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कनेरिया बोले, BCCI से मदद की इच्छा नहीं जताई

पाकिस्तान के प्रतिबंधित स्पिनर दानिश कनेरिया ने इन मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया कि वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के समक्ष अपना मामला उठाने के लिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) की मदद लेना चाहते थे.

कनेरिया ने कहा, ‘यह रिपोर्ट भ्रामक है. मैंने भारतीय रिपोर्टर से बात की थी लेकिन मेरे बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया और अपने मामले की पुन: समीक्षा के लिए मेरी बीसीसीआई से मदद मांगने की कोई इच्छा नहीं थी.’

कनेरिया ने कहा कि वह हताश है और पाकिस्तान क्रिकेट में पीडि़त महसूस कर रहे हैं लेकिन उनका किसी भारतीय मंच पर जाने का कोई इरादा नहीं है. इस स्पिनर ने कहा कि हां मैं हताश हूं और मुझे पीड़ा पहुंची है लेकिन अब भी मुझे गर्व है कि मैं पाकिस्तानी हूं. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि मुझे आजीवन प्रतिबंधित करने के लिए साक्ष्य क्या हैं और आखिर क्यों पाकिस्तान बोर्ड ने मेरे मामले को एकतरफ कर दिया है.

उन्होंने कहा कि चाहे कुछ भी हो लेकिन मैं मदद के लिए किसी और देश से संपर्क क्यों करूंगा. मैं मौका देने के लिए सिर्फ दोबारा पीसीबी से अपील करूंगा.

 

स्वैटर को ऐसे करें डैकोरेट, कि सब करें तारीफ

सर्दी शुरू होते ही अपने प्रियजनों के लिए स्वैटर बुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता? हाथ से स्वैटर बुनने में समय और परिश्रम दोनों खर्च होते हैं, इसलिए जब भी स्वैटर बुनें उस में वैराइटी रखें. चंद टिप्स पर गौर कर डैकोरेशन द्वारा आप डिजाइनर स्वैटर तैयार कर सकती हैं:

सजाएं कढ़ाई से स्वैटर

– जब भी स्वैटर पर कढ़ाई करें निम्न स्टिचों का प्रयोग करें- क्रौस स्टिच, बुलिअन स्टिच, स्टेम स्टिच, लेजीडेजी और साटन स्टिच. फ्रैंच नौट से कढ़ाई कर के भी स्वैटर की सुंदरता बढ़ा सकती हैं.

– स्वैटर पर बेबी वूल या अन्य ऐंकर कौटन के धागे से कढ़ाई कर सकती हैं.

– स्वैटर पर जब भी कढ़ाई करें हलके हाथों से करें. हाथ टाइट रखने से कढ़ाई अच्छी नहीं आएगी.

– कढ़ाई करते समय स्वैटर के नीचे की तरफ कागज सा पेपर फोम का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से जो भी कढ़ाई करेंगी उस में सफाई रहेगी.

– जब कढ़ाई पूरी हो जाए तो धागे को स्वैटर के पीछे अच्छी तरह गांठ लगा कर बंद कर दें. फालतू धागे को सावधानी से कैंची से काट दें.

मोती, बीड्स, नग द्वारा डैकोरेट करें

मोती, बीड्स लगाने से साधारण स्वैटर भी डिजाइनर बन जाता है. बस थोड़ी सावधानी बरतें. ऐसे स्वैटर को भूल कर भी मशीन में न धोएं. हलके हाथों से धोने पर स्वैटर सालोंसाल चलेगा.

अपनाएं निम्न सावधानियां:

– महीन सूई और पक्के रंग के धागे का ही इस्तेमाल करें.

– नग लगाते समय स्वैटर के रंग का धागा इस्तेमाल करें. अगर दूसरे रंग का धागा लगाएंगी तो स्वैटर की खूबसूरती खराब हो जाएगी.

– स्वैटर पर नग, बीड्स, मोती लगाते समय ध्यान रखें कि हर मोती या नग को लगाते समय स्वैटर के अंदर की तरफ से धागों से अलगअलग बांध दें ताकि एक मोती खुलने से बाकी सारे न खुलें.

– नग, मोती, सितारे, सीपियां, बीड्स कुछ भी लगा कर स्वैटर को आकर्षक रूप दें, लेकिन इस स्वैटर को भूल कर भी प्रैस न करें. हलके हाथों से धो कर छाया में सुखाएं. स्वैटर हमेशा नया दिखेगा.

ग्राफ की डिजाइन डाल कर डैकोरेट करें

ग्राफ की सहायता से तरहतरह की डिजाइनें स्वैटर पर बना कर वैराइटी ला सकती हैं. लेकिन निम्न बातों का जरूर ध्यान रखें:

– स्वैटर पर जिन रंगों का ऊन लगा हो ग्राफ की डिजाइन में वहांवहां उन्हीं रंगों का प्रयोग करें. इस से स्वैटर बनाते समय आसानी रहती है.

– ग्राफ पर रंगों को दर्शाने के लिए संकेत चिह्न या रंग के पहले अक्षर का इस्तेमाल करें. इस से ज्यादा रंगों का स्वैटर बनाने में असुविधा नहीं होती.

– यदि कोई मनपसंद डिजाइन बनाना चाहती हैं तो पैंसिल से ग्राफ पर डिजाइन बना लें व उस के अंदर अपनी इच्छा से रंग भरें या रंगों के मुख्य अक्षरों का इस्तेमाल करें.

– डिजाइन हमेशा ग्राफ पेपर पर ही बनाएं.

