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बिहार में शराबबंदी: मजबूत इरादे, तगड़ी चुनौतियां

20 नवंबर, 2015 को 5वीं बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने सब से बड़ा ऐलान कर डाला कि 1 अप्रैल, 2016 से बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी. बिहार में औरतें काफी दिनों से शराब पर रोक लगाने की मांग करती रही हैं. उन के मर्द शराब पीते हैं और इस का खमियाजा औरतों और बच्चों समेत समूचे परिवार को उठाना पड़ता है. शराबबंदी का ऐतिहासिक ऐलान कर के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने इरादे तो जता दिए हैं, लेकिन इस फैसले से सरकार के सामने कई चुनौतियां और मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं, जिन से निबटना आसान नहीं होगा. दरअसल, जहां भी शराब पर रोक लगती है, वहां शराब माफिया और तस्करों का बड़ा नैटवर्क खड़ा हो जाता है और सरकार के मनसूबे फेल हो जाते हैं. शराब पर रोक भी नहीं लग पाती है और सरकार को इस से मिलने वाले हजारों करोड़ रुपए से हाथ भी धोना पड़ता है.

बिहार में लाइसैंसी दुकानों के अलावा गलियों, ठेलों, सब्जी की दुकानों, छोटेमोटे ढाबों में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा धड़ल्ले से चलता है. पाउच में बिकने वाली शराब के कारोबार का कोई हिसाबकिताब ही नहीं है. सुबह उठते ही शराब से कुल्ला करने वालों और रात को सोते समय भी शराब गटकने वालों की काफी बड़ी तादाद है. ऐसे लोगों के मुंह से शराब को छुड़ाना सरकार के लिए काफी बड़ी मुसीबत बनेगी.

राज्य सरकारों के मिलने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शराब से ही आता है. राज्य सरकारें इसे बढ़ावा देने में ही लगी रही हैं. इस के साथ ही शराबबंदी का दूसरा पहलू यह भी है कि शराब पर रोक लगाने की नीति खास कामयाब नहीं हो सकी है.

वैसे, हरियाणा में बंसीलाल सरकार ने शराब पर रोक लगाई थी, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में शराबबंदी लागू की थी, पर कुछ समय बाद ही उन्हें यह फैसला वापस लेना पड़ा था.

शराबबंदी लागू होने से गैरकानूनी नैटवर्क पैदा हो जाता है और इस से संगठित अपराधी और दबंग समूह काफी ताकतवर हो जाते हैं.

गुजरात में साल 1960 से ही शराब पर रोक लगी हुई है, इस के बाद भी अपराधी समूह सरकार और कानून को ठेंगा दिखाते हुए शराब का धंधा चला रहे हैं. मुंबई में अपराधियों और माफिया का बड़ा नैटवर्क बनने के पीछे वहां लंबे समय तक लागू शराबबंदी को ही जाता है.

शराबबंदी के पीछे की सचाई यही है कि उस से सरकार को तो राजस्व का बड़ा नुकसान होता है, पर चोरीछिपे और तस्करी के जरीए शराब का धंधा चला कर अपराधियों की जमात ताकतवर बन कर सरकार के लिए सिरदर्द बन जाती है.

इस से पहले बिहार में साल 1977 में जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने शराब पर पाबंदी लगा दी थी. उस के बाद शराब की तस्करी बढ़ने और गैरकानूनी शराब का कारोबार करने वाले अपराधियों के पनपने के बाद शराबबंदी को वापस ले लिया गया था.

उस समय शराबबंदी डेढ़ साल से ज्यादा समय तक नहीं चल सकी थी. सरकार के खिलाफ कई विधायकों ने ही मोरचा खोल डाला था. शराब की तस्करी नए कारोबार के रूप में पैदा हो गई थी.

हरियाणा, आंध्र प्रदेश, मिजोरम में भी शराबबंदी कामयाब नहीं हो सकी और वहां शराब की बिक्री जारी है. वैसे, केरल में 30 मई, 2014 से शराब की दुकानों को लाइसैंस देने का काम सरकार ने बंद कर दिया है और सरकार को यकीन है कि अगले कुछ सालों में राज्य में शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लग जाएगी.

गुजरात में शराब नहीं बिकने देने के एवज में केंद्र सरकार हर साल राज्य सरकार को सौ करोड़ रुपए देती है. सरकारी फाइलों में समूचे गुजरात में 61 हजार, 535 लोगों के पास शराब पीने का परमिट है. इन में से 12 हजार, 803 केवल अहमदाबाद में हैं.

उत्पाद महकमे से परमिट यह कह कर हासिल किया जाता है कि शराब उन के लिए दवा है. इस के लिए डाक्टर से सर्टिफिकेट लेने की जरूरत होती है.

डाक्टर जब सर्टिफिकेट देता है कि परमिट मांगने वाले की दिमागी और जिस्मानी हालत को ठीक रखने के लिए शराब जरूरी है.

डाक्टर ही शराब पीने की लिमिट तय करता है और उसी हिसाब से उसे शराब मिल सकती है. अगर परमिट मांगने वाला सरकारी मुलाजिम है, तो उसे अपने सीनियर से एनओसी लेना होता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी के फैसले को कई लोग गलत ठहराने की कवायद में लग गए हैं और इसे नीतीश कुमार की बड़ी गलती करार देने लगे हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि देशभर में शराब की लौबी काफी मजबूत है. शराबबंदी के बाद सरकार के लिए सब से बड़ी चुनौती इस की कालाबाजारी और तस्करी से निबटना है.

गैरकानूनी रूप से देशी शराब के बनने और बिकने में तेजी आने का खतरा भी है. इस के अलावा सैरसपाटे के लिए बिहार आने वाले देशीविदेशी सैलानियों की तादाद में भी कमी आएगी.

रिटायर आईएएस अफसर बीएन सिंह बताते हैं कि गैरकानूनी शराब की तस्करी को रोकने के लिए पड़ोसी राज्यों के बौर्डर पर ठोस निगरानी तंत्र बनाने होंगे. कई गैरजरूरी मदों में खर्च को कम कर के आमदनी की कमी को दूर किया जा सकता है.

इस के अलावा सैलानियों को कुछ शर्तों के साथ शराब के इस्तेमाल पर छूट देने की जरूरत भी पड़ेगी.

9 जुलाई 2015 को ‘मद्य निषेध दिवस’ के मौके पर हुए एक समारोह में स्वयं सहायता समूह की कुछ औरतों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने कड़वे अनुभव सुनाए थे.

खगडि़या के चौथम गांव की आशा देवी, गया के खिजसराय गांव की रेखा देवी और मुजफ्फरपुर की गीता ने मुख्यमंत्री को बताया था कि किस तरह से उन्होंने गांव की औरतों के साथ मिल कर अपने इलाके में शराब पर रोक लगा दी है.

