणसिंह की प्रतिभा पर फूल चढ़ा कर की. इस खास मौके पर गाजियाबाद जिले के अलगअलग इलाकों के 48 किसानों को उन के शानदार कामों के लिए प्रमाणपत्र दे कर सम्मानित किया गया. उपनिदेशक कृषि वीके सिसौदिया ने इस मौके पर कहा कि कृषि महकमे की ओर से फसलों की उम्दा पैदावार के लिए जिले के माहिर किसानों को सम्मानित किया गया?है ताकि वे और ज्यादा तरक्की कर सकें. उन्होंने सम्मान पाने वाले तमाम किसानों को बधाई देते हुए कहा कि अन्य किसान भाई भी इन से सीख लेते हुए अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश करें. इस मौके पर मुख्य विकास अधिकारी कृष्णा करुणेश और उपनिदेशक कृषि सिसौदिया के अलावा जिला कृषि अधिकारी एमपी सिंह, जिला गन्ना अधिकारी, मुख्य पशु अधिकारी व दूसरे कई विभागों के तमाम अधिकारी मौजूद थे.

किसानों के लिहाज से यह सम्मान समारोह काफी कामयाब रहा. तमाम किसानों ने अपनी कारगुजारियों का जिक्र किया, तो कृषि से जुड़े अधिकारियों ने किसानों को खेती से जुड़ी खास बातों से रूबरू कराया.

इस्तेमाल

खाली जमीनों पर सौर ऊर्जा प्लांट

पटना : बिहार में बांधों और नहरों की खाली पड़ी जमीनों पर सौर ऊर्जा का प्लांट लगाने की कवायद शुरू की गई है. इस योजना का खाका तैयार किया जा रहा है. इस से सौर बिजली का उत्पादन हो सकेगा. 1 से 10 मेगावाट कूवत वाले प्लांट लगाने में केंद्र सरकार मदद करेगी. पिछले दिनों बिहार सरकार द्वारा भेजे गए बिजली प्लांट के प्रस्ताव पर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बिहार के ऊर्जा विभाग को चिट्ठी लिख कर बांधों और नहरों की बेकार पड़ी जमीनों पर सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव तैयार करने की सलाह दी है. इस योजना का पूरा खाका तैयार होने के बाद केंद्र सरकार या राज्य सरकार की एजेंसी या कोई प्राइवेट कंपनी अगर चाहे तो सोलर प्लांट लगाने में रकम लगा सकती है. प्लांट बनाने से ले कर बिजली बेचने तक को ले कर कंपनी के साथ करार किया जाएगा. गौरतलब है कि 1 मेगावाट बिजली बनाने का प्लांट लगाने पर 6 करोड़ रुपए की लागत आती है.

बिहार रिन्यूवल  इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) से मिली जानकारी के मुताबिक 2 मेगावाट या उस से ज्यादा कूवत वाले प्लांट में बनी बिजली को पहुंचाने का काम ब्रेडा अपने लेवल से करेगी. सरकार का मानना है कि सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने से जहां बिजली की किल्लत को दूर किया जा सकेगा, वहीं सौर ऊर्जा प्लांट के आसपास के गांवों तक भी आसानी से बिजली पहुंचाई जा सकेगी.   

मुहिम

दालउत्पादन बढ़ाने पर सेमीनार

नई दिल्ली : दाल का बवाल फिलहाल तो थम गया है और 2 सौ रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंचे दाल के दाम भी वापस कम होने लगे हैं, पर यह मुद्दा तो सदाबहार ही है. दालउत्पादन के क्षेत्र में भारतीय नीति पर नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में हुए सेमीनार में भारत को दालउत्पादन में आगे बढ़ाने के लिए विचार साझा किए गए. सेमीनार में भाजपा के तमाम नामी नेता, माहिर किसान और दिग्गज कृषि वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. यूपी भाजपा किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजा वर्मा और रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी सेमीनार में दाल के बारे में अपने खयाल खुल कर जाहिर किए. नामी किसान नेता राजा वर्मा ने बताया कि इस सेमीनार में खासतौर पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपनी बातों से किसानों को प्रभावित किया.

सेमीनार की अध्यक्षता भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव मुरलीधर राव ने की. तमाम नेताओं ने दाल के हाल और उस की हालत सुधारने के बारे में चर्चा की. दाल के मामले में भारत के सभी सूबों के पिछड़ने पर चिंता जाहिर की गई. पिछली सरकार की गलत नीतियों पर भी खुल कर छींटाकशी की गई. इस सेमीनार में भले ही भाजपा के कदमकदम पर विरोधी दल पर छींटाकशी करने की कोशिश की, मगर मुख्य मुद्दा व मकसद दाल का हाल बेहतर बनाना ही था. वाकई इतने विशाल मुल्क में दाल की किल्लत का आलम कुछ गले से नहीं उतरता, लेकिन हकीकत को झुठलाया भी नहीं जा सकता है.  

गुस्ताखी

मनाही वाली मांगुर मछली पालने पर नोटिस

गाजियाबाद : जिले के?थाना निवाड़ी के गांव झलावा में प्रतिबंधित मांगुर मछली पालने के सिलसिले में संबंधित 45 जनों को नोटिस जारी किए गए हैं. नोटिस के बाद कई मछलीपालकों ने तालाब खाली कर दिए हैं और उम्मीद है कि बाकी लोग भी जल्दी ही ऐसा करेंगे. जिले के एसडीएम के मुताबिक जल्दी ही अन्य मछलीपालकों की भी छानबीन की जाएगी और उन में से जो भी प्रतिबंधित मछली पालते पाए जाएंगे, उन्हें भी नोटिस जारी किए जाएंगे. इस मुहिम का मकसद मांगुरपालन पर पूरी तरह लगाम लगाना है. मत्स्य विकास अधिकारी रामानंद के मुताबिक गांव झलावा में 80 फीसदी लोगों का काम मछलीपालन ही है. फिलहाल मांगुर मछली पालने के जुर्म में पकड़े गए 45 मछलीपालकों को मत्स्य विभाग ने नोटिस जारी कर दिए?हैं और ऐसे ही अन्य लोगों की तलाश जारी है. जारी की गई नोटिस में 15 दिनों का वक्त दिया गया?है. नोटिस के जरीए कहा गया?है कि प्रतिबंधित मछली पालने की गलती पर क्यों न उन की जमीन कुर्क कर ली जाए. मत्सय विकास अधिकारी रामानंद के मुताबिक विभाग द्वारा पहले 27 लोगों को इस सिलसिले में नोटिस दिए गए थे. उन में से आधा दर्जन लोगों ने तालाब खाली कर दिए हैं. उम्मीद है कि बाकी मछलीपालक भी जल्दी ही तालाब खाली कर देंगे.

रामानंद ने बताया कि मांगुर मछली पालने की खास वजह यह है कि इस का बच्चा 2-3 महीने के अंदर ही तेजी से बढ़ कर बड़ी मछली में तब्दील हो जाता?है और इस का वजन ढाई से 3 किलोग्राम तक हो जाता?है. यानी अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो इस के जरीए भरपूर आमदनी का लालच मछलीपालकों को कानून तोड़ने पर मजबूर कर देता है. मामले की शिकायत करने वालों का कहना है कि निवाड़ी पुलिस और मत्स्य विभाग की मिलीभगत से पिछले 6 सालों से झलावा गांव में मांगुर मछली का पालन किया जा रहा है. इस के उलट गांव के नए प्रधान का कहना है कि गांव में कैटपीस मछली का पालन हो रहा है और मांगुर मछली के पालन की बात गलत है

खोज

अधर में लटका फार्म मशीन बैंक

पटना : बिहार में फसलों का उत्पादन बढ़ाने और किसानों को मशीनों का?ज्यादा से?ज्यादा इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक करने के लिए ‘मशीन बैंक’ बनाने की योजना पिछले 2 सालों से अधर में लटकी हुई है.