– ग्राफ पेपर संभाल कर रखें ताकि दोबारा जरूरत पड़ने पर आसानी से काम में लाया जा सके.

– ग्राफ देख कर डिजाइन बनाना आसान हो जाता है, लेकिन जो भी डिजाइन या आकृति बनाएं उस की कलर स्कीम तैयार कर के ही स्वैटर पर बनाएं वरना बारबार खोलने पर स्वैटर में सफाई नहीं आएगी और शेप बिगड़ सकती है.

क्रोशिए के द्वारा डैकोरेट करें

– प्लेन स्वैटर बना कर बाजू, नीचे की तरफ क्रोशिए से पाइनऐप्पल की डिजाइन बना कर नया लुक दें.

– स्वैटर को प्लेन बना कर आगे के हिस्से में क्रोशिए से कलरफुल फ्लौवर और पत्तियां बना कर टांक दें.

– छोटेछोटे मोटिफ या लेस बना कर बाजू, नीचे के हिस्से में लगा कर डैकोरेट कर सकती हैं.

– आगेपीछे का भाग स्टाकिंग स्टिच से बना कर बाजू क्रोशिया से बना लें. गले पर बीडिंग कर दें. पार्टी वेयर स्वैटर तैयार हो जाएगा.

इस के अलावा ऐसे भी स्वैटर को न्यू लुक दे सकती हैं:

– बच्चों के स्वैटर में तरहतरह के मोटिफ, जानवरों के पैच बना कर, कार्टून करैक्टर, छोटा भीम, शिनचैन की आकृति बना कर टांक दें.

– टीनएज के लिए स्वैटर में बौर्डर की जगह नैट  की डिजाइन, केबल या क्रोशिए की लेस लगा कर बनाएं. इस के अलावा बाजार में डैकोरेशन के लिए तरहतरह की डिजाइनों की लटकनें, बटन आदि भी उपलब्ध हैं.

– स्वैटर को ऐसे डैकोरेट करें कि उस की सुंदरता बढ़े. बहुत ज्यादा डैकोरेशन उस की सुंदरता कम भी कर सकती है.

भारत में 2016 में बिकेंगे 25 करोड़ फोन, 5 करोड़ 4जी

भारत और चीन की गिनती दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल हैंडसेट्स बाज़ार में होती है. खासतौर से भारत में तो मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगातार तेज़ी से बढ़ रही है. अब एक रिसर्च रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भारत का मोबाइल फोन बाज़ार इस साल 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 25 करोड़ हैंडसेट्स पर पहुंच जाएगा. इसके साथ ही इस रिसर्च रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इनमें ज़्यादा संख्या उन हैंडसेट्स की होगी, जिनकी कीमत 5 हज़ार रुपये से कम है.

साइबरमीडिया रिसर्च (सीएमआर) की भारतीय मोबाइल हैंडसेट बाजार रिपोर्ट में कहा गया है, मौजूदा परिदृश्य की समीक्षा तथा ऐतिहासिक रुख के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016 में भारत का मोबाइल हैंडसेट बाजार पिछले साल की तुलना में 4 फीसदी बढ़ जाएगा औऱ 25 करोड़ इकाई का रहेगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्मार्टफोन खंड 2015 औसत 32 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 9.5 करोड़ इकाई का रहा. एक साल पहले यह 7.7 करोड़ इकाई था. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में 4जी हैंडसेट की बिक्री पांच करोड़ इकाई रहने की उम्मीद है.

4जी हैंडसेट्स की बिक्री बढ़ने औऱ 4जी मोबाइल सर्विसेज़ का विस्तार होने से भारत का डिजिटल संसार बदल जाएगा. इंटरनेट की स्पीड इतनी तेज़ हो जाएगी कि बॉलीवुड की लंबी-लंबी फिल्में मिनटों में डाउनलोड हो जाएंगी. तब सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि स्मार्टफोन पर बैंकिंग, ई-कॉमर्स और शेयर-कमोडिटी ट्रेडिंग भी काफी आसान हो जाएगी. अगर 4जी हैंडसेट्स की कीमत कम होगी, तो अधिकांश भारतीय भी इस स्मार्टफोन क्रांति से जुड़कर फायदा उठा सकेंगे.

बड़ी औरतों के शिकार कम उम्र के लड़के

योगिता 48 साल की एक बेहद खूबसूरत औरत है. उस का चेहरा देख कर कोई भी उस की असली उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता. अपने पति हरीश की अचानक हुई मौत के बाद से योगिता उस का पूरा कारोबार खुद ही संभाल रही है. कारोबार में योगिता को कोई बेवकूफ नहीं बना सकता. लेकिन उस में एक खास कमजोरी है, कम उम्र के लड़कों से दोस्ती करना. अपने स्टाफ में योगिता ज्यादातर 20 से 25 साल की उम्र के स्मार्ट व खूबसूरत कुंआरों को ही रखती है. योगिता इस बारे में कहती है कि ऐसे लड़के जोशीले होते हैं. वे ज्यादा मेहनत से काम करते हैं और ईमानदार भी होते हैं. लेकिन खुद उस के स्टाफ के ही लोग दबी जबान में कुछ और ही कहते हैं. इन लोगों का मानना है कि योगिता आजाद तबीयत की औरत है और उसे अलगअलग मर्दों के साथ बिस्तरबाजी करने की आदत है.