इस समारोह में पहुंची हजारों औरतों ने एकसाथ आवाज लगाई थी कि मुख्यमंत्रीजी शराब को बंद कराइए. इस से हजारों घरपरिवार बरबाद हो रहे हैं.

उन्हीं औरतों के किस्सों को सुन कर नीतीश कुमार ने उसी समय ऐलान कर दिया था कि अगर वे दोबारा सत्ता में आएंगे, तो शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देंगे.

विधानसभा चुनाव में औरतों ने बढ़चढ़ कर वोट डाले. औरतों के वोट फीसदी 54.85 के मुकाबले मर्दों का वोट फीसदी 50.70 रहा था. साल 2000 के चुनाव में मर्दों के मुकाबले 20 फीसदी औरतों ने वोट की ताकत का इस्तेमाल किया था.

शराबबंदी का ऐलान करने के साथ पंचायत चुनाव में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन दे कर नीतीश कुमार ने औरतों को गोलबंद कर लिया था. इस के साथ ही बिहार सरकार की नौकरियों में औरतों को 35 फीसदी रिजर्वेशन देने का भी दावा नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान किया था.

बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगने से सरकार को तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपए का सालाना नुकसान होगा. साल 2015-16 में राज्य के उत्पाद महकमे ने देशी, विदेशी और मसालेदार शराब की बिक्री से 3645.77 करोड़ रुपए के राजस्व का लक्ष्य रखा है.

देशी और मसालेदार देशी शराब से 1762.93 करोड़ और विदेशी शराब से 1882.84 करोड़ रुपए की आमदनी का लक्ष्य तय है. इस के अलावा वैट के तहत शराब से टैक्स के रूप में 1130.20 करोड़ रुपए की आमदनी होने का भी अंदाजा है.

फिलहाल तो बिहार में शराब की कुल 5,967 लाइसैंसी दुकानें हैं. इस में 2,471 देशी शराब की और 1,434 विदेशी शराब की दुकानें हैं.

गौरतलब है कि साल 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने साल 2006 में नई शराब नीति बनाई थी, जिस के बाद राज्य में शराब के कारोबार में जबरदस्त उछाल आया था.

साल 2005-06 में सरकार को शराब से 319 करोड़ रुपए की आमदनी होती थी, जो 2008-09 में बढ़ कर 749 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी.

उस के बाद तो शराब ने सरकार को मुनाफे के नशे में ही डुबो दिया. साल 2011-12 में शराब ने सरकार को 2,045 करोड़ रुपए का मुनाफा दिया, जो 2014-15 में बढ़ कर 3,665 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

आज की तारीख में बिहार में 1,410 लाख लिटर शराब की खपत होती है. इस में 990.36 लाख लिटर देशी शराब, 420 लाख लिटर विदेशी शराब और 512.37 लाख लिटर बीयर की खपत होती है.

बिहार में प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह देशी शराब और ताड़ी की खपत तकरीबन 266 मिलीलिटर और विदेशी शराब और बीयर की खपत 17 मिलीलिटर है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 34 मिलीलिटर और 5 मिलीलिटर का और दिल्ली में 56 मिलीलिटर और 86 मिलीलिटर का है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल आबादी के 30 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जिन में से 13 फीसदी लोग रोजाना शराब पीने के आदी हैं.

हर साल ही शराब पीने वालों का आंकड़ा 8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है. इस के अलावा गांवों के रहने वाले 45 फीसदी लोग शराब के आदी हैं और सड़क हादसों में होने वाली कुल मौतों में 20 फीसदी मौतें जरूरत से ज्यादा शराब पीने की वजह से होती हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी पर रोक लगा कर मजबूत इरादे जता दिए हैं और सियासी हालात भी उन के पाले में हैं, इसलिए वे शराबबंदी के अपने वादे को सच में बदलने के लिए कमर कस चुके हैं.

गौरतलब है कि बिहार में गुटका और काली पौलीथिन पर भी पाबंदी लगी हुई है. इस के बाद भी गुटका खुलेआम बिकता रहा है और काली पौलीथिन का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है. कहीं शराबबंदी के फैसले का भी यही हाल न हो. अगर ऐसा हुआ, तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इमेज पर बुरा असर पड़ सकता है.

हर तरह की शराब पर पाबंदी

– अब्दुल जलील मस्तान उत्पाद मंत्री, बिहार

बिहार के उत्पाद और मद्य निषेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान बताते हैं कि शराबबंदी का मतलब राज्य में हर तरह की शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने का है. देशी, विदेशी, मसालेदार, हंडि़या समेत सभी तरह की शराब पर 1 अप्रैल, 2016 से पाबंदी लग जाएगी.

इस से सरकार को होने वाले हजारों करोड़ रुपए के नुकसान के सवाल पर मंत्री अब्दुल जलील पस्तान कहते हैं कि यह सरकार का कल्याणकारी कदम है, इसलिए नुकसान की अनदेखी की जाएगी और दूसरे मदों से राजस्व की उगाही को बढ़ाया जाएगा.

दूसरे राज्यों से नाजायज तरीके से शराब के लाए जाने के डर को खारिज करते हुए वे दावा करते हैं कि पाबंदी लगने के बाद जब शराब की खरीदबिक्री दोनों बंद हो जाएगी, तो दोनों तरह के काम को अपराध माना जाएगा. बेचने के साथ खरीदने वालों को भी कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा.

सैक्स और गंदगी में फर्क: कल्पना शाह

कल्पना शाह मुंबई की रहने वाली हैं. उन के पिता फ्लाइट लैफ्टिनैंट हैं. इस वजह से उन की पढ़ाई चंडीगढ़ में ज्यादा हुई. कल्पना शाह को स्कूल के समय से ही ऐक्टिंग करने का शौक था. जब वे 11वीं जमात में थीं, तभी उन्हें दूरदर्शन के लिए बन रहे एक शो में ऐंकरिंग करने का काम मिल गया था. इसे देख कर भोजपुरी फिल्मों के प्रोड्यूसर अशोक चंद जैन ने उन्हें अपनी फिल्म औफर की थी.

नतीजतन, साल 2008 में कल्पना शाह ने अपनी पहली फिल्म ‘जोगीजी धीरेधीरे’ से धमाकेदार शुरुआत की. उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के साथसाथ हिंदी फिल्म ‘यारियां’ से शुरुआत की. ‘क्या फर्क पड़ता है’ हिंदी में आने वाली उन की अगली फिल्म है. तकरीबन 67 फिल्मों में काम कर चुकी कल्पना शाह ने ऐक्टिंग के साथसाथ पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी की. पेश हैं, उन के साथ हुई बातचीत के खास अंश:

स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही आप फिल्मों में आ गई थीं. यह फैसला लेने में परिवार वालों में सब से ज्यादा किस का सहयोग था?
मेरे भाई ने मुझे पूरा सहयोग दिया. मेरे परिवार में 70 फीसदी डाक्टर और 30 फीसदी पायलट हैं. उन्होंने समझाया कि ऐक्टिंग करने में कोई हर्ज नहीं, पर पहले अपनी पढ़ाई को पूरा करना है. मैं ने ऐक्टिंग के साथसाथ पढ़ाई को जारी रखा. मुझे भोजपुरी के साथ हिंदी फिल्में भी करने को मिलीं. भोजपुरी बोली मुझे आती नहीं थी, जिसे मैं ने फिल्म में काम करने वाले लोगों की मदद से सीखा. मुझे लगता है कि अपनी पढ़ाई हर किसी को पूरी करनी चाहिए. पढ़ाई इनसान को समझदार बनाती है.