गौरतलब है कि साल 2013 में ही बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को फार्म मशीनरी बैंक स्थापित करने का प्रस्ताव विचार के लिए भेजा था. इस योजना के तहत राज्य के सभी प्रखंडों में फार्म मशीनरी बैंक बनाया जाना?है. इस बैंक से किसान कृषि मशीनें किराए पर ले सकेंगे और अपनी खेती को आसान बना सकेंगे. उन्हें महंगी मशीनें खरीदने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी. कृषि वैज्ञानिक वेदनारायण सिंह कहते हैं कि खेती को फायदेमंद बनाने और उस की लागत कम करने के लिए मशीनों का ज्यादा से?ज्यादा उपयोग करना जरूरी है. खेती की मशीनों की खरीद के लिए अनुदान देने के बाद भी ज्यादातर किसान परंपरागत तरीके से ही खेती कर रहे हैं. किसान मशीनों को बेकार की चीज नहीं मान रहे?हैं. दरअसल छोटे और मंझोले किसान मशीनें नहीं खरीद पाते हैं. ज्यादातर किसान कम जोत वाले?हैं इसलिए वैसे किसानों को किराए पर मशीनें मुहैया करने का इंतजाम करने की पहल की गई?है. इस के लिए हर प्रखंड के फार्म मशीनरी बैंक को 66.15 लाख रुपए की मशीनें दी गई हैं. इन मशीनों से संबंधित प्रखंड के किसानों को काफी सहूलियत हो जाएगी.

पटना से सटे संपतचक गांव के किसान प्रमोद सिंह कहते?हैं कि वे खेती की मशीनों का बैंक खुलने के इंतजार में?हैं. इस वजह से वे कुछ नई मशीनें नहीं खरीद रहे?हैं. मशीन बैंक खुल जाने से छोटे किसानों को काफी सहायता मिल सकती है.  ठ्ठ

मायूसी

नहीं निबट पाया डीजल अनुदान

पटना : बिहार के खेतों में धान कटने लगे हैं, लेकिन अब तक किसानों को डीजल अनुदान नहीं मिल सका. इस से किसानों को कर्ज ले कर धान की सिंचाई करनी पड़ी. इस वजह से धान उत्पादन की लागत काफी बढ़ गई. कृषि विभाग ने डीजल अनुदान के लिए 650 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी, पर किसानों के बीच 66 करोड़ रुपए ही बंट सके. विभाग का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव की वजह से डीजल अनुदान को बांटने का काम 2 महीने तक ठप रहा. वहीं सूखे की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कृषि विभाग के अफसरों को कड़ी फटकार लगाई. नीतीश का कहना था कि चुनाव के ऐलान से पहले से चल रही डीजल अनुदान योजना को जारी रखने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेने की कोई जरूरत ही नहीं थी. चुनाव आयोग से अनुमति नहीं मिलने की वजह से ही यह योजना ठप पड़ गई. राज्य भर में खरीफ 2015 के लिए 19 लाख 5 हजार 293 किसानों ने डीजल अनुदान के लिए आवेदन दिया था. इन में से 15 लाख 72 हजार 579 आवेदनों को जांच में सही पाया गया था. डीजल अनुदान लेने के लिए किसान सलाहकार या प्रखंड कृषि पदाधिकारी को आवेदन देना होता है. आवेदनों की जांच के बाद प्रखंड लेबल पर कैंप लगा कर किसानों को अनुदान दिया जाता है.

खरीफ फसल को सूखे से बचाने के लिए सरकार द्वारा 5 सिंचाइयों के लिए अनुदान देने का प्रावधान है. इस के तहत प्रति एकड़ 3 सौ रुपए प्रति सिंचाई का अनुदान दिया जाता है. इस हिसाब से 5 सिंचाइयों के लिए प्रति एकड़ 15 सौ रुपए अनुदान के तौर पर किसानों को दिए जाते हैं.               

नुकसान

आलू के दामों से किसान परेशान

लुधियाना : फसल चाहे गन्ना हो या आलू या कोई अन्य, पर किसानों का मकसद फसल से भरपूर कमाई करना ही होता है. लेकिन अकसर फसल के दाम गिर कर किसानों को मायूस कर देते?हैं. इस बार भरपूर पैदावार की वजह से बाजार में आलू के भाव इतने गिर गए हैं कि किसानों को फसल की लागत निकालना भी मुश्किल हो गया?है. पंजाब में आलू की फसल पर लागत करीब साढ़े 5 रुपए प्रति किलोग्राम आ रही?है, मगर मंडियों में आलू के भाव 3 से 4 रुपए प्रति किलोग्राम ही मिल रहे?हैं. सूबे के खुदरा बाजारों में आलू 8 से 10 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा?है. पंजाब में करीब 85 हजार हेक्टेयर रकबे में आलू की खेती की जाती है. इस बार पैदावार जोरदार होने से कीमतें कम हैं. सूबे के हालात को देखते हुए किसान पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान व गुजरात सूबों को अपना आलू भेज रहे?हैं. पंजाब के आलू किसानों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें सौ रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी और दूसरे सूबों को आलू भेजने पर फ्रेट सब्सिडी दी जाए.             

सहूलियत

किसानों को मिट्टी हेल्थ कार्ड

पटना : केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्री रामकृपाल यादव ने भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र की पटना शाखा में किसानों को मिट्टी हेल्थ कार्ड बांटे जाने के दौरान कहा कि देशभर के सभी किसानों को मिट्टी हेल्थ कार्ड देने का काम शुरू किया गया?है. हर 3 साल पर इस कार्ड का नवीनीकरण किया जाएगा, ताकि मिट्टी में आए बदलाव के हिसाब से कार्ड में जरूरी सुधार किया जा सके.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मिट्टी हेल्थ कार्ड योजना पर 568 करोड़ रुपए खर्च करेगी. केवल बिहार में इस योजना पर 56 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. इस मौके पर 250 किसानों को कार्ड सौंपे गए. बिहार एग्रीकल्चर मैनेजमेंट एंड एक्सटेंशन इंस्टीट्यूट (बामेति) कैंपस में भी किसानों के बीच मिट्टी हेल्थ कार्ड बांटे गए. कृषि निदेशक बी कार्तिकेय ने कहा कि मिट्टी की असली हालत की जानकारी के बगैर किसान अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करते?हैं, जिस से खेती की लागत बढ़ जाती है. फसलों के ज्यादा उत्पादन और खेती की लागत को कम करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से खेती करना आज जरूरी हो गया है.

बामेति के निदेशक गणेश राम ने कहा कि जब तक धरती स्वस्थ नहीं रहेगी, तब तक खेतों में हरियाली नहीं आ सकती?है. इस के लिए हर किसान को अपने खेतों की मिट्टी के बारे में जानकारी रखना बेहद जरूरी?है. आज के दौर के किसान मिट्टी की सेहत की अहमियत अच्छी तरह समझते हैं. उन्हें पता है कि स्वस्थ मिट्टी ही उम्दा फसल देती?है. उन के लिए मिट्टी हेल्थ कार्ड किसी तोहफे से कम नहीं है.          

सलाह

किसानों की बने अपनी सरकार

शिकारपुर : आमतौर पर किसान कदमकदम पर सरकारी फैसलों के मुहताज रहते हैं. ऐसे में अगर उन की अपनी सरकार हो तो सारी फिजा ही बदल सकती है.