इसी तरह नीलम एक मध्यवर्गीय औरत है. उस की उम्र 36 साल है और उस की शादी को तकरीबन 10 साल हो चुके हैं. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी है, लेकिन अपनी भोली शक्लसूरत के चलते वह अभी भी काफी जवान व खूबसूरत नजर आती है. नीलम के पति रमेश की पोस्टिंग दूसरे शहर में है, जहां से वह महीने में 1-2 बार ही घर आ पाता है. नीलम और दोनों बच्चे चूंकि घर में अकेले रहते थे, इसलिए रमेश ने एक 19 साल के लड़के सुनील को एक कमरा किराए पर दे दिया. वह स्नातक की पढ़ाई करने के लिए गांव से शहर आया था. पति की गैरहाजिरी में नीलम अपना ज्यादातर समय सुनील के साथ ही गुजारने लगी. एक रात नीलम की जिस्मानी प्यास इस हद तक बढ़ गई कि उस ने बच्चों के सो जाने के बाद सुनील को अपने कमरे में ही बुला लिया.

सुनील कुछ देर तक तो झिझकता रहा, लेकिन नीलम के मस्त हावभाव आखिरकार उसे पिघलाने में कामयाब हो ही गए. फिर नीलम ने अपना बदन सुनील को सौंप दिया. इस के बाद तो वे दोनों आएदिन मौका निकाल कर एकदूसरे के साथ सोने लगे. काफी दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा, पर सुनील की असावधानी से उन का भांड़ा फूट गया. फिर तो सुनील को काफी बेइज्जत हो कर उस मकान से निकलना पड़ा. दिनेश ने अपने घर में काम करने के लिए एक 18 साल का पहाड़ी नौकर रामू रखा हुआ था. लेकिन उस के काम से दिनेश खुश नहीं थे. रामू न केवल काम से जी चुराता था, बल्कि दिनेश ने 2-3 बार उसे अपने घर की छोटीमोटी चीजें चुराते हुए भी पकड़ा था. दिनेश उसे निकालने की सोच रहे थे, लेकिन उस की पत्नी हेमलता ने रोक दिया. आखिरकार एक दिन दफ्तर में अचानक तबीयत खराब होने के चलते दिनेश दोपहर में ही घर आ गया. घर आ कर उस ने अपनी 34 साला बीवी हेमलता को बिना कपड़ों के बिस्तर पर नौकर के साथ सोए हुए देख लिया.

दरअसल, हेमलता दिनेश की दूसरी बीवी थी. अधिक उम्र के पति से जिस्मानी संतुष्टि न मिल पाने के चलते हेमलता ने अपने कम उम्र, लेकिन शरीर से तगड़े नौकर को ही अपना आशिक बना लिया था. इस तरह की तमाम घटनाएं हमारे समाज की एक कड़वी सचाई बन चुकी हैं, जिस से इनकार नहीं किया जा सकता.

कौन हैं ऐसी औरतें

अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी करने के लिए ऐसे लड़कों को अपना शिकार बनाने वाली इन औरतों में समाज के हर तबके की औरतें शामिल हैं. इन में एक काफी बड़ा तबका माली रूप से अमीर और ज्यादा पढ़ीलिखी औरतों का है. ऐसी औरतें अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से ही गुजारना चाहती हैं. दूसरी बात यह भी है कि माली रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद लड़कियों में अपनी एक अलग सोच पैदा हो जाती है और वे शादी नामक संस्था को फालतू मानने लगती हैं. जब सारी जरूरतें बगैर शादी किए ही पूरी होने लगें, तो फिर कोई खुद को एक बंधन में क्यों उलझाना चाहेगा? इस के अलावा ऐसी औरतें जवान लड़कों से संबंध कायम करने में सब से आगे हैं, जिन के पतियों के पास धनदौलत की तो कमी नहीं है. लेकिन अपनी बीवियों के लिए समय की कमी है. इन दोनों के अलावा एक तबका ऐसा भी है, जो कि खुद पहल कर के लड़कों को अपने प्रेमजाल में फंसाने की कोशिश करता है. ये वे औरतें हैं, जो कि किसी मजबूरी के चलते आदमी के साथ का सुख नहीं पातीं.

परिवार में पैसे की कमी के चलते या ऐसी ही किसी दूसरी मजबूरी के चलते जिन लड़कियों की शादी समय से नहीं हो पाती और शरीर की भूख से परेशान हो कर जो मजबूरन किसी आदमी के साथ संबंध बना लेती हैं, उन्हें भी इसी तबके में रखा जा सकता है.

कम उम्र ही क्यों

यह एक सचाई है कि अगर कोई औरत खासकर वह 30-32 साल से ऊपर की है, अपनी इच्छा से किसी पराए मर्द से संबंध बनाने की पहल करती है, तो उस के पीछे खास मकसद जिस्मानी जरूरतों को पूरा करना होता है. हकीकत यही है कि एक 30-35 साल की खेलीखाई और अनुभवी औरत को पूरा सूख अपने हमउम्र मर्द के साथ ही मिल सकता?है, जिसे बिस्तर के खेल का पूरा अनुभव हो. लेकिन कई औरतें ऐसी भी होती हैं, जो कि अनुभव व सलीके के बजाय केवल तेजी और जोशीलेपन पर कुरबान होती हैं.

स्टेटस सिंबल के लिए

भारतीय समाज काफी तेजी से बदल रहा है. कभी अमीर लोग खूबसूरत लड़कियों को रखैल बना कर रखते थे, उसी तर्ज पर आजकल अमीर औरतों के बीच सेहतमंद जवान मर्द को बौडीगार्ड के रूप में रखना शान समझा जाने लगा है.  लेकिन वजह चाहे कोई भी हो, अपनी उम्र से छोटे लड़कों के साथ दोस्ती करना और उन के बदन का सुख लूटना ऊपरी तौर पर कितना भी मजेदार नजर आए, लेकिन हकीकत में यह बेहद खतरनाक है.