भोजपुरी फिल्मों में सैक्स बहुत हावी दिखता है. इस बारे में आप क्या सोचती हैं?
दरअसल, भोजपुरी फिल्मों को बनाने वाले बहुत कम लोग खुद की सोच रखते हैं. ज्यादातर सैक्स प्रधान फिल्में भोजपुरी के गानों पर बनी होती हैं. गायक खुद ही फिल्म का हीरो बन जाता है. गानों के गंदे बोलों को जब हीरोहीरोइन पर फिल्माया जाता है, तो गंदापन खुल कर दिखने लगता है. वैसे, सैक्स और गंदगी में फर्क होता है. सैक्स हिंदी फिल्मों में कम नहीं होता, पर उस को दिखाने का तरीका अलग होता है.

भोजपुरी फिल्मों का बाजार भी काफी बढ़ रहा है. इस के बावजूद इस फिल्म उद्योग की इमेज नहीं सुधर रही है. क्यों?
भोजपुरी फिल्म बनाने वालों को अपने पर भरोसा नहीं होता. वे हीरो की बातों पर आंख मूंद कर के यकीन करते हैं. उन को लगता है कि हीरो की बात मानने से फिल्म चल जाएगी. दरअसल, हीरो का अपना मकसद होता है. उस का फिल्म के कलाकारों के चुनने तक में दबाव होता है. ज्यादातर हीरो अपने पसंद की हीरोइन रखना चाहते हैं. इस के चलते अच्छे कलाकारों का कैरियर खराब होता है, जिस का असर फिल्मों पर पड़ता है. कलाकारों के चुनने में फिल्म बनाने वालों को ध्यान देना चाहिए. कहानी की मांग में जो फिट बैठ रहा हो, उस को लेना चाहिए. हीरो के दखल से बचना चाहिए.

फिल्मों में गानों खासकर आइटम गीतों की क्या भूमिका होती है?
भोजपुरी फिल्मों में गानों की अपनी अहमियत होती है. आइटम गीत फिल्म की बिक्री से जुड़ा मुद्दा होता है. दर्शकों पर इस का अच्छा असर पड़ता है. आइटम गीत में गानों के बोल और उस के फिल्मांकन का ध्यान देना जरूरी होता है. मैं ने फिल्म ‘ग्रेट हीरो हीरालाल’ में आइटम डांस ‘मर गइनी दैया पाके बलम हलवइयां’ किया था. गाना और उस का फिल्मांकन अच्छा हो, तो वह देखने वालों को अच्छा लगता है.

क्या आप मानती हैं कि इन फिल्मों में ऐक्सपोजर नहीं होना चाहिए?
फिल्मों में ऐक्सपोजर होगा, क्योंकि दर्शक उसे पसंद करते हैं. यह बात हर तरह की फिल्मों पर लागू होती है. मेरा मानना है कि ऐक्सपोजर फिल्म की कहानी और उस की डिमांड के हिसाब से होना चाहिए. भोजपुरी फिल्मों में ऐक्सपोजर नंगापन की तरह दिखता है. यह फिल्मों की इमेज के लिए ठीक नहीं होता. परिवार ऐसी फिल्मों से दूर हो जाता है. जिस फिल्म की कहानी में ऐक्सपोजर की डिमांड भी नहीं होती, वहां गानों के फिल्मांकन में जबरदस्ती उस को डाल दिया जाता है.

आप को कैसे रोल पसंद हैं?
रोमांटिक और महिला प्रधान कहानी वाले रोल मुझे बेहद पसंद हैं. अपनी फिल्मों में मैं ने हर तरह के रोल किए हैं.

समाज में औरतों की हालत पहले से बेहतर हुई है?
औरतों की हालत पहले भी समाज में अच्छी थी. इतिहास बहुत बहादुर औरतों से भरा पड़ा है. आज भी ऐसी औरतें हैं. आज के दौर में अपने पैरों पर खड़ी औरतों की तादाद बढ़ गई है. हर तबके में औरतों को परिवार का सहयोग मिलने लगा है. जैसजैसे पढ़ाईलिखाई का लैवल बढ़ेगा, औरतों में और भी ज्यादा बदलाव आएगा.

राजनीति के प्रति आप की सोच क्या है?
मेरा तो यही मानना है कि औरतों को अपनी राजनीतिक सोच रखनी चाहिए. राजनीति में भी अपनी जगह बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए. मुझे कभी मौका मिला, तो जरूरी राजनीति में आऊंगी. मैं मुंबई की एक बस्ती में औरतों और बच्चों की मदद करती हूं. मैं मुंबई में भाजपा मुक्ति महिला मोरचा की पदाधिकारी हूं. 

शादी लव मैरिज होनी चाहिए या अरेंज मैरिज?
जैसी शादी लड़की और उस का परिवार पसंद करता हो, वैसी शादी होनी चाहिए. इस से शादी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि वह लव मैरिज है या अरेंज मैरिज. शादी वही कामयाब होती है, जहां रिश्तों में भरोसा होता है.       

काजोल और शाहरुख से ली सीख: रणबीर कपूर

हिंदी फिल्म ‘सांवरिया’ से ऐक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाले रणबीर कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत एक असिस्टैंट डायरैक्टर के रूप में डायरैक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ के साथ की थी. फिल्म ‘ब्लैक’ के रिलीज होने के तुरंत बाद संजय लीला भंसाली ने उन्हें अपनी फिल्म ‘सांवरिया’ में सोनम कपूर के साथ ऐक्टिंग करने का मौका दिया था. वह फिल्म बौक्स औफिस पर हिट नहीं थी, पर दर्शकों ने रणबीर कपूर के काम की तारीफ की थी.

इस के बाद रणबीर कपूर फिल्म ‘बचना ऐ हसीनो’ में दिखे. यहीं से उन के और दीपिका पादुकोण के बीच रोमांस की खबरें उछली थीं. यहां तक कि दीपिका ने रणबीर के नाम का टैटू तक अपनी गरदन पर गुदवा डाला था. पर इन दोनों के बीच की कैमिस्ट्री ज्यादा दिनों तक नहीं चली और इस रिश्ते का अंत हो गया. रणबीर कपूर ने हमेशा अपनेआप को अलगअलग किरदारों में फिल्मी परदे पर उतारा. कुछ फिल्में चलीं, तो कुछ नहीं चलीं, पर दर्शक हमेशा उन के साथ रहे.