इस बात में शक नहीं कि अब तक देश में जितनी भी सरकारें बनी हैं, सब ने किसानों के साथ छल किया?है. सभी सरकारों ने किसानों को वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल कर के पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया है. किसानों के भले के लिए कार्यपालिका द्वारा काम न करने की हालत में कोर्ट को दखल देना पड़ रहा है, मगर सरकारें उन आदेशों को लागू कराने में भी आनाकानी कर रही हैं. ‘ऐसे आलम में अगर किसानों के हित की योजनाओं को लागू कराना है, तो किसानों के हित की लड़ाई लड़ने वाली सरकार बनानी होगी’ ये विचार राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह ने जखैता में आयोजित किसानों की नुक्कड़ सभा में जाहिर किए. वीएम सिंह का कहना है कि वे 20 सालों से गन्ना किसानों की लड़ाई खेतों से ले कर अदालत तक में लड़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वे धान व आलू से जुड़े आंदोलनों में भी शामिल रहे हैं.  

खतरा

नदी डैमों का जहरीला पानी

रांची : झारखंड की नदियों और डैमों के पानी में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए राज्य सरकार की नींद खुली है. राज्य के जल संसाधन मंत्री सीपी चौधरी ने बताया कि डैम और नदियों के पानी को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच दल बना कर कार्यवाही की जाएगी. झारखंड की नदियों में कारखानों का जहरीला पानी गिराया जाता है. दामोदर नदी देश की सब से प्रदूषित नदियों में शामिल है. स्पर्णरेखा, कोयल, सोन, कारो, करकई, बराकर, जुमार, हमानत और पोटपोटो नदियों का पानी भी काफी प्रदूषित हो चुका है. सरकारी और प्राइवेट पावर प्लांटों से रोज 8400 टन राख निकलती है, जो नदियों में जाती है. इस के अलावा जहरीले पदार्थ आर्सेनिक, लेड, क्रोमियम, जिंक, मरकरी, कापर और कोबाल्ट को भी नदियों में बहाया जाता है. किसी भी प्लांट के द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइड लाइन का पालन नहीं किया जाता है.

जल संसाधन मंत्री ने बताया कि नदियों और डैम में गंदा पानी गिराने वाले प्लांटों और संस्थाओं पर कड़ी कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी गई है. इस के साथ ही किसी भी डैम के कमांड एरिया से अतिक्रमण को हटाया जाएगा और डैमों के किनारे अवैध तरीके से होने वाले व्यावसायिक कामों पर भी रोक लगेगी. पहले चरण में तेनुघाट, कांके, हटिया, चांडिल और मिलैया डैम के आसपास की जमीनों से अतिक्रमण हटाया जाएगा.      

मदद

बाजार से मशीन खरीदने पर अनुदान

पटना : खुले बाजार से भी खेती की मशीनों को खरीदने पर किसानों को अब अनुदान मिलेगा. अनुदान का लाभ लेने वाले किसानों को आनलाइन आवेदन करना होगा. कृषि उत्पादन विभाग से जुड़े विजय प्रकाश ने मीठापुर फार्महाउस में 2 दिवसीय कृषि यांत्रिकरण मेले का उद्घाटन करते हुए कहा कि किसानों को मशीनों को खरीदने के अनुदान का लाभ लेने के लिए मेले में आने की जरूरत नहीं होगी. खुले बाजार से खेती की मशीन खरीदने के बाद रसीद के साथ आवेदनपत्र जमा करना होगा. कृषि यांत्रिकरण मेले में 50 स्टाल लगाए गए. पावर टीलर, जीरो टीलेज, रोटावेटर, डीजल पंपसेट, स्प्रे मशीन व ट्रैक्टर समेत कुल 47 किस्म की मशीनों पर अनुदान का लाभ किसानों ने उठाया. मेले में पहुंचे यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया के नैनो साइंटिस्ट डाक्टर आरएन लाल ने कहा कि बिहार में कृषि की तरक्की की भरपूर संभावना है. राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों के साथ तकनीक साझा कर के किसानों को सीधे तौर पर योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा सकता है. इस प्रकार उन्नत तकनीक के इस्तेमाल से कम समय और पूंजी से अच्छी पैदावार की जा सकेगी.                

खोज

सर्दियों में भी फलों का राजा आम पेड़ों पर

कोटा : राजस्थान में कोटा जिले के माहिर और तरक्कीपसंद किसान किशन सुमन ने फलों के राजा आम की एक ऐसी नायाब किस्म तैयार की है, जिस पर सर्दियों में भी आम के फल आएंगे. सर्दियों में ताजे आमों का लुत्फ लेने की कल्पना आम प्रेमियों के लिए एक अनोखी खुशी की बात है. कोटा शहर से 5 किलोमीटर दूर जिले की लाडपुरा तहसील के गिरधरपुरा गांव में 7 बीघे जमीन पर खेती करने वाले सुमन ने अपनी सफलता की कहानी सुनाते हुए कहा कि पहले वे धान, गेहूं व सब्जियों आदि की परंपरागत खेती करते थे. बाद में उन्होंने गुलाब, मोगरा व मोरपंखी की खेती करना भी शुरू कर दिया. इस दौरान वे कुछ नया करने की सोचते रहे. वे गुलाब पर कलम का काम तो करते ही थे. एक दिन खेत में खड़े आम के पेड़ पर भी कलम कर दी. कुछ अरसे बाद कलम किए पेड़ पर बेमौसम आम के फूल आए और फल लगे तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस तरह वे आम के पेड़पौधों पर प्रयोग करने लगे और आम की खास किस्म तैयार कर ली. इस में उन्हें काफी हद तक सफलता मिली. उन्होंने बताया कि इस समय उन के पास आम के 10-12 मदर प्लांट और करीब 250 डाटर यानी शिशु प्लांट हैं. मदर प्लांट की ऊंचाई 10 से 15 फुट?है, जबकि शिशु पौधे 4 से 5 फुट ऊंचे हैं. छोटेबड़े सभी पेड़ों पर मंजरी व कुछ पर आम के फल लगे हुए हैं. 5 साल पहले उन्होंने 15 पौधे कोटा और झालावाड़ में अपने परिचित किसानों को बेचे?थे. उन्होंने बताया कि हैरानी वाली बात है कि महज 1 फुट की ऊंचाई वाले एक पौधे पर भी बेर के आकार का आम का एक छोटा फल लगा?है. इन पेड़ों पर अब तक 12 सेंटीमीटर लंबे व 300 ग्राम वजन तक के फल आ चुके हैं. इस हकीकत पर शायद बहुत कम लोग विश्वास करेंगे, पर कोई भी उन के खेत पर जा कर इन आमों को देख सकता है.

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सर्दी के मौसम में आने वाले उन के इन आमों का आकार गोल हो जाता?है, पर उन का स्वाद वैसा ही होता?है जैसा सामान्य मौसम के दौरान आने वाले आमों का होता है. सुमन ने बताया कि इन पेड़ों पर आने वाली मंजरी व आमों को देखने के लिए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के कृषि वैज्ञानिक उन के खेत पर आए थे. ये वैज्ञानिक आम के इन फलों पर अनुसंधान करने के लिए 2 फल अपने साथ भी ले गए. आम के इन सदाबहार पेड़ों के संबंध में कृषि के जानकारों व विशेषज्ञों की मानें तो कभीकभी पेड़पौधों में कुदरती रूप से बदलाव आ जाता?है और उस दौरान प्रयोग करने वाले किसानों को इस का लाभ मिल जाता?है. सुमन को भी कुछ ऐसा ही लाभ मिला. उन के द्वारा विकसित की गई सदाबहार आम की नई किस्म इस श्रेणी में आती?है.