जिंदगी पर भारी जानलेवा उदासी

एसीपी अमित सिंह की उम्र महज 35 साल थी. वे दिल्ली पुलिस के स्पैशल सैल में तैनात थे. उन की खुशहाल सी दिखने वाली जिंदगी में उन के साथ पत्नी डाक्टर सरिता थीं और महज 18 महीने की एक प्यारी बेटी थी. अमित सिंह के पास अच्छी नौकरी के साथसाथ वे तमाम सुखसुविधाएं भी मुहैया थीं, जिन के लिए करोड़ों लोग सपने देखते हैं. वे अपने परिवार के साथ दिल्ली से सटे नोएडा के सैक्टर-100 में बने एक फ्लैट में रहते थे. बाहरी तौर पर सब ठीक था, लेकिन अचानक ऐसा कुछ हुआ कि अमित सिंह का परिवार और उन की जानपहचान वाले हैरान रह गए. दरअसल, अमित सिंह ने अपनी सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली थी. पति की मौत के सदमे में उन की पत्नी ने भी चौथी मंजिल से छलांग लगा दी. उन्हें गंभीर चोटें आई थीं. उन की कमर, हाथ व पैर की हड्डियां टूट गई थीं. चंद दिनों के इलाज के दौरान उन की भी मौत हो गई थी.

किसी परिवार का ऐसा अंजाम हर किसी की उम्मीदों से जुदा था. अमित सिंह की खुदकुशी अपने पीछे एक सवाल छोड़ गई कि प्रगतिशील समाज में उन जैसे लोग खुद मौत का रास्ता क्यों चुन रहे हैं? दरअसल, चकाचौंध से भरी जिंदगी के पीछे भी अंधेरे होते हैं और वह सब चल रहा होता है, जो आमतौर पर दिखाई नहीं देता. भागतीदौड़ती जिंदगी में लोग ऐसी उदासी से गुजर रहे हैं, जो उन के बरदाश्त से बाहर हो रही है. सहनशीलता और सब्र जवाब दे रहा है. इस के नतीजे इतने घातक निकल रहे हैं कि लोग अपनी सांसों की डोर तोड़ रहे हैं. समाज में खुदकुशी करने वालों की फेहरिस्त में ऊंचे ओहदों पर बैठे लोग भी शरीक हो रहे हैं. जिंदगी से हारने वाले अमित सिंह बिहार के छपरा जिले के रहने वाले थे. उन की पत्नी सरिता एक निजी अस्पताल में बतौर दांतों की डाक्टर प्रैक्टिस कर रही थीं.

16 नवंबर, 2015 की शाम तकरीबन 7 बजे अमित सिंह अपने फ्लैट नंबर-403 पर पहुंचे और रात में अपने कमरे में जा कर दरवाजा लौक कर के खुद को गोली मार कर खुदकुशी कर ली. सोसाइटी की सिक्योरिटी की मदद से दरवाजा तोड़ कर देखा, तो अमित सिंह बैड के किनारे मरे पड़े थे. यह देख कर सरिता ने रिवौल्वर उठा कर  खुदकुशी करनी चाही, लेकिन रिवौल्वर लौक हो गई. इस के बाद उन्होंने चौथी मंजिल की बालकौनी से नीचे छलांग लगा दी. इस दर्दनाक कांड की वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन महज 3 साल में एक परिवार तिनकातिनका हो कर बिखर गया. अमित व सरिता दोनों समझदार थे, तो फिर ऐसी नौबत आखिर क्यों आई? इस का जवाब किसी के पास नहीं है.

39 साला अनुराग अग्रवाल नोएडा की एक प्राइवेट कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. वे सैक्टर-112 की एक सोसाइटी के फ्लैट नंबर-803 में पत्नी मोनिका व बेटी ईवाना के साथ रहते थे. 24 नवंबर, 2015 की सुबह अनुराग को हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल में इलाज के दौरान उन की मौत हो गई. इस खबर ने मोनिका को बेसुध कर दिया. उन का सब्र जवाब दे गया और उन्होंने 8वीं मंजिल से कूद कर मौत का रास्ता चुन लिया. दुख की बात यह है कि अगर मोनिका ने सहनशीलता दिखाई होती, तो उन की बेटी ईवाना के सिर पर कम से कम मां का साया तो होता. जम्मू के पौश इलाके गांधीनगर में डाक्टर नेहा ने फांसी का फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली. वे बेहद तनाव में रहती थीं.

30 साला अंकिता पेशे से फैशन डिजाइनर थीं. उन का परिवार अमीर था और वे खुद भी बहुत खुश रहती थीं. लेकिन एक दिन उन्होंने सोसाइटी की 14वीं मंजिल से कूद कर खुदकुशी कर ली. अंकिता के पास से एक सुसाइड नोट मिला, जिस में उन्होंने अपनी मौत के लिए खुद को ही जिम्मेदार बताते हुए लिखा था, ‘मां, मैं जा रही हूं. मैं ने जितना जिया वही काफी है मेरे लिए. मैं इंडिया इसलिए वापस आई थी कि आप लोगों के साथ कुछ वक्त बिताया जा सके. मुझे माफ कर देना. ‘मेरे इस कदम के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. मुझे किसी से कोई प्रौब्लम नहीं है. वैसे, मुझे खुद से ही बहुत प्रौब्लम है. मैं और जीना नहीं चाहती, इसलिए जा रही हूं हमेशा के लिए.’