एक इंटरव्यू में रणबीर कपूर ने कहा था कि उन्हें अभी भी शादी के लिए एक सच्चे प्यार की तलाश है. कैटरीना कैफ के साथ वे केवल दोस्ती को मानते हैं. पिछले साल के आखिर में उन की फिल्म ‘तमाशा’ रिलीज हुई थी, तभी उन से एक दिलचस्प बातचीत हुई थी. पेश हैं, उस के खास अंश:

हिंदी फिल्म तमाशामें हीरो के किरदार वेद को ले कर आप क्या कहेंगे?
यह फिल्म उन मातापिता के लिए है, जो बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपते हैं. बचपन से बच्चे में कुछ बनने की जो चाहत होती है, उसे दबाया जाता है. बिना मन के कोई मातापिता की चाहत को पूरा करतेकरते क्या बनता है, उसी को दिखाया गया.मैं कहना चाहता हूं कि कोई भी नौजवान बिना इच्छा के कोई काम न करे. अपनी चाहत को बनाए रखे, उसे भुलाए नहीं. मैं बचपन में गणित में बहुत कमजोर था. मुझे गणित में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी. मैं ने जो पढ़ना चाहा, मातापिता ने साथ दिया. अंदर से खुश हो कर अगर आप कोई काम करते हैं, तो आगे निकलना आसान हो जाता है.ऐसे कई लोग हैं, जो रास्ते से भटक जाते हैं. आगे चल कर उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या करेंगे.

इस फिल्म में आप के लिए सब से बड़ी चुनौती क्या थी?
हर किरदार हमेशा चुनौती से भरा होता है. कहानी को परदे पर तभी सही दिखाया जा सकता है, जब मैं अपनेआप को भुला कर किरदार में खो जाऊं. डायरैक्टर जो महसूस करे, उसे परदे पर सही तरह से उतार सकूं. इस फिल्म में भी मैं ने यही करने की कोशिश की है.

आप की कई फिल्में उतनी नहीं चलीं, पर दर्शकों ने आप का साथ भरपूर दिया. फिल्मों की नाकामी में आप अपनी जिम्मेदारी कहां तक मानते हैं?
काम की तारीफ मिलती है, तो अच्छा लगता है. दर्शकों को मेरा काम पसंद आए, ऐसी कोशिश मैं हमेशा करता हूं. फिल्में न चलने की वजह कई होती हैं, पर मैं अपना काम ईमानदारी से करता हूं. मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं दर्शकों का विश्वास फिर से जीतूं. इस के लिए मैं हमेशा बेहतर करने को तैयार हूं.

आप ने दीपिका पादुकोण के साथ काम करने को दालचावलकी उपमा दी है. इस की वजह क्या है?
जब आप सफर करते हैं, तो दालचावल के साथ आप रिलैक्स होते हैं, उसी तरह दीपिका के साथ काम करने में मैं अपनेआप को सुरक्षित महसूस करता हूं. दीपिका जिस दर्जे की ऐक्टिंग करती हैं, उस लैवल तक मुझे भी पहुंचना पड़ता है, ताकि उन को काम करने में आसानी हो.

आप दोनों ने एकसाथ काम करना शुरू किया, कैमिस्ट्री बनी, रिश्ता बना, फिर टूटा. फिल्मों में दोबारा से उसी कैमिस्ट्री को बनाना कितना मुश्किल था?
इस का श्रेय हम दोनों को है. हम दोनों बहुत ही महत्त्वाकांक्षी कलाकार हैं. एकदूसरे को प्यार और इज्जत करते हैं. हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम दोनों दर्शकों को अपनी अदाकारी से निराश न करें. दर्शकों ने जिस तरह से हम दोनों को ‘काजोलशाहरुख’ की जोड़ी जैसा माना है, उस पर यकीन नहीं होता. हम जिस तरह फिल्मों में रोमांस करते हैं, उस की सीख हम ने काजोल और शाहरुख से ही ली है.

आप एक फिल्मी परिवार से हैं. अपने पुरखों को कैसे याद करते हैं?
मैं अपने दादा और परदादा की बातें अपने पिता से सुनता हूं. मैं तब पैदा नहीं हुआ था, पर उन की हर बात जानता हूं. उस वक्त कलाकारों में बहुत प्यार था. फिल्म प्रीमियर के समय सब एकदूसरे को सहयोग देते थे. आज के जमाने में ऐसा नहीं है. कलाकार आपस में प्रतियोगिता की भावना रखते हैं. मेरे पास कई ऐसी तसवीरें हैं, जो उस जमाने की हैं. मैं उन्हें इकट्ठा करता रहता हूं. एक तसवीर में राज कपूर, देवानंद और दिलीप कुमार क्रिकेट खेलते हुए हैं. यह सब देखना अच्छा लगता है. मैं ने अपने परदादा पृथ्वीराज कपूर और दादा राज कपूर की कई फिल्में देखी हैं. मैं उन दोनों कलाकारों की अदाकारी से बहुतकुछ सीखता हूं.   

यूजर से फिरौती मांगता है ये खतरनाक वायरस

कम्प्यूटर में वायरस आना आम बात होती है. वायरस आने के बाद कंप्यूटर ठीक से काम करना बंद कर देता है, मसलन उसकी प्रोसेसिंग स्लो हो जाती है, कभी कभी कोई फोल्डर काफी देर बाद ओपन होता है या कभी कभी ओपन भी नहीं होते, लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक ऐसा भी कम्प्यूटर वायरस है जो अपने यूजर से फिरौती मांगता है तो आपको यकीनन हैरानी होगी. यह अजीब किस्म का वायरस इन दिनों दुनिया के तमाम देशों में तेजी से फैलती कम्यूटर वायरस की एक नई किस्म है.

क्या नाम है वायरस का
इस अनोखे वायरस का नाम रैनसमवेयर कम्प्यूटर मालवेयर वायरस है और यह इन दिनों दुनिया भर के कम्प्यूटर आपरेटर के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. इस वायरस के बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि यह एक खतरनाक किस्म का वायरस है जो आपके कम्प्यूटर को लॉक कर देता है..और लॉक करने के बाद आपकी जरूरी फाइलों की रिकवरी के लिए पैसे की मांग करता है. ऑस्ट्रेलिया सरकार की ताजा रिपोर्ट बताती है कि यह वाकई में खतरनाक है. एक सर्वेक्षण के मुताबिक साल सिर्फ 2015 में 72 फीसदी व्यवसाय इस वायरस के कारण प्रभावित रहे जबकि साल 2013 में यह आंकड़ा सिर्फ 17 फीसदी था. यानी यह वायरस तेजी से प्रसार कर रहा है.