सुमन ने बताया कि उन्होंने अपने द्वारा विकसित की गई इस किस्म का मई 2012 में दिल्ली में हुए ‘पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण’ के एक कार्यक्रम में रजिस्टे्रशन कराया था. आम के विशेषज्ञों ने इसे सब से अलग बताया?था. फल अनुसंधान संस्थान लखनऊ ने आम की इस खास किस्म पर अनुसंधान करने की मंशा जाहिर की थी. सुमन ने बताया कि कुछ साल पहले वे जयपुर में उद्यान विभाग में किसानों के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में गए थे. उस समय उन की मुलाकात सीकर के प्रगतिशील किसान व राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित सुंडाराम से हुई थी. उन से वे भी काफी प्रभावित हुए थे. सुंडाराम के काम से उन्हें काफी प्रेरणा मिली थी. किशन सुमन से इस बारे में बात करने के लिए उन के पते ‘गांव गिरधरपुरा, तहसील लाडपुरा, कोटा, राजस्थान व मोबाइल नंबर 09829142509’ पर संपर्क किया जा सकता?है.                  

-मनोहर कुमार जोशी      

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हिमाकत

अवैध खाद की बेधड़क बिक्री

पटना : बिहार में अवैध खाद के कारोबार पर नकेल कसने में राज्य सरकार अभी तक नाकाम रही है. गौरतलब है कि राज्य में अरबों रुपए की गैरकानूनी खाद का कारोबार होता है, जिस से सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है. वहीं किसान पैसा खर्च करने के बाद भी उम्दा क्वालिटी की खाद से वंचित हैं. कृषि विभाग ने अवैध खाद के कारोबार को रोकने के लिए इस साल कई बार छापेमारी की, लेकिन उस के बाद भी इस पर लगाम नहीं लग सकी है. हर साल अक्तूबर से ले कर दिसंबर तक रबी की बोआई के समय सब से ज्यादा खाद की कालाबाजारी होती है. खाद कंपनियां व्यापारियों पर हर महीने खाद उठाने का दबाव बनाती हैं, जबकि किसान फसल के मौसम में ही खाद खरीदते हैं. व्यापारियों को आफ सीजन में या तो तय कीमत से कम पर खाद बेचनी होती है या पूंजी को ब्लाक करना पड़ता है. व्यापारी इस नुकसान की भरपाई सीजन में ज्यादा कीमत पर खाद बेच कर करते हैं. यूरिया के मामले में किसान कुछ कंपनियों की खादों पर ही भरोसा करते हैं, जबकि व्यापारियों को हर कंपनी की खाद लेनी होती है. इन्हीं सब वजहों से खाद की कालाबाजारी को बढ़ावा मिलता है.

बहरहाल, खेती की जान यानी खाद का यह काला कारोबार किसी भी लिहाज से मुनासिब नहीं कहा जा सकता. इस से सरकार के साथसाथ किसानों को भी काफी नुकसान होता?है. इस पर लगाम लगना जयरी?है. ठ्ठ

खलल

चीनी का उठान रुका

लखनऊ : मौजूदा गन्ना पेराई सीजन में तैयार होने वाली चीनी का उठान रुक गया?है. इस से सूबे की शुगर इंडस्ट्री में बेचैनी का आलम है. यह हालत चीनी पर एंट्री टैक्स और गन्ने पर परचेज टैक्स को ले कर स्थिति साफ न होने की वजह से पैदा हुई है.

कई सालों से राज्य सरकार चीनी मिलों को एंट्री टैक्स व परचेज टैक्स की छूट देती आ रही?है. इस साल अभी तक इस छूट का फैसला न हो पाने से थोक व्यापारियों ने शुगर मिलों की चीनी उठाने में कदम रोक रखे हैं. सूबे में चीनी बेचने पर 2 फीसदी एंट्री टैक्स लगता?है और गन्ने की खरीद पर 2 रुपए प्रति क्विंटल परचेज टैक्स चीनी की बिक्री पर जमा कराना होता?है. बीते सालों में छूट मिलने के कारण ये टैक्स जमा नहीं कराने पड़ते?थे. मगर इस बार छूट का फैसला नहीं हुआ है, लिहाजा वाणिज्य कर और चीनी विभाग चीनी की बिक्री का टैक्स वसूलने के लिए तैयार हैं.               

हालात

नए साल में मचेगा गन्ने पर जोरदार बवाल

मुरादाबाद : भारत के कृषि जगत में गन्ने की फसल एक ऐसा मसला है, जिस पर लगातार उठापटक व बवालटंटा चलता रहता?है. पिछले कुछ अरसे से गन्ना किसानों का?भुगतान ही फसाद की खास वजह बना हुआ है, जिस का अभी तक कोई हल नहीं निकला है. इस मामले में भारत के तमाम सूबों में उत्तर प्रदेश सूबा सब से आगे नजर आता है. नए साल यानी 2016 में भी यूपी में गन्ने के मसले पर हायतोबा मचना तय?है. नया पेराई सत्र शुरू हुए 2 महीने बीत चुके?हैं, मगर अभी तक सरकार गन्ने की कीमत ही तय नहीं कर पाई. इस दौरान सूबे की 110 चीनी मिलों ने 1192.59 लाख क्विंटल गन्ने की खरीदारी तो कर ली, मगर किसानों को कोई भुगतान नहीं हो पाया. मिलों द्वारा साफ तौर पर कह दिया गया है कि जब तक गन्ने के रेट का ऐलान नहीं हो जाता, तब तक भुगतान मुमकिन नहीं?है.

सूबे की कई चीनी मिलें अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में ही चालू हो गई थीं. अन्य मिलें भी नवंबर के दौरान चालू हो गईं. तमाम मिलों द्वारा गन्ने की खरीद जोरों से की जा रही है और चीनी बनाने का काम भी तेजी से चल रहा?है. अभी तक 125 लाख क्विंटल चीनी बन चुकी है, मगर गन्ना बेचने वाले किसान अभी खाली हाथ ही बैठे हैं. मिलों को गन्ने की सप्लाई करने वाले करीब 40 लाख किसानों को इस बात का अंदाजा नहीं है कि उन का गन्ना किस दाम में बिक रहा?है. चीनी लाबी किस हिसाब से किसानों को भुगतान करेगी, इस मुद्दे पर किसान संगठन बेचैन हैं.

इस मसले पर भाकियू सहित तमाम किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे?हैं, पर सरकार अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची?है. भुगतान के मुद्दों ने हमेशा किसानों को दुखी किया?है, लिहाजा उन का परेशान होना लाजिम है. कुछ मिल वाले पेमेंट करना भी चाह रहे?हैं तो भी नहीं कर पा रहे, क्योंकि सरकार ने अभी तक रेट ही तय नहीं किया. पिछले साल यानी 2014 में और 2013 में भी सरकार ने नवंबर में गन्ने के रेट का ऐलान कर दिया था, मगर फिलहाल साल के अंत तक रेट का ऐलान नहीं किया गया, लिहाजा किसानों की हालत समझी जा सकती है.            

मुद्दा

झारखंड से गायब होते गिद्ध और मगरमच्छ

रांची : मगरमच्छ और गिद्ध झारखंड से तेजी से खत्म होते जा रहे हैं और राज्य सरकार के पास उन्हें बचाने के लिए कोई योजना भी नहीं हैं. मगरमच्छों की तादाद को बढ़ाने के लिए सिकिदरी के पास बनाए गए मूटा प्रजनन केंद्र में ताला लटक गया है.