लेकिन पुलिस जांच में पता चला कि अंकिता का एक नौजवान डाक्टर से प्रेम प्रसंग था, पर शादी के मुद्दे पर परिवार वालों से थोड़ा मतभेद था. अच्छे कैरियर और जिंदगी की समस्या सुलझाने के बजाय अंकिता ने यह गंभीर कदम उठा लिया था. असम के महानिदेशक रह चुके शंकर बरूआ एक घोटाले में अपना नाम आने से तनाव में चल रहे थे. सीने में दर्द की शिकायत पर उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया. एक हफ्ते बाद वे घर पहुंचे और पहुंचने के आधा घंटे बाद ही उन्होंने पिस्तौल से खुद को गोली मार ली. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मरा बता दिया. इसी तरह साल 1962 बैच के आईपीएस अफसर चुन्नीलाल वासन सीबीसीआईडी से महानिदेशक के पद से रिटायर थे. एक दिन उन्होंने अपनी निजी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली.

चुन्नीलाल वासन का भरापूरा परिवार था. नातेरिश्तेदार व जानपहचान वालों का लंबा दायरा था, इस के बावजूद वे अंदर के किसी खालीपन के शिकार थे, जिस से हर कोई अनजान था. देश में हर साल एक लाख से भी ज्यादा लोग विभिन्न तरीकों से खुदकुशी करते हैं. यह कदम उठाने के पीछे सब की अपनीअपनी वजह होती हैं. खुदकुशी के बहुत से मामले ऐसे भी होते हैं, जो पुलिस के पचड़े से बचने के लिए दर्ज ही नहीं कराए जाते हैं. मुंबई पुलिस के डीसीपी संजय बनर्जी एंटीटैररिस्ट स्क्वायड की कमान संभालते थे. उन्हें देख कर नहीं लगता था कि वे भी कभी आत्मघाती कदम उठा सकते हैं, लेकिन एक दिन उन्होंने अपनी सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली. इसी तरह उत्तर प्रदेश के जेल सुपरिंटैंडैंट राजेश केसरवानी परिवार के झगड़े और अपने निलंबित होने से उकता गए. इसी तनाव में एक दिन उन का पत्नी से झगड़ा हुआ. पहले उन्होंने पत्नी को गोली मारी, फिर खुद भी अपने हाथों गोली का शिकार हो गए.

छत्तीसगढ़ के आईपीएस अफसर राहुल शर्मा ने भी आत्मघाती कदम उठाया था. कर्नाटक के नौजवान आईएएस डीके रवि भी इसी कड़ी का हिस्सा थे. उत्तर प्रदेश के बरेली में एक आबकारी इंस्पैक्टर संदीप सिंह ने भी सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली थी. रोहतक के प्रोफैसर रह चुके एके शर्मा ने भी परिवार के साथ खुदकुशी की थी. लोग सब से ज्यादा तब हैरान होते हैं, जब खुशहाल, अमीर और समझदार लोग भी आत्मघाती कदम उठाते हैं. इस से पता चलता है कि वे अपने दिल के अंदर ऐसा अंधेरा समुद्र ले कर जी रहे होते हैं, जिस का किसी से जिक्र तक नहीं करते. इस में कोई दोराय नहीं कि रिश्तों के बीच भी लोग अकेले होते जा रहे हैं. संयुक्त परिवारों के बिखराव ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है. छोटीबड़ी बातों पर ज्यादा तनाव लेने और खुद को अकेला समझने के एहसास में लोग खुदकुशी करने जैसा कदम उठा बैठते हैं. आंकड़ों की बात करें, तो घरेलू औरतों में खुदकुशी करने की सोच ज्यादा बढ़ी है. साल 2014 में देशभर में खुदकुशी के एक लाख, 31 हजार, 666 मामले दर्ज किए गए थे. इन में 16 फीसदी औरतें थीं. 4 सालों के दौरान खुदकुशी करने वाली 43 फीसदी घरेलू औरतें15 से 30 साल की थीं. औरतों की खुदकुशी करने की वजह के पीछे घरेलू हिंसा, सताना, माली तंगी वगैरह खास होती हैं.

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव: औरतों का बोलबाला

ग्राम पंचायत के इन चुनावों में औरतों की ताकत सब से ज्यादा नजर आई. उत्तर प्रदेश में प्रधानी का चुनाव लड़ने वालों में 45 फीसदी औरतें थीं. इन में से 44 फीसदी ने चुनाव जीत लिया. पंचायती राज में औरतों के लिए 33 फीसदी सीटों का आरक्षण है. उन्होंने तकरीबन 10 फीसदी से ज्यादा सीटें हासिल कर के जता दिया कि वे आरक्षण की मुहताज नहीं. ग्राम प्रधानी के आंकडे़ बताते हैं कि मुसलिम बहुल जिलों में भी पंचायत चुनावों में औरतों ने जीत हासिल की है. संभल और रामपुर में 54 फीसदी, मुरादाबाद में 51 फीसदी और बदायूं में 50 फीसदी औरतें जीतीं. औरतों की जीत की रोचक बात यह है कि जीतने वालों में अपने बल पर जीतने वालों की तादाद कम ही रही. ज्यादातर औरतें किसी न किसी दबदबे वाले शख्स की करीबी नातेरिश्तेदार हैं. इन में मां, पत्नी, बहन और बेटी के अलावा चाची और भाभी तक की रिश्तेदारी सामने आई. औरतों में हर तरह की शिक्षा वाली चुनाव जीतीं. इन में कोई कम पढ़ीलिखी थी, तो कोई ज्यादा पढ़ीलिखी थी.