मोबाइल के लिए भी खतरे की घंटी
एक्सपर्टों का मानना है कि यह एप मोबाइल के लिए भी खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह एप कहीं पर भी छुपा हो सकता है और मोबाइल में किसी डिवाइस के कनेक्ट करने के दौरान ट्रांसफर हो सकता है. इस नए वायरस ने दुनियाभर के देशों में कम्प्यूटर का अधिक इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

कैसे हमला करता है यह वायरस
विशेषज्ञों की माने तो यह वायरस अधिकांशत: डाउनलोडिंग के माध्यम से ही एक डिवाइस में पहुंचता है. यह आपके कम्यूटर स्क्रीन पर लोकप्रिय एप होने का दिखावा करेगा…ताकि आप मजबूर होकर इस पर एक बार क्लिक कर दें, इस तरह से इस वायरस के अटैक करने की संभावना ज्यादा रहती है. वहीं दूसरी तरफ यह फर्जी ईमेल, स्पैम या फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए हमला करता है. एक बार मेल के अटैचमेंट पर क्लिक करते ही यह वायरस आपके सिस्टम की फाइलों को खंगालना शुरु कर देता है.

भारत में आर्थिक सुधारों की दिशा सही: राजन

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत में आर्थिक सुधार सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने देश में अनेक पुराने और बेकार के कानून बने रहने का जिक्र करते हुए कहा कि सुधार का स्तर ठीक नहीं है.  राजन ने कहा कि मैं अपनी बात को इस तरह रखता हूं, कि सुधारों की दिशा सही है लेकिन उनका स्तर गड़बड़ है. हमारे पास गलत नियम बहुत ज्यादा है, सही नियमों की संख्या अभी बहुत कम है.

उन्होंने कहा कि इसलिए हमें इसकी छंटाई की जरूरत है. यह एक झटके में नहीं होता, इसमें समय लगेगा. हम इसे कर रहे हैं. हम इस बात को मानते हैं कि हमारे यहां नियमन कुछ ज्यादा जरूर हैं. कारोबारियों को बेहतर माहौल की जरूरत है. राजन ने कहा, इसके साथ ही नई तरह का कारोबार भी आ रहा है. इनसे निपट के लिए हमें तौर तरीके तलाशने होंगे. उदाहरण के तौर पर ऑनलाइन ऋण. यदि गिरावट होती है तो हम क्या करेंगे?

राजन भारत में आर्थिक सुधारों के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे. राजन को इस बात को लेकर अफसोस है कि लोग केवल बड़े सुधारों की बात करते हैं लेकिन जिन सुधारों पर इस समय काम चल रहा है उनकी बात नहीं करते हैं. राजन ने कहा, काफी कुछ चल रहा है, पिछले सप्ताह ही प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम का उद्घाटन किया जिसका नाम स्टार्ट अप इंडिया है. इसमें वास्तव में नया व्यवसाय शुरू करने के रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर किया गया है. नए व्यावसाय को शुरू करने से पहले पेंशन कोष सहित उसे 10, 15, 20 विभिन्न प्राधिकरणों के पास उसे पंजीकृत कराना होता है.

एक अन्य सवाल के जवाब में राजन ने कहा कि वह चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर चिंतित नहीं हैं. जहां तक मात्रा में वृद्धि की बात है, चीन में डॉलर के लिहाज से काफी वृद्धि आ रही है. ऐसी अर्थव्यवस्था जो लगातार धनी और समृद्ध हो रही है, उसकी चाल में सुस्ती आना स्वाभाविक है. उन्होंने कहा, इसलिए मैं चीन की वृद्धि को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं हूं.

अर्थव्यवस्था की दशा दिशा ‘पुन: मूषक: भव:’ जैसी

मोदी सरकार को लगभग 20 महीने हो गए. आखिरकार अच्छे दिन नहीं आए. आगे भी आने की उम्मीद अब लगभग नहीं के बराबर है. उल्टे देश की आर्थिक स्थिति जरूर डावांडोल हो रही है. वैश्विक मंदी से बचना अब संभव नहीं लगता है. देश की अर्थव्यवस्था अब मनमोहन सिंह के दौर पर पहुंच गयी है. हाल में महंगाई का ग्राफ, शेयर बाजार का सूचकांक और रूपए के अवमूल्यन को देखते हुए साफ नजर आ रहा है कि जो दिखाने की कोशिश की जा रही थी, स्थिति ठीक वैसी है नहीं. लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की जुमलेबाजी के झांसे में न सिर्फ मतदाता आ गए थे, बल्कि दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं पर इसका प्रभाव पड़ा था. और विश्व स्तर पर हमारे देश की अर्थव्यवस्था को लेकर एक बड़ी-बड़ी उम्मीद बनने लगी थी. पर अब हर स्तर पर भ्रम टूटने लगा है. अब तो सरकार ने एकाध अगर-मगर के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मान लिया है कि वैश्विक मंदी का असर हमारे देश पर भी पड़ रहा है.

अब जब 2016 के शुरूआत में ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की की 2016 के गौरतलब है कि अरुण जेटली ने दावोस में कहा कि वैश्विक मंदी से भारत भी अछूता नहीं है. जबकि इससे पहले मोदी सरकार मंदी के किसी भी तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर से इंकार करती रही है. अक्टूबर 2015 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में भी यही कहा था कि भारत पर मंदी का कोई असर नहीं पड़ा है. इसी साल नवंबर में  लेकिन रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन पहले ही कह चुके थे कि चीन की आर्थिक सुस्ती का भारत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. मोदी सरकार के दावे से उल्ट रधुराम राजन के बयान पर काफी होहल्ला मचा था.

हमारे वित्तमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री वैश्विक अर्थव्यवस्था में देश का स्थान आकर्षक व ऊंचा होने का दावा करते रहे. लेकिन 2015 के अंत तक लगाए गए अनुमान के अनुरूप जब इस साल के शुरूआती चरण से ही विश्व अर्थव्यवस्था बड़े ही खराब दौर से गुजर रही है, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत अपने सबसे निचले स्तर (28 डौलर प्रति बैरल) पर है, चीनी मुद्रा व अर्थव्यवस्था भी लगातार मार खा रही है – इन सब लुथल-पुथल के बीच हमारे वित्त और प्रधान- मंत्रियों के दावे भला कब तक और कहां तक टिकते! भारतीय अर्थव्यवस्था का हाल अब सामने आने लगा है.

