राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी लालू यादव और रामविलास पासवान के दुलारे बिहार की राजनीति की नई उमर की नई फसल हैं. राजद सुप्रीमो लालू के बेटे तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव एवं मीसा भारती अपने पिता की ‘लालटेन’ (राजद का चुनाव चिन्ह) की रोशनी बढ़ाने में लग गए हैं, वहीं लोजपा प्रमुख रामविलास के लाडले चिराग पासवान अपने पिता की ‘झोपड़ी’ (लोजपा का चुनाव चिन्ह) को जगमग कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि लालू और पासवान के बेटों का पहला शौक राजनीति नहीं रही है. पिता की राजनीतिक विरासत थामने से पहले बेटों ने अपनी अलग राह बनाने की पूरी कोशिश की पर उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. उसके बाद ही बेटों ने सबसे आसान और भरोसेमंद रास्ता चुना एवं सियासत के मैदान में पिता के द्वारा बिछाए गए मखमली कारपेट पर उतर पड़े. खास बात यह है कि अपने पिता के ठेठ गवंई अंदाज से इतर बेटों ने अपना अलग अंदाज गढ़ते हुए पार्टी को नए सिरे से एकजुट करते रहे हैं और लालू और पासवान का पारंपरिक वोटर भी उन्हें सिर-आंखों पर बिठा चुका है.

चिराग और तेजस्वी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह केवल अपने-अपने पिता के द्वारा तैयार किए गए वोट बैंक के भरोसे ही राजनीति नहीं करना चाहते हैं. अपनी पार्टी में नए और युवा वोटरों को जोड़ना उनका मकसद है. चिराग कहते हैं कि युवाओं को जोड़े बगैर न तो सही राजनीति हो सकती है और न ही सूबे की असली तरक्की हो सकती है. उनकी पैनी नजर हमेशा ही बिहार के युवा वोटरों पर रही है, जो राजनीति से कटा हुआ है और वोट डालने से कतराता है. बिहार में एक करोड़ 71 लाख 9 हजार 728 युवा वोटर हैं. इनमें 18 से 19 साल के वोटरों की संख्या 18 लाख 39 हजार 213 है. 20 से 29 साल के वोटरों की संख्या एक करोड़ 52 लाख 70 हजार 500 है. तेजस्वी कहते हैं कि युवाओं को सियासत के प्रति जागरूक करने के बाद ही सियासत का तौर-तरीका बदलेगा और सूबे की तरक्की हो सकेगी.

गौरतलब है कि साल 2009 के चुनाव में जब रामविलास पासवान अपने सियासी गढ़ हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव हार गए और साल 2014 के लोक सभा चुनाव में जब यूपीए, कांग्रेस और राहुल गांधी ने उन्हें भाव नहीं दिया तो उन्हें अपना सियासी वजूद बचाना मुश्किल नजर आने लगा था. ऐसे में उनके बेटे चिराग पासवान ने ही उन्हें नरेंद्र मोदी से हाथ मिला लेने की सलाह दी. पासवान असमंजस की हालत में थे कि जिस मोदी के गुजरात दंगे में शामिल होने की वजह से उन्होंने साल 2002 में राजग का साथ छोड़ दिया था, उससे दुबारा कैसे हाथ मिलाया जाए? क्या नरेंद्र मोदी का साथ देने से उनके सेकुलर इमेज को धक्का तो नहीं लगेगा? उनका वोटर कहीं नाराज तो नहीं होगा? तब चिराग ने समझाया कि जिस गुजरात दंगे के मामले में अदालत और एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है, ऐसे में उनसे हाथ मिलाना नुकसान को सौदा नहीं होगा. उसके बाद ही रामविलास ने राजग से हाथ मिलाया और कामयाबी मिल गई.

हिन्दी फिल्मों में हीरो के तौर पर नाकाम रहे चिराग अपने पिता और खुद की सियासत को चमका कर असल जिंदगी में हीरो बन चुके हैं. 31अक्टूबर 1982 में पैदा हुए चिराग ने दिल्ली विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई की है और क्वालिटी पौलिटिक्स में यकीन करते हैं. साल 2011 में उनकी पहली पिफल्म ‘मिले न मिले हम’ रिलीज हुई पर बौक्स औफिस पर पानी नहीं मांग सकी थी. उसके बाद 2 साल तक मुंबई में हाथ-पैर मारने के बाद जब कोई चांस नहीं मिला तो चिराग अपने पिता की पार्टी लोजपा के जरिए राजनीति के मैदान में कूद पडे़. पिफलहाल वह जमुई के सांसद हैं और लोजपा को नए सिरे से मजबूत करने में लगे हुए हैं.