वहीं दूसरी ओर गिद्धों को बचाने के लिए गिद्ध प्रजनन केंद्र खोलने की कवायद सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकल सकी है. 40 लाख रुपए की इस योजना को केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं मिल सकी है. इस योजना के तहत एशियन प्रजाति के व्हाइट बैट वल्चर, स्नेलैंड विल वल्चर और लौंग विल वल्चर गिद्धों को बचाना है. झारखंड में इन तीनों प्रजातियों के 95 फीसदी गिद्ध खत्म हो चुके हैं और वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में केवल 250 गिद्ध ही बचे हैं. गौरतलब है कि झारखंड समेत समूचे भारत से इन प्रजातियों के गिद्ध लगभग खत्म हो चुके हैं. भारत, नेपाल, पाकिस्तान और बंगलादेश मिल कर गिद्धों की प्रजातियों को बचाने में लगे हुए हैं.

मगरमच्छों को बचाने के लिए 21 साल पहले 24 हेक्टेयर क्षेत्र में मगरमच्छ प्रजनन केंद्र खोला गया था. शुरुआती दिनों में केंद्र में 10 मगरमच्छ थे और फिलहाल उस में 3 मगरमच्छ ही बचे हैं. इन मगरमच्छों की देखरेख पर सालाना 10 लाख रुपए खर्च किए जाते हैं. वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक मूटा के नजदीक भैरवी नदी में करीब 20 मगरमच्छों के होने का पता चला है. भैरवी नदी को मूटा प्रजनन केंद्र में शामिल करने पर विचार चल रहा है. इस के साथ ही उड़ीसा के सिमरीपाल नेशनल पार्क से मगरमच्छ विशेषज्ञों को बुला कर मगरमच्छों की संख्या बढ़ाने की योजना पर काम शुरू करने की योजना बनाई गई है.   

मधुप सहाय और बीरेंद्र बरियार

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सवाल किसानों के

सवाल : अब ज्वार का आटा कहीं नजर नहीं आता. क्या इस की रोटियां सेहत के लिए अच्छी होती हैं?

-अग्निहोत्री, झांसी, उत्तर प्रदेश

जवाब : हम ज्वार की रोटी गेहूं की रोटी की जगह प्रयोग कर सकते?हैं. इस के कई फायदे हैं. यह कमजोरी दूर करती?है और पेट व गले की सूजन में फायदा पहुंचाती है. यह कब्ज की शिकायत को?भी दूर करती?है.

सवाल : अरहर की दाल को ले कर हमेशा बवाल मचता?है, क्या मटर की दाल उस की कमी पूरी कर सकती है?

-सुरेखा नौटियाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड

जवाब : अरहर की दाल की तुलना मटर की दाल से नहीं कर सकते,?क्योंकि दोनों में पोषक तत्त्व अलगअलग मात्रा में पाए जाते?हैं. वैसे मटर की दाल को रोजाना खाया जा सकता?है.

सवाल : मेरे खेत में काफी खूबसूरत गाजरें निकलती?हैं, मगर वे ज्यादा मीठी नहीं होतीं. मीठी गाजर उगाने के लिए क्या किया जा सकता?है?

-सीमा खन्ना, दरियागंज, नई दिल्ली

जवाब : आप अपने खेत की मिट्टी की जांच कराइए. उस में जीवांश पदार्थ की मात्रा बहुत कम होगी. अगर आप जैविक खेती करेंगी तो आप की गाजरों में जरूर मिठास आएगी.

खेत में 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिलाने से भी गाजरों की मिठास में इजाफा होगा.

सवाल : मैं नीबू की चाय का काफी सेवन करता हूं. इस के फायदे या नुकसान क्या हैं?

-राज कायस्थ, नोएडा, उत्तर प्रदेश

जवाब : नीबू की चाय पीने से शरीर में मौजूद फालतू फैट कम हो जाता?है. यह शरीर में विटामिन सी की मात्रा की कमी पूरी करती है. इस के इस्तेमाल से कैंसर का खतरा कम हो जाता?है. यह शरीर में रोग प्रतिरोधक कूवत को बढ़ाती है. नीबू की चाय एसीडिटी की समस्या को भी दूर करती?है. यह दिल की सेहत भी ठीक रखती है.

लेकिन इस का बहुत ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने से हमारे शरीर में मौजूद हड्डियों के कैल्शियम को नुकसान पहुंच सकता है.

सवाल : गाय या भैंस का बच्चा खत्म हो जाने पर अकसर वे दूध देने में परेशान करती हैं. इस के लिए क्या करना चाहिए?

-कुच्चन, इंदौर, मध्य प्रदेश

जवाब : किसान भाई, गाय या भैंस बच्चा मरने के बाद अकसर दूध देना बंद कर देती हैं, क्योंकि उन को बच्चा मरने का सदमा लगता?है, जो कुछ अरसे तक बरकरार रहता है.

इसी वजह से दूध निकलने में परेशानी होती?है. ऐसी हालत में गायभैंस को संतुलित पशुआहार के साथ हरा चारा देना चाहिए और दुग्धा डैन की 2-2 गोलियां सुबहशाम गुड़ के साथ खिलानी चाहिए. ऐसा करने से गाय या भैंस फिर से दूध देना शुरू कर देगी.                            

डा. नलिनी चंद्रा *, डा. हंसराज सिंह, डा. अनंत कुमार, डा. प्रमोद मडके

कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद

* लैक्चरर, एनडीयूएटी, फैजाबाद

तेलतिलहन से दूरी मिटाएं : खेती से ज्यादा कमाएं

आखिरकार कृषि मंत्रालय का नाम किसान कल्याण मंत्रालय हो गया, लेकिन नाम बदलने से किसानों की दिक्कतें दूर नहीं होंगी और उन के मसले नहीं सुलझेंगे, क्योंकि ज्यादातर गांव व किसान आज भी बहुत पीछे हैं. उद्योगों में बढ़त है, लेकिन खेती में गिरावट है. ओहदेदारों के गले तर हैं, लेकिन किसानों के हलक सूखे हैं. खेती की तरक्की पानीदार इलाकों तक सिमटी है. गेहूं, धान, गन्ना, मसालों, फलों व सब्जियों की पैदावार भरपूर है, लेकिन दलहन, तिलहन के मामले में देश आज भी पीछे है. तिलहनी फसलों की कमी से खाने के तेलों के लिए भारत को दूसरे मुल्कों के आगे हाथ पसारने पड़ते हैं यानी खेती की तरक्की आधीअधूरी है व किसान बदहाल हैं. खुशहाली बढ़ सकती है, बशर्ते किसान ज्यादा उपज देने वाली नई उम्दा किस्मों की सरसों, अलसी, मूंगफली व तिल वगैरह की फसलें उगाएं. उपज सीधे मंडी में आढ़तियों के हवाले न करें. गांव में अकेले या मिल कर तेल निकालने की मशीन लगाएं. खुद तेल निकालें, उसे पैक करें व बेचें तो खेती से ज्यादा कमा सकते हैं.

तेल की धार

मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, सरसों, अरंडी, अलसी, नारियल, बिनौले व चावल की भूसी का तेल खाद्य तेलों में आला है. इधर प्याज व दालों के बाद अब तेलों की कीमतें उठान पर हैं. आजकल सेहत के नाम पर जैतून का तेल अमीरों की पहली पसंद बन गया है, लेकिन महंगा होने से वह आम आदमी की पहुंच से दूर है. देश में करीब 200 लाख टन से ज्यादा खाद्य तेलों की सालाना खपत है, लेकिन तेल का उत्पादन कम होने की वजह से काफी तेल दूसरे मुल्कों से मंगाना पड़ता है. बीते 20 सालों से खाद्य तेलों का आयात हो रहा है. साथ ही तेलों की कमी होने से खाने के तेलों में मिलावट का धंधा बहुत तेजी से बढ़ रहा है.