पिछले साल यानि 2015 मार्च महीने में सेंसेक्स में रिकॉर्ड उछाल देखा गया था. तब अच्छे दिन के सब्जबाग सच होते दिखने लगे थे. लेकिन इसके बाद लगातार ‘अच्छे दिन’ का सपना फीका पड़ता नजर आने लगा. तबसे लेकर अब तक शेयर सूचकांक लुढ़कता चला है. हां, 5 मार्च 2015 को सेंसेक्स ने 30,024.74 प्वाइंट का रिकौर्ड उछाल दर्ज किया था, इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत वृद्धि को छू लेने का दावा किया जा रहा था. लेकिन तबसे लेकर अब तक सेंसेक्स लगभग छह हजार प्वाइंट गिर चुका है. कुल मिला कर 52 महीने में अपने सबसे निचले स्तर 23,834.76 प्वाइंट पर भी पहुंच चुका है.

2014 में लोकसभा चुनाव से पहले अप्रैल में सेंसेक्स 22,194.51 से लेकर 22,939.31 के बीच घूता रहा. मई में 22,493.59 से लेकर अपने उच्चतम सूचकांक 25,375.63 के बीच आ गया. यह स्थिति मोदी के चुनाव जीतने के बाद रही. इससे साफ है कि बाजार को मोदी से काफी उम्मीद थी. लेकिन अब वह एक बार फिर से जनवरी के तीसरे सप्ताह में अपने सबसे निचले स्तर 23,834.76 पहुंच गया. कहते हैं तीसरे त्रिमाही में रिलायंस इंडस्ट्री के खराब प्रदर्शन का बड़ा प्रभाव शेयर बाजार पर पड़ा. इसके अलावा विदेशी निवेशकों द्वारा बाजार में की गयी बिकवाली जैसे और भी बहुत सारे कारण कारण गिनाए गए. ध्‍यान रहे बाजार ऐसी स्थिति मनमोहन सिंह के समय में भी आती रही है.

बहरहाल, जहां तक तेल की कीमत का सवाल है तो स्थिति मनमोहन सिंह के समय से अलग है. तेल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड सूचकांक में इस हफ्ते लगभग 2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है और एक बैरेल तेल की कीमत 28.21 डौलर तक जा पहुंची है. सात साल पहले जो 133 डौलर प्रति बैरल हुआ करती थी. तेल की कम कीमत का लाभ केवल 10-12 प्रतिशत जनता तक पहुंच रहा है. रुपए के अवमूल्यन के बावजूद इसका ज्यादा फायदा तेल कंपिनयों को मिल रहा है. जाहिर है ये तेल कंपनियां अच्छे-खासे मुनाफे में खेल रही है.

वहीं रूपए का अवमूल्यन थम नहीं रहा है. लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी की जीत की संभावना को देखते हुए भारतीय बौन्ड और शेयर बाजार में डौलर की बाढ़ आ गयी थी. जनवरी 2015 में देश में आए 8 अरब डौलर में से कम से कम 6 अरब डौलर सरकारी बौन्ड से आया था. पहले तो यह स्थिति रुपए की मजबूती का सबब बना. यहां यह ध्यान देदा जरूरी है कि भारतीय ब्याज दर बाकी दुनिया की तलना में काफी अच्छा है. कम अवधि वाले बौन्ड पर 8.5 प्रतिशत तक का रिटर्न दिया जाता है. लेकिन रुपए के अवमूल्यन के साथ बौन्ड से भारी लाभ की उम्मीद को झटका लगा. वहीं विदेशी निवेशकों को अच्छे ब्याज के साथ रुपए के अवमूल्यन से कम से कम 10 प्रतिशत का फायदा मिल रहा है. बताया जाता है कि विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से लगभग 70 करोड़ डौलर निकाल लिया है. अकेले जनवरी महीने में विदेशी निवेशकों ने साढ़े तीन हजार का शेयर बेचा.

वैसे फिलहाल विश्व अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत में गिरावट और सीरिया, इराक में चला रहे घमासान के मध्य-पूर्व देशों की अर्थव्यवस्था के साथ राजनीतिक अस्थिरता, चीनी सरकार द्वारा वहां की मुद्रा युआन का अवमूल्यन करने से विकवाली के दौर से वहां की अर्थव्यवस्था और मुद्रा बाजार में आयी अस्थिरता, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश की ओर से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम करके आंकाना और विदेशी निवेशकों द्वारा अपने शेयर की बिक्री जैसे कारणों को इसके लिए जिम्मेवार बताया जा रहा है.

इसके अलावा दिसंबर 2015 में अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर 0.25 प्रतिशत जब बढ़ाया, तब बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशकों में अपने शेयर को बेचना शुरू कर दिया. लगभग नौ सालों के बाद फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर को बढ़ाया है. हालांकि कहते हैं कि अमेरिका ने यह बढ़ोत्तरी यह संकेत देने के लिए की है कि अमेरिका मंदी के दौर से उबर चुका है.  

मध्यपूर्व देशों की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता का जितना असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जितना असर पड़ा रहा है, चीनी अर्थव्यवस्था में अस्थिरता का भी उतना ही असर देखा जा रहा है. गौरतलब है कि आईएमएफ ने चीन में 2016 में 6.3 प्रतिशत और 2017 में महज 6 प्रतिशत विकास दर में वृद्धि का अनुमान लगाया है. वहीं आईएमएफ ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा में विकास दर में 0.2 प्रतिशत की गिरावट के बाद 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. बताया जा रहा है कि आईएमएफ की अओर से की गयी इस घोषणा का भी एक हद तक बड़ा प्रभाव शेयर बाजार पर पड़ा है.

मनमोहन सिंह के समय में एक डौलर के मुकाबले रुपए का विनिमय दर 60-64 रू. के बीच उतर-चढ़ रहा था. इसके बाद मोदी सरकार जब सत्ता पर आयी तब एक डौलर की कीमत 58 रु. था और नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारतीय मुद्रा वेंटीलेशन पर चला गया है. आज डौलर के मुकाबले रुपया भी 28 महीने के सबसे निचले स्तर 68.07 रु. प्रति डौलर पर पहुंच गया. जाहिर है अब कांग्रेस के निशाने पर आ गयी है मोदी सरकार. आर्थिक विशेषज्ञों का भी यहीं मानना है कि मोदी जितना अधिक विदेश यात्रा कर रहे, भारतय बाजार से  विदेशी निवेश उतना ही बाहर निकल कर चला जा रहा है. वहीं महंगाई कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. दाल से लेकर तेल क कीमत में उछाल की मार जनता को झेलनी पड़ रही है. कुल मिला कर लगने लगा है कि भाजपा का तमाम नारा वाकई जुमलों में तब्दील हो गया है. और भारतीय अर्थव्यवस्था मनमोहन सिंह के दौर पर एक बार फिर लौट रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था मौजूदा दशा-दिशा एक हद तक – पुन: मूसिक: भवंति जैसी है. 

एअरलिफ्टः रोमांच और मनोरंजन का अभाव

1990 के खाड़ी युद्ध पर आधारित रोमांचक फिल्म ‘‘एअरलिफ्ट’’ खत्म होने के बाद यही पता नही चलता कि फिल्म का नाम एअरलिफ्ट क्यों है? फिल्म मे रोमांच का अता पता नही है. फिल्म की गति धीमी है. इसे कम से कम 15 मिनट कम किया जा सकता था.