लेकिन चुनाव जीतने के बाद जब शपथ ग्रहण करने का मौका आया, तो बहुत सी औरतों की जगह शपथ ग्रहण करने उन के संबंधी पहुंच गए. कई जगहों पर इस बात की बुराई की गई है, जिस के बाद उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने जिला प्रशासन को चिट्ठी लिख कर सचाई जानने की कोशिश की. प्राइमरी लैवल पर महिला आयोग को अपने जवाब में लिखा कि शपथ ग्रहण औरतों ने ही किया है. महिला आयोग अब शपथ ग्रहण समारोह की वीडियो रिकौर्डिंग देख कर सचाई को परखने वाला है. सिक्के का एक पहलू यह भी है कि औरतों के चुनाव लड़ने से ले कर जीतने के बाद काम करने तक में उन के नातेरिश्तेदारों का ही दबदबा होता है. इस बात को जिला प्रशासन अच्छी तरह से जानता और समझता है.

उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने पहली बार इस तरह का सख्त कदम उठाया है. इस के बाद भी औरतों के दबदबे को नकारा नहीं जा सकता है. पंचायती राज लागू होने के बाद से लगातार औरतों में जागरूकता आ रही है. वे धीरेधीरे परिवार के असर और उस के दबाव को कम करने में लगी हैं. यह एक तरह से सामाजिक बदलाव का हिस्सा है. ज्यादातर औरतों ने परिवार के दबाव को कम कर दिया है. अब वे अपनी मदद के लिए पति या बेटे का सहारा ले रही हैं. बाकी परिवार का दबाव काफी हद तक खत्म सा हो गया है. कई मामलों में चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही यह दबाव खत्म हो जाता है. कुछ नई उम्र की लड़कियों ने इस चुनौती को नए सिरे से लिया है. वे अपने दमखम को दिखा कर गांव की तसवीर को बदलना चाहती हैं. इन में एमबीए और पीएचडी तक पढ़ीलिखी लड़कियां शामिल हैं.

बाराबंकी जिले की कुरसी ग्राम पंचायत से 23 साल की अलतिशा बानो ने चुनाव जीता. उन्होंने इसी साल लखनऊ से बीटैक की पढ़ाई पूरी की है. उन्होंने कहा कि वे अपने कसबे की तरक्की करना चाहती हैं. बाराबंकी जिले के ही भटवामऊ से 23 साल की सोनम मौर्य ने जीत हासिल की. उन्होंने कहा कि वे अपनी ग्राम पंचायत की तरक्की करना चाहती हैं. वे आगे कहती हैं कि पंचायत चुनाव में नौजवानों और औरतों को ज्यादा पसंद किया गया. इस से गांव की तरक्की होगी. कई जिलों में लड़कियों और बहुओं ने चुनाव जीत कर साबित कर दिया कि औरतों की ताकत को कमजोर कर के नहीं देखना चाहिए.

धनबल और बाहुबल

गांवों में होने वाले सरपंच के चुनाव अब बदल गए हैं. हर 5 साल बाद होने वाले इन पंचायत चुनावों में धनबल और बाहुबल का असर बढ़ता जा रहा है. पंचायती राज कानून का एक फायदा यह दिख रहा है कि कमजोर तबके और औरतों को आगे आने का मौका मजबूरी में ही सही, पर अब मिलने लगा है.  उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों के नतीजे इस बदलाव को दिखा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पहली बार पंचायती राज चुनावों को 2 लैवलों में पूरा कराया गया. पहले लैवल पर जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हुआ. दूसरे लैवल के चुनाव में ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य यानी पंच का चुनाव कराया गया.

2 अलगअलग लैवल पर होने के चलते पंचायत चुनावों में खर्च काफी बढ़ गया. औसतन ग्राम प्रधान के चुनाव का खर्च 5 लाख रुपए के आसपास आया.  ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ रहे उम्मीवारों ने खुद या उन के समर्थकों ने 5 लाख रुपए खर्च किए. कई गांवों में तो इस से ज्यादा का भी खर्च हुआ. कई जगहों पर एकएक वोट के बदले 5 सौ से ले कर 15 सौ रुपए तक दिए गए. वोटर को लुभाने के लिए चांदी के सिक्कों, दावत, उपहार और शराब तक का इस्तेमाल किया गया. इस खर्च के पीछे की वजह साफ है कि छोटी से छोटी ग्राम पंचायत को साल में 20-25 लाख से ले कर 50 लाख रुपए तक खर्च करने का पैसा तमाम सरकारी योजनाओं के तहत मिलता है. इन पैसों पर अधिकार के लिए ही चुनाव जीतने की हर मुमकिन कोशिश होती है.

कानूनी तौर पर देखें, तो एक ग्राम प्रधान को अपने चुनाव में अधिकतम 75 हजार रुपए और ग्राम पंचायत सदस्य को अधिकतम 10 हजार रुपए खर्च करना होता है. चुनाव होने के 90 दिन के अंदर इस खर्च का ब्योरा निर्वाचन आयोग को देना होता है. जानकार कहते हैं कि हकीकत और लिखापढ़ी में फर्क होता है. सभी प्रधान अपने चुनावी खर्च को तैयार करने में सावधान रहते हैं. वे अपना खर्च तय सीमा के अंदर ही दिखाएंगे. हकीकत में ग्राम प्रधान पद के उम्मीदवार ने जितना पैसा खर्च किया है, वह गांव का बच्चाबच्चा जानता है. जिन ग्राम पंचायतों में दलित आरक्षण था, वहां के कमजोर उम्मीदवार को चुनाव लड़ने में पैसे वालों ने पूरी मदद की, इसलिए इन चुनावों में धनबल और बाहुबल के असर को महसूस किया जा रहा है. ग्राम पंचायत चुनावों की अहमियत को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने वालों में मंत्री, विधायक और अफसर तक के परिवारों के लोग शामिल रहे. अगर फायदे के गणित से देखें, तो मंत्री, सांसद और विधायक की तरह ग्राम प्रधान भी रसूखदार और अमीर हो गया है.  