कृषि मंत्रालय के मुताबिक साल 2013-14 में तिलहनी फसलों का रकबा 285 लाख हेक्टेयर था और प्रति हेक्टेयर औसत उपज 1153 किलोग्राम थी. यह जरूरत से कम है. लिहाजा इस में इजाफा होना जरूरी है. खाद्य मंत्रालय के मुताबिक तिलहन की पैदावार 2011-12 में 297.98 लाख क्विंटल, 2012-13 में 309.43 लाख क्विंटल व 2013-14 में 328.79 लाख क्विंटल थी. इस से देश में खाने के तेलों का उत्पादन 2011-12 में 89.57 लाख क्विंटल, 2012-13 में 92.19 लाख क्विंटल व 2013-14 में 100.80 लाख क्विंटल हुआ था, जबकि इस दौरान खाद्य तेलों की खपत क्रमश: 189, 198 व 210 लाख टन से ज्यादा थी.

कमी की वजहें

तेल निकालने के तरीके पुराने हैं. मसलन सरसों में 48 फीसदी तक तेल होता है, लेकिन कोल्हू से औसतन 30-35 फीसदी तेल ही निकल पाता है. नई बेहतर तकनीक वाली बड़ी तेल मिलें कम हैं. अब ज्यादातर तिलहन स्पैलरों से पेरी जाती है. इस में काफी तेल खली में  जाता है. ये खली विदेशी खरीद लेते हैं. उन के पास खली से भी तेल निकालने की तकनीक है. इसी वजह से बीते दिनों सोया खली का निर्यात 71 फीसदी बढ़ा है. सेंट्रल पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलाजी इंस्टीट्यूट, सीफैट, लुधियाना ने कम लागत में बेहतर ढंग से ज्यादा व उम्दा खाद्य तेल निकालने की कई तकनीकें निकाली हैं. ऐसी फायदेमंद जानकारी सीधे ज्यादा से ज्यादा किसानों व उद्यमियों तक कारगर ढंग से जल्द पहुंचाई जानी चाहिए, लेकिन सरकारी सुस्ती के कारण ऐसा नहीं हो पाता.

तेलजगत के मौजूदा हालात सुधारने जरूरी हैं. खाद्यतेलों का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है. इस की बजाय घरेलू बाजार में खाने के तेलों की कमी पूरी करने, कीमतों पर काबू पाने व आम जानता को वाजिब दाम पर खाने का तेल मुहैया कराने के लिए दूसरे देशों से खाने के तेलों का आयात किया जाता है. आयात शुल्क कम होने से खाद्यतेलों का आयात लगातार बढ़ रहा है. कुल खाद्यतेल आयात में आधे से यादा हिस्सा क्रूड पाम तेल का है. इस पर जिंसों के वायदा बाजारों में खूब सट्टेबाजी होती है. लिहाजा चंद धन्ना सेठ मौज मार रहे हैं और आम जनता का तेल निकल रहा है. सरकार को ऐसे गोरखधंधों पर सख्ती से नकेल कसनी चाहिए. देश में 300 लाख टन कूवत की 350 तेल मिलें हैं. इन मिलों व तेलों पर लगाम लगाने के लिए वनस्पति तेल उत्पाद, उत्पादन व उपभोग विनियमन कानून 2011 है, लेकिन तेल के चिकने कारोबार में बहुत फिसलन है. सोल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन व सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आदि कारखानेदारों के संगठन तेल उद्योग को बचाने व बढ़ाने की मांगें सरकार से करते रहते हैं, लेकिन किसान व उपभोक्ता किस से गुहार करें?

खाद्यतेलों की कीमतें आसमान छू रही हैं. सरसों का तेल 140 रुपए, सोया व सूरजमुखी के रिफाइंड तेल 150 रुपए व जैतून का तेल 500 से 1500 रुपए प्रति लीटर तक बिक रहा है, लेकिन तेल के इस खेल में असल तेल तो आम जनता का निकल रहा है. लिहाजा खाने के तेल के जमाखोरों पर सख्ती से लगाम कसना लाजिम है.

सवालिया निशान

साल 2013-14 के दौरान आयात किए गए खाद्यतेलों में 50.40 फीसदी कच्चा पाम आयल, 24.19 फीसदी पामोलीन आयल, 13.68 फीसदी सूरजमुखी का तेल, 10.66 फीसदी सोयाबीन का तेल व 1.07 फीसदी अन्य किस्म के तेल थे. खाद्य मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक प्रति आदमी खाने के तेलों की सालाना खपत का औसत दुनिया में 27 किलोग्राम है, जबकि भारत में वह सिर्फ 16 किलोग्राम है, लेकिन आगे इस में लगातार इजाफा होगा. इस मुद्दे पर ध्यान दे कर यदि कारगर सुधार किए जाएं तो दूसरे मुल्कों से खाने का तेल मंगाने की बजाय उलटे निर्यात किया जा सकता है. उस हालत में किसानों को उन की उपज के दाम ज्यादा मिलेंगे, लेकिन बरसों से देशी तेलों की लगातार अनदेखी हो रही है, ताकि आयात जारी रहे. बेशक आयात बहुत सी चीजों का हो रहा है, लेकिन खाद्य तेल तो हमारे देश में रसोईघरों की रीढ़ हैं. तेलों का आयात हमारी कमजोरी जाहिर करता है.

मिलावट की मार व घटिया जांच सिस्टम होने से मैगी की पोल 35 सालों बाद खुली. जिन चीजों पर अमीर मुल्कों में बनाने, बेचने पर सख्त पाबंदी है, वे भारत में बिकती हैं. ऐसे में सेहत पर खतरा बढ़ता है. यह देखना जरूरी है कि बाहरी व खुले तेल के नाम पर क्या बिक रहा है और लोग क्या खा रहे हैं? 23 जून, 2015 को भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण एफएसएसएआई ने फरमान जारी किया था कि दूध, बोतलबंद पानी व खाने के तेलों की निगरानी बढ़ाने पर खास जोर दिया जाए, लेकिन हुआ कुछ नहीं. तेल का आयात बढ़ने से नुकसान तिलहन उगाने वाले किसानों का होगा. पिछली सरकार ने 40 लाख क्विंटल चीनी का आयात किया था. इस का खमियाजा गन्ना किसान व भारतीय चीनी उद्योग दोनों आज तक भोग रहे हैं. यानी बाहरी तेल का सहारा लेना अपनी खेती व किसानों की बरबादी के बीज बोना है.

अनदेखी क्यों?

भारतीय खाने में सब से ज्यादा सरसों का तेल इस्तेमाल होता है, लेकिन उसे बढ़ावा देने के लिए कोई बोर्ड नहीं है, जबकि चाय, काफी, मसाले, काजू, अंगूर, ऊन, रेशम, मीट व पोल्ट्री आदि को बढ़ावा देने के लिए बरसों से अलगअलग बोर्ड काम कर रहे हैं. यह तिलहन उत्पादकों व तेलउद्योग की सरासर अनदेखी है. केंद्र सरकार ने तिलहन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मिशन चला रखा है, लेकिन नतीजे खास नहीं हैं. साल 2012-13 में प्रति हेक्टेयर तिलहन की औसत उपज 1169 किलोग्राम थी, जो साल 2013-14 में घट कर 1166 किलोग्राम रह गई. देश में सरसोंअलसी की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 900-1000 किलोग्राम व गुजरात में सब से ज्यादा 1723 किलोग्राम है, लेकिन इंग्लैंड में यह 3588 किलोग्राम है. गुजरात की सरदार कुशीनगर दांतेवाड़ा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने प्रति हेक्टेयर 3000 किलोग्राम उपज देने वाली सरसों की हाईब्रिड किस्म जीएम 3 निकाली थी. उस के बीज किसानों को मुहैया कराए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसी बातों पर गौर करने की जरूरत नहीं समझी जाती है. इन्हीं वजहों से देश में तेलों का उत्पादन कम होता है.

