नकली रसायनों की चपेट में खेती

भारत का 20 से 30 फीसदी अनाज रसायनमय

नई दिल्ली : खतरनाक नकली रसायनों के मसले को ले कर देश में अकसर होहल्ला मचता है, मगर कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आते. खेती उसी ढर्रे पर लगातार चलती रहती है और लोग जहरीला अनाज खाने से बच नहीं पाते.

हकीकत तो यही है कि सरकार के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद देश की कृषि व्यवस्था सुधरती नजर नहीं आ रही?है. भारतीय खेती पहले से ही ढेरों मुसीबतों से घिरी हुई है, ऊपर से नकली बीजों व खतरनाक रसायनों ने और दिक्कतें पैदा कर दी?हैं. इन सब के साथसाथ जलवायु परिवर्तन का झमेला अपनी जगह पर अलग से बरकरार है.

सरकारी और गैरसरकारी कोशिशें तो बहुत की जाती?हैं, लेकिन असलियत में नकली रसायन और नकली बीज बदस्तूर खेतों पर अपना कहर बरपा रहे?हैं. पिछले दिनों किए गए अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि देश के अनाज उत्पादन का 20 से 30 फीसदी हिस्सा रसायनमय और तमाम बीमारियां पैदा करने वाला है. इस बात को हलके में नहीं लिया जा सकता. मामला खासा गंभीर और सोचविचार वाला है. अध्ययनों के मुताबिक भारतीय किसान हर साल करीब 45 हजार करोड़ रुपए का ऐसा अनाज पैदा कर रहे?हैं, जोकि खराब बीज का नतीजा है और नकली रसायन के असर वाला?है. इतनी ज्यादा मात्रा में नकली रसायनमय अनाज आखिरकार क्या गुल खिलाएगा, यह बहुत गंभीरतापूर्वक सोचने वाली बात?है. कृषिजगत के जानकार रामकृष्ण मुधोलकर ने इस बारे में कहा कि देश में खेती की सेहत बेहतर की जा सकती है, बशर्ते किसानों को साधन मुहैया कराने के साथसाथ तालीम दे कर माहिर बनाया जाए. अगर किसान प्रशिक्षित होंगे तो वे हर काम सोचसमझ कर ही करेंगे. मुधोलकर ने कहा कि किसानों को जागरूक बनाने के साथसाथ इस मामले में आम जनता की भागीदारी भी माने रखती?है. देश में तमाम कंपनियां नकली बीज और रसायन धड़ल्ले से बेच रही हैं. इस मामले में आम जनता भी किसानों को जागरूक करने का काम कर सकती है.

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