ये हुए जागरूक

यह बात सही है कि धनबल और बाहुबल ने पंचायत चुनावों की तसवीर पर काफी हद तक असर डाला है. इस के बाद भी कमजोर और हाशिए पर पहुंचे तबके में भी जागरूकता आई है. यह सच है कि एक तरफ यह चुनाव धनबल आर बाहुबल के आधार पर लड़े और जीते जाने लगे हैं, दूसरी ओर कमजोर तबका भी राजनीतिक रूप से मजबूत होने लगा है. वह अपने वोट की ताकत को समझने लगा है. उस को प्रभावित कर के वोट हासिल किया जा सकता है, पर अब डराधमका कर वोट हासिल करने के दिन चले गए हैं. अब कमजोर तबका भी दबाव में वोट नहीं देता. वह अपने वोट के हक को ठीक से इस्तेमाल करना सीख रहा है. इसे एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. चुनावों में एक बड़ा बदलाव और भी देखने को आ रहा है कि चुनाव के बाद दुश्मनी निकाली जा रही है. चुनावों के बादहोने वाली हिंसा ग्राम प्रधानी के चुनावों पर कलंक की तरह से है.

पंचायती राज का मूल मकसद सत्ता को कमजोर तबके तक पहुंचाने का था. चुनाव नतीजों को देखते हुए महसूस हो रहा है कि वह मकसद पूरा हो रहा है. गांव के लैवल पर पैसे और योजनाओं का असर बढ़ रहा है. जो लोग कल तक गांव और गांव की राजनीति को अनदेखा समझते थे, वे अब गांव की अहमियत को समझ कर गांव के लैवल की राजनीति पर खुद को केंद्रित करने लगे हैं. इस से आदर्श ग्राम सचिवालय की कल्पना भले ही पूरी न होती हो, पर सही माने में गांव सत्ता का केंद्र बनते जा रहे हैं. लखनऊ जिले की मलिहाबाद तहसील के संजना गांव में मनरेगा मजदूर श्रवण ने 3 बार चुनाव जीत चुके संतोष कुमार को हरा कर साबित कर दिया कि कमजोर तबका किस तरह से आगे बढ़ रहा है. इस तरह के बहुत से उदाहरण ग्राम पंचायत के चुनावों में देखने को मिले, जिस में कमजोर तबके के लोगों ने चुनाव जीता. इन चुनावों में कमजोर तबके की यह जीत एक नए बदलाव की शुरुआत कही जा सकती है, जो देश के लिए भले की बात है. 

अब व्हासट्सऐप के लिए आपको नहीं देना होगा शुल्क

व्‍हाट्सऐप यूजर्स के लिए बहुत अच्‍छी खबर है, इस लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप को एक साल तक यूज करने के बाद लगने वाला एक डॉलर का शुल्‍क कंपनी अब नहीं लेगी. कंपनी ने सोमवार को ब्‍लॉग पोस्‍ट के जरिये बताया कि अब व्‍हाट्सऐप पर अब कोई सब्‍सक्रिप्‍शन फीस नहीं देनी होगी.

इस मैसेजिंग ऐप के संस्थापक जेन कॉम ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि वह अपने ग्राहकों से एक डॉलर प्रति वर्ष का शुल्क वसूलना बंद करेगी और दुनिया भर में लोग इस ऐप का नि:शुल्क इस्तेमाल कर सकेंगे. कंपनी का कहना है कि दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग उसके इस ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं. कंपनी का कहना है कि कमाई के लिए वह अन्य कंपनियों के विज्ञापन शुरू करने की मंशा भी नहीं रखती है.

व्हाट्सऐप ने आधिकारिक बयान में कहा है कि दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग अपने मित्रों, परिजनों के साथ संवाद के लिए व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं. व्हाट्सऐप अब ग्राहकों से कोई शुल्‍क नहीं लेगा. कंपनी का कहना है कि उसने अपने कुछ ग्राहकों से पहले साल के बाद शुल्क चुकाने को कहा था लेकिन आगे बढ़ने के साथ हमने पाया कि यह रुख अच्छा नहीं रहा. व्हाट्सऐप भारत में अपनी सेवाओं के लिए किसी तरह का शुल्क नहीं लेती है. उल्लेखनीय है कि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक ने 2014 में व्हाटसऐप को खरीद लिया था.

व्हाट्सऐप का कहना है कि उन्होंने पाया कि सब्‍सक्रिप्‍शन मॉडल ठीक से काम नहीं कर रहा है, क्योंकि अनेक व्हाट्सऐप यूज़र्स के पास क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड नहीं होते और ऐसे लोगों का सब्सक्रिप्शन खत्म होने पर उनके कॉन्टेक्ट नंबर का रिकॉर्ड खत्म हो जाता था. इसलिए व्हाट्सऐप ने फैसला किया है कि अगले कुछ सप्ताह के दौरान व्हाट्सऐप के अलग-अलग वर्ज़न की फीस खत्स की जाएगी और जल्द ही व्हाट्सऐप पूरी दुनिया में फ्री हो जाएगा.