खाद्यतेलों में पेट्रो आयात जैसी मजबूरी नहीं है, फिर भी विदेश्ी तेल कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि सरकारी नीतियां बदलें और खाद्यतेलों का उत्पादन बढ़ाने की पुरजोर कोशिशें हों, ताकि अपना देश खाद्यान्न की तरह खाद्यतेलों में भी अपने पैरों पर खड़ा हो सके.

उपाय हैं

भारत दुनिया भर में आज एक बड़ा बाजार बन चुका है. इसीलिए बाहरी कंपनियां सैटिंग कर के अपना माल भारत में खपाने की फिराक में लगी रहती हैं. भारत में घटती तिलहन की खेती व तेलउद्योग की कमजोरी विदेशी कंपनियों की साजिश लगती है. ऐसे में इस मसले का तोड़ जल्द निकालने के कारगर उपाय करने बेहद जरूरी हैं. तिलहन की बंपर पैदावार लेने व कम पानी, कम बिजली से पूरा तेल निकालने में मलेशिया, इंडोनेशिया व इटली आगे हैं. उन की तकनीकें अपनाना जरूरी है. आज इन मुल्कों के खाद्यतेलों का डंका बज रहा है. हमारी मिट्टी उपजाऊ है, आबोहवा माकूल है, किसान मेहनती हैं व तेलमिलों में कूवत मौजूद है, लिहाजा खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है. सुधार की गुंजाइश है. इस के लिए जागरूकता व इच्छाशक्ति चाहिए. देश की आधी से ज्यादा आबादी खेती में लगी है, लेकिन तिलहनी फसलों की पैदावार घट रही है. खाद्यतेलों का आयात बढ़ना खतरे की घंटी है. यदि हालात न बदले तो आगे तेलों की तसवीर और बिगड़ सकती है. लिहाजा किसानों, तेल उद्योग व सरकार का चेतना जरूरी है, ताकि तेलों का आयात घटे व तिलहनों की पैदावार सिर्फ आंकड़ों में नहीं, असल में बढ़े.

शर्मनाक हार के बीच इन दोनों ने दर्ज किए ये खास आंकड़े

चौथे वनडे में विराट और धवन के बाद बेशक टीम इंडिया के बाकी बल्लेबाजों ने जीते जिताए मैच को हाथ से निकल जाने दिया लेकिन इस मैच में भारतीय टीम व फैंस के लिए कुछ अच्छी खबरें भी निकलकर सामने आईं. इसका श्रेय दिल्ली के दो धुरंधर शतकवीरों विराट कोहली और शिखर धवन को जाता है जिन्होंने कई खास रिकॉर्ड दर्ज कराए.

72 पारियों में शिखर धवन सबसे तेज 3000 वनडे रन बनाने वाले भारतीय बल्लेबाज बन गए. उन्होंने कोहली (75 पारियों) का रिकॉर्ड तोड़ा. अमला (57) और रिचर्डसन (69) ने उनसे कम पारियों में यह मुकाम हासिल किया.

162 पारियों में विराट कोहली ने अपना 25वां वनडे शतक बनाकर नया रिकॉर्ड कायम किया. सबसे कम पारियों में यह उपलब्धि हासिल करने का रिकॉर्ड सचिन के नाम था, जिन्होंने 234 पारियां ली थीं.

15वें सैकड़े के साथ कोहली ने लक्ष्य का पीछा करते हुए सबसे ज्यादा शतक बनाने के रिकॉर्ड के मामले में सचिन तेंदुलकर की बराबरी कर ली है.

2012 के बाद ये पहला मौका रहा जब भारत ने लगातार चार वनडे मैचों में दूसरे विकेट के लिए शतकीय साझेदारी की.

4 लगातार मैचों में कोहली ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अर्धशतक या उससे बड़ी पारी खेलने वाले पहले बल्लेबाज हैं. गावस्कर 1985-86 में व‌र्ल्ड सीरीज कप में 59, 92, 77 व 72 रनों की पारी खेल चुके हैं.

पशुओं की खुराक में खनिज पदार्थ की अहमियत

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां काफी तादाद में लोग कृषि पर ही निर्भर हैं. खेती के साथसाथ किसानों के लिए कई प्रकार के पशु बेहद कारगर और जरूरी होते हैं. पशुओं के बिना खेती के काम अधूरे रहते हैं. किसानों के आहार का एक बड़ा भाग पशुओं से ही मिलता है. मगर पशुओं के आहार का खयाल रखना भी जरूरी है. उन के आहार में खनिज पदार्थ होना बहुत फायदेमंद होता है.

गांवों और शहरों में रहने वाले तमाम लोग मांस, अंडा, दूध, घी, पनीर और दही वगैरह के लिए पशुओं के ही सहारे रहते हैं. पशुओं के जीवन की रक्षा करना, उन को स्वस्थ रखना, उन से भरपूर काम कराना और उन से ज्यादा उत्पाद हासिल करना ही उन्हें पालने का मकसद होता है. पशुओं को सेहतमंद व सहीसलामत रखने के लिए उन को भरपूर खनिजयुक्त आहार देना जरूरी होता है. जिस प्रकार इनसानों के लिए खनिज वाले आहार फायदेमंद होते हैं, ठीक उसी तरह पशुओं के लिए भी खनिज वाले आहार बेहद फायदेमंद होते हैं. खनिज पदार्थ शरीर के गठन का मूल आधार हैं, चाहे वह पशु का शरीर हो या इनसान का. पशुओं के शरीर को मजबूत बनाने के लिए उन के चारे में खनिज पदार्थ मिलाना जरूरी होता है. वैसे तमाम पशुओं का मुख्य आहार घास है और घास में खनिज पदार्थ कुदरती तौर पर पाया जाता है, लेकिन यह खनिज पदार्थ शरीर की जरूरतों के लिहाज से कम होता है. इसीलिए पशुओं के आहार में अलग से खनिज पदार्थ मिलाना जरूरी होता है.

पशुओं के शरीर के गठन के लिए उन के आहार में कई किस्म के खनिज पदार्थों का होना बेहद जरूरी है. पशुओं के शरीर की अंदरूनी टूटफूट खनिज पदार्थ से सही हो जाती है. खनिज पदार्थों के इस्तेमाल से दूध देने वाले पशुओं के दूध में इजाफा होता है. कई खनिज पदार्थ पशुओं की पाचन कूवत भी बढ़ाते हैं और तमाम रोगों में भी कारगर साबित होते हैं. घास से प्राप्त होने वाले खनिज पदार्थ दूध और अंडा उत्पादन के लिए कारगर नहीं होते. घास में पाए जाने वाले खनिज पदार्थ बदलते रहते हैं. पशुओं के लिए फायदेमंद खनिज पदार्थ 2 तरह के होते हैं यानी गुरु खनिज और लघु खनिज. गुरु खनिज पदार्थों में कैल्शियम, मैगनीशियम, फासफोरस, सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड और सल्फर वगैरह शामिल हैं, जबकि लघु खनिज पदार्थों में आयरन, जिंक, मैगनीज, कापर, आयोडीन और कोबाल्ट वगैरह शामिल हैं.

