ग्राम पंचायत के इन चुनावों में औरतों की ताकत सब से ज्यादा नजर आई. उत्तर प्रदेश में प्रधानी का चुनाव लड़ने वालों में 45 फीसदी औरतें थीं. इन में से 44 फीसदी ने चुनाव जीत लिया. पंचायती राज में औरतों के लिए 33 फीसदी सीटों का आरक्षण है. उन्होंने तकरीबन 10 फीसदी से ज्यादा सीटें हासिल कर के जता दिया कि वे आरक्षण की मुहताज नहीं. ग्राम प्रधानी के आंकडे़ बताते हैं कि मुसलिम बहुल जिलों में भी पंचायत चुनावों में औरतों ने जीत हासिल की है. संभल और रामपुर में 54 फीसदी, मुरादाबाद में 51 फीसदी और बदायूं में 50 फीसदी औरतें जीतीं. औरतों की जीत की रोचक बात यह है कि जीतने वालों में अपने बल पर जीतने वालों की तादाद कम ही रही. ज्यादातर औरतें किसी न किसी दबदबे वाले शख्स की करीबी नातेरिश्तेदार हैं. इन में मां, पत्नी, बहन और बेटी के अलावा चाची और भाभी तक की रिश्तेदारी सामने आई. औरतों में हर तरह की शिक्षा वाली चुनाव जीतीं. इन में कोई कम पढ़ीलिखी थी, तो कोई ज्यादा पढ़ीलिखी थी.
लेकिन चुनाव जीतने के बाद जब शपथ ग्रहण करने का मौका आया, तो बहुत सी औरतों की जगह शपथ ग्रहण करने उन के संबंधी पहुंच गए. कई जगहों पर इस बात की बुराई की गई है, जिस के बाद उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने जिला प्रशासन को चिट्ठी लिख कर सचाई जानने की कोशिश की. प्राइमरी लैवल पर महिला आयोग को अपने जवाब में लिखा कि शपथ ग्रहण औरतों ने ही किया है. महिला आयोग अब शपथ ग्रहण समारोह की वीडियो रिकौर्डिंग देख कर सचाई को परखने वाला है. सिक्के का एक पहलू यह भी है कि औरतों के चुनाव लड़ने से ले कर जीतने के बाद काम करने तक में उन के नातेरिश्तेदारों का ही दबदबा होता है. इस बात को जिला प्रशासन अच्छी तरह से जानता और समझता है.
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