दरअसल व्हाट्सऐप एक नए टूल को टेस्ट करेगा, जिससे बिज़नेस और संस्थानों के साथ आप चैटिंग कर सकेंगे. मसलन, आप अपने बैंक के साथ चैट करके जान सकेंगे कि कोई चेक बाउंस तो नहीं हुआ या एय़रलाइन्स के साथ चैट करके पता कर सकेंगे कि कोई फ्लाइट लेट तो नहीं हुई.

RBI ने बैंकों को दी सोने के सिक्के बेचने की मंजूरी

रिजर्व बैंक ने बैंकों को एमएमटीसी द्वारा विनिर्मित अशोक चक्र लगा ‘इंडिया गोल्ड क्वाइन’ अपनी शाखाओं के जरिए बेचने की अनुमति दे दी है. रिजर्व बैंक ने नोटिफिकेशन में कहा कि नॉमिनेटेड बैंकों को एमएमटीसी के बनाए सोने के सिक्के बेचने की अनुमति देने का निर्णय किया गया है. निवेशक 5 ग्राम, 10 ग्राम और 20 ग्राम का सिक्का खरीद सकते हैं.

गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम को उपभोक्ताओं के और अनुकूल बनाने के प्रयास के तहत रिजर्व बैंक ने कहा कि जमाकर्ता मध्यम अवधि (5 से 7 साल) और दीर्घकालीन (12 से 15 साल) सरकारी जमाओं को न्यूनतम लॉक इन अवधि के बाद मेच्योरिटी से पहले निकाल सकते हैं.

रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में योजना के दिशानिर्देश में कुछ संशोधन किए. सेंट्रल बैंक के अनुसार योजना को ग्राहकों के अनुकूल बनाने के लिए सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद किया गया है. जमा पर ब्याज दर का निर्धारण समय-समय पर सरकार करेगी और उसे रिजर्व बैंक अधिसूचित करेगा.

असली पुलिस वाली मैं ही हूं: प्रियंका

ऐसा लगता है कि यह साल बौलीवुड से हौलीवुड में ऐंट्री करने वाली प्रियंका के नाम होने वाला है. प्रियंका फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में काशीबाई के किरदार के लिए वाहवाही लूटने के बाद अब प्रकाश झा की फिल्म ‘जय गंगाजल’ में एक तेजतर्रार पुलिस औफिसर की भूमिका में हैं. इस फिल्म से निर्देशक प्रकाश झा भी ऐक्टिंग शुरू कर रहे हैं. वे इस में एक पुलिस वाले की भूमिका में हैं.

फिल्म के प्रमोशन पर जब प्रियंका से पूछा गया कि वे इस रोल में अपनेआप को कितना फिट मानती हैं? तो उन का कहना था कि सलमान, आमिर सभी पुलिस वाले बने, लेकिन जमे नहीं. मैं इस रोल के लिए अपने को फिट मानती हूं, क्योंकि ‘डौन 2’ और ‘क्वांटिको’ में मैं ने पुलिस औफिसर का ही रोल किया है.

एक्शन मास्टर याग्नेश शेट्टी हुए अमेरिका में सम्मानित

बालीवुड में अक्षय कुमार भले ही खुद को मार्शल आर्ट में माहिर बता रहे हैं. पर सबसे बड़ी हकीकत यह है कि अक्षय कुमार के बालीवुड से जुड़ने से पहले ही याग्नेश शेट्टी ने मार्शल आर्ट के क्षेत्र में न सिर्फ झंडे गाड़ दिए थे, बल्कि वह 1982 से ही बालीवुड के कलाकारों को मार्शल आर्ट सिखाते आ रहे हैं.

बालीवुड में चीता के रूप में मशहूर याग्नेश शेट्टी अब तक सौ से अधिक फिल्म कलाकारों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे चुके है. इसके अलावा करीबन एक लाख से अधिक महिलाओ व बच्चों को उन्होने मार्शल आर्ट सिखाया है. भारत में मार्शल आर्ट को लोकप्रियता दिलाने के मकसद से ही कुछ वर्ष पहले चीता उर्फ याग्नेश शेट्टी ने ‘‘चीता जीत कुन डू ग्लोबल स्पोर्ट्स फाउंडेशन’’ की स्थापना की थी. वह पिछले चार दशकों से महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देते आ रहे हैं.

याग्नेश शेट्टी की ताजा तरीन उपलब्धि यह है कि हाल ही में अमेरिका के ‘‘एम्प्टी हैंड काम्बेट’’के अध्यक्ष सिफू कास्मो जिमिक ने ‘‘मानव कल्याण में मार्शल आर्ट’’ के अति बेहतरीन उपयोग के लिए चीता उर्फ याग्नेश शेट्टी को अमेरिका बुलाकर सम्मानित करवाया. इसके लिए अमेरिका के नम्पा सिटी, आयडाहो में आयोजित भव्य समारोह में अमरीका के पूर्व मेअर टाम डाले ने शेट्टी को सम्मानित किया.

इससे पहले गत वर्ष उन्हे ‘‘युनाइटेड स्टेट आफ मार्शल आर्टस  हाल आफ फेम 2014’’ और ‘‘श्रीलंका ट्रेडीशनल इंडीजेन्स मार्शल आर्ट एसोसिएशन’’ द्वारा ‘‘स्टीमा अवार्ड आफ आनरेबल मेंशन 2014’’ से भी सम्मानित किया गया था.

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