किस पशु में कौन से खनिज पदार्थ की कमी है, यह जानना जरूरी होता है. इस जानकारी के बगैर सही खनिज पदार्थ नहीं दिया जा सकता. इस के लिए पशु के खून का टेस्ट किया जाता है और तभी पता चलता है कि किस पशु में किस खनिज पदार्थ की कमी है और उस की कितनी मात्रा उसे देनी है. खनिज पदार्थ की कमी का पता लगते ही पशुओं को जरूरी खनिज पदार्थ मुहैया करा दिया जाता है. पशुपालक किसानों को इस बात की जानकारी रखना जरूरी है कि उस के किस पशु को किस खनिज पदार्थ की जरूरत है. इस के अलावा पशुपालक किसानों को इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि अपने पशुओं को वे जो चारा या घास खिला रहे हैं उस में कौन सा खनिज पदार्थ कितनी मात्रा में मौजूद है.

किसानों को चाहिए कि वे अपने पशुओं की देखभाल ढंग से करें और उन के खानपान व इलाज में किसी किस्म की कमी न आने दें. तभी उन्हें अपने पशुओं से पूरा फायदा मिल सकेगा.

एशिया कप, वर्ल्ड कप से पहले श्रीलंका से भिड़ेगी टीम इंडिया

भारत एशिया कप और विश्व टी20 चैम्पियनशिप से पहले नौ फरवरी से तीन टी20 मैचों की श्रृंखला के लिए श्रीलंका की मेजबानी करेगा.

टूर्नामेंट की शुरुआत पुणे में टी20 मैच के साथ होगी जिसके बाद दिल्ली में 12 फरवरी को दूसरा मैच खेला जाएगा. तीसरा और अंतिम मैच 14 फरवरी को विशाखापत्तनम में होगा.

वर्ष 2014 में विश्व टी20 फाइनल के बाद श्रीलंका और भारत की टीमें पहली बार क्रिकेट के इस सबसे छोटे प्रारूप में आमने सामने होंगी. श्रीलंका ने 2014 में भारत को हराकर विश्व टी20 खिताब जीता था.

नवंबर 2015 में टेस्ट स्थल का दर्जा हासिल करने वाला पुणे का महाराष्ट्र क्रिकेट संघ स्टेडियम अपने तीसरे अंतरराष्ट्रीय और दूसरे टी20 मैच की मेजबानी करेगा. टीमें इसके बाद 24 फरवरी से बांग्लादेश में एशिया कप में हिस्सा लेंगी जबकि विश्व टी20 नौ मार्च से शुरू होगा.

नीलगाय खेती और किसानों की दुश्मन

जालिम नीलगायों के आतंक से परेशान उत्तर बिहार के कई इलाकों में किसान हजारों एकड़ खेतों में खेती नहीं कर पा रहे हैं. उन की मेहनत और पूंजी को एक झटके में नीलगायें चर जाती हैं और किसानों के सामने सिर पीटने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है. बिहार में हर साल नीलगायें किसानों को करीब 600 करोड़ रुपए की चपत लगा देती हैं. उन के खौफ की वजह से पिछले साल करीब 25 हजार हेक्टेयर खेत खाली रह गए. राज्य के पटना, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, औरंगाबाद, सिवान, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सारण, बेगूसराय और मधुबनी में नीलगायें और जंगली सूअर करीब 21 हजार टन अनाज गटक जाते हैं, जिस से किसानों को हर साल 600 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

उत्तर बिहार के गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों में नीलगायों के आतंक से किसान परेशान और खेती तबाह है. खेतों में झुंड की झुंड नीलगायें घूमती रहती हैं और कई एकड़ में लगी फसलों को चट कर जाती हैं. मोतिहारी जिले के पिपरा गांव के किसान अजय राय कहते हैं कि उन्होंने अरहर की खेती के लिए कर्ज ले कर बीज, खाद से ले कर सिंचाई तक का इंतजाम किया था, लेकिन उन की सारी फसल को नीलगायें चट कर गईं. अब महाजन का कर्ज चुकान बहुत बड़ी समस्या बन गई है. मोतिहारी के तुरकौलिया, पीपरा, कोटवा, हरसिद्धि सहित कई प्रखंडों में नीलगायों के उत्पात ने खेती और किसानों को तबाह कर दिया है. नीलगायों के आतंक की वजह से गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों की करीब 70 हजार एकड़ जमीन पर किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. लहलहाती फसलों को नीलगायें पलक झपकते ही खा जाती हैं और किसान अपनी मेहनत और पूंजी के लुटने का तमाशा देखते रह जाते हैं.

फतेहपुर दियारा के किसान विजेंद्र की आंखों से इस बात को बताते हुए आंसू छलक आते हैं कि वे चाह कर भी अपनी जमीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं. महीनों से कई एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है. उन के खेतों में मक्का, अरहर और रबी फसलों की काफी अच्छी खेती होती थी. वे समझ नहीं पा रहे कि आखिर क्या करें? फसलों को बचाने के लिए किसानों ने खेतों में जगहजगह आदमियों के पुतले लगा रखे हैं. नीलगायों के झुंड को देख कर तमाम किसान पटाखे फोड़ते हैं. कई किसान थाली पीटते हैं या ढोल बजाते हैं. किसान रामेश्वर यादव बताते हैं कि पहले तो पटाखों की आवाज से डर कर नीलगायें भाग जाती थीं, लेकिन अब उन पर पटाखों के धमाकों का कोई असर नहीं होता है. फसलों को बचाने के लिए किसानों को हर महीने करीब 2 हजार रुपए पटाखों पर खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन अब पटाखे भी फायदेमंद साबित नहीं  हो रहे हैं.

नीलगायें अगर किसी किसान की फसल को बरबाद कर देती हैं, तो सरकार की ओर से मुआवजा मिलता है. फसल का नुकसान होने पर प्रति हेक्टेयर 10 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है. कृषि मंत्री विजय चौधरी बताते हैं कि जिन इलाकों में नीलगायों का ज्यादा आतंक है, उन इलाकों के किसानों को इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वे जेट्रोफा (डीजल का पौधा) की खेती करें. उसे नीलगायों से कोई खतरा नहीं है. किसानों को जेट्रोफा का पौधा भी मुहैया कराया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर जेट्रोफा की खेती करने में किसानों की कोई दिलचस्पी नहीं है. ज्यादातर किसान मुआवजा बांटने को भी स्थायी समाधान नहीं मानते हैं. किसान मनीराम कहते हैं कि उन्हें मुआवजा नहीं, बल्कि नीलगायों से हमेशा के लिए नजात दिलाई जाए. नीलगायों के बढ़ते आतंक के बीच करेले पर नीम वाली हालत यह है कि नीलगायों की आबादी काफी तेजी से बढ़ती है. 1 मादा नीलगाय 1 साल में 4 बच्चों को जन्म देती है और उस के बच्चे भी 1 साल के अंदर ही बच्चे पैदा करने लायक हो जाते हैं. इस वजह से नीलगायों की तादाद में तेजी से इजाफा होता जा रहा है.

वेटनरी डाक्टर कौशल किशोर कहते हैं कि साल 2003-2004 में नीलगायों को बधिया करने का काम शुरू किया गया था, लेकिन वह योजना काफी कम समय में ही बंद हो गई. बगैर किसी ठोस प्लानिंग के नौसिखए और अनाड़ी लोगों को इस आपरेशन के काम में लगा दिया गया था, जिस से नतीज शून्य रहा. वन प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत नीलगायों को संरक्षित जंगली जानवर का दर्जा मिला हुआ है, जिस की वजह से किसान नीलगायों को मार भी नहीं सकते हैं. नीलगायों को मारने वाले को जेल और जुर्माने की सजा देने का इंतजाम  है, जिस की वजह से किसान नीलगायों से परेशान हो कर खेती नहीं कर पाने की सजा भुगतने के लिए मजबूर हैं.

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