फिल्म ‘‘एअरलिफ्ट’’ की कहानी 1990 के खाड़ी युद्ध की सत्यकथा पर आधारित है. यह कहानी 1990 में घटे इराक व कुवैत के बीच के युद्ध के समय भारतीय सेना के जांबाज जवानों द्वारा कुवैत में फंसे एक लाख सत्तर हजार भारतीयों की सकुशल वापसी पर आधारित है. यह घटना‘‘गिनीज बुक्स आफ वल्र्ड रिकार्ड’’ में भी दर्ज है.

मूलतः भारतीय रंजीत कत्याल (अक्षय कुमार) कुवैत में बसे बहुत बड़े उद्योगपति है. वह खुद को भारतीय की बजाय कुवैती ही मानते हैं. ईराक से युद्ध छिड़ने के कुछ समय बाद एक दिन रंजीत को अहसास होता है कि वह और उनकी पत्नी अमृता कत्याल (निम्रत कौर) तथा बच्चे अब कुवैत में सुरक्षित नही है. और वह अनजाने ही कुवैत से 1,70,000 भारतीयों को वापस भारत भेजने का मसीहा बन जाते हैं. इस बीच रंजीत का मुकाबला मेजर खलफ बिन जैद (इनामुल हक) से होता है, जो पग पग पर उनके लिए मुसीबते खड़ी करता रहता है.

रंजीत इराकी विदेश मंत्री तारिज एजराज से मदद मांगते है, पर यह योजना विफल हो जाती है. अंततः रंजीत दिल्ली मे विदेश मंत्रालय मे कार्यरत  अफसर संजीव कोहली से बात करके रास्ता निालने में सफल होते हैं. इराकी इतिहास में ऐसा पहला बार होता है, जब भारत सरकार के प्रयासों के तहत 59 दिनों के अंदर 488 भारतीय व्यावसायिक हवाई जहाज उड़ान भरकर 170000 भारतीयों को सकुशल अपने देश ले आते हैं.

फिल्म में इनामुल हक का इराकी मेजर का किरदार बेमतलब का नजर आता है. फिल्म में इस बात का चित्रण है कि यदि देश की आईएएस लाबी चाहे तो हर काम संभव है. देश का विदेश मंत्री खुद सजीव कोहली से कहता है कि वह तो आते जाते है, पर अफसर रिटायरमेंट तक रहेंगे.

फिल्म मे देशभक्ति की बात की गयी है तो वहीं उन्हे आयना दिखया गया है जो कहते है कि देश ने उनके लिए क्या किया? फिल्म में इराकी सैनिकों के अत्याचार को दिखाकर सद्दाम हुसैन का अपनी सेना पर किस तरह का असर था, इसका चित्रण था, यह नजर आता है. फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. फिल्म के कुछ सीन बीच बीच मे डाक्यूमेंट्री का अहसास करा देते हैं. सरकार व दूतावास की कार्यशैली पर भी कटाक्ष है. मगर 35 साल में क्या बदलाव आए हैं, उसका जिक्र नही है.

बतौर निर्देशक राजा कृष्णा मेनन से जो उम्मीद थी, उस पर वह खरे नहीं उतरे हैं. फिल्म के कुछ संवाद अच्छे हैं. फिल्म के निर्देशक राजा कृष्णा मेनन, लेखक रितेश शाह, सुरेश नायर, संगीतकार अमाल मलिक और अंकित तिवारी, गीतकार कुमार तथा कलाकाकर हैं – अक्षय कुमार, निम्रत कौर, फरयाना वजहेर, इनामुल हक, लीना, पूरब कोहली, कुमुद मिश्रा, प्रकाश बेलावडी.

तो पाक जीतेगा भारत में होने वाला टी-20 वर्ल्ड कप..!

कीवी टीम के भरोसेमंद मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज रॉस टेलर की माने तो इस बार टी-20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान वर्ल्ड चैंपियन बनकर उभर सकता है.

टेलर ने भारत की मेजबानी में पाकिस्तान को इस साल मार्च में होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप का प्रबल दावेदार बताया है. पाकिस्तान के खिलाफ टी-20 क्रिकेट सीरीज में दूसरा मैच जीतकर सीरीज में 1-1 से बराबरी करने वाली न्यूजीलैंड टीम के टेलर ने कहा कि पाकिस्तान वर्ल्ड कप में खिताब का प्रबल दावेदार लगता है.

पाकिस्तान को न्यूजीलैंड के खिलाफ मौजूदा सीरीज के बाद एशिया कप में हिस्सा लेना है जबकि न्यूजीलैंड टी-20 वर्ल्ड कप के पहले अपनी आखिरी टी-20 सीरीज खेल रहा है जो वर्ल्ड कप के पहले उसकी तैयारियों को पुख्ता करने का अंतिम मौका है.

न्यूजीलैंड के खिलाफ उसी की धरती पर मौजूदा टी-20 सीरीज का पहला मुकाबला धमाकेदार अंदाज में जीतने वाली पाकिस्तान को दूसरे मुकाबले में शिकस्त मिली थी और अब सीरीज का आखिरी और निर्णायक मुकाबला शुक्रवार को खेला जाना है.

आंकड़ों के लिहाज से दोनों ही टीमों के बीच इस मुकाबले में कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है. शुरुआती दो मुकाबलों को देखें तो पाकिस्तान के टॉप ऑर्डर में ओपनर मोहम्मद हफीज को छोड़कर कोई खिलाड़ी खास प्रभावित नहीं कर सका है लेकिन मिडिल और लोअर ऑर्डर के बल्लेबाजों ने अच्छा प्रदर्शन किया है.

मिडिल ऑर्डर में कप्तान शाहिद आफरीदी के अलावा उमर अकमल जैसे खिलाड़ी टीम को मजबूती देते हैं. हालांकि गेंदबाजी में टीम में लंबे समय बाद वापसी करने वाले मोहम्मद आमिर और उमर गुल का प्रदर्शन उतना प्रभावी नहीं रहा है.

दूसरी तरफ मेजबान टीम का टॉप ऑर्डर लगातार धमाकेदार प्रदर्शन कर रहा है. ओपनर मार्टिन गप्टिल और केन विलियम्सन मैच दर मैच रिकॉर्ड तोड़ बल्लेबाजी कर रहे हैं. अगर ये दोनों बल्लेबाज एक बार फिर पुरानी लय में बल्लेबाजी करने में सफल रहे तो न्यूजीलैंड की सीरीज जीतने की संभावनाएं ज्यादा प्रबल हो जाएंगी. न्यूजीलैंड ने तीसरे मुकाबले के लिए अपनी टीम में कोई परिवर्तन नहीं किया है.