क्रिकेटर से नेता बने राजद सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को पार्टी के भावी सुप्रीमो के तौर पर देखा जाने लगा है. साल 2015 के बिहार विधन सभा चुनाव में राघेपुर से जीत कर तेजस्वी नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री बन चुके हैं. राजद के नेताओं और वर्कर्स को तेजस्वी में पार्टी की अगुवाई करने की क्षमता दिखने लगी है. इस मसले पर पूछे जाने पर तेजस्वी मुस्कुराते हुए किसी मंजे हुए नेता की तरह जबाब देते हैं- ‘मै तो पार्टी का छोटा वर्कर हूं  और इसी हैसियत से पार्टी और बिहार की जनता की सेवा करना चाहता हूं. पार्टी में कई सीनियर लीडर मौजूद हैं, जिन्होंने अपने खून और पसीने से पार्टी को सींचा है. वे सब मेरे लिए गार्जियन की तरह हैं और उनकी की देखरेख में पार्टी को आगे बढ़ाया जाएगा. राजद में सभी को साथ लेकर चलने का ही नियम है.’

9 नबंबर 1989 में पटना में जन्मे और दिल्ली पब्लिक स्कूल से पढ़ाई करने वाले तेजस्वी का पहला शौक क्रिकेट था और उसी में कैरियर बनाना चाहते थे. झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की टीम के आलराउंडर खिलाड़ी रहे तेजस्वी को आईपीएल की दिल्ली डेयर डेविल्स टीम से खेलने का मौका मिला. साल 2008-09 और 2011-12 में उन्हें टीम में चुना तो गया पर उन्हें कभी खेलने का मौका नहीं मिला. उसके बाद साल 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पिता की बनाई सियासी पिच पर उतर गए. तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप यादव भी महुआ विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर राज्य के हेल्थ मंत्री बने हैं और पिता की तरह ठेठ गवंई लहजे में राजनीति कर रहे हैं.

तेजप्रताप और तेजस्वी के साथ लालू की बड़ी बेटी 38 साल की मीसा भारती भी अपनी सियासी पहचान और ताकत बनाने के लिए आतुर हैं. उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री ले रखी है और उनके पति शैलेश इंजीनियर है. पिछले लोक सभा चुनाव में उन्हें पाटलीपुत्रा सीट से राजद का उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन राजद छोड़ भाजपा में शामिल हुए रामकृपाल यादव ने उन्हें संसद में जाने से रोक दिया. उसके पहले सियासी मंचों पर बिल्कुल ही नहीं दिखाई पड़ने वाली मीसा अब से राजद का लोकप्रिय, युवा और ताजा चेहरा बन गई हैं. 1974 के जेपी आंदोलन के दौरान इमरजेंसी का ऐलान होने के बाद लालू को ‘मीसा’ याने मेंटेनेंस औफ इंटर सेक्योरिटी एक्ट के तहत जेल में डाल दिया था. जब लालू जेल में बंद थे तो उसी दौरान साल 1977 में राबड़ी देवी ने बड़ी बेटी को जन्म दिया था. जिसका नाम लालू ने ‘मीसा’ रखा गया था. मीसा भारती कहती हैं कि बिहार में अपने पिता के द्वारा शुरू की गई सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाना ही उनका मकसद है. फिलहाल पार्टी उन्हें राज्य सभा में भेजने की तैयारियों में लगी हुई है.

सियासत से दूर निशां

लालू और पासवान के बेटों के उलट नीतीश कुमार के बेटे निशांत सियासत और मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं. बीआईटी मेसरा से बीटेक करने के बाद निशांत ने कभी भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने में दिलचस्पी नही दिखाई है. पिछले साल जब नीतीश कुमार पांचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके शपथ ग्रहण समारोह में निशांत नजर आए थे. उस समय भी वह मीडिया से कटे-कटे रहे और उसके सवालों को मुस्कुरा कर टालते रहे. निशांत के करीबी बताते हैं कि निशांत अपने पिता से ज्यादा अपनी मां मंजू सिन्हा के करीब थे और उन्हीं से अपने दिल की बात बताते थे. सरकारी स्कूल में शिक्षिका रही मंजू सिन्हा की साल 2007 में मौत हो गई थी.

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