 

स्वच्छता दिवस का टोटका

बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए देश में टोटके अपनाए जा रहे हैं. गुड़गांव में हाल ही में कुछ इलाकों में तो कार मुक्त दिन मनाया गया और कोई भी गाड़ी लाने की अनुमति नहीं दी गई. लोग या तो पैदल चल कर आए या बसों में आए. दिल्ली भी ऐसा प्रयोग कर रही है. कई शहरों में 2 घंटों का ब्लैकआउट रखा जाता है ताकि बिजली खर्च कम करने की आदत पडे़. इन्हें टोटके इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह समस्या का हल नहीं. हमारे देश में बढ़ते प्रदूषण का कारण हमारा गंदगी प्रेम है. हम दुनिया के निसंदेह सब से गंदे देश में रहते हैं और ढोल पीटते रहते हैं कि यहीं ज्ञान का उदय हुआ, यहीं जगद्गुरु हैं, यहीं महान देवीदेवता हुए. यथार्थ यह है कि यहां गंदगी फैलाना ही धर्म है और गंदगी हटाना अधर्म, और प्रदूषण इसीलिए होता है.

देश का कोई कोना देख लें, राष्ट्रपति भवन के 500 मीटर का दायरा देख लें, रेसकोर्स रोड, जहां प्रधानमंत्री का घर है, देख लें. बेतरतीब पौधे, पत्तों के ढेर, आधी उगी घास, टेढ़ी सड़क, सड़क पर कूड़ा, टूटे कूड़ेदान, न जलती स्ट्रीट व ट्रैफिक लाइटें आप को 1 मील के सरकारी दायरे में दिख जाएंगी, उस दायरे में जहां चप्पेचप्पे पर सरकारी नजर है. सस्पैंडड पार्टीकल्स की चिंता और कार्बन डाईऔक्साइड या कार्बन मोनोऔक्साइड का रोना वह देश रोए जो अपने खाए केले के छिलके, पान की थूक, पेशाब, पालतू कुत्तों का पाखाना साफ करना सीख गया हो. तो कार टोटका क्या होगा? इसे लोग एक मुख्यमंत्री की विजिट की तरह समझेंगे जिस के आने पर आताजाता ट्रैफिक रुक जाता है. एक दिन कुछ पैदल चल लिए, चलिए भगवान की यही इच्छा है.

सफाई तो हमारे दिमाग में कहीं नहीं है, दूरदूर तक नहीं है क्योंकि उस की इकलौती जिम्मेदारी हम ने जन्मजात दलितों को दे रखी है. नई झाड़ुओं से स्वच्छता दिवस मना कर टोटका कर लेना आसान है पर देश में कोनेकोने में फैली गंद को निपटाना कोई नहीं चाहता क्योंकि यह काम ही गंदा है. कारों को दोष दें पर उस से ज्यादा वह मानसिकता जिम्मेदार है जिस में हम गंद में रह कर भी खुश हैं. बदबूदार नाले के पास मकान बना सकते हैं, गंदे पानी से धुली सब्जी कच्ची चबा सकते हैं.

कप्तानी के लिए अभी भी बेस्ट ऑप्शन धौनी: हस्सी

टीम इंडिया के कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी की लिए पिछला एक साल काफी मुश्किलों भरा रहा है. उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने वनडे और टी-20 फॉरमैट कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया है और इसके लिए लगातार उनकी कप्तानी की आलोचना भी हो रही है. इन सब के बीच धौनी के बचाव में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज माइक हस्सी उतर आए हैं.

हस्सी ने कहा कि अभी भी वह टीम की कप्तानी के लिए बेस्ट ऑप्शन हैं और बल्लेबाजी में भी उन्हें खत्म नहीं माना जा सकता. धौनी चौथे वनडे में खाता खोले बिना आउट हो गए और जीत के करीब पहुंचकर भारत को 25 रन से हार झेलनी पड़ी.

धौनी फिनिशर की भूमिका नहीं निभा पाने के कारण लंबे समय से आलोचना झेल रहे हैं. हस्सी ने कहा, 'मैं अभी भी धौनी का पक्ष लूंगा. वह बेस्ट ऑप्शन हैं. लोग भूल जाते हैं कि यह आसान काम नहीं है. आप हर बार आकर 30 गेंद में 60 रन नहीं बना सकते. गेंदबाज काफी चालाक होते जा रहे हैं और उन्हें धौनी की ताकतों का अहसास है लिहाजा हालात हमेशा एक से नहीं रहेंगे.'

उन्होंने कहा कि युवा भारतीय बल्लेबाजों को उनसे फिनिशिंग की कला सीखनी चाहिए. उन्होंने कहा, 'हर बार आप उनसे यह अपेक्षा नहीं कर सकते. इतने लंबे समय तक उन्होंने भारत के लिए यह भूमिका निभाई है. मैं तो यही कहूंगा कि जब तक उन्हें लगता है कि वह कप्तानी कर सकते हैं, उन्हें ही भारत का कप्तान होना चाहिए. युवाओं को धौनी से दबाव के हालात से मैच जिताने की कला सीखनी चाहिए.'

भारत लगातार चार मैच हार चुका है लेकिन हस्सी ने कहा कि टीम खराब नहीं खेली. हस्सी ने कहा, 'भारत ने काफी अच्छी क्रिकेट खेली है. उसने हर बार 300 रन बनाए. वैसे भी ऑस्ट्रेलिया में पहले बल्लेबाजी करने वाले को मुश्किल आती है क्योंकि पिचें बल्लेबाजों की मददगार हैं. मेहमान टीमों के लिए यहां जीतना आसान नहीं होता.'

उन्होंने भारतीय गेंदबाजी के बारे में कहा, 'मुझे भारत के गेंदबाज पसंद हैं. ईशांत शर्मा और उमेश यादव अच्छे गेंदबाज हैं. ऑस्ट्रेलिया में हालात के अनुकूल ढलने में समय लगता है. पिछले साल भी ऐसा हुआ और उसके बाद वर्ल्ड कप में उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया.'

उन्होंने कहा, 'हमने बल्लेबाजों को भी देखा है. शिखर धवन भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर फॉर्म हासिल करने के लिए जूझते रहे और बाद में वर्ल्ड कप में अच्छा खेले. यहां समय लगता है.' भारत में टी-20 वर्ल्ड कप के पहले दौर में हस्सी ऑस्ट्रेलियाई टीम के सलाहकार होंगे. भारत के युवा खिलाड़ियों में वह रिषि धवन से काफी प्रभावित हैं.

उन्होंने कहा, 'मैंने उसे आईपीएल में देखा है और ये पिचें उसकी गेंदबाजी को रास आती हैं. बीच के ओवरों के लिए वह काफी उपयोगी गेंदबाज है. अगर वह अच्छा खेलता है तो भारत के लिए एक ऑलराउंडर की कमी पूरी कर देगा.'

 

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